नए पड़ोसी - SexBaba
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नए पड़ोसी

hotaks444

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Nov 15, 2016
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[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]दोस्तों आज आपके लिए एक नयी कहानी लेकर हाजिर हुआ हूँ. लेकिन अपडेट जल्दी जल्दी नहीं दे पाऊँगा इसके लिए पहले ही माफ़ी मांग लेता हूँ... 
मेरा नाम मनीश है और मैं लखनऊ में रहता हूँ. मैं १२वी क्लास में पढता हूँ. मेरे घर पर मेरे पापा मम्मी और मेरी बड़ी बहन रश्मि है. मेरे मम्मी पापा दोनों नौकरी करते है और मेरी बहन ग्रेजुएशन सेकंड इयर में पढ़ रही है. जहा हमारा घर है वो एरिया अभी नया बसा है. वह अभी ज्यादा मकान नहीं है. जब हम यहाँ आये थे तब हमारी लाइन में सिर्फ हमारा ही घर बना था. धीरे धीरे और घर बन गए सामने भी काफी घर बन गए पर हमारे पड़ोस में कोई नहीं आया. पर पिछले साल हमारे बगल में भी एक नया मकान बन गया था और उसमे एक फॅमिली भी आकर रहने लगी थी. पापा उनसे मिलने गए और लौट कर उन्होंने मम्मी को बताया की अच्छे लोग है. उनके घर में भी 4 लोग ही थे. अंकल एक सरकारी नौकर थे और आंटी घर पर ही रहती थी. उनका बड़ा लड़का मयंक मेरे ही कॉलेज में पड़ता था और उनकी छोटी बेटी रुची ११वी क्लास में पढ़ रही थी. मम्मी ने कहा चलो अच्छा है की कम से कम कोई पडोसी तो आये. पापा ने कहा एक और अच्छी बात है उन्होंने अपने घर में जो दुकान बनवाई है वो भी जल्दी खुल जाएगी. अभी मेरे सामने ही एक लड़का किराये की बात पक्की करके गया है. फिर पापा ने मुझसे कहा की कल कॉलेज जाते समय मयंक को अपने साथ ले जाना क्योंकि वो कह रहा था की उसको यहाँ का बस रूट अभी पता नही है. इस बातचीत में मेरे लिए दो ख़ुशी की बाते थी. एक तो मेरा कॉलेज सिर्फ लडको का कॉलेज है और मेरे मोहल्ले में भी ज्यादा लडकिया नहीं थी इसीलिए मैं रुची की खबर से थोडा खुश हुआ क्योंकि जब से मैंने मस्तराम पढना शुरू किया था बस एक ही सपना था की कैसे भी किसी लौंडिया की मिल जाए. और दूसरा मुझे घर का सामान लेने काफी दूर जाना पड़ता था अगर बगल में दुकान खुलेगी तो मुझे ज्यादा दौड़ना नहीं पड़ेगा.
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अगले दिन मैं तैयार होकर कॉलेज के लिए निकला और उनके घर जाकर बेल बजायी. आंटी ने दरवाजा खोला तो मैंने देखा की वो एक ३८-४० साल की काफी खूबसूरत महिला थी. रंग एक दम दूध जैसा. लम्बे काले बाल. गुलाबी रंग की साढ़ी में वो बहुत कमाल लग रही थी. मैंने उन्हें बताया की मैं बगल के घर में रहता हूँ और मयंक को साथ ले जाने के लिए आया हूँ. उन्होंने कहा की मयंक तैयार हो रहा है. ५ मिनट वेट कर लो मैं भेजती हूँ. और वो अन्दर चली गयी. मैंने सोचा की जब माँ ही ऐसा माल है तो बेटी तो और भी कमाल होगी. उन्होंने दरवाजा बंद नहीं किया था और तभी मैंने पहली बार रुची को देखा. वो शायद नहाकर अपने रूम में जा रही थी. एक झलक में ही उसने मुझे पागल कर दिया. ख़ूबसूरत तो वो थी ही पर उसका कटीला बदन और भी क़यामत था. उसकी लचकती कमर का तो मैं उसी दिन से दीवाना हो गया. मैं उसके ख्यालों में खोया था की तभी एक लड़का बाहर निकला और मुझसे हाथ मिलाता हुआ बोला की मैं ही मयंक हूँ. मैंने उसे गौर से देखा. स्मार्ट लड़का था. शायद जिम भी जाता होगा क्योंकि उसकी बॉडी काफी फिट थी पर उम्र में वो मुझे थोडा बड़ा लग रहा था. मैं बोला चलो वरना कॉलेज में देर हो जाएगी और हम दोनों बस स्टैंड के लिए चल दिए. अब तो हमारा यही रूटीन था. मयंक अलग सेक्शन में था और मैं अलग सेक्शन में पर हम दोनों साथ ही कॉलेज जाते तो कुछ ही दिनों में हमारी अच्छी दोस्ती हो गयी. तभी मुझे पता चला की मयंक मुझसे 2 साल बड़ा है और एक साल बीमार होने के कारण और एक बार फेल होने की वजह से उसके दो साल ख़राब हो गए और वो मेरी ही तरह १२वी क्लास में पढ़ रहा है. मुझे ये भी पता चला की ये दोनों आंटी अंकल के अपने बच्चे नहीं है बल्कि आंटी की बड़ी बहन के बच्चे है. एक एक्सीडेंट में आंटी की बड़ी बहन और जीजा की मौत हो गयी थी और इनके अपने कोई बच्चे नहीं थे इसीलिए आंटी ने इन दोनों को गोद ले लिया था. मयंक पढने में थोडा कमजोर था तो वो कॉलेज के बाद सीधा कोचिंग पढने चला जाता था और मैं अकेले घर लौट आता था. रुची की मेरी दीदी से अच्छी दोस्ती हो गयी थी और वो अक्सर दीदी से मिलने घर भी आती थी लेकिन रुची से मेरी दोस्ती तो दूर जान पहचान भी नहीं हो पाई थी. इसका एक कारण तो ये था की हमारे कॉलेज और रुची के कॉलेज का टाइम अलग अलग था. हम सुबह ८ से १२ कॉलेज जाते और १ बजे तक घर वापस आ जाते जबकि रुची १० बजे कॉलेज जाती और ४ बजे लौट कर आती थी. दीदी कॉलेज से शाम को ५ बजे तक आती थी और उसी टाइम मैं कोचिंग चला जाता था और ९ बजे तक लौटता था. रुची दीदी से मिलने ५ और ९ के बीच ही आती थी जब मैं घर पर नहीं होता था. मैंने सोचा की कुछ ही दिन में पेपर हो जायेंगे फिर छुट्टियों में २ महीने मैं घर पर ही रहूँगा. रुची वाला प्रोजेक्ट तभी पूरा किया जायेगा.
 
