प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

hotaks444

New member
Joined
Nov 15, 2016
Messages
54,521
तीसरी कसम
प्रेम गुरु की अनन्तिम रचना
हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है
बाद मुद्दत के होता है चमन में दीदा-ए-वार पैदा

ओह... प्रेम ! क्या तुम नहीं जानते प्रेम अँधा होता है। यह उम्र की सीमा और दूसरे बंधन स्वीकार नहीं करता। इवा ब्राउन और अडोल्फ़ हिटलर, राहब (10) और जेम्स प्रथम, बित्रिश (12) और दांते, जूली (32) और मटूक नाथ, संध्या और शांताराम, करीना और सैफ उम्र में इतना अंतर होने के बाद भी प्रेम कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकती ? मिस्र के बादशाह तो लड़की के रजस्वला होने से पहले ही उनका कौमार्य लूट लिया करते थे। इतिहास उठा कर देखो कितने ही उदाहरण मिल जायेंगे जिनमें किशोर होती लड़कियों को कामदेव को समर्पित कर दिया गया था। मैं जानती हूँ यह सब नैतिक और सामाजिक रूप से सही नहीं होगा पर सच बताना क्या यह छद्म^ नैतिकता नहीं होगी ?
इसी कहानी में से................
प्रिय पाठको और पाठिकाओ,
मैं जानता हूँ आप सभी मेरी कहानियों का बड़ी शिद्दत^ से इंतज़ार करते हैं। आप सभी ने मुझे जो प्यार और इज्जत दी है मैं उसके लिए आप सभी का जीवन भर आभारी रहूँगा। पर अब मैंने कहानियाँ लिखना बंद कर दिया है। आप सभी ने मुझे बार बार पूछा है कि मैंने कहानियाँ लिखना और अपने प्रशंसकों के पत्रों का जवाब देना क्यों बंद कर दिया? आज मैं उसका जवाब अपनी इस अंतिम रचना के माध्यम से देने जा रहा हूँ। यह कहानी मेरी दूसरी सिमरन के बारे में है। मैंने उसकी कसम खाई थी कि अब मैं इसके बाद कोई और कहानी नहीं लिख पाउँगा। आप सोच रहे होंगे ऐसी क्या बात हो गई थी? आप इस कथा को पढ़ कर खुद ही समझ जायेंगे कि मेरा यह फैसला कितना जायज़ है।
भाग-1
उसने अपना नाम पलक बताया था और उम्र 18 साल। उसने बताया कि वह बी.कॉम के प्रथम वर्ष में पढ़ रही है और उसने अपनी एक सहेली के कहने पर मेरी कहानी "काली टोपी लाल रुमाल" और "आंटी गुलबदन और सेक्स (प्रेम) के सात सबक" पढ़ी जो उसे बहुत पसंद आई थी। वो अब मुझ से दोस्ती करना चाहती है।
यह कोई नई बात नहीं थी। मुझे इस किस्म के बहुत से पत्र आते ही रहते हैं। "जब वी मेट" कहानी के बाद तो बहुत से लड़कों ने लड़की के नाम से बने आई डी से मुझे मेल करके संपर्क बढ़ाने का प्रयास किया था। मेरा ख्याल था कि यह भी कोई सिरफिरा लड़का होगा और मुझे बेवजह परेशान कर रहा है। शायद वह सोचता होगा कि मैं किसी लड़की के नाम से बने आई डी से आये मेल का जवाब जल्दी दूँगा। हो सकता है उसे किसी लड़की या आंटी को पटाने के कुछ नुस्खे (टिप्स) चाहिए होंगे या फिर उसे भी किसी लड़की या आंटी का मेल आई डी या फोन नंबर चाहिए होगा ताकि वो भी कहानियों की तरह उनके साथ मज़े कर सके। मैंने उसके मेल का कोई जवाब नहीं दिया। पर जब उसके 3-4 संदेश और आये तो आखिर मैंने उसे जवाब दिया :
"देखो प्यारे लाल ! तुम्हें कहानी पसंद आई उसके लिए धन्यवाद पर तुम मुझ से दोस्ती क्यों करना चाहते हो?"
फिर उसका जवाब आया,"सर, आपकी मेल पाकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई। मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि आप मेरी मेल का जवाब देंगे। पर आपने मुझे ‘चाहती हो’ के बजाय ‘चाहते हो’ क्यों लिखा ? मैं तो लड़की हूँ ना?
चलो कोई बात नहीं, मुझे आपसे बहुत ही जरुरी सलाह लेनी है, प्लीज, सर मुझे मेल जरूर करना और अपनी एक फोटो भी भेजना। मैं आपके साथ बात भी करना चाहती हूँ आप अपना फोन नंबर भी मुझे जरूर देना।"
मैंने कोई जवाब नहीं दिया। मुझे शक था वो जरूर कोई लड़का ही है। बहुत से लड़के मेरा टेलीफोन नंबर मांगते ही रहते हैं। मेरे शक करने का एक वाजिब कारण और भी था। अमूमन शुरू शुरू में कोई भी लड़की ना तो अपनी फोटो दिखाना चाहती है और ना ही फोन पर बात करने के लिए राज़ी होती है। उसने भी अपना नंबर और फोटो देने के बजाय मेरा ही नम्बर और फोटो माँगा था।
उसके बाद 4-5 दिन उसका कोई मेल नहीं आया। मैं तो उस बात को भूल ही गया था। अचानक उस दिन मैंने नेट खोला तो P.r*****1992 के नाम से के नाम से एक चैट रिकुएस्ट आई।
"हेलो सर, आपने मुझे पहचाना?"
"नहीं, प्लीज अपने बारे में बताओ?"
"मैं पलक हूँ !"
"कौन पलक?"
"सर, मैंने आपको 3-4 मेल्स किये थे और आपने मेरे एक मेल का जवाब भी दिया था पर बाद में आपका कोई मेल नहीं आया ?"
"ओह.. हाँ बोलो प्यारेलाल, तुम किस बार में बात करना चाहते हो?"
"सर, मैंने बताया न मैं लड़की हूँ?"
"चलो मान लिया, अब बोलो?"
"सर, मुझे एक सलाह लेनी है !"
"ठीक है बोलो !"
"वो… मुझे शर्म आ रही है !"
"हाँ लड़कियों को ज्यादा ही शर्म आती है !"
"नहीं ऐसी बात नहीं है !"
"अब बिना बताये मैं कैसे समझूंगा?"
"सर, वो… वो.. अच्छा मैं बताती हूँ !"
"हम्म.."
"सर, पहले एक बात बताएँ?"
"क्या ?" मैंने उकता कर लिखा।
"आपके हिसाब से किसी लड़की के वक्ष का आकार कितना होना चाहिए?"
अज़ीब सवाल था, मैंने कहा,"मैं समझा नहीं !"
"ओह….. ?"
"तुम घुमा फिरा कर क्या पूछना चाहती हो साफ़ बोलो ना?" मैं किसी तरह उससे पीछा छुड़ाना चाहता था।
"ओके सर, वो.. वो... 18-19 साल की लड़की के वक्ष का आकार कितना होना चाहिए?"
"तुम्हारी उम्र कितनी है?"
"मैं 13 सितम्बर को पूरी 18 की हो गई हूँ !"
अब मेरे चौंकने की बारी थी। आप समझ ही गए होंगे आज से 18 साल पहले 13 सितम्बर के ही दिन मेरी सिमरन और 3 साल पहले मेरी मिक्की इस दुनिया से चली गई थी। कितना विचित्र संयोग था पलक का जन्म इसी तारीख को हुआ था। हे लिंग महादेव ! कहीं सिमरन ने ही पलक के रूप में दूसरा जन्म तो नहीं ले लिया?
"सर, क्या हुआ?"
"ओह... क.. कुछ नहीं !"
"तो बताइये ना !"
"ओह.. वो.. दरअसल..."
"क्या दरअसल?"
"दरअसल यह सब उसके डील-डौल, आनुवांशिकता (पारिवारिक पृष्ठभूमि), खानपान और रहन सहन पर निर्भर करता है। सभी की एक जैसी नहीं होती किसी के छोटे होते हैं किसी के बड़े !"
"क्या इनको बढ़ाया जा सकता है?"
"हाँ.. पर तुम यह सब क्यों पूछ रही हो?"
"सर, वो.. दरअसल मेरे स्तन बहुत छोटे हैं और मैं चाहती हूँ.. कि.. ?"
"ओह... अच्छा.. कितने बड़े हैं?"
"कैसे बताऊँ?"
"अपने मुँह से ही बता दो?" मैं अपनी हंसी नहीं रोक पाया।
"मैं 28 नंबर की ब्रा पहनती हूँ पर वो भी ढीली रहती है।"
"ओह... ऐसे नहीं !"
"तो कैसे समझाऊं?"
"संतरे जितने हैं?"
"नहीं !"
"आम जितने?"
"नहीं !"
"तो क्या नीबू जितने हैं?"
"नहीं उससे तो थोड़े बड़े ही लगते हैं.. हाँ लगभग चीकू या अमरुद जितने तो होंगे !"
"ठीक ही तो हैं !"
"नहीं सर, वो सुहाना है ना ? उसके तो बहुत बड़े हैं !"
"कौन सुहाना?"
"वो मेरे साथ पढ़ती है !"
"हम्म.."
"पता है? सारे लड़के उसी के पीछे लगे रहते हैं !"
"तो क्या तुम चाहती हो लड़के तुम्हारे भी पीछे लग जाएँ?"
"न... नहीं वो बात नहीं है सर, पर मैं चाहती हूँ कि मेरे वक्ष भी सुहाना के जैसे बड़े बड़े हो जाएँ !"
"पर तुम्हारे इतने छोटे भी नहीं हैं जो तुम इतना परेशान हो रही हो? तुम क्यों उन्हें बढ़ाना चाहती हो?"
"वो मैं आपको बाद में बताउंगी। आप मुझे बस इनको बड़ा करने का कोई तरीका समझा दो।"
"ठीक है, मैं बता दूंगा।"
"प्लीज सर, अभी बता दो ना?"
"अभी तो मैं थोड़ा व्यस्त हूँ, कल बात करेंगे।"
"आप नेट पर कभी (कब) आते हैं?"
"मैं दिन में तो व्यस्त रहता हूँ पर रात को 10:00 बजे के बाद नेट पर मिल सकता हूँ !"
"ठीक है मैं आज रात को आप से चैट करूँगी।"
 
