desiaks
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अपनी पत्नि की बात बीच में ही काटते हुए राजकुमार देववर्मन अचानक से चिल्ला उठें. उन्होंने चित्रांगदा की जाँघों को कस कर पकड़ लिया, उनका पूरा शरीर कांपने लगा, फिर अकड़ कर कठोर हो गया, उनका सिर तकिये से लुढ़क कर नीचे गिर गया, और ठीक उसी पल अतिउत्तेजना की अग्नि में जल रहे उनके लण्ड ने अपनी पत्नि की चूत को वीर्य की गाढ़ी उल्टीयों से भर दिया. वीर्य की गरम धारों की चोट चूत की नरम अंदरूनी दीवारों पर पड़ी, तो चित्रांगदा की बच्चेदानी में जमा पानी भी उमड़ पड़ा, और चूत के रास्ते होते हुए अंदर फंसे लण्ड के किनारों से रिस रिस कर बाहर बहने लगा ! चित्रांगदा की चूत ने इतनी ढेर सारी मलाई छोड़ी थी की उसके पूरे बदन में एक कंपकंपी सी दौड़ गई, और वो मूर्छित होकर अपने पति के शरीर पर गिर पड़ी !!!
बिस्तर पर बेजान पड़े राजकुमार देववर्मन का अपने शरीर पर कोई नियंत्रण ना रहा, अपने ऊपर किसी निर्जीव प्राणी की भांति लेटी हुई अपनी पत्नि की चूत में वो करीब दस मिनट तक अपना वीर्य निकालते रहें ! आज से पहले कभी भी उनका वीर्यस्खलन इतना लम्बा नहीं चला था !!!
काफ़ी देर तक दोनों पति पत्नि उसी तरह बिस्तर पर पड़े रहें, चित्रांगदा की चूत का सारा रस जब झड़ गया, तो उसकी बेहोशी टूटी. अब वो राजकुमार देववर्मन से लिपटी हुई उनकी बाहें और छाती सहला सहला कर उन्हें शांत करने लगी.
इस दौरान राजकुमार विजयवर्मन बिस्तर के पास खड़े चुपचाप उन दोनों के उठने का इंतज़ार करते रहें.
दस मिनट के बाद चित्रांगदा ने अपने पति के सीने पर से अपना चेहरा उठाकर राजकुमार विजयवर्मन को देखा और हल्के से मुस्कुरा दी, चरमसुख प्राप्ति से उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई थी. उसने अपनी एक टांग ऊपर राजकुमार देववर्मन के पेट तक उठा दी, तो उसकी चूत से उनका झड़ा हुआ लण्ड ढीला पड़कर बाहर फिसल कर निकल आया, और उनकी अपनी ही जाँघ पर पसर गया. लण्ड के निकल जाने से चूत का छेद खाली होते ही उसमें से ढेर सारा वीर्य और चूत का मिला जुला पानी छलक कर बाहर बह निकला और राजकुमार देववर्मन के जाँघों और उनके अंडकोष को भीगोते हुए नीचे बिस्तर के चादर पर फ़ैल गया !
" हठ छोड़िये ना देवर जी, आ जाइये. आपके भैया अब सो जायेंगे, पर मेरी आँखों में अभी दूर दूर तक निद्रा नहीं ! ". चित्रांगदा ने अलसाई हुई आवाज़ में राजकुमार विजयवर्मन की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा.
राजकुमार विजयवर्मन ने अपनी भाभी की बात अनसुनी करते हुए राजकुमार देववर्मन से पूछा.
" क्या अब मुझे आज्ञा है ??? ".
वीर्यपात की थकान से चूर राजकुमार देववर्मन में इतनी भी शक्ति नहीं बची थी की वो अपने छोटे भाई को हाँ या ना में कोई उत्तर दे पाते, या फिर शायद अब उनका मन ही नहीं था बात करने का. उन्होंने अपना एक हाथ उठाकर अपने भाई की ओर देखे बिना ही उसे जाने का इशारा भर कर दिया.
