SexBaba Kahan विश्‍वासघात - SexBaba
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SexBaba Kahan विश्‍वासघात

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Thriller विश्‍वासघात

शनिवार : शाम
वह कैन्टीन इरविन हस्पताल के कम्पाउंड के भीतर मुख्य इमारत के पहलू में बनी एक एकमंजिला इमारत में थी जिसकी एक खिड़की के पास की टेबल पर बैठा रंगीला चाय चुसक रहा था और अपने दो साथियों के वहां पहुंचने का इन्तजार कर रहा था। खिड़की में से उसे हस्पताल के आगे से गुजरता जवाहरलाल नेहरू मार्ग, उससे आगे का पार्क, फिर आसिफ अली रोड और फिर आसिफ अली रोड की शानदार बहुमंजिला इमारतें दिखाई दे रही थीं।
उसके साथियों को तब तक वहां पहुंच जाना चाहिए था लेकिन उनके न पहुंचा होने से उसे कोई शिकायत नहीं थी। इन्तजार का रिश्‍ता वक्त की बरबादी से होता था और वक्त की उन दिनों उसे कोई कमी नहीं थी। एक महीना पहले तक वह अमरीकी दूतावास में ड्राइवर था लेकिन अब उसकी वह नौकरी छूट चुकी थी। उसे नौकरी से निकाला जा चुका था। दूतावास से बीयर के डिब्बे चुराता वह रंगे हाथों पकड़ा गया था और उसे फौरन, खड़े पैर, डिसमिस कर दिया गया था।
निहायत मामूली, वक्ती लालच में पड़कर वह अपनी लगी लगाई नौकरी से हाथ धो बैठा था।
वह एक लगभग अट्ठाइस साल का, बलिष्ठ शरीर वाला, मुश्‍किल से मैट्रिक पास युवक था। उसके नयन-नक्श बड़े स्थूल थे और सिर के बाल घने और घुंघराले थे। दूतावास की ड्राइवर की नौकरी में तनखाह और ओवरटाइम मिलाकर उसे हर मास हजार रुपये से ऊपर मिलते थे; जिससे उसका और उसकी बीवी कोमल का गुजारा बाखूबी चल जाता था। ऊपर से शानदार वर्दी मिलती थी और कई ड्यूटी-फ्री चीजों की खरीद की सुविधा भी उसे उपलब्ध थी। उसकी अक्ल ही मारी गई थी जो उसने बीयर के चार डिब्बों जैसी हकीर चीज का लालच किया था।
बहरहाल अब वह बेरोजगार था। देर सबेर ड्राइवर की नौकरी तो उसे मिल ही जाती लेकिन दूतावास की नौकरी जैसी ठाठ की नौकरी मिलने का तो अब सवाल ही पैदा नहीं होता था।
अपने जिन दो दोस्तों का वह इन्तजार कर रहा था, आज की तारीख में वे भी उसी की तरह बेकार थे और उनके सहयोग से वह एक ऐसी हरकत को अन्जाम देने के ख्वाब देख रहा था; जिसकी कामयाबी उन्हें मालामाल कर सकती थी और रुपये-पैसे की हाय-हाय से उन्हें हमेशा के लिए निजात दिलवा सकती थी।
इस सिलसिले में अपने दोस्तों के खयालात वह पहले ही भांप चुका था। उसे पूरा विश्‍वास था कि वे उसका साथ देने से इनकार नहीं करने वाले थे।
आज वह उन्हें समझाने वाला था कि असल में उन लोगों ने क्या करना था और जो कुछ उन्होंने करना था, उसमें कितना माल था और कितना जोखिम था।
तभी उसके दोनों साथियों ने रेस्टोरेन्ट में कदम रखा।
वे दोनों उससे उम्र में छोटे थे और उसी की तरह बेरोजगार थे। फर्क सिर्फ इतना था कि वह नौकरी से निकाल दिया जाने की वजह से बेरोजगार था और उन दोनों को कभी कोई पक्की, पायेदार नौकरी हासिल हुई ही नहीं थी।
उनमें से एक का नाम राजन था।
राजन लगभग छब्बीस साल का निहायत खूबसूरत नौजवान था। बचपन से ही उसे खुशफहमी थी कि वह फिल्म स्टार बन सकता था, इसलिए उसने किसी काम धन्धे के काबिल खुद को बनाने की कभी कोई कोशिश ही नहीं की थी। बीस साल की उम्र में वह अपने बाप का काफी नावां-पत्ता हथियाकर घर से भाग गया था और फिल्म स्टार बनने के लालच में मुम्बई पहुंच गया था। पूरे दो साल उसने मुम्बई में लगातार धक्के खाए थे लेकिन वह फिल्म स्टार तो क्या, एक्स्ट्रा भी नहीं बन सका था। फिर जेब का माल पानी जब मुकम्मल खत्म हो गया था तो उसे अपना घर ही वह इकलौती जगह दिखाई दी थी जहां कि उसे पनाह हासिल हो सकती थी।
पिटा-सा मुंह लेकर वह दिल्ली वापिस लौट आया था।
 
अपने बाप की वह इकलौती औलाद था। मां उसकी कब की मर चुकी थी, इसलिए उसके बाप ने दो साल बाद घर लौटे अपने बुढ़ापे के इकलौते सहारे के सारे गुनाह बख्श दिए थे।
लौट के बुद्धू घर को आए।
आज उसे दिल्ली लौटे दो साल हो चुके थे लेकिन उसके इलाके के उसके हमउम्र लड़के आज भी उसका मजाक उड़ाते थे कि गया था साला अमिताभ बच्चन बनने, बन उसका डुप्लीकेट भी न सका।
राजन बेचारा खून का घूंट पीकर रह जाता था।
उसका बाप तालों में चाबियां लगाने का मामूली काम करता था, कैसी भी खोई हुई चाबी का डुप्लीकेट तैयार कर देने में उसे महारत हासिल थी। अपना हुनर उसने राजन को भी सिखाया था जो कि राजन ने बड़े अनिच्छापूर्ण ढंग से इसीलिए सीख लिया था, क्योंकि करने को और कोई काम नहीं था। कई बार वह अपने बाप की दुकान पर भी जाता था लेकिन उस हकीर काम में उसका मन कतई नहीं था।
अलबत्ता रंगीला के सामने वह अक्सर डींग हांका करता था कि सेफ का हो या अलमारी का, लॉकर का हो या स्ट्रांगरूम का, वह कैसा भी ताला बड़ी सहूलियत से खोल सकता था।
राजन की उस काबिलियत पर रंगीला की योजना का मुकम्मल दारोमदार था।
