Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना - Page 26 - SexBaba
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Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

मेन रोड से थोड़ा पहले मेरा बॅग और बाइक थे सो जीप साइड में रोक कर अपना बॅग लिया, बाइक को वहीं छोड़ा और वहाँ से निकल लिया.

इस समय रात के 2:00 बज रहे थे, मैने जीप को शहर से बाहर जाने वाले रास्ते पर डाल दिया, मुझे अब शाकीना की चिंता सताने लगी थी. 

पता नही उस हरम्जादे ने ड्रग्स कितनी मात्रा में उसको दिया था.

मे बीच- 2 में पीछे मुड़कर उस पर नज़र डाल लेता था, अब मुझे और शाकीना को इस शहर ही नही इस देश से ही बाहर निकलना था, 

क्योंकि खालिद की मौत का पता चलते ही उन लोगों को समझने में ज़्यादा वक़्त नही लगना था कि ये क्यों और किस वजह से हुआ…!

शहर के पीछे छूटते ही, मैने जीप को बिना रोके ही अपने बॅग से ट्रांसमीटर निकाला और हॉटलाइन पर एनएसए को कॉल लगाई, 

कॉल जाती रही लेकिन पिक नही हो रही थी, अब रात के दो बजे ये इतना आसान भी नही था कि वो कॉल पिक करते.

अब मेरे सामने एक ही रास्ता था, किसी तरह सुबह होने से पहले-2 मुझे झेलम के रास्ते कश्मीर में पहुँचना पड़ेगा, 

ख़तरा बहुत था, जो गुज़रते वक़्त के साथ साथ बढ़ता ही जा रहा था…

लेकिन अब मेरे सामने और कोई रास्ता भी नही था, सो मैने जीप को अंधाधुंड रावलपिंडी की तरफ दौड़ा दिया..

फेब्रुवरी का मौसम खुली जीप में ठंड के मारे शरीर सुन्न सा पड़ रहा था, लेकिन मैने स्पीड कम नही की. 

वैसे तो हम गरम जॅकेट डाले हुए थे, एक जॅकेट शाकीना के लिए भी लाया था जो बॅग से निकाल कर उसको भी पहना दी थी, 

फिर भी एक तो खुला जंगल, उपर से खुली जीप की फुल स्पीड, ठंडी हवा कपड़ों को चीर कर शरीर में चुभ सी रही थी.

लेकिन ठंड का एक फ़ायदा भी हुया, शाकीना के ड्रग का असर कम होने लगा, और वो ठंडी हवा लगने से कुन्मूनाने लगी.

जब उसको कुछ होश आया तो अपने आप को खुली जीप में पिच्छली सीट पर पड़ा हुआ पाया , 

वो हड़बड़ा कर उठ गयी और जब उसने देखा कि कोई गार्ड उसे जंगल के रास्ते खुली जीप में डालकर ले जारहा है, 

सबसे पहले उसके दिमाग़ ने यही सोचा, कि ये शायद मुझे मारकर जंगल में ठिकाने लगाने ले जा रहा है..

ये विचार आते ही वो बिना सोचे समझे ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी…! 

उसकी चीखें रात के सन्नाटे को चीरती हुई दूर-दूर तक फिजाओं में गूंजने लगी.

मैने फ़ौरन पीछे मुड़कर उसे आवाज़ दी, अपना मास्क मे पहले ही उतार चुका था…

अनायास ही मेरी आवाज़ सुन कर वो चोंक पड़ी और फिर जैसे ही उसने मुझे पहचाना, पीछे से ही मेरे गले से लिपट कर सुबकने लगी.

मैने उसे शांत रहने को कहा और जीप की स्पीड कम करके, हाथ का सहारा देकर आगे की सीट पर बिठा लिया….!! 


आगे की सीट पर बैठकर उसने अपना सर मेरे कंधे से टिका लिया, उसकी पलकें ड्रग के असर से अभी भी भारी भारी सी थी, 

उसने अपनी भीगी आँखों से मेरी ओर देखा और बोली- 

मे तो खालिद के ऑफीस में थी, यहाँ कैसे आ गई ?, और हम यहाँ जंगलों में कहाँ जा रहे हैं..?

मे लाया हूँ तुम्हें वहाँ से निकाल कर, 

बहुत देर तक जब तुम घर नही लौटी तो मैने वहाँ फोन किया जो उसके सेक्यूरिटी चीफ के पास था, 

उसकी बातों से मुझे लगा कि तुम मुशिबत में हो.

फिर मैने उसे सारी बात बताई कि कैसे मे वहाँ पहुँचा और मैने उसे किस हालत में पाया.

शाकीना रोते हुए अपनी दास्तान बताने लगी, कि किस तरह से आज खालिद ने मुझे अपने पास बुलाकर मेरे साथ छेड़-छाड़ की, 

फिर जब उसकी हवस ज़्यादा बढ़ गयी, तो उसने साफ-साफ शब्दों में मुझे उसके साथ सेक्स करने को कहा…

मेरे मना करने पर वो मेरे साथ ज़ोर ज़बरदस्ती करने लगा, फिर मैने उसे उसका प्रॉमिस याद दिलाया, जिसे सुनकर वो उस वक़्त तो मान गया…

लेकिन शाम की चाय पीने के कुछ देर बाद ही मेरा सर चकराने लगा, बदन में अजीब सी बैचैनि होने लगी…

मे उसके रूम में घर जाने के लिए पर्मीशन लेने गयी, जब उसने कारण पुछा कि इतनी जल्दी क्यों जाना चाहती हो….!

