hotaks444
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“चल बन्नो उठ, अब टाइम हो गया है…” मैंने उसे जगाया और बाथरूम में ले गयी। वहां गुनगुने पानी में मैंने बाथटब में गुलाब की पंखुड़ियां डालकर पहले ही तैयार कर रखा था।
सब कपड़े उतारकर वो उसमें लेट गयी। उसके लंबे मोटे घने काले बाल बाहर छितरा रहे थे। एक सुगंधित आयुर्वेदिक शैम्पू से मैंने उसके बाल शैम्पू किये। उसके लंबे गोरे हाथों और पतली उंगलियों में अच्छी तरह मैनीक्योर किया, नाखून उसके लंबे थे तो उन्हें शेप किया और फिर उसे बैठाकर उसके पैर फूट-बाथ में डालकर रखा। उसकी पुरानी पालिश उतारी, पैर की उंगलियों के नाखून फाइल किये, अंगुलियों के बीच से रगड़-रगड़ के साफ किया और फिर अच्छी तरह स्क्र्ब किया।
गुड्डी- “हां भाभी, बहुत अच्छा लग रहा है…”
“अभी और अच्छा लगेगा मेरी बन्नो…” तभी मेरी निगाह उसकी झांटों पे गयी। उसने साफ तो किया था पर हल्की-हल्की दिख रहीं थी। मैंने पूछा- “क्यों, कब साफ किया ये घास फूस?”
गुड्डी- “भाभी 4-5 दिन हो गये…”
अरे तो चल फिर मैं इन्हें साफ करती हूं और फिर मैंने सारे बाल, कांखों से लेकर नीचे तक क्रीम लगाकरके साफ किये और हालांकी उसके पैर चिकने थे फिर भी एपिलेटर से उन्हें एकदम ही चिकना किया। फिर कहा- “चल अब फिर से लेट जा टब में। अब मैं तेरे बाल धोती हूं…” और बाल धोने के बाद फिर चंदन के साबुन से उसे मल-मल के नहलाया। जब वह तौलिये से पोंछकर निकली तो एकदम फ्रेश लग रही थी। फिर मैं उसे अपने कमरे में ले गयी मेक-अप करने के लिये।
जब मैं मेहंदी लगाने बैठी, तो गुड्डी बोली- “नहीं भाभी, ये नहीं इसकी क्या जरूरत है?”
“अरे बन्नो इसकी तो सबसे ज्यादा जरूरत है, जब तुम अपने मेंहदी लगे हाथों से उसका लण्ड पकड़ोगी तो एकदम तन्ना के खड़ा हो जायेगा…” फिर मेकअप शुरू करने के साथ मैंने उसे समझाया की मेकअप की क्या खास बातें हैं। हर लड़की के चहरे में कुछ खास बातें हैं वो हाइलाइट करनी चाहिये इसी तरह शरीर में।
“भाभी मेरे चेहरे में और शरीर में क्या खास है…”
“सब कुछ मेरी बन्नो, बस तुम जानती नहीं की तुम क्या हो। एक दिन तुम शहर में आग ना लगा दो तो कहना, सारे लौंडे तेरा नाम लेकर मुटठ मारेंगें। तेरी हाइ चीख बोन्स, ये शापर् होंठों जिसके लिये लड़कियां मरती हैं तेरे एकदम नेचुरल हैं। और तेरे शरीर में तेरे मम्मे, तेरी पतली कमर और स्लेंडर बाडी फ्रेम पे ये तो जान मारते हैं। तू थोड़ा सा ध्यान दे ना तो बस… तेरा शरीर एकदम मेच्योर हो रहा है और तेरा चेहरा भोला-भाला बच्चों सरीखा, बस इसी पे तो लोग मरते हैं। और हां, मेक-अप के पहले ये तय कर लो की क्या मौका है तुम्हें कैसा लुक देना है…” उसके चेहरे का फेसियल करते हुए मैंने उसे समझाया।
फेस-पैक लगाकरके थोड़ी देर के लिये मैंने छोड़ दिया। चंदन पाउड़र, मलाई और हल्दी की मैंने खास क्रीम बनाई थी। वो मैंने उसके पूरे देह में लगाई, खासकर उरोजों पे। फिर उसे पलट के उसके नितंबों, जंघाओं को अच्छी तरह गूंथ के मालिश करते हुए सारी थकान निकाल दी।
गुड्डी- “भाभी बहुत आराम लग रहा है। मैं इतनी हल्की लग रही हूं कि मन कर रहा है जैसे सो जाऊँ…”
“सो जा, रात भर तो रात-जगा होना ही है…” उसके गुलाबी चूतड़ों को दबाते और मसलते हुए मुझे एक शरारत सूझी और मैंने उस लेप में थोड़ा और सुगंधित चंदन का तेल मिलाया और उसे ढेर सारा, अपनी बीच की उँगली में लपेटकर उसकी गाण्ड थोड़ी फैलाकर अंदर तक घुसेड़ दिया।
गुड्डी- “हे भाभी…” वो चिल्लायी।
