SexBaba Kahan विश्‍वासघात - Page 2 - SexBaba
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SexBaba Kahan विश्‍वासघात

नीचे गली में अभी तक भी उनके अलावा और किसी ने कदम नहीं रखा था।
कोई पांच मिनट वे वहीं छत पर पड़े सुस्ताते रहे।
उस दौरान केवल एक साइकल वाला नीचे गली में से गुजरा।
किसी पुलिसिए के वहां पांव न पड़े।
रंगीला ने अब अपने अगले पड़ाव की तरफ निगाह डाली।
ऊपर डेढ़ फुट चौड़ाई का प्रोजेक्शन था।
उस प्रोजेक्शन तक पहुंचने का इन्तहाई सहूलियत का तरीका कौशल ने सुझाया।
वह दीवार के साथ जमकर खड़ा हो गया। रंगीला उसके कन्धों चढ़ गया। उसके कन्धों पर खड़ा होने पर उसका हाथ बड़ी सहूलियत से प्रोजेक्शन तक पहुंच गया। वह उचक कर प्रोजेक्शन पर चढ़ गया।
उसी की तरह राजन भी वहां पहुंच गया।
फिर दोनों प्रोजेक्शन पर लेट गए। उन्होंने नीचे हाथ लटकाए और कौशल को उसके हाथों से पकड़ कर उसे ऊपर खींच लिया।
यह उनके भारी फायदे की बात थी कि पांच मंजिलों तक रिहायश नहीं थी। उन मंजिलों पर केवल दफ्तर थे जो शाम को नहीं तो बड़ी हद आठ-नौ बजे तक बन्द हो जाते थे। उन मंजिलों पर भी रिहायशी फ्लैट होते तो उनका यूं ऊपर चढ़ना किसी-न-किसी की निगाहों में आ सकता था, किसी के कानों में उनकी हलचल की आहट भी पहुंचना उनके लिए खतरनाक हो सकता था। लेकिन उन तमाम मंजिलों पर सन्नाटा था। कामिनी देवी का पैन्थाउस ही उस इमारत का इकलौत रिहायशी फ्लैट था।
प्रोजेक्शन पर चलते हुए वे साइड बाल्कनी में पहुंचे। बाल्कनी के दरवाजे मजबूती से भीतर की तरफ से बन्द थे और बाल्कनी में फैली अव्यवस्था से लगता था कि वे दिन में भी शायद ही कभी खोले जाते थे।
उस बाल्कनी के पास से पानी का पाइप चौथी मंजिल के पास बने प्रोजेक्शन तक जाता था।
लेकिन वह पाइप बाल्कनी के इतना पास नहीं था जितना कि वह नीचे से देखे जाने से लगता था।
रंगीला सशंक-सा आंखों ही आंखों में बाल्कनी की रेलिंग और पाइप के बीच का फासला नापता रहा। वहां से हाथ छूट जाने का मतलब एक ही था।
उसकी अट्ठाइस वर्षीय जिन्दगी का समापन।
फिर हिम्मत करके वह बाल्कनी के रेलिंग पर चढ़ गया। वह दीवार के साथ सट गया और उसने अपना एक हाथ इंच-इंच करके पाइप की तरफ बढ़ाया।
हाथ पाइप तक पहुंच गया।
लेकिन सिर्फ पहुंच ही काफी नहीं थी, उस पहुंच को गिरफ्त में तब्दील करके के लिए अभी काफी और पाइप की तरफ झुकना जरूरी था। और उस कोशिश में रेलिंग पर से उसके पांव उखड़ सकते थे और वह तीन मंजिल नीचे जाकर गिर सकता था।
सांस रोके, दांत भीचे, वह अपना हाथ आगे सरकाता रहा।
पाइप पर उसकी पकड़ मजबूत हुई।
एक क्षण वह उसी स्थिति में स्थिर रहा। फिर उसने सांस रोक ली, मन-ही-मन भगवान का नाम लिया और रेलिंग पर टिके अपने पैरों से रेलिंग को धक्का दिया।
उसका शरीर आगे को उछला। रेलिंग पर से उसके पांव हट गए। उसी क्षण उसका दूसरा हाथ भी पाइप पर पड़ा। उसके शरीर को एक झटका लगा। तभी उसके दोनों घुटने पाइप से लिपट गए और उसका शरीर स्थिर हो गया।
तब कहीं जाकर उसने सांस छोड़ी।
रेलिंग से पाइप तक पहुंचने के एक क्षण में उसे जहन्नुम का नजारा हो गया था।
उसने एक आश्‍वासनपूर्ण निगाह अपने साथियों पर डाली और इंच-इंच करके ऊपर सरकने लगा।
वह अगले प्रोजेक्शन पर पहुंच गया।
फिर कौशल और राजन भी उसके पहलू में पहुंच गए।
राजन जब वहां पहुंचा तो उसकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी, चेहरा कानों तक लाल था और आंखों में दहशत की छाया साफ तैर रही थी। उसके विपरीत कौशल एकदम नॉर्मल लग रहा था। उसके लम्बे कद ने उसे पूरा फायदा पहुंचाया था। जिस सहूलियत से वह रेलिंग से पाइप तक पहुंचा था, वह रंगीला और राजन को हासिल नहीं थी।
एक कतार में प्रोजेक्शन पर आगे-पीछे चलते वे इमारत के सामने किनारे तक पहुंचे। सबसे आगे रंगीला था, बीच में राजन था और पीछे कौशल था।
 
अब उन्हें नीचे चमकीली रोशनियों से नहायी आसिफ अली रोड के दोनों पहलू दूर-दूर तक साफ दिखाई दे रहे थे। लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद थी कि नीचे सड़क पर से उपर झांकने पर वे किसी को दिखाई नहीं देने वाले थे।
रंगीला ने अब वह दूसरा पाइप थामा जो इमारत की छत तक जाता था लेकिन रास्ते में कामिनी देवी के फ्लैट की बाल्कनी की ऐन बगल से गुजरता था।
