desiaks
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नीचे गली में अभी तक भी उनके अलावा और किसी ने कदम नहीं रखा था।
कोई पांच मिनट वे वहीं छत पर पड़े सुस्ताते रहे।
उस दौरान केवल एक साइकल वाला नीचे गली में से गुजरा।
किसी पुलिसिए के वहां पांव न पड़े।
रंगीला ने अब अपने अगले पड़ाव की तरफ निगाह डाली।
ऊपर डेढ़ फुट चौड़ाई का प्रोजेक्शन था।
उस प्रोजेक्शन तक पहुंचने का इन्तहाई सहूलियत का तरीका कौशल ने सुझाया।
वह दीवार के साथ जमकर खड़ा हो गया। रंगीला उसके कन्धों चढ़ गया। उसके कन्धों पर खड़ा होने पर उसका हाथ बड़ी सहूलियत से प्रोजेक्शन तक पहुंच गया। वह उचक कर प्रोजेक्शन पर चढ़ गया।
उसी की तरह राजन भी वहां पहुंच गया।
फिर दोनों प्रोजेक्शन पर लेट गए। उन्होंने नीचे हाथ लटकाए और कौशल को उसके हाथों से पकड़ कर उसे ऊपर खींच लिया।
यह उनके भारी फायदे की बात थी कि पांच मंजिलों तक रिहायश नहीं थी। उन मंजिलों पर केवल दफ्तर थे जो शाम को नहीं तो बड़ी हद आठ-नौ बजे तक बन्द हो जाते थे। उन मंजिलों पर भी रिहायशी फ्लैट होते तो उनका यूं ऊपर चढ़ना किसी-न-किसी की निगाहों में आ सकता था, किसी के कानों में उनकी हलचल की आहट भी पहुंचना उनके लिए खतरनाक हो सकता था। लेकिन उन तमाम मंजिलों पर सन्नाटा था। कामिनी देवी का पैन्थाउस ही उस इमारत का इकलौत रिहायशी फ्लैट था।
प्रोजेक्शन पर चलते हुए वे साइड बाल्कनी में पहुंचे। बाल्कनी के दरवाजे मजबूती से भीतर की तरफ से बन्द थे और बाल्कनी में फैली अव्यवस्था से लगता था कि वे दिन में भी शायद ही कभी खोले जाते थे।
उस बाल्कनी के पास से पानी का पाइप चौथी मंजिल के पास बने प्रोजेक्शन तक जाता था।
लेकिन वह पाइप बाल्कनी के इतना पास नहीं था जितना कि वह नीचे से देखे जाने से लगता था।
रंगीला सशंक-सा आंखों ही आंखों में बाल्कनी की रेलिंग और पाइप के बीच का फासला नापता रहा। वहां से हाथ छूट जाने का मतलब एक ही था।
उसकी अट्ठाइस वर्षीय जिन्दगी का समापन।
फिर हिम्मत करके वह बाल्कनी के रेलिंग पर चढ़ गया। वह दीवार के साथ सट गया और उसने अपना एक हाथ इंच-इंच करके पाइप की तरफ बढ़ाया।
हाथ पाइप तक पहुंच गया।
लेकिन सिर्फ पहुंच ही काफी नहीं थी, उस पहुंच को गिरफ्त में तब्दील करके के लिए अभी काफी और पाइप की तरफ झुकना जरूरी था। और उस कोशिश में रेलिंग पर से उसके पांव उखड़ सकते थे और वह तीन मंजिल नीचे जाकर गिर सकता था।
सांस रोके, दांत भीचे, वह अपना हाथ आगे सरकाता रहा।
पाइप पर उसकी पकड़ मजबूत हुई।
एक क्षण वह उसी स्थिति में स्थिर रहा। फिर उसने सांस रोक ली, मन-ही-मन भगवान का नाम लिया और रेलिंग पर टिके अपने पैरों से रेलिंग को धक्का दिया।
उसका शरीर आगे को उछला। रेलिंग पर से उसके पांव हट गए। उसी क्षण उसका दूसरा हाथ भी पाइप पर पड़ा। उसके शरीर को एक झटका लगा। तभी उसके दोनों घुटने पाइप से लिपट गए और उसका शरीर स्थिर हो गया।
तब कहीं जाकर उसने सांस छोड़ी।
रेलिंग से पाइप तक पहुंचने के एक क्षण में उसे जहन्नुम का नजारा हो गया था।
उसने एक आश्वासनपूर्ण निगाह अपने साथियों पर डाली और इंच-इंच करके ऊपर सरकने लगा।
वह अगले प्रोजेक्शन पर पहुंच गया।
फिर कौशल और राजन भी उसके पहलू में पहुंच गए।
राजन जब वहां पहुंचा तो उसकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी, चेहरा कानों तक लाल था और आंखों में दहशत की छाया साफ तैर रही थी। उसके विपरीत कौशल एकदम नॉर्मल लग रहा था। उसके लम्बे कद ने उसे पूरा फायदा पहुंचाया था। जिस सहूलियत से वह रेलिंग से पाइप तक पहुंचा था, वह रंगीला और राजन को हासिल नहीं थी।
एक कतार में प्रोजेक्शन पर आगे-पीछे चलते वे इमारत के सामने किनारे तक पहुंचे। सबसे आगे रंगीला था, बीच में राजन था और पीछे कौशल था।