उसके बाद तो अक्सर चैट पर उससे बातें होने लगी। उसके घर में बस उसकी दादी और पापा ही हैं। बड़ी बहन की शादी हो गई है। उसका एक बड़ा भाई भी है जो बंगलौर में रहकर इंजीनियरिंग कर रहा है। जब वो एक साल की थी तो उसकी मम्मी का देहांत हो गया था। सभी उसे मनहूस मानते हैं और वो एक अनचाही संतान की तरह है। उसे कोई प्रेम नहीं करता, कोई नहीं चाहता। उसकी एक बुआ भी है जो कभी कभी घर आ जाती है। पता नहीं उसे पलक से क्या खुन्नस है कि हर वक़्त उससे नाराज़ ही रहती है और दादी और पापा को भड़काती रहती है। उसके पापा किसी सर्वे कम्पनी मैनेजर हैं और अक्सर टूर पर जाते रहते हैं। वो तो अपने पापा के प्यार के लिए तरसती ही रहती है। एक नौकर और नौकरानी भी हैं जो दिन में काम करने आते हैं। वैसे घर पर वो अकेली बोर होती रहती है।
उसने शर्माते हुए मुझे बाद में बताया कि उसकी एक लड़के के साथ दोस्ती थी और उसके साथ उसने एक दो बार चूमा-चाटी भी की थी और एक बार तो उसने उसकी सु सु वाली जगह पर पैंट के ऊपर से हाथ भी फिराया और उसे भींच भी दिया था उस समय उसे बहुत शर्म आई थी। पर अब उसने किसी और लड़की के साथ अपना आंकड़ा फिट कर लिया है। इसका कारण उसने बताया कि उस लड़के को मोटे मोटे चूचे बहुत पसंद थे। चूंकि पलक के स्तन बहुत छोटे थे इसलिए उसने पलक की जगह उस लड़की के साथ अपना टांका भिड़ा लिया था। उसने एक और भी किस्सा बताया था कि उसकी बड़ी बहन के भी बहुत छोटे हैं और इसी कारण उसका पति उसे पसंद नहीं करता और उनकी शादी टूटने के कगार पर है। इस वजह से पलक बहुत परेशान रहती थी और इस फिराक में थी कि किसी तरह उसका आकार 28 से बढ़ कर 36 हो जाए।
आप अब मेरी हालत का अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मुझे मिक्की और सिमरन की कितनी याद आई होगी।
याद करें "तीन चुम्बन" और "काली टोपी लाल रुमाल"
 
हे लिंग महादेव ! अगर मुझे इन छोटे छोटे चीकुओं को चूसने या मसलने का एक मौका मिल जाए तो मैं तो सब कुछ छोड़छाड़ कर इनका अमृतपान ही करता रहूँ। एक बार तो मेरे मन में आया कि उसे कह दूँ कि मेरे पास आकर रोज़ इनकी मालिश करवा लिया करो या चुसवा लिया करो, देखना एक महीने में ही इनका आकार 32 तो जरूर हो जायेगा पर मैं जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। अभी उसने ना तो अपनी कोई तस्वीर ही मुझे भेजी थी और ना ही अपना फोन नंबर ही दिया था। हाँ उसने अपनी तनाकृति के बारे में जरूर बता दिया था। उसने बताया कि उसका क़द 5 फुट 2 इंच है और वज़न 48 किलो, छाती 28, कमर 23 और नितम्ब 32 के हैं।
हे भगवान् ! कहीं यह "दो नंबर का बदमाश" वाली निशा तो नहीं ?
कुछ दिनों बाद उसने अपना सेल नंबर भी मुझे दे दिया। अब हम दोनों देर रात गए तक खूब बातें किया करते। ऐसा नहीं था कि हम केवल उसके वक्ष की समस्या पर ही बातें किया करते थे, हम तो दुनिया-जहान के सारे विषयों पर बात करते थे। उसके प्रश्न तो हातिमताई के सवालों जैसे होते थे। जैसे टेस्ट ट्यूब बेबी, सरोगेट मदर, सुरक्षित काल, वीर्यपान, नसबंदी आदि आदि।
कई बार तो वो बहुत ही बेतुके सवाल पूछती थी, जैसे :
-चूत को चोदना कहते हैं तो गांड को मारना क्यों कहते हैं?
-आदमियों की भी माहवारी आती है क्या?
-बच्चे पेट से कैसे निकलते हैं?
-क्या सभी पति अपनी पत्नियों की गांड भी मारते हैं?
-क्या सच में गांड मरवाने वाली औरतों के नितम्ब भारी हो जाते हैं?
-क्या पहली रात में खून ना आये तो पति को पता चल जाता है कि लड़की कुंवारी नहीं है?क्या वीर्य पीने या चुम्बन लेने से भी गर्भ रह जाता है?
-प्रथम सम्भोग में जब झिल्ली फटती है तो कोई आवाज भी आती है?
-अब मैं उसे क्या समझाता कि चूत, गांड और दूध के फटने की आवाज़ नहीं आती।
उसने फिर बिना शर्माए बताया कि उसकी छाती का उठान 13-14 साल की उम्र में थोड़ा सा हुआ था। उसके जननांगों पर बाल तो 17 वें साल में जाकर आये थे। अब भी बहुत थोड़े से ही हैं और माहवारी (पीरियड्स) शुरू हुए एक साल हुआ है जो अनियमत है और कभी कभी तो दो ढाई महीने के बाद आता है। उन तीन दिनों में तो उसे पेडू और कमर में बहुत दर्द रहता है। जब मैंने उसकी पिक्की के भूगोल के बारे में पूछा तो वो इतना जोर से शर्माई थी कि मुझे उस रात उसके नाम की मुट्ठ लगानी पड़ी थी।
आप सोच रहे होंगे, यार, मुट्ठ मारने के क्या जरुरत पड़ गई?
मधु (मेरी पत्नी मधुर) आजकल लालबाई के लपेटे में है या नखरे करती है?
ओह...
माफ़ करना, मैं बताना ही भूल गया। इन दिनों मैं प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) पर अहमदाबाद आया हुआ था। 4 हफ्ते रुकना था। मधु तो इन दिनों जयपुर में अपने भैया और भाभी के पास छुट्टियाँ मना रही है।
अरे… मैं भी क्या फजूल बातें ले बैठा। मैं पलक की बात कर रहा था जिसने मेरी नींद और चैन दोनों उड़ा दिए थे। मैं इन दिनों बस उसी की याद में दिन रात खोया रहने लगा था।
उसे सेक्स के बार में ज्यादा कुछ पता नहीं था। बस सुहाना (उसकी सहेली) के कहने पर उसने मेरी एक दो कहानियाँ पढ़ी थी और वो यही सोचती रहती थी कि सभी को बड़े बड़े उरोज और नितम्ब पसंद होते हैं और सभी अपनी प्रेमिकाओं और पत्नियों की गांड भी मारते हैं। मैं तो उसकी इस मासूमियत पर मर ही मिटा।
मैंने जानता था यह लेट प्युबर्टी (देरी से यौवनारंभ) और हारमोंस की गड़बड़ी का मामला था। मेरा दावा है अगर वो 2-4 महीने तसल्ली से चुद जाए और वीर्यपान कर ले तो खिलकर कलि से फूल बन जायेगी। आप तो जानते ही होंगे कि छोटे छोटे उरोजों वाली कन्याएं ही तो आगे चलकर रति (सुन्दर कामुक स्त्री) बनती हैं।
उसने बूब्स की सर्जरी के बारे में भी पूछा था पर उसके साइड इफेक्ट जानकार वो थोड़ा निराश हो गई। मैंने उसे वक्ष-आकार बढ़ाने के सम्बन्ध में कुछ घरेलू नुस्खे (टिप्स) भी बताये थे, जैसे नहाने से पहले उरोजों पर रोज़ नारियल या जैतून (ऑलिव आयल) के तेल की मालिश, पौष्टिक आहार, विशेष व्यायाम और गर्म ठण्डे जल की थेरेपी (वाटर थेरेपी) आदि। उसे यह सब बड़ा झंझट वाला काम लगता था। वह तो कोई ऐसी दवाई चाहती थी जिसे खाने या लगाने से रातों रात उसके स्तन बढ़ जाएँ।
एक दिन मैंने उसे मज़ाक में कह दिया कि अगर तुम कुछ दिनों तक इनको किसी से चुसवा लो तो ये जल्दी बढ़ जायेंगे,
तो वो तुनक गई और नाराज़ होकर बोली,"हटो आगाह... खतोड़ा… हवे हु तमाई साथे क्यारे पण वात नहीं करू" (हटो परे.. झूठे कहीं के .. अब मैं कभी आपसे बात नहीं करूँगी)
मैं तो उसकी मासूमियत पर जैसे निस्सार ही हो गया था। वही मिक्की और सिमरन वाली मासूमियत और चुलबुलापन। बात बात पर रूठ जाना और फिर खिलखिला कर हंसने की कातिलाना अदा तो मुझे उस ऊपर कुर्बान ही हो जाने को मजबूर कर देता।
"देखो अगर तुम इस तरह गुस्सा करोगी तो रात को तुम्हारे सपनों में देवदूत आएगा और तुम्हें डराएगा !"
"कौन देवदूत?"
"देवदूत यानी फरिश्ता !"
"पण ए मने केम डरावशे?" (पर वो मुझे क्यों डराएगा?)
"तुम परी हो ना !"
"तो?"
"उसे मुस्कुराती हुई खूबसूरत परियाँ बहुत अच्छी लगती हैं और जब कोई परी गुस्सा होती है तो उसे बहुत बुरा लगता है !"
"हटो आघा ....कोई देवदूत नथी होतो" (हटो परे … कोई देव दूत नहीं होता) वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
"पलक तुम बहुत खूबसूरत हो ना इसलिए देवदूत तुम्हारे सपनों में जरूर आएगा और तुम्हें आशीर्वाद भी देगा !"
"तमे केवी रीते खबर के हु खूबसूरत (सुंदर) छु ??? तमे मने क्या जोई छे ?" (आपको कैसे पता मैं खूबसूरत हूँ? आपने मुझे अभी कहाँ देखा है?)
"ओह.. मैंने पराविज्ञान से जान लिया है !" मैंने हँसते हुए कहा।
"अच्छा जी ....?" इस बार उसने ‘हटो परे झूठे कहीं के’ नहीं बोला था।
उसकी मासूमियत देख कर तो मेरे होंठों से बस यही निकलता :
वो कहते हैं हमसे कि अभी उम्र नहीं है प्यार की
नादाँ है वो क्या जाने कब कलि खिले बहार की
 
