desiaks
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दादा जी:" ओह लगता हैं मेरा पोता काफी समझदार हो गया है, अच्छा है बेटा वैसे भी एक दिन अब तुम्हे ही सारे घर की जिम्मेदारी लेनी है।
शादाब:" जी दादा जी, आप फिक्र ना करे, मैं सब कुछ अच्छे से संभाल लूंगा।
दादा:" चल ठीक हैं, तू रात नजर सफर से थक गया होगा, जा आराम कर ले
शादाब तो जैसे कब से अपने दादा जी के मुंह से यू सब सुनने के लिए तरस रहा था इसलिए वो बोला:"
" ठीक हैं दादा जी।
इतना कहकर शादाब उपर की तरफ चल दिया बिल्कुल दबे पांव क्योंकि वो शहनाज़ को सरप्राइज देना चाहता था। सीढ़ियों पर चढ़ते हुए उसकी सांसे तेज हो रही थी और वो जल्दी ही शहनाज़ के रूम के सामने जा पहुंचा तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा क्योंकि शहनाज़ के रूम का गेट खुला हुआ था और कमरे में फैली नाईट बल्ब की रोशनी में बहुत खूबसूरत लग रही थी।
शहनाज़ अभी सेहरी करके नमाज पढ़ने के बाद सोई थी और दिन निकलने ही वाला था इसलिए उसने गेट बंद नहीं किया था। शादाब कमरे के अंदर दाखिल हो गया, धीरे से गेट को बंद किया और शहनाज़ के बिल्कुल करीब पहुंच गया और उसके खूबसूरत चेहरे को प्यार से देखने लगा। शहनाज़ ने एक हल्के हरे रंग का सूट पहना हुआ था और और तकिए को अपनी बांहों में लिए हुए सो रही थी।
शादाब ने धीरे से अपने बैग से अपना नाईट सूट निकाला और बैग को वहीं टेबल पर रख दिया और अपने कपड़े बिना कोई आवाज किए बदल लिए। कपडे बदल लेने के बाद उसने आराम से नाईट बल्ब को बुझा दिया तो कमरे में पूरा घूप अंधेरा छा गया। शादाब बेड पर चढ़ा और शहनाज़ को अपनी बांहों में भर लिया तो शहनाज़ एक की एक तेज झटके के साथ नींद खुल गई और वो डर के मारे चिल्ला उठी तो शादाब ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया और प्यार से उसके कान में बोला:"
" मेरी अम्मी शहनाज़ मैं शादाब।
इस आवाज के लिए तो कब से शहनाज़ के कान तरस रहे थे, शहनाज़ को लगा जैसे अपने आप ही जमाने भर की खुशियां उसकी झोली में सिमट अाई हैं और शहनाज़ अपनी सुध बुध ही खो बैठी और शादाब से किसी चुंबक की तरह चिपकती चली गई।
दोनो मा बेटे एक दूसरे से बुरी तरह से लिपट गए। शादाब के हाथ शहनाज़ की पीठ पर कसते चले गए और उसकी गर्म गर्म सांसे शहनाज़ की गर्दन पर पड़ने लगी और शहनाज़ ने भी पूरी ताकत से अपने सीने से लगा लिया और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी। दोनो में से कोई कुछ नहीं बोल रहा था बस दोनो एक दूसरे की धड़कने सुन रहे थे।दोनो के दिल एक दूसरे के इतने करीब धड़क मानो दोनो दोनो के सीने में एक ही दिल धड़क रहा हो। शहनाज़ ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका बेटा इस तरह से अचानक से आकर उसे अपनी बांहों में भर लेगा इसलिए वो खुशी से फूली नहीं समा रही थी और शादाब से चिपकी हुई पड़ी थी। दोनो के चेहरे आपस में टकरा रहे थे और शहनाज़ अपने गाल शादाब के गालों से रगड़ रही थी। बीच बीच में उनके होठ जैसे ही आपस में टकराते तो दोनो के जिस्म में बिजली सी कौंध जाती लेकिन दोनों ने ही रोजा रखा था जिस कारण दोनो अपने उपर काबू रखे हुए थे। शहनाज़ धीरे से शादाब के कान में शहद घोलती हुई अपनी मीठी आवाज में बोली:
" शादाब मेरे राजा, मेरी जान लव यू सो मच मेरे बेटे।
शादाब ने भी शहनाज़ के कान में धीरे से बोला:"
" लव यू टू मेरी शहनाज़, बहुत मिस किया मैंने तुम्हे।
शहनाज़:" मैंने भी मेरे राजा, मन नहीं लगता था तुम्हारे बिना, पूरा घर काटने को दौड़ता था।
शादाब उसकी खुली हुई जुल्फों में हाथ फेरते हुए बोला:"
" बस मेरी जान, अब मैं अा गया हूं ना अब आपके सारे अकेलेपन को खुशियों में बदल दूंगा।
शहनाज़ अपने हाथ से उसका गाल हल्का सा खींच कर बोली :"
" शादाब मुझे तो बिल्कुल भी उम्मदी नहीं थी तुम अचानक से ऐसे रात में ही आकर मुझे अपने बांहों में ले लोगे।
शादाब ने शहनाज के एक कंधे पर हल्का सा दबाव दिया और बोला:" आपको अच्छा लगा मेरी जान ये सब ?
