hotaks444
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रात इसी कश्मकश में बीत गयी सुबह जुम्मन काका आया तो मैं खेत में काम कर रहा था
मैं- आपकी ही राहः देख रहा था
वो- हुकुम करो
मैं- राजगढ़ का रास्ता बताओ
काका- तुम्हे क्या जरूरत पड़ गयी राजगढ़ जाने की बेटा
मैं- एक काम है काका जाना पड़ेगा
काका-पर बेटा,
मैं- पर वर कुछ नहीं काका रास्ता बताओ
काका- रास्ता तो मैं बता दूंगा बेटे पर वहां जाकर क्या करोगे राजगढ़ तो बरसो पहले बर्बाद हो गया अब तो शायद कुछ बचा ही न हो वहां
मैं- कैसे ,किसने किया क्यों किया
काका- दो महावीरों के गुरुर ने
मैं- साफ़ साफ़ बताओ काका
वो- जब तुम जा ही रहे हो तो क्या फायदा देख लेना
मैं- काका बताओ ना
काका- राजगढ़ किसी ज़माने में बंजारों का डेरा हुआ करता था लाल मंदिर से कोई 15 कोस दूर , थे बेशक बंजारे पर रुतबा था उनका ,मेलो में खेल तमाशे के अलावा वो जादू टोने में भी माहिर थे कहते है उनके डेरे से कोई कभी खाली हाथ नहीं आता था पर फिर पता नहीं क्या हुआ सब तबाह हो गया सब कुछ
मैं- किसने किया
काका- बस यु समझ लो दो पागल हाथी थे
मैं- समझाते बहुत हो काका खैर, ये काम जितना हो सके जल्दी करवाओ और थोड़ा खेत भी देख लेना ,ये कुछ पैसे है जरूरत हो तो खर्च लेना मैं किसी राजगढ़ जा रहा हु कोई भी पूछे तो साफ़ मना कर देना की तुम्हे कुछ नहीं पता
काका- ठीक है बेटा
उसके बाद मैं पूजा के घर आया और जैसे ही उसके ऊपर नजरे पड़ी दिल ठहर सा गया अभी अभी नाहा कर ही आयी थी गीले बाल बदन पर बस एक झीनी सी चुनरिया , इतनी मादकता जो किसी को भी पागल कर दे
पूजा- ऐसे क्या देख रहे हो
मैं- तुम्हे मेरी जान
वो- ना देखो
मैं- क्यों
मैंने पूजा की कमर में हाथ डाला और उसे अपनी बाहों के घेरे में कस लिया उसके चिकने नितम्बो को सहलाते हुए मैं बोला- बीवी है मेरी तुझे नहीं देखूंगा तो किसे देखूंगा
वो- पर अभी क्यों परेशां करते हो
मैं- हक़ है मेरा
वो- छोड़ो ना
मैं- छोड़ता हु पर पहले जरा ये शहद चख लू जरा
मैंने अपने होंठ उसके लबो पर रख दिए धीरे धीरे उसने भी अपने होंठ खोल दिए और हमारी चूमा चाटी शुरू हो गयी , दोनों के जिस्म गरमाने लगे थे उसके चुनरिया कब नीचे गिर गयी कहा होश था वो बस पिघल रही थी मेरी बाहों में,
मैं- तैयार हो जा कही चलना है
वो- कहा
मैं- राजगढ़
पूजा- इतनी दूर
मैं- गाड़ी से चलेंगे
वो- चल तो मैं पैदल भी पड़ूँगी पर क्यों ये बता
मैं- मिलना है किसी से
वो- कुछ खास काम है क्या
मैं- मिलना है एक आदमी से
वो- जरुरी है
मैं- बेहद जरुरी है
वो- मैं नहीं चल पाऊँगी
मैं-क्यों
वो- क्योंकि अब तुम मुझे छोड़ने वाले तो हो नहीं तो कैसे
मैं- जल्दी तैयार हो जा
