hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
12-31-2020, 12:24 PM,
#51
RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
नंबर फाइव मुस्करा रहा था।
वह मुस्कराहट मौत की सिहरन बनकर तेजस्वी के संपूर्ण जिस्म में कौंधती चली गई।
उसका वह दिमाग जो शतरंजी चालें चलने में माहिर था इस वक्त कुंठित होकर रह गया था।
जुबान को जैसे लकवा मार गया था।
नंबर फाइव ने पुनः कहा—“चीफ को शक तो था कि तू घुटी हुई चीज है मगर जब उसे पता लगेगा पांच लाख के लालच में तूने फोन पर कमिश्‍नर से क्या-क्या डायलॉग बोले तो वह भी दंग रह जाएगा—और अब यह उगलवाना उसका काम है कि तूने काली बस्ती में जाकर थारूपल्ला की खाल उधेड़ने जैसा करिश्माई करतब कैसे कर दिखाया …?”
उपरोक्त शब्द सुनते ही तेजस्वी के जहन में बिजली-सी कौंधी।
बड़ी तेजी से एक विचार उठा—यह कि नंबर फाइव की ड्यूटी इस वक्त उसे अपने चीफ के सामने पेश करना है।
अर्थात … उसकी कोशिश मुझे जीवित रखना होगी।
और!
उसकी इस मजबूरी का लाभ उठाया जा सकता है।
तेजस्वी का शतरंजी दिमाग सक्रिय हो उठा था—अचानक उसने पल भर के लिए नंबर फाइव के पीछे मौजूद अपने ऑफिस के दरवाजे को देखा और हल्का-सा इशारा किया—ऐसी कोशिश के साथ जैसे इस इशारे पर नंबर फाइव की नजर न पड़ने देना चाहता हो—साथ ही पुनः अपनी नजरें नंबर फाइव के चेहरे पर गड़ाकर थोड़े उत्साह भरे स्वर में बोला—“तुम मुझे गलत समझ रहे हो दोस्त।”
वही हुआ जो तेजस्वी ने चाहा था।
उसने चाहा था, नंबर फाइव को अपने पीछे किसी की मौजूदगी का वहम हो जाए और यह सोचे कि मैं अनावश्यक रूप से उसे बातों में लगाना चाहता हूं—उस वक्त नंबर फाइव कनखियों से अपने पीछे देखने की कोशिश कर रहा था जब तेजस्वी ने पुनः एक व्यर्थ की बात कही—“मैं वैसा नहीं हूं जैसा तुम सोच रहे हो।”
नंबर फाइव को पूरा यकीन हो गया कि पीछे कोई है तथा तेजस्वी उसे व्यर्थ की बातों में उलझाने की चेष्टा कर रहा है अतः तेजी से पैंतरा बदलकर खुद को ऐसी पोजीशन में लाना चाहा जिससे एक साथ तेजस्वी और दरवाजे पर मौजूद शख्स को कवर कर सके—जबकि इसी क्षण का लाभ उठाकर तेजस्वी न केवल फर्श पर बैठ गया बल्कि होलेस्टर से रिवॉल्वर भी निकाल लिया।
‘धांय!’ गड़बड़ी की आशंका होते ही नंबर फाइव ने फायर झोंक दिया।
गोली कुर्सी की पुश्त में धंसी।
तेजस्वी इस वक्त मेज के नीचे था—बाएं हाथ के अंगूठे से वह बटन दबाया जिसके दबते ही थाने के प्रांगण में घंटी की आवाज गूंज उठी—हलचल तो रिवॉल्वर से निकली गोली ही मचा चुकी थी, घंटी की आवाज ने रही-सही कसर पूरी कर दी।
“तुम बच नहीं सकते इंस्पेक्टर!” बौखलाए हुए नंबर फाइव ने मेज में जोर से ठोकर मारी—“इसकी बैक से निकलकर खुद को मेरे हवाले कर दो, वरना यहां से तुम्हारी लाश उठेगी।”
तेजस्वी मेज के पायों को जकड़े बैठा रहा।
तभी भागते कदमों की आहट ऑफिस के गेट पर आकर रुकी, एक साथ कई स्वर उभरे—“क्या हुआ?”
तेजस्वी पहचान गया, आवाजें पुलिसियों की थीं।
नंबर फाइव की गुर्राहट उभरी—“एक भी हिला तो सबको गोली मार दूंगा—जो जहां है वहीं खड़ा रहे, मैं स्पेशल कमांडो दस्ते का एजेंट हूं और तुम्हारे इंस्पेक्टर को रिश्वत लेने के जुर्म में पकड़ चुका हूं।”
तेजस्वी समझ चुका था, फायर और घंटी की आवाज सुनकर पुलिसिए निहत्थे ही उसके ऑफिस की तरफ दौड़ पड़े होंगे और दरवाजे पर पहुंचते ही खुद को नंबर फाइव की रिवॉल्वर के निशाने पर पाकर हकबकाये खड़े होंगे।
“इंस्पेक्टर साब कहां हैं?” यह सवाल पांडूराम ने पूछा था।
तेजस्वी ने सोचा, अब नंबर फाइव उसके सवाल का जवाब देगा और उसके लिए ऐसा ही कोई मौका ‘स्वर्ण अवसर’ था, अतः उधर नंबर फाइव ने कहना चाहा—“वह मेज की बैक …।”
“धांय!”
तेजस्वी के रिवॉल्वर ने शोला उगला।
गोली नंबर फाइव की कनपटी में जा धंसी।
उसके मुंह से चीख निकली, रिवॉल्वर फर्श पर गिरा।
तेजस्वी द्वारा उसे किसी किस्म का अवसर दिए जाने का सवाल ही न था—पहली गोली की मार से उस वक्त नंबर फाइव शराबी की मानिन्द लड़खड़ा रहा था जब तेजस्वी ने खुद को पूरी तरह मेज की बैक से निकालकर निरंतर दो बार ट्रेगर दबाया—एक गोली पेट में धंसी, दूसरी सीने में।
कटे वृक्ष-सा गिरा वह!
और, अंतिम हिचकी के साथ ठण्डा पड़ गया।
तेजस्वी के हाथ में दबी रिवॉल्वर की नाल से धुआं निकल रहा था।
दरवाजे पर दो पुलिसिए और पांडुराम खड़े थे, इधर तेजस्वी—सभी हकबकाए थे और बीच में पड़ी थी नंबर फाइव की लाश—काफी देर तक वहां ब्लेड की-सी पैनी धार वाला सन्नाटा छाया रहा।
फिर!
एकाएक घनघना उठने वाली फोन की घंटी ने सबको उछाल दिया।
करीब आधे मिनट तक तो तेजस्वी सहित किसी को समझ में ही न आया कि किया क्या जाए—फोन की घंटी निरंतर घनघनाए जा रही थी और फिर, तेजस्वी फोन की तरफ इस तरह लपका जैसे अभी-अभी चेतना लौटी हो—रिसीवर उठाते ही बोला—“थाना प्रतापगढ़!”
“हम बोल रहे हैं तेजस्वी!” कमिश्‍नर की आवाज सुनते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए।
बुरी तरह बौखला उठा वह—“य …यस सर!”
“तुम ठीक तो हो?” सतर्क स्वर में पूछा गया।
पसीने-पसीने हुआ तेजस्वी बोला—“ज-जी हां, ठीक हूं—क्यों?”
“घबराए से लग रहे हो?”
“न-नहीं सर!” हकलाहट को काबू में रखने की भरसक चेष्टा के साथ कहा उसने—“म-मैं बिल्कुल ठीक हूं—हां, थोड़ा शर्मिंदा जरूर हूं—आप बार-बार फोन कर रहे हैं लेकिन क्या बताऊं सर, लुक्का साला हाथ ही नहीं …।”
“हमारा ख्याल है वह खुद थाने पहुंचेगा।”
“ज-जी?” तेजस्वी के हलक से चीख निकल गई।
“और तुमसे कहेगा—मैं हाजिर हूं, योगेश की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर लो मुझे।”
बौखला गया तेजस्वी—“म-मैं समझा नहीं सर!”
“समझोगे क्या खाक?” शांडियाल गुर्रा उठे—“हमने जितनी बार फोन किया, तुम्हें थाने में पाया—जाहिर है उसे तलाश करने तुम अभी तक नहीं निकले—ऐसे हालात में इसके अलावा क्या समझा जा सकता है कि तुम्हें उसके थाने में आकर खुद गिरफ्तारी देने की उम्मीद है?”
“नहीं सर, ऐसी बात नहीं है—एक टुकड़ी सब-इंस्पेक्टर के नेतृत्व में और दूसरी हवलदार पांडुराम के नेतृत्व में हर उस ठिकाने की खाक छानती फिर रही है जहां लुक्का मिल सकता है—मगर दुर्भाग्य से अभी तक उनमें से किसी को सफलता नहीं मिल पाई और मैं … मैं निकलने ही वाला था कि आपका फोन आ गया।”
“फिलहाल वहीं रहो।”
“क-क्यों सर?”
“हम आ रहे हैं!” इन शब्दों के साथ उधर से भले ही सामान्य अंदाज में रिसीवर रखा गया हो मगर तेजस्वी को ‘धमाके’ का स्वर सुनाई दिया—वह ‘धमाका’ रिसीवर के रखे जाने के कारण कम—शांडियाल के अंतिम शब्दों के कारण ज्यादा धमाकेदार था—कभी न घबराने वाले तेजस्वी को जब पांडुराम ने जूड़ी के मरीज की मानिन्द कांपते देखा तो बोला—“क्या हुआ सर?”
तेजस्वी की चेतना लौटी—रिसीवर को क्रेडिल पर फेंकने के साथ चीखा—“कमिश्‍नर पहुंचने वाला है पांडुराम—उसे यहां हुई घटना के बारे में पता नहीं लगना चाहिए—जल्दी कर, लाश यहां से हटा।”
“ल-लेकिन सर, ये है कौन?”
“डिटेल बाद में बताऊंगा—फिलहाल इतना समझ ले, अगर ये जिंदा रह जाता तो मुझे अकेले को नहीं बल्कि सारे थाने को, थाने पर तैनात चिड़िया तक को फांसी पर लटकवा देता—मदद कर मेरी, इसे खींचकर हवालात में डलवा—इसकी लाश तक की मौजूदगी हमारे लिए मौत का फंदा है।” कहने के साथ तेजस्वी ने झपटकर दोनों हाथ नंबर फाइव की लाश की बगलों में डाले और उसे हवालात की तरफ खींचने का प्रयास करने लगा—उधर, पांडुराम ने आगे बढ़कर लाश के पैर पकड़े।
तीनों जख्मों से खून भल्ल-भल्ल करके बह रहा था।
एक सिपाही ने कहा—“सारा ऑफिस खून में सन गया है साब, लाश हटा लें तब भी—यहां की हालत कमिश्‍नर साहब को सारी कहानी सुना …।”
“बकवास बंद कर भूतनी के, खून साफ कर।” तेजस्वी दहाड़ा—“चलो, दोनों लगो।”
दोनों बौखला गए, समझ नहीं पा रहे थे खून कैसे साफ होगा?
खून उगलती लाश को हवालात की तरफ ले जाते पांडुराम ने पूछा—“क्या सचमुच कमिश्‍नर साहब आने वाले हैं साब?”
“हां, वो उल्लू का पट्ठा अपने भतीजे के कातिल के लिए मरा जा रहा है।”
“वह यही तो है साब।”
“कौन?”
“कमिश्‍नर साहब के भतीजे का कातिल लुक्का।”
“तूने कैसे पहचाना?”
“मैंने लुक्का को थाने में दाखिल होता देखने के बावजूद यह सोचकर आंखें मूंद ली थीं कि शायद वह आपसे सौदेबाजी करने जा रहा है और मेज पर लम्बे बालों वाली विग तथा लुक्का के चेहरे का मास्क भी रखा है।”
“सोचा मैंने भी यही था—बात भी इस हरामी के पिल्ले ने सौदेबाजी की ही की, मेज पर पड़े दो लाख तूने देख लिए होंगे—मेरी ही मति मारी गई थी जो चक्कर में आ गया—पांच-पांच सौ के नोटों की चार गड्डियां देखकर मुझे सोचना चाहिए था, लुक्का जैसे टुच्चे बदमाश पर वे कैसे हो सकती हैं मगर लालच साला बुद्धि को काम कहां करने देता है—इधर मैंने सौदा कुबूल किया उधर हरामजादे ने विग और फेसमास्क उतारकर कहा ‘मैं स्पेशल कमांडो दस्ते का एजेंट नंबर फाइव हूं और रिश्वत लेने के जुर्म में तुम्हें गिरफ्तार करता हूं’, मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई—तू ही सोच पांडुराम, इसे लाश में तब्दील कर देने के अलावा रास्ता क्या था?” कहने के साथ उसने लाश हवालात में पटक दी।
नंबर फाइव की टांगें छोड़कर सीधा खड़ा होता हुआ पांडुराम बोला—“लेकिन साब, अगर कमिश्‍नर साब आ रहे हैं तो यहां हुई वारदात उनसे छुपाई नहीं जा सकेगी।”
“आ तो वो हरामी का पिल्ला रहा ही है।” इन शब्दों के साथ तेजस्वी हवालात से पुनः अपने ऑफिस की तरफ लपका—“उसके आने से पहले यहां इतनी सफाई करनी होगी कि …।”
“नहीं हो सकेगी साब!” उसके साथ दौड़ते पांडुराम ने कहा—“जरा देखिए तो सही, ऑफिस से लेकर हवालात तक सारा फर्श खून से सना पड़ा है, उन्हें पुलिस ऑफिस से यहां पहुंचने में पंद्रह मिनट से ज्यादा न लगेंगे।”
“तो क्या करें?”
पांडुराम ने राय दी—“उन्हें यहां आने से रोकने का प्रयास।”
तेजस्वी को बात जंची बल्कि आश्चर्य हुआ कि यह छोटी-सी बात उसके दिमाग में क्यों नहीं आई—दोनों पुलिसिए दो कपड़े लिए फर्श पर फैले खून को साफ करने का असफल प्रयास कर रहे थे, तेजस्वी ने कहा—“जल्दी करो हरामजादो—और सफाई से करना, खून का एक कतरा भी कहीं नजर आ गया तो खाल में भूसा भर दूंगा।”
सिपाही जुटे पड़े थे परंतु खून ऐसी चीज नहीं होती जिसके प्रत्येक धब्बे को आनन-फानन में मिटाया जा सके—तेजस्वी ने आगे बढ़कर कमिश्‍नर का नंबर डॉयल किया, अपनी अंगुलियां उसे बुरी तरह कांपती नजर आईं—फिर भी, रिंग चली गई—दूसरी तरफ से रिसीवर उठाया जाते ही उसने कहा—“इंस्पेक्टर तेजस्वी बोल रहा हूं, कमिश्‍नर साहब से बात कराओ—जल्दी!”
“वे आपके थाने के लिए निकल चुके हैं।”
“क-क्या?” हलक से स्वतः चीख उबल पड़ी—“कब?”
“मुश्किल से दो मिनट हुए हैं।”
तेजस्वी ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया, सम्पूर्ण जिस्म के मसाम रह-रहकर पसीना उगल रहे थे और यही वक्त था जब पांडुराम ने सवाल किया—“क्या हुआ साब?”
“वो हरामी का पिल्ला निकल चुका है।”
पांडुराम को अपने हाथ-पैर ठण्डे पड़ते से लगे, बोला—“अब क्या होगा साब?”
“उसे रोकना होगा पांडुराम—जैसे भी हो उसे रोकना होगा, अगर वह यहां पहुंच गया और ऑफिस की हालत देख ली तो … तो हमारे पास उसे ठिकाने लगाने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाएगा।”
खून साफ करते पुलिसियों के हाथ रुक गए, तेजस्वी के शब्दों ने उनके छक्के छुड़ा दिए थे।
बुरी तरह चकरा चुके पांडुराम के मुंह से निकला—“क-क्या बात कर रहे हैं साब, उन्हें ठिकाने लगाकर भला हम कैसे बच सकते हैं—वायरलैस के जरिए यहां के लिए उनकी रवानगी की जानकारी पूरे विभाग को होगी और यहां पहुंचने के बाद अगर वो हमेशा के लिए गायब हो गए तो …।”
“व-वायरलेस!” तेजस्वी उछल पड़ा—“वायरलेस ही अब एकमात्र ऐसा हथकण्डा है जिसके जरिये उस भूतनी वाले को यहां पहुंचने से रोका जा सकता है।”
“कैसे साब?”
“गुड!” अचानक तेजस्वी चुटकी बजा उठा, अंदाज ऐसा था जैसे हल सोच लिया हो, बोला—“वायरलैस जीप में है और जीप प्रांगण में खड़ी है—मैं उस पर कमिश्‍नर के लिए मैसेज प्रसारित करता हूं कि मुझे अभी-अभी लुक्का के रेलवे-स्टेशन पर होने और प्रतापगढ़ से भागने की कोशिश करने की सूचना मिली है—अतः मैं स्टेशन की तरफ बढ़ रहा हूं, वे भी वहीं पहुंचें।”
“ओ.के. सर, यही ठीक रहेगा।”
“तू एक सिपाही के साथ यहां रह—ऑफिस और हवालात की सफाई करने की चेष्टा कर, दूसरे सिपाही को मैं साथ लिए जाता हूं—कमिश्‍नर को यहां नहीं पहुंचने दूंगा ये मेरी गारंटी रही।”
घबराए हुए पांडुराम ने कहा—“कोई और भी तो आ सकता है साब!”
“मैं ऑफिस का दरवाजा बंद करके बाहर ताला लटका देता हूं।”
“क्या ये अजीब स्थिति नहीं होगी—सारे थाने में केवल हम दो और वो भी ताले में बंद—उसके अलावा सारा थाना खाली … कोई पब्लिक का आदमी आ सकता है, लुक्का की तलाश में गए हमारे साथी लौट सकते हैं।”
“उफ्फ … तू तो नई-नई समस्याएं खड़ी करके टाइम बरबाद कर रहा है पांडुराम।” उत्तेजना के कारण तेजस्वी झुंझला उठा—“तो ऐसा करते हैं—एक सिपाही मेरे साथ जाएगा, दूसरा थाने के मुख्य द्वार पर पहरा देगा—तू यहां ताले में बंद रहकर सफाई करने की कोशिश कर।”
“अ-अकेला?” पांडुराम के होश फाख्ता हो गए।
“क्यों … क्या नंबर फाइव की लाश हवालात से बाहर आकर तेरा गला दबा देगी?”
“मैं अकेला यहां बंद रहकर कर ही क्या सकूंगा साब—मेरे ख्याल से इस वक्त हमें यहां की सफाई के झंझट में न पड़कर इस कोशिश में लगना चाहिए कि कोई भी शख्स किसी कीमत पर आपके ऑफिस में न पहुंच सके—एक बार ये खतरा टल जाए, उसके बाद आराम से सफाई होगी—थाना हमारा है, हम यहां के मालिक हैं—कौन रोकेगा हमें?”
