desiaks
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ड्राईवर हैरान था कि बंता सिंह आखिर इन खंदकों में किस काम से आया था? अगर आया था तो फिर कहां गायब हो गया? वो राज से इस बारे में में कई सवाल करना चाहता था, लेकिन नहलकण्ठ को अपने ख्यालों में खोया देखकर उसकी हिम्त नहीं हो रही थी कि उससे कुछ पूछे।
आखिर एक चौड़ी खदक में उन्होंने बंता सिंह की टैक्सी खड़ी हुई ढूंढ ली। टैक्सी बिलकुल सही सलामत थी। लेकिन बंता सिंह का कहीं पता नहीं था। टैक्सी देखकर ड्राईवर से रहा ने गया और उसने पूछ लिया
"क्या बंता सिंह अपनी गाड़ी लेकर यहां आया था?"
"हां।” राज ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"लेकिन इन खातों में गाड़ी लाने की उसे जरूरत ही क्या थी?"
"यही सोच कर तो मैं हैरान हूं!" राज ने झूठ बोला और टॉपिक चेंज करते हुए बोला-"अच्छा, इस टैक्सी को स्टार्ट करके मैं बाहर निकालता हूं, तुम अपनी गाड़ी में वापिस चलना।"
"ठीक है सर।" ड्राईवर ने जवाब दिया। लेकिन उसके चेहरे से जाहिर था कि वो बहुत परेशान है। और राज की तरफ से सन्देह में पड़ गया है।
राज ने टैक्सी का इंजन स्टार्ट किया और कई चक्करदार रास्तों से होकर वो उन खंदकों से बाहर निकला। दूसरे ड्राईवर ने भी अपनी टैक्सी स्टार्ट की और दोनों आगे-पीछे शहर की तरफ चल पड़े।
शृिंगरा की कोठी सड़क से कुछ हट कर बनी हुई थी। सड़क के दोनों तरफ बड़े-बड़े पेड़ थे। कोठी से कुछ फासले पर एक साथ बड़े-बड़े ऊंचे-ऊंचे पांच-छ: पेड़ खड़े थे। कोठी के सामने से गुजरते हुए राज ने जानबूझकर गाड़ी की रफ्तार कम कर दी थी। जिस वक्त वो पेड़ों के उस झुण्ठ के करीब से गुजरा तो उसे दो खौफनाक आंखें अपनी तरफ घूरती हुई नजर आई।
ये दोनों खौफनाक आंखें उसी भयानक शक्ल आदमी की थीं जिसने उस रात उन पर खंजर से हमला किया था। उसे पेड़ों में छुपा अपनी तरफ घूरता देखकर देखकर राज को यकीन हो गया कि बंता सिंह जरूर किसी मुसीबत में फंस गया है।
वो पेड़ों के इसी झुण्ड में घुसकर कोठी की निगरानी कर रहा होगा कि उस भयानक सूरत गुण्डे ने उस पर हमला कर दिया होगा और उसे जख्मी या बेहोश करके काबू करने के बाद कोठी में ले गया होगा। उसके बाद भगवान जाने वो खून के प्यासे लोग उसके साथ कैसे पेश आए होंगे, उस गरीब को मार दिया होगा या कैद करके रखा होगा कहीं, ये सब बातें रहस्य के पर्दे में छुपी हुई थीं।
राज सोच रहा था, अगर उसे कैद किया गया होगा तो यकीनन उससे पूछताछ भी की गई होगी कि वो इस कोठी की निगरानी क्यों कर रहा था। किसके लिए काम कर रहा था, हो सकात है बंता सिंह ने दबाव में आकर सब कुछ बता भी दिया हो।
इसका मतलब था कि दोनों तरफ से बकायदा जंग शुरू हो गई थी और दोनों एक-दूसरे से ज्यादा सावधान हो गए थे।
अगर बंता सिंह ने मुंह नहीं खोला तो उस पर सख्ती की जा रही होगी। ऐसी स्थिति में राज ने अपना फर्ज समझा कि बंता सिंह की मदद करे और अगर वो अभी तक जिन्दा है तो उसे छुड़ाने की भरपूर कोशिश करे।
लेकिन सवाल यह था कि वो करे तो क्या करे? इसी सोच-विचार में रास्ता कट गया। डॉक्टर सावंत बड़ी बेचैनी से उसका इन्तजार कर रहा था। नीलकण्ठा को एक दूसरे ड्राईवर के साथ और कुछ फिक्रमंद देखकर सो समझ गया कि बंता सिह नहीं मिला।
सबसे पहले तो उन्होंने नए ड्राईवर को किराये के अलावा पांच सौ रूपये और देकर उससे वादा किया कि वह इस बात का जिक्र किसी से नहीं करेगा। उस राज ने बता दिया कि बंता सिंह किसी काम में उनकी मदद कर रहा था और उनके कुछ दुश्मनों ने शायद उसे कैद कर लिया है और अब वो उसे छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं। यह हालात सुनकर वो संतुष्ट हो गया और खामोश रहने का वादा करके चला गया।
उसके बाद राज ने डॉक्टर सावंत को सारा किस्सा सुना दिया।
"फिर यही कहा जा सकता है कि उन्होंने या तो उसे मार डाला है, या फिर कैद कर लिया है....।” सारी बात सुनकर डॉक्टर सांवत ने कहा।
"जी हां, यही मेरी भी ख्याल है।" राज बोला-"लेकिन अब फिर वही सवाल सामने है कि क्या किया जाए?"
