Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी - Page 9 - SexBaba
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Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी

“अंकल जी, मुझे क्या पता था ये सब. मैं तो सोच रही थी कि जहां मेरी छोटी उंगली भी नहीं घुसी कभी वहां आपका ये दैत्य सरीखा काला कलूटा डरावना सा डंडा तो मेरे पेट में घुस के मुझे मार ही डालेगा आज!” वो बड़ी मासूमियत से बोली.
“मेरी जान… लंड ने आज तक किसी की जान नहीं ली कभी, ये तो सिर्फ मज़ा देता है.” मैं बोला और लंड को उसकी चूत से बाहर खींच लिया.
उसकी चूत से ‘पक्क’ जैसी आवाज निकली जैसी कोल्ड ड्रिंक की छोटी बाटल का ढक्कन ओपनर से खोलने पर निकलती है; ऐसी आवाज नयी चूत का वैक्यूम रिलीज होने से ही आती है. अब मेरा मन उसे घोड़ी बना के चोदने का था.

“कम्मो, अब तू घोड़ी की तरह खड़ी हो जा!” मैंने उससे कहा और उसे समझाया कि क्या करना है. मेरी बात समझ कर वो झट से किसी चौपाये की तरह औंधी होकर अपने हाथ पैरों के सहारे खड़ी हो गयी.

उसके मस्त भरे भरे गोल मटोल कूल्हे जिन पर कल उसकी चोटी लहरा रही थी इस वक़्त मेरे सामने अनावृत थे. मैंने उसके दोनों हिप्स को अच्छे से सहलाया और उन पर खूब चपत लगाईं फिर बीच की दरार खोल कर देखा. उसकी गांड की चुन्नटें बहुत ही कसीं हुईं थीं मैंने लंड को पूरी दरार में दबा के तीन चार बार स्वाइप किया.
ये स्थान भी बड़ा संवेदनशील था उसका; मेरे लंड छुलाते ही वो मज़े के मारे कमर हिलाने लगी. लेकिन मैंने उसकी चूत को ही निशाना बना के लंड घुसेड़ दिया और नीचे हाथ लेजाकर उसके मम्में दबोच कर उसकी पीठ चूम चूम कर उसे चोदने लगा.

फिर उसके सिर के बाल खींच लिए मैंने जिससे उसका मुंह ऊपर उठ गया और उसकी चूत को बेरहमी से ठोकने लगा. कम्मो धीरे धीरे करने की गुहार लगाती रही पर जोश में सुनता कौन है.
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ये कम्मो तो लम्बी रेस की घोड़ी निकली; उसे चोदते हुए पंद्रह मिनट से ऊपर ही हो चुके थे पर वो झड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी; मेरा लंड तो टनाटन खड़ा था पर मुझे थकान होने लगी थी. मैंने लंड बाहर खींच लिया और थोड़ा रेस्ट करने लेट गया. कम्मो भी मेरे बगल में आ लेटी और मेरा सीना सहलाने लगी.
कम्मो की सांसें भी तेज तेज चल रहीं थीं पर वो मुझसे लिपटी जा रही थी और उत्तेजना से उसने मेरा लंड पकड़ लिया और उसे अपनी चूत की दरार में घिसने लगी.

“कैसा लग रहा है मेरी गुड़िया रानी को?” मैंने उसकी चूत पर चिकोटी काट कर पूछा.
“मुझे नहीं पता, आपका काम आप ही जानो!” वो शर्माते हुए बोली और मेरी छाती में मुंह छिपा लिया लेकिन लंड अपने हाथ से नहीं छोड़ा.

“अब दर्द तो नहीं हो रहा न?” मैंने पूछा तो उसने इन्कार में सिर हिला दिया पर बोली कुछ नहीं.
“कम्मो बेटा, आजा अब तू मेरे ऊपर बैठ कर राज कर मुझ पर!”
“क्या अंकल? मैं समझी नहीं?”
“अरे अब तू मेरे ऊपर चढ़ जा और मुझे चोद डाल अच्छे से!”