“ये भी ठीक है …।”
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12-31-2020, 12:24 PM,
#52
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“ऑफिस के दरवाजे पर ताला लटकाकर चाबी अपनी जेब में डाल लीजिए।”
“तू ताला लगा—मैं वायरलैस पर मैसेज देता हूं।” तेजस्वी ने एक सिपाही से कहा—“तू मेरे साथ आ बे!”
सिपाही फौरन खड़ा हो गया।
“ऐसे ही चलेगा क्या?” तेजस्वी उसके खून से सने हाथ देखकर झुंझलाया—“इन्हें धोकर आ!”
“खून तो आपके जूतों पर भी लगा है सर।”
तेजस्वी ने बौखलाकर जूतों पर नजर डाली और दोनों जूतों की नोक पर लगे खून को देखकर अपने बाल नोच डालने को जी चाहा—जहां एक-एक सेकेंड भारी हो रहा था वहां एक के बाद दूसरी समस्या मुंह बाए खड़ी नजर आ रही थी—घबराकर उसने जूते उतारे, बोला—“जा—अपने हाथ और जूते धोकर जीप के पास पहुंच।”
चारों गड्डियां, विग और लुक्का का फेसमास्क तथा रिवॉल्वर जेब के हवाले करने के साथ वह ऑफिस के दरवाजे से बाहर निकलता हुआ चीखा—“ताला लगाकर चाबी मेरे पास ले आ पांडुराम।”
पैरों में केवल जुराब डाले आंधी-तूफान की तरह जीप के नजदीक पहुंचा और उखड़ी सांसों के साथ वह मैसेज प्रसारित करने में जुट गया जो कमिश्‍नर की दिशा रेलवे स्टेशन की तरफ मोड़ देने वाला था—मैसेज दे चुकने के बाद उसने राहत की आधी सांस ही ली थी कि सिपाही अपने हाथ और उसके जूते धोकर दौड़ता हुआ नजदीक आया—जूतों से पानी चूता देखकर तेजस्वी ने माथा पीट लिया, पट्ठा जूतों की नोक धोने की जगह उन्हें स्नान करा लाया था।
प्लेटफार्म पर कदम रखते ही तेजस्वी की नजर चार गंजों पर पड़ी।
माथा ठनका।
बल्कि यह कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा कि दिलोदिमाग को ऐसा झटका लगा जैसा अचानक चार शेरों से घिर जाने पर बकरी को लगता होगा।
भीड़ को चीरते हुए वे उसकी तरफ बढ़े।
तेजस्वी के मसामों ने एक साथ ढेर सारा पसीना उगल दिया।
नियंत्रित रखने की लाख चेष्टाओं के बावजूद दिमाग पर घबराहट काबिज होती चली गई— उनकी ‘एक्स-रे’ कर डालने वाली नजरों से बचने की खातिर तेजस्वी ने ऐसा प्रदर्शित किया जैसे उन्हें देखा ही न हो और उनकी तरफ पीठ करके प्लेटफार्म पर मौजूद भीड़ का निरीक्षण करने का अभिनय करने लगा।
ऐसा दृश्य था जैसे समूचे प्रदेश की पुलिस प्रतापगढ़ स्टेशन पर सिमट आई हो—चप्पे-चप्पे पर पुलिसिए तैनात थे और हर व्यक्ति को इस तरह घूर रहे थे जैसे वही लुक्का हो—इधर केन्द्रीय कमांडो दस्ते के चारों गंजे उसके नजदीक पहुंचने वाले थे, उधर तेजस्वी की नजर कमिश्‍नर पर पड़ी।
गंजों के कहर से बचने के लिए उसने शांडियाल के नजदीक पहुंचकर जोरदार सैल्यूट मारा।
“आ गये तुम?” शांडियाल के स्वर में व्यंग्य था।
तेजस्वी ने पूछा—“नजर आया सर?”
“एक-एक आदमी को चैक किया जा रहा है, लुक्का नजर नहीं आ रहा।”
तेजस्वी ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला मगर उससे कोई आवाज निकलने से पहले ही एक हाथ ने उसके कंधे को स्पर्श किया—तेजस्वी को एहसास था कि ये हाथ चार गंजों में से किसी एक का है और मात्र इस एहसास के कारण ही संपूर्ण जिस्म में चार सौ चालीस वोल्ट का करेंट दौड़ गया।
“हैलो इंस्पेक्टर!” इन शब्दों के साथ पहले एक गंजा सामने आया, उसके बाद बाकी तीनों भी सामने आ गये—तेजस्वी ने अपने चेहरे पर हैरत के समुचित भाव उत्पन्न करने के साथ पूछा—“आप लोग यहां?”
“क्यों?” एक ने धमाका किया—“क्या कुछ देर पहले तुमने हमें नहीं देखा था?”
“न-नहीं तो!” तेजस्वी का दिल उसकी पसलियों से सिर टकराने लगा।
“कमाल है!” दूसरा बोला—“हमें तो ऐसा ही लगा जैसे देखने के बावजूद हमें पहचाने न हो?”
तेजस्वी ने हंसने के प्रयत्न में अपनी बौखलाहट छुपानी चाही—“आप लोगों का हुलिया ही ऐसा होता है कि एक बार देखने के बाद कोई भूल नहीं सकता।”
“यही तो हम सोच रहे थे।” तीसरे ने कहा—“कि तुम हमें भूल कैसे गए?”
“असल में मेरी नजरें लुक्का को ढूंढ रही थीं।”
“फिर भी, कमिश्‍नर साहब को तुरंत देख लिया तुमने।” चौथा उसे घूर रहा था—“हम लोग लगभग कमिश्‍नर साहब के साथ ही यहां पहुंचे हैं—पांच मिनट हो गए, मगर लुक्का नजर नहीं आया।”
“क्या आप लोग भी उसी की तलाश कर रहे हैं?”
“हां!”
“क्यों?”
“क्यों से मतलब?”
“म-मेरा मतलब ये पुलिस का काम है।” तेजस्वी हड़बड़ा गया—“योगेश का मर्डर और लुक्का की तलाश आप लोगों के स्टैण्डर्ड से बहुत नीचे की बात है।”
“ये बात ट्रेनिंग के दरम्यान हमें घुट्टी की तरह पिलाई जाती है इंस्पेक्टर कि जहां रहो वहां घटने वाली छोटी-से-छोटी घटना से जुड़े रहो, क्योंकि छोटी-छोटी घटनाओं के सूत्र ही अंततः बड़ी वारदात से जाकर मिलते हैं।”
“हमारे ख्याल से तुम्हारी मिली इन्फॉरमेशन गलत थी तेजस्वी!” बेचैन नजर आ रहे शांडियाल ने कहा—“न लुक्का यहां है, न ही था।”
नंबर टू ने सीधे तेजस्वी से पूछा—“ये खबर तुम्हें दी किसने थी?”
तेजस्वी संभला—उसे मालूम था, जवाब देने में हुई हल्की सी चूक बवाले जान बन जाएगी—ये गंजे इतने काइयां हैं कि जरा-सा शक होने पर उसके मुंह से निकले हर शब्द की पुष्टि करने पर जुट जाएंगे, अतः मुंह से वे शब्द निकालने चाहिएं जिनकी पुष्टि न हो सके, बोला—“फोन पर सूचना मिली थी मुझे!”
“फोन पर?” नंबर थ्री उछल पड़ा—“किसका फोन था?”
“उसने अपना परिचय नहीं दिया—मैंने पूछा तो यह कहकर संबंध विच्छेद कर दिया कि आम खाओ इंस्पेक्टर, पेड़ गिनने से क्या लाभ?”
“और तुम आम खाने निकल पड़े?” नंबर फोर ने व्यंग्य किया।
नंबर दो बोला—“साथ ही वायरलेस पर ढिंढोरा पीट दिया ताकि सारा पुलिस विभाग आम खाने आ जुटे!”
“तुम्हें हो क्या गया है तेजस्वी?” शांडियाल झुंझला उठे—“एक अज्ञात व्यक्ति के फोन के बूते पर तुम यह मान कैसे बैठे कि लुक्का यहां होगा?”
“समझने की कोशिश कीजिए सर, ऐसे मौकों पर अज्ञात लोगों के फोन कई बार कारगर सिद्ध हो जाते हैं—ऐसा काम उस शख्स के दुश्मनों में से कोई करता है जिसे पुलिस तलाश कर रही हो और चाहता है कि उसका नाम भी ओपन न हो।”
“मेरे ख्याल से फोन झूठा था!” नंबर वन ने कहा।
“क्या मतलब?”
“लुक्का का यहां न मिलना अपने आप फोन को झूठा प्रमाणित कर देता है।”
“मैं नहीं मानता।” तेजस्वी तिलमिला उठा—“मुमकिन है लुक्का यहीं हो मगर हमें मिल न पा रहा हो या हम लोगों के पहुंचने से पहले रफूचक्कर हो गया हो—मेरा मतलब, उसके न मिलने से एकमात्र यही बात सिद्ध नहीं होती कि फोन झूठा था—कुछ और भी हो सकता है, कुछ भी—क्या ऐसे वाकये नहीं होते कि वांछित व्यक्ति वहीं कहीं छुपा होता है जहां तलाश किया जा रहा हो लेकिन मिल नहीं पाता?”
“यानि तुम्हें विश्वास है, फोन पर दी गई सूचना सही थी?”
“ऐसा कब कहा मैंने?” तेजस्वी अड़ गया—“मुमकिन है आप लोगों की धारणा सच हो, मगर अभी यह केवल धारणा है, प्रमाणित नहीं हो गया है।”
“तो प्रमाणित कब होगा?”
“जब लुक्का पकड़ा जाएगा—खुद बताएगा कि जब हम स्टेशन पर उसे तलाश कर रहे थे, तब वह कहां था?”
“तो तुम उसे तलाश करना चाहते हो?”
“कोशिश करना मेरी ड्यूटी है और फिर, अभी तो यहां पहुंचा हूं—आप लोगों ने अपनी बातों में उलझा लिया …।”
“इंस्पेक्टर साहब ठीक कह रहे हैं भाई।” नंबर फोर ने कहा—“इन बेचारों को अभी मौका ही कहां मिला है! जाइए इंस्पेक्टर साहब—सारा स्टेशन छान मारिए, शायद लुक्का आप ही का इंतजार कर रहा हो!”
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12-31-2020, 12:24 PM,
#53
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तेजस्वी के जहन पर इस वक्त खौफ नहीं बल्कि प्रतिद्वन्द्विता की भावना सवार थी।
झुंझलाया हुआ था वह, खुद को गंजों से श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहता था।
और!
ऐसा करने का एक हथकंडा उसकी जेब में था।
वही उसने किया!
इस वक्त थाने से आया एक पुलिसिया उसके साथ था।
पटरियों पर खड़ी एक खाली ट्रेन के टॉयलेट कर दरवाजा खोलकर तेजस्वी ने जेब से विग और फेसमास्क निकाला, बाथरूम के फर्श पर डाला और दरवाजा वापस बंद कर दिया।
सिपाही भौंचक्का रह गया, बोला—“ये आपने क्या किया साब?”
“खामोश रहकर तमाशा देखता रह और याद रख, इस कम्पार्टमेंट में हमने कभी कदम नहीं रखा।” कहने के साथ सिपाही को लगभग खींचता हुआ वह प्लेटफॉर्म पर आ गया—कुछ देर अन्य पुलिस वालों की तरह लुक्का की तलाश में भटकता रहा और तब, जब घूम-घामकर वापस कमिश्‍नर और केन्द्रीय कमांडो दस्ते के गंजों के नजदीक पहुंचा, एक गंजे ने व्यंग्यपूर्वक पूछा—“मिला?”
तेजस्वी ने निराशाजनक मुद्रा में गर्दन हिला दी।
गंजे यूं मुस्कुराए जैसे परिणाम के बारे में पहले से जानते हों।
“शायद आप लोगों का अनुमान सही है!” तेजस्वी ने हथियार डाल दिए—“वाकई किसी ने झूठा फोन करके मुझे बेवकूफ बनाया है और मैं बन गया।”
कोई कुछ नहीं बोला।
अंततः शांडियाल ने कहा—“एनाउन्स करा दो, पुलिस वाले सर्च बंद कर दें।”
तेजस्वी ने एक सब-इंस्पेक्टर को एनाउन्समेंट केन्द्र भेज दिया।
उस वक्त स्टेशन पर एनाउन्समेंट गूंज रहा था जब स्टेशन मास्टर लगभग दौड़ता हुआ उनके नजदीक पहुंचा और उखड़ी सांसों को नियंत्रित करने के प्रयास में हांफता हुआ बोला—“य-ये देखिए साहब, ये क्या है?”
उसके हाथ में विग और फेसमास्क देखकर चारों गंजे उछल पड़े।
शांडियाल भी चौंका।
और!
उस वक्त गंजे सवालिया नजरों से एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे जब बुरी तरह चौंक पड़ने की लाजवाब एक्टिंग करते तेजस्वी ने स्टेशन मास्टर के हाथ से विग और फेसमास्क लगभग झपट लिए—फेसमास्क को हवा में लहराता कह उठा वह—“अरे, ये-ये तो लुक्का … मगर … ये कैसे हो सकता है?”
“ल-लुक्का?” शांडियाल की खोपड़ी घूम गई—“लुक्का का फेसमास्क?”
“और वैसी ही विग जैसे वह बाल रखता था।” इस बार तेजस्वी ने विग हवा में लहरा दी।
शांडियाल की खोपड़ी में कुछ नहीं घुस रहा था, बड़बड़ा कर रह गए—“य-ये क्या मामला है?”
“क्या आप लोगों की समझ में कुछ आ रहा है?” तेजस्वी ने हैरान परेशान गंजों से पूछा—“लुक्का आदमी था या बहरूपिया, एक जीते-जागते आदमी की जगह उसके बाल मिल रहे हैं—चेहरा मिल रहा है, चक्कर क्या है ये?”
नंबर वन ने स्टेशन मास्टर से पूछा—“ये दोनों चीजें तुम्हें कहां से मिलीं?”
“पटरियों पर खड़ी एक खाली ट्रेन के टॉयलेट से सफाई कर्मचारी को मिली हैं—वह मेरे पास ले आया।”
स्टेशन पर हलचल मच गई थी—सफाई कर्मचारी को बुलाया गया, ढेरों सवाल किए गए—वह उन्हें उस टॉयलेट में ले गया जहां से विग और फेसमास्क मिला था। मगर नतीजा न कुछ निकलना था—न निकला—रह-रहकर एक-दूसरे से आंख मिला रहे गंजे जैसे पूछ रहे थे—‘क्या तुम्हारी समझ में कुछ आया?’
अंततः तेजस्वी ने कहा—“मेरे ख्याल में अब लुक्का हमें कभी नहीं मिलेगा।”
“क्यों?” नंबर फोर ने पूछा।
“लुक्का के रूप में जिस चेहरे को हम जानते थे, वह मिल गया है।”
“फिर?”
“फिर क्या?” तेजस्वी ने उनकी तरफ हिकारत भरी नजरों से देखा—“क्या इन दोनों चीजों को देखने के बावजूद इतनी सी बात तुम लोगों के भेजे में नहीं घुसी कि लुक्का कोई छोटा-मोटा गुण्डा नहीं बल्कि बहुत पहुंची हुई चीज था—ऐसी, जिसकी वास्तविक शक्ल तक से हम लोग वाकिफ नहीं हैं।”
“हम समझे नहीं इंस्पेक्टर, तुम कहना क्या चाहते हो?”
“या तो तुम लोग समझकर भी अनजान बन रहे हो या निरे बेवकूफ हो।” तेजस्वी ने गिन-गिनकर बदला लेना शुरू कर दिया—“इन दोनों चीजों की बरामदगी अपने आप चीख-चीखकर कह रही है कि दुनिया में उस शक्ल का कभी कोई आदमी था ही नहीं जिस शक्ल के आदमी को हम लुक्का कहते और समझते रहे—वह कोई और था जिसने इस शक्ल और विग की मदद से खुद को प्रतापगढ़ में लुक्का के नाम से मशहूर किया और जिसने ऐसा किया, जाहिर है कोई बहुत बड़ा खिलाड़ी रहा होगा—बड़े खिलाड़ी के मकसद भी बड़े होते हैं, वैसे भी—कोई किसी छोटे मकसद के लिए इतना बड़ा खेल नहीं खेलेगा कि खुद को किसी क्षेत्र विशेष में नकली चेहरे और नकली नाम से स्थापित कर ले—यह तो ऊपरवाला जाने कि वह कौन था, क्या खेल खेल रहा था या उसका क्या उद्देश्य था? मगर यह तय है, जब उसने देखा कि लुक्का बना रहकर पुलिस के चंगुल से बच नहीं पाएगा तो इस नकली परिचय से मुक्ति पा ली और अब … अब वह हमारी अगल-बगल में ही खड़ा हो तो हम उसे पहचान नहीं सकते।”
शांडियाल हैरान था जबकि चारों गंजे दिल ही दिल में कुबूल कर चुके थे कि तेजस्वी सारे मामले को ठीक-ठीक समझ रहा है—उसके दिमाग की दाद भी दे रहे थे जबकि खुलकर उनमें से एक ने इतना ही कहा—“लगता है, तुम ठीक कह रहे हो इंस्पेक्टर—वाकई, लुक्का एक काल्पनिक पात्र था जिसमें लोग उलझे रहे।”
“मेरा ख्याल है, अब यह बात आपकी समझ में आ गई होगी कि फोन झूठा नहीं था—न मैं भ्रमित हुआ—ना ही पुलिस विभाग—फोनकर्त्ता जो भी था, उसने स्टेशन पर लुक्का को देखा था और उसके बाद, लुक्का उसके लिए भी गधे के सींग की तरह गायब हो गया होगा।”
“अब ये सारी बातें शीशे की तरह साफ हैं।” नंबर एक को कहना पड़ा—“स्वीकार करते हैं इंस्पेक्टर, हम गलत थे और तुम सही—तुम पर किए गए कटाक्षों का हमें अफसोस है।”
तेजस्वी के सीने में धधक रही आग को ठंडक मिली।
“इन दोनों चीजों की बरामदगी के बाद जहां पेचीदगी बढ़ गई है वहीं मामला पहले से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है तेजस्वी!” कमिश्‍नर साहब गंभीर स्वर में कहते चले गए—“अब तक जहां लुक्का की तलाश हमें केवल योगेश हत्याकाण्ड का रहस्य खोलने जैसे छोटे उद्देश्य के लिए करनी थी वहीं, अब वे सारे सवाल हमारे सामने मुंह बाये खड़े हैं जो तुमने उठाए—लुक्का बना हुआ ये शख्स कौन था—क्या उद्देश्य था उसका—अपने उद्देश्य को पूरा कर चुका अथवा योगेश की हत्या के कारण मजबूरीवश समय से पहले लुक्का वाला बहरूप त्यागना पड़ा—इन सब सवालों के जवाब ज्यादा महत्त्वपूर्ण इसलिए हैं क्योंकि वे जवाब प्रतापगढ़ में रचे जा रहे किसी बड़े षड्यंत्र का पर्दाफाश कर सकते हैं।”
“मैं सहमत हूं सर, मगर क्योंकि हमारे पास यह पता लगाने का कोई जरिया नहीं है कि ये विग और चेहरा किसके सिर और चेहरे पर फिक्स था, अतः आगे बढ़ने के लिए एकमात्र साधन योगेश के जीवन की छानबीन रह जाती है।”
“मतलब?”
