hotaks444
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वो बस मुस्कुरा दी और खाना बनाने लगी मैं उसके पास चूल्हे की दूसरी तरफ बैठ गया
वो- क्या देख रहा है
मैं- तुझे
वो- क्यों
मैं- बस ऐसे ही
वो- ऐसे ही मत देख
मैं- एक बात पुछु
वो- नहीं मैंने पहले ही मना किया था तुझे
मैं- मैं बस इतना पूछना चाहता था की तूने चेहरे पे दुपट्टा क्यों डाला था वहा पे
वो- बस यु ही
मैं- सो जाऊ थोड़ी देर
वो- रोटी खाके सोना
मैं- थोडा थक गया हु पता है मेरे घर में मेरी कोई इज्जत नहीं है बस मेरी भाभी है मुझे समझती है बाकि बस एक नौकर जैसा हु मैं
वो- पर तेरे अपने तेरे पास तो है ना
मैं- काश मैं ऐसा कह सकता
वो- कुंदन जो है ठीक है पर तूने मेरे दिल पर बोझ कर दिया है
मैं-कैसा बोझ
वो- मुझे फिकर हो रही है अगर तुझे कुछ हो गया तो
मैं- हो भी जाये तो क्या हुआ हम कौन से तुम्हारे अपने है राह का पत्थर समझ कर भूल जाना
वो- अब ऐसा मत बोल
मैं- क्या फर्क पड़ता है पूजा छोड़ इन सब बातो को ला रोटी डाल थाली में भूख लगी है जोरो से
वो- हां, बाबा
उसके हाथो में सच जादू सा ही था पूरी पांच रोटिया खा चूका था पर फिर भी मन नहीं भरा था बाहर सावन ने जैसे आज कसम ही खा ली थी की सारा पानी का भंडार आज ही खाली करके मानेगा खाने- पीने के बाद अं बस सो जाना चाहता था पर मेरी मज़बूरी थी की कपडे मेरे गीले थे और उनको पहने पहने मैं सोता कैसे
और कपडे ना उतारता तो तबियत ख़राब होनी थी पक्की तो मैंने सोचा की बरामदे में अलाव जला कर बैठ जाता हु उससे गर्मी भी मिलेगी और पूजा के आगे शर्मिंदा भी नहीं होना पड़ेगा बाकि नींद का क्या तो मैंने आग जला ली और उसके पास बैठ गया थोड़ी देर में वो आई
पूजा- अरे यहाँ अलाव क्यों जलाया सोना नहीं है क्या
मैंने उसी अपनी मज़बूरी बताई
वो- बस इतनी सी बात एक काम कर कपडे उतार के सीधा कम्बल में घुस जा फिर मैं तेरे कपडे सूखने के लिए डाल दूंगी तब तक तू तौलिया से काम चला
मैं- रहने दे
वो- क्या रहने दे वैसे ही भीगा हुआ है और ठण्ड लगी तो बुखार हो जाना है पर पहले ये गरम दूध पी ले
मैंने गिलास अपने हाथ में लिया और बोला- पर पूजा
वो- पर वर कुछ नहीं मैं भी थोडा थक सी गयी हु आज तो बस बिस्तर पकड़ना चाहती हु
तो फिर दूध पीने के बाद मैंने कपडे उसको दिए और तौलिए में ही बिस्तर में घुस गया उसने अपनी चारपाई मेरे पास ही बिछा ली और किवाड़ कर दिया बंद गर्म कम्बल बदन को बहुत सुकून दे रहा था ऊपर से थकन तो पता नहीं कब नींद आ गयी रात को पता नहीं क्या समय हुआ था पेशाब की वजह से मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की पूजा अपनी चारपाई पर नहीं थी
कम्बल लपेटे मैं बाहर आया तो मेह अभी भी बरस रहा था मैंने देखा दूर दूर तक बरसात के शोर के अलावा अगर कुछ था तो बस अँधेरा घना अँधेरा मैं मूत कर आया तो देखा वो बिस्तर पर थी मैं सोचा पानी- पेशाब गयी होगी तो मैं भी फिर सो गया सुबह उठने में थोड़ी दे सी हो गयी थी तो देखा की दूसरी चारपाई पर मेरे कपडे रखे थे एकदम सूखे मैं पहन कर बाहर आया
बरसात थम गयी थी पर हर जगह कीच हो रखा था मैंने पूजा को देखा पर वो थी नहीं और ना उसके पशु तो मैंने सोचा की वो चराने या उनको पानी पिलाने गयी होगी मैं क नजर घडी पर डाली 9 से ऊपर हो रहे थे कुछ देर उसका इंतजार किया और जब वो नहीं आई तो मैं अपनी साइकिल लेके गाँव की तरफ हो लिया आधे घंटे बाद मैं अपने कमरे में जा रहा था की मैंने माँ सा और भाभी की बाते सुनी
माँ- जस्सी, चार साल हो गए तेरे ब्याह को पर अभी तक पोते का मुह नहीं देख पाई हु मैं माना की तेरा पति फौजी है पर फौजियों के भी औलादे तो होती हैं ना
