12-29-2018, 02:50 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
कौन है रामदीन कौन आ गया गाडी के आगे गाड़ी में से कहा किसी ने
ड्राईवर-कोई नहीं मैडम एक शराबी है
उसने मुझे साइड किया दो चार बाते कही और फिर गाडी स्टार्ट करने लगा उस दो पल की रौशनी में पीछे बैठे चेहरे पर नजर पड़ी तो
जेसे सारा नशा फुर्ररर करके उड़ गया हे उपरवाले समझ नहीं आती तेरी लीला कभी कभी क्या ये सच था या फिर बस नशे में वहम मेरा
और वैसे भी अपनी तक़दीर यु हम पे मेहरबान हो जाये ऐसा होना मुमकिन नहीं था पर दिल की धड़कनो मे एक रवानी सी दौड़ गयी थी
चलो मान लिया हम तो झूठ बोलते है पर दिल तो सच्चा था हमारा ये बात और थी बरसो से धड़कनो का कहना माना नही था हमने
सुबह जब आँख खुली तो खुद को फुटपाथ के किनारे पे पड़ा पाया आँखों में रात का सुरूर अभी बाकी था पास की दूकान पे एक चाय पि और फिर ऑटो पकड़ के घर आया
तैयार हो चूका था पिस्ता मंदिर गयी हूँई थी पूजा का नास्ता थोडा लेट हो गया था तो उसकी कई कड़वी बाते सुननी पड़ी कभी कभी मैं सोचता था
की जिस दिन इसको मेरी असलियत पता चलेगी उस दिन क्या बीतेगी इस पर पूजा अपने कमरे में थी मैं भी जा रहा था की कृष्णा जी ने मना किया
माधुरी के कॉलेज का टाइम हो रहा था पर आज वो तैयार ना हूँई थी मैं उसके पास गया
मैं-आज मेरी बहना तैयार नहीं हूँई
वो- मैं कॉलेज नहीं जाउंगी मैंने सोचा है की पढाई छोड़ दूंगी
मैं-ऐसा नहीं बोलते पगली, क्या भरोसा नहीं अपने भाई पे
वो-मुझे डर लगता है
मैं- मेरी बहन तू शेरनी है फिर कुछ गीदड़ो से डर गयी
चल तैयार हो जा वर्ना लोगो को पता चलेगा की दिलवाले की बहन कुछ मामूली गुंडों से डर गयी तो शहर में तेरे भाई का क्या रुतबा रहेगा
वो-पर वो मामूली नहीं है उनकी चलती है पुरे शहर में
मैं- पर तू किसी कायर की बहन नहीं और अगर मैं तेरी रक्षा नहीं कर पाया तो धिक्कार है मुझ पे बस तू चल रही है कॉलेज तैयार हो जा मैं इंतज़ार कर रहा हूँ
पूजा थोड़ा टाइम पहले निकल गयी थी उसके पीछे पीछे मैं और माधुरी भी निकल गए
जैसे जैसे कॉलेज करीब आता जा रहा था माधुरी का चेहरा सफ़ेद होता जा रहा था डर हावी होते जा रहा था उसके हाथ पाँव जैसे काम्पने लगे थे
पर उसे उस ज्वालामुखी का आभास नही था जो एक भाई के कलेजे में सुलग रहा था कॉलेज के मेन गेट पे मैंने गाडी रोकी और हम उतरे
मैंने माधुरी का हाथ टाइट पकड़ा और कहा घबराना मत तुम आगे आगे चलो मैं तुम्हारे पीछे ही हु वो आगे बढ़ने लगी दो कॉरिडोर पार करके
वो अपनी क्लास की तरफ जा रही थी की ब्लाक के सामने 4-5लड़को ने उसे रोक लिया माधुरी थर थर कांपने लगी उनमे से एक बोला
अरे भाभी आ गयी जल्दी भाई को फोन कर लगता है आज भाई का मामला सेट होगा हह हा हां
माधुरी उनसे बचने के लिए कभी दाए हो कभी बाए पर वो लोग उसे रास्ता ही ना दे अब मैं आगे बढ़ा
मैं-ओये,क्यों तंग कर रहा है इसको
वो-चिरकुट तेरे को ज्यादा चर्बी चढ़ी है क्या जानता नहीं हम किसके आदमी है भाई की सेटिंग है ये भाई आते ही होंगे
मैं-भाई तो आएगा जब आएगा लड़की का रास्ता छोड़ वर्ना फिर तेरे लिए कोई रास्ता नहीं बचेगा
माहौल गर्म होने लगा था स्टूडेंट्स इकठ्ठा होने लगे थे वो लड़का मेरी तरफ बढ़ा और बोला- ज्यादा हीरो मत बन तू जानता नहीं हम कौन है क्यों इसके चक्कर में जान गंवाता है
मैं- तू नहीं जानता मैं कौन हु और बेहतरी है की तू ना जाने ये यहाँ पढ़ने आती है और मैं चाहता हु की ये अपनी पढाई आराम से करे
वो-और ना करे तो
मैं-ना का तो सवाल ही नहीं
तभी एक दूसरा लड़का हॉकी लेके मेरी तरफ बढ़ा और बोला-तू बहुत बोल रहा है क्या लगती है तेरी ये जो इसके पीछे मरने चला आया
मैं-बहन लगती है मेरी दिक्कत है
वो हँसने लगे फिर उनमे से एक बोला - अच्छा तो भाई खुद बहन को जीजाजी के पास छोड़ने आया है कल इसकी चुन्नी उतरी थी और आज इसकी सलवार यही उतरेगी और तू भी देखेगा
मेरी आँखे तपने लगी थी क्रोध से कुछ और साथी आ गए थे उनके पर आज इनको सबक सिखाना जरुरी था
मैं- तू उतरेगा इसकी सलवार, तू
मैं उसकी तरफ बढ़ने लगा माधुरी को मैंने साइड होने को कहा पर एक लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया और मेरा सब्र टूट गया
