hotaks444
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अंतर्वासना
writing by rangila deshi
वासना के अतिरेक में अखिल ने कमली के हाथ अपने कांपते हाथों में ले लिये. जब उसने कोई विरोध नहीं किया तो उन्होंने रोमांचित हो कर उसे अपनी तरफ खींचा. झिझकते हुए कमली उनके इतने नजदीक आ गई कि उसकी गर्म सांसे उन्हें अपने गले पर महसूस होने लगी. अखिल ने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में ले कर उठाया और उसकी नशीली आंखों में झांकने लगे. कमली ने लजाते हुए पलकें झुका लीं पर उनसे छूटने की कोशिश नहीं की. उससे अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन पा कर अखिल ने अपने कंपकंपाते होंठ उसके नर्म गाल पर रख दिए. तब भी कमली ने कोई विरोध नहीं किया तो उन्होने एक झटके से उसे बिस्तर पर गिराया और उसे अपनी आगोश में ले लिया. कमली के मुंह से एक सीत्कार निकल गई.
... तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो अखिल की नींद खुल गई. उन्होंने देखा कि बिस्तर पर वे अकेले थे. वे बुदबुदा उठे ... इसी वक़्त आना था .... पर वे घड़ी देख कर खिसिया गए. सुबह हो चुकी थी. दुबारा दस्तक हुई तो उन्होंने उठ कर दरवाजा खोला. बाहर कमली खड़ी थी, उनकी कामवाली, जो एक मिनट पहले ही उनके अधूरे सपने से ओझल हुई थी. उसके अन्दर आने पर अखिल ने दरवाजा बंद कर दिया.
जबसे उनकी पत्नी शर्मिला गई थी वे बहुत अकेलापन महसूस कर रहे थे. शर्मिला की दीदी शादी के पांच वर्ष बाद गर्भवती हुई थी. वे कोई जोखिम नही उठाना चाहती थीं इसलिए दो महीने पहले ही उन्होंने शर्मिला को अपने यहाँ बुला लिया था. पिछले माह उनके बेटा हुआ था. जच्चा के कमजोर होने के कारण शर्मिला को एक महीने और वहां रुकना था. इसलिये अखिल इस वक्त मजबूरी में ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे.
काफी समय से उनका मन अपने घर पर काम करने वाली कमली पर आया हुआ था. कमली युवा थी. उसके नयन-नक्श आकर्षक थे. उसका बदन गदराया हुआ था. अपनी पत्नी के रहते उन्होंने कभी कमली को वासना की नज़र से नहीं देखा था. शर्मिला थी ही इतनी खूबसूरत! उसके सामने कमली कुछ भी नहीं थी. पर अब पत्नी के वियोग ने उन की मनोदशा बदल दी थी. कमली उन्हें बहुत लुभावनी लगने लगी थी और वे उसे पाने के लिए वे बेचैन हो उठे थे. अखिल जानते थे कि कमली बहुत गरीब है. वो मेहनत कर के बड़ी मुश्किल से अपना घर चलाती है. उसका पति निठल्ला है और पत्नी की कमाई पर निर्भर है. उन्होंने सोचा कि पैसा ही कमली की सबसे बड़ी कमजोरी होगी और उसी के सहारे उसे पाया जा सकता है. अखिल जानते थे कि पैसे के लोभ में अच्छे-अच्छों का ईमान डगमगा जाता है. फिर कमली की क्या औकात कि उन्हें पुट्ठे पर हाथ न रखने दे.
कमली को हासिल करने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई थी. आज उन्होंने उस योजना को क्रियान्वित करने का फैसला कर लिया. कमली के आने के बाद वे अपने बिस्तर पर लेट गए और कराहने लगे. कमली अंदर काम कर रही थी. जब उसने अखिल के कराहने की आवाज सुनी तो वो साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती हुई उनके पास आयी. उन्हें बेचैन देख कर उसने पूछा, ‘‘बाबूजी, क्या हुआ? ... तबियत खराब है?’’
दर्द का अभिनय करते हुए अखिल ने कहा, “सर में बहुत दर्द है.”
“आपने दवा ली?”
“हां, ली थी पर कोई फायदा नहीं हुआ. जब शर्मिला यहाँ थी तो सर दबा देती थी और दर्द दूर हो जाता था. पर अब वो तो यहाँ है नहीं.”
कमली सहानुभूति से बोली, ‘‘बाबूजी, आपको बुरा न लगे तो मैं आपका सर दबा दूं?’’
