desiaks
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राणाजी ने हैरत के साथ माला को देखो और बोले, "अरे माला ये तुम्हारे गहने कहाँ गये? क्या उतार कर बैग में रख लिए हैं? चलो ठीक किया मैं भी यही कहने वाला था. रास्ते में गहनों का डर ही लगा रहता है. उपर से रात का सफर भी है." __
माला का गला रुंधा हुआ था. बोली, “वो गहने मैंने उतार कर उसी पिटारे में रख दिए हैं. जो कमरे में ही रखा है.”
राणाजी को माला की बात सुन बहुत हैरत हुई और बोले, "अरे वहां क्यों रख दिए? पगली हो पूरी,"
यह कहते हुए राणाजी ने मुख्य दरवाजे का ताला खोल दिया और अंदर चले गये. मानिक और माला ने एक दूसरे की तरफ देखा. दोनों की समझ में कुछ न आया लेकिन तभी राणाजी गहनों के पिटारे के साथ बाहर आ गये. घर का ताला फिर से लगाया और माला के पास आ पहुंचे. गहनों का पिटारा माला की तरफ बढ़ाते हुए बोले, “लो माला ये गहनों का पिटारा सावधानी के साथ अपने बैग में रख लो. रास्ते में इसका खयाल थोडा ज्यादा रखना. ये हमारे पुश्तैनी गहने हैं. ये समझो शाही गहने. इस पर इस खानदान की बहू का अधिकार होता है. लेकिन अब इस खानदान में कोई बहू नही है तो मैं अपनी ख़ुशी से तुम्हे देता हूँ. तुम अपने लडके की बहू को पहना देना. और माँ ने भी तो ये गहने तुम्हें ही दिए थे. इस हिसाब से इन पर तुम्हारा ही हक बनता है. लो रख लो इन्हें."
माला सजल आँखों से राणाजी के चेहरे को देखे जा रही थी. वो समझ नही पा रही थी कि वो जिस आदमी का घर छोड़ कर किसी और के साथ जा रही है वही आदमी उसे इतनी इज्जत दिए जा रहा है. मानो ये उसका कर्तव्य हो. जबकि उसे तो इतना गुस्सा होना चाहिए था कि अगर वो माला को मार भी डालता तो कम न था.
राणाजी की आत्मीयता देख माला बर्फ की मानिंद पिघलती जा रही थी. मन करता था कि वो फिर से राणाजी के पास ही रुक जाय लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी. वो मानिक के साथ जाने के लिए तैयार खड़ी थी. इस वक्त वो चाहकर भी रुकने की हिम्मत नही कर पा रही थी. सोच में डूबी माला को राणाजी की आवाज ने झकझोर दिया,"माला. अरे रखो न इस पिटारे को बैग में."
माला के आंसू गालों पर वह रहे थे लेकिन शुक्र था इस रात के अंधेरे का. जिसमे किसी ने माला के आंसुओं को न देख पाया. माला ने न चाहते हुए भी राणाजी के हाथ से गहनों का पिटारा ले बैग में रख लिया. माला के मन के अनुसार इस पिटारे में इतना गहना था जितना किसी राजकुमारी के पास होता है.
माला के बैग में पिटारा रखते ही राणाजी ने उसके हाथ से वो बैग ले लिया. बोले, "लाओ ये बैग में लिए चलता हूँ. वैसे भी तुम को इस हालत में वजन उठाने का काम नही करना चाहिए. तुम जल्दी ही माँ बन जाओगी और मानिक इसे वहां पर ठीक से रखना. कोई भी परेशानी आई तो मैं तेरे कान खीचूँगा. समझा?”
मानिक ने मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिला दिया. माला और ज्यादा भावुक हो उठी. समझ नही आता था किराणाजी उसके लिए इतना सब क्यों सोच रहे हैं?
राणाजी बैग ले आगे आगे चल दिए. मानिक और माला उनके पीछे पीछे. मानिक तो मन में खुश था लेकिन माला का मन कभी दुखी तो कभी हल्का खुश हो जाता था. उसने वेशक राणाजी से मोहब्बत नही की थी लेकिन जितनी इज्जत राणाजी के लिए उसके दिल में थी वो लोगो के दिल में सिर्फ भगवान के लिए होती है. परन्तु आज माला को लग रहा था कि उसे राणाजी से मोहब्बत हो गयी है.