मुझे लगा जब ये खुल रहे है तो मुझे भी खुलना चाहिए. मैंने कहा, "आंटी की चूत आपको ही मुबारक हो, मुझे तो रुची की लेनी है. उसकी दिलवाओ". "ये लो इधर तुम मयंक की बहन की चूत के पीछे पागल हो और मयंक तुम्हारी बहन की लेने की फ़िराक में है. दोनों बहनों की अदला बदली कर लो" ओम भैया की ये बात सुन कर मुझे झटका लग गया. "आपसे ये किसने कहा, मयंक ने?". "उसने तो नहीं कहा पर बेटा ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते है. तुम तो झोला उठाकर कोचिंग चल देते हो. तुम्हे क्या पता की शाम को यहाँ क्या क्या होता है. कैसे मयंक बाबु छत पर टंगे रहते है तुम्हारी बहन की एक झलक पाने के लिए और हो भी क्यों न तुम्हारी बहन है भी तो १००% सोने की बेबी डॉल. अब तो जब रश्मि रुची से मिलने आती है तो थोड़ी बहुत बात भी कर लेती है मयंक से. थोडा अपनी गाड़ी को स्पीड दो वरना मयंक मारेगा झटके और तुम ताड़ने में ही अटके रहोगे". "क्या बकवास कर रहे हो" मैंने गुस्से से कहा. ओम भैया पर मेरे गुस्से का कोई असर नहीं हुआ. वो आराम से बोले, "भाई नाराज़ क्यों होते हो. हम जब आंटी की ले लेगे तो तुमको भी दिलवा देंगे. बाकी रुची कोई रांड तो है नहीं जो मेरे कहने से तुमको दे देगी. या तो खुद मेहनत करो या फिर मयंक के साथ मिल कर जैसा हमने कहा वैसा करो."
 
मुझे ओम की बात सुन कर बहुत गुस्सा आया. "छोडूंगा नहीं साले मयंक को. मुह तोड़ दूंगा मादरचोद का." मैंने गुस्से से कहा. ओम ने मुझसे कहा, "सोच लो मनीष भाई. अगर मयंक से लड़ाई कर लोगे तो रुची के सपने ही देखते रहोगे. हर लड़की किसी न किसी की बहन होती है. भाई तुम अगर उसकी बहन को चोदने की सोच सकते हो तो वो क्यो नहीं सोच सकता. खाली तुम ही खिलाडी हो क्या? मुझे तो लगता है तुम्हारी बहन भी मयंक को पसंद करती है. उससे गिफ्ट वगेरह भी लेती है. कही ऐसा न हो की तुम्हारे झगडे में मयंक का काम हो जाये और तुम्हारे साथ klpd हो जाए. अरे घर जाकर मेरी बात ठन्डे दिमाग से सोचना." मैं ओम की बात सुन कर चुप चाप वापस घर आ गया. मुझे ये भी समझ आ गया था की केवल मयंक ही नहीं ओम भी बड़ा खिलाडी आदमी है. अगर वो आंटी को चोद सकता है तो रुची और रश्मि दीदी को भी तो चोदने की फ़िराक में होगा. मैंने तय किया की मैं अभी मयंक से लड़ाई नहीं करूंगा क्योंकि रश्मि दीदी कॉलेज से शाम को ५ बजे घर आती है और ५.३० पर मम्मी भी लौट आती है तो मयंक को दीदी अकेले नहीं मिलने वाली और इतनी जल्दी वो और कुछ कर नहीं सकता. बस मुझे ये पक्का करना था की दीदी और मयंक का मामला कहा तक पंहुचा है. अभी दीदी के आने में १ घंटा बाकी था तो मैंने सोचा की दीदी के रूम में जाकर देखना चाहिए. हो सकता है की कहीं कुछ मिल जाए जिससे पता चले की क्या हो रहा है.

