Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:28 AM,
#11
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
जब मैं किनारे पर खडा होकर अपने कपडे उतर रहा था तो मैने देखा कि ज़ाइन मेरी तरफ़ गौर से देख रहा था! उसने मेरे कपडे उतरने के एक एक एक्ट को देखा और फ़िर मेरी चड्‍डी में लँड के उभार की तरफ़ जाकर उसकी आँखें टिक गयी! मैं सबके साथ कमर कमर पानी में उतर गया! पानी में घुसते ही मेरे बदन में इसलिये सिहरन दौड गयी कि ये वही पानी था जो ज़ाइन और शफ़ात दोनो के नँगे बदनों को छू कर मुझे छू रहा था! एक तरफ़ वॉटरफ़ॉल था! मैने शफ़ात से उधर चलने को कहा! हम सीधे पानी के नीचे खडे हो गये! वो भी खूब मस्ती में था, मैं भी और बाकी सब भी…
“आपने इसके पीछे देखा है?” शफ़ात ने कहा!
वो मुझे गिरते पानी के पीछे पत्थर की गुफ़ा के बारे में बता रहा था… जहाँ चले जाओ तो सामने पानी की चादर सी रहती है!
“नहीं” मैने वो देखा हुआ तो था मगर फ़िर भी नहीं कह दिया !
“आइये, आपको दिखाता हूँ… बहुत बढिया जगह है…”
पानी में भीगा हुआ, स्लिम सा गोरा शफ़ात अपनी गीली होकर बदन से चिपकी हुई चड्‍डी में बहुत सुंदर लग रहा था… बिल्कुल शबनम में भीगे हुये किसी फ़ूल की तरह! उसके चेहरे पर भी पानी की बून्दें थमी हुई थी! जब हम वहाँ पहुँचे तो मैने झूठे एक्साइटमेंट में कहा!
“अरे ये तो बहुत बढिया है यार…”
“जी… ये जगह मैने अपने दोस्तों के साथ ढूँढी है…” मैने जगह की तारीफ़ करते हुये उसके कंधे पर हाथ रखते हुये उसकी पीठ पर हाथ फ़ेरता हुआ अपने हाथ को उसकी कमर तक ले गया तो ऐसा लगा कि ना जाने क्या हुलिया हो! उसका जिस्म चिकना तो था ही, साथ में गर्म और गदराया हुआ था!
“तुम्हारी बॉडी तो अच्छी है… लगता नहीं डॉक्टर हो…”
“हा हा हा… क्यों भैया, डॉक्टर्स की बॉडी अच्छी नहीं हो सकती क्या? हम तो बॉडी के बारे में पढते हैं…”
“ये जगह तो गर्ल फ़्रैंड लाने वाली है…”
“हाँ है तो… मगर अब सबके साथ थोडी ला पाता…”
“मतलब है कोई गर्ल फ़्रैंड?”
“हाँ है तो…” मेरा दिल टूट गया!
“मगर हर जगह उसको थोडी ला सकता हूँ… उसकी अपनी जगह होती है…”
मैने सोचा कि ये लौंडा तो फ़ँसेगा नहीं, इसलिये एक बार दिल बहलाने के लिये फ़िर उसकी पीठ सहलायी!
“तो बाकी जगह पर क्या होगा?”
“हर जगह का अपना पपलू होता है… पपलू जानते हैं ना?”
“हाँ, मगर तुम्हारा मतलब नहीं जानता… हा हा हा…”
“कभी बता दूँगा…”
“अच्छा, तुमने ऊपर देखा है? जहाँ से पानी आता है…”
“हाँ… चलियेगा क्या?”
“हाँ, चलो…”
“वो तो इससे भी ज़्यादा बढिया जगह है… आप तो यहाँ ही कमर सहलाने लगे थे… वहाँ तो ना जाने क्या मूड हो जाये आपका…”
“चलो देखते हैं…” लौंडे ने मेरा इरादा ताड लिया था… आखिर था हरामी…
ऊपर एक और गहरा सा तलाब था और उसके आसपास घनी झाडियाँ और पेड… और वहाँ का उस तरफ़ से रास्ता पत्थरों के ऊपर से था!
“कहाँ जा रहे है… मैं भी आऊँ क्या?” हमको ऊपर चढता देख ज़ाइन ने पुकारा!
“तुम नहीं आ पाओगे…” शफ़ात ने उससे कहा!
“आ जाऊँगा…”
“अबे गिर जाओगे…”
शायद ज़ाइन डर गया! हम अभी ऊपर पहुँचे ही थे कि हमें पास की झाडी में हलचल सी दिखी!
“अबे यहाँ क्या है… कोई जानवर है क्या?”
“पता नहीं…” मगर तभी हमे जवाब मिल गया! हमें उसमें गुडिया दिखी!
“ये यहाँ क्या कर रही है?” शफ़ात ने चड्‍डी के ऊपर से लँड रगडते हुए कहा!
“कुछ ‘करने’ आयी होगी…”
“‘करने’ के लिये इतनी ऊपर क्यों आयी?”
“इसको ऊपर चढ के ‘करने’ में मज़ा आता होगा…” मैने कहा!
“चुप रहिये… आईये ना देखते हैं…” उसने मुझे चुप रहने का इशारा करते हुये कहा!
उसके ये कहने पर और गुडिया को शायद पिशाब करता हुआ देखने के ख्याल से ही ना सिर्फ़ मेरा बल्कि शफ़ात का भी लँड ठनक गया! अब हम दोनो की चड्‍डियों के आगे एक अजगर का उभार था! हम चुपचाप उधर गये! गुडिया की गाँड हमारी तरफ़ थी और वो शायद अपनी जीन्स उतार रही थी! उसने अपनी जीन्स अपनी जाँघों तक सरकायी तो उसकी गुलाबी गोल गाँड दिखी… बिल्कुल किसी चिकने लौंडे की तरह… बस उसकी कमर बहुत पतली थी और जाँघें थोडी चौडी थी! उसकी दरार में एक भी बाल नहीं था! फ़िर वो बैठ गयी और शायद मूतने लगी!

“हाय… क्या गाँड है भैया..” शफ़ात ने मेरा हाथ पकड के दबाते हुए हलके से कहा!
“बडी चिकनी है…” मैने कहा!
“बुर कितनी मुलायम होगी… मेरा तो खडा हो गया…” उसने अब मेरा हाथ पकड ही लिया था!
मुझे गुडिया की गाँड देखने से ज़्यादा इस बात में मज़ा आ रहा था कि मेरे साथ एक जवान लडका भी वो नज़ारा देख के ठरक रहा था! देखते देखते मैने शफ़ात की कमर में हाथ डाल दिया और हम अगल बगल कमर से कमर, जाँघ से जाँघ चिपका के खडे थे!

फ़िर गुडिया खडी हुई, खडे होने में कुछ गिरा तो वो ऐसे मुडी कि हमें उसकी चूत और भूरी रेशमी झाँटें दिखीं! उसका फ़ोन गिरा था! उसने अपनी जीन्स ऊपर नहीं की! वो फ़ोन में कुछ कर रही थी… शायद एस.एम.एस. भेज रही थी!

“तनतना गया है क्या?” मैने मौके का फ़ायदा देखा और सीधा शफ़ात के खन्जर पर हाथ रख दिया!
“और क्या? अब भी नहीं ठनकेगा क्या?” उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, बस हल्की सी सिसकारी भर के बोला!

तभी शायद गुडिया के एस.एम.एस. का जवाब सामने की झाडी में हलचल से आया, जिस तरफ़ वो देख रही थी! उधर झाडी से मेरे बाप का ड्राइवर शिवेन्द्र निकला! गुडिया ने उसको देख के अपनी नँगी चूत उसको दिखाई! उसने आते ही एक झपट्‍टे में उसको पकड लिया और पास के एक पत्थर पर टिका के उसका बदन मसलने लगा!
“इसकी माँ की बुर… यार साली… ड्राइवर से फ़ँसी है…” शफ़ात ने अपना लँड मुझसे सहलवाते हुये कहा!
“चुप-चाप देख यार.. चुप-चाप…”
देखते देखते जब शिवेन्द्र ने अपनी चुस्त पैंट खोल के चड्‍डी उतारी तो मैने उसका लँड देखा! शिवेन्द्र साँवला तो था ही, उसका जिस्म गठीला था और लँड करीब १२ इँच का था और नीचे की तरफ़ लटकता हुआ मगर अजगर की तरह फ़ुँकार मारता हुआ था… शायद वो अपने साइज़ के कारण नीचे के डायरेक्शन में था और उसके नीचे उसकी झाँटों से भरे काले आँडूए लटक रहे थे! गुडिया ने उसके लँड को अपने हाथ में ले लिया और शिवेन्द्र उसकी टी-शर्ट में नीचे से हाथ डाल कर उसकी चूचियाँ मसलने लगा! देखते देखते उसने अपना लँड खडे खडे ही गुडिया की जाँघों के बीच फ़ँसा के रगडना शुरु किया तो हमें अब सिर्फ़ उसकी पीठ पर गुडिया के गोरे हाथ और शिवेन्द्र की काली मगर गदरायी गाँड, कभी ढीली कभी भिंचती, दिखाई देने लगी!

इस सब में एक्साइटमेंट इतना बढ गया कि मैने शफ़ात का खडा लँड उसकी चड्‍डी के साइड से बाहर निकाल के थाम लिया और उसने ना तो ध्यान दिया और ना ही मना किया! बल्कि और उसने अपनी उँगलियाँ मेरी चड्‍डी की इलास्टिक में फ़ँसा कर मेरी कमर रगडना शुरु कर दिया! वो गर्म हो गया था!
फ़िर शिवेन्द्र गुडिया के सामने से हल्का सा साइड हुआ और अपनी पैंट की पैकेट से एक कॉन्डोम निकाल के अपने लँड पर लगाने लगा तो हमें उसके लँड का पूरा साइज़ दिखा! जब वो कॉन्डोम लगा रहा था, गुडिया उसका लँड सहला रही थी!
“बडा भयँकर लौडा है साले का…” शफ़ात बोला!
“हाँ… और चूत देख, कितनी गुलाबी है…”
“हाँ, बहनचोद… इतना भीमकाय हथौडा खायेगी तो मुलायम ही होई ना…”
शिवेन्द्र ने गुडिया की जीन्स उतार दी और फ़िर खडे खडे अपने घुटने मोड और सुपाडे को जगह में फ़िट कर के शायद गुडिया की चूत में लौडा दिया तो वो उससे लिपट गयी! कुछ देर में गुडिया की टाँगें शिवेन्द्र की कमर में लिपट गयी! वो पूरी तरह शिवेन्द्र की गोद में आ गयी! शिवेन्द्र अपनी गाँड हिला हिला के उसकी चूत में लँड डालता रहा! उसने अपने हाथों से गुडिया की गाँड दबोच रखी थी!

“भैया… कहाँ हो??? भैया… चाचा… चाचा…” तभी नीचे से आवाज़ आयी! ज़ाइन था, जिसकी आवाज़ शायद गुडिया और शिवेन्द्र ने भी सुनी! शिवेन्द्र हडबडाने लगा! जब आवाज़ नज़दीक आने लगी तो दोनो अलग हो गये और जल्दी जल्दी कपडे पहनने लगे!
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05-14-2019, 11:28 AM,
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RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
शिवेन्द्र पहले भाग गया, गुडिया ने भागते भागते मुझे देख लिया! शफ़ात ने अपना लँड चड्‍डी में कर लिया! तभी ज़ाइन आ गया मगर जब ज़ाइन आया तो उसने मेरे और शफ़ात की चड्‍डियों में सामने उभरे हुये लँड देखे!

“क्या हुआ? साले, इतनी गलत टाइम में आ गया…” शफ़ात बोला!
“क्यों, क्या हुआ?”
“कुछ नहीं…”

मगर ज़ाइन की नज़र हमारे लँडों से हटी नहीं क्योंकि उस समय हम दोनो के ही लौडे पूरी तरह से उफ़न रहे थे! मेरा लँड चड्‍डी में नीचे आँडूओं की तरफ़ था इसलिये उसका तना मुड के सामने से बहुत बडा उभार बना रहा था, जब्कि शफ़ात का लँड उसकी राइट जाँघ की तरफ़ सीधा कमर के डायरेक्शन में खडा था जिस कारण उसकी पूरी लेंथ पता चल रही थी! बदन की गर्मी से हमारे बदन तो सूख गये थे मगर चड्‍डियाँ हल्की गीली थी!

“साले टाइम देख के आता ना…”
“किसका टाइम?”
“भोसडी के… लौडे का टाइम…” शफ़ात ने खिसिया के कहा!
“देख क्या रहा है?” उसने जब ज़ाइन को कई बार अपने लँड की तरफ़ देखता हुआ देखा तो पूछा!
“कुछ नहीं…”
“कुछ नहीं देखा तो बेहतर होगा… वरना चल नहीं पायेगा…”
मैं चाह रहा था, या तो शफ़ात ज़ाइन को रगडना शुरु कर दे या वहाँ से भगा दे! मगर वैसा कुछ नहीं हुआ!
“चलो भैया नीचे चलते हैं… देखें तो कि फ़ूल मसलने के बाद कितना खिल रहा है…” शायद शफ़ात के दिमाग पर गुडिया का नशा चढ गया था!
“चलो” मैने भारी मन से कहा मगर मैने फ़िर भी ज़ाइन हाथ पकड लिया!
“हाथ पकड के चलो वरना गिर जाओगे…”
हम जिस रास्ते से आये थे वो चढने के टाइम तो आसान था मगर उतरने में ध्यान रखना पड रहा था क्योंकि पानी का बहाव तेज़ था! फ़िर एक जगह काफ़ी स्टीप उतार था! शफ़ात तो जवानी के जोश में उतर गया मगर ज़ाइन को मेरी मदद की ज़रूरत पडी! पहले मैं नीचे कूदा फ़िर ज़ाइन को उतारा और उतरने में पहले तो उसकी कमर पकडनी पडी जिसमें एक बार तो उसके पैर का तलवा मेरे होंठों से छू गया, और फ़िर जब उसको नीचे उतारा तो जान-बूझ के उसकी कमर में ऐसे हाथ डाला कि आराम से काफ़ी देर उसकी गदरायी गाँड की गुलाबी गोल फ़ाँकों पर हथेली रख रख के दबाया! मुझे तो उसकी चिकनी गाँड दबा के फ़िर मज़ा आ गया और छोडते छोडते भी मैने अपनी हथेली उसकी पूरी दरार में फ़िरा दी! ज़ाइन हल्का सा चिँहुक गया और उसने आगे चलते शफ़ात की तरफ़ देखा! शफ़ात भी मेरे सामने चड्‍डी पहने पत्थरों पर उतरता हुआ बडा मादक लग रहा था! उसकी गाँड कभी मटकती, कभी टाँगें फैलती, कभी पैर की माँसपेशियाँ तनाव में हो जातीं, कभी गाँड भिंचती! मैने बाकी की उतराई में ज़ाइन की कमर में हाथ डाले रखा!
“हटाइये ना…” उसने कहा!
“अबे गिर जायेगा.. पकड के रखने दे…” मैने कहा!
नीचे तलाब में समाँ अभी भी मस्ती वाला था, सब जोश में थे! खेल-कूद चल रहा था!
“आओ ना, ज़ाइन को गुफ़ा दिखाते हैं…” मैने कहा!
“आप दिखा दीजिये, मुझे कुछ और देखना है ज़रा…” शफ़ात ने जल्दबाज़ी से उतरते हुये कहा!
“कैसी गुफ़ा?” ज़ाइन ने पूछा!
“अभी दिखता हूँ… बहुत सैक्सी जगह है…” मैने जानबूझ के उस शब्द का प्रयोग किया था! मैने ज़ाइन का हाथ पकडा और पहले उसको पानी के नीचे ले गया क्योंकि उसके पीछे जाने का रास्ता उसके नीचे से ही था! फ़िर मैने जब मुड के देखा तो शफ़ात अपनी गीली चड्‍डी पर ही कपडे पहन रहा था! फ़िर मैं और ज़ाइन जब पानी की चादर के पीछे पहुँचे तो वो खुश हो गया!
“सच, कितनी अच्छी जगह है…”
“अच्छी लगी ना तुम्हें?” मैने उसकी कमर में अपना हाथ कसते हुये कहा!

उसको अपने बदन पर मेरे बदन की करीबी का भी आभास हो चला था! उसको लग गया था कि जिस तरह मैने अब उसकी कमर में हाथ डाला हुआ है वो कुछ और ही है!
“उंहू… चाचा क्या…” वो हल्के से इठलाया मगर मैने उसको और इठलाने का मौका ना देते हुये सीधा उसकी गाँड पर हथेली रख कर उसकी गाँड की एक गदरायी फ़ाँक को दबोच लिया और उसको कस के अपने जिस्म के पास खींच लिया!
“उस दिन की किसिंग अधूरी रह गयी थी ना… आज पूरी करते हैं…” मैने कहा!
“मगर चाचा यहाँ? यहाँ नहीं, कोई भी आ सकता है…”
“जल्दी करेंगे, कोई नहीं आयेगा…” मैने उसको और बोलने का मौका ही नहीं दिया और कसके उसको अपने सामने खींचते हुये सीधा उसके गुलाबी नाज़ुक होंठों पर अपने होंठ रख कर ताबडतोड चुसायी शुरु कर दी और उसके लँड पर अपना खडा हुआ लँड दबा दिया! वो शुरु में थोडा सँकोच में था, फ़िर जैसे जैसे उसका लँड खडा हुआ, उसको मज़ा आने लगा! उसने भी मुझे पकड लिया! उसके होंठों का रस किसी शराब से कम नहीं था! उसके होंठों चूसने में उसकी आँखें बन्द हो गयी थी! मैने अपने एक हाथ को उसकी गाँड पर रखते हुये दूसरे को सामने उसके लँड पर रख दिया और देखा कि उसका लँड भी खडा है! मैने उसको मसल दिया तो उसने किसिंग के दरमियाँ ही सिसकारी भरी! मैने फ़िर आव देखा ना ताव और उसकी चड्‍डी नीचे सरका दी!