उस पाइप पर वह बेहिचक चढ़ गया
पलक झपकते ही वह कामिनी देवी की बाल्कनी में था।
फिर राजन और कौशल भी बारी-बारी वहां पहुंच गए।
उनकी उम्मीद के मुताबिक बाल्कनी का शीशे का दरवाजा खुला था।
तब कहीं जाकर तीनों के उत्कण्ठा से खिंचे चेहरों पर मुस्कराहट आई।
फ्लैट में अन्धेरा था।
नीचे सड़क की रोशनी वहां तक नहीं पहुंच रही थी, लेकिन दीवारों से प्रतिबिम्बित रोशनी की वजह से वहां घुप्प अन्धेरा भी नहीं था।
सावधानी से चलते वे फ्लैट के भीतर दाखिल हुए।
रंगीला उन्हें उस बैडरूम में ले आया, जिसमें कि सेफ थी।
उसने सेफ की तरफ इशारा किया। राजन ने सहमति में सिर हिलाया। उसने अपने गले में लटका थैला गले से निकाला। सबसे पहले उसने उसमें से एक टॉर्च निकली जो कि उसने कौशल को थमा दी। उस बैडरूम में दो दरवाजे थे। उनमें से एक बाल्कनी में खुलता था और दूसरा पीछे कहीं। रंगीला ने बाल्कनी की ओर के दरवाजे पर पर्दा खींच दिया। कौशल ने टॉर्च जलाई। टॉर्च बड़ी शक्तिशाली थी। उसकी रोशनी से सेफ नहा गयी लेकिन वह रोशनी बैडरूम से बाहर नहीं जा सकती थी।
राजन ने थैले में से अपने औजार निकालकर सेफ के सामने फर्श पर सजा लिए।
वह फौरन अपने काम में जुट गया।
धड़कते दिल लिए रंगीला और कौशल सेफ का दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा करने लगे।
उस फौलादी दरवाजे के पार वह दौलत थी, जिसको हथियाने के लिए वे अपनी जान जोखिम में डालकर वहां पहुंचे थे; किसी भी क्षण वह दौलत उनकी हो जाने वाली थी। लेकिन वह क्षण जैसे एक छलावे की तरह उनकी पहुंच से आगे, और आगे सरकता जा रहा था।
साढ़े ग्यारह बज गए।
“क्या बात है?”—रंगीला झुंझलाए स्वर में बोला—“तुम तो कहते थे कि तुम घण्टे भर में इसे खोल लोगे! अब तो डेढ़ घण्टा होने को आ रहा है!”
“बस, थोड़ी देर और।”—राजन बिना गर्दन उठाए बोला।
“बारह बजे के बाद वह किसी भी क्षण यहां पहुंच सकती है।”
“मैं उससे बहुत पहले इसे खोल लूंगा।”
लेकिन सेफ न खुली। राजन से वह बारह बजे से पहले तो क्या बारह बजे के बाद भी न खुली।
बारह बजे के बाद रंगीला बाल्कनी पर पहुंच गया। वह बाल्कनी के फर्श पर लेट गया और उसने नीचे सड़क पर निगाह टिका ली।
कामिनी देवी की सफेद मर्सिडीज को वह पहचाना था। उसके वहां पहुंचते ही उन्हें वहां से कूच कर जाना था। मर्सिडीज वहां एक मिनट बाद भी पहुंच सकती थी और एक घन्टे बाद भी।
वह बुरी तरह झुंझला रहा था और राजन के दावों को याद कर-कर के दांत पीस रहा था। पता नहीं सेफ का ताला ही विकट था या राजन ही अपनी औकात से बाहरी डींग हांकता रहा था कि वह हर तरह के ताले की चाबी बना सकता था। कोशिश वह अब भी जी-जान से कर रहा था, लेकिन रंगीला का दिल गवाही नहीं दे रहा था कि अब वह उसे खोल पाएगा।
 
पौने एक बजे के करीब कामिनी देवी की मर्सिडीज इमारत के सामने नीचे सड़क पर आकर रुकी और भीतर से कामिनी देवी ने बाहर सड़क पर कदम रखा।
रंगीला फर्श पर से उठकर भीतर भागा।
“वह आ गई!”—वह उतावले स्वर में बोला।
राजन फौरन उठ खड़ा हुआ। उसके चेहरे के खिसियाहट के भाव ही बता रहे थे कि सेफ न उससे खुली थी और न खुलने वाली थी।
वह आनन-फानन अपने औजार समेटकर थैले में डालने लगा।
रंगीला ने जेब से रूमाल निकालकर सेफ के सामने फर्श पर फैला लोहे का बुरादा समेट दिया।
राजन के औजार समेट चुकने के बाद कौशल ने टॉर्च बन्द कर दी।
“मेरा बस चले”—वह बोला—“तो सेफ उठाकर साथ ले चलूं।”
“मेरा बस चले”—रंगीला बोला—“तो मैं यहीं इसकी गर्दन काट दूं।”
“अब मैं क्या करूं?”—राजन मरे स्वर में बोला—“मेरे खयाल से तो...”
“शट-अप!”—रंगीला दांत पीसता बोला।
राजन फौरन चुप हो गया।
वे दरवाजे की तरफ बढ़े।
एकाएक रंगीला के जेहन में बिजली-सी कौंधी।
“ठहरो!”
वे दोनों फौरन ठिठक गए।
“अब क्या हुआ?”—कौशल बोला।
“राजन!”—रंगीला उसके सवाल की ओर ध्यान दिए बिना बोला—“हरामजादे! सेफ तो तुझसे खुली नहीं। अब तू इसे ऐसा बिगाड़ ही दे कि यह उस औरत से भी न खुले। चाबी लगाने पर भी न खुले।”
“उससे क्या होगा?”—राजन बोला।
“सवाल मत कर। जो पूछा है उसका जवाब दे। ऐसा कर सकता है? सेफ बिगाड़ सकता है?
“यह तो एक मिनट का काम है। मैं चाबी के छेद में एक लोहे की सलाख डालकर तोड़ देता हूं। फिर...”