राजकुमार विजयवर्मन अपने वस्त्र पहनने लगें. अपने पति के शरीर से लिपटी हुई चित्रांगदा अपनी होंठों पर हल्की मुस्कान लिए उन्हें कपड़े पहनते हुए देखती रही. फिर जब उनका कपड़ा पहनना हो गया तो उसने पास ही पड़ी चादर खींच कर खुद का और राजकुमार देववर्मन का नंगा शरीर ढंक लिया !
राजकुमार विजयवर्मन तैयार होकर जब जाने को हुए तो पीछे से राजकुमार देववर्मन की आवाज़ आई.
" जाइये अनुज... आपका आभारी हूँ की आप हमारी क्रीड़ा देखने हेतु इतनी देर रुकें. वैसे अब से हमें शायद आपकी आवश्यकता ही ना पड़े, अवंतिका की बातें ही हमारे लिए पर्याप्त होंगी ! आपने तो देखा ही ना की आपकी भाभी ने कैसे अवंतिका की प्यारी प्यारी बातें करके हमारी सहायता की ??? ".
राजकुमार विजयवर्मन बस एक क्षण को रुकें, अपने भाई की बात सुनने के लिए, मगर पीछे मुड़कर नहीं देखा, और और ना ही अपने मुँह से एक भी शब्द निकाले, और फिर अपने बड़े भाई की बात ख़त्म होते ही तेज़ कदमो से शयनकक्ष का दरवाज़ा खोलकर बाहर चले गएँ !!!
-----------------*******----------------
अपने भैया भाभी के शयनकक्ष से निकलकर राजकुमार विजयवर्मन अपने कक्ष की ओर चल पड़े. उनके मन में कई सारे ख्यालों का उधेड़बुन चल रहा था - अपने बड़े भाई का आपत्तिजनक व्यवहार, भाभी की मीठी मीठी बातों में छिपी कुटिलता, और सबसे बड़ी बात, उनका और अवंतिका का भविष्य ! उनका मन अभी तय कर ही रहा था की वो एक बार अपनी छोटी बहन राजकुमारी अवंतिका से मिलते चलें, की उनके कदम अवंतिका के शयनकक्ष की ओर ऐसे बढ़ चले, मानो सब कुछ पहले से ही तय हो चुका हो.
राजकुमार विजयवर्मन को आते देख राजकुमारी अवंतिका के शयनकक्ष के बाहर खड़ी दासी दौड़ कर अंदर चली गई, और फिर राजकुमार विजयवर्मन के द्वार तक पहुँचते पहुँचते वापस जल्दी से बाहर आ गई, और उनसे कहा.
" आपका स्वागत है राजकुमार... परन्तु राजकुमारी अवंतिका ने आपसे क्षमा मांगी है, उनके सोने का समय हो चला है ! ".
" अगर ऐसी बात है तो मुझे स्वयं उनसे मिलकर उन्हें क्षमा करना होगा ! ". राजकुमार विजयवर्मन ने ब्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा, और दरवाज़े से अंदर दाखिल होने के लिए आगे बढे तो दासी सिर झुकाकर एक ओर खड़ी हो गई और उन्हें अंदर प्रवेश करने का रास्ता दे दिया.
कमरे के अंदर एक बड़े से आईने के सामने राजकुमारी अवंतिका बैठी हुई थी और उनके अगल बगल दो दासीयां उनके बाल बना रही थीं. राजकुमारी अवंतिका ने बिना पीछे मुड़े आईने में राजकुमार विजयवर्मन के प्रतिबिम्ब से नज़रें मिलाते हुए कहा.
" औरतों के शयनकक्ष में दासीयों के रहने का कोई तो उद्देश्य होगा ना भैया ??? ".
" अवश्य ! राजकुमारी की सेवा करना, ना की अपने ही प्रियजनों को उनसे मिलने से रोकना... ". विजयवर्मन तपाक से बोलें.
