hotaks444
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विदाई होने मे थोड़ी देरी थी इसलिए मैं अपने कमरे मे जा के बैठ गयी.सुबह हो ही रही थी. मैने सोचा कि नहा धो कर फ्रेश हो जाउ, क्योंकि थोड़ी ही देर मे बिदाई की हड़बड़ शुरू हो जाएगी. बाथ टब मे पानी भर के मैं बाहर आई तो देखा, वो. और जब मैने उसकी हालत देखी तो मुस्कराए बिना नही रह सकी. कोई भी देखे तो यही कहता, कि जबरदस्त चुदवा के आ रही है. बाल बिखरे, गालों पे दाँतों के निशान, टांगे फैली, और गोरी जाँघो पे वीर्य के दागकपड़े लिथड़े,
मैने पूछा, " हे क्या तुम जनवासे नही गयी और क्या दुबारा"
" हाँ भाभी हम लोग पैकेट लेके निकल ही रहे थे, कि दीदी की जेठानी मिल गयी.वो जनवासे जा रही थी. उन्होने सारे पैकेट लेलीए और कहा वो बँटवा देंगी.और दुबारा जीजू के पास आपने भेजा था तो वो तो होना ही था भूके शेर के पास आपशिकार भेजेंगी तो वो क्या छोड़ेगा. हंस कर वो बोली.
" अच्छा चलानहा के फ्रेश हो जा, मैं भी नहाने जा रही थी. फिर बताना शेर ने शिकार कैसे किया."
बाथरूम मे जाकर मैने उसका टॉप एक झटके मे खींच के उतार दिया. एक रात मे ही उसके जोबन पे फरक आ गया था. मसल मसल के उसके जीजा ने लाल कर दिया था और निपल भी और उनके दाँतों के निशान, खूब कस के उभार के कयि जगहों पे. और तब तक उसने खुद अपनी स्कर्ट सरका के उतार दी. मैने नीचे देखा तो चूत की पुट्तिया उभर के सामने आ गई थी और लंड के धक्कों से चूत अच्छी तरह लाल हो गयी थी. और गाढ़े सफेद थक्कों मे वीर्य जगह जगह जमा था. चूतड़ पर मट्टी लगी थी. मैने उसे तब मे लिटा दिया और खुद फ्रेश होने लगी.
" थोड़ी देर टब मे लेटी रहेगी तो थकान भी मिट जाएगी और सफाई भी हो जाएगी. हाँ जाँघो अच्छी तरह फैला ले, जिससे अंदर तक सफाई हो जाए." मैं बोली. मैने भी अपना मेक अप उतारना शुरू कर दिया. बिना पूछे वो शिकार की कहानी सुनाने लगी.
"जब मैं वहाँ पहुँची तो जीजा कैटरसे के पास बैठे थे.खूब मौज मस्ती चल रही थी.जीजू पकौड़ा टेस्ट कर रहे थे. मैने उन्हे चिढ़ाया, " क्यों जीजू, अकेले अकेले"
" अरे नही, तुम भी खाओ," वो बोले और अपने मूह से अधाखाया पकौड़ा निकाल के, मेरे मूह मे डाल दिया और मैं गडप भी कर गयी. उन्होने खीच कर मुझे अपने पास सटा कर, थोड़ा सटा, थोड़ा अपनी गोद मे कर के बैठा लिया. उनका एक हाथ मेरे कंधे पे था. मुझे देख कर शांत हो गये लोगों से वो बोले अरे गाओ ना यार अपना ही माल है. और जैसे अपनी बात पे ज़ोर देते हुए, उनका हाथ सरक कर मेरे कंधे से मेरे उभार पर आ गया और उन्होने कस के दबा दिया. जैसे, मौन सहमति देते हुए मैं और उनसे चिपक गयी. तब तक एक वेटर कटलेट ले आया. जीजू ने फिर थोड़ा खा के मेरे होंठो के बीच दे दिया. अब मैं भी मूड मे आ गयी थी, मैने रोल को अपने गुलाबी होंठो के बीच घुमाया और फिर थोड़ा थोड़ा कर के, जैसे मैं कोई मोटा शिश्न चूस रही हों अपने मूह मे ले लिया. उसका स्वाद एक दम अलग था, वैसा मैने पहले कभी नही खाया था, बहोत टेस्टी लग रहा था. उधर जीजू अब खुल के टॉप के उपर से मेरे जोबन का मज़ा ले रहे थे. और केटरिंग वाले भी मस्ती मे एक पुराने फिल्मी गाने की पैरोडी गा रहे थे,
रम्मैया वस्ता वैया, मैने बुर तुझको दिया, मैने बुर तुझको दिया
मैं भी जीजा के साथ गाने पे ताल दे रही थी. तभी वेटर ने मुझसे पूछा,
" कैसा टेस्ट था, मटन कटलेट का,"
" क्या, मटन नान वेज था." मैने घबरा कर पूछा.