"अगर बंता सिंह उनकी कैद में है तो किसी तरह उस गरीब को छुड़ाना चाहिए। उनकी कोठी में दाखिल होने की कोई तरकीब सोची जाए।" डॉक्टर सावंत ने कहा।
"वो तरकीब ही तो समझ में नहीं आ रही।" राज ने लम्बी सांस ली।
कई घंटे तक वो सोचते रहे, लेकिन कोई तरकीब उनकी समझ में नहीं आई। शाम हो चुकी थी इसलिए दोनों सिरखपाई से उकता कर क्ल्ब की तरफ चल पड़े।
न जाने क्या बात थी कि सतीश से लड़कियां बड़ी जल्दी घुल-मिल जाती थीं। वो खूबसूरत जवान तो था ही, पैसे की भी उसके पास कोई कमी नहीं थी, ऊपर से बातचीत में भी पटु था। इसलिए भी लड़कियां उसका साथ पसन्द करती थीं, खासतौर से बालरूम में तो हर लड़की चाहती थी कि वो सतीश के साथ डांस करे।
सतीश का पालन-पोषण क्योंकि शुरू से ही पश्चिमी तर्ज के माहोल में हुआ था और उसने पूरी जिन्दगी तफरीह और लड़कियों के साथ फ्लर्ट करने के अलावा कोई खास काम नहीं किया था, इसलिए वो हर किस्म के डांस में पारंगम हो चुका
था। डांस की माहिर विदेशी लड़कियां भी उकसी तारीफों के पुल बांध चुकी थीं।
आखिर एक चौड़ी खदक में उन्होंने बंता सिंह की टैक्सी खड़ी हुई ढूंढ ली। टैक्सी बिलकुल सही सलामत थी। लेकिन बंता सिंह का कहीं पता नहीं था। टैक्सी देखकर ड्राईवर से रहा ने गया और उसने पूछ लिया
"क्या बंता सिंह अपनी गाड़ी लेकर यहां आया था?"
"हां।” राज ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"लेकिन इन खातों में गाड़ी लाने की उसे जरूरत ही क्या थी?"
"यही सोच कर तो मैं हैरान हूं!" राज ने झूठ बोला और टॉपिक चेंज करते हुए बोला-"अच्छा, इस टैक्सी को स्टार्ट करके मैं बाहर निकालता हूं, तुम अपनी गाड़ी में वापिस चलना।"
"ठीक है सर।" ड्राईवर ने जवाब दिया। लेकिन उसके चेहरे से जाहिर था कि वो बहुत परेशान है। और राज की तरफ से सन्देह में पड़ गया है।
राज ने टैक्सी का इंजन स्टार्ट किया और कई चक्करदार रास्तों से होकर वो उन खंदकों से बाहर निकला। दूसरे ड्राईवर ने भी अपनी टैक्सी स्टार्ट की और दोनों आगे-पीछे शहर की तरफ चल पड़े।
शृिंगरा की कोठी सड़क से कुछ हट कर बनी हुई थी। सड़क के दोनों तरफ बड़े-बड़े पेड़ थे। कोठी से कुछ फासले पर एक साथ बड़े-बड़े ऊंचे-ऊंचे पांच-छ: पेड़ खड़े थे। कोठी के सामने से गुजरते हुए राज ने जानबूझकर गाड़ी की रफ्तार कम कर दी थी। जिस वक्त वो पेड़ों के उस झुण्ठ के करीब से गुजरा तो उसे दो खौफनाक आंखें अपनी तरफ घूरती हुई नजर आई।
ये दोनों खौफनाक आंखें उसी भयानक शक्ल आदमी की थीं जिसने उस रात उन पर खंजर से हमला किया था। उसे पेड़ों में छुपा अपनी तरफ घूरता देखकर देखकर राज को यकीन हो गया कि बंता सिंह जरूर किसी मुसीबत में फंस गया है।
वो पेड़ों के इसी झुण्ड में घुसकर कोठी की निगरानी कर रहा होगा कि उस भयानक सूरत गुण्डे ने उस पर हमला कर दिया होगा और उसे जख्मी या बेहोश करके काबू करने के बाद कोठी में ले गया होगा। उसके बाद भगवान जाने वो खून के प्यासे लोग उसके साथ कैसे पेश आए होंगे, उस गरीब को मार दिया होगा या कैद करके रखा होगा कहीं, ये सब बातें रहस्य के पर्दे में छुपी हुई थीं।