भाभी- माँ, जब भी वो आते है हम कोशिश करते है
माँ- तो फिर होता क्यों नहीं देख मेरी बात सुन ले कान खोल कर तू भी और आने दे इन्दर को मैं उसको भी समझती हु मुझे जल्दी से जल्दी खुशखबरी चाहिए
भाभी- जी माँ
तभी माँ की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने ताना मारा- आ गए लाटसाहब अगर आवारगी से फुर्सत मिल गयी हो तो जरा भैंसों के लिए खल की बोरिया ले आना याद से और कुछ घर के काम है वो भी आज के आज ही निपटा देना
मैं- जी माँ सा
मैं- भाभी भूख लगी है मेरा खाना चौबारे में ही ले आओ ना
माँ- काम कुछ होता नहीं भूख दिन में चार टाइम लगती है साहब को अरे हमारी नहीं तो खाने की ही इज्जत करो जितना खाते हो उतना काम तो किया करो
माँ की बाते सुनके मन खट्टा हो गया
मैं- भाभी रहने दो पेट भर गया मैं काम निपटा के आता हु
माँ- नखरे देखो तो सही दो बात नहीं सुनेंगे अरे इतना ही नखरा है तो दो पैसे कमा के दिखा पहले पेट भर गया
मैंने अपना माथा पीट लिया यार जब घर वाले ऐसे है तो दुश्मन बाहर ढूंढने की क्या जरुरत है सोचते सोचते मैं घर से बाहर निकल गया तो चंदा चाची घर के बाहर ही थी
मैं- क्या बात है चाची दुरी सी बना ली
वो- कहा रे, तू ही रमता जोगी बना फिर रहा है कल रात कहा था
मैं- रात की जाने दो कहो तो वो काम दिन में कर दू
चाची – चुप बदमाश
मैं- ठीक है रात को मिलते है फिर
वो- आज मैं कुवे पर ना जाउंगी
मैं- कोई बात न मैं छत से आ जाऊंगा पर अभी भी हो सकता है आप कहो तो
वो- नहीं तेरी माँ आने वाली है अभी लाल मिर्चे पीसनी है आज
मैं- रात को तैयार रहना
ये कहकर मैंने चाची को आँख मारी और फिर आगे बढ़ गया करीब दो घंटे बाद मैं सारे काम जो की गैर जरुरी थे वो निपटा कर आया तो माँ सा घर पर नहीं थी भाभी मेरे कमरे में ही थी गाने सुन रही थी
वो- क्या देख रहा है
मैं- तुझे
वो- क्यों
मैं- बस ऐसे ही
वो- ऐसे ही मत देख
मैं- एक बात पुछु
वो- नहीं मैंने पहले ही मना किया था तुझे
मैं- मैं बस इतना पूछना चाहता था की तूने चेहरे पे दुपट्टा क्यों डाला था वहा पे
वो- बस यु ही
मैं- सो जाऊ थोड़ी देर
वो- रोटी खाके सोना
मैं- थोडा थक गया हु पता है मेरे घर में मेरी कोई इज्जत नहीं है बस मेरी भाभी है मुझे समझती है बाकि बस एक नौकर जैसा हु मैं
वो- पर तेरे अपने तेरे पास तो है ना
मैं- काश मैं ऐसा कह सकता
वो- कुंदन जो है ठीक है पर तूने मेरे दिल पर बोझ कर दिया है
मैं-कैसा बोझ
वो- मुझे फिकर हो रही है अगर तुझे कुछ हो गया तो
मैं- हो भी जाये तो क्या हुआ हम कौन से तुम्हारे अपने है राह का पत्थर समझ कर भूल जाना
वो- अब ऐसा मत बोल
मैं- क्या फर्क पड़ता है पूजा छोड़ इन सब बातो को ला रोटी डाल थाली में भूख लगी है जोरो से
वो- हां, बाबा
उसके हाथो में सच जादू सा ही था पूरी पांच रोटिया खा चूका था पर फिर भी मन नहीं भरा था बाहर सावन ने जैसे आज कसम ही खा ली थी की सारा पानी का भंडार आज ही खाली करके मानेगा खाने- पीने के बाद अं बस सो जाना चाहता था पर मेरी मज़बूरी थी की कपडे मेरे गीले थे और उनको पहने पहने मैं सोता कैसे
और कपडे ना उतारता तो तबियत ख़राब होनी थी पक्की तो मैंने सोचा की बरामदे में अलाव जला कर बैठ जाता हु उससे गर्मी भी मिलेगी और पूजा के आगे शर्मिंदा भी नहीं होना पड़ेगा बाकि नींद का क्या तो मैंने आग जला ली और उसके पास बैठ गया थोड़ी देर में वो आई
पूजा- अरे यहाँ अलाव क्यों जलाया सोना नहीं है क्या
मैंने उसी अपनी मज़बूरी बताई