दूसरे का नाम कौशल था।
कौशल छः फुट से भी निकलते कद का लम्बा-तड़ंगा जाट था जो कि मास्टर चंदगीराम की शागिर्दी में पहलवानी कर चुका था। कभी वह पहलवानी के दम पर इंग्लैंड-अमरीका की सैर के और सोने-चांदी के बेशुमार तमगे जीतने के सपने देखा करता था, लेकिन जब वह दिल्ली के दंगल में शुरू के ही राउण्डों में चार साल लगातार हार चुका तो उसके सारे सपने टूट गए। उम्र में वह राजन जितना ही बड़ा था लेकिन पहलवानी के चक्कर में उसने इतना ज्यादा वक्त बरबाद कर दिया था कि हुनर वह कोई राजन जितना भी नहीं सीख सका था। रहने वाला वह हिसार का था लेकिन नाकामयाबी की कालिख मुंह पर पोते वह घर भी तो नहीं जाना चाहता था।
उस घड़ी वे तीनों बेरोजगार, पैसे से लाचार, वक्त की मार खाये हुए, अन्धेरे भविष्य से त्रस्त, एक ही किश्‍ती के सवार नौजवान थे।
वे दोनों रंगीला के साथ आ बैठे।
कैन्टीन उस वक्त लगभग खाली थी।
“क्या किस्सा है, गुरु?”—राजन बोला।
“और आज बात साफ-साफ हो जाए।”—कौशल बोला—“पहेलियां बहुत बुझा चुके हो।”
रंगीला मुस्कराया। उसने दोनों के लिए चाय मंगवाई।
“सुनो।”—अन्त में वह बोला—“मेरे दिमाग में एक ऐसी स्कीम है जिससे हम इतना माल पीट सकते हैं कि जिन्दगी भर हमें कभी रुपये पैसे का तोड़ा नहीं सतायेगा।”
“क्या स्कीम है?”—राजन बोला।
“क्या करना होगा?”—कौशल बोला।
“चोरी।”—रंगीला धीरे बोला।
“धत् तेरे की।”—कौशल निराश स्वर में बोला।
“खोदा पहाड़ और निकला चूहा।”—राजन भी निराश स्वर में बोला—“गुरु, सस्पेंस तो इतना फैलाया और बात चोरी की की।”
 
“यह किसी मामूली चोरी की बात नहीं।”—रंगीला बोला—“यह एक बिल्कुल सेफ चोरी की बात है, इसमें पकड़े जाने का अन्देशा कतई नहीं और यह इकलौती चोरी हमें इतना मालामाल कर सकती है कि बाकी जिन्दगी हमें कभी कुछ नहीं करना पड़ेगा। चोरी भी नहीं।”
राजन और कौशल मुंह से कुछ न बोले। उन्होंने सन्दिग्ध भाव से एक दूसरे की तरफ देखा।
“यह कोई चिड़िया की बीट सहेजने वाला काम नहीं”—रंगीला बोला—“जिसका प्रस्ताव कि मैं तुम्हारे सामने रखना चाहता हूं। यह एक ऐसा काम है जिसमें कम-से-कम बीस-बीस लाख रुपये की तुम्हारी हिस्सेदारी की मैं गारन्टी करता हूं।”
बीस लाख का नाम सुनते ही दोनों की आंखें तुरन्त लालच से चमक उठीं।
“करना क्या होगा?”—राजन बोला।
“चोरी का शिकार कौन होगा?”—कौशल बोला।
“वो सामने आसिफ अली रोड देख रहे हो?”—रंगीला खिड़की से बाहर इशारा करता बोला।
दोनों की निगाह खिड़की से बाहर की तरफ उठ गई। दोनों ने सहमति में सिर हिलाया।
“वह डिलाइट सिनेमा और ब्रॉडवे होटल के बीच की उस इमारत को देख रहे हो जो आस पास की इमारतों में सबसे ऊंची है?”
दोनों ने फिर सहमति में सिर हिलाया। वह छ: मंजिला अत्याधुनिक इमारत उन्हें साफ दिखाई दे रही थी।
“उस इमारत की मालकिन का नाम कामिनी देवी है। बहुत खानदानी, बहुत रईस औरत है। कभी किसी रियासत की राजकुमारी हुआ करती थी। मोटा प्रिवी पर्स मिला करता था उसे। यह इमारत उसी की मिल्कियत है। पांच मंजिलों में बड़ी बड़ी कम्पनियों के दफ्तर हैं, जिनसे कि उसे मोटा किराया हासिल होता है। छठी, सबसे ऊपरली मंजिल पर वह खुद रहती है। अकेली। वैसे नौकर उसके पास तीन चार हैं लेकिन वे सब सुबह आते हैं शाम को चले जाते हैं। केवल एक ड्राइवर की सेवा की जरूरत उसे देर-सवेर भी पड़ती है इसलिए वह चौबीस घण्टे की मुलाजमत में है। लेकिन वह ड्राइवर इमारत की बेसमेंट में रहता है। कहने का मतलब यह है कि कामिनी देवी अपने उस फ्लैट में, जो कि विलायती जुबान में पैन्थाउस कहलाता है, अकेली रहती है। और जब वह भी कहीं गई हुई हो तो फ्लैट में कोई भी नहीं होता।”
“तुम उस औरत के बारे में इतना कुछ कैसे जानते हो?”—राजन उत्सुक स्वर में बोला।
 
“वह कभी किसी अंग्रेजी डिप्लोमैट की बीवी हुआ करती थी। उसके पति की तो मौत हो चुकी है लेकिन पति का अमरीकी दूतावास में इतना बुलन्द रुतबा था कि आज भी अगर वहां कोई समारोह वगैरह होता है तो कामिनी देवी को वहां जरूर आमन्त्रित किया जाता है। वह लाखों करोड़ों रुपयों के जेवरों से लदी-फंदी अपनी पूरी शानोसलमान के साथ वहां जाती है और आधी रात से पहले वहां से कभी नहीं लौटती। जब लौटती है तो नशे में धुत्त होती है। मैंने उसे दूतावास के समारोहों में अक्सर देखा है। हर बार वह जेवरों का नया सैट पहने होती है जिससे साबित होता है कि उसके पास बेतहाशा जेवर हैं। एक ‘फेथ’ नाम का हीरा है उसके पास, जिसे वह हमेशा पहन कर जाती है। वह आकार में इतना बड़ा है कि आंखों से देख कर विश्‍वास नहीं हीता कि इतना बड़ा हीरा भी दुनिया में हो सकता है। वह अकेला हीरा ही सुना है कि पचास साठ लाख रुपए का होगा। इससे ज्यादा कीमत का भी हो तो कोई बड़ी बात नहीं। और वे जेवर वह बैंक के किसी लॉकर वगैरह में नहीं, अपने फ्लैट में ही रखती है।”
“तुम्हें कैसे मालूम?”
