hotaks444
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भाभी- क्या बात है कुछ परेशान से हो
मैं- नहीं ऐसी कोई बात नहीं
वो- बताओ क्या बात है
मैं- पद्मिनी के बारे में सोच रहा हु
वो- पर क्यों
मैं- पता नहीं
वो- तो बंद करो सोचना इस मुद्दे पर हम बात कर चुके है पर हमें समझ नहीं आता की आखिर क्यों तुम्हे इतनी दिलचस्पी है इसमें
मैं- पता नहीं और आप है की कुछ बताती नहीं
वो- क्या सुनना चाहते हो तुम आज बता ही दो ताकि मैं वो सुना सकू तुमको
मैंने भाभी के चेहरे पर गुस्सा देखा पर मैं करू भी तो क्या
मैं- मैं वो सब जानना चाहता हु जो मुझसे छुपाया गया है
भाभी- क्या सुनना चाहते हो तुम यही न की तुम्हारे बाप और भाई कितने बड़े रंडीबाज है अतीत में क्या क्या गुल खिलाये है उन्होंने ये जानना चाहते हो गांव में ऐसी कोई बहन बेटी औरत नहीं जो इनके नीचे न आयी हो ये जानना चाहते हो क्या जानना चाहते हो तुम की पद्मिनी के साथ क्या हुआ था क्या जानना चाहते हो तुम की उस रात अर्जुनगढ़ की हवेली में क्या हुआ था जिसने सबकी ज़िन्दगी तबाह कर दी और जान कर क्या तुम सब ठीक कर सकोगे बताओ कर सकोगे
भाभी जैसे चीखते हुए बोली पर अगले ही पल उन्हें अहसास हो गया की भावनाओ में बह कर उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी है
मैं- मैं हर उस इंसान के बारे में जानना चाहूंगा जो मुझसे जुड़ा है क्योंकि परवाह है मुझे रिश्तो की और किसी के हक़ की
भाभी- किस हक़ की बात करते हो तुम उस हक़ की जिस हक़ से एक ससुर अपनी नयी नवेली बहु को अपनी चार दिवारी के अंदर रौंद डालता है या फिर उस हक़ की जिससे उसका पति अपनी पत्नी को छोड़ कर बाहर मुह मारता फिरता है अपनी अय्याशीयो के लिए उसका इस्तेमाल करता है
क्या सच सुनना चाहते हो तुम जिस परिवार जिस घर की तुम दुहाई देते हो इतनी बड़ी बड़ी बातें करते हो ये जो शराफत का नकाब तुम सब ओढ़े हुए हो इसके पीछे क्या है घृणित गंदे लोगो की हवस का दलदल और कुछ नहीं
तुम हक़ की बात करते हो बताओ कहा है मेरा हक़ और कहा थे तुम और तुम्हारी ये बाते जब मेरे हर सपने को तार तार किया गया था ये कैसा हक़ है कुंदन जिसमे जिस्म की चाहत तो सबको है पर जिस्म के पीछे दर्द के सैलाब को कोई महसूस नहीं करना चाहता
किस हक़ की बात करते हो कुंदन ठाकुर दुनिया की जाने दो क्या तुम अपने घर में अपनी भाभी को उसका हक़ दे सकोगे बात करते है बड़ी बडी पर कभी ये नहीं समझ पाए की आखिर क्यों माँ सा मेरी इतनी निगरानी रखती है क्यों जब तुम मेरे पास होते हो तो वो मुझे किसी न किसी बहाने से अपने पास बुला लेती है क्योंकि उसे डर है कि कभी तुम भी अपने बाकि लोगो की तरह मेरे साथ ।।।
बात करते है हक़ की लो बता दिया मैंने सच तुम्हे हो जायेगी तसल्ली आईने से जब धूल उतरेगी तो लोगो के चेहरे दिखेंगे अपने घर की दिखती नहीं दुसरो को पानी उधार देंगे
मेरे दिमाग की हर नस जैसे फट ही गयी थी मेरे पैर ब्रेक पर दबते गए और चर्रर्रर करते हुए गाड़ी रुक गयी मैंने दरवाजा खोला और गाड़ी से उतर गया पर ऐसे लग रहा था जैसे की पांवो की ताकत ख़तम हो गयी हो
