04-09-2020, 03:36 PM,
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hotaks
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
‘’साली ने नाक मे दम कर दिया, थू….’’
पंगु ने वर्षा को गाली दी और सुरती थूक कर मेंड पर से खेत मे उतर आया.....एक बड़े मेंढक ने छलान्ग मारी तो जोरो की आवाज़ हुई, छप्पाअक्क्क्क......पानी के कुछ एक छिन्टे पंगु की नंगी बाहो पर पड़े....ना छाता था, ना बाँस की छतरी ही थी, कंधे पर गम्छा भर था जो कि अभी पूरी तरह से भीगा हुआ नही था.
खेत मे धान के पौधो को रौन्द्ता हुआ वह आगे बढ़ रहा था.....सीधे पश्चिम या दक्षिण की तरफ नही, कोने की तरफ....मुलायम पांक, कड़े
तीखे घोघे, घास की पान्थे, और जाने क्या क्या तलवो के नीचे आ रहा था.
एक के बाद दूसरा खेत, दूसरे के बाद तीसरा, फिर चौथा…फिर और…फिर और……फिर ऊँची सतह की बलुवहि ज़मीन मिली....मक्के की
खूँटियो से उलझ कर चलना असंभव हो उठा तो फिर से पंगु ने मेंड पकड़ ली....यह नॅंगू का खेत था और माँ भी तो नॅंगू की ही मर्री थी ना.
हाँ, अभी कुछ देर पहले नॅंगू की बूढ़ी माँ के प्राण पखेरू उड़े थे और नॅंगू लोगो को इसकी खबर देने निकला था....दो ही लोग बाकी थे जिनके
यहाँ जाना था...ऋषि और राजनंदिनी.
धरती से बहुत दूर आल्फा नमक ग्रह पर बसा हुआ तभका कोईली कोई छ्होटा गाओं नही था, पाँच हज़ार से उपर की जन संख्या वाली एक
भरी बस्ती थी....दरअसल यह छोटी छोटी कयि बस्तियो का एक समूह था.
बीच बीच मे खेत और बाग फैले हुए थे….उत्तर पूरब से कन्नी काट कर एक नदी निकल गयी थी…..इधर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की पक्की सड़क,
उधर मीटर गेज की रेलवे लाइन.
ऋषि का घर नज़दीक आया तो बादल की टीपीर टीपीर रुक गयी…कीचड़ से सने पैरो की उंगलियो मे हल्की हल्की खुजली महसूस हो रही थी…पंगु की तबीयत हुई कि कुवे मे से एक बाल्टी पानी खिच ले और अच्छी तरह से पैरो को धो डाले…लेकिन अभी तो रात भर घूमना फिरना था तो फिर क्यो कोई पैर धोए…?
ऋषि के दालान के सामने जो आँगन था, वह छोटा नही था….लगातार कयि रोज वर्षा हुई थी, मगर सतह ऊँची होने के कारण आँगन मे घिच
पिच नही हो पाया….भीगी मिट्टी पैरो के नीचे रबर की तरह दबती हुई महसूस हो रही थी.
बाहर बैठक खाने मे कोई सो रहा था…ऋषि के पिता सुख देव दालान के भीतर कोठरी मे सोए होंगे, पंगु को यह निश्चय था ही…फिर भी वह
दो सीढ़ी उपर बरामदे मे ना जाकर नीचे आँगन मे ही खड़ा रहा.
उसने तंबाकू और चुने के लिए जेब से पूडिया निकाली, सोचा कि सुरती तैय्यार कर के ही ऋषि और उसके पिता जी को जगाना उचित रहेगा.
लाठी एक तरफ खड़ी कर दी और उचक कर बरामदे के किनारे पर बैठ गया….आठ दस रोज बाद वह ऋषि के यहाँ आया था….इस बीच ऋषि बाढ़ पीड़ितो की सहयता के लिए बाहर ही बाहर घूमता रहा था…पंगु ही नही गाओं के दूसरे लोगो की भी मुलाक़ात इस दौरान ऋषि से नही हुई थी.
सुरती खाकर पंगु ने आवाज़ लगाई, “ ऋषि……ऊऊ ऋषिीीई…..सुखदेव चाचााअ’’
‘’उूउउन्न्ञन्’’ ऋषि के पिता सुखदेव ने करवट बदली तो चारपाई चरमरा उठी.
पंगु :- उठिए सुखदेव चाचा.
सुखदेव :- क्या है…पंगु…..?
पंगु :- नॅंगू की माँ मर गयी.
सुखदेव :- (अलसाई आवाज़ मे) कब..... ?
मूह मे सुरती की थूक भर आई थी….सुखदेव के सामने थूक भी नही सकता था….बड़ी मुश्किल से पंगु ने थूक को निगल कर जैसे तैसे कहा.
पंगु :- अभी घंटा भर हुआ है…..(फिर कुछ देर रुक कर) चाचा आपकी टॉर्च मे बॅटरी तो भरी होगी ना….?
किवाड़ खोल कर सुखदेव बाहर निकले और टॉर्च की रोशनी से समुचा आँगन जगमगा उठा..
पंगु :- ऋषि… कब लौटा चाचा…?
सुखदेव :- लौट तो आया था शाम को ही लेकिन सोया देर से है.
पंगु :- तो फिर उसको उठाने की ज़रूरत नही है.
सुखदेव रहे तो चुप ही लेकिन रंग ढंग से सॉफ था कि बीच नीद मे यह विघ्न उनको बेहद अखरा है…इतने मे घर के अंदर से खटपट की आवाज़ सुनाई पड़ी.
पंगु :- लीजिए जाग तो गया ऋषि.
ऋषि :- पंगु क्या बात है…? इतनी रात मे…?
पंगु :- हाँ, यार वो नॅंगू की माँ मर गयी है…इसलिए आना पड़ा….लेकिन तुम बहुत थके हो.
ऋषि :- चल…चल….पागल कहीं का….नॅंगू मेरा भी तो दोस्त है.
ऋषि कद काठी से मजबूत एक खूबसूरत नौजवान लड़का था…..सारे गाओं के लोग उसको पसंद करते थे….सभी उस पर अपनी जान
छिडकते थे और ऋषि की जान थी राजनंदिनी.
पंगु :- (घर से बाहर निकलते हुए) राजनंदिनी के यहाँ भी बताना है अभी.
दोनो राजनंदिनी के यहाँ जाकर बताने के बाद वहाँ से निगल गये....क्यों कि राजनंदिनी सो चुकी थी इसलिए उसको जगाना ठीक नही समझा दोनो ने....रास्ते मे चुतताड भी मिल गया तो तीनो साथ मे चल दिए.
तीनो नन्गु के दालान पर पहुचे....घर के अंदर औरतो का रोना धोना चल रहा था….तीखी खुरदरी रुलाई के बेढक स्वरो से भादो की काली रात का यह मनहूस सन्नाटा टुक टुक हो रहा था....चुतताड और पंगु लालटेन लेकर गये और बाँस काट कर ले आए.
ताज़े हरे बाँस के डंडो से उधर अर्थी बनती रही, इधर लोगो मे बाते होती रही....आँगन के कोने मे तुलसी का चबूतरा था...उसके पास मे ही लाश रख दी गयी थी.
सामने ईंट के आधे टुकड़े पर डिब्बी जल रही थी, जिसका फीका फीका आलोक बुढ़िया की बुझी पुतलियो से टकरा रहा था.
इधर पंगु अपनी पिच्छली यादो मे खोया हुआ था जबकि वो सड़ी गली लाश कब्रिस्तान से निकल कर रात के सन्नाटे मे सड़क पर चलते हुए
आगे बढ़ती चली जा रही थी.