मैं कम्मो के हुस्न का मजा उसे अपने ऊपर बैठा कर लेना चाहता था. उसके उछलते मम्में देखना चाहता था, उसकी चूत लंड को कैसे लीलती है इसका रसास्वादन करना चाहता था.
मेरे कहने पर कम्मो मेरे ऊपर आकर बैठ गयी. ट्यूबलाइट की तेज रोशनी में उसके ठोस तने हुए उरोज, उसका सुगठित बदन दमक उठा. फिर उसने अपने दोनों हाथ उठा कर अपने बाल समेटे और उनका जूडा बना कर बालों में गांठ बांध ली.

वो नजारा भूलना मुश्किल है मेरे लिए. इस पोज में लड़की कितनी सुन्दर लगती है. वो आपके ऊपर नंगी बैठी हो और अपने बालों का जूडा बांध रही हो! ऐसे में उसकी बाहों के तले हिलते उसके स्तन, उसकी कांख के बाल, उसकी आर्मपिटस में उगा हुआ वो बालों का गुच्छा और वहां से निकलती उसके बदन की प्राकृतिक सुगन्ध… मैं तो धन्य हो गया वो सब देख महसूस करके!

इसके बाद कम्मो ने मोर्चा संभाल लिया, चुदाई की कमान अपने हाथो में ले ली; वो थोड़ी सी ऊपर उठी और मेरा लंड पकड़ कर उसने अपनी चूत के छेद पर सेट किया और बड़े आहिस्ता से बैठती गयी. मैंने महसूस किया कि मेरा टोपा उसकी रिसती चूत में गप्प से घुस गया.
कम्मो के मुंह पर दर्द के निशान उभरे पर उसने अपने दांत भींचे और ईईई ईईई ईईई जैसी आवाज करते हुए समूचा लंड लील गयी और फिर हांफती हुई सी मेरी छाती पर सिर टिका के सुस्ताने
लगी.

“शाबाश बेटा, ये हुई न कोई बात. अब तू मेरे लंड को अपनी चूत में अन्दर बाहर कर; ध्यान रखना लंड को चूत से बाहर मत निकलने देना!” मैंने उसे सीख दी.
समझदार छोरी थी तो मेरा मकसद फौरन समझ गयी और उसने अपने दोनों हाथ मेरी छाती पर टिकाये और कमर को ऊपर उठाया और फिर बैठ गयी; मेरा लंड किसी पिस्टन की तरह उसकी चूत में से बाहर निकला और फिर से वहीं जा छुपा.
 
कम्मो ने यही एक्शन बार बार दुहराया और फिर तेजी से मुझे चोदने लगी और फिर थोड़ी ही देर में किसी कामोनमत्त नवयौवना की भांति लज्जा का परित्याग कर कामुक आहें कराहें किलकारियां निकालती हुई मुझे चोदने लगी.
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मैं बड़े आराम से उसकी नटखट चूचियों का उछालना कूदना देखता रहा; बीच बीच में मैं उसके निप्पलस खींच कर अपने सीने पर रगड़ने लगता और उसके कूल्हों के बीच की दरार को, उसकी गांड के झुर्रीदार छिद्र को अपनी उँगलियों से सहलाने लगता जिससे कम्मो की वासना और प्रचण्ड रूप ले लेती और वो किसी हिस्टीरिया के मरीज की तरह अपनी कमर चलाने लगती.

कई बार ऐसा हुआ कि मेरा लंड फिसल कर उसकी चूत से बाहर निकल गया लेकिन उसने जल्दी ही मेरे लंड की लेंग्थ के हिसाब से अपनी कमर उठाना और गिराना सीख लिया और फिर एक बार भी लंड को बाहर नहीं निकलने दिया. कम्मो ऐसे ही करीब पांच सात मिनट मुझे चोदती रही फिर थक कर उतर गयी मेरे ऊपर से.

