Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:20 PM,
#71
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
रज़िया अपने रूम में बैठी दुआ माँग रही थी कि तभी दरवाजे की बेल बजती है और सोफिया दौड़ते हुई दरवाजा खोलती है तो सामने मुँह लटकाए जीशान खड़ा था। 

अमन उसे अंदर ले आता है और आराम करने के लिए कहता है। 

जीशान सीधा अपने रूम में चला जाता है और धड़ाम से दरवाजा बंद कर देता है। सभी उसके गुस्से की लिमिट उसके दरवाजा बंद करने के अंदाज से जान गये थे। 

लुबना अपने रूम में लेटी हुई थी। जीशान के घर आने की खुशी में दो आँसू उसकी पलकों से होते हुये तकिये में जज़्ब हो जाते हैं। ये लुबना के लिये हमेशा की बात थी। वो बिल्कुल अपनी अम्मी अनुम पे गई थी। जिस तरह अनुम ये कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी कि अमन किसी और से बात करे, किसी और का हाथ पकड़े। 

अमन अनुम की तरफ देखता है। 

अनुम-“क्या बात है? जीशु इतना गुस्से में क्यूँ है? कुछ किया क्या उसने वहाँ पुलिस स्टेशन में?” 

अमन-“नहीं , कुछ नहीं । तुम और तुम्हार बेटी दोनों एक जैसे हो। जाओ आराम करो रात बहुत हो गई है…” 

अनुम शरारती अंदाज में-“नींद नहीं आ रही । कुछ काम बाकी है उसके बाद सो जाऊूँगी। आप जाओ, कल सुबह जल्द उठना भी है ना…” 

अमन अपनी खूबसूरत बीवी अनुम के होंठों को चूमते हुये निच ले होंठ को काट लेता है। पिछले एक महीने से ये सभी शेर और शेरनियाँ भूखे थे। 

रात 12:00 बजे-

सभी अपने-अपने कमरे में जा चुके थे। सभी के अपने अलग-अलग कमरे थे। अमन के रूम में अनुम और रज़िया के रूम का दरवाजा खुलता था। तीनों बेडरूम एक साथ जुड़े थे। अमन का जिस रूम में जाने को दिल करता, वो वहीं रात गुजारता था। ये बात घर के जवान नहीं जानते थे। अमन बीच के रूम में जाता है जहाँ वो और शीबा रहते थे। 

शीबा बेड पे बैठी अमन का ही इंतजार कर रही थी। अमन शर्ट के दो बटन खोल कर वहीं बैठ जाता है। शीबा अपने शौहर की परेशानी जानती थी। वो अपनी बाहों का हार उसके गले में डालकर अमन के कान को चूमती हुई काटती है।

पर अमन उठकर पास वाले रज़िया के रूम में चला जाता है और शीबा अपनी किश्मत को कोसती हुई रह जाती है। अमन अपनी ज्यादातर रातें रज़िया या फिर अनुम या दोनों के साथ गुजारता था। यही चीज थी जो शीबा के तन-बदन में आग लगा देती थी। 

शीबा दिल में सोचती है-“बस कुछ दिन और रज़िया, बस कुछ दिन और…” 

जब अमन रज़िया के रूम में पहुँचता है तो रज़िया उससे लिपट के जीशान की खैर ख़ैरियत पूछती है। 

अमन उसे सारा माजरा बताता है और ये भी बताता है की जीशु ठीक है। ये खबर सुनकर रज़िया के चेहरे पे सकून आ जाता है। रज़िया अमन की बाहों में सिमट जाती है। एक महीने की भूखी प्यासी रज़िया अपने अमन से लिपट के गर्दन को चूमने लगती है। 

अमन-“अम्मी, आज सिर्फ़ मुझे प्यार करने दो…” 

रज़िया-“हाँ अमन, कर लो जो करना है। आज भी रज़िया तुम्हें वैसे ही मिले गी जैसे 20 साल पहले मिलती थी…” दोनों एक दूसरे के होंठों को मुँह में लेकर खो जाते हैं। 
प्यार की अजीम शिद्दत जोश का वो जज़्बा आज तक ठंडा नहीं पड़ा था, वो आग आज भी उसी तरह अपने पूरे शबाब पे थी। कुछ पलों में रज़िया अपने कपड़ों से निजात पा लेती है। आज अमन और रज़िया एक दूसरे से बातें नहीं कर रहे थे वो बस प्यार कर रहे थे। 

अमन रज़िया के चूत से लेकर मुँह तक उसे चाटने लगता है और रज़िया अपनी साँसे रोके अमन की हर उस अदा पे मरती मिटती जाती है। 

रज़िया-“अह्ह… बेटा अमन, चलो ना जल्द से आ जाओ ना ऊपर अपनी रज्जो के उम्ह्ह…” 

ये शब्द नहीं रज़िया का हुकुम था, जिसे अमन हर हालत में पूरा करता था। वो अपनी जान, अपनी अम्मी रज़िया की चूत पे अपना लण्ड घिसते हुये अंदर डाल देता है। 

रज़िया-“उम्ह्ह… मेरा बच्चा… मर जाऊूँ तेरी जवानी पे अमन। आज भी वही जोश है तुझमें, ऐसा लगता है मैं सुहागरात मना रही हूँ । मेरी चूत आज भी तेरे लौड़े से चिर जाती है उम्ह्ह… अमन बेटा…” 

अमन-“अह्ह… अम्मी, आपकी चूत में जो बात है वो ना अनुम की चूत में है, और ना शीबा की… दिल तो करता है ऐसे ही तुझे हमेशा नीचे लेकर चोदता रहूं अह्ह…” 

रज़िया अपनी चूत की दीवारों में अमन के धक्कों से सिहर उठती है और जोश के आलम में दोनों बस एक दूसरे को मसलते चले जाते हैं। मोहब्बत की ये पहली रात ऐसे ही रात भर रवाँ रहती है और देखते ही देखते सुबह का सूरज अपने साथ ईद की खुशियाँ लेकर अमन विला पे चमकता है। 

***** *****ईद का दिन 

ईद का दिन अपने साथ कई खुशियाँ लेकर आया था। सुबह से पूरा खानदान इसकी तैयारी में लगा हुआ था। पर लुबना और जीशान के लिए तो जैसे आज का दिन रोज की तरह ही नजर आ रहा था। 

लुबना किचेन में बर्तन साफ कर रही थी। उसके चेहरे पे उदासी साफ देखी जा सकती थी। कोई गम उसे अंदर ही अंदर मारे जा रहा था वो बार-बार मुड़कर जीशान के रूम की तरफ देखती। 

पास में सोफिया खड़े कब से ये सब देख रही थी। सोफिया उसे छेड़ती है-“क्या बात है शहज़ादी साहिबा, आज आपका मूड इतना रूखा - रूखा क्यूँ है? चलो जल्द से ये सब रखो और चलो मेरे साथ…” 

लुबना-कहाँ आपी? 

सोफिया-जीशान के रूम में। 

लुबना डर के मारे दो कदम पीछे हो जाती है-“नहीं नहीं , मुझे नहीं जाना वहाँ…” 

सोफिया बड़े प्यार से उसका चेहरा अपनी तरफ करती है और उसकी आँखों में रुके हुये आँसुओं को देखती हुई कहती है-“सुबह से तू कई मर्तबा उसके रूम में झाँक चुकी है। मैं जानती हूँ , तू कल की बात को लेकर शर्मिंदा है। अगर तू उसे नहीं मनाएगी, तो वो बेवकूफ़ आज ईद के दिन भी अपने रूम से बाहर नहीं निकलेगा। तू तो जानती है ना उसे। चल अब…” 

लुबना-“पर आपी, वो… मैं… मुझे तो मुझे डर लग रहा है, ना प्लीज़ …” 
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05-19-2019, 01:20 PM,
#72
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
सोफिया उसकी पेशानी पे चपत मारते हुये-“बेवकूफ़ कहीं की… वो भी हमारी तरह इंसान है, कोई भूत नहीं । जो तुझे डर लग रहा है। अब चलती है कि नहीं ?” और सोफिया उसका हाथ पकड़कर उसे जीशान के रूम में ले जाती है। 

जीशान बेड पे उल्टा लेटा हुआ था। तीन तकिये उसके नीचे थे। ये देखकर सोफिया को हँसी आ जाती है। 

जीशान जाग चुका था, पर रात की बात का गुस्सा उसके पूरे जिस्म पे नजर आ रहा था। वो उठकर बेड पे बैठ जाता है और सामने खड़ी लुबना को घुरने लगता है। 

सोफिया-“ये लो जेशु मियाँ, ले आई मैं तुम्हारी मुजरिम को। अब जो सजा देनी हो दो। पर प्लीज़्ज़… जल्द , वरना तुम दोनों के चक्कर में मेरी ईद रह जाएगी…” और ये कहते हुये सोफिया जीशान के रूम से बाहर निकल जाती है। 

लुबना सोफिया को रोकना चाहती थी। पर जीशान को अपनी तरफ बढ़ता देखकर वो सहमकर वहीं रुक सी जाती है। जीशान लुबना के एकदम करीब पहुँचकर उसके बाल अपने हाथ में लेकर उसका चेहरा ऊपर उठाता है। लुबना दर्द के मारे कराहने लगती है, पर वो जानती थी कि वो जितना कमजोर दिखाएगी उतनी जल्द जीशान का गुस्सा कम होगा। 

लुबना-“अह्ह… जीशान भाई, आई एम सॉरी …” 

जीशान अपने दाँत पीसते हुये-“कौन जीशान… मैं तुझे नहीं जानता, तू है कौन? और यहाँ क्या कर रही है? चल जा वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा…” 

लुबना की आँखे किसी भी वक्त छलक सकती थीं। पर वो उसे जप्त किए हुई थी। वो खुद को और मजबूत दिखाना चाहती थी। पर जीशान की आँखों की तपिश उसे कभी रास ना आती थी। वो जब भी उसकी आँखों में देखती, दुनियाँ को भूल जाती-“प्लीज़्ज़… भाई, मुझे माफ कर दो। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई ना प्लीज़्ज़… मुझे एक आखिर बार माफ कर दो…” 

जीशान-“कभी नहीं … जिस तरह तू मुझे नहीं पहचानती, उसी तरह मैं भी तुझे नहीं जानता। अच्छा यही होगा लुबना कि तू यहाँ से चल जा, कोई नहीं लगती तू मेरी , कोई रिश्ता नहीं तेरा मेरा। 

लुबना को ये शब्द तीर की तरह चुभे थे। वो नीचे फर्श पे बैठ जाती है और आँसू उसकी आँखों की दीवार तोड़कर जोरों से बहने लगते हैं। वो कुछ ही पलों में इतनी दुखी हो गई थी कि उसकी साँसें अटकने लगी थीं। जीशान की कही बातों ने उसे अंदर तक हिला दिया था। 

जीशान उसकी आँखों में एक आँसू नहीं देख सकता था। आखिरकार वो उसकी सगी बहन थी, एक माँ के पेट से पैदा हुई, उसकी अपनी बहन। जिसकी जगह उसके दिल में कुछ ऐसी थी जैसे फूल और खुश्बू । वो लुबना को अपने हाथों से पकड़कर उठा लेता है और अपने एक हाथ से उसके आँसू साफ करने लगता है-“बस चुप हो जा माफ किया मैंने तुझे…” 

पर लुबना रोए जा रही थी। 

जीशान-“मैंने कहा ना तुझे, मेरी कसम लुबु रोना बंद कर दे…” 