वो लाश चलते हुए अचानक एक बंग्लॉ के सामने आकर रुक गयी और उस बंग्लॉ को कुछ देर तक घूरते रहने के बाद फिर...........
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04-09-2020, 03:37 PM,
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
अपडेट-77
ताज़े हरे बाँस के डंडो से उधर अर्थी बनती रही, इधर लोगो मे बाते होती रही....आँगन के कोने मे तुलसी का चबूतरा था...उसके पास मे ही लाश रख दी गयी थी.
सामने ईंट के आधे टुकड़े पर डिब्बी जल रही थी, जिसका फीका फीका आलोक बुढ़िया की बुझी पुतलियो से टकरा रहा था.
इधर पंगु अपनी पिच्छली यादो मे खोया हुआ था जबकि वो सड़ी गली लाश कब्रिस्तान से निकल कर रात के सन्नाटे मे सड़क पर चलते हुए
आगे बढ़ती चली जा रही थी.
वो लाश चलते हुए अचानक एक बंग्लॉ के सामने आकर रुक गयी और उस बंग्लॉ को कुछ देर तक घूरते रहने के बाद फिर............
अब आगे...........
वो लाश कुछ देर तक बंग्लॉ को देखने के बाद ज़ोर ज़ोर से अट्टहास करने लगा....उसकी भयानक हसी अगर कोई सुन लेता तो निश्चित ही उसकी दिल की धड़कने कुछ ही पल मे ख़ौफ़ से बंद हो जाती.
लाश (हँसते हुए)—हाहहहाहा.......मैं आज़ाद हो गय्ाआअ........अब फिर से हर जगह पर तबाही और मेरा साम्राज्य होगा.......हाहहहाहा......बड़े जोरो की भूख लगी है....ये बहुत बड़ा महल लग रहा है, यहाँ अवश्य ही बहुत से लोग होंगे उनका खून और माँस
खा कर पहले अपनी भूख मिटाउंगा....हाहहहाहा.
इस प्रकार हँसते हुए वो उस बंग्लॉ मे रात के सन्नाटे मे घुस गया और उसके बाद वहाँ पर सारी रात सिर्फ़ लोगो की दर्दनाक चीखे और ज़ोर ज़ोर से डरावनी हसी की आवाज़े ही गूँजती रही.
...................................................................................................................................................................................
चुतताड और गंगू ने यहाँ आ कर विवाह सम्मेलन मे शामिल हो कर शादी कर ली थी...जब कि नॅंगू और पंगु की तलाश अभी जारी थी....दोनो की बीविया थोड़ी शक्की किस्म की थी, इसका फ़ायदा नॅंगू और पंगु बखूबी यथा समय उठाते रहते थे, उनकी बीवियो को चुतताड और गंगू के बारे मे उल्टा सीधी बाते बता कर......जिसका अंज़ाम बेचारे चुतताड और गंगू को भुगतना पड़ता था.
गंगू की बीवी दीपा और चुतताड की बीवी सरोज मे बढ़िया तालमेल था....दोनो घंटो एक दूसरे के रूम मे बैठ कर अपने अपने पतियो की बुराइया करती रहती थी.....हालाँकि चारो दोस्त एक ही बिल्डिंग मे रहते थे.
दीपा—यार चल ना आज कुछ शॉपिंग करते हैं....दो दिन से कुछ खरीदा नही है.
सरोज—हाँ, चल मेरा भी मन हो रहा है कुछ खरीदने का….इनके बस का तो कुछ है नही.
दीपा—वही हाल तो मेरा भी है….इनका कुछ समझ नही आता कि क्या करते हैं….? मैने कितनी बार कहा है कि अपना नाम चेंज कर लो, मुझे बड़ी शरम आती है जब कोई मेरे पति का नाम पूछता है.
सरोज—चल तेरे पति का तो फिर भी कुछ ठीक है…..मैं तो शरम से कुछ बता ही नही पाती….क्या बताऊ कि मेरे पति का नाम चुतताड सिंग है…..पता नही किसने ऐसे बेहूदा नाम रखे हैं.
दोनो ऐसे ही बाते करती हुई शॉपिंग करने निकल जाती हैं जहाँ वो तीन चार घंटे कपड़े की खरीद फ़रोख़्ता के बाद वापिस लौटने लगी जहाँ रोड के किनारे एक जगह पर एक आदमी बैठा पक्षियो को बेच रहा था.
उन्न पक्षियो मे एक सुंदर तोता भी था जो आदमियो की बोली बोल रहा था जिसे सुन कर वो सरोज को पसंद आ गया….उसने उस तोते को
खरीदने का मन बना लिया और उसके पास पहुच गयी.
सरोज—भैया मुझे ये तोता चाहिए….कितने का है….?
दुकानदार—बहन जी…आप इसको मत लीजिए….ये आप के लायक नही है.
दीपा—क्यो….? ये हमारे लायक क्यो नही है….?
दुकानदार—ये तोता पहले एक वैश्या के घर मे था…..इसको वहाँ की गंदी आदते हैं.
सरोज—नही, मुझे तो यही चाहिए….कितना प्यारा है.
दुकानदार—ठीक है, जैसी आपकी मर्ज़ी बहन जी.
दोनो उस तोते को पिंजरे सहित लेकर घर वापिस लौट आई….जहाँ इतना बड़ा घर देख कर वो बहुत खुश हुआ और चहकने लगा.
तोता—वाह…वाह…बहुत बड़ा घर है.
दोनो उसकी बाते सुन कर खुश हो गयी….दीपा अपने फ्लॅट मे चली गयी….शाम को दोनो छत मे तोते को लेकर बैठी थी, तभी कुछ
लड़किया जो स्कूल मे पढ़ती थी और उसी बिल्डिंग मे रहती थी, छुट्टी होने के बाद लौटी तो उन्हे देख कर वो बोलने लगा.
तोता—वाह….क्या माल हैं…नयी नयी लड़कियाँ.
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04-09-2020, 03:37 PM,
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hotaks
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
उसकी बाते सुन कर सरोज थोड़ी टेन्षन मे आ गयी कि कहीं ये कुछ उल्टा सीधा बोल कर कोई लफडा ना करवा दे इसलिए उसको लेकर अंदर चली गयी….शाम को चारो दोस्त वापिस दिन भर ऋषि को तलाश करने के बाद अपने फ्लॅट मे लौट आए.
सरोज—सुनो आज ना मैने बहुत बढ़िया चीज़ खरीदी है.
चुतताड—कौन सी नयी बात है…रोज ही तो कुछ ना कुछ ख़रीदती रहती हो.
सरोज—तो क्या करूँ तुम्हारा तो कुछ पता रहता नही कि पूरा दिन कहाँ रहते हो….?
चुतताड—अच्छा…अच्छा…क्या खरीद लिया ऐसा आज….?
सरोज (खुश होकर)—अभी लाई…….ये देखो..बढ़िया तोता है ना, ये बोलता भी है.
तोता—क्यो रे…. चुतताड, तू यहाँ इसके पास भी आने लगा.
सरोज (चौंक कर)—क्याआअ...... ?
चुतताड—नही...नही....ये झूठ बोलता है,…..बाहर फेंक दो इस तोते को.
सरोज—अब मैं समझी, तुम कहाँ गायब रहते हो…..? अभी बताती हूँ तुम्हे.
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इधर तभका कोइली गाओं के हालात पहले से भी बदतर हो चुके थे….अजगर का आतंक लोगो के सर चढ़ कर बोल रहा था…रोज कोई ना
कोई भूख प्यास से तड़प कर मर रहा था.