( बेचारी मेरी ननद वह एकदम प्योर् वेज थी.)
" और क्या, और पकोड़ा जो तुमने इतते स्वाद से खाया वह भी तो चिकेन पकौड़ा था. क्या तुम्हारा धरम भ्रष्ट हो गया,
अरे धरम तो तुम्हारा थोड़ी देर पहले ही मैने भ्रष्ट ही कर दिया था, अब बचा ही क्या है.और एक बार भ्रष्ट हो गया तो अब पूरा मज़ा लो." फिर सब के सामने खुल के मेरी चूंची मीजते हुए, वेटर से बोलो,
" ज़रा फिश छाप भी तो टेस्ट करा दो, ले आओ ." मेरे लाख ना नुकुर करते हुए भी उन्होने मुझे खिला के खुद बाकी ले लिया और नीचे रखी एक बोतल उठा कर जिसमे दारू लग रही थी, पी और फिर मेरी ओर बढ़ा दी. मैं हिच किचा
रही थी पर उन्होने मेरे मूह मे लगा, बड़े प्यार से इसरार किया, " अरे मेरी जान मेरे कहने से दो घूँट बस दो घूँट." और जैसे ही मैने होंठ खोल के बोतल लगाई, उन्होने अपने तगड़े हाथ से मेरी ठुड्डी पकड़ के, मेरा चेहरा उपर उठा दिया और पूरी ताक़त से बोतल उठा दी. धीरे धीरे करके मेरे हलक से वह नीचे उतरने लगी.जैसे तेज़ाब सी तेज थी. और एक तिहाई बोतल वो खाली करवा के माने. फिर प्यार से मेरे गाल पे चुम्मा ले के बोले," अरे मेरी जान ज़्यादा नखडा नही दिखाते वरना ज़बरदस्ती करना पड़ता है." और फिर उन्होने एक प्लेट मटन बिर्यानी भी मंगाई और अपने हाथ से और दारू के साथ, दो घूँट वो लेते, दो घूँट मैं. थोड़ी ही देर मे मैं खुद अपने हाथ से खाने लगी. मैं सब कुछ भूल सा गयी .मेरे पूरे तन बदन मे एक मस्त आग सी लग गयी थी.भाभी.
जीजू ने मुझे अपने गोद मे अब पूरी तरह बिठा लिया था, खूब खुल के मेरी चूंचिया मसल रहे थे और पायजामे मे
उनका खुन्टा अच्छी तरह खड़ा था. उन्होने मेरे हाथ मे उसे पकड़ाने की कोशिश की थोड़ा तो मैं झिझाकीपर उन्होने ज़बरदस्ती पकड़ा दिया. एकदम कड़ा लग रहा था, और खूब लंबा"
" अरे असली बात बताओ तू चुदि कैसे." मैने हंस के पूछा.
" बताती हू भाभी थोड़ी देर मे कैटर्स ने चाभी माँगी, स्टोर कीतो उन्होने मुझे चाभी देकर कहा, जाओ खोल के दे दो इनको जो माँगे. मैं कमरे मे गयी..
" वही छोटा सा कमरा ना जिसमे मिठाई, बाकी सब सामान रखा है, मिट्टी का फर्श है" मैने पूछा.
