Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी - Page 3 - SexBaba
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Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी

जब बाजी डिसचार्ज होने लगती थीं तो बहुत वाइल्ड हो जाती थीं और ज़ोर-ज़ोर से आवाजें निकालने लगती थीं। अक्सर ही हम डर जाते कि कहीं नीचे आवाज़ ना चली जाए.. लेकिन बाजी की ये आवाजें हमें मज़ा भी बहुत देती थीं।
कुछ रातों तक ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा.. लेकिन अब मैं बोर होने लगा था।
अगली रात जब बाजी कमरे में आईं और अपनी जगह पर बैठते हुए अपनी टाँगों के बीच हाथ रखा और हमें शुरू करने का इशारा किया.. तो मैंने कुछ भी करने से मना कर दिया और कहा- नहीं बाजी.. अब मैं ये रोज़ के रूटीन से थक गया हूँ।
‘क्या मतलब है तुम्हारा..?’ बाजी ने कहा।
मैंने कहा- कम ऑन बाजी.. रोज़-रोज़ एक ही चीज़..! अब हम कुछ अलग चाहते हैं।
बाजी ने कुछ समझने और कुछ ना समझने वाले अंदाज़ में पूछा- क्या कहना चाहते हो तुम?
मैंने बाजी को आँख मारते हुए शरारती अंदाज़ में जवाब दिया- क्या ख़याल है अगर आप भी हमारे साथ शामिल हों तो?
‘इसके बारे में सिर्फ़ ख्वाब ही देखो तुम.. ऐसा कभी नहीं हो सकता।’ बाजी ने चिल्ला कर कहा।
‘ओके तो फिर हम भी कुछ नहीं करेंगे। ये दुनिया ‘कुछ लो और कुछ दो’ के उसूल पर ही कायम है.. फ्री में कुछ नहीं मिलता।’ मैंने भी अकड़ते हो कहा।
‘ठीक है.. नहीं तो नहीं बस..’ बाजी ने ये कहा और जो चादर कुछ लम्हों पहले उन्होंने ठीक की थी.. उससे खोलने लगीं।
ज़ुबैर ने कहा- भाई छोड़ो ना यार.. चलो शुरू करते हैं..
मैंने ज़ुबैर से इशारे में कहा कि सबर करो ज़रा.. और बाजी की तरफ देखा जो चादर कंधों पर डाल रही थीं।
मैंने कहा- ओके मैं जानता हूँ आपको भी हमें देखने में इतना ही मज़ा आता है.. जितना हमें.. और जाना आप भी नहीं चाहती हो।
यह हक़ीक़त ही थी कि बाजी को अब आदत हो चुकी थी और वो सिर्फ़ हमें डराने के लिए ही जाने की धमकी दे रही थीं और जाना खुद भी नहीं चाहती थीं।
बाजी को ताकता देख कर मैंने कहा- चलो एक समझौता कर लेते हैं।
बाजी ने कहा- किस किस्म का समझौता?
मैंने कहा- चलो ठीक है.. आप हमारे साथ शामिल ना हों.. बल्कि हमसे दूर वहाँ सोफे पर ही बैठो.. लेकिन अपने कपड़े उतार कर बैठो।
ज़ुबैर मेरे इस मशवरे पर बहुत उत्तेजित हो गया और फ़ौरन बोला- हाँ बाजी.. हम लोगों को तो आपने नंगा देख ही लिया है.. अब हमारा भी कुछ ख़याल करें ना..
बाजी का चेहरा शर्म और गुस्से के मिले-जुले तासूर से लाल हो गया और उन्होंने चादर अपने जिस्म के गिर्द लपेटी और खड़े होते हुए कहा- शटअप.. मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी पहले ही तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर चुकी हूँ। अगर तुम लोग आपस में कुछ करने को तैयार हो.. तो बता दो.. नहीं तो मैं जा रही हूँ।
बाजी के इस अंदाज़ ने मुझ पर ज़ाहिर कर दिया था कि वो वाकयी ही चली जाएंगी.. इसलिए मैं कन्फ्यूज सा हो गया कि क्या करूँ। 
ज़ुबैर ने मेरी हालत को भाँप लिया और मिनट समजात करते हो बाजी से कहने लगा- बाजी प्लीज़.. हमने कभी किसी लड़की को रियल में नंगा नहीं देखा.. और आपको देखने से बढ़ कर कुछ नहीं.. क्योंकि मैं कसम ख़ाता हूँ कि मैंने आज तक आप से ज्यादा हसीन लड़की कोई नहीं देखी.. आप बहुत खूबसूरत हैं। सब ही ये कहते हैं.. मेरी कसम पर यक़ीन नहीं तो आप भाईजान से पूछ लें।
‘ज़ुबैर सही कह रहा है बाजी.. प्लीज़ हमारे साथ ऐसा तो ना करो.. यार ऐसे तो मत जाओ.. आपका यहाँ बैठा होना ही हमें बहुत मज़ा देता है.. कि हमारी सग़ी बड़ी बहन हमें देख रही है.. ये अहसास हमारे अन्दर बिजली सी भर देता है। लेकिन प्लीज़ बाजी हमारा भी तो कुछ ख़याल करो ना.. आप अच्छी तरह से जानती हो कि हम ‘गे’ नहीं हैं.. ये सब इसलिए हुआ कि हमें शिद्दत से एक सुराख चाहिए था.. जिसमें हम अपने लण्ड डाल सकें.. जब हमें कोई लड़की नहीं मिली तो हमने एक-दूसरे के साथ शुरू कर दिया।
फिर मैंने भी मिन्नत करते हुए कहा- अच्छा प्लीज़ बाजी आप सिर्फ़ अपनी क़मीज़ थोड़ी सी उठा कर हमें अपने सीने के उभार दिखा दें.. प्लीज़ बाजी.. आप इतना तो कर ही सकती हो ना.. प्लीज़ मेरी सोहनी बाजी..
मुझे देख कर ज़ुबैर ने भी मिन्नत करते हुए कहा- प्लीज़ बाजी जी.. दिखा दो ना.. मेरी प्यारी आापी जी.. प्लीज़..
कुछ देर बाद बाजी ने अपनी चादर उतारी और झिझकते हुए कहा- ओके लेकिन सिर्फ़ देखोगे.. क़रीब मत आना मेरे..