जब मैने कारण बताया, तो उसने बड़े प्यार से मुझे वहीं उसके सोफे पर रिलॅक्स होने को कहा…

मेरी हालत नाज़ुक होती जा रही थी, मुझे लगने लगा कि अभी इस हालत में मे अकेली घर भी नही जा पाउन्गि, 

इसलिए मैने उसी सोफे पर कुछ देर रेस्ट करने का सोचा, और वैसे भी उसके हॉ-भाव से लग नही रहा था कि वो मेरे साथ कुछ ग़लत करने का सोच रहा हो…

करीब आधे-एक घंटे की नींद के बाद अचानक ही मेरे बदन में चींटियाँ सी काटने लगीं, 

स्वतः ही मेरे हाथ मेरे बदन पर पहुँच गये और में अपने नाज़ुक अंगों को सहलाने लगी…

उसी वक़्त वो अपने रूम में एंटर हुआ, और मेरी अवस्था देखकर उसके चेहरे पर स्माइल आ गयी,
 
मेरे पास बैठकर उसने मेरे बदन पर हाथ फिराया…ड्रग के असर की वजह से मुझे उसका हाथ लगाना अच्छा भी लगा, 

लेकिन थोड़ा सा होश अभी वाकि था, सो उसके टच करते ही मे उठकर बैठ गयी, और घर जाने के लिए खड़ी हुई…

तभी उसने मेरा हाथ थामा, और एक झटके के साथ मुझे अपने उपर खींच लिया, मे सीधी उसकी गोद में जाकर गिरी…!

उसने मुझे अपनी बाहों में जकड लिया, मे कुछ देर उसकी बाहों से निकलने के लिए मचलती रही, लेकिन उसकी मजबूत पकड़ के आगे बेबस थी…

धीरे-2 उसके हाथ मेरे बदन पर चलने लगे, ड्रग के प्रभाव से कुछ ही देर में मेरा प्रतिरोध ख़तम हो गया और मैने अपने आप को उसके हवाले कर दिया…

मे जो भी कर रही थी, उसका मुझे कोई इल्म नही था…मे अपने होसो-हवास खोती जा रही थी…

मुझे यहाँ तक आभास हुआ कि वो मेरे उपर चढ़ रहा है, फिर उसके बाद क्या हुआ मुझे पता नही….

इतना बोलकर शाकीना फफक-फफक कर रो पड़ी, मैने उसके कंधे को सहला कर उसे शांत करने की कोशिश की…

शाकीना रोते हुए बोली – मुझे मुआफ़ कर देना मेरे सरताज, मे अपना वादा निभा ना सकी, अपने आप को नही बचा सकी…

मैने उसे समझाया – जान ! तुम्हें दुखी होने की या सफाई देने की कोई ज़रूरत नही है…, ये जो भी हुआ तुम्हारी बेबसी में हुआ…

बस अभी थोड़ा शांत रहो और मुझे ड्राइविंग पर फोकस करने दो…

जब मैने उसे उस बारे में बोलने से मना कर दिया तो फिर उसने पुछा - लेकिन अब हम जा कहाँ रहे हैं..?

मे – हिन्दुस्तान.. अब हम पाकिस्तान में नही रह सकते..!

वो- क्क्याअ..??? लेकिन क्यों..? क्यों नही रह सकते हम यहाँ..?

मे – क्योंकि मैने खालिद को मार डाला है.. अब उसके आदमी शिकारी कुत्तों की तरह हमारे पीछे पड़ जाएँगे, और कहीं से भी ढूंड निकालेंगे, 

ये पता लगाने में तो उन्हें वक़्त भी नही लगेगा कि वो तुम्हारी वजह से मारा गया है..

अब हमें किसी भी तरह सुबह होने से पहले-2 ये मुल्क हर हालत में छोड़ना ही पड़ेगा.

कुछ देर तक वो सकते की हालत में बैठी रही फिर कुछ सोच कर बोली – लेकिन आपने उसे मारा क्यों..?

मे – क्योंकि उसने तुम्हारे साथ जो वहशियाना हरकत की, तो उसे देख कर मे अपने आप को रोक नही पाया, मुझे उसे मारना ही पड़ा.. और दूसरा कोई चारा भी नही बचा था मेरे पास..
बिना उसे ख़तम किए हमारा वहाँ से निकलना नामुमकिन था…

वो एकटक मुझे देखती रही, फिर अपने बाजुओं को मेरे गले में लपेटकर सूबकते हुए बोली – इतना प्यार करते हैं मुझे….!

मे – तुम भी तो करती हो ना ! मेरे एक इशारे पर बिना सोचे समझे तुमने अपने आप को मौत के मुँह में डाल दिया…!

वो एकदम मेरे शरीर से लिपट गयी और बोली – आइ लव यू जान..

मे – आइ लव यू टू.. डार्लिंग, अब देखो थोड़ा मुझे ड्राइविंग ध्यान से करने दो वरना हम कही टकरा जाएँगे, 

आगे अंधेरा है, जंगल का इलाक़ा है.

मेरी बात समझ कर वो नॉर्मली मेरे कंधे से सर टिका कर बैठ गयी और अपना अगला सवाल किया – लेकिन मेरी अम्मी और बाजी का क्या होगा..?

उनके बारे में किसी को कुछ पता नही है, क्या तुमने अपने ऑफीस में किसी को बताया है..?

वो – नही..! लेकिन वो फिक्रमन्द तो होंगी..

मे – चिंता मत करो उन तक खबर पहुँचवा दूँगा, मेरा जबाब सुनकर वो कुछ अस्वस्त हुई और अपनी आखे बंद करके बैठ गयी..

जीप की स्पीड तेज होने की वजह से बातों-2 में रास्ते और समय का पता ही नही चला और हम 4:30पीएम को झेलम के किनारे तक पहुँच गये..

मैने जीप को झाड़ियों में छिपा दिया, शाकीना का हाथ पकड़ कर नदी के किनारे ले आया, और छिप्ते छिपते हम बॉर्डर तक आ गये..

अब हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल था बॉर्डर से नदी पार करना, जो कतयि आसान काम नही था.