" हाँ वही जब वो सब सामान निकाल के गया तो मैने देखा कि पीछे से जीजू आ गये और उन्होने अंदर से कमरा बंद कर लिया और मुझे पीछे से कस के बाहों मे भर लिया. मेरी स्कर्ट उठा के वो मेरे रसीले चुतडो को सहला रहे थे. हम दोनों वही देख रहे थे, पर कोई जगह नही दिख रही थी. तभी एक बेंच पर उनकी निगाह पड़ी और वो मुझे झुकाकर स्टूल पकड़ने के लिए बोले और मेरी स्कर्ट कमर तक उठा दी, और ज़ोर से बोले, " साली, निहुर." ( झुक जा )
मैं अपना चूतड़ और उपर उठा कर झुक गयी. मेरे चूतड़ पे दो हाथ कस के मार के वो बोले, " अरे साली, जैसे कुतिया चुदवाती है ना, वैसे चुदवा." और जब मैने अपना मूह पीछे कर उनसे आँखो से ये कहने की कोशिस की , कि जीजू बाहर सब लोग सुन रहे होंगे. तो उन्होने जबरन मेरा सर नीचे दबाकर मेरा टॉप भी पूरी तरह से उठा दिया और कस के चूंची मसलते हुए बोले, " अरे साली को चुदवाने मे शरम नही और चुदाइ के बारे मे सुनने मे शरम है."
उन्होने एक हाथ मेरी जांघों के बीच मे कर के मेरी बुर कस के मसल दी. कस के चूंची और बुर दोनो की रगड़ाई से , मेरी जांघे अपने आप फैल गयी. उनके पाजामे के नीचे उतरने की सरसराहट से मैं समझ गयी थी लेकिन उन्होने अपनी एक उंगली मेरी बुर मे धीरे धीरे कर एक पेल दी और फिर उसे अंदर बाहर करने लगे. उनका दूसरा हाथ कस के मेरी चूंचियों को रगड़ रहा था. जल्द ही मेरी चूत गीली हो गयी पर वो उसे बिना रुके जैसे उंगली से ही मेरी चूत चोद के मुझे झाड़ना चाहते हों कस कस के चोदते रहे. मैं भी मस्ती मे चूतड़ हिला रही थी, कुछ देर मे जब मैं आलमोस्ट झडने के कगार पे पहुँच गयी तो गप्प से उन्होने अपनी उंगली निकाल ली और मेरे होंठ से सटा के कस के बोले, " ले चूस चाट अपनी चूत का रस."
मैने पूछा, " हे क्या तुम जनवासे नही गयी और क्या दुबारा"
" हाँ भाभी हम लोग पैकेट लेके निकल ही रहे थे, कि दीदी की जेठानी मिल गयी.वो जनवासे जा रही थी. उन्होने सारे पैकेट लेलीए और कहा वो बँटवा देंगी.और दुबारा जीजू के पास आपने भेजा था तो वो तो होना ही था भूके शेर के पास आपशिकार भेजेंगी तो वो क्या छोड़ेगा. हंस कर वो बोली.
" अच्छा चलानहा के फ्रेश हो जा, मैं भी नहाने जा रही थी. फिर बताना शेर ने शिकार कैसे किया."
बाथरूम मे जाकर मैने उसका टॉप एक झटके मे खींच के उतार दिया. एक रात मे ही उसके जोबन पे फरक आ गया था. मसल मसल के उसके जीजा ने लाल कर दिया था और निपल भी और उनके दाँतों के निशान, खूब कस के उभार के कयि जगहों पे. और तब तक उसने खुद अपनी स्कर्ट सरका के उतार दी. मैने नीचे देखा तो चूत की पुट्तिया उभर के सामने आ गई थी और लंड के धक्कों से चूत अच्छी तरह लाल हो गयी थी. और गाढ़े सफेद थक्कों मे वीर्य जगह जगह जमा था. चूतड़ पर मट्टी लगी थी. मैने उसे तब मे लिटा दिया और खुद फ्रेश होने लगी.