यह कह कर बाजी घूमी और चादर सोफे पर रखने लगीं। 
‘यसस्स स्स..’ मैंने और ज़ुबैर ने एक साथ खुशी से चिल्ला कर कहा।
ज़ुबैर ने मुझे आँख मारते हुए सरगोशी में कहा- गुड जॉब भाई..
बाजी हमारे सामने सीधी खड़ी हुईं और दोनों हाथों से अपनी क़मीज़ का दामन पकड़ा और आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर उठाने लगीं। 
हमें बाजी की काली सलवार नज़र आने लगी.. बाजी की सलवार पर बहुत बड़ा सा सफ़ेद धब्बा बना हुआ था.. जो शायद उनकी मोनी थी.. जो सूख चुकी थी।
उनकी सलवार काली होने की वजह से सफ़ेद धब्बा ज्यादा ही वज़या हो गया था.. क़मीज़ थोड़ी और ऊपर उठी तो बाजी की सलवार का बेल्ट और फिर उनका ब्लैक एज़ारबंद नज़र आने लगा.. जो कहीं-कहीं से सफेद हो रहा था जो ज़ाहिर कर रहा था कि बाजी ने डिस्चार्ज होकर कितनी ज्यादा पानी छोड़ा था कि सलवार से निकल-निकल कर एज़ारबंद को गीला करता रहा था।
बाजी ने क़मीज़ थोड़ी और ऊपर उठाई.. तो हमने पहली बार भरपूर नज़र से अपनी सग़ी बहन का नंगा पेट देखा। बाजी का गोरा पेट और उस पर उनका खूबसूरत नफ़.. जो काफ़ी गहरी होने की वजह से काली नज़र आ रही थी और उसके नीचे छोटा सा तिल.. जो ऐसे लग रहा था.. जैसे दरबार-ए-हुस्न के दर पर निगहबान बिठा रखा हो। 
ये सब नजारा हमारे होश गुम किए दे रहा था। 
बाजी अपनी नजरें हमारे चेहरों पर जमाए धीरे-धीरे अपनी क़मीज़ को ऊपर उठा रही थीं और हम दोनों बिल्कुल खामोश और बगैर पलकें झपकाए दुनिया के हसीन तरीन नज़ारे के इन्तजार में थे।
हम दोनों की साँसें रुक गई थीं और हमारे दिमाग कुंद हो चुके थे। 
बाजी की क़मीज़ उनके मम्मों तक पहुँच गई थी और हमें उनके मम्मों का निचला हिस्सा.. जहाँ से गोलाई ऊपर उठना शुरू होती है.. दिखाई दे रहा था। 
बाजी ने क़मीज़ यहाँ ही रोक दी थी लेकिन हम दोनों ही टकटकी बांधे बाजी के मम्मों का निचला हिस्सा और उनका गुलाबी पेट देख रहे थे। जब काफ़ी देर तक हमने कोई रिएक्शन नहीं दिया.. 
तो बाजी बोलीं- मेरा नहीं ख़याल है कि मैं इससे ज्यादा कुछ कर सकती हूँ.. बस तुम दोनों के लिए इतना ही बहुत है।
बाजी ने ये कहा और शरारती अंदाज़ में मुस्कुराने लगीं। 
मैं समझ गया था कि बाजी हमारी कैफियत से मज़ा ले रही हैं। फिर भी मैंने कहा- प्लीज़ बाजी.. अब तड़फाओ मत.. ऊपर उठाओ ना अपनी क़मीज़.. प्लीज़ बाजी..
ज़ुबैर भी घिघयाने लगा- प्लीज़ बाजी.. दिखाओ ना.. मेरी अच्छी वाली बाजी प्लीज़..
बाजी ने मुस्कुरा कर हमें देखा और एक ही तेज झटके में अपनी क़मीज़ सर से निकाल कर सोफे पर फेंक दी। 
‘वॉववववव..’ 
यह मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीन तरीन नज़ारा था… मेरी बाजी.. मेरी सगी बहन.. मेरी वो बहन जिसकी हया.. जिसके पर्दे.. जिसकी नज़ाकत.. जिसकी पाकीज़गी.. जिसकी मासूमियत.. जिसकी नफ़ासत.. की पूरा खानदान मिसालें देता था.. वो मेरे सामने बगैर क़मीज़ के खड़ी थीं… उसके मम्मे मेरी नजरों के सामने थे।
मेरे लिए वक़्त रुक सा गया था.. मुझे अपने आस-पास का बिल्कुल होश नहीं रहा था और मेरी नजरें अपनी सग़ी बहन के मम्मों पर जम गई थीं।
मेरी बहन के मम्मे बिल्कुल गुलाबी थे, उनकी जिल्द बहुत ज्यादा चिकनी थी.. कोई दाग.. कोई धब्बा या किसी पिंपल का नामोनिशान नहीं था।
मैं अपनी बहन के मम्मों का 1-1 मिलीमीटर पूरी तवज्जो से देख रहा था और इस नज़ारे को अपनी आँखों में हमेशा हमेशा के लिए बसा लेना चाहता था।
उनके गुलाबी मम्मों पर हरी नीली रगों का जाल था और एक-एक रग साफ देखी और गिनी जा सकती थी।
मुकम्मल गोलाई लिए हुए बाजी के मम्मे ऐसे लग रहे थे.. जैसे 2 प्याले उल्टे रखे हों.. इतनी मुकम्मल शेप मैंने आज तक किसी फिल्म में भी नहीं देखी थी।थोड़े बहुत तो लटक ही जाते हैं हर किसी के.. लेकिन बाजी के मम्मे बिल्कुल खड़े थे.. कहीं से भी ढलके हुए नज़र नहीं आते थे। 
सच कह रहा हूँ.. अभी ये सब याद करके ही मेरी इतनी बुरी हालत हो गई है.. कि मुझसे अब मज़ीद नहीं लिखा जा रहा। मेरी कैफियत का अंदाज़ा सिर्फ़ वो ही लोग लगा सकते हैं कि जिन्होंने अपनी सग़ी बहन के मम्मे अपनी नज़र के सामने नंगे देखे हों.. या फिर वो समझ सकते हैं.. जिन्होंने अपनी सग़ी बहन के मम्मों को तन्हाई और इत्मीनान से सोचा हो।
बाजी के गुलाबी मम्मों पर गहरे गुलाबी रंग के छोटे-छोटे सर्कल थे और उन सर्कल के बीच में भूरे गुलाबी रंग के छोटे-छोटे निप्पल अपनी बहार फैला रहे थे।

बाजी के निप्पल को अपनी नजरों की गिरफ्त में लिए-लिए ही मैं बेसाख्ता तौर पर खड़ा हो गया.. अभी मैंने शायद एक क़दम उनकी तरफ बढ़ाया ही था कि बाजी की आवाज़ आई- वसीम.. वहीं रुक जाओ.. आगे मत बढ़ो.. मैंने कहा था कि तुम लोग सिर्फ़ देखोगे.. छुओगे नहीं..
