desiaks
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शहनाज़ सोच रही थी कि मैं तो आज शहर घूमने के लिए अाई थी और अब अपने बेटे की दुल्हन बनकर घर वापिस जाऊंगी। उसकी चूत तड़प उठी और कुछ बूंदे और टपका दी।
जल्दी ही दोनो ब्यूटी पार्लर में पहुंच गए तो लेडी ने उन्हें पहचान लिया और बोली:"
" वाह मैडम इतनी जल्दी फिर से ब्यूटी पार्लर ? शादी की सालगिरह हैं क्या आपकी ?
शादाब: मेरी जान को इस तरह सजाना कि चांद भी शर्मा उठे। आज हमारी सुहागरात हैं।
लेडी मुस्कुराई और बोली:"
" ठीक है सर, वादा रहा हैं कि आप इन्हे खुद ही नहीं पहचान पाएंगे।
शहनाज़ मुंह नीचे किए मंद मंद मुस्कुरा रही थी। शादाब बाहर चला गया और अपने दोस्तो को फोन करने लगा ताकि सारे इंतजाम हो सके। जल्दी ही शहनाज़ का मेक अप हो गया और वो एक प्यासे गुलाब की तरह खिल उठी।
शादाब ने उसे दुल्हन के कपड़ों में देखते ही खुद पर से काबू खो दिया और उसका मुंह चूम लिया।
लेडी:" सर आप कहें तो मैं बाहर चली जाऊ ?
शहनाज़ शर्म से लाल हो गई और उसने लेडी का हाथ पकड़ लिए मानो उसे बाहर जाने से रोक रही हो। लेडी रुक गई और शादाब ने उसका पेमेंट किया और दोनो बाहर निकल गए। शहनाज़ ने बुर्का पहन लिया और अपना मुंह उसके अंदर छुपा लिया। शादाब ये देखकर मुस्कुरा दिया।
शादाब:" उफ्फ अम्मी, अभी से इतनी शर्म, सुहागरात कैसे मानाओगी फिर ?
शहनाज़ ने जोर से एक बार से शादाब का हाथ दबा दिया और दूसरे हाथ की उंगली को उसके होंठो पर रख कर चुप रहने का इशारा किया।
शादाब:' हाय अम्मी, तुम्हारी इन्हीं कातिल अदाओं ने मेरा सब कुछ लूट लिया हैं मेरी जान।
उसके बाद शादाब ने गाड़ी निकाली और अपनी मंजिल की तरफ चल पड़ा। जल्दी ही कार एक आलीशान घर के सामने खड़ी हुई थी। वहां शादाब के बहुत सारे दोस्त भी थे और जो उन्हें देखते ही दौड़ते हुए अा गए।
शहनाज़ ने अपने आपको पूरी तरह से ढक रखा था जिससे उसके जिस्म का कोई भी हिस्सा नहीं दिख रहा था।
शादाब का दोस्त:" चलो शादाब अंदर काजी इंतजार कर रहा हैं निकाह के लिए।
शहनाज़ ने जैसे ही ये काजी वाली बात सुनी तो उसकी आंखे खुली की खुली रह गई। वो तो अब तक हुई बातों को मजाक में ले रही थी, उसे यकीन नहीं था उसका बेटा इतना बड़ा कदम भी उठा सकता हैं।
दूसरा दोस्त :" यार शादाब अचानक से शादी का प्लान कैसे बन गया ?
शादाब:" मुझे शहनाज़ पसंद अा गई और इसके घर वाली इसकी शादी कहीं और कर रहे थे इसलिए मजबूरी में भागना पड़ा
पहला दोस्त::" लेकिन तेरे घर वाले तो होने चाहिए, दादा दादी और अम्मी, वो सब कहां हैं?
शादाब अपनी अम्मी का नाम सुनकर एक पल के लिए तो सकपका सा गया लेकिन अपने आपको संभालते हुए कहा:"
" दर असल मेरे घर वाले भी इस शादी के खिलाफ हैं, मेरे दादा दादी कभी इस बात के लिए राज़ी नहीं होंगे।
दोस्त:" चलो फिर अंदर चल कर निकाह की रस्म अदा कर ली जाए शादाब।
शादाब और उसके दोस्त अंदर की तरफ चल दिए तो शहनाज़ भी उनके साथ चल पड़ी। सच मूच सामने काजी ही बैठा हुआ था और निकाह के लिए सभी रशीद और दूसरे जरूरी सामान रखे हुए थे।
जल्दी ही दोनो ब्यूटी पार्लर में पहुंच गए तो लेडी ने उन्हें पहचान लिया और बोली:"
" वाह मैडम इतनी जल्दी फिर से ब्यूटी पार्लर ? शादी की सालगिरह हैं क्या आपकी ?
