hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
वो थोड़ी सी टेढ़ी हो गयी और एक बार फिर मेरे हाथ उसकी चुचियो पर आ गए जिन्हें मैंने उसके पेट पर कर लिया
मैं- तू बहुत सुन्दर है तेरा तन ही नहीं मन भी
वो- तन भी तेरा मन भी तेरा
मैं- एक सवाल है तूने अपने वचन में बांध लिया अब तेरी आज्ञा बिना मैं वहा जाऊंगा नहीं तो अपना मिलन कैसे होगा
वो- जैसे आज होता, तू जब भी कहेगा मैं तेरी ही तो हु
मैं उसकी नाभि को उंगलियों से छेड़ते हुए- तो ठीक है जब मेरी फसल लहलहाएगी जब सर्दी अपने चरम पर होगी जब ओस की बुँदे किसी शबनम की तरह तेरे मेरे तन को भिगोयेंगी तब अपना मिलन होगा जब तेरी धड़कने रफ़्तार पकड़ेंगी और मेरी सांसे मंद होगी जब चाँद छुपा होगा गहरी धुंध की चादर तले और तारे छुप छुप पर तुझे और मुझे देखेंगे तब अपना मिलन होगा
वो-जब ठंडी हवा अपनी खुशुबू फिज़ाओ में फैलाएगी जब खमोश रस्ते तेरी आवाज से गुन्जेंगे जब ढलती सांझ रात से मिलेगी जब मन मेरा होगा और दर्पण तेरा तब अपना मिल्न होगा
मैं- हां, तब अपना मिलन होगा पर मेरी एक इच्छा और है
वो- क्या
मैं- मैं अपने हाथो से तेरा श्रृंगार करना चाहता हु तुझे सजाना चाहता हु
वो- जरुर
मैं- आज की रात खास है ना
वो- कैसे
मैं- तू जो पास है
वो- मैं तो हरदम तेरे पास हु
मैं- हरदम पास ही रहना तू है तो मैं हु
मैं- वैसे तेरी चुचिया मस्त है बड़ी ये कहकर मैंने उसकी चूची को हलके से दबा दिया
वो- आह,
मैं- इनमे दूध होता तो पि लेता
वो- कोशिश करेगा तो दूध भी आ जायेगा
मैं- सच में
वो- सच में
मैं- और इनका क्या मैंने उसके नितम्बो पर हाथ फेरते हुए कहा
वो- सब तेरा तू ही जाने
मैं- तू मेरी तू ही बतादे
वो- मेरे मुह से सुनेगा क्या
मैं- तू सुनाएगी
वो- हां पर फिर कभी अभी सो जा
मैं- जब तू ऐसे इस हालत में पास तो नींद किसे आएगी
वो- सो जा
मैं- वैसे ठकुराईन , तू है जबर
वो- तू भी कम नहीं
मैं- एक पपी देना
वो- दो लेले मेरे राजा
मैं- सच में
वो- सच में
वो पलटी और उसने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए ये मैं ही जानता था की कैसे मैंने अपने आप को काबू किया उस रात पर शायद काबू कर लेना ही ठीक था सुबह जब मेरी आँख खुली तो वो मेरे पास ही थी उसने अपने आप को उस हाल में देखा तो एक पल के लिए वो भी शर्मा गयी उसने अपने बदन पर चादर लपेट ली
मैं- अजी अब काहे शर्माते हो और फिर हमसे कैसा पर्दा रात को ठीक से देख ना पाए तुमको अब जरा दीदार करवाओ तो बात बने
वो- रहने दो ना
मैं- बस पूजा रात को बड़ी बड़ी बाते कर रही थी अब एक झलक नहीं दिखा सकती
वो- तब बात अलग थी अब मुझे लाज आती है
मैं- वाह जी वाह ये कैसी लाज रात को नहीं आती दिन में आती है
वो- मत छेड़ ना
मैं- बस एक बार तुझे दिन की रौशनी में देखने की इच्छा है
वो- तू नहीं मनेंगा न ले देख ले फिर
पूजा बिस्तर से उठी और चादर को धीरे से निचे गिरा दिया गुलाबी कच्छी ने उसके गोरे बदन की सुन्दरता को और बढ़ा दिया था मैंने ऊपर से निचे तक उसे निहारा और फिर चूम लिया एक बार धीरे से हमने अपने कपडे पहने और बाहर आकर देखा रात को जबर बरसात हुई थी सब कुछ गीला गीला सा था
