Maa Sex Kahani माँ का आशिक - Page 7 - SexBaba
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शादाब का दिल तड़प उठा अपनी अम्मी की ये दर्द वाली बात सुनकर इसलिए उसकी आंखे छलक उठी और बोला;"

" अम्मी आपको सिर्फ जिस्मानी दुख हुआ है और आपके दर्द से मुझे जो रूहानी दुख पहुंचा है मैं बता नहीं सकता। अम्मी अंदर तक टूट गया हूं मैं।

शहनाज़ ने अपने बेटे की आंखे साफ करी और उसे अपने सीने से लगा लिया और बोली:"

" मुझे आज एहसास हो गया है कि मेरा बेटा मुझसे सचमुच कितना प्यार करता है। लव यू मेरे राजा।

शादाब ने भी अपने आपको संभालते हुए अपनी अम्मी के माथे को चूम लिया और बोला:"

" लव यू टू मेरी जान शहनाज। "

शहनाज गंभीर होकर सोचते हुए बोली:"

" बेटा हम प्यार तो कर बैठे लेकिन इसका अंजाम क्या होगा कभी सोचा है तुमने ?

शादाब ने पूरे विश्वास के साथ शहनाज की आंखो में देखते हुए कहा:'" अम्मी जब तक मेरे सिर्फ में आखिरी सांस होगी मैं आपका साथ नहीं छोडूंगा।

शहनाज़ उसकी बात सुनकर खुश हो गई और उसका हाथ थाम कर घूरते हुए:"

" कमीने बात प्यार की करता हैं और बोल अम्मी रहा हैं मुझे , कुछ तो शर्म कर।

शादाब उसका गाल चूम कर बोला:" अभी आदत पड़ी हुई है ना अम्मी बोलने की इसलिए धीरे धीरे छूट जाएगी मेरी शहनाज़।

शहनाज़:" चल ठीक हैं, मैं अब नहा लेती हूं। फिर तेरे लिए कुछ खाने को भी बना दूंगी मुझे भी भूख लगी हैं।

इतना कहकर शहनाज़ जाने लगी तो शादाब ने उसे हाथ से पकड़ कर खींच लिया तो शहनाज़ उसकी बांहों में गिर पड़ी तो शादाब बोला:"

" जाने से पहले मेरे होंठो पर मीठी सी प्यारी सी किस कौन करेगा ?

शहनाज़ ने आगे होकर शादाब के होंठो पर एक किस करी और बोली :"

" अब तो खुश हैं ना मेरे राजा, मैं चलती हूं अब नहाने के लिए।

शहनाज़ इतना कहकर आगे चली तो दर्द की वजह से उसे चलने में दिक्कत हो रही थी क्योंकि गांड़ की माशपेशियां कठोर लंड से बुरी तरह से छिल गई थी जिससे आपस में दोनो गांड़ के उभार टकराते ही उसे दर्द हो रहा था। शादाब अपनी अम्मी की हालत देख कर आगे आया और बोला:"

" क्या हुआ अम्मी ?

शहनाज उसकी तरफ शिकायत भरी नजरो से देखते हुए बोली:"

" होना क्या हैं मेरे अनाड़ी सैयां, सब मेरा कचूमर निकाल दिया हैं, दर्द हो रहा हैं मुझे!!

शादाब सब समझ गया और शहनाज को उसने अपनी बांहों ने उठा लिया और बाथरूम की तरफ चल दिया। शहनाज़ भी खुशी खुशी उससे लिपट गई और लंड को पेंट के उपर से सहला कर बोली :"

" बेशर्म तुझे किसने कहा था इसे इतना मोटा टॉइट करने के लिए,लगता हैं जैसे मूसल ही लटका लिया हैं तूने।

शादाब अपने लंड की तारीफ सुनकर खुश हो गया और बोला:"

" अम्मी आपको अच्छा नहीं लगा क्या ये,

शाहनाज: चल कमीना कहीं का, कोई ऐसी बात करता हैं अपनी मा से

शादाब:" उफ्फ अम्मी, कोई मा प्यार करती हैं क्या अपने बेटे से ?

शहनाज:" और तू जो अपनी अम्मी का दीवान बना हुआ है उसका क्या ?

शादाब के अंदर गालिब की आत्मा खुश गई और बोला:"

" आशिक हैं तेरे नाम के इस बात से इन्कार नहीं
झूठ कैसे बोलू की मुझे तुझसे प्यार नहीं,
कुछ कुसूर तो तुम्हारी अदाओं का भी हैं मेरी जान
हम सिर्फ अकेले ही तो गुनहगार नहीं।

शहनाज़ अपने बेटे की शायरी सुनकर मुस्कुरा उठी और तभी बाथरूम भी अा गया था तो अपने बेटे की गोदी से उतर गई और अंदर जाने लगी तो शादाब बेहद ही शरीफ अंदाज में बोला :"

" अगर आपकी इजाज़त हो तो क्या हम भी आपके साथ नहा ले ?

शहनाज़ ने उसकी तरफ गुस्से से देखा और अपनी आंखे मटकाती हुई अदा से बोली :"

" चल भाग, बड़ा आया मेरे साथ नहाने वाला !!

शादाब:" उफ्फ हाय मेरी अम्मी तुम्हारी ये अदाएं ही तो दिल पर असर कर जाती हैं।

शहनाज़ उसकी बात सुनकर बोली :" मजनू कहीं का,

शहनाज़ ने बाथरूम का गेट बंद कर दिया और अपनी मैक्सी उतार कर नहाने लगी। उसकी गांड़ में अभी भी दर्द था इसलिए उसने हल्के गुनगुने पानी के साथ प्यार से साफ किया। शहनाज़ अब काफी अच्छा महसूस कर रही थी और अपने बदन को अच्छे से साबुन से साफ किया और फिर टॉवल से अपना बदन सुखाने लगी।
 
दूसरी तरफ रेशमा पूरे जी जान से लगी हुई थी अपने मा बाप की सेवा करने में क्योंकि वो जानती थी कि जितने तारीफ उसके पापा शादाब के सामने मेरी करेंगे वो उतने ही जोश के साथ मेरी चुदाई करेगा।

रेशमा अपने अब्बा को खाना खिलाते हुए:" अब्बा देखिए मैने आपके लिए खीर बनाई हैं वो असली मावे के साथ, आप हैं कि खा ही नहीं रहे हा।

अब्बा:"बेटी और कितना खिलाएगी मेरा पेट तो भर गया हैं पहले से ही !! अब बस कर

रेशमा:" ना ये आखिरी चम्मच तो आपको खानी ही पड़ेगी।

और अब्बा के मना करने के बाद भी रेशमा जबरदस्ती खिला रही थी। रेशमा की अम्मी ये देख कर बहुत खुश हो रही थी कि चलो आखिर कार उनकी बेटी सही दिशा में लौट अाई हैं।

रेशमा ने अपनी अम्मी को भी मना करने के बाद दो तीन चम्मच खीर खिला ही दी। दोनो बहुत खुश थे और एक दूसरे से रेशमा की तारीफ कर रहे थे। रेशमा को अच्छा मौका लगा और बोली:"

" अम्मी शादाब अभी छोटा बच्चा ही है, पता नहीं कैसे मन लग रहा होगा उसके गांव में ?