शुरु में उसने हल्का सा रोका, मेरा हाथ पकडने की कोशिश भी की मगर जब मैने उसके नमकीन ठनके हुये लँड को हाथ में पकड के दबाना शुरु किया तो वो मस्त हो गया! इस बीच मैने उसकी गाँड फ़ैला के उसकी दरार में अपना हाथ घुसाया और फ़ाइनली अपनी उँगली से उसके छेद को महसूस किया!
“उफ़्फ़… साला क्या सुराख है…” मैने कहा और उसका एक हाथ लेकर अपने लँड पर रख दिया तो उसने जल्द ही मेरे लँड को चड्‍डी के साइड से बाहर कर के थाम लिया और जैसे उसकी मुठ मारने लगा!
“चाचा.. अआह… कोई आ ना जाये…”
“नहीं आयेगा कोई… एक चुम्मा पीछे का दे दो…”
“ले लीजिये…”
मैने झट नीचे झुकाते हुये उसको पलटा और पहले तो उसकी कमर में ही मुह घुसा के उसके पेट में एक बाँह डाल दी और दूसरे से उसकी गाँड दबाई! फ़िर रहा ना गया तो मैं और नीचे झुका और पहली बार उसके गुलाबी छेद को देखा तो तुरन्त ही उस पर अपनी ज़बान रख दी! उसने सिसकारी भरी!
“अआह… हाय… ज़ाइन हाय…” मैने भी सिसकारी भरी! जब मैं उसकी गाँड पर होंठ, मुह और ज़बान से बेतहाशा चाटने औए चूमने लगा तो वो खुद ही अपनी गाँड पीछे कर कर के हल्का सा आगे की तरफ़ झुकने लगा!
“सही से झुक जाओ…” मैने कहा!
“कोई आयेगा तो नहीं?”
“नहीं आयेगा.. झुक जाओ…”
उसने सामने के पत्थर की दीवार पर अपने दोनो हाथ टेक दिये और ऑल्मोस्ट आधा झुक गया! अब उसकी जाँघें भी फैली हुई थी! मैने उसके गाँड की चटायी जारी रखी, जिसमें उसको भी मज़ा आ रहा था!
पहले दादा! फ़िर बाप… और अब पोता…
तीनों अपनी अपनी तरह से गर्म और सैन्सुअल थे! तीनों ने ही मुझे मज़ा दिया और मेरा मज़ा लिया! ये मेरे जीवन में एक स्पेशल अनुभव था… शायद पहला और आखरी…

मेरे चाटने से उसकी गाँड खुलने लगी थी और उसका छेद और उसके आसपास का एरिया मेरे थूक में पूरी तरह से भीगा था! मैं ठरक चुका था… और वो भी! मैने उसकी गाँड के छल्ले पर उँगली रखी तो वो आराम से आधी अंदर घुस गयी! उसके अंदर बहुत गर्मी थी! मैने उँगली निकाली और उसको चाटा तो मुझे उसका टेस्ट मिला… उसकी नमकीन जवानी का टेस्ट! फ़िर मैं खडा हुआ और उसको कस के भींच लिया और अपना मुह खोल के उसके खुले मुह पर रख दिया तो हम एक दूसरे को जैसे खाने लगे! मैं अब साथ साथ उसकी गाँड में उँगली भी दिये जा रहा था! वो उचक उचक के मेरे अंदर घुसा जा रहा था! हमारे लँड आपस में दो तलवारों की तरह टकरा रहे थे! मैने उसको फ़िर झुकाया और अपनी उँगलियों पर थूक के अपने लँड पर रगड दिया! इस बार मैने उसके छेद को अपने सुपाडे से सहलाया! वो हल्का सा भिंच गया, मगर फ़िर खुल भी गया! जैसे ही सुपाडा थोडा दबा वो खुल भी गया, देखते देखते मैने अपना सुपाडा उसकी गाँड में दे दिया! उसकी गर्म गाँड ने मेरे सुपाडे को भींच लिया! मैने और धक्‍का दिया, फ़िर मेरा काफ़ी लँड उसके अंदर हो गया तो मैने धक्‍के देना शुरु कर दिये क्योंकि मुझे पता था कि उसकी बाकी की गाँड धक्‍कों से ढीली पड के खुल जायेगी! उसको मज़ा देने के लिये मैने उसका लँड थाम के उसकी मुठ मारना शुरु कर दी और फ़िर मेरा लँड उसकी गाँड में पूरा घुसने और निकलने लगा!

वो कभी सीधा खडा हो जाता कभी झुक जाता और उसका लँड मेरे हाथ में हुल्लाड मारने लगा!
“चाचा, अब झड जायेगा… मेरा झड जायेगा… माल गिरने वाला है…” कुछ देर में वो बोला!
मैं भी काँड खत्म करके नीचे जाना चाहता था, इसलिये मैने ना सिर्फ़ अपने धक्‍के गहरे और तेज़ कर दिये बल्कि उसका लँड भी तेज़ी से मुठियाने लगा! फ़िर उसकी गाँड इतनी कस के भिंची कि मेरा लँड ऑल्मोस्ट लॉक हो गया! फ़िर उसका लँड उछला! जब लँड उछलता, उसकी गाँड का छेद टाइट हो जाता! फ़िर उसके लँड से वीर्य की धार निकली तो मैने अपने हाथ को ऐसे रखा कि उसका पूरा वीर्य मेरी हथेली पर आ गया! मैने उसके वीर्य को उसके लँड पर रगड रगड के उसकी मुठ मारना जारी रखा! फ़िर उसकी एक एक बून्द निचोड ली और अपने धक्‍के तेज़ कर दिये! मैने अपनी वो हथेली, जो उसके वीर्य में पूरी सन चुकी थी, पहले तो अपने होंठों पर लगाई! उसका वीर्य नमकीन और गर्म था! फ़िर मैने उसको ज़बान से चाटा और फ़ाइनली जब मैं उसको अपने मुह पर क्रीम की तरह रगड रहा था तो मैं बहुत एक्साइटेड हो गया और मेरा लँड भी हिचकोले खाने लगा!
“आह… मेरा भी… मेरा भी झडने वाला है…” मैं सिसकारी भर उठा! और इसके पहले वो समझ पाता, मैने लँड बाहर खींचा और उसको खींच के अपने नीचे करते हुये उसके मुह में लँड डालने की कोशिश की! मगर इसके पहले वो मुह खोलता, मेरे लँड से वीर्य की गर्म मोटी धार निकली और सीधा उसके मुह, चिन, गालों और नाक पर टकरा गयी! वो हडबडाया और इस हडबडाहट में उसका मुह खुला तो मैने अपना झडता हुआ लँड उसके मुह में अंदर तक घुसा के बाकी का माल उसके मुह में झाड दिया!
वो शायद हटना चाहता था, मगर मैने उसको ज़ोर से पकड लिया था… आखिर उसने साँस लेने के लिये जब थूक निगला तो साथ में मेरा वीर्य भी पीने लगा! फ़िर अल्टीमेटली उसने मेरे झडे हुये लौडे को चाटना शुरु कर दिया! मुझे तो मज़ा आ गया! मैने अपने गे जीवन में एक खानदानी अध्याय लिख दिया था!

इस सब के दरमियाँ मैने ये ताड लिया था कि ज़ाइन ने जिस आराम से मेरे जैसे लौडे को घुसवा लिया था और चाटने के टाइम जो उसका रिएक्शन था और जिस तरह उसकी गाँड का सुराख ढीला हुआ था, उसको गाँड मरवाने का काफ़ी एक्स्पीरिएंस था और वो उस तरह का नया नहीं था जिस तरह का मैं शुरु में समझ रहा था! लडका खिलाडी था, काफ़ी खेल चुका था! मगर मुझे ये पता नहीं था कि उसने ये खेल किस किस के साथ खेला था! अब खाने का इन्तज़ाम हो चुका था और शफ़ात वहाँ पहले से बैठा था! गुडिया की रँगत चुदने के बाद उडी उडी सी थी! वो अक्सर शिवेन्द्र से नज़रें मिला रही थी! जब उसने मुझे देखा तो शरमा गयी और कुछ परेशान भी लगी! उसने मुझे देखते हुये देख लिया था! शफ़ात अब सिर्फ़ गुडिया की चूत के सपने संजो रहा था! शिवेन्द्र मस्त था! घर में बीवी थी जिससे दो बच्चे थे और यहाँ उसने ये कॉन्वेंट में पढने वाली चिकनी सी चुलबुली ख़रगोशनी पाल रखी थी! उसका लँड तो हर प्रकार से तर था! अब मुझे ज़ाइन को भी आराम से देखने में मज़ा आ रहा था! चोदने के बाद अब उसकी गाँड जीन्स पर से और भी सैक्सी लग रही थी… वैसे मेरी नज़र शफ़ात के लँड की तरफ़ भी जा रही थी और बीच बीच में मैं शिवेन्द्र को भी देख रहा था जो मुझे मर्दानगी का अल्टीमेट सिम्बल लग रहा था! दोस्तों मुठ मारना बुरी बात है बहूत हो गया मैं कहानी को यहीं ख़तम करता हूँ अब तो अपना हाथ लुंड से हटालो यार
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05-14-2019, 11:28 AM,
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RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (1)

प्रीतम से परिचय

प्रीतम से मेरा परिचय पहली बार तब हुआ जब मैं शहर में कॉलेज में पढ'ने के लिए आया. हॉस्टिल में जगह ना होने से मैं एक घर ढूँढ रहा था. तब मैं सोलह वर्ष का किशोर था और फर्स्ट एअर में गया था. शहर में कोई भी पहचान का नहीं था, इस'लिए एक होटेल में रुका था.

रोज शाम को कॉलेज ख़तम होते ही मैं घर ढूँढ'ने निकलता. मेरी इच्च्छा शहर के किसी अच्छे भाग में घर लेने की थी. मुझे यह आभास हो गया था कि इस'के लिए काफ़ी किराया देना पडेग और किराया बाँट'ने के लिए किसी साथी की ज़रूरत पडेगी. इसी खोज में था कि कौन मेरे साथ घर शेयर कर'के रहेगा.

एक दिन एक मित्र ने मेरी मुलाकात प्रीतम से करा दी. देखते ही मुझे वह भा गया. वा फाइनल एअर में था; उम्र में मुझसे पाँच छह वर्ष बड़ा होगा. उसका शरीर बड़ा गठा हुआ और सजीला था. हल्की मून्छे थी और नज़र बड़ी पैनी थी. रंग गेहुआ था और चेहरे पर जवानी का एक जोश था. ना जा'ने क्यों उस'के उस मस्ता'ने मर्दा'ने रूप को देख'कर मेरे मन में एक अजीब सी टीस उठ'ने लगी.

मुझे अपनी ओर घूरते देख वह मुस्कराया. उस'ने मुझे बताया कि वह भी एक घर ढूँढ रहा है क्योंकि हॉस्टिल से ऊब गया है. उस'की नज़र मुझे बड़े इंटरेस्ट से देख रही थी. उस'की पैनी नज़र और उसका पुष्ट शरीर देख कर मुझे भी एक अजीब सी मीठी सुर'सरी होने लगी थी.

हम ने तय कर लिया कि साथ साथ रहेंगे और आज से ही साथ साथ घर ढूंढ़ेंगे. शाम को उस'ने मुझे हॉस्टिल के अप'ने कमरे पर आने को कहा. वहाँ से दोनों एक साथ घर ढूँढ'ने जाएँगे ऐसा हमारा विचार था. सारा दिन मैं उस'के विचार में खोया रहा. सच तो यह है कि आज कल मेरी जवानी पूरे जोश में थी और मेरा लंड इस बुरी तरह से खड़ा होता था की रोज रात और दोपहर में भी कॉलेज के बाथ रूम में जा'कर दो तीन बार हस्तमैथुन किए बिना मन नहीं मान'ता था. लड़कियाँ या औरतें मुझे अच्छी तो लग'ती थी पर आज कल गठे हुए शरीर के चिक'ने जवान मर्द भी मुझे आकर्षित कर'ने लगे थे. और यह आकर्षण बहुत तीव्र था. ख़ास कर तब से जब से मैने गे सेक्स की कुच्छ सचित्र किताबें देख ली थी. सच तो यह है कि मुझे अहसास होने लगा था कि मैं बाइसेक्सुअल हूँ.

पिच्छाले साल भर से मूठ मारते हुए मैं अक्सर यही कल'पना कर'ता था कि कोई जवान मेरी गान्ड मार रहा है या मैं किसी का लंड चूस रहा हूँ. या फिर मा की उम्र की किसी अधेड भरे पूरे बदन की महिला की गान्ड मार रहा हूँ. मुझे अब ऐसा लग'ने लगा था कि औरत हो या मर्द, जो भी हो पर जल्दी किसी के साथ मेरी कामलीला शुरू हो. मुझे यहाँ नये शहर में संभोग के लिए कोई नारी मिलना तो मुश्किल लग रहा था, मेरे जैसे शर्मीले लड़'के के लिए तो यह करीब करीब असंभव था. इस'लिए आज प्रीतम को देख'कर मैं काफ़ी बेचैन था. अगर हम साथ रहे तो यह गठीला नौजवान मेरे करीब होगा, ज़रूर कुच्छ चक्कर चल जाएगा, इस'की मुझे पूरी आशा थी! पर मुझे यह पक्का पता नहीं था कि वह मेरे बारे में क्या सोच'ता है. खुद पहल कर'ने का साहस मुझ'में नहीं था.

उस शाम इतनी बारिश हुई कि मैं बिलकुल भीग गया. मैं जब प्रीतम के कमरे में पहुँचा तो सिर्फ़ जांघिया और बनियान पह'ने हुए वह कमरे में रब्बर की हवाई चप्पल पहन'कर घूम रहा था. मुझे देख उस'के चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गयी. मुझे कमरे में लेते हुए बोला

आ गया सुकुमार, मुझे लगा था कि बारिश है तो तू शायद नहीं आएगा. इसीलिए मैं तैयार भी नहीं हुआ. तू बैठ, मैं कपड़े पहन'ता हूँ और फिर चलते हैं. मेरे भीगे कपड़े देख कर वह बोला.

यार, तू सब कपड़े उतार के मुझे दे दे, यह तौलिया लपेट कर बैठ जा, तब तक मैं प्रेस से ये सूखा देता हूँ. नहीं तो सर्दी लग जाएगी तुझे, वैसे भी तू नाज़ुक तबीयत का लग रहा है. मैने सब कपड़े उतारे और तौलिया लपेट'कर कुर्सी में बैठ गया. मेरे कपड़े उतार'ने पर मुझे देख कर वह मज़ाक में बोला.

सुकुमार, तू तो बड़ा चिकना निकला यार, लड़कियों के कपड़े पहन ले और बॉल बढ़ा ले तो एक खूबसूरत लड़'की लगेगा. वह प्रेस ऑन कर'के कपड़े सूखा'ने लगा और मुझसे बातें कर'ने लगा. बार बार उस'की नज़र मेरे अधनन्गे जिस्म पर से घूम रही थी. मैं भी तक लगा कर उस'के कसे हुए शरीर को देख रहा था. मन में एक अजीब आकर्षण का भाव था. हम दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर था और लग'ता है कि यही अंतर ह'में एक दूसरे की ओर आकर्षित कर रहा था.

मेरे छरहरे चीक'ने गोरे दुबले पतले पचपन किलो और साढ़े पाँच फुट के शरीर के मुकाबले में उसका गठा हुआ पुष्ट शरीर करीब पचहत्तर किलो वजन का होगा. मुझसे वह करीब चार पाँच इंच ऊँचा भी था. भरी हुई पुष्ट छा'ती का आकार और चूचुकों का उभार बनियान में से दिख रहा था. छा'ती मेरी ही तरह एकदम चिकनी थी, कोई बाल नहीं थे.

मैं सोच'ने लगा कि आख़िर क्यों उस'के चूचुक इत'ने उभरे हुए दिख रहे हैं. फिर मुझे ध्यान आया कि औरतों की तरह ही कयी मर्दों के भी चूचुक उत्तेजित होने पर खड़े हो जाते हैं. मैने समझ लिया कि शायद मुझे देख'कर उसका यह हाल हुआ हो. मेरा भी हाल बुरा था और मेरा लंड उस'के अर्धनग्न शरीर को पास से देख'कर खड़ा होना शुरू हो गया था.

मेरा ध्यान अब उस'की मासल जांघों और बड़े बड़े चूतदों पर गया. उसका जांघिया इतना फिट बैठ था की चूतदों के बीच की लाइन सॉफ दिख रही थी. जब भी वह घूम'ता तो मेरी नज़र उस'के जांघीए में छुपे हुए लंड पर पड़'ती. कपडे के नीचे से सिकुडे और शायद आधे खड़े आकार में ही उसका उभार इतना बड़ा था की जब मैने यह अंदाज़ा लगाना शुरू लिया कि खड होकर यह कैसा दिखेगा तो मैं और उत्तेजित हो उठा.

मेरी नज़र बार बार उस'की चप्पलो पर भी जा रही थी. मेरा शुरू से ही चप्पालों की ओर बहुत आकर्षण रहा है. ख़ास कर'के रब्बर की हवाई चप्पलें मुझे दीवाना कर देती हैं. मेरे पास भी मेरी पुरानी चप्पलो के छह जोड़े हैं. उन्हें हमेशा धो कर सॉफ रख'ता हूँ क्योंकि रोज के हस्तमैथुन में चप्पलो का मेरे लिए बड महत्व है. मूठ मारते समय मैं पहले उनसे खेल'ता हूँ, चूम'ता हूँ, चाट'ता हूँ और फिर मुँह में लेकर चबाते हुए झड जाता हूँ. यही कल'पना कर'ता हूँ कि वो चप्पलें किसी मतवाली नारी या जवान मर्द की हैं. कभी यह कल'पना कर'ता हूँ कि कोई जवान मुझे रेप कर रहा है और मुझे चीख'ने से रोक'ने के लिए मेरे मुँह में अपनी चप्पल ठूंस दी है.

प्रीतम की सफेद रब्बर की चप्पलें भी एकदम सॉफ सुथरी और धुली हुई थी. पहन पहन कर घिस कर बिलकुल मुलायम और चिकनी हो गयी थी. जब प्रीतम चल'ता तो वे चप्पलें सपाक सपाक की आवाज़ कर'के उस'के पैरों से टकरातीं. उन्हें देख'कर मेरा लंड और खड हो गया. मैं सोच'ने लगा कि काश ये खूबसूरत चप्पलें मुझे मिल जाएँ!

अब तक कपड़े सूख गये थे और प्रीतम ने मुझे पहन'ने के लिए वे वापस दिए. मुझे उस'ने आप'ने शरीर और चप्पालों की ओर घूरते देख लिया था पर कुच्छ बोला नहीं, सिर्फ़ मुस्करा दिया. मैं कुर्सी पर से उठ'ने को घबरा रहा था कि उसे तौलिया में से मेरा तन कर खड लंड ना दिख जाए. उस'ने शायद मेरी शरम भाँप ली क्योंकि वह खुद भी मूड कर मेरी ओर पीठ कर'के खड हो गया और कपड़े पहन'ने लगा.

हम लोग बाहर निकले. अब हम ऐसे गप्पें मार रहे थे जैसे पूरा'ने दोस्त हों. उस'ने बताया कि पिछले हफ्ते उस'ने एक घर देखा था जो उसे बहुत पसंद आया था पर एक आदमी के लिए बड़ा था. वह मुझे फिर वहीं ले गया. फ्लैट बड़ा अच्च्छा था. एक बेड रूम, बड बैठ'ने का कमरा, एक किचन और बड़ा बाथ रूम. घर में सब कुच्छ था, फर्नीचर, बर्तन, गैस, ह'में सिर्फ़ अप'ने कपड़े लेकर आने की ज़रूरत थी. किराया कुच्छ ज़्यादा था पर प्रीतम ने मेरी पीठ पर प्यार से एक चपत मार कर कहा कि घर मैं पसंद कर लूँ, फिर ज़्यादा हिस्सा वह दे देगा. कल से ही आने का पक्का कर के हम चल पड़े.