“वह जो भी है, लुक्का के रूप में योगेश के सम्पर्क में था—योगेश का मर्डर किया है उसने—जाहिर है, कोई कारण रहा होगा—मुमकिन है वह कारण कहीं जाकर लुक्का बने व्यक्ति के कथित बड़े उद्देश्य से जुड़ता हो—योगेश हत्याकाण्ड का कारण जानने के लिए हमें उसकी जिंदगी में झांकना पड़ेगा—वह सचमुच स्मैक लेता था या नहीं—लेता था तो सप्लायर कौन था और बदले में योगेश से क्या चाहता था आदि, आदि।”
“चाहे जो करो तेजस्वी, चाहे जिसकी जिंदगी खंगालो—मगर हम इस रहस्य पर से पर्दा उठा देखना चाहते हैं।”
“आप न कहते तब भी मैं पूरा प्रयास करता सर।” तेजस्वी अपना सिक्का जमाने का कोई अवसर चूकना नहीं चाहता था—“आखिर ये मेरे थाना-क्षेत्र का मामला है, रहस्यों पर से पर्दा हटाना मेरी ड्यूटी है।”
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ट्रांसमीटर पर ठक्कर का गंभीर स्वर उभरा—“उसके बाद क्या हुआ?”
“हम लोग अपने ठिकाने पर लौट आए सर।” नंबर वन ने बताया—“इस आशा के साथ कि शायद नंबर फाइव इस बीच यहां पहुंच गया हो।”
“मगर वह नहीं पहुंचा?”
“तभी तो चिंतित होकर आपसे संपर्क स्थापित किया है।”
“हमारे ख्याल से अब वह कभी किसी को नजर नहीं आएगा नंबर वन।”
“ज-जी!” नंबर वन के हलक से चीख निकल गई—“क-क्या मतलब?”
“जो कुछ तुमने बताया, उससे स्पष्ट ध्वनित होता है कि नंबर फाइव अब इस दुनिया में नहीं है।”
“स-सर …।”
“अगर उसका उद्देश्य पुलिस से पीछे छुड़ाना था तो विग और फेसमास्क को जेब में डाल लेना काफी था—उन दोनों चीजों को ट्रेन के टॉयलेट में डालने की क्या जरूरत थी उसे?”
नंबर वन की जुबान तालू से जा चिपकी, कुछ कहते न बन पड़ा उस पर।
“हमें दुःख है नंबर वन—हालात की भाषा समझने में तुम अभी तक सक्षम नहीं हुए हो—परिस्थितियां चीख-चीखकर बता रही हैं—विग और फेसमास्क टॉयलेट में नंबर फाइव ने नहीं फेंके—ऐसा करने की उसे जरूरत ही नहीं थी—वह इतना ‘कूढ़मगज’ नहीं था, समझता होता कि अगर वे दोनों चीजें उसने टॉयलेट में छोड़ीं तो उनकी बरामदगी पुलिस को बता देगी कि लुक्का एक काल्पनिक व्यक्ति था और फिर उसकी तलाश शुरू हो जाएगी जो लुक्का बना—दोनों चीजों को अपनी जेब के हवाले करने में फायदा था ताकि पुलिस सदियों तक लुक्का को ढूंढती रहे।”
“तो क्या विग और फेसमास्क टॉयलेट में किसी और ने डाले?”
“हालात यही कह रहे हैं।”
“तब तो स्पष्ट है सर, उसका भेद किसी पर खुल गया होगा।”
“अब तुम्हारा जहन थोड़ा-थोड़ा सक्रिय हुआ है।”
“सवाल उठता है, किस पर—वह कौन है जिसने वे दोनों चीजें टॉयलेट में डालीं?”
“दो व्यक्तियों में से एक है—ट्रिपल जैड या इंस्पेक्टर तेजस्वी।”
“ज-जी?”
“ट्रिपल जैड का नंबर सैकिंड है, फस्र्ट नंबर पर तेजस्वी को रखा जाए तो गलत न होगा।”
“मैं समझा नहीं सर?”
“उसे दो काम सौंपे गए थे—ट्रिपल जैड का ठिकाना मालूम करना और इंस्पेक्टर को परखना—अगर वह योगेश को मारने से पूर्व ट्रिपल जैड का ठिकाना मालूम कर चुका था तो निश्चित रूप से वहां जाकर उससे भिड़ गया होगा, टॉयलेट से बरामद विग और फेसमास्क उनके टकराव का परिणाम बता रहे हैं।”
“यानि ट्रिपल जैड ने उसे …।”
“अगर वह ट्रिपल जैड का पता उगलवाए बगैर योगेश को खत्म करने की मूर्खता कर बैठा था तो तुरंत ही यह एहसास हो गया होगा कि इस गलती के लिए हम उसे क्षमा नहीं करेंगे—संभव है, अपनी इस मूर्खता पर पर्दा डालने के लिए इंस्पेक्टर को परखने पहुंच गया हो—वहां कोई गड़बड़ हुई हो।”
“इंस्पेक्टर को फस्र्ट और ट्रिपल जैड को सैकिंड नंबर पर किन कारणों से रखा जाए सर?”
“तुमने बताया—प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक लुक्का ने योगेश की टांगों पर गोली चलाई थी जो अचानक उसके बैठ जाने के कारण सिर में लगी—इससे लगता है नंबर फाइव की मंशा उसे मार डालने की न थी यानि तब तक वह योगेश से ट्रिपल जैड का ठिकाना नहीं उगलवा पाया था—अगर यह सच है तो वह ट्रिपल जैड से नहीं बल्कि इंस्पेक्टर से भिड़ा होगा—उधर, तुम्हारे मुताबिक स्टेशन पर इंस्पेक्टर और तुम लोगों के बीच इस बात को लेकर अच्छी-खासी झड़प हो गई थी कि लुक्का स्टेशन पर पहुंचा था या नहीं—यहां तक कि इंस्पेक्टर खीझ उठा था और फिर, वह स्वयं स्टेशन का एक चक्कर लगाकर आया—बाद में विग और फेसमास्क मिले, संभव है ये हरकत उसने खुद को तुम लोगों से श्रेष्ठ साबित करने के लिए की हो।”
“अब हमारे लिए क्या हुक्म है?”
“इंस्पेक्टर को अच्छी तरह टटोलो बल्कि हाथ धोकर पीछे पड़ जाओ उसके—लुक्का का रहस्य भी खोलना पड़े तो कोई गम नहीं—हालांकि हम यहां वी.आई.पी. की सुरक्षा व्यवस्था में व्यस्त हैं मगर मौका मिलते ही वहां आएंगे—चिरंजीव कुमार के दौरे से पहले प्रतापगढ़ में सब कुछ ठीक करना होगा।”
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12-31-2020, 12:24 PM,
#54
RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“आप प्रदेश के सबसे योग्य शल्य चिकित्सक हैं डॉक्टर साहब।” देशराज ने सफेद बालों वाले अधेड़ व्यक्ति से कहा—“केवल इसलिए आपको कष्ट दिया।”
डॉक्टर शुक्ला अपनी नाक पर थोड़ा नीचे सरक आया मोटे लैंसों का चश्मा दुरुस्त करता हुआ बोला—“आपके तो अभी मैं नाम से भी परिचित नहीं हूं जनाब, कमिश्‍नर साहब ने अनुरोध किया और मुझे आना पड़ा।”
“इसका नाम देशराज है डॉक्टर साहब!” शांडियाल ने कहा—“इसे एक ऐसे मिशन पर जाना है जिसकी कामयाबी और नाकामयाबी हमारे मुल्क का भाग्य निर्धारित करेगी।”
“ये विषय आप पुलिस वालों के लिए है—मेरा काम है, इलाज करना—और यहां मुझे कोई मरीज नजर नहीं आ रहा।” डॉक्टर शुक्ला कहता चला गया—“आपने फोन पर कहा था मैं वे औजार लेता आऊं जो आमतौर पर ऑपरेशन में काम आते हैं—सोचा, शायद किसी वी.आई.पी. के ऑपरेशन का मामला है—आपके पुलिसियों द्वारा जिस ढंग से मुझे कोठी के इस बेसमेंट में मुझे पहुंचाया गया है वह इतना रहस्यमय था कि मैं ये सोचने पर विवश हो गया—आखिर मामला क्या है?”
“हम ज्यादा लोगों को यह पता नहीं लगने देना चाहते कि देशराज किसी मिशन पर रवाना होने वाला है …।” शांडियाल ने समझाया—“जिन पुलिस वालों ने आपको वहां पहुंचाया है, उन तक को यहां चल रहे चक्कर के बारे में कुछ मालूम नहीं है।”
“लेकिन इनकी अपनी उपयोगिता अभी तक मेरी समझ में नहीं आई।”
“बोलो देशराज, डॉक्टर साहब को बताओ, इन्हें क्या करना है?”
डॉक्टर शुक्ला ने देशराज की तरफ देखा।
देशराज ने जेब से एक लिफाफा निकाला—उसमें से बहुत सारे कलर्ड और ब्लैक एण्ड व्हाइट फोटो निकालकर मेज पर सजा दिए—वे सभी फोटो जुंगजू के थे, बोला—“क्या आप इसे पहचानते हैं?”
“नहीं।”
“यह देश का दुश्मन है और मुझे ‘यह’ बनकर इसके साथियों के बीच जाना है।”
“इसमें मैं क्या कर सकता हूं?”
“आपको मुझे ‘ये’ बनाना है।”
शुक्ला ने बहुत ध्यान से देशराज के चेहरे और फिर जुंगजू के फोटुओं को देखा—होंठों पर ऐसी मुस्कान उभरी—जैसे बुजुर्ग बच्चे की बचकानी बात सुनकर मुस्कराया हो, बोला—“क्या यहां किसी फिल्म की शूटिंग चल रही है?”
“मैं समझा नहीं डॉक्टर साहब …।”
“जो तुमने कहा वह केवल फिल्मों में मुमकिन है बरखुरदार।” कहने के बाद वह कमिश्‍नर से मुखातिब हुआ—“आपको मेरे टाइम की कीमत मालूम है शांडियाल साहब—मुझे उम्मीद नहीं थी आप उसे इस तरह जाया करेंगे।”
“मेरा कहना भी यही था बल्कि है कि जो देशराज चाहता है वह नहीं हो सकता—मगर यह माना नहीं, बराबर आपको बुलाने की जिद करता रहा।”
“अगर किसी के जिस्म के एक हिस्से का गोश्त गायब हो जाए, किसी की खाल जल जाए तो आप उसी के जिस्म के किसी अन्य भाग से गोश्त लेकर अथवा किसी अन्य के गोश्त से जख्म को ‘फुलअप’ कर देते हैं।” देशराज कहता चला गया—“लोगों का कहना है आपके द्वारा ऑपरेट जख्म के निशान तक कुछ दिन बाद नजर नहीं आते।”
“वो सब ठीक है बरखुरदार, लेकिन शल्य चिकित्सा की कुछ लिमिटेशन्स हैं—तुम्हें शांडियाल साहब या शांडियाल साहब को तुम नहीं बनाया जा सकता।”
“आज ही एक केस हुआ है—आपने सुना होगा, कमिश्‍नर साहब के भतीजे की हत्या के जुर्म में पुलिस को लुक्का नाम के बदमाश की तलाश थी लेकिन मिला उसका फेसमास्क—कहते हैं उस फेसमास्क के जरिए कोई अन्य व्यक्ति लुक्का बना हुआ था?”
“जरूर बना होगा—लेकिन वास्तव में उस शक्ल का दुनिया में कोई आदमी नहीं होगा।”
“मतलब?”
“फेसमास्क बनने संभव हैं लेकिन ऐसा फेसमास्क बनना संभव नहीं है जिसे धारण करके कोई ‘तुम’ बन जाए। फर्क समझो, ऐसे चेहरे का मास्क तैयार किया जा सकता है जो दुनिया में कहीं होगा ही नहीं, मगर हू-ब-हू नकल नहीं की जा सकती—किसी ने बहुत मेहनत करके नब्बे-पिच्चानवें परसैंट शक्ल मिला भी दी तो कारगर सिद्ध नहीं होगी क्योंकि तुम्हारे चेहरे पर पसीना आ सकता है, जबकि तुम्हारा फेसमास्क पहने व्यक्ति के चेहरे पर पसीना नहीं आएगा।”
“मैं आपसे जुंगजू के चेहरे का मास्क बनाने के लिए कब कह रहा हूं?”
“और क्या चाहते हो?”
“जुंगजू के फोटुओं को ध्यान से देखिए, चेहरा जला हुआ है।”
“देख चुका हूं बरखुरदार, तेजाब से जला हुआ चेहरा है ये।”
“मुझे अपने चेहरे पर ठीक वहां वैसा ही जख्म चाहिए जहां, जैसा जुंगजू के चेहरे पर है—जहां, जैसी जली हुई चुड़चुड़ी खाल की झुर्री है वहां, वैसी ही झुर्री चाहिए—क्या आप ये करिश्मा नहीं कर सकते?”
“कैसे हो जाएगा ये करिश्मा, ऐसा कौन सा औजार है जो तुम्हारे चेहरे की कसी हुई खाल में जख्म और झुर्रियां बना देगा?”
“अगर ये खाल इतनी कसी हुई न हो तो?”
“मतलब?”
“अगर खाल ऐसी पोजीशन में मिले जिसमें आप अपने औजारों की मदद से चाहे जहां, चाहे जैसा जख्म बना सकें और चाहें जहां जैसी चाहें झुर्री डाल सकें तो?”
“हम समझे नहीं बरखुरदार!”
“समझने की कोशिश बाद में कीजिएगा डॉक्टर साहब।” गम्भीर स्वर में देशराज कहता चला गया—“फिलहाल केवल मेरे सवाल का जवाब दीजिए, अगर खाल ऐसी पोजीशन में हो जिसके साथ आप बगैर किसी बाधा के छेड़खानी कर सकें तो मनचाहे स्थान पर जख्म और झुर्रियां बनाना मुमकिन है या नहीं?”
“मुमकिन है।”
“गुड!” कहने के साथ देशराज कुर्सी से खड़ा हो गया।
डॉक्टर शुक्ला ही नहीं, कमिश्‍नर शांडियाल भी उसे चकित दृष्टि से देखते रह गए—उसे, जो आंखों में दिव्य ज्योति लिए अलमारी की तरफ बढ़ा।
नजदीक पहुंचकर अलमारी खोली।
वहां रखा पांच लीटर का एक केन उठाया।
और उस वक्त वह उसका ढक्कन खोल रहा था जब एकाएक कमिश्‍नर के जहन में बिजली कौंधी, कुर्सी से उठने के साथ चिल्लाए वे—“न-हीं … नहीं देशराज … ये क्या बेवकूफी कर रहे हो तुम?”
मगर!
वे देर से एक्शन में आ पाए बल्कि यह कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा कि वे बहुत देर से देशराज के इरादे को समझ पाए—जब तक उसे रोकने के लिए लपकते तब तक देशराज वह कर चुका था जिसे उन्होंने ‘बेवकूफी’ कहा था—एक क्षण के लिए भी हिचके बगैर देशराज ने सारा केन अपने चेहरे पर उलट लिया।
तेजाब से जलने के कारण उसके हलक से चीखें निकलने लगीं।
वह चीखता रहा, चिल्लाता रहा।
“र-रुक जाओ … रुक जाओ देशराज।” शांडियाल पागलों की मानिन्द दहाड़ रहे थे—“ये क्या कर रहे हो बेटे?”
देशराज के हलक से मर्मान्तक चीखों के अलावा कुछ न निकल रहा था।
डॉक्टर शुक्ला अवाक्।
किंकर्त्तव्यविमूढ़ अवस्था में अपनी कुर्सी के नजदीक खड़े थे वह और जलते हुए देशराज को देखकर समझ नहीं पा रहे थे कि ये किस किस्म की दीवानगी थी?
शांडियाल देशराज को रोकना चाहते थे मगर न टाइम था न समझ पाए कि कैसे रोका जा सकता है?
चीखों के बीच देशराज ने अस्पष्ट शब्दों में कहा—“अ … ब …आप … मेरे चेहरे की खाल के साथ मनचाही छेड़छाड़ कर सकते हैं डॉक्टर साहब … मुझे जुंगजू बना दीजिए … मुझे जुंगजू …।” इन शब्दों के साथ वह बेसमेन्ट की एक दीवार से टकराया—धड़ाम से फर्श पर गिरा और वहीं पड़ा रह गया।
निश्चल था वह!
हलक से चीख तो क्या कराह तक न निकल रही थी।
शांडियाल दौड़कर नजदीक पहुंचे—खुद को तेजाब से बचाते हुए नब्ज टटोली, बोले—“चल रही है डॉक्टर, अभी ये जिंदा है—केवल बेहोश है।”
“मगर!” डॉक्टर शुक्ला हकला उठा—“ये क्या पागलपन था?”
“हां डॉक्टर … हां … हम भी इसकी इस हरकत को पागलपन के अलावा दूसरा कोई नाम नहीं दे सकते।” शांडियाल की आंखों में आंसू आ गए—“हमें बहुत पहले समझ जाना चाहिए था कि ये गधा क्या सोचे बैठा है—इसने कहा था, वह मेकअप ऐसा नहीं है कि आज किया जाए और कल मैं जुंगजू बन जाऊं—हमें तभी समझ जाना चाहिए था इसके इरादे कितने खतरनाक हैं … उफ्फ … हमारी चूक की वजह से यह सब हो गया …।”
“मैं कुछ समझा नहीं कमिश्‍नर साहब।”
“छोड़ो डॉक्टर, अब इसे जुंगजू बनाने की कोशिश करो।”
“इसे फौरन हॉस्पिटल ले जाना चाहिए, मेडिकल एड की जरूरत है इसे।”
“नहीं डॉक्टर, ऐसा नहीं किया जाएगा—ऐसा करना इसके साथ विश्वासघात होगा—अगर इसे हॉस्पिटल ले जाया गया तो तेजाब से इसके जलने की खबर आम हो जाएगी और ये उस मिशन पर रवाना नहीं हो सकेगा जिसकी खातिर इतना बड़ा पागलपन कर बैठा—अब मेरी समझ में आया, ये हरकत करने से पहले इसने आपको यहां क्यों बुला लिया था—ये चाहता था, जलने के तुरंत बाद आप इसका ऑपरेशन शुरू कर दें।”
“लेकिन और बहुत सी मेडिसिंस की जरूरत पड़ेगी कमिश्‍नर साहब—और वे इसे तुरंत न दी गईं तो यह मर भी सकता है।”
“जिस दवा की जरूरत हो आप लिख दीजिए—हम मंगा देते हैं लेकिन बेसमेन्ट से बाहर नहीं ले जाया जाएगा इसे।” शांडियाल भावुक हो उठे—“अब इसका वह इरादा परवान चढ़ना ही चाहिए जिसकी खातिर इसने वह कर डाला जिसकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते थे …।”
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“अच्छी तरह रगड़-रगड़कर सफाई करो हरामजादों।” अपने ऑफिस में जिन्न की मानिन्द इधर-उधर टहल रहे तेजस्वी ने कहा—“सुई की नोक के बराबर भी खून का धब्बा लगा रह गया तो सारे थाने को फांसी के फंदे पर लटकवा देगा।”
सिपाहियों के हाथ पहले ही मुस्तैदी से अपने काम में जुटे हुए थे।
थाने का लगभग सारा स्टाफ उसके ऑफिस और हवालात की सफाई करने में मशगूल था—जो वहां नहीं था, उसे भी मालूम था कि अंदर क्या हो रहा है!