अगले ही पल जिस हाथ ने माधुरी को पकड़ा हुआ था वो जमीं पर कटा हुआ पड़ा था पल भर में ही चारो तरफ चीख पुकार मच गयी
मेरे हाथ में गंडासा था उन सालो को गाजर मूली की तरह काटने लगा मैं कुछ भागे पर आज किसी को नहीं भागना था आज तो तांडव देखना था मुझे अगले दस मिनट में
15-20 जमीं पर कटे पिटे पड़े थे बरसात होने लगी थी पर आज यहाँ खून की बरसात होनी थी जिसने सलवार उतरने की बात की थी
मैं उसको घसीट के लाया और बोला- उतार के दिखा सलवार
वो चीखते हुए बोला-तू नहीं जानता तूने क्या किया है आने दे भाई को फिर देखना
मैंने साले को लात मारी और बोला-तेरे भाई का तो पता नहीं पर ये जिस भाई की बहन है उसका नाम दिलवाला है , गौर से देख मेरी बहन है ये
ये दहाड़ थी मेरी , सुनते ही डर से वो काम्पने लगा
मैं-क्या हुआ मूत निकल गया साले तेरी इतनी हिम्मत तू मेरी बहन की सलवार उतरेगा तू
मैंने वॉर किया और उसकी उंगलिया जमीं पर कटी पड़ी थी उसकी चीख कॉलेज में हर कोई सुन रहा था जब तक उसकी चीखे बंद ना हो गयी उसको काटता रहा मैं
उस बरसात के पानी को लाल कर दिया मैंने जितने थे सबका यही हाल किया मेरा ध्यान था नही मेरी पीठ पर लात लगी और मैं आगे को कीचड़ में जा गिरा
उठा और देखा तो सामने जो ईनसान था उसे देखते हो पुराणी खुन्नस याद आ गयी कसम से आज तो मजा ही आ गया मैने चेहरे की मिटटी साफ़ की
वो- तो तू है दिलवाला बड़े दिनों से तलाश थी आज मजा आएगा पता नहीं था तेरी बहन है ये वर्ना इसको तो नंगी ही भेजता पर कोई नहीं तूने जो हमसे दुश्मनी ली है अब ये भुगतेगी
मैं- दुश्मनी से याद आया, दिलवाला हर रिश्ता ईमानदारी से निभाता है काश मुझे पहले पता होता की वो तू है जिसने मेरी बहन से बदसलूकी की है तो गाज़ी तेरी मौत का मातम मना रहा होता
वो- जश्न होगा आज तो दादाजान को तेरी लाश का तोहफा जो दूँगा और कसम है तेरी साँसे निकलने से पहले तेरी बहन की इज्जत यही नोचूंगा
मैं चीखने लगा था - तो फिर तू हाथ ही लगा के दिखा आज तू देख की डर क्या होता है मैं तुझे समझाऊंगा कसम है हर उस आंसू की जो मेरी बहन की आँख से गिरा है
आज तेरे खून से ही मैं आज अभिषेक करूँगा
वो-मुझसे तो दूर पहले मेरे आदमियो से तो लड़ ले उनसे ही जीत
मैं-हिज़ड़े , आज तू चाहे पूरा शहर ले आ या पूरी दुनिया आज कोई नहीं बचेगा
मैंने गंडासे को कंधे पर रख लिया और चिल्लाते हुए बोला-कॉलेज का गेट बंद करो ताला मारो कही ये साला भागने ना पाये
आज रक्त स्नान करना था मुझे तो लोग अधिक थे पर आज हार नहीं माननी थी वर्ना इक बहन से किया वादा टूट जाता आज उसकी लाज बचानी थी हर हाल में
कभी मैं वार करता कभी उनके प्रहार लगते पर थकना नहीं थारुकना नहीं था गुरु गोविन्द सिंह जी की बात याद आ रही थी चिड़िया नाल बाज लाडवा
मैंने देखा पूजा माधुरी के पास खड़ी थी बरसात में भी लोगो के पसीने छुट चले थे ऐसा भीसन नरसंहार हो रहा था मेरा शारीर भी दर्द से चीख रहा था
पर आज दर्द क्या होता है डर क्या होता है किसी की आँखों में देखना था ,लाशो की जैसे आज दिवार ही चुन दी थी जैसे जैसे मैं आगे बढ़ते जा रहा था किसी के चेहरे पे घबराहट दिखने लगी थी
वो शायद किसी को फ़ोन कर रहा था तो मैंने एक आदमी को फेक मारा उसपे वो उठके भागने लगा मैं भी भाग लिया और घसीट के लाया
मैं - ये शहर जागीर है तेरे बाप की,
वो-मुझे जाने दो
मैं-जाने दूंगा पर ऊपर
मैंने माधुरी को बुलाया वो आई
मैं-ये खड़ी हाथ लगा के दिखा इस हाथ से इसकी चुन्नी उतारी थी ना इस हाथ से
अगले हो पल उसकी दर्दनाक चीक गूंजने लगी हाथ तोड़ दिया था उसका
ना ना माफ़ी मत मांगियो बस दुआ कर की तेरी साँसों की डोर जल्दी टूट जाए
मैंने उसकी टांगो के बीच लात मारी वो गिर पड़ा
मैं-बहुत मर्द बनता है दिखा तो सही दम तू तो अभी से गिर गया
मैंने उसको नंगा किया और बेल्ट से मारने लगा साले को जब तक की उसकी पीठ ज़ख्मो से भर नहीं गयी
सब लोग दम साढे उस दृश्य को देख रहे थे अब मैंने गंडासा उठाया और उसका लण्ड काट दिया वो साला भी सख्त जान था जान निकल ही नही रही थी
मेरी बहन की इज्जत पे हाथ डालेगा तू उठ साले हाथ लगा लगाता क्यों नहीं मैं जैसे पागल ही हो गया था घसीट के ब्लाक की छत पे ले गया और साले को फेक दिया निचे