राज सोच रहा था, अगर उसे कैद किया गया होगा तो यकीनन उससे पूछताछ भी की गई होगी कि वो इस कोठी की निगरानी क्यों कर रहा था। किसके लिए काम कर रहा था, हो सकात है बंता सिंह ने दबाव में आकर सब कुछ बता भी दिया हो।
इसका मतलब था कि दोनों तरफ से बकायदा जंग शुरू हो गई थी और दोनों एक-दूसरे से ज्यादा सावधान हो गए थे।
अगर बंता सिंह ने मुंह नहीं खोला तो उस पर सख्ती की जा रही होगी। ऐसी स्थिति में राज ने अपना फर्ज समझा कि बंता सिंह की मदद करे और अगर वो अभी तक जिन्दा है तो उसे छुड़ाने की भरपूर कोशिश करे।
लेकिन सवाल यह था कि वो करे तो क्या करे? इसी सोच-विचार में रास्ता कट गया। डॉक्टर सावंत बड़ी बेचैनी से उसका इन्तजार कर रहा था। नीलकण्ठा को एक दूसरे ड्राईवर के साथ और कुछ फिक्रमंद देखकर सो समझ गया कि बंता सिह नहीं मिला।
सबसे पहले तो उन्होंने नए ड्राईवर को किराये के अलावा पांच सौ रूपये और देकर उससे वादा किया कि वह इस बात का जिक्र किसी से नहीं करेगा। उस राज ने बता दिया कि बंता सिंह किसी काम में उनकी मदद कर रहा था और उनके कुछ दुश्मनों ने शायद उसे कैद कर लिया है और अब वो उसे छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं। यह हालात सुनकर वो संतुष्ट हो गया और खामोश रहने का वादा करके चला गया।
उसके बाद राज ने डॉक्टर सावंत को सारा किस्सा सुना दिया।
"फिर यही कहा जा सकता है कि उन्होंने या तो उसे मार डाला है, या फिर कैद कर लिया है....।” सारी बात सुनकर डॉक्टर सांवत ने कहा।
"जी हां, यही मेरी भी ख्याल है।" राज बोला-"लेकिन अब फिर वही सवाल सामने है कि क्या किया जाए?"
"अगर बंता सिंह उनकी कैद में है तो किसी तरह उस गरीब को छुड़ाना चाहिए। उनकी कोठी में दाखिल होने की कोई तरकीब सोची जाए।" डॉक्टर सावंत ने कहा।
"वो तरकीब ही तो समझ में नहीं आ रही।" राज ने लम्बी सांस ली।
कई घंटे तक वो सोचते रहे, लेकिन कोई तरकीब उनकी समझ में नहीं आई। शाम हो चुकी थी इसलिए दोनों सिरखपाई से उकता कर क्ल्ब की तरफ चल पड़े।
न जाने क्या बात थी कि सतीश से लड़कियां बड़ी जल्दी घुल-मिल जाती थीं। वो खूबसूरत जवान तो था ही, पैसे की भी उसके पास कोई कमी नहीं थी, ऊपर से बातचीत में भी पटु था। इसलिए भी लड़कियां उसका साथ पसन्द करती थीं, खासतौर से बालरूम में तो हर लड़की चाहती थी कि वो सतीश के साथ डांस करे।
सतीश का पालन-पोषण क्योंकि शुरू से ही पश्चिमी तर्ज के माहोल में हुआ था और उसने पूरी जिन्दगी तफरीह और लड़कियों के साथ फ्लर्ट करने के अलावा कोई खास काम नहीं किया था, इसलिए वो हर किस्म के डांस में पारंगम हो चुका
था। डांस की माहिर विदेशी लड़कियां भी उकसी तारीफों के पुल बांध चुकी थीं।