“एक बार उसका ड्राइवर एकाएक बीमार पड़ गया था। उसको दूतावास लिवा लाने के लिए गाड़ी लेकर मुझे वहां भेजा गया था। बाद में आधी रात के बाद मैं ही उसे यहां छोड़ने आया था। वह नशे में धुत्त थी इसलिए मैं उसे ऊपर फ्लैट के भीतर तक छोड़कर गया था। उसके फ्लैट के बैडरूम में एक सेफ मौजूद थी, जो इसे उसकी लापरवाही ही कहिए कि उसने मेरे सामने खोली थी और अपने शरीर के जेवर उतारकर मेरे सामने भीतर सेफ में रखे थे। भाई लोगो, वह सेफ जेवरों के डिब्बों से अटी पड़ी थी। फिर तभी उसे अहसास हो गया था कि मैं अभी भी वहीं था तो उसने मुझे डांट कर वहां से भगा दिया था।”
“ओह!”
“लेकिन जब तक मैं वहां रहा था, तब तक मैं फ्लैट का काफी सारा जुगराफिया समझ गया था। फ्लैट की बाल्कनी का दरवाजा मैंने पाया था कि खुला था। आजकल के मौसम के लिहाज से अभी गर्म मौसम के लिहाज से बाल्कनी का दरवाजा वह खुला रखती हो, यह कोई बड़ी बात नहीं। वह बाल्कनी यहीं से दिखाई दे रही है। अगर तुम गौर से देखो तो पाओगे कि बाल्कनी का शीशे का दरवाजा अभी भी खुला है। फ्लैट सैंट्रली एयरकन्डीशन्ड नहीं है। उसके केवल दो कमरों में, दोनों ही बैडरूम हैं, एयरकंडीशनर लगे हुए हैं। इसलिए जहां तक एयरकंडीशनर द्वारा फ्लैट के टैम्परेचर कन्ट्रोल का सवाल है; बाल्कनी के दरवाजे के खुले या बन्द होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। शायद औरत को ताजी हवा की भी कद्र है और इसीलिए वह इस मौसम में बाल्कनी का दरवाजा खुला रखती है। वैसे भी उसे यह अन्देशा नहीं है कि कोई सड़क से छ: मंजिल ऊपर स्थित बाल्कनी तक पहुंच सकता है।”
“हूं!”—कौशल बोला।
“लेकिन यह काम नामुमकिन नहीं।”—रंगीला बड़े आशापूर्ण स्वर से बोला।
“तुम बाल्कनी के रास्ते उसके फ्लैट में घुसने की तो नहीं सोच रहे हो, गुरु?”—राजन नेत्र फैलाकर बोला।
“मैं बिल्कुल यही सोच रहा हूं।”—रंगीला की निगाह फिर खिड़की के पार उस इमारत की तरफ भटक गई—“दोस्तो, यह काम हो सकता है। जरूरत होगी थोड़े हौसले की, थोड़ी सावधानी की। लेकिन मेरी योजना की कामयाबी का असली दरोमदार इस बात पर है कि क्या तुम वह सेफ खोल लोगे?”
“उस सेफ में कोई इलैक्ट्रॉनिक अड़ंगा तो नहीं?”—राजन ने पूछा—“कोई पुश बटन डायल वगैरह तो नहीं?”
“नहीं।”—रंगीला बोला—“ऐसा कुछ नहीं है उसमें। वह एक सीधी-सादी लेकिन सूरत से बहुत मजबूत लगने वाली सेफ है। मैंने उस औरत को उसमें ये...”—उसने हाथ के इशारे से चाबी की लम्बाई अपनी कोहनी तक लम्बी बताई—“लम्बी चाबी लगाते देखा था।”
“चाबी की लम्बाई का सेफ के ताले की मजबूती से कोई रिश्‍ता नहीं होता।”
“तुम उसे खोल लोगे?”
“शर्तिया खोल लूंगा। लेकिन वक्त दरकार होगा।”
“कितना?”
“कम-से-कम नहीं तो एक घण्टा।”
 
“तुम्हें एक घण्टे से बहुत ज्यादा वक्त मिलेगा। कामिनी देवी आधी रात से पहले कभी वापिस नहीं लौटती। नौ बजे यह इलाका सुनसान हो जाता है। दस बजे अगर हम बाल्कनी में पहुंचने की कोशिश शुरू करें तो बड़ी हद पन्द्रह मिनट में हम ऊपर पहुंच जायेगे।”
“हम ऊपर सीढ़ियों या लिफ्ट के रास्ते क्यों नहीं जा सकते?”—कौशल ने पूछा।
“जा सकते हैं।”—रंगीला बोला—“नीचे दरबान होता है लेकिन फिर भी जा सकते हैं। लेकिन उस सूरत में हमें फ्लैट के मुख्य द्वार का ताला भी खोलना होगा। गलियारे में खड़े होकर। तब कोई एकाएक ऊपर से आ गया तो हम अपनी उस हरकत की या अपनी वहां मौजूदगी की कोई सफाई नहीं दे पाएंगे। और फिर उस ताले को खोलने में राजन पता नहीं कितना वक्त बरबाद करे। अगर उसने सारा वक्त बाहरला दरवाजा खोलने में ही लगा दिया तो वह सेफ का दरवाजा कब खोलेगा?”