एक बार और चूमाँ मैंने उसे और फिर थोड़ी देर बाद हम मेरे गाँव की तरफ जा रहे थे मैंने उसे गांव से कुछ दूर रुकने को कहा और फिर मैं घर से गाडी ले आया हम चल पड़े राजगढ़ की ओर
मैं- कुछ जानती हो राजगढ़ के बारे में
वो- नहीं,पर हमारे वहां जाने की वजह क्या है
मैं- बस मिलना है किसी से और घूम भी आएंगे
वो- तू इतना भोला भी नही है मेरे सरकार बात क्या है
मैं- वो तो वहाँ जाके ही पता लगेगा
पूजा- कुंदन, मैं देख रही हु तू पिछले कुछ दिनों से बुझा बुझा सा लग रहा है ऐसा लगता है जिस कुंदन को मैं जानती हु वो खो सा गया है
मैं- एक से एक परेशानियां है मेरे पास तेरे चाचा की लड़की से मेरे बापू ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है बता क्या करूँ मैं
पूजा- ये कैसे हो सकता है
मैं- झूठ नहीं कह रहा हु
वो- जानती हु,
मैं- पर मुझे तेरे साथ रहना है
वो- तो मना कर दे
मैं- कौन सुनता है मेरी
पूजा- एक बेटा बन कर एक बाप के पास जा फिर देख
मैं- तुझे सच में ऐसा लगता है
वो- मैं कह रही हु ना
मैं- सिर्फ तू कह रही है ईसलिए
वो- चाचा का इस ब्याह के पीछे इतना उद्देश्य है कि रिश्तेदारी जुड़ेगी तो उसका कब्ज़ा बना रहेगा प्रॉपर्टी पर
मैं- मुझे क्या करना इन सब का बस तू मेरा हाथ थामें रखना उम्र भर
पूजा ने मेरे गाल पर हल्का सा चुम्बन लिया ।
मैं- मोहब्बत इम्तिहान क्यों लेती है
पूजा- मोहब्बत नहीं ज़िन्दगी बोल
मैं- ये भी सही है
वो- कुछ छुपा रहा है मुझसे तू
मैं- नहीं
वो- नजरे तो कुछ और बता रही है
मैं- नजरो का क्या इन्हें कौन समझ पाया है
वो- मैं समझती हूं बात क्या है
मैंने उसे सारी बात बता दी पूजा बस सुनती रही
मैं- तू ही बता मैं क्या करूँ
वो- तू बहुत नासमझ है कुंदन भाभी का अतीत खंगाल तभी बात बनेगी
मैं- तू भी तो अपना अतीत छुपाती है मुझसे
वो- मैंने क्या छुपाया तुझसे
मैं- छुपाया नहीं तो कसम क्यों दी
पूजा- क्योंकि दो वजह थी मेरे पास तुझे पहली बार अपने साथ ले गयी और तूने फसाद कर दिया तुझे कुछ हो जाता तो मैं कैसे बर्दाश्त कर पाती, और अब तो तुम पति हो मेरे और डर लगता है मुझे तुम्हारे उस जूनून से
और दूसरी मैं तुम्हे वहां जरूर ले जाऊंगी पर सही समय पर ,जब वो हवेली रोशन होगी जब सिर्फ तुम और मैं होंगे और हमारी दास्तान मुकम्मल होगी जब मैं अपना सब कुछ सौंप दूंगी तुम्हे और तुम्हारी हो जाऊंगी तब मैं ले जाऊंगी तुम्हे
खैर बातो बातो में हम राजगढ़ पहुच गए कुछ कच्चे छप्पर से थे जो अब उजाड़ थे रहे होंगे आबाद किसी ज़माने में, देखने से पता चलता था कि कभी रौनक होगी पर अब कुछ नहीं था
पूजा- ये क्या है
मैं- अतीत
पूजा- किसका
मैं- जिसका कर्ज है मुझ पर
पूजा- पहेलिया मत बुझाओ
मैं- सब्र, कर सब जान जायेगी मेरी रानी आ जरा