मुझे ज़्यादा फिकर पाकिस्तान साइड से नही थी, वो तो मस्ती से पड़े सोते रहते होंगे, क्योंकि उन्हें किसी के आने जाने से कोई फरक नही पड़ना था, 

कोई इधर से जाए या उधर से आए, दोनो ही सूरत में हिन्दुस्तान को ही नुकसान पहुँचाने वाले होंगे.

लेकिन जब हम हिन्दुस्तान की ज़मीन पर कदम रखेंगे, तो हालत संभालना थोड़ा मुश्किल होगा, अगर कहीं बीएसएफ ने हमें देखते ही गोली चला दी तो…?

लेकिन जाना तो था ही और वो भी रात के अंधेरे में, मैने सोचा चलो एक बार और एनएसए को कॉल करके देखते हैं.. 

मे टाय्लेट के बहाने थोड़ा सा झाड़ियों के पीछे तक गया और ट्रांसमीटर निकाल कर कॉल ट्राइ किया.

दो तीन बार की कोशिश के बाद कॉल पिक कर ली गयी, मैने उन्हें परिस्थिति से अवगत कराया, 
 
पहले तो वो शाकीना की वजह से भड़क गये, लेकिन फिर ज़्यादा मिन्नतें करने के बाद बोले-

देखो अरुण मे अपने बिहाफ पर तुम्हें उसे लाने की पर्मीशन दे सकता हूँ, 
लेकिन यहाँ उसे कैसे और किस तरह से रखना है, वो तुम्हारा पर्सनल मॅटर होगा, 

और हां ! किसी भी तरह ये बात पब्लिकली नही होनी चाहिए..

मैने उन्हें आश्वस्त किया और बीएसफ से बात करने की रिक्वेस्ट की, 

उनके हां बोलते ही मैने कॉल कट की, शाकीना के पास आकर उसका हाथ पकड़ा और अपना बॅग लेकर नदी के ठंडे पानी में उतर गये……. 

नदी के पानी में पैर रखते ही हम दोनो की कंपकंपी छूट गयी, होठ ठंड से थर-थर काँपने लगे, 

लेकिन हम पानी के अंदर और अंदर चलते चले गये, कुछ देर में हमारे शरीर एकदम सुन्न पड़ गये, और ठंड का असर कम होने लगा.

हम कोशिश में थे कि ज़्यादा से ज़्यादा किनारे की तरफ ही रहें जिससे हमें तैरने में अपनी एनर्जी वेस्ट ना करनी पड़े, 

क्योंकि नदी का बहाब पाकिस्तान की तरफ था, और बहाब के विपरीत तैरना हर किसी के वश की बात नही….

लेकिन जैसे ही अपनी सीमा पर पहुँचे, यहाँ पानी के अंदर तक स्टील की वाइयर जाली से बाउंड्री जैसी थी, जिस लेवेल पर हम खड़े थे वहाँ तक तो वो जाली ज़मीन में अंदर तक गढ़ी हुई थी. 

थोड़ा और अंदर गये, अब पानी हमारे गले से उपर तक था, पैरों से चेक किया तो जाली में यहाँ भी गॅप नही मिला, 

फिर मैने उसको वहीं खड़ा रहने को कहा और मैने पानी के अंदर डुबकी लगा दी.

थोड़ी दूर तक जाली के सहारे-2 पानी के अंदर तैरने के बाद कुछ गॅप मिला जहाँ से एक आदमी सावधानी से ज़मीन से चिपक कर पार हो सकता था.

मे वापस आया और शाकीना को सब डीटेल में समझाया..

वो भी बड़ी जीवट वाली लड़की थी, तैरना तो उसे अच्छे से आता ही था, सो थोड़ी सी कोशिश के बाद हम सीमा पार कर गये…

आख़िरकार अपने प्यारे वतन की सीमा में आज 5 सालों के बाद मैने कदम रखा था. 

भोर का उजाला अब जल्दी ही होने को था, धीरे-2 एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए हम दोनो किनारे तक पहुँचे और नदी की ठंडी रेत में थोड़ा सुसताने के लिए बैठ गये, 

सुबह के धुंधले उजाले में नदी के झक्क नीले पानी में कल-कल करती लहरों का आनंद लेने लगे.

अभी हमें कोई 10 मिनट भी नही हुए थे वहाँ बैठे, की हमारे पीछे से एक कड़क आवाज़ कानों में पड़ी… हॅंड्ज़ अप…..!


हमने पीछे मुड़कर देखा, हमसे कुछ ही फ़ासले पर 4 बीएसफ के जवान हाथों में गन लिए जिनका निशाना हमारी ओर ही था खड़े थे, 

उनमें से वही पहले वाले ने फिर से कड़कदार आवाज़ में कहा….

हाथ उपर, कोई हरकत की तो भून दिए जाओगे…

हम दोनो ने अपने-अपने हाथ उपर कर लिए, शाकीना डर के मारे थर-थर काँप रही थी…

मैने इशारे से उसे रिलॅक्स रहने को कहा…

वो जवान निशाना लगाए हुए हमारे नज़दीक तक आए और कोई 10 कदम दूर पर आकर खड़े हो गये..

उनमें से फिर वहीं जवान बोला – कॉन हो तुम लोग..? और यहाँ कैसे बैठे हो..?

मैने उन्हें सच बताना ही बेहतर समझा, इसलिए तुरंत कहा – हम पाकिस्तान की सीमा क्रॉस करके अभी-अभी आए हैं..
वो चोन्कते हुए बोला – क्या..?? तुम लोग पाकिस्तानी हो..??

मे – नही ! हम हिन्दुस्तानी हैं, क्या आप लोगों को अपने ऑफीसर की तरफ से कोई इन्फर्मेशन नही मिली.?

वो – नही अभी तक तो नही, वैसे कॉन हो तुम लोग..? क्या नाम है तुम्हारा..?

मे थोड़ा आगे की ओर बढ़ा तो उसने मुझे फिर से वॉर्न किया, फिर मैने उसको थोड़ा साइड में आने का इशारा किया, 

कुछ सोचकर वो साइड को हुआ मे भी उसकी तरफ हाथ उपर किए हुए ही बढ़ा.

