desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
रंगीला ने फौरन कार की रफ्तार बढ़ाई और उसे बस से आगे निकाल ले गया।
इर्विन हस्पताल के बस स्टैण्ड से आगे उसने अपनी कार रोक दी। वह फुर्ती से कार से निकला और वापिस बस स्टैण्ड पर आकर खड़ा हो गया।
तभी वही डबल-डैकर बस स्टैण्ड पर आकर रुकी जिसकी खिड़की में से उसे सलमान अली की झलक दिखाई दी थी।
वह बस में सवार हो गया।
बस पर करोलबाग टर्मिनस का बोर्ड लगा हुआ था। रंगीला ने कन्डक्टर से टर्मिनस का टिकट लिया और सीढ़ियां चढ़ कर ऊपरले डैक पर पहुंचा।
ऊपर केवल तीन चार सीटों पर ही मुसाफिर बैठे थे।
सलमान अली आगे एक खिड़की के पास अकेला बैठा था और शायद दिल्ली शहर का आखिरी नजारा कर रहा था।
सलमान अली ने सहज भाव से उसकी तरफ देखा।
रंगीला पर निगाह पड़ते ही उसका चेहरा कागज की तरह सफेद हो गया। उसका शरीर एक बार बड़ी जोर से कांपा। अपनी गोद में रखे अपने सूटकेस को उसने बड़ी मजबूती से अपनी छाती के साथ जकड़ लिया।
“आदाब अर्ज करता हूं, मौलाना।”—रंगीला अपनी आवाज को मिठास का पुट देता बोला।
“तु... तु... तुम!”—उसके मुंह से निकला।
“हां, मैं। मेरा प्रेत नहीं। क्या बात है, मियां? इतने घबरा क्यों रहे हो?”
“म-मैं तो न-नहीं घबरा रहा।”
“जान कर खुशी हुई। अब बताओ तुम्हें खुशी हुई?”
“किस बात की?”
“मुझसे मुलाकात होने की?”
वह खामोश रहा।
“लगता है नहीं हुई।”
“तुम बस में कहां से टपक पड़े?”
“आसमान से। अपना सूटकेस संभाल लो”—एकाएक रंगीला कर्कश स्वर में बोला—“अगले स्टैण्ड पर हमने उतरना है।”
“नहीं।”—सलमान अली जोर से इनकार में गर्दन हिलाता बोला।
“क्या नहीं?”
“अब मैं वापिस नहीं जा सकता। मेरे लिए पीछे कुछ नहीं रखा। मैं अपनी पिछली जिन्दगी से हमेशा के लिए किनारा कर आया हूं।”
“फेथ डायमण्ड अकेले हड़प जाना चाहते हो, मौलाना?”
“वह मैं तुम्हें दे देता हूं। तुम अकेले हड़प लो उसे।”
“बातें मत बनाओ।”
“मैं बातें कहां बना रहा हूं। अगर बात फेथ डायमण्ड की है तो...”
“बात फेथ डायमण्ड की ही नहीं है।”
“तो?”
“तुम कहां जा रहे हो?”
“पाकिस्तान। हमेशा के लिए।”
“कैसे जाओगे? तुम्हारा पासपार्ट तो सरकार ने जब्त किया हुआ है!”
वह खामोश रहा।
“लगता है जाली पासपोर्ट का इन्तजाम हो गया है।”
वह परे देखने लगा।
“अपना पासपोर्ट मुझे दिखाओ।”
“नहीं।”—वह तीखे स्वर में बोला।
“मौलाना, बेवकूफ मत बनो। अभी तुम फेथ डायमण्ड के टुकड़े मुझे सौंप रहे थे यानी वह भी और चोरी का और भी ढेर सारा माल इस वक्त तुम्हारे कब्जे में है। ऊपर से तुम्हारे पास जाली पासपोर्ट है जो कि जरूरी नहीं कि सलमान अली के ही नाम से हो। ऐसे में गिरफ्तार हो गए तो बड़े लम्बे नपोगे, मौलाना।”
“तुम...तुम मुझे गिरफ्तार करवाओंगे?”