[size=large]मैं दीदी के कमरे में गया और पहली बार उनकी कपड़ो की अलमारी खोल के देखी. मेरा दिल धड़क रहा था. अलमारी में कागजो के नीचे मुझे एक थैंक यू कार्ड मिला. मैंने उसे पढ़ा तो वो मयंक ने ही दीदी को दिया था. उसमे मयंक ने दीदी को फ्रेंडशिप एक्सेप्ट करने के लिए थैंक्स बोला था. दीदी ने इस कार्ड को छिपा कर रखा था इसका मतलब दीदी को इतनी समझ तो थी की मयंक दोस्ती नहीं कुछ और करना चाहता है. मुझे दीदी के ऊपर भी थोडा गुस्सा आया की इसको भी बड़ी आग लगी है. मैंने थोडा और देखा तो मेरे हाथ में दीदी की स्किन कलर की ब्रा और पैंटी आ गयी. ये एक नेट वाली काफी स्टाइलिश ब्रा पैंटी थी. मैंने यू ही नंबर देखने के लिए उसे उठा लिया. ब्रा का नंबर ३४ था पर पैंटी पर कही नंबर नहीं लिखा था. मैं ध्यान से देखने लगा और अचानक ही देखते देखते मैं दीदी की पैंटी सूंघने लगा. मेरा लंड एकदम लोहे की रॉड की तरह खड़ा हो गया था. अचानक मैंने सोचा की मैं ये क्या कर रहा हूँ और दीदी के कपडे वापस रख कर उनके कमरे से बाहर आ गया. थोड़ी देर में घर की घंटी बजी. मैंने दरवाजा खोला तो सामने दीदी थी. आज पहली बार उनको देख कर मैं ये इमेजिन करने लगा की दीदी उस ब्रा पैंटी में कैसी दिखेगी. आज मैंने पहली बार दीदी के बदन की तरफ ध्यान दिया. मेरे दिमाग में बार बार ओम भैया के बात आ रही थी की तेरी बहन है भी तो सोने की बेबी डॉल. मैंने ये ख्याल अपने दिमाग से झटके और दीदी से कहा की मैं कोचिंग जा रहा हूँ और घर से निकल गया.[/size]
 
अगले दिन रोज की तरह मयंक और मैं कॉलेज के लिए घर से निकल पड़े. कल की बातों की वजह से मैं मयंक से बात नहीं कर रहा था. मयंक ने बस में मुझसे पुछा, "क्या बात है. आज बड़ा चुप चुप है." मैंने कहा "नहीं कोई ख़ास बात नहीं है." मयंक बोला "सुन आज कॉलेज छोड़ और मेरे साथ चल. तेरा मूड ठीक कर दूंगा." मैंने पुछा "कहा?" तो मयंक बोला "चल तो सही." और वो मुझे लेकर बस से उतर गया और एक सिनेमा हाल के सामने पहुच गया जहा मोर्निंग शो में एक इंग्लिश फिल्म चल रही थी. मयंक ने टिकेट खरीदी और हम दोनों अन्दर चले गए. मैंने डरते हुए मयंक से पुछा "यार अगर कोई जान पहचान का मिल गया तो?" मयंक बोला "पहली बार मोर्निंग शो देखने आये हो क्या? अरे अन्दर कोई किसी को नहीं पहचानता. जो दिखेगा वो भी तो फिल्म देखने ही आया होगा." मैंने पहली बार इतनी गरम फिल्म देखी थी वरना मैं तो अभी तक बस मस्तराम के ही भरोसे था. फिल्म के बाद मयंक बोला "मजा आ गया. आज तो इसी हेरोइन को याद करके मुठ्ठ मारेंगे. क्यों भाई." 

"बिलकुल भाई" मैंने जवाब दिया. वैसे तो मयंक से मेरी दोस्ती अच्छी थी पर हम एक दुसरे की नज़र में आज तक शरीफ बने थे. आज जब मयंक और मैंने वो शराफत का नकाब उतार फेका तो हमारे बीच ज्यादा पर्देदारी नहीं बची थी. मैंने मयंक से सीधे ही पूछ लिया "भाई कोई बोल रहा था की तुम मेरी बहन के बारे में कुछ गलत बोल रहे थे इसीलिए मेरा मूड कुछ ख़राब है." मयंक ये सुन कर थोडा चौंका तो पर फिर आराम से बोला "मैंने रश्मि के बारे में किसी से कोई गलत बात नहीं की. तुमने क्या सुना है." मैंने कहा "तुमने किसी से कहा है की वो तुम्हारी गर्ल फ्रेंड है." मयंक ने साफ़ मना कर दिया. वो बोला "मैंने किसी से ऐसा नहीं कहा. हां कभी कभी रश्मि रुची से मिलने घर आती है तो बात हो जाती है. इसीलिए हमारी थोड़ी दोस्ती जरूर है पर इसमें तुम्हे परेशान होने वाली क्या बात है." 
 
