hotaks444
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चूत के चक्कर में
मित्रो आपने इससे पहले मेरी रचना अनोखा सफर को जो प्यार और स्नेह दिया उसके लिए धन्य वाद । उम्मीद है आप मेरी या रचना को भी वैसा ही आशीर्वाद देंगे । धन्यावाद।
रामलाल आज अपनी सेना की नौकरी छोड़ कर वापस अपने गाँव लौट रहा था । 18 साल की उम्र में सेना में भर्ती हुआ रामलाल अंग्रेजो की सेना में युद्ध लड़ा फिर भारत के आजाद होने के बाद भी वो भारतीय सेना में रहा । अब 14 वर्ष की सेना की नौकरी छोड़ वो वापस गांव लौट रहा था । करता भी क्या रामलाल , इसी वर्ष उसके पिता स्वामीनाथ का स्वर्गवास हो गया, माता की तो उसके बचपन में ही मृत्यु हो चुकी थी, कुछ वर्ष पूर्व उसकी पत्नी कमला को भी गाँव में फैले हैजा ने लील लिया था। अब गाँव पे उसके खेत और घर की देखभाल करने वाला कोई नहीं था अतः रामलाल ने अपनी फ़ौज की नौकरी छोड़ गाँव लौटने का फैसला किया ।
32 वर्षीय रामलाल खुद को अब बहुत अकेला महसूस कर रहा था जबतक उसकी बीवी कमला जीवित थी तबतक तो वो गाँव आता जाता रहता था पर उसके मरने के उपरान्त उसने गाँव आना ही छोड़ दिया। भगवान् ने उसे कोई औलाद भी नहीं दी थी जिसके सहारे वो बाकी की जिंदगी काटे । कई लोगो ने उसको दुबारा विवाह करने की सलाह दी पर रामलाल अब दुबारा इस व्यर्थ के झंझटों में नहीं फंसना चाहता था । बस एक समस्या थी उसके सामने की वो अपनी ठरक को कैसे शांत करेगा। रामलाल ने सोचा किसी न किसी तरह वो गाँव पहुच कर एक परमानेंट चूत का जुगाड़ करेगा ।
शाम ढल चुकी थी और रामलाल भी अब गाँव पहुच चूका था । गाँव की चौपाल पे कुछ बुजुर्ग बैठ कर हुक्का फूंक रहे थे । उनमे से एक गाँव के मंदिर का पुजारी माधव था दूसरा गाँव का सरपंच लखन और तीसरा गाँव के मौलवी साहब बिलाल मियां थे।
रामलाल ने पास पहुच कर सबको प्रणाम करते हुए कहा " पुजारी जी प्रणाम लखन ताऊ राम राम और मौलवी साहब आदाब "
रामलाल को देखते ही तीनो खुश हो गए । लखन सिंह बोले " आओ रामलाल बेटा बैठो कब आये ?"
रामलाल " बस ताऊ अभी आया "
तभी पुजारी जी बोल पड़े " और सुनाओ रामलाल शहर में क्या हाल चाल है ?"
रामलाल " सब बढ़िया है पुजारी जी आप कैसे है और पुजारन जी कैसी हैं ।"
पुजारी " हम दोनों बहुत अच्छे हैं ।"
अब मौलवी साहब भी बोल पड़े " और रामलाल तुम्हारे बापू के जाने के बाद तो हमारी गोल ही टूट गयी तुम कितने दिन के लिए आये हो ?"