‘‘तुम्हे वापस जाने में देर हो जायेगी! मैं तुम्हे तकलीफ़ नहीं देना चाहता ... पर घर में कोई और है भी नहीं,’’ अखिल ने विवशता दिखाते हुए कहा.
“इसमें तकलीफ़ कैसी? और मुझे घर जाने की कोई जल्दी भी नहीं है,” कमली ने कहा.
कमली झिझकते हुए पलंग पर उनके पास बैठ गई. वो उनके माथे को आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और सहलाने लगी. एक स्त्री के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही अखिल का शरीर उत्तेजना से झनझनाने लगा. उन्होंने कुछ देर स्त्री-स्पर्श का आनंद लिया और फिर अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए बोले, ‘‘कमली, तुम्हारे हाथों में तो जादू है! बस थोड़ी देर और दबा दो.’’
कुछ देर और स्पर्श-सुख लेने के बाद उन्होंने सहानुभूति से कहा, ‘‘मैंने सुना है कि तुम्हारा आदमी कोई काम नहीं करता. वो बीमार रहता है क्या?’’
‘‘बीमार काहे का? ... खासा तन्दरुस्त है पर काम करना ही नहीं चाहता!’’ कमली मुंह बनाते हुए बोली.
‘‘फिर तो तम्हारा गुजारा मुश्किल से होता होगा?’’
‘‘क्या करें बाबूजी, मरद काम न करे तो मुश्किल तो होती ही है,’’ कमली बोली.
‘‘कितनी आमदनी हो जाती है तुम्हारी?’’ अखिल ने पूछा.
‘‘वही एक हजार रुपए जो आपके घर से मिलते हैं.’’
“कहीं और काम क्यों नहीं करती तुम?”
“बाबूजी, आजकल शहर में बांग्लादेश की इतनी बाइयां आई हुई हैं कि घर बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.” कमली दुखी हो कर बोली.
“लेकिन इतने कम पैसों में तुम्हारा घर कैसे चलता होगा?”
“अब क्या करें बाबूजी, हम गरीबों की सुध लेने वाला है ही कौन?” कमली विवशता से बोली.
थोड़ी देर एक बोझिल सन्नाटा छाया रहा. फिर अखिल मीठे स्वर में बोले, ‘‘अगर तुम्हे इतने काम के दो हज़ार रुपए मिलने लगे तो?’’
कमली अचरज से बोली, ‘‘दो हज़ार कौन देता है, बाबूजी?’’
‘‘मैं दूंगा.’’ अखिल ने हिम्मत कर के कहा और अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया.
कमली उनके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी. उसे समझ में नहीं आया कि इस मेहरबानी का क्या कारण हो सकता है. उसने पूछा, ‘‘आप क्यों देगें, बाबूजी?’’
कमली के हाथ को सहलाते हुए अखिल ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं तुम्हे अपना समझता हूँ. मैं तुम्हारी गरीबी और तुम्हारा दुःख दूर करना चाहता हूँ.”
“और मुझे सिर्फ वो ही काम करना होगा जो मैं अभी करती हूँ?”
“हां, पर साथ में मुझे तुम्हारा थोड़ा सा प्यार भी चाहिए. दे सकोगी?’’ अखिल ने हिम्मत कर के कहा.
कुछ पलों तक सन्नाटा रहा. फिर कमली ने शंका व्यक्त की, ‘‘बीवीजी को पता चल गया तो?’’
‘‘अगर मैं और तुम उन्हें न बताएं तो उन्हें कैसे पता लगेगा?’’ अखिल ने उत्तर दिया. अब उन्हें बात बनती नज़र आ रही थी.
‘‘ठीक है पर मेरी एक शर्त है ...’’
यह सुनते ही अखिल खुश हो गए. उन्होंने कमली को टोकते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है. तुम बस हां कह दो.’’
‘‘मैं कहाँ इंकार कर रही हूं पर पहले मेरी बात तो सुन लो, बाबूजी.’’ कमली थोड़ी शंका से बोली.
अब अखिल को इत्मीनान हो गया था कि काम बन चुका है. उन्होंने बेसब्री से कहा, ‘‘बात बाद में सुनूंगा. पहले तुम मेरी बाहों में आ जाओ.’’