लुबना के कानों में जब कसम वाले शब्द पहुँचे, तो वो ऐसे रोना बंद हुई जैसे अचानक किसी ने ओन बटन को आफ कर दिया हो, आँसू बहना बंद हो गये थे और चेहरे पे कोई उदासी नहीं थी। जीशान उसके चेहरे को गौर से देखने लगता है और फिर उसे अपनी छाती से लगा लेता है। ये प्यार अब तक भाई बहन के ररश्ते से आगे नहीं बढ़ा था। लुबना अभी तक ये बात खुद को समझाने से नाकाम रही थी कि आखिर क्यूँ वो जीशान को दुनियाँ में सबसे ज्यादा चाहती है? आखिर वो क्यूँ जीशान के करीब किसी को भी देख नहीं पाती? आखिर वो क्या वजह है कि वो जीशान की हर बात को मानती है, बिना सोचे समझे। 

जीशान अपनी बहन से बेपनाह मोहब्बत करता था। उसकी हर छोटी बड़ी ज़रूरतें वो पूरी करता था। एक बार को वो सोफिया या नग़मा को मना कर देता पर लुबना के लिए वो कभी ना नहीं कहता। दोनों भाई बहन के ररश्ते में आई वो छोटी सी खटास भी आँसू ने धो दी । 

जीशान-“मोटी अगर तेरी जगह कोई और होता ना तो कसम से वो आज हॉस्पीटल में होता…” 


लुबना के चेहरे पे आज सुबह की पहले मुश्कान नजर आई थी-“जानती हूँ , मगर एक बात अच्छे से सुन लो, अगर आपने आइींदा ऐसी वैसी कोई हरकत की ना तो सीधा एस॰पी॰ ऑफिस जाऊूँगी और वहाँ फिर मैं खुद लिखवाउन्गी…” ये कहती हुई वो दरवाजे की तरफ लपकती है और जीशान उसे पकड़कर मारने के लिए उसके पीछे भागता है। 

तभी रूम में सोफिया दाखिल होती है-“अरे र … ये क्या हो रहा है भाई? कुछ देर पहले तो एक दूसरे के जान के दुश्मन बने हुये थे और अब फिर से शैतानी…” 

जीशान-“आप बीच में से हट जाओ आपी, मैं इस मोटी को ठीक करता हूँ …” 

लुबना सोफिया के पीठ पीछे छुपकर जीशान को जुबान से चिढ़ाने लगती है-“लगता है आपी ये चूड़ियों वाला अपनी औकात भूल गया है…” लुबना और सोफिया दोनों खिलखिलाकर हँसने लगती हैं। 

और जीशान गुस्से से लुबना के बाल खींचते हुये कहता है-“ये चूड़ियों वाला तुम्हें अपनी औकात के साथ बहुत महँगा पड़ेगा लुबना बेबी…” 

सोफिया-“बस-बस बहुत हुआ, चलो जीशान तुम फ्रेश हो जाओ और जल्द से नीचे नाश्ता करने आ जाओ…” ये कहती हुई वो लुबना को अपने साथ बाहर ले जाती है। 
लुबना खुशी में झूमती हुई आ रही थी और सीधा वो अनुम से टकरा जाती है-“ओह्ह… सारी फुफु…” 

अनुम प्यार भरा हाथ लुबना के सर पे फेरते हुये-“कोई बात नहीं बेटा…” और अपनी बेटी लुबना के मासूम चेहरे को देखते हुये जीशान के रूम की तरफ चल देती है। 

लुबना सर झटकते हुये सोफिया के साथ अपने रूम में घुस जाती है। 

जीशान बाथरूम में नहा रहा था। उसे पता नहीं था कि अनुम उसके रूम में उसके कपड़े प्रेस कर रही है। वो एक छोटी सी तौलिया लपेटे हुये सीधा बाथरूम से बाहर निकलता है और जैसे ही वो सामने अनुम को खड़ी पाता है तो घबरा जाता है और इसी घबराहट में उसकी वो छोटी सी तौलिया उसका साथ छोड़कर नीचे जमीन पे गिर जाती है-“आई एम सारी फुफु…” और वो सीधा किसी तरह वापस बाथरूम में घुस जाता है। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 

अनुम उन 7 सेकेंड में जीशान का वो खूबसूरत हथियार देख चुकी थी। जो शायद उसे नहीं देखना चाहिए था। वो मुँह पे हाथ रखे वहाँ से अपने रूम में चल जाती है। 

अनुम अपने दिल की तेज धड़कनें संभालने के लिए लेट जाती है और जैसे ही वो आँखें बंद करती है, वही सीन उसकी आँखों के सामने आ जाता है। वो उठकर वापस बेड पे बैठ जाती है। 

नहीं नहीं , ये नहीं होने दूँगी मैं। मैं अम्मी के रास्ते पे नहीं चलूंगी । चाहे कुछ भी हो जाये मैं ये सब दुबारा इस घर में किसी कीमत पे नहीं होने दूँगी । वो खुद से बातें करने लगती है की तभी अमन उसके रूम में आता है। अनुम उससे देखकर खुद को संभालती है-“अरे, आप यहाँ?” 

अमन-“हाँ, वो शीबा पता नहीं कब से बाथरूम में घुसके बैठी है। सोचा चलो तुम्हारे रूम का बाथरूम इश्तेमाल किया जाए…” 

अनुम मुश्कुराते हुई अमन की बाहों में सिमट जाती है-“सिर्फ़ बाथरूम ही क्यों जी…” 

अमन उसे अपनी छाती से कसते हुये-“ह्म्म्म्म… सही कह रही है तू । पहले मेरी जान को इश्तेमाल किया जाए, उसके बाद बाथरूम शेयर किया जाए। क्यों सही कहा ना मैंने?” 

अनुम अमन से चिपकते हुई-“जैसी आपकी मर्ज़ी जान …” शायद रात भर वो अमन के लिए जागी थी इसलिये जिस्म टूट रहा था, शमा पिघलने के लिए बेकरार थी। 
अमन रूम लाक करके वापस मुड़ता है तो सामने अनुम को कपड़े उतारता देखकर दिल ही दिल में खुश हो जाता है। वो टापलेश हो चुकी थी और अमन के कपड़े उतारने के इंतजार में थी। जब अमन कोई हरकत नहीं करता तो वो खुद आगे बढ़कर उसका पैंट नीचे खेंच लेती है और साथ में उसकी अंडरवेयर भी। 

अनुम-“आज सबसे पहले मैं मुँह मीठा करूँगी…” 

अमन-“हाँ अनुम, आज सबसे पहले तू …” और ये कहते हुये अमन अनुम को नीचे बैठा देता है। 

अनुम के हाथ में अमन का लण्ड आते ही उसमें जैसे हलचल सी पैदा होने लगती है। वो उसे पहले चूमती है और फिर अपने शौहर के उस हिस्से को, जिसे वो सबसे ज्यादा चाहती थी। अपने मुँह में लेकर चूसने लगती है-“गलप्प्प गलप्प्प गलप्प्प गलप्प्प…” 

अमन-“अह्ह… ऐसे मत कर अनुम अह्ह…” 

अनुम दोनों हाथों से अमन की कमर पकड़कर लण्ड गले में घुसा लेती है और अपनी आँखो से अमन को देखते हुये लण्ड को और अंदर लेती चल जाती है। उसकी आँखें साफ कह रही थीं अमन से-“कि खबरदार जो मना किया तो… पूरा का पूरा खा जाऊूँगी…” 

अमन उसे अपनी गोद में लेकर बेड पे पटक देता है। उसके पास वक्त कम था और काम ज्यादा। वो अनुम के उठने से पहले अपनी जुबान को उसकी चूत पे लगा देता है, जिससे अनुम वापस बेड पे लेट जाती है। उसकी आँखें हमेशा की तरह बंद हो जाती हैं। पर आज न जाने क्यों फिर से उसे जीशान का वही लण्ड नजर आ रहा था। वो आँखें खोलती है और फिर से बंद कर देती है। इस बार उसे अलग सा नशा चढ़ने लगता है जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। 

अनुम-“अह्ह… जान मुँह में डालो ना…” 

अमन उसे अपने ऊपर आने के लिए कहता है और दोनों 69 की पोजीशन में आ जाते हैं। अमन तो अपनी बीवी अनुम की चूत चाट रहा था। पर अनुम क्या सोचकर अमन के लण्ड को मुँह की गहराईयों में उतार रही थी। ये सिर्फ़ अनुम जानती थी। उसका जिस्म झटके खाने लगता है। शायद वो बहुत जोश में आ चुकी थी। वो नीचे उतरकर अमन के लण्ड को हाथ में ले लेती है और उसकी आँखों में देखने लगती है। मुँह से तो कुछ नहीं कह पा रही थी वो पर हाले दिल अमन को बखूबी सुना रही थी। 

अमन उसके साथ पिछले 20 साल से जिंदगी गुजार रहा था। वो जानता था अनुम को कब प्यास लगती है और कब भूख वो अनुम की चूत पे लण्ड घिसने लगता है जिससे अनुम तड़प उठती है। 

अनुम-“अह्ह… घिस मत घुसा दो उम्ह्ह… क्यों सताते हो जी, अपनी जान सी प्यार बीवी को उम्ह्ह…” 

अमन-“क्या करीं अनुम तेरी चूत है ही इतने छोटी की ये अंदर ही नहीं घुसता ना…” 

अनुम-“अह्ह… दो-दो बच्चे निकाल चुके हो इससे, और आप कहते हो छोटी है अह्ह… छोटी है तो बड़ी कर दो ना…” 

अमन मुश्कुराता हुआ अपने लण्ड को उसकी चूत में घुसा देता है। 

अनुम-“अह्ह… जान … मुझसे यहाँ अकेले नहीं सोया जायेगा, मैं कल से अम्मी के साथ सोऊूँगी अह्ह… ओह्ह…” 

अमन-“ठीक है मेरी गुड्डो अह्ह…” 

अनुम के चेहरे पे मुश्कान आ जाती है पर अगले ही पल अमन के झटके से वो कहीं गायब हो जाती है। आज अनुम के दिल की हालत कुछ और थी। आँखें बंद करती तो जीशान नजर आता। आँखें खोलती तो अमन उसपे झुका हुआ सटासट अपना लण्ड चूत में पेलता हुआ। पर इन सब बातों का उसके जिस्म पे ये असर हुआ था कि कई सालों बाद वो जिस सेक्स को कम महसूस करने लगी थी, आज वही जोश, वही जुनून जो आज से ठीक 20 साल पहले अमन से पहल बार उससे चुदते वक्त महसूस हुआ था। वही जज़्बात वो आज महसूस कर रही थी। 

अमन 10 मिनट बाद अपने लण्ड का पानी अनुम की चूत में निकालकर बाथरूम में घुस जाता है। और अनुम अपनी चूत में उंगल डालकर वही पानी होंठों से लगाकर चाटती है। 
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05-19-2019, 01:20 PM,
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RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान जब स्काइ ब्लू कलर का पठानी कुर्ता पहनकर हाल में दाखिल होता है तो सोफिया और लुबना की आँखो में जैसे नूर आ जाता है। वो कमाल की पर्सनाल्टी वाला बंदा था गोरा-चिट्टा रंग, चेहरे पे हमेशा मुस्कान, जब भी मुस्कुराता गाल में दो छोटे-छोटे डिंपल पड़ते थे। वो सोफिया को सलाम करके उसकी तरफ बढ़ता है। 
सोफिया और वो तकरीबन एक क़द के थे। सोफिया अपनी अम्मी रज़िया की जवानी थी तो वहीं जीशान अमन ख़ान की। 

जीशान सोफिया को गले लगाकर ईद की मुबारक बाद देता है 

सोफिया भी अपने हैंडसम भाई की छाती से चिपक के बहुत खुश थी। कहते हैं लड़कियाँ लड़कों से खूबसूरत होती हैं। पर हश-ओ-जमाल के मामले में जीशान से खूबसूरत अमन विला में कोई नहीं था। जीशान अपनी बहन सोफिया की पेशानी चूमते हुये उसे ईद की मुबारक बाद देता है। दोनों भाई-बहन सोफिया की तरफ देखते हैं, जो उन दोनों पे नजरें गढ़ाए खड़ी थी। 