“सफाई की जरूरत नहीं। जो हो सकता है, कर। वह आती ही होगी।”
राजन ने फिर फुर्ती से अपने झोले में हाथ डाला।
कौशल ने फौरन दोबारा टॉर्च जलाई।
एक मिनट से भी कम समय में राजन सेफ के पास से हट गया।
कौशल ने टार्च बन्द करके उसे थमा दी जो कि राजन ने अपने औजारों के साथ झोले में डाल ली।
वे बाल्कनी की तरफ लपके।
पहले राजन और फिर कौशल पाइप के रास्ते निचली मंजिल के प्रोजेक्शन उतर गये।
सबसे अन्त में रंगीला उतरा।
वह अभी बाल्कनी में ही था कि उसे फ्लैट का मुख्य द्वार खुलने की आवाज आई थी।
पाइप पर चढ़ने से उतरना ज्यादा आसान था।
वह पलक झपकते नीचे प्रोजेक्शन पर अपने साथियों के पास पहुंच गया।
तीनों प्रोजेक्शन पर उकड़ू होकर अगल-बगल बैठ गए।
नीचे सड़क पर ट्रैफिक नहीं के बराबर था। कभी-कभार ही कोई इक्का-दुक्का वाहन सड़क से गुजरता दिखाई देता था। डिलाइट का आखिरी शो भी खत्म हो चुका था इसलिए उधर भी अब सन्नाटा छा चुका था। जो चन्द रिक्शे वाले डिलाइट के सामने मौजूद थे, वे सवारी की तलाश में नहीं थे, वे अपने रिक्शों पर सोये पड़े थे।
रंगीला अभी भी रह-रहकर कहरभरी निगाहों से राजन को देख रहा था।
 
राजन सिर झुकाये बैठा था। वह उससे निगाह मिलाने की ताब नहीं ला पा रहा था।
“अब हम यहां बैठे क्या कर रहे हैं?”—अन्त में कौशल ने चुप्पी तोड़ी।
“और अगर सेफ वह औरत भी नहीं खोल सकती”—राजन बिना सिर उठाये दबे स्वर में बोला—“तो उसका हमें क्या फायदा?”
“अहमक”—रंगीला बोला—“जो जेवर पहनकर वह पार्टी में गई थी, उन्हें अब क्या सेफ में रख सकेगी?”
“तो?”
“तो यह कि वो जेवर अभी भी हमारे हाथ लग सकते हैं जो कि वह पहनकर पार्टी में गई थी और उन जेवरों में वह फेथ डायमण्ड के नाम से जाना जाने वाला बेशकीमती हीरा भी जरूर होगा।”
“तुम्हारा”—कौशल सकपकाकर बोला—“वापिस उसके फ्लैट में घुसने का इरादा है?”
“हां।”
“उसकी मौजूदगी में?”
“हां।”—रंगीला दृढ़ स्वर में बोला।
“चाहे उसके साथ भीतर कोई मर्द भी मौजूद हो?”
“उसके साथ कोई नहीं है। वह अकेली लौटी है। मैंने देखा है।”
कौशल खामोश हो गया।
“वह अपने जेवरों को कहीं इधर-उधर ही डालकर नशे में धुत्त सोई पड़ी होगी।”—रंगीला बोला—“आधे घंटे बाद हम भीतर दाखिल होंगे और चुपचाप वे जेवर उठा लायेंगे। देख लेना उसके कान पर जूं भी नहीं रेंगेगी।”
दोनों में से कोई कुछ न बोला।
“मैं भीतर जरूर घुसूंगा। तुम लोग वापिस जाना चाहो तो जा सकते हो।”
“नहीं।”—कौशल फौरन बोला—“हम तुम्हारे साथ हैं। जो तुम करोगे, वही हम करेंगे।”
“ठीक है।”
“लेकिन अगर हमने ऐसा ही करना था तो क्यों न हम फ्लैट में ही मौजूद रहते और उसके भीतर दाखिल होते ही हम उसे दबोच लेते और जबरन उससे चाबी हासिल कर लेते?”
“उस वक्त की हड़बड़ी में यह बात मुझे नहीं सूझी थी।”—रंगीला शुष्क स्वर में बोला।
फिर खामोशी छा गई।
डेढ़ बजे तक वे यूं ही बुत बने प्रोजेक्शन पर बैठे रहे।
“तैयार?”—अन्त में रंगीला बोला।
“तैयार।”—कौशल बोला।
“तीनों का जाना जरूरी है?”—राजन दबे स्वर में बोला।
“कोई जरूरी नहीं।”—रंगीला अन्धेरे में उसे घूरता हुआ बोला—“अब जब कि उम्मीद से बहुत कम माल हासिल होने वाला है तो उसका ज्यादा लोगों में बंटवारा भी जरूरी नहीं।”
“नहीं, नहीं”—राजन हड़बड़ाया—“मैं तो यूं ही पूछ रहा था।”
रंगीला ने उसकी तरफ से तवज्जो हटा ली।
उसने दोबारा पाइप को थामा और बन्दर की सी फुर्ती से उपर बाल्कनी तक पहुंच गया।
उसके कुछ क्षण बाद राजन भी बाल्कनी में उतरा।
तभी एक अत्यन्त अप्रत्याशित व्यवधान पेश आया।
बाल्कनी के शीशे के दरवाजे पर एक नन्हा-सा झबराले बालों वाला कुत्ता प्रकट हुआ और उनकी तरफ मुंह उठाकर गुर्राने लगा।
वह एक उस प्रकार का सजावटी कुत्ता था जैसा फैशनेबल औरतें गोद में उठाये फिरती हैं। खतरनाक वह नहीं था लेकिन शोर वह इतना मचा सकता था कि आधा इलाका जाग पड़ता।
कामिनी देवी के पास कुत्ता होने की रंगीला को कतई खबर नहीं थी। जरूर वह कुत्ता उसने हाल ही में हासिल किया था।
कुत्ता दो कदम आगे बढ़ा और गुर्राने की जगह एकाएक भौंकने लगा।
रंगीला को और कुछ न सूझा, उसने झपटकर कुत्ते को गर्दन से पकड़ लिया और उसे बाल्कनी से नीचे उछाल दिया।
पांच मंजिल नीचे कुत्ता पक्की सड़क से जाकर टकराया। एक क्षण वह जहां गिरा वहीं पड़ा रहा लेकिन फिर बह बड़े दयनीय ढंग से फुटपाथ की तरफ रेंगने लगा। सड़क पर डीटीसी की नाइट सर्विस की एक बस ऐन उसके सामने प्रकट हुई, कुत्ते को बस की लपेट में आने से बचाने के लिए ड्राइवर ने बस को दायीं तरफ गहरी झोल दी लेकिन उसने बस को वहां रोका नहीं।
बाल्कनी में फिर पहले जैसी स्तब्धता छा गई।
 
वे दोनों घूमे और बाल्कनी की तरफ बढ़े।
लेकिन उन्हें तत्काल ठिठक जाना पड़ा।
बाल्कनी के शीशे के दरवाजे के पास कामिनी देवी खड़ी थी। उसके हाथ में एक रिवॉल्वर थी जिससे वह उन दोनों को कवर किए हुए थी। नशे में वह कतई नहीं लग रही थी।
कुत्ते ने अपना काम कर दिखाया था।
उसने सम्भावित खतरे से मालकिन को आगाह कर दिया था और उसे नींद से जगा दिया था।
“खबरदार!”—वह कठोर स्वर मे बोली—“हिलना नहीं।”
दोनो स्थिर खड़े रहे।
“हाथ ऊपर उठाओ।”
दोनों ने डरते-झिझकते अपने हाथ अपने कन्धों से ऊपर उठा दिए।
तभी शायद कामिनी देवी को अहसास हुआ कि बाल्कनी में कुत्ता कहीं नहीं था।
“पिंकी!”—उसने आवाज लगाई—“पिंकी!”