" थोड़ी देर टब मे लेटी रहेगी तो थकान भी मिट जाएगी और सफाई भी हो जाएगी. हाँ जाँघो अच्छी तरह फैला ले, जिससे अंदर तक सफाई हो जाए." मैं बोली. मैने भी अपना मेक अप उतारना शुरू कर दिया. बिना पूछे वो शिकार की कहानी सुनाने लगी.
"जब मैं वहाँ पहुँची तो जीजा कैटरसे के पास बैठे थे.खूब मौज मस्ती चल रही थी.जीजू पकौड़ा टेस्ट कर रहे थे. मैने उन्हे चिढ़ाया, " क्यों जीजू, अकेले अकेले"
" अरे नही, तुम भी खाओ," वो बोले और अपने मूह से अधाखाया पकौड़ा निकाल के, मेरे मूह मे डाल दिया और मैं गडप भी कर गयी. उन्होने खीच कर मुझे अपने पास सटा कर, थोड़ा सटा, थोड़ा अपनी गोद मे कर के बैठा लिया. उनका एक हाथ मेरे कंधे पे था. मुझे देख कर शांत हो गये लोगों से वो बोले अरे गाओ ना यार अपना ही माल है. और जैसे अपनी बात पे ज़ोर देते हुए, उनका हाथ सरक कर मेरे कंधे से मेरे उभार पर आ गया और उन्होने कस के दबा दिया. जैसे, मौन सहमति देते हुए मैं और उनसे चिपक गयी. तब तक एक वेटर कटलेट ले आया. जीजू ने फिर थोड़ा खा के मेरे होंठो के बीच दे दिया. अब मैं भी मूड मे आ गयी थी, मैने रोल को अपने गुलाबी होंठो के बीच घुमाया और फिर थोड़ा थोड़ा कर के, जैसे मैं कोई मोटा शिश्न चूस रही हों अपने मूह मे ले लिया. उसका स्वाद एक दम अलग था, वैसा मैने पहले कभी नही खाया था, बहोत टेस्टी लग रहा था. उधर जीजू अब खुल के टॉप के उपर से मेरे जोबन का मज़ा ले रहे थे. और केटरिंग वाले भी मस्ती मे एक पुराने फिल्मी गाने की पैरोडी गा रहे थे,
रम्मैया वस्ता वैया, मैने बुर तुझको दिया, मैने बुर तुझको दिया
मैं भी जीजा के साथ गाने पे ताल दे रही थी. तभी वेटर ने मुझसे पूछा,
" कैसा टेस्ट था, मटन कटलेट का,"
" क्या, मटन नान वेज था." मैने घबरा कर पूछा.
( बेचारी मेरी ननद वह एकदम प्योर् वेज थी.)
" और क्या, और पकोड़ा जो तुमने इतते स्वाद से खाया वह भी तो चिकेन पकौड़ा था. क्या तुम्हारा धरम भ्रष्ट हो गया,
अरे धरम तो तुम्हारा थोड़ी देर पहले ही मैने भ्रष्ट ही कर दिया था, अब बचा ही क्या है.और एक बार भ्रष्ट हो गया तो अब पूरा मज़ा लो." फिर सब के सामने खुल के मेरी चूंची मीजते हुए, वेटर से बोलो,
" ज़रा फिश छाप भी तो टेस्ट करा दो, ले आओ ." मेरे लाख ना नुकुर करते हुए भी उन्होने मुझे खिला के खुद बाकी ले लिया और नीचे रखी एक बोतल उठा कर जिसमे दारू लग रही थी, पी और फिर मेरी ओर बढ़ा दी. मैं हिच किचा
रही थी पर उन्होने मेरे मूह मे लगा, बड़े प्यार से इसरार किया, " अरे मेरी जान मेरे कहने से दो घूँट बस दो घूँट." और जैसे ही मैने होंठ खोल के बोतल लगाई, उन्होने अपने तगड़े हाथ से मेरी ठुड्डी पकड़ के, मेरा चेहरा उपर उठा दिया और पूरी ताक़त से बोतल उठा दी. धीरे धीरे करके मेरे हलक से वह नीचे उतरने लगी.जैसे तेज़ाब सी तेज थी. और एक तिहाई बोतल वो खाली करवा के माने. फिर प्यार से मेरे गाल पे चुम्मा ले के बोले," अरे मेरी जान ज़्यादा नखडा नही दिखाते वरना ज़बरदस्ती करना पड़ता है." और फिर उन्होने एक प्लेट मटन बिर्यानी भी मंगाई और अपने हाथ से और दारू के साथ, दो घूँट वो लेते, दो घूँट मैं. थोड़ी ही देर मे मैं खुद अपने हाथ से खाने लगी. मैं सब कुछ भूल सा गयी .मेरे पूरे तन बदन मे एक मस्त आग सी लग गयी थी.भाभी.