हम दोनों खुश थे. मुझे लग'ता है कि हम दोनों को अब तक मन में यह मालूम हो गया था कि एक साथ रह'ने पर कल से हम एक दूसरे के साथ क्या क्या करेंगे. प्रीतम मेरा हाथ पकड़'कर बोला.

चल यार एक पिक्चर देखते हैं. मैने हामी भर दी क्योंकि प्रीतम से अलग होने का मेरा मन नहीं हो रहा था. प्रीतम ने पिक्चर ऐसी चुनी कि जब हम अंदर जा'कर बैठे तो सिनेमा हॉल एकदम खाली था. मैने जब उससे कहा कि पिक्चर बेकार होगी तो वह हंस'ने लगा.

बड़ा भोला है तू यार, यहाँ कौन पिक्चर देख'ने आया है? ज़रा तेरे साथ अकेले में बैठ'ने को तो मिलेगा. उस'की आवाज़ में छुपी शैतानी और मादक'ता से मेरा दिल धडक'ने लगा और मैं बड़ी बेसब्री से अंधेरा होने का इंतजार कर'ने लगा.

पिक्चर शुरू हुई और सारी बत्तियाँ बुझा दी गयीं. हम दोनों पीछे ड्रेस सर्कल में बैठे थे. दूर दूर तक और कोई नहीं था, कोने में एक दो प्रेमी युगल अलग बैठे थे. सिर्फ़ हमीं दोनों लड़'के थे. मेरे मन में ख्याल आया कि असल में उन युगलों में और हम'में कोई फरक नहीं है. हम भी शायद वही करेंगे जो वे कर'ने आए हैं. मेरा तो बहुत मूड था पर अभी भी मैं पहल कर'ने में डर रहा था. मैने आख़िर यह प्रीतम पर छोड दिया और देख'ने लगा कि उस'के मन में क्या है. मेरा अंदाज़ा सही निकला. अंधेरा होते ही प्रीतम ने बड़े प्रेम से अपना एक हाथ उठ'कर मेरे कंधों पर बड़े याराना अंदाज में रख दिया. फुसफुसा कर हल्की आवाज़ में मेरे कान में वह बोला.

यार सुकुमार, कुच्छ भी कह, तू बड़ा चिकना छ्हॉकरा है दोस्त, बहुत कम लड़कियाँ भी इतनी प्यारी होती हैं. मैने भी अपना हाथ धीरे से उस'की जाँघ पर रखते हुए कहा.

यार प्रीतम, तू भी तो बड मस्त तगड़ा और मजबूत जवान है. लड़कियाँ तो तुझ पर खूब मर'ती होंगीं? उसका हाथ अब नीचे खिसक'कर मेरे चेहरे को सहला रहा था. मेरे कान और गाल को बड़े प्यार से अपनी उंगलियों से धीरे धीरे गुदगुदी कर'ता हुआ वह अपना सिर बिलकुल मेरे सिर के पास ला कर बोला

मुझे फराक नहीं पड़ता, वैसे भी छ्हॉकरियों में मेरी ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है. मुझे तो बस तेरे जैसा एकाध चिकना दोस्त मिल जाए तो मुझे और कुच्छ नहीं चाहिए. और उस'ने झुक कर बड़े प्यार से मेरा गाल चूम लिया.

मुझे बहुत अच्च्छा लगा, बिलकुल ऐसे जैसे किसी लड़'की को लग'ता होगा अगर उसका प्रेमी उसे छूता होगा. मेरा लंड अब तक पूरी तरह खड़ा हो चुका था. मैने अपना हाथ अब साहस कर'के बढ़ाया और उस'की पैंट पर रख दिया. हाथ में मानो एक बड तंबू आ गया. ऐसा लग'ता था कि पैंट के अंदर उसका लंड नहीं, कोई बड़ा मूसल हो. उस'के आकार से ही मैं चकरा गया. इतना बड़ा लंड! अब तक हम दोनों के सब्र का बाँध टूट चुका था. प्रीतम ने अपना हाथ मेरी छा'ती पर रखा और मेरे चूचुक शर्त के उपर से ही दबाते हुए मुझे बोला.चल बहुत नाटक हो गया, अब ना तड़पा यार, एक चुम्मा दे जल्दी से. मैने अपना मुँह आगे कर दिया और प्रीतम ने अपना दूसरा हाथ मेरे गले में डाल कर मुझे पास खींच'कर अप'ने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. हमारा यह पहला चुंबन बड़ा मादक था. उस'के होंठ थोड़े खुरदरे थे और उस'की छोटी मूँछहों से मेरे ऊपरी होंठ पर बड़ी प्यारी गुदगुदी हो रही थी. उस'की जीभ हल्के हल्के मेरे होंठ चाट रही थी. उस'के मुँह से हल्की हल्की आफ्टर शेव की खुशबू आ रही थी. मेरा मन हो रहा था कि उस'के मुँह में जीभ डाल दूँ या उस'की जीभ चूस लूँ, किसी भी तरह उस'के मुखरस का स्वाद लूँ, पर अब भी थोड़ा शरमा रहा था.

हम एक दूसरे को बेतहाशा चूमते हुए अप'ने अप'ने हाथों से एक दूसरे के लंड टटोल रहे थे. हमारी चूमा चॅटी अब ह'में इतनी उत्तेजित कर उठी थी कि मुझे लगा कि वहीं उसका लंड चूस लूँ. पर जब हमारे आस पास अचानक होती हलचल से ये समा टूट तो हम'ने चुंबन तोड़ कर इधर उधर देखा. पता चला कि काफ़ी दर्शक हॉल में आना शुरू हो गये थे. वे सब हमारे आस पास बैठ'ने लगे थे. धीरे धीरे काफ़ी भीड़ हो गयी. ह'में मजबूरन अपना प्रेमालाप बंद करना पड़ा. अप'ने उछलते लंड पर मैने किसी तरह काबू किया. प्रीतम भी खिसक'कर बैठ गया और वासना थोड़ी दब'ने पर बोला.

चल यार, चलते हैं, यहाँ बैठ'कर अब कोई फ़ायदा नहीं. साली भीड़ ने आ'कर अपनी 'के एल डी' कर डी मैने पूचछा कि 'के एल डी' का मतलब क्या है तो हंस कर बोला.

यार, इसका मतलब है - खड़े लंड पर धोखा. हम बाहर निकल आए. एक दूसरे की ओर देख'कर प्यार से हँसे और हाथ में हाथ लिए चल'ने लगे. प्रीतम ने कहा

अच्च्छा हुआ यार, असल में ह'में अपना पहला रोमास आराम से अप'ने घर में मज़े ले लेकर करना चाहिए, ऐसा च्छूप कर जल्दी में नहीं. चल, कल रात को मज़ा करेंगे. मैने चलते चलते धीरे से पूचछा

प्रीतम, मेरे राजा, यार तेरा लंड लग'ता है बहुत बड़ा है, कितना लंबा है? वह हंस'ने लगा.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:28 AM,
#14
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (2)

गतान्क से आगे........

डर लग रहा है? कल खुद नाप लेना मेरी जान, पर घबरा मत, बहुत प्यार से दूँगा तुझे. प्रीतम का लंड लेने की कल'पना से मैं मदहोश सा हो गया. अब हम चलते चलते एक बाग में से गुजर रहे थे. अंधेरा था और आगे पीछे कोई नहीं था. प्रीतम ने अपना हाथ मेरी कमर में डाला और पैंट के अंदर डाल कर मेरे नितंब सहला'ने लगा. जब उस'की एक उंगली मेरे गुदा के छेद को रगड़'ने और मसल'ने लगी तो मैं मस्ती से सिसक उठा. प्रीतम मेरी उत्तेजना देख कर मुस्कराया और हाथ बाहर निकाल कर बीच की उंगली मुँह में लेकर चूस'ने लगा. मैने जब उस'की ओर देखा तो वह मुस्कराया पर कुच्छ बोला नहीं.

अब उस'ने फिर से हाथ मेरी पैंट और जांघीए के अंदर डाला और अपनी गीली उंगली धीरे धीरे मेरे गुदा में घुसेड दी. मैं मस्ती और दर्द से चिहुन्क कर रह गया और रुक गया. वह बोला.

चलते रहो यार, रूको नहीं, दर्द होता है क्या? दर्द ना हो इस'लिए तो मैने उंगली थूक से गीली की थी और उस'ने मुझे पास खींच'कर फिर चूमना शुरू कर दिया. मुझे अब बड़ा सुख मिल रहा था, लंड ज़ोर से खड़ा था और गान्ड में भी एक बड़ी मीठी कसक हो रही थी. प्रीतम अब पूरी उंगली अंदर डाल चुका था और इधर उधर घुमा रहा था जैसे मेरी गान्ड का अंदर से जायज़ा ले रहा हो. मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था पर उस'में भी एक मिठास थी. जब मैने यह बात उससे कही तो फिर उस'ने मुझे ज़ोर से चूम लिया.

तू सच्चा गान्डू है मेरे यार मेरी तरह, तभी इतना मज़ा आ रहा है गान्ड में उंगली का. पर एक ही उंगली में तेरा यह हाल है मेरे यार, फिर आगे क्या होगा? खैर तू यह मुझ पर छोड दे. तू मेरे लंड का ख्याल रखना, मैं तेरी इस प्यारी कुँवारी गान्ड का ख्याल रखूँगा, बहुत प्यार से लूँगा तेरी. फाड़ूँगा नहीं.

मैं अब मानो हवा में चल रहा था. लग'ता था की कभी भी झड जाऊँगा. मैने भी एक हाथ उस'की पैंट में डाल दिया और उस'के चूतड सहला'ने लगा. बड़े ठोस और भरे हुए चूतड थे उसके. प्रीतम मुझे चूम'ता हुआ मेरी गान्ड में उंगली कर'ता रहा और हम चलते रहे. प्रीतम आगे बोला.

राजा, असल में मैं देख रहा था कि कितनी गहरी और कसी है तेरी गान्ड . एकदम मस्त और प्यारी निकली यार. लग'ता है कि कुँवारी है, कभी मरवाई नहीं लग'ता है? मैने जब कुँवारा होने की हामी भरी तो वह बड खुश हुआ. मुझे लगा ही इस'की सकराई देख कर. यार तू इस'में कुच्छ तो डाल'ता होगा मूठ मारते समय. मैने कुच्छ शरमा कर कहा कि कभी कभी पतली मोमबत्ती या पेन मैं ज़रूर डाल'ता था. वह खुश होकर बोला.

वाहा, मेरे यार, राजा, तूने अपनी कुँवारी गान्ड लग'ता है सिर्फ़ मेरे लिए संभाल कर रखी है, मज़ा आ गया राजा. उसका हॉस्टिल आ गया था. उस'ने उंगली मेरी गान्ड में से निकाली और हम अलग हो गये. हॉस्टिल के गेट पर खड़े होकर उस'ने मुझसे कहा.

देख मेरे प्यारे, आज मूठ नहीं मारना, मैं भी नहीं मारूँगा. अपनी मस्ती कल के लिए बचा कर रख, समझ हमारा हनीमून है, ठीक है ना? मैने हामी भरी पर मेरा लंड अभी भी खड़ा था और उसे मैं दबा कर बैठ'ने की कोशिश कर रहा था. यह देख कर उस'ने पूच्छा.

वीक्स है ना तेरे पास? जब मैने हां कहा तो बोला.

आज रात और कल दिन में वीक्स लगा लेना अप'ने लौडे पर. जलेगा थोड़ा पर देख एकदम ठंडा हो जाएगा. कल रात नहा कर धो डालना, आधे घंटे में फिर तनताना जाएगा. हम'ने एक दूसरे से विदा ली. हम'ने सामान लेकर शाम को सीधा नये घर में मिल'ने का प्लान बनाया. मेरे साम'ने अब प्रीतम ने बड़ी शैतानी से अपनी वही उंगली, जो उस'ने मेरी गान्ड में की थी, मुँह में ले ली और चूस'ने लगा.

इनडाइरेक्ट स्वाद ले रहा हूँ प्यारे तेरी मीठी गान्ड का, कल एकदम डाइरेक्ट स्वाद मिलेगा मुझे. वैसे बड़ा मीठ टेस्ट है, मैं तो खा जाऊँगा कल उसे मैं फिर शरमा गया और वापस चल पड़ा. कामुक'ता से मेरा बुरा हाल था. मन में प्रीतम छ्चाया हुआ था. मूठ मार'ने को मैं मरा जा रहा था पर प्रीतम को दिए वायदे के अनुसार मैने लंड पर वीक्स लगाया और फिर एक नींद की गोली लेकर सो गया.

साथ रह'ने की शुरुआत

दूसरे दिन शुक्रवार था और कॉलेज जल्दी छूट'ता था. दिन भर मेरी हालत खराब रही, वीक्स के कारण लंड तो नहीं खड हुआ पर उसमे अजीब से मीठी चुभन होती रही. छ्हुट्टी होने पर मैने होटेल आ'कर अपना सूटकेस बाँधा और नये घर में आ गया. प्रीतम अभी नहीं आया था. मैने घर जमाना शुरू कर दिया जिससे प्रीतम के आने पर जल्दी से जल्दी अपना असली काम शुरू किया जा सके. बेड रूम में दो पलंग अलग अलग थे. मैने वे जोड़ दिए. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं कोई नयी दुल्हन हूँ जो अप'ने पिया का इंतजार कर रही हो.

अपनी चप्प्लो की जोड़ी में से मैने गुलाबी रंग की चप्पल निकाल कर पहन ली. मेरे गोरे रंग पर वह फॅब'ती थी यह मैं जान'ता था. फिर मैं खूब नहाया, बदन पर खुशबूदार पाउडर लगाया और सिर्फ़ एक जांघिया और हाफपैइंट पहन कर प्रीतम का इंतजार कर'ने लगा.

प्रीतम को रिझा'ने को मेरा ऊपरी गोरा चिकना बदन जानबूझ'कर मैने नंगा रखा था. हाफपैइंट भी एकदम छोटी थी जिससे मेरी गोरी गोरी जांघें आधे से ज़्यादा दिख रही थी. वीक्स धो डाल'ने से कुच्छ ही मिनटों में मेरा लंड खड़ा होने लगा. प्रीतम के आने के समय तक मैं पूरा कामातूर हो चुका था.

आख़िर बेल बजी और दौड़ कर मैने प्रीतम के लिए दरवाजा खोला. उस'ने मेरा अधानांगा बदन और हाफपैइंट में से सॉफ दिखते खड़े लंड का आकार देखा तो उस'की आँखों में कामवासना झलक उठी. मुझे लगा कि शायद वह मेरा चुंबन ले पर उस'ने आप'ने आप पर काबू रखा. अपना सूटकेस कमरे में रख कर वह सीधा नहा'ने चला गया. मुझे बोल गया कि मैं सब दरवाजे बंद कर लूँ और सूटकेस में से उस'के कपड़े और किताबें निकाल कर जमा दूं. वह भी इस तरह अधिकार से बोल रहा था जैसे मैं उसका दोस्त नहीं, पत्नी हूँ. मैने बड़ी खुशी से वह काम किया और उसका इंतजार कर'ने लगा.

दस मिनिट बाद प्रीतम फ्रेश होकर बाहर आया. वह सिर्फ़ तौलिया लपेटे हुए था. मैं बेड रूम में बैठ'कर उसका इंतजार कर रहा था. उस ने आ'कर बेड रूम का दरवाजा बंद किया और मुस्कराता हुआ मेरी ओर मुडा. उसका गठा हुआ सुडौल शरीर मैं देख'ता ही रह गया. गोरी तगडी जांघें, मजबूत पेशियों वाली बाँहें, पुष्ट छा'ती और उनपर भूरे रंग के चूचुक. उस'के चूचुक काफ़ी बड़े थे, करीब करीब बेरों जीत'ने बड़े. तौलिया में इतना बड़ा तंबू बन गया था जैसे की कोई बड़ा डंडा अंदर से टीका कर लगाया हो.

प्रीतम मेरी ओर बढ़ा और मुझे बाँहों में भर के चूम'ने लगा. उस'के बड़े बड़े थोड़े खुरदरे होंठों का मेरे होंठों पर अहसास मुझे मदहोश कर रहा था. चूमते चूमते धकेल'ता हुआ वह मुझे पलंग पर ले गया और पटक'कर मेरे ऊपर चढ बैठा. फिर बेतहाशा मुझे अपनी प्रेमिका जैसा चूम'ने लगा. मेरा मुँह अपनी जीभ से खोल'कर उस'ने अपनी लंबी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरे तालू, जीभ और गले को अंदर से चाट'ने लगा. मैने भी उस'की जीभ चूसना शुरू कर दी. वह गीली रस भरी जीभ मुझे किसी मिठायी की तरह लग रही थी. आख़िर उस'के मादक मुखरस का स्वाद मुझे मिल ही गया था.

चूमते चूमते वह अप'ने हाथ मेरे पूरे शरीर पर फिरा रहा था. मेरी पीठ, कंधे, कमर और मेरी च्छा'टी को उस'ने सहलाया और हाथ से मेरी जांघें दबा'ने लगा. फिर झुक कर मेरे गुलाबी चूचुक चूस'ने लगा. मेरे चूचुक ज़रा ज़रा से हैं, किसमिस जैसे, पर उस'की जीभ के स्पर्श से अंगूर से कड़े हो गये.

क्या चूचुक हैं यार तेरे. लड़कियों से भी खूबसूरत! कह'कर उस'ने मेरी हाफपैइंट उस'ने खींच कर निकाल दी और फिर उठ कर मेरे साम'ने बैठ कर मुझे अपनी भूकी आँखों से ऐसे देख'ने लगा जैसे कच्चा चबा जाएगा. मेरे शरीर पर अब सिर्फ़ एक टांग छोटा सफेद पैंटी जैसा जांघिया था जिस'में से मेरा तन्नाया हुआ लंड उभर आया था. असल में वह एक पैंटी ही थी जो कल मैं खरीद लाया था.

वाह यार, क्या खूबसूरत चिकना लौंडा है तू, और जांघिया भी एकदम सेक्सी है, पैंटी है क्या? चल अपना असली माल तो जल्दी से दिखा. लौंदियो से कम खूबसूरत नहीं होगा तेरा माल कहते हुए उस'ने आख़िर मेरा जांघिया खींच कर अलग कर दिया और मुझे पूरा नग्न कर दिया. मेरा शिश्न जांघीए से छूटते ही तंन से खड हो गया. प्रीतम ने उसे देख'कर सीटी बजाई और बोला.

वाह मेरी जान, क्या माल है, ऐसा खूबसूरत लंड तो आज तक रंगीली किताबों में भी नहीं देखा. असल में मेरा लंड बहुत सुंदर है. आज तक मेरा सब से बड दुख यही था कि मैं खुद उसे नहीं चूस सकता. मेरा लंड मैने बहुत बार नापा था. डेढ इंच मोटा और साढ़े पाँच इंच लंबा गोरा गोरा डंडा और उसपर खिला हुआ लाल गुलाबी बड़ी लीची जितना सुपाडा. गोरे डंडे पर कुच्छ हल्की नीली नाज़ुक नसें भी हैं.