उत्तर खामोशी ने दिया।
फिर शायद उसे सूझ गया कि कुत्ता कहां गयाब हो गया हो सकता था। उन दोनों को रिवॉल्वर से कवर किये वह उनसे परे चलती बाल्कनी तक पहुंची। उसने एक निगाह नीचे डाली तो उसे बड़े दयनीय ढंग से सड़क पर रेंगता-घिसटता अपना घायल कुत्ता दिखाई दिया। तुरन्त पहले उसके चेहरे पर दहशत के भाव प्रकट हुए और फिर आंखों में कहर की ज्वाला कौंध गई।
“किसकी”—वह दांत पीसती बोली—“किसकी करतूत है यह?”
दोनों खामोश रहे। रंगीला ने बेचैनी से अपने सूखे होंठों पर जुबान फेरी।
“मेरा इरादा तुम दोनों को सिर्फ पुलिस के हवाले करने का था।”—वह बोली—“लेकिन अब उस कमीने को मैं खुद शूट करूंगी जिसने एक बेजुबान जानवर की इतनी बेरहमी से जान ली है। तुम चोर हो और चोरी करने के इरादे से यहां घुसे हो। मैं तुम दोनों को शूट भी कर दूंगी तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जिसने मेरे कुत्ते की जान ली है, वह खुद बक दे। इस तरह उसके साथी की जान बच जायेगी। बोलो, किसकी करतूत है यह?”
तभी रंगीला को औरत के पीछे रेलिंग फांदने को तत्पर कौशल दिखाई दिया। रंगीला जानता था कि औरत का ध्यान अपनी तरफ रखे रहने के लिए उसे कुछ-न-कुछ कहना चाहिए था, लेकिन उस नाजुक घड़ी में बहुत कोशिश करने पर भी उसके मुंह से बोल न फूटा।
“कमीनो!”—कामिनी देवी फिर गुर्राई—“मैं आखिरी बार पूछ रही हूं कि...”
तभी पीछे से कौशल उसके सिर पर पहुंच गया। उसने अपनी एक बलिष्ठ बांह औरत की गर्दन के गिर्द लपेट दी और दूसरी से उसका रिवॉल्वर वाला हाथ थाम लिया। उसकी गर्दन से लिपटी अपनी बांह उसने इस कदर उमेठी कि औरत के जमीन से दोनों पांव उठ गए। उसकी आंखें बाहर को उबल पड़ीं। रिवॉल्वर पर से उसकी पकड़ छूट गई और वह टन्न की आवाज से पक्के फर्श पर गिरी।
रंगीला फौरन औरत की तरफ लपका।
राजन ने झुक कर औरत के हाथ से निकली रिवॉल्वर उठा ली और उसे चुपचाप अपनी पतलून की जेब में रख लिया।
रंगीला ने औरत की उलट चुकी आंखों पर एक निगाह डाली और जल्दी से बोला—“कौशल, छोड़ दे। बेहोश हो गई है।”
कौशल ने उसकी गर्दन पर से अपनी पकड़ ढीली कर दी और उसे गोद में उठा लिया। उसने उसे भीतर बैडरूम में ले जाकर पलंग पर डाल दिया।
राजन और रंगीला भी उसके पीछे पीछे बैडरूम में दाखिल हुए।
भीतर एक बहुत हल्की-सी नीली रोशनी जल रही थी।
रंगीला ने बाल्कनी के दरवाजे के आगे फिर से पर्दा खींच कर ट्यूब लाइट ऑन की। उसने भीतर दरवाजे के पर्दे की डोरी को उसके स्थान से उखाड़ा और उसकी सहायता से औरत के हांथ-पांव बांध दिए। उसके मुंह में उसने अपना रूमाल ठूंस दिया।
फिर उसकी निगाह पैन होती हुई सारे बैडरूम में घुम गई।
जो पोशाक पहन कर कामिनी देवी पार्टी में गई थी, वह एक कुर्सी पर गुच्छा-मुच्छा हुई पड़ी थी। कुर्सी के समीप ही उसकी ऊंची एड़ी की सेंडलें उलटी पड़ी थीं। एक मेज पर उसका हैंडबैग पड़ा था। रंगीला ने उसे खोल कर भीतर झांका। भीतर जेवर नहीं थे, लेकिन भीतर सौ-सौ के नोटों की एक खूब मोटी गड्डी मौजूद थी। उसने गड्डी निकाल कर अपने अधिकार में कर ली।
उसके साथी उसे अपलक देख रहे थे।
“जेवर बैडरूम में ही कहीं होंगे।”—रंगीला बोला—“तलाश करो।”
तीनों जुदा-जुदा जगहों पर जेवरों की तलाश करने लगे।
जेवर उन्हें हद से बाहरी सहूलियत से मिल गए।
वे पलंग पर तकियों के नीचे मौजूद थे।
और वे उनकी उम्मीद से कहीं ज्यादा थे।
 
उनमें तीन लड़ियों वाला एक सच्चे मोतियों का हार था।
एक कम-से-कम तीन इंच चौड़ा बेशकीमती हीरे-जवाहरात से जड़ा गुलुबन्द था। वैसे ही रत्नजड़ित दो कंगन थे, इयरिंग थे। कई अंगूठियां थीं, साड़ी के पल्लू पर लगाया जाने वाला एक ब्रोच था और सबसे बड़ी चीज थी प्लेटीनम की सैटिंग में जगमग-जगमग करता फेथ डायमण्ड।
प्रसन्नता से तीनों के चेहरे तमतमा गए।
“इतना जेवर”—कौशल बोला—“वह एक बार में पहन कर गई है तो सेफ में तो पता नहीं क्या कुछ भरा पड़ा होगा।”
“सेफ का खयाल अब छोड़ दो।”—रंगीला बोला।
“जो सलाख का टुकड़ा मैंने चाबी के छेद में फंसाया है” राजन बोला—“उसे ड्रिल की मदद से मैं वापिस निकाल सकता हूं।”
“लेकिन चाबी! चाबी कहां है? चाबी हमें कहीं नहीं दिखाई दी है। और उसे तलाश करने में वक्त बरबाद करना मूर्खता है। कुत्ते की वजह से मुमकिन है यहां कोई—इसका ड्राइवर ही—पहुंच जाए। जो हाथ आ गया है, उसे संभालो और यहां से निकल चलो।”