रामलाल " मौलवी साहब अब तो मैं यहीं गाँव में रहूँगा और घर और खेती की देखभाल करूँगा ।"
मौलवी साहब " ये तो बहुत अच्छा है बेटा तुम्हारे यहाँ रहने से तुम्हारे पिता जी की कमी हमे नहीं खलेगी । रोज आते रहना चौपाल पे हमसे मिलने हम भी मियां गप्पे मारेंगे तुम्हारे साथ "
राम लाल " जी मौलवी साहब "
लखन सिंह " आज रात कहाँ खाना वाना खाओगे चलो मेरे घर चलो वहीं आज भोजन करो फिर घर जाना ।"
रामलाल " नहीं ताऊ आज नहीं फिर कभी । रमुआ होगा घर पे और उसकी महरी भी वही खाना बना देंगे आज मेरा ।"
लखन सिंह " रमुआ तो कहीं पी पा के पड़ा होगा ससुरा पर हाँ उसकी महरी कजरी होगी घर पे । ठीक है पर एक दिन हमारे यहाँ भी भोजन करने आओ "
रामलाल " जी ताऊ "
रामलाल तेजी से अपने कदम घर की तरफ बढ़ाता है । रामलाल का घर ज्यादा बड़ा तो नहीं था पुराना खपरैल का मकान । आगे की तरफ एक खुला आँगन था जो चारो ओर से कच्ची दिवार से घिरा था । पीछे दो कमरे और एक रसोई घर था ।
रामलाल ने घर पहुच कर घर का ताला खोला और अपना सामान बरामदे में रखा । अंदर के कमरे से एक चारपाई निकाल के वो आँगन में बिछा दी। उसने अपना पेंट बूसट निकाल दिया और बनयान और धोती पहन ली ।
उसको भूख लगी थी तो उसने रामू को बुलाने की सोची। रामू रामलाल के घर से अलग कुछ दूर पर बनी झोपडी में रहता था ।
रामलाल रामू की झोपड़ी के पास पहुंचा और रामू को आवाज देके बुलाया " रमुआ ओ रमुआ कहाँ है बे "
तभी उसकी दुल्हन कजरी अंदर से घूँघट में निकली " मालिक पाई लागु हमरे मर्द तो अभही नहीं हैं "
रामलाल " अच्छा कहाँ गवा है रमुआ "
कजरी " कहाँ गए होइहे मालिक बस उहि मुई दारू के ठेके पे पड़े होंगें। "
रामलाल " ठीक है मुझे भूख लग रही है जरा कुछ बना दो ।"
कजरी " अभी लो मालिक "
कुछ देर बाद कजरी रामलाल के घर के आँगन में बने मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी डाल उसपर खाना पका रही थी । रामलाल वही खाट पे लेटा उसे देख रहा था । रामलाल को वो दिन भी याद आ गया जब रमुआ की माँ कजरी का ब्याह रमुआ से करा के लाई थी। दोनों की शादी बचपनमें ही कर दी गयी थी । कजरी अपने नाम स्वरुप ही रंग से अत्यंत ही काली थी । इतना की जब वो हंसती थी उसके दांतो की सिर्फ सफेदी उसके चेहरे पे सिर्फ दिखाई देती थी । अब वो 20 22 साल की हो गयी थी । रामलाल ने एक बार उसे अपना परमानेंट जुगाड़ बनाने की सोची पर उसके काले हाथो को देख विचार त्याग दिया ।
कुछ देर बाद वो खाना बना के चली गयी रामलाल ने भोजन किया और दिन भर की थकान के कारण ही जल्द ही वो सो गया ।
अगले दिन सुबह रामलाल की आँख खुली तो सूरज सर पे चढ़ आया ता । रामलाल उठा और घर से बाहर निकल आया देखा तो कजरी उसकी भैसों और बैलों को चारा डाल रही थी । रामलाल सामने लगे नीम के पेड़ से दातून तोड़ लाया और घर के अंदर आ के अपने दांत घिसने लगा । फिर रामलाल ने कुल्ला किया और लोटा उठा के घर के पिछवाड़े झाड़ियों में संडास करने चला गया।