नादाँ है वो क्या जाने कब कलि खिले बहार की
अब तो वो निसंकोच होकर सारी बातें करने लगी थी। मैंने उसे समझाया कि यह सब हारमोंस की गड़बड़ के कारण होता है। हमारा जैसा खानपान, विचार या सोच होगी उसी तरह हमारे दिमाग का कंप्यूटर हारमोंस छोड़ने का आदेश देता रहता है। अगर तुम मेरे साथ रोज़ कामोत्तेजक (सेक्सी) बातें करती रहो तो हो सकता है तुम्हारे भी हारमोंस बदलने लगें और तुम्हारे वक्ष व नितम्बों का आकार बढ़ कर 36 हो जाए। जब मैंने उसे बताया कि अगर चूचियों को रोज़ मसला जाए तो भी इनका आकार बढ़ सकता है तो वो ख़ुशी के मारे झूम ही उठी।
मैंने उसे कहा- तुम मुझे अपनी छाती की एक फोटो भेज दो तो मैं उन्हें ठीक से देख कर उचित सलाह दे सकता हूँ ताकि कोई साइड ईफेक्ट ना हों।
पर इतना जल्दी वो कहाँ मानने वाली थी, कहने लगी- आप तो उम्र में मेरे से बहुत बड़े हो, मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ? मुझे बहुत शर्म आती है ऐसी बातों से।
"पलक, तुम शायद सोचती होगी कि मैं तुम जैसी खूबसूरत लड़कियों के पीछे किसी यौन विकृत व्यक्ति की तरह घूमता फिरता रहता हूँ या किसी भी तरह उनका कोई नाजायज़ फायदा उठाने की कोशिश में रहता हूँ?"
"मैंने ऐसा कभी (कब) बोला ? नहीं सर, मैं आपके बारे में ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोच सकती। आप तो सभी की मदद करने वाले इंसान हैं। मैंने आपसे दोस्ती बहुत सोच समझ कर की है ना कि किसी मजबूरी के कारण !"
"पलक, यह सच है कि मुझे युवा होती लड़कियाँ बहुत अच्छी लगती हैं मैं उनमें अपनी सिमरन और मिक्की को देखता हूँ पर इसका यह मतलब कतई नहीं है कि मैं किसी भी तरह उनका यौन शोषण करने पर आमादा रहता हूँ।"
मैंने उसे समझाया कि अगर वो वास्तव में ही अपने वक्ष और नितम्बों को बढ़ाना चाहती है तो उसे यह शर्म छोड़नी ही पड़ेगी तो वह मान गई। मैंने उसे यह भी समझाया कि डाक्टर और गुरु से शर्म नहीं करने चाहिए। अब तुम अगर सच में मेरी अच्छी शिष्य बनाना चाहती हो और मेरे ऊपर विश्वास करती हो तो अपने वक्ष की फोटो भेज दो नहीं तो तुम जानो तुम्हारा काम जाने।
थोड़ी ना-नुकर के बाद वो मान गई और उसने मोबाइल से अपने वक्ष की दो तीन तस्वीरें उतार कर मुझे भेज दी। पर साथ में यह भी कहा कि मैं इन तस्वीरों को किसी दूसरे का ना दिखाऊँ।
हे भगवान ! गुलाबी रंग के दो चीकू जैसे उरोज और उनका एरोला कोई एक रूपए के सिक्के जितना बड़ा गहरे लाल रंग का था। बीच में चने के दाने से भी छोटी गुलाबी रंग की घुन्डियाँ !
या खुदा ! अगर इनको रसगुल्लों की तरह पूरा मुँह में लेकर चूस लिया जाए तो बंदा जीते जी जन्नत में पहुँच जाए।
कभी कभी तो मुझे लगता जैसे मेरी मिक्की फिर से पलक के रूप में दुबारा आ गई है। मैं तो पहरों आँखें बंद किये यही सोचता रहता कि अभी पलक आएगी और मेरी गोद में बैठ जाएगी जैसे कई बार मिक्की अपने दोनों पैरों को चौड़ा करके बैठ जाया करती थी। फिर मैं हौले-हौले उसके चीकुओं को मसलता रहूँगा और उसके कमसिन बदन की खुशबू से रोमांचित होता रहूँगा। कई बार तो मुझे लगता कि मेरा पप्पू तो पैंट में ही अपना सिर धुनते हुए ही शहीद हो जाएगा।
मैंने एक दिन फिर से उसे बातों बातों में कह दिया- पलक, अगर तुम कहो तो मैं इन्हें चूस कर बड़ा कर देता हूँ।
मेरा अंदाज़ा था कि वो शरमा जायेगी और सिमरन की तरह तुनकते हुए मुझे कहेगी 'छट… घेलो दीकरो !'
पर उसने उसी मासूमियत से जवाब दिया,"पण तमे तो भरतपुर माँ छो तो अहमदाबाद केवी रीते आवशो?" (पर आप तो भरतपुर में हो, आप अहमदाबाद में कैसे आयेंगे?)
सच कहूँ तो मुझे अपनी कमअक्ली (मंदबुद्धि) पर आज बहुत तरस आया। मैंने उससे दुनिया जहान की बातें तो कर ली थी पर उसके शहर का नाम और पता तो पूछना ही भूल गया था।
हे लिंग महादेव ! तू जो भी करता है सब अच्छे के लिए ही करता है। मेरा अहमदाबाद में डेपुटेशन पर आना भी लगता है तेरी ही रहमत (कृपा) से ही हुआ लगता है। मैं तो उस बेचारे अजीत भोंसले (हमारा चीफ) को बेकार ही गालियाँ निकाल रहा था कि मुझे कहाँ भेज दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। मुझे तो लगा मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर ही आ जाएगा। मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि यह अहमदाबाद का चीकू मेरी झोली में इस प्रकार टपक पड़ेगा।
"अरे मेरी परी ! तुम कहोगी तो मैं भरतपुर तो क्या बैकुंठ भी छोड़कर तुम्हारे पास आ जाऊँगा !"
"सच्चु ? खाओ मारा सम्म ?" (सच्ची ? खाओ मेरी कसम ?)
"हाँ हाँ मेरी पलक ! मैं सच कहता हूँ !"
"तमे पाक्कू आवशो ने मारा माते ? म.. मारो अर्थ छे के पेली जल थेरेपी सारी रीति देवशो ने ? (आप पक्का आओगे ना मेरे लिए? म. मेरा मतलब है वो जल थेरेपी वगैरह ठीक से समझा दोगे ना?)
"हाँ.. हाँ.. जरूर ! वो सब मैं तुम्हें प्रेक्टिकल करके सब कुछ अच्छी तरह से समझा दूँगा, तुम चिंता मत करो।"
"ओह.. सर, तमे केटला सारा छो.. आभार तमारो" (ओह... सर, आप कितने अच्छे हैं थैंक्यू)
"पलक..."
"हुं..."
"पर तुम्हें एक वचन देना होगा !"
" केवू वचन ?" (कैसा वचन ?)
"बस तुम शर्माना छोड़ देना और जैसा मैं समझाऊं वैसे करती रहना !"
"ऐ बधू तो ठीक छे पण तमे केवू आवशो ? अने आवया पेला मने कही देजो.. भूली नहीं जाता ? कई गाड़ी थी, केवू, केटला वगे आवशो ?" (वो सब ठीक है पर आप कब आओगे? आने से पहले मुझे बता देना.. भूल मत जाना? कौन सी गाड़ी से, कब, कितने बजे आओगे)
मेरे मन में आया कह दूँ ‘मेरी छप्पनछुरी मैं तो तुम्हारे लिए दुनिया भर से रिश्ता छोड़ कर अभी दौड़ा चला आऊँ’ पर मैंने कहा,"मैं अहमदाबाद आने का कार्यक्रम बना कर जल्दी ही तुम्हें बता दूँगा।"
आज मेरा दिल बार बार बांके बिहारी सक्सेना को याद कर रहा था। रात के दो बजे हैं और वो उल्लू की दुम इस समय जरूर यह गाना सुन रहा होगा :