वो अभी भी उतनी ही दूरी बनाए हुए था, जब लगा कि अब मेरी बात शाकीना तक नही सुनाई देगी तो मे उससे कहा – 

आप अपने ऑफीसर से कॉंटॅक्ट करो और उनको बोलो एजेंट 928 भारत लौट आया है..

उसने वहीं खड़े-2 ट्रांसमीटर से अपने कॉंमांडेंट को कॉंटॅक्ट किया और जो मैने बोला था वही सब उसने कहा.
 
अबतक उसके कमॅंडर को मेसेज मिल चुका था सो जैसे ही ये बात उसने सुनी, उसने फ़ौरन ऑर्डर दिया कि उनको सेक्यूरिटी में लेकर कॅंप तक सुरक्षित पहुँचाओ.

उसने मुझे सेलूट करने की कोशिश की तो मैने इशारे से उसे रोक दिया, हमने अपने हाथ नीचे किए और उनके पीछे-2 चल दिए.

थोड़ी दूर पर उनकी जीप खड़ी थी, उन्होने हमें उसमें बिठाया और कॅंप में सुरक्षित पहुँचाने का ड्राइवर को बोल कर वो लोग फिर से अपनी ड्यूटी पर लग गये.

पूरे रास्ते शाकीना मुझे अजीब सी नज़रों से घूरती रही, मैने उसके लवो को चूमते हुए कहा – ऐसे क्या देख रही हो जानेमन, अब हम एकदम सेफ हैं.., अब डरने की कोई वजह नही रही.

उसने मुझे अजीब सी नज़रों से घूरते हुए सवाल किया – आप पाकिस्तानी नही हो..? अब तक आपने जो बताया क्या वो सब झूठ था..?

मैने थोड़ा झिझकते हुए कहा- हां ये सच है, कि मे पाकिस्तानी नही हूँ, 
लेकिन ये भी सच है, कि मे तुम सब लोगों का हितेशी हूँ, और दिल से चाहता था, कि तुम लोगों को मूषिबतों से बचाऊ.

वो मेरी बात सुनकर चुप रह गयी और गुम-सूम सी मेरी बगल में बैठी रही, फिर उसने कॅंप में पहुँचने तक कोई बात नही की.

ना जाने इस समय उसके मन में क्या चल रहा था..? सो मैने भी उसे इस वक़्त छेड़ना उचित नही समझा…

मैने एक दो बार उसको पुछ्ने की कोशिश भी की, लेकिन उसने मेरी बात का कोई जबाब नही दिया…!

कॅंप पहुँच कर में वहाँ के कमॅंडर इन चीफ से मिला जो हमारा ही इंतजार कर रहा था, 

हमारी हालत ठंड की वजह से बहुत खराब थी, कपड़े गीले हो रहे थे, जिनमें से अभी भी पानी टपक रहा था…

उसने हमें फ़ौरन एक कॅंप में भिजवा दिया और हमारे लिए गरम कपड़ों का भी इंतेज़ाम करवाया.

कॅंप के अंदर पहुँच कर हमने अपने कपड़े चेंज किए और फिर एक अलाब के पास बैठ गये, जिसकी आग की गर्मी से हमें कुछ राहत मिली.

मैने शाकीना को अपनी ओर खींचने की कोशिश की, तो उसने मेरा हाथ हटा दिया और अपना मुँह दूसरी ओर करके आग सेंकने लगी.

मैने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर सहलाया और बोला – क्या हुआ शाकीना ? क्या मेरे साथ आकर तुम खुश नही हो..?

मेरी बात सुनकर उसने पलट कर मेरी ओर देखा, उसकी आँखों से दो बूँद पानी की टपक पड़ी, फिर अपने आपको संभालते हुए बोली – 

मैने आपके उपर अपनों से भी कहीं ज़्यादा यकीन किया, लेकिन आपने मुझे उस यकीन के काबिल नही समझा और अपनी पहचान छुपाये रखी.

यकीन मानिए, अगर आप अपनी हक़ीक़त पहले मुझे बता देते तो मुझे आपसे कोई शिकवा- शिकायत नही होती, 

बल्कि और ज़्यादा फक्र होता..की मैने एक सच्चे इंसान से मुहब्बत की है.

मे – तो अब क्या तुम्हें अपनी मुहब्बत पर एतवार नही रहा..? या तुम्हें मेरी मंशा पर शक है, अगर समझ सको तो मे अब भी मजबूर था, 

क्योंकि अगर मे ऐसा करता तो ये मेरे अपने मुल्क के साथ गद्दारी होती, जो मे अपने जीते जी तो नही कर सकता था.

क्या तुम यही चाहती हो कि मे अपने मुल्क के साथ गद्दारी करूँ..? या कभी तुम्हें मेरी नीयत में खोट नज़र आया..?

वो – नही ! कभी नही, और मे भी ये कभी नही चाहूँगी की आप अपने मुल्क के साथ गद्दारी करो.., 

ये कहकर वो फिर से मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी और आगे बोली – 

लेकिन अब मुझे अपनी अम्मी और बाजी की फिकर हो रही है, आपने कहा था कि आप उनको सब कुछ बता देंगे.. तो..

मैने कहा - बिल्कुल ! अभी लो और फिर मैने अपने स्पेशल नंबर से रहीम चाचा को कॉल लगाई, कुछ देर बेल जाने के बाद कॉल पिक हुई..

दूसरी ओर से उनकी आवाज़ आई – हेलो ! कॉन..?

मे – रहीम चाचा ! सलाम बलेकुम. ! मे अशफ़ाक़ बोल रहा हूँ.

वो - हां अशफ़ाक़ मियाँ बोलिए कहाँ से बोल रहे हैं आप..?

मे – चाचा मे इंडिया से बोल रहा हूँ.. 