पहले तो लोग कभी कभार घर के बाहर कुछ समय के लिए निकल भी आते थे किंतु अब तो वो भी दुश्वार हो चुका था…..जो भी घर से बाहर
निकलता वो उस नर पिशाच का शिकार बन जाता.
राजनंदिनी अपने कमरे मे बैठी एक तस्वीर को अपलक निहारे जा रही थी…तभी उसकी माँ शकुंतला उसके पास आ गयी जो अपनी बेटी की ऐसी हालत से बहुत दुखी थी.
शकुंतला—बेटी, आख़िर कब तक तू उसको याद करती रहेगी….? जाने वाले कभी लौट के नही आते…ये बात कब समझेगी तू….?
राजनंदिनी (नम आँखे)—आप तो ऐसा मत कहो माँ….मेरा दिल कहता है कि मेरा ऋषि एक ना एक दिन अवश्य आएगा.. आप सब झूठ
कहते हो, देखना वो ज़रूर आएगा…..अगर मेरा प्रेम सच्चा है तो उसे मेरे लिए, अपनी राजनंदिनी के लिए आना ही होगा माँ.
शकुंतला (दुखी होकर)—मुझ से तेरा ये दुख नही देखा जाता बेटी…आख़िर माँ हूँ तेरी….चल हम कही और चलते हैं यहाँ से किसी तरह
निकल कर….यहाँ सिर्फ़ मौत है, सिर्फ़ मौत.
राजनंदिनी—नही माँ, मैं इस जगह को छोड़ कर कहीं नही जा सकती….अगर मेरा ऋषि मुझे ढूँढते हुए यहाँ आ गया और मुझे नही पाया
यहा तो उसको बहुत दुख होगा….मैं यहाँ से कही नही जाउन्गी.
शकुंतला—बेटू तू कब तक उसका इंतज़ार करेगी….?
राजनंदिनी (आँखो से पानी बहाते हुए)—अपनी आख़िरी साँस तक मैं ऋषि के वापिस लौटने का इंतज़ार करूँगी माँ… लेकिन यहाँ से कही
नही जाउन्गी.
‘’बदलना नही आता हमे मौसम की तरह,
हर एक ऋतु (सीज़न) में तेरा इंतेज़ार करते हैं..
ना तुम समझ सकोगे जिसे क़यामत तक,
कसम तुम्हारी तुम्हे इतना प्यार करते हैं’’..
वही अगले दिन चारो दोस्त मॉर्निंग वॉक करने के लिए जाते हैं…ये उनका डेली का रुटीन था…आक्च्युयली उनका मेन उद्देश्य ऋषि को
तलाश करना था जिसके लिए चारो ने वैश्यालय तक की खाक छान मारी थी.
नंगू—अरे यार चुतताड दौड़ते हुए थक गये हैं….जा ना कही से कुछ चाय ( टी ) ले आ….तब मज़ा आएगा.
पंगु—हाँ यार.
गंगू—जल्दी कर यार.
चुतताड—सालो तुम लोग के पास हाथ पैर नही हैं क्या जो हमेशा मुझे ही बलि का बकरा बनाते रहते हो.
नंगू—लगता है आज भाभी के पास कुछ देर बैठना पड़ेगा बहुत दिन से उनसे ठीक से बात नही की है….
गंगू—सही कहा यार तूने….अच्छा चुतताड तू रहने दे हम भाभी के हाथ की चाय पी लेंगे.
चुतताड—हां, जिससे तुम दोनो उसके कान मेरे खिलाफ भर सको….इससे अच्छा तो यही है कि तुम यही चाय पी लो. सालो कमिनो हमेशा मुझे ब्लॅकमेल करते रहते हो.
चुतताड तीनो को मन ही मन गाली देते हुए पास की ही दुकान पर चाय लेने चला गया…..चाय लेकर जैसे ही वो पलटा तभी उसकी नज़र
किसी पर पड़ी जिसे देख कर चुतताड के होश उड़ गये….उसका मूह किसी अविश्वशनीय आश्चर्या से खुला का खुला रह गया.
चुतताड (शॉक्ड)-ये कैसे संभव हो सकता है....? ये कैसा चमत्कार है.....?
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04-09-2020, 03:38 PM,
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
पंगु—तुम्हे याद होगा कि जब ऋषि किसी साधी से मिल कर लौटा था तो उसके बाद ही राजनंदिनी के गर्भ का अभिकर्षन हो गया था....और
चुतताड ने भी ऋषि को अपने सपने मे यहाँ धरती पर देखा है तो ये भी तो संभव है कि ऋषि यहाँ आया होगा तभी श्री यहाँ है.
चुतताड—तेरी बात मे दम है यार.
नांगु—ये तो हमने सोचा ही नही.
गंगू—हमे चल कर पता लगाना चाहिए की वो किसका बंग्लॉ है.... ? और उस लड़की पर भी हमे नज़र रखनी होगी और ये भी जानना होगा की क्या उसका नाम श्री ही है.... ?
तीनो—हाँ चलो.
तीनो उस दुकान वाले के पास पहुच गये और बीच बीच मे उस बंग्लॉ पर भी नज़र दौड़ने लगे कि शायद श्री एक बार फिर से उनके आँखो को दिखाई दे जाए.
गंगू—भाई ये इतना बड़ा बंग्लॉ किसी मंत्री का है क्या..... ?
दुकानदार—अरे भाई इनको नही जानते.... ? ये दुनिया के टॉप बिज़्नेसमॅन आनंद राजवंश जी का बंग्लॉ है और उसके बगल मे उनके चचेरे भाई अजीत राजवंश का.
पंगु—तब तो उनके बच्चो के मज़े हैं.
दुकानदार—कहाँ भाई….आनंद साहब पहले इंग्लेंड मे रहते थे…उनका एक ही लड़का था आदित्य…..जब से उसकी मौत हुई है तब से आनंद जी की बीवी बेचारी कोमा मे है…
नांगु—तब तो अब उनके चचेरे भाई अजीत की चाँदी हो गयी…आनंद जी के अब कोई औलाद नही बची तो पूरी प्रॉपर्टी उनके बच्चो को ही मिलेगी…मज़े हैं भाई अब उनके.
दुकानदार—ऐसा नही है भाई…आनंद जी की बीवी और अजीत जी बीवी दोनो सग़ी बहने हैं….अजीत जी की दो औलाद हैं ..एक लड़का और एक लड़की.
चुतताड—नाम क्या हैं उनके दोनो बच्चो के….?
दुकानदार—लड़के का नाम संजय और लड़की का नाम श्री है….बचपन मे उनका एक बेटा रहस्मय तरीके से कही गायब हो गया जिसका नाम ऋषि था….तब से वो भी बहुत दुखी रहते हैं.
ये सुनते ही चारो के कान से धुवा निकलने लगा…..दिमाग़ का तो जैसे फ्यूज़ ही उड़ गया.
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वही दूसरी तरफ उस आश्रम मे कनक ऋषि और अष्टवक्र किसी परिस्थिति पर गहन विचार विमर्श कर रहे थे… कुछ देर बाद ऋषि
अष्टवक्र ने किसी को याद किया तो वह शख्स तुरंत ही उनके सामने प्रकट हो गया.
‘’प्रणाम ऋषीवर, आपने मुझे याद किया….?” उस शख्स प्रकट होते ही कहा.
अष्टवक्र—आओ वत्स मुनीश, मैने तुम्हे एक विशेष प्रायोजन से याद किया है.
मुनीश—मेरे निमित क्या आदेश है मूनिवार….?
अष्टवक्र (किसी की तरफ इशारा करते हुए)—इसको अपने साथ ले जाओ….कुछ दिन पश्चात इसकी युद्ध शिक्षा होगी जो कि स्वयं ब्रह्मर्षि
विश्वामित्र प्रदान करेंगे…तब तक इसको कुछ संसारिक ज्ञान से पारंगत करना तुम्हारा कार्य होगा.