मैंने मौके पर चौका मार दिया और बोला "अगर मेरी रुची से दोस्ती होती तो तुम्हे कोई परेशानी नहीं होती क्या?" "इसमें परेशानी की क्या बात है. अगर तुम्हे विश्वास नहीं है तुम आज ही शाम को घर आना. मैं खुद तुम्हारी रुची से दोस्ती करवा दूंगा." मुझे लगा की या तो मयंक बहुत बड़ा हरामी है या फिर वो ओम झूठ बोल रहा था पर तभी मुझे याद आया की दीदी की अलमारी में वो कार्ड जिस पर मयंक का नाम था. नार्मल दोस्ती में कौन लड़का लड़की को कार्ड देता है. मैंने बोला "शाम को तो मैं कोचिंग जाऊँगा. कल सन्डे है. कल सुबह मेरी रुची से दोस्ती करवा देना." मयंक सोच में पढ़ गया, उसने सोचा नहीं था की मैं सच में उससे कहूँगा की मेरी दोस्ती उसकी बहन से करवा दो. फिर वो बोला "ठीक है. आ जाना. अब मैं जाता हूँ. कोचिंग में देर हो जाएगी." मैं वापस घर लौट आया. मैं थोडा जल्दी घर पहुच गया था. मैंने देखा की ओम की दुकान बंद है. मुझे थोडा अजीब लगा की ये दुकान बंद करके कहा चला गया. तभी मेरे दिमाग में ख्याल आया की कहीं ये आंटी के साथ तो नहीं लगा हुआ. 

मैं फटाफट ताला खोल कर घर में आया और छत के रस्ते से मयंक के घर अन्दर चला गया. मेरी फट तो बहुत रही थी पर मैंने सोचा की जो होगा देखा जायेगा. मैं दबे कदमो से नीचे आया तो मैंने देखा की आंटी के बेडरूम के दरवाजा बंद था. मैं धीरे से दरवाजे से कान लगा कर सुनने लगा. मेरा शक सही निकला अन्दर से आंटी की हँसने की आवाज आ रही थी. तभी ओम की आवाज आई, "मेरी जान. अब और न तड़पाओ". मैं बिलकुल सही समय पर पंहुचा था अभी कांड शुरू नहीं हुआ था. मैंने सोचा की सुबह मयंक ने एक फिल्म दिखाई और अब मयंक की मम्मी दूसरी फिल्म दिखाने वाली है. मैंने फ़ौरन खिड़की के पास आया और अन्दर देखा. अन्दर ओम के हाथ में आंटी की साड़ी और ब्लाउज था और आंटी ब्रा और पेटीकोट में बेड पर लेटी थी.
 
"तड़प तो मैं रही हूँ. आओ आकर मेरी प्यास बुझाओ." आंटी ने बड़े फ़िल्मी अंदाज से कहा. ओम आंटी की साड़ी एक तरफ फेंक कर आंटी के ऊपर कूद गया. उसने आनन फानन में आंटी का पेटीकोट और ब्लाउज ब्रा समेत उतार फेंका. आंटी ने पैंटी नहीं पहनी थी और उनकी चूत पर एक भी बाल नहीं था. ओम से रहा नहीं गया और उसने अपना मुह आंटी की दोनों टांगो के बीच घुसा दिया.

ओम जोर जोर से आंटी की चूत चाट रहा था और आंटी बुरी तरह सिसकार रही थी. मैं जिंदगी में पहली बार एक नंगी औरत लाइव देख रहा था वरना इससे पहले तो मैंने सिर्फ फ़ोटो में और आज सुबह फिल्म में ही औरतों को देखा था. वासना से मेरा बुरा हाल हुआ जा रहा था तभी शायद ओम ने आंटी की चूत में काटा तो आंटी जोर से चिल्ला पड़ी.

जल्दी से ओम ने अपना हाथ उनके मुँह पर रख दिया और बोला "चिल्ला क्यों रही हो? कोई सुन लेगा तो?

आंटी बोली, "ऐसे करोगे तो चिल्लाऊँगी ही. ऐसा तो शादी के इतने सालों में आज तक कभी इन्होने भी नहीं किया."

तो ओम बोला "ठीक है जानेमन अब आराम से करूंगा."

"आराम से करवाने के लिए तो ये है ही फिर तुमसे करवाने का क्या फायदा." आंटी ने मुस्कुराते हुए कहा और ओम का मुह फिर से अपनी चूत की तरफ धकेल दिया और ओम जोर जोर से आंटी की चूत चाटने लगा.