रामलाल ने एक जगह झाड़ियों के पीछे साफ जगह देख कर बैठ गया और संडास करने लगा । तभी उसने देखा की कजरी वहां आ गयी । उसने एक बार इधर उधर नजर दौड़ाई मैं चूंकि झाड़ियों के पीछे था इसलिये उसे दिखाई नहीं पड़ा । उसे शायद मूतना था तो उसने अपनी साड़ी को घुटनों तक उठाया और वही बैठ गयी। रामलाल को अब उसकी काली चूत में से झांकती उसकी गुलाबी मुनिया साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी। चूत देख कर रामलाल का लंड भी खड़ा हो गया । उधर कजरी के मूत्रद्वार से सी की आवाज के साथ पानी की एक धार छूट गयी । मूतने के बाद वो उठी और वहां से चली गयी।रामलाल अपने लंड को शांत करने के लिए वहीँ बैठे बैठे मुठ मारी । फिर वो अपना काम निपटा के वापस अपने घर ने आ गया ।
घर आके रामलाल ने स्नान किया और कुरता धोती पहन के घर से बाहर निकला । बाहर कजरी हाथ में चाय का गिलास लिए उसकी तरफ आ रही थी । रामलाल को देख उसने घूघट ले लिया और बोली " मालिक चाय पी लीजिये ।"
रामलाल ने उसके हाथों से चाय का गिलास ले लिया और उससे पूछा " रमुआ कहाँ है ?"
कजरी को तो जैसे यही चाहिए था वो तुनक के बोली " वो देखिये मालिक वहीँ झोपडी के सामने खटिया तोड़ रहे हैं ।"
रामलाल रामू के पास पंहुचा और एक जोर की लात उसकी कमर पे लगाई । रामू खटिया से नीचे गिर पड़ा और चिल्लाते हुए खड़ा हुआ " कौन है ससुर के नाती "
रामलाल ने खींच के एक झापड़ उसके कान पे लगाया तो उसकी आँखों के साथ उसकी बुद्धि भी खुल गयी । रामलाल को देखते ही वो खींस निपोरते हुए उसके पैरों में गिर गया और बोला " भैया माफ़ कर दो मैं जान नहीं पाया आप कब आये।"
रामलाल " कल ही आया हु और तेरी करतुते देख रहा हु ।"
रामू " अरे वो तो भैया ऐसे ही ।"
रामलाल " ससुरे काम पे ध्यान दे अब मैं आ गया हूं कोई गलती हुई तो गांड तोड़ दूंगा ।"
रामू " जी भैया "
रामलाल " चल अब तैयार हो जा और मुझे खेतो पे ले चल "
कुछ देर रामलाल अपने खेतों पे घूमता रहा और उनकी स्थिति जांचता रहा । खेत बहुत बुरी स्थिति में तो नहीं थे पर उनकी स्थिति सुधारी जा सकती थी ।
कुछ देर तक इधर उधर टहलने के बाद रामलाल ने रामू से पूछा " और बता रमुआ गाँव की कोई खबर ?"
रामू ये बात सुन के खुश हो गया और चहकते हुए बोला " अरे भैया आपको क्या बताऊँ इस गाँव में बूढों को ठरक चढ़ गयी है ।"
रामलाल चौंकते हुए " क्या हुआ बे ?"
रामू मजा लेते हुए " अरे भैया अपनें मौलवी साहब हैं न वो चौथी बेगम लाये हैं और वो भी अपनी बेटी की उम्र की ।"
रामलाल " सही में बे "
रामू " हाँ भैया और सुना है ससुरी चौचक माल है ।"
रामलाल " तुझे कैसे पता बे "
रामू " अरे भैया पंडित जी बता रहे थे ।"
रामलाल " अरे पंडित जी की ठरक कैसी है ?"