लुबना जीशान से क़द में थोड़ी छोटी थी। वो जीशान के जब गले लगती है तो जीशान उसे अपनी छाती से लगाकर थोड़ा सा ऊपर उठा लेता है, जिससे लुबना की छोटी -छोटी कड़क चुचियाँ जीशान की चौड़ी छाती से रगड़ खाने लगती हैं। 
जीशान-ईद मुबारक हो लुबु। 

लुबना-आपको भी भाई। 

तभी वहाँ रज़िया आ जाती है। रज़िया सबसे पहले अपने पोते जीशान से मिलती है। नरम मगर बड़ी-बड़ी चुचियाँ जीशान की छाती से चिपक की ओर अंदर धँस जाती हैं। 

रज़िया जब भी जीशान से मिलती थी वो उसे किसी ना किसी बहाने से कस लेती थी। आज भी वो उसे अपने से अलग करने के मूड में नहीं थी, वजह ये थी कि जीशान अमन की जवानी का आक्स था और हर औरत अपने शौहर को जवान देखना पसंद करती है। 

जीशान रज़िया को नॉर्मल तरीके से पकड़े हुये था। पर रज़िया की नीयत का कोई सही तरह से अींदाजा नहीं लगा सकता था। 

जीशान बार -बार सभी से मिलता है पर जब वो अनुम के रूम में मिलने जाता है तो उसकी साँसे धीमी रफ़्तार से चलने लगती हैं। पटियाला सूट में अनुम किसी संतराश की सूरत से कम नहीं लग रह थी। 

अनुम-कैसे लग रही हूँ मैं जीशान बेटा? 

जीशान थूक निगलते हुये- बूम

अनुम-क्याआअ? 

जीशान-बहुत-बहुत खूबसूरत फुफु। 

अनुम बनावटी गुस्सा दिखाती हुई-“बस बस सबसे आखिर में मुझसे मिलने आए हो तुम…” 

जीशान-“फुफु सच कहूँ तो जब भी आपसे गले मिलता हूँ ना दिल में एक अजीब सा सकून महसूस होता है जो अम्मी से मिलने पे भी नहीं होता। काश आप मेरी अम्मी होतीं…” 

अनुम की पलकें भीगने के कगार पे थीं पर वो वक्त और हालत को देखते हुये खुद को संभाल लेती है-“मैं भी तो तेरे अम्मी हूँ ना… अगर तुझे ऐसा महसूस होता है तो तू अकेले में मुझे अम्मी कहा कर…” आज माँ की छाती से ममता की आवाज़ निकली थी। 


अनुम के मुँह से ये शब्द तो अदा हो गये थे। पर वो जानती थी कि जीशान कभी उसे अम्मी नहीं कहेगा। दोनों एक दूसरे के गले मिलकर ऐसे खो जाते हैं, जैसे हीर और राझा मरने से पहले आख़िरी बार मिले थे। दोनों के जज़्बात बयान करना बहुत मुश्किल था। अनुम जो पिछले 20 साल से जीशान के मुँह से अम्मी लफ़्ज सुनने के लिए तरस गई थी। 

जीशान अनुम को इस कदर अपने से जकड़ लेता है कि अनुम की चुचियाँ , कमर और पेट उससे एकदम चिपक जाते हैं ‘उम्ह्ह’ की सिसकी अनुम के होंठों से निकलती है और जीशान अनुम को छोड़ देता है। दोनों एक दूसरे को देखने लगते हैं और अनुम आगे बढ़कर जीशान की पेशानी चूम लेती है-“ईद मुबारक हो बेटा…” 

जीशान मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला जाता है। 

उधर रज़िया के रूम में अमन और रज़िया ना सिर्फ़ एक दूसरे को मुबारक बाद दे रहे थे बल्की एक दूसरे का मुँह भी मीठा करा रहे थे। रज़िया की जुबान अमन के मुँह में मिठास घोल रही थी और अमन रज़िया की कमर को सहलाता हुआ उसका साथ दे रहा था। वो सबसे पहले रज़िया से ही मिलता था। उन्हें किसी के कदमों की आवाज़ सुनाई देती है और दोनों एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। 

सोफिया-दोनों के प्यार की निशानी वहाँ अपनी तमामतर खूबसूरतियों के साथ उनके सामने आ जाती है-

“ईद मुबारक हो अब्बू …” 

“ईद मुबारक हो दादी जान…” 

अमन अपनी प्यार बेटी को गले लगाकर ईद की मुबारक बाद देता है। 

सोफिया-मैं कैसी लग रही हूँ अब्बू ? 

अमन उसे अपनी छाती से चिपका के सामने खड़ी रज़िया की आँखो में देखते हुये-“बिल्कुल अपनी अम्मी की तरह जन्नत की हूर …” 

सोफिया से ज्यादा रज़िया शरमा जाती है। 

सोफिया जब वहाँ से बाहर जाती है तो अमन फिर से रज़िया को बाहो में भर लेता है। 

रज़िया-“अह्ह… बस भी करो अमन, रात में ना…” 

अमन-क्या करूँ रज़िया, तू सामने होती है तो ये काबू में नहीं रहता। 

रज़िया अमन के लण्ड को पैंट के ऊपर से सहलाते हुये-“इस बेकाबू ही रहने दो, मैं करूँगी इसे काबू आज रात…” 

अमन-“आप और आपकी बेटी अनुम दोनों। वो भी आपके साथ यही सोएगी…” 
दोनों फिर से एक दूसरे को चूमने लगते हैं। 

जीशान अपने दोस्तों से मिलने बाहर चला जाता है। 

रात 10:00 बजे- 

लुबना इधर से उधर टहल रही थी और नग़मा सोफिया के साथ टीवी देखने में मस्त थी। 

सोफिया-“अरे लुबु, देख ना तेरा पसंदीदा सीरियल शुरू होने वाला है…” 

लुबना परेशान सी घड़ी की तरफ देखती हुई-“पता नहीं ये जीशान भाई भी कहाँ रह गये?” 

तभी जीशान हाल में दाखिल होता है। उसका चेहरा बता रहा था कि वो बहुत थक चुका है। 

लुबना उसके पीछे-पीछे रूम में चली जाती है-“क्या हुआ भाई आप ठीक तो हैं ना? बहुत थके-थके से लग रहे हो…” 

जीशान-“हाँ लुबु, पता नहीं सर बहुत दर्द कर रहा है…” 

लुबना-अरे, अल्लाह आपको तो नजर लग गई है। आप ऐसे करो लेट जाओ, मैं नजर की दुआ पढ़कर फूँक देती हूँ …” 

जीशान बिना कुछ कहे वहीं बेड पे धड़ाम से गिर जाता है। लुबना उसकी पेशानी पे हाथ फेर-फेर के दुआ पढ़ती जाती है और फूँक ती जाती है। वो तो उसी वक्त सो जाता है। पर लुबना उसके जूते निकालकर बाहर रखती है, उसे ठीक तरह से लेटाती है, रूम का ए सी ओन करके उसकी पेशानी दबाते हुये वहीं उसके पास सो जाती है। 

अमन जब रूम में पहुँचता है तो शीबा बाथरूम से फ्रेश होकर बाहर निकल रही थी। शीबा अपने शौहर के गले लगकर उसपे अपना जादू चलाने लगती है। वो जानती थी कि अगर वो ऐसा नहीं करेगी तो रोज की तरह आज भी अमन रज़िया या अनुम के रूम का रुख़ करेगा। 

अमन-क्या बात है जानेमन बहुत प्यार आ रहा है? 

शीबा-“हम तो जान देते हैं आप पे, पर आपको दिखाई दे तब ना?” वो अमन की शर्ट के बटन खोल ने लगती है। 

अमन-नहीं , आज नहीं शीबा। 

शीबा-क्यों, तबीयत खराब है क्या? 

अमन-नहीं तो… ऐसी कोई बात नहीं मैं थक गया हूँ , आराम करना चाहता हूँ । 

शीबा-“ह्म्म्म्म… मेरा शेर बूढ़ा और कमजोर हो गया है। शायद अब इसमें वो शिकार करने की क्षमता नहीं रही । और वो खिलखिाकर हँसने लगती है। 

और अमन के दिमाग़ का पारा चढ़ने लगता है। 

ये शीबा के शैतानी दिमाग़ की एक चाल थी। वो जानती थी अमन एक पठान है और पठानों की अकल घुटनों में होती है। उन्हें बस थोड़ा सा छेड़ो। वो छेड़ देती हैं। और शीबा का तीर सही निशाने पे लग जाता है। 

अमन-“साल तुझे अभी दिखाता हूँ कि ये शेर क्या कर सकता है?” वो शीबा को पीछे से पकड़कर वहीं बेड पे झुका देता है, दोनों हाथ पीछे मोड़कर उसके कान में कहता है-“ तू आज ऐसे चुदेगी शीबा कि तुझे अपनी माँ हिना याद आ जायेगी…” 
अमन एक पंजा शीबा की नाइटी पे मारता है और वो जिस्म से अलग हो जाती है। ब्रा का हुक खुलते ही शीबा ऊपर से एकदम नंगी हो चुकी थी। वो दिल ही दिल में बहुत खुश थी और चूत तो उसकी मारे जोश के मचलने लगी थी। 

शीबा-“अह्ह… जान से मारने का इरादा है क्या जी…” 

अमन-“हाँ… मुँह खोल, साली मुँह खोल … आज तूने अमन की मर्दानगी को ललकारा है। अब देख तेरे साथ मैं क्या करता हूँ ?” 

जैसे ही शीबा मुँह खोलती है, अमन उसके मुँह के सामने अपना कड़क लण्ड लहराने लगता है। शीबा उसे हाथ में पकड़कर हिलाते हुये अपने होंठों पे लगाकर चूमती है-“उम्ह्ह… मुआह्ह…” 

अमन-मुँह में ले इसे। 

शीबा का मुँह खुलता है और वो तेज धारदार तलवार उसके गले में घुस जाती है-“गलप्प्प गलप्प्प गलप्प्प…” उससे ना साँस ली जा रही थी और ना थूक निगला जा रहा था। अमन का लण्ड शीबा के गले में फँसा पड़ा था और वो वहीं अपने खौफनाक अंदाज में अंदर-बाहर हो रहा था। शीबा एक पल के लिए उसे बाहर निकालती है और फिर दूसरे ही पल दुबारा मुँह में ले लेती है-“गलप्प्प… गलप्प्प… दिखाओ मुझे आपकी वही मर्दानगी, जिससे आप मेरी अम्मी और मुझे चोदा करते थे गलप्प्प गलप्प्प…” 

अमन उसे झुकाकर खड़ा कर देता है और एक झटके में अपने लण्ड को उसकी चूत के अंदर तक घुसा देता है।

शीबा-“अह्ह… मार डालोगे क्या मुझे? अह्ह… नहीं , इतने जोर से नहीं ना जान अह्ह… उम्ह्ह…” 

अमन-“अह्ह… चिल्ला मत साली … अब् क्या हुआ? मुझे ललकारती है? ले… आज तेरी चूत को सुजा ना दूं तो मेरा नाम भी अमन नहीं अह्ह… अह्ह…” 

शीबा-“नहीं … ना जी… मुझे माफ कर दो ना अह्ह… प्लीज़्ज़… आराम से ना अह्ह… उम्ह्ह…” 