मस्ती में थिरकते हुए उस लंड को देख'कर प्रीतम का भी सब्र टूट गया. वह झट से पलंग पर चढ गया और हाथ में लेकर उसे हौले हौले दबाते हुए अपनी हथेली में भर लिया. दूसरे हथेली में उस'ने मेरी गोरी गोरी गोटियों को पकड़ लिया. मेरी झाँटें भी छोटी और रेशम जैसी मुलायम हैं. प्रीतम उन'में उंगलियाँ चलाते हुए बोला.

तू तो माल है मेरी जान, इतना कमसिन है कि झाँटें भी अभी पूरी नहीं उगी. और ये लाल लीची, हाय खा जा'ने को जी कर'ता है, अब चख'ना पडेग नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा. झुक'कर उस'ने बड़े प्यार से मेरे सुपाडे को चूम और अप'ने गालों, आँखों और होंठों पर घुमा'ने लगा. फिर अपनी जीभ निकाल कर उसे चाट'ने लगा. उस'की खुरदरी जीभ के स्पर्श से मेरे लंड में इतना मीठा संवेदन हुआ कि मैं सिसक उठ और बोला.

प्रीतम मेरे राजा, मत कर यार, मैं झड जाऊँगा. वह जीभ से पूरे लंड को चाट'ता हुआ बोला.

तो झड जा यार, तेरा रस पीने को तो मैं कब से बेताब हूँ, चल तुझे चूस ही डाल'ता हूँ, अब नहीं रहा जाता मुझसे. और उस'ने अपना मुँह खोल कर पूरा लंड निगल लिया और गन्ने जैसा चूस'ने लगा. मुझे जो सुख मिला वह कल'पना के बाहर था. मैने कसमसा कर उसका सिर पकड़'कर अप'ने पेट पर दबा लिया और गान्ड उचका उचका कर उस'के मुँह को चोद'ने की कोशिश कर'ने लगा. प्रीतम की जीभ अब मेरे लंड को और सुपाडे को घिस घिस कर मुझे और तड़पा रही थी. मैने कल से अपनी वासना पर काबू किया हुआ था इस'लिए इस मीठे खेल को और ना सह सका और दो ही मिनिट में झड गया.

हाय यार, ऊ ... मया ... मर गया ... कह'कर मैं पस्त हो गया. मेरा वीर्य उबल उबल कर लंड में से बाहर निकल रहा था और प्रीतम आँखें बंद कर'के बड़े चाव से उसे चख चख कर खा रहा था. . जब लंड उछलना थोड़ा कम हुआ तो वह मेरे लंड के छेद पर अपनी जीभ रगडते हुए बूँद बूँद को बड़ी अधीर'ता से निगल'ने लगा. आख़िर जब उस'ने मुझे छोडा तो मैं पूरा लस्त हो गया था.

मेरी जान, तू तो रसमलाई है, अब यह मिठायी मैं ही लूँगा रोज, इतना मीठा वीर्य तो कभी नहीं चखा मैने. कहते हुए प्रीतम उठा और बहुत प्यार से मेरा एक चुंबन लेकर पलंग से उतर'कर खड़ा हो गया. मेरी ओर प्यार से देख'कर उस'ने आँख मारी और अपना तौलिया उतार कर फेक दिया.

अब देख, तेरे लिए मैं क्या उपहार लाया हूँ! तुझे ज़रूर भाएगा देखना, बिलकुल तेरी खूबसूर'ती के लायक तोहफा है उसका लंड तौलिया की गिरफ़्त से छूट'कर उच्छल कर थिरक'ने लगा. उस मस्त भीमकाय लंड को मैं देख'ता ही रह गया.

दो ढाई इंच मोटा और सात-आठ इंच लंबा तगड़ा गोरा गोरा शिश्न उस'के पेट से सॅट'कर खड़ा था. लंड के डंडे पर फूली हुई नसें उभरी हुई थी. लंड की जड़ में घनी काली झाँटें थी. प्रीतम के पूरे चीक'ने शरीर पर बालों की कमी उन झांतों ने पूरी कर दी थी. नीचे दो बड़ी बड़ी भरी हुई गोतियाँ लटक रही थी. उस लंड को देख'कर मेरा सिर चकरा'ने लगा और मुँह में पानी भर आया. डर भी लगा और एक अजीब सी सुखद अनुभूति मेरे गुदा में होने लगी. उसका सुपाड़ा तो पाव भर के लाल लाल टमाटर जैसा मोटा था और टमाटर जितना ही रसीला लग रहा था.

देख राजा, क्या माल तैयार किया है तेरे लिए. बोल मेरी जान? कैसे लेगा इसे? तेरे किस छेद में दूँ? आज से यह बस तेरे लिए है. प्रीतम अप'ने लंड को प्यार से अपनी मूठी में भर कर सहलाता हुआ बोला. मैं उस हसीन मस्त लौडे को देख'कर पथारा सा गया था. चुपचाप मैं उठ और जा'कर प्रीतम के साम'ने घुट'ने टेक कर बैठ गया जैसे पुजारी मंदिर में भगवान के आगे बैठते हैं. ठीक भी था, आख़िर वह मेरे लिए कामदेव से कम नहीं था. समझ में नहीं आ रहा था कि उस शानदार लिंग का कैसे उपभोग करूँ. चूसूं या फिर सीधा अपनी गान्ड में ले लूँ ! मेरे चेहरे पर डर के भाव देख'कर प्रीतम मेरी परेशानी समझ गया. प्यार से मेरे बाल सहलाते हुए बोला.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:29 AM,
#15
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (3)

गतान्क से आगे........

यार, तू चूस ले पहले, इतना गाढा वीर्य पिलाऊँगा कि रबडी भी उस'के साम'ने फीकी पड़ जाएगी. और असल में अभी इससे अगर तुझे चोदून्गा तो ज़रूर तेरी फट जाएगी. तू नहीं झेल पाएगा. अपनी जान की नाज़ुक गान्ड मैं फाड़ना नहीं चाहता. आख़िर रोज मारनी है! एक बार झड'ने के बाद जब थोड़ा ज़ोर कम हो जाए इस मुस्टंडे का, तो फिर मारूँगा तेरी प्यार से. और वह अपना सुपाड मेरे गालों और मुँह पर बड़े लाड से रगड़'ने लगा.

मैने प्रीतम के लंड को हाथ में लिया. वह ऐसा थिरक रहा था जैसे की कोई जिंदा जानवर हो. उस'की नसें सूज कर रस्सी जैसी फूल गयी थी. शुपाडे की बुरी तरह तनी हुई लाल चमडी बिलकुल रेशम जैसी मुलायम थी. शुपाडे के बीच के छेद से बड़ी भीनी खुशबू आ रही थी और छेद पर एक मोटी जैसी बूँद भी चमक रही थी. पास से उस'की घनी झाँटें भी बहुत मादक लग रही थी, एक एक घूंघराला बाल साफ दिख रहा था.

मैं अब और ना रुक सका और जीभ निकाल कर उस मस्त चीज़ को चाट'ने लगा. पहले तो मैने उस अमृत सी बूँद को जीभ की नोक से उठ लिया और फिर पूरे लंड को अपनी जीभ से ऐसे चाट'ने लगा जैसे की आइसक्रीम की कैंडी हो. प्रीतम ने एक सुख की आह भारी और मेरे सिर को पकड़'कर अप'ने पेट पर दबाना शुरू किया.

मज़ा आ गया यार, बड मस्त चाट'ता है तू, अब मुँह में ले ले मेरे राजा, चूस ले. मैं भी उस रसीले लंड की मलाई का स्वाद लेने को उत्सुक था इस'लिए मैने अप'ने होंठ खोले और सुपाड़ा मुँह में लेने की कोशिश की. वह इतना बड़ा था कि दो तीन बार कोशिश कर'ने पर भी मुँह में नहीं समा रहा था और मेरे दाँत बार बार उस'की नाज़ुक चमडी में लग'ने से प्रीतम सिसक उठ'ता था. आख़िर प्रीतम ने बाँये हाथ में अपना लौड पकड़ा और दाहिने से मेरे गालों को दबाते हुए बोला.

लग'ता है मेरे यार ने कभी लंड नहीं चूसा, चल तुझे सिखाऊँ, पहले तू अप'ने होंठों से अप'ने दाँत ढक ले. शाब्बा ... स. अब मुँह खोल. इतना सा नहीं राजा! और खोल! समझ डेन्टिस्ट के यहाँ बैठा है. उसका हाथ मेरे गालों को कस कर पिचका कर मेरा मुँह खोल'ने लगा और साथ ही मैने भी पूरी शक्ति से अपना मुँह चौड़ा दिया. ठीक मौके पर प्रीतम ने सुपाड़ा थोड़ा दबाया और मेरे मुँह में सरका दिया. पूरा सुपाड़ा ऐसे मेरे मुँह में भर गया जैसे बड़ा लड्डू हो. उस मुलायम चिक'ने लड्डू को मैं चूस'ने लगा.

प्रीतम ने अब लंड पर से हाथ हटा लिया और मेरे बालों में उंगलियाँ प्यार से चलाता हुआ मुझे प्रोत्साहित कर'ने लगा. मैने उस'के लंड का डंडा हाथ में लिया और दबा'ने लगा. ढाई इंच मोटे उस सख़्त नसों से भरे हुए डंडे को हाथ में लेकर ऐसा लग'ता था जैसे किसी मोटी ककडी को पकड़ा हुआ हूँ. अपनी जीभ मैने उस'के सुपाडे की सतह पर घुमाई तो प्रीतम हुमक उठा और दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़'कर अपनी ओर खींच'ता हुआ बोला.

पूरा ले ले मुँह में सुकुमार राजा, निगल ले, पूरा लेकर चूस'ने में और मज़ा आएगा. मैने अपना गला ढीला छोडा और लंड और अंदर लेने की कोशिश की. बस तीन चार इंच ही ले पाया. मेरा मुँह पूरा भर गया था और सुपाड भी गले में पहुँच कर अटक गया था. प्रीतम ने अब अधीर होकर मेरा सिर पकड और अप'ने पेट पर भींच लिया. वह अपना पूरा लंड मेरे मुँह में घुसेड'ने की कोशिश कर रहा था.

पर गले में सुपाड फँस'ने से मैं गोंगिया'ने लगा. लंड मुँह में लेकर चूस'ने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था पर अब ऐसा लग रहा था जैसे मेरा दम घुट जाएगा. मुझे छटपाटाता देख प्रीतम ने अपनी पकड़ ढीली कर दी.

लग'ता है पहली बार है मेरे यार का, लंड नहीं चूसा कभी. चल कोई बात नहीं, पहली बार है, अगली बार पूरा ले लेना. अब चल, पलंग पर चल. वहाँ आराम से लेट कर तुझे अपना लंड चुसवाता हूँ कह'ता हुआ प्रीतम पलंग पर बैठ गया. पीच्चे सरक'कर वह सिराहा'ने से सॅट कर आराम से लेट गया और मुझे अपनी जाँघ पर सिर रख कर लिटा लिया. उसका लंड अभी भी मैने मुँह में लिया हुआ था और चूस रहा था.

देख अब मैं तेरे मुँह में साडाका लगाता हूँ, तू चूस'ता रहा, जल्दी नहीं करना मेरे राजा, आराम से चूस, तू भी मज़ा ले, मैं भी लेता हूँ. कह'कर उस'ने मेरे मुँह के बाहर निकले लंड को अपनी मूठी में पकड और मेरे सिर को दूसरे हाथ से तान कर सहारा दिया. फिर वह अपने हाथ आगे पीछे कर'ता हुआ सटासट साडाका लगा'ने लगा.

जैसे उसका हाथ आगे पीछे होता, सुपाड़ा मेरे मुँह में और फूल'ता और सिकुडता. मैं प्रीतम की जाँघ पर सिर रखे उस'की आँखों में आँखें डाल'कर मन लगा'कर उसका लॉडा चूस'ने लगा. प्रीतम बीच बीच में झुक'कर मेरा गाल चूम लेता. उस'की आँखों में अजब कामुक'ता और प्यार की खुमारी थी. पंद्रह बीस मिनिट तक वह सडक लगाता रहा. जब भी वह झड'ने को होता तो हाथ रोक लेता. बड़ा जबरदस्त कंट्रोल था अपनी वासना पर, मंजा हुआ खिलाड़ी था.

वह तो शायद रात भर चुसवाता पर अब मैं ही बहुत अधीर हो गया था. मेरा लंड भी फिर से खड़ा होने लगा था. प्रीतम का वीर्य पीने को मैं आतुर था. आख़िर जब फिर से वह झड'ने के करीब आया तो मैने बड़ी याचना भरी नज़रों से उस'की ओर देखा. उस'ने मेरी बात मान ली.

ठीक है, चल अब झाड़'ता हूँ, तैयार रहना मेरे दोस्त, एक बूँद भी नहीं छोडना, मस्त माल है, तू खुशकिस्मत है, सब को नहीं पिलाता मैं अप'ने लौडे की मलाई. कह कर वह ज़ोर ज़ोर से हस्तमैथुन कर'ने लगा. अब उस'के दूसरे हाथ का दबाव भी मेरे सिर पर बढ गया था और लंड मेरे मुँह में और गहराई तक ठूंस'ता हुआ वह सपासाप मूठ मार रहा था.

अचानक उस'के मुँह से एक सिस'की निकली और उसका शरीर ऐंठ सा गया. सुपाड़ा अचानक मेरे मुँह में एकदम फूला जैसे गुब्बारा फूल'कर फट'ने वाला हो. फिर गरम गरम घी जैसी बूँदें मेरे मुँह में बरस'ने लगीं. शुरू में तो ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने मलाई का नाल खोल दिया हो इस'लिए मैं उन्हें मुँह से ना निकल'ने देने के चक्कर में सीधा निगल'ता गया, जबकि मेरी इच्च्छा यह हो रही थी कि उन्हें जीभ पर लूं और चाखूँ.

जब लंड का उछलना कुच्छ कम हुआ तब जा'कर मैने अपनी जीभ उस'के छेद पर लगाई और बूँदों को इकठ्ठा कर'ने लगा. चम्मच भर माल जमा होने पर मैने उसे चखा. मानो अमृत था. गाढ़ा गाढा पिघले मक्खन सा, खारा और कुच्छ कसैला. मैने उस चिपचिपे द्रव्य को अपनी जीभ पर खूब घुमाया और जब वह पानी हो गया तो निगल लिया. तब तक प्रीतम का लंड एक और चम्मच माल मेरी जीभ पर उगल चुका था.

पाँच मिनिट लगे मुझे मेरे यार के इस अमूल्य उपहार को निगल'ने में. प्रीतम का लंड अब ठंडा होकर सिकुड'ने लगा था पर मैं उसे तब तक मुँह में लेकर प्यार से चूस'ता रहा जब तक वह बिलकुल नहीं मुरझा गया. आख़िर जब मैने उसे मुँह से निकाला तो प्रीतम ने मुझे खींच कर अप'ने साथ बिठ लिया और मेरा चुंबन लेते हुए बोला.

मेरे राजा, मेरी जान, तू तो लंड चूस'ने में एकदम हीरा है, मालूम है, साले नये नौसिखिए छोकरे शुरू में बहुत सा वीर्य मुँह से निकल जा'ने देते हैं पर तूने तो एक बूँद नहीं बेकार की. बस पूरा लंड मुँह में लेना तुझे सिखाना पड़ेगा, फिर तू किसी रंडी से कम नहीं होगा लंड चूस'ने में मैं उस'की इस शाबासी पर कुच्छ शरमा गया और उसे चूम'ने लगा.

अब हम आपस में लिपट'कर अप'ने हाथों से एक दूसरे के शरीर को सहला रहे थे. चुंबन जारी थे. एक दूसरे के लंड चूस'ने की प्यास बुझ'ने के बाद हम दोनों ही अब चूम चाटी के मूड में थे. पहले तो हम'ने एक दूसरे के होंठों का गहरा चुंबन लिया. प्रीतम की मून्छ मेरे ऊपरी होंठ पर गड़'कर बड़ी मीठी गुदगुदी कर रही थी.

फिर हम'ने अपना मुँह खोला और खुले मुँह वाले चुंबन लेने लगे. अब मज़ा और बढ गया. प्रीतम ने अपनी जीभ मेरे होंठों पर चलाई और फिर मेरे मुँह में डाल दी और मेरी जीभ से लड़ा'ने लगा. मैने भी जीभ निकाली और कुच्छ देर हम हँसते हुए सिर्फ़ जीभ लडाते रहे. फिर एक दूसरे की जीभ मुँह में लेकर चूस'ने का सिलसिला शुरू हुआ.

प्रीतम के मुँह के रस का स्वाद पहली बार मुझे ठीक से मिला और मुझे इतना अच्च्छा लगा कि मैं उस'की जीभ गोली जैसे चूस'ने लगा. उसे भी मेरा मुँह बहुत मीठा लगा होगा क्योंकि वह भी मेरी जीभ बार बार अप'ने होंठों में दबा कर चूस लेता. प्रीतम ने सहसा प्यार से मुझे डाँट कर कहा

साले मादरचोद, मुँह खोल और खुला रख, जब तक मैं बंद कर'ने को ना कहूँ, खुला रखना और फिर मेरे खुले मुँह में उस'ने अपनी लंबी जीभ डाली और मेरे दाँत, मसूडे, जीभ, तालू और आख़िर में मेरा गला अंदर से चाट'ने लगा. उसे मैने मन भर कर अप'ने मुँह का स्वाद लेने दिया. फिर उस'ने भी मुझे वही कर'ने दिया. अब हम दोनों के लंड फिर तन कर खड़े हो गये थे. एक दूसरे के लंडों को मूठी में पकड़'कर हम मुठिया रहे थे. बड़ा मज़ा आ रहा था.

अब क्या करें यार? मैने पूच्छा. हंस कर मेरा चुम्मा लेते हुए प्रीतम बोला.

अब तो असली काम शुरू होगा मेरी जान, गान्ड मार'ने का.

आज ही? मैने थोड़ा डर कर पूच्छा. मुझे उस'के मतवाले लंड को देख'कर मरवा'ने की इच्च्छा तो हो रही थी पर गान्ड में दर्द का भय भी था.

हां राजा, आज ही, इसीलिए तो दोपहर में सोए थे, आज रात भर जाग कर मस्ती करेंगे, कल तो छुट्टी है, देर तक सोएंगे. पहली बार गान्ड मरा रहा है तू, कल आराम मिल जाएगा! प्रीतम की प्यार भरी ज़ोर ज़बरदस्ती पर मैने भी जब यह सोचा कि अपनी गान्ड मरवा'ने के साथ साथ मैं भी प्रीतम की मोटी ताजी गान्ड मार सकूँगा तो मेरा डर कम हुआ और साथ साथ एक अजीब खुमार लंड में चढ गया.