अगर तुम मिल जाओ, ज़माना छोड़ देंगे हम
तुम्हें पाकर ज़माने भर से रिश्ता तोड़ लेंगे हम ….

कहानी जारी रहेगी !
 
"पलक..."
"हुं..."
"पर तुम्हें एक वचन देना होगा !"
" केवू वचन ?" (कैसा वचन ?)
"बस तुम शर्माना छोड़ देना और जैसा मैं समझाऊँ, वैसे करती रहना !"
"ऐ बधू तो ठीक छे पण तमे केवू आवशो ? अने आवया पेला मने कही देजो.. भूली नहीं जाता ? कई गाड़ी थी, केवू, केटला वगे आवशो ?" (वो सब ठीक है पर आप कब आओगे? आने से पहले मुझे बता देना.. भूल मत जाना? कौन सी गाड़ी से, कब, कितने बजे आओगे)
मेरे मन में आया कह दूँ ‘मेरी छप्पनछुरी मैं तो तुम्हारे लिए दुनिया भर से रिश्ता छोड़ कर अभी दौड़ा चला आऊँ’ पर मैंने कहा,"मैं अहमदाबाद आने का कार्यक्रम बना कर जल्दी ही तुम्हें बता दूँगा।"
आज मेरा दिल बार बार बांके बिहारी सक्सेना को याद कर रहा था। रात के दो बजे हैं और वो उल्लू की दुम इस समय जरूर यह गाना सुन रहा होगा :
अगर तुम मिल जाओ, ज़माना छोड़ देंगे हम
तुम्हें पाकर ज़माने भर से रिश्ता तोड़ लेंगे हम ….
उसने अपनी और सुहाना की एक फोटो मुझे भेजी थी। हे भगवान् ! उसे देख कर मुझे तो लगा मेरी तो हृदय गति ही रुक जायेगी। हालांकि सुहाना के मुकाबले उसके नितम्ब और उरोज छोटे थे पर उसकी पतली पतली पलकों के नीचे मोटी मोटी कजरारी आँख़ें अगर बिल्लौरी होती तो मैं इसके सिमरन होने का धोखा ही खा जाता।
उसकी आँखें तो लगता था कि अभी बोल पड़ेंगी कि आओ प्रेम मेरी घनी पलकों को चूम लो। सर पर घुंघराले बालों को देख कर तो मैं यही अंदाज़ा लगाता रहा कि उसकी पिक्की पर भी ऐसे ही घुंघराले रेशमी बाल होंगे। गुलाबी रंग का चीरा तो मुश्किल से ढाई इंच का होगा और उसकी गुलाब की पत्तियों जैसी कलिकायें तो आपस में इस तरह चिपकी होंगी जैसे कभी सु सु करते समय भी नहीं खुलती होंगी।
आह...... आप मेरी हालत समझ सकते हैं कि मैं उसकी पिक्की के दर्शनों के लिए कितना बेताब हो गया था। मैंने रात को बातों बातों में उससे पूछा था,"पलक तुम्हारी मुनिया कैसी है?"
"मुनिया… बोले तो ?" उसने बड़ी मासूमियत से पूछा।
"ओह.. दरअसल मैं तुम्हारी पिक्की की बात कर रहा था !"
"हटो.... तमे पागल तो नथी थाई गया ने ?" (तुम पागल तो नहीं हुए ?)
"प्लीज बताओ ना ?"
"नहीं मने शर्म आवे छे ?" (नहीं मुझे शर्म आती है ?)
"पर इसमें शर्म वाली क्या बात है ?"
"तमे तो पराविज्ञान ना वार माँ जानो छो ने ?" (आप तो पराविज्ञान भी जानते हो ना ?)
"तो ?"
"तमे ऐना थी जाननी लो ने केवी छे ?" (आप उसी से जान लो ना कि कैसी है?)
"पलक, तुम बहुत शरारती हो गई हो !" मैं थोड़ा संजीदा (गंभीर) हो गया था।
"पण मने तो मारा बूब्स ज मोटा करावा छे पिक्की तो ठीक छे ऐना वार मा जानी ने तमारे शु करवु छे ?" (पर मुझे तो अपने चूचे ही बड़े करवाने हैं, पिक्की तो ठीक ही है उसके बारे में जानकर आपको क्या करना है?)
हे भगवान् ! तुमने इन खूबसूरत कन्याओं को इतना मासूम क्यों बनाया है?
इनको 27 किलो का दिल तो दे दिया पर दिमाग क्यों खाली रखा है। अब मैं उसे कैसे समझाता कि मैं क्या जानना और करना चाहता हूँ।
हे लिंग महादेव, तू तो मेरे ऊपर सदा ही मेहरबान रहा है। यार बस अंतिम बार अपनी रहमत फिर से मेरे ऊपर बरसा दे तो मेरा अहमदाबाद आना ही नहीं, यह जीवन भी सफल हो जाए।
फिर उसने अपनी पिक्की का भूगोल ठीक वैसा ही बताया था जैसा मैंने उसकी फोटो देखकर अंदाज़ा लगाया था। उसने बताया कि उसकी पिक्की का रक्तिम चीरा 2.5 इंच का है और फांकों का रंग गुलाबी सा है। उसके ऊपर छोटे छोटी रेशमी और घुंघराले बाल और मदनमणि (भगान्कुर) तो बहुत ही छोटी सी है जो पिक्की की कलिकाओं को चौड़ा करने के बाद भी साफ़ नहीं दिखती पर कभी कभी वो सु सु करते या नहाते समय जब उस पर अंगुली फिराती है तो उसे बहुत गुदगुदी सी होती है और उसके सारे शरीर में मीठी सिहरन सी दौड़ने लगती है। एक अनूठे रोमांच में उसकी आँखें अपने आप बंद होने लगती हैं। उस समय चने के दाने जैसा उभरा हुआ सा भाग उसे अपनी अंगुली पर महसूस होता है। उसने बताया तो नहीं पर मेरा अंदाज़ा है कि उसने अपनी पिक्की में कभी अंगुली नहीं की होगी।
एक मजेदार बात बताता हूँ। उसने मुझे एक बार बताया था कि उसके दादाजी उसे पिक्की के नाम से बुलाया करते थे। जब वह छोटी थी तो वो उनकी गोद में दोनों पैर चौड़े करके बैठ जाया करती थी। मैंने उसे जब बताया कि हमारे यहाँ तो पिक्की कमसिन लड़कियों के नाज़ुक अंग को कहते हैं तो वो हंसने लगी थी। जब कभी मैं उसे मजाक में पिक्की के नाम से बुलाता तो वो भी मुझे पप्पू (चिकना लौंडा) के नाम से ही बुलाया करती थी। फिर तो मेरा मन उसकी पिक्की के साथ इक्की दुक्की खेलने को करने लगता।
उसने एक बार पूछा था कि क्या सच में मधु दीदी की जांघ पर तिल है ? और फिर मेरे पप्पू की लम्बाई भी पूछी थी। आप सभी तो जानते ही हैं वह पूरा 7 इंच का है पर मुझे अंदेशा था कि कहीं मेरे पप्पू की लम्बाई जानकर वो डर ना जाए और उसको पाने का खूबसूरत मौक़ा मैं गंवा बैठूं, मैंने कहा,"यही कोई 6 इंच के आस पास होगा !"
"पर आपने कहानियों में तो 7 इंच का बताया था?"
"ओह... हाँ पर वो तो बस कहानी ही थी ना !"
"ओह.. अच्छाजी.. फिर तो ठीक है !"
मैं तो उसके इस जुमले को सुनकर दो दिनों तक इसका अर्थ ही सोचता रहा कि उसने 'फिर तो ठीक है' क्यों कहा होगा।
"सर… एक बात पूछूं?"
"हम्म. ?"
"आपने जो कहानियाँ लिखी हैं वो सब सच हैं क्या?"
मेरे लिए अब सोचने वाली बात थी। मैं ना तो हाँ कह सकता था और ना ही ना। मैंने गोल मोल जवाब दे दिया,"देखो पलक, कहानियाँ तो केवल मनोरंजन के लिए होती हैं। इनमें कुछ बातें कल्पना से भी लिखी जाती हैं और कुछ सत्य भी होता है। पर तुम यह तो जान ही गई होगी कि मैं सिमरन से कितना प्रेम करता था !"
"हाँ सर.. तभी तो मैंने भी आपसे दोस्ती की है !"
"ओह.. आभार तुम्हारा (धन्यवाद) मेरी पलक !" मैंने 'मेरी पलक' जानबूझ कर कहा था।
अगले 3-4 दिन ना तो उसका कोई मेल आया ना ही उसने फोन पर संपर्क हो पाया। मैं तो उससे मिलने को इतना उतावला हो गया था कि बस अभी उड़ कर उसके पास पहुँच जाऊँ।
फिर जब उसका फोन आया तो मैंने उलाहना देते हुए पूछा,"तुमने पिछले 3-4 दिनों में ना कोई मेल किया और ना ही फ़ोन पर बात की?"
"वो... वो.. मेरी तबियत ठीक नहीं थी !"
"क्यों? क्या हो गया था ?"
"कुछ नहीं.. ऐसे ही.. बस..!"
मुझे लगा पलक कुछ छुपा रही है। मैंने जब जोर देकर पूछा तो उसने बताया कि परसों उसकी बुआ आई थी। उसने और दादी ने पापा से मेरी शिकायत कर दी कि मैं सारे दिन फ़ोन पर ही चिपकी रहती हूँ तो पापा ने मुझे मारा और फिर कमरे में बंद कर दिया।
हे भगवान् ! कोई बाप इतना निर्दयी कैसे हो सकता है। पलक तो परी की तरह इतनी मासूम है कोई उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता है।
"मैं तो बस अब और जीना ही नहीं चाहती !"
"अरे नहीं... मेरी परी... भला तुम्हें मरने की क्या जरुरत?"
"किसी को मेरी जरुरत नहीं है मुझे कोई नहीं चाहता। इससे अच्छा तो मैं मर ही जाऊं !"
"ओह.. मेरी शहजादी, मेरी परी, तुम बहुत मासूम और प्यारी हो। अपने बच्चे सभी को बहुत प्यारे लगते हैं। हो सकता है तुम्हारे पापा उस दिन बहुत गुस्से में रहे हों?"
"नहीं किसी को मेरे मरने पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला !"
"परी क्या तुम्हें नहीं पता मैं तुम्हें कितना प्रे.. म.. मेरा मतलब है कितना चाहता हूँ?"
"तुम भी मुझे भूल जाओगे... कोई और नई पलक या सिमरन मिल जायेगी ! तुम मेरे लिए भला क्यों रोवोगे?"
पलक ने तो मुझे निरूत्तर ही कर दिया था। मैं तो किमकर्त्तव्य विमूढ़ बना उसे देखता ही रह गया।
मुझे चुप और उदास देख कर वो बोली,"ओह. तमे आ बधी वातो ने मुको.. तमे अहमदाबाद आवशो ?" (ओह. आप इन बातों को छोड़ो.. आप अहमदाबाद कब आयेंगे ?)
"मैं कल अहमदाबाद पहुँच रहा हूँ !"
"साची ? तमे खोटू तो नथी बोलता ने ? पक्का आवशो ने ?"(सच्ची ? आप झूठ तो नहीं बोल रहे हो ना ? पक्का आओगे ना ?)
"हाँ पक्का !"
"खाओ मारा सम" (खाओ मेरी कसम ?)
"ओह.. बाबा, पक्का आउंगा मेरा विश्वास करो !"
 