बाजी ने वॉर्निंग देने के अंदाज़ में कहा। 
मैंने खोए-खोए अंदाज़ में बहुत नर्म लहजे में पलक झपकाए बगैर उनके निप्पल को देखते हुए कहा- नहीं बाजी मैं छूना नहीं चाहता.. बस इन्हें क़रीब से देखना चाहता हूँ। 
बाजी के निप्पलों पर बहुत सी दरारें थीं.. जो क़रीब से देखने पर महसूस होती थीं.. निप्पल के टॉप पर बिल्कुल सेंटर में एक गड्डा सा था और ऐसा लग रहा था कि जैसे इस गड्डे से ही दरारें निकल रही हों.. और उनके निप्पल की दीवारों से होती हुई नीचे फैल कर ज़मीन पर दायरा बना रही हों।
 
मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं हवा मैं उड़ते-उड़ते एक जगह हवा में ही रुक गया हूँ.. और नीचे देख रहा हूँ कि एक बहुत बड़ा पहाड़ है.. आतिश फिशन पहाड़.. और वो फट कर रुक चुका है.. और उसके बीच में बहुत सा लाल भूरा लावा जमा हो चुका है.. और चारों तरफ से लकीर की शकल में बह कर नीचे जाते हुए जड़ में ज़मीन पर एक सर्कल की सूरत में जमा हो गया हो। 
मुझे बाद में बाजी ने बताया था कि तुमने यह जुमला इतना ठहर-ठहर के और खोए हुए कहा था कि ज़ुबैर और मैं दोनों ही तुम्हें हैरत से देखने लगे थे। तुम उस वक्त किसी और ही दुनिया में थे.. इस हाल में थे कि तुम्हें कुछ पता नहीं था.. आस-पास का..
और तुम बस मेरे दूधों को ही देखे जा रहे थे और मेरे इतने क़रीब आ गए थे कि तुम्हारी साँसें.. मैं अपने निप्पल पर और अपने मम्मों पर महसूस कर रही थी।
तुम्हारी साँसों की गर्मी ने मुझ पर ऐसा जादू सा कर दिया था कि अगर तुम उस वक़्त इन्हें अपने मुँह में भी ले लेते.. तो शायद मैं तुम्हें मना नहीं करती।
मैं बाजी के निप्पलों को क़रीब से देख ही रहा था कि ज़ुबैर ने मुझे कन्धे से पकड़ कर झंझोड़ा.. और कहा- भाई होश में आओ.. क्या हो गया है आपको?
शायद वो परेशान हो गया था कि कहीं मैं जेहनी तवज्जो ही ना खो बैठूं। 
मुझे ऐसा लगा.. जैसे मैं पता नहीं कहाँ आ गया हूँ और फिर जैसे मुझे होश आ गया.. लेकिन मैं अभी भी खोया-खोया सा था। 
ज़ुबैर ने सुकून की सांस ली और वो भी क़रीब से बाजी के मम्मों को देखता हुआ बोला- बाजी ये दुनिया के हसीन-तरीन मम्मे हैं.. हमने जितनी भी मूवीज देखी हैं.. उनमें कभी इतने खूबसूरत मम्मे नहीं देखे.. आप बहुत गॉर्जियस और हॉट हो।
बाजी ने ये जुमले सुने.. तो शर्म से सुर्ख हो गईं और सोफे पर बैठते हुए हम दोनों के पूरे खड़े लण्ड की तरफ इशारा करते हो बोलीं- चलो अब दोनों बिस्तर पर जाओ और इन दोनों पर रहम करो..
हम दोनों बाजी के खूबसूरत खड़े उभारों से नज़र हटाए बगैर उल्टे क़दम बिस्तर की तरफ चल दिए।
मेरा जी चाह रहा था कि वक़्त थम जाए और ये नज़ारा हमेशा के लिए ऐसे ही ठहर जाए और मैं देखता रहूं।
बहुत शदीद ख्वाहिश हुई थी उन्हें छूने की.. चूसने की.. चाटने की.. लेकिन मैंने अपनी ख्वाहिश को दबा दिया। मैं जानता था कि अभी वक़्त नहीं आया है और हमारी किसी भी जल्दबाज़ी से बाजी बिदक जाएंगी। 
बिस्तर पर बैठते हुए ज़ुबैर ने कहा- प्यारी बाजी जी.. प्लीज़ क्या आप हमारे लिए अपनी निप्पल्स को अपनी चुटकी में पकड़ कर मसलेंगी। 
बाजी ने कहा- बको मत.. मैंने तुम्हें कहा था.. ना नो टचिंग और एनिथिंग.. मैं जानती हूँ तुम लोग एक के बाद एक फरमाइश करते चले जाओगे।
‘प्यारी बाजी जी प्लीज़ सिर्फ़ एक बार.. फिर दोबारा आपसे नहीं कहेंगे.. पक्का वादा..’
ज़ुबैर के खामोश होते ही मैंने कहा- मेरी सोहनी बाजी.. एक बार कर दो ना यार प्लीज़.. और पहले अपनी ऊँगली को अपने मुँह में डाल कर गीला करो फिर निप्पल पर फेरना।
‘ये गंदी मूवीज देख-देख कर तुम लोग बिल्कुल ही बेशर्मी का शिकार हो गए हो।’ बाजी ने मुस्कुरा कर कहा। 
मैंने हँसी को दबाते हुए ‘खी.. खी..’ करते हुए कहा- जरा देखना तो ये बात कह कौन रहा है.. हहहे..
बाजी ने अंगड़ाई लेने के अंदाज़ में अपनी टाँगें सीधी कीं और पाँव ज़मीन पर टिकाते हुए टाँगों को थोड़ा खोल लिया.. फिर मेरी आँखों में देखते हुए बाजी ने बगैर मुँह खोले अपनी ज़ुबान को बाहर निकाला और अपने राईट हैण्ड की इंडेक्स फिंगर को ज़ुबान पर फेरते हुए अपने बंद होंठों पर अपनी ऊँगली की नोक से दबाव डाला और बाजी की ऊँगली आहिस्ता-आहिस्ता उनके मुँह में दाखिल होने लगी।
फिर बाजी ने पूरी ऊँगली को चूसते हुए ऊँगली बाहर निकाल ली। 
उन्होंने पहले ज़ुबैर की आँखों में देखा और फिर मेरी नज़र से नज़र मिला कर अपने दोनों बाज़ू अपने मम्मों के नीचे क्रॉस कर लिए और एक निप्पल पर अपनी ऊँगली फेरने लगीं। 
‘वॉवववव..’ 
