XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता - Page 2 - SexBaba
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XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता

छाया और पूर्ण एकांत
बेंगलुरु आने के पश्चात मैं और छाया एक दूसरे के बहुत करीब आ चुके थे पर हमें कभी एकांत नहीं मिल पाता था. हम दोनों एक दूसरे के आलिंगन में आते एक दूसरे को सहलाते. कभी-कभी छाया मुझे इस स्खलित भी करा देती. परन्तु जिस तरीके का आनंद राजकुमारी दर्शन में आया था ऐसा आनंद कई दिनों से नहीं मिल पा रहा था. छाया की मालिश करने का सुख भी अद्भुत था पर उसे भी कई दिन हो चुके थे.
मुझे छाया को नग्न देखने की तीव्र इच्छा हो रही थी.इन दिनों वह जींस और टॉप में और सुन्दर एवं आधुनिक लगती थी. हम दोनों ने एक दूसरे को पूर्ण नग्न देखा तो जरूर था पर जी भर कर नहीं. राजकुमारी दर्शन के समय मेरा सारा ध्यान उसकी राजकुमारी पर ही केंद्रित था. छाया को पूर्ण नग्न देखने के विचार से ही मेरा मन प्रसन्न हो उठता था.
अंततः एक दिन भगवान ने यह अवसर हमें दे ही दिया. माया जी को पड़ोस की एक महिला के साथ एक पूजा में जाना था. मैं और छाया दोनों घर पर ही थे. उनके जाने के बाद मेरे मन में छाया को पूर्ण नग्न देखने का विचार आया. मुझे पता नहीं था वह क्या सोचती पर मैंने पूरे
मन से ऊपर वाले से प्रार्थना की और इसके लिए अपने मन में निश्चय कर लिया. कुछ देर बाद छाया मेरे कमरे में चाय लेकर आई तो मैंने उसे एक छोटा खत उसे देते हुए बोला..
“ छाया इसे हाल में जाकर पढ़ लेना” खत में मैंने लिखा था
“ छाया मैं तुम्हें पूर्णतया नग्न देखना चाहता और तुम्हारे साथ कुछ घंटे इसी अवस्था में बिताना चाहता हूं . यदि तुम्हें यह स्वीकार हो तो कुछ देर बाद चाय का कप लेने वापस आ जाना अन्यथा इस टुकड़े को फाड़ कर फेंक देना. तुम मेरी प्यारी हो और हमेशा रहोगी. मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही आगे बढ़ता रहूंगा”
मुझे नहीं पता था कि आगे क्या होने वाला है क्या छाया इतनी हिम्मत जुटा पाएगी? १९ वर्ष की लड़की क्या मेरे साथ पूरी तरह नग्न होकर कुछ घंटे से व्यतीत कर पाएगी. मैं इसी उधेड़बुन में फंसा चाय पी रहा था. चाय कब ख़त्म हो गयी मुझे पता भी न चला. तभी दरवाजा खोलने की आवाज हुई. छाया अंदर आ रही थी. मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था. छाया अंदर आई उसने चाय का गिलास लिया और एक कागज रख कर वापस चली गई. मैंने वह कागज उठाया जिसमें लिखा था ठीक 10:30 बजे पर आप भी हॉल में उसी अवस्था में मेरा इंतजार कीजिएगा.
मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा था. घड़ी 9:45 दिखा रही थी. मैं तेजी से बाथरूम की तरफ भागा और नहा धोकर तैयार हो गया. आज का दिन मेरे लिए विशेष होने वाला था. कुछ ही देर में मैं हॉल में सोफे पर बैठा छाया का इंतजार कर रहा था. मेरा राजकुमार छाया के इंतजार में
अपनी गर्दन उठाए हुए था. ठीक 10:30 बजे छाया ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और बाहर आ गई. वह दरवाजे के पास कुछ देर तक खड़ी रही. उसका एक पैर आगे की तरफ निकला था तथा उसके दोनों हाथ उसके कमर पर थे. ऐसा लग रहा था जैसे उसने जानबूझकर मुझे खुश करने के लिए यह पोज बनाया थी. उसके स्तन अत्यंत खूबसूरत लग रहे थे और पूरी तरह तने हुए थे .स्तनों के नीचे उसकी नाभि और राजकुमारी के बीच का भाग उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे. राजकुमारी के आसपास का भाग अत्यंत सुंदर लग रहा था. उसके बाल सामने की तरफ आए हुए थे तथा उसके बाएं स्तन को ढकने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. दोनों जांघें एक दूसरे से सटी हुई थीं . वो कुछ देर इसी तरह खड़ी रही फिर धीरे धीरे चलते हुए मेरे समीप आ गयी.
छाया जैसी खूबसूरत नवयौवना को नग्न देखकर मेरे मन में तूफान मचा हुआ था. वह मेरे पास आकर खड़ी हो गयी. मैं स्वयं भी उठ खड़ा हुआ उसकी आंखें झुक गई थी. वह मेरे राजकुमार पर अपनी नजरें गड़ाई हुई थी हम कुछ देर एक दूसरे को यूं ही देखते रहे. अंततः हमारे बीच दूरी कम होती गई. कुछ समय में हम दोनों आपस में आलिंगन बंद हो चुके थे. मैंने छाया को अपने से सटा लिया था और उसकी गालों पर लगातार चुंबन ले रहा था. वह भी मेरे चुम्बनों का जवाब दे रही थी. उसके स्तन मेरे सीने से सटे हुए थे. मेरा राजकुमार उसके पेट पर दबाव बनाया हुआ था. मेरे हाथ उसकी पीठ से होते हुए उसके दोनों नितंबों को छूने लगे. मैंने महसूस किया छाया की हथेलियाँ धीरे धीरे बढ़ते हुए मेरे राजकुमार तक जा पहुंची थीं. वो उसे पकड़ कर सहला रही थी. मैं उसके नितंबों पर ही पूरा ध्यान केंद्रित किए हुए था. कभी कभी मेरी उंगलियाँ छाया की राजकुमारी के होठों को छू लेतीं. राजकुमारी उन्हें प्रेम रस की सौगात देती और वो भीग कर वापस सहलाने में लग जातीं.
छाया ने उसने अपनी एड़ियां ऊंची कर अपना चेहरा मेरे पास लाया. मैंने उसके होठों को फिर से चूम लिया. छाया ने अपना एक पैर ऊपर किया मेरा राजकुमार जो अभी तक छाया के पेट से टकरा रहा था उसमें और हरकत हुई. छाया ने अपने कोमल हाथों से उसे पकड़ा तथा अपनी जांघों के बीच ले आयी. मेरा लिंग अब उसकी दोनों जांघों के बीच था. उसके प्रेम रस से उसकी जांघों के बीच का हिस्सा चिपचिपा
हो गया था. मैंने अपने राजकुमार को आगे पीछे करना शुरू कर दिया. राजकुमार का ऊपरी भाग छाया की राजकुमारी से स्पर्श करता हुआ आगे जाता और आगे जाकर मेरी उंगलियों से टकराता जो छाया के नितंबों को सहला रही होतीं
अचानक मेरे राजकुमार ने राजकुमारी के मुख पर अपनी दस्तक दे दी. मैंने उसे पुराने रास्ते पर ले जाने की कोशिश की पर पर उसे यह नया रास्ता ज्यादा पसंद आ रहा था. मैंने अपनी कमर को थोड़ा पीछे किया और दोबारा उसकी जांघों के बीच से ले जाने का प्रयास किया पर इस बार भी वह राजकुमारी के मुंह में जाने को तत्पर था. छाया चौंक गयी और मेरी तरफ शरारती नजरों से देखते हुए मुझ से थोड़ा दूर हो गई. उसके हाथ धीरे-धीरे राजकुमार की तरफ बढ़ने लगे जैसे वो इस गुस्ताखी की सजा देने जा रही हो.
मैंने छाया को अपनी अपनी बायीं जांघ पर बैठा लिया. मैंने अपने बाएं हाथ से उसकी पीठ को सहारा दिया तथा हथेलियों से उसके बाएं स्तन को सहलाने लगा. मेरा दाहिना हाथ उसके नाभि प्रदेश को सहलाता हुआ उसकी राजकुमारी तक पहुंच गया. उसका दाहिना स्तन मेरे सीने से चिपका हुआ था. मैंने अपनी हथेली से उसकी राजकुमारी को पूरी तरह आच्छादित कर लिया मेरी उंगलियां राजकुमारी के होठों से खेलने लगी.छाया का दाहिना हाथ मेरे राजकुमार को अपने आगोश में ले चुका था. वह अपनी हथेलियों से मेरे राजकुमार को आगे पीछे कर रही थी. हम दोनों इस अद्भुत आनंद में डूबे हुए थे. मैं छाया के गालों और गर्दन पर लगातार चुंबन ले रहा था. वह भी अपने होठों से मुझे चुंबन दे रही थी. हम दोनों एक दूसरे को बड़ी तन्मयता से सहला रहे थे. कुछ देर तक हम इसी तरह एक दूसरे को प्यार करते रहे. हमारी उंगलियां तरह-तरह की अठखेलियां करते हुए एक दूसरे को खुश कर रही थीं.
कुछ ही देर में छाया की जांघें तन रही थी. वह स्खलित होने वाली थी और अपनी जाँघों का दबाव लगातार मेरी हथेलियों पर बढ़ा रही थी. कुछ ही देर में छाया ने मुझे अपनी तरफ खींच कर सटा लिया उसकी जांघें पूरी तरह मेरी हथेलियों को दबा ली थीं. छाया के मुख से “ मानस भैया .............” की आवाज धीरे धीरे आ रही थी जो अत्यंत उत्तेजक थी. मुझे अपनी हथेलियों पर एक साथ ढेर सारे प्रेम रस की अनुभूति हुई. छाया स्खलित हो चुकी थी. मैंने उसके दोनों पैर अब अपने ऊपर रख लिए थे वह एकदम मेरी गोद में आ चुकी थी.
मेरा राजकुमार उसके नितंबों से टकरा रहा था. वह उसके हाथों से छूट चुका था. छाया खुद को नहीं संभाल पा रही थी वह मेरे राजकुमार को क्या संभालती. वह मासूम सी मेरी गोद में नग्न पड़ी हुई थी और अपनी स्खलित हो चुकी राजकुमारी को धीरे-धीरे शांत कर रही थी. इस अद्भुत दृश्य को देखकर मेरे मन में छाया के प्रति असीम प्यार उत्पन्न हो रहा था .
मैंने उसके स्तनों को चूम लिया. उसकी तंद्रा टूटी और वह उठकर खड़ी
होने लगी. उसकी जाँघों से बहते प्रेमरस की अनुभूति ने उसे शर्मसार कर दिया था. मैंने सोफे पर पड़े तकिए से उसकी जांघों को पोछ दिया. वह खुश हो गई धीरे-धीरे वह मेरे पास आयी और सोफे के पास रखे स्टूल पर बैठ गई.
उसका सारा ध्यान मेरे राजकुमार पर केंद्रित हो गया. वह अपने दोनों हाथों से उसे पूरी तरह से सहलाने लगी. मुझे उसकी राजकुमारी भी दिखाई पड़ रही थी मेरी नजर वहां पढ़ते ही छाया ने मेरी तरह शरारती निगाहों से देखा और अपनी जाँघों को सटा लिया. मैंने अपने दोनों पैरों
से उसकी जांघें फिर अलग कर दीं. राजकुमारी मुझे साफ दिखाई दे रही थी. छाया के हाथ लगातार अपने करतब दिखा रहे थे छाया मेरे बिल्कुल समीप थी. मैं उसके स्तनों को भी सहला ले रहा था. राजकुमार वीर्य स्खलन के लिए तैयार था. मैंने छाया के होंठो को चूमा
और वीर्य की धार फूट पड़ी जो छाया के चेहरे और स्तनों को भिगो दी. उसे इतने सारे वीर्य की उम्मीद न थी. इस कला में वह पारंगत हो गई थी . उसने राजकुमार को इसका पूर्णतयः शांत हो जाने पर हो छोड़ा और मेरे होठों पर चुंबन किया.
मैंने उसे अपने पास खींच लिया. अब उसकी दोनों जांघे मेरी दोनों जांघों के दोनों तरफ हो गई. उसके दोनों घुटने सोफे पर थे. वह मेरी गोद में थी. मेरा राजकुमार है जिसमें अब तनाव न था वह राजकुमारी के संसर्ग में चाह कर भी नहीं आ पा रहा था. धीरे-धीरे वह नीचे की तरफ झुक गया था. राजकुमारी मेरे पेट से सटी हुई थी. छाया का शरीर मेरे वीर्य से नहाया हुआ था. मैंने अपने हाथों से छाया के स्तनों पर उसकी मालिश कर दी. वह हंस रही थी और मुस्कुरा रही थी. उसके होठों पर लगा वीर्य हमारे होठों के बीच कब आ गया हमें पता ही नहीं चला. मैं लगातार उसे झूम रहा था. मेरे हाथ अभी भी उसके नितंबों को सहला रहे थे और बीच-बीच में दासी को छु रहे थे जब मेरे हाथ दासी को छूते वह मुझे शरारती निगाहों से देखती मैं उसे फिर चूम लेता. हम दोनों मुस्कुरा रहे थे.

कुछ देर इसी अवस्था में रहने के बाद छाया मुझसे अलग हुई. मैंने उसे अलग हो जाने दिया वह मेरे बगल में कुछ देर बैठी रही. हम एक दूसरे को देखते रहे. आज हम दोनों पूर्णतयः तृप्त महसूस कर रहे थे. इसी अवस्था में मैंने छाया से चाय पीने की इच्छा जाहिर की छाया उसी तरह नग्न अवस्था में चाय बनाने चली गई. उसके नितंब पीछे से स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे. छाया के चलते समय उसके कम्पन मोहक लग रहे थे. उसके शरीर के उतार-चढ़ाव भी पीछे से स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे. उसके नितंबों के बीच थोड़ी सी जगह से उसकी राजकुमारी के होंठ भी दिखाई पड़ रहे थे. यह दृश्य देखकर राजकुमार में हलचल हुई और मैं छाया के पास दोबारा चल पड़ा. मैंने उसकी पीठ से अपने शरीर को सटा दिया मेरे दोनों हाथ उसके स्तनों को फिर से सहलाने लगे. चाय पीने के पश्चात हम दोनों फिर एक दूसरे के आगोश में थे. इसी प्रकार नग्न अवस्था में खेलते हुए छाया मेरे बाथरूम में आ चुकी थी. हम दोनों ने एक साथ स्नान किया और अंत में मैंने स्वयं अपनी छाया को कपड़े पहनाये इस दौरान वो मुझे चूमती रही. वह मुझसे लगभग चार साल छोटी थी और कभी कभी मैं खुद को बड़ा मानकर उसे प्यार करता था.
छाया ने मुझसे कहा..
“ कभी उत्तेजना के दौरान मेरा कौमार्य भेदन हो गया तो?
वह चिंतित लग रही थी.
मुझे भी इस बात की चिंता थी. मैं उसका हाँथ पकड़कर भगवान की मूर्ती के पास ले गया और उसे वचन दिया “ जब तक तुम्हारा विवाह नहीं हो जाता मैं तुम्हारा कौमार्य भेदन नहीं करूंगा तुम्हारे कहने पर भी नहीं.”
वह खुश थी और उसे मुझ पर पूरा विश्वाश भी था. यह एकांत हम दोनों के लिए हम दोनों के लिए ही
यादगार था.
 
छाया भाग -4
छाया मेंरी प्रेयसी
आप कल्पना कर सकते हैं कि जब आपकी प्रेयसी आपके साथ रह रही हो और आप दोनों के बीच कामुक संबंध हों तो जीवन कितना सुखद हो सकता है. मेरे लिए मेरा घर ही स्वर्ग बन चुका था छाया अब जो मेरी प्रेयसी थी उसे आने वाले समय में मैं उसे पत्नी की तरह स्वीकार करने के लिए मन बना चुका था परंतु इसके लिए अभी छाया की पढ़ाई पूरी होनी बाकी थी. हमारे पास अपने प्रेम संबंधों को जीने के लिए ३-४ वर्ष थे. छाया और माया जी के साथ शुरू से ही मेरा कोई संबंध नहीं था पर पिछले वर्ष छाया मेरी जिंदगी में आयी और उसके कारण ही माया जी से मेरा रिश्ता बना.
परिस्थिति वश छाया मुझे मानस भैया बुलाया करती थी जो अब उसकी आदत में आ गया था मेरे एक दो बार मना करने के बाद अब वह मुझे आप, जी, सुनिए इन्हीं शब्दों से बुलाया करती परंतु मुझे सिर्फ मानस बुलाना उसे पसंद नहीं था. पर जब भी वह स्खलित होती मुझे उसके मुख से मानस भैया ही निकलता. मेरे मना करने पर वह कहती
“ठीक है अगली बार नहीं.” और मुस्कुराने लगती. पर स्खलित होते समय वह भूल जाती और उसके मुख से मानस भैया ही निकलता. मैं उसे स्खलन के समय टोकना नहीं चाहता था. मुझे लगता था वो सीमा से प्रेरित थी वो भी मुझे मानस भैया ही बुलाया करती थी.