कोई पिस्टन भी कम रफ़्तार से बाइक में घूमता होगा। अमन की रफ़्तार उससे भी ज्यादा तेज थी। शीबा को सच में बहुत दर्द हो रहा था। वो पागल ये समझ बैठी थी कि अमन ज्यादा से ज्यादा 10 मिनट चोद पाएगा उसे, पर पिछले 15 मिनट से एक रफ़्तार से एक फ्लो में चोदने की वजह से शीबा की चूत अब चरचराने लगी थी। 

अमन उसकी आवाज़ सुनकर उसकी पैंटी उठाकर उसके मुँह में ठूँस देता है और फिर से उसे पीछे से चोदने लगता है। 

शीबा-“अह्ह… निकालो ना अह्ह… अब नहीं कहूँ गी ना अह्ह…” 

अमन-“आज तो तू मर भी जाए तो कोई गम नहीं मेरी जान अह्ह…” वो शीबा का मुँह पकड़कर सटासट अपने लण्ड को उसकी बच्चेदानी पे मार रहा था जैसे कोई मूसल ओखली में मारता है। 45 मिनट चली इस धुआँधार चुदाई के बाद अमन अपना लण्ड बाहर निकाल लेता है और शीबा को नीचे बैठाकर उसके मुँह में अपने लण्ड की धार छोड़ने लगता है। 

आज कई दिनों बाद अमन ने शीबा को इतनी बुरी तरह किसी रंडी की तरह चोदा था। इस चुदाई का असर अमन पे ये हुआ था कि वो गहर नींद में सो जाता है और शीबा उसके पास लेटी हुई दिल में जश्न मनाने लगती है कि आज की रात रज़िया और अनुम अपनी चूत को घिसते-घिसते गुजारेंगी। 

शैतानी दिमाग़ की ये चाल तो कामयाब रही । पर आने वाला वक्त ही बताएगा की कौन किस हद तक अपनी साज़िशों में कामयाब होता है। 
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05-19-2019, 01:20 PM,
#74
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
***** *****सुबह 8:00 बजे-

अमन फ्रेश होकर सीधा रज़िया के रूम में चला जाता है। रज़िया अभी-अभी नहाकर बाथरूम से निकल थी और आईने के सामने खड़ी बाल सुखा रही थी। अमन पीछे से जाकर रज़िया को बाहो में जकड़ लेता है। 

रज़िया-“उऊचह ओह्ह… तुम हो? रात में कहाँ गायब थे जनाब? हम तो तरसते ही रह गये…” 

अमन रज़िया को अपनी तरफ मोड़ते हुये उसके होंठों पे किस कर देता है-“गुड मॉर्निंग मेरी जान, शीबा ने ऐसा पकड़ा की रूम से निकलने ही नहीं दिया, और थकान भी बहुत थी इसलिये…” 

रज़िया-“ह्म्म्म्म… कोई बात नहीं । शीबा का भी तुम पे उतना ही हक है जितना मेरा और अनुम का…” 

अमन-“पर मैं जिससे सबसे ज्यादा मोहब्बत करता हूँ वो तुम हो, उसके बाद अनुम, तुम दोनों की जगह मेरे दिल में इतनी है की तीसरे की जगह बनते ही नहीं है। अगर नाना जान मरते वक्त शीबा से मेरा रिश्ता नहीं करवाते तो मैं कभी उससे शादी नहीं करता… कोई कुछ भी कहे, पर तुम दोनों की जगह कोई तीसरा नहीं … कभी नहीं …” 

रज़िया अपने अमन की बातें सुनकर उसपे निहाल हो जाती है और दोनों एक दूसरे के मुँह में मुँह डाले सुबह की मीठी-मीठी सलाइवा की चुस्कियाँ लेने लगते हैं। 

शीबा बाहर खड़ी ये सब तमाशा देख रही थी और दिल ही दिल में रज़िया को जान से मार देने तक पहुँच गई थी। वो पैर पटकते हुई जीशान के रूम के सामने से गुजरती है कि तभी उसकी नजर, अंदर रूम में पड़ती है। जीशान अपने बेड पे बड़े सकून की नींद सो रहा था। उसके चेहरे पे मासूमियत और भोलापन साफ नजर आता था। 

शीबा कुछ सोचते हुये उसके रूम में कमर हिलाती हुई घुस जाती है। जीशान के चेहरे पे हाथ फेरते हुये शीबा की नजर उसकी जाँघो के बीच पे पड़ती है, जहाँ कुछ उभार सा दिखाई दे रहा था। बेडशीट होने की वजह से जीशान का लण्ड उसे साफ-साफ नजर नहीं आ रहा था। वो जीशान के चेहरे पे झुकती है कि तभी जीशान नींद से जाग जाता है और अपने इतने करीब शीबा को इस हालत में देखकर थोड़ा सहम सा जाता है। 

जीशान-“अरे अम्मी आप?” 

शीबा-“उठो भी बेटा, कितना सोओगे? चलो फ्रेश हो जाओ…” 

जीशान-ओके अम्मी। 

शीबा उठकर बाहर जाने ही वाली थी कि उसे अनुम दरवाजे के पीछे छुपी हुई नजर आती है। 

अनुम भी जीशान को उठाने के लिए उसके रूम में आई थी, पर शीबा को वहाँ देखकर वो दरवाजे के पास ही रुक गई थी। 

शीबा का शैतानी दिमाग़ कुछ सोचता है और वो वापस पलटकर बेड पे बैठ जाती है। 

जीशान-क्या हुआ अम्मी, आप ठीक तो हैं ना? 

शीबा-नहीं बेटा, कल रात से सर बहुत दर्द कर रहा है चक्कर से आ रहे हैं। 

जीशान घबराकर शीबा के पास आ जाता है और उसके बगल में बैठाकर उसे सहारा देता है-“आपने डाक्टर को बताया?” 

शीबा-“नहीं , मैं ठीक हूँ जीशान बेटा तुम परेशान मत हो…” 

जीशान-“कैसी बात कर रही हैं आप अम्मी? परेशानी की क्या बात है, आप चलिए मैं डाक्टर को फोन करके बुलाता हूँ …” 

शीबा-“नहीं नहीं जीशान, मैं ठीक हूँ …” और ये कहते हुये वो जीशान के सीने से लिपट जाती है-“कितना ख्याल रखता है मेरा बेटा, तू अपनी अम्मी का?” 

जीशान-“मैं आपका ख्याल नहीं रखूँगा तो कौन रखेगा अम्मी? 

शीबा नजरें उठाकर जीशान की तरफ देखती है और उसके होंठों को अपने होंठों में कैद कर लेती है। 

जीशान के लिए ये बात एकदम नई थी। वो तो सोच भी नहीं सकता था कि शीबा, उसकी अम्मी ऐसी कोई हरकत भी कर सकती है। 

कुछ देर बाद शीबा अपने होंठ जीशान के होंठों से अलग करके खड़ी हो जाती है-“ओह्ह… मुझे माफ कर दो बेटा पता नहीं ये सब… आई एम सो सारी …” और वो रूम से बाहर निकल जाती है। 

जीशान हैरतजदा सा उसे जाता देखता रह जाता है, और फिर फ्रेश होने बाथरूम में चला जाता है। 

जब शीबा जीशान के रूम से निकलकर अपने रूम में जाती है तो अनुम उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी तरफ खींचती है-“क्या हरकत कर रही थी तुम जीशान के रूम में?” 

शीबा-“कुछ भी तो नहीं …” उसके चेहरे पे कातिल मुस्कान थी। 

और अनुम की आँखें शोला बनी हुई थीं-“सच-सच बता दो, वरना अच्छा नहीं होगा शीबा?” 

शीबा आगे बढ़ती है और अनुम के रसीले होंठों को चूम लेती है। कुछ पलों के लिए अनुम की आँखें बंद हो जाती हैं और वो पता नहीं किस दुनियाँ में खो जाती है। पर अगले ही पल वो शीबा को पीछे धकेल देती है। 

शीबा-“ये हरकत कर रही थी मैं, अब पता चल गया?” 

अनुम-“तुम्हारी ये जलील हरकत मैं अभी अमन को बताने वाली हूँ …” 

शीबा-“ओके जाओ, तो मैं भी जीशान से कह देती हूँ की तुम्हारी फुफु ने क्या-क्या गुल खिलाए हैं अपने भाई अमन के साथ और उसी का नतीजा जीशान और लुबना की शक्ल में हमारे सामने है…” 

अनुम सहम जाती है-“तुम ऐसा कुछ नहीं कहोगी जीशान से…” 

शीबा-“एक शर्त पे कि तुम अपनी ये नाक मेरे और जीशान के बीच में अड़ाना बंद कर दोगी। मैं जीशान के साथ कुछ भी करूँ, तुम चुपचाप सब देखोगी और अगर तुमने अपनी चोंच खोलने के कोशिश भी की ना अनुम बेगम तो मैं अपना ये बड़ा सा मुँह खोल दूँगी , सारी दुनियाँ के सामने…” 

अनुम उसे कुछ कहने वाली थी कि उन्हें अमन उनकी तरफ आता हुआ नजर आता है वो दोनों चुप हो जाती है। 

जीशान तैयार होकर कालेज जाने के लिए पोर्च के नीचे खड़ा था। उसे इंतजार था लुबना का और लुबना हमेशा की तरह तैयार हो रही थी। जीशान हॉर्न पे हॉर्न बजा रहा था कि तभी लुबना अपना छोटा सा कालेज बैग लिए वहाँ आती है। 
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05-19-2019, 01:20 PM,
#75
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
लुबना-“उफफ्फ़ हो जरा सी देर क्या हो गई कि शुरू हो जाते हो…” 

जीशान-“अरे यार चलो भी, मेरा स्टेज प्रोग्राम है 9:30 पे…” 

लुबना कार में बैठती हुई-“अरे हाँ, क्या परफॉर्म करने वाले हो आज गेट-टुगेदर प्रोग्राम में?” 

जीशान-“वो तो तुम्हें वहीं पता चलेगा…” और दोनों भाई-बहन कालेज के लिए निकल जाते हैं। 

रास्ते में जीशान को रह-रहकर सुबह वाली बात याद आ रही थी। पर वो अपने स्टेज प्रोग्राम को लेकर काफी उत्तेजित था, इसलिए वो सर झटक के अपना ध्यान ड्राइविंग में लगा देता है। जीशान के कालेज में आज गेट-टुगेदर प्रोग्राम था जिसमें पिछले बैचेस के और फ्रेशर सब मिलकर ये प्रोग्राम करने वाले थे। सभी ने इसमें पार्टीसिपेट किया था। और जीशान तो कालेज की शान था स्पोर्ट्स से लेकर डांसिंग, सिंगिंग सब में वो कालेज में सबसे ज्यादा पापुलर था। आज फ्रेशर के बैच का पहला दिन था और इस फ्रेशर की बैच में एक खूबसूरत चेहरा सभी की आकर्तण का केंद्र बना हुआ था। 

वो थी डाक्टर सोनिया के बेटी रूबी। रूबी निहायत ही हसीन लड़की थी उसे ये मौका और किसी ने नहीं बल्की खुद अमन ख़ान की वजह से मिला था। आज से 20 साल पहले अमन ने डाक्टर सोनिया को जो प्यार की निशानी दी थी, वो रूबी के रूप में दुनियाँ में आई थी। 

जीशान अपने परफामेंस का इंतजार कर रहा था कि तभी अनाउन्सर जीशान का नाम पुकारता है, और तालियों के साथ जीशान का सभी स्टेज पे स्वागत करते हैं। सब यही सोच रहे थे कि शायद जीशान कोई गाना या कोई एथलेटिक परफामेन्स देगा पर जो जीशान करने वाला था वो सभी के होश उड़ा देने वाला परफामेन्स था। 

जीशान स्टेज पे-“हेलो 123 माइक ह्म्म्म्मम…” 