रेशमा का तीर काम कर गया और अब्बा भावुक होकर बोल उठे:"

" अरे बेटी एक बात बात तो करा से उससे, दो दिन हो गए उसे गए हुए, पता नहीं कैसा होगा ?

रेशमा ने खुशी से झूमते हुए शादाब का नंबर मिला दिया तो जैसे ही शादाब ने रेशमा का नंबर देखा तक मुस्कुरा उठा और फोन उठा लिया।

शादाब:"सलाम बुआ कैसी है आप ?

रेशमा:" सलाम बेटा, बस ठीक हूं रे, तेरी बहुत याद आती हैं मुझे, कब आएगा तू मेरे पास ?

शादाब सब समझ गया और बोला:" बस बुआ जल्दी ही अा जाऊंगा मैं।

रेशमा:" अच्छा बेटा अब्बा तुझसे बात करने के लिए बोल रहे थे।

इतना कहकर रेशमा ने फोन अब्बा के हाथ में दे दिया तो अब्बा बोले:" मेरा बच्चा,कैसे हो शादाब मेरे बेटे?

शादाब:" सलाम दादा जी, मैं ठीक हूं आप बताए सर।

अब्बा:" मैं भी ठीक हूं बेटा, रेशमा बहुत ध्यान रख रही है बेटा हमारा, हर चीज बिना मांगे मिल रही है, सच में बेटी हो तो रेशमा जैसी मेरे बच्चे।

रेशमा अपने बाप की बात सुनकर खुशी से झूम उठी और रेशमा से कहीं ज्यादा उसकी चूत खुश हुई।
शादाब बोला:"..

" दादा जी आप आराम से रहे, जब भी आपका घर आने का मन करे तो बता देना, मैं गाड़ी लेकर अा जाऊंगा आपके पास!!

मोबाइल हैंड फ्री था जैसे ही रेशमा ने ये बात सुनी तो उसने अपने अब्बा से फोन ले लिया और बोली :"

" बेटा शादाब अभी इन्हे मेरे पास कुछ दिन और रहने दे ताकि मुझे भी अपने मा बाप की सेवा का पुण्य मिल सके।

इतना बोलते हुए रेशमा फोन लेकर अपने मा बाप से बोलकर कि उसे उपर काम हैं छत पर अा गई और शादाब से बोली:"

" शादाब अम्मी पापा के लिए मैंने दिन रात एक कर दिया हैं, और इससे कहीं ज्यादा इनके लिए करूंगी, बस तू अपना वादा याद रखना !

शादाब के होंठो पर स्माइल अा गई और बोला:'

" बुआ आप फिक्र ना करे, आपकी हर इच्छा पूरी करेगा, आपको वो सुख दूंगा जो आपके सपने में भी नहीं सोचा होगा। बस आप दादा दादी का ख्याल रखे कुछ दिन।
 
रेशमा शादाब की बात सुनकर जोश में अा गई और चूत कपड़ों के ऊपर से ही सहलाते हुए बोली:

" आह बेटा शादाब, देख ना तुझे याद करके मेरी नीचे वाली कैसे आंसू बहा रही हैं!!

शादाब :" जितना वो रोएगी उससे कहीं ज्यादा उसे सुकून दूंगा मैं।
अच्छा ठीक है बुआ बाद में करता हूं मैं।

शादाब ने जैसे ही फोन काटा तो उसे अपने पीछे खड़ी शहनाज़ नजर आईं जो उसकी सारी बाते सुन चुकी थी जिससे उसका खूबसूरत चेहरा एक लाल अंगारे की तरफ दहक रहा था। शादाब डर गया और बोला:"

" अम्मी रेशमा बुआ का फोन था, दादा जी भी बात कर रहे थे, बोल रहे थे कि रेशमा उनका बहुत ध्यान रख रही है।

दादा दादी वाली बात शहनाज़ ने नहीं सुनी थी क्योंकि तब वो बाथरूम में थी। गुस्से से शाहनाज लंगड़ाती हुई आगे बढ़ी और एक जोरदार थप्पड़ शादाब के मुंह पर रशीद कर दिया और किसी जख्मी नहीं की तरह फुफकारते हुए बोली:"

" धोखेबाज कहीं का, हर सुख देने की बात करता हैं उस रण्डी को और प्यार का ड्रामा मुझसे करता है। जा दफा होजा मेरी आंखो के आगे से,

शहनाज़ ने ये बात रोते हुए कही और अपने कमरे ने घुस गई और कमरा अंदर से बंद कर लिया। शादाब को एक पल के लिए कुछ नहीं समझ नहीं आया कि क्या करे इसलिए सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया। उसने तो अपनी अम्मी को घुमाने के लिए ये प्लान बनाया था और शहनाज़ उसे ही गलत समझ रही हैं।

कुछ सोच कर शादाब उठा और शहनाज़ का रूम नॉक करने लगा और बोला:"

" अम्मी प्लीज़ पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो आप फिर जो आप कहोगी मुझे मंजूर होगा।

शहनाज़ रोते हुए:" अब भी तुझे लगता है कि कुछ बच गया है सुनने के लिए, कितना बेशर्म हैं तू शादाब, मुझे शर्म आती हैं ये सोचकर कि तू मेरा बेटा हैं।

शादाब का दिल पूरी तरह से बैठ गया और आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया और धड़ाम से एक कटे हुए पेड़ की छांव फर्श पर गिर पड़ा और बेहोश हो गया। शहनाज़ को जैसे ही कुछ गिरने की आवाज़ सुनाई दी तो उसका दिल घबरा गया और उसने एक झटके के साथ दरवाजा खोल दिया तो देखा कि उसके बेटा नीचे फर्श पर पड़ा हुआ हैं तो उसे बहुत दुख हुआ और उसके पास पहुंच गई और उसे हिलाते हुए बोली:"

" शादाब आंखे खोलो मेरे बेटे, क्या हुआ तुम्हे , ठीक तो हो तुम बात करो मुझसे ?