राणाजी से दूर जाने से दिल डर रहा था. आँखें झरने की मानिंद वह रहीं थी.
राणाजी अपने घर की सडक को पार कर मुख्य सडक पर आ चुके थे. पीछे चल रहे इन दोनों प्रेमियों से बोले, “अरे भाई थोडा जल्दी चलो. देर हो रही है. माला तुम्हें कोई परेशानी तो नही हो रही?"
माला का गला भरा हुआ था. भर्राए हुए गले से ही बोल पड़ी, “न..नही .ठीक हूँ.” सब लोग चलते चले उस जगह आ पहुंचे जहाँ से बस अड्डे के लिए तांगे और टेम्पो मिलते थे. इन लोगों के पहुंचते ही एक खाली तांगा आ पहुंचा. राणाजी ने आवाज दे उस तांगे को अपनी तरफ बुला लिया. __
तांगा घूम कर इन लोगों के पास आ पहुंचा. राणाजी मानिक को समझाते हुए बोले, “देखो मानिक परदेश में बहुत सावधानी से रहना. विशेषकर माला को कहीं भी अकेले न छोड़ना. इस बेचारी ने अभी बाहर की दुनिया नही देखी है. तुम तो समझदार हो इसलिए माला का खयाल भी तुम्हें ही रखना पड़ेगा. मेरे परिचित के पास तुम्हे कोई परेशानी नही होगी. कुछ सामान की जरूरत पड़े तो पैसा खर्चने में सकुचाना मत.मैं बहुत जल्दी और थोड़े पैसों का इंतजाम कर तुम्हें भेज दूंगा और देखों अगर बाज़ार में माला का मन जिस भी चीज का करे इसे खिला देना. जहाँ तक हो सके इसके लिए किसी चीज की कमी न होने देना. ठीक है. जब माला माँ बनने को हो तब मुझे खबर कर देना. जिससे मैं वहां पर आ इसे किसी अस्पताल में भर्ती करवा दूंगा. अस्पताल में बच्चा होने से कोई परेशानी नही होगी."
माला का गला रुंधा हुआ था. बोली, “वो गहने मैंने उतार कर उसी पिटारे में रख दिए हैं. जो कमरे में ही रखा है.”
राणाजी को माला की बात सुन बहुत हैरत हुई और बोले, "अरे वहां क्यों रख दिए? पगली हो पूरी,"
यह कहते हुए राणाजी ने मुख्य दरवाजे का ताला खोल दिया और अंदर चले गये. मानिक और माला ने एक दूसरे की तरफ देखा. दोनों की समझ में कुछ न आया लेकिन तभी राणाजी गहनों के पिटारे के साथ बाहर आ गये. घर का ताला फिर से लगाया और माला के पास आ पहुंचे. गहनों का पिटारा माला की तरफ बढ़ाते हुए बोले, “लो माला ये गहनों का पिटारा सावधानी के साथ अपने बैग में रख लो. रास्ते में इसका खयाल थोडा ज्यादा रखना. ये हमारे पुश्तैनी गहने हैं. ये समझो शाही गहने. इस पर इस खानदान की बहू का अधिकार होता है. लेकिन अब इस खानदान में कोई बहू नही है तो मैं अपनी ख़ुशी से तुम्हे देता हूँ. तुम अपने लडके की बहू को पहना देना. और माँ ने भी तो ये गहने तुम्हें ही दिए थे. इस हिसाब से इन पर तुम्हारा ही हक बनता है. लो रख लो इन्हें."
माला सजल आँखों से राणाजी के चेहरे को देखे जा रही थी. वो समझ नही पा रही थी कि वो जिस आदमी का घर छोड़ कर किसी और के साथ जा रही है वही आदमी उसे इतनी इज्जत दिए जा रहा है. मानो ये उसका कर्तव्य हो. जबकि उसे तो इतना गुस्सा होना चाहिए था कि अगर वो माला को मार भी डालता तो कम न था.