आंटी फिर से सिसकारियाँ भरने लगी "आआह्ह्ह्ह्ह् य्य्य्याआ. हां ऐसे हीईईईइ. फाड़ मत देनाआआआआ. वरना इनको क्या कहूँगी. आआअह्ह्ह. खुश कर दो तो रोज दूँगी... मैं कही भागी नहीं जा रही हूँ.... हाआअ आआआह्ह्ह्ह. मैं गयीईई. ईईई.
[size=large]आंटी का बदन सूखे पत्ते जैसा कापने लगा. शायद वो झड गयी होंगी. फिर ओम ऊपर आ कर आंटी को बोला "ले अब मुँह खोल… और चूस इसे"
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ओम ने अपना लंड का लण्ड आंटी के मुँह में ठूस दिया और वो उसे मज़े से चूसने लगी. ओम का लंड बहुत बड़ा नहीं था जैसा की मैं मस्तराम की किताबो में देखता था... खड़ा होकर करीब ६ इंच का रहा होगा पर आंटी के मुह में पूरा नहीं जा पा रहा था. मैंने सोचा फिरंगी औरतें 9-9 इंच के हथियार अपने मुह में कैसे ले लेती हैं और ये ओम ६ इंच का लंड लेकर इतना उछल रहा था हालाँकि मेरा खुद का लंड तो उससे भी छोटा था पर मुझे लगता था की जब मेरी उम्र बढ़ेगी तो मेरा लंड भी ८-9 इंच का हो जायेगा जैसा की ब्लू फिल्मो में लडको का दिखाते है. मैं इसी तरह की फालतू बातें सोच रहा था की तभी आंटी बोली, "तुम्हारा निकल रहा है"

"पी जा उसे, बिलकुल बर्बाद नहीं होना चाहिए" ओम ने लंड वापस आंटी में मुह में डाल दिया. आंटी ने सारा का सारा माल पी लिया और चाट चाट के लंड साफ़ भी कर दिया. फिर आंटी ने ओम को नीचे कर दिया और खुद ऊपर लेट कर ओम के होटों को कस के चूसने लगी. कम से कम दस मिनट तक चूमा चाटी का कार्यक्रम चला.

अब मेरे लण्ड की भी बुरी हालत हो रही थी पर मैंने सोचा की पूरा देखने के बाद ही मुठ मारूंगा. अब आंटी फिर से नीचे आ गई और ओम ने उनकी टाँगे उठा के अपने कंधे पर रखी और अपना एक झटके में अपना लण्ड आंटी की चूत में डाल दिया. आंटी के मुह से एक सिसकी निकल गयी. ओम का पूरा लंड आंटी की चूत के अन्दर गायब हो गया फिर ओम ने झटके लगाना शुरू किये. नीचे से आंटी चूतड़ उठा-उठा कर साथ दे रही थी. दोनों खेले खाए लोग थे. बहुत ही रिदम में चुदाई शुरू हो गयी थी. ओम ने धक्को की रफ़्तार धीरे धीरे बढ़ाना शुरू किया और कमरा थापों से गूजने लगा.

[size=large]फिर से आंटी की आवाज़े निकलना शुरू हो गई- धीईरे……. धीईर्र……!
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करीब बीस मिनट की जम के चुदाई के बाद ओम ने अपना माल दुबारा से आंटी की चूत में ही निकाल दिया और वो आंटी के ऊपर ही ढेर हो गया.. आंटी भी शांत पड़ गयी तो मैं समझ गया की दोनों झड़ गए है.

फिर कुछ देर बाद ओम आंटी के ऊपर से हटा तो आंटी बोली की अन्दर क्यों निकाला. कही कुछ हो गया तो? ओम बोला कुछ नहीं होगा मेरी जान. तुम ही तो कह रही थी की तुम्हारे बच्चे नहीं होते.

अरे वो तो इनकी वजह से नहीं होते. आंटी बोली.

ठीक है. आगे से कंडोम लगा के करेंगे. अभी तुम गोली खा लेना.

आगे से क्या मतलब? आंटी बोली.

क्यों मजा नहीं आया क्या? अंकल ज्यादा मजा देते है क्या? ओम ने पुछा.

बहुत मजा आया. अगर ऐसा मजा इन्होने दिया होता तो तुम्हारा नंबर ही न लगता. आंटी हँसते हुए बोली और दोनों वापस कपडे पहनने लगे और मैं धीरे से वापस अपने घर आ गया. मेरा लंड फटा जा रहा था तो मैंने आंटी का नाम लेकर फटाफट मुठ मारी. थोड़ी देर बाद मुझे लगा की मुझसे गलती हो गयी अगर मैं उस समय कमरे में घुस जाता तो आंटी को मुझसे भी चुदवाना ही पड़ता. मैंने भी ठानी कि रुची तो ठीक है पर पहले एक बार तो आंटी की चूत जरुर मारूँगा.