वो – इंडिया से…? ओ…तो ये जो यहाँ सुबह-सुबह पूरे शहर में जो हंगामा बरप रहा है, वो तुम्हारी देन है…

मे – क्या हंगामा बरप रहा है वहाँ चाचा..?

वो – खालिद की लाश बहुत ही बुरी हालत में उसके ऑफीस में मिली है, तभी से पोलीस कातिल को पूरे शहर में शिकारी कुत्तों की तरह खोज रही है…

खबर है, कि देर रात कोई उसके सेक्यूरिटी चीफ के भेस में उसके ऑफीस गया था… और उसी ने उसको कत्ल कर दिया है…

मे – और कोई बात तो नही चल रही..?

वो – मुझे लगता है, कि असल बात दबाई जा रही है, वैसे तुम्हारा मक़सद क्या था उसे कत्ल करने का..?

मे कुछ देर चुप रहा, फिर मैने उन्हें सारी दास्तान कह सुनाई…, 

फिर उनसे शाकीना के बारे में उसकी अम्मी और दूसरे परिवार के लोगों को इत्तला करने को कहा, इस हिदायत के साथ कि ये बात आम ना होने पाए…, अपने लोगों तक ही सीमित रहे…

बस आप उनको इतना समझा देना कि कंपनी के किसी ज़रूरी काम की वजह से मैने दोनो को दुबई भेज दिया है, अब वो दोनो वहाँ का काम संभालेंगे… 
 
रहीम चाचा से बात करने के बाद अब वो कुछ आश्वस्त दिखाई देने लगी और मेरे हाथों को चूम कर शुक्रिया कहा.

मैने उसकी थोड़ी के नीचे अपना हाथ रखकर पुछा – तुम्हें मेरे साथ आकर कोई अफ़सोस तो नही हो रहा शाकीना..?

उसने ना में अपनी गर्दन हिलाई और मेरे बदन से लिपट गयी.., मेरे सीने के बालों को सहलाते हुए बोली-

मैने तो बहुत पहले अपनी किस्मत आपके नाम लिख दी है, तो अब अफ़सोस कैसा..आप जो करेंगे मुझे मजूर होगा…

उसके ये लफ़्ज सुनकर मैने उसे अपने सीने में भींच लिया और उसके लज़्ज़त भरे लवो को चूमकर बोला-

ओह्ह..शाकीना..मेरी जान, तुम सच में कितनी मासूम हो, आँख बंद करके मुझ पर भरोसा करती रही, और मे कितना मजबूर था, कि तुम्हें अपनी हक़ीकत से रूबरू ना करा सका…

हो सके तो मुझे मुआफ़ कर देना मेरी जान…

उसने भी मेरे इर्द गिर्द अपनी बाहों का घेरा कस दिया और मेरे सीने में मुँह छिपाकर बोली – 

मैने आपसे सच्ची मुहब्बत की है मेरे सरताज, आपकी सच्चाई क्या है, इससे मुझे कोई सरोकार नही…

अभी हम कुछ और आगे बोलते कि तभी किसी के आने की आहट सुन कर वो मुझसे अलग हो गयी.

बीएसएफ का एक जवान हमारे लिए ब्रेकफास्ट लेकर आया था, उससे ब्रेकफास्ट लेकर मैने उसके चीफ के बारे में पुछा तो उसने बताया कि वो अपने ऑफीस में ही हैं, 

आप लोग नाश्ता करके वहीं आ जाओ, वो आपका ही इंतजार कर रहे हैं.

हम दोनो ने मिलकर नाश्ता किया, अब शरीर में गर्माहट आ चुकी थी, 

शाकीना भी अब नॉर्मल दिखाई दे रही थी, ड्रग्स का असर काफ़ी हद तक कम हो गया था.

नाश्ता ख़तम करके मैने उसे वहीं थोड़ा रेस्ट लेने को बोला और मे कमॅंडेंट से मिलने उसके ऑफीस की तरफ बढ़ गया.

करीब एक घंटे बाद हम बीएसएफ की जीप में श्रीनगर एर पोर्ट की तरफ जा रहे थे.

शहर पहुँचकर मैने एटीएम से कुछ पैसे निकाले, 

एक शॉपिंग सेंटर के बाहर गाड़ी रोक कर दोनो के लिए कुछ कपड़े खरीदे और वहीं ट्राइयल रूम में जा कर चेंज किए.

श्रीनगर से देल्ही की फ्लाइट ली और उड़ चले अपने देश की राजधानी को…

देल्ही पहुँचकर एरपोर्ट के पास ही एक होटेल में शाकीना को छोड़ा, कुछ मेडिसिन्स ली जो उसके ज़ख़्मों पर लगानी थी और कुछ एंटी-ड्रग्स उसको दिए.

एक बार शाकीना के कपड़े निकाल कर पूरे शरीर पर बने खरोंचों पर लेप लगाया, इस दौरान हम दोनो ही एक्शिटेड हो गये, 

ड्रग का असर अभी कुछ वाकी था, जिसके असर से वो सेक्स के लिए उतावली सी दिखने लगी, और मेरे शरीर से लिपट गयी…

लेकिन मैने अपने आप पर कंट्रोल रखते हुए कहा – शाकीना मेरी जान अभी तुम आराम करो, ये समय इस काम के लिए सही नही है, 

वो तड़प्ते हुए बोली – क्यों अभी समय क्यों सही नही है, अशफ़ाक़ प्लीज़ मुझे अपने आगोश में समेट लो, 

मैने उसके होठों को चूमते हुए कहा – अभी तुम तक़लीफ़ में हो, पहले अपने बदन के घावों को सही कर्लो, ठीक है…

मेरी बात सुनकर वो एकदम मायूस हो गयी, उसने मुझे अपने बंधन से आज़ाद कर दिया… और उसकी आँखें छल-छला गयी..