शहनाज़ बिना कोई जवाब दिए शादाब से पूरी जोर से कस गई मानो उसे अपने अंदर समा लेना चाहती हो। शादाब सब समझ गया लेकिन वो शहनाज़ के मुंह से सुनना चाहता था इसलिए बोला:
" बोलो मेरी शहनाज़ मेरी जान ?
शहनाज़:" बहुत अच्छा लगा मेरे शादाब, सच में तुमने मुझे पूरी तरह से जीत लिया हैं शादाब।
शादाब थोड़ा जोर से उसका कंधा सहलाते हुए:" तो मेरी इस जीत का इनाम मुझे आज रात को मिलना चाहिए, क्या क्या मिलेगा मुझे शहनाज़ ?
शहनाज एकदम से शर्मा गई और उसकी सांसे तेज हो गई और बोली:" चुप कर बदमाश, रोजा नहीं रखा हैं क्या तूने ?
शादाब को अपनी गलती का एहसास हुआ और बोला:"
" रोजा रखा हैं अम्मी मैने, अभी तक सभी रोजे रखे हैं। मैं तो इनाम वाली बात मजाक में कर रहा था।
शहनाज़:" बस कर राजा, जहां एक महीने सब्र कर लिया कुछ घंटे और रुक जा, आज वैसे भी चांद रात हैं।
शादाब ने शहनाज़ का चेहरा अपने हाथों में भर लिया और बोला:" हान अम्मी मेरी शहनाज़ आज सच में मेरे लिए चांद रात हैं क्योंकि मेरा चांद मेरे हाथो में हैं।
शादाब:" जी दादा जी, आप फिक्र ना करे, मैं सब कुछ अच्छे से संभाल लूंगा।
दादा:" चल ठीक हैं, तू रात नजर सफर से थक गया होगा, जा आराम कर ले
शादाब तो जैसे कब से अपने दादा जी के मुंह से यू सब सुनने के लिए तरस रहा था इसलिए वो बोला:"
" ठीक हैं दादा जी।
इतना कहकर शादाब उपर की तरफ चल दिया बिल्कुल दबे पांव क्योंकि वो शहनाज़ को सरप्राइज देना चाहता था। सीढ़ियों पर चढ़ते हुए उसकी सांसे तेज हो रही थी और वो जल्दी ही शहनाज़ के रूम के सामने जा पहुंचा तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा क्योंकि शहनाज़ के रूम का गेट खुला हुआ था और कमरे में फैली नाईट बल्ब की रोशनी में बहुत खूबसूरत लग रही थी।
शहनाज़ अभी सेहरी करके नमाज पढ़ने के बाद सोई थी और दिन निकलने ही वाला था इसलिए उसने गेट बंद नहीं किया था। शादाब कमरे के अंदर दाखिल हो गया, धीरे से गेट को बंद किया और शहनाज़ के बिल्कुल करीब पहुंच गया और उसके खूबसूरत चेहरे को प्यार से देखने लगा। शहनाज़ ने एक हल्के हरे रंग का सूट पहना हुआ था और और तकिए को अपनी बांहों में लिए हुए सो रही थी।
शादाब ने धीरे से अपने बैग से अपना नाईट सूट निकाला और बैग को वहीं टेबल पर रख दिया और अपने कपड़े बिना कोई आवाज किए बदल लिए। कपडे बदल लेने के बाद उसने आराम से नाईट बल्ब को बुझा दिया तो कमरे में पूरा घूप अंधेरा छा गया। शादाब बेड पर चढ़ा और शहनाज़ को अपनी बांहों में भर लिया तो शहनाज़ एक की एक तेज झटके के साथ नींद खुल गई और वो डर के मारे चिल्ला उठी तो शादाब ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया और प्यार से उसके कान में बोला:"
" मेरी अम्मी शहनाज़ मैं शादाब।
इस आवाज के लिए तो कब से शहनाज़ के कान तरस रहे थे, शहनाज़ को लगा जैसे अपने आप ही जमाने भर की खुशियां उसकी झोली में सिमट अाई हैं और शहनाज़ अपनी सुध बुध ही खो बैठी और शादाब से किसी चुंबक की तरह चिपकती चली गई।