मुझे पता चल गया था की अंकल आंटी को संतुष्ट नहीं कर सकते इसलिए ओम अब तो रोज़ आंटी की लेगा तो ये मौका मुझे दुबारा भी मिल जायेगा बस मुझे थोडा चौकन्ना रहना होगा और मौके पर थोड़ी हिम्मत दिखानी होगी...
[size=large]रात भर आंटी मेरे सपने में आती रही. अगले दिन १० बजे सुबह मैं नहा धोकर मयंक के घर पहुच गया पर अब मेरा मकसद रुची से दोस्ती से ज्यादा आंटी के हुस्न का दीदार करने का था. सन्डे था तो ओम की दुकान बंद थी. सन्डे को वो दुकान देर से खोलता था और जल्दी बंद करता था. मैंने घंटी बजाई तो मयंक ने दरवाजा खोला और मुझे अन्दर अपने कमरे में ले गया पर मुझे आंटी या रुची नहीं दिखी. मयंक बोला की यार आ रहे थे तो रश्मि को साथ लेते आते. तुम तो रुची से बातें करोगे और मैं बोर हो जाऊँगा.
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मैं समझ गया की ये सीधे सीधे एक हाथ ले और एक हाथ दे बोल रहा है पर फिलहाल मेरा ध्यान रुची से ज्यादा आंटी पर था. मैंने बोला दीदी सन्डे को देर तक सोती है. अभी तक तो उसने ब्रेकफास्ट भी नहीं किया है तो कैसे बुला लाऊं. मैंने बहाना मारा और पूछ ही लिया यार आंटी नहीं दिखाई दे रहीं. मयंक बोला मम्मी पापा सुबह सुबह गाँव गए है. रात तक वापस आएंगे. तभी तो बोल रहा हूँ की जाकर रश्मि को भी ले आओ.

आंटी घर में नहीं है ये सुन कर मेरा मूड थोडा ख़राब तो हुआ पर ये साला मयंक मेरी बहन के पीछे ही पड़ा हुआ है ये सोच कर मूड ज्यादा ख़राब हो रहा था. पर साला मयंक भी घाघ था. बोला अच्छा तुम रुको मैं रुची से कहता हूँ और वो वही से चिल्ला कर रुची से बोला की सुनो रुची, देखो मनीष आया है. तुम रश्मि को भी फ़ोन करके बुला लो तो हम सब मिल कर टाइम पास करेंगे.

[size=large]बगल वाला रूम ही रुची का था. उसने भी वही से आवाज लगाई की ठीक है भैया. अभी फोन करती हूँ. इसके बाद मयंक ने जो बोला तो मेरा जलता हुआ दिल फिर से खुश हो गया. वो रुची से बोला की फोन करके तुम भी मेरे कमरे में ही आ जाओ. आज तो मनीष ख़ास तुमसे ही मिलने आया है. रुची बोली ठीक है भैया मैं बस नहा कर १० मिनट में आई.
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[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मैं बेसब्री से १० मिनट ख़तम होने का इंतज़ार करने लगा पर मेरे इंतज़ार से पहले मयंक का इंतज़ार ख़तम हो गया और रश्मि कमरे में दाखिल हो गयी. वो शायद छत से ही आ गयी थी क्योंकि किसी ने घंटी तो बजाई नहीं. मैंने गौर से देखा की दीदी ने सुबह वाले कपडे बदल कर स्कर्ट टॉप पेहन लिया है और हलकी ली लिपिस्टिक के साथ हल्का मेकअप भी किया था. वैसे तो दीदी कहीं पार्टी वार्टी में जाने के लिए ही ऐसा मेकअप करती थी पर यहाँ आने के लिए भी मेकअप. बहुत आग लगी है मेरे दिल से आवाज आई. उसको देखते ही मयंक खड़ा हो गया और बोला यहाँ बैठो रश्मि. दीदी मयंक की चेयर पर बैठ गयी. मयंक साथ की टेबल पर ही बैठ गया. मैंने देखा की ऐसे बैठने से मयंक को दीदी के टॉप के गले के अन्दर जरूर दिखाई दे रहा होगा. अगर दीदी ने ब्रा नहीं शायद चुचिया भी दिख जाएँगी. मैं ध्यान से देखने लगा की दीदी ने ब्रा पहना है या नहीं. दीदी ने ब्रा पहना हुआ था पर इन ख्यालों ने मेरे लंड में हल्का तनाव ला दिया.

तभी दीदी ने पुछा मुझे बुला कर रुची कहाँ चली गयी.

आ जाएगी. कभी हमसे भी बात कर लिया करो. मयंक ने मुस्कुराते हुए कहा.

मेरे सामने मयंक दीदी से ऐसे बोलेगा दीदी को ये उम्मीद नहीं थी. वो अचानक थोडा घबरा गयी. मुझे भी अजीब लगा की साला मेरे सामने ही मेरी बहन पर फुल लाइन मार रहा है. मयंक भी दीदी की दुविधा समझ गया. मुझसे बोला अरे मनीष देखो तो जाकर रुची कहा है. उसको बता दो की रश्मि आ गयी है.

हम दोनों को पता था की रुची नहा रही है. अब मयंक तो मुझे ऑफर दे रहा था की जाकर बाथरूम में झाकूँ जहाँ उसकी बहन नंगी नहा रही होगी और तब तक वो रश्मि के साथ कुछ बात कर सके. मुझे क्या ऐतराज हो सकता था. मैं जल्दी जल्दी बाहर निकला और बाथरूम की तरफ बढ़ा. बाथरूम की खिड़की के पास कुर्सी रख कर जब मैंने अन्दर देखा तो klpd हो चुकी थी यानि की रुची नहा चुकी थी और गुलाबी स्कर्ट और ब्लैक ब्रा में शीशे के सामने खड़े होकर अपने बाल पोछ रही थी. रुची की चुंचिया दीदी से छोटी पर थोड़े बड़े अमरुद के साइज़ की थी. मैंने सोचा की भागते भूत की लंगोटी ही सही. पूरा न सही रुची को अधनंगा तो देख ही लिया है. मैं धीरे से बाथरूम के दरवाजे पर आया और दरवाजा नॉक करके बोला की रुची रश्मि आ गयी है.