अवंतिका ने उठ कर खड़े होते हुए अपनी दोनों दासीयों को बाहर जाने का इशारा किया, तो उन दोनों के साथ साथ बाकि की दासीयां भी बाहर चली गईं. अवंतिका टहलते हुए विजयवर्मन के समीप जा खड़ी हुई और बोली.
" लगता है आपको मेरी दासी के कथन पर यकीन नहीं हुआ ! ".
" अब हो गया... ". विजयवर्मन ने अपनी बहन को चिढ़ाने के मकसद से घूरते हुए कहा. " आपकी आँखे देखकर ! सचमुच में आपको नींद आ रही है... ".
" अगर कोई अति आवश्यक बात है तो कहिये भैया, नहीं तो सुबह होने की प्रतीक्षा कीजिये... आँख खुलते ही सबसे पहले आपसे ही मिलूंगी ! ". अवंतिका ने अपना मुँह घुमाते हुए कहा.
विजयवर्मन अपनी छोटी बहन की रग रग से वाकिफ थें, उन्हें पता था की उनके मन में क्या चल रहा है, जिस वजह से वो ऐसा ब्यवहार कर रही है. फिर भी उन्होंने अवंतिका की बांह पकड़कर उन्हें अपनी ओर घुमाते हुए पूछा.
" इतना रुखापन किसलिए अवंतिका ??? कम से कम मेरा दोष क्या है, यही बता दीजिये ! ".
" रात्रि को मैं स्नान नहीं करती राजकुमार... मुझे हाथ लगाकर गंदा ना कीजिये ! ". अवंतिका ने अपने भाई की पकड़ से अपनी बांह छुड़ाते हुए कहा.
" और इस रोष का कारण ??? ".
" आप अभी कहाँ से और क्या करके आ रहें हैं, ये शायद आपको सामान्य लगता हो, पर मुझे नहीं ! ".
अवंतिका की बात सुनकर विजयवर्मन थोड़ी देर शांत रहें, और फिर बोलें.
" आपको तो ये हमेशा से पता था अवंतिका... मैंने तो ये बात आपसे कभी नहीं छुपाई. फिर अचानक आज ही मुझसे इतनी घृणा क्यूँ ??? ".
" मेरी बात रहने दीजिये भैया... परन्तु क्या आपको खुद से घृणा नहीं होती ? ".
" नहीं होती अवंतिका, क्यूंकि मुझे पता है की मैं ये सब क्यूँ करता हूँ... ". विजयवर्मन ने कठोर स्वर में कहा. " और ये आपको भी ज्ञात है, मगर चुंकि आपने फिर से उस बात को उठाया है, तो मैं फिर से आपके सामने सब कुछ स्पष्ट किये देता हूँ. भैया देववर्मन नपुंसक हैं !!! वो एकमात्र उपाय जिससे उनके शरीर में कामोत्तेजना आती है, ये है की मैं उनकी पत्नि के साथ सम्भोग करूँ और वो ये देखें. भैया भाभी के वैवाहिक जीवन में मेरी भूमिका तय करने वाला ना ही मैं स्वयं हूँ, ना ही भैया, और ना ही भाभी. ये सारा कुछ तो नियति का किया धरा है... ये ही सत्य है, अवंतिका !!! ".
" आप इस बात पर विश्वास करते हैं की बड़े भैया नपुंसक हैं ??? ". अवंतिका ने ब्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा. " नहीं... मैं तो नहीं मानती ! अपनी घृणित और विकृत मानसिकता को नपुंसकता की आड़ में छुपाने का ये एक छलावा मात्र है... एक बहाना... बस एक षड़यंत्र ! ".