“हां।”
“और खुद बच जाओगे?”
“मुझे अपनी परवाह नहीं।”
“बिरादर।”—वह गिड़गिड़ाया—“तुम क्यों एक गरीब आदमी के पीछे पड़े हुए हो?”
“मौलाना, इस वक्त हम दोनों एक ही राह के राही हैं इसलिए शराफत इसी बात में है कि तुम मेरी पीठ खुजाओ और मैं तुम्हारी पीठ खुजाऊं।”
“मैं क्या करूं?”
“सबसे पहले तो बस से उतरो और वापिस अपने घर चलो।”
“मैं अब लौट कर वहां नहीं जाना चाहता।”
“वहां नहीं जाओगे तो जेल जाओगे। सोच लो।”
“बिरादर, कुछ तो खयाल करो। तुम इश्तिहारी मुजरिम बन चुके हो। पुलिस को तुम्हारी तलाश है। क्यों मुझे भी गेहूं के साथ घुन की तरह पीसना चाहते हो?”
“तुम्हें कुछ नहीं होगा। मुझे भी कुछ नहीं होगा।”
“लेकिन फिर भी...”
“बातों में वक्त जाया मत करो, मौलाना।”
“मेरे घर जाने से क्या होगा?”
“तुम्हारा घर आज की तारीख में मेरे लिए इन्तहाई महफूज जगह है।”
“वहम है तुम्हारा। तुम्हारा दोस्त राजन गिरफ्तार है। वह कभी भी मेरे बारे में पुलिस के सामने बक सकता है।”
“अगर उसने तुम्हारे बारे में कुछ बकना होता तो अब तक बक चुका होता। तुमने अखबार पढ़ा ही होगा। उसमें हर बात छपी है लेकिन तुम्हारा जिक्र नहीं छपा।”
“नहीं छपा तो छप जाएगा।”
“नहीं छपेगा।”
“अगर मैं बस से उतरने से इनकार कर दूं तो तुम क्या करोगे?”
“मैं तुम्हें गिरफ्तार करवा दूंगा।”
“चाहे साथ में खुद भी गिरफ्तार हो जाओ?”
“हां।”
“यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?”
“हां।”
“अच्छी बात है। मैं चलता हूं तुम्हारे साथ।”
“शाबाश!”
दोनों अजमेरी गेट के स्टैण्ड पर उतर गए।
एक थ्री-व्हीलर पर सवार होकर वे वापिस लौटे।
सलमान अली ने चाबी लगा कर अपने घर का दरवाजा खोला।
दोनों भीतर दाखिल हुए।
सलमान अली ने भीतर से दरवाजा बन्द कर लिया।
दोनों पहली मंजिल पर स्थित उसकी वर्कशॉप में पहुंचे।
सलमान अली ने सूटकेस अपने पैरों के पास रख लिया और स्वयं बैंच के सामने एक स्टूल पर बैठ गया।
“अब बोलो क्या कहते हो?”—वह बोला।
“तुम्हारे पास जो पासपोर्ट है”—रंगीला ने सवाल किया—“वह जाली है?”
“हां।”
“कहां से हासिल हुआ?”
“नबी करीम में एक मुसलमान एंग्रेवर है। वही कुछ भरोसे के लोगों के लिए ऐसे काम करता है।”
“मेरे लिए वह एक जाली पासपोर्ट बना देगा?”
“बना देगा। मेरे कहने पर बना देगा।”
“तुम कह दो उसे।”
“मैं उसके नाम तुम्हें चिट्ठी लिख देता हूं।”
उसने एक दराज खोला और उसमें से एक कागज और एक बाल प्वाइन्ट पेन निकाला। कुछ देर वह कागज पर उर्दू में कुछ लिखता रहा। उसने कागज को दो बार तह करके एक लिफाफे में रखा और लिफाफे पर इंगलिश में एक नाम और पता लिख दिया। फिर उसने लिफाफा रंगीला की तरफ बढ़ा दिया।
“यह आदमी”—रंगीला लिफाफा लेता बोला—“पैसे कितने लेगा इस काम के?”