कमली कुछ कहती उससे पहले उन्होंने उसे खींच कर अपनी बाहों में भींच लिया. उनके होंठ कमली के गाल से चिपक गए. वे उत्तेजना से उसे चूमने लगे. कमली ने किसी तरह खुद को उनसे छुड़ाया, “बाबूजी, आज नहीं. ... आपको दफ्तर जाना है. कल इतवार है. कल आप जो चाहो कर लेना.”
writing by rangila deshi
वासना के अतिरेक में अखिल ने कमली के हाथ अपने कांपते हाथों में ले लिये. जब उसने कोई विरोध नहीं किया तो उन्होंने रोमांचित हो कर उसे अपनी तरफ खींचा. झिझकते हुए कमली उनके इतने नजदीक आ गई कि उसकी गर्म सांसे उन्हें अपने गले पर महसूस होने लगी. अखिल ने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में ले कर उठाया और उसकी नशीली आंखों में झांकने लगे. कमली ने लजाते हुए पलकें झुका लीं पर उनसे छूटने की कोशिश नहीं की. उससे अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन पा कर अखिल ने अपने कंपकंपाते होंठ उसके नर्म गाल पर रख दिए. तब भी कमली ने कोई विरोध नहीं किया तो उन्होने एक झटके से उसे बिस्तर पर गिराया और उसे अपनी आगोश में ले लिया. कमली के मुंह से एक सीत्कार निकल गई.
... तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो अखिल की नींद खुल गई. उन्होंने देखा कि बिस्तर पर वे अकेले थे. वे बुदबुदा उठे ... इसी वक़्त आना था .... पर वे घड़ी देख कर खिसिया गए. सुबह हो चुकी थी. दुबारा दस्तक हुई तो उन्होंने उठ कर दरवाजा खोला. बाहर कमली खड़ी थी, उनकी कामवाली, जो एक मिनट पहले ही उनके अधूरे सपने से ओझल हुई थी. उसके अन्दर आने पर अखिल ने दरवाजा बंद कर दिया.
जबसे उनकी पत्नी शर्मिला गई थी वे बहुत अकेलापन महसूस कर रहे थे. शर्मिला की दीदी शादी के पांच वर्ष बाद गर्भवती हुई थी. वे कोई जोखिम नही उठाना चाहती थीं इसलिए दो महीने पहले ही उन्होंने शर्मिला को अपने यहाँ बुला लिया था. पिछले माह उनके बेटा हुआ था. जच्चा के कमजोर होने के कारण शर्मिला को एक महीने और वहां रुकना था. इसलिये अखिल इस वक्त मजबूरी में ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे.
काफी समय से उनका मन अपने घर पर काम करने वाली कमली पर आया हुआ था. कमली युवा थी. उसके नयन-नक्श आकर्षक थे. उसका बदन गदराया हुआ था. अपनी पत्नी के रहते उन्होंने कभी कमली को वासना की नज़र से नहीं देखा था. शर्मिला थी ही इतनी खूबसूरत! उसके सामने कमली कुछ भी नहीं थी. पर अब पत्नी के वियोग ने उन की मनोदशा बदल दी थी. कमली उन्हें बहुत लुभावनी लगने लगी थी और वे उसे पाने के लिए वे बेचैन हो उठे थे. अखिल जानते थे कि कमली बहुत गरीब है. वो मेहनत कर के बड़ी मुश्किल से अपना घर चलाती है. उसका पति निठल्ला है और पत्नी की कमाई पर निर्भर है. उन्होंने सोचा कि पैसा ही कमली की सबसे बड़ी कमजोरी होगी और उसी के सहारे उसे पाया जा सकता है. अखिल जानते थे कि पैसे के लोभ में अच्छे-अच्छों का ईमान डगमगा जाता है. फिर कमली की क्या औकात कि उन्हें पुट्ठे पर हाथ न रखने दे.
कमली को हासिल करने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई थी. आज उन्होंने उस योजना को क्रियान्वित करने का फैसला कर लिया. कमली के आने के बाद वे अपने बिस्तर पर लेट गए और कराहने लगे. कमली अंदर काम कर रही थी. जब उसने अखिल के कराहने की आवाज सुनी तो वो साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती हुई उनके पास आयी. उन्हें बेचैन देख कर उसने पूछा, ‘‘बाबूजी, क्या हुआ? ... तबियत खराब है?’’
दर्द का अभिनय करते हुए अखिल ने कहा, “सर में बहुत दर्द है.”
“आपने दवा ली?”
“हां, ली थी पर कोई फायदा नहीं हुआ. जब शर्मिला यहाँ थी तो सर दबा देती थी और दर्द दूर हो जाता था. पर अब वो तो यहाँ है नहीं.”
कमली सहानुभूति से बोली, ‘‘बाबूजी, आपको बुरा न लगे तो मैं आपका सर दबा दूं?’’