फिर रुँधे स्वर में बोली – मे समझ सकती हूँ अशफ़ाक़, अब मे आपके काबिल नही रही, मेरे बदन को उस नामुराद ने गंदा जो कर दिया है…

उसकी बात सुनकर मे तड़प उठा, मैने उसके बदन की खरोंचों की परवाह ना करते हुए उसे अपने आगोश में कस लिया और उसकी दबदबाई हुई आँखों में झाँकते हुए कहा….

ये तुम क्या कह रही हो मेरी जान, क्या तुम ये समझ रही हो कि उस हरामी ने धोके और फरेब से तुम्हें मजबूर कर दिया तो तुम मेरे लिए नापाक हो गयी..?

भले ही मैने तुम्हें अपने साथ निकाह करने से रोका हो, लेकिन सच्चे दिल से मुहब्बत की है मैने तुम्हें…!

तुम मेरे दिल का वो हिस्सा हो शाकीना, जिसमें हर किसी को जगह नही दी जाती..

मैने तुम्हें दिल से चाहा है मेरी जान, शरीर से नही…

आइन्दा ऐसे शब्द अपने मुँह से निकाले भी ना, तो तुम मेरा मरा हुआ मुँह देखो…गी….

मेरे शब्दों को पूरा भी नही करने दिया उसने, अपने लरजते लव मेरे होठों पर रख दिए, और फिर दीवानवार वो मुझे चूमती चली गयी…
 
मेरे चेहरे को, मेरे सीने को, और फिर सुबक्ते हुए बोली – मुझे मुआफ़ कर देना मेरे सरताज…मुझे लगा कि कहीं आप…

मैने उसके होठों पर अपनी उंगली रख दी और कहा – अब और एक लफ़्ज नही जान.. मे तो बस तुम्हें आराम देने की वजह से बोल रहा था…

फिर मैने शरारत से उसके उरोजो को मसल्ते हुए कहा – लेकिन लगता है मेरी जान को अब अपना जलवा दिखाना ही पड़ेगा…

इतना बोलकर मे उसके उपर किसी भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा…

वो भी अपने ज़ख़्मों की परवाह ना करते हुए मेरा भरपूर साथ देने लगी…

एक बार जमकर चुदाई का दौर चला, जिसमें शाकीना अनगिनत बार बरसी..

जब वो पूरी तरह संतुष्ट नज़र आने लगी, तब मैने उसे कहा – अब तुम आराम करो, मुझे अभी कुछ काम निपटाने हैं, उन्हें पूरा करके आता हूँ…

मैने फिर से उसके पूरे बदन पर मलम लगाई, और खुद फ्रेश होकर तैयार हुआ और निकल लिया अपने ऑफीस की ओर… जहाँ मैने पूरी डीटेल्ड रिपोर्ट एनएसए को सौंपी, 

खालिद का काम तमाम करना मेरा एक बहुत बड़ा अचीव्मेंट था, एक तरह से फिलहाल के लिए पाकिस्तान की कमर ही तोड़ दी थी….

एनएसए ने मेरी जी भरके तारीफ की, फिर हम पीयेम से मिलने गये, उन्होने भी मेरा भव्य स्वागत किया…

होटेल लौटते-2 शाम हो गयी, तब तक शाकीना ने भरपूर नींद ले ली थी, और अब वो एकदम से फ्रेश लग रही थी. 

फिर हमने चाइ के साथ थोड़ा बहुत खाने को मँगवाया, 

शाकीना को रेडी होने को कहा, तो उसने पुछा कि अब कहाँ जाना है हमें ?

मैने कहा- अपने घर.

वो – घर में कॉन-कॉन हैं…?

मैने उसके गाल पर किस करके कहा – जो भी होंगे, वो सब तुम्हें देखकर बहुत खुश होंगे…

उसके बाद उसने कोई सवाल नही किया, क्योंकि अब उसने किसी भी तरह के सर्प्राइज़ को फेस करने के लिए अपने आपको तैयार कर लिया था.

जब वो रेडी होकर आई तो मे उसे देखता ही रहा गया. 

पिंक कलर के कश्मीरी सूट में वो “कश्मीर की कली” की शर्मिला टैगोर से कम नही बल्कि 21 ही लग रही थी. उसका रूप एकदम से खिल उठा था…

मैने एक बंद गले की वाइट टीशर्ट और ब्लॅक डेनिम जीन्स पह्न ली और उपर से डार्क ब्लू ब्लेज़र.

रेडी होकर हमने एर पोर्ट के लिए टॅक्सी ली, रात 8 बजे अपने शहर की फ्लाइट पकड़ी और ठीक 10:00 पीयेम को मैने अपने घर की बेल दबाई.... !!

एसीपी ट्रिशा शर्मा अपने दोनो बेटों के साथ डिन्नर लेकर चुकी ही थी और स्टडी रूम में बच्चों को पढ़ा रही थी, 

उनकी नौकरानी शांता बाई किचेन में बर्तन साफ कर रही थी कि तभी उनके घर की डोर बेल बजने लगी.

ट्रिशा ने स्टडी रूम से ही आवाज़ देकर अपनी नौकरानी को कहा – शांता बाई देखना कॉन है गेट पर…

शांता बाई ने बर्तन छोड़ कर गेट खोला, सामने एक हॅंडसम आदमी और उसके साथ एक निहायत ही खूबसूरत लड़की को खड़े पाया, 

कुछ देर तक वो टक टॅकी लगाए उन दोनो को देखती रही, फिर जैसे ही उसे होश आया तो एकदम से बोली- जी कहिए ! किससे मिलना है आपको..?

मे – एसीपी साहिबा हैं घर पर..?

वो- हां हैं..! क्या काम है उनसे…?

मे – ज़रा एक मिनट बुलाएँगी उनको..?

वो उँची आवाज़ में वहीं खड़े-2 बोली – मॅम साब, कोई साब आपसे मिलने को आया है…!