छाया को नग्न देखें कई दिन बीत चुके थे. मेरे मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. हम दोनों अपनी छोटी छोटी मुलाकातों में अपने राजकुमार और राजकुमारी को स्खलित करा लेते थे पर तन्मयता से प्यार का सुख नहीं मिल पा रहा था. नग्न छाया को अपनी गोद में लेने का सुख अद्भुत था.
अगले दो दिनों तक छुट्टियां थी मैं अपने दिमाग में छाया के साथ एकांत में वक्त बिताने के लिए उपाय सोच रहा था. घर पहुंचने के बाद छाया ने दरवाजा खोला. वह घर पर अकेली थी. मैंने उससे पूछा
“माया जी कहां है?”
“घर का राशन खत्म हो गया था वही लेने वह पड़ोस की एक आंटी के साथ गई है. आप नहा कर तैयार हो जाइए मैं आपके लिए चाय ले आती हूं.”
यह सुनते ही मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा मैंने दरवाजे की कुण्डी लगाई और छाया को अपनी गोद में उठा कर अपने कमरे में ले आया वह खिलखिला कर हंस रही थी. मैंने बिना देर किए अपने कपड़े उतारे वह मुझे मंत्रमुग्ध होकर देख कर रही थी. मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसका टॉप उतार दिया उसने भी अपने दोनों हाथ ऊपर करके उसे उतारने में मेरी मदद की और खुद ही अपनी स्कर्ट को नीचे
कर उससे बाहर आ गई. उसने अंदर ब्रा और पेंटी नहीं पहनी थी मैंने समय व्यर्थ न करते हुए अपने आलिंगन में ले लिया. मैंने उसे थोड़ा ऊपर उठाया और धीरे धीरे चलते हुए बाथरूम में आ गया उसने इसकी उम्मीद नहीं की थी मैंने तुरंत ही शॉवर आन कर दिया. हम दोनों भीग चुके थे. वह मेरा साथ देने लगी मैंने थोड़ा शावर जेल छाया के हाथ में दिया और थोड़ा अपने हाथ में लेकर उसके शरीर पर मलने लगा उसने भी मेरे सीने और पीठ पर साबुन लगाना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में उसके हाथ मेरे राजकुमार तक पहुंच गए मैंने भी उसके नितंबों को
अपने हाथों में ले लिया. हम एक दूसरे को सहलाते और स्पर्श करते रहे. मैंने उसकी राजकुमारी को भी साबुन से भिगो दिया. हम दोनी एक दुसरे के अंग प्रत्यंगों को सहलाते हुए शावर के नीचे नहा रहे थे,
छाया ने अपनी पीठ मेरी तरफ कर ली थी अब मेरे हाथ उसके स्तनों और नाभि प्रदेश को बड़े अच्छे से सहला रहे थे मेरी उंगलियां उसकी राजकुमारी को छू रही थी इधर मेरा राजकुमार भी उसके नितंबों के नीचे से होता हुआ सामने की तरफ आ चुका था तथा कभी-कभी मेरी उंगलियों से टकरा था. मैंने अपने राजकुमार को अपनी ही उंगलियों से राजकुमारी के समीप लाया छाया ने मुझे पलट कर देखा और मेरे गालों पर चुंबन जड़ दिया. मेरा यह कृत्य उसे अच्छा लगा था मैंने यही काम दो तीन बार किया. छाया ने अपनी राजकुमारी को राजकुमार के अग्रभाग से रगड़ने के लिए अपने शरीर को थोड़ा आगे झुका लिया था.
अब राजकुमार राजकुमारी के मुहाने पर खड़ा था. मेरे कमर हिलाने पर वह राजकुमारी के मुख पर अपनी दस्तक दे रहा था. इस समय सावधानी हटी और दुर्घटना घटी की स्थिति बन चुकी थी. छाया का कौमार्य एक गलती में ख़त्म हो सकता था. मेरे राजकुमार छाया कि कौमार्य झिल्ली से छू रहा था. उसका शिश्नाग्र लगभग राजकुमारी के मुंह में प्रवेश कर चुका था परंतु उसका धड़ बिना कौमार्य झिल्ली का भेदन किए अंदर प्रवेश नहीं कर सकता था.
हम दोनों लोग पूरी तरह उत्तेजित हो चुके थे. छाया ने अपनी हथेलियों का प्रयोग कर मेरे राजकुमार के लिए तंग और चिपचिपा रास्ता बना दिया इसमें एक तरफ उसकी हथेली थी और दूसरी तरफ राजकुमारी के होंठ. इस रास्ते का मुंह छाया की भग्नासा पर खत्म होता था. मैंने अपनी कमर को तीन चार बार आगे पीछे कर अपने राजकुमार से उसकी भग्नासा पर 3 - 4 कोमल प्रहार किए.
छाया कांप रही थी. मैंने अपने दोनों हाथ उसके नाभि प्रदेश पर रखकर उसे सहारा दिया हुआ था. मेरे अगले प्रहार पर “ मानस भैया .............” की उत्तेजक मुझे सुनाई दे गयी. . छाया स्खलित होने लगी थी. मैंने स्थिति को जानकर उसे कुछ देर यूं ही रहने दिया और अपने राजकुमार को आगे पीछे करता रहा.
कुछ देर बाद वह सामान्य हुई मैं उसके गाल पर मीठी सी चपत लगाईं और बोला
“फिर भैया”
वह पलट कर मेरे सीने से लग गयी. मैंने उसे चूम लिया. मेरा राजकुमार भी लावा उगलने के लिए तैयार खड़ा था. छाया को आलिंगन में लिए हुए मैं अपने राजकुमार को सीमा की नाभि के आसपास रगड़ने लगा जितना ही मैं सीमा के नितंबों को अपनी तरफ खींचता मेरे राजकुमार पर घर्षण उतना ही बढ़ता सीमा भी इस कार्य में मेरा साथ दे रही थी. वह तथा अपने स्तनों को लगातार मेरी छाती से हटाए हुए थी.
अचानक मैंने अपनी कमर को नीचे कर राजकुमार को राजकुमारी के मुख में कर दिया एक बार फिर छाया के कौमार्य ने मेरे राजकुमार को आगे जाने से रोक दिया पर राजकुमार ने उत्तेजित होकर लावा छोड़ दिया.
वीर्य प्रवाह के दौरान राजकुमार का उछलना ऐसा प्रतीत हो रहा ऐसे प्रतीत हो रहा था जैसे हम दोनों की नाभि के नीचे कोई बड़ी मछली आ गई थी जिसे हम दोनों ने बीच में दबाया हुआ हो. राजकुमार उछल उछल कर वीर्य वर्षा कर रहा था पर बीच में दबे होने के कारण उसका वीर्य उसके आस पास ही गिर रहा था. मैं और छाया ने एक दुसरे को पूरी तरह एक दुसरे से चिपकाया हुआ था.
कुछ देर बाद छाया मुझसे अलग हुइ अपने आप को साफ किया और तौलिया लेकर बाहर आ गई.
छाया ने माया जी को बाजार बाजार दिखा कर हमारे मिलन को आसान कर दिया था.

पनपती कामुकता
छाया को बैंगलोर आये एक वर्ष बीत चुका था. छाया में आशातीत परिवर्तन आ चुका था. गांव की भोली भाली और कमसिन छाया अब नवयौवना बन चुकी थी. उसकी त्वचा और स्वाभाविक सुंदरता भगवान द्वारा दिया गया एक अद्भुत उपहार था. उसके केश चमकीले थे इन सबके वावजूद शहर की टिप टॉप लड़कियों की तुलना में कभी कभी वह अपने को पीछे समझती. पिछले कुछ महीनों में छाया ने सजना सवारना शुरू कर दिया था. मुझे यह बहुत अच्छा लगता. वह जब भी तैयार होकर मेरे पास आती और पूछती..
“मैं कैसी लग रही हूँ.”
मैं कहता
“जैसे भगवान् ने तुम्हे इस धरती पर भेजा था तुम वैसे ही अच्छी लगती हो.” वो समझ गयी और मुस्कुराने लगी.
छाया को अपने बालों को सवारने थे. उसने मुझसे ब्यूटी पार्लर ले जाने के लिए कहा. मैं उसकी बात तुरंत मान गया उसके केस ब्यूटी पार्लर वालों ने बहुत खूबसूरती से सजाएं.
उसके सीधे बाल अब थोड़े घुंघराले हो गए थे. उसकी छरहरी काया पर भी अब कुछ वजन भी आ गया था. सुख के दिनों में यह स्वाभाविक होता है. उसे शारीरिक और मानसिक दोनों ही सुख प्राप्त थे. मेरे साथ चल रहे प्रेम संबंधों और कामुक गतिविधियों ने उसके चहरे पर नव वधु वाली लालिमा भी ला दी थी. अब वह अत्यंत मादक दिखाई देने लगी थी. मेरे बार बार स्तन मर्दन से उसे स्तन भी आकर में बड़े हो गए थे.
मेरी अबोध सिनेमा की माधुरी दीक्षित अब धीरे-धीरे मनीषा कोइराला के रूप में परिवर्तित हो रही थी..
जब भी मैं उसे अपने साथ लेकर बाहर जाता वह लोगों के आकर्षण का केंद्र बनती. कई बार तो मुझे इस बात को लेकर गुस्सा भी आता पर मन ही मन मैं उन्हें माफ कर देता अप्सरा के दर्शन लाभ से यदि उन्हें खुशी मिलती है तो इसमें छाया या मेरा कोई नुकसान नहीं था. मैं खुश होता कि यह अप्सरा मेरी है.
समय के साथ सीमा कामुक हो चली थी. वह अक्सर माया जी को काम में तल्लीन देखकर मेरे कमरे में आ जाती और दरवाजे की ओट लेकर मुझे अपने पास बुलाती. हम दोनों आलिंगन में बंध जाते मैं छाया को किस करता और वह मेरे चुम्बनो का आनंद उठाते हुए मेरे राजकुमार को अपने दोनों हाथों में लेकर अत्यंत उत्तेजित कर जाती और कुछ ही देर में बिना मुझे इस स्खलित किये मेरे कमरे से चली जाती. मैं भी उसके नितम्बों और स्तनों को सहला कर उसे भी उत्तेजित कर देता. हम दोनों अक्सर इसी अवस्था में रहा करते.
छाया या तो पढ़ रही होती या मेरे साथ यही खेल खेल रही होती. उसमें एक अच्छी बात थी. अक्सर शाम को आफिस से आने के बाद हम दोनों एक दुसरे को उत्तेजित करते. वह अपनी राजकुमारी की प्यास शांत करें या ना करें मेरे राजकुमार को अवश्य स्खलित करा देती थी और मैं खुशी-खुशी निद्रा के आगोश में चला जाता था. वह देर रात तक पढाई करती थी. मुझे उसकी यह आदत बहुत पसंद थी.
मुझे उसके कोमल अंगों को छूने में बहुत आनंद आता था पर मैं कभी उसे कष्ट नहीं देना चाहता था. . मैंने छाया का मुखमैथुन तो राजकुमारी दर्शन के समय किया था. परंतु उसने आज तक मेरे राजकुमार को मुख मैथुन का सुख नहीं दिया था. शायद उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था. मैंने भी कभी इस बात के लिए उसे प्रेरित नहीं किया था. मैं उससे बहुत प्यार करता था और उसमें स्वाभाविक रूप से पनप रही कामुकता का ही आनंद लेता था. मैंने उसका मुख मैथुन करने का प्रयास एक दो बार और किया था पर उसने रोक दिया था.
वह जैसा चाहती मैं उसके साथ वैसा ही करता था.
यह छाया को ही निर्धारित करना था कि उसे अपनी कामुकता को किस हद तक ले जाना है मैं सिर्फ उसका साथ दे रहा था.
 
छाया और उसकी सहेलियां
छाया के साथ मैं अब अक्सर बाहर जाने लगा था. हमारे पास घर से बाहर जाने के कई बहाने थे. छाया के वस्त्र भी अब समय के अनुसार बदल चुके थे. अब वह जींस और टीशर्ट में आ चुकी थी. पतली टाइट फिट जींस और ढीला टॉप उसे बहुत पसंद था. वह जानबूझकर अपने टॉप को अपने कूल्हों तक रखती थी ताकि वह एक संस्कारी युवती लगे.
छाया पर बीसवां साल लग चूका था. मन ही मन वह कामुक थी पर बाहर से एक दम सौम्य थी. जब भी मैं उसे बाजार या किसी शॉपिंग मॉल में ले जाता अक्सर लोगों की निगाहें हम पर ही रहती वह अत्यंत खूबसूरत थी.
एक बार हम मॉल में घूम रहे थे तभी छाया की कॉलेज की कुछ सहेलियां वहां आ गई. उसे मेरे साथ देख कर उन्होंने छाया को छेड़ा..
‘अरे वाह हमारी परी को उसका राजकुमार मिल गया “ छाया शर्मा गई (विशेषकर राजकुमार शब्द पर) परंतु मुस्कुरा कर उनकी बात टालने की कोशिश की पर वह सब मुझसे मिलने को आतुर थीं. छाया ने मजबूरी बस उनका परिचय मेरे से कराया. छाया ने कहा..
“यह मानस जी हैं” इसके आगे वह कुछ बोलती उसकी एक सहेली बोली
“और यह छाया के बॉयफ्रेंड हैं” यह कहकर बाकी सहेलियों के साथ हंसने लगी. मैं भी मुस्कुरा दिया. उन्होंने स्वयं ही हमारा और छाया का रिश्ता अपने विवेक के हिसाब से चुन लिया था. मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं थी. उन्होंने मुझे छेड़ा..
“मानस जी छाया इतनी कोमल है और आप इतने हष्ट पुष्ट
हैं अपनी शक्ति वहां कम ही लगाइएगा वरना हमारी छाया आनंद लेने की बजाय घायल हो जाएगी” वो सब फिर से हंसने लगीं.
छाया ने आज तक अपनी किसी सहेली को घर पर नहीं बुलाया था. यह उसकी समझदारी ही थी अन्यथा किसी अन्य व्यक्ति को हमारे रिश्ते को समझा पाना थोड़ा कठिन होता.
ऐसे खुशकिस्मत लोग बहुत कम मिलेंगे जिनकी प्रेमिका उनके साथ एक ही छत के नीचे रह रही हो और प्रेम लीला में पूरी तरह संलग्न हो.
मैं भी अब ज्यादा खुल चुका था. मैं छाया को लेकर उसकी सहेलियों की पार्टियों में जाने लगा. पार्टियों में हमने तरह- तरह के दृश्य देखे लड़कियों का अर्धनग्न पहनावा और मदिरा पीकर पार्टियों में बिंदास थिरकना छाया के लिए बिल्कुल नयी चीज थी. वह कभी उन लड़कियों की ओर देखती कभी मेरी ओर जैसे जानना चाहती हो कि मुझे क्या अच्छा लगता है.
अगले शनिवार छाया की प्रिय सहेली पल्लवी की जन्मदिन पार्टी थी. उसने अपने कुछ चुनिंदा दोस्तों को बुलाया था. मैं और छाया भी उस पार्टी के लिए अपना मन बना चुके थे. दरअसल इस पार्टी में आने वाले सभी लड़के लड़कियां जोड़े में थे. पार्टी बेंगलुरु शहर से दूर एक खूबसूरत फार्म हाउस में थी. मैंने वह फार्म हाउस पहले भी देखा था. पल्लवी ने छाया को पहले ही बता दिया था की पार्टी के बाद रात में वहीं
रुकना है तथा अगली सुबह वापस आना है.
मुझे लगता था छाया इसी बात से उत्साहित थी. मैं छाया को लेकर बाजार गया और उसके लिए एक बहुत ही खूबसूरत स्कर्ट और टॉप लिया. मैंने अपने लिए भी अच्छे कपड़े ले लिए थे. अब माया जी की अनुमति की जरूरत थी. आखिरकार छाया को पूरी रात घर से बाहर रहना था. छाया ने माया जी को समझाने की कोशिश की “वहां सिर्फ मेरी सहेलियां है हम लोग रात भर बातें करेंगे और सुबह वापस आ जाएंगे”
माया जी छाया को अकेले भेजने में घबरा रही थी. मैं उनकी घबराहट देखकर बोला...
“ आप चिंता मत करिए मैं छाया को वहां पहुंचा भी दूंगा और सुबह लेते हुए आऊंगा. मेरा एक दोस्त वहीं पास में रहता है. मैं रात को वहीं रुक जाऊंगा.”
मेरे इस आश्वासन पर वह खुश हो गई . शनिवार को हम लोगों की छुट्टियां थी. छाया को कॉलेज नहीं जाना था और मुझे ऑफिस. माया जी जैसे ही पूजा करने के लिए हमारी सोसाइटी के मंदिर की तरफ निकलीं छाया ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और मुझसे आकर लिपट गई वह बहुत खुश लग रही थी. उसने मुझे बताया….
“पार्टी में आने वाली कुल 8 - 10 सहेलियों में से अधिकतर का कौमार्य भेदन हो चुका है. पर पल्लवी ने भी अपना कौमार्य अभी तक सुरक्षित रखा है.”
मुझे लगा छाया से पल्लवी की गहरी दोस्ती मैं यही राज होगा. मैंने छाया से मजाक किया “ यदि कभी प्रेम के अतिरेक में राजकुमार ने तुम्हारा
कौमार्य भेदन कर दिया तब?”
उसने प्रेम पूर्वक कहां “राजकुमार स्वयं यह कार्य नहीं करेगा इसका मुझे पूरा विश्वास है पर यह दुष्ट राजकुमारी ही बेचैन रहती है यही खुद अपना भेदन न करा ले मुझे इसी बात का डर रहता है”
उसने अपनी राजकुमारी को एक प्यारी ही चपत लगायी और हँस पड़ी. इन बातों के दौरान ही मेरा राजकुमार उसके हाथों में आ चुका था उसने राजकुमार को पायजामे से बाहर निकाल लिया और उसे सहलाने लगी. उसने उसके आकार को नापने की कोशिश की वह उसके पंजे से बड़ा था. उसकी मोटाइ नापने की कोशिश में उसने अपनी तर्जनी और अंगूठे को मिलाकर राजकुमार को उसके अन्दर लेना चाहा पर सफल नहीं हुइ. उसने मुझे मुस्कुराते हुए बताया मेरी सहेलियां इस बारे में बात करती हैं इसलिए ही मैं अपने राजकुमार का नाप ले रही थी. इस नापतोल में राजकुमार स्खलित होने के लिए मन ही मन तैयार हो गया था. छाया को शायद राजकुमार की इस मंशा का अंदाजा नहीं था उसने उत्तेजित अवस्था में ही उसे पायजामा में डालने की कोशिश की पर वह टस से मस ना हुआ..
जैसे जिद्दी बालक ठान लेने पर खिलौने की दुकान से नहीं हटता है.
छाया मुस्कुराई और राजकुमार को अपने दोनों हाथों में लेकर हिलाना शुरु कर दिया. वह इस कला में पारंगत हो गई थी कुछ ही देर में
राजकुमार ने वीर्य दान कर दिया उसकी सारी अकड़ ठंडी हो चुकी थी. छाया ने राजकुमार को प्यार से एक चपत लगाई और वापस उसे पायजामें में बंद कर दिया. छाया के हाथ वीर्य से सुने हुए थे. उसने अपने हाथों को देखा और सोचा अब इसका क्या करूं. मेरी आंखों में देखते हुए वह अपना हाथ अपने टॉप के नीचे से अपने स्तनों पर ले गई और सारा वीर्य वहीं पोछ दिया. उसे पता था मुझे यह बहुत पसंद है.
मैंने छाया को किस किया वह मुस्कुराती हुई नहाने चली गई. मैंने रात के खाने के लिए माया जी की पसंद का खाना मंगवा दिया था. छाया तैयार हो रही थी माया जी, छाया की मदद कर रही थी. कुछ ही देर में हम दोनों टैक्सी की पीछे वाली सीट पर थे. मेरी कद काठी और हष्ट पुष्ट शरीर छाया के सौंदर्य को टक्कर देता था. हम दोनों किसी नायक नायिका से काम नहीं थे.
छाया आज चमकदार वस्त्रों में बहुत खूबसूरत लग रही थी. उसकी त्वचा अब भी उतनी ही कोमल थी बल्कि उसमे और निखार आ गया था. उसके साथ छेडछाड करते समय कई बार उसके शरीर पर मेरी उंगलियों के निशान पड़ जाते जिन्हें देखकर मैं दुखी हो जाता. मुझे अफसोस होता कहीं मैंने उसके साथ ज्यादती तो नहीं कर दी. वह तुरंत ही मुझे चुंबन देकर प्यार से बोलती अरे ठीक हो जाएगा. मैंने छाया की तरफ देखा वह खिड़की से बेंगलुरु शहर को निहार रही थी.
उसके जीवन में पिछले तीन-चार सालों में इतना परिवर्तन आया था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी. हमारी टैक्सी एक बड़ी सी हवेलीनुमा घर के दरवाजे पर रुकी. दरबान हमारी तरफ आया. छाया ने
खिड़की खोल कर पल्लवी का नाम लिया. उसने अपने साथी को इशारा कर बड़ा सा गेट खोल दिया. अंदर पहुंचकर टैक्सी रुक गई.
पल्लवी हम दोनों का इंतजार कर रही थी. हम सब एक बड़े से हॉल में आकर अपने लिए निर्धारित सोफे पर बैठ गए. बाकी सारी लड़कियां भी अपने दोस्तों के साथ आ चुकी थी. मैंने एक सरसरी निगाह से हॉल में उपस्थित छाया की सहेलियों और उनके पुरुष मित्रों को देखा. छाया की अधिकतर सहेलियों के पुरुष मित्र मेरे हम उम्र ही थे शायद उस समय तक लड़के और लड़की में उम्र का अंतर लड़कियों को भी उतना ही स्वीकार्य था.
पुरुष तो स्वभाव से ही अपने से कम उम्र की लड़की ही पसंद करता है.
पल्लवी ने हम सबका परिचय करवाना चाहा इसके लिए उसने बड़ा ही अजीब तरीका अपनाया. हम सभी अपनी अपनी प्रेमिकाओं के साथ सोफे पर बैठे हुए थे. सोफा गोल घेरे में लगा हुआ था. बीच में एक लाल रंग का कारपेट रखा था. पल्लवी के नियमानुसार प्रत्येक पुरुष को अपनी प्रेमिका को अपनी गोद में उठाकर लाना था तथा अपना और
अपनी प्रेमिका का नाम बताना था. साथ में यह भी बताना था कि उन्होंने पहली बार संभोग कब किया था. और उस समय उनकी उम्र कितनी थी. सभी खिलखिला कर हंस पड़े.
बारी बारी से लड़के अपनी अपनी प्रेमिकाओं को गोद में उठाकर लाते और अपना परिचय देते. पहले संभोग के बारे में बताते हुए लड़कियों का चेहरा लाल हो जाता. उनके विवरणों से एक बात तो स्पष्ट हो गई थी कि शहरों में कौमार्य भेदन के लिए सुहागरात की प्रतीक्षा न थी. शहर की लड़कियों ने अपना कौमार्य पहले ही खो दिया था. और अब वह खुलकर सम्भोग सुख ले रहीं थीं .
अंततः हमारी बारी भी आ गई मैंने छाया को अपनी गोद में उठाया और लाल कारपेट पर लेकर जाने लगा. स्कर्ट का कपड़ा इतना मुलायम था मुझे लगा जैसे मैंने छाया को बिना स्कर्ट के ही पकड़ लिया हो. उसकी जांघें मेरे दाहिने हाथ में थी तथा बाया हाथ उसकी पीठ पर को सहारा दिया हुआ था मेरी हथेली उसके बाए स्तन की पास थीं. छाया का
चेहरा मेरे चहरे के समीप था. चलते समय हमारे गाल कभी कभी एक दूसरे में छू रहे थे. सभी लड़कियां तालियां बजा रहीं थी. मैंने पहुंचकर अपना परिचय दिया. छाया की बारी आने पर वह शरमाते हुए बोली हमने आज तक संभोग नहीं किया है. कहकर मेरे गालों पर चुंबन जड़ दिया और मुस्कुराने लगी. सभी लड़कियां जोर-जोर से “क्यों क्यों” कह कर चिल्लाने लगी. छाया ने जी बड़ी चतुराई से कहा.
“मेरी राजकुमारी अभी इनके हष्ट पुष्ट राजकुमार के लिए तैयार हो रही है” इतना कहकर वह मेरे गोद से उतर गयी.
हम दोनों सब का अभिवादन करते हुए वापस अपनी सीट पर बैठ गए. पल्लवी भी अपने पुरुष मित्र के साथ आई और अपना परिचय दिया. पल्लवी ने एक अनोखी बात बताई..
“ दोस्तों मैंने आज तक संभोग नहीं किया पर आज जरूर करूंगी यह पार्टी मैंने इसी उपलक्ष्य में दी है. सभी लोग उठकर खड़े हो गए और पल्लवी का जोरदार अभिवादन किया.”
कुछ ही देर में हम सब आपस में घुलने मिलने लगे. हम लोगों ने थोड़ी-थोड़ी वाइन पी और तरह तरह की बातें करने लगे. छाया अपनी सहेलियों के पास चली गई थी. वो सभी वहां हंसी मजाक कर रही थी. कुछ ही देर में हम वापस हाल में आ चुके थे और अपनी अपनी प्रेमिकाओं के साथ डांस कर रहे थे. छाया ने मुझे बताया कि सारी लड़कियों ने थोड़ी-थोड़ी वाइन पी थी पर मैंने नहीं ली. मैंने उसका
उत्साहवर्धन किया यदि तुम्हें इच्छा हो तो मैं तुम्हारा साथ दे सकता हूं.
वह मुस्कुराइ और हम दोनों बार काउंटर की तरफ चल पड़े हमने वाइन ली और पास लगे टेबल पर बैठकर एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले वाइन पीने लगे सीमा को उसका स्वाद कुछ अटपटा सा लगा पर उसकी परवाह किये बिना उसने धीरे धीरे अपना ग्लास ख़त्म कर लिया.