जैसे थाने के मुख्य द्वार पर तैनात संगीनधारी सिपाही।
उसे सख्त हिदायत थी—बगैर अंदर की इजाजत के किसी को थाने में प्रविष्ट नहीं होने देना है—हैड मुहर्रिर अपने ऑफिस में बैठा खिड़की के माध्यम से प्रांगण में नजर रखे हुए था।
सब-इंस्पेक्टर पांडुराम के साथ हवालात में था।
तेजस्वी दौड़-दौड़कर कभी हवालात में चल रहे काम का निरीक्षण कर रहा था तो कभी अपने ऑफिस का—उसने खून के नन्हें-नन्हें धब्बों को खोजने और उन पर पुलिसियों की तवज्जो आकर्षित करने का काम संभाला हुआ था।
सारा फर्श धो डाला गया और उस वक्त काफी बारीकी से निरीक्षण करने के बावजूद तेजस्वी को कहीं खून का धब्बा नजर नहीं आया जब हवालात से ऑफिस में कदम रखते पांडुराम ने बताया—“लाश तिरपाल के बोरे में पैक कर दी गई है साब।”
“तो मुझे क्या बताने आया है, उठवाकर जीप में डलवा।”
“सब-इंस्पेक्टर साहब ने पुछवाया है, लाश को डालकर कहां आना है?”
“उससे कह, ये हैडेक तेरी है—कहीं उल्टी-सीधी जगह डाल आए और बरामद हो गई तो वे गंजे पूरे थाने के सिर पर तबला बजा देंगे—बड़े हरामी हैं साले, एक-एक प्वाइंट पर ऐसी नजर रखते हैं जैसे बिल्ली चूहे के बिल पर नजर रखती है।”
“उनकी राय है, लाश को श्मशान में ले जाकर लावारिसों की तरह फूंक दिया जाए।”
“गुड, आइडिया अच्छा है पांडुराम—न बांस रहेगा, न साली बांसुरी से कोई धुन निकलेगी।” तेजस्वी कहता चला गया—“अपने सब-इंस्पेक्टर ने पहली बार मार्के की बात कही है—जा, उसे मेरी तरफ से बधाई दे और बोरे को उठवाकर जीप में डलवा—किस्सा जितनी जल्दी खत्म हो जाए अच्छा है, पता नहीं कब कौन साला टपक पड़े?”
पांडुराम हवालात की तरफ लपक लिया।
“मेरे ख्याल से सफाई मुकम्मल हो गई है साब।” ऑफिस की सफाई का चार्ज संभाले कांस्टेबल ने कहा—“अगर आप निरीक्षण कर लें तो बेहतर होगा।”
“ओ.के.!” कहने के साथ वह निरीक्षण करने में जुट गया—सिपाही हाथों में खून से सने गीले कपड़े लिए मजदूरों की भांति खड़े थे।
उधर—दो सिपाही, पांडुराम और सब-इंस्पेक्टर तिरपाल के बड़े से बोरे में बंद लाश को संभाले ऑफिस से गुजरकर प्रांगण में खड़ी जीप की तरफ बढ़ गए—ऑफिस की सफाई से संतुष्ट होने के बाद तेजस्वी सिपाहियों को अगला आदेश देने ही वाला था कि बुरी तरह हड़बड़ाया पांडुराम ऑफिस में दाखिल होता हुआ चीख पड़ा—“चारों गंजे आए हैं साब।”
“क-क्या?” तेजस्वी के हलक से चीख निकल गई—“क-कहां हैं?”
“ग-गेट पर सिपाही से उलझे हुए हैं, वह उन्हें अंदर नहीं आने दे रहा।”
“तेरे साथ गये सिपाही और सब-इंस्पेक्टर कहां हैं?”
“स-सिपाहियों के हाथ सने हुए थे—वे उन्हें धोने नल की तरफ दौड़ पड़े हैं जबकि सब-इंस्पेक्टर साब गेट की तरफ गए हैं, वहां गेट के सिपाही से गंजों की काफी गर्मा-गर्म तकरीर चल रही थी।”
“उन हरामियों ने तुम्हें जीप में बोरा रखते तो नहीं देख लिया?”
“नहीं देख पाए हैं।”
“अगर वे गेट तक आ गए हैं तो बगैर मुझसे मिले नहीं टलेंगे …।”
सिपाहियों के चेहरे पीले पड़ गये।
रंगे हाथों पकड़े जाने वाले मुजरिमों की-सी हालत हो गई उनकी, पांडुराम ने कहा—“सारा फर्श गीला पड़ा है साब, अगर वे यहां आ गए तो सैकड़ों सवाल करेंगे।”
एक सिपाही ने राय दी—“उन्हें प्रांगण में बैठा लिया जाए …।”
“प्रांगण में जीप खड़ी है बेवकूफ!” तेजस्वी ने दांत पीसे—“और उसमें लाश है।”
सारे हकबका गए—“त-तो?”
“त-तुम भागो।” तेजस्वी गर्जा—“हाथ साफ करो और ये कपड़े ठिकाने लगा देना।”
“म-मैं क्या करूं साब?” पांडुराम ने पूछा।
“जीप के इर्द-गिर्द टहल।” तेजस्वी ने ऑफिस से बाहर लपकते हुए निर्देश दिया—“कोई भी उसमें पड़े बोरे को न देख पाए—कुछ भी हो सकता है पांडुराम, हर मुसीबत से टकराने के लिए तैयार रहना।”
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12-31-2020, 12:24 PM,
#55
RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“क्या हो रहा है भाई?” गेट की तरफ लपकते तेजस्वी ने पूछा—“क्यों झगड़ रहे हो तुम लोग?”
गेट पर खड़े सिपाही ने कहा—“य-ये जबरदस्ती घुसे चले आ रहे हैं साब।”
“तुमने यहां बड़े अहमक पुलिसिए को खड़ा कर रखा है इंस्पेक्टर।” नंबर फोर गुस्से में था—“न अंदर आने दे रहा है, न ही हमारा कार्ड तुम तक पहुंचाने को तैयार है।”
“सॉरी दोस्तो।” तेजस्वी ने हंसने का प्रयत्न किया—“ये तुम्हें पहचानता नहीं होगा।”
“इसका मतलब कोई तुमसे मिल नहीं सकता?” नंबर टू ने कहा।
“ऐसा कैसे हो जाएगा—इसने आप लोगों से कहा होगा, कोई पुलिस वाला आ जाए तो कार्ड मेरे पास भेज देगा।”
नंबर थ्री गुर्राया—“इसने इसके अलावा कुछ नहीं कहा कि साब बिजी हैं, इस वक्त किसी से नहीं मिलेंगे।”
“अगर ऐसा कहा तो गलत कहा।” कहने के बाद तेजस्वी ने सिपाही को डांटा—“आदमी को देखकर बात किया कर, साहब लोग स्पेशल केन्द्रीय कमांडो दस्ते के मैम्बर हैं।” कहने के साथ उसने नंबर वन को पटाने की खातिर बांहों में भर लिया, बोला—“इन लोगों की तरफ से मैं माफी मांगता हूं, आओ।”
तेजस्वी बड़ी आत्मीयता के साथ नंबर वन का हाथ पकड़े सब-इंस्पेक्टर के ऑफिस की तरफ बढ़ता हुआ बोला—“आने से पूर्व फोन कर देते तो ये अप्रिय घटना न होती।”
“हमें मालूम नहीं था थानेदार से मिलना इतना कठिन होता है।” व्यंग्यपूर्वक कहने के साथ नंबर वन ने उसकी जेब को थपथपाते हुए पूछा—“इसमें क्या है?”
तेजस्वी के जहन को झटका लगा—दरअसल जेब में नंबर फाइव का रिवॉल्वर था और इस एकमात्र विचार ने उसके छक्के छुड़ा दिए कि अगर रिवॉल्वर पर नजर पड़ गई तो ये लोग क्या-क्या समझ जाएंगे—वह नंबर वन के नजदीक से इस तरह छिटक कर दूर हट गया जैसे अचानक वह गर्म तवे में तब्दील हो गया हो।
खौफ एक ही था, कहीं नंबर वन सीधा जेब में हाथ न डाल दे।
“र-रिवॉल्वर!” चेहरे पर उड़ती हवाइयां लिए वह बड़ी मुश्किल से कह पाया—“रिवॉल्वर है।”
“लेकिन तुम्हारा सर्विस रिवॉल्वर तो होलेस्टर में रखा नजर आ रहा है?”
“हां, सो तो है!” तेजस्वी ने घबराहट पर काबू पाने का भरसक प्रयास किया—“द-दूसरा रिवॉल्वर है ये—रखना पड़ता है—ब्लैक फोर्स के लोग साले ए.के. सैंतालीस लेकर आते हैं, एक रिवॉल्वर से उनका मुकाबला नहीं किया जा सकता।”
“और दो से किया जा सकता है?” नंबर वन ने उसे घूरा।
“ए.के. सैंतालीस का मुकाबला तो खैर ए.के. सैंतालीस से ही किया जा सकता है—मगर वह सरकार हम लोगों को अब तक मुहैया नहीं करा पाई है।” तेजस्वी खुद को नियंत्रित रखने में काफी हद तक कामयाब था—“आप लोगों की तो सीधी एप्रोच है, सिफारिश कीजिए न?”
“ए.के. सैंतालीस तो अभी हम लोगों को भी हासिल नहीं है।”
“बैठिए।” तेजस्वी ने सब-इंस्पेक्टर के ऑफिस में पड़ी कुर्सियों की तरफ इशारा किया—मन-ही-मन अपनी इस कामयाबी पर खुश था कि वह उनका ध्यान अपनी जेब में पड़े रिवॉल्वर से हटाने में कामयाब था, सब-इंस्पेक्टर की कुर्सी पर बैठते हुए उसने पूछा—“कहिए, अचानक कैसे आना हुआ?”
“कुछ जल्दी में हो क्या?” बैठते हुए नंबर वन ने पूछा—“कहीं जाना है?”
“न-नहीं तो!”
“तो फिर इतनी जल्दी-जल्दी टॉपिक क्यों चेंज कर रहे हो? हमारे यहां आने का कारण जानने के लिए उतावले क्यों हो?”
तेजस्वी के मस्तिष्क को एक और झटका लगा—अहसास हुआ कि उसने कितना गलत सोचा था—ये गंजे उसकी बातों के चक्रव्यूह में फंसकर एक सेकेंड के लिए भी टॉपिक से भटकने वाले न थे, बोला—“आप लोगों से तो बात करना मुहाल है, क्या मैंने यहां आने का प्रयोजन पूछकर गलती की?”
“प्रयोजन पूछकर तो नहीं की मगर …।”
“मगर?”
“सोचने वाली बात है तुमने हमें सब-इंस्पेक्टर के ऑफिस में क्यों बैठाया है?”
“क-क्या मतलब?” तेजस्वी उछल पड़ा—“इसमें भला सोचने वाली क्या बात है?”
“तुमने हमें अपने खुद के ऑफिस में क्यों नहीं बैठाया?” नंबर फोर ने पूछा।
“मैं तो यहां इसलिए बैठ गया क्योंकि मेरी नजर में यहां बैठने या मेरे ऑफिस में बैठने में कोई फर्क नहीं है—अगर आप लोगों को फर्क नजर आता है तो आइए, आगे की बातें वहीं बैठकर करेंगे।”
“बैठो इंस्पेक्टर!” नंबर थ्री ने कहा—“आराम से बैठ जाओ, लगता है तुम्हें हमारी बात बुरी लग गई?”
“बुरी लगने वाली बात तो सभी को बुरी लगेगी।” तेजस्वी नागवारी-भरे अंदाज में बोला—“आखिर आप लोग चाहते क्या हैं?”
“अकेले में तुमसे कुछ बातें करना।” नंबर वन ने कहा।
तेजस्वी ने सीधे सब-इंस्पेक्टर से कहा—“तुम बाहर जाओ।”
सब-इंस्पेक्टर ने आदेश का पालन किया।
कुर्सी पर वापस बैठते तेजस्वी ने एक सिगरेट सुलगाई—वह खुद को इन काइयां गंजों का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर लेना चाहता था, इतना तो समझ ही रहा था कि इस वक्त वह किन्हीं कारणों से उनके शक के दायरे में है और अगर उन्हें ‘टैकिल’ करने में जरा भी चूक हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे, बोला—“अब मैं आप लोगों के सामने बिल्कुल अकेला हूं।”
“हम एक ऐसा रहस्य जान चुके हैं जिसने हमारे दिमाग में सैंकड़ों सवाल खड़े कर दिए हैं और उन सवालों के जवाब केवल तुम दे सकते हो।”
“कौन से सवाल हैं?” तेजस्वी सतर्क हो गया।
“हम जान चुके हैं, योगेश का मर्डर करने के बाद लुक्का तुमसे मिला था।”
“मुझसे?” तेजस्वी उछल पड़ा—“किस बेवकूफ ने कहा ये?”
“किसी ने भी कहा मगर हमें मालूम है।” नंबर वन ने अपने एक-एक शब्द पर जोर दिया।
“खाक मालूम है आपको!” तेजस्वी भड़क उठा—“अगर मुझे मिला होता तो मैं उसे गिरफ्तार क्यों नहीं कर लेता—क्यों बार-बार फोन पर कमिश्‍नर साहब की लताड़ सुनता?”
“यह तो तुम ही बेहतर जानते होगे कि तुमने उससे अपनी मुलाकात को गुप्त क्यों रखा?” उसकी आंखों में आंखें डाले नंबर वन कहता चला गया—“और वही जानने हम यहां आये हैं।”
जिस ढंग और कॉन्फिडेंस के साथ नंबर वन ने उपरोक्त वार्त्ता शुरू की थी, उसने न केवल तेजस्वी के दिलो-दिमाग के एक-एक पुर्जे को झनझनाकर रख दिया बल्कि रोयां-रोयां खड़ा हो गया उसका—लगा, किसी न किसी सूत्र से ये काइयां गंजे उसकी मुकम्मल करतूत से वाकिफ हो चुके हैं और अब उसके पास बचाव का कोई रास्ता नहीं है। अगर ये उसके बारे में सब कुछ जान ही चुके हैं और उसका खेल खत्म हो चुका है तो किया भी क्या जा सकता है—फिर भी, केवल ‘शह’ पर हार मान लेने वाला नहीं था वह—‘मात’ होने तक जूझता रहने वाला खिलाड़ी था तेजस्वी, शायद इसीलिए उसने अपने चेहरे पर घबराहट या बौखलाहट के एक भी जर्रे को काबिज न होने दिया और पूरी दृढ़ता के साथ गुर्राया—“अगर आप लोगों को लुक्का से हुई मेरी मुलाकात के बारे में मालूम है तो यह भी मालूम होगा कि मैं उससे हुई भेंट को गुप्त क्यों रखे हुए हूं—बराए मेहरबानी उसे भी आप ही फरमा दें।”
“हम सब कुछ जानते हैं, बेहतर होगा अपना गुनाह कुबूल कर लो।”
“ग-गुनाह?” तेजस्वी की हिम्मत टूटती जा रही थी—“क्या गुनाह किया है मैंने?”
नंबर थ्री ने कहा—“तुमने लुक्का की हत्या की है।”
तेजस्वी उछलकर कुर्सी से खड़ा हो गया—पसीने-पसीने हो चुका, उसका संपूर्ण जिस्म सूखे पत्ते की मानिन्द कांप रहा था, दहाड़ता चला गया वह—“म-मैं लुक्का को मारूंगा क्यों … लुक्का का कत्ल क्यों करूंगा मैं?”
“क्योंकि वह जान चुका था, तुम एक भ्रष्ट पुलिसिए हो।” नंबर टू ने कहा।
“खामोश!” तेजस्वी हलक फाड़ उठा, इसमें शक नहीं कि उसे अपना खेल खत्म होता साफ-साफ नजर आ गया था मगर अंतिम समय तक जूझता रहने में माहिर वह चीखता चला गया—“आप लोग अगर स्पेशल कमांडो दस्ते के मैम्बर हैं तो हुआ करें—मगर बगैर किसी आधार के किसी पर इतना ओछा आरोप लगाने का आपको कोई अधिकार नहीं है—मैं खुद पर इतना गंदा आरोप लगाने वाले को शूट तक कर सकता हूं—या ठहरिए … मैं अभी कमिश्‍नर साहब को बुलाता हूं … आप उनके सामने मुझे भ्रष्ट साबित कीजिएगा।”
उसकी एक-एक हरकत को बहुत ध्यान से वॉच कर रहे नंबर वन ने कहा—“यानि तुम हमारे द्वारा लगाए गए आरोप से इंकार करते हो?”
“मेरे इंकार या स्वीकार से क्या होने वाला है नंबर वन, सच तो वो होगा जो आप कहेंगे—मगर नहीं … मैं केवल आपके कहे को सच नहीं होने दूंगा—आप लोगों को साबित करना पड़ेगा कि मैं भ्रष्ट हूं, लुक्का का हत्यारा हूं—मैं उस वक्त तक आपका पीछा नहीं छोड़ूंगा जब तक आप मुझ पर लगाए गए घृणित आरोप साबित नहीं कर देंगे।”
नंबर वन को लगा, अंधेरे में चलाया गया उनका तीर गलत निशाने पर जा लगा है—एकाएक वह हौले से मुस्कुरा उठा और शांत स्वर में बोला—“अच्छा छोड़ो, हम अपने आरोप वापस लेते हैं।”
“क्या मतलब?” तेजस्वी चिहुंक उठा—“क्या आप लोग पीछे हट रहे हैं?”
“ऐसा ही समझो।”
“नहीं!” वह भड़क उठा—“मैं यह धींगामुश्ती नहीं चलने दूंगा—स्पेशल कमांडो दस्ते के मैम्बर होना क्या आपको यह अधिकार देता है कि चाहे जब, चाहे जिस पर, चाहे जितने भद्दे आरोप लगा दें और चाहे जब उन्हें वापस ले लें—मैं कमिश्‍नर साहब के, बल्कि आप लोगों के चीफ के सामने ये मुद्दा उठाऊंगा—उनसे पूछूंगा कि बिना किसी आधार और सूचना के किसी पर मनचाहे आरोप लगाने का अधिकार आपको किसने दे दिया?”