तरबूज की तरह फट गया था पर फिर से ले गया फिर फेका जंग का ऐलान हो गया था आज मैंने पूजा को कहा की बहार गाडी खड़ीहै घर जाओ
उनके जाते ही मैं बरस पड़ा स्टूडेंट्स और टीचर पर - ये तुम्हारी ही तरह स्टूडेंट थी यहाँ ये लोग पता नहीं कितने स्टूडेंट्स को परशान करते होंगे पर तुम सब चुप क्यों हो
कहाँ है तुम्हारी एकता आज जब तुम खुद की रक्षा नहीं कर सकते तो अपने परिवार की इस देश की क्या करोगे क्या फायदा इस पढाई का
एक रहो वो कितने आएंगे 100 200 तुम 1000 बनो अपने साथी के लिए आवाज उठाओ आज वो परशान है कल तुम होवोगे
आगे तुम जानो गाज़ी के पोते को मार दिया था अब बस ये देखना था की देर कितनी है इस शहर को सुलगने में पर ये तो होना ही था आज नहीं तो कल
|
|
12-29-2018, 02:50 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैंने सेठ के घर और होटल की सिक्योरिटी को अपने हिसाब से खूब मजबूत किया था मैं नहीं चाहता था कि उन लोगो पे कोई आंच आये
शहर में आग लगी हुई थी बाहुबली गाज़ी के पोते की हत्या हुई थी और मैं ये भी जानता था कि वो ज्यादा देर चुप नही बैठेगा पर मुझे उस से पहले कई उलझने सुलझानी थी
अपने हुलिए को दुरुस्त करके मैं सीधा सेठ के घर गया पर वहां कुछ भी सही नहीं था सब लोग ऐसे बैठे थे की जैसे मौत हो गयी हो
पूजा- देखो , भोले भाले दिलवाले जी आये है
मैं चुप चाप खड़ा रहा
पूजा- पापा, देखो तो सही इस इंसान को जिसे हम अपने घर में पाले हुए थे वो कितना बड़ा गुंडा है जिसने किसे मारा है पता है इसकी वजह से अब हम सब लोग मुसीबत में आ गए है मैंने तो पहले ही कहा था की इसको मत रखो
माधुरी की आँखों से आंसू गिर चले मैं आगे बढ़ा और उसके आंसू पोंछे
पूजा-ओह ओह देखो तो कितना अपना बन रहा है कलयुग का भाई
माधुरी-दीदी आप चुप रहो आपने तो देखा था न की भाई ने जो किया मेरी इज्जत बचाने के लिए किया
पूजा- और जो हम सब को इस मुसीबत में डाल दिया उसका क्या
माधुरी-कैसी मुसीबत दीदी, जानती हो मैं कितना डर डर के जी रही हु अगर वो गुंडे मुझे उठा के ले जाते आप लोग तब भी कुछ नहीं करते
पूजा-मुझे कुछ नहीं पता ,ये आदमी जिसे दुनिया दिलवाले भाई के नाम से जानती है मुझे अपने घर से बाहर चाहिए मैं किसी अपराधी को अपने घर में नही देखना चाहती
आज किसी को मारा है कल किसी को
कृष्णा का पति-पूजा ठीक कह रही है , माधुरी को बचाके अहसान किया है पर हम अपनी समस्या खुद सुलझा लेंगे पर अब इसको अपने घर रखना ठीक नहीं
माधुरी-भाई कही नहीं जाएगा, तुम लोग तो मेरे सगे भाई हो हर साल तुम्हारी कलाई पे राखी बांधी है मैंने पर तुम सब मुझे कभी समझ नहीं पाए , मेरी आँखों के आंसू कभी नही दिखे तुम लोगो को
पर ये इंसान जिसे तुम लोग जलील कर रहे हो मैं पूछती हु की क्या रिश्ता है इसका मुझ से मालकिन और नौकर का नहीं इसने समझा मेरे दर्द को मैं दिन भर रोती पर इस घर में किसी ने नहीं समझा
पर इसने इस परायी के लिए अपनी जान दांव पे लगादी भाई बहन का रिश्ता बस खून का ही नहीं होता क्या तुम्हारी तरह मैंने इसकी कलाई पे राखी बांधी , नहीं ना जो काम तुम
लोगो को करना चाहिए था वो इसने किया क्योंकि एक बहन की आत्मा की चीख एक भाई के कलेजे को ही छलनी करती है तुम जैसे लोगो को नहीं जिनकी आत्मा मर चुकी है
पूजा-तू अपनी बकवास बंद कर और जिसकी शान में तू कसीदे पढ़ रही है हम उसके बारे में जानते ही क्या है एक दिन बस आ गया कही से एक नोकर में ऐसा क्या है जिसे सबने इतना सर चढ़ा रखा है
मैं कहती हूं लात मारके निकालो इसको यहाँ इसके लिए कोई जगह नहीं आज बाहर क़त्ल किया है कल क्या पता हमे मार दे मुझे तो घिन्न आ रही है इस से
जुबान को लगाम दो पूजा, एक दहाड़ सी सुनी सबने और मैंने अपना माथा पीट लिया मैंने , सबकी नजरें उसकी तरफ घूम गयी
पिस्ता-पूजा जिस बारे में पता नही हो मुह नहीं खोलना चाहिए , जिसके बारे में तुम इतनी गालिया दे रही हो जिस से तुम्हे घिन्न आ रही है तुम जानती भी हो वो कौन है
सब लोग पिस्ता को ऐसे देख रहे थी मानो कोई अजूबा वो
पूजा- आप बीच में ना पडो भाभी, और वैसे भी मैं जानती हु आप इसकी इतनी फेवर क्यों करती हो