निराले खेल
हम वापस हाल में आकर डांस करने लगे. धीरे धीरे पार्टी में कामुकता बढ़ती जा रही थी. अमूमन सभी लड़कों ने अपनी प्रेयसीओ के या तो नितंब या स्तन पकड़ रखे थे और उन्हें बेसब्री से सहला रहे थे. कुछ ने उनके होंठ भी अपने होठों में ले रखे थे. कुछ लड़कियों के हाथ अपने पुरुष मित्रों की जांघों पर घूम रहे थे. इस कामुक माहौल में हमारी भी स्थिति कमोबेश यही थी. वाइन का असर छाया पर क्या हुआ था यह अनुत्तरित था पर वह बहुत खुश थी और मुझसे लता की तरह लिपटी हुई मेरे होंठों को चूस रही थी.
म्यूजिक बंद होने पर सब अलग अलग हुए एक लड़की ने माइक पकड़ा और मुस्कुराते हुए बोली…..
“मैं अपनी सहेलियों की स्थिति समझ सकती हूं इतनी देर तक आलिंगन बंद होकर डांस करने से हम सभी के मन में अलग भावनाएं आ रही होंगी. आप सब अपने अपने कमरे में जाकर १५ मिनट में अपनी भावनाएं शांत कर ले.” यह कहकर वह हंसने लगी..
“हॉल में लगी हुई बड़ी घड़ी की तरफ इशारा करके उसने कहा कि जो युगल 11:30 तक इस हाल में वापस नहीं आएगा उसे एक प्यारा सा दंड मिलेगा.
सभी ने कौतूहल से पूछा ..
“ क्या ”
“ उसे पार्टी खत्म होने तक अपने अधोवस्त्रों में ही रहना पड़ेगा और यह लड़का और लड़की दोनों पर लागू होगा सभी खिलखिला कर हंस पड़े”
सभी अपनी अपनी प्रेमिकाओं को लेकर अपने अपने कमरे की तरफ गए. मैं और छाया भी अपने कमरे में आ चुके थे. होटल के कमरे की साज-सज्जा सुहागरात के बेड जैसी ही थी सिर्फ फूलों की सजावट नहीं थी. पलंग के दोनों तरफ दो सुंदर ताजे फूलों के गुलदस्ते रखे हुए थे. पल्लवी ने अपने कौमार्य भेदन को एक उत्सव में बदल दिया था. छाया मेरे पास आई. मैंने उसे अपने आलिंगन में लिया उसकी स्कर्ट
को ऊपर कर मैंने उसकी पैंटी निकाल दी. उसने भी अपने पैर झटक कर उसे बाहर कर दिया. हमारे पास समय बहुत कम था. मैं भी अपने पेंट को ढीला कर घुटने तक ले आया.
छाया अब मेरी गोद में बैठ चुकी थी. उसके दोनों पैर मेरे कमर में लिपटे हुए थे. राजकुमारी राजकुमार से सटी हुई थी. नृत्य के दौरान राजकुमारी में गीलापन आ चुका था जो उसकी दरारों से निकलकर मेरे राजकुमार पर लग रहा था. हम दोनों अपनी कमर को हिलाने लगे. हमारे होंठ एक दूसरे से चिपके हुए थे. मैं एक हाथ से सीमा के नितंब सहला रहा था और दूसरे हाथ से सीमा की पीठ को सहारा दिया हुआ था. हॉल में हुई कामुक बातें और अत्यंत कामुक माहौल ने हम दोनों
को तुरंत ही स्खलित कर दिया.
स्खलित होने से पूर्व छाया ने बेड के पास पड़ा हुआ टावेल उठाकर अपनी नाभि के समीप रख लिया था. वो बहुत समझदार थी. स्खलन के पश्चात उसने जल्दी-जल्दी प्रेम रस को साफ किया. हमने देखा
11:25 हो चुके थे. हम जल्दी-जल्दी हॉल की तरफ भागे . जल्दी में दरवाजा बंद करना भी भूल गए. हम तेजी से भागते हुए हॉल में आ गए और अपने सोफे पर बैठ गए.
घड़ी में 11:30 बजते ही अलार्म बज गया. सभी हॉल में आ चुके थे सिर्फ सलमा और अब्दुल ही सीढ़ियों पर रह गए थे. देर हो चुकी थी. माइक पकड़ी हुई लड़की ने बोला..
“सलमा और अब्दुल आप लोग देर से आए हैं आप रेड कारपेट पर आ जाएं”. वो दोनों सर झुकाए रेड कारपेट पर आ चुके थे.
“शर्तों के अनुसार आपको पार्टी में अपने अधोवस्त्रों में ही रहना होगा. कृपया इसे दंड न समझे आप दोनों ही अत्यंत सुंदर हैं. आपको आपके अधोवस्त्रों में देखकर हमें खुशी होगी” चारों तरफ से आवाजें आने लगी सलमा और अब्दुल ने वस्त्र उतार दिए सलमा ब्रा और पैंटी में आ चुकी थी.
सलमा सुंदर तो थी ही इस अवस्था में सारे लड़कों की निगाह उसके स्तनों की तरफ चली गई. उसके स्तन इस पार्टी में उपस्थित सभी लड़कियों में सबसे बड़े थे. बाकी लड़कियों ने अपने अपने पुरुष मित्रों के गाल पर चपत लगाई और उनका ध्यान सलमा के स्तनों से हटाया.
अचानक मोना ने एक और घोषणा की उसने कहा...
“ जिस लड़की ने अपनी पैंटी न पहनी हो वह रेड कारपेट पर आ जाए. मैंने छाया की तरफ देखा वह घबरा गई थी. छाया ने अपने पैर एक दूसरे पर चढ़ा लिये. उसे अपनी पैंटी वहीं छोड़ आने का बड़ा अफसोस हो रहा था. मोना ने फिर से कहा…” देर करने पर सजा मिलेगी यह
कह कर हंसने लगी.”
छाया अब उठ खड़ी हुई और रेड कार्पेट पर आ गयी. सब लोग जोर जोर से हंसने लगे. मोना ने छाया की लाल पेंटी को दोनों हाथ से सभी को
दिखाते हुए मुझसे पूछा मानस क्या यही छाया की पेंटी है?
मुझे हां कहना पड़ा. उसने कहा “तो आइए और जैसे आपने अपने हाथों से उतरा था उसे वापस पहनाइए. इस तरह पानीअपनी प्रेमिका को नग्न रखना उचित नहीं है”
सभी जोर जोर से हँस रहे थे. छाया सर नीचे किये हुए मुस्कुरा रही थी. मैं कारपेट की तरफ चल पड़ा मेरे पास कोई चारा नहीं था. देर करने का मतलब सब की हूटिंग का पात्र बनना था. मैं छाया के पास पहुंचा उसे प्रपोज करने के अंदाज में नीचे बैठा और उसकी पैंटी को अपने दोनों हाथों से पकड़ा. वह अपना एक पैर ऊपर उठाई और पेंटी से पास करते हुए हुए जमीन पर रख दी. इसी प्रकार उसने दूसरा पैर भी डाल दिया. मैं उसकी पैंटी को उसके टखनों से ऊपर उठाता हुआ उसकी पिंडलियों और जांघों के रास्ते उसे कमर तक ले आया. इस दौरान मेरे लिए सबसे बड़ा कार्य यह था की सीमा के गोरे और कोमल नितम्बों के कोई और दर्शन ना सके. पर सावधानी के बाद भी कुछ लालची पुरुषों ने उसके नितम्ब देख लिए. पीछे से आवाजे आ रही थीं “बधाई हो मानस सच में छाया बहुत सुन्दर हैं” हम दोनों शर्मा गए और वापस अपनी जगह पर आ गए.
पार्टी फिर शुरू हो चुकी थी मैंने और सीमा ने वाइन का एक एक गिलास और ले लिया. मैंने यह अनुभव किया कि अधिकतर लड़कियां लहंगा स्कर्ट मिनी स्कर्ट आदि पहने हुई थी. हो सकता है सभी लड़कियों ने मिलकर यह निर्धारित किया हो. कुछ ही समय में हम सभी डांस फ्लोर पर थे.
अपनी प्रेयसी को आलिंगन में लिए हुए नृत्य करने का सुख हम सभी उठा रहे थे. छाया मेरे होठों को तेजी से चूस रही थी तथा मुझे अपनी और खींच रही थी. उसके हाथ मेरे राजकुमार को बीच-बीच में सहला दे रहे थे. अचानक मोना
की आवाज फिर से गूंजी उसने कहा..
“ दोस्तों आज हमारी पल्लवी अपना कौमार्य खोने जा रही है. आप सब भी बेसब्र हो रहे होंगे इसी उम्मीद के साथ मैं इस पार्टी की समाप्ति की घोषणा करती हूं.”
 
छाया, मैं और वो यादगार रात
पल्लवी के प्रेमी ने उसे बाहों में उठा लिया और सीढ़ियों की तरफ बढ़ चला. हब सब भी अपनी प्रेमिकाओं के साथ अपने कमरों की तरफ चल पड़े. छाया के कदम थोडे डगमगा रहे थे. मैं उसे अपनी गोद में उठा लिया वह मुझे लगातार चूमती जा रही थी.
कमरा खुला हुआ था हम दोनों के अंदर आने के बाद. छाया को बिस्तर पर उतार कर मैं बाथरूम चला गया. बाहर आने के बाद मैंने देखा की छाया बिस्तर पर नग्न लेटी हुई थी. सफेद चादर पर उसकी लाल रंग की पैंटी और ब्रा उसके शरीर के दोनों तरफ अड़हुल के फूल की की तरह दिखाई पड़ रहे थे. अत्यंत मोहक दृश्य था. छाया की आंखें बंद थी. उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे. उसमें स्वयं अपनी ब्रा और पैंटी उतारी थी यह इस बात का परिचायक थी कि वह कामोत्तेजित थी और मेरा साथ चाहती थी. शायद बाथरूम में हुई देरी की वजह से उसकी आंख लग गई थी. उस पर वाइन का नशा पहले से ही था. मुझे लगा वह सो गई.
मैं सोच नहीं पा रहा था कि क्या करूं. मैंने उसके स्तनों की तरफ देखा उन्होंने अपना तनाव कायम रखा हुआ था परंतु गुरुत्वाकर्षण के कारण थोड़ा चपटे हो गए थे पर उसके निप्पल अभी भी अपना तनाव बनाए हुए थे. स्तनों के बीच मेरा दिया हुआ नीले नग वाला पेंडेंट लटक रहा था. उसके कानों के कुंडल भी पेंडेंट से मिलते जुलते थे. उस लगा हुआ नीला नग अत्यंत खूबसूरत लग रहा था. छाया के चेहरे पर लालिमा अभी भी कायम थी लगता था उसे सोए हुए अभी दो-तीन मिनट ही बीते थे. पिछले कुछ महीनों में छाया “१९४२ एक लव स्टोरी” फ़िल्म की नायिका मनीषा कोइराला के जैसी लगाने लगी थी. .
मेरा ध्यान उसकी राजकुमारी की तरफ गया जिस तरह छोटे बच्चे दूध पीने के बाद अपनी लार बाहर गिरा देते हैं उसी प्रकार राजकुमारी की लार एक पतले धागे की तरह उसके होंठो से गिरते हुए चादर को छू रही थी.
यह एक अत्यंत उत्तेजित करने वाला दृश्य था. मुझे गांव के मवेशी याद आ गए. सम्भोग की आशा में खूंटे से बंधी मादा मवेशी अपनी योनि से लार टपकाती रहती है. समझदार गृहस्थ यह बात समझते हैं और उन्हें तुरंत गर्भधारण के लिए ले जाते हैं. यहां पर भी मेरी प्यारी छाया उसी स्थिति में पड़ी हुई थी. मुझे अपनी सोच पर हंसी भी आई. मैं भी पूर्ण नग्न होकर छाया के बगल में आ गया. कमरे में ठंड होने की वजह से मैंने चादर खींच ली. अब हम दोनों चादर के अंदर थे. मैं छाया के साथ इस अवस्था में कुछ नहीं करना चाहता था. मैं उसके साथ बिताए पलों को याद करने लगा अचानक मेरे राजकुमार पर उसके हाथों का स्पर्श महसूस हुआ और मैं छाया की तरफ पलट गया. वह भी मेरी तरफ पलट चुकी थी. उसने मुझसे मादक अंदाज में कहा “मानस भैया आज मेरा भी कौमार्य भेदन कर दीजिए मुझसे अब बर्दाश्त नहीं होता” इतना कहकर वह मेरे आलिंगन में आ गई. मैंने उसे अपने आगोश में ले लिया. वाइन के हल्के नशे में वह थोड़ी मदमस्त हो गई थी. उसने अपना एक पैर मेरे ऊपर चढ़ा लिया था. मैं उसके नितंबों को सहलाते सहलाते गलती से उसकी दासी को छू लिया.
उसने आँखे खोली, शरारत भरी नजरों से मेरी तरफ देखा और बोली
“ दासी की तरफ नजरें मत बढ़ाइए अभी तो राजकुमारी ही कुंवारी बैठी है” इतना कह कर हंस पड़ी और मेरे होंठ चूसने लगी. मेरा राजकुमार अब राजकुमारी के मुंह पर दस्तक दे रहा था प्रेम रस से भीगी हुई राजकुमारी राजकुमार को अपने आगोश में लेने के लिए पूरी तरह से तैयार थी. राजकुमार भी मुंह से लार टपकाते हुए राजकुमारी के मुख पर ठोकर मार रहा था उसे सिर्फ मेरे एक इशारे की प्रतीक्षा थी.
छाया के हल्के नशे में होने के कारण कौमार्य भेदन का यह उपयुक्त समय था. उसे दर्द की अनुभूति भी शायद कम ही होती. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सारी कायनात ने साजिश कर उसका कौमार्य भेदन सुनिश्चित किया था.
पर मुझे मेरे दिए वचन की याद आ गई मैंने भगवान को साक्षी मानकर उसे वचन दिया था जब तक उसका विवाह नहीं हो जाता मैं उसका कौमार्य भेदन नहीं करूंगा.
इस वचन की याद आते ही मेरा राजकुमार थोड़ा शिथिल पड़ गया. मैंने छाया के माथे पर चुंबन जड़ा और बोला…
“ मैं कल ही माया जी से अपनी शादी की बात करता हूं. पर मैं अपने दिए वचन को नहीं तोड़ पाऊंगा.”
“ मैं उस पल के लिए हमेशा इंतजार करुँगी” इतना कहकर वह मुझसे जोर से लिपट गई राजकुमार एक बार फिर राजकुमारी को चूमने लगा. मैं पहली बार छाया के ऊपर आ चुका था छाया ने अपनी जांघें फैला कर मेरे राजकुमार के लिए कार्य आसान कर दिया था. राजकुमार अब
राजकुमारी के होंठों के एक सिरे से दूसरे तक प्रेम रस में भीगते हुए यात्रा करने लगा. जब वो राजकुमारी के मुख तक पहुंचता तो एक उसके मुखमे एक डुबकी मार ही लेता था. उसका सफर राजकुमारी के मुकुट {भग्नासा} पर खत्म होता. यह प्रक्रिया राजकुमार लगातार कर रहा था. मैं छाया के दोनों स्तन अपने हाथों से दबा रहा था. उनके निप्पलों को छूने पर छाया अपनी जीभ अपने ही दांतों से काटने लगाती. स्खलित होने का समय करीब आ चुका था. मैं छाया के ऊपर और झुक गया तथा उसके स्तनों को अपने होठों से छूने लगा. बीच-बीच में मैं उसके निप्पलों को अपने मुंह में लेता. छाया की राजकुमारी राजकुमारी को तंग करने का एक अच्छा उपाय मिल गया था. उसके कठोर निप्पलों को मुंह में लेने पर मेरे राजकुमार में भी हलचल हो रही थी.
अचानक मुझे राजकुमारी में कंपन महसूस होने लगा. छाया मुझसे तेजी से लिपट गइ और एक बार फिर उसकी कोमल आवाज “मानस भैया............” मेरे कानों तक आई.
राजकुमारी अपना प्रेम रस छोड़ने लगी मेरा राजकुमार भी जैसे राजकुमारी के कंपन का इंतजार कर रहा था वह भी ताल में ताल मिलाते हुए वीर्य वर्षा करने लगा.