इर्विन हस्पताल के बस स्टैण्ड से आगे उसने अपनी कार रोक दी। वह फुर्ती से कार से निकला और वापिस बस स्टैण्ड पर आकर खड़ा हो गया।
तभी वही डबल-डैकर बस स्टैण्ड पर आकर रुकी जिसकी खिड़की में से उसे सलमान अली की झलक दिखाई दी थी।
वह बस में सवार हो गया।
बस पर करोलबाग टर्मिनस का बोर्ड लगा हुआ था। रंगीला ने कन्डक्टर से टर्मिनस का टिकट लिया और सीढ़ियां चढ़ कर ऊपरले डैक पर पहुंचा।
ऊपर केवल तीन चार सीटों पर ही मुसाफिर बैठे थे।
सलमान अली आगे एक खिड़की के पास अकेला बैठा था और शायद दिल्ली शहर का आखिरी नजारा कर रहा था।
सलमान अली ने सहज भाव से उसकी तरफ देखा।
रंगीला पर निगाह पड़ते ही उसका चेहरा कागज की तरह सफेद हो गया। उसका शरीर एक बार बड़ी जोर से कांपा। अपनी गोद में रखे अपने सूटकेस को उसने बड़ी मजबूती से अपनी छाती के साथ जकड़ लिया।
“आदाब अर्ज करता हूं, मौलाना।”—रंगीला अपनी आवाज को मिठास का पुट देता बोला।
“तु... तु... तुम!”—उसके मुंह से निकला।
“हां, मैं। मेरा प्रेत नहीं। क्या बात है, मियां? इतने घबरा क्यों रहे हो?”
“म-मैं तो न-नहीं घबरा रहा।”
“जान कर खुशी हुई। अब बताओ तुम्हें खुशी हुई?”
“किस बात की?”
“मुझसे मुलाकात होने की?”
वह खामोश रहा।
“लगता है नहीं हुई।”
“तुम बस में कहां से टपक पड़े?”
“आसमान से। अपना सूटकेस संभाल लो”—एकाएक रंगीला कर्कश स्वर में बोला—“अगले स्टैण्ड पर हमने उतरना है।”
“नहीं।”—सलमान अली जोर से इनकार में गर्दन हिलाता बोला।
“क्या नहीं?”
“अब मैं वापिस नहीं जा सकता। मेरे लिए पीछे कुछ नहीं रखा। मैं अपनी पिछली जिन्दगी से हमेशा के लिए किनारा कर आया हूं।”
“फेथ डायमण्ड अकेले हड़प जाना चाहते हो, मौलाना?”
“वह मैं तुम्हें दे देता हूं। तुम अकेले हड़प लो उसे।”
“बातें मत बनाओ।”
“मैं बातें कहां बना रहा हूं। अगर बात फेथ डायमण्ड की है तो...”
“बात फेथ डायमण्ड की ही नहीं है।”
“तो?”
“तुम कहां जा रहे हो?”
“पाकिस्तान। हमेशा के लिए।”
“कैसे जाओगे? तुम्हारा पासपार्ट तो सरकार ने जब्त किया हुआ है!”
वह खामोश रहा।
“लगता है जाली पासपोर्ट का इन्तजाम हो गया है।”
वह परे देखने लगा।
“अपना पासपोर्ट मुझे दिखाओ।”
“नहीं।”—वह तीखे स्वर में बोला।
“मौलाना, बेवकूफ मत बनो। अभी तुम फेथ डायमण्ड के टुकड़े मुझे सौंप रहे थे यानी वह भी और चोरी का और भी ढेर सारा माल इस वक्त तुम्हारे कब्जे में है। ऊपर से तुम्हारे पास जाली पासपोर्ट है जो कि जरूरी नहीं कि सलमान अली के ही नाम से हो। ऐसे में गिरफ्तार हो गए तो बड़े लम्बे नपोगे, मौलाना।”
“तुम...तुम मुझे गिरफ्तार करवाओंगे?”