“अंकल जी थक गयी मैं तो. अब आप आओ मेरे ऊपर!” वो मेरा हाथ पकड़ कर खींचती हुई बोली.
कम्मो के संग चुदाई का पहला दौर ही काफी लम्बा खिंच गया था जिसकी मुझे कतई उम्मीद नहीं थी. समय बहुत हो चुका था. बारात लड़की वालों के द्वार पहुँचने वाली ही होगी, ऐसा सोच कर मैंने कम्मो को दबोच लिया और फचाक से उसकी चूत में लंड पेल कर उसे चोदने लगा; अब झड़ने की जल्दी मुझे थी सो मैंने ताबड़तोड़, आड़े तिरछे गहरे शॉट्स उसकी चूत में मारने शुरू किये; कम्मो किसी कुशल प्रतिद्वन्दी की तरह लगातार मेरे लंड से अपनी चूत लड़वाती रही.

“अंकल जी अंकल जी, मुझे कसके पकड़ लो आप, जमीन सी हिल रही है मेरे भीतर से कुछ तेज तेज निकल रहा है.” वो बोली और फिर वो झटके से मुझसे लिपट गयी.
और मुझे अपनी बांहों में पूरी शक्ति से कस लिया और अपनी टाँगें मेरी कमर में लपेट दीं.

“अरे बेटा रुक तो सही, मेरा पानी निकलने वाला है; मुझे बाहर निकालने दे.” मैंने उसे चेतावनी दी.
“मेरे भीतर ही भर दो आप तो!” वो मुझसे कस के लिपटते हुए बोली कि कहीं मैं उससे अलग न हट जाऊं.
“अरे तुझे कुछ हो गया तो?”

“होने दो … अंकल अब मेरी शादी होने वाली है; कुछ हो गया तो मैं अपने होने वाले को बुला भेजूंगी और सो जाऊँगी उसके साथ. वो तो कई बार मुझसे मिन्नतें कर चुका है मेरे साथ सोने की. पर अभी तक मैंने उसे हाथ भी न धरने दिया अपने ऊपर!”

कम्मो की बात सुन कर अब मुझे क्या चिंता होनी थी, मैंने आखिरी दस बीस धक्के और लगा कर अपना काम भी तमाम किया और मेरा लंड लावा उगलने लगा. उधर कम्मो की चूत के मस्स्ल्स फैल सिकुड़ कर मेरे लंड से वीर्य को निचोड़ने लगे, एक एक बूंद निचुड़ गयी उसकी चूत में और फिर उसकी चूत एकदम से सिकुड़ गयी और मेरा लंड शहीद होकर बाहर निकल गया.

इसके बाद हम अलग हो गये और कम्मो ने अपनी चूत पास पड़ी चादर से अच्छे से पौंछ डाली और ब्रा पैंटी पहन कर सलवार कुर्ता भी पहन लिया और बालों का जूडा खोल कर बाल फिर से बिखरा लिए.
मैंने भी लंड पौंछा और अपना सूट टाई बूट पहन के कम्मो को सहारा देते हुए बाहर ले आया.

कम्मो को चलने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी; अब ये तो होना ही था न. मैंने कम्मो को समझा दिया कि अगर कोई पूछे तो बोल देना कि डांस करते टाइम पैर मुड़ गया था.

धर्मशाला से बाहर निकले तो किस्मत से एक खाली रिक्शा मिल गया और हम लोग उस पर बैठ कर निकल लिए.

लड़की वालों के द्वार पर बारात पहुँचने ही वाली थी कि हम दोनों चुपके से बारात में शामिल हो गये और किसी को भी कानों कान खबर नहीं हुई कि कौन कहां गया था और कहां से आया.

प्यारी आरएसएस के प्यारे मित्रो, कम्मो की कथा यहीं समाप्त होती है. इस तरह शादी अटेंड करके मैं अगले दिन शाम की ट्रेन से अपने घर वापिस आ गया. हां आने से पहले मैंने कम्मो को हेयर रेमूविंग क्रीम और कैंची लाकर दे दी.
मेरी अदिति बहूरानी मेरे साथ नहीं आयीं क्योंकि उन्हें तो अपनी नयी भाभी के साथ कुछ दिन रुकना था, उसकी सुहागरात की तैयारियां भी उसी के जिम्मे थीं. अब मुझे इन बातों से क्या लेना देना. शादी के एक हफ्ते बाद मेरी बहू फ्लाइट से बैंगलोर चली गयी.