“उत्तेजना को अलविदा कहो इंस्पेक्टर और शांति के साथ बैठकर हमारी बातें सुनो—मुमकिन है, उन्हें सुनने के बाद तुम इस नतीजे पर पहुंचो कि जो कुछ हमने किया, वक्त पड़ने पर खुद तुम भी वैसा ही करते।”
“म-मैं?”
“तुम एक पुलिस इंस्पेक्टर हो—कभी-न-कभी, किसी-न-किसी केस के दरम्यान तुम्हारे सामने ऐसे हालात जरूर आए होंगे जब तुम्हें किसी व्यक्ति विशेष पर मुजरिम होने का शक हुआ हो मगर उसके खिलाफ सुबूत न जुटा पाए हों—ऐसी अवस्था में तुम्हारे सामने अपने शक की पुष्टि हेतु अंधेरे में तीर चलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा होगा।”
“तो आप लोग अंधेरे में तीर चला रहे थे?”
“वक्त पड़ने पर प्रत्येक इन्वेस्टिगेटर को ये हथियार इस्तेमाल करना पड़ता है—जिस पर शक हो उस पर हमला कर दो—कहो कि तुम उसकी मुकम्मल करतूत जान गए हो और फिर ध्यान से अपने शब्दों की प्रतिक्रिया देखो—उसकी भाव-भंगिमाएं और हरकतें तुम्हें बता देंगी, शक सही था या गलत?”
“तो आपको ये शक था मैं भ्रष्ट हूं, लुक्का का हत्यारा हूं?”
“था।”
“आधार?”
“योजना के मुताबिक लुक्का को तुम्हारे पास आना था।”
“कैसी योजना, किसकी योजना … मैं कुछ समझा नहीं।”
“लुक्का हम ही में से एक था, स्पेशल कमांडो दस्ते का एजेंट नंबर फाइव।”
“क-क्या?” बुरी तरह चौंकने का शानदार अभिनय करते हुए तेजस्वी ने अपना भाड़-सा मुंह फाड़ दिया—जबकि असल में इस वक्त वह राहत की लंबी-लंबी सांसें ले रहा था—गंजों के शब्द बता रहे थे कि वह बाल-बाल बचा है।
“चीफ की तरफ से उसे कुछ काम सौंपे गए थे।” नंबर वन कहता चला गया—“पहला ट्रिपल जैड का वर्तमान पता-ठिकाना मालूम करना—दूसरा, तुम्हारी ईमानदारी को परखना—उसके पहले काम का माध्यम योगेश था क्योंकि योगेश को ट्रिपल जैड स्मैक मुहैया कराता था—हमने सोचा, शायद नंबर फाइव परखने की खातिर तुमसे मिला हो और उसका रहस्य जानने के बाद तुमने उसकी हत्या …।”
धांय …धांय …धांय!
एकाएक वातावरण गोलियों की आवाज से थर्रा उठा।
सभी इस तरह उछलकर खड़े हो गये जैसे एक स्विच को ऑन कर देने पर हरकत में आ जाने वाले पुतले हों, चेहरों पर हवाइयां काबिज हो गईं—अभी कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि एक साथ चार ए.के. सैंतालीसधारी हवा के झोंके की मानिन्द ऑफिस में दाखिल हुए।
“हैन्ड्स अप! हैन्ड्स अप!” मात्र ये ही आवाजें गूंजीं।
और!
तेजस्वी के साथ चारों गंजों के हाथ भी ऊपर उठते चले गए।
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सब-इंस्पेक्टर के ऑफिस में ही क्या मुकम्मल थाने में किसी पुलिसिए को ब्लैक फोर्स के मरजीवड़ों से प्रतिरोध करने का अवसर न मिल पाया—आग उगलती ए.के. सैंतालीसों के साथ खुली छत वाला एक काले रंग का ट्रक अंधड़ की भांति थाने में दाखिल हुआ था।
द्वार पर खड़ा सिपाही लाश में तब्दील हो चुका था।
अन्य कई पुलिसिए मारे गए ।
ट्रक प्रांगण के बीचों-बीच रुका।
ए.के. सैंतालीसधारी ब्लैक फोर्स के मरजीवड़े कूद-कूदकर टिड्ढी दल की तरह चारों तरफ फैल गए और उस हमले का कमांडर अपने तीन साथियों के साथ इंस्पेक्टर के ऑफिस में खड़ा गंजों पर बरस रहा था—“कौन हो तुम लोग—और यहां क्या कर रहे हो?”
“हम पुलिसिए नहीं हैं जनाब।” नंबर वन ने कहा—“पब्लिक के आदमी हैं, रपट दर्ज कराने आए थे।”
“चारों एक जैसे कपड़ों में … और सिर क्यों मुंडवा रखे हैं?”
नंबर दो बोला—“हमारे बाप मर गए साब, उनका अंतिम संस्कार करके …।”
“चारों के बाप एक साथ कैसे मर सकते हैं?”
“उन्हें छोड़ो शुब्बाराव, मुझसे बात करो!” हाथ ऊपर उठाए तेजस्वी एक कदम आगे बढ़कर बोला—“क्या चाहता है ब्लैक स्टार, बार-बार एक ही शैली में थाने पर हमला करने का आखिर मतलब क्या है?”
“प्रतापगढ़ में चर्चा है इंस्पेक्टर कि तुमने थाने पर हुआ ब्लैक फोर्स का पहला हमला नाकाम कर दिया था और उससे भी ज्यादा गर्म चर्चा तुम्हारे काली बस्ती में जाकर मेजर को पीट आने की है।” शुब्बाराव हर शब्द दांतों से पीसता चला जा रहा था—“हमारा ये हमला न केवल प्रतापगढ़ में फैली इस गलतफहमी की धज्जियां उड़ा देगा कि तुम वे सब कारनामे केवल इसलिए कर सके क्योंकि कुछ देर के लिए ब्लैक स्टार तुम्हें श्रीगंगाई तेजस्वी मान बैठे थे।”
“औह … तो ब्लैक स्टार की आंखें खुल गई हैं?”
“तुम्हें हमारे साथ चलना होगा, ब्लैक स्टार तुम्हें अपने हाथों से सजा देने के ख्वाहिशमंद हैं—उनका कहना है, वैसा धोखा उन्होंने पहले कभी किसी से नहीं खाया जैसा तुमने उन्हें दिया—अतः तुम्हें सजा भी वही देंगे।”
तेजस्वी हौले से मुस्कराया—बड़ी ही कुटिल मुस्कान थी वह, बोला—“इसका मतलब तुम मुझे मार नहीं सकते?”
“क्या मतलब?”
“अगर तुम मार दोगे तो ब्लैक स्टार अपने हाथों से कैसे सजा देगा?” कहते वक्त उसकी मुस्कराहट अत्यंत गहरी हो गई थी, एकाएक वह गंजों की तरफ देखकर बोला—“क्यों भाइयो, मैंने गलत कहा क्या?”
कमांडोज में से कोई कुछ बोला नहीं मगर मन-ही-मन तेजस्वी के दिमाग की दाद दिए बगैर न रह पाये—निश्चित रूप से उसने शुब्बाराव के शब्दों में से एक बारीक प्वाइंट ‘कैच’ किया था, जबकि शुब्बाराव एक पल के लिए हड़बड़ाने के बाद गुर्राया—“इस भुलावे में रहा तो तड़पने का मौका दिए बगैर लाश में बदल दूंगा इंस्पेक्टर।”
“तू ऐसा नहीं कर सकता शुब्बाराव!” तेजस्वी ने आत्म-विश्वास के साथ कहा—“मुझे मालूम है बेटे, ब्लैक स्टार के शिकार को उसका तुझ जैसा कोई प्यादा मारने का दुःसाहस नहीं कर सकता—तूने मेरे हाथ ऊपर उठवा रखे हैं न, ये ले—मैं इन्हें नीचे कर लेता हूं, हिम्मत है तो गोली मारकर दिखा।” कहने के साथ उसने सचमुच अपने हाथ नीचे कर लिए।
शुब्बाराव सकपका गया—उसके पास केवल एक ही आदेश था, यह कि इंस्पेक्टर को पकड़कर काली बस्ती ले आए, अतः अपेक्षाकृत कमजोर स्वर में गुर्राया—“अब अगर तूने एक भी हरकत की तो गोलियों से भून दूंगा—मेजर साहब से मेरा इतना कहना काफी होगा कि तू मेरा हुक्म नहीं मान रहा था।”
“नहीं, मैं तुझे मजबूर नहीं करूंगा शुब्बाराव।”
“मतलब?”
“मैं खुद ब्लैक स्टार से मिलने का ख्वाहिशमंद हूं।”
“तो चल!” उसने अपनी गन से दरवाजे की तरफ इशारा किया।
तेजस्वी शरीफ बच्चे की तरह दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
“तुम भी चलो।” शुब्बाराव कमांडोज पर दहाड़ा।
“उन बेचारों को क्यों परेशान करता है?” तेजस्वी ने एक कुर्सी के नजदीक ठिठकते हुए कहा—“ये लोग तो यहां रपट लिखवाने आए थे—पब्लिक के आदमी हैं, इनसे क्या लेना है?”
“तू चुप रह!” उसे डांटने के बाद शुब्बाराव ने उन्हें हुक्म दिया—“बाहर निकलो और हाथ ऊपर उठाए रखना, जरा भी हरकत की तो भूनकर रख दिए जाओगे।”
इस बीच, तेजस्वी ने कमांडोज को आंख मारी—अभी उनमें से कोई उसकी हरकत का तात्पर्य ठीक से समझ भी नहीं पाया था कि बिजली-सी कौंधी—देखने वालों को केवल एक क्षण के सौवें हिस्से के लिए वह कुर्सी हवा में झन्नाती नजर आई जिसके नजदीक तेजस्वी ठिठका था।
अगले क्षण!
कमरा ए.के. सैंतालीसों की गर्जना से थर्रा उठा।
तीनों गनें तेजस्वी की तरफ जबड़ा फाड़कर दहाड़ी थीं परंतु तेजस्वी उनके आग उगलना शुरू करने से बहुत पहले खुद को ऑफिस के किवाड़ और दीवार के बीच ‘फिक्स’ कर चुका था।
और फिर!
एक गोली उसके सर्विस रिवॉल्वर ने उगली।
सीधे शुब्बाराव का भेजा उड़ाती निकल गई वह। उसके दोनों साथियों ने पलटकर उसकी तरफ देखा—कमांडोज के लिए इतना काफी था—उनके हाथ एक साथ न केवल नीचे आ गए बल्कि चार रिवॉल्वर एक साथ आग भी उगलने लगे।
शुब्बाराव के साथी भी शराबियों की मानिन्द लड़खड़ाए और इससे पूर्व कि वे फर्श पर गिरते तेजस्वी ने झपटकर ए.के. सैंतालीस संभाल ली, बोला—“मैं देखना चाहूंगा कि तुम लोग कैसे कमांडोज हो—इस वक्त मेरे हर मातहत की जान खतरे में है, उन्हें बचाना हमारा फर्ज है।”
नंबर टू और फोर एक-एक ए.के. सैंतालीस कब्जा चुके थे।
एक दृष्टि शुब्बाराव और उसके साथियों की लाशों पर डालते नंबर वन ने कहा—“तुमने जबरदस्त दुःसाहस का परिचय दिया है इंस्पेक्टर।”
“असली कामयाबी ये होगी कि हम ब्लैक फोर्स के एक भी मरजीवड़े को थाने से बाहर न जाने दें।” इन शब्दों के साथ उसने वापस दरवाजे की तरफ जम्प लगा दी थी।
कमांडोज भी लपके।
तेजस्वी के हाथों में दबी ए.के. सैंतालीस ने बगैर किसी चेतावनी के दहाड़कर बरामदे में मौजूद तीन मरजीवड़ों को चीखों के साथ धराशाई होने पर विवश कर दिया—साथ ही, कूदकर बरामदे में पहुंचा—खुद को एक गोल पिलर की आड़ में छुपाए चीखा—“शुब्बाराव मारा जा चुका है हरामजादो—अपने हथियार गिरा दो—वरना सबकी लाशें थाने के प्रांगण में पड़ी नजर आएंगी।”
उसके शब्दों ने जहां पुलिसियों के हौंसले बुलंद कर दिए वहीं ब्लैक फोर्स के मरजीवड़े उत्तेजित हो उठे।
वातावरण ए.के. सैंतालीसों की गर्जना से थर्रा उठा।
अब नंबर वन और थ्री के हाथों में भी ए.के. सैंतालीस थीं।
वे बरामदे में पड़ी मरजीवड़ों की तीन लाशों में से दो की थीं।
पांचों ने एक साथ प्रांगण से हुई फायरिंग के जवाब में अपनी-अपनी ए.के. सैंतालीसों के मुंह खोल दिए—जो मरजीवड़े गोलियों की रेंज में आए वे तो खैर चीख-चीखकर धराशाई हो ही गए, लेकिन जो बचे उन्होंने फुर्ती से पोजीशन ले ली।
अब, बाकायदा मोर्चाबंदी हो गई थी।
तेजस्वी और कमांडोज पर सबसे ज्यादा फायरिंग प्रांगण में खड़े ट्रक के पिछले हिस्से से हो रही थी—दोनों तरफ से रह-रहकर ए.के. सैंतालीसें गरज रही थीं—मगर किसी भी तरफ का नुकसान अब ज्यादा नहीं हो रहा था क्योंकि जो जहां था, खुद को किसी-न-किसी आड़ में ले चुका था।
करीब एक मिनट से छाई खामोशी को एकाएक तेजस्वी की आवाज ने झकझोरा—“चाहे जितनी गोलियां चला लो हरामजादों, मगर अब एक भी गोली हममें से किसी की जान नहीं ले सकती—खैरियत चाहते हो तो हथियार डाल दो।”
जवाब में जीप के पीछे से जबरदस्त फायरिंग की गई।
तेजस्वी और कमांडोज शांत रहे।
तभी जीप स्टार्ट हुई।
“वो आपकी जीप ले जा रहा है साब!” वातावरण में गूंजने वाली यह आवाज पांडुराम की थी—तेजस्वी समझ सकता था कि पांडुराम जीप को ब्लैक फोर्स के कब्जे में देखकर इतना बेचैन क्यों हो उठा है मगर तेजस्वी के अपने ख्याल से जो हो रहा था, ठीक हो रहा था—जीप में पड़ी लाश पर कमांडोज की नजर पड़ने का अर्थ उसके खेल का खात्मा कर सकता था—अतः बेहतर यही था कि जो जीप चला रहा था वह सुरक्षित फरार हो जाए।
कमांडोज ने जीप पर फायरिंग शुरू की।
तभी, ट्रक स्टार्ट हुआ।
तेजस्वी चीखा—“जीप में केवल एक है जबकि ट्रक में अनेक मरजीवड़े हैं—अब ये लोग भागने की कोशिश कर रहे हैं, ट्रक के टायर बर्स्ट कर दो—फायर!”
बात सबको जंची।
ट्रक के इस तरफ के सारे टायर बैठ गए मगर फर्राटे भरती जीप थाने से बाहर निकल गई थी—ट्रक में भरे और इधर-उधर पोजीशन लिए मरजीवड़ों में एकाएक भगदड़ मच गई—फायरिंग करते हुए वे थाने के गेट की तरफ लपके—इधर से उन पर गोलियां चलाई गईं ।
नतीजा, जिनकी मौत आई थी वे मारे गए।
जिनके एकाउंट में सांसें थीं, वे बचकर भाग जाने में कामयाब रहे।
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Reply
12-31-2020, 12:24 PM,
#56
RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
पूरी रिपोर्ट सुनने के बाद ठक्कर ने पूछा—“तुम लोगों की फतह के बाद थाने में क्या हुआ?”
“होना क्या था, सारे ऑफिसर्स वहां पहुंच गए—प्रांगण में पड़ी लाशों को देखकर कमिश्‍नर तक ने दांतों तले अंगुली दबा ली—सभी उन्मुक्त कंठ से इंस्पेक्टर की तारीफ कर रहे थे जबकि इंस्पेक्टर अपनी फतह के नशे में चूर होने के स्थान पर उत्तेजित था। बार-बार अपने अफसरों से कह रहा था कि मुझे जीवट किस्म के पुलिसियों की टीम चाहिए।”
“किसलिए?”
“ब्लैक फोर्स से लोहा लेने हेतु।”
“मतलब?”
“उसका कहना था—उसके और ब्लैक फोर्स के बीच छिड़ी जो ‘वाॅर’ अभी तक ढीली-ढाली चल रही थी, वह इस वारदात के बाद न केवल तेज हो जाएगी बल्कि प्रतापगढ़ में खून की होली खेली जाने वाली है।”
“ऑफिसर्स ने क्या कहा?”
“कमिश्‍नर ने शीघ्र ही उसे ऐसे पुलिसियों की टीम देने का वायदा किया—मगर इंस्पेक्टर केवल इस आश्वासन पर संतुष्ट नहीं हो गया, बोला—‘मुझे ब्लैक फोर्स के दो-चार छोटे-मोटे ठिकानों की भनक है, उन पर तुरंत हमला होना चाहिए—उसने एस.एस.पी. और डी.आई.जी. से अपने साथ चलने और उन ठिकानों पर दबिश डालने के लिए कहा।”
“फिर?”
“ऑफिसर्स को बात माननी पड़ी, वे दबिश पर निकल गए और हम यहां …।”
“दबिश का अंजाम?”
“अभी सूचना नहीं मिली है।”
“सूचना रखो नंबर वन, पल-पल की सूचना अपने पास रखो—इंस्पेक्टर ने ठीक कहा है, जो हालात तुम बता रहे हो, उनसे एक ही बात ध्वनित होती है—निश्चित रूप से प्रतापगढ़ में अब खून की होली खेली जाएगी—तुम्हें इस खेल में शामिल होकर लाइट में आने की जरूरत नहीं है—हां, एक अच्छे दर्शक की तरह खेल के हर पहलू पर कड़ी नजर रखो।”
“ओ.के. सर।”
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यह खबर सारे प्रतापगढ़ में पेट्रोल पर दौड़ने वाली आग की मानिन्द फैल गई कि ब्लैक फोर्स ने शुब्बाराव के नेतृत्व में थाने पर हमला किया—ब्लैक फोर्स के अनेक मरजीवड़े और खुद शुब्बाराव मारा गया, बाकी लोग बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भागने में कामयाब हो पाए ।
जिसने सुना सुन्न रह गया।
ज्यादातर लोगों की पहली टिप्पणी यह थी कि अब शीघ्र ही ब्लैक फोर्स बदला लेगी और अभी इस खबर को फैले ज्यादा वक्त नहीं गुजरा था कि लोगों ने तूफानी रफ्तार के साथ सड़कों पर से पुलिस फोर्स के ऐसे काफिले को गुजरते देखा जिसने सारे प्रतापगढ़ में सनसनी फैला दी।
सबसे आगे वाली जीप में लोगों ने तेजस्वी को देखा था।
उसके पीछे सशस्त्र जवानों से भरा प्रदेश पुलिस का एक ट्रक!