ये एक ऐसा नज़ारा था.. जो हमें बेताब करने के लिए काफ़ी था। मेरे लण्ड को झटका लगा और मेरे साथ-साथ ज़ुबैर का हाथ भी बा-साख्ता ही अपने लण्ड पर पहुँच गया। हमने अपने-अपने लण्ड को मज़बूती से भींच लिया। 
बाजी को देखते हुए जो हमारी हालत हो रही थी.. उससे बाजी को भी मज़ा आ रहा था और उन्होंने देखा कि हमारे लण्ड झटके ले रहे हैं तो उन्होंने अपनी ऊँगली को अपने निप्पल के टॉप पर रखा और उससे दबा कर रखते हुए अपना दूसरा हाथ उठाया और अपनी टाँगों के बीच ले जाकर रगड़ने लगीं। 
क़रीब 2 मिनट ये करने के बाद बाजी ने अपने हाथों को रोक लिया और बोलीं- चलो बच्चों.. बहुत देख लिया और अब अपने कहे हुए अल्फ़ाज़ ‘कुछ दो.. कुछ लो’ के मुताबिक़ शुरू हो जाओ.. और मैं उम्मीद कर रही हूँ कि आज मुझे एक ग्रेट शो देखने को मिलेगा। 
यह कहते ही बाजी के चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट आ गई थी। 
मैं आप लोगों के बारे में नहीं जानता.. लेकिन अगर आप वर्जिन हो.. कभी किसी लड़की को नहीं चोदा हो.. और एक लड़की और वो भी आपकी अपनी सग़ी बहन.. जो खूबसूरत हो या ना हो.. इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता.. बस वो आपके सामने अधनंगी बैठी हो.. उसके बड़े-बड़े क्रीमी मम्मे आपके सामने हों.. तो वो आपको शिट खाने को भी कहे.. तो आप तैयार हो जाएंगे.. मेरा यक़ीन मानिए उस वक़्त ऐसी ही हालत होती है। 
मेरी बहन तो थी भी बेइंतिहा खूबसूरत.. और साथ-साथ अपनी हरकतों से हमें उकसा भी रही थी। 
जैसा कि बाजी ने ग्रेट शो का कहा था तो हमने भी वैसा ही किया।
यह एक वाइल्डेस्ट चुदाई थी जो मैंने और ज़ुबैर ने की.. जिसमें लण्ड चूसना और अलग-अलग पोजीशन में चोदना.. एक-दूसरे के लण्ड का जूस पीना था.. गर्ज ये कि हम जो कुछ सोच सकते थे.. हमने सब किया। 
बाजी भी आज बहुत ज्यादा जोश में थीं.. उन्हें भी ये सोच मज़ा दे रही थी कि वो अपने सगे भाईयों के सामने अपने सीने के उभारों को खोले बैठी हैं और अपनी टाँगों के बीच हाथ फेर रही हैं। 
बाजी उस दिन 3 बार डिसचार्ज हुई थीं लेकिन वे खुल कर डिसचार्ज नहीं होती थीं।
मैंने महसूस किया था कि उनके अंदाज़ में अभी झिझक बाकी थी। 
लेकिन पहले दिन से मुकाबला करें.. तो बाजी रोज़-बा-रोज़ काफ़ी बोल्ड होती जा रही थीं.. जैसे आज उन्होंने अपना ऊपरी जिस्म नंगा करके और टाँगों को खोल के जो कुछ हमें दिखाया था, ये बिल्कुल भी उनकी ज़ाहिरी शख्सियत से मेल नहीं ख़ाता था।
लेकिन उनके अन्दर क्या छुपा था.. उसे ज़ाहिर कर रहा था।
जब बाजी ने अपनी क़मीज़ पहनना शुरू की तो हमारे चेहरे बुझ से गए थे। बाजी ने अपनी चादर उठाते हुए हमें देखा तो हमारी उदास शक्लें देख कर हँसते हुए कहा- शर्म करो कमीनों.. मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ और वो भी बड़ी.. अब मैं तुम लोगों के सामने सारा दिन नंगी तो नहीं घूम सकती ना!
और फिर अपनी चादर वैसे ही तहशुदा हालत में अपने बाज़ू पर रखी और दरवाज़े की तरफ चल दीं। उन्होंने बाहर जाने के लिए दरवाज़ा खोला और दो सेकेंड को रुकीं..
फिर हमारी तरफ घूमते हुए कहा- ओके आखिरी बार..
हम भाइयों की जिद पर बाजी ने अपनी कमीज उतार कर अपनी नंगी चूचियाँ हमें दिखाई और जब बाजी क़मीज़ पहनने लगी तो हम उदास हो गए।
तब बाजी ने एक बार अपनी क़मीज़ ऊपर की और अपने खूबसूरत दूधों को नंगा करके दायें बायें हरकत देने लगीं।
आह्ह..
4-5 झटकों के बाद उन्होंने अपनी क़मीज़ नीचे की और कहा- शब्बाखैर.. और अब फिर ना शुरू हो जाना.. अपनी सेहत का ख़याल रखो.. और एनर्जी सेव करके रखो..
फिर मुस्कुराते हुए बाहर चली गईं।
मैं और ज़ुबैर दोनों ही बाजी की इस हरकत पर बुत बने खड़े थे और शायद मेरी तरह ज़ुबैर भी हमारी बेपनाह हया वाली बहन के इस अंदाज़ के बारे में ही सोच रहा था।
मैं अपनी सोचों में बाजी के कल और आज का मिलान करने लगा।
 
मैं और ज़ुबैर दोनों ही रूही बाजी के ख्यालों में गुम थे और आज जो कुछ हुआ.. उस पर बहुत खुश थे। हम दोनों ने ही आज तक कभी किसी लड़की को असल में नंगी नहीं देखा था और आज असली मम्मे देखे भी थे.. तो अपनी ही सग़ी बहन के..
मुझे यह सोच पागल किए दे रही थी कि अब मैं रोज़ अपनी बहन के खूबसूरत जिस्म का दीदार किया करूँगा..
