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RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“खाना बनाना है,” शीतल ने कहा,उसने शायद ये बात खुद से कही थी।
“मैं बना लूँगा,” राज ने कहा।
शीतल ने एक पल के लिए अपनी पलकें उठा कर राज की ओर देखा,उसका ध्यान कहीं और था पर नज़रें शीतल के हाथ पर थी जिसे उसने अपने दूसरे हाथ से पकड़ रखा था।
रात को दोनों ने खाना खाया और फिर लेट गये।
अगले दिन सुबह 8 बजे राज काम पर चला गया,शीतल को कहीं नही जाना था वो घर पर ही थी। उसने पूरा दिन टी.वी. देखकर बिताया। रात को राज 10बजे वापस घर आया।
“शीतल,खाना क्या बनाया है?” राज ने पूछा।
“कुछ नही,” शीतल ने कहा।
“क्यों?। तबियत ठीक नही है क्या?” राज ने पूछा।
“ठीक है,” शीतल ने कहा।
“फिर क्यों?”
“मैं कोई नौकरानी नही हूँ,” शीतल ने कहा।
“पर शीतल………” राज कुछ कहने जा रहा था पर चुप हो गया,बिना कुछ कहे लेट गया।
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उनका ये रोज़ का हो गया था,राज बाहर ही खाना ख़ाता था। शीतल घर पर कभी कुछ नही बनाती थी और अगर बनाती थी तो सिर्फ़ अपने लिए जब राज घर पर नही होता था।
राज को कई बार देर हो जाती थी, जिस वजह से उस रात वो किसी होटल नही जा पाता था और बिना कुछ खाए सो जाता था पर शीतल को कभी भी अहसास नही होने देता था की वो भूखा है। शीतल को तो जैसे राज से कोई मतलब ही नही रह गया था।
एक दिन राज को सुबह जल्दी जाना था उस दिन वो किसी होटल नही जा सका और दिन भर इतना काम था की उसे वक्त नही मिला,रात को भी उसे आते-आते 12बज गये वो होटल नही जा सका उस दिन उसने कुछ भी नही खाया था।
“आज कुछ बनाया है?” राज ने शीतल से पूछा।
“नही,और मुझसे कोई उम्मीद भी नही करना । मैं और लड़कियों की तरह नही हूँ कि अपने पति के लिए सुबह शाम खाना बनाऊँ,उनकी सेवा करूँ,” शीतल ने कहा।
“मैंने ऐसा तो कभी नही कहा तुमसे की तुम मेरे लिए कुछ करो पर इतना तो उम्मीद कर सकता हूँ कि अगर सुबह से भूखा हूँ तो तुम कुछ बना दोगी। अगर मेरे पास समय होता तो मैं कभी तुमसे कुछ नही कहता,” राज ने गुस्से में कहा।
शीतल ने राज को पहली बार इतने गुस्से में देखा था। राज से कुछ कहने की उसकी हिम्मत नही हुई,वो कुछ नही बोली। राज चुप-चाप लेट गया उसने जूते भी नही उतारे।
शीतल दूसरे कमरे में चली गयी कुछ देर बाद वो वापस आयी,राज सो रहा था,शीतल राज के पास आयी उसके जूते उतारने लगी। शीतल को इस तरह की चीज़े पसंद नही थी पर फिर भी…।
अगले दिन शीतल ने राज के काम पर जाने से पहले खाना बना दिया पर राज कुछ खाए बिना ही चला गया। शीतल ने खाने के लिए कहा लेकिन राज ने कोई जवाब नही दिया।
शीतल ने शाम को भी खाना बनाया पर राज होटल से खा कर आया था। राज के इस तरह के व्यवहार को शीतल के लिए बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था। वो खुद राज से नही बोलती थी लेकिन जब राज ने बोलना छोड़ दिया तो उसे बुरा लग रहा था। अब उसे राज की फ़िक्र होने लगी थी। बिन कहे ही वो राज के हर काम करने लगी लेकिन उसका कोई भी काम करना बेकार ही था क्यों कि राज अपना हर काम खुद ही करता था।
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RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
एक दिन राज को काम पर नही जाना था। वो घर पर ही था। उस दिन राज अपने लिए खाना खुद ही बनाने लगा।
“मैं बना दूँगी,तुम रहने दो,” शीतल ने कहा।
राज कुछ नही बोला और जो कर रहा था उसे करता रहा। शीतल उसके पास आई और उससे उसने चाकू छीन ली।
“ये क्या बदतमीज़ी है?” राज ने कहा।
“मैंने कहा ना मैं बना दूँगी फिर क्यों?” शीतल ने कहा।
“तुम्हें मेरे लिए कुछ भी करने की ज़रूरत नही है,”राज ने कहा।
“मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।”
“पत्नी का काम खाना बनाना नही होता,”राज ने कहा।
शीतल कुछ नही बोल सकी,कुछ दिन पहले तक तो वो खुद राज से यही कह रही थी और आज सब कुछ करने को तैयार थी।
शीतल खुद सब्जी काटने लगी। राज ने भी ज़्यादा कुछ नही कहा और खुद कुछ और करने लगा। शीतल फिर उसके पास चली आई और उसे उस काम को करने से रोक दिया।
“मैं सब कर लूँगी,तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत नही है,” शीतल ने कहा।
“तुम्हारी समस्या क्या है,शीतल?जब तुमसे अच्छे से बात करो तब तुम नखरे दिखाती हो और जब ना बोलो तो खुद……………। तुम चाहती क्या हो?कभी कहती हो की तुमसे ये सब नही होगा और कभी खुद करने लगती हो,” राज ने कहा।