उसके पीछे डी.आई.जी. की कार, फिर एक ट्रक, फिर एस.एस.पी. और उसके पीछे तीन ट्रक।
सबको किसी बड़े तूफान के लक्षण साफ-साफ नजर आ रहे थे।
और फिर … इस काफिले ने प्रतापगढ़ के अच्छे खासे भीड़-भाड़ युक्त बाजार में पहुंचकर एक तीन-मंजिला इमारत को घेर लिया—दुकानदारों ने आनन-फानन में दुकानें बंद कर दीं—ऐसी भगदड़ मची कि पंद्रह मिनट बाद बाजार में जवान-ही-जवान नजर आ रहे थे।
तब, अपनी जीप पर लगे माइक पर एस.एस.पी. दहाड़ा—“इमारत को चारों तरफ से घेर लिया गया है—जो लोग अंदर हैं, वे पांच मिनट के अंदर सरैंडर कर दें! अन्यथा फोर्स उन्हें भून डालेगी।”
जवाब में केवल सन्नाटा सांय-सांय करता रहा।
तेजस्वी ने ऊंची आवाज में गिनतियां शुरू कर दीं—एक गिनती एक मिनट गुजर जाने का प्रतीक थी और जैसे ही तेजस्वी ने पांच कहा—इमारत की तरफ से गोलियों की बाढ़ जीप पर झपटी।
जवाब में फोर्स ने भी फायरिंग की।
तेजस्वी जीप की बैक में न केवल सुरक्षित था बल्कि अपने हाथ में दबी ए.के. सैंतालीस से इमारत की उस खिड़की पर फायर किए जिसके जरिए उसकी जीप पर गोलियां बरसाई गई थीं।
ब्लैक फोर्स के लोगों ने बता दिया था कि उनका इरादा क्या है।
फोर्स तो मोर्चा लिए हुए थी ही।
सो!
जंग शुरू हो गई।
दोनों तरफ से बाकायदा घात लगा-लगाकर गोलियां चलाई जाने लगीं।
फोर्स को कामयाबी तो मिली परंतु दांतों तले पसीना आ गया—इमारत पर कब्जा करने के बाद फोर्स ने वहां से कुल सात लाशें बरामद कीं—चार के जिस्मों में फोर्स की गोलियां थीं, तीन सायनाइड खाकर मरे थे।
अब फोर्स ब्लैक फोर्स के एक अन्य ठिकाने की तरफ बढ़ गई।
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“ये हम क्या सुन रहे हैं थारूपल्ला?” ट्रांसमीटर पर गूंजने वाली ब्लैक स्टार की आवाज गुस्से के कारण थरथरा रही थी—“थाने पर किया गया हमला नाकाम हो गया? शुब्बाराव मारा गया और पुलिस ने हमारे पांच ठिकानों पर कब्जा कर लिया?”
“यस सर, यह सब हुआ है।” थारूपल्ला ने अपने स्वर को संयत रखने की भरसक चेष्टा के साथ कहा—“बल्कि इससे भी ज्यादा ये हुआ है कि हमारे बहुत से मरजीवड़े भागकर काली बस्ती में आ गए।”
“क्यों, क्या हुआ है ऐसा?” गुर्राकर पूछा गया।
“क्षमा कीजिएगा सर, यह इंस्पेक्टर को दी गई नाजायज ढील के कारण हो सका।”
“मतलब?”
“पहली बार आपने उसके इस जाल में फंसकर कि वह श्रीगंगाई है, न केवल उसे काली बस्ती से सुरक्षित निकल जाने दिया, बल्कि मुझे पिटने तक का हुक्म दे डाला—उसके बाद आपने धोखा खा जाना स्वीकार करके, मुझे उसे जंगल में लाने का हुक्म दिया—मैंने उसे आपके समक्ष पेश किया—एक बार फिर उसने अकेले में आपको जाने क्या पट्टी पढ़ाई कि मुझे उसे सुरक्षित प्रतापगढ़ पहुंचाने का हुक्म सुना डाला?”
“मानते हैं थारूपल्ला कि वह हमें एक नहीं बल्कि दो बार अपने एक ही जाल में फंसाने में कामयाब रहा—कुबूल करते हैं, ऐसा करामाती शख्स हमारे जीवन में वह अकेला आया है जिसने अपनी एक ही स्टोरी से हमें दो बार धोखा दिया—जंगल के बेसमेंट में उसने एक बार फिर खुद को वह साबित कर दिया जो वास्तव में नहीं था—बड़े पुख्ता सुबूत पेश किए कमबख्त ने—इसी कारण हमने उसे अपने हाथों से सजा देने की कसम खाई है।”
“एक बार फिर क्षमा कीजिएगा सर, मेरे ख्याल से अब आपकी यह कसम उसकी मदद कर रही है।”
“मतलब?”
“थाने पर किया गया हमला शायद इसीलिए नाकाम हुआ क्योंकि शुब्बाराव के पास उसे मार डालने का हुक्म न था—शायद इसी कारण शुब्बाराव मारा गया।”
“कहना क्या चाहता है तू?”
“आप हुक्म दीजिए, मैं चौबीस घंटे में उसकी लाश आपके कदमों में …।”
“हमें तेजस्वी की लाश नहीं, तेजस्वी चाहिए थारूपल्ला … जिन्दा तेजस्वी!” साफ महसूस हो रहा था कि ब्लैक स्टार अपने एक-एक शब्द को चबा रहा है—“अगर तूने घुटने टेक दिए हैं तो ठीक है, तुझे इनाम जरूर दिया जाएगा मगर तब, जब तेरी आंखों के सामने तेजस्वी को हम अपने हाथों से सजा दे चुकेंगे।”
“न-नहीं सर!” थारूपल्ला कांप उठा—“म-मैंने यह कब कहा कि उसे जीवित अवस्था में आपके समक्ष पेश नहीं करूंगा—मैं तो केवल यह कहना चाहता था कि यह काम उसे मार डालने से ज्यादा मुश्किल है इसलिए थोड़ा टाइम लग सकता है।”
“हम तुझे तीन दिन देते हैं थारूपल्ला, अगर तीन दिन के अंदर उसे जीवित हमारे सामने पेश न कर पाया तो सायनाइड खा लेना, क्योंकि तब तक तू अयोग्य सिद्ध हो चुका होगा।”
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12-31-2020, 12:24 PM,
#57
RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
अगले दिन सुबह कमिश्‍नर शांडियाल ने जीवट किस्म के पुलिसियों की जो टुकड़ी तेजस्वी के सुपुर्द की, उसके बूते पर उसने संपूर्ण प्रतापगढ़ में वह तूफान बरपाया कि जुर्म की दुनिया में तहलका मच गया।
जिस ब्लैक फोर्सिए ने टुकड़ी का मुकाबला करने की कोशिश की, मार डाला गया।
जिन्हें अवसर मिला, भूमिगत हो गए।
कुल मिलाकर अगर यह कहा जाए तो गलत न होगा कि ब्लैक फोर्स से संबद्ध लोगों में न केवल आतंक छा गया बल्कि भगदड़ मच गई—तेजस्वी के नेतृत्व में चलाए जा रहे इस अभियान को ‘ऑपरेशन सफाया’ नाम दिया गया था।
प्रतापगढ़ की आम पब्लिक बेहद खुश थी।
पच्चीस जीवट जवानों के अलावा ‘ऑपरेशन सफाए’ में तेजस्वी के थाने के हवलदार पांडुराम, सब-इंस्पेक्टर, अन्य पुलिसियों, डी.आई.जी. चिदम्बरम, एस.एस.पी. कुम्बारप्पा और एस.पी. सिटी भारद्वाज भी शामिल था।
सारे दिन और सारी रात यह टुकड़ी उन सभी ठिकानों को अपने कब्जे में लेने के अभियान में जुटी रही जिन पर ब्लैक फोर्स से सम्बद्ध होने का जरा भी शक था।
अगले दिन, दोपहर के करीब बारह बजे पुलिस मुख्यालय में कमिश्‍नर शांडियाल टुकड़ी की मीटिंग ले रहे थे, अब तक की संपूर्ण रिपोर्ट सुनने के बाद वे बोले—“प्रतापगढ़ को ब्लैक फोर्स के आतंक से मुक्त करने के लिए इंस्पेक्टर तेजस्वी ने एक हफ्ते का टाइम मांगा था—हमें खुशी है बल्कि गर्व है कि तेजस्वी ने हफ्ता गुजरने से पहले अपना काम कर दिखाया, आज पुलिस की कार्यवाही …।”
“सॉरी सर!” एकाएक तेजस्वी अपने स्थान से खड़ा होकर बोला—“मैं कुछ कहना चाहता हूं।”
“बोलो तेजस्वी।” शांडियाल खुश थे—“सब लोग तुम्हारे विचार सुनने के लिए आतुर हैं।”
“हालांकि अपने सहयोगियों की मदद से जितना मैं कर पाया उस हम पर संतोष व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन जब तक प्रतापगढ़ की सीमा में थारूपल्ला और काली बस्ती का अस्तित्व है, तब तक हम लोग चैन की सांस नहीं ले सकते।”
तेजस्वी के शब्दों ने मीटिंग में अजीब सनसनी फैला दी।
सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।
लम्बे होते सन्नाटे को और लम्बा होने से रोकते हुए डी.आई.जी. चिदम्बरम ने कहा—“थारूपल्ला के अस्तित्व को मिटा डालने की बात तो समझ आती है इंस्पेक्टर, क्योंकि वह एक व्यक्ति है, मौत के साथ उसका अस्तित्व समाप्त माना जा सकता है, परंतु काली बस्ती एक व्यक्ति नहीं बल्कि ऐसे लोगों का समूह है जिसका बच्चा-बच्चा ब्लैक फोर्स की विचारधारा से जुड़ा है, हिंसक है—मरने-मारने को तत्पर रहता है—इतने बड़े समूह अर्थात मुकम्मल बस्ती को अस्तित्वविहीन करने का अर्थ है सबको मार डालना—और यह तो तुम समझते ही होगे कि ताकत होने के बावजूद कोई सरकार ऐसा नहीं कर सकती—इतने लोगों को इस तरह मार डालने का अर्थ होगा, सारे विश्व में त्राहि-त्राहि मच जाना—संसार का हर राष्ट्र हमारे खिलाफ खड़ा हो जाएगा।”
“मैंने उन सबको मार डालने की बात कब कही?”
“तो काली बस्ती कैसे अस्तित्वविहीन होगी?”
“सांप को मार दें या उसके जहरीले दांत तोड़ डालें—बात एक ही हुई, उद्देश्य होता है कि सांप हमें अपने जहर से नुकसान न पहुंचा सके।”
“गुड!” शांडियाल कह उठे—“लेकिन ये होगा कैसे?”
तेजस्वी ने कहा—“अगर विचार-विमर्श के जरिए हम लोग कोई रास्ता निकाल लें तो इस मीटिंग का होना सार्थक माना जाएगा।”
बात सबको जंची—हर व्यक्ति तेजस्वी से सहमत था मगर रास्ता किसी को नहीं सूझा शायद—इसलिए मीटिंग में पुनः सन्नाटा छा गया और इस बार जिस किस्म की आवाजों ने सन्नाटे को झकझोरा, वे इतनी भयावह थीं कि हर शख्स इस तरह उछल पड़ा जैसे सबकी कुर्सियां एक साथ गर्म तवों में तब्दील हो गई हों।
चेहरों पर हवाइयां काबिज हुईं, हाथ होलेस्टर्स की तरफ लपके।
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आवाजें हैण्ड ग्रेनेड्स के धमाकों की थीं।
इंसानी चीख-पुकार की थीं।
और पुलिस मुख्यालय के ऊपर मंडरा रहे उस हैलीकॉप्टर की थी जिसकी एक सीट पर बैठा मेजर थारूपल्ला शक्तिशाली ट्रांसमीटर के माइक पर लगातार निर्देश जारी किए जा रहा था।
ये निर्देश उसके लिए थे जिसके नेतृत्व में पुलिस मुख्यालय को चारों तरफ से घेर लिया गया था और जिसे मुख्यालय को मलबे के ढेर में बदल देने का काम सौंपा गया था—सिर पर लगे हैडफोन के जरिए थारूपल्ला के निर्देश उसके जहन तक पहुंच रहे थे।
ऐसी बात नहीं कि मुख्यालय की सुरक्षा-व्यवस्था में कोई ढील रही हो, बल्कि सभी अफसरों की मुख्यालय में गोपनीय मीटिंग चल रही होने के कारण सुरक्षा-प्रबन्ध सामान्य अवस्था से कड़े ही थे—शायद इसी कारण ब्लैक फोर्स के लोग अचानक हमला करने के बावजूद सुरक्षाकर्मियों पर हावी न हो सके।
दो सेनाओं के बीच छिड़े युद्ध जैसा दृश्य उपस्थित हो गया।
उधर, मीटिंग हॉल में कोई चीखा—“ब्लैक फोर्स ने मुख्यालय पर हमला कर दिया है।”
सभी ऑफिसर्स, जीवट पुलिसियों की टुकड़ी और पांडुराम तक के हाथ में हथियार नजर आने लगे।
जिसको जिधर जगह मिली लपका।
अंदर की तरफ से बंद हॉल के सभी दरवाजों को किसी-न-किसी ने खोल दिया था—हर शख्स को उस जगह की तलाश थी जहां से खुद को सुरक्षित रखकर ब्लैक फोर्स के आक्रमण का जवाब दे सके।
हाथ में रिवॉल्वर लिए तेजस्वी आंधी-तूफान की तरह एक गैलरी में दौड़ा जा रहा था।
द्रुतगति से भागा चला आ रहा भारद्वाज उससे टकराया।
“मुकम्मल गैलरी पर ब्लैक फोर्स का कब्जा है सर।” हांफते हुए तेजस्वी ने कहा—“इतने ए.के. सैंतालीसधारी तैनात हैं कि रिवॉल्वरों के बूते पर उनसे टकराना समझदारी नहीं …।”
मगर।
तेजस्वी का वाक्य अधूरा रह गया बल्कि उसके हलक से चीख निकल गई।
हाथ में दबा रिवॉल्वर छिटककर दूर जा गिरा।
यह एस.पी. सिटी भारद्वाज द्वारा बिजली की-सी गति के साथ की गई हरकत का परिणाम था—अपने हाथ में दबे रिवॉल्वर का प्रहार उसने इतनी जोर से तेजस्वी की कलाई पर किया था कि जब तक तेजस्वी समझ पाता तब तक देर हो चुकी थी, हैरत में डूबे उसके मुंह से ये शब्द निकले—“इ-इसका क्या मतलब सर?”
“हाथ ऊपर उठा लो तेजस्वी।” भारद्वाज गुर्राया।
तेजस्वी चीख पड़ा—“क्यों … ये सब क्या है?”
“घबराओ मत!” भारद्वाज के होंठों पर कुटिल मुस्कान उभर आई—“इस मोड़ के पार ब्लैक फोर्स के जो लोग खड़े हैं वे तुम्हें मारने के लिए नहीं, सुरक्षित निकाल ले जाने के अभियान पर हैं—ये मुख्यालय बहुत जल्द मेरे और तुम्हारे अलावा सभी पुलिस ऑफिसर्स की कब्रगाह बनने वाला है—सबकी लाशें मलबे के ढेर-तले दबी होंगी, मगर थारूपल्ला तुम्हें नहीं मार सकता—तुम्हें सुरक्षित निकाल ले जाने की ड्यूटी मेरे सुपुर्द की गई है।”
“य-यानि हमारे एस.पी. सिटी साहब ब्लैक फोर्स से पगार पाते हैं?” तेजस्वी दांत पीस उठा।
“जो नहीं पाते उनके रिश्तेदार इस हमले के बाद सारे जीवन रोते रहेंगे।” भारद्वाज के होंठों पर विजयी मुस्कान थी—“देर मत करो—इससे पहले कि कोई बम हमारे ऊपर मौजूद छत पर आ गिरे, यहां से निकलो।”
तेजस्वी हलक फाड़कर चिल्लाया—“मरने से तू डरता है कमीने, तेजस्वी नहीं डरता।”
“आगे बढ़ो।” भारद्वाज कठोर स्वर में गुर्राया।
“नहीं बढ़ा तो क्या करेगा तू?”
“मतलब?”
“मार तो तू मुझे सकता नहीं!” तेजस्वी ने एक-एक शब्द चबाया।
“मैं तेरी टांग तोड़ दूंगा।” भारद्वाज दहाड़ा।
“उससे पहले पीछे खड़े अपने बाप से तो मिल ले।”
भारद्वाज ने फिरकनी की तरह पलटकर पीछे देखा—पीछे तो खैर कोई था नहीं मगर जब तक वापस पलटता, तब तक तेजस्वी का जिस्म गुरिल्ले के जिस्म की तरह हवा में तैरकर उसके ऊपर आ गिरा।
एक-दूसरे से गुंथे दोनों गैलरी के फर्श पर दूर तक लुढ़कते चले गए।
तेजस्वी का हाथ भारद्वाज के हाथ में दबे रिवॉल्वर पर था—उसे यह भी मालूम था कि अगर कोई ए.के. सैंतालीसधारी मोड़ पार करके इधर आ गया तो बाजी उसके हाथ से निकल जाएगी अतः जल्द भारद्वाज से छुटकारा पा लेना चाहता था—इसी प्रयास में भारद्वाज की कलाई उमेठी।
हल्की कराह के साथ रिवॉल्वर भारद्वाज के हाथ से निकल गया।
रिवॉल्वर अपने हाथ में आते ही तेजस्वी छिटककर न केवल उसके जिस्म से अलग हुआ बल्कि उछलकर खड़ा हो गया—एक नजर मोड़ पर डाली, वहां कोई न था—ए.के. सैंतालीसधारियों को शायद सख्ती के साथ अपने स्थान पर खड़े रहने का हुक्म दिया गया था।
भारद्वाज तेजी से खड़ा होता हुआ चिल्लाया—“हैल्प!”
तेजस्वी ने फायर किया, गोली उसके सीने में जा लगी।
“हैल्प मी।” वह लड़खड़ाता हुआ दहाड़ा—“प्लीज … हैल्प मी।”
तेजस्वी समझ सकता था कि वह मोड़ के दूसरी तरफ खड़े ब्लैक फोर्स के लोगों को पुकार रहा है—मोड़ के उस तरफ पदचाप उभरी—तेजस्वी को समझते देर न लगी कि भारद्वाज की पुकार उन तक पहुंच चुकी है और अब वे इसकी मदद के लिए पहुंचने वाले हैं, अतः हिरन की तरह विपरीत दिशा में कुलांचें भरनी शुरू कर दीं।
बमों के धमाके, गोलियों की आवाजें और हैलीकॉप्टर की गड़गड़ाहट अभी तक जारी थी।
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कुम्बारप्पा ने एक खिड़की के पास मोर्चा संभाल रखा था।
उसके सामने, खिड़की के पार करीब पांच ए.के. सैंतालीसधारी थे—दो को वह अपने रिवॉल्वर का निशाना बना चुका था—शायद इसीलिए, उनके बाकी साथियों की मुकम्मल तवज्जो खिड़की पर थी।
उनकी ए.के. सैंतालीसों के मुंह कई बार खिड़की की तरफ खुल भी चुके थे मगर हर बार कुम्बारप्पा दीवार की आड़ में होकर खुद को बचा गया—खिड़की का सारा कांच चकनाचूर हो चुका था।
उसने फायर करने का प्रयास किया।
परंतु रिवॉल्वर से केवल ‘क्लिक’ की आवाज निकलकर रह गई।
उसने झुंझलाहट और निराशा भरे अंदाज में रिवॉल्वर की तरफ देखा।
तभी, भागते कदमों की आवाज उभरी।
तेजस्वी पर नजर पड़ते ही उसकी आंखें चमक उठीं, मुंह से निकला—“वैरी गुड इंस्पेक्टर! बहुत अच्छे समय पर पहुंचे तुम—एक ए.के. सैंतालीसधारी रेंगकर इस खिड़की के नजदीक आने की कोशिश कर रहा है।”
“तो?”