हां, कम्मो से व्हाट्सएप्प और फेसबुक पर आज भी खूब बातें होतीं हैं; लंड चूत चुदाई सब तरह की. अभी पिछले अप्रैल में उसकी शादी थी, मैं भी गया था उसके गांव; गया क्या … जाना पड़ा था उसने कसम दे दे कर जो बुलाया था.
शादी खूब अच्छी तरह से धूमधाम से हुई; हां कम्मो को चोदने का मौका दुबारा नहीं मिल सका.

हालांकि वो ससुराल जाने से पहले एक बार फिर से चुदना चाहती थी; लेकिन शादी की भीडभाड़ में अपना जुगाड़ फिट हो नहीं पाया; इसमें कुछ गलती मेरी भी रही कि मैं शादी के एक दिन पहले शाम को ही पहुंचा था सो उसके घर में खूब सारे रिश्तेदार थे और हमें अकेले कहीं जाना संभव ही नहीं था, शादी की रस्में जो चल रहीं थीं.

अगर मैं दो तीन दिन पहले चला जाता तो फिर पक्का उसे चोद कर ही आता. हां कम्मो ने इतना जरूर किया कि अपनी चूत हेयर रिमूवर से चिकनी बना कर मुझे जरूर दिखा दी एक बार और मेरा हाथ पकड़ कर वहां रख दिया, इस तरह मुझे उसकी चूत छूने और सहलाने का मौका एक मिनट के लिए जरूर मिला.
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मैंने सोचा चलो इतना ही काफी है. क्या पता हम फिर कभी मिलें.दोस्तो आपको बता दु की कम्मो को लड़की और अदिती बहुरानी को लड़का हुआ जो मेरे चुदाई से हुये है.

मित्रो आपको यह कहानी अवश्य पसंद आई होगी ऐसा मेरा विश्वास है. कृपया अपने अपने सुझाव और कमेंट्स करे ताकि मैं अपनी अगली कहानियों में और सुधार ला सकू। धन्यवाद.
….आपका सतीश



समाप्त
 
मुझे आपकी कहानी बहुत पसंद आयी । अभी थोड़ी ही पढ़ी है लेकिन बहुत सेक्सी  लगी.  sexstories said:
अतः मैंने फिर से बहूरानी को अपने नीचे लिटा लिया और उसे पूरी स्पीड से चोदने लगा. जल्दी ही हम दोनों मंजिल पर पहुंचने लगे. बहूरानी मुझसे बेचैन होकर लिपटने लगी; और अपनी चूत देर देर तक ऊपर उठाये रखते हुए लंड का मज़ा लेने लगी. जल्दी ही हम दोनों एक साथ झड़ने लगे. बहूरानी ने अपने नाखून मेरी पीठ में गड़ा दिए और टाँगे मेरी कमर में लपेट कर कस दीं. मेरे लंड से रस की पिचकारियां छूट रहीं थीं तो उधर बहूरानी की चूत भी सुकड़-फैल कर मेरे लंड को निचोड़ रही थी.

थोड़ी देर बाद ही बहूरानी का भुज बंधन शिथिल पड़ गया साथ ही उसकी चूत सिकुड़ गई जिससे मेरा लंड फिसल के बाहर निकल आया.
“थैंक्स पापा जी, बहुत दिनों बाद आज मैं तृप्त हुई.” वो मुझे चूमते हुए बोली.

“क्यों, मेरा बेटा तुझे पूरा मज़ा नहीं देता क्या?”
“वो भी देते हैं; लेकिन आपके मूसल जैसे लंड की ठोकरें खाने में मेरी चूत को जो आनन्द और तृप्ति मिलती है वो अलग ही होती है, उसका कोई मुकाबला नहीं. आपका बेटा तो ऐसे संभल संभल कर करता है कि कहीं चूत को चोट न लग जाए, उसे पता ही नहीं कि चूत को जितना बेरहमी से ‘मारो’ वो उतनी ही खुश होती है.”
“हहाहा, बहूरानी वो धीरे धीरे सीख जाएगा. सेक्स के टाइम तुम उसे बताया करो कि तुम्हें किस तरह मज़ा आता है.”

