hotaks444
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मेन रोड से थोड़ा पहले मेरा बॅग और बाइक थे सो जीप साइड में रोक कर अपना बॅग लिया, बाइक को वहीं छोड़ा और वहाँ से निकल लिया.
इस समय रात के 2:00 बज रहे थे, मैने जीप को शहर से बाहर जाने वाले रास्ते पर डाल दिया, मुझे अब शाकीना की चिंता सताने लगी थी.
पता नही उस हरम्जादे ने ड्रग्स कितनी मात्रा में उसको दिया था.
मे बीच- 2 में पीछे मुड़कर उस पर नज़र डाल लेता था, अब मुझे और शाकीना को इस शहर ही नही इस देश से ही बाहर निकलना था,
क्योंकि खालिद की मौत का पता चलते ही उन लोगों को समझने में ज़्यादा वक़्त नही लगना था कि ये क्यों और किस वजह से हुआ…!
शहर के पीछे छूटते ही, मैने जीप को बिना रोके ही अपने बॅग से ट्रांसमीटर निकाला और हॉटलाइन पर एनएसए को कॉल लगाई,
कॉल जाती रही लेकिन पिक नही हो रही थी, अब रात के दो बजे ये इतना आसान भी नही था कि वो कॉल पिक करते.
अब मेरे सामने एक ही रास्ता था, किसी तरह सुबह होने से पहले-2 मुझे झेलम के रास्ते कश्मीर में पहुँचना पड़ेगा,
ख़तरा बहुत था, जो गुज़रते वक़्त के साथ साथ बढ़ता ही जा रहा था…
लेकिन अब मेरे सामने और कोई रास्ता भी नही था, सो मैने जीप को अंधाधुंड रावलपिंडी की तरफ दौड़ा दिया..
फेब्रुवरी का मौसम खुली जीप में ठंड के मारे शरीर सुन्न सा पड़ रहा था, लेकिन मैने स्पीड कम नही की.
वैसे तो हम गरम जॅकेट डाले हुए थे, एक जॅकेट शाकीना के लिए भी लाया था जो बॅग से निकाल कर उसको भी पहना दी थी,
फिर भी एक तो खुला जंगल, उपर से खुली जीप की फुल स्पीड, ठंडी हवा कपड़ों को चीर कर शरीर में चुभ सी रही थी.
लेकिन ठंड का एक फ़ायदा भी हुया, शाकीना के ड्रग का असर कम होने लगा, और वो ठंडी हवा लगने से कुन्मूनाने लगी.
जब उसको कुछ होश आया तो अपने आप को खुली जीप में पिच्छली सीट पर पड़ा हुआ पाया ,
वो हड़बड़ा कर उठ गयी और जब उसने देखा कि कोई गार्ड उसे जंगल के रास्ते खुली जीप में डालकर ले जारहा है,
सबसे पहले उसके दिमाग़ ने यही सोचा, कि ये शायद मुझे मारकर जंगल में ठिकाने लगाने ले जा रहा है..
ये विचार आते ही वो बिना सोचे समझे ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी…!
उसकी चीखें रात के सन्नाटे को चीरती हुई दूर-दूर तक फिजाओं में गूंजने लगी.
मैने फ़ौरन पीछे मुड़कर उसे आवाज़ दी, अपना मास्क मे पहले ही उतार चुका था…
अनायास ही मेरी आवाज़ सुन कर वो चोंक पड़ी और फिर जैसे ही उसने मुझे पहचाना, पीछे से ही मेरे गले से लिपट कर सुबकने लगी.
मैने उसे शांत रहने को कहा और जीप की स्पीड कम करके, हाथ का सहारा देकर आगे की सीट पर बिठा लिया….!!
आगे की सीट पर बैठकर उसने अपना सर मेरे कंधे से टिका लिया, उसकी पलकें ड्रग के असर से अभी भी भारी भारी सी थी,
उसने अपनी भीगी आँखों से मेरी ओर देखा और बोली-
मे तो खालिद के ऑफीस में थी, यहाँ कैसे आ गई ?, और हम यहाँ जंगलों में कहाँ जा रहे हैं..?