पिस्ता- चुप बस चुप, अगर अब तेरे मुह से एक शब्द और निकला तो मैं मर्यादा भूल जाउंगी और क्या कहा तूने फेवर करती हूं तो सुन, अगर इसकी असलियत तू जान जायेगी तो पाँव पकड़ लेगी इस इंसान के
पूजा-आप तो ऐसे बोल रही हो जैसे बरसो से जानती हो क्या रिश्ता है इस से
पिस्ता-मेरा रिश्ता हां हाँ हां ,मेरा रिश्ता नादान लड़की तू क्या समझेगी जैसे राधा श्याम का जैसे मीरा कृष्ण का जिस दिलवाले को तुम नोकर समझते हो जो दो कौड़ी का दिलवाला तुम्हारे आगे पीछे जी हजूरी करता है
तुम सब लोग उसकी धुल भी नहीं, जिस दौलत का तुम्हे घमण्ड है उतने रूपये तो ये किसी की झोली में डाल दिया करता है जिस बुंगले में तुम रहते हो पल भर में खरीद ले
पर तुम क्या समझोगे आँखों पे पट्टी जो बंधी है तुम्हारे
ये दिलवाला जो खुद किसी राजा से कम नही क्यों ऐसे रहता है तुम जानना चाहोगे मैंने पिस्ता को चुप करवाना चाहा पर वो किसकी सुनने वाली थी
पिस्ता उन्हें वो सब बताती चली गयी जो शायद नहीं बताना चाहिए था क्योंकि उसकी ग्रहस्थी पे अब तलवार लटक जानी थी
पर कभी ना कभी ये राज खुल ही जाना था पर वो तो बस वो थी शुक्र कभी उसने ये नहीं कहा था कि मोहब्बत है वर्ना वो क्या कर जाती
पिस्ता ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली-चलो यहाँ से ये फरेब भरी दुनिया कभी नहीं समझेगी ना तुम्हे ना मुझे
मैं-पिस्ता ये घर तुम्हारा है तुम यही रहोगी
वो- नही, जहाँ तुम वही मैं बहुत नकाब ओढ़ लिया मैंने पर अब नही बहुत घुट लिए तुम अब नही। बहुत घुट लिए तुम अब नहीं बस चलो यहाँ से
मैं-नही पिस्ता मैं तुम्हारा जीवन बर्बाद नहीं कर सकता
वो-बर्बाद ,मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहती बस मेरे रहते तुम्हारी बेइज्जती कोई नही कर सकता
पिस्ता ने मेरा हाथ पकड़ा और उसी पल हम उस घर से निकल गए
|
|
12-29-2018, 02:50 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
पिस्ता और मैं बस्ती आ गए थे
मैं-तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था
वो-तू फ़िक्र मत कर वैसे भी तेरा मेरा किसने बांटा
मैं-तू जानती है ना किस राह पर चल रहा हु
वो-इस आग में तू अकेला नही चलेगा और कितना सहेगा बस कर अब
मैं-मेरी मंजिल कहा
वो-इतनी बड़ी दुनिया है कही भी शिफ्ट हो जायेंगे
मैं-घर की याद आती है
वो-तो फिर चलते क्यों नहीं गाँव
मैं- अब कोई नहीं उधर
वो- हैं सब है कहानी अभी खत्म नहीं हुई
मैं-वो तो है बस जितना टल जाए उतना सही
वो-कम से कम वहां के हाल तो पता कर लो
मैं- बस जल्दी ही जाऊंगा
वो- तुम बैठो मैं नहां के आती हु
मैं बिस्तर पे लेट गया ऐसा लगा की बरसो बाद पनाह मिली हो नींद सी आने लगी की पिस्ता आ गयी
मैं-यार तू मेरे साथ आ गयी मास्टर जी का क्या होगा
वो-अरे तू चिंता कर उसको कोई फर्क नही। पड़ेगा
मैं-वोक्यों
वो-सुन,मास्टर जी के भी अपने किस्से है उस दिन मैंने तुझसे झूठ बोल दिया था पर वो कम नहीं है उनके स्टाफ में कोई है उस से टांका भिड़ा रखा है
मैं- तूने पकड़ा नही उनको
वो-यार इस खेल में हम सब नंगे तो क्या टेंशन लेनी
मैं-तू नहीं सुधरेगी कभी
वो- पहले ठीक से बिगड़ने तो दे
पिस्ता पलँग पे चढ़ गई सीने से लग गयी पता नही मेरा और उसका कैसा नाता था जिसका कोई नाम नही था पर हम जानते थे इस अनोखे बंधन को
मेरे हाथ अपने आप उसके स्तनों पे पहुच गए थे नाइटी के अंदर ब्रा नही थी मुझे पता चल गया था मैं धीरे धीरे उसके स्तनों को दबाने लगा
वो शांत पड़ी रही कुछ देर स्तनों को दबाने के बाद मैंने उसकी मोटी मोटी जांघो को सहलाना शुरू किया उसकी नाइटी ऊपर सरकने लगी
कुछ देर मैं ऐसे ही मस्ती करता रहा फिर वो मेरी तरफ पलट गयी
पिस्ता-याद है हम गाँव में कितनी मस्ती किया करते थे वो भी क्या दिन थे
मैं-हां तब की बात ही अलग थी अब सब बदल गया है मैं तुम्हे चोरी छिपे देखता था जब तुम भैंसों को पानी पिलाने खेली पे आया करती थी
और कितनी जल्दी पट गयी थी जैसे कहने की ही देर थी
वो- अरे वो तो मैंने सोचा छोरा तडप रहा है निकाल दे गर्मी
मैं-अच्छा जी हम तो सोचे की आग बराबर लगी है
वो-आग की बात ना ही करो तो अच्छा है