“मुझे माफ़ कर दो,मुझसे ग़लती हो गयी अब दोबारा ऐसा कुछ नही करूँगी।”
“शीतल,मुझे परेशान मत करो।”
“तुम मुझसे गुस्सा मत हुआ करो,मैं तुम्हारा गुस्सा नही बर्दाश्त कर सकती,” शीतल ने कहा।
राज कुछ नही बोला और जो कर रहा था उस काम को छोड़ कर कमरे में चला गया कुछ देर बाद शीतल भी उसी कमरे आ गयी।
“क्या हुआ ? अब नही बनाना,” राज ने कहा।
“बन रहा है।”
“तुम्हें हो क्या गया था ?तुम इतने दिनों से बहुत अजीब सा व्यवहार कर रही थी।”
“कुछ नही बस थोड़ी तबियत ठीक नही थी। मैं तुम्हें जान बूझ कर परेशान नही करना चाहती थी , बस हो जाता है पर तुम मुझ पर गुस्सा मत हुआ करो,मुझे मना लिया करो। तुम्हारे अलावा और कोई मुझे समझता भी तो नही है,”शीतल ने कहा।
“सॉरी,” राज ने कहा।
“मुझे कुछ पूछना है,” शीतल ने कहा।
“पूछो।”
“मेरे बिना जी लोगे,” शीतल ने कहा।
“क्यों? कहीं जा रही हो,” राज ने कहा।
“पता नही पर तुम बताओ हाँ या नही,” शीतल ने कहा।
“किसी के जाने से किसी की जिंदगी नही रुकती और तुम खुद समझ सकती हो कि मैं …………।” राज ने कहा और कमरे के बाहर चला गया।
रात को राज जल्दी सो गया पर शीतल की आँखों में नींद नही थी उसने फिर से उसी नॉवेल को उठाया(जिसे उस दिन वो छत पर पढ़ रही थी) और उसमें से एक पेज निकाल कर पढ़ने लगी वो राज का लिखा हुआ खत था जो उसने उसे तलाक़ वाली घटना के पहले लिखा था। खत में लिखा था-
“प्यारी शीतल ,
कल तलाक़ के बाद हम दोनों जुदा हो जाएँगे। क्या पता फिर कभी कुछ कहने का मौका मिले या फिर ना मिले इसलिए ये खत ये तुम्हे लिख रहा हूँ। उस दिन घर छोड़ कर तुम मेरे पास कितने विश्वास के साथ आयी थी। तुम्हारा साथ देना नही चाहता था ना ही तुम्हारे लिए मैं कभी घर छोड़ता लेकिन तुम्हारा मुझ पर आँख बंद करके भरोसा करना मुझे अच्छा लगा था। मुझे घर छोड़ने का अफ़सोस होता लेकिन तुम्हारे साथ का अहसास ज़्यादा अच्छा है। जब तुम रोती हो,ज़िद करती हो, मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आता है लेकिन तुम्हें प्यार से शांत कराना मुझे ज़्यादा अच्छा लगता है। बिल्कुल बच्चों की तरह ज़िद करती हो और उतनी ही मासूम भी लगती हो। मुझे तुमसे रूठना और तुम्हें मनाना बहुत अच्छा लगता है। उस दिन जब तुमसे गुस्सा था और खाना नही खा रहा था तो कितनी मासूमियत से तुम मुझे मना रही थी। मैं खाना खाना तो नही चाहता था लेकिन तुम्हारा उदास चेहरा भी मुझसे नही देखा जा रहा था। तुम मुझे हमेशा हसती-बोलती हुई ही अच्छी लगती हो। कभी उदास मत रहा करो,जब तुम उदास होती हो मुझे बहुत दुख होता है। जब तुमने मुझसे कहा था कि-“तुम्हारा हर गिफ्ट मेरे लिए खास है। ” उस पल मेरा दिल कह रहा था कि अभी तुम्हारे माथे को चूम लूँ और कह दूँ कि मेरे लिए तो सिर्फ़ तुम खास हो पर कुछ कह नही सका था। मैं किसी वैशाली से प्यार नही करता हूँ, वो सिर्फ़ मेरी दोस्त थी और कुछ नही। जब से तलाक़ की बात हुई है तब से तुम्हें हर पल खोने का डर लगा रहता है। तलाक़ देना तो नही चाहता था लेकिन साइन करने के लिए तुमने कहा था तुम्हें मना भी तो नही कर सकता था और फिर साथ देने का वादा तुम्हारा था मैंने कोई वादा नही किया था। हमेशा तुमसे दूर जाने की कोशिश की। कभी भी तुम्हें जाहिर नही होने दिया कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ,ना आज कहने की हिम्मत है। शीतल,मुझे तुम्हारी बहुत ज़रूरत है,हर वक्त,हर कदम पर। कल अलग हो जाओगी मुझसे लेकिन अपने हाथों से मेरी दी हुई उस अंगूठी को अलग मत करना।
तुम्हारा पति राज”
खत पढ़ते-पढ़ते शीतल की आँखें नम हो गयी पर उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। कुछ पाने की खुशी थी। इस खत को शीतल कई बार पढ़ चुकी थी।
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RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
उसने अपनी डायरी ली उसमें कुछ लिखा और फिर सो गयी। कुछ दिन में उनके बीच की दूरियाँ थोड़ी कम हो गयी।
“आज किसी होटल में खाना खाने चले,” शीतल ने राज से कहा। रात का समय था राज उस समय कुछ पेपर पर काम कर रहा था।
“किस होटल में?” राज ने पूछा।
“किसी पाँच सितारा होटल में।”
राज कुछ नही बोला करीब 1 घंटे बाद दोनों किसी होटल में एक-दूसरे के आमने-सामने बैठे थे।
“लखनऊ चलोगे?शीतल ने पूछा।”
“कब?”