क्या हुआ.. जो सिर्फ़ ऊपरी जिस्म ही है.. और हो सकता है कि बाजी जल्द ही पूरी नंगी होने पर आमादा हो ही जाएँ।
ज़ुबैर की आवाज़ पर मेरी सोच का सिलसिला टूटा..
वो कह रहा था- भाई आपका क्या ख़याल है.. क्या हम बाजी को इस बात पर तैयार कर लेंगे कि पूरी नंगी होकर हमारे सामने बैठा करें?
मैं ज़ुबैर के इस सवाल पर सिर्फ़ मुस्कुराने लगा.. जो मैं सोच रहा था वही ज़ुबैर.. मतलब हम दोनों की सोच एक ही लाइन पर जा रही है।
‘भाई कितना मज़ा आएगा ना.. अगर ऐसा हो जाए..’ ज़ुबैर ने छत को देखते हुए गायब दिमाग से कहा। 
‘यार मैं प्लान कर रहा हूँ कि अब आगे क्या करना है.. बस तुम अपना दिमाग मत लगाना.. और जो मैं कहूँ या करूँ बस वैसे ही होने देना.. ओके.. मैं नहीं चाहता कि कोई गड़बड़ हो और बाजी हमसे नाराज़ हो जाएँ.. बस अब कोई प्लान सोचने के बजाए बाजी के दूधों को सोच और सोने की कोशिश करो और मुझे भी सोने दो।’ 
मैंने ज़ुबैर को डाँटने के अंदाज़ में कहा और आँखें बंद करके सोचने लगा कि अब क्या करना है और ये ही सोचते-सोचते ना जाने कब नींद ने आ दबोचा।
अगले दिन मैं कॉलेज से जल्दी निकला और घर वापस आते हुए अपने दोस्त से 3 नई सीडीज़ भी लेता आया। मैं चाहता था कि आज बाजी जब रात में हमारे कमरे में आएं.. तो पहले से ही गर्म हों..
जब मैं घर पहुँचा तो 2 बज रहे थे। अम्मी.. रूही बाजी और ज़ुबैर बैठे खाना खा रहे थे।
मैंने सबको सलाम किया और हाथ-मुँह धोकर खाने के लिए बैठ गया।
खाने के बाद हम वहाँ ही बैठे टीवी देख रहे थे.. तो अम्मी उठीं और सोने के लिए अपने कमरे में चली गईं।
रूही बाजी और ज़ुबैर वहाँ ही थे।
मैंने बिला वजह ही चैनल चेंज करना शुरू किए.. तो एक चैनल पर हॉट सीन बस शुरू ही हुआ था और लड़का-लड़की किसिंग कर रहे थे।
मैं उससे चैनल पर रुक गया।
बाजी ने दबी आवाज़ में कहा- वसीम क्या हिमाक़त है ये.. अम्मी किसी भी वक़्त बाहर आ सकती हैं.. चैनल चेंज करो..
ज़ुबैर मेरा साथ देने के लिए फ़ौरन बोला- कुछ नहीं होता बाजी.. अम्मी का दरवाज़ा खुलेगा तो आवाज़ आ ही जाएगी.. तो भाई चैनल चेंज कर देंगे। 
बाजी ने अपना मख़सूस लिबास यानि क़मीज़-सलवार और सिर पर स्कार्फ बाँधा हुआ था और बड़ी सी चादर लपेट रखी थी और टांग पर टांग रखे हुए बैठी थीं। 
मैंने बाजी को देखते हुए कहा- सोहनी सी बाजी… क्या ख़याल है आज दिन की रोशनी में अपने प्यारे से दुद्धुओं का दीदार करा दो ना.. मेरे जेहन से उनका ख्याल निकल ही नहीं रहा है प्लीज़.. बाजीईइ..
बाजी फ़ौरन घबरा कर बोलीं- तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? बिल्कुल ही उल्टी बात करने लगते हो।
‘चलो ना यार.. मज़ा आएगा ना बाजी.. डरते हुए ये सब करने का मज़ा ही अलग है।’ मैंने कहा और बाजी को देखते हुए अपनी पैंट की ज़िप खोली और लण्ड बाहर निकाल कर अपने हाथ से सहलाने लगा।
बाजी के साथ-साथ ज़ुबैर भी तकरीबन उछल ही पड़ा- ये क्या है भाई.. मूवी देखना और बात है.. आप फ़ौरन चैनल चेंज कर सकते हो.. लेकिन ये?
वो कुछ डरे-डरे से लहजे में बोला। 
मैंने हाथ को मक्खी उड़ाने के स्टाइल में लहराया और कहा- कुछ नहीं होता यार.. चलो बाजी.. मैंने आपको दिन की रोशनी में अपना लण्ड दिखा दिया है.. अब आप भी दिखाओ ना?
बाजी अभी भी ‘नहीं.. नहीं..’ करने लगीं.. तो मैंने ज़ुबैर को इशारा किया- चलो ज़ुबैर शुरू हो जाओ..
मेरे कहने पर ज़ुबैर ने भी अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और हाथ में पकड़ लिया.. लेकिन वो अभी भी डरा हुआ सा था। 
बाजी ने ज़ुबैर को हैरत से देखा और मेरी तरफ इशारा करके कहा- ये तो है ही खबीस.. तुम्हें किस पागल कुत्ते ने काटा है.. अम्मी बाहर आ गईं तो पता लग जाएगा सबको। 
ज़ुबैर को डरते देख कर मैंने बाजी को कहा- बाजी अभी भी टाइम है.. मान लो नहीं तो..
बाजी फ़ौरन बोलीं- नहीं तो क्या??
मैंने मुस्कुरा कर बाजी को देखा और ज़ुबैर की टाँगों के बीच बैठते हुए कहा- नहीं तो ये.. और ज़ुबैर का लण्ड अपने मुँह में ले लिया।
बाजी खौफ से पीली पड़ गईं और अपनी जगह से खड़ी होती हुई बोलीं- बस करो वसीम.. खुदा के लिए उठो.. अम्मी बाहर आ गईं तो..
मैंने बाजी की बात काट कर कहा- अगर अम्मी बाहर आईं.. तो इस सबकी जिम्मेदारी आप पर होगी.. आप दिखा दो ना.. देख लिए जाने के डर से ये सब करते हुए आपको मज़ा नहीं आएगा क्या। इसमें अजीब सा मज़ा है बाजी प्लीज़ करके तो देखो..