“इस बात की गारन्टी है कि बाल्कनी का दरवाजा खुला होगा?”
“हां। मैंने खूब ध्यान दिया है इस तरफ। बाल्कनी का दरवाजा मैंने कभी भी बन्द नहीं देखा है। अगर वह नहीं भी खुला होगा तो हम उसे तोड़ देंगे। मुझे पूरा विश्‍वास है कि छठी मंजिल पर शीशा टूटने की आवाज नीचे की मंजिलों पर नहीं सुनाई देगी और आसपास की कोई इमारत इतना ऊंची है ही नहीं।”
वे सोचने लगे।
“ऐसा मौका जिन्दगी में बार-बार नहीं आने वाला, दोस्तो।”—रंगीला दबे स्वर में बोला—“उस सेफ में से हमें करोड़ों रुपये के जेवरात हासिल हो सकते हैं जो हमने अगर कौड़ियों के मोल भी बेचे तो हमें लाखों रुपये मिलेंगे। हम तीनों की जिन्दगी का वह पहला और आखिरी अपराध होगा। एक बार मोटा माल हाथ में आ जाने के बाद बाकी की जिन्दगी हमें कोई गलत काम करने की जरूरत नहीं होगी। इसलिए अगर इसमें कोई खतरा है भी तो एक ही बार का है। वह खतरा हम उठा सकते हैं। हम अगर भरपूर सावधानी बरतें तो वह खतरा खतरा नहीं होगा।”
“फिर भी अगर पकड़े गए तो?”—राजन सशंक स्वर में बोला।
“तो बहुत बुरा होगा।”—रंगीला बोला—“जेल की हवा खानी पड़ जाएगी। मैं तुम लोगों से झूठ नहीं बोलना चाहता। न ही मैं तुम्हें कोई ऐसे सब्जबाग दिखाना चाहता हूं जिनकी वजह से तुम लोभ में पड़कर अन्धाधुन्ध कोई काम करो। खतरा किस काम में नहीं होता! खतरा हर काम में होता है। तुम इस कैंटीन से निकलकर हस्पताल के सामने की सड़क पार करने की कोशिश करो तो क्या उसमें खतरा नहीं है। हो सकता है कि अपनी कोई गलती न होने के बावजूद तुम किसी ट्रक के नीचे आकर कुचले जाओ। खतरा तो दिल्ली जैसे शहर में सांस लेने में, पानी का एक गिलास पीने में भी है। लेकिन खतरे का हल होता है सावधानी। सावधानी बरती जाए तो कैसे भी खतरे को टाला जा सकता है।”
राजन चुप हो गया।
“इमारत के बाहर से ऊपर चढ़ते हम देख नहीं लिए जायेगे?”—कौशल बोला।
“आजकल अन्धेरी रातें हैं। हमने पिछवाड़े की तरफ से ऊपर चढ़ना है। पिछवाड़े का रास्ता दस बजे तक सुनसान हो जाता है। उधर रोशनी भी ज्यादा नहीं होती। जितनी रोशनी होती है, वह पहली मंजिल से ऊपर नहीं पहुंच पाती। अगर हम काले कपड़े पहने हुए होंगे तो हमें कोई नहीं देख सकेगा।”
“यूं छ: मंजिल ऊपर तक हम चढ़ सकेंगे?”
“जरूर चढ़ सकेंगे। सबूत के तौर पर सबसे पहले ऊपर मैं चढ़ूंगा। अगर मैं रास्ते में ही गिर गया या किसी और वजह से ऊपर न पहुंच सका तो मेरे अंजाम की परवाह किए बिना तुम वहां से खिसक जाना। अगर मैं कामयाब हो गया तो तुम भी हिम्मत कर लेना।”
“गुरु।”—कौशल निश्‍चयपूर्ण स्वर में बोला—“ऐसा जो काम तुम कर सकते हो, वह मैं तुमसे बेहतर कर सकता हूं।”
“मैं भी।”—राजन बोला लेकिन उसके स्वर में हिचकिचाहट का पुट था।
“फिर तो बात ही क्या है!”—रंगीला बोला—“फिर तो बात सिर्फ यह रह गई कि तुम सेफ का ताला खोल सकते हो या नहीं!”
“शर्तिया खोल सकता हूं।”—राजन बोला—“चाबी से खुलने वाली कोई सेफ दुनिया में पैदा नहीं हुई जो मैं नहीं खोल सकता।”
“फिर तो समझो कि मार लिया पापड़ वाले को।”
“लेकिन यूं ताला खोलने की जरूरत क्या है?”—कौशल बोला।
“क्या मतलब?”—रंगीला तनिक सकपकाए स्वर में बोला।
 
“हम उस औरत का टेंटूवा दबाकर उससे सेफ की चाबी ही क्यों नहीं हासिल कर सकते?”
“नहीं।”—रंगीला इनकार में सिर हिलाता हुआ बोला—“मेरे जेहन में जो स्कीम है, वह पूरी खामोशी से अंजाम दी जाने वाली एक चोरी की है न कि किसी फिल्मी स्टाइल की डकैती की। मैं यह तो चाहता नहीं कि हमें उस औरत के सामने पड़ना पड़े। उससे चाबी हथियाने के लिये हमें जबरन उसके फ्लैट में घुसना पड़ेगा जो कि वैसे भी सम्भव नहीं। दिन में वहां नौकर-चाकर होते हैं और रात को किसी मुनासिब शिनाख्त के बिना वह फ्लैट का दरवाजा किसी को नहीं खोलती। उसकी फ्लैट में मौजूदगी के दौरान तो बाल्कनी के रास्ते उसके फ्लैट में घुसने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता। वह शोर मचा सकती है; हथियारबन्द होने की सूरत में वह हमें गोली मार सकती है और अगर फ्लैट में उसके साथ और लोग मौजूद हुए तो हमें पकड़कर पुलिस के हवाले करने से पहले वे मार-मारकर हमारे में भुस भर सकते हैं।”
“ओह!”