पहले तू मरवाएगा या मैं मरवाऊ? प्रीतम ने अपना लॉडा मुठियाते हुए पूच्छा. मेरी झिझक देख'कर फिर खुद ही बोला.

चल तू ही मार ले. तेरे मस्त लंड से चुदवा'ने को मरी जा रही है मेरी गान्ड, साली बहुत कुलबुला रही है तेरा लॉडा देख'कर, बिलकुल चूत जैसी पुकपुका रही है वह ओन्धे मुँह बिस्तर पर लेट गया और अप'ने चूतड हिला कर मुझे रिझाता हुआ बोला.

देख अब मेरे चूतड तेरे हैं, जो करना है कर, तेरी गान्ड तो बहुत प्यारी है यार, बिलकुल लौन्दियो जैसी, मेरे चूतड ज़रा बड़े हैं, भारी भरकम. देख अच्छे लगते हैं तुझे या नहीं. मैं उस'के पास जा'कर बैठ गया और उस'के चूतड सहला'ने लगा. पहली बार किसी की गान्ड इतनी पास से सॉफ देख रहा था, और वह भी किसी औरत की नहीं बल्कि एक हट्टे कट्टे नौजवान की. प्रीतम के चूतड बहुत भारी भरकम थे पर पिलपिले नहीं थे. घठे हुए मास पेशियों से भरे, चिक'ने और गोरे उन नितंबों को देख मेरे लंड ने ही अपनी राय पहले जाहिर की और कस कर और तंन कर खड़ा हो गया. दोनों चूतदों के बीच गहरी लकीर थी और गान्ड का छेद भूरे रंग के एक बंद मुँह सा लग रहा था.

उस'में उंगली कर'ने का मेरा मन हुआ और मैने उंगली अप'ने मुँह से गीली कर के धीरे से उस'में डाली. मुझे लगा कि मुश्किल से जाएगी पर उस'की गान्ड में बड़ी आसानी से वह उतर गयी. उसका गुदाद्वार अंदर से बड कोमल था. मेरे उंगली करते ही प्रीतम ने हुमक कर कहा.

हाय यार मज़ा आ गया, और उंगली कर ना, इधर उधर चला. ऐसा कर जा'कर मक्खन ले आ, फ़्रिज़ में रखा है. मक्खन लगा कर उंगली कर, मस्त फिसलेगी मैं जा'कर मक्खन ले आया. ठोड उंगली पर लिया और उस'के गुदा में चुपड दिया.

दो उंगली डाल मेरे राजा, प्लीज़. ! मैने उंगली अंदर घुमामी और फिर धीरे से दूसरी भी डाल दी. फिर उन्हें अंदर बाहर कर'ने लगा. मेरी उंगलियाँ आराम से मक्खन से चिक'ने उस मुलायम छेद में घुस रही थी जैसे गान्ड नहीं, किसी युव'ती की चूत हो.

मैने झुक'कर उस'के नितंबों को चूम लिया. फिर चूम'ता हुआ और जीभ से चाट'ता हुआ उस'के छेद की ओर बढ़ा. मुँह छेद के पास ला'कर मैने उंगलियाँ निकाल ली और उन्हें सूँघा. नहाते हुए अपनी ही गान्ड में उंगली कर के मैने बहुत बार सूँघा था, आज प्रीतम की गान्ड की वह मादक गंध मुझे बड़ी मतवाली लगी. मैने उंगलियाँ मुँह में ले लीं और चूस'ने लगा. मक्खन में मिली गान्ड की सौंधी सौंधी खुशबू थी.

चुम्मा दे दे यार उसे, बिचारी तेरी जीभ के लिए तडप रही है. प्रीतम ने मज़ाक किया. वह मेरी ओर देख रहा था कि गान्ड चूस'ने से मैं कतराता हूँ या नहीं. मैं तो अब उस गान्ड की पूजा करना चाह'ता था, इस'लिए तुरंत अप'ने होंठ उस'के गुदा पर रख दिए और चूस'ने लगा.

उस सौंधे स्वाद से जो आनंद मिला वाह क्या कहूँ. प्रीतम ने भी अप'ने हाथों से अप'ने ही चूतड फैला कर अपनी गुदा कोखोला. मैं देख'कर हैरान रह गया. मुझे लग रहा था कि जैसा सबका होता है वैसा छोट सकरा भूरा छेद होगा. पर प्रीतम का छेद तो किसी चूत जैसा खुल गया. उस'के अंदर की गुलाबी कोमल झलक देख कर मैने उस'में जीभ डाल दी. मक्खन से चिकनी उस गान्ड को चूस'ने में ऐसा आनंद आया जैसे कोई मिठायी खा'कर भी नहीं आता.

शाब्बास मेरे राजा, मस्त चाट'ता है तू गान्ड, ज़रा जीभ और अंदर डाल. जीभ से चोद दे यार. जीभ डाल डाल कर मैने उस'की गान्ड को खूब चॅटा और चूसा. बीच में प्यार से उस'में नाक डाल कर सूंघ'ता पड़ा रहा. अंत में मन नहीं माना तो मुँह में उस'के नितंब का मास भर'कर उसे दाँतों से हल्के हल्के काट'ने लगा. प्रीतम बोला.

गांद खाना चाह'ता है मेरी? खिला दूँगा यार वह भी, क्या याद करेगा तू. अपनी गान्ड भरपूर चुसवा कर प्रीतम ने मुझे पास खींच कर ज़ोर ज़ोर से मेरा लंड चूस कर गीला किया और फिर बोला.

चढ़ जा यार, मार ले मेरी, अब नहीं रहा जाता. मस्त गीली है गान्ड तेरे चूस'ने से, मक्खन भी लगा है, आराम से घुस जाएगा तेरा लौडा मैं प्रीतम के कूल्हों के दोनों ओर घुट'ने जमा कर बैठ और अपना सुपाड़ा उस'के गुदा में दबा दिया. प्रीतम ने अप'ने चूतड पकड़ कर खींच रखे थे इस'लिए बड़े आराम से उस'के खुले छेद में सपप से मेरा शिश्न अंदर हो गया. उस मुलायम छेद के सुखद स्पर्श से मैं और उत्तेजित हो उठ और एक धक्के में अपना लंड जड़ तक प्रीतम की गान्ड में उतार दिया.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:29 AM,
#16
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (4)

गतान्क से आगे........

मुझे बहुत अच्च्छा लगा, थोड़ा आश्चर्य भी हुआ. मुझे लगा था कि गान्ड में लंड डाल'ने में थोड़ी मेहनत करना पडेगी. यहाँ तो वह आसानी से पूरा अंदर हो गया था. मैं समझ गया कि मेरा यार काफ़ी मरवा चुका है.

अब उस'ने चूतड छोडे और अपना छल्ला सिकोड कर मेरा लंड गान्ड से पकड़ लिया. अब मज़ा आया मुझे. उस'की गान्ड ने कस कर ऐसे मेरे लंड को पकड हुआ था जैसे मूठी में दबा लिया हो. मैं प्रीतम के ऊपर लेट गया और बेतहाशा उस'की चिकनी पीठ और मासल कंधे चूम'ने लगा.

मेरे राजा, बहुत प्यारा है तेरा लंड, बड मस्त लग रहा है गान्ड में, है थोड़ा छ्होटा पर एकदम सख़्त है, लोहे जैसा. मार यार, गान्ड मार मेरी उस'के कहते ही मैं धीरे धीरे मज़े लेकर उस'की गान्ड मार'ने लगा. मैने कल'पना भी नहीं की थी कि किसी मर्द की गान्ड मारना इतना सुखद अनुभव होगा. उस'की गान्ड एकदम कोमल और गरम थी और मेरे लंड को प्यार से पकड़े हुए थी. मैने अपनी बाँहें प्रीतम के शरीर के नीचे घुसा कर उस'की छा'ती को बाँहों में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से गान्ड मार'ने लगा.

शाबास मेरे राजा, मार और ज़ोर से, और मेरे चूचुक दबा यार प्लीज़, समझ औरत के हैं. मुझे मज़ा आता है यार चूचुक मसले जा'ने पर. और देख झद'ना नहीं साले नहीं तो मार खाएगा. प्रीतम के चमडीले बेरों जैसे चूचुक दबाता और उंगलियों में लेकर मसल'ता हुआ मैं एक चित्त होकर उस'की गान्ड को भोग'ने लगा. मक्खन से चिकनी गान्ड में लंड इतना मस्त फिसल रहा था की मैं जल्द ही बिलकुल झड'ने के करीब आ गया. किसी तरह अप'ने आप को मैने रोका और हांफ'ता हुआ पड रहा. मेरे इस संयम पर खुश होकर प्रीतम ने अपना सिर घुमाया और अपना हाथ पीछे कर'के मेरी गर्दन में डाल'कर मेरे सिर को पास खींच लिया.

बस ऐसे ही मार बिना झाडे. बहुत मस्त मार रहा है तू, इनाम मिलना चाहिए तुझे मेरी जान, चुम्मा दूँगा मस्त रसीला, अप'ने मुँह का रस चखाऊंगा तुझे. चुम्मा लेते हुए गान्ड मार अप'ने यार की. मैने अप'ने होंठ उस'के होंठों पर रख दिए और पास से उस'की वासना भरी आँखों में एक प्रेमी की तरह झाँक'ता हुआ उसका मुँह चूस'ने लगा. उस'के मुँह के रस का स्वाद किसी सुंदरी के मुँह से ज़्यादा मीठा लग रहा था. जल्द ही खुले मुँह में घुस कर हमारी जीभें लड़'ने लगीं और एक दूसरे की जीभ चूसते हुए हम'ने फिर संभोग शुरू कर दिया. गांद में मेरे लंड के फिर गहरे घुसते ही प्रीतम चहक उठा.

मार साली को ज़ोर से, फुकला कर दे, मा कसम, इतना मज़ा बहुत दिन में आया मेरी जान. घंटा भर मार मेरी राजा प्लीज़. . घंटे भर तो नहीं पर बीस मिनिट मैने ज़रूर प्रीतम की गान्ड मारी होगी. अप'ने चूतड उच्छाल उच्छाल कर पूरे जोरों से प्रीतम की गान्ड में मैं लंड पेल'ता और फिर सुपाडे तक बाहर खींच लेता. मेरी जांघें उस'के नितंबों से टकरा'कर 'सॅट' 'सॅट' 'सॅट' आवाज़ कर रही थी. आख़िर कामसुख के अतिरेक से मेरा संयम जवाब दे गया और उस'की जीभ चूसते हुए मैं कस कर झड गया.

प्रीतम ने मेरे लंड को अप'ने चूतडो की गहराई में पूरा झड जा'ने दिया और फिर मुझे अपनी पीठ से उतार कर उठ बैठा. उस'की आँखें अब वासना से लाल हो चुकी थी. उसका लंड उच्छल उच्छल कर फूफकार रहा था.

मेरी सील टूटी

बिना कुच्छ कहे उस'ने मुझे बिस्तर पर ऑंढा लिटा दिया और फिर मेरी गान्ड पर टूट पड़ा. मेरे नितंबों को चाट'ता हुआ और चूम'ता हुआ वह उन्हें ऐसे मसल रहा था जैसे चूचियाँ हों. मस्ती में उस'ने ज़ोर से मेरे नितंब को काट खाया. मेरी हल्की सी चीख निकल गयी. फिर झुक कर सीधा मेरा गुदा चूस'ने लगा. अप'ने हाथों से मेरे नितंब खींच कर उस'ने मेरी गान्ड खोली और उस'में अपनी जीभ उतार दी. प्रीतम की लंबी जीभ गहरी मेरे चूतदों में गयी और मैं सुख से सिहर उठा.

प्रीतम ऐसे मेरी गान्ड में मुँह मार रहा था जैसे खा जाना चाह'ता हो. कभी जीभ से चोदता, कभी मुँह में मेरे गुदा को भर'कर चबा'ने लगता. दर्द के साथ ही आसीन सुख की लहर मेरी नस नस में दौड़ जा'ती.

अब सहन नहीं होता मेरी जान, मार लेता हूँ तेरी. यार अब तू ही मेरे लंड पर मक्खन लगा. तेरे मुलायम हाथों से ज़रा लॉडा और मस्त होगा साला, देख तो कैसा उच्छल रहा है तेरी गान्ड लेने को. जा मक्खन ले आ यार प्रीतम ने मुझपर से उठते हुए कहा. पर मैं उठ'कर पहले टेबल के पास गया और स्केल ले कर आया. मन में बहुत कुतूहल था कि उस मतवाले लंड की आख़िर साइज़ क्या है! मैं स्केल से प्रीतम का लंड नाप'ने लगा. वह मुस्करा दिया.

नाप ले मेरी रानी. आख़िर गान्ड में लेना है, तुझे भी गर्व होगा कि इतना बड तूने लिया है. उसका शिश्न पूरा सवा आठ इंच लंबा था. डंडे की मोटायी दो इंच से थोड़ी ज़्यादा थी और सुपाड़ा तो करीब करीब ढाई इंच के व्यास का था. मेरे कौमार्य को कुच्छ ही देर में भंग कर'ने को मचलते उस हथियार को मैने फिर एक बार चूमा और फिर हथेली पर ढेर सा मक्खन लेकर उस'के लंड में चुपड'ने लगा. लोहे के डंडे जैसे उस लौडे को हाथ में लेकर उस'की फूली नसों को महसूस कर'के जहाँ एक तरफ मेरी वासना फिर भड़क'ने लगी वहीं मन में डर सा लग'ने लगा. घ्होडे के लंड जैसे इस लौडे को क्या मैं ले पाऊँगा?

पाँच मिनिट मालिश करवा कर प्रीतम की सहनशक्ति भी जा'ती रही. उस'ने मुझे फिर बिस्तर पर मुँह के बल पटका और मेरे गुदा में मक्खन लगाना शुरू किया. दो तीन लोन्दे उस'ने अंदर डाल दिए और फिर मेरे शरीर के दोनों ओर घुट'ने टेक कर बैठ गया.

बस मेरी रानी, अब नहीं रहा जाता, तैयार हो जा अपनी कुँवारी गान्ड मरवा'ने को. ऐसा कर अप'ने चूतड ज़रा खुद ही फैला, इससे आसानी से अंदर जाएगा, तुझे तकलीफ़ भी कम होगी मैने अप'ने चूतड फैलाए और मेरे गुदा पर उस'के सुपाडे का स्पर्श महसूस कर'के आँखें बंद कर'के प्रतीक्षा कर'ने लगा. आज मुझे महसूस हो रहा था कि सुहागरात में पहली बार लंड चूत में लेते हुए दुल्हन पर क्या बीत'ती होगी. दिल जोरों से धडक रहा था. बहुत डर लग रहा था. पर छूट कर भाग'ने की मेरी बिलकुल इच्च्छा नहीं थी.

प्रीतम ने हौले हौले लंड पेलना शुरू किया. अपनी धधक'ती वासना के बावजूद वह बड़े प्यार से लंड अंदर डाल रहा था. पर मेरा गुदा अप'ने आप सिकुड'कर मानो अंदर घुस'ने वाले शत्रु को रोक रहा था. प्रीतम ने मुझे समझाया

यार सुकुमार, मेरी रानी, गान्ड खोल, जैसे टट्टी के समय कर'ता है, तब घुसेगा अंदर आसानी से नहीं तो तकलीफ़ देगा तुझे मेरी जान. मैने ज़ोर लगाया और गान्ड ढीली छोडी. एक सेकंड में मौका देख'कर प्रीतम ने मंजे खिलाड़ी जैसे सुपाड़ा पचाक से अंदर कर दिया. मेरा गुदा ऐसा दुखा जैसे फट गया हो. मैं चीख पड़ा. प्रीतम इस'के लिए तैयार था, मेरा मुँह दबोच कर उस'ने मेरी चीख बंद कर दी. मैं छ्टेपाटा'ने लगा. आँखों में आँसू आ गये. प्रीतम ने लंड पेलना बंद किया और एक हाथ मेरे पेट के नीचे डाल कर मेरा लंड सहला'ने लगा.

बस मेरे राजा, हो गया, रो मत, हाथी तो चला गया, अब पूंच्छ आराम से जाएगी. तू गान्ड मत सिकोड ढीली छोड पाँच मिनिट में ऐसा मरवाएगा कि कोई रंडी भी क्या चुदवा'ती होगी. कह'कर वह मेरी गर्दन चूम'ने लगा. उस'की मीठी पुचकार ने और मेरे लंड में होती मीठी चुदासी ने आख़िर अपना जादू दिखाया. मेरी यातना कम हुई और मैने सिसकना बंद कर'के गान्ड ढीली छोडी. बहुत राहत मिली.

बस अब दो मिनिट में पूरा डाल'ता हूँ, दुखे तो बताना, मैं रुक जाऊँगा. कह'कर प्रीतम ने इंच इंच लंड मेरे चूतडो के बीच पेलना शुरू किया. आधा तो मैने ले लिया और फिर दर्द होने से सिसक पड़ा. वह रुक गया. कुच्छ देर बाद दो इंच और डाला तो मुझे लगा कि पूरी गान्ड ठूंस ठूंस कर किसीने भर दी हो. अंदर जगह ही नहीं थी.

प्रीतम कुच्छ देर और धीरे धीरे लंड पेल'ने की कोशिश कर'ता रहा पर अब वह अंदर नहीं जा रहा था. वह ज़ोर लगाता तो मुझे बहुत दर्द होता था. एकाएक उस'ने मेरा मुँह दबोचा और एक शक्तिशाली झट'के से बचा हुआ तीन चार इंच का डंडा एक ही बार में अंदर गाढ दिया. मुझे लगा कि जैसे मेरी गान्ड फट गयी. मैं तिलमिला उठ और चीख'ने की कोशिश कर'ता हुआ हाथ पैर मार'ने लगा. प्रीतम ने अब मुझे पूरी तरह दबोच लिया था और मेरे ऊपर ऐसे चढ गया था जैसे शेर हिरण पर शिकार के लिए चढ जाता है. उसका लॉडा जड़ तक मेरी गान्ड में उतर गया था. मेरे तन कर खुले खींचे गुदा के छल्ले पर उस'की झाँटें महसूस हो रही थी.

दो मिनिट बाद जब उस'ने हाथ मेरे मुँह से हटाया तो मैं कराह कर सिसक'ने लगा. घान्ड में भयानक दर्द हो रहा था. मुझे चूम चूम कर और मेरा लंड मुठिया मुठिया कर उस'ने मुझे चुप कराया.

सॉरी मेरी जान पर आख़िर के तीन इंच इसी तरह ज़बरदस्ती पेल'ने पड़ते हैं नहीं तो रात निकल जा'ती है उसे अंदर डाल'ने में. असल में वहाँ तेरी आँत में बेंड है और उस'के आगे जा'ने में लंड बहुत दर्द देता है. आज अब तेरी सील टूट गयी, मालूम है, वहाँ तेरी आँत अब सीधी हो गयी होगी. अब दर्द इतना नहीं होगा. अब बस मत रो मेरी जान, अब मज़ा ही मज़ा है. कह कर वह मेरा सिर अपनी ओर घुमा कर मुझे चूम'ने लगा और मेरे आँसू अपनी जीभ से चाट'ने लगा.