शादाब ऐसे ही मुर्दे की तरह पड़ा रहा तो शहनाज उसे उठा कर बेड पर ले जाने की कोशिश करने लगी लेकिन उसके जवान तंदुरुस्त जिस्म को उठाना तो दूर की बात ठीक से हिला भी नहीं पाई। शहनाज़ कुछ सोचते हुए किचेन में घुस गई और पानी लेकर अाई और इसके मुंह पर थोड़ा सा अपनी डाला तो शादाब के जिस्म में हल्की सी हलचल हुई जिससे शहनाज़ ने कुछ सुकून की सांस ली। उसने अपने बेटे के शरीर की हल्की मालिश करनी शुरू कर दी। धीरे धीरे शादाब को होश आने लगा और जैसे ही उसकी आंखे खुली तो उसने अपने आपको शहनाज़ की गोद में पाया जिसका चेहरा शादाब के उपर झुका हुआ था और आंखो से टपटके आंसू शादाब के चेहरे पर गिर रहे थे।

शादाब अपनी अम्मी से लिपट गया और बोला:"

" अम्मी प्लीज़ मेरा यकीन करो, मैंने सब कुछ आपकी खुशी के लिए किया हैं। आपका बेटा धोखेबाज नहीं हैं।

शहनाज़:" बस कर मेरे बेटे, बस तू ठीक हो गया मेरे लिए इतना बहुत हैं शादाब।

शादाब:" अम्मी प्लीज़ अगर आपको लगता हैं कि मैंने गलत किया हैं तू मुझे माफ़ कर दो नहीं तो कोई सजा दो।

शहनाज़:" शादाब मैंने सारे ज़माने की रश्मो और रिश्तों को ताक पर रखकर तुझे प्यार किया हैं, मुझे तेरी बेवफाई बर्दाश्त नहीं होगी

शादाब: अम्मी मेरे मन में कुछ भी ग़लत नहीं हैं, मैंने आपको सब बता तो दिया है।

शहनाज़ कुछ हद तक उसकी बात से सहमत हो गई लेकिन अभी उसके मन में कहीं ना कहीं एक कसक जरूर रह गई। उसने शादाब को सहारा देकर उठाया और बेड पर लिटा दिया और उसके लिए नाश्ता तैयार करने किचेन में घुस गई।

शहनाज़ ने दूध गर्म किया और अपने बेटे के लिए ब्रेड आमलेट बनाने लगी। उधर शादाब समझ नहीं पा रहा था कि अपनी अम्मी को कैसे यकीन दिलाया जाए क्योंकि दादा जी या बुआ से तो पूछने का सवाल ही नहीं बनता था कि मैं उनसे बात कर रहा था। पता नहीं क्या सोचेंगे वो मेरे और अम्मी के बारे में इसलिए ऐसा सोचना भी गलत हैं। इन्हीं विचारों में डूबा हुआ शादाब नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया।
 
शहनाज नाश्ता तैयार करके शादाब के रूम में अाई तो वो उसे नहीं मिला तभी बाथरूम से पानी गिरने की आवाज सुनकर उसे एहसास हुआ कि शादाब नहा रहा है। शहनाज़ ने अपने बेटे का मोबाइल उठा लिया कि देखू और क्या क्या कर रहता है ये मोबाइल के अंदर। शहनाज़ ने मोबाइल के फोल्डर चेक करने शुरू कर दिए और उसे कहीं कुछ नहीं मिला तभी उसे लास्ट में एक फाइल नजर अाई तो उसे उसने ओपन कर दिया तो फाइल दर असल एक रिकॉर्डिंग फोल्डर था जिसमें आज शादाब के द्वारा की गई बाते रिकॉर्ड हो गई थी। उसने जान बूझकर नहीं की थी लेकिन स्क्रीन टच मोबाइल होने की वजह से अपने आप गाल से लगकर रिकॉर्ड हो गई थी।

शहनाज़ ने रिकॉर्डिंग चला दी तो उसे पता चल गया कि फोन रेशमा ने किया था शादाब ने नहीं । रेशमा सच में उसके सास ससुर का बहुत ध्यान रही हैं ये एहसास उसे अपने ससुर की बाते सुनकर हो गया। आखिर में फोन काटने के लिए भी शादाब ने ही बोला था जो उसे सबसे ज्यादा अच्छा लगा और वो ये सब पता चलते ही शहनाज़ अपने आप पर अफसोस करने लगी कि उसने अपने बेटे पर गलत इल्ज़ाम लगा दिया है। मेरा बेटा कितना दुखी हुआ है मेरी वजह से ये सोचते ही शहनाज़ को अपने आप पर ही गुस्सा आया। लेकिन अब मैं अपनी गलती को सुधार लूंगी।
ये सोचते हुए शहनाज़ अपने रुम में चली गई और एक शॉर्ट रंगीन ड्रेस पहन ली जिसमें उसके कंधे पूरे नंगे थे और काले लंबे बाल कंधे पर लटक रहे थे। ड्रेस बहुत टाईट थी और गला थोड़ा चौड़ा था लेकिन उसमें शहनाज़ की चूचियां पूरी तरह से कसी हुई नजर आ रही थी। उसने अपने आपको सजाना शुरू कर दिया क्योंकि वो अपने बेटे के उपर पूरी तरह से अपना जादू चलाना चाहती थी ताकि वो उसे रेशमा से बचा सकें। शहनाज़ ने अपने खूबसूरत होंठो को लाल रंग की लिपस्टिक से सजाकर और ज्यादा खूबसूरत बना लिया और शादाब के रूम की तरफ चल पड़ी। शादाब नहा चुका था और अपने जिस्म को टॉवेल से साफ करने के बाद अपने कपडे पहन कर अपने रूम में अा गया।
कमरे में घुसते ही उसकी नजर सामने सोफे पर बैठी शहनाज़ पर पड़ी तो वो हैरान हो गया लेकिन उससे कहीं ज्यादा वो खुश हुआ क्योंकि शहनाज़ एक दम जन्नत से उतरी हुई किसी हूर की तरह खूबसूरत लग रही थी।

शादाब अपनी अम्मी को एक हल्की सी स्माइल देकर आगे बढ़ गया और अपने बाल में तेल लगाकर और कंघा करने लगा तो शहनाज़ उठी और उसके पीछे आकर खड़ी हो गई और उसके हाथ को पकड़ लिए जिसके कंघा था। वो अपने बेटे के बाल सेट करने लगी तो शादाब को लगा कि अम्मी अब उतनी भी ज्यादा नाराज नहीं है जितनी मै सोच रहा था । बाल सेट होने जाने के बाद दोनो ने हाथ धोए और एक दूसरे के सामने नाश्ता करने के लिए बैठ गए। दोनो के बीच अभी तक कोई बात नही हुई थी। शहनाज़ लगातार अपने बेटे के चेहरे को प्यार से देख रही थी तो शादाब भी बीच बीच में नजर उठा कर अपनी अम्मी को निहारने से खुद को नहीं रोक पा रहा था।

शहनाज़ खामोशी तोड़ते हुए बोली:" बेटा आज तेरी अम्मी तुझे खूबसूरत नहीं लग रही है ? आज तारीफ नहीं करेगा क्या मेरी ?