कुछ क्षण खामोशी रही।
“हम मामूली लोग हैं।”—फिर उस खामोशी को राजन ने भंग किया—“कहीं ऐसा न हो चोरी में तो हम कामयाब हो जायें लेकिन चोरी का माल ठिकाने लगाने की कोशिश में धर लिए जायें।”
“उसका इन्तजाम भी है।”—रंगीला बोला।
“क्या?”
“कौशल का किनारी बाजार में एक वाकिफकार है। उसका धन्धा ही हीरे तराशना है। मैं उससे मिल चुका हूं। मुझे वह आदमी ठीक लगा है। हमारा यह काम वह कर देगा। वह जेवरों की सैटिंग में से हीरे-जवाहरात निकाल देगा। कोई आसानी से पहचान लिया जा सकने वाला बड़े साइज का हीरा होगा—जैसा कि वह ‘फेथ’ नाम का हीरा है—तो वह उसे काटकर छोटे-छोटे हीरों में तबदील कर देगा। ऐसा करने से ऐसे हीरों की कीमत तो घट जाएगी लेकिन उनकी वजह से पकड़े जाने का अन्देशा हमें नहीं रहेगा।”
“हूं।”
“बाद में वही आदमी हमें हीरों का ग्राहक भी तलाश करके देगा।”
“बदले में वह क्या लेगा?”
“बराबर का हिस्सा।”
“ओह!”
राजन के स्वर में निराशा का ऐसा पुट था जैसे माल उसकी मुट्ठी में था और उसी क्षण उसका एक चौथाई भाग उसके काबू से निकला जा रहा था।
रंगीला को वह बात बहुत पसन्द आई। वह इस बात का सबूत था कि जेहनी तौर पर वह उस चोरी के लिए तैयार हो चुका था।
“हमें इमारत का पिछवाड़ा दिखाओ।”—कौशल बोला।
“चलो।”
रंगीला ने चाय के पैसे चुकाए। तीनों कैन्टीन से बाहर निकल आये।
खामोशी से चलते हुए वे आफिस अली रोड पर पहुंचे। कामिनी देवी वाली इमारत के पिछवाड़े पहुंचने के लिए डिलाइट या दिल्ली गेट से घूमकर पीछे जाना जरूरी था। डिलाइट अपेक्षाकृत पास था, इसलिए वे उधर से पिछवाड़े की गली में दाखिल हुए।
 
उस वक्त पिछवाड़े के रास्ते पर खूब आवाजाही थी। उधर दो-तीन मोटर मकैनिक वर्कशाप थीं, जहां उस वक्त काफी काम होता मालूम हो रहा था।
किसी को उनकी तरफ ध्यान देने की फुरसत नहीं थी।
“यह है उस इमारत का पिछवाड़ा।”—रंगीला एक जगह ठिठकता हुआ बोला।
वे दोनों भी ठिठक गए।
“इमारत की यह साइड अच्छी तरह देख लो।”—रंगीला बोला—“बात आगे चलकर करेंगे।”
उन दोनों ने बड़ी गौर से इमारत का मुआयना करना आरम्भ किया।
“चलें?”—कुछ क्षण बाद रंगीला बोला।
दोनों ने सहमति में सिर हिलाया।
तीनों आगे बढ़े।
टेलीफोन एक्सचेंज के सामने पहुंचकर वे रुके।
“क्या कहते हो?”—रंगीला बोला।
दोनों ने कोई उत्तर न दिया। वे दोनों एक-दूसरे की सूरत देखने लगे। दोनों ही चाहते थे कि दूसरा बोले।
फिर रंगीला ही बोला।
“इमारत छःमंजिला है लेकिन बाल्कनी तक पहुंचने के लिए हमें पांच ही मंजिलें चढ़नी पड़ेंगी।”
“गिर गए तो जान बचनी मुश्‍किल होगी।”—राजन कठिन स्वर में बोला।
“लेकिन हम गिरेंगे क्यों? तुमने एक बात जरूर नोट की होगी कि पांचों मंजिलें एक साथ चढ़ना जरूरी नहीं है। यह काम तीन या चार किश्‍तों में भी किया जा सकता है। इमारत जैसी सामने से एक दम सीधी उठी हुई है वैसी पीछे से नहीं है। पीछे दूसरी मंजिल तक इमारत सीधी है फिर आगे एक टैरेस आ जाती है, जिसके आधे भाग पर छत पड़ी हुई है। उस टैरिस की छत पर पहुंच जाने के बाद आगे बढ़ने से पहले हम जब तक चाहें वहां सुस्ता सकते हैं। उस छत से आगे अगली मंजिल पर एक कोई डेढ़ फुट का प्रोजेक्शन है जो सामने से होता हुआ इमारत के एक पहलू में घूम जाता है। वहां फिर हम सुस्ता सकते हैं। वह प्रोजेक्शन एक साइड बाल्कनी पर खतम होता है। उस बाल्कनी के पार एक पानी की निकासी का कम-से-कम चार इन्च व्यास का पाइप है जो चौथी मंजिल के पास बने नीचे जैसे ही डेढ़ फुट के प्रोजेक्शन तक जाता है। वह प्रोजेक्शन इमारत के सामने किनारे तक खिंचा हुआ है। उस पर चलते हुए हम एक और पाइप तक पहुंच सकते हैं जो कि इमारत की सबसे ऊपर की छत तक जाता है, लेकिन हमने छत पर नहीं चढ़ना है। हमने एक मंजिल पहले ही रास्ते में आने वाली उस बाल्कनी पर उतर जाना है जो कि हमारा लक्ष्य है।”
 
“हो सकता है”—राजन बोला—“कि ये पाइप दीवार के साथ मजबूती से न कसे हुए हों और वे एक आदमी की बोझ सम्भालने के काबिल न हों?”