उस'की आँखों में बेहद प्यार और तीव्र कामुक'ता थी. धीरे धीरे मेरा दर्द कम हुआ और लंड भी कस कर खड़ा हो गया. दर्द तो अब भी हो रहा था पर गान्ड में अब एक अजीब मादक खुमार सा भर गया था. इसका प्रमाण यह था कि अचानक मेरा गुदा अप'ने आप सिकुड कर प्रीतम के लंड को पकड़'ने लगा.

आ गया रास्ते पर. चल अब मार'ने दे, और ना तडपा. हंस कर वा बोला. मैं भी शरमा सा गया और आँसू भरी आँखों से उस'की आँखों में देख'कर उसे चूम कर मुस्करा दिया. प्रीतम ने मेरे मुँह पर अप'ने होंठ दबा दिए और एक गहरा चुंबन लेता हुआ वह धीरे धीरे लंड को अंदर बाहर कर'ने लगा. मेरी गान्ड की चुदाई शुरू हो चुकी थी.

आधे घंटे तक प्रीतम ने मेरी मारी. पूरे मज़े ले लेकर, प्यार से मेरी कुँवारी गान्ड को उस'ने भोगा. दो तीन आसन उस'ने इस आधे घंटे में मुझे सीखा दिए. पहले कुच्छ देर मुझपर चढ कर वह बड़े साधे अंदाज में मेरी मार'ता रहा. धीरे धीरे रफ़्तार भी बढाइ. जब लंड आराम से 'पच' 'पच 'पच' की सेक्सी आवाज़ के साथ मेरी गान्ड में फिसल'ने लगा तब कुच्छ देर और मार'ने के बाद वह उठा और मुझे पकड़ कर चलाता हुआ दीवार तक ले गया.

गांद में लंड लेकर चलना भी एक अलग अनुभव था. हर कदम के साथ मेरे चूतड जब डोलते थे तो लंड गान्ड में रोल होता था. दुख'ता भी था और मज़ा भी आता था. प्रीतम ने मुझे दीवार से मुँह के बल सट कर खड किया और फिर खड़े खड़े ही मेरी मारी. अब तक मेरे गुदा में दर्द कम हो गया था और लबालब भरे मक्खन के कारण उसका लॉडा आराम से घचाघाच फिसल रहा था.

पसंद आया आसन मेरे राजा? या लेटे लेटे लेने में मज़ा आया? उस'ने मेरी गान्ड में लंड पेलते हुए पूच्छा. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.

यार तुम उलट लटक'कर भी मारो तो मुझे मज़ा आएगा. क्या शाही लॉडा है तेरा मेरे राजा! मैं तो फिदा हो गया. मैने भाव विभोर होकर उससे कहा. प्रीतम हंस दिया पर मेरी बात उसे बहुत अच्छी लगी यह सॉफ था क्योंकि उस'ने और जोश से मेरी मारना शुरू कर दिया. फिर वह मुझे टेबल तक ले गया और मुझे झुक कर टेबल का आधार लेकर खड़े होने को कहा. मैं टेबल का किनारा पकड़ कर झुक कर खड हुआ और वह मेरे पीछे खड़ा खड़ा मेरी मार'ता रहा.

ये खजुराहो स्टाइल है. देखी है ना वो मूर्ति? फ़र्क सिर्फ़ यह है कि उस'में एक मर्द औरत को ऐसे चोद'ता है. उस'के कंट्रोल की मैने दाद दी, इत'ने तन कर खड़े लंड के बावजूद वह बड मज़ा ले लेकर सधी हुई लय से मुझे आसन सीखा सीखा कर मेरी मार रहा था.

उस'के बाद मुझे फिर बिस्तर पर ले गया. बिस्तर पर मुझे कोहानियों और घुटनों पर कुतिया स्टाइल में खड़ा किया और पीछे से मेरे ऊपर चढ कर कुत्ते जैसी मेरी मार'ने लगा. अब उस'के हाथ मेरे बदन को भींचे हुए थे और वह घुट'ने टेक कर आधा वजन मेरे ऊपर देता हुआ मेरी मार रहा था.

यह आखरी आसन है यार. अब मैं ये मस्ती और सह नहीं सकूँगा. वैसे पशुसंभोग का यह आसान मरा'ने वाले के लिए ज़रा कठिन है. वजन सहन पड़'ता है, जैसे कुतिया कुत्ते का या घोडी घोड़े का सह'ती है. हाँ, मार'ने वाले को बहुत मज़ा आता है मैं अब कामुक'ता में डूबा हुआ हाम्फते हुए कुतिया जैसे मरवा रहा था. इतना मज़ा आ रहा था कि मैने सोचा कि अगर प्रीतम मेरे ऊपर पूरा चढ जाए तो क्या मज़ा आएगा. मैने उससे कहा तो वह ज़ोर से साँस लेता हुआ बोला कि बस दो मिनिट बाद. असल में उस'के स्खलन का समय करीब आ रहा था. कुच्छ देर बाद उस'की साँस और तेज चल'ने लगी. वह मुझे बोला

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:29 AM,
#17
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (5)

गतान्क से आगे........

संभाल राजा, गिरना नहीं और उचक कर उस'ने अपना पूरा वजन मेरे ऊपर देते हुए अपनी टाँगें उठ कर मेरी जांघों के इर्द गिर्द फँसा लीं और मुझ पर चढ कर हचक हचक कर मेरी गान्ड चोद'ने लगा. उसका पचहत्तर किलो वजन मेरे ऊपर आ गया और मैं लड़खड़ा गया.

अब वह पूरे ज़ोर से लंड करीब करीब पूरा बाहर निकाल'कर और फिर अंदर पेलते हुए मुझे चोद रहा था. मेरे ऊपर वह ऐसे चढ़ा था जैसे घोड़े पर सवार चढत है! उस'के इन शक्तिशाली धक्कों को मैं ना सह पाया और चार पाँच प्रहारों के बाद मुँह के बल बिस्तर पर गिर गया. प्रीतम मुझे चोद'ता रहा और अगले ही क्षण वह भी झड गया. उस'के गर्म वीर्य का फुआरा मेरी गान्ड में छूटा और मैं धन्य हो गया.

कुछ देर सुस्ता'ने पर उस'ने धीरे से अपना लंड मेरी चुदी गान्ड के बाहर निकाला. वह अब सिकुड गया था पर उसपर प्रीतम का वीर्य लगा हुआ था. मेरा लंड भी अब तन्नाया हुआ था, उसे देख'कर वह बोला

जल्दी आ जा मेरे यार, सिक्सटी नाइन कर लेते हैं. फिर बोला.

मेरा झड गया तो क्या हुआ, उसपर काफ़ी मलाई लगी है, चूस ले. हम एक दूसरे के लंड मुँह में लेकर लेट गये. मेरी गान्ड का स्वाद लगे उस लौडे का स्वाद ज़्यादा ही मतवाला हो गया था. जब तक मैने उसका वीर्य से लिपटा लंड सॉफ किया, उस'ने भी बड़ी सफाई से मेरा लंड चूस कर मुझे झाड़ा दिया.

घ्हडी में देखा तो रात के दो बज गये थे. चार पाँच घंटे कैसे निकल गये पता ही नहीं चला. हम दोनों तृप्त थे, लिपट कर एक दूसरे को चूमते हुए पति पत्नी की तरह सो गये. मेरी गान्ड अब ऐसे दुख रही थी जैसे किसीने उसे घूँसों से अंदर से पीटा हो. प्रीतम को बताया तो वह हंस'ने लगा.

तेरा कौमार्य भंग हुआ है, सील टूटी है तो दुखेगा ही! पर आज दोपहर तक ठीक हो जाएगा. तू नींद की गोली ले ले और सो जा. सोते समय उस'ने मुझे समझाया.

यार गान्ड मार'ने के बाद लंड हमेशा चूस कर सॉफ करना, पोंच्छाना नहीं, अरे यह तो हमारे शरीर का अमृत है, इसे व्यर्थ नहीं जा'ने देना चाहिए. शुरू में गान्ड में से निकले लंड को चूस'ने में थोड गंदा लग'ता है पर फिर आदत हो जा'ती है. वैसे सेक्स में शरीर की कोई भी चीज़ गंदी नहीं होती. मैने उसे बताया कि मेरी गान्ड में से निकला उसका लंड चूस'ने में मुझे ज़रा भी गंदा नहीं लगा था.

वे खूबसूरत चप्पलें

हम सुबह दस बजे सो कर उठे. दोनों के लंड फिर खड़े थे. गांद में होते दर्द के बावजूद मैं तो इतना आतुर था कि फिर कामक्रीड़ा में जुट जाना चाह'ता था पर उस'ने कहा कि अब दोपहर को करेंगे. बहुत बार कर'ने से लंड थक जाएगा तो सुख की वह धार निकल जाएगी. चाय पीकर हम नहा'ने गये. प्रीतम बोला.

तू चल, मैं पाँच मिनिट में आता हूँ, ज़रा सामान जमा लूँ. मैने प्रीतम से कहा कि अपनी चप्पल मुझे दे दे, मैं अपनी चप्पल के साथ उस'की भी धो देता हूँ. असल में कल से उस'की चप्पल देख देख कर मैं पागल हुआ जा रहा था, लग'ता था कि कब उसे हाथ में लूँ और मज़े करूँ. पर उससे कह'ने में झिझक रहा था, सोच'ता था की उसे पता नहीं मेरी इस फेटिश पर क्या लगे.

चप्पलें लेकर मैं बाथ रूम गया. शावर लगाया और थोड़ा नहा'कर ब्रश लेकर मेरी और उस'की चप्पलें सॉफ कीं. वैसे वे इतनी सॉफ थी कि उस'की कोई ज़रूरत नहीं थी. फिर मौका देख'कर कि प्रीतम को आने में कुच्छ वक्त लगेगा, मैने प्रीतम की चप्पलें उठाईं और मुँह से लगा लीं. उन्हें प्यार किया, चूमा, अप'ने गालों और आँखों पर फेरा, उस'के पत्ते अप'ने लंड में फँसाए, उन'के चिक'ने तलवों में अपना लंड दबा कर घिसा और फिर उन्हें चाट'ने लगा. स्वर्ग सा सुख मिल रहा था, रब्बर और प्रीतम के पैरों की भीनी खुशबू से मेरा सिर घूम रहा था. इत'ने में अचानक बाथ रूम का दरवाजा खुला और प्रीतम अंदर आया.

यार सामान बाद में जमा लेंगे, अपनी रानी के साथ नहा तो लूँ. मैने घबरा कर चप्पलें नीचे रख दीं. पता नहीं उस'ने देखा या नहीं. वह भी कुच्छ ना बोला और मुझे बाँहों में भर'कर चूम'ने लगा.

हम'ने खूब नहाया और मज़ा किया. एक दूसरे को साबुन लगाया, मालिश की और एक दूसरे के बदन को ठीक से देखा और टटोला. दोनों के लंड खड़े हो गये थे पर हम'ने अप'ने आप पर काबू रखा. नहाते समय पेशाब लगी तो एक दूसरे के साम'ने ही हम मूते. मैं जब मूत रहा था तो उस'ने धार में अपना हाथ रख दिया.

मस्त लग'ता है गरम गरमा, तू भी देख. मैने भी उस'के मूत्र की तेज धार हाथ में ली तो वह गरम गरम फुहार मन में एक अजीब गुदगुदी कर गयी. ज़रा भी अटपटा नहीं लगा. वह अचानक मूतते मूतते रुका और मेरे साम'ने बैठ'कर मेरी धार अप'ने शरीर पर लेने लगा. मैने हड़बड़ा कर मूतना बंद कर दिया तो बोला.

रुक क्यों गये राजा? मूत मेरे ऊपर, मेरे चेहरे पर धार डाल, मुझे बहुत अक्च्छा लग'ता है. मैने फिर मूतना शुरू किया. वह हिल डुल कर उस धार को अप'ने चेहरे और होंठों पर लेते हुए बैठ गया. मेरा मूतना ख़त्म होते होते उस'ने अचानक मुँह खोल कर कुच्छ बूँदें अंदर भी ले लीं. जीभ निकाल'कर चाट'ता हुआ बोला.

मस्त स्वाद है यार, खारा खारा. मैं अब तैश में था. मैं उस'के साम'ने बैठ गया और उसे भी वैसा ही कर'ने को कहा. जब उस'के मूत की मोटी तेज धार मेरे चेहरे को भिगोने लगी तो मैने मन को कड़ा कर के मुँह खोला. आधी धार अंदर गयी और उस गरम गरम खारे कसाले स्वाद से मेरा लंड और उच्छल'ने लगा. मुँह खोल'ने के पहले मैं थोड़ा परेशान था कि अगर गंदा लगे तो मेरे चेहरे के भाव से प्रीतम नाखुश ना हो जाए पर यहाँ तो उलट ही हुआ, मुझे ऐसा मज़ा आया कि उसका मूत ख़तम होने पर मैं कुच्छ निराश हो गया कि वह और क्यों नहीं मूता.

मूतना ख़तम होने पर हम दोनों शवर के नीचे खूब नहाए. जब बदन सुखाते हुए बाहर आए तो मैं तो उससे लिपट लिपट जाना चाह'ता था पर उस'ने मुझे शांत होने को कहा. बोला कि सामान जमा लेना और फिर थोड़ी पढाइ कर लेना. फिर दोपहर का खाना खा'कर मस्ती करेंगे.

हम दोपहर को बाहर खाना खा'कर वापस आए तो लंड त'ने लेकर. सीधे कपड़े उतारे और एक दूसरे से लिपट गये. प्रीतम ने नंगा होने के बाद मेरी ओर देखा और फिर मुस्करा'कर अपनी स्लीपर पहन लीं. इससे मेरे ऊपर जो प्रभाव हुआ वह अवर्णनीय है. उस'के गठे गोरे नग्न बदन और पैरों में वी रब्बर की चप्पलें देख'कर मैं झड'ने को आ गया. वह मुझे बोला.

यार तू भी चप्पल पहन ले, बड़ी प्यारा गुलाबी नाज़ुक चप्पलें हैं तेरी, तुझ पर जच'ती हैं. आपन दोनों ये हमेशा पहना करेंगे. मज़ा आता है हम सोफे पर बैठ'कर चूम चाटी कर रहे थे तभी प्रीतम ने कहा.

चल यार गान्ड मारते हैं. लंड ऐसे खड़े हैं कि जो पहले मरवाएगा उसे बहुत मज़ा आएगा. तू बिना झाडे घंटे भर मरवा सक'ता है? बोल? मरावाता है तो एक मस्त आसन तुझे दिखाता हूँ. मैं बहुत उत्तेजित था और झड़ना चाह'ता था. पर इस हालत में प्रीतम के उस मोटे ताजे लंड से मरा'ने की कल'पना मुझे बड़ी प्यारी लग रही थी. मैने किसी तरह उछलते लंड को थोड शांत किया और तैयार हो गया. प्रीतम सोफे पर बैठ गया और उस'के कह'ने पर मैं उस'के बाजू में खड हो गया. बड़े प्यार से उस'ने मेरे गुदा में मक्खन लगाया और मैने उस'के लौडे पर. फिर वह टाँगें फैला कर बैठ गया और मुझे उस'की तरफ पीठ कर'के अपनी टाँगों के बीच खड कर लिया.

गोद में बिठ कर मारूँगा मेरी रानी. अब झुक जा और गान्ड खोल ले. मैं थोड झुका और अप'ने हाथों से अप'ने चूतड फैलाए. प्रीतम ने सुपाड़ा छेद पर जमाया और बोला.

गांद ढीली छोड मैने जैसे ही गुदा ढीला किया, पक्क से उस'ने एक बार में सुपाड अंदर कर दिया. एक दर्द की टीस मेरे गुदा में उठी पर कल से दर्द कम था और मज़ा भी बहुत आया. अब उस'ने मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींचा और बोला.

मेरे लौडे को अंदर ले ले और बैठ जा मेरी गोद में. कह'ने को आसान था पर इस सूली पर चढ'ने में दो मिनिट लग गये. कल की मराई से मेरी गान्ड खुल ज़रूर गयी थी पर अब भी उस'के लंड की मोटायी के हिसाब से काफ़ी कसी थी. उस'की गोद में बैठ'ने की कोशिश करते हुए एक एक इंच कर'के लंड मैने कैसे अंदर लिया, मैं ही जान'ता हूँ. जब आखरी तीन इंच बचे तो उस'ने ज़ोर से मेरी कमर पकड़ कर खींचा और पूरा लंड सटाक से अंदर लेकर मैं धम्म से उस'की गोद में बैठ गया. फिर से गान्ड में कस कर दर्द हुआ और ना चाहते हुए भी मैं हल्का सा चीख उठा. फिर सॉरी बोला. उस'ने मुझे बाँहों में कसा और मेरे गालों को चूम'ता हुआ मुझे प्यार कर'ने लगा.

सॉरी मत बोल यार, जितना चिल्लाना है उतना चिल्ला. तेरे कुंवारेपन की निशानी है, मुझे तो बहुत मज़ा आता है जब तू कसमसाता है. अच्च्छा लग'ता है कि मेरा लंड इतना बड़ा है कि तेरे जैसे प्यारे गान्डू को भी तकलीफ़ होती है. दर्द के बावजूद मैं सुख में डूबा हुआ था. उस'ने एक हाथ से मेरे लंड को सहलाना शुरू किया और दूसरे से मेरे चूचुक हौले हौले मसल'ने लगा. मैने मुँह घुमाया और हम दोनों एक दीर्घ चुंबन में जुट गये. वह अब धीरे धीरे ऊपर नीचे होकर अप'ने लंड को मेरे पेट के अंदर मुठियाता हुआ मेरी गान्ड मार रहा था. अचानक उस'ने पूच्छा.

सुकुमार मेरे यार, तुझे सच में मेरी चप्पलें इतनी अच्छी लग'ती हैं? सुन'कर मैं शरमा गया. ज़रूर उस'ने बाथ रूम में मुझे उस'की चप्पलें चाटते हुए देख लिया था.

तूने देख लिया क्या? मैने पूचछा तो वह हंस'ने लगा.

आज ही नहीं, मैं दो दिनों से देख रहा हूँ तू बार बार मेरे पैरों को क्यों देख'ता है. अरे शरमाता क्यों है, यार को नहीं बताएगा तो किसे बताएगा? कोई चीज़ शरमा'ने लायक नहीं है, तुझे मज़ा आता है ना? बस किया कर जो मन में आए मेरी चप्पालों के साथ. वैसे तेरी ये गुलाबी चप्पलें भी बड़ी प्यारी हैं मैने शरमाते हुए कहा,

प्रीतम, असल में उस रात जब तेरी चप्पलें तेरे पैर में देखी थी, मेरा खड़ा हो गया था. बहुत प्यारी हैं, पहन पहन कर घिसी हुई, मुझे बहुत अच्छी लग'ती हैं तेरी चप्पलें. और तू चल'ता भी है कैसे उन्हें चटक चटक'कर. वो आवाज़ सुन'कर लग'ता है कि उन्हें . . . और चुप हो गया. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूँ! फिर बोला.