रामू " वैसे ही भैया जैसे पहले थी मौका देख के गोटी फंसा लेते है ।"
रामलाल " बेचारी पंडिताइन ।"
यही सब बात करते हुए दोनों वापस घर आ गए । कजरी ने रामलाल का भी खाना बना दिया था । रामलाल ने खाना खाया और दुपहर की नींद लेने के लिए खटिया पे लेट गया ।
मित्रो आपने इससे पहले मेरी रचना अनोखा सफर को जो प्यार और स्नेह दिया उसके लिए धन्य वाद । उम्मीद है आप मेरी या रचना को भी वैसा ही आशीर्वाद देंगे । धन्यावाद।
रामलाल आज अपनी सेना की नौकरी छोड़ कर वापस अपने गाँव लौट रहा था । 18 साल की उम्र में सेना में भर्ती हुआ रामलाल अंग्रेजो की सेना में युद्ध लड़ा फिर भारत के आजाद होने के बाद भी वो भारतीय सेना में रहा । अब 14 वर्ष की सेना की नौकरी छोड़ वो वापस गांव लौट रहा था । करता भी क्या रामलाल , इसी वर्ष उसके पिता स्वामीनाथ का स्वर्गवास हो गया, माता की तो उसके बचपन में ही मृत्यु हो चुकी थी, कुछ वर्ष पूर्व उसकी पत्नी कमला को भी गाँव में फैले हैजा ने लील लिया था। अब गाँव पे उसके खेत और घर की देखभाल करने वाला कोई नहीं था अतः रामलाल ने अपनी फ़ौज की नौकरी छोड़ गाँव लौटने का फैसला किया ।
32 वर्षीय रामलाल खुद को अब बहुत अकेला महसूस कर रहा था जबतक उसकी बीवी कमला जीवित थी तबतक तो वो गाँव आता जाता रहता था पर उसके मरने के उपरान्त उसने गाँव आना ही छोड़ दिया। भगवान् ने उसे कोई औलाद भी नहीं दी थी जिसके सहारे वो बाकी की जिंदगी काटे । कई लोगो ने उसको दुबारा विवाह करने की सलाह दी पर रामलाल अब दुबारा इस व्यर्थ के झंझटों में नहीं फंसना चाहता था । बस एक समस्या थी उसके सामने की वो अपनी ठरक को कैसे शांत करेगा। रामलाल ने सोचा किसी न किसी तरह वो गाँव पहुच कर एक परमानेंट चूत का जुगाड़ करेगा ।
शाम ढल चुकी थी और रामलाल भी अब गाँव पहुच चूका था । गाँव की चौपाल पे कुछ बुजुर्ग बैठ कर हुक्का फूंक रहे थे । उनमे से एक गाँव के मंदिर का पुजारी माधव था दूसरा गाँव का सरपंच लखन और तीसरा गाँव के मौलवी साहब बिलाल मियां थे।
रामलाल ने पास पहुच कर सबको प्रणाम करते हुए कहा " पुजारी जी प्रणाम लखन ताऊ राम राम और मौलवी साहब आदाब "
रामलाल को देखते ही तीनो खुश हो गए । लखन सिंह बोले " आओ रामलाल बेटा बैठो कब आये ?"
रामलाल " बस ताऊ अभी आया "
तभी पुजारी जी बोल पड़े " और सुनाओ रामलाल शहर में क्या हाल चाल है ?"
रामलाल " सब बढ़िया है पुजारी जी आप कैसे है और पुजारन जी कैसी हैं ।"
पुजारी " हम दोनों बहुत अच्छे हैं ।"
अब मौलवी साहब भी बोल पड़े " और रामलाल तुम्हारे बापू के जाने के बाद तो हमारी गोल ही टूट गयी तुम कितने दिन के लिए आये हो ?"