मैं- चलता हु
वो- वापिस कब आओगे
मैं- जब तू बुलाएगी
वो- तो फिर जाओ ही ना
मैं- जाना तो पड़ेगा जी पर जल्दी ही आता हु
वो- ठीक है
उसे छोड़कर जाने का दिल तो नहीं किया पर घर जाना तो था ही तो साइकिल को मोड़ दी रस्ते में जगह जगह कीचड था तो बचते बचाते गाँव का सफ़र जारी था मोसम बहुत ही खुशगवार था हर चीज़ खिली खिली सी लग रही थी होंठो पर पता नहीं कौन सा गीत था पर गुनगुनाते हुए हम चले जा रहे थे रस्ते में पता नहीं कब खारी बावड़ी आई तो अचानक हमारे पैडल रुक गए
मैंने नजर भर के उस तरफ देखा और वैसा ही सूनापन मुझे एक बार फिर से महसूस हुआ जैसे की उस रात को हुआ था कुछ तो कशिश सी थी जो मुझे उस दिन की तरह आज भी खीच रही थी पिछले कुछ दिनों में पता नहीं कितनी बार नहीं शायद ये उस रात के बाद आज ही मैं बेध्यानी में इस तरफ से आया था वर्ना मैं दूसरा रास्ता लेता था जो थोड़ी दूर से था
मेरे मन में कुछ उत्सुकता सी जागने लगी थी वो जो सूनापन था उसमे कुछ तो बात थी मैंने एक बार फिर से वैसे ही महसूस किया जैसे उस रात थी वैसा ही डर सा लगने लगा मैंने फिर से आस पास देखा दूर दूर तक कोई नहीं था मेरे आलावा मैंने साइकिल को पैडल मारा और तेजी से उस बावड़ी के पास से निकल गया अपनी बढ़ी धडकनों को काबू करते हुए जब अपने खेतो पर आया तो चैन मिला
घर पहुचे तो राणाजी से ही मुलाकात हुई सबसे पहले
वो- कहा से आ रहे हो बरखुरदार
मैं- जी वो जमीन की तरफ गया था तो मोसम ख़राब हो गया था तो रुकना पड़ा
वो- अन्दर जाओ
मैं- तू बहुत सुन्दर है तेरा तन ही नहीं मन भी
वो- तन भी तेरा मन भी तेरा
मैं- एक सवाल है तूने अपने वचन में बांध लिया अब तेरी आज्ञा बिना मैं वहा जाऊंगा नहीं तो अपना मिलन कैसे होगा
वो- जैसे आज होता, तू जब भी कहेगा मैं तेरी ही तो हु
मैं उसकी नाभि को उंगलियों से छेड़ते हुए- तो ठीक है जब मेरी फसल लहलहाएगी जब सर्दी अपने चरम पर होगी जब ओस की बुँदे किसी शबनम की तरह तेरे मेरे तन को भिगोयेंगी तब अपना मिलन होगा जब तेरी धड़कने रफ़्तार पकड़ेंगी और मेरी सांसे मंद होगी जब चाँद छुपा होगा गहरी धुंध की चादर तले और तारे छुप छुप पर तुझे और मुझे देखेंगे तब अपना मिलन होगा
वो-जब ठंडी हवा अपनी खुशुबू फिज़ाओ में फैलाएगी जब खमोश रस्ते तेरी आवाज से गुन्जेंगे जब ढलती सांझ रात से मिलेगी जब मन मेरा होगा और दर्पण तेरा तब अपना मिल्न होगा
मैं- हां, तब अपना मिलन होगा पर मेरी एक इच्छा और है
वो- क्या
मैं- मैं अपने हाथो से तेरा श्रृंगार करना चाहता हु तुझे सजाना चाहता हु
वो- जरुर
मैं- आज की रात खास है ना
वो- कैसे
मैं- तू जो पास है
वो- मैं तो हरदम तेरे पास हु
मैं- हरदम पास ही रहना तू है तो मैं हु
मैं- वैसे तेरी चुचिया मस्त है बड़ी ये कहकर मैंने उसकी चूची को हलके से दबा दिया
वो- आह,
मैं- इनमे दूध होता तो पि लेता
वो- कोशिश करेगा तो दूध भी आ जायेगा
मैं- सच में
वो- सच में
मैं- और इनका क्या मैंने उसके नितम्बो पर हाथ फेरते हुए कहा