हम आगे बढे और आसपास देखने लगे पर लगता था कि अब कोई नहीं रहता था यहाँ पर ज्यादातर घर खाली थे पर हम चलते गए अब कोई तो मिले कुछ दूर जाकर मैंने देखा की एक नीम के नीचे एक आदमी बैठा है
मैंने उसे रामराम की और सूरज के बारे में पूछा उसने ऊपर से नीचे तक मुझे बार बार देखा और बोला- तुम कैसे जानते हो बाबा के बारे में
बाबा, क्या मैंने ठीक सुना क्या सूरज कोई बुजुर्ग है
आदमी- तुम कैसे जानते हो बाबा के बारे में
मैं- जानता हूं बस एक बार मिलने की हसरत है
आदमी- कहा से आये हो
पूजा जवाब देने वाली थी की मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोला- अनपरा गाँव से
उसकी आँखे लगातार मुझे घूर रही थी जैसे उसे मेरी बात पे विश्वास नहीं था पर उसने अपना गाला खँखारा और बोला - मेरे साथ आओ
हम उसके पीछे चल दिए , बस्ती से दूर एक कच्चे रस्ते पर करीब आधा किलोमीटर चलने के बाद खेतो के एक किनारे पर मैंने एक बड़ी सी झोपडी थी हम उस आदमी के साथ अंदर गए तो देखा की एक पलँग पर एक बहुत ही बुजुर्ग व्यक्ति सोया हुआ था
जिसकी झुर्रिया उसकी उम्र से ज्यादा थी मांस हड्डियों का साथ पता नहीं कितने वक़्त पहले छोड़ गया था मैंने और पूजा ने एक दूसरे को देखा की वो आदमी बोल पड़ा
" लो मिल लो जिनकी तलाश में आप लोग यहाँ आये हो"
मैंने सोचा था कि कोई जवान होगा पर ये तो एक मरणसन्न बुजुर्ग था और अब मेरा दिमाग बुरी तरह से घूम गया था यक्ष प्रश्न था कि मेरा आखिर क्या औचित्य था यहाँ आने का
मैं- आपकी ही राहः देख रहा था
वो- हुकुम करो
मैं- राजगढ़ का रास्ता बताओ
काका- तुम्हे क्या जरूरत पड़ गयी राजगढ़ जाने की बेटा
मैं- एक काम है काका जाना पड़ेगा
काका-पर बेटा,
मैं- पर वर कुछ नहीं काका रास्ता बताओ
काका- रास्ता तो मैं बता दूंगा बेटे पर वहां जाकर क्या करोगे राजगढ़ तो बरसो पहले बर्बाद हो गया अब तो शायद कुछ बचा ही न हो वहां
मैं- कैसे ,किसने किया क्यों किया
काका- दो महावीरों के गुरुर ने
मैं- साफ़ साफ़ बताओ काका
वो- जब तुम जा ही रहे हो तो क्या फायदा देख लेना
मैं- काका बताओ ना
काका- राजगढ़ किसी ज़माने में बंजारों का डेरा हुआ करता था लाल मंदिर से कोई 15 कोस दूर , थे बेशक बंजारे पर रुतबा था उनका ,मेलो में खेल तमाशे के अलावा वो जादू टोने में भी माहिर थे कहते है उनके डेरे से कोई कभी खाली हाथ नहीं आता था पर फिर पता नहीं क्या हुआ सब तबाह हो गया सब कुछ
मैं- किसने किया
काका- बस यु समझ लो दो पागल हाथी थे
मैं- समझाते बहुत हो काका खैर, ये काम जितना हो सके जल्दी करवाओ और थोड़ा खेत भी देख लेना ,ये कुछ पैसे है जरूरत हो तो खर्च लेना मैं किसी राजगढ़ जा रहा हु कोई भी पूछे तो साफ़ मना कर देना की तुम्हे कुछ नहीं पता
काका- ठीक है बेटा