कभी कभी तो मुझे लगता कि मैं सचमुच ही इस नन्ही परी से प्रेम करने लगा हूँ। मेरे वश में होता तो मैं इस परी को लेकर कहीं दूर चला जाता जहाँ हम दोनों के सिवा कोई ना होता। मैंने बचपन में 'अल्लादीन का चिराग' नामक एक कहानी पढ़ी थी। काश उस कहानी वाला चिराग मेरे पास होता तो मैं उस जिन्न को कहता कि मुझे अपनी इस परी के साथ कोहेकोफ़ ले जाए।
खैर... अब मैं इस जुगाड़ में था कि किस जगह और कैसे उससे मिला जाये। क्या उसे रात को होटल में बुलाना ठीक रहेगा ? पर सवाल यह था कि वो रात में यहाँ कैसे आएगी? मेरे मन में डर भी था कि कहीं किसी घाघ वेटर ने देख लिया और उसे कोई शक हो गया तो मैं तो मुफ्त में मारा जाऊँगा। मैं किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहता था। नई जगह थी कोई झमेला हो गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे।
मेरी मुश्किल पलक ने आसान कर दी। उसने बताया कि कल दोपहर में वो होटल में ही मिलने आ जाएगी। मैंने उसे होटल का नाम पता और कमरे का नंबर दे दिया।
वैसे भी रविवार था तो मुझे कहीं नहीं जाना था। मैं उसका इंतज़ार करने लगा।
कोई 1:30 बजे रिसेप्शन से फोन आया कि कोई लड़की मिलने आई है। मैंने उसे कमरे में भेज देने को कह दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा। मैंने कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा खोल लिया था ताकि मुझे उसके आने का पता चल जाए।
इतने में पलक सीढ़ियों से आती हुई दिखाई दी। मैं तो ठगा सा उसे देखता ही रह गया। उसने सफ़ेद रंग के स्पोर्ट्स शूज, हलके भूरे रंग (स्किन कलर) की कॉटन की पैंट और ऊपर गुलाबी रंग का गोल गले वाला टॉप पहन रखा था। मेरी पहली नज़र उसकी गोलाइयों पर ही टिक कर रह गई। उसके बूब्स तो भरे पूरे लग रहे थे। मैंने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा। गहना रंग, गोल चेहरा, मोती मोती काली आँखें, सुतवां नाक, लम्बी गरदन, सर के बाल कन्धों तक कटे हुए और कानों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ। पतले पतली जाँघों के ऊपर छोटे छोटे खरबूजों जैसे कसे हुए नितम्ब।
इससे पहले कि मैं उसकी पैंट के अन्दर जाँघों के बीच बने उभार का कुछ अंदाज़ा लगता पलक बोली,"स… सर ? कहाँ खो गए?"
"ओह.. हाँ. प पलक अ... आओ… मैं तो तुम्हारी ही राह देख रहा था !" मैंने उसे बाजू से पकड़ कर अन्दर खींच लिया और दरवाजा बंद कर लिया। उसकी पतली पतली गुलाबी रंग की लम्बी छछहरी बाहें तो इतनी नाज़ुक लग रही थी कि मुझे तो लगा जरा सा दबाते ही लाल हो जायेंगी। उसकी अंगुलियाँ तो इतनी लम्बी थी कि मैं तो यही सोचता जा रहा था कि अगर पलक अपने हाथों में मेरे पप्पू को पकड़ ले तो वो तो इसकी अँगुलियों के बीच में आकर अपना सब कुछ एक ही पल में लुटा देगा।
"क्या आज ही आये हैं?"
"ओह.. हाँ मैं कल शाम को आ गया था !"
"तो आपने मुझे कल क्यों नहीं बताया?" उसने मिक्की की तरह तुनकते हुए उलाहना दिया।
"ब.. म.. " मैं तो उसे देख और अपने पास पाकर हकला सा ही गया था। वो मुझे घूरती रही।
बड़ी मुश्किल से मेरे मुँह से निकला,"ओह… वो मैं रात में देरी से पहुँचा था ना इसलिए तुम्हें नहीं बता पाया !"
"ओ.के. कोई बात नहीं … पता है मैं कितनी उतावली हो रही थी आपसे मिलने को?"
"हाँ हाँ... मैं जानता हूँ मेरी परी ! मैं भी तो तुमसे मिलने को कितना उतावला था !"
"हुंह… हटो परे.. झूठे कहीं के?" उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं कोई बहरूपिया या चिड़ीमार हूँ।
"ओह पलक अब छोड़ो ना इन बातों को.. और बताओ तुम कैसी हो?"
"हु ठीक छूं जी तमे केवा छो मधु दीदी केम छे ?" (मैं ठीक हूँ जी आप कैसे हैं और मधु दीदी कैसी हैं ?")
"हाँ वो भी ठीक ही होंगी !"
सच पूछो तो वो क्या पूछ रही थी और मैं क्या जवाब दे रहा था मुझे खुद पता नहीं था। आप तो जानते ही हैं कि मैंने कितनी ही लड़कियों और औरतों को बिना किसी झंझट के चोद लिया था पर आज इस नाजुक परी को अपने इतना पास पाकर मेरे पसीने ही छूट रहे थे। कैसे बात आगे बढाऊँ मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
पलक के पास तो रोज़ ही प्रश्नों का पिटारा होता था, सवालों की एक लम्बी फेहरिस्त होती थी उसके पास।
एक बार मैंने उसे मज़ाक में कह दिया था कि पलक तुम तो इतने सवाल पूछती रहती हो कि थोड़े दिनों में तुम तो पूरी प्रेम गुरुआनी बन जाओगी। तो उसने बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए जवाब दिया था,"फिर तो आपको 10-12 साल बाद में पैदा होना चाहिए था !"
"क्यों ? फिर क्या होता ?"
"तमे आतला गहला पण नथी के मारी वात न समज्या होय?" (आप इतने बेवकूफ नहीं हैं कि मेरी बात ना समझे हों)
"प्लीज बताओ ना ?"
"जनाब वधरे रंगीन सपना जोवा नि जरुर नथी" (जनाब ज्यादा रंगीन सपने देखने की जरुरत नहीं है ?)
क्यों?"
"पेली.. मधु मक्खी (मधुर) तमने खाई जासे आने मने पण जीवति नथी छोड्शे (वो मधु मक्खी (मधुर) आपको काट खाएगी और मुझे भी जिन्दा नहीं छोड़ेगी) पलक खिलखिला कर हंस पड़ी।
कई बार तो लगता था कि पलक मेरे मन में छिपी बातें जानती है। मेरी और उसकी उम्र में हालांकि बहुत अंतर है पर देर सवेर वो मेरे प्रेम को स्वीकार कर ही लेगी। मैं अभी अपने ख्यालों में खोया ही था कि पलक की आवाज से चौंका।
"सर एक बात पूछूं ?"
"यस... हाँ जरुर !"
"क्या एक आदमी दो शादियाँ नहीं कर सकता?"