चातेगा राजा मेरी चप्पल? उतारूं? मेरा दिल धडक रहा था. यह तो ऐसा हो गया जैसे भगवान पूच्छ रहे हों कि वर चाहिए तुझे? मैने कसमसा कर हां कर दी. प्रीतम बोला,

पहले ही बोलना था मेरी जान, ऐसे मामलों में शरम नहीं करते. क्या मज़ा लेगा अगर शरम करेगा. ले अब मन भर कर स्वाद ले मेरी चप्पालों का कह'कर उस'ने झुक कर अपनी चप्पलें उताऱी और हाथ में ले लीं. पहले उन्हें उलट कर'के उन'के अंदर के सोल मेरे लंड पर रगडे. उस मुलायम चिक'ने स्पर्श से मैं झड'ने को आ गया. तब उस'ने एक चप्पल के पत्ते में मेरे लंड को डाल कर उसे लंड पर लटका दिया और दूसरी हाथ में लेकर मेरे मुँह पर रख दी.

पास से मेरे यार की उस चप्पल को देख'कर और सूंघ'कर मैं वासना से पागल होने को आ गया. इतनी मीठी टीस मेरे लंड में हो रही थी. मैं जीभ निकाल'कर चप्पल चाट'ने लगा. उस'ने घुमा घुमा कर बड़े प्यार से चप्पल का इंच इंच चटवाया. रब्बर का खारा सा स्वाद बड़ा मादक था.

पट्टे मुँह में ले ले और चूस. उस'ने कहा. मैने वे पत्ते मुँह में भर लिए और चूस'ने लगा. कुच्छ देर बाद उस'के कह'ने पर मैने चप्पल का पंजा मुँह में ले लिया और चबा चबा कर चूस'ने लगा.

यार, और मुँह में ले ना. मेरे ख्याल से तो तू पूरी भी ले लेगा. तुझे बहुत मज़ा आएगा. चल मैं हेल्प कर'ता हूँ उस'ने मेरे सिर को एक हाथ से सहारा दिया और दूसरे से अपनी चप्पल की हील पकड़'कर उसे मेरे मुँह में पेल'ने लगा. मैं चूस'ता जाता और निगल'ता जाता. आधी चप्पल जब मेरे मुँह में समा गयी तो मैं थोड़ा कसमसा'ने लगा. मुँह पूरा भर गया था और गाल फूल गये थे.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:29 AM,
#18
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (6)

गतान्क से आगे........

चल आधी तो ले ली, आज रह'ने दे, पर मा कसम, पूरी चप्पल तेरे मुँह में कभी ना कभी ठूनसावा कर ही रहूँगा. दोनों पट्टे और आधी चप्पल मेरे मुँह में थे जिन्हें मैं पूरी शक्ति से चबाते हुए चूस रहा था. अपना मनचाहा सपना पूरा होने के कारण इतनी वासना में मैं डूबा हुआ था की मेरी आँखें पथारा गयी थी. मेरे ये कारनामे देख'कर प्रीतम का लंड मचल'कर मेरी गान्ड में और गहरा घुस गया. आख़िर उससे ना रहा गया और वह मुझे वहीं सोफे पर पटक कर मेरे ऊपर चढ बैठा. अपनी दूसरी चप्पल उस'ने मेरे लौडे से निकाल कर मेरे ओन्धे चेहरे के नीचे तकिया बना'कर रख दी और हुमक हुमक कर मेरी गान्ड मार'ने लगा.

पूरे प्रयास के बावजूद वह अप'ने आप पर कंट्रोल नहीं कर पाया और दस मिनिट में ही झड गया. मेरा लंड अब इतना उत्तेजित था कि उस'के पूरा झडते ही मैं उसे हट'कर उठ बैठा और उसे पलट'कर उसपर चढ'ने की कोशिश कर'ने लगा.

दस मिनिट रुक यार, मुझे दम लेने दे, फिर मैं जैसे कहूँ वैसे मार मेरी गान्ड . आज तेरे इस मस्ता'ने लौडे से मन भर कर मरावाऊंगा. बस थोड़ा लंड खड़ा हो जा'ने दे मुझे रोकते हुए प्रीतम बोला. तब तक मैं चप्पल मुँह में लिए चूस'ता रहा और प्रीतम के भारी भरकम चूतड सहलाता रहा. उस'की गान्ड में मक्खन लगाया और उस'ने मेरे लंड को चिकना किया. जब उसका लंड फिर कुच्छ उठ'ने लगा तो वह उठा और सोफे की पीठ पकड़'कर झुक'कर खड़ा हो गया.

अब डाल यार अंदर धीरे धीरे और मार मेरी खड़े खड़े अपनी गान्ड ढीली कर'ता हुआ वह बोला. मैने तुरंत उस'की गान्ड में लंड डाल दिया. धीरे धीरे नहीं, एक ही बार में सॅट से. वह थोड़ा हुमका और फिर बोला.

चल कोई बात नहीं, आज तो तू तैश में है, पर राजा कल से धीरे धीरे डालना और घंटे भर मारना. आज भी कम से कम आधे घंटे मार यार नहीं तो सब मज़ा किरकिरा हो जाएगा. उस'के चूतड पकड़'कर पंजों के बल खड़े होकर मैने उस'की मारना शुरू कर दी. पहले स्ट्रोक थोड़े धीमे थे पर फिर उस'के कह'ने से मैं घचाघाच चोद'ने लगा. मेरा पेट बार बार उस'के नितंबों से टकराता और फॅक फॅक फॅक आवाज़ होती. बीच बीच में मैं रुक जाता जिससे झड ना जाउ. अति वासना के बावजूद अब मैं अप'ने आप पर कंट्रोल कर पा रहा था इस'लिए उस'की खूब देर मार पाया जैसी उस'की इच्च्छा थी.

सारे समय प्रीतम की चप्पल मेरे मुँह में थी जिसे मैं चूस और चबा रहा था. कुच्छ देर बाद वह खुद ही चल'कर दीवार से मुँह के बल सॅट कर खड हो गया और मुझसे खड़े खड़े गान्ड मरवाई. आख़िर इसी आसान में मैं झड गया. अपनी चप्पल जब उस'ने मेरे मुँह से निकाली तो चूस चूस कर मैने बिलकुल सॉफ कर दी थी. उसपर जगह जगह मेरे दाँतों के गहरे निशाम. भी बन गये थे. उसे देख'कर वह बोला.

हाय मेरी जान, इतनी अच्छी लगी अप'ने सैंया की चप्पल? तू फिकर मत कर, अब रात को तो ऐसे आसान से तुझे चोदून्गा कि तू खुश हो जाएगा. थक कर मैं पलंग पर लेट गया. प्रीतम मेरे पास बैठ गया और मेरे पैर उठ'कर अपनी गोद में रख लिए. मैं अपनी चप्पलें पहना हुआ था. मेरे पैरों और तलवों को सहलाता हुआ प्रीतम बोला.

यार तू तो बड़ा सुंदर है ही, तेरे पैर भी बड़े खूबसूरत हैं. एकदम चिक'ने और कोमल, तलवे तो देख, बच्चों जैसे गुलाबी हैं. और मेरे पैर उठ'कर वह उन्हें चूम'ने लगा. मैं सुख से सित्कार उठा. मेरे पैरों को चप्पलो समेत वह चूम रहा था. बीच में मेरी चप्पलें भी चाट लेता. मेरी उंगलियों को भी उस'ने मुँह में ले'कर चूसा. उसका एकदम तन्ना'कर खड़ा हो गया था.

मुझसे ना रहा गया. मैने प्रीतम के पैर खींच'कर अप'ने मुँहासे लगा लिए और उन्हें बेताशा चूम'ने और चाट'ने लगा. उस'के पैर बड़े थे, पर एकदम चिक'ने और साफ. मुझे उस'के गोरे तलवे चाट'ने में बहुत मज़ा आया. हम दोनों फिर मस्त हो गये थे. चुदाई का एक नया दौर शुरू होने ही वाला था. पर फिर प्रीतम ने उठ'कर कहा.

अभी नहीं यार, अब बाद में. शाम को मैं तेरे पैरों को छोड़ूँगा. अभी सो ले. नहीं तो चोद चोद कर हम दोनों बुरी तरह तक जाएँगे. वैसे तू क्यों चप्पल चटक'कर नहीं चलता, मेरी तरह? मैने कहा,

कोशिश तो की थी पर मुझे जम'ता नहीं प्रीतम बोला

पंजों के बल उचक उचक कर चल'ने की कोशिश कर, लड़कियों जैसी. मस्त चटकेंगी. एक दूसरे के लंड हम'ने चूस कर साफ किए और फिर कुच्छ देर आराम किया. घंटे भर सो भी लिए. मैं सो कर उठ तो वह पढ रहा था. वह पढाइ का भी पक्का था. शाम तक वह खुद पढ़ाता रहा और मुझे भी पढावाया. रात को हम'ने वहीं खाना बनाया. खाना खा'कर फिर पढ़ाई की और नहा'कर हम फिर कामक्रीड़ा में जुट गये. प्रीतम मुझसे बोला.

इधर आ यार चप्पल पहन'कर और इस स्टूल पर खड हो जा, दीवाल का सहारा ले कर. मुँह दीवाल की ओर कर'के मैं खड हो गया. बड़ी उत्सुक'ता थी कि मेरा यार अब क्या गुल खिलाएगा! वह खुद स्टूल के पास नीचे घुट'ने टेक कर बैठ गया.

अब अप'ने पंजों के बल खड हो जा. मेरी ऐडिया अब मेरी चप्पालों से ऊपर उठ गयी थी. बड़े प्यार से उस'ने अपना लंड मेरे पाँव के तलवे और चप्पल के बीच घुसेडा. फिर बोला.

अब नीचे हो जा. ख़ड़ा हो जा मेरे लौडे पर. अप'ने तलवे और चप्पल के बीच दबा ले. उस'के कड़े लंड के मेरे तलवों पर होते स्पर्श से मुझे मज़ा आ गया. मैं पैर हिला कर उस'की मालिश कर'ने लगा. मेरे पैर पकड़'कर प्रीतम अब अपना लंड मेरे तलवों और चप्पल के बीच पेल'ने लगा.

देख इसे कहते हैं पैरों को चोदना. बहुत मज़ा आता है, ख़ास कर जब तेरे जैसे चिक'ने पैरों वाला कोई मिल जाए. और तू पूरा वजन दे कर खड हो जा मेरे लंड पर, घबरा मत, मेरा लॉडा आराम से झेल लेगा. पैरों से दबा दबा कर मालिश कर उसकी मैं ऊपर नीचे होकर प्रीतम के लंड को पैर तले रौंद'ने लगा. जैसे मेरा पैर उठता, प्रीतम और पेल'ने लगता. एक चप्पल से मन भर गया तो उस'की दूसरी चप्पल में लंड डाल दिया. मेरे दोनों पैरों और चप्पालों को प्रीतम ने मन भर कर चोदा. झड'ने के करीब आ'कर रुक गया और बोला.

अब बंद करते हैं यार नहीं तो यहीं तेरी चप्पालों में झड जाऊँगा. वैसे उस'में भी मज़ा है, तुझसे चटवा कर सॉफ करा'ने में मज़ा आएगा. पर अभी तो मैं तेरी गान्ड मारूँगा. हम'ने अब अप'ने लंड और गुदा मक्खन से चिक'ने कर लिए की बीच में ना रुकना पड़े. मुझे गोद में लेकर प्रीतम मुझे प्यार कर'ने लगा.

कुच्छ देर की चूमा चॅटी के बाद उस'ने मुझे चित बिस्तर पर लिटाया और मेरे सीधे खंबे से खड़े लंड को प्यार से चूसा. चूसाते चूसाते वह उलटी तरफ से मेरी छा'ती के दोनों ओर घुट'ने टेक कर मेरे ऊपर आ गया. मुझे लगा कि लंड चुसवाना चाह'ता है पर थोड़ा सिमट'कर जब वह उकड़ू हुआ तो उस'के चूतड मेरे मुँह पर लहरा रहे थे. गांद का छेद खुल और बंद हो रहा था.

मैं समझ गया कि मुझसे गान्ड चुसवाना चाह'ता है. मैने उस'के नितंबों को दबाते हुए उसका गुदा चूसना शुरू कर दिया. उसे इतना मज़ा आया कि वह अपना पूरा वजन देकर मेरे मुँह पर ही बैठ गया. वह अपनी चप्पलें पहना हुआ था. चप्पलें भी मैं हाथ से पकड़'कर दबाता रहा.

दस मिनिट बाद वह उठा और झुक कर मेरे पेट के दोनों ओर पैर जमा कर तैयार हो गया. मेरी ओर मुँह कर के मेरा लंड उस'ने अप'ने गुदा पर जमाया और उसे अंदर लेता हुआ नीचे बैठ गया. मेरा लॉडा उस'की चिकनी खुली गान्ड में आसानी से घुस गया. पूरा लंड अंदर लेकर उस'के चूतड मेरे पेट पर टिक गये. प्रीतम ने फिर दोनों पैर उठ'कर मेरे चेहरे पर रखे और हाथ बिस्तर पर टेक कर ऊपर नीचे होते हुए खुद ही अपनी गान्ड मरा'ने लगा. चप्पलें पह'ने हुए उस'के पैर मेरे मुँह पर थे. उन'के तलवे मेरे गालों और मुँह पर रगड़'ता हुआ वह बोला.

ले अब यार, मन भर कर मेरी चप्पल चाट और चूस. मुँह में ले. मज़ा कर. मैं भी मन भर कर आराम से अपनी गान्ड से तेरे लंड को चोद'ता हूँ. मेरे लिए तो मानो खजा'ने का दरवाजा खुल गया. यहाँ प्रीतम की गान्ड का मुलायम तप'ता घर्षण मेरे लंड को अपूर्व सुख दे रहा था उधर मेरे मुँह पर टिके उस'के चप्पालों में लिपटे पैर मुझे मदहोश कर रहे थे. मैने हाथों से पकड़'कर उन्हें मुँह से लगा लिया और बेतहाशा चूम'ने और चाट'ने लगा. कभी उस'की चप्पल चाटता, कभी चप्पल का सिरा मुँह में लेकर चबाता और चूस'ता और कभी प्रीतम के तलवे चाट'ने लगता. बीच में उस'के पैरों की उंगलियाँ और अंगूठा मुँह में लेकर चूस'ने लगता.

प्रीतम ने तरसा तरसा कर आधे घंटे मुझे इस मीठी छुरी से हलाल किया और फिर ज़ोर ज़ोर से अपनी गान्ड से चोदते हुए मुझे झड़ाया. मैं इतनी ज़ोर से झाड़ा कि मेरा शरीर काँप गया. इस बार प्रीतम ने एक और करम मेरे ऊपर किया. मेरा स्खलन होने के बाद भी मुझे चोदना बंद नहीं किया, बल्कि ऊपर नीचे उच्छल'ता हुआ मेरे लंड को अप'नी गान्ड में लिए मरावाता रहा. लंड अब भी खड़ा था पर झड'ने के बाद सुपाड़ा बहुत संवेदनशील हो गया था. इस'लिए उसपर गान्ड का घर्षण मुझे सहन नहीं हुआ. जब भी वह ऊपर नीचे होता, मैं सिसकारी भरते हुए तडप तडप जाता पर वह हरामी हँसते हुए मेरे लंड को अपनी गान्ड की म्यान से रगड़'ता रहा. मुझे ऐसा निचोड़ा कि मैं किसी काम का नहीं रहा, करीब करीब बेहोश हो गया. वह तभी रुका जब मेरा लंड बिलकुल मुरझा कर उस'की गान्ड से बाहर आ गया.

मुझे ऑंढा पटक'कर उस'ने मेरी गान्ड मारना शुरू कर दी. चप्पलें उतार कर उस'ने मेरे मुँह के नीचे रख दीं और दोनों चप्पालों के पंजे मेरे मुँह में घुसा दिए. गांद मार'ने के साथ साथ वह लगातार चप्पालों को पकड़'कर मेरे मुँह में और अंदर ठेल'ने की कोशिश कर'ता रहा. लग'ता था कि पूरी जोड़ी मेरे मुँह में ठूंस देगा. गाल और जबड़े दुख'ने के बावज़ूद मैने भी चप्पलें चूस'ने का भरपूर मज़ा लिया. उन्हें मुँह में भर लेने की भी भरसक कोशिश की. जब प्रीतम आख़िर झाड़ा तो शांत होने पर मुझसे बोला.

मज़ा आ गया रानी. एक बात देखी तूने? आधी जोड़ी तेरे मुँह के अंदर है. देख, दोनों चप्पालों के पंजे और पट्टे तूने एक साथ मुँह में भर लिए हैं, सिर्फ़ ऐडिया बाहर हैं. इसका मतलब मालूम है मेरे यार? तू मेरी एक चप्पल पूरी मुँह में ले सक'ता है अब.

मैने भी गौर किया तो देखा सच था. मुझे चप्पलें चबाते हुए मरवा'ने में इतना मज़ा आया था कि मैने मन ही मन प्रण कर लिया कि रोज ऐसा ही करूँगा बल्कि मेरे यार की चप्पल खा जा'ने की कोशिश करूँगा. बस मौके का इंतजार था. प्रीतम के प्रति मेरी वासना इस हद तक बढ चुकी थी कि उस'की चप्पलें मेरे लिए स्वादिष्ट सेक्सी खाना बना गयी थी.

उस रात हम'ने एक बार और संभोग किया और फिर सो गये. यह सिक्सटी नाइन का आसन था और इस बार मैने उसका लंड काफ़ी हद तक मुँह में ले ही लिया. बस तीन चार इंच बाहर बचे होंगे. गले तक लंड निगल'कर चूसना और ख़ास कर गले में सुपाडे के कसी फिट होने से दम घुटना ये दोनों अनुभव बहुत मादक थे. प्रीतम ने तो आराम से मेरा लंड पूरा निगल कर चूसा. बोला.

अब जल्दी सिखाना पड़ेगा मेरी रानी को पूरा लॉडा मुँह में लेना. दूसरे दिन से हमारा जीवन धीरे धीरे एक कामुक'ता की लय में बँध गया. मैं प्रीतम की पत्नी जैसे उस'की सेवा कर'ने लगा. उस'के कपड़े धोता, सामान बटोर'ता और बा'की सब छोटे छोटे काम करता. सुबह प्रीतम मुझे संभोग नहीं कर'ने देता था क्योंकि कॉलेज जा'ने की जल्दी रह'ती थी. बस एक साथ नहाना, चूम चाटी करना, एक दूसरे के ऊपर मूतना इत्यादि बातें बाथ रूम में होती थी. नहाते समय मैं अपनी और उस'की चप्पलें धोता. उस'की पानी से गीली चप्पलें तो मैं चाट चाट कर और चूस कर सॉफ करता.