राणाजी की आत्मीयता देख माला बर्फ की मानिंद पिघलती जा रही थी. मन करता था कि वो फिर से राणाजी के पास ही रुक जाय लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी. वो मानिक के साथ जाने के लिए तैयार खड़ी थी. इस वक्त वो चाहकर भी रुकने की हिम्मत नही कर पा रही थी. सोच में डूबी माला को राणाजी की आवाज ने झकझोर दिया,"माला. अरे रखो न इस पिटारे को बैग में."
माला के आंसू गालों पर वह रहे थे लेकिन शुक्र था इस रात के अंधेरे का. जिसमे किसी ने माला के आंसुओं को न देख पाया. माला ने न चाहते हुए भी राणाजी के हाथ से गहनों का पिटारा ले बैग में रख लिया. माला के मन के अनुसार इस पिटारे में इतना गहना था जितना किसी राजकुमारी के पास होता है.
माला के बैग में पिटारा रखते ही राणाजी ने उसके हाथ से वो बैग ले लिया. बोले, "लाओ ये बैग में लिए चलता हूँ. वैसे भी तुम को इस हालत में वजन उठाने का काम नही करना चाहिए. तुम जल्दी ही माँ बन जाओगी और मानिक इसे वहां पर ठीक से रखना. कोई भी परेशानी आई तो मैं तेरे कान खीचूँगा. समझा?”
मानिक ने मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिला दिया. माला और ज्यादा भावुक हो उठी. समझ नही आता था किराणाजी उसके लिए इतना सब क्यों सोच रहे हैं?
राणाजी बैग ले आगे आगे चल दिए. मानिक और माला उनके पीछे पीछे. मानिक तो मन में खुश था लेकिन माला का मन कभी दुखी तो कभी हल्का खुश हो जाता था. उसने वेशक राणाजी से मोहब्बत नही की थी लेकिन जितनी इज्जत राणाजी के लिए उसके दिल में थी वो लोगो के दिल में सिर्फ भगवान के लिए होती है. परन्तु आज माला को लग रहा था कि उसे राणाजी से मोहब्बत हो गयी है.
राणाजी से दूर जाने से दिल डर रहा था. आँखें झरने की मानिंद वह रहीं थी.
राणाजी अपने घर की सडक को पार कर मुख्य सडक पर आ चुके थे. पीछे चल रहे इन दोनों प्रेमियों से बोले, “अरे भाई थोडा जल्दी चलो. देर हो रही है. माला तुम्हें कोई परेशानी तो नही हो रही?"
माला का गला भरा हुआ था. भर्राए हुए गले से ही बोल पड़ी, “न..नही .ठीक हूँ.” सब लोग चलते चले उस जगह आ पहुंचे जहाँ से बस अड्डे के लिए तांगे और टेम्पो मिलते थे. इन लोगों के पहुंचते ही एक खाली तांगा आ पहुंचा. राणाजी ने आवाज दे उस तांगे को अपनी तरफ बुला लिया. __
तांगा घूम कर इन लोगों के पास आ पहुंचा. राणाजी मानिक को समझाते हुए बोले, “देखो मानिक परदेश में बहुत सावधानी से रहना. विशेषकर माला को कहीं भी अकेले न छोड़ना. इस बेचारी ने अभी बाहर की दुनिया नही देखी है. तुम तो समझदार हो इसलिए माला का खयाल भी तुम्हें ही रखना पड़ेगा. मेरे परिचित के पास तुम्हे कोई परेशानी नही होगी. कुछ सामान की जरूरत पड़े तो पैसा खर्चने में सकुचाना मत.मैं बहुत जल्दी और थोड़े पैसों का इंतजाम कर तुम्हें भेज दूंगा और देखों अगर बाज़ार में माला का मन जिस भी चीज का करे इसे खिला देना. जहाँ तक हो सके इसके लिए किसी चीज की कमी न होने देना. ठीक है. जब माला माँ बनने को हो तब मुझे खबर कर देना. जिससे मैं वहां पर आ इसे किसी अस्पताल में भर्ती करवा दूंगा. अस्पताल में बच्चा होने से कोई परेशानी नही होगी."