मुनीश—क्या इसको सब याद आ गया मुनिवर….?
कनक—अभी नही…किंतु जब भी वो उससे मिलेगा तो जल्दी ही याद आ जाएगा.
मुनीश—ठीक है ऋषिवर.
अष्टवक्र—किंतु एक बात का स्मरण रहे वत्स, कि ये अभी अभी अचेत अवश्था से चेतन मे हुआ है तो अभी इसका दिल और दिमाग़ पूरी तरह से इसके नियंत्रण मे नही है तो ये जो कुछ भी किसी को कुछ करते हुए देखेगा वही खुद भी करने लगेगा…..लेकिन जल्दी ही वो खुद को नियंत्रित कर लेगा.
मुनीश—ठीक है…ऐसा ही होगा
कनक (उस लड़के को अपने पास बुला कर)—पुत्र तुम इनके साथ जाओ….जैसा ये करे या करने को कहे तुम भी वैसा ही करना.
वो लड़का—जो आग्या गुरुदेव…..(मन मे) ये साला यहाँ भी आ गया.
मुनीश—ठीक है गुरुदेव…अब मुझे आग्या दे.
कनक/अष्टवक्र—तुम्हारा कल्याण हो वॅट्स.
मुनीश—तो चले दोस्त.
लड़का—हाँ…चलो
मुनीश उसको लेकर देव लोक आ गया….जहाँ उसका बढ़िया आदर सत्कार हुआ….मुनीश की बीवी माधवी अत्यंत रूप वती थी….जब मुनीश ने उसको सब बताया तो उसने भी खूब सम्मान दिया.
मुनीश—माधवी ये आज से यही रहेंगे….ये मेरे परम मित्र हैं.
माधवी—आप निश्चिंत रहे…आपके मित्र मेरे देवर हुए….मैं इनका पूरा ध्यान रखूँगी.
भोजन के पश्चात उसको आलीशान भवन के एक आलीशान कक्ष मे विश्राम हेतु पहुचा दिया गया…मुनीश ने अपने शयन कक्ष के बगल वाले कक्ष मे ही उसके लिए विश्राम का उत्तम प्रबंध किया था.
वो लड़का ऐसे मखमली बिस्तर को पाते ही तुरंत लेट कर सो गया….मध्य रात्रि मे अचानक कुछ आवाज़ से उसकी नीद टूट गयी…..वह उठ
कर अपने कक्ष से बाहर निकल आया और देखने लगा की ये आवाज़ कहाँ से आ रही है और किस चीज़ की आवाज़ है.
वो उस आवाज़ का पिच्छा करते हुए मुनीश के कक्ष के दरवाजे तक आ पहुचा….आवाज़ मुनीश के कक्ष के अंदर से ही आ रही थी.
वो आवाज़ का पता लगाने के लिए दरवाजे के छेद से अंदर झाँकने लगा…..अंदर मुनीश और माधवी पूर्ण रूप से निर्वस्त्र होकर संभोग मे
क्रिया रत थे….ये आवाज़ उनके संभोग करने से ही उत्तपन्न हो रही थी.
लड़का (मन मे)—गुरुदेव ने कहा था कि जो ये करे वही तुम भी करना….इसका मतलब माधवी के साथ मुझे भी ऐसा ही करना है.
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04-09-2020, 03:38 PM,
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
अपडेट-79
वो उस आवाज़ का पिछा करते हुए मुनीश के कक्ष के दरवाजे तक आ पहुचा….आवाज़ मुनीश के कक्ष के अंदर से ही आ रही थी.
वो आवाज़ का पता लगाने के लिए दरवाजे के छेद से अंदर झाँकने लगा…..अंदर मुनीश और माधवी पूर्न रूप से निर्वस्त्र होकर संभोग मे
क्रिया रत थे….ये आवाज़ उनके संभोग करने से ही उत्पन्न हो रही थी.
लड़का (मन मे)—गुरुदेव ने कहा था कि जो ये करे वही तुम भी करना….इसका मतलब माधवी के साथ मुझे भी ऐसा ही करना है.
अब आगे…….
वो लड़का मुनीश और माधवी को संभोग क्रिया मे लीन देख कर खुद भी माधवी के साथ संभोग करने की सोचने लगता है, और तब तक उन दोनो को देखता रहता है जब तक वो दोनो इस बात से पूरी तरह अन्भिग्य होकर कि वो लड़का उन्हे देख रहा है अपनी इस क्रिया मे मगन रहते हैं.
वो लड़का लगातार माधवी के अत्यंत खूबसूरत नंगे मांसल जिस्म को घूर घूर कर उसका नेत्र चोदन किए जा रहा था और साथ ही अपने
विशालकाय संभोग अस्त्र को बाहर निकाल कर हाथो से सहलाने का काम भी करता जा रहा था.
करीब डेढ़ दो घंटे की इस उठा पटक के बाद माधवी और मुनीश स्खलित हो जाते हैं….कुछ देर तक शांति से एक दूसरे की बहो मे लिपटे रह कर अपनी ऊर्ध्व गति से चल रही सांसो को नियंत्रित करने मे लग जाते हैं…जब ये आवेग ठंडा हो जाता है तब दोनो पुनः वार्तालाप मे लग जाते हैं.
माधवी—मैं इस लड़के को क्या कह कर बुलाऊ….?
मुनीश—ये लड़का बेहद असाधारण है….वो एक ना होकर भी एक है……वास्तव मे वो भूत (पास्ट) और वर्तमान (प्रेज़ेंट) का सम्मिश्रण है वो
जिससे भविश्य (फ्यूचर) का निर्माण होगा.
माधवी—थोड़ा विस्तार से समझाओ मुझे.
मुनीश—उसका पिच्छले जनम का नाम आदिरीशि था जिसने परिलोक और अन्य ग्रहों के निर्माण मे अपना सहयोग प्रदान किया था…..कुछ घटनाओ की वजह से जब उसका अगला जनम हुआ तो उसका नाम ऋषि था जबकि उसके बाद के जनम मे आदित्य…..लेकिन कुछ
घटनाक्रम के चलते भूत और वर्तमान को एक करके जोड़ा गया है…..अर्थात जो लड़का अब हमारे सामने है वो आदी और ऋषि दोनो ही है इसलिए उसका नाम आदिरीशि है अब.
माधवी—इसका तात्पर्य ये हुआ कि ये सब तीनो एक ही हैं.
मुनीश—हाँ, किंतु समस्या ये है कि अभी आदिरीशि के दिमाग़ मे 12 घंटे आदी की यादे रहती हैं तो अगले 12 घंटे ऋषि की यादे….
माधवी—इसका मतलब कि उसकी याद दास्त चली गयी है.
मुनीश—हाँ भी और नही भी…..मेरा मतलब है कि एक समय मे उसको सिर्फ़ एक ही जनम की यादे रहती हैं अपने दूसरे जनम की याद दास्त वो भूल जाता है.
माधवी—तो मैं उसको क्या नाम से पुकारू…..?
मुनीश—ऋषि दिमाग़ का तेज़ था तो आदी मे शक्तिया हैं…..ऋषि थोड़ा चंचल,थोड़ा बातूनी मगर बेहद सुलझा हुआ था जबकि आदी थोड़ा दिमाग़ से जज़्बाती है,हमेशा कुछ ना कुछ उल्टा सीधा करता रहता है….उसके व्यवहार से उसको आसानी से समझा जा सकता है कि
उस समय उसकी याद दास्त किस रूप मे है.