“अरे सारी रात गमकती रहेगी और वो तेरा यार ढूँढ़ता रहेगा की कहां से महक आ रही है…” मैं बाली।
उसका फेस पैक सूख चुका था। उसे उतारकर मैंने मेक-अप शुरू किया। काली कजरारी आँखों से उसकी बड़ी घनी भौंहों को संवार कर, पलकों पे मस्कारा, बरोनियों में आई लैशेज, और फिर काजल की तीखी रेखा। ऊँची चीक-बोन्स को थोड़ा और हाईलाइट, शार्प करके गुलाबी भरे-भरे गालों पे थोड़ा सा रूज लगाकर, उसके होंठ यूं ही बड़े रसीले लगते थे। उसके गोरे चेहरे को ध्यान में रखकर मैंने गाढ़ी लाल लिपस्टिक चुनी और फिर ब्रस से लाइनर और गीले लुक के लिये लिप-ग्लास भी लगाया फिर मैचिंग नेल पालिश। फिर पूछा- “हे क्या पहनोगी? वैसे कित्ती देर तक तुम्हें पहने रहने देगा वो? लंहगा चलेगा?”
गुड्डी- “नहीं भाभी, बहुत फारमल लगेगा…”
“तो ठीक है, साड़ी चलेगी? मेरे पास एक अच्छी ब्रोकेड की गुलाबी साड़ी है, लाल बाडर्र की…”
गुड्डी- “हां भाभी, साड़ी ठीक है…”
“आज जरा उसे मेहनत करने दो…” और ये कहकर मैंने उसे पैंटी और ब्रा दी। दोनों ही गुलाबी, और लेसी थीं। पैंटी बहुत डीप-कट और ब्रा हाफ थी और उसके उभारों को और उभार रही थी। मैं अपने गहनों का बाक्स और चूड़ी-केस उठाकर ले आई। कुहनी तक लाल लाल चूड़ियां, बीच-बीच में लाख के और अपने सोने के जड़ाऊदार कंगन, पतली लंबी उंगलियों में अंगूठियां। फिर मैंने कहा- “गुड्डी, मेरी तेरी साइज बराबर है। कभी मैं अपनी जगह तुम्हें तुम्हारे भैया के पास भेज दूंगी तो उन्हें पता नहीं चलेगा…”
गुड्डी- “हां भाभी, लेकिन एक चीज छोड़ के…” मेरे सीने की ओर देखकर शरारत से वो बोली।
“अरे वो भी मेरे बराबर हो जायेंगें, बस इसी तरह यारों से रगड़वाती मसलवाती रहो…” उसका बाल बनाते मैं बोली।
उसके बाल वैसे ही खूब मोटे और लंबे थे उसके नितंबों से भी नीचे। मैंने गजरे लगाकरके उसकी चोटी बनाई और फिर उसमें लाल सुनहला परिंदा लगाया। साड़ी तो मेरी हो गयी पर ब्लाउज का सवाल था। मुझे एक आइडिया आया- “हे वो चोली कैसे रहेगी जो तेरे लिये वो बार गर्ल वाले प्ले के लिये सिलवायी है…”
गुड्डी- “नहीं भाभी, वो बहुत वैसी है, खुली-खुली है…”
“अरे तो क्या हुआ? ले चल पहन…” और मैंने ब्रा के ऊपर लाल रंग की चोली पहना दी। सच में वो बहुत लो-कट थी और बैकलेस, नुकीले उभारों वाली, स्ट्रिंग से बंधी। मैंने उसे पीछे से कसकर बांध दिया। जोबन खूब उभर के सामने आ गये और पीठ तो पूरी की पूरी दिख रही थी, खूब गोरी और चिकनी, मस्त-मस्त। उसकी पीठ सहलाती मैं बोल पड़ी- “बड़ी सेक्सी और क्लासिक पीठ है तेरी…”
गुड्डी- “क्यों भाभी, ऐसी क्या खास बात है मेरी पीठ में?” इठला के उसने पूछा।
“काम शास्त्र में लिखा है कि जिस स्त्री की पीठ केले के पत्ते की तरह हो, चिकनी और बीच में गहराई हो, उसमें काम भावना बहुत प्रबल होती है। देख तेरी एकदम ऐसी ही है…” उसकी रीढ़ को उँगली से सहलाते हुये मैं बोली।
गुड्डी- “धत्त भाभी…” शर्मा के वो बोली।
साड़ी मैंने उसके चौड़े कूल्हों के नीचे बांध के पहनाई, और नाभी से तो बहुत नीचे, कम से कम एक बीत्ते नीचे बांधी और फिर बाकी श्रिंगार, कानों में झुमके, नाक में एक छोटी सी नथ और फिर उसकी सुराहीदार लंबे गले में एक लंबा सा हार जिसका बड़ा सा पेंडेट सीधे उसके, दोनों उरोजों के बीच जा टिका, बांहों में बाजूबंद और कमर में घूंघरुओं वाली सोने की पतली सी करधनी पहना दी।
जैसे ही मैंने उसके पांवों की ओर देखा तो मेरे मुँह से निकल पड़ा- “हे असल चीज तो छूट ही गयी…”
गुड्डी- “क्या भाभी?”