दोस्तों, आज मैं आपको जो कविता सुनाने जा रहा हूँ , वो मेरी लिखी हुई नहीं है। वो एक मशहूर-ओ-मारूफ़ शायर सुनील जोगी की है। ये कविता मैं अपने सारे बैचलर दोस्तों को समर्पित करना चाहूँगा । जितने भी दोस्त यहाँ कुंआरे बैठे हैं, ये कविता उनकी नजर है। 

जीशान एक पल के लिए लुबना को देखता है। 

सारे हाल में खामोशी छाई हुई थी, सभी जीशान को देख रहे थे। जीशान गला साफ करता है और अपनी कविता शुरू करता है। 

यारों! शादी मत करना, ये है मेरी अर्ज़ी
फिर भी हो जाए तो ऊपर वाले की मर्ज़ी।
लैला ने मजनूँ से शादी नहीं रचाई थी
शीरी भी फरहाद की दुल्हन कब बन पाई थी
सोहनी को महिवाल अगर मिल जाता, तो क्या होता
कुछ न होता बस परिवार नियोजन वाला रोता
होते बच्चे, सिल-सिल कच्छे, बन जाता वो दर्ज़ी।
सक्सेना जी घर में झाड़ू रोज़ लगाते हैं
वर्मा जी भी सुबह-सुबह बच्चे नहलाते हैं
गुप्ता जी हर शाम ढले मुर्गासन करते हैं
कर्नल हों या जनरल सब पत्नी से डरते हैं
पत्नी के आगे न चलती, मंत्री की मनमर्ज़ी।
बड़े-बड़े अफ़सर पत्नी के पाँव दबाते हैं
गूंगे भी बेडरूम में ईलू-ईलू गाते हैं
बहरे भी सुनते हैं जब पत्नी गुर्राती है
अंधे को दिखता है जब बेलन दिखलाती है
पत्नी कह दे तो लंगड़ा भी, दौड़े इधर-उधर जी।
पत्नी के आगे पी.एम., सी.एम. बन जाता है
पत्नी के आगे सी एम, डी.एम. बन जाता है
पत्नी के आगे डी. एम. चपरासी होता है
पत्नी पीड़ित पहलवान बच्चों सा रोता है
पत्नी जब चाहे फुड़वा दे, पुलिसमैन का सर जी।
पति होकर भी लालू जी, राबड़ी से नीचे हैं
पति होकर भी कौशल जी, सुषमा के पीछे है
मायावती कुँवारी होकर ही, सी.एम. बन पाई
क्वारी ममता, जयललिता के जलवे देखो भाई
क्वारे अटल बिहारी में, बाकी खूब एनर्जी।

पत्नी अपनी पर आए तो, सब कर सकती है
कवि की सब कविताएं, चूल्हे में धर सकती है
पत्नी चाहे तो पति का, जीना दूभर हो जाए
तोड़ दे करवाचौथ तो पति, अगले दिन ही मर जाए
पत्नी चाहे तो खुदवा दे, घर के बीच क़बर जी।

शादी वो लड्डू है जिसको, खाकर जी मिचलाए
जो न खाए उसको, रातों को, निंदिया न आए
शादी होते ही दोपाया, चोपाया होता है
ढेंचू-ढेंचू करके बोझ, गृहस्थी का ढोता है
सब्ज़ी मंडी में कहता है, कैसे दिए मटर जी।

और… पूरा रूम तालियों की आवाज़ से गूँज उठता है। हर कोई हँस रहा था, वो जिनकी शादी हो चुकी थी वो भी और जो अभी इस बंधन में बँधे नहीं थे वो भी। 

जीशान ने आज सभी का दिल जीत लिया था और ख़ासकर रूबी का। वो अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से जीशान के खूबसूरत चेहरे को घूर रही थी। 

कुछ लड़कियाँ चिल्ला रही थीं-“ वी वोंट सिक्स पैक… वी वोंट सिक्स पैक…” 

उसके बाद पूरा रूम एक आवाज़ में जीशान को अपनी टीशर्ट उतारकर अपने सिक्स पैक दिखाने की माँग करने लगता है। और आखिरकार जीशान अपनी टीशर्ट उतार देता है। हर लड़की उसके इस अंदाज पे मर मिटने को तैयार थी। 
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05-19-2019, 01:20 PM,
#76
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
वो बाय्स चेज रूम में चला जाता है और उसके पीछे-पीछे ढेर सारी लड़कियाँ भी दौड़ती हैं। 

जीशान जब बाय्स चेज रूम से बाहर निकलता है तो उसे लुबना उसका इंतजार करती हुई मिलती है। वो शायद बहुत गुस्से में थी। जैसे ही उसकी नजर जीशान पे पड़ती है वो उसपे टूट पड़ती है-“क्या ज़रूरत थी अपने कपड़े उतारने की? खुद को बहुत मसल-मैन समझते हो ना आप भाई?” 

जीशान-“कपड़े कहाँ उतारे? मैंने सिर्फ़ टीशर्ट तो निकाला था वो भी दोस्तों के कहने पे…” 

लुबना-“हाँ… वो जो कहेंगी, वैसे आप करोगे, है ना… कल वो कहेंगे यहाँ से कूद जाओ तो आप कूद जाओगे क्या?” 

जीशान-“मैं तेरी तरह बेवकूफ़ थोड़ी हूँ । और तू क्यों इतनी गरम हो रही है? बाडी है तो दिखाउन्गा है ना?” 

लुबना बुरा सा मुँह बनाते हुये-मुझे अच्छा नहीं लगता। 

जीशान उसकी आँखों में झाँकते हुए कहता है-क्यूँ ? 

लुबना के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। वो जीशान को घूर ते हुये अपनी क्लास में चली जाती है। तभी वहाँ रूबी और उसकी मोम डाक्टर सोनिया आ जाते हैं। 

रूबी-जीशान। 

जीशान पलटकर रूबी की तरफ देखता है-जी, कहें। 

रूबी-“हाई… जी मेरा नाम रूबी ख़ान है और ये मेरी अम्मी डाक्टर सोनिया ख़ान हैं मैंने इसी साल एडमिशन लिया है। आपकी परफामेंस देखी तो आपको मुबारकबाद कहने चल आई…” 

जीशान अपना हाथ रूबी की तरफ बढ़ाते हुये-“हेलो, मेरा नाम जीशान ख़ान है…” 

डाक्टर सोनिया-बेटा, आपके फादर का क्या नाम है? 

जीशान-अमन ख़ान। 

डाक्टर सोनिया की आँखें मोटी हो जाती हैं-“मतलब आप अमन ख़ान जिनकी यहाँ गारमेंट्स की फॅक्टरी है, उनके साहबजादे हो?” 

जीशान-बिल्कुल सही पहचाने आपने। आप मेरे अब्बू को जानते हैं? 

डाक्टर सोनिया-“बहुत अच्छी तरह से। मेरा मतलब है काफी वक्त पहले जानती थी, आजकल कहाँ है, कोई खैर खबर नहीं …” 

जीशान-जी वो बिल्कुल ठीक हैं। 

डाक्टर सोनिया की नजरे जीशान से हट ही नहीं रही थी। वो तो जीशान को देखते ही पहचान गई थी। जीशान अपने अब्बू की कार्बन कापी जो था, वही आँखें, वही होंठ, वही बात करने का अंदाज, किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेने वाली वही मुस्कान। 

रूबी-अम्मी चलें? 
डाक्टर सोनिया-बेटा, अब मैं घर जाउन्गी। मुझे ज़क्लनिक भी जाना है। तुम कार लेकर आ जाना। 

रूबी-तो आप घर कैसे जाएँगी? 

डाक्टर सोनिया-मैं आटो से चले जाउन्गी। 

जीशान-“एक्स क्यूज मी, बुरा ना मानें तो मैं आपको आपके घर तक ड्रॉप कर देता हूँ । वैसे भी मुझे घर जाना था इफ यू डोन्ट माइंड…” 

डाक्टर सोनिया-ओके। 

रूबी कुछ बोलती उससे पहले ही सोनिया ने हाँ कह दी थी। वो तो चाहती भी यही थी कि जीशान से अकेले में कुछ बात करे। दोनों रूबी को बाइ कहकर कालेज के बाहर निकल जाते हैं। 

जीशान कार में बैठते हुये-तो आंटी आपका घर कहाँ है? 

सोनिया-“प्लीज़्ज़… तुम मुझे आंटी मत कहो। बहुत ओल्ड सा लगता है। अभी मेरी उमर ही क्या है?” दोनों हँसते हुये बातें करने लगते हैं और कार डाक्टर सोनिया के घर की तरफ बढ़ जाती है। कुछ ही पलों में वो दोनों एक दूसरे से काफी घुल मिल गये थे। 

घर के सामने पहुँचकर डाक्टर सोनिया कार से बाहर उतर जाती है। 

जीशान-अच्छा सोनिया जी, मैं चलता हूँ । 

सोनिया-ऐसे कैसे? पहल बार घर आए हो एक कप कोफी तो पीकर जाओ। 

जीशान कार से उतर जाता है और दोनों घर के अंदर दाखिल हो जाते हैं। सोनिया कहती है-“तुम बैठो, मैं जरा चेज करके आती हूँ …” 

जीशान इधर-उधर देखते हुई सोफे पे बैठ जाता है। घर काफी खूबसूरत था, अच्छी तरह सजा हुआ। कुछ देर बाद जब सोनिया काफी का कप लेकर वहाँ आई तो जीशान के होश उड़ गये। एक पतली सी नाइटी में वो अपनी गाण्ड मटकाते हुई चली आ रही थी, अंदर शायद कुछ भी नहीं पहना था। 
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05-19-2019, 01:21 PM,
#77
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान को पशीने छूटने लगते हैं। वो बेचारा अभी तक कुंआरा था। जिस तरह कोई कुआँरी लड़की सुहागरात के दिन नर्वस महसूस करती है, वही हाल इस वक्त जीशान का था। 

जीशान-मैं चलता हूँ सोनिया जी। 

सोनिया उसका हाथ पकड़कर वापस बैठा देती है-क्या चलता हूँ । चलता हूँ ? 5 मिनट तो बैठो। 

जीशान-“नहीं , मुझे कुछ ज़रूर काम है…” 

सोनिया उसे रोकती है और इसी चक्कर में उसके हाथ में का कप जीशान की जाँघ पे गिर जाता है। गरम काफी वाला वो कप जैसे ही जीशान की जीन्स पे गिरता है वो चीख पड़ता है-“उऊउचह…” 

सोनिया-“ओह्ह… माई गोड, आई एम सो सारी बेटा, तुम बैठो मैं ठंडा पानी लेकर आती हूँ …” 

जीशान तड़प रहा था। सोनिया बर्फ क्यूब लेकर वहाँ आती है और नीचे बैठकर जीशान की जीन्स उतारने लगती है। 

जीशान-“ये आप क्या कर रही हैं?” 