उन्होंने सहमति में सिर हिलाया।
फिर तीनों ने थोड़े थोड़े जेवरात अपनी-अपनी जेबों में ठूंस लिए।
रंगीला कामिनी देवी के पास पहुंचा।
वह उस क्षण भी बेहोश थी।
उसने उसके बन्धन खोल दिए और उसके मुंह में ठुंसा अपना रूमाल निकाल लिया।
फिर उन्होंने बैडरूम की बत्ती बुझाई और फ्लैट से बाहर निकल आए।
उसके साथी लिफ्ट की और बढ़े तो रंगीला बोला—“सीढ़ियों से चलो। लिफ्टें कभी कभार अधर में भी फंस जाती हैं। ऐसे में लिफ्ट कहीं फंस गई तो काम हो जाएगा हमारा।”
वे दबे पांव सीढ़ियां उतरने लगे।
वे ग्राउन्ड फ्लोर पर पहुंचे।
इमारत का मुख्य द्वार भीतर से बन्द था और बेसमेंट की सीढ़ियों के दहाने के पास पड़े एक बैंच पर चौकीदार सोया पड़ा था।
रंगीला ने खामोशी से दरवाजा खोला।
तीनों बाहर निकल आए।
रंगीला ने अपने पीछे दरवाजे के दोनों पल्ले मिला दिए।
कुत्ता किसी प्रकार रेंग कर दरवाजे के सामने तक पहुंच गया था और फिर उसने वहीं बरामदे में दम तोड़ दिया था।
रंगीला ने फौरन उसकी तरफ से निगाह फिरा ली।
डिलाइट तक वे एक साथ चले, फिर तीनों अलग हो गए।
कौशल आसिफ अली रोड की इमारतों के पिछवाड़े की सड़क पर चलता हुआ तुर्कमान गेट की तरफ बढ़ गया। राजन ने उसी क्षण डिलाइट के सामने स्टैण्ड पर आकर खड़ी हुई पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की बस पकड़ ली और रंगीला डिलाइट के ऐन पिछवाड़े से छत्ता लाल मियां होकर तिराहा बैरम खां की तरफ जाती गली में दाखिल हो गया।
तीनों ने रास्ते अलग-अलग पकड़े थे, लेकिन तीनों की मंजिल एक ही थी।
किनारी बाजार।
जहां उनके असफल होने से बाल-बाल बचे अभियान का चौथा साथी रहता था।
 
सोमवार : आधी रात के बाद
किनारी बाजार में वह एक बहुत ही पुरानी इमारत थी, जिसमें सलमान अली अंसारी रहता था। सलमान अली अंसारी लगभग चालीस साल का सींकिया बदन वाला मुसलमान था जिसका जिस्म हिन्दोस्तान मे था लेकिन दिल पाकिस्तान में था। कभी वह हर साल बिना नागा पाकिस्तान में बसे अपने खानदान से मिलने जाया करता था लेकिन अब पिछले छः साल से ऐसा नहीं हो पाया था। वह स्मगलिंग के इलजाम में पकड़ा जाने पर जेल जाने से तो बाल-बाल बच गया था लेकिन सरकार ने उसका पासपोर्ट रद्द कर दिया था, जोकि बहुत कोशिशों के बाद भी उसे दोबारा हासिल नहीं हो पाया था। अपने धन्धे में वह माहिर था। दिल्ली के गिने-चुने उम्दा डायमंड कटर्स में उसका नाम लिया जाता था। जिस इमारत में सलमान अली रहता था, वही उसकी वर्कशॉप भी थी। वह इमारत किनारी बाजार के दरीबे वाले सिरे के करीब की एक गली में थी।
रात के ढाई बजे उसके दरवाजे पर दस्तक पड़ी।
सबसे पहले कौशल वहां पहुंचा।
फिर राजन।
और अन्त में रंगीला।
सलमान अली उन्हें पहली मंजिल के पिछवाड़े के एक कमरे में ले गया। वह कमरा उसकी वर्कशॉप था। कमरा ऐसा था कि उसकी रोशनी बाहर हरगिज नहीं जा सकती थी इसलिए अगर कभी वहां वह सारी रात भी काम करता था तो किसी को भनक तक नहीं लगती थी।
“मौलाना।”—कौशल बोला—“यह राजन है। और रंगीला को तो तुम जानते ही हो!”
सलमान अली ने दोनों का अभिवादन स्वीकार किया और फिर बोला—“तुम लोगों का यहां आना ही साबित करता है कि तुम लोग अपने मिशन में कामयाब हो गए हो।”
“हां।”—कौशल उत्साहहीन स्वर में बोला—“यही समझ लो।”
“इनमें से तिजोरी खोलने वाला आर्टिस्ट कौन है? राजन या रंगीला?”
“राजन।”
“तुमने बहुत शाबाशी का काम किया है, बिरादर। मुझे तो शक था कि तुम तिजोरी नहीं खोल सकोगे।”
“तुम्हारा शक सही था।”—कौशल बोला—“और इसने कोई शाबाशी का काम नहीं किया है।”
सलमान अली ने हैरानी से राजन की ओर देखा।
राजन खिसियाई-सी हंसी हंसा।
“तिजोरी नहीं खोल पाया यह?”—सलमान अली बोला।
“नहीं।”—कौशल बोला।
“तो फिर बात कैसे बनी?”
कौशल ने रंगीला की तरफ देखा।
रंगीला ने बताया।
“ओह!”—सारी बात सुनकर सलमान अली बोला—“यह तो बुरा हुआ तुम लोगों के लिए। खास तौर से तुम्हारे और राजन के लिए। वह औरत तुम्हारी सूरत पहचान सकती है।”
“कैसे पहचान सकती है?”—रंगीला बोला—“किन चीजों से वह हमारी सूरतों का मिलान करेगी? हम क्या उसे दोबारा दिखाई देने वाले हैं? या पुलिस के पास हमारी तसवीरें हैं?”
“यह भी ठीक है।”—सलमान अली एक क्षण ठिठका और फिर बोला—“चलो, भागते चोर की लंगोटी तो हाथ लगी तुम्हारे।”
“लंगोटी नहीं तहमद।”
“अच्छा! काफी माल मारा मालूम होता है!”