विजयवर्मन को अपनी बहन की बात में सच्चाई दिखी, उन्हें याद आ गया, की कुछ देर पहले कैसे राजकुमार देववर्मन अपनी पत्नि के मुख से अवंतिका के बारे में अभद्र बातें सुनकर वासना से भर गएँ थें, और फिर उन्होंने अपनी पत्नि के साथ सफलतापूर्वक सहवास भी किया ! एक नपुंसक ब्यक्ति के लिए ये संभव होगा ??? कदापि नहीं. मतलब ये, की अपनी पत्नि को अपने ही छोटे भाई के साथ सोते हुए देखने की लालसा, नपुंसकता नहीं, बल्कि मानसिक विकृति है ! आज तक विजयवर्मन को लग रहा था की वो बस अपने भैया भाभी का वैवाहिक जीवन बचाने में उन दोनों की सहायता कर रहें हैं , परन्तु असल में तो देववर्मन मात्र अपनी विकृत इच्छाओ की पूर्ति हेतु उनका उपयोग कर रहे थें. और इन सारे घटनाक्रम में चित्रांगदा का कितना योगदान है, ये भी मात्र समझने भर की बात है !
बिस्तर पर बेजान पड़े राजकुमार देववर्मन का अपने शरीर पर कोई नियंत्रण ना रहा, अपने ऊपर किसी निर्जीव प्राणी की भांति लेटी हुई अपनी पत्नि की चूत में वो करीब दस मिनट तक अपना वीर्य निकालते रहें ! आज से पहले कभी भी उनका वीर्यस्खलन इतना लम्बा नहीं चला था !!!
काफ़ी देर तक दोनों पति पत्नि उसी तरह बिस्तर पर पड़े रहें, चित्रांगदा की चूत का सारा रस जब झड़ गया, तो उसकी बेहोशी टूटी. अब वो राजकुमार देववर्मन से लिपटी हुई उनकी बाहें और छाती सहला सहला कर उन्हें शांत करने लगी.
इस दौरान राजकुमार विजयवर्मन बिस्तर के पास खड़े चुपचाप उन दोनों के उठने का इंतज़ार करते रहें.
दस मिनट के बाद चित्रांगदा ने अपने पति के सीने पर से अपना चेहरा उठाकर राजकुमार विजयवर्मन को देखा और हल्के से मुस्कुरा दी, चरमसुख प्राप्ति से उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई थी. उसने अपनी एक टांग ऊपर राजकुमार देववर्मन के पेट तक उठा दी, तो उसकी चूत से उनका झड़ा हुआ लण्ड ढीला पड़कर बाहर फिसल कर निकल आया, और उनकी अपनी ही जाँघ पर पसर गया. लण्ड के निकल जाने से चूत का छेद खाली होते ही उसमें से ढेर सारा वीर्य और चूत का मिला जुला पानी छलक कर बाहर बह निकला और राजकुमार देववर्मन के जाँघों और उनके अंडकोष को भीगोते हुए नीचे बिस्तर के चादर पर फ़ैल गया !
" हठ छोड़िये ना देवर जी, आ जाइये. आपके भैया अब सो जायेंगे, पर मेरी आँखों में अभी दूर दूर तक निद्रा नहीं ! ". चित्रांगदा ने अलसाई हुई आवाज़ में राजकुमार विजयवर्मन की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा.
राजकुमार विजयवर्मन ने अपनी भाभी की बात अनसुनी करते हुए राजकुमार देववर्मन से पूछा.
" क्या अब मुझे आज्ञा है ??? ".
वीर्यपात की थकान से चूर राजकुमार देववर्मन में इतनी भी शक्ति नहीं बची थी की वो अपने छोटे भाई को हाँ या ना में कोई उत्तर दे पाते, या फिर शायद अब उनका मन ही नहीं था बात करने का. उन्होंने अपना एक हाथ उठाकर अपने भाई की ओर देखे बिना ही उसे जाने का इशारा भर कर दिया.
राजकुमार विजयवर्मन अपने वस्त्र पहनने लगें. अपने पति के शरीर से लिपटी हुई चित्रांगदा अपनी होंठों पर हल्की मुस्कान लिए उन्हें कपड़े पहनते हुए देखती रही. फिर जब उनका कपड़ा पहनना हो गया तो उसने पास ही पड़ी चादर खींच कर खुद का और राजकुमार देववर्मन का नंगा शरीर ढंक लिया !
राजकुमार विजयवर्मन तैयार होकर जब जाने को हुए तो पीछे से राजकुमार देववर्मन की आवाज़ आई.