रामलाल " मौलवी साहब अब तो मैं यहीं गाँव में रहूँगा और घर और खेती की देखभाल करूँगा ।"
मौलवी साहब " ये तो बहुत अच्छा है बेटा तुम्हारे यहाँ रहने से तुम्हारे पिता जी की कमी हमे नहीं खलेगी । रोज आते रहना चौपाल पे हमसे मिलने हम भी मियां गप्पे मारेंगे तुम्हारे साथ "
राम लाल " जी मौलवी साहब "
लखन सिंह " आज रात कहाँ खाना वाना खाओगे चलो मेरे घर चलो वहीं आज भोजन करो फिर घर जाना ।"
रामलाल " नहीं ताऊ आज नहीं फिर कभी । रमुआ होगा घर पे और उसकी महरी भी वही खाना बना देंगे आज मेरा ।"
लखन सिंह " रमुआ तो कहीं पी पा के पड़ा होगा ससुरा पर हाँ उसकी महरी कजरी होगी घर पे । ठीक है पर एक दिन हमारे यहाँ भी भोजन करने आओ "
रामलाल " जी ताऊ "
रामलाल तेजी से अपने कदम घर की तरफ बढ़ाता है । रामलाल का घर ज्यादा बड़ा तो नहीं था पुराना खपरैल का मकान । आगे की तरफ एक खुला आँगन था जो चारो ओर से कच्ची दिवार से घिरा था । पीछे दो कमरे और एक रसोई घर था ।
रामलाल ने घर पहुच कर घर का ताला खोला और अपना सामान बरामदे में रखा । अंदर के कमरे से एक चारपाई निकाल के वो आँगन में बिछा दी। उसने अपना पेंट बूसट निकाल दिया और बनयान और धोती पहन ली ।
उसको भूख लगी थी तो उसने रामू को बुलाने की सोची। रामू रामलाल के घर से अलग कुछ दूर पर बनी झोपडी में रहता था ।
रामलाल रामू की झोपड़ी के पास पहुंचा और रामू को आवाज देके बुलाया " रमुआ ओ रमुआ कहाँ है बे "
तभी उसकी दुल्हन कजरी अंदर से घूँघट में निकली " मालिक पाई लागु हमरे मर्द तो अभही नहीं हैं "
रामलाल " अच्छा कहाँ गवा है रमुआ "
कजरी " कहाँ गए होइहे मालिक बस उहि मुई दारू के ठेके पे पड़े होंगें। "
रामलाल " ठीक है मुझे भूख लग रही है जरा कुछ बना दो ।"
कजरी " अभी लो मालिक "
कुछ देर बाद कजरी रामलाल के घर के आँगन में बने मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी डाल उसपर खाना पका रही थी । रामलाल वही खाट पे लेटा उसे देख रहा था । रामलाल को वो दिन भी याद आ गया जब रमुआ की माँ कजरी का ब्याह रमुआ से करा के लाई थी। दोनों की शादी बचपनमें ही कर दी गयी थी । कजरी अपने नाम स्वरुप ही रंग से अत्यंत ही काली थी । इतना की जब वो हंसती थी उसके दांतो की सिर्फ सफेदी उसके चेहरे पे सिर्फ दिखाई देती थी । अब वो 20 22 साल की हो गयी थी । रामलाल ने एक बार उसे अपना परमानेंट जुगाड़ बनाने की सोची पर उसके काले हाथो को देख विचार त्याग दिया ।
कुछ देर बाद वो खाना बना के चली गयी रामलाल ने भोजन किया और दिन भर की थकान के कारण ही जल्द ही वो सो गया ।
अगले दिन सुबह रामलाल की आँख खुली तो सूरज सर पे चढ़ आया ता । रामलाल उठा और घर से बाहर निकल आया देखा तो कजरी उसकी भैसों और बैलों को चारा डाल रही थी । रामलाल सामने लगे नीम के पेड़ से दातून तोड़ लाया और घर के अंदर आ के अपने दांत घिसने लगा । फिर रामलाल ने कुल्ला किया और लोटा उठा के घर के पिछवाड़े झाड़ियों में संडास करने चला गया।