शादाब:" अम्मी आप तो हमेशा की तरह एकदम बिल्कुल हूर जैसी लग रही हैं !

शहनाज़ अपनी सीट से उठी और उसके पास आते हुए बोली:"

" बेटा इतनी दूर से तुझे शायद ठीक से नहीं दिख रहा है तभी आधे अधूरे मन से तारीफ कर रहा हैं मेरी। अब बता मेरे राजा एक दम पास से देखकर।

शहनाज़ इतना बोलते हुए बिल्कुल उसके सामने खड़ी हो गई तो शादाब को उसके बदन से उठती हुई मादक परफ्यूम की खुशबू महसूस हुई। शादाब ने एक बार अपनी अम्मी की तरफ नजरे उठा दी और जी भर कर उसकी सुंदरता को देखने लगा।

शहनाज़:" मुझे लगता है कि तुम अभी भी ठीक से नहीं देख पा रहे हो मेरे राजा !! रुक एक मिनट

इतना कहकर शहनाज़ झट से शादाब की गोद में बैठ गई। अब शहनाज़ की दोनो टांगे शादाब की कमर पर अटकी हुई थी और दोनो के चेहरे बिल्कुल एक दूसरे के सामने थे।

शहनाज़:" अब ठीक से देख ले मेरे राजा अपनी शहनाज़ को ?
 
शादाब अपनी अम्मी की बात सुनकर खुश हो गया और उसकी आंखो में देखते हुए बोला:"

" अम्मी आप इस दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत हो। मैंने ऐसी खूबसूरती कहीं नहीं देखी।

शहनाज ने अपनी तारीफ से खुश हो कर अपने दोनो हाथ उसकी गर्दन में लपेट दिए और आगे को खिसक गई जिससे दोनो के होंठ बिल्कुल एक दूसरे के करीब अा गए। शहनाज उसकी आंखो में देखते हुए बोली:"

" मेरे राजा अपनी शहनाज़ को माफ कर दे मैंने गलतफहमी की वजह से तुझ पर शक किया।

इतना कहते हुए उसने अपने होंठ बिल्कुल शादाब के होंठो के सामने कर दिए और उसके बालो में उंगलियां फेरने लगीं तो शादाब को भी अपनी अम्मी की गर्म गर्म सांसे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं। शादाब ने भी अपने हाथ शहनाज की गर्दन में लपेट दिए और बोला:"

" अम्मी मैं सिर्फ आपसे प्यार करता हूं, आपका बेटा पूरी तरह से आपका हैं, रेशमा तो क्या दुनिया की कोई भी लड़की मुझे आपसे नहीं छीन पायेगी।

जैसे ही शादाब की बात पूरी हुई शहनाज़ ने अपने होंठ शादाब के होंठो पर रख दिए और चूसने लगी। दोनो की आंखे एक बार फिर से मस्ती से बंद हो गई और दोनो एक लंबे किस में खोते चले गए और दोनो की जीभ एक दूसरे के मुंह में कबड्डी खेलने लगी।

आखिर में जब सांस उखड़ने लगी तो दोनो अलग हुए और एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए। शादाब ने दूध का ग्लास टेबल से उठाया और शहनाज़ के होंठो से लगा दिया तो शहनाज़ ने एक घूंट भर कर शादाब को दिया तो वो दूध पीने लगा। दोनो मा बेटे के बीच अब सारी गलतफहमी दूर हो गई थी इसलिए दोनो मा बेटे एक दूसरे को खाना खिलाने लगें। जल्दी ही नाश्ता करने के बाद शहनाज़ ने सब बर्तन धो दिए और शादाब के पास अा गई।

शादाब:" अम्मी मैं सोच रहा था कि कहीं घूमने चलते है !!

शहनाज़:" ठीक हैं बेटा मैं कपडे बदल लेती हूं ।

शादाब:" क्या कपडे बदलने अम्मी, इन्हीं के उपर बुर्का पहन लो बस।

शहनाज़ शरमाते हुए:"

" अच्छा जी जनाब और फिर आप गांव से बाहर निकलते ही बुर्का उतार देंगे।

शादाब: बिल्कुल अम्मी आपको अब खुलकर जीना चाहिए, आपका बेटा आप को बहुत खुशी देने के लिए आया हैं।

शहनाज़ अपने गले से झांकती हुई अपनी चूचियों की गोलाईयों को देखते हुए:*

" तुझे अच्छा लगेगा क्या जब मुझे लोग ऐसी हालत में देखेंगे।

शादाब:" अम्मी ये ही मैं आपको एहसास कराना चाहता हूं कि आप कितनी खूबसूरत हैं, लोग पागल हो जाएंगे आपको इस हाल में देख कर !!

शहनाज़ शर्म से लाल होते हुए:"
 
" नहीं मेरे राजा, ऐसा मत कर मैं लोगो की नजरे कैसे बर्दाश्त कर पाऊंगी अपने जिस्म पर ? मुझसे नहीं हो पाएगा, डर लगता हैं मुझे तो बहुत सोच कर ही।

शादाब:" अम्मी इसमें डरने की कोई बात नहीं है, आजकल तो ये फैशन बन गया हैं। अम्मी प्लीज़ मेरी बात मान लो।

शहनाज़ :" ठीक हैं, अगर मैंने किसी को ऐसी ड्रेस पहने देखा तो बुर्का उतार दूंगी नहीं तो मेरे साथ जबरदस्ती मत करना।

शादाब:" अम्मी आप ये बात सपने में भी मत सोचना कि आपका बेटा आपके साथ कोई जबरदस्ती करेगा।

शहनाज़ उठकर चली गई और थोड़ी देर बाद ही बुर्का पहन कर अा गई। शादाब कार निकाल चुका था इसलिए दोनो मा बेटे शहर की तरफ चल पड़े। अभी गांव से बाहर निकल ही रहे थे कि शादाब के दादा जी का फोन आ गया।

शादाब:" सलाम दादा जी, कैसे है आप सब?