कहानी जारी रहेगी !
 
मैं अभी अपने ख्यालों में खोया ही था कि पलक की आवाज से चौंका।
"सर एक बात पूछूँ?"
"यस... हाँ जरूर !"
"क्या एक आदमी दो शादियाँ नहीं कर सकता?"
"क्यों? मेरा मतलब है तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?"
"कुछ नहीं ऐसे ही !"
"दरअसल मुस्लिम धर्म में चार बीवियाँ रखने का अधिकार है पर हिन्दू धर्म में केवल एक ही पत्नी का क़ानून है।"
"ओह.... चलो छोड़ो वो... आप मालिश और जल थेरेपी बताने वाले थे ना?"
"ओह.. हाँ अभी करता हूँ !"
"क्या ?"
"वो... ओह... अरे मेरा मतलब था कि मैं समझा देता हूँ।"
"तो समझाइए ना?" वो में इस हालत पर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।
"पहले मैं तुम्हें आयल मसाज़ सिखाता हूँ, फिर जल थेरेपी के बारे में बताऊँगा !"
"हम्म ..."
"पर उसके लिए तुम्हें यह टॉप उतारना होगा !"
"वो क्यों?"
"ओह.. शर्ट पहने पहने कैसे मसाज़ होगा?"
"वो.. वो.. पर.. यहाँ कोई देखेगा तो नहीं ना.. मेरा मतलब है कोई दूसरा तो नहीं आएगा ना?"
"अरे नहीं मेरी परी, यहाँ कोई नहीं आएगा, दरवाज़ा तो बंद है। तुम चिंता मत करो !"
"पर वो आयल?"
मैं तो कुछ और ही सोच रहा था। मुझे आयल या क्रीम का कहाँ होश था पर मैंने बात सम्भालते हुए कहा,"ठहरो.. मैं देखता हूँ !"
मैं उठ खड़ा हुआ और अपने शेविंग किट से क्रीम और आयल की शीशी निकाल कर ले आया। पलक ने फिर अपना टॉप उतार दिया। उसने काले रंग की पैडेड ब्रा पहन रखी थी। अब मुझे समझ आया कि उसके उरोज इतने बड़े क्यों नज़र आ रहे थे।
उसने जब टॉप उतारने के लिए अपने हाथ ऊपर किये तो मेरी नज़र उसकी कांख पर चली गई। हे भगवान् ! उसकी बगल में तो हलके हलके रोयें ही थे। उसके कमसिन बदन की मादक महक तो जैसे पूरे कमरे में ही फ़ैल गई थी। मैं तो मंत्रमुग्ध हुआ उस रूप की देवी को देखता ही रह गया। काले रंग की पैडेड ब्रा में फंसे दो चीकू जैसे उरोज शर्म के मारे जैसे दुबके पड़े थे। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा।
"पलक, इस ब.. ब्रा को भी उ... उतारना होगा !" मैं हकलाता हुआ सा बोला।
उसने ब्रा का हुक खोलने का प्रयास किया पर जब वो नहीं खुला तो वो मेरी ओर पीठ करके खड़ी हो गई और फिर बोली,"ओह.. यह नहीं खुल रहा.. प्लीज आप खोल दो ना?"
मैंने कांपते हाथों से ब्रा का हुक खोल कर उसे नीचे गिर जाने दिया। उसकी बेदाग़ गोरी गोरी नर्म नाज़ुक पीठ देख कर तो बरबस मेरे दिल में आया कि उसे अपनी बाहों में जकड़ लूँ पर इससे पहले कि मैं कुछ करता, वो पलट कर मेरे सामने हो गई। दो छोटे छोटे गुलाबी रंग के चीकू मेरी आँखों के सामने थे। जैसे कोई नई नई अम्बियाँ पनपी हों। उरोजों के आस पास की त्वचा शरीर के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक गोरी थी। छोटे छोटे कूचों में पतली पतली रक्त शिराएँ, एक इंच का लाल रंग का घेरा (एरोला) और चने के दाने से भी छोटे गहरे लाल रंग के दो मोती (चूचक)। बाएं उरोज पर नीचे की ओर एक छोटा सा तिल। सपाट पेट और उसके बीच छोटी पर गहरी नाभि। उभरे हुए से पेडू के दाईं ओर एक छोटा सा काला तिल। हे लिंग महादेव ! यह तो रति का अवतार ही है जैसे। मैं तो मुँह बाए उसे देखता ही रह गया। मेरा मन तो कर रहा था कि झट से इन रसगुल्लों को पूरा का पूरा मुँह में भर कर इनका सारा रस निचोड़ लूँ।
"अब क्या करना है?" अचानक पलक की आवाज सुनकर मैं चौंका।
"ओह.. हाँ ! मैंने तुम्हें समझाया था ना कि पहले तेल मालिश और फिर कुछ कसरत फिर वो जल थेरेपी तुम्हें समझाऊँगा।
उसे तो कुछ समझ ही नहीं आया उसने असमंजस में मेरी ओर ताका।
"ओह.. चलो ऐसा करो, तुम बिस्तर पर लेट जाओ !"
पलक अपने जूते उतारने के लिए झुकी तो उसके पुष्ट नितम्बों देख कर तो बरबस मेरा मन उन्हें चूम लेने को करने लगा।
जूते उतार कर वो बेड पर चित्त लेट गई। मेरी आँखें तो उसके उरोजों की सुरम्य घाटी से हट ही नहीं रही थी। मेरा दिल किसी रेल के इंजन की तरह जोर जोर से धड़क रहा था और मेरी साँसें बेकाबू होने लगी थी। पर मैं तो अपने सूखे होंठों पर जुबान ही फेरता रह गया था।
मैं अभी अगले कदम के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक पलक की आवाज मेरे कानों में गूंजी,"सर.. क्या हुआ?"
"ओह.. कुछ नहीं...."
मैंने नारियल के तेल की शीशी से लगभग एक चम्मच तेल निकाल कर अपनी हथेली पर ले लिया। मैं बेड पर उसके पास वज्रासन की मुद्रा में (अपने घुटने मोड़ कर) बैठ गया। मेरा पप्पू तो पैंट के अन्दर कोहराम ही मचाने लगा था। जैसे कह रहा था कि गुरु छोड़ो इस तेल मालिश के चक्कर को और इस खूबसूरत बला को अपनी बाहों में भर कर मेरे साथ अपना जीवन भी धन्य कर लो। पर मैं जल्दबाजी में कुछ भी नहीं करना चाहता था। मैंने तेल से सनी अपनी दोनों हथेलियाँ उसके उरोजों पर रख दी।
उफ़... रुई के फोहों जैसे नर्म नाज़ुक दो उरोजों की घुन्डियाँ तो अकड़ कर जैसे अभिमानी ही हो गई थी। जैसे ही मेरा हाथ उसके उरोजों से टकराया उसके शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई और शरीर के सारे रोम-कूप खड़े हो गए। कुँवारे नग्न स्तनों पर शायद किसी पर पुरुष का यह पहला स्पर्श था। उसे गुदगुदी भी हो रही होगी और थोड़ा रोमांच भी हो रहा होगा। उसकी साँसें भी तेज़ हो गई थी। उसने अपनी आँखें बंद कर ली थी और अपनी जांघें कस कर भींच ली।
 
