desiaks
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राजगढ़ी गाँव में राणाजी के घर की तरह तरह की चर्चाएं हो रही थीं. पहली उनके जमीन बेचने की और दूसरी उनकी नवविवाहिता माला और मानिक के इश्क की चर्चे. मोहल्ले की कुछ औरतों ने मानिक और माला को छत पर इशारे करते हुए देख लिया था. साथ ही कुछ लोगों ने उनको द्वार पर गले मिलते भी देख लिया था.
लोगों में तो यहाँ तक चर्चाएँ थीं कि माला के पेट में जो बच्चा है वो मानिक का ही है. जानकार लोगों का मानना था कि राणाजी इस उम्र में बाप बन ही नही सकते. राणाजी की उम्र ने इस बात को सब लोगों की नजरों में सही सिद्ध कर दिया था.
राणाजी से जलने वाले लोग गाँव में बहुत थे. हालाँकि राणाजी जब से जेल से छूट कर आये थे तब से बहुत ही सज्जनता से रहते थे लेकिन लोगों का सोचना उनके लिए अच्छा नही था. किसी को नीचा दिखाने में लोगो को कुछ ज्यादा ही आनंद आता है. गाँव के एक आदमी ने राणाजी जी को इन बातों से अवगत करा दिया था. ये आदमी राणाजी काशुभचिंतकथा.राणाजीइन बातों को सुन सोच में पड़ गये लेकिन माला के प्रति उन्हें कोई शक नही था.
लेकिन गाँव में हो रही चर्चाओं को भी तो राणाजी नज़रंदाज़ नही कर सकते थे. माला उनके खानदान की बहू थी और बहू घर की इज्जत होती है. राणाजी की इज्जत जमीन बेचने से बहुत घट गयी थी. लोग उनके मुंह फेरते ही सौ तरह की बातें करते थे. ऊपर से ये माला और मानिक के इश्क के चर्चों ने राणाजी को और ज्यादा नीचे गिरा दिया था.
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अच्छा तुम खुद अपना हाथ लगाकर देखो कैसा लगता है. आओ मेरे पेट पर अपना हाथ लगाकर देखो.”
मानिक को माला के पेट को हाथ से छूने की हिम्मत नही हो रही थी लेकिन माला थोडा सा आगे आई और मानिक का हाथ अपने हाथों में ले अपने पेट पर रख लिया. माला के कोमल शरीर का स्पर्श मानिक को बेखबर किये जा रहा था. माला उसके हाथ को अपने हाथ से पकड़े अपने पेट पर रखे हुए थी. पागल तो माला भी हुई जा रही थी. दरअसल हम जिसको दिल से चाहते हैं उसका स्पर्श हमेसा ही हमें बहुत आनन्दित करने वाला होता है. उसकी हर एक छुअन हमें किसी दूसरे जहाँ में ले पहुंचती है.
दोनों मन की मौज में खोये हुए थे. इन्हें आसपास का कोई ध्यान ही नही था. सामने सडक से राणाजी घर के द्वार की तरफ चले आ रहे थे. वो दूर वेशक थे लेकिन उन्हें ये सारा नजारा साफ साफ दिखाई दे रहा था. वो आज आये ही जल्दी इसलिए थे ताकि अपनी आँखों से वो बात देख लें जिसकी गाँव में हर घर द्वार पर चर्चा है वो बात सही है या नही. आज उन्हें उस बात का प्रमाण इन दोनों को देख लग गया था.
राणाजी घर की तरफ बढ़ रहे थे लेकिन एक मन बात को खुद जानने का मन बना लिया. वो माला के ऊपर तब तक शक नहीं कर सकते थे जब तक कि वो खुद उसे कुछ भी करते अपनी आँखों से न देख लें. दोपहर का समय हो रहा था. मानिक घर पर स्कूल का बस्ता रख सीधा माला के पास आ पहुंचा. माला भी तो उसी का इतंजार कर रही थी. आते ही दोनों एक दूसरे से लिपट गये. मानो बर्षों के बिछड़े आज मिले हों. माला आज बहुत खुश थी और मानिक का भी हाल कुछ ऐसा ही था.
दोनों को गाँव में हुई चर्चाओं का कोई अता पता नहीं था और होता भी तो दोनों एकदूसरे से मिले विना रह ही नही सकते थे. माला का पेट गर्भवती होने के कारण काफी फूला हुआ महसूस होता था और यहाँ के अच्छे खानपान और रहन सहन के कारण उसका शरीर भी भर गया था. मानिकको न जाने क्या मस्ती सूझी. बोला, "माला तुम्हारा ये पेट इतना क्यों निकलता जा रहा है? क्या मोटी होती जा रही हो तुम?"