‘‘तुम्हे वापस जाने में देर हो जायेगी! मैं तुम्हे तकलीफ़ नहीं देना चाहता ... पर घर में कोई और है भी नहीं,’’ अखिल ने विवशता दिखाते हुए कहा.
“इसमें तकलीफ़ कैसी? और मुझे घर जाने की कोई जल्दी भी नहीं है,” कमली ने कहा.
कमली झिझकते हुए पलंग पर उनके पास बैठ गई. वो उनके माथे को आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और सहलाने लगी. एक स्त्री के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही अखिल का शरीर उत्तेजना से झनझनाने लगा. उन्होंने कुछ देर स्त्री-स्पर्श का आनंद लिया और फिर अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए बोले, ‘‘कमली, तुम्हारे हाथों में तो जादू है! बस थोड़ी देर और दबा दो.’’
कुछ देर और स्पर्श-सुख लेने के बाद उन्होंने सहानुभूति से कहा, ‘‘मैंने सुना है कि तुम्हारा आदमी कोई काम नहीं करता. वो बीमार रहता है क्या?’’
‘‘बीमार काहे का? ... खासा तन्दरुस्त है पर काम करना ही नहीं चाहता!’’ कमली मुंह बनाते हुए बोली.
‘‘फिर तो तम्हारा गुजारा मुश्किल से होता होगा?’’
‘‘क्या करें बाबूजी, मरद काम न करे तो मुश्किल तो होती ही है,’’ कमली बोली.
‘‘कितनी आमदनी हो जाती है तुम्हारी?’’ अखिल ने पूछा.
‘‘वही एक हजार रुपए जो आपके घर से मिलते हैं.’’
“कहीं और काम क्यों नहीं करती तुम?”
“बाबूजी, आजकल शहर में बांग्लादेश की इतनी बाइयां आई हुई हैं कि घर बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.” कमली दुखी हो कर बोली.
“लेकिन इतने कम पैसों में तुम्हारा घर कैसे चलता होगा?”
“अब क्या करें बाबूजी, हम गरीबों की सुध लेने वाला है ही कौन?” कमली विवशता से बोली.
थोड़ी देर एक बोझिल सन्नाटा छाया रहा. फिर अखिल मीठे स्वर में बोले, ‘‘अगर तुम्हे इतने काम के दो हज़ार रुपए मिलने लगे तो?’’
कमली अचरज से बोली, ‘‘दो हज़ार कौन देता है, बाबूजी?’’
‘‘मैं दूंगा.’’ अखिल ने हिम्मत कर के कहा और अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया.
कमली उनके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी. उसे समझ में नहीं आया कि इस मेहरबानी का क्या कारण हो सकता है. उसने पूछा, ‘‘आप क्यों देगें, बाबूजी?’’
कमली के हाथ को सहलाते हुए अखिल ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं तुम्हे अपना समझता हूँ. मैं तुम्हारी गरीबी और तुम्हारा दुःख दूर करना चाहता हूँ.”
“और मुझे सिर्फ वो ही काम करना होगा जो मैं अभी करती हूँ?”
“हां, पर साथ में मुझे तुम्हारा थोड़ा सा प्यार भी चाहिए. दे सकोगी?’’ अखिल ने हिम्मत कर के कहा.
कुछ पलों तक सन्नाटा रहा. फिर कमली ने शंका व्यक्त की, ‘‘बीवीजी को पता चल गया तो?’’
‘‘अगर मैं और तुम उन्हें न बताएं तो उन्हें कैसे पता लगेगा?’’ अखिल ने उत्तर दिया. अब उन्हें बात बनती नज़र आ रही थी.
‘‘ठीक है पर मेरी एक शर्त है ...’’
यह सुनते ही अखिल खुश हो गए. उन्होंने कमली को टोकते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है. तुम बस हां कह दो.’’
‘‘मैं कहाँ इंकार कर रही हूं पर पहले मेरी बात तो सुन लो, बाबूजी.’’ कमली थोड़ी शंका से बोली.
अब अखिल को इत्मीनान हो गया था कि काम बन चुका है. उन्होंने बेसब्री से कहा, ‘‘बात बाद में सुनूंगा. पहले तुम मेरी बाहों में आ जाओ.’’
कमली कुछ कहती उससे पहले उन्होंने उसे खींच कर अपनी बाहों में भींच लिया. उनके होंठ कमली के गाल से चिपक गए. वे उत्तेजना से उसे चूमने लगे. कमली ने किसी तरह खुद को उनसे छुड़ाया, “बाबूजी, आज नहीं. ... आपको दफ्तर जाना है. कल इतवार है. कल आप जो चाहो कर लेना.”