सोनिया-“जीन्स नहीं उतारोगे तो ये ठंडी बर्फ कैसे लगा पाउन्गि? मैं डाक्टर हूँ , मुझे अपना काम करने दो और चुपचाप बैठो…” 

जीशान दर्द से हल्का-हल्का चिल्ला रहा था। जैसे ही उसकी जीन्स उतरती है, सोनिया की आँखों के सामने जीशान का लण्ड आ जाता है। वो अभी ढीला था, पर इस हालत में भी वो अपना साइज बता रहा था। सोनिया अमन का लण्ड ले चुकी थी पर जीशान तो लम्बाई और मोटाई के मामले में अपने बाप का भी बाप था। 
सोनिया बर्फ को जीशान के जाँघ पे घिसने लगती है। 

जीशान-“अह्ह… ऊह्ह… ठंडा ठंडा वो बर्फका टुकड़ा उसके जाँघ में सरसराट पैदा कर रहा था और सामने बैठी हुई सोनिया उसपे और सितम ढा रही थी। वो कुछ ऐसे झुकी हुई थी कि अंदर का सारा माल साफ-साफ दिखाई दे रहा था।

सोनिया अचानक जीशान के लण्ड को हाथ में लेकर सहलाने लगती है। 

जीशान-“आह्ह… सोनिया, ये आप क्या कर रही हो? प्लीज़्ज़ ऐसा मत करो…” 

सोनिया कुछ नहीं कहती और अपना काम जार रखती है। वो जीशान के आँखों में देखती हुई उसके लण्ड को हल्के-हल्के सहलाए जा रही थी। 

जीशान-“प्लीज़्ज़ सोनिया ज…जी, आपके पति आ जाएँगे। प्लीज़्ज़… मुझे जाने दो…” 

सोनिया-“वो पिछले दो महीने से सऊदी गये हुये हैं। बस मैं हूँ और तुम हो…” 

जीशान के लण्ड के साइज में धीरे धीरे बढ़ोतरी हो रही थी। आखिरकार वो भी तो अमन ख़ान की औलाद था फ़र्क बस इतना था कि जीशान इन सब बातों से अंजान था। 

सोनिया-“अघह… जीशान, तेरा तो तेरे अब्बू से भी बड़ा है र ईई…” 

जीशान चौंकते हुये-“तो क्या आप और अब्बू ?” 

सोनिया-“हाँ… एक बार वो मेरे साथ सो चुके हैं, बहुत जबरदस्त और ताकतवर मर्द हैं तेरे अब्बू …” 

ये सुनकर जीशान के लण्ड में इस कदर खिचाव आता है कि वो पूरी तरह तन जाता है, 8” इंच लंबा और 4 इंच मोटा जीशान का लण्ड सोनिया के हाथों में भी समा नहीं रहा था। जीशान अपनी आँखें बंद कर लेता है। 

सोनिया जीशान के लण्ड को अपने मुँह में ले लेती है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

जीशान-“अह्ह… ये क्या कर रही हो तुम? अह्ह…” पहल बार किसी ने जीशान के लण्ड को अपने मुँह में लिया था और वो भी इस जबरदस्त अंदाज में। 

सोनिया लण्ड को मुँह में खींचती हुई आंडो को मरोड़ रही थी, जिससे जीशान के लण्ड में और तनाव आने लगता है। सोनिया लण्ड को पकड़कर अपनी चुचि के बीच में घुसा लेती है और दोनों हाथों से चुची पकड़कर नीचे ऊपर होने लगती है। 

जीशान पहली बार अपने दोनों हाथों से सोनिया की चुची पकड़ता है। 

सोनिया-“अह्ह… दबा ना साले, तू अमन ख़ान की औलाद है लगता नहीं मुझे? कोई और आया होगा तेरे टाइम पे?” 

जीशान-“तेरी माँ की चूत … ये ले। वो दोनों हाथों से सोनिया की चुची को मरोड़ने लगता है और अपने लण्ड को उसके बीच में नीचे-ऊपर घुसाने लगता है अह्ह…” 
देखते ही देखते दोनों अपने कपड़े उतारकर फेंक देते हैं। जीशान के दिमाग़ में सोनिया की वही बात घूम रही थी कि तू अमन ख़ान की औलाद नहीं लगता…” 

पठान भाई, पठान एक बार सटक गये तो मतलब सामने वाले की गई। 
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05-19-2019, 01:21 PM,
#78
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान सोनिया को अपने ऊपर खींच लेता है और उसकी चुची को मुँह में भरकर जोर-जोर से चूसने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

सोनिया-“अह्ह… दबा ना साले… तू अमन ख़ान की अगर सच में औलाद है तो साबित कर… ऐसे ले मेरे को कि मैं मूत दूं तेरे नीचे अह्ह… चूसता क्या है अंदर घुसा के चोद मुझे…” 

कुछ वक्त पहले मिल वो औरत जीशान को खुले आम चैलेंज कर रही थी। पर वो नहीं जानती थी कि जीशान क्या बला है? 

जीशान सोनिया को बेड पे लेटा देता है और दोनों पैर खोलकर अपने लण्ड को हाथ में पकड़कर चूत के पास लाता है। पर उसने इससे पहले किसी को नहीं चोदा था, इसलिये लण्ड चूत में ठीक तरह से घुस नहीं पाता। सोनिया उसके लण्ड को हाथ में पकड़कर चूत के मुँह पे लगा देती है और आँखों में देखते हुये कहती है-“डाल दे डंडा अंदर…” 

जीशान आओ देखता है ना ताओ और सीधा किसी रंडी को कोई कैसे चोदता है, बस उसी तरह पहला झटका सोनिया को माँ की याद दिला देता है। 

सोनिया-“ओ माँ, इतने जोर से हरामी… चोद रहा है कि फाड़ रहा है?” 

जीशान-“तेरे माँ को चोदु साली … मुझे गान्डू समझा क्या तूने ? ले अब्बू…” ना दाहने ना बायें बस सटासट जीशान का लण्ड सोनिया की चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। 

सोनिया अपनी आँखें बंद कर लेती है। बड़ा सकून मिल रहा था उसे जीशान के लण्ड से। 

कभी एक करवट लेकर, तो कभी एक पैर अपने कंधे पे रख कर जीशान सोनिया को 10 मिनट तक ऐसे अंदाज में चोदता रहा जैसे कोई एक्सपर्ट हो। पर नया होने की वजह से वो ज्यादा देर टिक नहीं पाया और अपना पानी सोनिया की चूत में छोड़ देता है। 

जीशान का पानी निकल चुका था और साथ में हिम्मत भी जवाब दे चुकी थी। वो घर जाना चाहता। पहली चुदाई करने के बाद हर मर्द का यही हाल होता है, डर, पछतावा और घबराहट। 

पर सोनिया एक मेच्योर औरत थी। वो जीशान के होंठ चूम लेती है और उसे कपड़े पहनने को कहती है। जब जीशान कपड़े पहनकर जाने लगता है तो सोनिया उसका हाथ पकड़कर उससे कहती है-“ये बात सिर्फ़ हम दोनों तक रहनी चाहिए जीशान। तुम्हें जब भी मेरी ज़रूरत महसूस हो, मुझे इस नंबर पे काल करना…” वो जीशान के हाथ में अपना कार्ड थमाकर उसे जाने देती है। 

अपने चेहरे पे एक हल्की सी मुस्कान लिए जीशान अपने घर की तरफ निकल जाता है। रास्ते में वो अपने दिल को किसी तरह संभाले हुये था। उससे बार-बार कुछ देर पहले का मंज़र याद आ रहा था। दिल की धड़कनें तेज थीं और एक मीठी-मीठी सी खुशी दिल के किसी कोने में हलचल मचा रही थी। वो किसी तरह घर पहुँच जाता है 


और सीधा अपने रूम में जाकर कपड़े उतारने लगता है। जैसे है वो आईने के सामने आता है उसे उसके सीना पे लिपीसटिक के निशान दिखाई देते हैं। जिसे देखकर वो थोड़ा ठिठक जाता है और मुस्कुराता हुआ बाथरूम में घुस जाता है। 

कुछ देर बाद जब वो बाहर आता है तो खुद को काफी रिलेक्स महसूस करता है। जिस्म में जो हमेशा अकड़न महसूस होती थी वो जा चुकी थी और लण्ड अपने आप तौलिया के नीचे खड़ा होने लगा था। दिल कह रहा था कि जल्द से सोनिया के पास चला जाए और एक बार फिर से वो खेल दुबारा खेला जाए। पर वो थक चुका था। वो उसी हालत में बेड पे लेट जाता है। 

उधर नीचे अनुम खाना बना रही थी कि तभी उसके पीछे से शीबा आ जाती है, और पीछे से अनुम की मोटी मोटी चुचियाँ अपने दोनों हाथों में लेकर मसलने लगती है। 

अनुम-औउचह… ये क्या बदतमीजी है शीबा? 

शीबा-“देख रही हूँ , क्या साइज है मेरी ननद का?” 

अनुम उसे घुरने लगती है-पीछे हटो, मुझे काम करने दो। 

शीबा-तुम करो काम, हम तो चले जीशान के पास। 

ये सुनकर अनुम के कान खड़े हो जाते हैं और दिल शीबा को रोकना चाहता है पर वो खुद को संभाल लेती है और चुपचाप खाना बनाने लगती है। 

शीबा उसकी कमर पे हाथ फेरते हुये जीशान के रूम की तरफ बढ़ जाती है। जीशान अपने बेड पे लेटा हुआ था आँखें खुली थी, पर ध्यान कहीं और था। 

शीबा उसके पास आकर बैठ जाती है। पर तब भी जीशान कोई नोटिस नहीं लेता। 
शीबा जीशान की चौड़ी छाती पे हाथ फेरने लगती है-क्या हुआ बेटा, थक गये क्या? 

जीशान किसी ख्वाब से जागते हुये-“ना… हाँ… नहीं तो अम्मी, आप इस वक्त… मेरा मतलब है कुछ काम था क्या?” 

शीबा-“क्या मैं बस तुम्हारे रूम में तभी आ सकती हूँ जब मुझे कुछ काम होगा?” 

जीशान बेड पे बैठ जाता है और अपनी टीशर्ट पहन लेता है-“नहीं तो, मेरा वो मतलब नहीं था, बोलिये…” 

शीबा-“बस बोर हो रही थी तो चली आई तुमसे बातें करने…” वो अपनी छाती को कुछ ज्यादा ही सामने की तरफ झुका रही थी। 

जिससे जीशान का ध्यान बार-बार शीबा की नरम बड़ी-बड़ी चुचियों की तरफ जा रहा था। 

शीबा-“तुम मुझसे नाराज तो नहीं हो ना जीशान बेटा?” 

जीशान-“जी हाँ… नहीं , किस बात के लिए अम्मी?” 

शीबा अपनी आँखें जीशान की आँखों में गड़ाती हुई-“सुबह वाली बात को लेकर…” 

जीशान के चेहरे पे मुस्कान आ जाती है-“नहीं , बिल्कुल नहीं …” 

शीबा-“इसका मतलब तुम्हें और चाहिए?” 

जीशान कुछ नहीं बोलता, हालाँकि उसका दिल तो कह रहा था कि काश वो पल फिर से लौट आए और शीबा उसे वही गरम किस दुबारा दे दे। 

शीबा अपनी चुची जीशान के छाती से लगा देती है और अपने होंठों को जीशान के कान के पास लाकर धीरे से कहती है-“क्या मैं अपने बेटे को किस कर सकती हूँ ?” 

जीशान अपना एक हाथ शीबा की गर्दन के पीछे लगा देता है। दोनों की आँखें बंद हो जाती हैं और धीरे-धीरे होंठ करीब… और करीब… और करीब… और फिर एक दूसरे से चिपक जाते हैं। जीशान की साँसे तेज थीं। वो अपने हाथ को नीचे लाता जाता है और उसे शीबा की चुचियों पे रख देता है। उसे उस वक्त सामने शीबा नहीं बल्की सोनिया की नंगी चुची नजर आ रही थी। वो उन्हें दबा देता है। 

शीबा अपना मुँह जीशान के मुँह से हटा लेती है-“चल हट बदमाश… उंगली क्या दी , तू तो पूरा हाथ पकड़ रहा है और दबा भी रहा है…” 

जीशान घबराहट के मारे कुछ नहीं बोल पाता। वो एक टक शीबा को देखता रहता है। और शीबा मुश्कुराके उठकर बाहर चल जाती है। उसके जाने के बाद जब जीशान खिड़की की तरफ देखता है तो हैरान रह जाता है। उसे वहाँ अनुम खड़ी दिखाई देती है। जीशान-के हाथ पैर काँपने लगते हैं। दिल में सोचने लगता है कि कहीं फुफु अब्बू को ना बता दें, वरना शामत आ जाएगी। 

वो उठकर अनुम के पास जाता है। पर अनुम अपने रूम की तरफ बढ़ जाती है। 

जीशान अनुम के रूम में जाकर अनुम का हाथ पकड़ लेता है-“प्लीज़्ज़ फुफु, मुझे माफ कर दो। आइन्दा ऐसे कोई हरकत नहीं करूँगा मैं प्रोमिस…” 

अनुम झटके से अपना हाथ छुड़ा लेती है और पलटकर एक जोरदार चाँटा जीशान के गाल पे जड़ देती है-“निकल जा मेरे रूम से जीशान, वरना अच्छा नहीं होगा…” 

जीशान अपने गाल पे हाथ रख कर वहाँ से जाने में हीभलाए समझता है। पर उसके दिल में एक बात आते है कि फुफु ने उसे क्यों मारा जबकि गलती तो अम्मी की भी थी ना? तो उन्होंने अम्मी को कुछ क्यों नहीं कहा? 