" जाइये अनुज... आपका आभारी हूँ की आप हमारी क्रीड़ा देखने हेतु इतनी देर रुकें. वैसे अब से हमें शायद आपकी आवश्यकता ही ना पड़े, अवंतिका की बातें ही हमारे लिए पर्याप्त होंगी ! आपने तो देखा ही ना की आपकी भाभी ने कैसे अवंतिका की प्यारी प्यारी बातें करके हमारी सहायता की ??? ".
राजकुमार विजयवर्मन बस एक क्षण को रुकें, अपने भाई की बात सुनने के लिए, मगर पीछे मुड़कर नहीं देखा, और और ना ही अपने मुँह से एक भी शब्द निकाले, और फिर अपने बड़े भाई की बात ख़त्म होते ही तेज़ कदमो से शयनकक्ष का दरवाज़ा खोलकर बाहर चले गएँ !!!
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अपने भैया भाभी के शयनकक्ष से निकलकर राजकुमार विजयवर्मन अपने कक्ष की ओर चल पड़े. उनके मन में कई सारे ख्यालों का उधेड़बुन चल रहा था - अपने बड़े भाई का आपत्तिजनक व्यवहार, भाभी की मीठी मीठी बातों में छिपी कुटिलता, और सबसे बड़ी बात, उनका और अवंतिका का भविष्य ! उनका मन अभी तय कर ही रहा था की वो एक बार अपनी छोटी बहन राजकुमारी अवंतिका से मिलते चलें, की उनके कदम अवंतिका के शयनकक्ष की ओर ऐसे बढ़ चले, मानो सब कुछ पहले से ही तय हो चुका हो.
राजकुमार विजयवर्मन को आते देख राजकुमारी अवंतिका के शयनकक्ष के बाहर खड़ी दासी दौड़ कर अंदर चली गई, और फिर राजकुमार विजयवर्मन के द्वार तक पहुँचते पहुँचते वापस जल्दी से बाहर आ गई, और उनसे कहा.
" आपका स्वागत है राजकुमार... परन्तु राजकुमारी अवंतिका ने आपसे क्षमा मांगी है, उनके सोने का समय हो चला है ! ".
" अगर ऐसी बात है तो मुझे स्वयं उनसे मिलकर उन्हें क्षमा करना होगा ! ". राजकुमार विजयवर्मन ने ब्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा, और दरवाज़े से अंदर दाखिल होने के लिए आगे बढे तो दासी सिर झुकाकर एक ओर खड़ी हो गई और उन्हें अंदर प्रवेश करने का रास्ता दे दिया.
कमरे के अंदर एक बड़े से आईने के सामने राजकुमारी अवंतिका बैठी हुई थी और उनके अगल बगल दो दासीयां उनके बाल बना रही थीं. राजकुमारी अवंतिका ने बिना पीछे मुड़े आईने में राजकुमार विजयवर्मन के प्रतिबिम्ब से नज़रें मिलाते हुए कहा.
" औरतों के शयनकक्ष में दासीयों के रहने का कोई तो उद्देश्य होगा ना भैया ??? ".
" अवश्य ! राजकुमारी की सेवा करना, ना की अपने ही प्रियजनों को उनसे मिलने से रोकना... ". विजयवर्मन तपाक से बोलें.
अवंतिका ने उठ कर खड़े होते हुए अपनी दोनों दासीयों को बाहर जाने का इशारा किया, तो उन दोनों के साथ साथ बाकि की दासीयां भी बाहर चली गईं. अवंतिका टहलते हुए विजयवर्मन के समीप जा खड़ी हुई और बोली.
" लगता है आपको मेरी दासी के कथन पर यकीन नहीं हुआ ! ".
" अब हो गया... ". विजयवर्मन ने अपनी बहन को चिढ़ाने के मकसद से घूरते हुए कहा. " आपकी आँखे देखकर ! सचमुच में आपको नींद आ रही है... ".