माधवी—तो क्या वो हमेशा ऐसा ही रहेगा……?
मुनीश—नही, उसकी युद्ध शिक्षा के उपरांत उसको राजनंदिनी के पास ले जाना होगा….तभी कुछ संभव हो सकता है कि वो पूर्ण रूप से आदिरीशि बन जाए.
माधवी—ये राजनंदिनी कौन है….?
मुनीश—राजनंदिनी उसकी आत्मा है....उसका पहला और सच्चा प्यार है वो.....वो शुरू से उसे ऋषि ही कहती थी..वो सब कुछ भूल सकता है किंतु राजनंदिनी को नही.....उसके सामने आते ही दोनो का दिल अपने आप धड़कना शुरू कर ही देगा.
माधवी—बड़ा ही दिलचस्प इंसान है आदिरीशि और सुंदर भी.... !
मुनीश (घूरते हुए)—कहीं तुम्हारी नियत तो उस पर खराब नही हो रही है.... ?
माधवी (हँस कर)—आप भी ना…..चलो सो जाओ अब.
माधवी बिस्तर से उठ कर मूत्र विसर्जन करने जाती है जो क़ि कक्ष के बाहर था….कक्ष से बाहर निकलते ही उसके पैरो मे कुछ चिप चिपा
पन महसूस होता है…वो झुक कर उंगली से छु कर देखती है ..तो उससे समझने मे समय नही लगा कि ये वीर्य की बूंदे हैं.
वो सोच मे ही डूबी हुई थी कि तभी उसका ध्यान आदिरीशि के कक्ष की तरफ गया जहाँ प्रकाश फैला हुआ था…. वो जिग्यासा वश .उसके
कक्ष की ओर बढ़ जाती है.
कक्ष मे लगी खुली हुई खिड़की से जैसे ही माधवी अंदर झाँक कर देखती है तो देखते ही उसकी आँखे अचरज और विश्मय से खुल कर बड़ी बड़ी हो जाती हैं.
अंदर आदिरीशि बिस्तर मे नंगा लेटा हुआ था और माधवी का नाम लेते हुए अपने हथियार को मुठियाए जा रहा था उसके मूह से अपना नाम
सुन कर माधवी को ये समझते देर नही लगी कि दरवाजे के बाहर पड़ा वीर्य किसका था. साथ ही उसके मन मे काई सवाल भी पैदा हो गये.
माधवी (मन मे)—इसका मतलब आदी ने हमे संभोग करते हुए देख लिया है…..और ये मेरा नाम क्यो ले रहा है….? लगता है वो ख्यालो मे मेरे साथ संभोग कर रहा है…..छी…ये मैं क्या सोच रही हूँ…मुझे ऐसा कदापि नही सोचना चाहिए…..पर आदी का है भी कितना बड़ा..‼ बाप रे, किसी इंसान का इतना बड़ा और मोटा भी हो सकता है, ये मैने कभी सोचा भी नही था…..मुनीश का तो इसके आगे आधा भी नही
होगा….मुनीश का तो आदी के हथियार के सामने चूहा लग रहा है और आदी का कितना एकदम गोरा है.
माधवी (मन मे)—ये मुझे क्या हो रहा है……? मैं क्यो बार बार बहक रही हूँ….मेरी चूत भी पूरी गीली हो गयी है….इतनी गीली नीचे से तो मैं आज तक कभी नही हुई थी…..मेरा मन मेरे नियंत्रण मे क्यो नही आ रहा है…? जब आदी का हथियार देख कर ही मेरा ये हाल है तो अगर कहीं आदी ने सच मुच मेरे साथ संभोग करने का प्रयास किया तो तब क्या होगा…..? क्या मैं आदी को अपने साथ संभोग करने से रोक
पाउन्गी…? शायद मैं आदी को अपने साथ संभोग करने से नही रोक पाउन्गी…..अब मैं क्या करूँ…..? इतना बड़ा तो मैं अपने अंदर ले भी नही सकती, इतना बड़ा मेरी चूत मे घुसेगा ही नही और अगर किसी तरह से आदी ने घुसेड भी दिया तो तब क्या होगा..? …तब तो मेरी तो
पूरी फट जाएगी
आदी—हाय माधवी तुम्हारी चूत कितनी मस्त और फूली हुई है, क्या चौड़ी फूली गान्ड है तुम्हारी और चूचिया तो एकदम कड़क हैं….कितना
कसा कसा जाएगा मेरा तेरी चूत मे… एक बार दे दो माधवी मुझे भी अपनी चूत.
माधवी आदी के मूह से अपने लिए ऐसे गंदे शब्दो का प्रयोग सुन कर गुस्सा होने की बजाए पूरी तरह से उन्माद मे कामोत्तेजित होकर अपनी उंगली चूत मे जल्दी जल्दी चलाने लगी…..उधर आदी लगातार ज़ोर ज़ोर से हाथ चलते हुए माधवी का नाम ले लेकर अंततः स्खलित होने
लगा….उसके वीर्य की पिचकारी इतनी तीव्र थी कि खिड़की मे आँखे लगाए मूह फाडे टकटकी लगाए माधवी के सीधे मूह के अंदर जा कर गिरी.
लेकिन माधवी ने ना तो अपना मूह वहाँ से हटाया और ना ही मूह बंद किया बल्कि उल्टा उसने अपना मूह और खोल दिया…आदी के लंड से
ऐसी ही तेज़ पिचकारी निकलती रही और माधवी के मूह के अंदर जाती रही….इधर माधवी भी अपनी उंगली से झड गयी.
जाने कितनी देर तक पिचकारी निकलती रही और माधवी उसको पीती रही….उसके बाद वह वहाँ से अलग होकर मूत्र विसर्जन करने के बाद अपने कक्ष मे जाके बिस्तर मे लेट गयी मगर उसकी आँखो से अब नीद की खुमारी ओझल हो चुकी थी….वो चाह कर भी अभी हुए इस दृश्य को नही भुला पा रही थी….उसकी पूरी रात यो ही आँखो आँखो मे जागते हुए गुजर गयी.
अगले दिन सुबह आदी रात की खुमारी की वजह से देरी से उठा…..मुनीश ने उसके पास आकर हाल चाल पता करने लगा
मुनीश—और दोस्त कैसे हो….? रात बढ़िया गुज़री ना…..?
आदिरीशि—मैने आप को पहचाना नही भाई….मैं कहाँ हूँ….?
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04-09-2020, 03:38 PM,
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
मुनीश (मन मे)—लगता है कि अब ये ऋषि बन गया है…..(थोड़ी देर मे) मैं तुम्हारा दोस्त हूँ, मुनीश और तुम मेरे महल मे हो.
आदिरीशि—महल….? कैसा महल…..? ये जगह कौन सी है….. ? अगर आप मेरे दोस्त हैं तो मुझे याद क्यो नही है... ?
मुनीश—वो इसलिए कि एक दुर्घटना मे तुम्हारी याद दास्त कमजोर हो गयी है…तुम बेहोश हो गये थे उस घटना के बाद….जल्दी ही सब याद आ जाएगा…ये देव लोक है.
ऋषि—हाँ कुछ कुछ ध्यान है, कुछ हुआ तो था मेरे साथ……राजनंदिनी कहाँ है…? मुझे उसके पास जाना होगा वो मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी.
मुनीश—अभी तुम्हारा वहाँ जाना ख़तरे से खाली नही है….वहाँ सब जगह पर अजगर का साम्राज्य है अब.
ऋषि—अजगर..‼ लेकिन वो तो क़ैद मे था….? फिर आज़ाद कैसे हुआ वो….? ज़रूर नरवाली ने ही कुछ तिकड़म किया होगा
मुनीश—नरवाली मारा जा चुका है दोस्त.