“काफी भी और कीमती भी।”
“दिखाओ।”
उस कमरे की एक पूरी साइड में एक काउन्टर सा बना हुआ था जिस पर डायमंड कटिंग के काम में आने वाले कुछ औजार सलीके से रखे हुए थे और कुछ बेतरतीबी से बिखरे हुए थे। रंगीला ने काउन्टर की कुछ चीजें सरका कर अपने सामने थोड़ी जगह खाली की और फिर अपनी जेब से जेवर निकाल कर वहां ढेर कर दिए।
राजन और कौशल ने भी ऐसा ही किया।
सलमान अली की आंखें चमकने लगीं। फेथ डायमंड देख कर तो उसके मुंह से सीटी निकल गई।
“कितने का माल होगा यह?”—रंगीला ने पूछा।
“अगर”—सलमान अली बोला—“जायज और इज्जतदार तरीके से बेचा जाए तो कम-से-कम दो करोड़ रुपये का।”
“दो करोड़ रुपये!”—कौशल के मुंह से निकला। एकाएक उसके चेहरे पर हजार वॉट का बल्ब जलने लगा। खुशी के आवेग में वह अपनी हथेलियां मसलने लगा।
“लेकिन तुम लोगों को इसके चलीस-पचास लाख रुपये भी मिल जाएं तो गनीमत समझना।”
हजार वॉट का बल्ब फौरन फ्यूज हो गया, लेकिन ट्यूब लाइट की रोशनी कौशल के चेहरे पर फिर भी बाकी थी।
“फेथ डायमंड को ऐसे का ऐसा बेचने का मतलब शर्तिया गिरफ्तारी होगा।”—सलमान अली बोला—“इसको तोड़ कर इसके छोटे-छोटे हीरे बनाने से इसकी कीमत एक बटा दस रह जाएगी। फिर चोरी का माल लाठी के गज से नपकर बिकता है।”
“ओह!”
“फेथ डायमंड को तोड़ने में और टुकड़ों को फिर से तराशने में बहुत वक्त लगेगा। उस दौरान यहां पुलिस भी आएगी।”
“पुलिस क्यों आएगी यहां?”—रंगीला बोला।
 
“इसलिए आएगी क्योंकि मेरे नाम का शुमार दिल्ली के मशहूर डायमंड कटर्स में होता है। फेथ डायमंड की चोरी की खबर आम होते ही पुलिस मेरे जैसे सब कारीगरों के पास पहुंचेगी।”
“तो?”
“तो क्या? यहां उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला। वे सर्च वारन्ट साथ लाकर यहां के चप्पे चप्पे की भी तलाशी लेंगे तो भी उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा। अपना हिस्सा मैं बाखूबी संभाल सकता हूं।”
“सिर्फ अपना?”
“हां। अब तुम सब लोग इन सब हीरे जवाहरात को इनकी सैटिंग से निकालने में मेरी मदद करो और फिर अभी अपना हिस्सा अपने अपने काबू में कर लो।”
“तुम अपना हिस्सा कहां छुपाओगे?”
“मैं छुपा लूंगा कहीं। तुम खातिर जमा रखो, पुलिस की रेड यहां हुई तो न उन्हें मेरे हिस्से में आए जवाहरात मिलेंगे और न फेथ डायमंड मिलेगा। सच पूछो तो मुझे डर तुम लोगों से है कि कहीं माल के साथ तुम लोग न पकड़े जाओ और तुम्हारी वजह से मैं भी न फंस जाऊं।”
“हम नहीं पकड़े जा सकते। ऐसा हो ही नहीं सकता कि पुलिस की तवज्जो हमारी तरफ जाए। एक करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले इस शहर में मौजूद एक-एक शख्स को पुलिस टटोलने लगे तो बात दूसरी है। पुलिस सिर्फ जाने पहचाने मुजरिमों को टटोलेगी या संदिग्ध चरित्र के लोगों को टटोलेगी। हम इन दोनों ही किस्मों के लोगों में से नहीं है। फिर अगर हममें से कोई पकड़ा गया तो वह दूसरे का नाम अपनी जुबान पर नहीं लाएगा अगर हम सब भी पकड़े गए तो हम तुम्हारा नाम अपनी जुबान पर नहीं लाएंगे। हमें एक दूसरे पर मुकम्मल विश्‍वास है कि विश्‍वास का हत्या हम में से कोई नहीं करने वाला।”
“जान कर खुशी हुई। लेकिन एक बात और बता दो।”
“क्या?”
“अपनी बीवियों पर भी काबू है तुम्हें? वे तो तुम्हारी पोल नहीं खोल देंगी? वे तो नहीं बक देंगी कुछ?”
“बीवी वाला सिर्फ मैं हूं। मेरी बीवी न सिर्फ मेरे काबू में है, उसे मेरी आज रात की करतूत की खबर भी नहीं लगेगी। मैं उसे कुछ नहीं बताने वाला।”
“फिर ठीक है।”
“मौलाना, जहां तुम अपना हिस्सा छुपाओगे, वहीं बाकी का माल भी छुपा लेना। आखिर बिकवाना तो इसे तुम्हीं ने है इसलिए सारा माल तुम्हारे ही पास रहे तो अच्छा है।”
“मैं अपना हिस्सा खुद सम्भाल लूंगा।”—कौशल जल्दी से बोला।
“देखा!”—सलमान अली हंसा—“मेरे यार को डर लग गया है कि सारा माल समेट कर मैं कहीं पाकिस्तान न भाग जाऊं।”
“मुझे तुम पर विश्‍वास है।”—रंगीला बोला—“मैं अपना हिस्सा...”
“छोड़ो! अपना माल अपने ही पास रखो, बिरादर। वो फिरंगियों में कहते हैं न, कि सारे अंडे एक ही टोकरी में नहीं रखने चाहियें।”
“माल बिकवाने का जुगाड़ तुम कब तक कर सकते हो?”
“छ: महीने इन्तजार तो करना ही होगा। वैसे माल अगर कौड़ियों के मोल फेंकना चाहो तो मैं अगले ही हफ्ते इसका फातिहा पढ़ सकता हूं।”
“नहीं, नहीं! मेरे हाथ दस बारह लाख रुपये भी न आएं तो क्या फायदा हुआ इतना रिस्क उठाने का!”