“अभी।”
“किस लिए?”
“मुझे अपनी बेटी से मिलना है,” शीतल ने कहा।
“अपनी……………।”
“एक अनाथालय में रहती है,ढाई साल की है,” शीतल ने कहा।
राज उसके साथ उसी समय अपनी कार से लखनऊ की ओर चल दिया,उन लोगों ने उस बच्ची को गोद ले लिया। बहुत प्यारी बच्ची थी,गौरी नाम था।
गौरी के आते ही जैसे उनकी ज़िंदगी में खुशियाँ भर गयी। शीतल और राज की लड़ाई भी ख़त्म हो गयी। दोनों कहीं से भी आते तो गौरी को खिलाने लगते वो थी कुछ ऐसी की उसे देखकर किसी को भी उसे खिलाने का मन करने लगे।
एक दिन वो तीनों किसी होटल में खाना खाने गये। वो लोग खाना खा ही रहे थे की तभी उनके पास एक लड़का आकर खड़ा हो गया। उसने किसी से कुछ बोला नही। राज कुछ कहता इससे पहले शीतल बोल पड़ी-“अरे सतीश तुम……। कैसे हो?”
“ठीक हूँ। और तुम बताओ।”
“मैं अच्छी हूँ,ये मेरे पति हैं और ये शरारती बच्ची मेरी बेटी,” शीतल ने सतीश को राज और गौरी से मिलाते हुए कहा।
“तुम दोनों आपस में बात करो मैं बाहर तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ,” राज ने कहा और वो गौरी को गोद में उठा कर बाहर चला गया।
“तुमने इतनी जल्दी शादी कर ली,क्या घर का ज़्यादा दबाव था?”
“नही,मैंने कोर्ट मैरिज की है।”
“क्यों कितना प्यार हो गया था?”
“प्यार नही हुआ था सिर्फ़ शादी हुई थी,और तुम बताओ क्या कर रहे हो?”
“बी.टेक………। तुमने पढ़ाई छोड़ दी?”
“नही,तुम कल मेरे घर आना तब बात करते हैं,मुझे तुमसे बहुत बात करनी है,” शीतल ने उसे अपने घर का पता लिख कर दे दिया।
अगले दिन सुबह काम पर जाते समय राज ने शीतल से पूछा-“कल जो मिला था वो कौन है?”
“मेरा दोस्त है,सतीश,मेरे साथ पढ़ता था।”
राज कुछ नही बोला।
“सतीश मुझे बहुत प्यार करता था।”
“और तुम।”
“शायद मैं भी,उसने मेरे लिए बहुत कुछ किया है। पर किस्मत देखो वो मुझे इतना प्यार करता था फिर भी मैं उसे नही मिली और जिसे मिली,वो मुझे प्यार नही करता था।”
“करता तो हूँ।”
“अब करते हो,पहले से नही। वो मुझे बहुत पहले से प्यार करता था। जितना तुमने मेरे साथ किया है उतना सतीश भी मेरे लिए करता।”
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राज कुछ नही बोला चुप-चाप चला गया।
शाम को सतीश घर आया। राज उस समय घर पर नही था।
“तुमने इतनी जल्दी शादी क्यों की?” सतीश ने पूछा।
“कुछ हालात ही ऐसे हो गये थे की मुझे शादी करनी पड़ी।”
“क्या हुआ था?”
“बताती हूँ ,” कहकर शीतल ने शुरू से अंत तक की सारी कहानी सुना दी की कैसे वो राज से मिली?उसकी शादी कैसे हुई?उसने क्या कुछ सहा?सब कुछ उसने सतीश से कह दिया।
शीतल की कहानी सुन कर सतीश की आँखों में आँसू आ गये।
“तुम इतना सब कुछ अकेले सह रही थी।”
“नही,राज का साथ था।”
“क्या कोई इतना अच्छा हो सकता है?”
“पता नही,पर राज है।”
कुछ देर तक दोनों चुप रहे फिर सतीश जाने लगा,तभी राज आ गया पर सतीश राज से बिना कुछ बोले ही चला गया।
“सतीश, क्यों आया था?”राज ने पूछा।
“मुझसे मिलने।”
“थोड़ा दूर रहो इससे।”
“क्यों?तुम्हे वो पसंद नही या मुझ पर भरोसा नही।”
“कोशिश करो आज के बाद ना मिलने की।”
इतना कहकर राज गौरी के साथ खेलने लगा। शीतल भी कुछ नही बोली।
अगले दिन राज के जाने के कुछ देर बाद ही सतीश शीतल से मिलने के लिए आया। शीतल को उसके इस तरह आने की कोई उम्मीद नही थी।
“तुम इतनी सुबह।”
“मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।”
“बोलो।”
“अंदर बैठ कर बात करें।”
शीतल उसे मना नही कर पायी,बेमन से उसने उसे अंदर आने के लिए कहा।
“कहो,क्या बात करनी है?”