“ठीक है पापा जी, अच्छा चलो अब सो जाओ. साढ़े तीन से ऊपर ही बजने वाले होंगे पूरी रात ही निकल गयी जागते जागते” बहू रानी बोली.
“अभी थोड़ी देर बाद सोयेंगे. आज अंधेरे में चुदाई हो गई, तेरी चूत के दीदार तो हुए ही नहीं अभी तक. बत्ती जला के अपनी चूत के दर्शन तो करा दे, जरा दिखा तो सही; बहुत दिन हो गए देखे हुए!” मैं बोला.

“पापा जी, कितनी बार तो देख चुके हो मेरी चूत को, चाट भी चुके हो. अब तो आपको ये दो दिन बाद बुधवार को ही मिलेगी.”
“ऐसा क्यों? कल और परसों क्यों नहीं दोगी?”
“पापा जी, अब सुबह होने वाली है. दिन निकलते ही सोमवार शुरू हो जाएगा. सोमवार को मेरा व्रत होता है और मंगल को आपका. अब तो बुधवार को ही दूंगी मैं!”
“चलो ठीक है. लेकिन अभी एक बार दिखा तो सही अपनी चूत!” मैंने जिद की.

बहूरानी उठी और लाइट जला दी, पूरे ड्राइंग रूम में तेज रोशनी फैल गयी. उस दिन महीनों बाद बहूरानी को पूरी नंगी देखा. कुछ भी तो नहीं बदली थी वो. वही रंग रूप, वही तने हुए मम्में, केले के तने जैसी चिकनी जांघे और उनके बीच काली झांटों में छुपी उसकी गुलाबी चूत.

मैंने बहूरानी को पकड़ कर सोफे पर बैठा लिया और उसका एक पैर अपनी गोद में रखा और दूसरा सोफे पर ऊपर फैला दिया जिससे उसकी चूत खुल के सामने आ गयी. मैंने झुक के देखा और चूम लिया चूत को… चूत में से मेरे वीर्य और उसके रज का मिश्रण धीरे धीरे चू रहा था जिसे बहूरानी ने पास रखी नैपकिन से पौंछ दिया.

“ये झांटें क्यों नहीं साफ़ करती तू?” मैंने पूछा.
“पापा जी, ये काम तो आपका बेटा करता है मेरे लिए हमेशा. अब आपको करना पड़ेगा. परसों आप नाई बन जाना मेरे लिए और शेव कर देना मेरी चूत. कर दोगे न पापा जी?” बहूरानी ने पूछा.
“हाँ, बेटा जरूर. तेरी सासू माँ की चूत भी तो मैं ही शेव करता हूँ; तेरी भी कर दूंगा. चूत की झांटें बनाने में तो मुझे ख़ास मज़ा आता है.” मैं हंस कर बोला.

“ठीक है अब जाने दो, मुझे फर्श साफ़ कर दूं. देखो कितना गीला हो रहा है”
“तुम्हारी चूत ने ही तो गीला किया है इसे.” मैंने हंसी की.
“अच्छा … आपका लंड तो बड़ा सीधा है न. उसमें से तो कुछ निकला ही न होगा, है ना?”

बहूरानी ऐसे बोलती हुई किचन में गयी और पौंछा लाकर फर्श साफ़ करने लगी. मैं नंगा ही दीवान पर लेट गया और सोने लगा.
“पापा जी, ऐसे मत सोओ कुछ पहन लो. अभी सात बजे काम वाली मेड आ जायेगी, अच्छा नहीं लगेगा.”
“ठीक है बेटा!” मैंने कहा और चड्ढी पहन कर टी शर्ट और लोअर पहन लिया.

फिर कब नींद आ गयी पता ही न चला.
 
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