“इतनी मजबूत बनी इमारत के पाइप भी मजबूती से न लगे हुए हों, ऐसा हो तो नहीं सकता लेकिन अगर ऐसा हुआ भी तो पहले जान मेरी जायेगी। पाइप कमजोर होंगे तो नीचे मैं गिरूंगा। मैं पहले ही कह चुका हूं कि तुम लोगों को ऐसा कोई काम नहीं करना पड़ेगा जिसे मैं पहले खुद कामायाबी से अन्जाम नहीं दे चुका होऊंगा।”
राजन खामोश हो गया।
“वापिस भी हमें वैसे ही उतरना होगा?”—कौशल बोला—“जैसे कि हम ऊपर चढ़ेंगे?”
“नहीं।”—रंगीला बोला—“वापिसी ऐसे होना कतई जरूरी नहीं। वापिसी में हम फ्लैट का दरवाजा खोलकर बाहर निकलेंगे और ठाठ से लिफ्ट या सीढ़ियों के रास्ते नीचे पहुंचेंगे। फ्लैट के तीन दरवाजे बाहर गलियारे में खुलते हैं। उनमें से दो भीतर से बन्द किये जाते हैं और एक को बाहर से ताला लगाया जाता है। हम भीतर से बन्द किये जाने वाले दो दरवाजों में से किसी एक को खोलकर बड़े आराम से बाहर निकल सकते हैं।”
“इस काम के लिए तुमने हमें ही क्यों चुना?”
“क्योंकि तुम मेरे दोस्त हो।”
“बस? सिर्फ यही वजह है?”
“आजकल तुम भी मेरी ही तरह रुपये पैसे से परेशान हो, बेरोजगार हो।”
“मैं बेरोजगार हूं।”—राजन बोला—“लेकिन चोर नहीं हूं।”
“मुझे मालूम है। चोर मैं भी नहीं हूं। चोर कौशल भी नहीं है। तुम लोग चोर होते तो मैं तुम्हारे सामने यह प्रस्ताव कभी न रखता।”
“क्या मतलब?”
“देखो, पुलिस को तुम कम न समझो। आजकल पुलिस का महकमा भी बड़े साइन्टिफिक तरीके से चलता है। आजकल वर्दी पहन लेने से ही कोई पुलिसिया नहीं बन जाता है। आजकल पुलिसियों को अपराधों से दो-चार होने की बड़ी साइन्टिफिक ट्रेनिंग दी जाती है। इसलिए मुजरिम का बचा रहना आजकल कोई ऐसा आसान काम नहीं रह गया जैसा कि कभी हुआ करता था। आजकल जिस आदमी का कच्चा चिट्ठा पुलिस में दर्ज हो जाता है या जिसकी कार्य-प्रणाली भी पुलिस की जानकारी में आ जाती है उसकी गरदन समझ लो कि देर-सवेर नपे ही नपे। मैं किसी ऐसे आदमी से गठजोड़ करना अफोर्ड नहीं कर सकता जो पहले कभी पुलिस की गिरफ्त में या निगाहों में आ चुका हो या जिसके बारे में पुलिस को कोई अन्दाजा तक हो कि वह कैसे अपराध को किस तरीके से अन्जाम देने में स्पेशलिस्ट था। हमारी सलामती इस बात पर भी निर्भर करती है कि यह ज्वेल रॉबरी हमारा पहला और आखिरी अपराध होगा और हममें से कोई आज तक कभी पुलिस के फेर में नहीं पड़ा। अगर हम अपने काम में कामयाब हो गए तो पुलिस हमारे बारे में कोई थ्योरी कायम नहीं कर सकेगी, करेगी तो वह गलत होगी। हमारी गुमनामी ही पुलिस के हाथों से हमारी सलामती की गारण्टी होगी। हम खामोशी से इस काम को अन्जाम दे सकें और पुलिस की सरगर्मियां और छानबीन ठण्डी पड़ चुकने तक शान्ति से बैठे रह सकें तो पुलिस का ध्यान कभी हमारी तरफ नहीं जा सकेगा।”
दोनों बेहद प्रभावित दिखाई देने लगे।
“मैंने पहले ही कहा है कि मैं तुम लोगों को किसी अन्धेरे में, किसी भुलावे में नहीं रखना चाहता। मैं यह भी नहीं कहना चाहता कि यह कोई आसान काम है। काम कठिन है लेकिन असम्भव नहीं; काम में अड़चनें हैं लेकिन हो सकता है।”
“यहां से दरियागंज का थाना बहुत करीब है।”—राजन तनिक विचलित स्वर में बोल—“रात को यहां पुलिस की गश्‍त भी तो होगी होगी!”
“पुलिस की गश्‍त रात को यहां होती है लेकिन उसका थाना करीब होने से कोई रिश्‍ता नहीं। यहां उतनी ही गश्‍त होती है जितनी ऐसे और इलाकों में भी होती है। यहां ऐसी कोई बात नहीं है जिसकी वजह से पुलिस की इधर कोई खास तवज्जो जरूरी हो।”
“तुम्हें कैसे मालूम?”
“मैंने इस इलाके का खूब सर्वे किया है। रात को यहां इक्का-दुक्का सिपाही ही टहल रहा होता है और उसकी भी किसी खास इमारत की तरफ तवज्जो नहीं होती। ऐसा नहीं है कि मोड़ पर ही थाना होने की वजह से यहां पुलिसियों की कोई गारद घूमती रहती हो।”
“इस काम के लिए तुमने हम दोनों को क्यों चुना?”
“क्योंकि तुम दोनों मेरे दोस्त हो और आज की तारीख में हम तीनों एक ही किश्‍ती पर सवार हैं। यह सवाल अभी कितनी बार और पूछोगे?”
“और कोई वजह नहीं?”