दादा:" ठीक हूं बेटा, बस तुम्हारी फिक्र रहती हैं। अच्छा बेटा वो करीम साहब का फोन आया था, हमारे पास के कस्बे के चेयरमैन हैं बेटा वो। विदेश गए हुए थे इसलिए पार्टी में नहीं अा पाए थे। वो अपने बेटे को डाक्टर बनाना चाहते हैं इसलिए उनकी बीबी रेहाना का फोन आया था उसने तुम्हे घर बुलाया हैं। थोड़ी देर बाद तुम्हे कॉल करेगी, उनके घर चले जाना बेटा, उनके बहुत एहसान हैं हम पर।

शादाब:" जी दादा जी आप फिक्र ना करे, मैं चला जाऊंगा।

इतना कहकर शादाब ने फोन काट दिया और शहनाज़ को सारी बाते बताई तो शहनाज़ समझ गई कि ये जरूर वहीं कमीनी रेहाना है जो मेरे बेटे का मोबाइल नंबर लेकर गई थी और उस दिन सिनेमा हॉल में भी अपने बेटे के साथ कैसी नीच हरकत कर रही थी। जिसने अपने सगे बेटे को नहीं छोड़ा वो कमीनी जरूर मेरे बेटे को फसाने के लिए बुला रही है मुझे रोकना होगा।

शहनाज़:" बेटा लेकिन हम तो शहर जा रहे हैं तो उसके घर नहीं जाएंगे।

शादाब:" अम्मी दादा जी ने बोला हैं कि वहां जाना ज्यादा जरूरी है और उन लोगो के हम पर बहुत एहसान हैं अम्मी।

शहनाज़:' कुछ भी हो बेटा लेकिन मेरा मन नहीं मान रहा हैं तुझे वहां भेजने के लिए।

शादाब:' अरे अम्मी मैं अकेला थोड़े ही जा रहा हूं। आप भी तो मेरे साथ जा रही है।

शहनाज़ शादाब की बात सुनकर थोड़ा राहत की सांस लेने लगी क्योंकि वो जानती थी कि अगर आज नहीं गए तो कहीं ऐसा ना हो कि बाद में शादाब को अकेले ही जाना पड़े।

शहनाज़:" ठीक हैं, लेकिन ज्यादा देर नहीं रुकेंगे।

शादाब आगे कुछ बोलता उससे पहले ही उसका मोबाइल बज उठा। वो समझ गया कि ये जरूर रेहाना का कॉल होगा।

रेहाना:" हेलो क्या मेरी बात शादाब से हो रही है?

शादाब के कानों में एक बहुत ही मधुर आवाज गूंज उठी।

शादाब:" जी मैं शादाब बोल रहा हूं, आप बताए।

रेहाना:" शादाब मै रेहाना बोल रही हूं, उम्मीद हैं आपके दादा जी ने आपको सब बता दिया होगा इसलिए मैं आपको अपना एड्रेस भेज रही हूं।

शादाब:" जी ठीक है, मैं पहुंच जाऊंगा।

रेहाना ने अपना पता भेज दिया और जल्दी ही शादाब और शहनाज़ रेहाना के घर के सामने खड़े थे। डोर बेल बजाने पर घर की एक नौकरानी ने दरवाजा खोला और दोनो को अंदर ले गई। घर बहुत ही आलीशान बना हुआ था। शादाब जैसे ही अंदर कमरे में पहुंचा तो उसे रेहाना दिखाई दी तो उसने सलाम किया।

रेहाना ने उसका सलाम लिया और साथ में शहनाज़ को देख कर वो हैरान परेशान हो गई। उसने पूछा:"..

" शादाब बेटा आपके साथ ये कौन अाई है ?

शादाब से पहले शहनाज़ खुद ही बोल उठी:"

" सलाम रेहाना जी, मैं शादाब की अम्मी हूं। मेरा नाम शहनाज़ है।

रेहाना को बुरा तो लगा लेकिन मजबूरी में उसने शहनाज़ को एक फीकी सी स्माइल दी और बोली:

" माशा अल्लाह शहनाज़ जी आप बहुत खूबसूरत है और शादाब बिल्कुल आप पर ही गया है।

शहनाज़ को बुरा लगा लेकिन उसने भी ऑपचारिकता पूरी करते हुए स्माइल दी। तीनो आमने सामने कुर्सी पर बैठे हुए थे , गर्मी की वजह से एसी में भी शहनाज़ को पसीना अा रहा था शायद धूप में आने की वजह से इसलिए रेहाना बोली:"

" आपको तो बहुत ज्यादा पसीना अा रहा है और उपर से आपने इतना भारी बुर्का पहन रखा है, इसे उतार दीजिए।

रेहाना के सवाल पर शहनाज़ डर से अपने आप में सिमट सी गई क्योंकि बुर्के के नीचे उसने बहुत छोटी ड्रेस पहन रखी थी। इसलिए बुर्का उतारने का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।
 
शहनाज़ अपने आपको संभालते हुए बोली:"

" माफ करना बहन आप मुझे, लेकिन मैंने कभी घर से बाहर बुर्का नहीं उतारा आज तक, इसलिए मैं ऐसे ही ठीक हूं।

रेहाना हैरान होते हुए:"

" आप भी कमाल की बात करती है शहनाज़, अब तो सब कुछ कितना बदल गया है, आपको जमाने के साथ चलना चाहिए।

शादाब को भी मजाक सूझी और बोला:" हान अम्मी, मैं भी आपको यहीं समझाता हूं कि जमाना बदल गया है, आप बुर्का उतार दीजिए।

शहनाज़ को शादाब पर बहुत गुस्सा अा रहा था इसलिए मन ही मन गालियां देते हुए बोली:"

" बेटा लेकिन मुझे मेरे संस्कार और तहजीब आप भी पसंद हैं और मैं उनसे समझौता नहीं कर सकती।

रेहाना सोचने लगी कि अजीब पागल औरत हैं ये शहनाज़ भी, इतनी खूबसूरत हैं उसके बाद भी अपने आपको कैसे कैद करके रखती है, इतना खूबसूरत लड़का हैं इसका, काश शादाब मेरा बेटा होता तो कब का इसे अपने उपर चढ़ा चुकी होती।

रेहाना:" आप दोनो बैठिए, मैं आपके लिए नाश्ते का इंतजाम करती हूं।

इतना कहकर वो बाहर चली तो उसके जाते ही शहनाज़ ने शादाब को थप्पड़ दिखाया और बोली:"

" कमीने कितना ज्यादा बिगड़ गया है तू, पहले मुझे जबरदस्ती छोटी ड्रेस पहनने को बोलता है और फिर यहां इस कमीनी के सामने उतारने को, घर चलकर तुझे अच्छे से ठीक करूंगी।