अमन आज घर जल्द आ गया था। वो जब भी घर में आता सबसे पहले रज़िया से मिलता था। रज़िया जब अमन को इस वक्त अपने रूम में देखती है तो हैरान रह जाती है-“क्या बात है, तबीयत तो ठीक है ना? आप इस वक्त घर पे कैसे?” 

अमन रज़िया को अपनी तरफ खींचते हुये-“क्या करूँ? मेरी अम्मी की चूत की खुश्बू फॅक्टरी में रहने नहीं देती, तो चला आया आपकी लेने…” 

रज़िया मुश्कुराते हुई-“शरम करो, बच्चे घर पे हैं। किसी ने आपकी ये गंदी -गंदी बातें सुन लिया तो क्या सोचेगा?” 

अमन-“क्या सोचेगा? यही कि अब्बू दादी को चोद रहे हैं…” 

रज़िया एक हल्का सा मुक्का अमन के सीने पे मारती हुई-“बेशर्म होते जा रहे हो अमन, तुम दिन-बा-दिन…" 

अमन-रज़िया को बाहो में कस लेता है-“बहुत दिल कर रहा है रज़िया मेरा। चल जल्द से कपड़े उतार और खोल दे दोनों पैर…” 

रज़िया अमन के कानों की लोलकी को मुँह में लेकर चूसती हुई-“आप ही नंगी करो अपनी रज़िया को…” 

अमन रज़िया की कमर में हाथ डालकर पीछे से उसकी गाण्ड मसलने लगता है, और रज़िया अमन के कपड़े उतारने लगती है। धीरे-धीरे रज़िया नीचे बैठ जाती है और अमन की पैंट नीचे खींच लेती है। सामने अमन का लण्ड आते ही उसके मुँह में पानी आने लगता है। और झट से वो अमन के लण्ड को अपने मुँह में भर लेती है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

अमन-नीचे झुक के रज़िया की नाइटी खोलने लगता है। 

रज़िया जोर से अमन का लण्ड अपने गले में खींच रही थी। आज शायद उसकी चूत को शिद्दत से अमन की याद सता रही थी। जैसे है अमन रज़िया की ब्रा का वो आख़िरी हुक भी खोल देता है, रज़िया पूरे तरह नंगी हो जाती है। 

अमन रज़िया को झुकाकर पीछे से अपना लण्ड उसकी गाण्ड और चूत दोनों पे घिसने लगता है। 

रज़िया-“उम्ह्ह… पीछे से नहीं , आज सिर्फ़ आगे से चूत में डालो अह्ह… डालो… डालो ना क्यों सताते हो…” 

अमन अपने लण्ड को रज़िया की गाण्ड पे जानबूझ के रगड़ता है। 

रज़िया-“अह्ह… अमन चूत में आग लगी है और तुम गाण्ड में घुसाना चाहते हो…” और वो अमन के लण्ड को हाथ में पकड़कर चूत के मुँह पे लगा देती है। 
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05-19-2019, 01:21 PM,
#79
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
अमन हमेशा से ऐसे ही करता था। वो रज़िया की चूत की आग को इतना भड़काता कि वो खुद अपनी चूत का मुँह खोलकर उसमें अमन को जगह दे देती आगे चलने के लिए। अमन रज़िया के दोनों बड़े-बड़े चौड़े चूतड़ों को हाथ में थामकर पीछे सटासट करके अपने लण्ड को चूत में घुसा देता है। 

रज़िया-“अह्ह… ये लौड़ा तो मुझे दिन रात याद आता है अह्ह… दिल तो करता है कि बाहर निकालने हि ना दूं तुम्हें अह्ह…” 

अमन-“तेरी चूत की कसम रज़िया, मुझे ऐसी चूत आज तक नहीं मिली । जितना चोदता हूँ उतनी टाइट होती जाती है अह्ह…” 

रज़िया-“उम्ह्ह… मेरे बेटे के लिए बनी है ये चूत । चोदो ना कस के अमन बेटा अह्ह…” 

अमन-“रज़िया मेरी अम्मी, मेरी जानेमन अह्ह… जितना चोदु उतना कम है तुझे अह्ह…” 

वो अपनी गंदी बातों में मगन दुनियाँ की परवाह ना करते हुये अपनी रासलीला में लगे हुये थे। अमन का लण्ड जब भी रज़िया की चूत की दीवार से टकराता, रज़िया किसी कुँवारी की तरह गाण्ड को ऊपर झटका देती। अमन रज़िया की कमर को दबोचते हुये सटासट अपनी अम्मी की चूत मारे जा रहा था। खड़े-खड़े रज़िया के पैर काँप रहे थे। अमन के धक्कों की वजह से उसे ठीक से एक जगह खड़े रहना काफी मुश्किल हो रहा था। 

अमन रज़िया को अपने नीचे ले लेता है और ऊपर से पूरी तरह उसे ढक के अपने लण्ड को रज़िया की चूत के आख़िर तक पेलने लगता है-“आह्ह… अम्मी आपने आपकी चूत मुझे देकर मेरी जिंदगी बना दी अह्ह…” 

रज़िया काँपती आवाज़ में-“तुझे नहीं देती तो जिंदगी भर पछताती रहती अमन अह्ह…” 

पिछले 30 मिनट से अमन रज़िया को लगातार चोद रहा था। जिस्म पशीने से पूरी तरह भीग चुका था। दो जोरदार झटकों के बाद अमन अपनी रज़िया की चूत को पूरी तरह भर देता है और साथ-साथ रज़िया भी अमन के लण्ड को नहला देती है। 
दोनों एक दूसरे को चूमते हुये वहाँ एक दूसरे की बाहो में शांत हो जाते हैं। 


रज़िया अमन को चूमती हुई-“सच बताओ ना आज इतनी जल्द कैसे आ गये?” 

अमन-“अरे मेरी जान, मुझे आज शाम को 7:00 बजे की फ्लाइट से दिल्ली जाना है। वहाँ एक बहुत बड़ा प्रॉजेक्ट मिला है गारमेंट्स का…” 

रज़िया-“ह्म्म्म्मम… तभी तो मैं सोचूँ कि आज अपनी अम्मी की याद इतनी जल्द कैसे आ गई। वैसे कितने दिनों के लिए जा रहे हो?” 

अमन-एक हफ़्ता लग सकता है 

रज़िया-“एक हफ़्ता… आप अनुम को साथ लेकर जाओ क्योंकि वहाँ कोई तो चाहिए जो खाने पीने का ख्याल रख सके? वरना आप तो बस काम काम में ऐसे बिजी हो जाते हो कि खाने के लिए टाइम है नहीं निकाल पाते…” 

अमन-“एक काम करता हूँ , सोफिया को लेकर चला जाता हूँ । वो कुछ दिन पहले कह रही थी कि घर में बोर हो जाती हूँ । उसे एक हॉलीडे भी मिल जाएगा और शॉपिंग भी करवा दूँगा उसे…” 

रज़िया-“ये ठीक रहेगा। अच्छा मेरे लिए क्या लाओगे वहाँ से?” 

अमन-ब्रा और पैंट । 

रज़िया-“हेहेहेहे… हमेशा बस यही कहते हो, बेशरम कहीं के… अब जल्द से तैयार हो जाओ, मैं सोफिया को ये बात बताकर आती हूँ …” 

अमन फ्रेश होने बाथरूम में चला जाता है और रज़िया सभी घर वालों को ये खबर बता देती है कि अमन एक हफ्ते के लिए दिल्ली जा रहा है। ये कोई नई बात नहीं थी घर वालों के लिए। अमन इससे पहले भी कई बार 10-15 दिनों के लिए बाहर जाया करता था। 

जीशान अपने रूम में बैठा था, जब उसके कानों तक ये बात पहुँची थी। वो उठकर रज़िया के पास आता है-“ दादी , और कौन साथ जा रहा है?” 

रज़िया-“सोफिया भी साथ जा रही है। क्यूँ तुझे भी जाना है क्या?” 

जीशान-“नहीं , मेरा तो कालेज है ना…” दोनों दादी पोते बातें कर रहे थे कि तभी वहाँ लुबना आती है वो अभी-अभी कालेज से आई थी। चेहरे पे गुस्सा था जो जीशान के लिए था। 

लुबना-“भाई आप कितने लापरवाह हो गये हो, कम से कम मुझे बताकर तो जाते कि घर जा रहे हो। मैं एक घंटे से आपका इंतजार कर रही थी आखिरकार मुझे आटो से आना पड़ा…” 

जीशान-“फोन है ना तेरे पास, इश्तेमाल क्यों नहीं करती? इडियट…” 

लुबना दाँत पीस के रह जाती है, और रज़िया की तरफ देखने लगती है-“देखा दादी , ये भाई अपनी गलती मानने के बजाए खुद मुझे इडियट कह रहे हैं…” 

रज़िया मुस्कुराते हुये-“भाई, मुझे तुम दोनों के चक्कर में नहीं पड़ना। अभी लड़ते हो और दूसरे ही पल मिल जाते हो। मुझे बहुत काम है मैं चलती हूँ …” 

सोफिया अपने रूम में, दिल्ली जाने के लिए पेकिंग कर रही थी, उसके चेहरे पे खुशी साफ झलक रही थी। लुबना उसके रूम में आकर उसके बेड पे बैठ जाती है। वो अभी भी जीशान के बारे में सोच रही थी। उसे पता भी नहीं था कि सोफिया बाहर जा रही है। 

सोफिया उसका कंधा हिलाती है-“क्या हुआ लुबु, क्या सोच रही है?” 

लुबना-“हाँ… नहीं कुछ नहीं , ये आप क्या कर रही हो? कहीं जा रहे हैं क्या हम? 

सोफिया-“हम नहीं , सिर्फ़ मैं अब्बू के साथ दिल्ली …” 

लुबना-“क्या? क्यों मैं क्यों नहीं ?” 

सोफिया-“अरे बाबा, दादी ने अब्बू के खाने का ख्याल रखने के लिए मेरी ड्यूटी उनके साथ लगा दी है, पर मैं बहुत खुश हूँ । अब्बू के साथ खूब शॉपिंग करूँगी वहाँ…” 

लुबना बुरा सा मुँह बनाकर अपने रूम में चल जाती है। 

शाम 5:00 बजे-

अमन अनुम और शीबा का मूड ठीक करके और उनका मुँह मीठा कराके जब हाल में आता है तो वहाँ सभी उसका इंतजार कर रहे होते हैं-“अरे जीशान बेटा, वो जरा मेरे रूम की अलमारी से ऑफिस की रेड कलर की फाइल तो लेकर आना…” 

जीशान-“जी अब्बू …” और वो अमन के रूम में जाकर अलमारी खोलने लगता है। इधर-उधर देखने के बाद फाइल कहीं नहीं मिलती तो वो लाकर खोलकर देखता है। उसे वहाँ रेड फाइल तो नहीं बल्की ब्लू कलर की फाइल मिलती है, जिसपे लिखा हुआ था ‘ओफीशियल’ 

जीशान उसे खोलकर देखता है तो आँखें चौंधिया जाती हैं। वो अमन की पर्सनल फाइल थी और सभी पर्सनल दस्तावेज़ थे। पहला पेज देखते ही जीशान सदमे में पड़ जाता है, वो अमन और अनुम का निकाहनामा था। 

अमन-“जीशान बेटा, फाइल मिल की नहीं ?” 