लोगों में तो यहाँ तक चर्चाएँ थीं कि माला के पेट में जो बच्चा है वो मानिक का ही है. जानकार लोगों का मानना था कि राणाजी इस उम्र में बाप बन ही नही सकते. राणाजी की उम्र ने इस बात को सब लोगों की नजरों में सही सिद्ध कर दिया था.
राणाजी से जलने वाले लोग गाँव में बहुत थे. हालाँकि राणाजी जब से जेल से छूट कर आये थे तब से बहुत ही सज्जनता से रहते थे लेकिन लोगों का सोचना उनके लिए अच्छा नही था. किसी को नीचा दिखाने में लोगो को कुछ ज्यादा ही आनंद आता है. गाँव के एक आदमी ने राणाजी जी को इन बातों से अवगत करा दिया था. ये आदमी राणाजी काशुभचिंतकथा.राणाजीइन बातों को सुन सोच में पड़ गये लेकिन माला के प्रति उन्हें कोई शक नही था.
लेकिन गाँव में हो रही चर्चाओं को भी तो राणाजी नज़रंदाज़ नही कर सकते थे. माला उनके खानदान की बहू थी और बहू घर की इज्जत होती है. राणाजी की इज्जत जमीन बेचने से बहुत घट गयी थी. लोग उनके मुंह फेरते ही सौ तरह की बातें करते थे. ऊपर से ये माला और मानिक के इश्क के चर्चों ने राणाजी को और ज्यादा नीचे गिरा दिया था.
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अच्छा तुम खुद अपना हाथ लगाकर देखो कैसा लगता है. आओ मेरे पेट पर अपना हाथ लगाकर देखो.”
मानिक को माला के पेट को हाथ से छूने की हिम्मत नही हो रही थी लेकिन माला थोडा सा आगे आई और मानिक का हाथ अपने हाथों में ले अपने पेट पर रख लिया. माला के कोमल शरीर का स्पर्श मानिक को बेखबर किये जा रहा था. माला उसके हाथ को अपने हाथ से पकड़े अपने पेट पर रखे हुए थी. पागल तो माला भी हुई जा रही थी. दरअसल हम जिसको दिल से चाहते हैं उसका स्पर्श हमेसा ही हमें बहुत आनन्दित करने वाला होता है. उसकी हर एक छुअन हमें किसी दूसरे जहाँ में ले पहुंचती है.
दोनों मन की मौज में खोये हुए थे. इन्हें आसपास का कोई ध्यान ही नही था. सामने सडक से राणाजी घर के द्वार की तरफ चले आ रहे थे. वो दूर वेशक थे लेकिन उन्हें ये सारा नजारा साफ साफ दिखाई दे रहा था. वो आज आये ही जल्दी इसलिए थे ताकि अपनी आँखों से वो बात देख लें जिसकी गाँव में हर घर द्वार पर चर्चा है वो बात सही है या नही. आज उन्हें उस बात का प्रमाण इन दोनों को देख लग गया था.
राणाजी घर की तरफ बढ़ रहे थे लेकिन एक मन बात को खुद जानने का मन बना लिया. वो माला के ऊपर तब तक शक नहीं कर सकते थे जब तक कि वो खुद उसे कुछ भी करते अपनी आँखों से न देख लें. दोपहर का समय हो रहा था. मानिक घर पर स्कूल का बस्ता रख सीधा माला के पास आ पहुंचा. माला भी तो उसी का इतंजार कर रही थी. आते ही दोनों एक दूसरे से लिपट गये. मानो बर्षों के बिछड़े आज मिले हों. माला आज बहुत खुश थी और मानिक का भी हाल कुछ ऐसा ही था.
दोनों को गाँव में हुई चर्चाओं का कोई अता पता नहीं था और होता भी तो दोनों एकदूसरे से मिले विना रह ही नही सकते थे. माला का पेट गर्भवती होने के कारण काफी फूला हुआ महसूस होता था और यहाँ के अच्छे खानपान और रहन सहन के कारण उसका शरीर भी भर गया था. मानिकको न जाने क्या मस्ती सूझी. बोला, "माला तुम्हारा ये पेट इतना क्यों निकलता जा रहा है? क्या मोटी होती जा रही हो तुम?"