desiaks
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राणाजी उन लडको की बातों पर हस पड़े और बोले, "नही बेटा ये असली नोट है. ये सौ रूपये हैं. तुम इनको अपने पास ठीक से रख लो."
बदलू की बीबी की नजर अपनी लडकी की विदाई पर कम और उन लडकों के हाथ में लग रहे सौ के नोटों पर ज्यादा थी. जिन्हें वे इन लोगों के जाते ही बच्चों से छीन कर अपने पास घर खर्च के लिए रख लेने वाली थीं. ये गरीबी की घोर नजर की गलती थी. जिसमे सौ का नोट बहुत मायने रखता था.
गाँव के बाहर तक आ बदलू और बदलू की बीबी लौट कर जाने लगे. उनकी लडकी माला फिर से सिसक पड़ी. माँ ने एक बार फिर से गले लगाया और कान में बोली, "बेटा सम्हाल कर रहना और कभी यहाँ आने की जिद न करना. हमें घूमना होगा तो खुद आ जायेंगे लेकिन तुम यहाँ आने की एक भी बार अपने पति से न कहना. ठीक है?"
लडकी ने हाँ में सर हिला दिया. माँ से कसकर लिपटी लडकी को बदलू ने डपट कर अलग करा दिया. बोले, “बेटा तुम्हे देर हो जाएगी. जाओ अब.”
राणाजी और गुल्लन ने बदलू से दुआ सलाम की और लडकी को अपने साथ ले मुख्य रास्ते की तरफ चल दिए.
थोड़ी दूर बढ़ ऑटो में बैठे. उस ऑटों ने उन्हें रेल्वे स्टेशन पर उतार दिया. गुल्लन ने तीन टिकट ली और तीनों ट्रेन का इन्तजार करने लगे. ट्रेन भी समय से आ गयी. झटपट तीनों जा उसमें बैठ गये लेकिन ये लडकी जो राणाजी की दुल्हन बनकर आई थी ये आज पहली बार ट्रेन में बैठी थी. आज से पहले इसने कभी ट्रेन को पास से भी नही देखा था.
राणाजी के बगल में उनकी दुल्हन बनी ये लडकी माला बैठी थी और सामने की सीट पर गुल्लन रंगीला. गुल्लन बार बार राणाजी की तरफ देख मुस्कुरा उठते और राणाजी शरमा कर उनकी तरफ. ट्रेन जाकर स्टेशन पर रुकी.
राणाजी गुल्लन और अपनी दुल्हन सहित उतर गये.ये इनके गाँव का रेल्वे स्टेशन था. रात काफी हो चुकी थी. गुल्लन आगे आगे चल रहे थे और राणाजीअपनी दुल्हन के साथ पीछे पीछे. राणाजी की दुल्हन बनी इस लड़की ने ऐसी साड़ी पहली बार पहनी थी. इस कारण उसे चलने में बहुत परेशानी हो रही थी.
अचानक रास्ते में चलते चलते वो गिर पड़ी. राणाजी ने उसे अपना सहारा दे उठाया और उसका हाथ पकड़ चलने लगे. राणाजी का घर गाँव के इसी छोर पर पड़ता था. उन्होंने घर आते ही अपनी दुल्हन का हाथ छोड़ दिया.
बदलू की बीबी की नजर अपनी लडकी की विदाई पर कम और उन लडकों के हाथ में लग रहे सौ के नोटों पर ज्यादा थी. जिन्हें वे इन लोगों के जाते ही बच्चों से छीन कर अपने पास घर खर्च के लिए रख लेने वाली थीं. ये गरीबी की घोर नजर की गलती थी. जिसमे सौ का नोट बहुत मायने रखता था.
गाँव के बाहर तक आ बदलू और बदलू की बीबी लौट कर जाने लगे. उनकी लडकी माला फिर से सिसक पड़ी. माँ ने एक बार फिर से गले लगाया और कान में बोली, "बेटा सम्हाल कर रहना और कभी यहाँ आने की जिद न करना. हमें घूमना होगा तो खुद आ जायेंगे लेकिन तुम यहाँ आने की एक भी बार अपने पति से न कहना. ठीक है?"
लडकी ने हाँ में सर हिला दिया. माँ से कसकर लिपटी लडकी को बदलू ने डपट कर अलग करा दिया. बोले, “बेटा तुम्हे देर हो जाएगी. जाओ अब.”
राणाजी और गुल्लन ने बदलू से दुआ सलाम की और लडकी को अपने साथ ले मुख्य रास्ते की तरफ चल दिए.
थोड़ी दूर बढ़ ऑटो में बैठे. उस ऑटों ने उन्हें रेल्वे स्टेशन पर उतार दिया. गुल्लन ने तीन टिकट ली और तीनों ट्रेन का इन्तजार करने लगे. ट्रेन भी समय से आ गयी. झटपट तीनों जा उसमें बैठ गये लेकिन ये लडकी जो राणाजी की दुल्हन बनकर आई थी ये आज पहली बार ट्रेन में बैठी थी. आज से पहले इसने कभी ट्रेन को पास से भी नही देखा था.
राणाजी के बगल में उनकी दुल्हन बनी ये लडकी माला बैठी थी और सामने की सीट पर गुल्लन रंगीला. गुल्लन बार बार राणाजी की तरफ देख मुस्कुरा उठते और राणाजी शरमा कर उनकी तरफ. ट्रेन जाकर स्टेशन पर रुकी.
राणाजी गुल्लन और अपनी दुल्हन सहित उतर गये.ये इनके गाँव का रेल्वे स्टेशन था. रात काफी हो चुकी थी. गुल्लन आगे आगे चल रहे थे और राणाजीअपनी दुल्हन के साथ पीछे पीछे. राणाजी की दुल्हन बनी इस लड़की ने ऐसी साड़ी पहली बार पहनी थी. इस कारण उसे चलने में बहुत परेशानी हो रही थी.
अचानक रास्ते में चलते चलते वो गिर पड़ी. राणाजी ने उसे अपना सहारा दे उठाया और उसका हाथ पकड़ चलने लगे. राणाजी का घर गाँव के इसी छोर पर पड़ता था. उन्होंने घर आते ही अपनी दुल्हन का हाथ छोड़ दिया.