“तो फिर इन्तजार करो।”
“ठीक है। फेथ डायमंड को तोड़ने-तराशने में कितना वक्त लगेगा?”
“कम से कम तीन दिन।”
“तीन दिन?”
“यह हीरा है, कोई पत्थर का टुकड़ा नहीं है। इसके साथ अदब और इत्मीनान से पेश आना जरूरी है। तीन दिन तो तब लगेंगे जब मैं सारी सारी रात बैठ कर इस पर काम करूंगा।”
“कमाल है! इस हीरे को तोड़ने में इतना वक्त...”
“तोड़ तो इसे मैं अभी तुम्हारे सामने दूंगा। वक्त टूटे हुए टुकड़ों को तराशने में लगेगा। इतना तो तुम्हें भी मालूम होगा कि हीरा ही हीरे को काट सकता है। बहुत सब्र का, बहुत जिम्मेदारी का काम है यह। दस कैरेट का हीरा तराशने में तीन दिन लग जाते हैं। फेथ डायमंड तो सत्तासी कैरेट का है।”
“कैरेट क्या मतलब?”—राजन ने पूछा।
किसी ने उसके सवाल की तरफ ध्यान नहीं दिया।
“अब काम शुरू किया जाए?”—सलमान अली बोला।
रंगीला ने सहमति में सिर हिलाया।
 
सलमान अली ने सबको काउन्टर के सामने स्टूलों पर बिठा दिया। उसने एक प्लायर पकड़ा और उसकी सहायता से गुलुबन्द में से एक हीरा उमेठ कर उन्हें समझाया कि वह काम कैसे होता था। फिर एक एक प्लायर उसने उन्हें थमा दिया।
वे सोने और प्लैटीनम की सैटिंग में से हीरे जवाहरात निकालने की क्रिया में जुट गए।
खुद सलमान अली फेथ डायमंड की तरफ आकर्षित हुआ। उसने वह विशाल हीरा उसकी प्लैटीनम की सैटिंग में से निकाल लिया। उसने उसे हथेली पर रख दिया और मन्त्रमुग्ध सा उसे देखने लगा।
“सुभान अल्लाह!”—उसके मुंह से निकला।
रंगीला ने अपने हाथ का प्लायर रख दिया और अपने साथियों को हीरे उमेठता छोड़कर वह सलमान अली के पास पहुंचा।
“जी नहीं चाहता कि इतने बेशकीमती हीरे को तोड़कर तबाह करूं।”—सलमान अली बोला—“लेकिन मजबूरी है।”
उसने अपनी एक आंख पर वाच ग्लास चढ़ा लिया और बहुत बारीकी से हीरे के हर पहलू का मुआयना करने लगा। कुछ क्षण बाद उसने हीरे की कलम से फेथ डायमंड के एक पहलू पर बड़ी सावधानी से एक लम्बी लाइन खींच दी। उसने आंख से वाच ग्लास उतारकर एक ओर रख दिया और बोला—“यहां से तोड़ूंगा मैं इसे। इस तरह से इसका एक बड़ा, एक कदरन छोटा और पांच बहुत छोटे-छोटे टुकड़े हो जायेंगे।”
उसने हीरे को एक मशीन में फिट किया और बिजली की मोटर से चलने वाले एक हीरे की कनियों वाले ब्लेड की धार जैसे पतले पहिए की सहायता से उस लकीर पर से उसकी कटाई शुरू की।
राजन और कौशल बड़ी तन्मयता से हीरे-जवाहरात को उनकी सैटिंग में से निकाल-निकाल कर काउण्टर पर एक ढेर की सूरत में जमा किए जा रहे थे।
“यह जो सोना और प्लैटीनम निकल रहा है।”—एकाएक रंगीला बोला—“इसका क्या होगा?”
“यह भी बिक सकता है।”—सलमान अली ने जवाब दिया।
“कैसे?”
“दरीबे में एक सुनार मेरा वाकिफकार है। उसका नाम सफदर हुसैन है। उसकी दुकान दरीबे की जामा मस्जिद वाली साइड में नुक्कड़ पर है। किसी से भी पूछने पर मालूम हो जाएगा कि सफदर हुसैन की कौन सी दुकान है। कल सुबह बाजार खुलते ही तुममें से एक जना सोने और प्लैटीनम की टूट-फूट लेकर वहां चले जाना। वहां मेरा नाम लेना, वह उसकी कीमत अदा कर देगा। कीमत बहुत कम होगी, लेकिन उसके पास जाना तुम्हारे लिए सरासर महफूज काम होगा।”
“कौशल जाएगा।”—रंगीला बोला—“कौशल, सुन रहे हो?”