जीशान हड़बड़ाकर देखते हुए -“जी अब्बू लाया…” इधर-उधर देखने के बाद उसे रेड कलर की वो फाइल भी मिल जाती है। वो लाकर बंद करता है और वो ब्लू फाइल को अलमारी के ऊपर रख कर रेड वाली फाइल हाल में ले आता है। 

जीशान-ये लीजिए अब्बू । 

अमन और सोफिया घर के सभी लोगों से मिलकर दिल्ली के लिए निकल जाते हैं। 

जीशान के चेहरे पे अजीब से भाव थे। वो एकटक अनुम को देख रहा था। जब अनुम की नजरें जीशान से मिलती हैं तो कुछ पल के लिए दोनों खामोशी से एक दूसरे को देखे जाते हैं। 

किसी के खांसने से दोनों वापस इस दुनियाँ में आ जाते हैं, और जीशान सर खुजाता हुआ अपने रूम में चला जाता है। 
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05-19-2019, 01:21 PM,
#80
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
रात 10:00 बजे-

सभी अपने-अपने रूम में जा चुके थे। शीबा दूध का ग्लास लेकर जीशान के रूम में जाती है। जीशान कंप्यूटर पे कुछ नोट्स बना रहा था। पर दिमाग़ तो अभी भी उस फाइल पे टिका हुआ था। 

शीबा-“जीशान बेटा, दूध पीलो…” वो अपनी बड़ी-बड़ी चुचियों के सामने दूध का ग्लास लिये खड़ी थी। 

जीशान उठकर शीबा के पास आता है। दोनों की आँखें मिलती हैं और साँसे भी। 

जीशान शीबा से कुछ पूछना चाहता था… शायद फाइल वाली बात। पर कुछ सोचकर खामोश रह जाता है। 

शीबा-क्या हुआ जीशान , गरम दूध चाहिए? 

जीशान-“हाँ… एकदम गरम ताजा…” 

शीबा-“इस वक्त गरम दूध कहाँ मिले गा बेटा?” 

जीशान अचानक दोनों हाथ शीबा की चुची पे रख देता है-“यहाँ…” 

शीबा सिहर जाती है-“अह्ह… छोड़ मुझे… अपनी अम्मी के साथ भला कोई ऐसी हरकत करता है क्या?” 

जीशान एक बार फिर से शीबा की चुची मसलता है, और अपने होंठ शीबा के होंठों के पास लाकर छोटी सी किस करता है-“गुडनाइट अम्मी…” 

शीबा के होंठ लरज के रह जाते हैं। वो दूध का ग्लास टेबल पे रख देती है और जीशान की गर्दन के पीछे अपना हाथ डालकर एक ही पल में जीशान के होंठों को अपने मुँह में ले लेती है। वो जीशान के होंठों को इतने आवेश में किस करती है कि जीशान को अनुम के वो लाल रसीले होंठ जो उसे बचपन से परेशान करते आये हैं, जिन्हें चूमने की ख्वाहिश में अब तक जीता आया है, वो नजरों के सामने घूम जाते हैं और वो अनुम समझ के शीबा के होंठों को चूसने लगता है। 

5 मिनट के बाद पता नहीं शीबा को क्या होता है कि वो जीशान से अलग हो जाती है और बाथरूम में चल जाती है। 

जीशान के पास यही वक्त था। वो भागकर शीबा के रूम में जाता है और वो फाइल निकालकर वापस अपने रूम में आकर बेड के नीचे छुपा देता है। 

कुछ देर बाद शीबा जीशान के बाथरूम से बाहर निकलती है और बिना कुछ बोले अपने रूम में चल जाती है। 

जीशान को यकीन नहीं हो रहा था कि शीबा, उसकी अम्मी उसके साथ ये कैसा व्यवहार कर रही है? पर दिल ही दिल में वो इन सब बातों से बहुत खुश था। भला कौन कम्बख़्त चूत की खुश्बू से खुश नहीं होगा? वो दरवाजा बंद कर देता है और वो फाइल बेड के नीचे से निकालकर देखने लगता है। 


पहला दस्तावेज़ अमन और अनुम के निकाहनामा था। 

दूसरा अमन और रज़िया का निकाहनामा था। 

तीसरा अमन और शीबा के निकाहनामे का था। 

उसका दिमाग़ चकरा जाता है। 

उसके नीचे जीशान का बर्थ सर्टिफिकेट था। 

उसके नीचे सोफिया, फिर लुबना और एक नग़मा का बर्थ सर्टिफिकेट था। 

जीशान खुद की डेट आफ बर्थ जानता था। पर जब वो सोफिया और लुबना की बर्थ डेट नग़मा के बर्थ डेट के साथ मैच करता है तो दिमाग़ की घंटियाँ बजने लगती हैं। 

सोफिया की डेट आफ बर्थ 20 अप्रेल 1980 थी। 

जीशान की 25 अप्रेल 1980। 

नग़मा की 7 जुलाइ 1980। 

और लुबना की 2 फ़रवरी 1982। 

वो सोच में पड़ जाता है कि ये कैसे हो सकता है? उसे सारी बात समझ में आ जाती है। वो ये बात तो जान चुका था कि उसके अब्बू ने अपनी अम्मी और बहन से भी शादी की थी और उन्हें प्रेग्नेंट भी किया था। बस उसे ये पता करना था की रज़िया, अनुम, और शीबा में से उसकी अम्मी कौन सी है? 

दिमाग़ में बहुत कुछ चल रहा था। उसे पूरा यकीन था कि हो ना हो रज़िया या अनुम इन दोनों में से कोई एक उसकी अम्मी ज़रूर है। और यही बात उसे अमन के लौटने से पहले पता करनी थी। वो इन्ही बातों के साथ बेड पे लेट जाता है और थकान की वजह से फौरन सो जाता है। 

सुबह जब जीशान की आँख खुली तो सुबह के 9:00 बज रहे थे। उसके सर में बहुत दर्द था। वो फ्रेश होने बाथरूम में घुस जाता है। जब वो बाहर आता है तो उसे नग़मा और लुबना रूम में बैठी मिलती हैं। 

लुबना-“भाई, आप जल्द से नाश्ता कर लो…” 

जीशान-क्यों, क्या बात है? 

लुबना-“नग़मा, मैं, दादी और अम्मी फ़िज़ा आंटी के यहाँ जा रहे हैं…” 


जीशान-फुफुई नहीं जा रही क्या? 

नग़मा-“नहीं भाई, उन्हें घर पे कुछ काम है, वो नहीं आएँगी। आप फटाफट नाश्ता कर लो और हमें फ़िज़ा आंटी के यहाँ ड्रॉप कर दो…” 

जीशान पैंट पहनकर डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ जाता है। नाश्ता करने के बाद सभी बाहर जीशान की कार में इंतजार कर रहे थे। 

अनुम घर पे रुकने वाली थी। 

जीशान कार की ड्राइविंग सीट पे बैठ जाता है। पास में लुबना बैठी हुई थी, उसके चेहरे पे मुस्कान थी। पर जीशान अंदर ही अंदर जल रहा था। उसका दिल तो चाह रहा था कि कार किसी ट्रक से दे मारे और हमेशा-हमेशा के लिए इस दुनियाँ से निजात पा ले। पर उसे पहले सच जानना था, वो सच जो उसकी जात से तालुक रखता था। वो बोझिल मन से कार फ़िज़ा के घर की तरफ दौड़ा देता है। जब कार फ़िज़ा के घर पहुँचती है तो सभी नीचे उतर जाते हैं, और जीशान को भी अंदर चलने के लिए कहते हैं। 

पर जीशान दोस्त से मिलने का बहाना बनाकर अपने घर की तरफ निकल जाता है। 

अनुम अपने बेडरूम में बैठी हुई थी। उसे उस बात का अफसोस था कि उसने अपने बेटे के गाल पे थप्पड़ क्यों मारा? 

जीशान अपने हाथ में अनुम और अमन के निकाहनामे के वो कागज लेकर अनुम के रूम में पहुँचता है। 

अनुम जीशान को देखकर खड़ी हो जाती है। वो उसकी तरफ बढ़ती है उसे मनाने के लिए। 

पर जीशान अनुम को हाथ के इशारे से अपनी तरफ आने से रोक देता है-“मैं यहाँ कुछ पूछने आया हूँ , उम्मीद करता हूँ आप मुझे सच बताएँगी…” 

अनुम धीमी आवाज़ में कहती है-“पूछो क्या पूछना चाहते हो?” 

जीशान अपने हाथ में का वो कागज अनुम के हाथ में दे देता है। 

उस कागज पे जैसे ही अनुम की नजर पड़ती है, उसके होश उड़ जाते हैं। वो खुद को किसी खाई में गिरता महसूस करती है, साँस लेना मुहाल हो जाता है और वो मुँह खोलकर जीशान की तरफ देखने लगती है। 

जीशान आगे बढ़ता है-“मैं जान चुका हूँ कि आज से 20 साल पहले आपने और अब्बू ने शादी की थी। मुझे उस शादी की वजह बताओ और ये भी बताओ कि मैं आप तीनों में से किसका बेटा हूँ ?” 

अनुम काँपने लगती है। उसे समझ में नहीं आता कि वो क्या कहे? वो सभी मिलकर जिस तूफान को पिछले 20 सालों से रोके हुये थे, आज वो तूफान आ चुका था और आज वो अपने साथ सभी को ले जाने वाला था, जो भी उसके रास्ते में आता फना हो जाता। अनुम साँस लेने के लिए खिड़की के पास आ जाती है। 

जीशान झटके से उसे अपनी तरफ मोड़ देता है, और एक गरजदार आवाज़ जीशान के मुँह से निकलती है-“मुझे बताओ, आखिर वो क्या वजह थी? और किसका बेटा हूँ मैं?” 

अनुम काँपती हुई आवाज़ में कहती है-“मेरे बेटे हो तुम जीशान…” 

जीशान एक बार और चिल्लाता है-“अम्मी, तुमने ऐसा क्यों किया?” 

अनुम रोने लगती है। पर आज उसे समझाने वाला कोई नहीं था। वो सिसकती रही , पर जीशान ने उसे नहीं मनाया। वो उसी तरह खड़ा रहा। 

अनुम-“तुम जानना चाहते हो ना मैंने ऐसा क्यों किया? तो सुनो…” और अनुम अपने पास्ट की वो किताब खोल देती है। उस किताब के हर पन्ने पे अमन और अनुम की मोहब्बत दर्ज थी। वो सारे जज़्बात खिले हुये थे जो अनुम अमन के लिए महसूस करती थी। अनुम अपनी जिंदगी की बातें जीशान के सामने खोल रही थी और जीशान के चेहरे के आसार बदलते चले जा रहे थे। 

जब अनुम खामोश होती है तो उसके चेहरे पे सकून था। वो खुश थी कि आज उसने अपने अंदर छुपे हुये उस राज को बाहर निकालकर फेंक दिया, जो उसे तिल-तिल मार रहा था। 


जीशान चुपचाप वहाँ से चला जाता है। 

और अनुम भीगी पलकों से जीशान, अपने बेटे को जाता देखती रह जाती है। दिल के किस्से ज़ुबान पर आ चुके थे
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