रुची बोली ५ मिनट में आई. और मैं दबे कदमो वापस मयंक के कमरे की तरफ वापस आ गया और दरवाजे के पास खड़े होकर अन्दर की बाते सुनने लगा...
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[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=x-small]"पर तुमने उसके सामने ऐसे क्यों बोला." दीदी ने थोडा गुस्से से कहा. शायद वो मेरे सामने मयंक ने उनसे जो फ़्लर्ट किया उससे नाराज थी.
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"अब प्यार किया तो डरना क्या." मयंक ने जवाब दिया.



साला एक मैं ही स्लो मोशन में चल रहा हूँ. उधर ओम भी बाज़ी मार गया और अब ये मयंक भी सीधे सीधे दीदी से प्यार मोहब्बत की बात कर रहा है. लगता है इसने दीदी को पहले ही पटा लिया है और मेरे सामने नाटक कर रहा था.



"अभी मैंने तुम्हारा प्रपोजल एक्सेप्ट नहीं किया है." दीदी ने थोडा नरम लहजे में बोला.



तो साले ने दीदी को प्रोपोसे भी कर रखा है पर दीदी ने जवाब नहीं दिया. पर दीदी की बॉडी लैंग्वेज से जब मुझे पता चल रहा है तो साले मयंक को तो पक्का पता होगा की दीदी का जवाब क्या है.



"रिजेक्ट भी तो नहीं किया है." मयंक ने जवाब दिया, "और मनीष से क्या शरमाना. वो तो खुद रुची से दोस्ती करना चाहता है. और मैं उसकी दोस्ती रुची से करवा इसीलिए रहा हूँ ताकि हमें उसकी तरफ से कोई चिंता न रहे."



"देखो मैं तुम्हारी जैसे मॉडर्न नहीं हूँ और फिर से मनीष के सामने मुझसे ऐसे बात मत करना. वरना प्रपोजल रिजेक्ट भी हो सकता है." दीदी ने अपनी असहजता बताई.



"तो ठीक है मैं अभी मनीष और रुची को दुसरे कमरे में भेज दूंगा. फिर हम दोनों यहाँ बैठ कर आराम से बात करेंगे." मयंक ने कहा.



"पागल हो क्या. मनीष क्या सोचेगा की दीदी मयंक से क्या बात कर रही होगी." दीदी ने ऐतराज किया.



"वही जो वो रुची से करेगा" मयंक ने जवाब दिया.



"मैंने कहा न की मैं तुम्हारे जैसे मॉडर्न नहीं हूँ. हम सब एक साथ ही बैठेंगे." दीदी ने बोला.


[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=x-small]तभी बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई तो मैं कमरे के अन्दर आ गया और बोला की रुची अभी 2 मिनट में आ रही है. मेरे बोलते बोलते रुची कमरे में आ भी गयी. हम सब साथ बैठ गए और बातें करने लगे. दीदी ने मयंक को अल्टीमेटम दे दिया था तो उसने दुबारा ऐसे वैसी हरकत नहीं की. कुल मिला कर हम सब पूरे दिन फालतू की बातें करते रहे मगर एक अच्छी चीज ये हुई की मेरी रुची से बातचीत हो गयी और आगे से मैं उसके साथ कभी भी डायरेक्ट बात करने की हालत में आ गया था.
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पर मैं रुची की तरफ उस तेज़ी से नहीं बढ़ पा रहा था जैसे की मयंक ने दीदी के साथ दिखाई थी यानी मैंने अभी उसको प्रोपोस नहीं किया था मामला मेरी तरफ से दोस्ती पर ही अटका था. एक दो बार मैंने कोशिश की भी की बात इधर उधर घुमा कर प्यार मोहब्बत तक ले जाऊं पर रुची भी अपने भाई की तरह चालाक लौंडिया थी. वो उल्टा मुझे ही घुमा देती और जब बात प्यार मोहब्बत तक नहीं पहुच पा रही थी तो चुदाई तो बहुत दूर की बात थी.

इधर मैंने मयंक और दीदी पर भी कड़ी निगरानी रखी थी जिससे वो दीदी के साथ कुछ कर न पाए और मैं अपनी इस कोशिश में कामयाब भी हुआ था. हम लोगों की गर्मी की छुट्टियाँ भी शुरू हो गयी थी और मयंक रुची के साथ कुछ दिनों के लिए अपनी नानी के यहाँ चला गया. अब मुझे दीदी की निगरानी से कुछ फुर्सत मिली तो मैं सोचा वापस ओम और आंटी पर लगा जाए. शायद वही कुछ मिल जाए और दो दिन बाद ही मैंने देखा की ओम की दुकान दोपहर में बंद है. मैं समझ गया की आंटी अकेले घर पर ओम के साथ मजे ले रही होगी. मैंने हिम्मत की और उनकी छत पर कूद गया. मैंने तय कर लिया था की आज जब ओम आंटी पर चढ़ेगा तो मैं भी कमरे में घुस जाऊँगा फिर जो होगा देखा जायेगा. पर असलियत में जो हुआ वो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था.
 