उसने अपने हाथ में मौजूद रिवॉल्वर की तरफ इशारा किया—“ये खाली हो चुका है।”
“मैं देखता हूं सर।” कहने के साथ तेजस्वी ने खिड़की के कोने से बाहर झांकने का प्रयास किया था कि तड़तड़ाहट की आवाज के साथ गोलियों की बाढ़ खिड़की पर झपटी—तेजस्वी ने यदि तुरंत चेहरा वापस न खींच लिया होता तो निश्चित रूप से गोलियों ने उसके चेहरे का भूगोल बदल दिया होता।
“सम्भलो इंस्पेक्टर!” ये शब्द एस.एस.पी. के हलक से स्वतः निकले—“वे अपने एक साथी को खिड़की के नीचे पहुंचाना चाहते हैं—योजना शायद ये है कि हमें उस पर फायर करने का अवसर न दिया जाए।”
“मैं समझ गया सर।” इस बार तेजस्वी ने पूरी सावधानी के साथ कोने की खिड़की से इस तरफ रेंग रहे ए.के. सैंतालीसधारी की पोजीशन ध्यान से देखी—उधर से तुरंत गोलियों की बाढ़ झपटी मगर तेजस्वी पुनः अपने चेहरे को वापस खींच चुका था—उधर से गोलियां चलनी बंद हुईं और इधर तेजस्वी ने अपना रिवॉल्वर वाला हाथ खिड़की में डालकर बगैर निशाना साधे एकमात्र फायर किया।
बाहर से चीख की आवाज उभरी।
“कमाल कर दिया तुमने।” एस.एस.पी. प्रशंसनीय स्वर में कह उठा—“बगैर निशाना साधे …।”
“पहले झटके में मैं उसकी पोजीशन देख चुका था।”
“फिर भी, इस तरह निशाना लगाना हैरतअंगेज है।”
“मैं अक्सर हैरतअंगेज काम कर दिखाता हूं सर—अगर मुझमें ऐसे काम करने की क्षमता न होती तो इतने बड़े प्रदेश में से ट्रिपल जैड ने मुझे ही न चुना होता।”
“क-क्या मतलब?”
तेजस्वी ने बड़ी जबरदस्त मुस्कान के साथ पूछा—“क्या आप ट्रिपल जैड को नहीं जानते?”
एस.एस.पी. महोदय हकबका गए—एकदम से सूझा नहीं, इंकार करें या स्वीकार, जबकि तेजस्वी अपनी मुस्कान को और ज्यादा गहरी करता बोला—“घबराइए नहीं सर, मैं भी उसी किश्ती पर सवार हूं जिस पर आप और डी.आई.जी. साहब हैं।”
कुम्बारप्पा के हाथों से मानो तोते उड़ गए—भाड़ सा मुंह फाड़े तेजस्वी की तरफ देखता रह गया वह—मगर फिर शीघ्र ही खुद को संभाला और बोला—“य-यानि तुम्हें सब मालूम है?”
“चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं सर।”
“हमारे चौंकने का कारण हमारे बारे में तुम्हारा जानना नहीं बल्कि ये है कि तुम भी उसी किश्ती के सवार हो—हम बेवकूफ हर मुलाकात पर ट्रिपल जैड को समझाते रहे, वह तुम्हें खरीदने की कोशिश न करे।”
“जो वो बरसाता है उसकी जरूरत किसे नहीं होती सर?”
“बिल्कुल ठीक कहा तुमने।” कुम्बारप्पा अब पूरी तरह सामान्य नजर आने लगा था—“खैर, हम और डी.आई.जी. साहब शुरू से यह जानने के लिए मरे जा रहे हैं कि आखिर वह काम क्या है जिसके लिए ट्रिपल जैड इतनी दौलत खर्च कर रहा है—बार-बार पूछने के बावजूद न केवल उसने बताने से इंकार कर दिया बल्कि चेतावनी भी दी कि अगर जानने की कोशिश की तो जान से हाथ धो बैठोगे।”
“ऐसा?”
“तुम्हें तो मालूम होगा?”
“क्या?”
“क्या काम है वह?”
“करने वाले को मालूम न होगा तो काम होगा कैसे?”
“तो बताओ, क्या कराना चाहता है वह?”
“आपने अभी-अभी बताया सर—उसने कहा था, मालूम करने की कोशिश करोगे तो जान से हाथ धोना पड़ेगा।”
“ये बात उसने कही थी।” एकाएक कुम्बारप्पा की आवाज में एस.एस.पी. वाला रुआब उभर आया—“हम तुमसे पूछ रहे हैं—तुम हमारे इंस्पेक्टर हो तेजस्वी, जवाब दो, क्या काम सौंपा है उसने?”
“हमाम में सब नंगे होते हैं एस.एस.पी. साहब, जब मेरे और आपके जिस्म पर कपड़े ही न रहे तो कौन एस.एस.पी., कौन इंस्पेक्टर?” तेजस्वी के दांत भिंचते चले गए—“आप और डी.आई.जी. साहब महामूर्ख हैं—जो होने वाला है उसे आप लोग पचा नहीं पाएंगे। फिर क्यों न असली काम करने से पहले आप दोनों को इस दुनिया से रुखसत कर दिया जाए?”
“य-ये क्या बक रहे हो तुम?” एस.एस.पी. महोदय हलक फाड़ उठे।
“और आपसे निजात पाने का इससे खूबसूरत मौका मेरे हाथ नहीं लगेगा।” इन शब्दों के साथ तेजस्वी कुम्बारप्पा पर झपट पड़ा और उसे घसीटकर खिड़की के ठीक सामने ले गया और बोला—“गुड बाय सर, गॉड आपकी आत्मा को शांति प्रदान करे।”
बाहर मौजूद ए.के. सैंतालीसें गरजीं।
असंख्य गोलियां एक साथ कुम्बारप्पा के जिस्म के परखच्चे उड़ा गईं ।
तेजस्वी का जिस्म उसके जिस्म के पीछे था—लाश लिए वह खिड़की के नजदीक से हटा—खुद को सुरक्षित करने के बाद लाश को खिड़की की तरफ धकेला और आगे बढ़ गया।
धूम-धड़ाका अब भी जारी था मगर तेजस्वी के चेहरे पर शिकन तक न थी—मुंह से किसी फिल्मी गाने की धुन को सीटी का स्वर दिए बढ़ा चला जा रहा था वह।
वह जिसे शतरंजी चालें चलने का एक्सपर्ट माना जाता था।
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12-31-2020, 12:24 PM,
#58
RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“हैलो … हैलो।” हैलीकॉप्टर में बैठा थारूपल्ला माइक पर जोर-जोर से चीख रहा था—उसे लग रहा था आवाज वहां नहीं पहुंच रही है जहां पहुंचाना चाहता था, इसीलिए चीखना पड़ रहा था उसे, मगर हल्की सी यांत्रिक खड़खड़ाहट के बाद हैडफोन के जरिए उसके कानों में आवाज पड़ी—“हैलो सर, हैलो … मैं कुछ कहना चाहता हूं, क्या मेरी आवाज आप तक पहुंच रही है?”
“हां, बोलो!” थारूपल्ला ने जोर से माइक पर कहा।
“एक जरूरी मैसेज है सर।” दूसरी तरफ से कहा गया।
“उसे छोड़ो, पहले हमारे सवाल का जवाब दो।” थारूपल्ला गुस्से में नजर आ रहा था—“हमें वह ट्रक अभी तक अपने स्थान पर खड़ा क्यों नजर आ रहा है जिसे प्लान के मुताबिक अब से पांच मिनट पूर्व इंस्पेक्टर को साथ लेकर चल पड़ना चाहिए था?”
“मैसेज उसी संबंध में है सर—उस तरफ वाली टुकड़ी के मुताबिक ऑपरेशन नाकाम हो गया है।”
“क-क्या?” थारूपल्ला दहाड़ उठा।
“स-सॉरी सर।” आवाज से जाहिर था कि दूसरी तरफ वाला कांप रहा है।
“कैसे हो गया ये सब? मुख्य ऑपरेशन कैसे नाकाम हो गया?”
“मुझे केवल इतना बताया गया है कि एस.पी. सिटी इंस्पेक्टर को गैलरी के एक मोड़ तक ले आया था मगर उसके बाद जाने क्या हुआ, इंस्पेक्टर एस.पी. का मर्डर करने के बाद वापस इमारत में चला गया।”
“यानि इस वक्त वह मुख्यालय में है?”
“यस सर।”
“तो हम मुख्यालय को मलबे के ढेर में कैसे तब्दील करेंगे?” थारूपल्ला दहाड़ उठा।
“मजबूरी है सर, आपको उसके रहते इमारत पर बमबारी शुरू कर देनी चाहिए—इमारत के अंदर मोर्चा संभाले वे लोग हम पर पहले ही से भारी पड़ रहे हैं—अगर आपने तुरंत इमारत को ध्वस्त करके इसे सभी पुलिसवालों की कब्रगाह न बना दिया तो हम लोग जबरदस्त संकट में फंस जाएंगे।”
“नहीं … जब तक इंस्पेक्टर इमारत में है तब तक हम वहां एक भी बम नहीं गिरा सकते।”
“त-तो क्या करें सर?”
“क्या इंस्पेक्टर को बाहर निकालने का कोई रास्ता नहीं है?”
“मेरी समझ में नहीं आ रहा, आप ही बता दें तो बेहतर होगा।”
बेचारा थारूपल्ला!
क्या बता देता?
एस.पी. सिटी की मौत उसकी मुकम्मल योजना को पीट चुकी थी, लगभग पस्त स्वर में हुक्म दिया उसने—“जैसे भी हो, अपने बाकी साथियों के साथ काली बस्ती पहुंचो।”
चकित स्वर—“जंग बीच में छोड़कर?”
“जिस जंग से कोई लाभ नहीं निकलना, उसे लड़ते रहना बेवकूफी है।” दहाड़ने के साथ उसने ट्रांसमीटर ऑफ कर दिया और सीधा चालक से बोला—“वापस चलो।”
“व-वापस?” वह चौंका, पॉलीथीन की थैली में रखे ढेर सारे बमों की तरफ देखता हुआ बोला—“आपने तो कहा था इनके इस्तेमाल से पुलिस मुख्यालय को मलबे का ढेर बना देना इस मिशन का क्लाइमैक्स होगा?”
“बकवास बंद करो।” थारूपल्ला चिंघाड़ उठा—“और वापस चलो।”
चालक सहम गया।
मुंह से बोल न फूटा।
मगर यह बात उसकी समझ में बिल्कुल नहीं आ रही थी कि जब बम भी हैं और वह इमारत भी जिसे ध्वस्त करने के टार्गेट से यहां आए थे तो बगैर टार्गेट पूरा किए वापस जाने का हुक्म क्यों मिला है—अभी वह इसी उलझन में फंसा हुआ था कि ‘टांय’ से गोली हैलीकॉप्टर की टंकी में आ लगी।
हैलीकॉप्टर लड़खड़ाया।
“इसे संभाल बेवकूफ!” चीखने के साथ थारूपल्ला ने बगल में रखी ए.के. सैंतालीस उठाकर पुलिस मुख्यालय की छत पर नजर आ रहे उस एकमात्र शख्स पर गोलियां बरसा दीं जिसने हैलीकॉप्टर पर गोली चलाने की हिमाकत की थी, मगर उस शख्स को गोलियों से बचकर वाटर टैंक के पीछे छुपते उसने साफ देख लिया।
मारे गुस्से के मानो पागल हो गया थारूपल्ला, दहाड़ा—“मैं इस हरामी के पिल्ले को नहीं छोड़ूंगा, हैलीकॉप्टर उधर लो।”
“सॉरी सर।” चालक बौखलाया हुआ था—“टंकी में आग लग चुकी है।”
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“बात समझ में नहीं आई तेजस्वी।” कमिश्‍नर शांडियाल ने पूछा—“तुमने हमसे अकेले में मिलने की इच्छा क्यों प्रकट की?”
“एक ऐसी घटना घट गई है सर, जिसके बाद मुझे किसी पर कोई विश्वास नहीं रह गया है।”
वहां मौजूद नंबर वन ने पूछा—“और हम पर?”
“पूरी बात सुनने के बाद आप लोगों को अपनी यहां मौजूदगी का कारण समझ में जा आएगा।”
“तो बोलो, ऐसी क्या खास बात करनी है जिसे बताने के लिए तुमने हमें इकट्ठा किया है?”
“एस.एस.पी. साहब ने मेरी इन बांहों में दम तोड़ा है।” तेजस्वी की आवाज गमगीन हो उठी, आंखें शून्य में स्थित हो गईं—जैसे कुम्बारप्पा की मौत का दृश्य इस वक्त भी आंखों के सामने मौजूद हो, कहता चला गया वह—“किसी ने सच कहा है—मरते हुए इंसान के भीतर मौजूद सभी शैतानों के ऊपर उसकी पवित्र आत्मा हावी हो जाती है—ऐसा ही शायद एस.एस.पी. साहब के साथ हुआ था तभी तो … तभी तो मरने से क्षण-भर पूर्व वे मुझे वह सब बता गए जो उनकी जिंदगी में अगर किसी को पता लग जाता तो या खुद मर जाते या जानने वाले को मार डालते।”
सबका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
नम्बर वन ने पूछा—“ऐसा क्या कहा उन्होंने?”
“बोले, अपने जीवन में जो कुछ मैंने किया आज … इस वक्त मुझे उस पर पश्चाताप हो रहा है तेजस्वी, चंद नोटों की एवज में मैंने अपना ईमान, धर्म, सत्य, निष्ठा सब कुछ बेच डाला और मैंने ही क्यों डी.आई.जी. चिदम्बरम भी तो पाप के उसी रथ पर सवार थे।”
“च-चिदम्बरम?” शांडियाल उछल पड़े—“चिदम्बरम के बारे में उसने ऐसा कहा?”
“हां।”
“क्या बताया एस.एस.पी. ने?” नंबर टू व्यग्र हो उठा—“किसके हाथों बिके थे वे?”
“ट्रिपल जैड के हाथों।”
“क-क्या?” एक साथ पांचों उछल पड़े।
“अब समझ में आ गया होगा मैंने आप लोगों को यहां क्यों बुलाया—दरअसल ट्रिपल जैड से संबंधित जानकारी मैं आप ही लोगों को देना चाहता था—क्योंकि इस शख्स की प्रतापगढ़ में मौजूदगी की बात आपके चीफ ने मीटिंग में सबसे पहले कही थी।”
“एस.एस.पी. ने और क्या बताया?”
“गोलियों से बुरी तरह छलनी थे वे—मैं पूछता रह गया कि ट्रिपल जैड के लिए वे क्या काम करते थे, उन्होंने बताने की कोशिश भी की, मगर मुंह से अल्फाजों की जगह रूह निकल गई—न ये बता सके कि ट्रिपल जैड उनसे क्या काम ले रहा था—न ही यह कि वह कहां रहता है, उनसे और चिदम्बरम से कहां मिलता था।”
गुस्से की ज्यादती के कारण शांडियाल का संपूर्ण जिस्म कांप रहा था, मुंह से शब्द भभकती आग की मानिन्द फूटे—“इन सवालों का जवाब चिदम्बरम को देना होगा—हम उसे इसी वक्त यहां बुलाते हैं।”
“मेरे ख्याल से यह उचित नहीं होगा सर।” नंबर वन ने कहा।
“क्यों?” शांडियाल दहाड़ उठे—“क्यों उचित नहीं होगा—अगर पुलिस का इतना बड़ा अफसर देशद्रोहियों के हाथों बिका हुआ है तो बाकी बचा ही क्या?”
“बस सर … बस!” तेजस्वी कह उठा—“मात्र यही एक बात मेरे दिलो-दिमाग को लील गई—मरते हुए एस.एस.पी. साहब ने जो कुछ बताया, उसके बाद मुझे किसी पर कोई विश्वास नहीं रह गया है।”
“हमें भावुकता और उत्तेजना पर काबू पाकर धैर्य से काम लेना होगा।” नंबर वन कहता चला गया—“हमारा उद्देश्य ट्रिपल जैड तक पहुंचना है और अगर मरते हुए कुम्बारप्पा के बयान को सच मान लिया जाए तो डी.आई.जी. चिदम्बरम वह एकमात्र शख्स है जिसके माध्यम से यह काम हो सकता है—मगर तभी जब वक्त से पहले उस पर जाहिर न होने दें कि मरते हुए कुम्बारप्पा ने किसी से कुछ कहा था, क्यों इंस्पेक्टर?
“मैं इस बारे में अपनी कोई राय प्रकट करना मुनासिब नहीं समझता।” तेजस्वी ने सपाट लहजे में कहा—“जो इन्फॉरमेशन मिली थी वह आप तक पहुंचा दी—अब आपको जो उचित लगे करें—मेरा लक्ष्य स्टार फोर्स है—ट्रिपल जैड की तरफ ध्यान देकर मैं अपने दिमाग को ‘डाइवर्ट’ करने के पक्ष में नहीं हूं।”
“फिर भी, क्या ये मुनासिब होगा कि बगैर ट्रिपल जैड तक पहुंचने की कोशिश किए चिदम्बरम पर हाथ डाल दिया जाए?”