मैं-तू कबसे ठंडी होने लगी
वो- कभी कभी मूड नहीं होता है
मैं-चल कोई ना
वो-गाँव कब चलोगे
मैं- यहाँ से निपट लू फिर चलते है कब तक यु भागता रहूँगा
वो-अच्छा ही है पर ये बता तूने शादी क्यों न की
मैं-तेरे बाद कोई मिली नहीं ,
वो-पर तेरा तो किसी और से चक्कर था न
मैं-हम्म ,सब नसीब की बात है उसका साथ ऐसा छूट गया कि बस अब हम ही है
पर अब तू साथ है तो ज़िन्दगी कट ही जायेगी ये सब छोड़ भूख लगी है यार सुबह से कुछ ना खाया गालियो के सिवा
वो-खाना बना दू
मैं-इधर कुछ नहीं है चल कही बाहर चलते है
वो-कपडे पहन लू
कुछ देर बाद हम लोग सड़क पर घूम रहे थे आज बरसात नहीं थी पर ठंडी हवा चल रही थी हाथो में हाथ थामे हम लोग बस घूम रहे थे एक जगह एक रेहड़ी देख कर वो रुक गयी
मैं-क्या हुआ
वो-छोले भटूरे
मैं-तुझे आज भी पसंद है
वो-बहुत
मैं-तो चल फिर देर कैसी
उसकी यही बाते तो मुझे बहुत पसंद थी चाहे हम कही चले जाए पर जड़ो से जुड़ा रहना बहुत जरुरी है जिसमें ये छोटी बाते बहुत मैटर करती है
सच कहूं तो उसको खाते देखकर ही भूख मिट गयी थी कोई इंसान इतना बेतकल्लुफ कैसे हो सकता है अपने जैसा बस वो एक ही पीस थी इस दुनिया में
उसके मोटे गालो पे जो वो बालो की लट आती थी किसी का भी दिल धड़का दे हमारी तो बिसात ही क्या थी बस ये धड़कने ही थी आजकल गुस्ताख़ होने लगी थी
आँखों से दो बूंदे चुपचाप गिर गयी जब उसने एक निवाला अपने हाथों से मुझे खिलाया ज़माना ही गुजर गया था वो भी क्या दिन थे पर अब बस यादे ही थी
सड़क किनारे बैठे हम दोनों वो अपने हाथों से मुझे खिला रही थी कौन था मैं और कौन थी वो ये कैसा बंधन था या संकेत था उस ऊपरवाले का जो इशारा कर रहा था किसी और
खाना खाके बस चले ही थे की हलकी हलकी बूनदे गिरने लगी ये सावन का मौसम भी अजीब होता है जब देखो झड़ी लग जाती है
मैंने छतरी खोल ली पर उसका मन भीगने का था पानी की बूंदों में उसकी पायल की छम छम मुझ पर जादू सा कर रही थी जी कर रहा था कि उसे अभी बाहों में भर लू
ईस बरसात से भी ना जाने कितनी यादे जुडी हुई थी पर ज़िन्दगी यादो के साहरे तो नहीं चलती इतना तो सीख लिया था मैंने
देर रात हम कमरे पे आये पिस्ता मेरे पास ही सोयी पड़ी थी पर इन आँखों में नींद नहीं थी ,थी तो बस एक बरसो पुराणी बेचैनी
मैंने पिस्ता को अपनी और खींचा और सोने की कोशिश करने लगा आँख खुली तो देखा आसमान पूरा काला हुआ पड़ा है घनघोर बरसात हो रही थी
पिस्ता कुर्सी पे बैठी थी मैं हाथ मुह धोके आया फिर बस्ती के एक लड़के को फ़ोन किया कुछ नाश्ता पानी भेजने के लिए हम बाते कर रहे थे की माधुरी का फ़ोन आ गया
वो मिलने आना चाहती थी पर मैने मना कर दिया उसकी सुरक्षा में कोई चूक नहीं चाहता था बहुत मुश्किल से रोका उसको
नाश्ता आ ही गया था मैं और पिस्ता नाश्ता करने बैठे थे की कुछ लड़के भागते हुए आये और बोले-पुलिस ,भाई पुलिस आयी है
कुछ लड़के भागते हुए आये और बोले-पुलिस ,भाई पुलिस आयी है
|
|
12-29-2018, 02:51 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैंने चाय का गिलास वापिस टेबल पर रखा और उठ खड़ा हुआ और बाहर चलने को हुआ तो पिस्ता ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली-नहीं मत जाओ
मैं-तू कबसे डरने लगी
वो-आज मेरा जी घबरा रहा है
मैं- हैंडल तो करना होगा ना
भाई हम आपको गिरफ्तार नहीं करने देंगे उनमे से एक लड़का बोला
मैं-मैं संभाल लूंगा
सीढिया उतर के मैं नीचे आया बस्ती का हर इंसान ही जैसे जमा हो गया था लोग अड़े खड़े थे पुलिस के आगे जबर्दस्त भीड़ हो रही थी
चाहे कुछ हो जाये भाई को नहीं ले जाने देंगे
मैं-शांत हो जाओ ऐसी कोई बात नहीं है देखने तो दो
मेरे कहते ही भीड़ साइड होने लगी और पुलिस आगे बढ़ने लगी एक पुलिस वाला बोला-चल मैडम बुला रही है
मैं-मैडम को ही बुला ले
वो-चल ना यार , नयी dsp आयी है हमारी क्यों मारने पे तुले हो
मुझे हंसी आ गयी
मैं-चल ले चल मैडम के पास
हम लोग गए मोहतरमा की पीठ मेरी तरफ थी वो साथ वालो को कुछ हिदायते दे रही थी
मैडम दिलवाला उनमे से एक सिपाही ने कहा तो वो मेरी तरफ पलटी और जैसे ही मेरी नजरो ने उसे ठीक से देखा मेरे पैरों तले जमीन ही खिसक गयी