ऋषि—क्याआआ..... ? किसने मारा उसे.... ?
मुनीश—तुमने
ऋषि—मैनेईयेयी..... ? मगर कब, मुझे तो ध्यान नही
मुनीश—मैने बताया ना कि अभी तुम्हारी याद दास्त अधूरी है….जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.
ऋषि—मगर कैसे ठीक होगी मेरी याद दास्त….? मेरी राजनंदिनी बहुत बेचैन होगी मेरे बिना.
मुनीश—कुछ दिनो के पश्चात ब्रहमरीषि विश्वामित्र तुम्हे युद्ध कौशल की शिक्षा देकर पूर्ण पारंगत करेंगे उसके बाद तुम राजनंदिनी से मिल
सकते हो….अभी तुम्हारे वहाँ जाने से सभी की जान ख़तरे मे आ सकती है.
ऋषि—वैसे मैं कितने घंटे बेहोश था…..?
मुनीश—घंटे नही दोस्त….पूरे 100 साल से तुम बेहोश थे.
ऋषि—क्य्ाआआअ……100 साल…..?
मुनीश—हाँ भाई, अब घूमने चलना है क्या…?
ऋषि—नही मैं आराम करूँगा….शाम को चलेंगे
मुनीश—ठीक है, तुम आराम करो
मुनीश वहाँ से चला जाता है और ऋषि भोजन कर के फिर से सो जाता है…..उधर राजनंदिनी ऋषि की तस्वीर अपने सीने से लगाए उससे बाते किए जा रही थी.
राजनंदिनी—तुम कब आओगे ऋषि….? तुम्हे अपना वादा पूरा करना ही होगा…..मैं आज भी तुम्हारा इंतज़ार उन्ही गलियो मे कर रही हूँ जहाँ
तुम मुझे छोड़ कर गये थे.
इन राहो पर वो इंतज़ार ज़िंदा रखा हमने,
बदलते दौर मे वो ऐतबार ज़िंदा रखा हमने…
सब कुछ तो हमने खुद ही छोड़ दिया था,
एक तुझ पर ही अधिकार ज़िंदा रखा हमने…
एहसासो को मेरे तेरी आदत सी हो गयी है,
इस दिल को तेरा तलबगार ज़िंदा रखा हमने…
घुट घुट कर जीने के हम आदी नही थे,
कि इन सांसो मे तेरा खुमार ज़िंदा रखा हमने….
परखने को हमारा ज़मीर बहुत लोग आए थे,
खुद को ही अब तलाक़ वफ़ादार ज़िंदा रखा हमने....
नही है तलब हमे सोने चाँदी के बिछौनो की,
ईमान को अपने आज असरदार ज़िंदा रखा हमने...
ए ज़माने तेरी बेवफ़ाई का हमे अब गम नही,
कि अपने लिए अलग एक संसार ज़िंदा रखा हमने...
मुद्दते गुजर गयी इसी इंतज़ार मे हमारी भी,
इस दिल मे आज भी तेरा प्यार ज़िंदा रखा हमने....
शकुंतला (कमरे मे आते हुए)—बेटी चल कुछ खा ले....दो दिन से तूने कुछ भी नही खाया है.....ऐसे मे तो ऋषि को भी तकलीफ़ होगी ना.... ?
राजनंदिनी—एक ऋषि की ही यादो के सहारे तो आज तक ज़िंदा हूँ माँ....लेकिन आज मैं ज़रूर खाउन्गी....आज मेरा दिल कह रहा है कि ऋषि जल्दी ही आने वाला है...ना जाने क्यो मेरे दिल मे आज हर्ष और उमंग की तरंगे उठ रही हैं.
राजनंदिनी अपनी माँ के साथ दूसरे कमरे मे चली जाती है.....वही अकाल और बकाल आज भी एक आदमी को पकड़ लाए थे जिसे अजगर
के सामने ले जाया गया.
अजगर को देखते ही उस आदमी की जिंदा बचने की उम्मीद टूट गयी और वो थर थर काँपने लगा....अजगर था ही बहुत भयानक शकल
वाला....कमजोर दिल वाला अगर कोई ग़लती से भी उसकी शकल देख ले तो बिना किसी के मारे ही हार्ट अटॅक से तुरंत दम तोड़ देगा.
किसी बड़े पत्थर जैसी दो बड़ी बड़ी बिल्कुल कोयले जैसी काली आँखे.....पूरा शरीर एकदम काला......बाल एक दम सफेद और बड़े बड़े......हाथी दाँत जैसे दाँत.....पैर तक लटकती लंबी मूच्छे....बड़े बड़े नाख़ून....विशाल शरीर ये सब किसी भयानक सपने से कम नही था.
अजगर—हाहहहाहा.....इसको क्यो पकड़ कर लाए हो....मेरे पास.... ?
अकाल—पिता जी, ये मूर्ख सबको आपके खिलाफ भड़का रहा था.
आदमी (काँपते हुए)—मुझे क्षमा कर दो...मुझसे भूल हो गयी.
अजगर—हाहहहाहा.....भूल.....हो गाइिईई.....तो क्षमा कर दुउऊउ....हाहहाहा.....अजगर मारता नही है,अपने शिकार को सीधा निगल जाता है....मेरे खिलाफ लोगो को भड़काएगा.....हाहहाहा.....मुझसे टकराने की हिम्मत किसी मे भी नही है......तुझे नही मालूम कि मैं अमर
हूँ......हाहहहाहा...अमर हूँ मैं....हाहहहाहा......मुझसे ज़्यादा शक्तिशाली कोई भी नही है....समझा तू
अगले ही पल अजगर ने अपने सिंघासन पर बैठे बैठे ही अपनी लंबी जीभ बाहर निकाल कर उस आदमी को लपेट लिया और फिर अपने मूह मे भर कर उसे निगल गया....वहाँ हसी के ठहाको के बीच अगर कुछ सुनाई दिया तो वो थी उस आदमी की दर्दनाक चीखे जो अब शांत हो चुकी थी.
अजगर—जाओ सब ग्रहों पर फैल जाओ और वहाँ की औरतो, लड़कियो से संभोग कर के हमारे वंश को आगे बढ़ाओ, हमारी सेना का विस्तार करो.
बकाल—जो अग्या पिता जी.....चलो सब लोग हर जगह फैल जाओ.....कोई जगह बचनी नही चाहिए
अकाल—सबसे पहले परी लोक चलो....सुना है कि वहाँ की राजकुमारी सोनालिका बहुत खूबसूरत है.....पहले उसका ही भोग करूँगा मैं....हाहहहाहा
अजगर—राजनंदिनी का कुछ पता चला..... ?
बकाल—नही पिता जी.....वो हमे नही मिली कही भी
अजगर—मुझे राजनंदिनी चाहिए हर कीमत पर.....चाहे इसके लिए पूरी दुनिया को राख का ढेर ही क्यो ना बनाना पड़े तो बना डालो लेकिन
उसको ढूढो
अकाल—वो अपने घर मे छुपि होगी....उसके घर से पकड़ के घसीट लाते हैं
अजगर—राजनंदिनी कोई बकरी का बच्चा नही है बेवक़ूफ़……उसके करीब जाने का सीधा मतलब है कि ख़ूँख़ार शेरनी के मूह मे हाथ डालना…..और वैसे भी उसका घर किसी तिलिस्म से बँधा हुआ है जिसका तोड़ सिर्फ़ ऋषि जानता था जो अब इस दुनिया मे ही नही है
……राजनंदिनी को किसी तरह से घर से बाहर निकलने पर मजबूर करो फिर मैं देखता हूँ…..उसे पकड़ना तुम लोगो के बस की बात नही है
बकाल—ठीक है ऐसा ही होगा पिता जी
सब वहाँ से चले जाते हैं…..इधर मुनीश शाम को तैय्यार होकर घूमने जाने लगा....उसने ऋषि को भी ले जाना चाहा.