बाजी ने डरते हुए ही अम्मी के दरवाज़े और बाहर वाले मेन गेट पर नज़र डाली और कहा- वसीम छोड़ो ना प्लीज़ उठो.. ये सब कमरे में कर लेंगे ना..
मैंने अनसुनी करते हुए कोई जवाब नहीं दिया और अपना मुँह ज़ुबैर के लण्ड पर चलाते-चलाते बाजी को क़मीज़ उठाने का इशारा कर दिया।
बाजी ने झिझकते-झिझकते झुक कर अपनी चादर समेत क़मीज़ के दामन को पकड़ा..
तो मेरा दिल भी धक-धक करने लगा।
मैं ज़ाहिर तो बहुत कर रहा था कि मुझे परवाह नहीं.. और शायद मुझे अपनी इतनी परवाह भी नहीं थी.. लेकिन बाजी को ये करता देख कर मुझ पर भी खौफ कायम हो गया था कि कहीं सचमुच ही अम्मी बाहर आ गईं.. या बाहर से कोई घर में दाखिल हुआ.. और उन्होंने ये देख लिया तो क्या होगा..
इसके आगे मुझसे सोचा ही नहीं गया।
मैंने धक-धक करते दिल के साथ अम्मी के दरवाज़े पर नज़र डाली। 
अम्मी का कमरा बाजी की बैक की तरफ था और बाहर का मेन गेट उनके दायें और हमारी बाईं तरफ़ था।
फिर मैंने बाजी को देखा.. उन्होंने अपनी चादर और क़मीज़ के दामन को थामा हुआ था और घुटनों से ऊपर उठा रखा था।
बाजी ने खौफजदा सी आवाज़ में कहा- वसीम तुम अम्मी के दरवाज़े का ध्यान रखना और ज़ुबैर तुम बाहर वाले गेट को भी देखते रहना.. अच्छा। 
यह कह कर बाजी ने अपनी चादर और क़मीज़ को अपनी गर्दन तक उठा दिया। बाजी ने ब्लैक कलर की ब्रा पहनी हुई थी और ब्लैक ब्रा से झाँकते गुलाबी-गुलाबी मम्मों का ऊपरी हिस्सा क़यामत ढहा रहा था। मैंने कुछ देर इस मंज़र को अपनी नज़र में सामने देखने के बाद.. डरी हुई आवाज़ में आहिस्तगी से कहा- बाजी अपना ब्रा भी उठाओ ना प्लीज़.. 
और शायद बाजी को भी अब इस सब में मज़ा आने लगा था.. उन्होंने गर्दन घुमा कर अम्मी के कमरे के दरवाज़े को और फिर बाहर वाले दरवाज़े को देखा और एक झटके में अपनी ब्रा भी ऊपर कर दी।
इसी के साथ मेरे दिल की धड़कन बिल्कुल रुक गईं..
मुझ पर वो ही कैफियत हावी होने लगी थी.. जो कल बाजी के सीने के उभारों को देख कर हुई थी।
मैं चंद लम्हें ऐसे ही अपनी खूबसूरत सी बहन के प्यारे से मम्मों को देखता रहा और फिर उनके हसीन भूरे गुलाबी निप्पलों पर नज़र जमाए हुए एकदम गुमशुदा दिमाग की कैफियत में जैसे ही बाजी की तरफ बढ़ा तो…
बाजी ने फ़ौरन अपनी क़मीज़ नीचे कर दी.. और चादर और क़मीज़ के ऊपर से ही अपने ब्रा को मम्मों पर सैट करने लगीं।
फिर उन्होंने अपना हाथ चादर के अन्दर डाला और खड़े-खड़े ही थोड़ी सी टाँगें खोलीं और घुटनों को बेंड करते हुए अपनी सलवार से ही टाँगों के बीच वाली जगह को साफ कर लिया।

मैंने ये देखा तो हँसते हुए तंज़िया अंदाज़ में कहा- बाजीजान इतने में ही गीली हो गई हो.. और नखरे इतने कर रही थीं।
‘बकवास मत कर खबीस.. मैं नखरे नहीं कर रही थी.. अगर अम्मी या कोई और आ जाता ना.. तो फिर तुम्हें पता चलता।’
बाजी ने ये कहा और फिर अपना लिबास सही करने लगीं। 
ज़ुबैर पहले ही अपना लण्ड अन्दर कर चुका था.. मैंने भी अपना लण्ड पैंट में डाला और ज़िप बंद करते हुए कहा- अच्छा सच-सच बताओ बाजी.. मज़ा आया ना आपको..
बाजी को खामोश देख कर मैंने फिर कहा- बाजी झूठ मत बोलना.. आपको हम दोनों की कसम.. सच बताओ?
मेरी बात सुन कर बाजी मुस्कुरा दीं और अपने कमरे की तरफ चल पड़ीं। 
फिर 4-5 क़दम बाद रुक कर पलटीं और मुझे आँख मार कर बड़े फिल्मी स्टाइल में कहा- एकदम झकास्स्स..
और कमरे में चली गईं।
अब मैं सोचने लगा कि हमारी बहन का ये स्टाइल भी बहुत खूब है.. जो वो अक्सर जाते-जाते पलट कर हमें मुतमइन कर जाती हैं। 
आज रात फिर बाजी हमारे कमरे में आईं और अपनी क़मीज़ उतार कर सोफे पर बैठ गईं।
ज़ुबैर और मैंने बाजी को देखते-देखते ही उनके सामने एक-दूसरे को चोदा.. और अब रोज ही ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। 
तक़रीबन एक हफ्ते तक यही करते रहने के बाद एक रात जब चुदाई करते हुए ज़ुबैर और मैं डिसचार्ज हुए.. तो बाजी भी तब तक दो बार अपना पानी छोड़ चुकी थीं। 
हम तीनों अपनी-अपनी ड्रेस पहन रहे थे कि बाजी ने अपनी क़मीज़ पहनते-पहनते कहा- यार आज कुछ मज़ा नहीं आया है.. कुछ और दिखाओ मुझे.. कुछ नया दिखाओ.. ये डेली तुम लोगों को एक ही काम करते देख-देख कर अब बोर हो गई हूँ.. अब कुछ चेंज लाओ। 
ज़ुबैर ने कहा- किस किस्म का चेंज लाएं बाजी?