वाह रे ऊपरवाले तेरी महिमा न्यारी, ये कैसे खेल खिलाता है तू उसने चश्मा उतारा आँखों से, कुछ पल के लिए सब कुछ रुक सा गया वर्दी में क्या कहूँ फब रही थी वो
तुम्म। बड़ी मुश्किल से उसके होंठो से निकला
अब मैं क्या कहता उस से , देखो तक़दीर ने मिलाया भी तो किस हाल में किस मोड़ पे उसकी वर्दी पे लगी नाम की प्लेट में जो लिखा था अब कोई गुंजाईश ही नहीं थी
मुझे देख पर एक पल के लिए जो रौनक सी आयी थी वो तुरंत ही द्वेष और घृणा में बदल गयी और वो गुस्से से साथी से बोली
तो क्या, कोई महात्मा आया है क्या , हत्कड़ी डाल इसके हाथो में और ले चल
पता नहीं क्यों मुझे ऐसे लगा की शब्द उसके गले में जैसे अटक से गए हो
खैर, जैसे ही गिरफ्तारी की बात हुई बस्ती वाले अड़ गए कुछ लोग हाथो में डंडे जेली ले आये कुछ ने पत्थर उठा लिए चारो तरफ बस एक ही आवाज़ भाई को गिरफ्तार नहीं करने देंगे
dsp - एक मुजरिम का साथ दे रहे हो तुम सब भी नपोगे रही बात गिरफ्तारी की तो इसको ले ही जाउंगी जो बीच में पड़ेगा जान से जायेगा ,बाकी कोशिश करके देख लो
माहौल गर्म होने लगा था , दोनों तरफ तनाव बढ़ गया था बात संभालनी जरूरी थी और वैसे भी इस समय खून खच्चर ठीक नहीं था
मैं-अरे कुछ नहीं, मुझे जाने दो जल्दी ही लौट आऊंगा
बस्ती वालो को बड़ा समझाया और फिर बैठ लिए पुलिस की गाडी में सायरन बजाते गाडी दौड़ पड़ी कोतवाली की तरफ
साथ ही यादो की बारात भी चल पड़ी थी
जिस दुनिया को मैं छोड़ आया था वो अचानक से पिछले कुछ दिनों में फिर से मेरे सामने आके खड़ी हो गयी थी पहले इस अजनबी शहर में पिस्ता का यु मिल जाना और अब इसका
वक़्त ने एक बार फिर से ऐसी करवट ली थी की कुछ समझ ना आया ज़िन्दगी से पहले ही जूझ रहे थे अब तो ज़िन्दगी गांड मारने पे ही उतर आई थी
तबी गाडी के शीशे पे जो ड्राइवर के पास लगा होता है उसपर नजर पड़ी तो उसका चेहरा दिखाई दिया आँखों पे काला चश्मा लगा लिया था
पर आँखों से गिरी कुछ पानी की बूंदे उसके गालो पे निशान छोड़ ही गयी थी, बरसो से तम्मन्ना थी की उस से मिल पाउ ढूंढ लु उसको दुनिया की भीड़ में
और देखो दुआ कबूल हुई तो किस तरह से गाड़ी अपनी रफ्तार से चली जा रही थी बरसात की दिवार को चीरते हुए पर उन यादो का क्या जो बरसात की तरह ही इस दिल पर बरस रही थी
समझ नहीं आ रहा था कि ये सावन खुशि लाया था या गम पर चलो जो भी था अपना ही था दिल में दर्द सा होने लगा था पर हमने इतना जहर पिया था
की इस दर्द की क्या बिसात थी कोतवाली आते ही हमको बिठा दिया गया एक कुर्सी पे बिठा दिया गया 5 मिनट 10 करीब आधा घण्टा गुजर गया बैठे बैठे
फिर वो आयी बोली-क्या लोगे
मैं-पानी,
पानी पिलाया गया
मैं-नाश्ता अधूरा रह गया तो भूख लग आयी है व्यवस्था करवाओ
वो गुस्से से अपने हाथ को टेबल पे मारते हुए-शादी में आये हो क्या चुप करके बैठो
मैं-तुम्हे देख लिया दावत हो गयी वैसे ही
वो मैंने कहा न चुप रहो
मैं-चलो ये ही बता दो किस जुर्म की सजा देने लायी हो
वो- जुर्म बड़ा नादाँ है ये दिलवाला या याददास्त की प्रॉब्लम है ये लो स्टेटमेंट लिखो की कैसे तुमने पुलिस के अधिकारी और गाज़ी खान के पोते दोनों को दिन दिहाड़े क़त्ल किया
मैं-और ना लिखू तो
वो- ना सुनने की आदत नहीं मुझे जितनी जल्दी अपना जुर्म कबूल कर लोगे फायदे में राहोगे वार्ना पुलिस के पास और भी तरीके है
मैं-आज़मा लो हम भी देखे सौदाई का गुरूर कितना है
वो- जब दो डंडे पड़ेंगे न तो ये जो attitude है ना सब निकल जायेगा
मैं- हम तो तैयार है वक़्त ने तो आजमाँ लिया तुम भी अपनी कर लो हम तो इन्तजार में ही थे कब तुम मिलो कब जान जाए
वो- मेरा दिमाग खराब मत करो मैं बोल रही हु चुपचाप अपना जुर्म कबूल करलो
मैं- जुर्म तो उसी दिन कबूल लिया था जब इश्क़ का इज़हार किया था किसी से
वो- मुझे नहीं सुननी तुम्हारी बकवास
हम बात ही कर रहे थे की वकील आ पहुंचा था ना कोई fir थी ना कोई चार्जशीट हुई थी और वो सलाखें भी कहाँ बनी थी जो दिलवले को कैद कर सके
कोतवाली से तो निकल आये थे पर दिल वही रह गया था बस्ती आते ही पिस्ता मुझसे लिपट गई आज पहली बार उसके अंदर एक डर देखा था