मुनीश—चलो दोस्त कहीं बाहर घूम कर आते हैं.
आदिरीशि (मंन मे)—लगता है कि ये फिर से मुझे किसी नये लफडे मे फसाना चाहता है…..मैं अब इसके बहकावे मे नही आने वाला.
मुनीश—क्या सोचने लगे दोस्त….?
अदिई—नही, मेरी तबीयत कुछ ठीक नही है...तुम घूम आओ....मैं कल चलूँगा भाई
मुनीश (मन मे)—लगता है ये फिर से आदी बन गया है.....(थोड़ी देर मे)..ठीक है मित्र, तुम सो जाना भोजन कर के, मुझे आने मे कुछ देर भी हो सकती है.
आदी—ठीक है भाई.
मुनीश देर से आने का माधवी को बता कर बाहर निकल जाता है….काफ़ी रात बीतने के बाद भी जब मुनीश नही आया तो माधवी की उसका इंतज़ार करते हुए उसकी नीद की झपकी लग गयी.
जबकि इधर आदी अपने कक्ष मे अनियंत्रित होकर इधर से उधर घूम रहा था जैसे कि किसी गहरी सोच मे हो और कोई निर्णय नही कर पा रहा हो की क्या करना चाहिए.
ऐसे ही कुछ देर तक चिंतन करते हुए उसने मन ही मन कुछ फ़ैसला लिया और सीधे माधवी के कक्ष मे घुस गया और जाकर सीधे उसके साथ बिस्तर मे लेट गया.
माधवी (हल्की नीद मे)—आप आ गये मुनीश….ये क्या कर रहे हो…? छोड़ो ना……आआआआआआ…..मररर गाइिईई
उधर मुनीश भी अपने महल के लिए निकल चुका था……
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04-09-2020, 03:39 PM,
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
आदी—देखो भाभी ज़्यादा सोच विचार मत करो.....अगर मैने तुमको नही चोदा तो तुम्हारे पति को झूठा वादा करने का पाप लगेगा और ये भी
संभव है कि गुरुदेव उसे फिर से श्राप देकर कोई पशु पक्षी बना दे.
माधवी बहुत देर तक सोचती रही...आदी उसको मानता रहा , वो मना करती रही...किंतु बार बार मनाने और आदी द्वारा उसके नाज़ुक अंगो
से छेड़ छाड़ करते रहने के फल स्वरूप वो फिर से गरम होने लगी और अंततः उसने हाँ कर ही दी...आदी खुशी से झूम उठा.
माधवी—लेकिन तुम्हारा बड़ा बड़ा है...ये मेरे अंदर नही जाएगा....इतना बड़ा तो मुनीश का भी नही है....फिर एक इंसान का कैसे हो सकता है... ?
आदी—ये सब मेरी मेहनत का फल है....ज़्यादा मत सोचो भाभी
माधवी—नही मैं पूरा अंदर नही लूँगी...अगर आधा ही अंदर कर के करना हो तो ठीक है
आदी—ठीक है जैसा आप कहो….मैं आधा लंड ही अंदर डालूँगा…अब तो ठीक है
माधवी—लेकिन इस बात की क्या गॅरेंटी है कि तुम पूरा अंदर नही डालोगे….?
आदी—अब मैं गॅरेंटी कहाँ से लाउ….? गॅरेंटी मैं खुद हूँ.
बहुत मिन्नत करने के बाद माधवी मान गयी आख़िर वो भी इस समय गरम थी और कल से ही आदी पर आकर्षित भी थी….आदी ने तुरंत
उसको अपनी बाहों मे भर कर चूमना चाटना शुरू कर दिया
जल्दी ही माधवी पूर्ण उत्तेजित हो गयी….आदी के हाथो मे काम क्रीड़ा का जादू था जैसे…..आदी ने भी अब देर ना करते हुए माधवी के दोनो
पैरो के मध्य आकर फैला दिया
अपने विशाल हथियार को माधवी के योनि छिद्र पर टिका कर एक करारा प्रहार किया तो उसका शिश्न मुण्ड अंदर ज़बरदस्ती माधवी की चूत
को फाड़ते हुए प्रवेश कर गया….माधवी की आँखे बाहर निकल आई.
माधवी—आआहह…….मररर गाइिईईईईईईई
आदी—बस कुछ देर और फिर दर्द नही होगा
माधवी—आआआआआअ…..नही मैं तुम्हे नही झेल पाउन्गी…..इतने मे ही अपना काम चला लो….आआआआअ
लेकिन आदी अब कहाँ रुकने वाला था…..उसने माधवी के होठों को अपने होठों से बंद कर के दो तीन तगड़े झटके दे कर किला फ़तह कर
ही लिया….जबकि माधवी चिल्लाते हुए अचेत अवस्था मे पहुच गयी.
आदी ने उसको होश मे ला कर फिर से उसकी जवानी को भोगना शुरू कर दिया.....कुछ देर के दर्द के पश्चात माधवी भी इस सुख सागर मे गोते लगाने लगी.
आदी के हर धक्के मे वो अपनी गान्ड उपर उठा कर उसका पूरा साथ देने लगी…..ऐसा संभोग सुख उसको पहली बार मिल रहा
था…..माधवी को महसूस होने लगा कि वास्तविक संभोग कैसे किया जाता है.
आदी की अश्लील बाते भी अब उसको अमृत वाणी के समान लग रही थी…..दोनो मे से कोई भी हार मानने को तैय्यार नही था….धक्को की रफ़्तार इतनी जबरदस्त थी कि जैसे कोई बुलेट ट्रेन चल रही हो….फरक सिर्फ़ इतना था कि बुलेट ट्रेन लोहे की पटरी के उपर चलती है
जबकि आदी की बुलेट ट्रेन माधवी की चूत पर चल रही थी.
लेकिन कहते हैं ना कि हर शुरुआत का एक अंत भी निश्चित होता है….माधवी आदी की वरदानी शक्ति के सामने कहाँ तक टिकती….आख़िर कार उसने हार मान ली और भल भलाकर झड़ने लगी
जितना चरम सुख उसको आज प्राप्त हुआ था उसकी उसने कभी कल्पना तक नही की थी…..माधवी के चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि के भाव थे
जबकि आदी अभी भी उसकी चूत द्वार को चौड़ा करने मे लगा हुआ था.
इधर मुनीश अपने महल मे पहुच गया और अंदर की ओर कदम बढ़ा दिए………
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दूसरी तरफ आनंद अपने घर मे बैठा सब के साथ उर्मिला की तबीयत के विषय मे बाते कर रहा था कि तभी एक गार्ड ने प्रवेश किया.
गार्ड—साहब एक आदमी आपसे मिलना चाहता है….
आनंद—वो कौन है…? क्या काम है….? कहाँ से आया है...? उसको बोलो कि ऑफीस मे आ कर मिले.
गार्ड—मैने बहुत समझाया उसको लेकिन नही माना…..वो कहता है कि को आदी साहब से लंडन मे मिला था और आपसे आदी साहब के
बारे मे कुछ बात करना चाहता है….उसका नाम गणपत राय है
सभी (शॉक्ड)—आदी के बारे मे……?
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04-09-2020, 03:39 PM,
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
अपडेट-81
दूसरी तरफ आनंद अपने घर मे बैठा सब के साथ उर्मिला की तबीयत के विषय मे बाते कर रहा था कि तभी एक गार्ड ने प्रवेश किया.