वो- सब तेरा तू ही जाने
मैं- तू मेरी तू ही बतादे
वो- मेरे मुह से सुनेगा क्या
मैं- तू सुनाएगी
वो- हां पर फिर कभी अभी सो जा
मैं- जब तू ऐसे इस हालत में पास तो नींद किसे आएगी
वो- सो जा
मैं- वैसे ठकुराईन , तू है जबर
वो- तू भी कम नहीं
मैं- एक पपी देना
वो- दो लेले मेरे राजा
मैं- सच में
वो- सच में
वो पलटी और उसने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए ये मैं ही जानता था की कैसे मैंने अपने आप को काबू किया उस रात पर शायद काबू कर लेना ही ठीक था सुबह जब मेरी आँख खुली तो वो मेरे पास ही थी उसने अपने आप को उस हाल में देखा तो एक पल के लिए वो भी शर्मा गयी उसने अपने बदन पर चादर लपेट ली
मैं- अजी अब काहे शर्माते हो और फिर हमसे कैसा पर्दा रात को ठीक से देख ना पाए तुमको अब जरा दीदार करवाओ तो बात बने
वो- रहने दो ना
मैं- बस पूजा रात को बड़ी बड़ी बाते कर रही थी अब एक झलक नहीं दिखा सकती
वो- तब बात अलग थी अब मुझे लाज आती है
मैं- वाह जी वाह ये कैसी लाज रात को नहीं आती दिन में आती है
वो- मत छेड़ ना
मैं- बस एक बार तुझे दिन की रौशनी में देखने की इच्छा है
वो- तू नहीं मनेंगा न ले देख ले फिर
पूजा बिस्तर से उठी और चादर को धीरे से निचे गिरा दिया गुलाबी कच्छी ने उसके गोरे बदन की सुन्दरता को और बढ़ा दिया था मैंने ऊपर से निचे तक उसे निहारा और फिर चूम लिया एक बार धीरे से हमने अपने कपडे पहने और बाहर आकर देखा रात को जबर बरसात हुई थी सब कुछ गीला गीला सा था
मैं- चलता हु
वो- वापिस कब आओगे
मैं- जब तू बुलाएगी
वो- तो फिर जाओ ही ना
मैं- जाना तो पड़ेगा जी पर जल्दी ही आता हु
वो- ठीक है
उसे छोड़कर जाने का दिल तो नहीं किया पर घर जाना तो था ही तो साइकिल को मोड़ दी रस्ते में जगह जगह कीचड था तो बचते बचाते गाँव का सफ़र जारी था मोसम बहुत ही खुशगवार था हर चीज़ खिली खिली सी लग रही थी होंठो पर पता नहीं कौन सा गीत था पर गुनगुनाते हुए हम चले जा रहे थे रस्ते में पता नहीं कब खारी बावड़ी आई तो अचानक हमारे पैडल रुक गए
मैंने नजर भर के उस तरफ देखा और वैसा ही सूनापन मुझे एक बार फिर से महसूस हुआ जैसे की उस रात को हुआ था कुछ तो कशिश सी थी जो मुझे उस दिन की तरह आज भी खीच रही थी पिछले कुछ दिनों में पता नहीं कितनी बार नहीं शायद ये उस रात के बाद आज ही मैं बेध्यानी में इस तरफ से आया था वर्ना मैं दूसरा रास्ता लेता था जो थोड़ी दूर से था
मेरे मन में कुछ उत्सुकता सी जागने लगी थी वो जो सूनापन था उसमे कुछ तो बात थी मैंने एक बार फिर से वैसे ही महसूस किया जैसे उस रात थी वैसा ही डर सा लगने लगा मैंने फिर से आस पास देखा दूर दूर तक कोई नहीं था मेरे आलावा मैंने साइकिल को पैडल मारा और तेजी से उस बावड़ी के पास से निकल गया अपनी बढ़ी धडकनों को काबू करते हुए जब अपने खेतो पर आया तो चैन मिला
घर पहुचे तो राणाजी से ही मुलाकात हुई सबसे पहले
वो- कहा से आ रहे हो बरखुरदार
मैं- जी वो जमीन की तरफ गया था तो मोसम ख़राब हो गया था तो रुकना पड़ा
वो- अन्दर जाओ