उसकी आँखों में आंसू देखे थे पर उसे नहीं पता था कि मेरे सीने में एक आग जल रही थी कुछ समय पिस्ता के साथ बिता के मैं किसी काम से शहर से बाहर की तरफ आ गया
ये एक पुराना मंदिर था इतने लोग आते जाते नहीं थे पर फिर भी थे कुछ लोग हमारी तरह के करीब एक घंटे तक इंतजार करता रहा फिर एक गाडी आके रुकी
गाड़ी का दरवाजा खुला और नजरे उतरने वाले पे ठहर सी गयी हाथो में पूजा की थाली लिए वो उतरी हल्का नीले रंग का सूट क्या कहूँ। जँच रहा था मैं सीढियो पर ही बैठा था पर वो ऐसे निकल गयी
जैसे की पहचाना ही नहीं ,मैं वैसे ही बैठा रहा करीब आधे घंटे बाद उसकी आवाज सुनी-प्रसाद लो
मैंने प्रसाद लिया वो भी मेरे पास ही बैठ गई कुछ देर एक ख़ामोशी सी छाई रही ऐसा लग रहा था कि हम दोनों ही उस ख़ामोशी को तोड़ नहीं पा रहे थे
पर किसी को तो पहल करनी ही थी
मैं-कैसी हो
वो-जी रही हु
मैं-सभी जीते ही तो है
वो-हाँ पर मर मर के भी कोई जीना है
मैं-किसके लिए मरती हो
वो-था कोई अपना जो साथ छोड़ गया
मैं-ये चश्मा क्यों नहीं उतरती आँखों में कोई दिक्कत है क्या
वो-अच्छा लगता है ये
मैं-बहाना अछा है अपने दर्द को छुपाने का
वो-कैसा दर्द, भला मुझे कोई दर्द क्यों होगा देखो भली चंगी तो हु
मैं- खाओ मेरी कसम
वो-कसम क्या खानी
मैं- तो dsp हो गयी हो
वो-कुछ न कुछ काम तो करना ही था ना
मैं-चलो अच्छा हुआ ,तुम्हारा सपना था पुलिसवाली बनना बधाई हो
वो-सपना तो पूरा हो गया पर अपना छूट गया
मैं-तो फिर क्यों गयी थी छोड़के
वो-मैं थप्पड़ मार दूंगी,कौन गया था छोड़के
कितना परेशां थी मैं जानते हो कहाँ कहाँ नही ढूंढा तुम्हे फ़ोन करती थी कोई जवाब नहीं मिलता था फिर मैं गाँव आयी तो तुम्हारे घर गयी
तो फिर पता चला की क्या हुआ मुझे पता था कि उस समय तुम्हे मेरी बहुत जरूरत थी मैंने अपनी और से बहुत तलाश की पर तुम्हे कहीं नहीं पाया
|
|
12-29-2018, 02:51 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
यहाँ तक की तुम्हारे ननिहाल भी गयी पर बस इतना ही पता चला की तुम कुछ सामान लेने गए थे फिर उसके बाद कुछ खबर नहीं
समय बीतता गया , पर दिल में एक टीस फांस बनके मुझे घाव देती रही और देखो मुलाकात भी हुई तो किस मोड़ पर जैसे नदी के दो किनारे
वक़्त ने ये कैसा सितम किया है जानते हो आज का दिन कैसा गुजरा है मेरा ये चश्मा इसलिए नहीं उतारा की रोना नहीं चाहती मैं
दिल तड़प रहा है मेरा दर्द हो रहा है कभी सोचा नहीं था कि एक दिन तुम यु मिलोगे और हँसाने की जगह रुलाओगे
जानते हो क्या गुजरी होगी मुझ पे जब तुम्हारे हाथो में हतकड़ी डालनी पड़ी
मैं-वो तुम्हारा फ़र्ज़ था ड्यूटी सबसे पहले होनी चाहिए
वो-वो तो मैं निभाऊंगी ही पर एक कश्मकश है मन में की तुम्हारा और मेरा आमना सामना अब कैसे होगा और मैं क्या चुनूंगी
मैं-देखो बात बड़ी सिंपल सी है , हालात कुछ ऐसे है कि सामना तो होता रहेगा पर तुम कमजोर नहीं पढ़ोगी जब भी इस मुजरिम दिलवाले से तुम्हारा सामना हो बेहिचक गोली चला देना
वो कुछ पल मेरी तरफ देखती रही और फिर बोली-गोली चला दू किस पर तुम पे या खुद पे, जो गोली तुमपे चलेगी क्या वो मेरी जान ना ले जाएगी
बोलते बोलते उसकी आँखे डबडबा आयी आंसू गिरने लगे और एक पल भी मैंने उसको रोका नहीं रोने से क्योंकि जानता था कि अगर मैं कमजोर पड़ा तो फिर सब बर्बाद हो जायेगा
पर उसे रोता हुआ भी तो नहीं देख सकता था मैंने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा और हल्का सा दबा दिया और वो मेरे सीने से आ लगी
बरसो बाद ऐसे लगा था कि जैसे बंजर जमीन पर सावन टूट कर बरस पड़ा हो जैसे बस अपने सीने से लगाये रखा उसको , हर एक आंसू मेरे कलेजे को चीर रहा था पर उसके दिल में जो गुबार इतने दिनों से रुका था
आज बह जाना ही चाहिए था कुछ शांत हुई तो उसे थोड़ा पानी पिलाया वो- तुम इतने दिन कहा थे
मैं-लंबी कहानी है
वो-मेरे इंतज़ार से लंबी तो नहीं
मैं- जब पूरा परिवार तबाह हो गया तो मेरे नाना मुझे अपने गाँव ले आये मेरा मन नही था बिलकुल भी पर मज़बूरी थी तो जाना पड़ा कोई और चारा भी नहीं था क्योंकि बिमला और चाचा का हाल तो तुम्हे पता ही था नाना नानी का बहुत स्नेह था तो मैं मन मारके उनके साथ रहने लगा हर पल घर की बहुत याद आती थी पर अब घर था ही कहाँ