मैंने छाया के स्तनों से अपना मुंह हटा लिया था. वीर्य की धार छाया के गालों, स्तनों राजकुमारी और उसकी जांघों को भिगोती रही. मैं छाया से लिपट गया. हमारे स्तनों ने मेरे वीर्य को आपस में साझा कर लिया. छाया की गालों पर लगे वीर्य रस को मेरी जीभ छाया के होठों तक ले आई हम दोनों ने फिर से एक दूसरे के होठ चुसे. मैंने मुस्कुराते हुए छाया से कहा...
“ कौमार्य भेदन के दिन भी ‘मानस भैया.........” ही बोलोगी
क्या ?” वो हँस पड़ी मेरे गालों पर चुम्बन दिया और मेरे आलिंगन में आ गयी. हम दोनी इसी अवस्था में सो गए. सुबह मेरी नींद खुलने पर मैंने पाया की छाया मेरे ऊपर लेटी हुई है उसकी दोनों जांघे मेरी कमर के दोनों तरफ है और वह मेरे राजकुमार को अपने राजकुमारी से दबाई हुए थी. वह अपनी कमर की हल्के हल्के आगे पीछे करती हुई मेरे राजकुमार को उत्तेजित कर रही थी. राजकुमारी का रस एक बार फिर से बह रहा था. मेरी नींद खुलते ही मुझ में भी उत्तेजना आ गयी. और हम दोनों एक दुसरे को कुछ देर प्यार करते रहे “ मानस भैया .........” कि आवाज आते ही उसके स्तन भीग रहे थे ... कुछ देर बाद उठकर हम साथ में नहाने चले गए. हमनेरात एक साथ अपनी पहली रात गुजार ली थी.
साथी पर अटूट विश्वास लड़कियों में साहस भर देता है, छाया ने आज वाइन पीने के बाद बिस्तर पर नग्न लेटकर मुझे खुला आमंत्रण दिया था, पर वो मेरी छाया थी. मैं उसे धीरे धीरे जवान होते देख रहा था बल्कि अपने हांथों से जवान कर रहा था.

दोपहर में घर आने के पश्चात हम दोनों काफी थके हुए थे. माया जी ने हमें खाना खिलाया और हम दोनों सोने चले गए छाया गलती से मेरे कमरे में घुस गइ शायद उसे आभास ही नहीं था कि हम घर वापस आ चुके हैं. माया जी थोड़ा आश्चर्यचकित थी. छाया मेरे कमरे के अंदर आकर अपनी एक पुस्तक हाथ में उठाई मेरी तरफ देख कर अपनी इस गलती पर मुस्कुरायी और हंसते हुए वापस अपने कमरे में चली गइ. मेरी छाया अब समझदार हो गयी थी.
 
छाया ( भाग -5)

छाया प्रेयसी से मंगेतर तक.
नज़रों के नीचे
समय तेजी से बीत रहा था. मैं और छाया एक ही छत के नीचे प्रेमी प्रेमिका का खेल खेल रहे थे. अपनी मां की उपस्थिति में भी छाया इतने कामुक और बिंदास तरीके से रहती थी जैसे उसे किसी बात का डर ही ना हो. वह अपनी मां की नजर बचाकर मेरे पास आती मुझे उत्तेजित करती और हट जाती. कई बार तो उसने अपनी माया जी की उपस्थिति में ही उनकी पीठ पीछे मेरे राजकुमार को सहला दिया था.
एक बार खाना खाते समय अपने पैरों को मेरे पैरों से रगड़ रही थी. मेरा राजकुमार उत्तेजित हो रहा था. कुछ देर बाद उसके हाँथ से एक चम्मच गिरी. वह टेबल के नीचे झुकी और मेरे राजकुमार को मेरे पायजामा से बाहर कर दिया और चम्मच उठाकर उपर आ गयी. कुछ ही देर में खाना खाते- खाते उसने अपने पैरों से मेरे राजकुमार को छूना शुरु कर दिया. बड़ा अद्भुत आनंद था माया जी बगल में बैठी थी. हम सब खाना खा रहे थे, और नीचे छाया के पैर रासलीला कर रहे थे.
खाना खाते खाते मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई. खाना खत्म करने के बाद जैसे ही माया जी बर्तन साफ करने किचन की ओर गयीं छाया मेरे कमरे में आई और अगले 2 मिनटों में ही मुझे स्खलित कर मेरा सारा वीर्य अपने हाथ से अपने स्तनों पर लगा लिया. मुझे इस बात से बहुत खुशी मिलती थी यह उसे पता था.
कभी-कभी वह मेरी गोद में आकर बैठ जाया करती. वह भी एक अलग तरह का आनंद होता. एक बार हम सब सोफे पर बैठकर फिल्म देख रहे थे. ठण्ड की वजह से हमने अपने ऊपर रजाई डाल रखी थी. नायिका की सुहागरात देखकर छाया उत्तेजित हो गई उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी पैंटी में डाल दिया. मैं उसकी मंशा समझ चुका था. बगल में माया जी बैठी थी फिर भी मैंने हिम्मत करके उसके राजकुमारी को सहलाया. कुछ ही देर में उसकी राजकुमारी कांपने लगी उसने मेरे हाथ को अपनी दोनों जांघों से दबा दिया. राजकुमारी के कंपन यह बता रहे थे कि वह स्खलित हो रही थी.
उसने पिछले कुछ महीनों में कई प्रकार की परिस्थितियां बनाकर सेक्स को रोमांचक बना दिया था. कभी कभी वह स्कर्ट के नीचे पैंटी नहीं पहनती और मुझे इस बात का एहसास भी करा देती. हम दोनों दिन भर एक दुसरे से माया जी उपस्थिति में ही छेड़खानी करते. एक बार मैंने उसकी जांघो और राजकुमारी से खेलते हुए पेन से एक बिल्ली की आकृति बना दी. राजकुमारी का मुख बिल्ली के मुख की जगह आ गया था. वह आईने में देखकर बहुत खुस हो गयी थी.

एक दिन छाया ने मुझसे पूछा
“आप मम्मी से शादी की बात कब करेंगे?”
“ तुम्हारे कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद.”
“कोई हमें भाई बहन तो नहीं मानेगा न?”
“तुम किसी भी तरीके से मेरी बहन नहीं हो . मेरे पापा और तुम्हारी मां की मजबूरियों की वजह से हम सब एक ही छत के नीचे आ गए. मैं खुद नहीं समझ पा रहा हूं कि हम दोनों के एक होने में क्या दिक्कत आएगी. हम भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे विवाह में आने वाली अड़चनों को दूर करें.”
डर तो मुझे भी था पर मैं उसे समझा रहा था.

माया जी के नए साथी.
हमारी सोसाइटी में रहने वाले शर्मा जी एक प्राइवेट बैंक में मैनेजर थे. वह बहुत ही मिलनसार थे. जब भी वह देखते मुस्कुरा देते कुछ महीने पहले एक दिन उनकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. लिफ्ट में जाते समय उन्होंने मुझसे कहा ...
“मानस क्या आप मेरी एक मदद करोगे? मेरे लिए कुछ दवाएं ला दो”
उनके चेहरे से पसीना निकल रहा था. मैं उन्हें उनके फ्लैट में जो ठीक हमारे ऊपर था छोड़कर दवा लेने चला गया. लौटकर मैं देखता हूं कि वह अपने बिस्तर पर बेसुध पड़े हुए थे. मैं घबरा गया मैं नीचे जा कर माया आंटी को बुला लाया. माया आंटी को उनके पास छोड़कर मैं डॉक्टर को फोन करने लगा. माया आंटी ने उनके चेहरे पर पानी के छींटे मारे थोड़ी देर में उन्होंने अपनी आंखें खोली वह माया आंटी को अपने पास देख कर आश्चर्यचकित थे. माया आंटी उनके सर को हल्के हल्के दबा रहीं थीं. कुछ ही देर में पास में रहने वाले डॉक्टर वहां आ गए और उन्होंने शर्मा जी का चेकअप किया. उन्होंने माया आंटी की तरफ देखते हुए बोला ..
“आपके पति बिल्कुल ठीक-ठाक है. लगता है इनका ब्लड प्रेशर ज्यादा बढ़ गया था . चिंता की कोई विशेष बात नहीं है.”
फिर वह शर्मा की की तरफ मुखातिब हुआ...
“आप घर पर आराम करिए और तेल मसाला वाला खाना मत खाइए. कुछ ही दिनों में आपका ब्लड प्रेशर नार्मल हो जाएगा” मैं एक बार फिर डॉक्टर की बताई दवा लेने गया तब तक माया आंटी वही बैठी थी. वहां से आने के बाद माया आंटी खाना बनाने चली गई और मैं शर्मा अंकल का ध्यान रख रहा था. माया आंटी ने अगले तीन-चार दिनों तक शर्मा अंकल का खूब ख्याल रखा और उन दोनों में दोस्ती हो गई. हम और छाया कभी-कभी यह बात करते कि माया आंटी ने अपने जीवन में कितने कष्ट सहे हैं. लगभग सत्ताईस वर्ष की अवस्था में उनके पति का देहांत हो गया था. तब से वह अकेली ही थीं. मेरे पापा के साथ आकर उन्होंने अपने और अपनी बेटी छाया के लिए एक छत तलाश ली थी पर शारीरिक सुख की बात असंभव थी. तीन-चार दिन शर्मा अंकल की सेवा करने के बाद माया आंटी की उनसे दोस्ती हो गई थी.

माया जी का शक
छाया पर इक्कीसवां साल लग चुका था. मैंने और छाया ने पिछले कुछ महीनों में एक दूसरे के साथ इतनी कुछ किया था पर माया जी को इसकी भनक न लगी हो यह बड़ा आश्चर्य लगता था. हमने घर के हर कोने में अपनी कामुकता को अंजाम दिया था. मुझे तो लगता है कि यदि किसी फॉरेंसिक एक्सपर्ट को घर की जांच करने को दे दी जाए तो उसे हर जगह मेरे या छाया के प्रेम रस के सबूत मिल जाएंगे.
हमने घर की लगभग हर जगह पर अलग-अलग प्रकार से अपनी कामुकता को जिया था. घर का सोफा, डाइनिंग टेबल, किचन टॉप, बालकनी, बाथरूम आदि मेरे और छाया के प्रेम के गवाह थे.
माया जी ने हमारे कपड़ों पर भी उसके दाग जरूर देखे होंगे पर व हमेशा शांत रहती थी. मुझे नहीं पता कि उनको इसकी भनक लग चुकी थी या नहीं पर उनका व्यवहार सामान्य रहता था .
परंतु एक दिन मैं और छाया अपनी प्रेम लीला समाप्त करके उठे ही थे और अपने वस्त्र पहन रहे थे तभी माया जी के आने की आहट हुई वो बाज़ार से वापस जल्दी आ गयीं थी. इस जल्दबाजी में छाया अपने गालों पर लगा मेरा वीर्य पोछना भूल गई. माया जी की निगाहों ने उसके गाल पर लगा सफेद द्रव्य देख लिया उन्होंने अपनी उंगलियों से उसे पोछते हुए बोला यह क्या लगा रखा है. सीमा घबरा सी गई वह कुछ बोल नहीं पाइ. उसने अपने हाथों से अपना गाल पोछा और बोला “कुछ लग गया होगा”
माया जी ने चलते चलते अपना हाथ अपनी साड़ी के पल्लू में पोछा और अपनी उंगलियों को अपनी नाक के पास ले गयीं जैसे वह उसे सूंघ कर पता करना चाहती हो की वह क्या था.
[ मैं माया ]
अपनी उंगलियों को अपनी नाक के पास ले जाते ही मुझे अपनी उंगलियों में लगे चिपचिपे पदार्थ पहचानने में कोई वक्त नहीं लगा मैं समझ गई कि मेरा शक सही था. छाया और मानस के बीच बढ़ती हुई नजदीकियां इतनी जल्दी ऐसा रूप ले लेगी यह मैंने नहीं सोचा था. इन दोनों का साथ में हंसना मुस्कुराना एक दूसरे के साथ घूमना और कई बार देर रात तक वापस लौटना हमेशा से शक पैदा करता था पर मानस को देखकर ऐसा लगता नहीं था कि वह छाया को इस कार्य के लिए मना लेगा.
मैंने छाया के कपड़ों पर अलग तरह के दाग देखे थे पर मैं यह यकीन नहीं कर सकती थी कि वह अपने कपड़ों पर किसी पुरुष का वीर्य लगाए घूम रही होगी. छाया जब भी मानव के कमरे से निकलती थी उसके कपड़े की सलवटे यह बताती थी जैसे किसी ने उसके स्तनों को अपने दोनों हाथों से खूब मसला हो. आज यह देखने के बाद कि यह वीर्य मानस का है मैं सच में चिंतित थी.
मुझे अब छाया पर निगाह रखना आवश्यक हो गया था. मैंने मन ही छाया को रंगे हाथ पकड़ने का निश्चय कर लिया. छाया भी शायद अब सतर्क हो गई थी. मैंने तीन चार दिनों तक उस पर पैनी निगाह रखी पर उसने मुझे कोई मौका नहीं दिया. कई बार मुझे लगता जैसे मैंने इन दोनों पर नाहक ही शक किया हो. मानस एक निहायती शरीफ और जिम्मेदार लड़का था उसने छाया की बहुत मदद की थी. आज उसकी बदौलत ही छाया ने इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया था और वह अपनी पढ़ाई अच्छे से कर रही थी. वह छाया को इन गलत कामों के लिए प्रेरित करेगा ऐसा यकीन करना मुश्किल था.
परंतु ये छोटी छोटी घटनाएं मुझे हमेशा शक में डालती थी. छाया के गाल पर वह चिपचिपा पदार्थ देखकर मुझे आज से लगभग 3 वर्ष पहले मानस के गाल पर लगा द्रव्य याद आ गया. इन दोनों घटनाओं में एक ही संबंध था वह था मानस.
मेरे पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था मैंने अपनी निगाहें चौकस रखनी शुरू कर दी और वक्त का इंतजार कर रही थी. मैंने घर से बाहर जाना लगभग बंद कर दिया. मैं घर से तभी बाहर निकलती जब मानस या छाया में से कोई एक घर के बाहर होता. मानस कभी-कभी छाया को बाहर ले जाना चाहता पर मैं किसी ना किसी बहाने उसे टाल देती.
दिन बीतते जा रहे थे और मेरा सब्र अब जवाब दे रहा था. बाहर न निकल पाने के कारण मैं भी अब तनाव में रहने लगी थी. मेरी शर्मा जी से भी मुलाक़ात नहीं हो पा रही थी. पर अपनी बेटी को इन गलत कार्यों से बचाने के लिए और इन दोनों के बीच बन रहे इस नए रिश्ते को रोकने के लिए मेरी निगरानी जरूरी थी..
एक ही छत के नीचे जवान लड़की और लड़का दिया और फूस की तरह होते हैं.
छाया अब २१ वर्ष की हो चुकी थी एवं मानस लगभग २5 वर्ष का. इनके बीच में कामुकता का जन्म लेना यह साबित कर रहा था की इन दोनों ने अपने बीच भाई बहन के रिश्ते को अभी तक स्वीकार नहीं किया था.
सतर्क छाया
[मैं छाया]
मां के द्वारा मेरे गालों से मानस का वीर्य पोछना मुझे बहुत शर्मनाक लगा. मुझे यह डर भी लगा कि कहीं मां ने उसे पहचान लिया तो? अभी तक मैं उनकी रानी बिटिया थी उनके लिए मेरा यह रूप बिल्कुल अचंभा होता. मैंने मानस को भी इसकी जानकारी दे दी. वह भी काफी चिंतित हो गए थे अब हम सतर्क रहने लगे , पर कितने दिन ? हमें एक दूसरे की आदत पड़ गई थी. राजकुमारी बिना राजकुमार के एक दिन भी नहीं रह सकती थी. हमारी रासलीला में रुकावट हमें बर्दाश्त नहीं थी.
मैंने भी जैसे अपनी मां की आंखों में धूल झोंकने का बीड़ा उठा लिया था. अब इस काम में मुझे और मजा आने लगा.
कामवासना पर लगी रोक उसमे और उत्तेजना पैदा कर देती है.
एक बार हम ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ कर फिल्म देख रहे थे. ठंड का समय था मैं जाकर रजाई ले आई. मैंने भी अपने पैर रजाई में डाल दिए. हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे माया जी किचन से हम दोनों को देख रही थी. रजाई लाने से बाद मैंने बाथरूम गयी और अपनी पेंटी उतार कर बाथरूम में फेक आई. सोफे पर बैठते समय मैंने मानस का हाथ पकड़ा और उसे सोफे पर रखा और अपनी स्कर्ट ऊपर करके उनकी हथेली पर बैठ गई. उनकी उंगलियां अब मेरी राजकुमारी के संपर्क में थी. मैं मानस से सामान्य रूप से बात कर रही थी तथा बीच-बीच में मां को आवाज भी लगा रही थी. मेरी आवाज पर मां बार-बार कुछ न कुछ जवाब देती हमारे संवादों के बीच में शक की गुंजाइश खत्म हो गई थी.
मेरी राजकुमारी मानस की उंगलियों से लगातार बातें कर रही थी. मानस की उंगलियां मेरी राजकुमारी के होंठों पर घूमतीं कभी राजकुमारी के मुख पर दस्तक देती. उनकी उंगलियां मेरे रस से सराबोर हो गई थी. उंगलियों से बहता हुआ प्रेम रस मेरी जांघों यहां तक कि मेरी दासी को भी गीला कर गया था. उनका हाथ अब मुझे बहुत चिपचिपा लग रहा था मेरी उत्तेजना अब चरम पर पहुंच गई थी. मानस ने भी जैसे मुझे सताने की ठान ली थी. जब भी मां मुझसे कुछ पूछती वह अपनी उंगलियों का कंपन बढ़ा देते. कम्पन से मेरी आवाज लहराने लगती. मां किचन से बोलती
“ क्या हुआ ऐसे क्यों बोल रही है ?”
मेरे पास कोई उत्तर नहीं होता. कुछ ही देर में राजकुमारी ने अपना प्रेम रस उगल दिया. मानस ने अपने हाँथ साफ किये और हम दोनों खाना खाने बैठ गए.
एकांत पाने के लिए मैं और मानस अपनी सोसाइटी की छत पर रासलीला करने लगे. हम दोनों छत पर ही एक दूसरे से मिलते और अपनी काम पिपासा को शांत करते. लिफ्ट भी हमारा एक पसंदीदा स्थल था। हमेशा एक बात का ही दुख रहता था कि हमें अपना कार्य बड़ी शीघ्रता से करना पड़ता.
“जल्दबाजी में किया हुआ सेक्स कभी-कभी तो अच्छा लगता है पर यह हमेशा उतना आनंददायक नहीं रहता”
हम कुछ ही दिनों में अपने मिलन के लिए उचित समय का इंतज़ार करने लगे.
 