मैंने पहले उसके उरोजों की घाटी में हाथ फिराया और फिर हौले से उरोजों को अपनी मुट्ठी में भर कर हल्के से दबाया। मेरे ऐसा करने से वो तो अपनी नाज़ुकता खोकर और भी कड़े हो गए। मैंने हौले से उन पर हाथ फिराना और मसलना चालू कर दिया। मेरा मन तो उन छोटे छोटे चीकुओं को मुँह में भर कर चूस लेने को कर रहा था पर अभी ऐसा करना ठीक नहीं था। मैंने अपने हाथ गोल गोल घुमाने चालू कर दिए। इसे सीत्कार तो नहीं कहा जा सकता पर मुझे लग रहा था कि उसकी साँसें बहुत तेज़ हो गई हैं और वो भी अपने आप को अनोखे आनन्द में डूबा महसूस करने लगी है। जरूर उसके जिस्म में प्रेम का मीठा जहर फैलने लगा होगा।
मैंने उसके चूचकों को अपनी अँगुलियों की चिमटी में पकड़ कर जब मसला तो पलक थोड़ी सी चिहुंकी और उसकी हल्की सी सीत्कार निकल गई पर उसने आँखें नहीं खोली। उसने अपनी जाँघों को और जोर से भींच लिया। उसका सारा शरीर अकड़ने सा लगा था।
मैं जानता था कि दूसरी लड़कियों की तुलना में पलक के उरोज थोड़े छोटे जरूर हैं पर वो पूर्णयौवना बन चुकी है। प्रेम आश्रम वाले गुरूजी तो कहते हैं जब लड़की रजस्वला होने लगती है और उसके कामांगों पर बाल आने शुरू हो जाते हैं तो वह कामदेव को समर्पित कर देने योग्य हो जाती है।
मैंने कोई 10-15 मिनट तो उसके उरोजों पर मालिश करते हुए उनको जरुर मसला और दबाया होगा। ऐसा नहीं था कि बस मैं उन्हें मसले ही जा रहा था। मैं कभी कभी उसके एक उरोज को अपनी मुट्ठी में पकड़ लेता और दूसरे हाथ की हथेली उसके नुकीले हो चले चुचूक पर फिराता तो उसके मुँह से मीठी सित्कार ही निकल जाती। साथ साथ मैं उसे मालिश का तरीका भी समझाता जा रहा था कि मालिश नीचे से ऊपर की ओर करनी चाहिए ना कि ऊपर से नीचे की ओर। गलत तरीके से मालिश करने से दबाव के कारण उरोज लटक सकते हैं। मैंने उसे यह भी बताया कि उरोजों को कभी भी जोर से नहीं भींचना चाहिए बस हौले होले दबाना और सहलाना चाहिए ताकि उनका रक्त संचार बढ़ जाए। पर उसे मेरी बातें सुनने का कहाँ होश था। वो तो आँखें बंद किये हल्की-हल्की हाँ हूँ के साथ सिसिया रही थी। उसकी साँसों की गति के साथ उसके उरोज ऊपर नीचे हो रहे थे। उसके चुचूक अकड़ कर रक्तिम से हो गए थे और उसके साथ ही उसके चेहरे और कानों का रंग भी गुलाबी हो चला था। मेरे लिए तो यह दृश्य नयनाभिराम ही था।
मुझे तो लगने लगा था कि मैं अपने होश ही खो बैठूँगा। मेरा चेहरा भी अब तमतमाने लगा था और पप्पू तो पैंट के अन्दर जैसे घमसान मचा रहा था। आज तो वो इस तरह अकड़ा था कि अगर मैंने जल्दी ही कुछ नहीं किया तो उसकी नसें ही फट जायेंगी। मुझे अब लगने लगा था कि मैं अपना विवेक खो बैठूंगा। मेरा मन उसे बाहों में भर लेने को उतावला होने लगा।
मैंने जैसे ही उस पर झुकने का उपक्रम किया तो अचानक पलक ने आँखें खोल दी और उठ कर बैठ गई। मैं तो उससे टकराते टकराते बचा। उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और आँखों में खुमार सा आने लगा था।
"बस सर, अब वो वो ... जल थेरपी ... सिखा दो !" उसकी आवाज थरथरा रही थी।