कच्ची सड़क से थोड़ी दूर एक पेड़ था मैं उसके पास जाकर बैठ गया भाभी का कहा प्रत्येक शब्द मेरे कानो में गूँज रहा था बल्कि यु कहु की किसी चाबुक के वार सा लग रहा था उनको मैंने हमेशा हँसते मुस्कुराते देखा था पर क्या मालूम था इस घर में सब नकाब ओढ़े है कोई शराफत का तो कोई मुस्कराहट का
तभी मेरी आँखों के सामने वो मंजर आया जब मैंने पद्मिनी की जलती हुई आँखों में वो झलक देखि थी वो मेरा डर था पर अब लगने लगा था की वो मेरे लिए एक इशारा था तभी गाड़ी का दरवाजा खुला और भाभी नीचे उतरी
भाभी- क्या हुआ मिट गयी सारी उमंगे दम तोड़ गयी बड़ी बड़ी बातें
मै खामोश रहा
भाभी- वो दौर था जो बीत गया और अब आदत हो गयी है हमने बार बार कहा की गड़े मुर्दे ना उखाड़ो पर सुनी नहीं तुमने
मैं- मुझे तो मर जाना चाहिए भाभी
वो- बस यही बाकि था है ना
मैं- इस घर में ये सब होते रहा कैसे आप सब मुस्कुराते हुए ये सब
वो- अब आदत हो गयी है
मैं- अब नहीं होगा ये सब नहीं होगा अगर ये सब ऐसे ही होना था तो ये ही सही मैं हर उस हाथ को उखाड़ दूंगा जो मेरी भाभी की बेअदबी के लिए बढ़ा हो फिर चाहे मेरा बाप या भाई कोई भी ना हो
भाभी-कुंदन मेरी बात सुनो
मैं- कहना सुनना अब सब बाद में अब अगर कुछ बोलेगी तो मेरी बन्दुक
भाभी- तो फिर जाओ और लाशो के ढेर लगा दो आग लगादो जला दो सब कुछ पर इतना याद रखना उन लाशो के ढेर में एक लाश मेरी भी होगी
मैं- ये क्या कह रही है छोड़ दू आपके गुनहगारो को
वो- और तुम क्या चाहते हो की दुनिया ये कहे की रांड ने बाप बेटो भाई के बीच तलवारे चलवा दी मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तुम लोग लड़ मरो मेरा जो है वो मेरी तक़दीर पर तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे अपनी भाभी का इतना मान तो रखोगे ना
मैं- किस दुनिया की बात करती हो भाभी और क्यों मेरे हाथ बांधती हो
वो- जो हमने बनायीं है गाड़ी में बैठो आने जाने वाले देख रहे है
भाभी के कहने से गाड़ी में तो बैठ गया पर मेरे अंदर गुस्सा फुफकार रहा था जिसे भाभी भी महसूस कर रही थी उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच आयी थी घर आते ही मैं अपने कमरे में चला गया गुस्सा इतना था कि सामान पर उतरने लगा
भाभी कमरे में आयी और बोली- क्या साबित करना चाहते हो
मैं- आपने एक बार मुझे चुनने को कहा था आज मैं आपसे पूछता हूं की मुझमे और इस घर के तमाम लोगो में से आप किसे चुनेंगी
भाभी- होश में रह कर बात करो कुंदन
मैं- जवाब दो भाभी
भाभी खामोश रही मैंने कुछ देर इंतज़ार किया जवाब का और फिर कमरे से बाहर निकल गया मैंने अपना फैसला ले लिया था कुंदन को कुंदन ही रहना था ठाकुर कुंदन नहीं बनना था
हमेशा से मुझे खुद पर अपने परिवार पर गर्व रहा था पर आज सब मिथ्या लगता था सब झूठ था पर अब जाये तो कहा जाये जहा भी जो था सब राणाजी का ही था पर शायद एक जगह थी जो मेरी थी मेरे दादा की जमीन का वो बंजर टुकड़ा और दादा की जमीन पर पोते का हक़ होता है