वो- बस इतनी सी बात एक काम कर कपडे उतार के सीधा कम्बल में घुस जा फिर मैं तेरे कपडे सूखने के लिए डाल दूंगी तब तक तू तौलिया से काम चला
मैं- रहने दे
वो- क्या रहने दे वैसे ही भीगा हुआ है और ठण्ड लगी तो बुखार हो जाना है पर पहले ये गरम दूध पी ले
मैंने गिलास अपने हाथ में लिया और बोला- पर पूजा
वो- पर वर कुछ नहीं मैं भी थोडा थक सी गयी हु आज तो बस बिस्तर पकड़ना चाहती हु
तो फिर दूध पीने के बाद मैंने कपडे उसको दिए और तौलिए में ही बिस्तर में घुस गया उसने अपनी चारपाई मेरे पास ही बिछा ली और किवाड़ कर दिया बंद गर्म कम्बल बदन को बहुत सुकून दे रहा था ऊपर से थकन तो पता नहीं कब नींद आ गयी रात को पता नहीं क्या समय हुआ था पेशाब की वजह से मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की पूजा अपनी चारपाई पर नहीं थी
कम्बल लपेटे मैं बाहर आया तो मेह अभी भी बरस रहा था मैंने देखा दूर दूर तक बरसात के शोर के अलावा अगर कुछ था तो बस अँधेरा घना अँधेरा मैं मूत कर आया तो देखा वो बिस्तर पर थी मैं सोचा पानी- पेशाब गयी होगी तो मैं भी फिर सो गया सुबह उठने में थोड़ी दे सी हो गयी थी तो देखा की दूसरी चारपाई पर मेरे कपडे रखे थे एकदम सूखे मैं पहन कर बाहर आया
बरसात थम गयी थी पर हर जगह कीच हो रखा था मैंने पूजा को देखा पर वो थी नहीं और ना उसके पशु तो मैंने सोचा की वो चराने या उनको पानी पिलाने गयी होगी मैं क नजर घडी पर डाली 9 से ऊपर हो रहे थे कुछ देर उसका इंतजार किया और जब वो नहीं आई तो मैं अपनी साइकिल लेके गाँव की तरफ हो लिया आधे घंटे बाद मैं अपने कमरे में जा रहा था की मैंने माँ सा और भाभी की बाते सुनी
माँ- जस्सी, चार साल हो गए तेरे ब्याह को पर अभी तक पोते का मुह नहीं देख पाई हु मैं माना की तेरा पति फौजी है पर फौजियों के भी औलादे तो होती हैं ना
भाभी- माँ, जब भी वो आते है हम कोशिश करते है
माँ- तो फिर होता क्यों नहीं देख मेरी बात सुन ले कान खोल कर तू भी और आने दे इन्दर को मैं उसको भी समझती हु मुझे जल्दी से जल्दी खुशखबरी चाहिए
भाभी- जी माँ
तभी माँ की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने ताना मारा- आ गए लाटसाहब अगर आवारगी से फुर्सत मिल गयी हो तो जरा भैंसों के लिए खल की बोरिया ले आना याद से और कुछ घर के काम है वो भी आज के आज ही निपटा देना
मैं- जी माँ सा
मैं- भाभी भूख लगी है मेरा खाना चौबारे में ही ले आओ ना
माँ- काम कुछ होता नहीं भूख दिन में चार टाइम लगती है साहब को अरे हमारी नहीं तो खाने की ही इज्जत करो जितना खाते हो उतना काम तो किया करो
माँ की बाते सुनके मन खट्टा हो गया
मैं- भाभी रहने दो पेट भर गया मैं काम निपटा के आता हु
माँ- नखरे देखो तो सही दो बात नहीं सुनेंगे अरे इतना ही नखरा है तो दो पैसे कमा के दिखा पहले पेट भर गया
मैंने अपना माथा पीट लिया यार जब घर वाले ऐसे है तो दुश्मन बाहर ढूंढने की क्या जरुरत है सोचते सोचते मैं घर से बाहर निकल गया तो चंदा चाची घर के बाहर ही थी
मैं- क्या बात है चाची दुरी सी बना ली
वो- कहा रे, तू ही रमता जोगी बना फिर रहा है कल रात कहा था
मैं- रात की जाने दो कहो तो वो काम दिन में कर दू
चाची – चुप बदमाश
मैं- ठीक है रात को मिलते है फिर
वो- आज मैं कुवे पर ना जाउंगी
मैं- कोई बात न मैं छत से आ जाऊंगा पर अभी भी हो सकता है आप कहो तो
वो- नहीं तेरी माँ आने वाली है अभी लाल मिर्चे पीसनी है आज
मैं- रात को तैयार रहना
ये कहकर मैंने चाची को आँख मारी और फिर आगे बढ़ गया करीब दो घंटे बाद मैं सारे काम जो की गैर जरुरी थे वो निपटा कर आया तो माँ सा घर पर नहीं थी भाभी मेरे कमरे में ही थी गाने सुन रही थी