जीजू ने मुझे अपने गोद मे अब पूरी तरह बिठा लिया था, खूब खुल के मेरी चूंचिया मसल रहे थे और पायजामे मे
उनका खुन्टा अच्छी तरह खड़ा था. उन्होने मेरे हाथ मे उसे पकड़ाने की कोशिश की थोड़ा तो मैं झिझाकीपर उन्होने ज़बरदस्ती पकड़ा दिया. एकदम कड़ा लग रहा था, और खूब लंबा"
" अरे असली बात बताओ तू चुदि कैसे." मैने हंस के पूछा.
" बताती हू भाभी थोड़ी देर मे कैटर्स ने चाभी माँगी, स्टोर कीतो उन्होने मुझे चाभी देकर कहा, जाओ खोल के दे दो इनको जो माँगे. मैं कमरे मे गयी..
" वही छोटा सा कमरा ना जिसमे मिठाई, बाकी सब सामान रखा है, मिट्टी का फर्श है" मैने पूछा.
" हाँ वही जब वो सब सामान निकाल के गया तो मैने देखा कि पीछे से जीजू आ गये और उन्होने अंदर से कमरा बंद कर लिया और मुझे पीछे से कस के बाहों मे भर लिया. मेरी स्कर्ट उठा के वो मेरे रसीले चुतडो को सहला रहे थे. हम दोनों वही देख रहे थे, पर कोई जगह नही दिख रही थी. तभी एक बेंच पर उनकी निगाह पड़ी और वो मुझे झुकाकर स्टूल पकड़ने के लिए बोले और मेरी स्कर्ट कमर तक उठा दी, और ज़ोर से बोले, " साली, निहुर." ( झुक जा )
मैं अपना चूतड़ और उपर उठा कर झुक गयी. मेरे चूतड़ पे दो हाथ कस के मार के वो बोले, " अरे साली, जैसे कुतिया चुदवाती है ना, वैसे चुदवा." और जब मैने अपना मूह पीछे कर उनसे आँखो से ये कहने की कोशिस की , कि जीजू बाहर सब लोग सुन रहे होंगे. तो उन्होने जबरन मेरा सर नीचे दबाकर मेरा टॉप भी पूरी तरह से उठा दिया और कस के चूंची मसलते हुए बोले, " अरे साली को चुदवाने मे शरम नही और चुदाइ के बारे मे सुनने मे शरम है."
उन्होने एक हाथ मेरी जांघों के बीच मे कर के मेरी बुर कस के मसल दी. कस के चूंची और बुर दोनो की रगड़ाई से , मेरी जांघे अपने आप फैल गयी. उनके पाजामे के नीचे उतरने की सरसराहट से मैं समझ गयी थी लेकिन उन्होने अपनी एक उंगली मेरी बुर मे धीरे धीरे कर एक पेल दी और फिर उसे अंदर बाहर करने लगे. उनका दूसरा हाथ कस के मेरी चूंचियों को रगड़ रहा था. जल्द ही मेरी चूत गीली हो गयी पर वो उसे बिना रुके जैसे उंगली से ही मेरी चूत चोद के मुझे झाड़ना चाहते हों कस कस के चोदते रहे. मैं भी मस्ती मे चूतड़ हिला रही थी, कुछ देर मे जब मैं आलमोस्ट झडने के कगार पे पहुँच गयी तो गप्प से उन्होने अपनी उंगली निकाल ली और मेरे होंठ से सटा के कस के बोले, " ले चूस चाट अपनी चूत का रस."