बाजी ने कहा- ये मुझे नहीं पता.. लेकिन बस कुछ मज़ेदार सा हो।
मैंने बाजी को देखते हुए कहा- बाजी जान हम तो जो कर सकते थे.. सब कर ही लिया है.. हमारे पास तो कुछ नया है नहीं.. यदि कुछ चेंज ही चाहती हो.. तो आप ही हमें कुछ नया दिखा दो। 
बाजी मुस्कुराईं और चादर को अपने जिस्म से लपेटते हुए कहा- वसीम तुम से तो मैं इतनी अच्छी तरह वाक़िफ़ हूँ कि तुम्हारी शक्ल देख कर ही मुझे पता चल जाता है कि तुम क्या चाह रहे हो.. कमीनों.. मैं अच्छी तरह से समझती हूँ कि तुम क्या सोच रहे हो.. लेकिन याद रखना.. जो तुम सोच रहे ही न.. वो कभी नहीं हो सकता और इसके बारे में सोचना भी मत.. पहले ही कभी-कभी मैं बहुत गिल्टी फील करती हूँ कि ये सब कर रही हूँ!
 
बाजी का दुखी होता चेहरा देख कर मैंने फ़ौरन कहा- अच्छा बाजी अब रोना-वोना मत शुरू हो जाना.. हम देख नहीं सकते लेकिन रात को सोने से पहले सोच तो लेते हैं ना.. अब अगर मूड ऑफ हो गया तो सोच भी नहीं सकेंगे। 
‘वसीम तुम सचमुच बहुत ही बड़े वाले कमीने हो!’ बाजी ने हँसते हुए कहा और हमें ‘शब्बा खैर’ कहती हुई कमरे से बाहर चली गईं। 
अगले ही दिन मैं अपने दोस्त रफ़ीक के पास गया और उससे कहा- यार रफ़ीक हम अपने रुटीन सेक्स से उकता गए हैं.. तुम कुछ और ऐसा बताओ.. जो ज़रा एग्ज़ाइटेड सा हो.. 
मैंने अभी तक रफ़ीक को ये नहीं बताया था कि मेरा सेक्स पार्ट्नर मेरा अपना ही सगा भाई है। 
रफ़ीक बोला- यार तुम लोग थ्री-सम ट्राई करो.. इसमें तुम्हें बहुत मज़ा आएगा.. मैं कामरान से बात कर लेता हूँ.. वो वैसे भी मुझसे बहुत बार तुम्हारे बारे में पूछ चुका है।
मैंने कहा- नहीं यार.. मेरा दोस्त इस मामले में बहुत केयरफुल है.. वो किसी तीसरे बंदे को कभी क़बूल नहीं करेगा। 
मेरी बात सुन कर रफ़ीक कुछ सोचने लगा और कुछ देर बाद बोला- यार वसीम, तुम शाम में मेरे पास चक्कर लगाना.. मैं तुम्हारे मसले का कुछ हल निकालता हूँ। 
रफ़ीक के बुलाने के मुताबिक़ मैं शाम में जब रफ़ीक के घर गया.. वो घर से निकला तो उसके चेहरे पर अजीब सी शैतानी मुस्कुराहट थी।
रफ़ीक ने मुझे एक शॉपिंग बैग दिया और मेरे चेहरे पर नज़र जमाए हुए बोला- तेरी सोच से ज्यादा मज़ेदार चीज़ दे रहा हूँ तुझे.. जा मजे कर।
मैंने शॉपिंग बैग को खोला.. तो मुझे हैरत का शदीद झटका लगा.. शॉपिंग बैग में एक डिल्डो (प्लास्टिक का लण्ड) रखा हुआ था। मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं और बेसाख्ता मेरे मुँह से निकला- ओ बहनचोद.. ये तुझे कहाँ से मिल गया..
रफ़ीक ने मेरी हालत से लुत्फ़अंदोज़ होते हुए कहा- तू आम खा.. गुठलियाँ गिनने के चक्कर में क्यों पड़ता है।
मैंने मिन्नतें करते हुए कहा- बता ना यार.. प्लीज़.. हो सकता है वहाँ से और भी मज़ेदार चीजें मिल जाएँ?
रफ़ीक बोला- तेरा दिमाग खराब है.. तू क्या समझ रहा है कि यहाँ कोई ऐसी सेक्सशॉप है.. जहाँ ऐसी चीजें मिलती होंगी। 
मैंने कहा- तो फिर ये कहाँ से लिया तुमने?
रफ़ीक ने जवाब दिया- मेरी जान जितना टाइम मुझे हो गया है इन चक्करों में.. इतना टाइम तुझे हो जाएगा तो रास्ते खुद ही नज़र आने लगेंगे.. तू मेरे कज़िन सलीम को तो जानता ही है ना.. मेरा उससे भी ऐसा रिश्ता है.. वो 2 महीने पहले इटली गया था.. तो मैंने उससे कहा था कि वहाँ से ये चीजें ले आए.. मैंने उससे सेक्स डॉल का भी कहा था लेकिन ऐसी चीजें लाना इतना आसान नहीं है। वो मुश्किल से 3-4 डिल्डो ही ला सका है बस.. 
मैंने बहुत जज़्बाती लहजे में पूछा- तो बाक़ी और कहाँ हैं?
रफ़ीक बोला- वो सोलो एक्शन के लिए हैं तुम लोगों को इसकी जरूरत है.. ये तुम लोगों को ज्यादा मज़ा देगा। 
रफ़ीक ने जो डिल्डो मुझे दिया था तकरीबन 17 इंच लंबा था। सेंटर में एक इंच की बेस थी और दोनों साइड्स तकरीबन 8-8 इंच लंबी थीं.. जिनके सिरे बिल्कुल लण्ड की टोपी से मुशबाह थे और मोटाई एक नॉर्मल लण्ड जितनी ही थी। 
मैंने उससे अपने बैग में रखा तो रफ़ीक ने मुझे कुछ सीडीज़ भी दीं और मज़े लेते हुए कहा- जब इससे दिल भर जाए तो आकर मुझसे दूसरे ले जाना.. वो इससे ज़रा मोटे भी हैं.. और लंबे भी..