“शीतल , राज तुम्हें धोखा दे रहा।”
“कोई भी बात करो पर राज के बारे में कुछ नही।”
“मुझे सिर्फ़ राज के बारे में ही बात करनी है।”
“तो फिर जा सकते हो।”
“शीतल , राज ने ही तुम्हारी जिंदगी बर्बाद की है। वो अच्छा नही है।”
“कैसा भी हो ,कुछ भी किया हो मुझे कुछ नही जानना,तुम जाओ यहाँ से,”शीतल ने कहा।
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“जय,राज का दोस्त है और उसके पास इतने पैसे अचानक नही आए हैं,सब कुछ उसके पास पहले से था। तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ है वो इत्तेफ़ाक नही था बल्कि राज की चाल थी,” सतीश ने कहा और चला गया।
कुछ देर बाद राज घर आया तो उसने देखा की शीतल सोफे पर बेहोश पड़ी है उसके मुँह से झाग निकल रहा था। वो उसे तुरन्त हॉस्पिटल लेकर गया। शीतल के लिए राज की आँखों में पहली बार आँसू आए थे।
राज को कुछ समझ नही आया की शीतल ने ऐसा क्यों किया। दो दिन हो गये,इन दो दिनों में शीतल की तबियत में पूरी तरह से सुधार आ चुका था क्यों कि जब उसे हॉस्पिटल लाया गया था तब तक जहर उसके शरीर में पूरी तरह से नही फैला था।
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10.
तीसरे दिन उसे हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गयी लेकिन शीतल तो हॉस्पिटल में थी ही नही। वो तो पहले ही कहीं जा चुकी थी। राज ने उसे ढूढ़ना भी ज़रूरी नही समझा और चुप-चाप घर आ गया।
गौरी बार-बार राज से पूछती-“पापा,मम्मी कब आएगी?”पर राज उसे कोई जवाब नही देता।
शायद शीतल ने जहर खाने से पहले कोई खत लिखा हो। ये सोच कर राज पूरे घर में खत ढूढ़ने लगा उसे कोई खत तो नही मिला पर एक डायरी मिली उसमें कुछ खत भी रखे हुए थे। राज ने रात को गौरी के सोने के बाद उस डायरी को पढ़ना शुरू किया।
लिखा था-
“मैं 16 साल की थी। उसी समय मेरी दीदी की शादी हुई थी। दीदी की शादी बड़े घर में हुई थी। उनके पास पैसों की कोई कमी नही थी पर दीदी कहती थी कि वो दहेज की माँग करते हैं,उसे दहेज के लिए मारते हैं जबकि मुझे या घर में किसी और को ऐसा कुछ भी नही लगता था। जीजा जी के व्यवहार से ऐसा कभी नही लगा की उन्हें दहेज चाहिए या फिर वो दीदी को दहेज के लिए मारते होंगे। एक दिन पता चला की दीदी ने खुद को आग लगा ली। आग उन्होने खुद लगाई थी या फिर किसी और ने हमें नही मालूम था। हम किसी के खिलाफ कुछ नही कर सके। बाद मे पता चला की उन्हें जला कर मारा गया था। मुझे ये नही मालूम की उनके साथ ऐसा क्यों किया गया था पर इस हादसे ने मेरे अंदर शादी को लेकर एक डर पैदा कर दिया था मुझे लगता था की अगर मेरी शादी भी ऐसी ही किसी जगह हुई तो मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ होगा। दीदी की मौत के बाद मैंने खुद पर ध्यान देना बहुत कम कर दिया था। मैं बहुत अस्त-व्यस्त हो गयी थी। दीदी के साथ हुए हादसे को 1 महीने बीत गये। इस बीच मैं खुद में बहुत सीमित हो गयी थी। मैंने अपने दोस्तों से बोलना भी छोड़ दिया था,किसी को कोई खास फ़र्क नही पड़ा पर सतीश जो मेरे साथ पढ़ता था उसे मुझसे बोले बिना नही रहा जाता था वो मुझसे प्यार करता था लेकिन मुझे ये प्यार जैसी चीज़ बेकार लगती थी। कई बार जब वो ज़्यादा पीछे पड़ा रहता था तो मैं उससे बोल देती थी। मुझे उससे थोड़ा भी लगाव नही था पर वो इतना अच्छा था कि मैं उसे कुछ कहती भी नही थी। स्कूल से मेरा घर करीब 2 किलोमिटर था,इस बीच कुछ रास्ता सूनसान भी था,उस हादसे के बाद मैंने हर किसी से बोलना छोड़ दिया था इसलिए मैं अकेले ही आया-जाया करती थी। एक दिन मैं स्कूल से आ रही थी,मैंने ध्यान दिया की कुछ लड़के मेरा पीछा कर रहे थे। मैंने इस बात को किसी से नही कहा और अकेले ही स्कूल आती-जाती रही,पर शायद वो लड़के मेरा हर रोज पीछा करते थे। वो मेरी उम्र के ही थे। मुझे उनसे डर भी लगता था पर फिर भी मैंने अपना रास्ता नही बदला। एक दिन स्कूल से वापस लौटते समय उन लड़कों ने मेरा अपहरण कर लिय। वो लोग मुझे अपने साथ किसी खाली मकान में