रंगे हाँथ
[मैं माया]
मानस और छाया पर निगरानी रखते रखते मैं भी अब थक चुकी थी. पिछले १५ दिनों से हम सभी एक दूसरे को शक की निगाहों से देखते. मैंने अपने मन में इन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने की सोची. इसके लिए एक उपयुक्त मौके की तलाश थी.
एक दिन मैंने जानबूझकर यह बताया कि बुधवार शाम को मुझे सोसाइटी की एक महिला के साथ उसकी बेटी के लिए शादी के कपड़े खरीदने जाना है और इस कार्य में चार-पांच घंटे का वक्त लग सकता है. मैंने मानस से कहा...
“ मानस तुम अपनी चाबी जरूर लिए जाना और वापस आते समय छाया को भी लेते आना।“
मेरी बातें सुनकर उन दोनों के चेहरे पर चमक आ गई थी. पर उन्होंने इसे व्यक्त नहीं होने दिया. बुधवार को छाया अपने कॉलेज और मानस ऑफिस जाने की तैयारी करने लगा. कुछ ही देर में दोनों निकल गए.
घर का मुख्य दरवाजा अंदर से भी बंद किया जा सकता था. जिसे बाहर से चाभी से खोला जा सकता था. शाम होते ही मैं उन दोनों के घर आने का इंतजार करने लगी. लगभग पांच बजे घर के मुख्य दरवाजे पर चाबी लगाये जाने की आवाज हुई. निश्चय ही मानस घर आ चुका था और चाबी से दरवाजा खोल रहा था. उसके साथ छाया थी या नहीं यह तो मुझे नहीं पता पर मुझे अब छिप जाना था. मैं भागकर अपने बाथरूम में गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
मेरे बाथरूम की खिड़की और मानस के बाथरूम की खिड़की अगल-बगल थी. इन खिड़कियों से बाथरूम में देखा तो नहीं जा सकता था पर ध्यान से सुनने पर वहां की आवाज सुनाई देती थी. मुझे सिर्फ एक बात का डर था कहीं गलती से छाया मेरे कमरे में ना आ जाए और मुझे बाथरूम में देख ले. यदि वह मेरे कमरे में आ जाती तो उन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने का मौका छूट जाता. मैं सांसे रोक कर इंतजार करने लगी. अचानक मानस के बाथरूम से मानस की आवाज आई
“छाया यहीं पर आ जा”
“ नहीं मेरे कपड़े बगल वाले रूम में है. पहले कपड़े तो ले आऊँ”
“ अरे अभी कपड़ों की कहां जरूरत है कपड़े तो बाद में पहनने हैं”
अचानक झरना चलने की आवाज आई और छाया ने कहा
‘मेरे कपड़े भींग जाएंगे पहले उन्हें उतार तो लेने दो”
फिर उन दोनों की हंसी ठिठोली और चुंबनो की आवाज आने लगी मुझे बड़ा अजीब लग रहा था कि मैं अपनी बेटी को इस तरह की रासलीला करते हुए सुन रही थी. पर उन दोनों को रंगे हाथ पकड़ना जरूरी था. मैंने कुछ देर और इंतजार किया उनके हंसी मजाक चालू थी. मानस कभी-कभी राजकुमारी और राजकुमार का नाम ले रहा था मुझे नहीं पता वह किनकी बातें कर रहे थे पर इतना विश्वास जरूर हो चलाता कि वह दोनों रासलीला में मगन थे. कुछ देर बाद झरने की आवाज बंद हुई. मानस की आवाज सुनाई थी
“आज पूरे बीस दिन हो गए. आज अपनी हसरत मिटा ले .....
उन दोनों की आवाज आना बंद हो गई. मैं अब हॉल में आ चुकी थी . मैंने देखा कि मानस के कमरे का दरवाजा खुला हुआ है. वह दोनों शायद बिस्तर पर आ चुके थे. इन दोनों की हल्की हल्की आवाजें आ रही थी और बीच-बीच में चुंबनों की भी आवाज आ रही थी. मैंने कुछ देर और इंतजार किया और एक ही झटके में दरवाजा खोल दिया.
मानस बिस्तर पर लेटा हुआ था वह पूरी तरह नग्न था मेरी बेटी छाया उसकी जांघों पर बैठी हुई थी. छाया का चेहरा मानस की तरफ था. वह भी पूर्णतया नंगी थी. मुझे देखते ही मानस घबरा गया. छाया ने भी पलट कर मुझे देखा और मानस की जांघों से उतर गई. उन दोनों के सारे कपड़े बिस्तर से नीचे थे. बिस्तर पर उन दोनों के अलावा दो तकिए पड़े थे. दोनों ने एक एक तकिया अपने गुप्तांगों पर रखा. पर सीमा के तने हुए स्तन अभी भी खुले थे. उसने अपने दोनों हाथों से उसे छुपाने की नाकाम कोशिश की. मैंने भी इस प्रेमी युगल की जो तस्वीर देखी यह मैंने जीवन में कल्पना भी नहीं की थी. दोनों अत्यंत खूबसूरत थे भगवान ने इन दोनों की काया को बड़ी फुर्सत से गढ़ा था. वो साक्षात् कामदेव और रति के अवतार लग रहे थे. छाया एक अप्सरा की तरह लग रही थी उसके शरीर का नूर मंत्रमुग्ध करने वाला था. मेरा ध्यान दूसरी तरफ चला गया एक बार के लिए मेरा क्रोध जाने कहां गायब हो गया था. मैं इस पल को कुछ देर तक यूँ ही निहारती रही. दोनों अपनी गर्दन नीचे झुकाए बैठे थे. मैं वापस अपनी कल्पना से हकीकत में आइ और डांटते हुए बोली
“तुम दोनों हाल में तुरंत आओ.”
यह कहकर मैं हॉल में आ गइ कुछ ही देर में दोनों हॉल में मेरे सामने सर झुकाए खड़े थे.

समाज से बगावत
[मैं माया]
मैंने छाया से पूछा
“तुम्हारा मानस भैया के साथ यह सब कब से चल रहा है.”
“मां मानस मेरे भैया नहीं है.”
“तो फिर क्या हैं ?”
“यह मुझे नहीं पता परंतु मेरे भाई तो कतई नहीं”
“मानस क्या तुम भी यही सोचते हो ?”
“ हां बिल्कुल, छाया मेरी बहन तो नहीं है. और आप मेरे लिए माया जी थी और माया जी ही रहेंगी.”
“ इसका मतलब हम मां- बेटी तुम्हारे कोई नहीं लगते?”
“ यह मुझे नहीं पता पर मेरा संबंध अभी सिर्फ छाया से है. मैं उससे प्रेम करता हूं.”
मानस द्वारा बोली गई यह बात मुझे निरुत्तर कर गइ कुछ देर सोचने के बाद मैंने कहा गांव में सब लोग यही जानते हैं कि तुम और छाया भाई बहन हो.
“जब हमारी मां एक नहीं हमारे पिता एक नहीं तो हम भाई-बहन कैसे होते हैं?”
“आप मेरे पिताजी के साथ आयी थीं इसका मतलब यह नहीं कि आप मेरी मां है. आप छाया की मां है और छाया मेरी प्रेमिका मुझे इतना ही पता है”
“पर हम गांव वालों को क्या बताएंगे यदि मैं तुम्हारे प्रेम संबंधों को स्वीकार भी कर लूं फिर भी तब भी जब हम गांव जाएंगे तो हमारे पास क्या उत्तर होगा? तुम पर भी कलंक लगेगा.”
“ मुझे गांव वालों की चिंता नहीं मैं अब वयस्क हो चुका मैं छाया से प्रेम करता हूं और मैं उससे ही शादी करना चाहता हूं. वह मेरी बहन नहीं है यह बात मैं पहले ही बता चुका हूं मुझे सिर्फ आपकी इजाजत की आवश्यकता है बाकी मुझे समाज से कोई लेना देना नहीं “
मानस की यह बाते सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे वह समाज से बगावत करने का इच्छुक है. मैं उसकी बात एक बार के लिए मान भी लूं तो क्या हम आज के बाद कभी गांव वालों से या मानस के रिश्तेदारों से या अपने बचे खुचे रिश्तेदारों से कभी नहीं मिलेंगे? यदि हम उनसे मिलते हैं तो छाया और मानस के बीच बने इस नए रिश्ते को कैसे बताएंगे? उनकी निगाह में तो यह दोनों अभी भी भाई बहन जैसे ही हैं. यह कौन जानता था कि यह दोनों आपस में एक दूसरे को भाई-बहन नहीं मानते और एक दूसरे से प्रेम करने लगे हैं. मेरे लिए विषम स्थिति थी. मैं समझ नहीं पा रही थी कि किस रास्ते से जाऊं.
मैंने उन दोनों को अपने अपने कमरे में जाने के लिए कहा और खुद इन सब घटनाओं के बारे में सोचने लगी. छाया मेरी बेटी के लिए मानस से अच्छा लड़का नहीं मिल सकता था. मानस छाया का बहुत ख्याल रखता था. मानस को अपने दामाद के रूप में सोच कर मेरे दिमाग में भी समाज से बगावत करने की इच्छा ने जगह बनाना शुरू कर दिया. मुझे बार-बार यही लगा यह समाज ने हमें क्या दिया है जो हमें इस कार्य के लिए रोकेगा. मैंने खुद भी मानस के पिता से कभी भी शारीरिक संबंध नहीं बनाया. हमारी शादी एक समझौता मात्र थी. इस प्रकार मैं किसी भी तरह से उनकी पत्नी ना हुई थी. हम दोनों सिर्फ नाम के पति पत्नी थे. धीरे-धीरे मेरा मन भी मानस और छाया के इस नए रिश्ते रिश्ते को स्वीकार करने लगा था.
कभी-कभी मुझे लगता था की लोग इस रिश्ते में मेरा और मेरी बेटी का स्वार्थ देखेंगे और हमें लालची समझेंगे. यही बात मुझे कभी-कभी खटकती कि समाज के सभी लोग यही बात कहेंगे कि इन मां बेटी ने मानस को अपने कब्जे में कर लिया. बिना भाई बहन के रिश्ते की परवाह किए मां ने अपनी बेटी को मानस पर डोरे डालना सिखाया होगा और अपनी बेटी के इस्तेमाल से अपना भविष्य सुरक्षित कर लिया होगा.
इस बात को सोचते ही मेरा विचार बदल जाता मैं यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती थी कि मैं और मेरी बेटी जीवन भर इस कलंक का सामना करें. हम लोग गरीब जरूरत थे पर अपने सम्मान के साथ कभी समझौता नहीं किया. छाया को एक प्यार करने वाला पति मिलता मुझे एक अच्छा दामाद यही मेरे लिए एक उपलब्धि होती.
आज तक मेरे पूर्व पति के अलावा किसी ने मेरे शरीर को हाथ भी नहीं लगाया था. मानव के पिता से विवाह करते समय यह बात सर्वविदित थी कि यह विवाह पति-पत्नी के हिसाब से नहीं किया गया था अपितु दो जरूरतमंद लोगों को एक साथ एक ही छत के नीचे लाया गया था ताकि दोनों का परिवार संभल जाए. इसी उधेड़बुन में अंततः मैंने छाया और मानस के इस नए संबंध को पूरे मन से स्वीकार कर लिया. मैंने समाज से उठने वाली आवाजों को अपने मन में कई बातें सोच कर दबा दिया.
मानव मन परिस्थितियों को अपने मनमुताबिक सोचते हुए उसका हल अपने पक्ष में ही निकालता है.
शाम को मैंने छाया को अपने पास बुलाया और पूछा...
“छाया तुम दोनों के बीच में कब से चल रहा है?”
“जब से मैं अठारह वर्ष की हुई थी“
“इसका मतलब क्या तुम्हारा कौमार्य सुरक्षित नहीं है”
“नहीं, मैं अभी भी एक अक्षत यौवना हूं.”
“ पर तुम तो मानस के साथ नग्न अवस्था में थी”
हाँ मैं जरूर नग्न थी और अक्सर हम इसी तरह साथ में होते हैं. हम दोनों ने एक दूसरे से वचन लिया है कि जब मेरा विवाह नहीं हो जाता मैं अपना कौमार्य सुरक्षित रखूंगी. हम दोनों सिर्फ एक दूसरे के साथ वक्त गुजारते हैं तथा जिस तरह बाकी लडके- लड़कियां हस्तमैथुन करते हैं उस तरह हम दोनों भी करते हैं फर्क सिर्फ इतना है कि इस कार्य में हम दोनों एक दूसरे का साथ देते हैं.”
छाया द्वारा इतना बेबाक उत्तर सुनकर मैं स्वयं निरुत्तर हो गइ. मैं क्या बोलूं मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था मैंने मानस को भी बुला लिया. मैंने उसकी तरफ देखा और पूछा
“तुम्हें भी कुछ कहना है”
“आंटी में छाया से बहुत प्यार करता हूं. हमने आज तक जो भी किया है एक दूसरे को खुश करने के लिए किया है. जब तक छाया का विवाह नहीं हो जाता उसका कौमार्य सुरक्षित रहेगा यह मैं आपको वचन देता हूं. मैं छाया से शादी करने के लिए पूरी तरह इच्छुक हूं. बस मैं उसके कॉलेज की पढ़ाई पूरा होने का इंतजार कर रहा था. इसके बाद हम दोनों विवाह कर लेंगे.”
दोनों की बातें सुनकर उनके रिश्ते को स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था. दोनों युवा पूरी तरह साथ रहने का मन बना चुके थे. उन्हें समाज का बिल्कुल डर नहीं था. मैंने भी अपनी पुत्री की खुशी देखते हुए उनके इस नए रिश्ते को स्वीकार कर लिया.
अब छाया मानस की प्रेयसी थी. मानस ने छाया का कौमार्य सुरक्षित रखने का जो वचन दिया था उससे मेरी सारी चिंताएं खत्म हो गई थी. यदि किसी वजह से यह शादी नहीं भी हो पाती तो भी छाया का कौमार्य उसके साथ था.

मैंने उन दोनों को आशीर्वाद दिया और मानस से कहा आज से छाया तुम्हारी प्रेयसी नहीं मंगेतर है. तुम जब चाहे इससे मिल सकते हो. अपने वचन का पालन करते हुए तुम दोनों एक दूसरे को खुश रखो यही मेरी कामना है. मानस और छाया ने मेरे पैर छुए. मानस ने कहा
“थैंक यु माया आंटी” मैं मुस्करा दीं. “ आंटी ” शब्द मुझे अच्छा लगा था. मानस के मेरे भी एक रिश्ता जुड़ रहा था.

मैंने छाया को बताया की हम नए रिश्ते की नयी शुरुवात नवरात्रि की बाद करेंगे. वो खुश थी.
 
छाया ( भाग -5)

छाया प्रेयसी से मंगेतर तक.
नज़रों के नीचे
समय तेजी से बीत रहा था. मैं और छाया एक ही छत के नीचे प्रेमी प्रेमिका का खेल खेल रहे थे. अपनी मां की उपस्थिति में भी छाया इतने कामुक और बिंदास तरीके से रहती थी जैसे उसे किसी बात का डर ही ना हो. वह अपनी मां की नजर बचाकर मेरे पास आती मुझे उत्तेजित करती और हट जाती. कई बार तो उसने अपनी माया जी की उपस्थिति में ही उनकी पीठ पीछे मेरे राजकुमार को सहला दिया था.
एक बार खाना खाते समय अपने पैरों को मेरे पैरों से रगड़ रही थी. मेरा राजकुमार उत्तेजित हो रहा था. कुछ देर बाद उसके हाँथ से एक चम्मच गिरी. वह टेबल के नीचे झुकी और मेरे राजकुमार को मेरे पायजामा से बाहर कर दिया और चम्मच उठाकर उपर आ गयी. कुछ ही देर में खाना खाते- खाते उसने अपने पैरों से मेरे राजकुमार को छूना शुरु कर दिया. बड़ा अद्भुत आनंद था माया जी बगल में बैठी थी. हम सब खाना खा रहे थे, और नीचे छाया के पैर रासलीला कर रहे थे.
खाना खाते खाते मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई. खाना खत्म करने के बाद जैसे ही माया जी बर्तन साफ करने किचन की ओर गयीं छाया मेरे कमरे में आई और अगले 2 मिनटों में ही मुझे स्खलित कर मेरा सारा वीर्य अपने हाथ से अपने स्तनों पर लगा लिया. मुझे इस बात से बहुत खुशी मिलती थी यह उसे पता था.
कभी-कभी वह मेरी गोद में आकर बैठ जाया करती. वह भी एक अलग तरह का आनंद होता. एक बार हम सब सोफे पर बैठकर फिल्म देख रहे थे. ठण्ड की वजह से हमने अपने ऊपर रजाई डाल रखी थी. नायिका की सुहागरात देखकर छाया उत्तेजित हो गई उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी पैंटी में डाल दिया. मैं उसकी मंशा समझ चुका था. बगल में माया जी बैठी थी फिर भी मैंने हिम्मत करके उसके राजकुमारी को सहलाया. कुछ ही देर में उसकी राजकुमारी कांपने लगी उसने मेरे हाथ को अपनी दोनों जांघों से दबा दिया. राजकुमारी के कंपन यह बता रहे थे कि वह स्खलित हो रही थी.
उसने पिछले कुछ महीनों में कई प्रकार की परिस्थितियां बनाकर सेक्स को रोमांचक बना दिया था. कभी कभी वह स्कर्ट के नीचे पैंटी नहीं पहनती और मुझे इस बात का एहसास भी करा देती. हम दोनों दिन भर एक दुसरे से माया जी उपस्थिति में ही छेड़खानी करते. एक बार मैंने उसकी जांघो और राजकुमारी से खेलते हुए पेन से एक बिल्ली की आकृति बना दी. राजकुमारी का मुख बिल्ली के मुख की जगह आ गया था. वह आईने में देखकर बहुत खुस हो गयी थी.

एक दिन छाया ने मुझसे पूछा
“आप मम्मी से शादी की बात कब करेंगे?”
“ तुम्हारे कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद.”
“कोई हमें भाई बहन तो नहीं मानेगा न?”
“तुम किसी भी तरीके से मेरी बहन नहीं हो . मेरे पापा और तुम्हारी मां की मजबूरियों की वजह से हम सब एक ही छत के नीचे आ गए. मैं खुद नहीं समझ पा रहा हूं कि हम दोनों के एक होने में क्या दिक्कत आएगी. हम भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे विवाह में आने वाली अड़चनों को दूर करें.”
डर तो मुझे भी था पर मैं उसे समझा रहा था.