“हां।”
“और खुद बच जाओगे?”
“मुझे अपनी परवाह नहीं।”
“बिरादर।”—वह गिड़गिड़ाया—“तुम क्यों एक गरीब आदमी के पीछे पड़े हुए हो?”
“मौलाना, इस वक्त हम दोनों एक ही राह के राही हैं इसलिए शराफत इसी बात में है कि तुम मेरी पीठ खुजाओ और मैं तुम्हारी पीठ खुजाऊं।”
“मैं क्या करूं?”
“सबसे पहले तो बस से उतरो और वापिस अपने घर चलो।”
“मैं अब लौट कर वहां नहीं जाना चाहता।”
“वहां नहीं जाओगे तो जेल जाओगे। सोच लो।”
“बिरादर, कुछ तो खयाल करो। तुम इश्तिहारी मुजरिम बन चुके हो। पुलिस को तुम्हारी तलाश है। क्यों मुझे भी गेहूं के साथ घुन की तरह पीसना चाहते हो?”
“तुम्हें कुछ नहीं होगा। मुझे भी कुछ नहीं होगा।”
“लेकिन फिर भी...”
“बातों में वक्त जाया मत करो, मौलाना।”
“मेरे घर जाने से क्या होगा?”
“तुम्हारा घर आज की तारीख में मेरे लिए इन्तहाई महफूज जगह है।”
“वहम है तुम्हारा। तुम्हारा दोस्त राजन गिरफ्तार है। वह कभी भी मेरे बारे में पुलिस के सामने बक सकता है।”
“अगर उसने तुम्हारे बारे में कुछ बकना होता तो अब तक बक चुका होता। तुमने अखबार पढ़ा ही होगा। उसमें हर बात छपी है लेकिन तुम्हारा जिक्र नहीं छपा।”
“नहीं छपा तो छप जाएगा।”
“नहीं छपेगा।”
“अगर मैं बस से उतरने से इनकार कर दूं तो तुम क्या करोगे?”
“मैं तुम्हें गिरफ्तार करवा दूंगा।”
“चाहे साथ में खुद भी गिरफ्तार हो जाओ?”
“हां।”
“यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?”
“हां।”
“अच्छी बात है। मैं चलता हूं तुम्हारे साथ।”
“शाबाश!”
दोनों अजमेरी गेट के स्टैण्ड पर उतर गए।
एक थ्री-व्हीलर पर सवार होकर वे वापिस लौटे।
सलमान अली ने चाबी लगा कर अपने घर का दरवाजा खोला।
दोनों भीतर दाखिल हुए।
सलमान अली ने भीतर से दरवाजा बन्द कर लिया।
दोनों पहली मंजिल पर स्थित उसकी वर्कशॉप में पहुंचे।
सलमान अली ने सूटकेस अपने पैरों के पास रख लिया और स्वयं बैंच के सामने एक स्टूल पर बैठ गया।
“अब बोलो क्या कहते हो?”—वह बोला।
“तुम्हारे पास जो पासपोर्ट है”—रंगीला ने सवाल किया—“वह जाली है?”
“हां।”
“कहां से हासिल हुआ?”
“नबी करीम में एक मुसलमान एंग्रेवर है। वही कुछ भरोसे के लोगों के लिए ऐसे काम करता है।”
“मेरे लिए वह एक जाली पासपोर्ट बना देगा?”
“बना देगा। मेरे कहने पर बना देगा।”
“तुम कह दो उसे।”
“मैं उसके नाम तुम्हें चिट्ठी लिख देता हूं।”
उसने एक दराज खोला और उसमें से एक कागज और एक बाल प्वाइन्ट पेन निकाला। कुछ देर वह कागज पर उर्दू में कुछ लिखता रहा। उसने कागज को दो बार तह करके एक लिफाफे में रखा और लिफाफे पर इंगलिश में एक नाम और पता लिख दिया। फिर उसने लिफाफा रंगीला की तरफ बढ़ा दिया।
“यह आदमी”—रंगीला लिफाफा लेता बोला—“पैसे कितने लेगा इस काम के?”