मे लाया हूँ तुम्हें वहाँ से निकाल कर,
बहुत देर तक जब तुम घर नही लौटी तो मैने वहाँ फोन किया जो उसके सेक्यूरिटी चीफ के पास था,
उसकी बातों से मुझे लगा कि तुम मुशिबत में हो.
फिर मैने उसे सारी बात बताई कि कैसे मे वहाँ पहुँचा और मैने उसे किस हालत में पाया.
शाकीना रोते हुए अपनी दास्तान बताने लगी, कि किस तरह से आज खालिद ने मुझे अपने पास बुलाकर मेरे साथ छेड़-छाड़ की,
फिर जब उसकी हवस ज़्यादा बढ़ गयी, तो उसने साफ-साफ शब्दों में मुझे उसके साथ सेक्स करने को कहा…
मेरे मना करने पर वो मेरे साथ ज़ोर ज़बरदस्ती करने लगा, फिर मैने उसे उसका प्रॉमिस याद दिलाया, जिसे सुनकर वो उस वक़्त तो मान गया…
लेकिन शाम की चाय पीने के कुछ देर बाद ही मेरा सर चकराने लगा, बदन में अजीब सी बैचैनि होने लगी…
मे उसके रूम में घर जाने के लिए पर्मीशन लेने गयी, जब उसने कारण पुछा कि इतनी जल्दी क्यों जाना चाहती हो….!
जब मैने कारण बताया, तो उसने बड़े प्यार से मुझे वहीं उसके सोफे पर रिलॅक्स होने को कहा…
मेरी हालत नाज़ुक होती जा रही थी, मुझे लगने लगा कि अभी इस हालत में मे अकेली घर भी नही जा पाउन्गि,
इसलिए मैने उसी सोफे पर कुछ देर रेस्ट करने का सोचा, और वैसे भी उसके हॉ-भाव से लग नही रहा था कि वो मेरे साथ कुछ ग़लत करने का सोच रहा हो…
करीब आधे-एक घंटे की नींद के बाद अचानक ही मेरे बदन में चींटियाँ सी काटने लगीं,
स्वतः ही मेरे हाथ मेरे बदन पर पहुँच गये और में अपने नाज़ुक अंगों को सहलाने लगी…
उसी वक़्त वो अपने रूम में एंटर हुआ, और मेरी अवस्था देखकर उसके चेहरे पर स्माइल आ गयी,
इस समय रात के 2:00 बज रहे थे, मैने जीप को शहर से बाहर जाने वाले रास्ते पर डाल दिया, मुझे अब शाकीना की चिंता सताने लगी थी.
पता नही उस हरम्जादे ने ड्रग्स कितनी मात्रा में उसको दिया था.
मे बीच- 2 में पीछे मुड़कर उस पर नज़र डाल लेता था, अब मुझे और शाकीना को इस शहर ही नही इस देश से ही बाहर निकलना था,
क्योंकि खालिद की मौत का पता चलते ही उन लोगों को समझने में ज़्यादा वक़्त नही लगना था कि ये क्यों और किस वजह से हुआ…!
शहर के पीछे छूटते ही, मैने जीप को बिना रोके ही अपने बॅग से ट्रांसमीटर निकाला और हॉटलाइन पर एनएसए को कॉल लगाई,
कॉल जाती रही लेकिन पिक नही हो रही थी, अब रात के दो बजे ये इतना आसान भी नही था कि वो कॉल पिक करते.
अब मेरे सामने एक ही रास्ता था, किसी तरह सुबह होने से पहले-2 मुझे झेलम के रास्ते कश्मीर में पहुँचना पड़ेगा,
ख़तरा बहुत था, जो गुज़रते वक़्त के साथ साथ बढ़ता ही जा रहा था…
लेकिन अब मेरे सामने और कोई रास्ता भी नही था, सो मैने जीप को अंधाधुंड रावलपिंडी की तरफ दौड़ा दिया..
फेब्रुवरी का मौसम खुली जीप में ठंड के मारे शरीर सुन्न सा पड़ रहा था, लेकिन मैने स्पीड कम नही की.
वैसे तो हम गरम जॅकेट डाले हुए थे, एक जॅकेट शाकीना के लिए भी लाया था जो बॅग से निकाल कर उसको भी पहना दी थी,
फिर भी एक तो खुला जंगल, उपर से खुली जीप की फुल स्पीड, ठंडी हवा कपड़ों को चीर कर शरीर में चुभ सी रही थी.