ट्रिशा अंदर से ही बोली – ठीक है उनको बिठाओ, मे अभी आती हूँ, 

और वो अपना स्लीपिंग गाउन ठीक करके बाहर आई… और जैसे ही उसकी नज़र मेरे उपर पड़ी… दौड़ती हुई आकर मेरे सीने से लिपट गयी.

ओह्ह्ह.. माइ लव अरुण ! आप आ गये..! 

उसे तो ये भी होश नही रहा कि मेरे साथ कोई खड़ा है, और उसकी नौकरानी भी वहीं खड़ी है.
 
शांता बाई तो बाबली सी अपनी मालकिन को देखती रह गयी, फिर उसके दिमाग़ में कुछ क्लिक हुआ और अपने सर पर हाथ मार कर बोली- 

उरी बाबा ! ये तो हमारा साब है, मे कैसे पहचाने को भूल गयी..?

शांता की आवाज़ सुनकर ट्रिशा को होश आया, वो झेन्पती हुई मेरे से अलग हुई, और तब उसकी नज़र मेरे बाजू में खड़ी शाकीना पर पड़ी.. 

मैने कहा ट्रिशा ये… अभी मे बोलने ही वाला था कि उसने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया… और बोली – 

आपको बताने की ज़रूरत नही है, मे जानती हूँ ये मेरी प्यारी छोटी बेहन शाकीना है.. है ना !!

फिर मैने शाकीना को कहा – शाकीना यह मेरी पत्नी ट्रिशा हैं, यहाँ की अडीशनल कमिशनर ऑफ पोलीस.

मेरी बात सुनकर उसको धक्का सा लगा, वो कुछ देर सकते की हालत में खड़ी रह गयी…

तभी ट्रिशा ने आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया, और बोली – ज़्यादा चोन्कने की ज़रूरत नही है मेरी बेहन,

मे तुम्हारे बारे में सब जानती हूँ, जिस दिन तुमने हाथ लेकर अरुण से अपनी बात मनवाई थी, इन्होने उसी दिन मुझसे पुच्छ लिया था…

फिर वो उसे लिए हुए अपने बेडरूम की तरफ चल दी.

शाकीना किसी कठपुतली की तरह उसके साथ-2 चली गयी, हमारी बातें सुन कर मेरे दोनो बेटे भी बाहर आ गये और एक लंबीईइ सी पापाआ निकालते हुए मेरे से लिपट गये, दोनो ही मेरे कंधे तक पहुँच गये थे.

मेरे गले से लग कर दोनो की रुलाई फुट पड़ी, मैने जैसे-तैसे उन दोनो को शांत किया. फिर मैने दोनो से पुछा – 

अच्छा ये बताओ, तुम दोनो की स्टडी कैसी चल रही है..?

कौशल – एकदम फर्स्ट क्लास पापा, मम्मी हमारा पूरा काम चेक करती है, नेक्स्ट वीक से हमारे एग्ज़ॅम हैं, तो लगे पड़े हैं.

मे शूलभ से – और बड़े लाल आपके क्या हाल हैं ?, क्रिकेट-विक्रेट चल रहा है तुम लोगों का या बंद कर दिया.

शूलभ – कहाँ पापा, मम्मी ने पढ़ाई के चक्कर में सब बंद करा रखा है.

मे – ये सही भी है मेरे बच्चो, मुझे फक्र है अपने बेटों पर कि अपनी मम्मी की हर बात मानते हैं, शाबाश मेरे बच्चो…!!

कुछ देर ऐसे वो दोनो मेरे साथ लिपटे बातें करते रहे, फिर मैने उनको स्टडी कंटिन्यू करने को बोलकर उनके रूम में भेज दिया.

जब वो दोनो शाकीना से मिले तो वो कितनी ही देर तक मुँह फाडे मेरे दोनो बेटों को देखती रही.

उसे ये कतई अंदाज़ा नही था, कि मेरे इतने बड़े दो बेटे भी होंगे…

वो दोनो उसे देखते ही बोले – मम्मी ये इतनी सुंदर सी आंटी कॉन आई हैं पापा के साथ…?

ट्रिशा ने मुस्कराते हुए उन दोनो के बालों को सहलकर कहा – बेटा ये तुम्हारी छोटी मम्मी है…

उसके मुँह से छोटी मम्मी सुनकर शाकीना की आँखें दबदबा गयी, लेकिन बच्चों के सवाल जारी रहे…

सुलभ – छोटी मम्मी मतलब…?

ट्रिशा – अरे बेटा, मम्मी की छोटी बेहन मतलब तुम्हारी छोटी मोम.. 

कौशल – लेकिन मम्मी, आपकी छोटी बेहन तो निशा मौसी है ना.. फिर ये भी तो मौसी ही हुई ना…

ट्रिशा ने फिर प्यार से दोनो को डाँटते हुए कहा – तुम लोग ज़्यादा दिमाग़ मत चलाओ समझे… जब मे कह रही हूँ कि ये तुम्हारी छोटी मोम हैं, तो आज से तुम इन्हें वोही कहोगे…

उन दोनो ने असमजस की ही हालत में अपनी माँ की बात मानते हुए हां में अपनी गर्दन हिला दी…

मे मौन अपनी प्यारी पत्नी की समझदारी और अपनेपन को बस देखे जा रहा था…

यहाँ कदम रखते ही शाकीना एकदम गुम-सूम सी हो गयी थी, शायद उसे गिल्टी फील होने लगी थी कि वो क्यों यहाँ इस परिवार की खुशियों में आग लगाने आ गयी है.. ?

अब जाकर उसकी समझ में आया, कि क्यों मे उससे निकाह ना करने के लिए बोलता रहा था…

ट्रिशा ने शांता बाई को हम दोनो के लिए खाना तैयार करने को बोला, आधे घंटे बाद हम तीनों डाइनिंग टेबल पर बैठे खाना खा रहे थे,

शाकीना को गुम-सूम बैठे देख, ट्रिशा बोल पड़ी – अरुण ! लगता है, मेरी छोटी बेहन अपने नये परिवार से मिलकर खुश नही हुई…!