माया जी के नए साथी.
हमारी सोसाइटी में रहने वाले शर्मा जी एक प्राइवेट बैंक में मैनेजर थे. वह बहुत ही मिलनसार थे. जब भी वह देखते मुस्कुरा देते कुछ महीने पहले एक दिन उनकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. लिफ्ट में जाते समय उन्होंने मुझसे कहा ...
“मानस क्या आप मेरी एक मदद करोगे? मेरे लिए कुछ दवाएं ला दो”
उनके चेहरे से पसीना निकल रहा था. मैं उन्हें उनके फ्लैट में जो ठीक हमारे ऊपर था छोड़कर दवा लेने चला गया. लौटकर मैं देखता हूं कि वह अपने बिस्तर पर बेसुध पड़े हुए थे. मैं घबरा गया मैं नीचे जा कर माया आंटी को बुला लाया. माया आंटी को उनके पास छोड़कर मैं डॉक्टर को फोन करने लगा. माया आंटी ने उनके चेहरे पर पानी के छींटे मारे थोड़ी देर में उन्होंने अपनी आंखें खोली वह माया आंटी को अपने पास देख कर आश्चर्यचकित थे. माया आंटी उनके सर को हल्के हल्के दबा रहीं थीं. कुछ ही देर में पास में रहने वाले डॉक्टर वहां आ गए और उन्होंने शर्मा जी का चेकअप किया. उन्होंने माया आंटी की तरफ देखते हुए बोला ..
“आपके पति बिल्कुल ठीक-ठाक है. लगता है इनका ब्लड प्रेशर ज्यादा बढ़ गया था . चिंता की कोई विशेष बात नहीं है.”
फिर वह शर्मा की की तरफ मुखातिब हुआ...
“आप घर पर आराम करिए और तेल मसाला वाला खाना मत खाइए. कुछ ही दिनों में आपका ब्लड प्रेशर नार्मल हो जाएगा” मैं एक बार फिर डॉक्टर की बताई दवा लेने गया तब तक माया आंटी वही बैठी थी. वहां से आने के बाद माया आंटी खाना बनाने चली गई और मैं शर्मा अंकल का ध्यान रख रहा था. माया आंटी ने अगले तीन-चार दिनों तक शर्मा अंकल का खूब ख्याल रखा और उन दोनों में दोस्ती हो गई. हम और छाया कभी-कभी यह बात करते कि माया आंटी ने अपने जीवन में कितने कष्ट सहे हैं. लगभग सत्ताईस वर्ष की अवस्था में उनके पति का देहांत हो गया था. तब से वह अकेली ही थीं. मेरे पापा के साथ आकर उन्होंने अपने और अपनी बेटी छाया के लिए एक छत तलाश ली थी पर शारीरिक सुख की बात असंभव थी. तीन-चार दिन शर्मा अंकल की सेवा करने के बाद माया आंटी की उनसे दोस्ती हो गई थी.

माया जी का शक
छाया पर इक्कीसवां साल लग चुका था. मैंने और छाया ने पिछले कुछ महीनों में एक दूसरे के साथ इतनी कुछ किया था पर माया जी को इसकी भनक न लगी हो यह बड़ा आश्चर्य लगता था. हमने घर के हर कोने में अपनी कामुकता को अंजाम दिया था. मुझे तो लगता है कि यदि किसी फॉरेंसिक एक्सपर्ट को घर की जांच करने को दे दी जाए तो उसे हर जगह मेरे या छाया के प्रेम रस के सबूत मिल जाएंगे.
हमने घर की लगभग हर जगह पर अलग-अलग प्रकार से अपनी कामुकता को जिया था. घर का सोफा, डाइनिंग टेबल, किचन टॉप, बालकनी, बाथरूम आदि मेरे और छाया के प्रेम के गवाह थे.
माया जी ने हमारे कपड़ों पर भी उसके दाग जरूर देखे होंगे पर व हमेशा शांत रहती थी. मुझे नहीं पता कि उनको इसकी भनक लग चुकी थी या नहीं पर उनका व्यवहार सामान्य रहता था .
परंतु एक दिन मैं और छाया अपनी प्रेम लीला समाप्त करके उठे ही थे और अपने वस्त्र पहन रहे थे तभी माया जी के आने की आहट हुई वो बाज़ार से वापस जल्दी आ गयीं थी. इस जल्दबाजी में छाया अपने गालों पर लगा मेरा वीर्य पोछना भूल गई. माया जी की निगाहों ने उसके गाल पर लगा सफेद द्रव्य देख लिया उन्होंने अपनी उंगलियों से उसे पोछते हुए बोला यह क्या लगा रखा है. सीमा घबरा सी गई वह कुछ बोल नहीं पाइ. उसने अपने हाथों से अपना गाल पोछा और बोला “कुछ लग गया होगा”
माया जी ने चलते चलते अपना हाथ अपनी साड़ी के पल्लू में पोछा और अपनी उंगलियों को अपनी नाक के पास ले गयीं जैसे वह उसे सूंघ कर पता करना चाहती हो की वह क्या था.
[ मैं माया ]
अपनी उंगलियों को अपनी नाक के पास ले जाते ही मुझे अपनी उंगलियों में लगे चिपचिपे पदार्थ पहचानने में कोई वक्त नहीं लगा मैं समझ गई कि मेरा शक सही था. छाया और मानस के बीच बढ़ती हुई नजदीकियां इतनी जल्दी ऐसा रूप ले लेगी यह मैंने नहीं सोचा था. इन दोनों का साथ में हंसना मुस्कुराना एक दूसरे के साथ घूमना और कई बार देर रात तक वापस लौटना हमेशा से शक पैदा करता था पर मानस को देखकर ऐसा लगता नहीं था कि वह छाया को इस कार्य के लिए मना लेगा.
मैंने छाया के कपड़ों पर अलग तरह के दाग देखे थे पर मैं यह यकीन नहीं कर सकती थी कि वह अपने कपड़ों पर किसी पुरुष का वीर्य लगाए घूम रही होगी. छाया जब भी मानव के कमरे से निकलती थी उसके कपड़े की सलवटे यह बताती थी जैसे किसी ने उसके स्तनों को अपने दोनों हाथों से खूब मसला हो. आज यह देखने के बाद कि यह वीर्य मानस का है मैं सच में चिंतित थी.
मुझे अब छाया पर निगाह रखना आवश्यक हो गया था. मैंने मन ही छाया को रंगे हाथ पकड़ने का निश्चय कर लिया. छाया भी शायद अब सतर्क हो गई थी. मैंने तीन चार दिनों तक उस पर पैनी निगाह रखी पर उसने मुझे कोई मौका नहीं दिया. कई बार मुझे लगता जैसे मैंने इन दोनों पर नाहक ही शक किया हो. मानस एक निहायती शरीफ और जिम्मेदार लड़का था उसने छाया की बहुत मदद की थी. आज उसकी बदौलत ही छाया ने इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया था और वह अपनी पढ़ाई अच्छे से कर रही थी. वह छाया को इन गलत कामों के लिए प्रेरित करेगा ऐसा यकीन करना मुश्किल था.
परंतु ये छोटी छोटी घटनाएं मुझे हमेशा शक में डालती थी. छाया के गाल पर वह चिपचिपा पदार्थ देखकर मुझे आज से लगभग 3 वर्ष पहले मानस के गाल पर लगा द्रव्य याद आ गया. इन दोनों घटनाओं में एक ही संबंध था वह था मानस.
मेरे पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था मैंने अपनी निगाहें चौकस रखनी शुरू कर दी और वक्त का इंतजार कर रही थी. मैंने घर से बाहर जाना लगभग बंद कर दिया. मैं घर से तभी बाहर निकलती जब मानस या छाया में से कोई एक घर के बाहर होता. मानस कभी-कभी छाया को बाहर ले जाना चाहता पर मैं किसी ना किसी बहाने उसे टाल देती.
दिन बीतते जा रहे थे और मेरा सब्र अब जवाब दे रहा था. बाहर न निकल पाने के कारण मैं भी अब तनाव में रहने लगी थी. मेरी शर्मा जी से भी मुलाक़ात नहीं हो पा रही थी. पर अपनी बेटी को इन गलत कार्यों से बचाने के लिए और इन दोनों के बीच बन रहे इस नए रिश्ते को रोकने के लिए मेरी निगरानी जरूरी थी..
एक ही छत के नीचे जवान लड़की और लड़का दिया और फूस की तरह होते हैं.
छाया अब २१ वर्ष की हो चुकी थी एवं मानस लगभग २5 वर्ष का. इनके बीच में कामुकता का जन्म लेना यह साबित कर रहा था की इन दोनों ने अपने बीच भाई बहन के रिश्ते को अभी तक स्वीकार नहीं किया था.
 
सतर्क छाया
[मैं छाया]
मां के द्वारा मेरे गालों से मानस का वीर्य पोछना मुझे बहुत शर्मनाक लगा. मुझे यह डर भी लगा कि कहीं मां ने उसे पहचान लिया तो? अभी तक मैं उनकी रानी बिटिया थी उनके लिए मेरा यह रूप बिल्कुल अचंभा होता. मैंने मानस को भी इसकी जानकारी दे दी. वह भी काफी चिंतित हो गए थे अब हम सतर्क रहने लगे , पर कितने दिन ? हमें एक दूसरे की आदत पड़ गई थी. राजकुमारी बिना राजकुमार के एक दिन भी नहीं रह सकती थी. हमारी रासलीला में रुकावट हमें बर्दाश्त नहीं थी.
मैंने भी जैसे अपनी मां की आंखों में धूल झोंकने का बीड़ा उठा लिया था. अब इस काम में मुझे और मजा आने लगा.
कामवासना पर लगी रोक उसमे और उत्तेजना पैदा कर देती है.
एक बार हम ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ कर फिल्म देख रहे थे. ठंड का समय था मैं जाकर रजाई ले आई. मैंने भी अपने पैर रजाई में डाल दिए. हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे माया जी किचन से हम दोनों को देख रही थी. रजाई लाने से बाद मैंने बाथरूम गयी और अपनी पेंटी उतार कर बाथरूम में फेक आई. सोफे पर बैठते समय मैंने मानस का हाथ पकड़ा और उसे सोफे पर रखा और अपनी स्कर्ट ऊपर करके उनकी हथेली पर बैठ गई. उनकी उंगलियां अब मेरी राजकुमारी के संपर्क में थी. मैं मानस से सामान्य रूप से बात कर रही थी तथा बीच-बीच में मां को आवाज भी लगा रही थी. मेरी आवाज पर मां बार-बार कुछ न कुछ जवाब देती हमारे संवादों के बीच में शक की गुंजाइश खत्म हो गई थी.
मेरी राजकुमारी मानस की उंगलियों से लगातार बातें कर रही थी. मानस की उंगलियां मेरी राजकुमारी के होंठों पर घूमतीं कभी राजकुमारी के मुख पर दस्तक देती. उनकी उंगलियां मेरे रस से सराबोर हो गई थी. उंगलियों से बहता हुआ प्रेम रस मेरी जांघों यहां तक कि मेरी दासी को भी गीला कर गया था. उनका हाथ अब मुझे बहुत चिपचिपा लग रहा था मेरी उत्तेजना अब चरम पर पहुंच गई थी. मानस ने भी जैसे मुझे सताने की ठान ली थी. जब भी मां मुझसे कुछ पूछती वह अपनी उंगलियों का कंपन बढ़ा देते. कम्पन से मेरी आवाज लहराने लगती. मां किचन से बोलती
“ क्या हुआ ऐसे क्यों बोल रही है ?”
मेरे पास कोई उत्तर नहीं होता. कुछ ही देर में राजकुमारी ने अपना प्रेम रस उगल दिया. मानस ने अपने हाँथ साफ किये और हम दोनों खाना खाने बैठ गए.
एकांत पाने के लिए मैं और मानस अपनी सोसाइटी की छत पर रासलीला करने लगे. हम दोनों छत पर ही एक दूसरे से मिलते और अपनी काम पिपासा को शांत करते. लिफ्ट भी हमारा एक पसंदीदा स्थल था। हमेशा एक बात का ही दुख रहता था कि हमें अपना कार्य बड़ी शीघ्रता से करना पड़ता.
“जल्दबाजी में किया हुआ सेक्स कभी-कभी तो अच्छा लगता है पर यह हमेशा उतना आनंददायक नहीं रहता”
हम कुछ ही दिनों में अपने मिलन के लिए उचित समय का इंतज़ार करने लगे.

रंगे हाँथ
[मैं माया]
मानस और छाया पर निगरानी रखते रखते मैं भी अब थक चुकी थी. पिछले १५ दिनों से हम सभी एक दूसरे को शक की निगाहों से देखते. मैंने अपने मन में इन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने की सोची. इसके लिए एक उपयुक्त मौके की तलाश थी.
एक दिन मैंने जानबूझकर यह बताया कि बुधवार शाम को मुझे सोसाइटी की एक महिला के साथ उसकी बेटी के लिए शादी के कपड़े खरीदने जाना है और इस कार्य में चार-पांच घंटे का वक्त लग सकता है. मैंने मानस से कहा...
“ मानस तुम अपनी चाबी जरूर लिए जाना और वापस आते समय छाया को भी लेते आना।“
मेरी बातें सुनकर उन दोनों के चेहरे पर चमक आ गई थी. पर उन्होंने इसे व्यक्त नहीं होने दिया. बुधवार को छाया अपने कॉलेज और मानस ऑफिस जाने की तैयारी करने लगा. कुछ ही देर में दोनों निकल गए.
घर का मुख्य दरवाजा अंदर से भी बंद किया जा सकता था. जिसे बाहर से चाभी से खोला जा सकता था. शाम होते ही मैं उन दोनों के घर आने का इंतजार करने लगी. लगभग पांच बजे घर के मुख्य दरवाजे पर चाबी लगाये जाने की आवाज हुई. निश्चय ही मानस घर आ चुका था और चाबी से दरवाजा खोल रहा था. उसके साथ छाया थी या नहीं यह तो मुझे नहीं पता पर मुझे अब छिप जाना था. मैं भागकर अपने बाथरूम में गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
मेरे बाथरूम की खिड़की और मानस के बाथरूम की खिड़की अगल-बगल थी. इन खिड़कियों से बाथरूम में देखा तो नहीं जा सकता था पर ध्यान से सुनने पर वहां की आवाज सुनाई देती थी. मुझे सिर्फ एक बात का डर था कहीं गलती से छाया मेरे कमरे में ना आ जाए और मुझे बाथरूम में देख ले. यदि वह मेरे कमरे में आ जाती तो उन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने का मौका छूट जाता. मैं सांसे रोक कर इंतजार करने लगी. अचानक मानस के बाथरूम से मानस की आवाज आई
“छाया यहीं पर आ जा”
“ नहीं मेरे कपड़े बगल वाले रूम में है. पहले कपड़े तो ले आऊँ”
“ अरे अभी कपड़ों की कहां जरूरत है कपड़े तो बाद में पहनने हैं”
अचानक झरना चलने की आवाज आई और छाया ने कहा
‘मेरे कपड़े भींग जाएंगे पहले उन्हें उतार तो लेने दो”
फिर उन दोनों की हंसी ठिठोली और चुंबनो की आवाज आने लगी मुझे बड़ा अजीब लग रहा था कि मैं अपनी बेटी को इस तरह की रासलीला करते हुए सुन रही थी. पर उन दोनों को रंगे हाथ पकड़ना जरूरी था. मैंने कुछ देर और इंतजार किया उनके हंसी मजाक चालू थी. मानस कभी-कभी राजकुमारी और राजकुमार का नाम ले रहा था मुझे नहीं पता वह किनकी बातें कर रहे थे पर इतना विश्वास जरूर हो चलाता कि वह दोनों रासलीला में मगन थे. कुछ देर बाद झरने की आवाज बंद हुई. मानस की आवाज सुनाई थी
“आज पूरे बीस दिन हो गए. आज अपनी हसरत मिटा ले .....
उन दोनों की आवाज आना बंद हो गई. मैं अब हॉल में आ चुकी थी . मैंने देखा कि मानस के कमरे का दरवाजा खुला हुआ है. वह दोनों शायद बिस्तर पर आ चुके थे. इन दोनों की हल्की हल्की आवाजें आ रही थी और बीच-बीच में चुंबनों की भी आवाज आ रही थी. मैंने कुछ देर और इंतजार किया और एक ही झटके में दरवाजा खोल दिया.
मानस बिस्तर पर लेटा हुआ था वह पूरी तरह नग्न था मेरी बेटी छाया उसकी जांघों पर बैठी हुई थी. छाया का चेहरा मानस की तरफ था. वह भी पूर्णतया नंगी थी. मुझे देखते ही मानस घबरा गया. छाया ने भी पलट कर मुझे देखा और मानस की जांघों से उतर गई. उन दोनों के सारे कपड़े बिस्तर से नीचे थे. बिस्तर पर उन दोनों के अलावा दो तकिए पड़े थे. दोनों ने एक एक तकिया अपने गुप्तांगों पर रखा. पर सीमा के तने हुए स्तन अभी भी खुले थे. उसने अपने दोनों हाथों से उसे छुपाने की नाकाम कोशिश की. मैंने भी इस प्रेमी युगल की जो तस्वीर देखी यह मैंने जीवन में कल्पना भी नहीं की थी. दोनों अत्यंत खूबसूरत थे भगवान ने इन दोनों की काया को बड़ी फुर्सत से गढ़ा था. वो साक्षात् कामदेव और रति के अवतार लग रहे थे. छाया एक अप्सरा की तरह लग रही थी उसके शरीर का नूर मंत्रमुग्ध करने वाला था. मेरा ध्यान दूसरी तरफ चला गया एक बार के लिए मेरा क्रोध जाने कहां गायब हो गया था. मैं इस पल को कुछ देर तक यूँ ही निहारती रही. दोनों अपनी गर्दन नीचे झुकाए बैठे थे. मैं वापस अपनी कल्पना से हकीकत में आइ और डांटते हुए बोली
“तुम दोनों हाल में तुरंत आओ.”
यह कहकर मैं हॉल में आ गइ कुछ ही देर में दोनों हॉल में मेरे सामने सर झुकाए खड़े थे.