लेकिन ठंड का एक फ़ायदा भी हुया, शाकीना के ड्रग का असर कम होने लगा, और वो ठंडी हवा लगने से कुन्मूनाने लगी.
जब उसको कुछ होश आया तो अपने आप को खुली जीप में पिच्छली सीट पर पड़ा हुआ पाया ,
वो हड़बड़ा कर उठ गयी और जब उसने देखा कि कोई गार्ड उसे जंगल के रास्ते खुली जीप में डालकर ले जारहा है,
सबसे पहले उसके दिमाग़ ने यही सोचा, कि ये शायद मुझे मारकर जंगल में ठिकाने लगाने ले जा रहा है..
ये विचार आते ही वो बिना सोचे समझे ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी…!
उसकी चीखें रात के सन्नाटे को चीरती हुई दूर-दूर तक फिजाओं में गूंजने लगी.
मैने फ़ौरन पीछे मुड़कर उसे आवाज़ दी, अपना मास्क मे पहले ही उतार चुका था…
अनायास ही मेरी आवाज़ सुन कर वो चोंक पड़ी और फिर जैसे ही उसने मुझे पहचाना, पीछे से ही मेरे गले से लिपट कर सुबकने लगी.
मैने उसे शांत रहने को कहा और जीप की स्पीड कम करके, हाथ का सहारा देकर आगे की सीट पर बिठा लिया….!!
आगे की सीट पर बैठकर उसने अपना सर मेरे कंधे से टिका लिया, उसकी पलकें ड्रग के असर से अभी भी भारी भारी सी थी,
उसने अपनी भीगी आँखों से मेरी ओर देखा और बोली-
मे तो खालिद के ऑफीस में थी, यहाँ कैसे आ गई ?, और हम यहाँ जंगलों में कहाँ जा रहे हैं..?
मे लाया हूँ तुम्हें वहाँ से निकाल कर,
बहुत देर तक जब तुम घर नही लौटी तो मैने वहाँ फोन किया जो उसके सेक्यूरिटी चीफ के पास था,
उसकी बातों से मुझे लगा कि तुम मुशिबत में हो.
फिर मैने उसे सारी बात बताई कि कैसे मे वहाँ पहुँचा और मैने उसे किस हालत में पाया.
शाकीना रोते हुए अपनी दास्तान बताने लगी, कि किस तरह से आज खालिद ने मुझे अपने पास बुलाकर मेरे साथ छेड़-छाड़ की,
फिर जब उसकी हवस ज़्यादा बढ़ गयी, तो उसने साफ-साफ शब्दों में मुझे उसके साथ सेक्स करने को कहा…
मेरे मना करने पर वो मेरे साथ ज़ोर ज़बरदस्ती करने लगा, फिर मैने उसे उसका प्रॉमिस याद दिलाया, जिसे सुनकर वो उस वक़्त तो मान गया…
लेकिन शाम की चाय पीने के कुछ देर बाद ही मेरा सर चकराने लगा, बदन में अजीब सी बैचैनि होने लगी…
मे उसके रूम में घर जाने के लिए पर्मीशन लेने गयी, जब उसने कारण पुछा कि इतनी जल्दी क्यों जाना चाहती हो….!
जब मैने कारण बताया, तो उसने बड़े प्यार से मुझे वहीं उसके सोफे पर रिलॅक्स होने को कहा…
मेरी हालत नाज़ुक होती जा रही थी, मुझे लगने लगा कि अभी इस हालत में मे अकेली घर भी नही जा पाउन्गि,
इसलिए मैने उसी सोफे पर कुछ देर रेस्ट करने का सोचा, और वैसे भी उसके हॉ-भाव से लग नही रहा था कि वो मेरे साथ कुछ ग़लत करने का सोच रहा हो…
करीब आधे-एक घंटे की नींद के बाद अचानक ही मेरे बदन में चींटियाँ सी काटने लगीं,
स्वतः ही मेरे हाथ मेरे बदन पर पहुँच गये और में अपने नाज़ुक अंगों को सहलाने लगी…
उसी वक़्त वो अपने रूम में एंटर हुआ, और मेरी अवस्था देखकर उसके चेहरे पर स्माइल आ गयी,