“अरे तू बैठ बताती हूं…” और मैं जाके अपनी महावर की शीशी ले आई और रच-रच के लगाने लगी। उसकी एंड़ियां वैसी ही गुलाबी थीं। खूब गाढ़ा महावर लगाते हुये मैं मुश्कुरा रही थी।
मुझे मुश्कुराता देखकर उसने मुश्कुराने का कारण पूछा।
मैंने हँसकर उसे बताया की जब मैं छोटी थी तो पड़ोस में मेरी एक नयी-नयी भाभी आयीं। उनकी सास, जेठानी और ननदें नाईन से कहकर रोज रात को नयी बहू को महावर लगवाती थीं और अगले दिन उसके पती को देखकर सब मुश्कुराती और उसे छेड़ती।
जब मैंने एक दिन पूछा तो सब और हँसने लगी। और मेरी भाभी ने मुझसे पूछा- “देख उसके कान के पास लाल रंग लगा है ना?”
मैंने तब ध्यान से देखा की उनके कान के पास महावर लगा था।
भाभी ने हँसकर कहा- “देख इसके पैर का महावर इसके मर्द के कान में कैसे लग गया?”
मेरी एक दूसरी भाभी ने छेड़ा- “अरे टांगें उठवाओगी तो सब पता चल जायेगा…”
भाग ७ समाप्त
सब कपड़े उतारकर वो उसमें लेट गयी। उसके लंबे मोटे घने काले बाल बाहर छितरा रहे थे। एक सुगंधित आयुर्वेदिक शैम्पू से मैंने उसके बाल शैम्पू किये। उसके लंबे गोरे हाथों और पतली उंगलियों में अच्छी तरह मैनीक्योर किया, नाखून उसके लंबे थे तो उन्हें शेप किया और फिर उसे बैठाकर उसके पैर फूट-बाथ में डालकर रखा। उसकी पुरानी पालिश उतारी, पैर की उंगलियों के नाखून फाइल किये, अंगुलियों के बीच से रगड़-रगड़ के साफ किया और फिर अच्छी तरह स्क्र्ब किया।
गुड्डी- “हां भाभी, बहुत अच्छा लग रहा है…”
“अभी और अच्छा लगेगा मेरी बन्नो…” तभी मेरी निगाह उसकी झांटों पे गयी। उसने साफ तो किया था पर हल्की-हल्की दिख रहीं थी। मैंने पूछा- “क्यों, कब साफ किया ये घास फूस?”
गुड्डी- “भाभी 4-5 दिन हो गये…”
अरे तो चल फिर मैं इन्हें साफ करती हूं और फिर मैंने सारे बाल, कांखों से लेकर नीचे तक क्रीम लगाकरके साफ किये और हालांकी उसके पैर चिकने थे फिर भी एपिलेटर से उन्हें एकदम ही चिकना किया। फिर कहा- “चल अब फिर से लेट जा टब में। अब मैं तेरे बाल धोती हूं…” और बाल धोने के बाद फिर चंदन के साबुन से उसे मल-मल के नहलाया। जब वह तौलिये से पोंछकर निकली तो एकदम फ्रेश लग रही थी। फिर मैं उसे अपने कमरे में ले गयी मेक-अप करने के लिये।
जब मैं मेहंदी लगाने बैठी, तो गुड्डी बोली- “नहीं भाभी, ये नहीं इसकी क्या जरूरत है?”