समाज से बगावत
[मैं माया]
मैंने छाया से पूछा
“तुम्हारा मानस भैया के साथ यह सब कब से चल रहा है.”
“मां मानस मेरे भैया नहीं है.”
“तो फिर क्या हैं ?”
“यह मुझे नहीं पता परंतु मेरे भाई तो कतई नहीं”
“मानस क्या तुम भी यही सोचते हो ?”
“ हां बिल्कुल, छाया मेरी बहन तो नहीं है. और आप मेरे लिए माया जी थी और माया जी ही रहेंगी.”
“ इसका मतलब हम मां- बेटी तुम्हारे कोई नहीं लगते?”
“ यह मुझे नहीं पता पर मेरा संबंध अभी सिर्फ छाया से है. मैं उससे प्रेम करता हूं.”
मानस द्वारा बोली गई यह बात मुझे निरुत्तर कर गइ कुछ देर सोचने के बाद मैंने कहा गांव में सब लोग यही जानते हैं कि तुम और छाया भाई बहन हो.
“जब हमारी मां एक नहीं हमारे पिता एक नहीं तो हम भाई-बहन कैसे होते हैं?”
“आप मेरे पिताजी के साथ आयी थीं इसका मतलब यह नहीं कि आप मेरी मां है. आप छाया की मां है और छाया मेरी प्रेमिका मुझे इतना ही पता है”
“पर हम गांव वालों को क्या बताएंगे यदि मैं तुम्हारे प्रेम संबंधों को स्वीकार भी कर लूं फिर भी तब भी जब हम गांव जाएंगे तो हमारे पास क्या उत्तर होगा? तुम पर भी कलंक लगेगा.”
“ मुझे गांव वालों की चिंता नहीं मैं अब वयस्क हो चुका मैं छाया से प्रेम करता हूं और मैं उससे ही शादी करना चाहता हूं. वह मेरी बहन नहीं है यह बात मैं पहले ही बता चुका हूं मुझे सिर्फ आपकी इजाजत की आवश्यकता है बाकी मुझे समाज से कोई लेना देना नहीं “
मानस की यह बाते सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे वह समाज से बगावत करने का इच्छुक है. मैं उसकी बात एक बार के लिए मान भी लूं तो क्या हम आज के बाद कभी गांव वालों से या मानस के रिश्तेदारों से या अपने बचे खुचे रिश्तेदारों से कभी नहीं मिलेंगे? यदि हम उनसे मिलते हैं तो छाया और मानस के बीच बने इस नए रिश्ते को कैसे बताएंगे? उनकी निगाह में तो यह दोनों अभी भी भाई बहन जैसे ही हैं. यह कौन जानता था कि यह दोनों आपस में एक दूसरे को भाई-बहन नहीं मानते और एक दूसरे से प्रेम करने लगे हैं. मेरे लिए विषम स्थिति थी. मैं समझ नहीं पा रही थी कि किस रास्ते से जाऊं.
मैंने उन दोनों को अपने अपने कमरे में जाने के लिए कहा और खुद इन सब घटनाओं के बारे में सोचने लगी. छाया मेरी बेटी के लिए मानस से अच्छा लड़का नहीं मिल सकता था. मानस छाया का बहुत ख्याल रखता था. मानस को अपने दामाद के रूप में सोच कर मेरे दिमाग में भी समाज से बगावत करने की इच्छा ने जगह बनाना शुरू कर दिया. मुझे बार-बार यही लगा यह समाज ने हमें क्या दिया है जो हमें इस कार्य के लिए रोकेगा. मैंने खुद भी मानस के पिता से कभी भी शारीरिक संबंध नहीं बनाया. हमारी शादी एक समझौता मात्र थी. इस प्रकार मैं किसी भी तरह से उनकी पत्नी ना हुई थी. हम दोनों सिर्फ नाम के पति पत्नी थे. धीरे-धीरे मेरा मन भी मानस और छाया के इस नए रिश्ते रिश्ते को स्वीकार करने लगा था.
कभी-कभी मुझे लगता था की लोग इस रिश्ते में मेरा और मेरी बेटी का स्वार्थ देखेंगे और हमें लालची समझेंगे. यही बात मुझे कभी-कभी खटकती कि समाज के सभी लोग यही बात कहेंगे कि इन मां बेटी ने मानस को अपने कब्जे में कर लिया. बिना भाई बहन के रिश्ते की परवाह किए मां ने अपनी बेटी को मानस पर डोरे डालना सिखाया होगा और अपनी बेटी के इस्तेमाल से अपना भविष्य सुरक्षित कर लिया होगा.
इस बात को सोचते ही मेरा विचार बदल जाता मैं यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती थी कि मैं और मेरी बेटी जीवन भर इस कलंक का सामना करें. हम लोग गरीब जरूरत थे पर अपने सम्मान के साथ कभी समझौता नहीं किया. छाया को एक प्यार करने वाला पति मिलता मुझे एक अच्छा दामाद यही मेरे लिए एक उपलब्धि होती.
आज तक मेरे पूर्व पति के अलावा किसी ने मेरे शरीर को हाथ भी नहीं लगाया था. मानव के पिता से विवाह करते समय यह बात सर्वविदित थी कि यह विवाह पति-पत्नी के हिसाब से नहीं किया गया था अपितु दो जरूरतमंद लोगों को एक साथ एक ही छत के नीचे लाया गया था ताकि दोनों का परिवार संभल जाए. इसी उधेड़बुन में अंततः मैंने छाया और मानस के इस नए संबंध को पूरे मन से स्वीकार कर लिया. मैंने समाज से उठने वाली आवाजों को अपने मन में कई बातें सोच कर दबा दिया.
मानव मन परिस्थितियों को अपने मनमुताबिक सोचते हुए उसका हल अपने पक्ष में ही निकालता है.
शाम को मैंने छाया को अपने पास बुलाया और पूछा...
“छाया तुम दोनों के बीच में कब से चल रहा है?”
“जब से मैं अठारह वर्ष की हुई थी“
“इसका मतलब क्या तुम्हारा कौमार्य सुरक्षित नहीं है”
“नहीं, मैं अभी भी एक अक्षत यौवना हूं.”
“ पर तुम तो मानस के साथ नग्न अवस्था में थी”
हाँ मैं जरूर नग्न थी और अक्सर हम इसी तरह साथ में होते हैं. हम दोनों ने एक दूसरे से वचन लिया है कि जब मेरा विवाह नहीं हो जाता मैं अपना कौमार्य सुरक्षित रखूंगी. हम दोनों सिर्फ एक दूसरे के साथ वक्त गुजारते हैं तथा जिस तरह बाकी लडके- लड़कियां हस्तमैथुन करते हैं उस तरह हम दोनों भी करते हैं फर्क सिर्फ इतना है कि इस कार्य में हम दोनों एक दूसरे का साथ देते हैं.”
छाया द्वारा इतना बेबाक उत्तर सुनकर मैं स्वयं निरुत्तर हो गइ. मैं क्या बोलूं मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था मैंने मानस को भी बुला लिया. मैंने उसकी तरफ देखा और पूछा
“तुम्हें भी कुछ कहना है”
“आंटी में छाया से बहुत प्यार करता हूं. हमने आज तक जो भी किया है एक दूसरे को खुश करने के लिए किया है. जब तक छाया का विवाह नहीं हो जाता उसका कौमार्य सुरक्षित रहेगा यह मैं आपको वचन देता हूं. मैं छाया से शादी करने के लिए पूरी तरह इच्छुक हूं. बस मैं उसके कॉलेज की पढ़ाई पूरा होने का इंतजार कर रहा था. इसके बाद हम दोनों विवाह कर लेंगे.”
दोनों की बातें सुनकर उनके रिश्ते को स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था. दोनों युवा पूरी तरह साथ रहने का मन बना चुके थे. उन्हें समाज का बिल्कुल डर नहीं था. मैंने भी अपनी पुत्री की खुशी देखते हुए उनके इस नए रिश्ते को स्वीकार कर लिया.
अब छाया मानस की प्रेयसी थी. मानस ने छाया का कौमार्य सुरक्षित रखने का जो वचन दिया था उससे मेरी सारी चिंताएं खत्म हो गई थी. यदि किसी वजह से यह शादी नहीं भी हो पाती तो भी छाया का कौमार्य उसके साथ था.

मैंने उन दोनों को आशीर्वाद दिया और मानस से कहा आज से छाया तुम्हारी प्रेयसी नहीं मंगेतर है. तुम जब चाहे इससे मिल सकते हो. अपने वचन का पालन करते हुए तुम दोनों एक दूसरे को खुश रखो यही मेरी कामना है. मानस और छाया ने मेरे पैर छुए. मानस ने कहा
“थैंक यु माया आंटी” मैं मुस्करा दीं. “ आंटी ” शब्द मुझे अच्छा लगा था. मानस के मेरे भी एक रिश्ता जुड़ रहा था.

मैंने छाया को बताया की हम नए रिश्ते की नयी शुरुवात नवरात्रि की बाद करेंगे. वो खुश थी.
 
भाग -6
रिश्तों में उतार चढ़ाव .
नया घर नया रिश्ता
बेंगलुरु में आने के बाद मैंने एक पॉश कॉलोनी में दो फ्लैट बुक कर दिए थे. यह दोनों फ्लैट एक दूसरे के ठीक सामने थे. हर फ्लैट में दो बैडरूम एक हॉल और किचन था दोनों फ्लैट के हाल की मुख्य दीवार कॉमन थी. मैंने बिल्डर से बात करके वहां पर एक बड़ा दरवाजा लगा दिया था. उस दरवाजे को खोल देने पर दोनों फ्लैट एक हो जाते थे. घर पूरी तरह से बन चुका था. अब सिर्फ घर के साजो सामान सजाने थे. हर फ्लैट के मास्टर बेडरूम की डिजाइन बहुत खूबसूरत थी. कमरा भी काफी बड़ा था साथ में लगा बाथरूम भी काफी बड़ा था. ड्रेसिंग के लिए अलग जगह थी. मास्टर बैडरूम के साथ लगी हुई बालकनी से बेंगलुरु शहर बहुत खूबसूरत दिखाई देता था यह बिल्डिंग कुल दस वाले की थी और हमारा फ्लैट दसवें माले पर था. मैंने दो फ्लैट एक साथ लेकर यह सोचा था कि एक में खुद रहूंगा और दूसरे को अपने किसी मित्र या दोस्त को किराए पर दे दूंगा या जरूरत पड़ने पर दोनों फ्लैट को जोड़कर अपने ही प्रयोग में रखूंगा.

अभी तक इस घर के बारे में मैंने माया आंटी और छाया को नहीं बताया था. घर की चाबियां मिल जाने के बाद मैं उन्हें अचानक यह खबर देकर खुश करना चाहता था.

अंततः एक दिन मैं छाया को लेकर इस नए फ्लैट में गया फ्लैट का दरवाजा खुलते हैं छाया अंदर आई उसने फ्लैट को बहुत बारीकी से देखा. “इतना सुंदर फ्लैट? बालकनी में जाकर वह चहकने लगी..

“किसका है यह फ्लैट?

मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके गालों पर

चुम्बन करते हुए बोला

“हमारा” वह बहुत खुश हो गई.

वह फिर से मास्टर बेडरूम में गई और बोली

“मैं इस रूम को अपने मन से सजाऊंगी”

मैंने उससे कहा

“जरूर”

वह आकर मुझसे लिपट गई. उसने मेरे होंठ चूसने शुरू कर दिये. वह एकांत का फायदा उठा लेना चाहती थी. कुछ ही देर में हम दोनों एक दूसरे को सहलाने लगे. उसने मेरे राजकुमार को बाहर निकाल लिया तथा उसे आगे पीछे करने लगी. मैं भी उत्तेजित हो गया और उसके दोनों नितंबों को छूने लगा. वह पेंटी नहीं पहनी थी. कभी कभी जब वो मेरे साथ अकेले

बाहर आती थी तो पैंटी नहीं पहनती थी. मुझे उसके नंगे नितंब छूने में बहुत मजा आ रहा था अब मेरी आदतों में नितंबों के साथ-साथ उसकी दासी को छूना अच्छा लगता था. जैसे ही मेरी उंगलियां उसकी दासी पर जाती वह मेरी तरफ तीखी नजरों से देखती थी. मुझे उसकी यह अदा बहुत अच्छी लगती थी. कुछ ही देर में उसकी राजकुमारी का रस मेरी उँगलियों पर महसूस होने लगता था. यही वक्त होता था जब राजकुमार और राजकुमारी मिलने के लिए व्याकुल होते थे. छाया मुझे बालकनी में लगे एक प्लेटफार्म के पास ले गइ. वह उस प्लेटफार्म पर झुक गई. उसकी राजकुमारीपीछे से मुझे दिखाई देने लगी मैंने तुरंत ही अपने राजकुमार को उसके राजकुमारी के मुख पर रख दिया और उसकी भग्नासा पर रगड़ बनाने लगा.

वह कुछ ज्यादा ही उत्तेजितथी थोड़े से घर्षण से राजकुमारी कापने लगी. हम दोनों के प्रेम रस से पर्याप्त गीलापन आ चुका था. मेरा लावा भी फूटने वाला था. उसने मेरा उतावलापन पहचान लिया था. अचानक वह उठी और मेरी तरफ मुड़ कर दोनों हाथों में मेरे राजकुमार

को ले लिया. राजकुमार ने अपना लावा उसके हाथों में ही उड़ेल दिया. वह हाथों में मेरे वीर्य को लेने के बाद मास्टर बेडरूम की तरफ आई और उसकी एक दीवार पर मेरे वीर्य से ही एक दिल का निशान बनाया और उसमें एक तीर बना दिया. मैंने उससे पूछा…

“यह क्या कर रही हो”

आज हम दोनों ने पहली बार इस घर में प्रवेश किया यह हमें हमेशा इसकी याद दिलाएगा” हम फ्लैट बंद करके बाहर

आ चुके थे.मैं छाया को लेकर एक बड़े फर्नीचर शोरूम में गया. छाया ने वहां अपनी पसंद से घर के कई सारे फर्नीचर खरीदें. पलंग पसंद करते समय मैंने उसकी चुटकी ली. मैंने उससे कहा..

“पलंग मजबूत लेना तुम्हारे साथ इसी पर उछल कूद होनी है”

वह हंसने लगी उसकी यह मुस्कुराहट मुझे बहुत अच्छी लगती थी. उसने मोटे और मुलायम गद्दे भी लिए. उसने मुझसे कहा..

“छू कर देखिए ना कितने मुलायम हैं.”

“तुम्हें गद्दे पर सोना है मुझे तुम पर. तुम से ज्यादा मुलायम तो नहीं है”

वो फिर हंसने लगी.

सुन्दर नवयौवना की हसीं अत्यंत मादक होती है.

कुछ ही देर में हमारी खरीदारी संपन्न हो गई. मैंने शॉपकीपर को अपने घर का पता दिया और दो दिनों बाद उसकी डिलीवरी सुनिश्चित कर ली. अब हम घर की तरफ वापस आ रहे थे. छाया की खुशी का ठिकाना नहीं था उसका यह नया घर मेरी मंगेतर बनने के उपलक्ष्य में एक उपहार जैसा लग रहा था. हालांकि यह घर मैंने पहले बनाया था पर छाया को यह घर देने या इस घर से रूबरू कराने का यह बेहतरीन मौका था. वह बहुत खुश थी. मैंने छाया से कहा था कि वह माया जी को इस बारे में कुछ भी ना बताएं. वह मान गई थी.

अगले दिन मैं माया आंटी को लेकर अपने दूसरे फ्लैट में गया. एक फ्लैट की सजावट उनकी बेटी छाया पहले ही कर चुकी थी दूसरा फ्लैट मैंने उनकी पसंद से सजाना चाहा. मैंने यह सोचा था कि दूसरा फ्लैट मैं शर्मा जी को दे दूंगा शर्मा जी के पास माया आंटी का आना जाना रहता ही है. उन्होंने मुझसे बार-बार कहा..

“बेटा छाया को ले आए होते तो अच्छा होता. वह अपनी पसंद से अपना घर सजा लेती.”

“आप सामान पसंद कर लीजिए हम लोग घर सजाने के बाद उसे ले आएंगे. आप तो उसकी पसंद नापसंद जानती है.”

हम फिर एक दूसरी फर्नीचर शॉप में गए और वहां से माया जी की पसंद के फर्नीचर खरीदें. माया जी भी घर देखकर बहुत खुश थी. उनको भी उस घर का बालकनी वाला एरिया बहुत पसंद आया था. अपनी बेटी के लिए पलंग पसंद करते समय उनके मन में जितने क्या ख्याल आये होंगे ये वही जानती होंगीं.

हम घर आ चुके थे. हमारे वर्तमान घर में सारा सामान कंपनी का दिया हुआ था. सिर्फ हमारे कपड़ों को छोड़कर इस घर में हमारा कुछ भी नहीं था. घर का राशन पानी ले जाने लायक स्थिति में नहीं था. उधर तीन-चार दिनों के अंदर ही मेरा नया फ्लैट सुसज्जित हो चुका था.

जब से हमने नए घर में जाने का फैसला किया था तब से माया आंटी थोड़ा चिंतित रहती थी. कहीं न कहीं उनके मन में कोई चिंता अवश्य थी. जिसे वह खुलकर नहीं बताती थी. हमारे प्रेम संबंधों की स्वीकार करने के बाद शर्मा जी से उनकी मुलाकात ज्यादा होती थी. जब इन मुलाकातों के दौरान वो घर से बाहर रहतीं तो मैं और छाया अपनी कामुकता को संतुष्ट कर बहुत खुश होते.

एक दिन तो छाया ने मुझसे कहा...

“अच्छा होता मम्मी शर्मा जी से शादी कर लेती”

शायद छाया जा जान गई थी की माया आंटी को शर्मा जी के साथ वक्त बिताने में अच्छा लगता था. एक दिन माया आंटी ने मुझसे कहा शर्मा जी कह रहे थे कि आप लोगों के जाने के बाद मैं फिर से अकेला हो जाऊंगा. मैं सारी परिस्थिति को पहले ही समझ चुका था. मैंने सिर्फ इतना कहा..

“वह अकेले नहीं रहेंगे आप खुश हो जाइए.” माया आंटी के चेहरे पर खुशी आ गई. मैं समझ चुका था कि शर्मा जी से उनके संबंध प्रगाढ़ हो चुके हैं और दोनों का एक साथ रहना ही उनके लिए अच्छा है.

माया आंटी खुश तो हो गयीं पर उन्हें

समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे होगा. हम अपने नए घर में जा रहे थे. वहां रहने वाले लोगों से अभी मेरा परिचय नहीं था परंतु वहां जाने के बाद उनसे परिचय अवश्य होता. मैंने माया आंटी से बात की मैंने उनसे कहा...

“आप शर्मा अंकल को कहिए कि वह भी हमारे साथ उसी सोसाइटी में चलें. माया आंटी शर्मा गई. आप दोनों का मिलना जुलना है और दोनों साथ में समय व्यतीत करते हैं इसमें कोई बुराई नहीं है. शर्मा जी वहां हमारे साथ में रहेंगे तो अच्छा ही रहेगा उनके लिए भी और हमारे लिए भी. मैंने अपने फ्लैट के सामने एक फ्लैट देखा है हम उसे भी किराए पर ले लेंगे.

मैंने माया आंटी से कहा..

“शर्मा जी से आप ही बात कर लीजिए हम नवरात्रि के बाद नए घर में चलेंगे”

आखिरकार हम अपने नए घर में पहुंच गए. पहले हम सब उस फ्लैट में गए जिसमें माया जी ने सजावट कराई थी.

उनका शयन कक्ष बहुत ही खूबसूरत लग रहा था. शयनकक्ष में पहुंचते ही उन्होंने छाया से कहा..

“बेटी मानस के कहने पर मैंने अपनी पसंद से तेरा कमरा सजाया है उम्मीद करती हूं तुझे पसंद आएगा”

अब यहां पर मुझे बोलना पड़ा..

“आंटी यह कमरा आपका है”

“पर छाया कहां रहेगी” मैं उन्हें दूसरे फ्लैट में ले गया. हॉल से जाते समय उन्होंने यह पहचान लिया की पिछली बार उन्होंने आधा घर ही देखा था. अब हम छाया के कमरे में थे. वह बहुत खुश हो गयीं. छाया ने भी अपना कमरा बहुत अच्छे से सजाया था. माया आंटी ने कहा बेटा इतना बड़ा घर. मैंने उनसे कहा..

“यह हम सब के लिए ही है. आप सब लोग अपना अपना सामान व्यवस्थित कर लें.” शर्मा अंकल भी घर के अंदर आ चुके थे.

मैंने माया आंटी से कहा..

“ हम सोसाइटी के लोगों को यही कहेंगे आप और शर्मा जी पति पत्नी है तथा छाया आपकी बेटी है. मैंने यह घर आप लोगों को किराए पर दिया हुआ है.”

माया आंटी को मेरी बात ठीक लग रही थी. वहां की सोसाइटी के लोग हमें जानते नहीं थे अतः इस नए रिश्ते के साथ वहां रहने में कोई बुराई नहीं थी. शर्मा जी का साथ रहने से हम दोनों के लिए अच्छा ही था.