मैं- नहीं ऐसी कोई बात नहीं
वो- बताओ क्या बात है
मैं- पद्मिनी के बारे में सोच रहा हु
वो- पर क्यों
मैं- पता नहीं
वो- तो बंद करो सोचना इस मुद्दे पर हम बात कर चुके है पर हमें समझ नहीं आता की आखिर क्यों तुम्हे इतनी दिलचस्पी है इसमें
मैं- पता नहीं और आप है की कुछ बताती नहीं
वो- क्या सुनना चाहते हो तुम आज बता ही दो ताकि मैं वो सुना सकू तुमको
मैंने भाभी के चेहरे पर गुस्सा देखा पर मैं करू भी तो क्या
मैं- मैं वो सब जानना चाहता हु जो मुझसे छुपाया गया है
भाभी- क्या सुनना चाहते हो तुम यही न की तुम्हारे बाप और भाई कितने बड़े रंडीबाज है अतीत में क्या क्या गुल खिलाये है उन्होंने ये जानना चाहते हो गांव में ऐसी कोई बहन बेटी औरत नहीं जो इनके नीचे न आयी हो ये जानना चाहते हो क्या जानना चाहते हो तुम की पद्मिनी के साथ क्या हुआ था क्या जानना चाहते हो तुम की उस रात अर्जुनगढ़ की हवेली में क्या हुआ था जिसने सबकी ज़िन्दगी तबाह कर दी और जान कर क्या तुम सब ठीक कर सकोगे बताओ कर सकोगे
भाभी जैसे चीखते हुए बोली पर अगले ही पल उन्हें अहसास हो गया की भावनाओ में बह कर उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी है
मैं- मैं हर उस इंसान के बारे में जानना चाहूंगा जो मुझसे जुड़ा है क्योंकि परवाह है मुझे रिश्तो की और किसी के हक़ की
भाभी- किस हक़ की बात करते हो तुम उस हक़ की जिस हक़ से एक ससुर अपनी नयी नवेली बहु को अपनी चार दिवारी के अंदर रौंद डालता है या फिर उस हक़ की जिससे उसका पति अपनी पत्नी को छोड़ कर बाहर मुह मारता फिरता है अपनी अय्याशीयो के लिए उसका इस्तेमाल करता है
क्या सच सुनना चाहते हो तुम जिस परिवार जिस घर की तुम दुहाई देते हो इतनी बड़ी बड़ी बातें करते हो ये जो शराफत का नकाब तुम सब ओढ़े हुए हो इसके पीछे क्या है घृणित गंदे लोगो की हवस का दलदल और कुछ नहीं
तुम हक़ की बात करते हो बताओ कहा है मेरा हक़ और कहा थे तुम और तुम्हारी ये बाते जब मेरे हर सपने को तार तार किया गया था ये कैसा हक़ है कुंदन जिसमे जिस्म की चाहत तो सबको है पर जिस्म के पीछे दर्द के सैलाब को कोई महसूस नहीं करना चाहता
किस हक़ की बात करते हो कुंदन ठाकुर दुनिया की जाने दो क्या तुम अपने घर में अपनी भाभी को उसका हक़ दे सकोगे बात करते है बड़ी बडी पर कभी ये नहीं समझ पाए की आखिर क्यों माँ सा मेरी इतनी निगरानी रखती है क्यों जब तुम मेरे पास होते हो तो वो मुझे किसी न किसी बहाने से अपने पास बुला लेती है क्योंकि उसे डर है कि कभी तुम भी अपने बाकि लोगो की तरह मेरे साथ ।।।
बात करते है हक़ की लो बता दिया मैंने सच तुम्हे हो जायेगी तसल्ली आईने से जब धूल उतरेगी तो लोगो के चेहरे दिखेंगे अपने घर की दिखती नहीं दुसरो को पानी उधार देंगे
मेरे दिमाग की हर नस जैसे फट ही गयी थी मेरे पैर ब्रेक पर दबते गए और चर्रर्रर करते हुए गाड़ी रुक गयी मैंने दरवाजा खोला और गाड़ी से उतर गया पर ऐसे लग रहा था जैसे की पांवो की ताकत ख़तम हो गयी हो