उसके बाद मैं पूजा के घर आया और जैसे ही उसके ऊपर नजरे पड़ी दिल ठहर सा गया अभी अभी नाहा कर ही आयी थी गीले बाल बदन पर बस एक झीनी सी चुनरिया , इतनी मादकता जो किसी को भी पागल कर दे
पूजा- ऐसे क्या देख रहे हो
मैं- तुम्हे मेरी जान
वो- ना देखो
मैं- क्यों
मैंने पूजा की कमर में हाथ डाला और उसे अपनी बाहों के घेरे में कस लिया उसके चिकने नितम्बो को सहलाते हुए मैं बोला- बीवी है मेरी तुझे नहीं देखूंगा तो किसे देखूंगा
वो- पर अभी क्यों परेशां करते हो
मैं- हक़ है मेरा
वो- छोड़ो ना
मैं- छोड़ता हु पर पहले जरा ये शहद चख लू जरा
मैंने अपने होंठ उसके लबो पर रख दिए धीरे धीरे उसने भी अपने होंठ खोल दिए और हमारी चूमा चाटी शुरू हो गयी , दोनों के जिस्म गरमाने लगे थे उसके चुनरिया कब नीचे गिर गयी कहा होश था वो बस पिघल रही थी मेरी बाहों में,
मैं- तैयार हो जा कही चलना है
वो- कहा
मैं- राजगढ़
पूजा- इतनी दूर
मैं- गाड़ी से चलेंगे
वो- चल तो मैं पैदल भी पड़ूँगी पर क्यों ये बता
मैं- मिलना है किसी से
वो- कुछ खास काम है क्या
मैं- मिलना है एक आदमी से
वो- जरुरी है
मैं- बेहद जरुरी है
वो- मैं नहीं चल पाऊँगी
मैं-क्यों
वो- क्योंकि अब तुम मुझे छोड़ने वाले तो हो नहीं तो कैसे
मैं- जल्दी तैयार हो जा
एक बार और चूमाँ मैंने उसे और फिर थोड़ी देर बाद हम मेरे गाँव की तरफ जा रहे थे मैंने उसे गांव से कुछ दूर रुकने को कहा और फिर मैं घर से गाडी ले आया हम चल पड़े राजगढ़ की ओर
मैं- कुछ जानती हो राजगढ़ के बारे में
वो- नहीं,पर हमारे वहां जाने की वजह क्या है
मैं- बस मिलना है किसी से और घूम भी आएंगे
वो- तू इतना भोला भी नही है मेरे सरकार बात क्या है
मैं- वो तो वहाँ जाके ही पता लगेगा
पूजा- कुंदन, मैं देख रही हु तू पिछले कुछ दिनों से बुझा बुझा सा लग रहा है ऐसा लगता है जिस कुंदन को मैं जानती हु वो खो सा गया है
मैं- एक से एक परेशानियां है मेरे पास तेरे चाचा की लड़की से मेरे बापू ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है बता क्या करूँ मैं
पूजा- ये कैसे हो सकता है
मैं- झूठ नहीं कह रहा हु
वो- जानती हु,
मैं- पर मुझे तेरे साथ रहना है
वो- तो मना कर दे
मैं- कौन सुनता है मेरी
पूजा- एक बेटा बन कर एक बाप के पास जा फिर देख
मैं- तुझे सच में ऐसा लगता है
वो- मैं कह रही हु ना
मैं- सिर्फ तू कह रही है ईसलिए
वो- चाचा का इस ब्याह के पीछे इतना उद्देश्य है कि रिश्तेदारी जुड़ेगी तो उसका कब्ज़ा बना रहेगा प्रॉपर्टी पर
मैं- मुझे क्या करना इन सब का बस तू मेरा हाथ थामें रखना उम्र भर
पूजा ने मेरे गाल पर हल्का सा चुम्बन लिया ।
मैं- मोहब्बत इम्तिहान क्यों लेती है
पूजा- मोहब्बत नहीं ज़िन्दगी बोल
मैं- ये भी सही है
वो- कुछ छुपा रहा है मुझसे तू
मैं- नहीं