शर्मा जी भी मान गए थे माया आंटी ने उन्हें हमारे घर की सारी परिस्थितियों से अवगत करा दिया था. वह जान गए थे कि मैं और छाया प्रेमी प्रेमिका है और माया आंटी ने उनका रिश्ता स्वीकार कर लिया है. उन्होंने माया आंटी को आश्वस्त किया था की वह जरूरत पड़ने पर हर स्थिति संभालने में उनकी मदद करेंगे और हमेशा उनके साथ रहेंगे.

उन दोनों के बीच में एक ऐसा संबंध बन गया था जो पति-पत्नी जैसा ही था बस विवाह नहीं हुआ था. मेरी और छाया की स्थिति भी कमोवेश ऐसी ही थी.

मैं और छाया अपना सामान अपने बेडरूम में लगाने लगे. हम दोनों यही बात कर रहे थे की क्या माया आंटी और शर्मा अंकल एक ही कमरे में रहेंगे या अलग अलग. यह एक ऐसा प्रश्न था जिसका उत्तर कुछ घंटे बाद ही मिलना था. थोड़ी देर बाद माया. आंटी की आवाज आई वह हमें चाय के लिए बुला रहीं थी.

हम हॉल में गए. छाया अपनी उत्सुकता नहीं रोक पाई और और यह देखने गई कि शर्मा अंकल ने अपना सामान कहां लगाया है. मास्टर बेडरूम के बाथरूम से आ रही शर्मा जी की आवाज ने सारे प्रश्नों का उत्तर दे दिया. हमने इस पर आगे कोई चर्चा नहीं की. हमें माया आंटी की खुशी ज्यादा ज्यादा प्यारी थी. शर्मा जी के साथ उनका रहना उनके जीवन का नया अध्याय था. लगभग अड़तीस वर्ष की उम्र में माया आंटी लिव इन रिलेशनशिप में रहने जा रहीं थी. माया आंटी एक समझदार महिला थी. उन्होंने अपने वाले फ्लैट में एक कमरे में छाया का कुछ सामान रख दिया था.

आखिरकार वह उनकी बेटी थी किसी भी आकस्मिक परिस्थिति में वह उस कमरे में जाकर रह सकती थी. हम लोगों ने यह निर्णय किया था की जरूरत पड़ने पर हम हॉल का दरवाजा बंद कर देंगे. शर्मा अंकल और माया आंटी यही कहेंगे कि मैंने अपने फ्लैट का वह हिस्सा उन लोगों को किराए पर दिया हुआ है. छाया के लिए अब दो कमरे बन चुके थे. माया आंटी वाले फ्लैट का कमरा उसका मायका बन गया था और मेरा बेडरूम उसकी भावी ससुराल.

जब वह मेरे कमरे में रहती मेरी मंगेतर बनकर रहती और जरूरत पड़ने पर वह अपने घर के अपने कमरे में भी रह सकती थी. घर पूरी तरह से व्यवस्थित हो गया था. अब हम इन नए संबंधों के साथ नए घर में खुश थे.

नियति ने हमारे नए घर में दो नए रिश्तों को जीने का पूरा मौक़ा दे दिया था. दोनों ही जोड़े प्यार के लिए तरस रहे थे और एकांत उन्हें प्रिय था.
 
माया आंटी और शर्मा जी.
{मैं माया}

मेरे मन में दिन पर दिन शर्मा जी के प्रति स्नेह बढ़ता जा रहा था वह मेरा बहुत ख्याल रखते थे. मैं उनके साथ कभी अंतरंग तो नहीं हो पाई थी परंतु हमने अपने जीवन के बारे में सारी बातें एक दूसरे से साझा कर ली थी. वह मेरी पति की अकाल मृत्यु पर बहुत दुखी थे. उन्होंने तो अपना वैवाहिक जीवन अपनी पत्नी के साथ लगभग 10 - 15 वर्षों तक जी लिया था और वह उससे काफी संतुष्ट भी लगते थे परंतु वह मेरे लिए सोच सोच कर दुखी होते कि कैसे युवावस्था में ही मुझे अपने पति के बिना रहना पड़ा और अपनी जिम्मेदारियों की वजह से मैं अपने जीवन का सुख नहीं ले पाइ. परंतु हम दोनों में से सेक्स के लिए कभी किसी ने पहल नहीं की.

जब मैंने छाया और मानस को एक साथ रंगे हाथों पकड़ा था उस दिन उन दोनों की तस्वीर मेरी आंखों में कैद हो गयी थी. इन दोनों को नग्न देखकर मेरा मन विचलित हो गया था. बिस्तर पर बैठे हुए थे और दोनों के गुप्तांगों पर तकिया रखा हुआ था पर पूरा शरीर नग्न था. उन दोनों की छवि को देखकर मेरे मन में बहुत दिनों बाद कामुकता आई. यह बहुत दिनों बाद हो रहा था जब मैं किसी स्त्री पुरुष को नग्न देखी थी. छाया को देखकर ऐसा लगा जैसे मैं अपनी युवावस्था में आ गई थी. छाया काफी हद तक मेरे ऊपर ही गई थी उसकी शारीरिक संरचना लगभग मेरे जैसी थी पर वह युवा थी और मैं युवती हो चुकी थी. उन दोनों को नग्न देखने के बाद जब मैं एकांत में होती मेरे मन में कामुकता जन्म लेती और कई कई बार मैं अपनी योनि में गीलापन महसूस कर रही होती.

शर्मा जी का साथ होने पर यह कामुकता और तीव्र होती. नए घर में आने के बाद मानस और छाया एक ही कमरे में चले गए. मैं और शर्मा जी भी अपने कमरे मैं आ गए बातों ही बातों में शर्मा जी ने यह बात बोली मानस और छाया एक आदर्श जोड़ी हैं वह दोनों इतने सुंदर हैं जैसे कामदेव और रति. भगवान उन दोनों का प्रेम हमेशा बनाए रखें.

शर्मा जी द्वारा कहे गए यह वाक्य मेरी अपनी सोच से मिलते थे. एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे मैं और शर्मा जी एक ही दिशा में सोच रहे हैं. अचानक उन्होंने कहा छाया तुम पर ही गई है” मैंने हंसकर कहा..

“किस मायने में.” वह मुस्कुरा दिए. मैंने फिर पूछा

“बताइए ना”

उन्होंने कहा

“हर तरह से. तुम्हारे शरीर की बनावट उससे काफी मिलती है”

“क्या मिलता है”

तुम दोनों का रंग. शरीर की बनावट आदि”

मैं चाहती थी कि वह मुझसे खुलकर बात करें पर वह बहुत ही संभल कर बातें कर रहे थे फिर अचानक ही उन्होंने मुझसे पूछा..

“क्या कभी भी तुम्हारे मन में कामुकता जन्म नहीं

लेती?”

“जब मनुष्य का मन प्रसन्न हो और उसके शरीर में कोई कष्ट ना हो तो युवावस्था में यह स्वाभाविक रूप से जन्म लेती है. साथी उपलब्ध न होने की दशा में हम उसे दबा ले जाते हैं”

उन्होंने हंसते हुए कहा..

“पर आज तो साथी भी है यह कहते हुए वह मुस्कुरा दिए”

मैं उनका इशारा समझ चुकी थी बाथरूम में नहाते समय मैंने अपने आपको आईने में देखा मेरे स्तन पूर्णतयः उभरे हुए थे पर उनमे अब थोड़ा झुकाव आ चुका था. रतिक्रिया के लिए इनका उपयोग तो हुआ था पर सिर्फ कुछ ही वर्षों तक. मेरा शरीर अभी भी सुंदर था. ग्रामीण परिवेश में लगातार रहने और कार्य करने से मेरे शरीर गठीला हो गया था. आप अपनी परिकल्पना के लिए स्वर्गीय स्मिता पाटिल को याद कर सकते हैं. मेरा शरीर लगभग उनके जैसा था सिर्फ रंग गोरा था. मैंने

अपने कमर के नीचे अपनी योनि को देखा मुझे सिर्फ अपने बाल ही दिखाई दे रहे थे. आज पता नहीं क्यों मुझे इन्हें काटने की इच्छा हुई मैंने वहीं पड़े शर्मा जी की शेविंग किट से उन्हें साफ कर लिया. कई दिनों बाद अपनी योनि पर लगातार हाथ लगने से वह गीली हो चली थी. रेजर को बार-बार उसके होठों पर लगाने से एक अलग तरह की अनुभूति हो रही थी.

कभी कभी मेरे मन में छाया और मानस के बीच चल रही अठखेलियों

का ध्यान आ जाता. आज वह दोनों भी अपने कमरे में अकेले थे. उनके बारे में सोचते हुए कभी मुझे यह शर्मनाक भी लगता.

कामुकता के समय हमारे ख्याल वश में नहीं होते वो किसी भी दिशा में किसी भी हद तक जा सकते हैं इसमें रिश्तों को कोई भूमिका रह नहीं जाती.

कुछ ही देर में मेरी योनि पूरी तरह चमकने लगी थी. उसके सारे बाल साफ हो गए थे. मैंने अपना नहाना धीरे-धीरे खत्म किया और एक सुंदर सी नाइटी पहन कर बाहर आ गई. शर्मा जी बिस्तर पर बैठे-बैठे टीवी देख रहे थे. मुझे देखते ही वह बोले….

“ अरे वाह आज तो आप अत्यंत सुंदर लग रही हैं.” मैं अपने बाल सुखा रही थी और पीछे मुड़कर कहा..

“ ठीक है पर अपनी नजरें दूर ही रखिए.” कुछ ही पलों में मैं भी बिस्तर पर आ चुकी थी उन्होंने लाइट बंद कर दी. कुछ ही देर में मैंने उनके हाथों को अपनी कमर पर महसूस किया जैसे वह मुझे अपनी तरफ खींच रहे हैं. मैं धीरे-धीरे उनकी तरफ मुड़ गइ वह मेरे और करीब आ गए. कुछ ही देर में उन्होंने मुझे आलिंगन में ले लिया. अभी भी हमारे वस्त्र पूरी तरह सही सलामत थे. वह अपना चेहरा मेरे पास लाए और बोले

“माया तुम बहुत अच्छी हो तुम्हारे साथ रहते हुए चार-पांच महीने कैसे बीत गए पता ही नहीं चला क्या हम जीवन भर साथ नहीं रह सकते” इतना कहते हुए उन्होंने मुझे गालों पर चूम लिया. मैं थरथर काँप रही थी. आज कई वर्षों के बाद किसी पुरुष ने मुझे छुआ था. वह मेरे जवाब की प्रतीक्षा कर रहे थे. इस दौरान वह निरंतर अपने चुम्बनों की बारिश

मेरे गालों और माथे पर कर रहे थे. मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हुआ. मैंने अपने हाथ उनकी पीठ पर रख दिए. कुछ ही पलों में मैं पूरी तरह उनके आलिंगन में थी मेरे स्तन उनकी छाती से टकराने लगे. धीरे-धीरे उनका दाहिना पैर मेरी कमर पर आ चुका था. और हमारे अंग प्रत्यंग एक दूसरे से मिलने के लिए बेताब हो गए थे.

शर्मा जी धीरे-धीरे मेरी नाइटी को कमर तक ले आए अब उनके हाथ मेरी जाँघों और नितंबों सहला रहे थे कई वर्षों बाद किसी पुरुष का हाथ मुझे इस प्रकार छू रहा था. मेरी योनि पूरी तरह गीली हो चुकी थी धीरे धीरे वो कब निर्वस्त्र हो गए यह मुझे पता भी न चला. मुझे एहसास तब हुआ जब शर्मा जी ने नाइटी हटाने के लिए मेरे दोनों हाथों को ऊपर करने करने लगे. कमरे में अंधेरा अभी भी कायम था. खिड़की से बैंगलोर शहर दिखाई पड रहा था. उसकी कुछ रोशनी हमारे कमरे में भी आ रही थी. हम दोनों एक दूसरे को कुछ हद तक देख पा रहे थे. उनके आलिंगन में आने पर मुझे उनके लिंग का एहसास

अपनी पेट पर हो रहा था. मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि मैं उस लिंग को छू लूं. मन में कहीं न कहीं अपराध बोध भी अपनी जगह स्थान बनाया हुआ था.

पर आज कामुकता प्रबल थी अपराधबोध बहुत कम. कामुकता

अपना प्रभाव जमाते जा रही थी.

शर्मा जी ने मेरे स्तनों को अपने होठों से छूना शुरू कर दिया. मैं पहले ही काफी उत्तेजित थी. मुझसे और उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी. मैंने भावावेश में आकर अपने हाथ उनके लिंग पर रख दिए तथा उसे महसूस करने लगी. शर्मा जी का लिंग मेरे अनुमान से बड़ा था. उसकी लंबाई तो लगभग मेरी हथेलियों के बराबर थी पर उसकी मोटाई कुछ ज्यादा लग रही थी. मैंने अपने अंगूठे और तर्जनी से उसे पकड़ना चाहा पर सफल न हो सकी. शर्मा जी अब मेरे दाहिने स्तन का निप्पल अपने मुंह में लेकर चुभला रहे थे. मैं उनके लिंग को हाथों में लेकर आगे पीछे करने लगी.

हमारी कामेच्छा अब चरम पर पहुंच चुकी थी. शर्मा जी के हाथ लगातार मेरे नितंबों पर घूम रहे थे. कभी-कभी उनके हाथ नितंबों के रास्ते मेरे योनि तक पहुंचने की कोशिश करते पर मेरी जांघों का दबाव

आते ही वह वापस हो जाते. शर्मा जी ने मुझे धीरे धीरे अपने ऊपर ले लिया. शर्मा जी पीठ के बल बिस्तर पर लेटे हुए थे और मैं अब उनके ऊपर आ चुकी थी. जैसे ही मैंने अपना दाहिना पैर उनकी कमर के दूसरी तरफ किया मैं उनके नाभि पर बैठी गयी. उनका लिंग मेरे नितंबों से टकरा रहा था उन्होंने मुझे अपनी तरफ खींचा और मेरे होंठों को अपने होठों में ले लिया. मेरे होठों को चूमने वाले वह दूसरे पुरुष थे.

इन चुम्बनों के दौरान कब मेरी कमर पीछे होती गयी मुझे कुछ भी पता नहीं चला.

अचानक मुझे शर्मा जी का लिंग अपनी योनि के मुख पर महसूस हुआ. मेरे योनि से निकला प्रेम रस उस लिंग को अपनी सही जगह तक ले

आया था. उनके लिंग की अनुभूति मेरी योनि को अत्यंत उत्तेजक लग रही थी. आज लगभग 10 वर्षों के बाद मुझे यह सुख प्राप्त हो रहा था. मैं इससे पहले कुछ करती लिंग का अगला भाग मेरी योनि में प्रवेश कर चुका था. शर्मा जी ने मुझे एक बार फिर जोर से किस किया और अपनी कमर ऊंची करते गए. लिंग मेरी योनि में लगभग आधे से ज्यादा प्रवेश कर गया. योनि पूरी तरह गीली थी.इतने वर्षों बाद योनि में लिंग प्रवेश से मुझे अजीब सी अनुभूति हुयी. शर्मा जी का लिंग थोड़ा मोटा था इस वजह से मुझे हल्का दर्द भी महसूस हुआ. परंतु शर्मा जी के लगातार होंठ चूसने की वजह से वह दर्द ना के बराबर था मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई थी.

मैंने अपनी कमर पूरी तरह नीचे कर दी शर्मा जी का लिंग मेरे अंदर पूरी तरह प्रवेश कर चुका था पर अभी भी मेरी भग्नाशा उनसे सट नहीं रही थी. अपनी कमर को इससे ज्यादा पीछे ले पाना मेरे लिए संभव नहीं था. मुझे लगता था अभी भी लिंग का कुछ हिस्सा बाहर था. भग्नाशा की रगड़ बनाने के लिए लिंग को पूरी तरह अंदर लेना अनिवार्य था. मैंने एक बार फिर प्रयास किया अब मेरी भग्नासा उनसे सट चुकी थी. उनका लिंग मेरी योनि में पूरी तरह फंसा हुआ था. मुझे अंदर हल्का हल्का दर्द महसूस हो रहा था . मैं इस स्थिति में कुछ देर यूं ही पड़ी रही. शर्मा जी के हाथ लगातार मेरे नितम्बों को सहला रहे थे. जैसे मुझे शाबाशी दे रहे थे कि अंततः मैंने लिंग को पूरी तरह अन्दर ले लिया.

कुछ देर बाद मैंने अपनी कमर को आगे पीछे करना प्रारंभ कर दिया. भग्नाशा पर होने वाली रगड़ बढ़ती जा रही थी. लिंग अपना काम कर रहा था जैसे ही लिंग बाहर की तरफ होता ऐसा लगता जैसे मेरे शरीर में एक अजीब सा खालीपन आ गया आ गया है. जब वो अंदर की तरफ आता तो एक अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती और शरीर पूरा भराव महसूस करता. मैं इस प्रक्रिया में अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे करने लगी थी. योनि के अंदर शर्मा जी के लिंग के कंपन महसूस हो रहे थे. शर्मा जी लगातार नितंबों को सहलाते जा रहे थे. कभी-कभी वह अपने चहरे को उठा कर मेरे स्तनों को अपने मुह में ले लेते. योनि के अंदर लिंग के उछलना लगातार महसूस हो रहा था.

मेरी योनि अब स्खलित हो रही थी. मैं शर्मा जी के ऊपर लगभग गिर सी गयी. मेरी कमर चलाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी. शर्मा जी ने यह महसूस करते ही स्खलित हो रही योनी में के बीच में अपने लिंग को तेजी से आगे पीछे करने लगे. यह एक अद्भुत अनुभव था इस क्रिया में उनके लिंग ने भी अपना स्खलन प्रारंभ कर दिया था. हम दोनों के एक साथ स्खलित हो रहे थे.

स्त्री की योनि को स्खलित होने में कुछ समय लगता है परंतु पुरुष का स्खलन अपेक्षाकृत जल्दी होता है.

मैं शर्मा जी के उपर कुछ मिनटों तक पड़ी रही. मेरा चेहरा उनके बगल में था. हम दोनों एक दूसरे के देख तो नहीं पा रहे थे पर दोनों के आनंद को महसूस जरूर कर पा रहे थे. हमारी धड़कने तेज थी. छाती पर पसीना आ गया था. मैंने अपनी कमर को आगे किया और शर्मा जी लिंग धीरे से बाहर आ गया. हम मुझे उनका वीर्य अपनी योनि से निकलता हुआ महसूस हुआ जो शायद शर्मा जी के ऊपर ही गिरा होगा. मैं हाल ही में रजस्वला हुयी थी मुझे गर्भाधान का डर नहीं था.

हम दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले उसी अवस्था में सो गए सुबह उठकर मैंने देखा तो शर्मा जी उसी तरह नग्न पड़े हुए थे. मैंने उनके ऊपर चादर डाली और मैं बाथरूम में चली गई. शर्मा जी ने मुझे जो सुख दिया था वह एक यादगार सुख था मैंने अपने स्वर्गीय पति से इस कार्य के लिए क्षमा मांगी.

जीवन में आया यह बदलाव सही था या गलत मैं नहीं जानती पर मैं आज बहुत खुश थी. मानस को मैंने दिल से आशीर्वाद दिया और किचन में नाश्ता बनाने चली गयी.
 
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