उन्हें मुँह में लेकर मेरा लंड ऐसा फड़फदाता की झड'ने को हो जाता. प्रीतम यह नज़ारा देख देख कर खूब गरम होता था और एक दो बार तो मेरी आशा बँध गयी थी कि शायद वहीं बाथ रूम में मुझे पटक कर वह चोद ले पर साला बड़ा कंट्रोल रख'ता था. सिर्फ़ छुट्टी के दिन बाथ रूम में ज़रूर संभोग होता था जब वह शवर के नीचे गोद में बिठा कर मेरी गान्ड मार'ता हुआ मुझसे चप्पलें चटवाता.

क्रमशः................
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05-14-2019, 11:29 AM,
#19
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (7)

गतान्क से आगे........

रात को खा'ने के बाद संभोग शुरू होता तो फिर तीन चार घंटे नहीं रुकता. एकाध बार हम सिक्सटी नाइन करते या और तरह तरह से अप'ने यार के लंड चूस कर वीर्य पान करते पर बा'की अधिकतर समय ज़ोर ज़ोर से गान्ड मार'ने और मरवा'ने में जाता. गांद मारना हमारे लिए एक ऐसा खेल था कि उसे ज़ोर ज़ोर से वर्ज़िश सी करते हुए कर'ने में ह'में बड़ा मज़ा आता था. उच्छल उच्छल कर हम पूरे जोरों से एक दूसरे की मारते थे.

हां कभी कभी प्यार से गोद में बिठा'कर हौले हौले चूमा चॅटी करते हुए गान्ड चोदना भी बहुत प्यारा लग'ता था. इस'में अक्सर मैं प्रीतम की गोद में होता पर एक दो बार वह भी मेरा लंड अपनी गान्ड में लेकर मेरी गोद में बैठ जाता. इस आसन में हम कोई पोथी साथ साथ पढ़ते या फिर एक ब्लू फिल्म देखते.

प्रीतम की चप्पलें चूसना मेरा ख़ास शौक बन गया था. प्रीतम भी अक्सर मेरी चप्पालों से खेल'ता या फिर मेरे पैरों को चूम चूम कर प्यार कर'ता पर मैं तो उस'की चप्पालों का दीवाना हो गया था. गांद मरवाते या उस'की गान्ड मारते हुए प्रीतम की चप्पलें हमेशा मेरे मुँह में रह'ती थी. बस जब उसे मेरे मुँह को चूम'ने की या अपना लंड चुसवा'ने की बहुत इच्च्छा होती तभी मैं उन्हें मुँह से निकालता.

दोपहर को कॉलेज से वापस आ'कर भी खाना खा'ने के बाद दो घंटे पढ़ाई होती थी. इस बारे में वह पक्का था. हां दो तीन घंटे की इस पढ़ाई में हम कुच्छ मज़ा कर लेते थे और वह भी ऐसी कि पढ़ाई भी तेज होती थी. प्रीतम ने ही इस तरह की पढ़ाई की शुरुआत की. एक दिन जब मैं टेबल कुर्सी पर बैठ कर रिपोर्ट लिख रहा था तो वह उठ कर आया और मुझे चूम कर प्यार से बोला.

अगर तू हाथ ना रोक'ने का और लिखते रह'ने का वायदा करेगा तो एक मस्त आसन दिखाता हूँ. तू बस लिख'ता जा. देख क्या फटाफट पढाइ होती है. लंड में होते चुदासी के सुख से पढ़ाई ज़्यादा तेज होती है अगर ठीक से कोन्सन्ट्रेट किया जाए. बोल है तैयार? मेरे हामी भरते ही वह टेबल के नीचे घुस गया और मेरे साम'ने आराम से बैठ'कर मेरा तना हुआ लंड हाथ में लेकर कुच्छ देर उसे मुठियाया. फिर अपना मुँह खोल कर पूरा लंड निगल लिया. उस'के बाद बस वैसे ही बैठ रहा, मेरा लंड उस'ने चूसा नहीं. अपनी आँखों से इशारा किया कि मैं लिख'ता रहूं. उस'के गरम गीले तपते मुँह का स्पर्श मुझे मदहोश कर रहा था. मैने पढ़ाई शुरू कर दी.

एक घंटे में मेरी इतनी पढ़ाई हुई जैसी दो घंटों में नहीं होती. बस अप'ने आप पर इतना कंट्रोल करना था कि ऊपर नीचे होकर उस'के मुँह को चोद'ने की इच्च्छा दबाता रहूं. प्रीतम बस अपनी जीभ और तालू के बीच मेरे लंड को लेकर बैठ था, कभी कभी हौले से जीभ से मेरे लंड के निचले भाग को गुदगुदा देता. इतना सुख मेरी नसों मे दौड़ जाता था कि सहन नहीं होता था. घंटे भर बाद रिपोर्ट ख़तम होने पर आख़िर जब मुझसे ना रहा गया तो मैने पेन नीचे रख'कर प्रीतम का सिर अप'ने पेट पर दबाया और कुर्सी में बैठ बैठ उस'के मुँह को चोद'ता हुआ झड गया.

बाद में उसे चूमते हुए मैने कहा कि मैं भी उसे वैसा ही सुख देना चाह'ता हूँ. उस'के लिए लंड पूरा मुँह में लेना सीखना बहुत ज़रूरी था. प्रीतम बोला,

इस'में क्या बड़ी बात है, आज ही तुझे सिखा दूँगा उसी रात उस'ने मुझे लंड मुँह में पूरा लेना सिखा दिया. खड़ा लंड मुँह में लेने में कठिनायी होती थी इस'लिए उस'ने मेरी गान्ड मार'ने के बाद अपना मुरझाया लंड मेरे मुँह में दिया और पलंग पर लेट गया. तीन चार इंच की वह लुल्ली मैं आराम से पूरी मुँह में लेकर चूस'ता रहा. दस मिनिट बाद जब उसका खड़ा होना शुरू हुआ तो उस'ने मुझे आगाह किया.

अब घबराना नहीं सुकुमार राजा. गले में जाएगा तो गला ढीला छोडना. देख कैसा हलक तक उतार जाएगा. शुरू में जब उसका लंड धीरे धीरे खड़ा हुआ तो मुझे बहुत मज़ा आया. अधप'के उस लंड को मैं ऐसे चूस रहा था जैसे आइसक्रीम हो. पर जब उसका मोटा सुपाड़ा आख़िर मेरे गले में उतर'ने लगा तो मेरा दम घुट'ने लगा. साँस लेने में भी तकलीफ़ होने लगी. जब मैं लंड निकाल'ने की कोशिश कर'ने लगा तो मेरा यार मुझे पटक'कर मेरे ऊपर अपना वजन देकर लेट गया.

ऐसे थोड़े निकाल'ने दूँगा मेरी जान, आज तो पूरा लेना ही पड़ेगा. कह'कर उस'ने मेरा सिर कस के पेट पर दबा लिया. जब मैं हाथों से उस'की कमर पकड़'कर उसे हटा'ने की कोशिश कर'ने लगा तो उस'ने मेरे हाथ पकड़ लिए, अब उस'के वज़नदार शरीर को हटाना मेरे लिए असंभव था. मेरी साँस अब रुक गयी थी और लग'ता था कि बेहोश हो जाऊँगा. प्रीतम प्यार से बोला,

साले, मेरी बात मान'ता क्यों नहीं? गला ढीला छोड और हाथ पैर फेकना बंद क दे, तुझे कुच्छ नहीं होगा आख़िर मैने हार मान ली और चुपचाप गला ढीला छोड'ने की कोशिश कर'ने लगा. दो मिनिट में मेरा गला एकदम ढीला पड़ गया और दम घुटना भी बंद हो गया. प्रीतम का लॉडा अब जड़ तक मेरे मुँह में उतार चुका था और मेरी नाक और होंठ उस'की झांतों में समा गये थे. अब सहसा मैने महसूस किया कि दम भी नहीं घुट रहा है और उस मोटे ताजी ककडी को चूस'ने में भी मज़ा आ रहा है. मेरे शरीर के ढीले पड़ते ही प्रीतम ने मेरे हाथ छोड दिए. प्यार से मैने अप'ने हाथ उस'के चूतडो के इर्द गिर्द जकड लिए और गान्ड में उंगली करते हुए चूस'ने लगा.

सीख गया मेरा यार, चल अब इनाम ले ले अपना, चूस डाल. और लगे हाथ गला चुदवा भी ले. देख कैसे मुँह चोदा जाता है और मेरे सिर को पेट से सटा'कर वह घचाघाच मेरे मुँह में लंड पेल'ने लगा. बिलकुल ऐसे वह लंड पेल रहा था जैसे गान्ड मार रहा हो, उसका आधा लंड मेरे मुँह से अंदर बाहर हो रहा था. गले में जब सुपाड़ा घुस'ता और निकल'ता तो मेरा दम थोड़ा घुट'ता पर बहुत मज़ा भी आता था. मेरे मुँह को उस'ने पाँच मिनिट में किसी चूत की तरह चोद डाला. जब मैं उसका पूरा वीर्य पी गया तभी उस'ने मुझे छोडा.

इस'के बाद बारी बारी से हम पढाई के समय एक दूसरे का लंड चूसाते. उस'के साम'ने बैठ कर अपना चेहरा उस'की घनी झांतों में छुपा कर उसका लंड पूरा निगल कर वह सुख मिल'ता कि कहा नहीं जा सकता. हाँ, मुझे चुपचाप लंड मुँह में लेकर बैठ'ने की प्रैक्टिस करना पड़ी क्योंकि शुरू के दो तीन दिन मैं उसका लंड चूस'ने को ऐसा तरस जाता कि चूस कर उसे पढाइ पूरी होने के पहले ही सिर्फ़ आधे घंटे में ही झड देता.

यार का शरबत

एक दूसरे के बदन के लिए हमारी हवस का एक और चरण पूरा हुआ जब एक दूसरे के मूत्र को सिर्फ़ शरीर पर या चेहरे पर लेने के बजाय हम'ने उसे पीना शुरू कर दिया. पहल मैने ही की. अब तक बहुत किताबों में और फिल्मों में मैं देख चुका था की कैसे प्रेमी युगल आप'ने साथी का मूत्र बड़ी आसानी से पी जाते हैं. मैं भी यह करना चाह'ता था पर थोड डर'ता था.

आख़िर एक दिन जब टेबल के नीचे बैठ'कर मेरी बारी उसका लंड चूस'ने की थी तो मैं तैश में आ गया. उस दिन मैने लगातार ढाई घंटे की पढाई उससे कराई थी, बिना उसे झडाये. बाद में वह ऐसा झाड़ा की चार पाँच चम्मच भर कर अपनी मलाई मेरे मुँह में उगली. फिर तृप्ति की साँस लेता हुआ वह मेरे मुँह से लंड निकाल कर कुर्सी से उठ'ने की कोशिश कर'ने लगा. मैने उसे नहीं छोडा बल्कि कस कर पकड़ लिया और झाड़ा हुआ लॉडा चूस'ता ही रहा.

छ्होड दे यार, क्या कर रहा है? मुझे पिशाब लगी है ज़ोर की. छ्होड नहीं तो तेरे मुँह में ही कर दूँगा. उस'ने झल्ला कर कहा. उस'की बात को अनसुनी कर'के मैं चूस'ता ही रहा. आँखें उठा कर उस'की आँखों में झाँका और उसे आँख मार दी. वह समझ गया. . वासना से उस'की आँखें लाल हो गयीं. कुर्सी पर बैठ कर मेरे बाल बिखेर'ता हुआ वह बोला.

तो यह मूड है तेरा? देख, एक बार शुरू करूँगा तो रुकूंगा नहीं, पूऱ पीना पड़ेगा. और नीचे नहीं गिराना साले नहीं तो बहुत मारूँगा. उसे शायद डर था कि मैं बिचक ना जाऊं इस'लिए उस'ने मेरा सिर अप'ने पेट पर कस कर दबाया और मूत'ने लगा. उसका लंड मेरे गले तक उतरा हुआ था ही, सीधे गरमागरम मूत की तेज मोटी धार मेरे गले में उतर'ने लगी. मैं निहाल हो गया. मेरा लंड ऐसा खड़ा हुआ कि पूच्छो मत. घटागट उस खारे शरबत को मैं पीने लगा. इत'ने चाव से मैं पी रहा था कि उस'ने भी देखा कि ज़बरदस्ती की ज़रूरत नहीं है और अपना हाथ हटा'कर मेरे गाल पुचकार'ता हुआ आराम से मूत'ने लगा.

उसे ज़ोर की पेशाब लगी थी, दो गिलास तो ज़रूर मूता होगा. मूतना ख़तम होते होते वह भी तैश में आ गया. उसका लंड फिर खड़ा हो गया था और उस'ने लगे हाथ बैठे बैठे मेरा मुँह चोद डाला. दूसरी बार उसका वीर्य पीकर मैं उठा और उसे कुर्सी से उठा'कर वहीं ज़मीन पर पटक'कर उस'की गान्ड मार ली. वह दो बार झड कर लस्त हो गया था इस'लिए चुपचाप ज़मीन पर पड़ा पड़ा मरवाता रहा. उस'के गुदाज मासल शरीर को भोगना मुझे तब ऐसा लग रहा था जैसे किसी औरत को भोग रहा हूँ. वह भी आज किसी औरत की तरह बिलकुल शांत पड़ा पड़ा मरवा रहा था.

उसका भी मेरे शरीर की ओर कितना आकर्षण था यह उस'ने तुरंत दिखा दिया. उसी रात सिक्सटीनाइन कर'ने के बाद उस'ने तो मेरे मुँहे में मूता ही, साथ साथ मुझसे भी मुतवा लिया. एक दूसरे से लिपटे हुए बिस्तर पर पड़े पड़े ही हम एक दूसरे के मुँह में मूतते रहे. वा मेरा मूत इत'ने चाव से पी रहा था कि ख़तम होने पर भी छोड'ने को तैयार नहीं हुआ. इस'के बाद सिक्सटी नाइन के तुरंत बाद अप'ने साथी के मुँह में मूतना हमारा एक प्रिय कार्यक्रम बन गया. प्रीतम को मेरे बाल बहुत अच्छे लगते थे. उन'में वा अक्सर उंगलियाँ चलाता. कहता,

क्या ज़ूलफे हैं मेरी जान तेरी, और लंबी कर ले, मा कसम, बहुत प्यारी लगेंगी. मेरे बाल पहले ही काफ़ी लंबे थे. प्रीतम के कह'ने पर मैने बाल कटाना बंद कर दिया. उसका कहना था कि मेरी लड़कियों जैसी सूरत उससे और प्यारी लग'ती है. शायद वह बाद में मुझे लड़'की के रूप में देखना चाह'ता था.
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05-14-2019, 11:29 AM,
#20
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
चप्पल भोग

हमारे संभोग का अगला मादक मोड़, ख़ास कर मेरे लिए एक बड कामुक क्षण, करीब एक माह बाद एक रविवार को आया. अब तक हम रोज के क्रिया कलाप में ढल चुके थे. मैं बहुत खुश था. समझ में नहीं आता था कि प्रीतम के बिना कैसे इत'ने दिन रहा. मेरे बाल लंबे हो गये थे और प्रीतम अब प्यार से मुझे रानी कह'कर बुला'ने लगा था.

उस'की चप्पालों के प्रति मेरी आसक्ति भी चरम सीमा तक पहुँच गयी थी. जब मौका मिलता, उन्हें मैं चूम'ने और चाट'ने में लग जाता, ख़ास कर जब वे प्रीतम के पैरों में होतीं. प्रीतम अब दिन रात चप्पल पहनता. मेरे ज़िद कर'ने के कारण रात को भी पहन कर सोता था.

दो हफ्ते पहले प्रीतम ने अचानक अपनी चप्पल बदल ली थी. मुझे तो उसका कण कण पहचान का हो गया था. सहसा एक दिन उस'के पैर में उस क्रीम कलर की चप्पल के बजाय एक हल्के नीले सफेद रंग की चप्पल थी. थी यह भी रब्बर की हवाई चप्पल पर बड़ी ही नाज़ुक थी. इतनी पुरानी थी कि घिस घिस कर उस'के सोल ज़रा से रह गये थे. पट्टे भी घिस कर पतले हो गये थे और टूट'ने को आ गये थे. मुलायम तो इतनी थी जैसे रेशम की बनी हो. मुझे वह बड़ी पसंद आई. मैने पूचछा भी कि कहाँ से लाया तो कुच्छ नहीं बोला.

तुझे पसंद आई ना रानी, बस मज़ा कर. जहाँ से लाया हूँ वहाँ और भी हैं. रविवार को हम बाथ रूम में ही बहुत देर रहते और चुदाई करते. उस रविवार को हमेशा की तरह पहले मैं उस'के मुँह में मूता और उसे पेट भर'कर अपना मूत पिलाया. उस'ने मेरे मुँह में मूत'ने से इनकार कर दिया. बोला कि उसे पेशाब नहीं लगी. वह सिर्फ़ बहाना था यह मैं जान'ता था.

उस दिन उस'के दिमाग़ में ज़रूर कोई नयी शैतानी थी. वह साथ में रेशम की मुलायम रस्सी के दो टुकडे और रब्बर का एक बड चार पाँच इंच चौड छह सात इंच व्यास का बैंड लाया था. शायद किसी टायर ट्यूब में से काट हो. मेरे पूच्छ'ने पर, कि यह क्या है, कुच्छ ना बोला और हंस दिया.

मैने रोज की तरह प्रीतम की उन भीगी पतली चप्पालों के पंजे अप'ने मुँह में लिए और चूस'ने लगा. फिर वह मुझे दीवार से टिका कर मेरी गान्ड मार'ने लगा. ऊपर से गिरते शवर के ठंडे पानी के नीचे बहुत देर उस'ने मेरी गान्ड चोदी. झड'ने के बाद उस'की गान्ड मार'ने की बारी मेरी थी पर वह मुझ पर चढ़ा रहा और अपना झाड़ा लंड मेरे गुदा में ही रह'ने दिया. मुझे नीचे लिटा कर वह मेरे ऊपर सो गया. मेरा लंड टटोल कर बोला.

मस्त खड़ा है यार, अब और खड करूँ? मैने चप्पल मुँह में लिए हुए ही अस्पष्ट स्वर में कहा कि इससे ज़्यादा खड़ा वह क्या करेगा? उस'ने एक चप्पल मेरे मुँह से निकाल'कर नीचे रख दी और मुझे बची हुई चप्पल पूरी मुँह के अंदर लेने को कहा.

देख'ता जा कैसे तेरा और खड़ा कर'ता हूँ. पर पहले आज पूरी चप्पल मुँह में ले ले यार. यह पतली वाली है. तू ले लेगा. मैं कब से तेरे मुँह में अपनी पूरी चप्पल ठूँसी देखना चाह'ता हूँ. मेरी पुरानी वाली ज़रा मोटी थी, उसे तू नहीं ले पाता इसीलिए तो ये वाली मंगाई है मुझे भी यही चाहिए था. उस'की सहाय'ता से आधी से ज़्यादा चप्पल मैने आप'ने मुँह में आराम से ठूंस ली. बीच में वह बोला.

क्रमशः................
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