“मेरे ख्याल से नहीं।”
“ओ.के.।” शांडियाल ने कहा—“चिदम्बरम के जरिए ट्रिपल जैड तक पहुंचने की कोशिश की जाएगी।”
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12-31-2020, 12:25 PM,
#59
RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“गुड … वैरी गुड।” आईने के सामने खड़ा देशराज प्रसन्नता के आवेगवश कांप रहा था—उसके एक हाथ में जुंगजू का फोटो था—आईने में नजर आ रही अपनी सूरत से फोटो का मिलान करता वह कहता चला गया—“आपने कमाल कर दिखाया डॉक्टर शुक्ला, खुद जुंगजू भी अगर मुझे अपने सामने खड़ा पाए तो इस भ्रम का शिकार हो जाए कि वह आईने के सामने खड़ा है—एक-एक दाग, एक-एक झुर्री मिला दी है आपने।”
“ये कमाल हमने नहीं, खुद तुमने किया है बरखुरदार।” शुक्ला ने नाक पर सरक आए चश्मे को आदत के मुताबिक दुरुस्त करते हुए कहा—“हम बार-बार एक ही बात रटे जा रहे थे—यह कि ऐसा असंभव है मगर तुमने असंभव को संभव कर दिखाया—तुम्हारे ही दिमाग का आइडिया था और तुम्हारी ही हिम्मत थी जिसके कारण ये सब हो सका—वर्ना … वर्ना कोई खुद पर इस तरह तेजाब डालकर बदसूरत नहीं बन सकता—ऊपर वाला तुम्हें तुम्हारे मिशन में कामयाबी दे देशराज—तुम्हारी ललक और तुम्हारी देशभक्ति को ये डॉक्टर सैल्यूट मारकर सलाम करता है।”
“जो चमत्कार हुआ है उसका सारा श्रेय मुझे दे डालना आपकी महानता है डॉक्टर शुक्ला—आइडिया मेरा जरूर था मगर उसे आपके अलावा दुनिया का कोई शख्स परवान नहीं चढ़ा सकता था।
“तुम लोग एक-दूसरे का प्रशस्तिगान करते रहोगे या मुख्य मुद्दे पर भी आओगे?” काफी देर से खामोश खड़े कमिश्‍नर शांडियाल ने कहा—“और तुम शायद वह भी भूल गए, डॉक्टर शुक्ला, जो मुश्किल से पांच मिनट पहले खुद कहा था।”
“क्या कहा था हमने?”
“यह कि अभी देशराज का बैड से उठना उचित नहीं है।”
“हां … हां, हमने ऐसा कहा था और ये ठीक भी है।” डॉक्टर शुक्ला ने इस तरह कहा जैसे सचमुच उसे अपनी कही बात शांडियाल के याद दिलाने पर ही याद आई हो—“मगर इस देशराज के बच्चे की जिद्द के आगे भला चलती किसकी है! जिद्द करके आईने तक आ ही गया।”
“हम इसे वापस बिस्तर पर लिटाने के लिए कह रहे हैं।”
“हां … हां … चलो बिस्तर पर लेटो।” कहने के साथ शुक्ला ने देशराज के बाजू पकड़ लिए।
“आप बेवजह मुझे बीमार बनाए दे रहे हैं सर।” बिस्तर की तरफ बढ़ते देशराज ने कहा—“असल में मैं खुद को इतना स्वस्थ महसूस कर रहा हूं कि इसी क्षण से जेल में जाकर जुंगजू का रोल अदा कर सकता हूं।”
“फिक्र मत करो—हमारे जाल में फंसा वह भी वही रोल अदा कर रहा है जो उसे समझाया गया था।”
“उस पर कड़ी नजर रखी जा रही है न?” बैड पर लेटते देशराज ने पूछा।
“नि‌िश्‍चंत रहो, हर सांस का हिसाब रखा जा रहा है।”
“मामला कहां तक पहुंचा?”
“माचिस की जली हुई तिल्ली से लिखी पर्ची ब्लैक फोर्स के मैम्बर तक अगले ही दिन पहुंच गई थी—कल उसने पुनः एक पर्ची जुंगजू को पहुंचाई जिसमें लिखा है, ऑपरेशन रात के ठीक एक बजे शुरू होगा।”
“यानि मामला ठीक चल रहा है?”
“सब ठीक है—तुम फिक्र मत करो।”
“मगर अभी मुझमें और जुंगजू में एक फर्क है।”
“क्या?” शांडियाल और शुक्ला ने एक साथ पूछा।
“उसके मुंह में आगे वाले दो दांत नहीं हैं।”
“तो?”
जवाब में जब देशराज ने मुंह खोलकर अपने दोनों दांत बैड के पुश्त वाले लोहे के पाइप पर पटकने शुरू किए तो शांडियाल और शुक्ला बौखला उठे—परंतु उसे अपने दोनों दांत तोड़ लेने से न रोक सके।
देशराज का मुंह खूनमखून हो चुका था।
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घंटी बजते ही नंबर वन ने रिसीवर उठा लिया, मगर माउथपीस में बोला कुछ नहीं, रिसीवर के अंदर से अभी तक लाइन पर रिंग जाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी—नंबर टू, थ्री और फोर चेहरों पर जिज्ञासा के बेशुमार भाव लिए वन को देखे जा रहे थे।
एकाएक लाइन पर रिसीवर उठाए जाने का खटका उभरा, डी.आई.जी. चिदम्बरम की आवाज—“हैलो!”
“हम बोल रहे हैं।” दूसरी तरफ से कहा गया।
“ओह!” चिदम्बरम का चौकस स्वर—“सर, आप?”
“हम तुमसे मिलना चाहते हैं।”
“हुक्म कीजिए सर।”
“अभी, इसी वक्त … फौरन चल पड़ो।”
“इ-इस वक्त सर, अभी तो रात के बारह …।”
“शटअप!” गुर्राया गया—“दो लाख कमाना चाहते हो तो इसी वक्त आ जाओ।” इन शब्दों के बाद संबंध विच्छेद कर देने की ध्वनि उभरी—संक्षिप्त वार्त्ता को सुनते-सुनते नंबर वन के मस्तक पर पसीना छलछला आया था, अपने हाथ में मौजूद रिसीवर बहुत आहिस्ता से क्रेडिल पर तब रखा जब चिदम्बरम की तरफ से भी रिसीवर रखे जाने की हल्की आवाज सुन चुका।
“किसका फोन था?” नंबर फोर ने पूछा।
वन ने कहा—“शायद उसी का।”
“शायद?” टू का सवाल।
“उसने नाम नहीं लिया मगर अंदाज रहस्यमय था और चिदम्बरम सर … सर कह रहा था, हवा शंट थी उसकी।”
“क्या बात हुई?” थ्री ने पूछा।
“फोनकर्त्ता ने चिदम्बरम को इसी वक्त बुलाया है।”
“कहां?”
“जगह का नाम किसी के द्वारा नहीं लिया गया।”
“यानि चिदम्बरम को मालूम है उसे कहां पहुंचना है!”
“यकीनन।”
“क्या वह पहुंच रहा है?”
“रात के बारह बजे होने के कारण हिचका था परंतु रहस्यमय शख्स ने डांट दिया—साथ ही कहा, दो लाख कमाना चाहते हो तो फौरन आना पड़ेगा और जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।”
“अर्थात वह जानता है कि चिदम्बरम पहुंचेगा।”
“शायद।”
“गुड।” कहने के साथ नंबर टू उस खिड़की की तरफ लपका जिससे सड़क के पार डी.आई.जी. चिदम्बरम की कोठी का मुख्यद्वार ही नहीं बल्कि लॉन और वृक्षों से घिरी इमारत तक साफ नजर आ रही थी—लिखने की आवश्यकता नहीं रह गई है कि इस वक्त वे शांडियाल की मेहरबानी से डी.आई.जी. की कोठी के ठीक सामने वाली कोठी की ऊपरी मंजिल के एक कमरे में मौजूद थे और डी.आई.जी. के फोन से कनेक्टिड एक इन्स्ट्रूमेंट इस कमरे में था।
नंबर वन, थ्री और फोर भी खिड़की के नजदीक सिमट आए।
कुछ देर बाद डी.आई.जी. की कोठी के बैडरूम की लाइट ऑन हुई, फोर कह उठा—“वह रवानगी की तैयारी कर रहा है, हमें नीचे, अपनी गाड़ी के नजदीक पहुंच जाना चाहिए।”
बात सबको जंची, अतः ऐसा ही किया गया।
पंद्रह मिनट बाद उसकी गाड़ी उस गाड़ी को फॉलो कर रही थी जिसे चिदम्बरम स्वयं ड्राइव कर रहा था—स्पेशल केन्द्रीय कमांडो दस्ते के कमांडोज ने अपनी गाड़ी की हैडलाइट तो क्या, पार्किंग लाइट तक ऑफ कर रखी थी।
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12-31-2020, 12:25 PM,
#60
RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“अब तुम्हें इंस्पेक्टर तेजस्वी को खरीदना होगा।” मेज पर नोटों की गड्डियां डालते ट्रिपल जैड ने कहा।
“क-क्या बात कर रहे हैं आप?” चिदम्बरम हकला उठा—“मैंने और कुम्बारप्पा ने पहले ही कहा था—दुनिया के हर शख्स को खरीदा जा सकता है, तेजस्वी को नहीं, वह …।”
“हमने सुना था डी.आई.जी. साहब, उस वक्त नहीं कहा था अब कह रहे हैं—जो सौगात इस वक्त मेज पर पड़ी है उससे इंसान को तो क्या, उसे बनाने वाले तक को खरीदा जा सकता है—तुम कोशिश करो, कोई लिमिटेशन नहीं है—करोड़, दो करोड़, दस करोड़ … जहां सौदा पटे पटा लो।”
“ये काम मुझसे नहीं होगा सर।”
ट्रिपल जैड गुर्राया—“क्या बका तुमने?”
“स-समझने की कोशिश कीजिए, मैं तेजस्वी को अच्छी तरह जानता हूं—इधर मैं उसे खरीदने की कोशिश करूंगा, उधर वह झपटकर मेरी गर्दन पकड़ लेगा।”
“वहम है तुम्हारा, ऐसा कुछ होने वाला नहीं है।” चमकदार काले जूते, काली पैंट, काले ओवरकोट और सफेद ग्लव्स पहने रहस्यमय शख्स ने काले लैंसों वाला अपना चौड़े फ्रेम का चश्मा दुरुस्त किया—चिदम्बरम की आंखें उसके लम्बे बालों और घनी दाढ़ी-मूंछ पर स्थिर थीं जबकि वह चहलकदमी करता हुआ कहता चला गया—“सारा जीवन मैंने लोगों को खरीदने में गुजारा है और उसी अनुभव के आधार पर कहता हूं कोई भी शख्स केवल तब तक बिकाऊ नहीं जब तक उसके अनुरूप कीमत नहीं लगाई जाती—कीमत के मामले में मैं तुम्हें आजाद कर रहा हूं, अतः शीघ्र ही उस तेजस्वी को अपनी आंखों से बिकता देखोगे जिसके बारे में आज तुम्हारी धारणा यह है कि …।”
झनाक … झनाक।
ट्रिपल जैड का वाक्य पूरा होने से पहले ही कमरे में कांच टूटने की आवाज गूंजी।
दोनों ने एक साथ चौंककर खिड़कियों की तरफ देखा—अभी हिल तक नहीं पाए थे कि कमरे में गुर्राहट उभर गई—“डोन्ट मूव मिस्टर ट्रिपल जैड एण्ड चिदम्बरम! जरा भी हिले तो गोलियों से भून दिए जाओगे।”
कमरे की दो दीवारों में बड़ी-बड़ी खिड़कियां थीं—दोनों का कांच फर्श पर बिखरा पड़ा था—ग्रिल्स के बाहर दो कमांडो खड़े थे—दोनों का एक-एक हाथ ग्रिल्स के बीच से होकर कमरे में प्रविष्ट नजर आ रहा था—दोनों हाथों में एक-एक रिवॉल्वर था और रिवॉल्वर की नालें उन्हें घूर रही थीं।
तभी, अंदर से बंद दरवाजे पर बाहर से चोट पड़ने लगी।
“तुम दोनों बुरी तरह घिर चुके हो।” दाईं ग्रिल के पार खड़ा कमांडो गुर्राया।
चिदम्बरम का मानो दिमाग ही ठप्प हो गया था—एक ही बात गूंज रही थी उसमें, इन लोगों द्वारा उसकी यहां से गिरफ्तारी का अर्थ जीते-जी मौत को प्राप्त हो जाना है … बल्कि जीवित रहकर सांसें लेना एक बार मर जाने से असंख्य गुना कष्टप्रद होगा—जबकि ट्रिपल जैड जाने क्या सोचकर कमांडो के हुक्म का पालन करने की-सी मुद्रा में दरवाजे की तरफ बढ़ा।
बाहर से दरवाजे को निरंतर तोड़ डालने का प्रयास किया जा रहा था।
सोफे के करीब से गुजरता ट्रिपल जैड एकाएक उसकी पुश्त की बैक में बैठ गया—ग्रिल्स के बाहर खड़े दोनों कमांडोज के रिवॉल्वर्स ने आग उगली—मगर दोनों गोलियां पुश्त में धंसकर रह गईं ।
इधर, किसी सुरक्षित स्थान की तलाश में चिदम्बरम हिला ही था कि एक साथ दो गोलियां उसकी टांगों में आ धंसीं—एक दाईं खिड़की से चली थी, दूसरी बाईं से—चिदम्बरम चीख के साथ त्यौराकर फर्श पर गिरा—उधर सोफे की पुश्त की बैक से गोलियां दोनों खिड़कियों पर झपटीं।
कमांडोज दीवार की आड़ में होकर खुद को बचा गए।
चिदम्बरम ने अपनी जेब से रिवॉल्वर निकाला।
कनपटी पर रखा और ट्रेगर दबा दिया।
उधर, भड़ाक की जोरदार आवाज के साथ दरवाजा टूटा।
वहां एक साथ दो कमांडोज खड़े नजर आए—वे ट्रिपल जैड के ठीक सामने थे अर्थात—उनके लिए वह किसी बैक में नहीं था अतः घबराकर दो फायर किए—एक गोली एक कमांडो के कंधे में जा धंसी जबकि दूसरी खाली गई—मगर जवाब में दरवाजे से चलीं गोलियां उसके प्राण पखेरू उड़ा चुकी थीं।
सोफे की पुश्त की बैक में ट्रिपल जैड की लाश पड़ी रह गई।
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“ये क्या बेवकूफी की तुमने?” एम.पी. ठक्कर भन्ना उठा—“इसका मतलब ये हुआ अब दुनिया में हमें यह बताने वाला कोई जीवित नहीं रहा कि ट्रिपल जैड प्रतापगढ़ में क्यों सक्रिय था—कुम्बारप्पा और चिदम्बरम से क्या काम ले रहा था तथा तेजस्वी को क्यों खरीदना चाहता था?”
“हालात ही ऐसे थे सर, हम मजबूर हो गए।” नंबर वन ने कहा—“एक गोली नंबर फोर के कंधे में धंस चुकी थी—इस वक्त वह हॉस्पिटल में है—अगर मैं सेकेंड के सौवें हिस्से के लिए भी चूक जाता तो वह हमें भूनकर रख देता और चिदम्बरम ने तो खुद ही खुद को खत्म कर लिया।”
“जो हुआ, तारीफ के लायक नहीं हुआ नंबर वन—मगर अब किया क्या जा सकता है—खैर, कुछ पता लगा ट्रिपल जैड किस देश के लिए काम कर रहा था?”
“हमने उसके नकली बाल, दाढ़ी-मूंछ और चश्मा आदि उतारकर देखे सर—वह रूसी, जर्मनी, अमेरिकी आदि किसी भी देश का हो सकता है—उसके लिबास, यहां तक कि फ्लैट की तलाशी के बावजूद ऐसी कोई वस्तु हाथ न लग सकी जिससे किसी देश से उसका संबंध जुड़ सके, हां—नंबर फाइव का रिवॉल्वर उसकी जेब से जरूर मिला है।”
“नंबर फाइव का रिवॉल्वर?”
“जी हां, लगता है नंबर फाइव का हत्यारा वही था—निश्चित रूप से फाइव ने अकेले ही जाकर ट्रिपल जैड से भिड़ जाने की भूल की।”
“यानि तुमने हमें केवल यह बताने के लिए संपर्क स्थापित किया है कि नंबर फाइव का हत्यारा मारा जा चुका है?” आवाज बता रही थी कि ठक्कर गुस्से में है—“यह कार्यवाही तुम लोगों की सर्विस बुक में सफलता वाले कॉलम में नहीं नंबर वन, असफलता वाले कॉलम में दर्ज होगी, समझे?”
नंबर वन के चेहरे पर निराशा फैल गई।
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“मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं साब।”
“बोलो पांडुराम।”
पांडुराम अच्छी तरह जानता था इस वक्त तेजस्वी के ऑफिस में तो क्या गैलरी तक में कोई नहीं है, फिर भी उसने चोर नजरों से चारों तरफ देखा—चेहरे पर खौफ के भाव गर्दिश कर रहे थे, तेजस्वी ने हौसला अफजाई की—“फिक्र मत करो पांडुराम, हम यहां अकेले हैं।”
“थ-थारूपल्ला के द्वारा मेरे सुपुर्द एक काम किया गया है साब।” फुसफुसाने के बावजूद वह अपने लहजे में उत्पन्न होने वाली हकलाहट से न बच सका।
“क्या?” तेजस्वी ने पूछा।
“आपको बेहोश करना।”
“बेहोश कैसे करोगे?”
“मेरे पास एक टेबलेट पहुंचाई गई है।” कहने के साथ उसने जेब से एक गोली निकालकर तेजस्वी को दिखाई—“कहा गया है, इसे पानी में या किसी पेय पदार्थ में डालकर आपको पिला दूं—आपको कतई महसूस नहीं होगा कि पेय पदार्थ के साथ कोई अतिरिक्त चीज दी गई है।”
“ओह!” तेजस्वी के मस्तक पर बल पड़ गए।
इधर उसका दिमाग तेजी से काम कर रहा था, उधर पांडुराम गिड़गिड़ा उठा—“अ-आप समझ सकते हैं साब, ये सब बताकर मैंने कितना भारी रिस्क लिया है—अब मेरी हिफाजत आपके हाथों में है—झूठ नहीं बोलूंगा, आपने इतना सब कर दिया मगर मेरे दिमाग पर आज भी ब्लैक फोर्स का इतना खौफ हावी है कि एक बार को ख्याल आया, अपनी खैरियत की खातिर चुपचाप उसके हुक्म को बजा डालूं। परंतु फिर, मेरे अंदर से जाने किसने कहा ‘नहीं पांडुराम, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए—अगर तूने यह सब किया तो तू खुद को कभी माफ नहीं कर पाएगा’—शायद मुझसे यह सब कहने वाली मेरी अंतरात्मा थी साब—मेरे जमीर ने आपसे गद्दारी करना कुबूल नहीं किया—ये सच है मैं वर्षों से ब्लैक फोर्स के लिए काम कर रहा हूं—मगर यह भी सच है, ये सब मैं उसके खौफ से ग्रस्त होकर करता रहा हूं—यह सोचकर करता रहा हूं कि मुझ जैसा कमजोर आदमी यह सब करने के लिए मजबूर है—आपके संघर्ष, आपकी हिम्मत के समक्ष मैं नतमस्तक हूं और यह सोचकर आपको सब कुछ बता दिया है कि भले ही मेरा अंजाम चाहे जो हो, परंतु आप जैसे जीवट शख्स की मौत का कारण हरगिज नहीं बनूंगा।”
“चिंता मत कर पांडुराम, तुझे अपने फैसले पर कभी पछताना नहीं पड़ेगा।” तेजस्वी ने शाबासी देने वाले अंदाज में उसका कंधा थपथपाया।
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