रामलाल ने एक जगह झाड़ियों के पीछे साफ जगह देख कर बैठ गया और संडास करने लगा । तभी उसने देखा की कजरी वहां आ गयी । उसने एक बार इधर उधर नजर दौड़ाई मैं चूंकि झाड़ियों के पीछे था इसलिये उसे दिखाई नहीं पड़ा । उसे शायद मूतना था तो उसने अपनी साड़ी को घुटनों तक उठाया और वही बैठ गयी। रामलाल को अब उसकी काली चूत में से झांकती उसकी गुलाबी मुनिया साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी। चूत देख कर रामलाल का लंड भी खड़ा हो गया । उधर कजरी के मूत्रद्वार से सी की आवाज के साथ पानी की एक धार छूट गयी । मूतने के बाद वो उठी और वहां से चली गयी।रामलाल अपने लंड को शांत करने के लिए वहीँ बैठे बैठे मुठ मारी । फिर वो अपना काम निपटा के वापस अपने घर ने आ गया ।
घर आके रामलाल ने स्नान किया और कुरता धोती पहन के घर से बाहर निकला । बाहर कजरी हाथ में चाय का गिलास लिए उसकी तरफ आ रही थी । रामलाल को देख उसने घूघट ले लिया और बोली " मालिक चाय पी लीजिये ।"
रामलाल ने उसके हाथों से चाय का गिलास ले लिया और उससे पूछा " रमुआ कहाँ है ?"
कजरी को तो जैसे यही चाहिए था वो तुनक के बोली " वो देखिये मालिक वहीँ झोपडी के सामने खटिया तोड़ रहे हैं ।"
रामलाल रामू के पास पंहुचा और एक जोर की लात उसकी कमर पे लगाई । रामू खटिया से नीचे गिर पड़ा और चिल्लाते हुए खड़ा हुआ " कौन है ससुर के नाती "
रामलाल ने खींच के एक झापड़ उसके कान पे लगाया तो उसकी आँखों के साथ उसकी बुद्धि भी खुल गयी । रामलाल को देखते ही वो खींस निपोरते हुए उसके पैरों में गिर गया और बोला " भैया माफ़ कर दो मैं जान नहीं पाया आप कब आये।"
रामलाल " कल ही आया हु और तेरी करतुते देख रहा हु ।"
रामू " अरे वो तो भैया ऐसे ही ।"
रामलाल " ससुरे काम पे ध्यान दे अब मैं आ गया हूं कोई गलती हुई तो गांड तोड़ दूंगा ।"
रामू " जी भैया "
रामलाल " चल अब तैयार हो जा और मुझे खेतो पे ले चल "
कुछ देर रामलाल अपने खेतों पे घूमता रहा और उनकी स्थिति जांचता रहा । खेत बहुत बुरी स्थिति में तो नहीं थे पर उनकी स्थिति सुधारी जा सकती थी ।
कुछ देर तक इधर उधर टहलने के बाद रामलाल ने रामू से पूछा " और बता रमुआ गाँव की कोई खबर ?"
रामू ये बात सुन के खुश हो गया और चहकते हुए बोला " अरे भैया आपको क्या बताऊँ इस गाँव में बूढों को ठरक चढ़ गयी है ।"
रामलाल चौंकते हुए " क्या हुआ बे ?"
रामू मजा लेते हुए " अरे भैया अपनें मौलवी साहब हैं न वो चौथी बेगम लाये हैं और वो भी अपनी बेटी की उम्र की ।"
रामलाल " सही में बे "
रामू " हाँ भैया और सुना है ससुरी चौचक माल है ।"
रामलाल " तुझे कैसे पता बे "
रामू " अरे भैया पंडित जी बता रहे थे ।"
रामलाल " अरे पंडित जी की ठरक कैसी है ?"
रामू " वैसे ही भैया जैसे पहले थी मौका देख के गोटी फंसा लेते है ।"
रामलाल " बेचारी पंडिताइन ।"
यही सब बात करते हुए दोनों वापस घर आ गए । कजरी ने रामलाल का भी खाना बना दिया था । रामलाल ने खाना खाया और दुपहर की नींद लेने के लिए खटिया पे लेट गया ।