शादाब: मेरी जान को इस तरह सजाना कि चांद भी शर्मा उठे। आज हमारी सुहागरात हैं।
लेडी मुस्कुराई और बोली:"
" ठीक है सर, वादा रहा हैं कि आप इन्हे खुद ही नहीं पहचान पाएंगे।
शहनाज़ मुंह नीचे किए मंद मंद मुस्कुरा रही थी। शादाब बाहर चला गया और अपने दोस्तो को फोन करने लगा ताकि सारे इंतजाम हो सके। जल्दी ही शहनाज़ का मेक अप हो गया और वो एक प्यासे गुलाब की तरह खिल उठी।
शादाब ने उसे दुल्हन के कपड़ों में देखते ही खुद पर से काबू खो दिया और उसका मुंह चूम लिया।
लेडी:" सर आप कहें तो मैं बाहर चली जाऊ ?
शहनाज़ शर्म से लाल हो गई और उसने लेडी का हाथ पकड़ लिए मानो उसे बाहर जाने से रोक रही हो। लेडी रुक गई और शादाब ने उसका पेमेंट किया और दोनो बाहर निकल गए। शहनाज़ ने बुर्का पहन लिया और अपना मुंह उसके अंदर छुपा लिया। शादाब ये देखकर मुस्कुरा दिया।
शादाब:" उफ्फ अम्मी, अभी से इतनी शर्म, सुहागरात कैसे मानाओगी फिर ?
शहनाज़ ने जोर से एक बार से शादाब का हाथ दबा दिया और दूसरे हाथ की उंगली को उसके होंठो पर रख कर चुप रहने का इशारा किया।
शादाब:' हाय अम्मी, तुम्हारी इन्हीं कातिल अदाओं ने मेरा सब कुछ लूट लिया हैं मेरी जान।
उसके बाद शादाब ने गाड़ी निकाली और अपनी मंजिल की तरफ चल पड़ा। जल्दी ही कार एक आलीशान घर के सामने खड़ी हुई थी। वहां शादाब के बहुत सारे दोस्त भी थे और जो उन्हें देखते ही दौड़ते हुए अा गए।
शहनाज़ ने अपने आपको पूरी तरह से ढक रखा था जिससे उसके जिस्म का कोई भी हिस्सा नहीं दिख रहा था।
शादाब का दोस्त:" चलो शादाब अंदर काजी इंतजार कर रहा हैं निकाह के लिए।
शहनाज़ ने जैसे ही ये काजी वाली बात सुनी तो उसकी आंखे खुली की खुली रह गई। वो तो अब तक हुई बातों को मजाक में ले रही थी, उसे यकीन नहीं था उसका बेटा इतना बड़ा कदम भी उठा सकता हैं।
दूसरा दोस्त :" यार शादाब अचानक से शादी का प्लान कैसे बन गया ?
शादाब:" मुझे शहनाज़ पसंद अा गई और इसके घर वाली इसकी शादी कहीं और कर रहे थे इसलिए मजबूरी में भागना पड़ा
पहला दोस्त::" लेकिन तेरे घर वाले तो होने चाहिए, दादा दादी और अम्मी, वो सब कहां हैं?
शादाब अपनी अम्मी का नाम सुनकर एक पल के लिए तो सकपका सा गया लेकिन अपने आपको संभालते हुए कहा:"
" दर असल मेरे घर वाले भी इस शादी के खिलाफ हैं, मेरे दादा दादी कभी इस बात के लिए राज़ी नहीं होंगे।
दोस्त:" चलो फिर अंदर चल कर निकाह की रस्म अदा कर ली जाए शादाब।
शादाब और उसके दोस्त अंदर की तरफ चल दिए तो शहनाज़ भी उनके साथ चल पड़ी। सच मूच सामने काजी ही बैठा हुआ था और निकाह के लिए सभी रशीद और दूसरे जरूरी सामान रखे हुए थे।