" अगर कोई अति आवश्यक बात है तो कहिये भैया, नहीं तो सुबह होने की प्रतीक्षा कीजिये... आँख खुलते ही सबसे पहले आपसे ही मिलूंगी ! ". अवंतिका ने अपना मुँह घुमाते हुए कहा.
विजयवर्मन अपनी छोटी बहन की रग रग से वाकिफ थें, उन्हें पता था की उनके मन में क्या चल रहा है, जिस वजह से वो ऐसा ब्यवहार कर रही है. फिर भी उन्होंने अवंतिका की बांह पकड़कर उन्हें अपनी ओर घुमाते हुए पूछा.
" इतना रुखापन किसलिए अवंतिका ??? कम से कम मेरा दोष क्या है, यही बता दीजिये ! ".
" रात्रि को मैं स्नान नहीं करती राजकुमार... मुझे हाथ लगाकर गंदा ना कीजिये ! ". अवंतिका ने अपने भाई की पकड़ से अपनी बांह छुड़ाते हुए कहा.
" और इस रोष का कारण ??? ".
" आप अभी कहाँ से और क्या करके आ रहें हैं, ये शायद आपको सामान्य लगता हो, पर मुझे नहीं ! ".
अवंतिका की बात सुनकर विजयवर्मन थोड़ी देर शांत रहें, और फिर बोलें.
" आपको तो ये हमेशा से पता था अवंतिका... मैंने तो ये बात आपसे कभी नहीं छुपाई. फिर अचानक आज ही मुझसे इतनी घृणा क्यूँ ??? ".
" मेरी बात रहने दीजिये भैया... परन्तु क्या आपको खुद से घृणा नहीं होती ? ".
" नहीं होती अवंतिका, क्यूंकि मुझे पता है की मैं ये सब क्यूँ करता हूँ... ". विजयवर्मन ने कठोर स्वर में कहा. " और ये आपको भी ज्ञात है, मगर चुंकि आपने फिर से उस बात को उठाया है, तो मैं फिर से आपके सामने सब कुछ स्पष्ट किये देता हूँ. भैया देववर्मन नपुंसक हैं !!! वो एकमात्र उपाय जिससे उनके शरीर में कामोत्तेजना आती है, ये है की मैं उनकी पत्नि के साथ सम्भोग करूँ और वो ये देखें. भैया भाभी के वैवाहिक जीवन में मेरी भूमिका तय करने वाला ना ही मैं स्वयं हूँ, ना ही भैया, और ना ही भाभी. ये सारा कुछ तो नियति का किया धरा है... ये ही सत्य है, अवंतिका !!! ".
" आप इस बात पर विश्वास करते हैं की बड़े भैया नपुंसक हैं ??? ". अवंतिका ने ब्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा. " नहीं... मैं तो नहीं मानती ! अपनी घृणित और विकृत मानसिकता को नपुंसकता की आड़ में छुपाने का ये एक छलावा मात्र है... एक बहाना... बस एक षड़यंत्र ! ".
विजयवर्मन को अपनी बहन की बात में सच्चाई दिखी, उन्हें याद आ गया, की कुछ देर पहले कैसे राजकुमार देववर्मन अपनी पत्नि के मुख से अवंतिका के बारे में अभद्र बातें सुनकर वासना से भर गएँ थें, और फिर उन्होंने अपनी पत्नि के साथ सफलतापूर्वक सहवास भी किया ! एक नपुंसक ब्यक्ति के लिए ये संभव होगा ??? कदापि नहीं. मतलब ये, की अपनी पत्नि को अपने ही छोटे भाई के साथ सोते हुए देखने की लालसा, नपुंसकता नहीं, बल्कि मानसिक विकृति है ! आज तक विजयवर्मन को लग रहा था की वो बस अपने भैया भाभी का वैवाहिक जीवन बचाने में उन दोनों की सहायता कर रहें हैं , परन्तु असल में तो देववर्मन मात्र अपनी विकृत इच्छाओ की पूर्ति हेतु उनका उपयोग कर रहे थें. और इन सारे घटनाक्रम में चित्रांगदा का कितना योगदान है, ये भी मात्र समझने भर की बात है !