शादाब:" अच्छा माफ करो अम्मी मैं तो मजाक कर रहा था।

शहनाज़ ने उसे घूर दिया तो शादाब अपनी अम्मी का गुस्सा देखकर स्माइल कर दिया। तभी रेहाना के आने की आहट सुनाई पड़ी तो दोनो सीधे बैठ गए।
नाश्ता लग चुका था और तीनो ने साथ ने नाश्ता किया।

रेहाना:" अरे कमला जरा मेरे बेटे को देखना किधर हैं ? शादाब आया हुआ हैं तो इससे कुछ पूछ लेगा वो।

कमला की बाहर से आवाज आई कि अभी भेजती हूं बीबी जी। थोड़ी देर बाद ही रेहाना का लाडला अा गया जिसे देखकर शादाब चौंक पड़ा। उसे याद अा गया कि ये लड़का तो उस दिन सिनेमा हॉल में अपनी अम्मी को लंड चूसा रहा था। दरसअल उस दिन शादाब रेहाना का चेहरा ठीक से नहीं देख पाया था लेकिन उनकी बातो से इतना जरूर समझ गया था कि ये दोनों मा बेटे हैं। रेहाना का लड़का शादाब के पास ही बैठ गया और उससे बात करने लगा।

शादाब उसे पढ़ाई के बारे में काफी बाते समझाने लगा। कोई 12 बज गए थे और शादाब लडके को सब कुछ बता चुका था। रेहाना बीच बीच में हसरत भरी निगाहों से शादाब की तरफ देख रही थी जो शहनाज़ की शातिर निगाहों से नहीं छुप रहा था इसलिए शहनाज़ जल्दी से जल्दी वहां से निकलने की दुआ कर रही थी।

शादाब ने लड़के को सब कुछ बताने के बाद कहा:"

" अच्छा भाई मैंने तुझे सब बता दिया हैं और आगे कोई जरूरत हो तो मुझे कॉल कर लेना। मुझे शहर में कुछ काम है इसलिए मुझे जाना होगा।

रेहाना:" अरे बेटा इतनी जल्दी क्यों कर रहे हो, खाना खाकर जाना आराम से आप दोनो।

शादाब ने शहनाज़ की तरफ देखा तो शहनाज़ ने उसे चलने का इशारा किया तो शादाब बोला:"

" नहीं आप खाने के लिए तो माफ करे, शहर में मुझे बैंक में कुछ काम हैं इसलिए जल्दी जाना होगा

इतना कहकर शादाब खड़ा हो गया और फिर वो सब बाहर की तरफ जाने लगे। आगे आगे शादाब और रेहाना चल रही थी जबकि शहनाज़ थोड़ा पीछे थी। रेहाना अपने एक हाथ को अपनी चूची के नीचे लाकर उसे उभारते हुए बोली:"

" बेटा कभी कभी आया करना जब भी तुम्हारा मन करे क्योंकि ये भी तुम्हारा अपना ही घर हैं।

शादाब उसकी चूचियां देखते हुए:"

" ठीक है आंटी जी।
 
[size=large]शहनाज़ अपने आपको संभालते हुए बोली:"

" माफ करना बहन आप मुझे, लेकिन मैंने कभी घर से बाहर बुर्का नहीं उतारा आज तक, इसलिए मैं ऐसे ही ठीक हूं।

रेहाना हैरान होते हुए:"

" आप भी कमाल की बात करती है शहनाज़, अब तो सब कुछ कितना बदल गया है, आपको जमाने के साथ चलना चाहिए।

शादाब को भी मजाक सूझी और बोला:" हान अम्मी, मैं भी आपको यहीं समझाता हूं कि जमाना बदल गया है, आप बुर्का उतार दीजिए।

शहनाज़ को शादाब पर बहुत गुस्सा अा रहा था इसलिए मन ही मन गालियां देते हुए बोली:"

" बेटा लेकिन मुझे मेरे संस्कार और तहजीब आप भी पसंद हैं और मैं उनसे समझौता नहीं कर सकती।

रेहाना सोचने लगी कि अजीब पागल औरत हैं ये शहनाज़ भी, इतनी खूबसूरत हैं उसके बाद भी अपने आपको कैसे कैद करके रखती है, इतना खूबसूरत लड़का हैं इसका, काश शादाब मेरा बेटा होता तो कब का इसे अपने उपर चढ़ा चुकी होती।

रेहाना:" आप दोनो बैठिए, मैं आपके लिए नाश्ते का इंतजाम करती हूं।

इतना कहकर वो बाहर चली तो उसके जाते ही शहनाज़ ने शादाब को थप्पड़ दिखाया और बोली:"

" कमीने कितना ज्यादा बिगड़ गया है तू, पहले मुझे जबरदस्ती छोटी ड्रेस पहनने को बोलता है और फिर यहां इस कमीनी के सामने उतारने को, घर चलकर तुझे अच्छे से ठीक करूंगी।

शादाब:" अच्छा माफ करो अम्मी मैं तो मजाक कर रहा था।

शहनाज़ ने उसे घूर दिया तो शादाब अपनी अम्मी का गुस्सा देखकर स्माइल कर दिया। तभी रेहाना के आने की आहट सुनाई पड़ी तो दोनो सीधे बैठ गए।
नाश्ता लग चुका था और तीनो ने साथ ने नाश्ता किया।

रेहाना:" अरे कमला जरा मेरे बेटे को देखना किधर हैं ? शादाब आया हुआ हैं तो इससे कुछ पूछ लेगा वो।

कमला की बाहर से आवाज आई कि अभी भेजती हूं बीबी जी। थोड़ी देर बाद ही रेहाना का लाडला अा गया जिसे देखकर शादाब चौंक पड़ा। उसे याद अा गया कि ये लड़का तो उस दिन सिनेमा हॉल में अपनी अम्मी को लंड चूसा रहा था। दरसअल उस दिन शादाब रेहाना का चेहरा ठीक से नहीं देख पाया था लेकिन उनकी बातो से इतना जरूर समझ गया था कि ये दोनों मा बेटे हैं। रेहाना का लड़का शादाब के पास ही बैठ गया और उससे बात करने लगा।

शादाब उसे पढ़ाई के बारे में काफी बाते समझाने लगा। कोई 12 बज गए थे और शादाब लडके को सब कुछ बता चुका था। रेहाना बीच बीच में हसरत भरी निगाहों से शादाब की तरफ देख रही थी जो शहनाज़ की शातिर निगाहों से नहीं छुप रहा था इसलिए शहनाज़ जल्दी से जल्दी वहां से निकलने की दुआ कर रही थी।

शादाब ने लड़के को सब कुछ बताने के बाद कहा:"

" अच्छा भाई मैंने तुझे सब बता दिया हैं और आगे कोई जरूरत हो तो मुझे कॉल कर लेना। मुझे शहर में कुछ काम है इसलिए मुझे जाना होगा।