ले गये। वहाँ कोई और नही था। उन तीनों ने मेरे साथ............. । अगली सुबह वो मुझे वापस उसी जगह छोड़ गयें। मैंने खुद को संभाला और अपने घर आ गयी। घर पर सब मुझे ही ढूढ़ रहे थे। मैंने सारी बात अपनी माँ को बता दी। उन्होंने मुझे चुप रहने के लिए कहा। मुझे लगा था कि वो उनके खिलाफ कुछ करेंगी ,पर उन्होंने मुझे किसी से कुछ भी कहने के लिए मना कर किया। मैं पूरी तरह से टूट गयी थी। मेरा दिल कहीं भी नही लगता था,मन करता था की जहर खा कर मर जाऊं। मैं कभी सतीश से जुड़ना नही चाहती थी पर हालात ही ऐसे थे कि मुझे उससे जुड़ना पड़ा क्यों कि वो मेरे जीने की वजह बना,उसने मुझे फिर आगे बढ़ने की हिम्मत दी। हर कदम पर मेरी मदद की। धीरे-धीरे मेरी सतीश से अच्छी दोस्ती हो गयी। मैं हर बात उसे बताने लगी,शायद मैं उससे प्यार भी करने लगी। मैंने सोच लिया था कि मैं शादी करूँगी तो सिर्फ़ सतीश से। जो मुझे अभी बिना किसी रिश्ते के इतना समझता है वो किसी रिश्ते में बाँधने के बाद कितना समझेगा। मैंने सतीश को कभी भी यह अहसास नही होने दिया की मैं उससे प्यार करती हूँ। अपने प्यार को अपने दिल में ही दबाए रखा। 2 साल तक हम दोनों ने एक दूसरे से कुछ नही कहा लेकिन 2 साल बाद जब 12वीं में थी सतीश ने मुझसे अपने प्यार का इज़हार किया। मुझे जिंदगी में इतनी खुशी कभी नही हुई जितनी उस पल हुई लेकिन मैंने जो किया वो खुद मेरी समझ से बाहर था। मैंने उसे मना कर दिया। उसने मुझे मनाने की बहुत कोशिश की पर मैं नही मानी जबकि मैं खुद उससे प्यार करती थी। उस दिन के बाद से हम दोनों ने एक-दूसरे बोलना छोड़ दिया। इसलिए नही की हम दोनों एक-दूसरे नफ़रत करने लगे थे बल्कि इसलिए की ना तो उसे मुझसे अपना दर्द छुपाने की हिम्मत थी ना ही मुझ में उसे मना करने कि कोई वजह दे पाने की ।
12वीं के बाद मैं और सतीश अलग हो गये फिर हम कभी नही मिले। एक-दो बार मैंने उससे मिलने की कोशिश की पर वो आगे की पढ़ाई के लिए शहर के बाहर चला गया था। मैं उसे कभी नही मिल पाई। वो मुझे भूल चुका था या नही,मुझे नही मालूम पर मैं उसे नही भूल पाई थी। मुझे हर पल उसकी ज़रूरत होती। मैं सोचती की काश वो वक्त फिर से वापस आ जाए जिस समय उसने मुझसे प्यार का इज़हार किया था और मैं उससे हाँ कह देती या फिर एक बार फिर वो मुझे मिल जाए और मैं उससे कह सकूँ कि मैं उससे प्यार करती हूँ।
मेरे घर में कभी किसी को ये अहसास नही हुआ कि मैं किसी को प्यार करती हूँ। मेरी शादी के प्रति लगाव ना होने की वजह भी सतीश ही था। मैंने कभी सतीश की वजह से अपनी पढ़ाई को खराब नही होने दिया,इस उम्मीद से कि अगर मैं कुछ बन गयी तो हो सकता है कि एक बार फिर से सतीश तक पहुच सकूँ।”
उसके बाद उसने जो भी कुछ लिखा था सब उस दिन लिखा था जिस दिन उसने जहर खाया था। लिखा था-
“सतीश ने मुझ से कहा की तुम अच्छे नही हो। तुम और जय पहले से ही दोस्त थे और मेरे साथ खेल खेल रहे थे। तुम्हारे पास पैसों की भी कमी नही थी पर तुमने सब कुछ मुझे फँसाने के लिए किया। मैं जानती तुमने कुछ भी ग़लत नही किया है और ना ही तुम कुछ कर सकते हो पर फिर भी मैं अब तुम्हारे साथ नही रह सकती। मुझे ये तो नही मालूम कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ या नही…………। मुझे आज सिर्फ़ एक रास्ता दिख रहा है वो मौत का है, मेरे मरने की वजह सतीश नही कुछ और है, हो सके तो पता लगा लेना…………।”
इसके आगे कुछ भी नही लिखा था। राज ने डायरी पढ़ कर मेज पर रख दी और खुद सो गया।
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RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
सुबह राज की आँख देर से खुली वो भी तब जब किसी ने डोरबेल बजाई,बाहर रिया थी। राज के दरवाजा खोलते ही वो अंदर आ गयी। उसने राज से कुछ नही बोला ना ही राज ने रिया से। रिया गौरी के साथ खेलने लगी। करीब 2 घंटे बाद राज रिया के पास आया।
“तुम मम्मी-पापा से पूछ कर आई हो?”राज ने पूछा।
“हाँ,मम्मी ने ही भेजा है,”रिया ने कहा।
“किसलिए?”