गार्ड—साहब एक आदमी आपसे मिलना चाहता है….
आनंद—वो कौन है…? क्या काम है….? उसको बोलो कि ऑफीस मे आ कर मिले.
गार्ड—मैने बहुत समझाया उसको लेकिन नही माना…..वो कहता है कि वो आदी साहब से लंडन मे मिला था और आपसे आदी साहब के बारे मे कुछ बात करना चाहता है….उसका नाम गणपत राई है
सभी (शॉक्ड)—आदी के बारे मे……?
अब आगे…….
सेक्यूरिटी गार्ड ने जब बताया कि वो आने वाला शख्स आदी के विषय मे कुछ बात करना चाहता है तो सभी लोग हैरान हो गये…..सभी का हृदय बेहद भावुक हो गया था.
मेघा—आदी के बारे मे वो क्या बाते करना चाहता है….?
अजीत—जो भी हमे उसकी बात तो सुननी ही चाहिए एक बार.
आनंद—ठीक है उसको अंदर भेज दो.
गार्ड—ठीक है सर
थोड़ी देर बाद ही गार्ड एक आदमी को अपने साथ लेकर अंदर आया……अंदर आते ही वो बड़े ध्यान से चारो तरफ अपनी पैनी नज़ारे घुमा
कर उस जगह का मुआयना करने लगा.
आनंद—कहो क्या काम है….? क्या नाम है तुम्हारा….? और तुम आदित्य राजवंश के बारे मे क्या बात करना चाहते हो…..?
गणपत राई—सर, मेरा नाम गणपत राई है और मैं बिहार का रहने वाला हूँ…..आज से दो दिन बाद मेरी बेटी की शादी है, मैं बस अपनी बेटी की शादी का कार्ड देने आया था.
मेघा—लेकिन तुमने गार्ड को ये क्यो कहा कि तुम आदित्य के बारे मे बात करना चाहते हो….?
श्री—तुम आदी को कैसे जानते हो…..? और ये कार्ड तो तुम ऑफीस मे भी तो दे सकते थे….?
गणपत राई—असल मे मेरी जिस बेटी की शादी होने जा रही है, उसकी जान आदित्य साहब ने ही बचाई है, अगर आदित्य साहब ने वक़्त पर हमारी मदद नही की होती तो शायद आज मेरी बेटी जिंदा भी नही होती.
आनंद (शॉक्ड)—आदी ने तुम्हारी बेटी की जान कब बचाई और कैसे…..? वो तो इंडिया मे रहता ही नही था….!
गणपत राई—मेरी बेटी को कॅन्सर था…..मैं किसी तरह ड्राइवर का काम कर के थोड़ा बहुत जो कमाता था उसमे घर का खर्च ही मुश्किल से चल पाता था…..फिर भी मैने लोगो से क़र्ज़ लेकर उसका यहाँ इलाज़ कराया लेकिन कोई फ़ायदा नही हुआ……कयि डॉक्टर ने मुझे उसका
इलाज़ लंडन मे कराने को कहा…..मैने अपना घर और खेत गिरवी रख कर जो पैसे मिले उनके सहारे अपनी बेटी और परिवार के साथ लंडन चला गया.
गणपत राई—लेकिन इतने पैसे मे भला कोई इलाज़ करता है…..वो लोग इलाज़ के लिए 25 लाख माँग रहे थे…अब इतने पैसे मैं कहाँ से लाता वो भी पराए देश मे…..मैं नौकरी करने के विचार से भटकने लगा कि शायद कही कोई ढंग का काम मिल जाए तो कुछ पैसे जोड़ कर बेटी
का इलाज़ करा सकूँ.
गणपत राई—किंतु वहाँ तो सब अँग्रेज़ी मे बात करते थे…और हमे तो वो भी नही आती थी…जितना पैसा यहाँ से लेकर गये थे वो भी ख़तम
हो गया था, वहाँ एक महीने मे ही….इलाज़ तो दूर की बात है ,हमारे पास घर लौटने के लिए भी कुछ नही बचा था.
गणपत राई—ऐसे मे एक दिन आदित्य साहब फरिश्ता बन कर मुझ ग़रीब की ज़िंदगी मे आए….उन्होने मेरी बेटी के इलाज़ के लिए ना केवल
बढ़िया डॉक्टर और हॉस्पिटल का इंतज़ाम किया बल्कि इलाज़ के बाद कोई कारोबार शुरू करने के लिए भी मुझे एक करोड़ रुपये दिए.
गणपत राई—मैं ये कार्ड और कुछ पैसे देने के लिए उनके बताए पते पर इंग्लेंड गया था लेकिन पता चला कि अब आप लोग यहाँ रहने लगे हैं तो मैं आज यहाँ आ गया.
गणपत राई की बाते सुन कर सभी को जबरदस्त हैरानगी हुई कि आदी ने ये सब कब किया जिसकी उनमे से किसी को जानकारी नही हुई आज तक.
आनंद (हैरान)—ये कब की बात है….?
गणपत राई—मुझे अच्छे से याद है आज से पाँच साल पहले की वो डेट….25थ अगस्त की ही बात है जब आदी साहब मुझे मिले थे.
इस बार गणपत राई की बात ने जैसे कोई बॉम्ब ही फोड़ दिया हो…..सभी को जबरदस्त झटका लगा….क्यों कि गणपत राई जिस डेट का
ज़िकरा कर रहा है ये वोही मनहूस डटे थी जब आदी घर छोड़ कर चला गया था.
उस दिन का ज़िकरा आते ही सब का गला रुंध गया…..सभी बहुत कुछ पूछना चाहते थे किंतु ज़ुबान साथ नही दे रही थी….उस दिन की याद आते ही श्री की आँखो से आँसू टॅप टॅप करते हुए टपकने लगे….उसका दर्द इस कदर बढ़ गया कि वो वहाँ अब और अधिक देर तक नही रुक सकी और रोते हुए अंदर भाग गयी.
आनंद (मन मे)—आदी तो उस दिन इंडिया मे आया हुआ था…? पर ये कह रहा है कि वो उस दिन लंडन मे था.....तो क्या मेरा आदि जिंदा है.... ? मुझे और भी पूछना होगा..
आनंद—उस दिन के पश्चात तुम्हे आदी कब मिलने आया था….?
गणपत राई—आदी साहब तो उस दिन के बाद मुझे तो नही मिले किंतु उनका एक आदमी मेरे साथ था जिसने पूरा इलाज़ का बंदोबस्त किया, उससे मिलने वो अगले दिन आए थे…..किसी हरामी ने मेरा भेष बना कर वहाँ के कर्नल स्मिथ की बेटी का बलात्कार कर दिया तो उसने मुझे जैल मे डलवा दिया था…तब भी ख़तरा ने ही मुझे जैल से बाहर निकलवाया
अजीत—क्या नाम है उस आदमी का…..?
गणपत—उसका नाम ख़तरा है…..उसने ही मुझे इंग्लेंड मे आपके घर का पता दिया था…..लेकिन मैं जब वहाँ गया तो एक पागल लड़की ने पत्थर मार मार के मुझे भगा दिया.
मेघा—कौन पागल लड़की…..?
आनंद—वो मारग्रेट होगी……आदी के जाने के कुछ दिनो बाद ही …..आदी को बहुत चाहती थी वो…..मारग्रेट इस गम को बर्दास्त नही कर पाई और वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठी और पागल हो गयी…..उसको इलाज़ के लिए पागल खाने मे रखना पड़ा लेकिन अक्सर वो वहाँ
से चोरी छुपे भाग आती है हमारे घर आदी को ढूँढते हुए.
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