रेहाना:" अरे बेटा इतनी जल्दी क्यों कर रहे हो, खाना खाकर जाना आराम से आप दोनो।

शादाब ने शहनाज़ की तरफ देखा तो शहनाज़ ने उसे चलने का इशारा किया तो शादाब बोला:"

" नहीं आप खाने के लिए तो माफ करे, शहर में मुझे बैंक में कुछ काम हैं इसलिए जल्दी जाना होगा

इतना कहकर शादाब खड़ा हो गया और फिर वो सब बाहर की तरफ जाने लगे। आगे आगे शादाब और रेहाना चल रही थी जबकि शहनाज़ थोड़ा पीछे थी। रेहाना अपने एक हाथ को अपनी चूची के नीचे लाकर उसे उभारते हुए बोली:"

" बेटा कभी कभी आया करना जब भी तुम्हारा मन करे क्योंकि ये भी तुम्हारा शहनाज़ ने दोनो की बात सुन ली लेकिन चूची का उभार उसे नहीं दिखाई दिया। वो अपने गुस्से को मन में दबाए हुए घर से बाहर निकल गई। शादाब ने गाड़ी स्टार्ट करी और शहनाज़ उसके साथ बैठ गई तो रेहाना ने एक कातिल मुस्कान के साथ शादाब को बाय किया। शादाब ने भी उसे बाय बोलते हुए गाड़ी आगे बढ़ा दी।
शादाब ने गाड़ी शहर की तरफ दौड़ा दी और उसने शहनाज़ की तरफ देखा जो उसकी तरफ गुस्से से देख रही थीं।

शादाब:" क्या हुआ मेरी जान ? गुस्से में तो और भी खूबसूरत लग रही हो अम्मी !!

शहनाज़ ने कुछ नहीं बोला और बस उसकी तरफ लगातार गुस्से से देखती रही। थोड़ी देर के बाद जैसे ही गाड़ी हाईवे पर पहुंच गई तो शहनाज़ बोली:"

" शादाब गाड़ी रोक !!

शादाब ने झटके के साथ ब्रेक मारते हुए गाड़ी रोक दी और शहनाज़ की तरफ देखा तो शहनाज़ ने गुस्से से उसके दोनो कान पकड़ लिए और खींचते हुए बोली :"

" कमीने अब बता तू उस रेहाना के सामने मुझे बुर्का उतारने को बोल रहा था। तुझे शर्म हैं कि नहीं

शादाब:" आह अम्मी इतनी जोर से मत कान खींचो दुखता है, मैं तो आपको छेड़ रहा था बस।

शहनाज़:" दुखेगा तो है ही क्योंकि इसलिए ही तो जोर से खींच रही हूं मेरे राजा !!

शादाब:" अच्छा अम्मी गलती हो गई, प्लीज़ माफ कर दो।

शहनाज़:" बस इतने से दर्द से ही तेरी बस हो गई, सुबह जो तूने मेरे साथ किया उसका क्या ?

शादाब:" आह अम्मी, मुझे सच में नहीं पता था कि गांड़ में घुस जायेगा आपकी,

शहनाज़ का दिल धड़क उठा और शर्म से पानी पानी हो गई और शादाब के कान भी अपने आप ही छूट गए उसके हाथ से।

शहनाज़ मुंह नीचे किए हुए ही बोली:" तुझे शर्म नहीं आती अपनी अम्मी से ऐसी बाते करते हुए बेशर्म !

शादाब उसकी तरफ सरकते हुए:_ उफ्फ कैसी शर्म तुमसे मेरी जान शहनाज़ ! शर्म करूंगा तो भगा के कैसे ले जाऊंगा?

शहनाज़:" उस कमीनी रेहाना को भगा के ले जा, कैसे तुझ पर लाइन मार रही थी बेटा अपना घर समझना, कभी कभी अा जाना।

शादाब:" अम्मी वो तो मुझे ऐसे ही बुला रही थी, आप गलत मत समझो,

शहनाज़:" मैंने दुनिया देखी हैं शादाब, उस दिन सिनेमा हॉल में ये ही कमीनी थी अपने बेटे के साथ मेरे राजा।

शादाब:' हान अम्मी, लड़के को तो मैं पहचान गया था।

शहनाज़:" इसने अपना लड़का नहीं छोड़ा, तो मेरे बेटे को कैसे छोड़ देगी ?

शादाब:"अच्छा अम्मी बेटा तो आप भी अपना नहीं छोड़ रही हो,क्या पता वो भी अपने बेटे से प्यार करती हो ?

शहनाज़ को शादाब की बात सुनकर थोड़ा अच्छा नहीं लगा और बोली:"

" बेटा मैं तुझसे प्यार करती हूं, और उस कमीनी के तो पति भी जिंदा है। शर्म करनी चाहिए, उस दिन हॉल में कैसी गंदी हरकत कर रही थी अपने बेटे के साथ ?

शादाब:' उफ्फ अम्मी मैं आपका दर्द समझ सकता हूं। और वो गंदी नहीं बहुत प्यारी हरकत कर रही थी अपने बेटे की खुशी के लिए।

शहनाज़:" हाय अल्लाह, कितना बिगड़ गया हैं तू !! कोई इसको भी मुंह में लेकर चूसता है क्या ?

शादाब:" उफ्फ मेरी नादान अम्मी, आपने तो खुद अपनी आंखो से देखा हैं सब।

शहनाज़:" कमीने चुप कर, कुछ तो लिहाज कर अपनी मा का, मैंने तो आज तक ठीक से हाथ नहीं लगाया चूसना तो दूर की बात हैं।

शादाब:" अभी आपने इस का कमाल देखा ही कहां हैं, ये वो रॉकेट हैं जो आपको चांद पर के जाएगा।

शहनाज़ शर्माती हुई:" चल बदतमीज, अब मूसल से रॉकेट कैसे बन गया ।अपना ही घर हैं।

शादाब उसकी चूचियां देखते हुए:"

" ठीक है आंटी जी।
[/size]
 
शादाब:" हाय अम्मी, मूसल ही समझ लो बस एक बार अपनी औखली का मसाला कूटवा लो फिर देखना आप !!

शहनाज़ का पूरा जिस्म कांप उठा, उफ्फ कमीना कैसे मुझे चुदवाने के लिए बोल रहा है।

शहनाज़:" मेरे राजा, ख्वाब देखना छोड़ दे तू।

शादाब:" उफ्फ अम्मी बस एक बार आपकी औखली का मसाला कूट जाए, आपको इस मूसल की दीवानी हो जाओगी। फिर जब अच्छे से प्यार भरी नजरो से देखोगी तो आपका मुंह अपने आप खुल जाएगा उस रेहाना की तरह मेरी जान।

शहनाज़:" शादाब तू कुछ ज्यादा ही बिगड़ गया हैं, कैसी गंदी गंदी बाते करता हैं अपनी अम्मी से ?