कोई पांच मिनट वे वहीं छत पर पड़े सुस्ताते रहे।
उस दौरान केवल एक साइकल वाला नीचे गली में से गुजरा।
किसी पुलिसिए के वहां पांव न पड़े।
रंगीला ने अब अपने अगले पड़ाव की तरफ निगाह डाली।
ऊपर डेढ़ फुट चौड़ाई का प्रोजेक्शन था।
उस प्रोजेक्शन तक पहुंचने का इन्तहाई सहूलियत का तरीका कौशल ने सुझाया।
वह दीवार के साथ जमकर खड़ा हो गया। रंगीला उसके कन्धों चढ़ गया। उसके कन्धों पर खड़ा होने पर उसका हाथ बड़ी सहूलियत से प्रोजेक्शन तक पहुंच गया। वह उचक कर प्रोजेक्शन पर चढ़ गया।
उसी की तरह राजन भी वहां पहुंच गया।
फिर दोनों प्रोजेक्शन पर लेट गए। उन्होंने नीचे हाथ लटकाए और कौशल को उसके हाथों से पकड़ कर उसे ऊपर खींच लिया।
यह उनके भारी फायदे की बात थी कि पांच मंजिलों तक रिहायश नहीं थी। उन मंजिलों पर केवल दफ्तर थे जो शाम को नहीं तो बड़ी हद आठ-नौ बजे तक बन्द हो जाते थे। उन मंजिलों पर भी रिहायशी फ्लैट होते तो उनका यूं ऊपर चढ़ना किसी-न-किसी की निगाहों में आ सकता था, किसी के कानों में उनकी हलचल की आहट भी पहुंचना उनके लिए खतरनाक हो सकता था। लेकिन उन तमाम मंजिलों पर सन्नाटा था। कामिनी देवी का पैन्थाउस ही उस इमारत का इकलौत रिहायशी फ्लैट था।
प्रोजेक्शन पर चलते हुए वे साइड बाल्कनी में पहुंचे। बाल्कनी के दरवाजे मजबूती से भीतर की तरफ से बन्द थे और बाल्कनी में फैली अव्यवस्था से लगता था कि वे दिन में भी शायद ही कभी खोले जाते थे।
उस बाल्कनी के पास से पानी का पाइप चौथी मंजिल के पास बने प्रोजेक्शन तक जाता था।
लेकिन वह पाइप बाल्कनी के इतना पास नहीं था जितना कि वह नीचे से देखे जाने से लगता था।
रंगीला सशंक-सा आंखों ही आंखों में बाल्कनी की रेलिंग और पाइप के बीच का फासला नापता रहा। वहां से हाथ छूट जाने का मतलब एक ही था।
उसकी अट्ठाइस वर्षीय जिन्दगी का समापन।
फिर हिम्मत करके वह बाल्कनी के रेलिंग पर चढ़ गया। वह दीवार के साथ सट गया और उसने अपना एक हाथ इंच-इंच करके पाइप की तरफ बढ़ाया।
हाथ पाइप तक पहुंच गया।
लेकिन सिर्फ पहुंच ही काफी नहीं थी, उस पहुंच को गिरफ्त में तब्दील करके के लिए अभी काफी और पाइप की तरफ झुकना जरूरी था। और उस कोशिश में रेलिंग पर से उसके पांव उखड़ सकते थे और वह तीन मंजिल नीचे जाकर गिर सकता था।
सांस रोके, दांत भीचे, वह अपना हाथ आगे सरकाता रहा।
पाइप पर उसकी पकड़ मजबूत हुई।
एक क्षण वह उसी स्थिति में स्थिर रहा। फिर उसने सांस रोक ली, मन-ही-मन भगवान का नाम लिया और रेलिंग पर टिके अपने पैरों से रेलिंग को धक्का दिया।
उसका शरीर आगे को उछला। रेलिंग पर से उसके पांव हट गए। उसी क्षण उसका दूसरा हाथ भी पाइप पर पड़ा। उसके शरीर को एक झटका लगा। तभी उसके दोनों घुटने पाइप से लिपट गए और उसका शरीर स्थिर हो गया।
तब कहीं जाकर उसने सांस छोड़ी।
रेलिंग से पाइप तक पहुंचने के एक क्षण में उसे जहन्नुम का नजारा हो गया था।
उसने एक आश्वासनपूर्ण निगाह अपने साथियों पर डाली और इंच-इंच करके ऊपर सरकने लगा।
वह अगले प्रोजेक्शन पर पहुंच गया।
फिर कौशल और राजन भी उसके पहलू में पहुंच गए।
राजन जब वहां पहुंचा तो उसकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी, चेहरा कानों तक लाल था और आंखों में दहशत की छाया साफ तैर रही थी। उसके विपरीत कौशल एकदम नॉर्मल लग रहा था। उसके लम्बे कद ने उसे पूरा फायदा पहुंचाया था। जिस सहूलियत से वह रेलिंग से पाइप तक पहुंचा था, वह रंगीला और राजन को हासिल नहीं थी।
एक कतार में प्रोजेक्शन पर आगे-पीछे चलते वे इमारत के सामने किनारे तक पहुंचे। सबसे आगे रंगीला था, बीच में राजन था और पीछे कौशल था।