दोनो मा बेटे एक दूसरे से बुरी तरह से लिपट गए। शादाब के हाथ शहनाज़ की पीठ पर कसते चले गए और उसकी गर्म गर्म सांसे शहनाज़ की गर्दन पर पड़ने लगी और शहनाज़ ने भी पूरी ताकत से अपने सीने से लगा लिया और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी। दोनो में से कोई कुछ नहीं बोल रहा था बस दोनो एक दूसरे की धड़कने सुन रहे थे।दोनो के दिल एक दूसरे के इतने करीब धड़क मानो दोनो दोनो के सीने में एक ही दिल धड़क रहा हो। शहनाज़ ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका बेटा इस तरह से अचानक से आकर उसे अपनी बांहों में भर लेगा इसलिए वो खुशी से फूली नहीं समा रही थी और शादाब से चिपकी हुई पड़ी थी। दोनो के चेहरे आपस में टकरा रहे थे और शहनाज़ अपने गाल शादाब के गालों से रगड़ रही थी। बीच बीच में उनके होठ जैसे ही आपस में टकराते तो दोनो के जिस्म में बिजली सी कौंध जाती लेकिन दोनों ने ही रोजा रखा था जिस कारण दोनो अपने उपर काबू रखे हुए थे। शहनाज़ धीरे से शादाब के कान में शहद घोलती हुई अपनी मीठी आवाज में बोली:
" शादाब मेरे राजा, मेरी जान लव यू सो मच मेरे बेटे।
शादाब ने भी शहनाज़ के कान में धीरे से बोला:"
" लव यू टू मेरी शहनाज़, बहुत मिस किया मैंने तुम्हे।
शहनाज़:" मैंने भी मेरे राजा, मन नहीं लगता था तुम्हारे बिना, पूरा घर काटने को दौड़ता था।
शादाब उसकी खुली हुई जुल्फों में हाथ फेरते हुए बोला:"
" बस मेरी जान, अब मैं अा गया हूं ना अब आपके सारे अकेलेपन को खुशियों में बदल दूंगा।
शहनाज़ अपने हाथ से उसका गाल हल्का सा खींच कर बोली :"
" शादाब मुझे तो बिल्कुल भी उम्मदी नहीं थी तुम अचानक से ऐसे रात में ही आकर मुझे अपने बांहों में ले लोगे।
शादाब ने शहनाज के एक कंधे पर हल्का सा दबाव दिया और बोला:" आपको अच्छा लगा मेरी जान ये सब ?
शहनाज़ बिना कोई जवाब दिए शादाब से पूरी जोर से कस गई मानो उसे अपने अंदर समा लेना चाहती हो। शादाब सब समझ गया लेकिन वो शहनाज़ के मुंह से सुनना चाहता था इसलिए बोला:
" बोलो मेरी शहनाज़ मेरी जान ?
शहनाज़:" बहुत अच्छा लगा मेरे शादाब, सच में तुमने मुझे पूरी तरह से जीत लिया हैं शादाब।
शादाब थोड़ा जोर से उसका कंधा सहलाते हुए:" तो मेरी इस जीत का इनाम मुझे आज रात को मिलना चाहिए, क्या क्या मिलेगा मुझे शहनाज़ ?
शहनाज एकदम से शर्मा गई और उसकी सांसे तेज हो गई और बोली:" चुप कर बदमाश, रोजा नहीं रखा हैं क्या तूने ?
शादाब को अपनी गलती का एहसास हुआ और बोला:"
" रोजा रखा हैं अम्मी मैने, अभी तक सभी रोजे रखे हैं। मैं तो इनाम वाली बात मजाक में कर रहा था।
शहनाज़:" बस कर राजा, जहां एक महीने सब्र कर लिया कुछ घंटे और रुक जा, आज वैसे भी चांद रात हैं।
शादाब ने शहनाज़ का चेहरा अपने हाथों में भर लिया और बोला:" हान अम्मी मेरी शहनाज़ आज सच में मेरे लिए चांद रात हैं क्योंकि मेरा चांद मेरे हाथो में हैं।