“अरे बन्नो इसकी तो सबसे ज्यादा जरूरत है, जब तुम अपने मेंहदी लगे हाथों से उसका लण्ड पकड़ोगी तो एकदम तन्ना के खड़ा हो जायेगा…” फिर मेकअप शुरू करने के साथ मैंने उसे समझाया की मेकअप की क्या खास बातें हैं। हर लड़की के चहरे में कुछ खास बातें हैं वो हाइलाइट करनी चाहिये इसी तरह शरीर में।
“भाभी मेरे चेहरे में और शरीर में क्या खास है…”
“सब कुछ मेरी बन्नो, बस तुम जानती नहीं की तुम क्या हो। एक दिन तुम शहर में आग ना लगा दो तो कहना, सारे लौंडे तेरा नाम लेकर मुटठ मारेंगें। तेरी हाइ चीख बोन्स, ये शापर् होंठों जिसके लिये लड़कियां मरती हैं तेरे एकदम नेचुरल हैं। और तेरे शरीर में तेरे मम्मे, तेरी पतली कमर और स्लेंडर बाडी फ्रेम पे ये तो जान मारते हैं। तू थोड़ा सा ध्यान दे ना तो बस… तेरा शरीर एकदम मेच्योर हो रहा है और तेरा चेहरा भोला-भाला बच्चों सरीखा, बस इसी पे तो लोग मरते हैं। और हां, मेक-अप के पहले ये तय कर लो की क्या मौका है तुम्हें कैसा लुक देना है…” उसके चेहरे का फेसियल करते हुए मैंने उसे समझाया।
फेस-पैक लगाकरके थोड़ी देर के लिये मैंने छोड़ दिया। चंदन पाउड़र, मलाई और हल्दी की मैंने खास क्रीम बनाई थी। वो मैंने उसके पूरे देह में लगाई, खासकर उरोजों पे। फिर उसे पलट के उसके नितंबों, जंघाओं को अच्छी तरह गूंथ के मालिश करते हुए सारी थकान निकाल दी।
गुड्डी- “भाभी बहुत आराम लग रहा है। मैं इतनी हल्की लग रही हूं कि मन कर रहा है जैसे सो जाऊँ…”
“सो जा, रात भर तो रात-जगा होना ही है…” उसके गुलाबी चूतड़ों को दबाते और मसलते हुए मुझे एक शरारत सूझी और मैंने उस लेप में थोड़ा और सुगंधित चंदन का तेल मिलाया और उसे ढेर सारा, अपनी बीच की उँगली में लपेटकर उसकी गाण्ड थोड़ी फैलाकर अंदर तक घुसेड़ दिया।
गुड्डी- “हे भाभी…” वो चिल्लायी।
“अरे सारी रात गमकती रहेगी और वो तेरा यार ढूँढ़ता रहेगा की कहां से महक आ रही है…” मैं बाली।
उसका फेस पैक सूख चुका था। उसे उतारकर मैंने मेक-अप शुरू किया। काली कजरारी आँखों से उसकी बड़ी घनी भौंहों को संवार कर, पलकों पे मस्कारा, बरोनियों में आई लैशेज, और फिर काजल की तीखी रेखा। ऊँची चीक-बोन्स को थोड़ा और हाईलाइट, शार्प करके गुलाबी भरे-भरे गालों पे थोड़ा सा रूज लगाकर, उसके होंठ यूं ही बड़े रसीले लगते थे। उसके गोरे चेहरे को ध्यान में रखकर मैंने गाढ़ी लाल लिपस्टिक चुनी और फिर ब्रस से लाइनर और गीले लुक के लिये लिप-ग्लास भी लगाया फिर मैचिंग नेल पालिश। फिर पूछा- “हे क्या पहनोगी? वैसे कित्ती देर तक तुम्हें पहने रहने देगा वो? लंहगा चलेगा?”