“और तुमने सेफ का ताला खोलना है। कौशल ने चोरी की माल ठिकाने लगाए जाने का इन्तजाम करना है।”
“हूं।”
“लगता है तुम मेरे जवाब से सन्तुष्ट नहीं हो। जो मन में है, साफ-साफ कहो।”
“मन में कोई लफड़े वाली बात नहीं है।”—राजन तनिक हिचकिचाता हुआ बोला—“मैं सिर्फ यह सोच रहा था कि ऐसे कामों में हिस्सेदारी कम-से-कम रखने की कोशिश की जाती है। तुमने तो योजना बनाई है, मैंने सेफ खोलनी है, दरीबे वाले कारीगर ने जेवर तोड़कर हीरे-जवाहरात निकालने हैं और उन्हें बिकवाने का इन्तजाम करना है, इस लिहाज से कौशल का रोल सो बहुत मामूली हुआ! गैरजरूरी मैंने नहीं कहा लेकिन... तुम गलत मत समझना, गुरु। मैं बात को यूं ही छेड़ रहा हूं।”
 
“तुम्हारा मतलब है हम दो जने भी यह काम कर सकते हैं?”
“क्या नहीं कर सकते?”
“कर सकते हैं लेकिन कौशल का एक और वजह से भी हमारे साथ होना जरूरी है।”
“और वजह?”
“हां।”
“वह क्या?”
“यह औरत—कामिनी देवी—विधवा है, अकेली रहती है; रईस है, खूब खाने पीने की शौकीन है, खूबसूरत है और अभी मुश्‍किल से चालीस साल की है। मैंने देखा है कि वह दूतावास की पार्टी से आधी रात से पहले नहीं लौटती। लेकिन फर्ज करो वहां उसे कोई नौजवान पसन्द आ जाता है और वह उसके साथ तफरीह करने की नीयत से वक्त से पहले घर लौट आती है। फर्ज करो हम अभी सेफ खोल कर ही हटे होते हैं कि वह ऊपर से वहां पहुंच जाती है। कामयाबी के इतने करीब पहुंच जाने के बाद अगर हमें खाली हाथ वहां से भागना पड़ गया या हम खामखाह पकड़े गए तो यह बहुत बुरी बात होगी हमारे लिए। अगर हम तीन होंगे तो ऐसी कोई नौबत आने पर—वैसे भगवान न करे ऐसी कोई नौबत आए—हम उस औरत को और उसके यार को बाखूबी काबू में कर सकते हैं। ऐसी नौबत आ जाने पर यह काम सिर्फ तुम और मैं शायद न कर सकें। लेकिन कौशल पहलवान है। वह कामिनी देवी के चार यारों को भी अकेला संभाल सकता है। क्यों कौशल?”
“बिल्कुल!”—कौशल अपनी मांसपेशियां फड़फड़ता बोला।
“कहने का मतलब यह है, राजन, कि जब तुम वहां तिजोरी खोल रहे होंगे तो हम इस बात के लिए सावधान होंगे कि कहीं वो औरत अपने किन्हीं मेहमानों के साथ, या किसी यार के साथ, या अकेली ही सही, वक्त से पहले अपने फ्लैट पर न पहुंच जाए। तुम्हारा काम सबसे नाजुक है और पूरी तल्लीनता से किया जाने वाला है। इसलिये मैं नहीं चाहता कि तुम्हें अपना काम छोड़ कर किसी हाथापाई जैसे काम में भी हिस्सा लेना पड़े।”
“ओह!”
“वैसे उस औरत से आमना सामना होने से मैं हर हाल में बचना चाहता हूं। लेकिन फिर भी अगर ऐसी नौबत आ ही जाए तो उसके लिए तैयार रहने में कोई हर्ज नहीं। मैं सिर्फ इस इकलौती वजह से नाकामयाबी का मुंह नहीं देखना चाहता कि मैं उस औरत से आमना सामना हो जाने से डरता था। तुम समझे मेरी बात?”
“हां! तुमने तो, गुरु, इस काम के हर पहलू पर विचार किया हुआ है!”
“सिवाय एक पहलू के।”
“वो कौन सा हुआ?”
“कि तुम दोनों मेरा साथ देने को तैयार होवोगें या नहीं।”
राजन हिचकिचाया।
“फौरन जवाब देना जरूरी नहीं।”—रंगीला बोला—“तुम... और तुम भी”—वह कौशल की तरफ घूमा—“कल तक मुझे अपना फैसला सुना देना। और, राजन, कल तक तुम अपने इस दावे पर भी फिर से विचार कर लेना कि चाबी से खुलने वाली कैसी भी सेफ एक-डेढ़ घण्टे के वक्त में तुम वाकई खोल सकते हो या नहीं!”
“उस बात को तो छोड़ो, गुरु।”—राजन बोला—“वह तो मेरा दावा है जो आज भी अपनी जगह बरकरार है और कल भी।”
“ठीक है। तुम दोनों कल तक मुझे यह बता देना कि तुम इस काम में मेरे साथ शरीक होना चाहते हो या नहीं।”
रंगीला को लगा कि कौशल तो कल तक इन्तजार करना ही नहीं चाहता था लेकिन अकेले उसके हामी भरने से कोई बात नहीं बनती थी। ज्यादा जरूरी हामी राजन की थी, क्योंकि सेफ खोलने का अहम और इन्तहाई जरुरी काम उसने करना था। उसका गुजारा कौशल के बिना हो सकता था, राजन के बिना नहीं।
“मुझे पहले से मालूम है कि परसों नया अमरीकी राजदूत दूतावास का चार्ज ले रहा है। उसके सम्मान में दूतावास में बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन है। हमेशा की तरह कामिनी देवी भी वहां जरूर जाएगी। अगर कल तुम दोनों ने हामी भर दी तो परसों ही हम इस इमारत पर हल्ला बोल देंगे। तुमने इन्कार कर दिया तो समझ लेना कि हम लोगों में ऐसी कोई बात हुई ही नहीं थी।”
“हमारे इन्कार कर देने की सूरत में।”—राजन बोला—“तुम हमारी जगह कोई और साथी तलाश करने की कोशिश नहीं करोगे?”