शाकीना से रहा नही गया, वो खाना छोड़कर ट्रिशा के गले से लिपट गयी और फफक-2 कर रो पड़ी.. फिर सुबक्ते हुए बोली –

बाजी ! आप कितनी अच्छी हो ! मे यहाँ क्यों आप लोगों की खुशियों में आग लगाने आ गयी..?

ट्रिशा बड़ी मासूम सी सूरत बना कर बोली – अरे अरुण ! आप अभी तक बैठे ही हो..? 

जल्दी से फाइयर ब्रिगरेड को फोन करो भाई, यहाँ हमारी खुशियों में आग लग रही है और आप अभी तक चुप-चाप बैठे हो..?
 
ट्रिशा की बात सुन कर मे ठहाका लगा कर हँस पड़ा, शाकीना भी अपना रोना बंद करके खिल-खिलाकर हँसने लगी.

ट्रिशा अपने दोनो हाथों को उसके सर के उपर से घुमाकर उसकी बालाएँ लेती हुई बोली- 

किसी की नज़र ना लगे मेरी प्यारी गुड़िया को, देखो हँसती हुई कितनी सुंदर लग रही है मेरी बेहन.

एक बात कान खोलकर सुनलो शाकीना, आज कहा सो कहा…आइन्दा ये बात कभी भी अपने मन में मत लाना कि तुम्हारी वजह से हमें कभी कोई प्राब्लम आएगी. 

मे तुम्हें वचन देती हूँ, हमेशा तुम्हें अपनी छोटी बेहन की तरह ही प्यार करती रहूंगी, 

अरुण पर हम दोनो का बराबर का हक़ होगा समझी तुम !

आइन्दा फिर कभी इस तरह की बात मुँह से निकली ना ! तो मुँह तोड़ दूँगी तुम्हारा, ये एक पोलीस वाली का हाथ है..समझी..!!

शाकीना ट्रिशा का ऐसा प्यार देख कर भाव बिभोर हो गयी और अपने आप को नही रोक पाई, 

उसके गले लग कर सुबकने लगी, मुझे मुआफ़ कर दो दीदी.. आपको समझने में भूल हो गयी मुझसे.. 

आइन्दा ऐसी कोई बात मेरे मुँह से आप कभी नही सुनेंगी..

मे मूक वाचक की तरह उन दोनो का प्यार देखता रह गया, और स्वतः ही मेरी आँखें भी गीली हो गयी…

खाना ख़तम करके वो दोनो ट्रिशा के बेडरूम में चली गयी और मे दूसरे रूम में सोने चला गया,
शांता बाई काम ख़तम करके अपने क्वॉर्टर में चली गयी जो बंगले के बाहरी साइड में था, बच्चे पहले ही सो चुके थे.

कुच्छ देर के बाद ट्रिशा मेरे पास आई और मेरे बगल में लेट कर बालों में उंगलियों से सहलाती हुई बात-चीत करने लगी, 

मैने शाकीना पर बीती घटना जब उसको बताई, तो वेदना से उसकी आँखें नम हो गयी, और उसके लिए उसके मन में प्यार की भावना और बढ़ गयी.

मे बीती रात सो नही पाया था, पूरा दिन भाग दौड़ में लगा रहा, सो जल्दी से एक राउंड अपनी प्यारी बीबी के साथ सेक्स किया और नींद के आगोश में चला गया.

वो बेचारी 5 साल से अपने पति का संपूर्ण प्यार पाने की लालसा लिए हुए मेरे पास आई थी, 

लेकिन मेरी मजबूरी देख कर कुछ नही बोली, मेरे होठों पर प्यार भरा चुंबन लेकर मेरे शरीर से लिपट कर सो गयी…!

ट्रिशा ने शाकीना को अपनी छोटी बेहन के रूप में सच्चे दिल से अपना लिया, और खुशी-खुशी अपना आधा हक़ उसे दे दिया…

रहीम चाचा के द्वारा, शाकीना की अम्मी को तसल्ली करा दी थी कि उसकी बेटी, यहाँ अमन चैन से जिंदगी जी रही है, उसे उसकी चिंता करने की ज़रूरत नही है…

हमने अपने पदों का लाभ लेते हुए, शाकीना का नाम चेंज करके साक्षी कर दिया और उसे भारत की नागरिकता दिला दी, एक परिचित के रूप में…

अब हम तीनों अपने दोनो बेटों के साथ सुखी जीवन जी रहे थे…, 

मैने अपनी राजनीतिक सोर्स से राज्य की आंतरिक सुरक्षा एजेन्सी में ही एक बड़े पद पर ट्रान्स्फर ले लिया…

शाकीना यानी साक्षी ने दोनो बेटों को इतना प्यार दिया कि वो अपनी सग़ी माँ से बढ़कर उसे अपनी माँ मानने लगे….!

किसी ने सच ही कहा है, कि प्यार दोगे तो बदले में प्यार ही मिलेगा..

एसीपी ट्रिशा के निश्चल प्यार की एबज में साक्षी ने भी अपने प्यार की बरसात करदी इस परिवार पर…!

और हां ! इस कथानक का हीरो अरुण दो दो बिवीओ का प्यार पाकर बड़े गर्व से कह उठता है….”मेरा जीवन कुछ काम तो आया…”

नोट : 

मित्रो ! आप लोगों को ये कहानी कैसी लगी अपने फाइनल रिमार्क्स अवश्य दें…,

और हां, कहीं भी कोई सवाल इस कहानी को लेकर आप लोगों के मन में हो, कि ऐसा कैसे हुआ, ये नही होना चाहिए वग़ैरह…वग़ैरह तो बस कहानी समझ कर अवाय्ड कर देना प्लीज़..

आप सबके साथ के लिए धन्यवाद… ज़य हिंद…ज़य जननी .... जय भारत…
 
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