कहानी जारी रहेगी !
प्रेम गुरु नहीं बस प्रेम
 
"बस सर, अब वो वो ... जल थेरपी ... सिखा दो ?" उसकी आवाज थरथरा रही थी।
"ह ... हाँ ... ठीक है ... च ... चलो बाथ रूम में चलते हैं" मुझे लगा मेरा भी गला सूख गया है। मैं तो अपने प्यासे होंठों पर अपनी जबान ही फेरता रह गया।
उसने नीचे झुक कर फर्श पर पड़ी ब्रा और टॉप उठा लिया और अपनी छाती से चिपका कर उन नन्हे परिंदों को छुपा लिया और बाथरूम की ओर जाने लगी। मैं मरता क्या करता, मैं भी उसके पीछे लपका।
बात रूम में आकर मैंने गीज़र से एक बाल्टी में गर्म और दूसरी में ठण्डा पानी भरा और दो सूखे तौलिये उनमें डुबो दिए। पहले मैंने गर्म तौलिये से उसके उरोजों की सिकाई की बाद में ठण्डे से। जैसे ही ठण्डा तौलिया उसके उरोजों पर लगता उसके सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती और सारे रोम कूप खड़े से हो जाते। मैंने उसे भाप सेवन (स्टीम बाथ) के बारे में भी समझाता जा रहा था। वह तो आँखें बंद किये मेरे हाथों का स्पर्श पाकर मदहोश ही हुए जा रही थी। उसके पतले पतले होंठ अब गुलाबी से रक्तिम हो कर कांपने लगे थे। एक बार तो मन में आया कि इनको चूम ही लू। मेरा अनुमान था वो विरोध नहीं करेगी। सिमरन की तरह झट से मुझे बाहों में जकड़ लेगी। सिमरन का ख़याल आते ही मेरे हाथ रुक गए।
आप तो जानते हैं मैं सिमरन से कितना प्रेम करता था। मैं भला ऐसी जल्दबाजी और अभद्रता कैसे कर सकता था। भले ही मेरे मन में उसका कमसिन बदन पा लेना का मनसूबा बहुत दिनों से था पर मैं सिमरन के इस प्रतिरूप के साथ ऐसा कतई नहीं करना चाहता था।
हमें इस जल थरेपी में कोई 15-20 मिनट तो लग ही गए होंगे। मेरे हाथ रुके देख कर पलक को लगा शायद अब जल थरेपी का काम ख़त्म हो गया है।
"और नहीं करना ?"
"ओह... हाँ बस हो गया ?" मेरे मुँह से निकल गया। मैं तो सिमरन के खयालों में ही डूबा था।
उसने टॉवेल स्टेंड से सूखा तौलिया उठाया और अपने उरोजों को पोंछ लिया। उसने ब्रा दुबारा पहन ली और फिर जल्दी से टॉप भी पहन लिया। अब बाथरूम में रुके रहने का कोई मतलब नहीं रह गया था।
कमरे में आने के बाद मैंने कहा,"पलक एक काम तो रह ही गया ?"
"वो.. क्या सर ?"
"ओह.. तुम्हें इनको चूसवाना भी तो सिखाना था ना ?"
"चाट गेहलो ?"
"मैं सच कहता हूँ इनको चुसवाने से ये जल्दी बड़े हो जायेंगे ?"
"आज नहीं सर, वो कल सिखा देना... अब मैंने ब्रा पहन ली है ?" कह कर वो मंद मंद मुस्कुराने लगी।
ये कमसिन लडकियाँ भी दिखने में कितनी मासूम और भोली लगती हैं पर आदमी की मनसा कितनी जल्दी भांप लेती हैं। चलो एक बात की तो मुझे तसल्ली है कि उसे मेरे मन की कुछ बातों का तो अब तक अंदाज़ा हो ही होगा। अब तो बस इस कमसिन कलि को अपने आगोश में भर कर इसका रस चूस लेने में थोड़ी सी देरी रह गई है। दरअसल मैं कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। कहीं ऐसा ना हो कि वो बिदक ही जाए और उसके साथ मेरा प्रथम मिलन का सपना केवल सपना ही बन कर रह जाए। मैं किसी भी हालत में ऐसा नहीं होने देना चाहता था।
"सर ...मुझे बहुत देर हो गई है। घर पर वो दादी और बुआ को कोई शक हो गया तो मेरा जीना हराम कर देंगी।"
"क्यों ऐसी क्या बात है?"
"अरे आप नहीं जानते, मैं उनको फूटी आँख नहीं सुहाती। बस उनको तो कोई ना कोई बहाना चाहिए पापा से शिकायत करने का !"
"ओह..."
"चलो छोड़ो... मैं भी क्या बातें ले बैठी ! कल का क्या प्रोग्राम है ?" उसने आँखें फड़फड़ाते हुए पूछा। उसके होंठों पर जो शरारत भरी कातिलाना मुस्कान थिरक रही थी मैं उसका मतलब बहुत अच्छी तरह जानता था।
"तुम बताओ कल कब आओगी?"
"प्रेम क्या तुम मेरे घर पर नहीं आ सकते?" आज पहली बार उसने मुझे प्रेम के नाम से संबोधित किया था।
"पर तुम्हारे घर पर तो वो दादी और पापा भी होंगे ना?"
"ओह... पापा तो कल ही टूर पर चले गए हैं और दादी तो रात को 9 बजे ही सो जाती है !"
"और वो तुम्हारी बुआ?"
"आप भी ना पूरे गहले ही हैं? अरे भई वो तो कभी कभार दिन में ही आती है। आप ऐसा करो कल रात को 10:00 बजे के बाद आ जाना मैं सारी तैयारी करके रखूँगी।"
"कैसी तैयारी?" मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था।
"ओह. आप भी घेले (लोल) हो ! मैं आयल मसाज और जल थैरेपी की बात कर रही थी !" उसके मुँह पर अबोध मुस्कान थी।
"ओह. हाँ ... ठीक है ...."
आप सोच रहे होंगे यह प्रेम गुरु भी अजीब पागल है हाथ आई चिड़िया को ऐसे ही छोड़ दिया साली को पटक कर रगड़ देते ?
दोस्तों ! आप नहीं समझेंगे। मैं भला उसके साथ ऐसी जबरदस्ती कैसे कर सकता था। मेरी मिक्की और सिमरन की आत्मा को कितना दुःख होता क्या आपको अंदाज़ा है?
भले ही पलक नादाँ, अनजान, मासूम और नासमझ है अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार है पर मैं अपनी इस परी के साथ ऐसा कतई नहीं कर सकता। मिक्की और सिमरन के प्रेम में बुझी मेरी यह आत्मा उसे धोखा कैसे दे सकती है। मैं उसकी कोमल भावनाओं से खिलवाड़ कैसे कर सकता था। कई बार तो मुझे लगता है मैं गलत कर रहा हूँ। लेकिन उसका चुलबुलापन, खिलंदड़ी हंसी और बार बार रूठ जाना और बात बात पर तुनकना मुझे बार बार उसे पा लेने को उकसाता रहता है। आदमी अपने आप को कितना भी बड़ा गुरु घंटाल क्यों ना समझे इन खूबसूरत छलाओं को कभी नहीं समझ पाता।
पलक ने मुझे अपना पता बता दिया था और यह भी चेता दिया था कि घर के पास पहुँच कर उसे मिस कॉल कर दूँ, वो दरवाजे पर ही मिल जाएगी।
पलक को मैं नीचे तक छोड़ आया। ऑटो रिक्शा में बैठने के बाद उसने मुझे एक हवाई चुम्बन (फ़्लाइंग किस) दिया। अब आप मेरी हालत समझ सकते हैं कि मैंने वो रात कैसे काटी होगी। मधु से फ़ोन पर एक घंटे सेक्स करने और दो बार पलक के नाम की मुट्ठ लगाने के बाद कोई 2 बजे मेरी आँख लगी होगी। और फिर सारी रात पलक के ही सपने आते रहे। मैंने सपने में देखा कि हम दोनों नदी के किनारे रेत पर चल रहे हैं और पलक खिलखिलाते हुए मेरा चुम्बन लेकर भाग जाती है और मैं उसके पीछे दौड़ता हुआ चला जाता हूँ।
हे लिंग महादेव ! इस नाज़ुक परी के कमसिन बदन की खुशबू कब मिलेगी अब तो बस तेरा ही आसरा बचा है।
कितना अजीब संयोग था पटेल चौक से कोई आधा किलोमीटर दूर सरोजनी नगर में 13/9 नंबर का दो मजिला मकान था। तय प्रोग्राम के मुताबिक़ मैं ठीक 10:00 बजे उसके घर के बाहर पहुँच गया। मैंने टैक्सी को तो पिछले चौक पर ही छोड़ दिया था। अक्टूबर के अंतिम दिन चल रहे थे। गुलाबी ठण्ड शुरू हो गई थी। मैंने पहले तो सोचा था कि कुरता पाजामा पहन लूं पर बाद में मैंने काले रंग का सूट और सिर पर काला टॉप पहनना ठीक समझा। इन दिनों में गुजरात में गणेश उत्सव और नवरात्रों की धूम रहती है। मैंने आज दिन में पूरी तैयारी की थी। मैं आज किसी चिकने चुपड़े आशिक की तरह पेश आना चाहता था। आज मैंने अपनी झांटें साफ़ कर ली थी और रगड़ रगड़ कर नहाया था। मैंने बाज़ार से दो गज़रे भी खरीद लिए थे और अपने कोट की जेब में दो तीन तरह की क्रीम और एक निरोध (कंडोम) का पैकेट भी रख लिया था। क्या पता कब यह हुस्न परी मेरे ऊपर मेहरबान हो जाए।
मैंने अपने मोबाइल से दो बार पलक को मिस काल किया।
वो तो जैसे मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। उसने दरवाज़े का एक पल्ला थोड़ा सा खोला और आँखें टिमटिमाते हुए हुए पूछा,"किसी ने देखा तो नहीं ना ?"
"ना !" मैंने मुंडी हिलाई तो उसने झट से मेरा बाजू पकड़ते हुए मुझे अन्दर खींच कर दरवाज़ा बंद कर लिया।
"वो... तुम्हारी दादी?" मैंने पूछा।
"ओह दादी को गोली मारो, वो सो रही है सुबह 8 बजे से पहले नहीं उठेगी। मैंने उसे दवाई की डबल डोज़ पिला दी है। तुम आओ मेरे साथ।" उसने मेरा हाथ पकड़ा और सीढ़ियों की ओर ले जाने लगी।
 
मैं चुपचाप उसके साथ हो लिया। उसके कमसिन बदन से आती मादक महक तो मुझे अन्दर तक रोमांच में भिगो रही थी। शायद उसने कोई बहुत तेज़ इत्र या परफ्यूम लगा रखा था। उसने अपने खुले बालों को लाल रिबन से बाँध कर एक चोटी सी बना रखी थी। सफ़ेद रंग की स्कर्ट के ऊपर कसे हुए टॉप में उसके गोलार्ध उभरे हुए से लग रहे थे। सीढियाँ चढ़ते समय उसके छोटे छोटे गुदाज़ नितम्बों को लचकते देख कर तो यह सिमरन का ही प्रतिरूप लग रही थी। मैं तो यही अंदाज़ा लगा रहा था कि आज उसने ब्रा तो नहीं पहनी होगी पर कच्छी जरुर गुलाबी रंग की ही पहनी होगी। इसी ख़याल से मेरा पप्पू तो अभी से उछल कूद मचाने लगा था।
शायद यह उसका स्टडी रूम था। कमरे में एक मेज, दो कुर्सियाँ और एक छोटा बेड पड़ा था। बिस्तर पर फूल बूटों वाली रेशमी चादर बिछी थी और दो तकिये रखे थे। एक कोने में उसके सफ़ेद जूते फेंके हुए से पड़े थे। मेज के ऊपर एक तरफ कंप्यूटर पड़ा था और साथ में 3-4 किताबें आदि बिखरी पड़ी थी। मेज पर एक कटोरी में शहद और एक में कच्चा दूध पड़ा था। साथ में तेल की दो तीन शीशियाँ और दो सूखे तौलिये भी रखे थे।
वो बिस्तर पर बैठ गई तो मैं पास रखी कुर्सी पर बैठ गया। मैं अभी यही सोच रहा था कि किस तरह बात शुरू करूँ कि पलक बोली- सर, एक बात पूछूं ?
""हम्म्म ...?"
"क्या आप मधुर दीदी के भी चूसते हो?"
"क्या?" मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।
"तमे इतला पण भोला नथी कि मारी वात समझया न होय ?" (आप इतने भोले नहीं हैं कि मेरी बात ना समझे हों)
"ओह... हाँ... मैं तो लगभग रोज़ ही चूसता हूँ !"
"शु दीदी ने पण एम मजा आवे छे ?" (क्या दीदी को भी इसमें मज़ा आता है?)
"हाँ उसे तो बिना चुसवाये नींद ही नहीं आती।"
"अच्छा... ऐना बूब्स नु माप शु छे ?" (अच्छा ? उनके बूब्स की साइज़ कितनी है?)
"36 की तो होगी।"
"आने लगन पेला केटली हती ?" (और शादी से पहले कितनी थी?)
"कोई 28 के आस पास !"
"हटो परे झूठे कहीं के ?"
"मैं सच कहता हूँ मैंने उन्हें चूस चूस कर इतना बड़ा किया है !"
वो कुछ सोचने लगी थी। मैं उसके मन की उथल पुथल अच्छी तरह समझ सकता था। थोड़ी देर बाद उसने अपनी मुंडी को एक झटका सा दिया जैसे कुछ सोच लिया हो और फिर उसने बड़ी अदा से अपनी आँखें नचाते हुए पूछा,"वो... आज पहले मालिश करेंगे या....?"
"पलक अगर कहो तो आज तुम्हें पहले वो ... वो ...?" मेरा तो जैसे गला ही सूखने लगा था।
"सर, ये वो.. वो.. क्या होता है ?" मेरी हालत को देख कर मुस्कुरा रही थी।
"म ... मेरा मतलब है कि तुम्हें वो बूब्स को चुसवाना भी तो सिखाना था ?"
"हाँ तो ?"

कहानी जारी रहेगी !
प्रेम गुरु नहीं बस प्रेम
 
Back
Top