वो- नजरे तो कुछ और बता रही है
मैं- नजरो का क्या इन्हें कौन समझ पाया है
वो- मैं समझती हूं बात क्या है
मैंने उसे सारी बात बता दी पूजा बस सुनती रही
मैं- तू ही बता मैं क्या करूँ
वो- तू बहुत नासमझ है कुंदन भाभी का अतीत खंगाल तभी बात बनेगी
मैं- तू भी तो अपना अतीत छुपाती है मुझसे
वो- मैंने क्या छुपाया तुझसे
मैं- छुपाया नहीं तो कसम क्यों दी
पूजा- क्योंकि दो वजह थी मेरे पास तुझे पहली बार अपने साथ ले गयी और तूने फसाद कर दिया तुझे कुछ हो जाता तो मैं कैसे बर्दाश्त कर पाती, और अब तो तुम पति हो मेरे और डर लगता है मुझे तुम्हारे उस जूनून से
और दूसरी मैं तुम्हे वहां जरूर ले जाऊंगी पर सही समय पर ,जब वो हवेली रोशन होगी जब सिर्फ तुम और मैं होंगे और हमारी दास्तान मुकम्मल होगी जब मैं अपना सब कुछ सौंप दूंगी तुम्हे और तुम्हारी हो जाऊंगी तब मैं ले जाऊंगी तुम्हे
खैर बातो बातो में हम राजगढ़ पहुच गए कुछ कच्चे छप्पर से थे जो अब उजाड़ थे रहे होंगे आबाद किसी ज़माने में, देखने से पता चलता था कि कभी रौनक होगी पर अब कुछ नहीं था
पूजा- ये क्या है
मैं- अतीत
पूजा- किसका
मैं- जिसका कर्ज है मुझ पर
पूजा- पहेलिया मत बुझाओ
मैं- सब्र, कर सब जान जायेगी मेरी रानी आ जरा
हम आगे बढे और आसपास देखने लगे पर लगता था कि अब कोई नहीं रहता था यहाँ पर ज्यादातर घर खाली थे पर हम चलते गए अब कोई तो मिले कुछ दूर जाकर मैंने देखा की एक नीम के नीचे एक आदमी बैठा है
मैंने उसे रामराम की और सूरज के बारे में पूछा उसने ऊपर से नीचे तक मुझे बार बार देखा और बोला- तुम कैसे जानते हो बाबा के बारे में
बाबा, क्या मैंने ठीक सुना क्या सूरज कोई बुजुर्ग है
आदमी- तुम कैसे जानते हो बाबा के बारे में
मैं- जानता हूं बस एक बार मिलने की हसरत है
आदमी- कहा से आये हो
पूजा जवाब देने वाली थी की मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोला- अनपरा गाँव से
उसकी आँखे लगातार मुझे घूर रही थी जैसे उसे मेरी बात पे विश्वास नहीं था पर उसने अपना गाला खँखारा और बोला - मेरे साथ आओ
हम उसके पीछे चल दिए , बस्ती से दूर एक कच्चे रस्ते पर करीब आधा किलोमीटर चलने के बाद खेतो के एक किनारे पर मैंने एक बड़ी सी झोपडी थी हम उस आदमी के साथ अंदर गए तो देखा की एक पलँग पर एक बहुत ही बुजुर्ग व्यक्ति सोया हुआ था
जिसकी झुर्रिया उसकी उम्र से ज्यादा थी मांस हड्डियों का साथ पता नहीं कितने वक़्त पहले छोड़ गया था मैंने और पूजा ने एक दूसरे को देखा की वो आदमी बोल पड़ा
" लो मिल लो जिनकी तलाश में आप लोग यहाँ आये हो"
मैंने सोचा था कि कोई जवान होगा पर ये तो एक मरणसन्न बुजुर्ग था और अब मेरा दिमाग बुरी तरह से घूम गया था यक्ष प्रश्न था कि मेरा आखिर क्या औचित्य था यहाँ आने का