“सुन रहा हूं।”—कौशल अपने काम से सिर उठाए बिना बोला,—“ठीक है।”
एक काम कौशल ने ऐसा किया था कि अगर रंगीला या राजन को उसकी खबर लग जाती तो वहीं फसाद हो जाता।
उसने जेवरात में से एक अंगूठी उठाकर चुपचाप अपनी जेब में डाल ली थी।
अंगूठी कोई खास कीमती नहीं थी। उसकी कीमत की वजह से कौशल ने उसे चुराया भी नहीं था। न ही ऐसा उसने अपने साथियों को धोखा देने की नीयत से किया था। वह मुश्‍किल से एक कैरेट के हीरे की अंगूठी थी जिसे वह किसी को भेंट में देना चाहता था। वह अंगूठी वह रंगीला से कहकर लेता तो वह उसे कभी न लेने देता और वह भी बाकी जेवरों की तरह तोड़ दी जाती। रंगीला की निगाह में चोरी का मामूली-से मामूली जेवर भी अपनी असली सूरत में उनमें से किसी के अधिकार में नहीं होना चाहिए था।
पन्द्रह मिनट बाद सलमान अली ने मोटर का स्विच ऑफ किया।
उसने मशीन में से हीरा निकाला और उसका फिर से मुआयना किया।
हीरे के एक रुख पर एक लम्बी गहरी लकीर खुद चुकी थी।
सलमान अली ने एक कागज जैसे बारीक फल वाली छैनी उठाई उसे हीरे में खुदी लकीर के ऐन ऊपर टिकाया और एक हथौड़ी का एक भरपूर प्रहार छेनी के सिर पर किया।
कुछ भी न हुआ।
सलमान अली के मुंह से एक आह निकली।
उसके चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव आये। लेकिन फिर उसके होंठ बड़े निर्णयात्मक ढंग से भिंच गए और उसने एक बड़ा हथौड़ा उठाकर उसका एक बेहद शक्तिशाली प्रहार छेनी पर किया।
फेथ डायमंड का अस्तित्व समाप्त हो गया।
वह दो बड़े और कई नन्हे टुकड़ों में विभक्त होकर काउंटर पर बिखर गया।
सलमान अली ने सारे टुकड़े समेटे और उनका बड़ी बारीकी से मुआयना किया।
“ठीक है।”—अन्त में वह सन्तुष्टिपूर्ण स्वर में बोला—“तीन दिन बाद मैं तुम्हारे सामने दो बड़े और आठ दस छोटे छोटे हीरे पेश कर दूंगा।”
और घण्टे बाद चारों मिलकर सारे जवाहरात सैटिंग से अलग कर चुके थे। अब काउन्टर पर हीरे, मानक, पन्ने, नीलम, पुखराज, मोंगा और मोतियों का ढेर जगमगा रहा था।
 
जब बंटवारे का वक्त आया तो सलमान अली बोला कि वह मोतियों का इच्छुक नहीं था। वैसे भी मोतियों की तीन ही लड़ियां थीं, जिनको बिना तोड़े वे तीनों आपस में बांट सकते थे। मोतियों में अपने हिस्से के बदले में उसने चार पन्नों की मांग की जो कि उसे दे दिये गये। फिर मोतियों का हार तोड़ा गया और एक-एक लड़ी रंगीला, राजन और कौशल ने ले ली। सलमान अली ने सबको शनील की एक एक थैली दे दी जिसमें हर किसी ने अपना हिस्सा रख लिया।
“अब यह सबकी”—रंगीला बोला—“अलग अलग जिम्मेदारी है कि हर कोई अपने हिस्से के जवाहरात को तब तक सम्भालकर, छुपाकर रखे जब तक सलमान अली इनके लिए कोई ग्राहक नहीं तलाश कर लेता।”
सबने सहमति में सिर हिलाया।
तब तक सुबह के छ: बज चुके थे।
सब वहां से उठकर एक अन्य कमरे में पहुंचे। सलमान अली ने वहां की खिड़कियां खोल दीं।
फिर वह सबके लिये चाय बनाने चला गया।
उसके वहां से जाते ही उन तीनों ने उन नोटों को भी आपस में बांट लिया जो रंगीला ने कामिनी देवी के हैण्डबैग से निकाले थे।
तीनों के हिस्से में बत्तीस-बत्तीस नोट आये।
उन नोटों में मौलाना का हिस्सा जरूरी न समझा गया।
“कौशल!”—रंगीला तनिक उपहासपूर्ण स्वर में बोला—“तुम्हें अपने यार पर कोई खास भरोसा नहीं।”
“इसलिये कह रहे हो।”—कौशल बोला—“क्योंकि मैं अपना माल इसके पास रखने से इनकार कर रहा था।”
“हां।”
कौशल ने एक सतर्क निगाह दरवाजे की दिशा में डाली और फिर धीरे से बोला—“मौलाना आजकल जाली पासपोर्ट की फिराक में है। अपना जब्तशुदा पासपोर्ट वापिस मिलने की उम्मीद अब उसे नहीं रही है इसलिये जाली पासपोर्ट के फेर में पड़ा है। छ: साल से यह पाकिस्तान नहीं जा सका। छ: साल से यह अपने सगे वालों से मिलने के लिये तड़प रहा है। जाली पासपोर्ट काबू में आते ही यह भूत की तरह भागेगा यहां से। और जाली पासपोर्ट इसे किसी भी दिन हासिल हो सकता है। यूं उड़ने को पर तोलते पंछी को मैंने तो मत सौंपा अपना माल।”
“जाली पासपोर्ट से यह पहुंच जायेगा पाकिस्तान?”
“कहता तो यही है! कहता है कि जाली पासपोर्ट बनाने वाला उस्ताद बहुत ही बड़ा कारीगर है। दर्जनों लोगों के लिये वह जाली पासपोर्ट बना चुका बताया जाता है। आज तक तो कोई पकड़ा नहीं गया। मौलाना पकड़ा गया तो इसकी बद्किस्मती।”
तभी सलमान अली चाय ले आया।
चाय पीने तक पौने सात का टाइम हो गया।
तब तक रास्ते इस कदर चल पड़े थे कि नीचे से लोगों के बोलने चालने की आवाजें आने लगी थीं।
फिर तीनों ने शाम की मुलाकात के लिये वक्त और जगह तय की और फिर कौशल को पीछे वहीं बैठा छोड़कर रंगीला और राजन वहां से विदा हो गये।
दरीबे के नुक्कड़ पर पहुंचकर रंगीला राजन से अलग हुआ और एक रिक्शा पर सवार हो गया।
वह चांदनी महल पहुंचा जहां कि वह रहता था।
उसकी बीवी कोमल रसोई में बैठी चाय पी रही थी और अखबार पढ़ रही थी। उसे आया देखकर उसने अखबार रंगीला को थमा दिया और स्वयं उसके लिये चाय बनाने लगी।
वह सारी रात घर नहीं आया था लेकिन फिर भी कोमल ने उससे यह नहीं पूछा था कि रात भर वह कहां रहा था। एक बार उसने रंगीला से ऐसा सवाल किया था, फिर जवाब न मिलने पर जानने की जिद की थी तो रंगीला ने उसे ऐसी मार लगाई थी कि उसके दर्द और अपमान को वह आज तक नहीं भूली थी।
कोमल निहायत खूबसूरत थी। वह एक मामूली घर की लड़की थी और रंगीला को एक समझदार और खाता-कमाता नौजवान समझकर उससे उसकी शादी की गई थी। लेकिन उसका पति समझदार तो निकला ही नहीं था, आज की तारीख में वह खाता-कमाता भी नहीं था। रंगीला के साथ आज तक उसने कोई सुख नहीं भोगा था, उल्टे अब वह भविष्य की चिन्ता से हलकान जरूर रहने लगी थी। वह रंगीला से ज्यादा पढ़ी-लिखी थी और उससे कहीं ज्यादा सलीके वाली लड़की थी। उसने अपने पति के रूप में हमेशा रंगीला से कहीं बेहतर मर्द की कल्पना की थी और अगर उसके मां-बाप गरीब न होते तो ऐसा मर्द उसे हासिल हो भी सकता था। वह हर लिहाज से अपने-आपको रंगीला से कहीं बेहतर पति का हकदार मानती थी लेकिन अब गले पड़ा ढोल बजाते रहने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं था।
 
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