गुड्डी- “नहीं भाभी, बहुत फारमल लगेगा…”
“तो ठीक है, साड़ी चलेगी? मेरे पास एक अच्छी ब्रोकेड की गुलाबी साड़ी है, लाल बाडर्र की…”
गुड्डी- “हां भाभी, साड़ी ठीक है…”
“आज जरा उसे मेहनत करने दो…” और ये कहकर मैंने उसे पैंटी और ब्रा दी। दोनों ही गुलाबी, और लेसी थीं। पैंटी बहुत डीप-कट और ब्रा हाफ थी और उसके उभारों को और उभार रही थी। मैं अपने गहनों का बाक्स और चूड़ी-केस उठाकर ले आई। कुहनी तक लाल लाल चूड़ियां, बीच-बीच में लाख के और अपने सोने के जड़ाऊदार कंगन, पतली लंबी उंगलियों में अंगूठियां। फिर मैंने कहा- “गुड्डी, मेरी तेरी साइज बराबर है। कभी मैं अपनी जगह तुम्हें तुम्हारे भैया के पास भेज दूंगी तो उन्हें पता नहीं चलेगा…”
गुड्डी- “हां भाभी, लेकिन एक चीज छोड़ के…” मेरे सीने की ओर देखकर शरारत से वो बोली।
“अरे वो भी मेरे बराबर हो जायेंगें, बस इसी तरह यारों से रगड़वाती मसलवाती रहो…” उसका बाल बनाते मैं बोली।
उसके बाल वैसे ही खूब मोटे और लंबे थे उसके नितंबों से भी नीचे। मैंने गजरे लगाकरके उसकी चोटी बनाई और फिर उसमें लाल सुनहला परिंदा लगाया। साड़ी तो मेरी हो गयी पर ब्लाउज का सवाल था। मुझे एक आइडिया आया- “हे वो चोली कैसे रहेगी जो तेरे लिये वो बार गर्ल वाले प्ले के लिये सिलवायी है…”
गुड्डी- “नहीं भाभी, वो बहुत वैसी है, खुली-खुली है…”
“अरे तो क्या हुआ? ले चल पहन…” और मैंने ब्रा के ऊपर लाल रंग की चोली पहना दी। सच में वो बहुत लो-कट थी और बैकलेस, नुकीले उभारों वाली, स्ट्रिंग से बंधी। मैंने उसे पीछे से कसकर बांध दिया। जोबन खूब उभर के सामने आ गये और पीठ तो पूरी की पूरी दिख रही थी, खूब गोरी और चिकनी, मस्त-मस्त। उसकी पीठ सहलाती मैं बोल पड़ी- “बड़ी सेक्सी और क्लासिक पीठ है तेरी…”
गुड्डी- “क्यों भाभी, ऐसी क्या खास बात है मेरी पीठ में?” इठला के उसने पूछा।
“काम शास्त्र में लिखा है कि जिस स्त्री की पीठ केले के पत्ते की तरह हो, चिकनी और बीच में गहराई हो, उसमें काम भावना बहुत प्रबल होती है। देख तेरी एकदम ऐसी ही है…” उसकी रीढ़ को उँगली से सहलाते हुये मैं बोली।
गुड्डी- “धत्त भाभी…” शर्मा के वो बोली।
साड़ी मैंने उसके चौड़े कूल्हों के नीचे बांध के पहनाई, और नाभी से तो बहुत नीचे, कम से कम एक बीत्ते नीचे बांधी और फिर बाकी श्रिंगार, कानों में झुमके, नाक में एक छोटी सी नथ और फिर उसकी सुराहीदार लंबे गले में एक लंबा सा हार जिसका बड़ा सा पेंडेट सीधे उसके, दोनों उरोजों के बीच जा टिका, बांहों में बाजूबंद और कमर में घूंघरुओं वाली सोने की पतली सी करधनी पहना दी।
जैसे ही मैंने उसके पांवों की ओर देखा तो मेरे मुँह से निकल पड़ा- “हे असल चीज तो छूट ही गयी…”
गुड्डी- “क्या भाभी?”
“अरे तू बैठ बताती हूं…” और मैं जाके अपनी महावर की शीशी ले आई और रच-रच के लगाने लगी। उसकी एंड़ियां वैसी ही गुलाबी थीं। खूब गाढ़ा महावर लगाते हुये मैं मुश्कुरा रही थी।
मुझे मुश्कुराता देखकर उसने मुश्कुराने का कारण पूछा।
मैंने हँसकर उसे बताया की जब मैं छोटी थी तो पड़ोस में मेरी एक नयी-नयी भाभी आयीं। उनकी सास, जेठानी और ननदें नाईन से कहकर रोज रात को नयी बहू को महावर लगवाती थीं और अगले दिन उसके पती को देखकर सब मुश्कुराती और उसे छेड़ती।
जब मैंने एक दिन पूछा तो सब और हँसने लगी। और मेरी भाभी ने मुझसे पूछा- “देख उसके कान के पास लाल रंग लगा है ना?”
मैंने तब ध्यान से देखा की उनके कान के पास महावर लगा था।
भाभी ने हँसकर कहा- “देख इसके पैर का महावर इसके मर्द के कान में कैसे लग गया?”
मेरी एक दूसरी भाभी ने छेड़ा- “अरे टांगें उठवाओगी तो सब पता चल जायेगा…”
भाग ७ समाप्त