कच्ची सड़क से थोड़ी दूर एक पेड़ था मैं उसके पास जाकर बैठ गया भाभी का कहा प्रत्येक शब्द मेरे कानो में गूँज रहा था बल्कि यु कहु की किसी चाबुक के वार सा लग रहा था उनको मैंने हमेशा हँसते मुस्कुराते देखा था पर क्या मालूम था इस घर में सब नकाब ओढ़े है कोई शराफत का तो कोई मुस्कराहट का
तभी मेरी आँखों के सामने वो मंजर आया जब मैंने पद्मिनी की जलती हुई आँखों में वो झलक देखि थी वो मेरा डर था पर अब लगने लगा था की वो मेरे लिए एक इशारा था तभी गाड़ी का दरवाजा खुला और भाभी नीचे उतरी
भाभी- क्या हुआ मिट गयी सारी उमंगे दम तोड़ गयी बड़ी बड़ी बातें
मै खामोश रहा
भाभी- वो दौर था जो बीत गया और अब आदत हो गयी है हमने बार बार कहा की गड़े मुर्दे ना उखाड़ो पर सुनी नहीं तुमने
मैं- मुझे तो मर जाना चाहिए भाभी
वो- बस यही बाकि था है ना
मैं- इस घर में ये सब होते रहा कैसे आप सब मुस्कुराते हुए ये सब
वो- अब आदत हो गयी है
मैं- अब नहीं होगा ये सब नहीं होगा अगर ये सब ऐसे ही होना था तो ये ही सही मैं हर उस हाथ को उखाड़ दूंगा जो मेरी भाभी की बेअदबी के लिए बढ़ा हो फिर चाहे मेरा बाप या भाई कोई भी ना हो
भाभी-कुंदन मेरी बात सुनो
मैं- कहना सुनना अब सब बाद में अब अगर कुछ बोलेगी तो मेरी बन्दुक
भाभी- तो फिर जाओ और लाशो के ढेर लगा दो आग लगादो जला दो सब कुछ पर इतना याद रखना उन लाशो के ढेर में एक लाश मेरी भी होगी
मैं- ये क्या कह रही है छोड़ दू आपके गुनहगारो को
वो- और तुम क्या चाहते हो की दुनिया ये कहे की रांड ने बाप बेटो भाई के बीच तलवारे चलवा दी मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तुम लोग लड़ मरो मेरा जो है वो मेरी तक़दीर पर तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे अपनी भाभी का इतना मान तो रखोगे ना
मैं- किस दुनिया की बात करती हो भाभी और क्यों मेरे हाथ बांधती हो
वो- जो हमने बनायीं है गाड़ी में बैठो आने जाने वाले देख रहे है
भाभी के कहने से गाड़ी में तो बैठ गया पर मेरे अंदर गुस्सा फुफकार रहा था जिसे भाभी भी महसूस कर रही थी उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच आयी थी घर आते ही मैं अपने कमरे में चला गया गुस्सा इतना था कि सामान पर उतरने लगा
भाभी कमरे में आयी और बोली- क्या साबित करना चाहते हो
मैं- आपने एक बार मुझे चुनने को कहा था आज मैं आपसे पूछता हूं की मुझमे और इस घर के तमाम लोगो में से आप किसे चुनेंगी
भाभी- होश में रह कर बात करो कुंदन
मैं- जवाब दो भाभी
भाभी खामोश रही मैंने कुछ देर इंतज़ार किया जवाब का और फिर कमरे से बाहर निकल गया मैंने अपना फैसला ले लिया था कुंदन को कुंदन ही रहना था ठाकुर कुंदन नहीं बनना था
हमेशा से मुझे खुद पर अपने परिवार पर गर्व रहा था पर आज सब मिथ्या लगता था सब झूठ था पर अब जाये तो कहा जाये जहा भी जो था सब राणाजी का ही था पर शायद एक जगह थी जो मेरी थी मेरे दादा की जमीन का वो बंजर टुकड़ा और दादा की जमीन पर पोते का हक़ होता है