“गौरी की वजह से।”
“ठीक है,मैं दिल्ली जा रहा तुम गौरी का ख्याल रखना,” राज ने कहा।
“क्यों?आप को दिल्ली में क्या काम है?” रिया ने पूछा।
“बिजनेस के लिए।”
“भैया,आपको भाभी की कोई फ़िक्र नही है।”
“नही,अगर उसे मेरे साथ नही रहना तो ना रहे मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता।”
“पर भाभी आप को छोड़ कर गयी ही क्यों?आप दोनों तो एक दूसरे से बहुत प्यार करते हो,फिर क्यों?’रिया ने पूछा।
“इस डायरी को पढ़ लेना सब समझ आ जाएगा,” राज ने रिया को शीतल की डायरी पकड़ाते हुए कहा।
“पर आप कहीं मत जाओ,”रिया ने कहा।
राज कुछ नही बोला और दूसरे रूम में चला गया।
डायरी पढ़ने के बाद रिया राज के पास आई।
“भैया,क्या भाभी आप से प्यार नही करती थी?” रिया ने पूछा।
“सिर्फ़ मुझ से ही प्यार करती है,” राज ने कहा।
“तो फिर आप को क्यों छोड़ कर गयी?” रिया ने पूछा।
“बस,थोड़ी पागल है,” राज ने कहा।
“मम्मी कह रही थी कि शीतल भाभी चाहे जैसी भी हो वो आप से बेहद प्यार करती हैं और अगर वो आप को छोड़ कर गयी है तो ज़रूर आप की ही कोई ग़लती है,” रिया ने कहा।
“वो तो शीतल को पसंद नही करते थे फिर क्यों उन्हें दुख हो रहा है?” राज ने कहा।
“पसन्द नही करते थी पर आज उन्हे पसन्द है,वो अब आप दोनों पर भरोसा करते हैं,” रिया ने कहा।
“अब जब वो है ही नही तो भरोसा करने का क्या मतलब,” राज ने कहा।
“अगर नही है तो आप की वजह से आपने उन्हें कभी समझा ही नही,अगर समझा होता तो जो बाते उन्होंने डायरी में लिखी हैं,वो आप को बहुत पहले बता दी होती,” रिया ने कहा।
“मुझे सब पहले से ही पता था,मैं ये डायरी कई बार पढ़ चुका हूँ। इसमें ऐसा कुछ नही लिखा है जिससे पता चले की उसने जहर क्यों खाया और हमें छोड़ कर क्यों गयी?”
“अब क्या वो कभी नही आएँगी?”रिया ने पूछा।
राज कुछ कहे बिना कहीं बाहर चला गया। दिन भर वो सड़क पर पागलों की तरह घूमता रहा। ना तो उसकी आँखों से आँसू गिरते ना ही वो किसी से बात करता बस खुद में ही खोया हुआ रहता। शीतल उसके लिए क्या थी उसे आज समझ आ रहा था। 2-3 दिन बीत गये पर शीतल वापस नही आयी। राज का मन घर में नही लगता था लेकिन गौरी की वजह से उसे मजबूरन घर आना पड़ता था। जब वो राज से अपनी तोतली आवाज़ में पूछती-“पापा,मम्मा कब आएगी।” तो राज के पास कोई भी जवाब नही होता था। वो कहता भी क्या?उस समय राज उसे कोई झूठी कहानी सुना कर मना लेता था पर वो खुद को नही समझा पाता था खुद अकेले में छत पर जाकर दो आँसू बहा लेता। राज को जैसे यकीन हो गया था की इस बार शीतल वापस नही आएगी।
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अगले दिन अख़बार में खबर थी की किसी ने बिजनेसमैन जय की हत्या कर दी। हत्या की वजह चोरी या लूट बताई जा रही थी। राज ने खबर पढ़ी और पेपर को एक किनारे रख दिया। तभी रिया वहाँ आई।
“भैया,मैं घर वापस जा रही हूँ,” रिया ने कहा।
“क्यों?”
“मेरा स्कूल है,” रिया ने कहा।
“ठीक है,…। पर कुछ देर रूको मैं भी चलता हूँ,” राज ने कहा।
राज 8 महीने बाद अपने घर वापस जा रहा था। घर पहुँचते ही रिया,गौरी को गोद में लेकर अंदर चली गयी,पर राज दरवाजे पे ही खड़ा रहा। कुछ देर बाद जब अंदर से किसी ने आवाज़ दी तब जाकर राज अंदर गया। अपनी माँ के पैर छुए और फिर अपने कमरे में चला गया।
उसका कमरा वैसा ही था जैसा वो छोड़ कर गया था। कुछ देर बाद उसकी माँ भी उसके कमरे में आई।
“अब यहीं रहोगे?” राज की माँ ने पूछा।
“नही।”
“क्यों?और तुमने अपनी हालत क्या बना रखी है?” राज की माँ ने कहा।
“मम्मी,आप चाहती थीं ना कि मैं शीतल को छोड़ दूँ,लीजिए वही मुझे छोड़ गयी,” राज ने कहा और अपनी माँ की गोद में सिर रखकर लेट गया। उसकी आँखें नम हो गयी थी।
“कहाँ गयी है वो?” राज की माँ ने पूछा।
“पता नही।”
“कहीं जय के पास तो नही गयी,” राज की माँ ने कहा।
‘नही,जय की किसी ने हत्या कर दी है,” राज ने कहा।
“तो फिर…,” राज की माँ ने कहा।
राज ने डायरी में लिखी हर बात अपनी माँ को बता दी और बोला-“वो सतीश के साथ भी नही है। ”
“वो उन 10 दिन कहाँ थी?” राज की माँ ने पूछा।
“मुझे नही पता पर उसने कुछ भी ग़लत नही किया है ना ही वो कुछ ग़लत कर सकती है।”
“फिर भी तुम्हें पूछना चाहिए था कि वो कहाँ गयी थी। हो सकता है उस समय उसके साथ कुछ ऐसा हुआ हो जिसकी वजह से आज उसने घर छोड़ा,”राज की माँ ने कहा।
“ऐसा कुछ होता तो वो मुझे ज़रूर बताती,” राज ने कहा।
“कुछ बातें बताने के लिए हिम्मत चाहिए होती है,जो उसके पास नही थी ना ही तुमने उसे कभी कुछ कहने की हिम्मत दी,” राज की माँ ने कहा।
“अब क्या करूँ?मैं उसके बिना नही जी सकता,” राज ने कहा।
“उसे ढूढों हिम्मत हार कर घर बैठने से थोड़ी ही मिलेगी।”
“गौरी का क्या होगा?वो कैसे रहेगी?”राज ने कहा।
“उसके लिए हम हैं। क्या अब हम पर इतना भी विश्वास नही रहा?”