मैं धीरे धीरे नीचे आया. पूरे घर में सन्नाटा था. मैंने आंटी के बेडरूम में झाँका. बेड खाली था. मुझे लगा की घर में कोई नहीं है पर ओम की दुकान तो बंद है तो वो और आंटी यही कहीं होंगे. मैं डरते डरते बाकि के कमरे भी देखने लगा तभी अचानक मुझे बाथरूम से शावर की आवाज आई. मैं धीरे से उसी खिड़की के पास आ गया जिससे मैंने रुची को देखा था.

अन्दर का नज़ारा बहुत बेहतरीन था. आंटी अन्दर एकदम नंगी होकर शावर ले रही थी. वो लम्बे खुले बाल, चूचों पर बहता पानी, वो अपनी झांटों पर से हेयर रिमूवर साफ़ कर रही थी पर तभी मेरा थोडा बैलेंस बिगड़ा और मेरा हाथ खिड़की से टकराया. जब तक मैं भागता तभी आंटी ने खिड़की खोल दी. वो सामने मुझे देख कर एकदम चौंक गयी. मैं वापस छत की तरफ भागा पर तभी आंटी चिल्लाई. खबरदार जो भागे. वही खड़े रहो वरना अभी तुम्हारे पापा को फ़ोन करके बोल दूँगी.

मैं वैसे ही पसीना पसीना हो गया था. आंटी की धमकी से मेरे पैर वहीँ जम गए. मैंने सोचा ये साला ओम कहाँ मर गया. यहाँ तो आंटी अकेले ही है. ५ मिनट बाद आंटी कपडे पहन कर वापस निकल आई. और मेरे पास आकर बोली. अन्दर कैसे आये.

"जी छत से. मयंक को ढूढ़ रहा था." मैंने जवाब दिया.

आंटी चिल्लाई, "शर्म नहीं आती झूठ बोलते हो. तुम्हे अच्छी तरह पता है की मयंक नानी के यहाँ गया है. मुझे नहाता हुआ देख रहे थे. चलो तुम्हारे घर में बताती हूँ"
[size=large]मेरी फट के हाथ में आ गयी. मुझे और कुछ समझ नहीं आया तो मैंने भी बोल दिया की "ठीक है फिर मैं भी अंकल को बोल दूंगा."
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आंटी ने मुझे अजीब नजरो से घूरते हुए कहा. "क्या बोल दोगे."

"आपके और ओम भैया के बारे में." मैंने दिल की धडकनों को काबू करते हुए कहा.

"क्या बकवास कर रहे हो. क्या कहा है ओम ने मेरे बारे में?" आंटी ने सकपकाते हुए कहा.

मुझे लगा शायद जान बच जाये. "मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा. मैंने सब अपनी आँखों से देखा है." मैंने जवाब दिया.

"क्या देखा है." आंटी की आवाज ठंडी पड गयी.

मैंने सोचा की अब आर या पार. मैंने ब्लफ मारते हुए कहा. "जब पहली बार ओम ने आपको उस कमरे में चोदा था तब से अभी तक आप लोगो के बीच जो भी हुआ सब देखा है. ओम दोपहर में दुकान बंद करके जो आपके साथ..."

"छि छि. ये कैसी गन्दी बातें करते हो. ये भाषा किसने सिखाई." आंटी ने मुझे रोकते हुए बोला.

[size=large]"जी आप कर सकती है और मैं कह भी नही सकता." मैंने भी अब पीछे न हटने की कसम खा ली थी.[/size]
[size=large]"अच्छा ठीक है. जाओ. मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी और तुम भी नहीं कहना". आंटी ने मुझसे कहा.
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पर यही तो मौका था. ये गया तो हमेशा के लिए मौका गया क्योंकि आगे से आंटी सतर्क हो जाएगी. इसीलिए मैंने बोला, "नहीं कहूँगा पर आपको मेरे साथ भी एक बार..."

"चुप रहो. एक तो मैं तुमको जाने दे रही हूँ. तुमको क्या लगता है की जब मैं उनको बताऊंगी की तुम मुझे नहाते देख रहे थे तो उसके बाद बी वो तुम्हारी बात पर विश्वास कर लेंगे. चुपचाप चले जाओ वरना सच में तुम्हारे पापा को फ़ोन कर दूँगी." आंटी ने गुस्से से कहा.

"कर दीजिये." मैंने आराम से कहा. "और सोचिये की अगर एक परसेंट भी अंकल ने मेरी बात पर विश्वास कर लिया तो आपका क्या होगा. इसीलिए कह रहा हूँ और वैसे भी आपको क्या फरक पड़ता है. जैसे ओम वैसे मैं."

"तुम अभी बच्चे हो." आंटी ने शायद मन में मेरी बात पर गौर किया था.

मैंने हिम्मत करके फिर से बोला, "बिना मौका दिए ये आप कैसे कह सकती है."

[size=large]आंटी ने थोड़ी देर कुछ सोचा फिर मेरे पास आई और बोली, "ठीक है. चल आज मैं तुझे मौका देकर भी देख लेती हूँ."
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