जब भी तन्हाई घेर लेती तुम्हारी बहुत याद आती पर हर वो जरिया जिस से तुम्हे धू ढ़ सकू खत्म हो गया था पढाई फिर से चालू हुआ उस रोज मैं थोड़ा लेट हो गया तो कच्चे रस्ते से शॉर्टकट ले लिया
जाड़े के दिन थे अँधेरा जल्दी हो गया और उस अँधेरे ने लील लिया मुझे वो एक जानलेवा हमला था पर खुशकिस्मती से बच गया मैं ज़ख्म गहरे थे पर जी ही गया जैसे तैसे करके पर एक बात मैंने खूब गौर की ,की मेरे मामा का व्यवहार बहुत बदल गया था
हर पल उनकी आँखों में जैसे एक द्वेष देखता था मैं पर वो मुझे कुछ कहते नहीं थे और फिर एक दिन मैंने नाना और मामा को बहस करते सुना मैं समझ गया था कि वो अपने घर में मुझे नही रखना चाहते थे
पर मेरी कुछ मज़बूरी थी और कुछ दवाब था मेरे नाना का और फिर एक दिन आया उस दिन इंदु की सगाई थी नाना ने मुझे सख्त कहा था कि कुछ भी हो पर यही रहना है पर मामा ने मुझे बॉर्डर वाले ठेके पे दारू लाने भेजा
नीनू दम साधे मेरे प्रत्येक शब्द को सुन रही थी कुछ देर मैं चुप रहा
फिर बताने लगा - मुझे जाने की जल्दी थी मैंने दारू लोड की और गाड़ी भगाई पर कुछ किलोमीटर बाद गाडी बंद हो गयी सच कहूं मेरा माथा तो उसी पल ठनक गया था जब मामा ने मुझे कहा था जाने को
पर मैंने ये सोच लिया की घर में कारन है सो काम होते है क्या हो जायेगा तो मैं चला गया मैं उस खराब गाडी को कोस रहा था कि एक काली गाडी मेरे सामने आके रुकी
इस से पहले की मैं कुछ समझता फायरिंग होने लगी एक गोली हिट कर गयी पर मैंने मुकाबला किया पर जीत नहीं पाया दो तीन को तो धर लिया पर मैं पहले हमले से ही नहीं उभरा था
और ये दूसरा और वो भी पूरी प्लानिंग से गोलिया जिस्म को छलनी कर गयी थी कुछ और हथियारों के घाव थे खून पानी की तरह बह रहा था सांसो की डोर बस टूटने को ही थी मैं सड़क किनारे पड़ा था कि
एक गाडी और आयी मैंने जैसे तैसे मदद के लिए कोशिस की वो कार आके मेरे पास रुकी शीशा उतरा और जो चेहरा मैंने देखा विश्वाश नहीं हुआ पर मदद की जगह उसने गन निकाली और कुछ
पल बाद कुछ और फायर की आवाज वातावरण में गूंजने लगी
जिसे मैंने उम्मीद समझा था वो तो मौत का हाथ था गाड़ी तेजी से चली गयी और मैं खून से लथपथ पता नहीं उस दर्द से जूझ रहा था या अपनी टूटती साँसों की डोर से
आँखों में आंसू भी थे पर वो अँधेरा भी छा रहा था जो शायद मुंझे लील जाता काल के मुह में पर फरिश्ते होते है नीनू फरिश्ते होते है
मौत और मुझमे जब कुछ ही पलों की दूरी थी तभी उसने आके मुझे थाम लिया और जब होश आया तो मैं संघर्ष कर रहा था ज़िन्दगी से
इतनी गोलिया लगने के बाद मैं कैसे बच गया ये तो बस वो ही जानता है मैंने आसमान की तरफ इशारा करते हुए कहा जानती हो एक टाइम था जब दवाई असर नहीं करती थी रातभर तड़पता था पर जीना था
देखना चाहोगी किस हद तक दर्द को सहा है मैंने ये कहके मैंने जैसे ही टीशर्ट उतारी नीनू मेरे सीने पे पेट पे उन ज़ख्मो के निशान देख कर फुट फुट के रोने लगी
मैं बस उसका सर पुचकारता रहा जब वो संयंत ही तो उसकी आँखों में एक ज्वाला थी वो अपने दांत पीसते हुए बोली-मैं उन लोगो को ज़िंदा जला दूंगी जिनकी वजह से हम सबकी लाइफ में जो दर्द आ गया है वो ब्याज सहित वापिस करुँगी मैं
मैं-हाँ करेंगे पर सही समय आने पे
वो- पर ये नहीं बताया कि तुम्हे बचाया किसने
मैं- वो अवंतिका थी
वो-पर कैसे उसे कैसे पता था
मैं-इस साजिश के बारे में मंजू को पता चल गया था कैसे ये मुझे भी नहीं पता था गाँव में अब हालात बदल चुके थे और मदद की सख्त जरूरत थी अब बिमला क्यों मदद करती तो बस एक अवंतिका ही थी जिस से आस की जा सकती थी और बस किस्मत ही थी
वो- पर तुम्हे नहीं लगता कि सबकुछ फ़िल्मी तरीके से हुआ मान लो की वो तैयार थी तुम्हे बचाने को पर गाँव में और जहाँ हमला हुआ दूरी बहुत है उसे पहुचने में टाइम लगना था और तुम्हारे पास टाइम था नहीं
दूसरी बात ये की , की क्या उन लोगो को शक नहीं हुआ होगा जब लाश नहीं मिली तुम्हारी और जब तुम गायब हुए तो मामा ने क्या बहाना बनाया होगा
मैं-पुलिसवाली हो ना आदत है शक करने की बताता हूं
देखो जब मंजू ने अवंतिका को फ़ोन किया तो वो इसी एरिया में थी
नीनू-हाऊ पॉसिबल
|
|
|