“है,पर वो मेरे बिना नही रह सकती।”
“तुम छोड़ दो बाकी हम उसे संभाल लेंगे।”
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06-08-2020, 12:11 PM,
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hotaks
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RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
अगले दिन राज गौरी को वहीं छोड़ कर कर वापस अपने उसी घर में आ गया जिसमें शीतल की यादें बसी थीं। उसने पुलिस में भी रिपोर्ट कर दी थी पर कोई खबर नही मिली। राज सतीश से भी मिला पर वो उसके पास नही गयी थी। कुछ दिन बाद राज को किसी काम से दिल्ली जाना पड़ा। वहाँ वो किसी होटल में रुकने की बजाय अपने किसी दोस्त राघव के घर रुका।
राघव का घर बड़ा था। घर में घुसते ही बड़ा सा हॉल जहाँ बैठने के लिए सोफा था। राज को वहाँ 3 दिन के लिए रुकना था। ज़्यादातर राज हॉल में बैठना पसंद करता। राज वहीं सोफे पर बैठा था और हॉल में कोई नौकरानी पोछा लगा रही थी। राज ने उसकी ओर कोई ध्यान नही दिया, वो राघव से बात करने में व्यस्त था। राज का ध्यान उसकी ओर तब गया जब उसे किसी ने बुलाया और वो बोली-“आई”
आवाज़ सुनते ही राज काँप गया उसका ध्यान तुरंत उस नौकरानी की ओर गया। जैसे ही उसकी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी वो उसे देखता ही रह गया। वो उसकी शीतल थी। अभी तक शीतल ने भी राज की ओर ध्यान नही दिया था पर अब दोनों की नज़रें मिल गयी थीं। शीतल ने अपनी नज़रें झुका ली और अंदर कमरे में चली गयी।
शीतल ने जो कपड़े पहने हुए थे वो बहुत ज़्यादा गंदे थे,उसके बाल बिखरे हुए थे,आँखों के नीचे काले धब्बे पड़ गये थे,उसे देखकर ही उसकी खराब हालत का पता लग रहा था। राज ने उससे कुछ भी नही कहा। शीतल भी जितनी जल्दी हो सका वहाँ से चली गयी। कुछ देर बाद राज भी उसके पीछे उस जगह पहुँच गया। शीतल किसी बस्ती में रहती थी। वहाँ सारे घर लगभग एक जैसे थे पर कोई अच्छी हालत में नही था।
राज जो की अपने शहर का बहुत अमीर आदमी था उसकी पत्नी इतनी ग़रीबी से जिंदगी जी रही थी,उसे अपना गुज़रा करने के लिए लोगों के घर काम करना पड़ रहा था।
राज ने दरवाजा खटखटाया,किसी औरत ने खोला शीतल नही थी।
“कौन?”
“मुझे शीतल से मिलना है,” राज ने कहा।
“शीतल,तुमसे कोई मिलने आया है” की आवाज़ के साथ वो औरत अंदर चली गयी।
शीतल ने राज को देखा और उसे अंदर आने को कहा।
“पानी?” शीतल ने पूछा।
“नही।”
“यहाँ क्यों आए हो?”
“तुम्हें अपने साथ ले जाने और किस लिए?” राज ने कहा।
“पर मैं अब तुम्हारे साथ नही चल सकती हूँ।”
“क्यों नही चल सकती हो?”राज ने कहा।
“मैंने वापस लौटने के लिए घर नही छोड़ा है।”
“छोड़ा ही क्यों?किसका खून ? तुम क्या कह रही हो?मुझे कुछ नही सुनना है……। बस तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हे इस तरह से जिंदगी जीने नही दे सकता हूँ,”राज ने कहा।
“क्यों कुछ नही सुनना राज,क्या तुम्हें इससे कोई फ़र्क नही पड़ता की मेरे साथ क्या हुआ?”शीतल ने कहा।
राज कुछ देर चुप रहने के बाद बोला-“सब कुछ सुनना है,तुम्हारे हर दर्द को बाँटना है,लेकिन यहाँ नही शीतल,घर चलो वहाँ।”
“मैं नही चल सकती,राज,तुम मुझसे ज़िद मत करो,” शीतल ने कहा।
राज कुछ नही बोला।
“तुम जानना चाहोगे की उन 10 दिन मैं कहा रही,मैंने किसका खून किया है।”
“हाँ।”
“जय का खून……।”
“जय का क्यों?”