“हरगिज भी नहीं। तुम दोनों मेरे दोस्त हो। मैं तुम पर विश्‍वास कर सकता हूं, हर किसी पर नहीं। तुम दोनों के इंकार की सूरत में मैं ज्वेल रॉबरी के अपने इस खयाल को हमेशा के लिए अपने मन से निकाल दूंगा।”
दोनों में से कोई कुछ न बोला।
फिर वहीं वह मीटिंग बर्खास्त हो गई।
अगले दिन दोनों ने उस चोरी में शामिल होने के लिए हामी भर दी।
 
सोमवार : रात
उस दिन तीनों ने डिलाइट पर ईवनिंग शो देखा। टेंशन से बचे रहने का तथा उस इलाके में सुरक्षित रूप से मौजूद रहने का वह उनके पास बेहतरीन तरीका था।
शो खत्म होने के बाद रंगीला इस बात की तसदीक कर आया कि कामिनी देवी दूतावास जा चुकी थी।
फिर उन्होंने फिल्म के नाइट शो की भी तीन टिकटें खरीदीं, गेटकीपर से टिकटें फड़वा कर वे भीतर दाखिल हुए और पांच मिनट बाद दूसरे रास्ते से हाल से बाहर निकल आए।
अब तीनों की जेबों में नाइट शो की टिकटों का आधा टुकड़ा था। आधी रात के बात कहीं सवाल हो जाने पर हर कोई कह सकता था कि वह डिलाइट पर नाइट शो देख कर आ रहा था और सबूत के तौर पर टिकट का वह आधा हिस्सा पेश कर सकता था और ईवनिंग शो फिल्म सचमुच देखा होने की वजह से उसे नयी लगी फिल्म की कहानी भी सुना सकता था।
ठीक दस बजे वे पिछवाड़े की सड़क पर पहुंचे।
उस तरफ उस वक्त कोई नहीं था। मोटर मकैनिक गैरेज बन्द हो चुके थे और आवाजाही कतई नहीं थी।
पिछवाड़े की सड़क के दहाने पर सिनेमा की दीवार के पास एक मामूली शक्ल सूरत वाली लेकिन नौजवान लड़की खड़ी थी।
उसे देख कर वे परे ही ठिठक गए।
“बाई है।”—रंगीला बोला—“ग्राहक की तलाश में है। सिनेमा के आगे की भीड़ छंट जाने के बाद चली जाएगी। इससे हमें कोई खतरा नहीं। उल्टे इसकी यहां मौजूदगी इस बात का सबूत है कि आसपास कोई पुलिसिया नहीं है वर्ना यह यहां न खड़ी होती।”
दोनों आश्‍वस्त हुए।
वे आगे बढ़े।
लड़की पर बिना निगाह डाले वे उससे थोड़ी दूर से गुजरे।
लड़की ने एक आशापूर्ण निगाह उन पर डाली, लेकिन उन्हें ठिठकता या अपनी तरफ देखता न पाकर वह परे सिनेमा के मुख्य द्वार की दिशा में देखने लगी। उनकी तरफ उसकी पीठ हो गई।
वे सुनसान रास्ते पर आगे बढ़ते चले गए।
वे एकदम स्याह काले तो नहीं लेकिन काफी गहरे रंगों के कपड़े पहने हुए थे और गली के नीमअन्धेरे में चलते-फिरते साये से मालूम हो रहे थे।
वे टेलीफोन एक्सचेंज वाले सिर पर पहुंचे।
उधर की गली के दहाने पर कोई नहीं था। अलबत्ता एक्सचेंज और इंश्‍योरेंस कम्पनी की इमारतों के सामने कुछ रिक्शे वाले मौजूद थे लेकिन उनका ध्यान रोशनियों से जगमगाती आसिफ अली रोड और दिल्ली गेट के विशाल चौराहे की तरफ था न कि पिछवाड़े की उस नीमअन्धेरी सड़क की तरफ।
पूर्ववत् सुनसान रास्ते पर चलते वे वापिस लौटे।
वे निर्विध्न कामिनी देवी वाली इमारत के पिछवाड़े में पहुंच गए। तीनों दीवार के साथ लगकर खड़े हो गए।
रंगीला ने अपने हाथों से ऊपर जाते लोहे के पाइप को टटोला और सन्दिग्ध भाव से गली के डिलाइट वाले सिरे की तरफ देखा।
लड़की अभी भी उसकी ओर पीठ किए वहां खड़ी थी।
“यह टलती क्यों नहीं?”—रंगीला झुंझलाया—“अगर इसने घूमकर पीछे गली में देखा तो पाइप के सहारे ऊपर चढ़ता मैं इसे दिखाई दे जाऊंगा।”
“मैं इसे भगाकर आऊं?”—कौशल धीरे से बोला।
“कैसे?”
कौशल को जवाब न सूझा।
“थोड़ी देर और इन्तजार करते हैं।”—राजन बोला—“या तो इसे ग्राहक मिल जाएगा या यह खुद ही चली जाएगी।”
और दस मिनट वे वहां दीवार के साथ चिपके खड़े रहे।
लड़की वहां से न टली।
“मैं चढ़ता हूं।”—रंगीला बोला—“जो होगा देखा जाएगा।”
दोनों ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया।
रंगीला ने अपनी जेब से निहायत पतले दस्तानों का एक जोड़ा निकाला और उन्हें अपने हाथों पर चढ़ा लिया। फिर उसने पाइप को थामा और बन्दर जैसी फुर्ती से ऊपर चढ़ने लगा।
मुश्‍किल से दो मिनट में वह दूसरी मंजिल की टैरेस के आधे भाग पर पड़ी छत पर पहुंच गया।
और पांच मिनट में उसी की तरह हाथों पर दस्ताने चढ़ाए राजन और कौशल भी उसके पास पहुंच गए।
तीनों पेट के बल छत पर लेट गए।
नीचे कोने पर लड़की अभी भी खड़ी थी, लेकिन अब उन्हें उसकी तरफ से कोई अन्देशा नहीं था। न ही नीचे की स्ट्रीट लाइट उन तक पहुंच रही थी।
 
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