शादाब उसे अपने सीने से लगा लिया तो शहनाज़ का दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा। शादाब उसकी कमर सहलाते हुए बोला:"

" उफ्फ अगर तुमसे ना करू तो क्या उस रेहाना से गंदी गंदी बाते करू मेरी शहनाज़ ?

शहनाज़ उसकी पीठ में अपने नाखून गड़ाते हुए बोली:"

" मुंह तोड़ दूंगी तेरा अगर उसका नाम लिया तो। अच्छा ठीक है मेरे राजा, लेकिन गंदी गंदी बात सिर्फ रात में करना अपनी शहनाज़ से, बस अब खुश !!

शादाब ने शहनाज़ की गर्दन को चूम लिया और बोला:"

" भाग चलो मेरे साथ मेरी शहनाज़, अब मन नहीं लगता तुम्हारे बिना !

शहनाज़ का समूचा वजूद कांप उठा और बोली:"

" मन क्यों नहीं लगता तुम्हारे पास ही तो रहती हू सारा दिन मेरे राजा मैं फिर भी ?

शादाब :" उफ्फ अम्मी समझो, मैं आपसे निकाह करना चाहता हूं, अपनी बीवी बनाना चाहता हूं।
शादाब उसके बिल्कुल पास अा गया और उसकी आंखो में देखते हुए कहा :"

" अम्मी मैं सिर्फ आपको भगाना ही नहीं चाहता बल्कि आपके साथ निकाह करना चाहता हूं। क्या आपको कुबूल होगा ?

शहनाज़ को अपने बेटे से ये उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी कि वो निकाह तक की सोच कर बैठा हुआ है इसलिए वो उसके चेहरे को अजूबे की तरह देखने लगी।

शादाब:" ऐसे क्या देख रही हो अम्मी ?

शहनाज़:" बेटा दोस्ती और प्यार तक तो ठीक है लेकिन निकाह नहीं बेटा ये ग़लत होगा।

शादाब:" उफ्फ अम्मी, आपका बेटा आपको वो सभी खुशियां देने के लिए आया है जो आपका सपना रही हैं। आपके सपनों का शहजादा अब आपके सब सपने पूरे करेगा।

जैसे ही शादाब की बात पूरी हुई शहनाज़ की आंखो से आंसू निकल पड़े। शादाब ने दोनो हाथो में अपनी मा का चेहरा भर लिया और बोला:"

" क्या हुआ शहनाज़ इन आंखो में आशु क्यों ? क्या मेरी बात गलत लगी आपको ?

शहनाज़ उसके सीने से चिपक गई और बोली:" नहीं राजा तूने कुछ भी गलत नहीं कहा। बस अपनी किस्मत पर यकीन नहीं रहा मुझे।

शादाब ;" अम्मी आपका बेटा सब कुछ बदल देगा। आप मुझ पर यकीन रखे। बस ये बताए कि क्या आपको मुझसे निकाह कुबूल होगा ?
 
शहनाज़ ने अपनी बार अपनी बेटे की आंखो में पूरे विश्वास के साथ देखा और उसके होंठ चूम कर बोली :" मेरे साथ तो ये सब एक सपने के सच होने जैसा होगा।

शादाब ने शहनाज़ का हाथ पकड़ लिया और चूम कर बोला :

" आपके सपने सच होने का समय अा गया है अम्मी। मैं आज आपसे निकाह करूंगा।

शहनाज़ :" लेकिन बेटा सब क्या कहेंगे और काजी कहां से लायेगा तू ? गवाह भी तो होते है मेरे राजा।

शादाब :' आप उसकी फिक्र ना करे। मैं सब इंतजाम कर दूंगा,

शहनाज़ को अपने बेटे पर पूरा यकीन था इसलिए उसके जिस्म में मस्ती भरी लहरे दौड़ने लगी। उफ्फ ये कमीना तू आज रात को मेरे साथ बेड पर ...

ये सब सोचकर शहनाज़ की चूत गीली हो गई मानो खुद को तैयार कर रही हो। शादाब बोला:"..

" क्या हुआ अम्मी ? सुहागरात के सपने में खो गई क्या मेरी जान ?

शहनाज़ ने अपने दोनो हाथों से अपना मुंह ढक लिया और बोली:"..

" चल भाग, बेशर्म कहीं का, अभी तो अम्मी हूं तेरी कुछ तो शर्म कर।

शादाब मुस्कुरा दिया और शहर की तरफ गाड़ी बढ़ा दी।

शहनाज़:" बेटा लेकिन अपनी बुआ और दादा दादी जी क्या कहेगा तू ?

शादाब:" देखो अम्मी, हमे ये बात अभी सबसे छुपानी होगी, हम गांव से सब कुछ बेचकर शहर में शिफ्ट हो जायेगे। दादा दादी को भी अपने साथ ले जाऊंगा लेकिन उन्हें कभी नहीं बताएंगे।

शहनाज़:" लेकिन बेटा गांव का क्या होगा ? तुझे तो डॉक्टर बनना था मेरे राजा।

शादाब:' अम्मी मैं अपनी पढ़ाई जारी रखूंगा और अगले एक महीने के अंदर ही गांव में हॉस्पिटल खोल दूंगा।

शहनाज़ अपने बेटे की समझदारी पर नाज़ करने लगी। जल्दी ही वो सब शहर पहुंच गए।

शादाब :" अम्मी पहले निकाह करना हैं या घूमना हैं ?

शहनाज़ उसके सीने में मारते हुए :" पहले निकाह होता हैं मेरे राजा, उसके बाद ही हनीमून ।

शादाब : मतलब आपने खुद को तैयार कर लिया है अपने बेटे के साथ हनीमून मनाने के लिए।

शहनाज़ शर्मा गई और मुंह नीचे कर लिया। शादाब बोला:_

" चलो अम्मी फिर आपको दुल्हन बनाने की तैयारी शुरू करते हैं।

शादाब ने एक मॉल से शहनाज़ के लिए दुल्हन का जोड़ा, ज्वेलरी, कपडे ,मेक उप किट सब कुछ खरीद लिया।

शादाब '' अम्मी चलो अब ब्यूटी पार्लर चलते हैं।

शहनाज़ सोच रही थी कि मैं तो आज शहर घूमने के लिए अाई थी और अब अपने बेटे की दुल्हन बनकर घर वापिस जाऊंगी। उसकी चूत तड़प उठी और कुछ बूंदे और टपका दी।
 
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