“तुमने मुझसे जॉब छोड़ने के लिए कहा था,मैंने उसी दिन जॉब छोड़ दी थी उसके बाद जय से मिलने गयी थी। उससे कहने के लिए कि अब मैं उससे कभी नही मिल सकती हूँ। जय अच्छा इंसान नही था मुझे कई बार ऐसा लगा कि वो सिर्फ़ अच्छा बनने की कोशिश करता है पर मैं ध्यान नही देती थी। उस दिन जब मैंने उससे कहा की अब मैं उससे नही मिल सकती तो उसने मेरे साथ……………। 10 दिन तक वो मेरे साथ खेलता रहा और मैं कुछ नही कर सकी। जी तो चाहता था खुद को मिटा लूँ पर जिंदगी ने मेरे साथ पहली बार तो खेल खेला नही था,मुझे तो आदत सी हो गयी थी जिंदगी के सितम सहने की। जब भागने का मौका मिला तो वापस घर लौट आई लेकिन किसी ने मुझसे मेरा हाल नही पूछा,मुझे भला-बुरा कहा। क्या सिर्फ़ इसलिए की मैं एक लड़की हूँ?मेरे साथ क्या हुआ इससे किसी को कोई फ़र्क नही पड़ा। मैंने सोचा था की तुम मुझसे इतना प्यार करते हो की मेरा दर्द समझ जाओगे,मेरी ताक़त बनोगे, जय को सज़ा दिलाओगे पर ऐसा कुछ नही हुआ। तुमने मुझसे एक बार भी नही पूछा कि मैं कहाँ थी? किस हालत में थी?इस हादसे को भूल कर मैंने फिर से एक नयी जिंदगी की शुरुआत तो कर ली थी लेकिन उसी तरह जी नही सकी। यही वजह थी की कभी तुमसे रूठ जाती तो कभी…………,” शीतल ने कहा।
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06-08-2020, 12:11 PM,
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hotaks
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RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“तुम्हें मुझसे एक बार कहना तो चाहिए था और जब तुम वापस आ ही गयी थी तो फिर घर क्यों छोड़ा?”राज ने पूछा।
“क्यों क़ि मुझमें जय का अंश पल रहा है,इसलिए मैंने जय को भी मारा और घर भी छोड़ा,” शीतल ने कहा।
“तुमने कुछ भी किया हो, मुझे इससे कोई फ़र्क नही पड़ता। तुम मेरे साथ घर चलो,”राज ने कहा।
“बच्चों की तरह ज़िद ना करो। मैं जैसे भी जी रही हूँ जीने दो मुझे,” शीतल ने कहा।
“मैं नही जी सकता तुम्हारे बिना।”
“गौरी के सहारे जियो……………………। राज वापस चले जाओ,मेरी वजह से कितना सहोगे?अगर मैं तुम्हारे साथ चली भी तो ये समाज हमें नही जीने देगा।”
“हमने समाज की परवाह कब की,शीतल?”
“जो भी हो मुझे यहीं रहना है,इसी घर में,इसी तरह से,” शीतल ने कहा।
“कभी मेरे करीब आना चाहती थी और आज मुझसे ही दूर……………,” राज ने कहा।
“आज दूर होना ही अच्छा है,” शीतल ने कहा।
“शीतल,गौरी के लिए ही चलो।”
“नही चल सकती,………। तुम जाओ यहाँ से।”
राज चला गया,उसके जाने के बाद शीतल तकिये में मुँह दबा कर रोने लगी।
राज अपने दोस्त के घर कुछ दिन इसी आश में रुका रहा क़ि शायद शीतल मान जाए,लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। शीतल हर रोज़ वहाँ काम करने आती,उसे कोई फ़र्क नही पड़ता था की राज उसे इस हालत में देख रहा है। ना तो राज ने उससे कभी कोई बात की ना ही उसने कभी कुछ कहा। जब राज को कोई उम्मीद नही दिखी तो वापस अपने शहर आ गया।
गौरी को लेकर अपने घर जाने लगा तो उसकी माँ बोली-“तुम अब यहीं रहो। ”
“शीतल के साथ इस घर में रह सकता हूँ उसके बिना नही,” राज ने कहा।
गौरी को लेकर वो अपने बनाए हुए घर में आ गया। राज सुबह गौरी को स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस चला जाता। दोपहर में रिया गौरी को संभालने के लिए आ जाती थी। राज भी 6 बजे तक घर आ जाता था,उसके आने के बाद रिया चली जाती थी।
कुछ महीने बीत गये,इन कुछ महीनो में राज ने अपना बिजनेस बहुत ज़्यादा बड़ा लिया। साथ ही उसने ग़रीब बच्चों के लिए स्कूल भी खोले,ऐसी औरतों के रहने की व्यवस्था की जिन्हे समाज ने ठुकरा दिया या फिर जो मजबूर और बेसहारा हो। उसका सोचना था की शायद इन सब कामों की वजह से शीतल मान जाए। राज ने कई बार उससे बात करने ,मिलने की कोशिश की लेकिन कुछ भी नही हो सका क्यों कि राज के वापस लौटने के बाद शीतल वहाँ से कहीं और चली गयी। कहाँ? किसी को नही पता।
राज बहुत तेज़ी से उँचाई पर जा रहा था। उसके पास पैसों की कोई कमी नही रह गयी थी अब वो शहर के अमीर लोगों में एक था। शहर में उसका नाम भी हो गया था। बाहर की दुनिया को राज ने आबाद कर लिया था लेकिन दिल की दुनिया आज भी बर्बाद थी। जिंदगी में पैसा तो था लेकिन खर्च करने वाली नही।
क्या प्यार किसी को इतना कमजोर कर देता है की सब कुछ होते हुए भी हम कभी खुश नही रह पाते। खुशियाँ हमारे चारो ओर खेल रही होती हैं फिर भी मन उदास होता है किसी की यादों में खोया रहता है। कभी राज के लिए शीतल की आँखों में आँसू थे और आज राज शीतल के लिए रो रहा था। दोनों ने कभी नही सोचा था की उन्हें एक दूसरे से इतना प्यार हो जाएगा।
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