मैं वो लेकर घर आया और ज़ुबैर को दिखाया.. वो भी इससे देख कर बहुत हैरान हुआ और बहुत खुश भी हुआ।
हम दोनों ही ने कितनी मूवीज में ये देखा ही था और दोनों जानते थे कि इसको कैसे इस्तेमाल किया जाता है।
मैंने उसे अपनी अल्मारी में लॉक किया और हम दोनों ही बहुत बेताबी से रात होने का इन्तजार करने लगे।
रात को डेली रुटीन की तरह बाजी हमारे कमरे में आईं और अपनी बड़ी सी चादर.. स्कार्फ और क़मीज़ उतार कर सोफे के साथ रखी टेबल पर रखीं.. और सोफे पर बैठ गईं।
मैं और ज़ुबैर दोनों ही बाजी के सामने खड़े उनके चेहरे पर नज़र जमाए मुस्कुराए जा रहे थे। 
बाजी ने हैरानी से हमें देखा और बोलीं- क्या बात है.. तुम दोनों यहाँ खड़े हो के क्यूँ दाँत निकाल रहे हो? 
मेरे कुछ कहने से पहले ही ज़ुबैर बोल पड़ा- बाजी आज हमारे पास आपके लिए एक सरर्प्राइज़ है।
ज़ुबैर की बात खत्म होने पर मैंने कहा- बाजी आप चाहती थीं ना.. कुछ अलग सा हो.. जो हमारे खेल में कुछ एग्ज़ाइट्मेंट पैदा करे।
‘हाँ तो..?’ बाजी ने कुछ ना समझ आने वाले अंदाज़ में कहा।
मैं अपनी अल्मारी की तरफ गया और वहाँ से शॉपिंग बैग से डिल्डो निकाला और बाजी को दिखाते हुए कहा- तो ये है कुछ अलग सा..
जैसे ही बाजी की नज़र डिल्डो पर पड़ी उनका मुँह खुला का खुला रह गया। उनके मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी। बस उनकी नजरें उस डार्क ब्राउन 17 इंच लंबे टू साइडेड डिल्डो पर ही चिपक कर रह गई थीं। बाजी भी अच्छी तरह से जानती थीं कि ये क्या चीज़ है.. क्योंकि हमारी तकरीबन सब ही मूवीज उन्होंने भी देखी ही हुई थीं। 
चंद लम्हें इसी तरह बाजी डिल्डो को देखती रहीं और हम बाजी के खूबसूरत चेहरे के बदलते रंग देखते रहे.. फिर बाजी ने फंसी-फंसी आवाज़ में कहा- ये.. ये.. कहाँ से ले लिया तुमने वसीम..??
बाजी ने पूछा मुझसे था लेकिन नज़र डिल्डो से नहीं हटाई..
मैंने मुस्कुराते हुए हाथ सीने पर रखा और आदाब बजा लाने वाले अंदाज़ में थोड़ा सा झुक कर कहा- मैं अपनी इतनी प्यारी और हसीन बहन के लिए आसमान से तारे भी तोड़ लाऊँ तो ये तो बहुत हक़ीर सी चीज़ है।
‘नहीं.. सीरियसली प्लीज़.. मैं नहीं समझती कि इस किस्म की कोई चीज़ हमारे मुल्क में कहीं से मिलती होगी..’ बाजी ने बहुत संजीदा लहजे में पूछा।
‘मेरी सोहनी सी बहना जी हमारा मुल्क अब बहुत अड्वान्स हो गया है.. आप तसब्बुर भी नहीं कर सकतीं कि यहाँ क्या-क्या हो रहा है.. इन बातों को छोड़ो और ये देखो..’
मैंने ये बोल कर आहिस्तगी से डिल्डो बाजी की तरफ उछाल दिया.. जो सीधा बाजी की गोद में उनकी टाँगों के बीच जाकर गिरा। 
बाजी कुछ देर तक नज़र झुका कर डिल्डो को अपनी टाँगों के बीच पड़ा देखती रहीं और उन्होंने बेइख्त्यारी से अपनी टाँगों को थोड़ा सा खोल दिया। शायद बाजी उस डिल्डो के टच को अपनी टाँगों के बीच वाली जगह पर महसूस करना चाहती थीं।
बाजी ने खोए-खोए अंदाज़ में आहिस्ता से अपना हाथ डिल्डो की तरफ बढ़ाया और अपने लेफ्ट हैण्ड की मुट्ठी में उसे थाम लिया और उठा कर अपना राईट हैण्ड की नर्मी से डिल्डो की पूरी लंबाई पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर फेरने लगीं।

अच्छी तरह से पूरे डिल्डो को महसूस कर लेने के बाद बाजी ने बायें हाथ से डिल्डो को सेंटर से पकड़ा और दायें हाथ से डिल्डो को इस अंदाज़ में थामा जैसे हम मुठ मारते हुए लण्ड को पकड़ते हैं। उन्होंने नज़र उठा कर हमारी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए डिल्डो पर हाथ ऊपर नीचे करते हुए बोलीं- तो ये तरीक़ा है.. तुम लोगों के मज़े लेने का.. तुम लोग ऐसे ही हस्तमैथुन करते हो ना??
‘जी ये ही तरीक़ा है.. लेकिन अगर आप चाहो तो डिल्डो को छोड़ो.. प्रैक्टिकल के लिए असली चीज़ हाज़िर है..’ मैंने अपने लण्ड की तरफ इशारा करते हुए कहा। 
‘जी नहीं.. मुझे कोई जरूरत नहीं प्रैक्टिकल की.. बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब का..’ बाजी ने नखरीले अंदाज़ में कहा और डिल्डो मेरी तरफ़ फेंक दिया। 
बाजी ने अपनी टाँगों को थोड़ा सा खोला और अपने बायें हाथ से अपनी बायीं निप्पल को 2 ऊँगलियों की चुटकी में पकड़ते हुए थोड़ी सी टाँगें खोलीं और राईट हाथ को अपनी टाँगों के बीच वाली जगह पर आहिस्ता से रगड़ते हुए कहा- चलो अब जल्दी से शुरू करो.. मुझसे अब मज़ीद सब्र नहीं हो रहा है।
मैंने डिल्डो को अपने हाथ में पकड़े रखा और अपनी जगह से हरकत किए बिना ही कहा- मेरी सोहनी बहना जी.. आज का शो ज़रा स्पेशल है.. तो इसका टिकट भी ज़रा क़ीमती ही होगा ना..
‘अब क्या तक़लीफ़ है कमीने..?’ बाजी ने ज़रा गुस्सैल लहजे में पूछा।
 
मैंने वहाँ हाथ का इशारा सोफे के साथ रखे टेबल की तरफ किया.. जहाँ बाजी के तहशुदा चादर.. स्कार्फ और कमीज़ पड़ी थी और जवाब दिया- बाजी मेरा ख़याल है कि इस टेबल पर अब एक और चीज़ का इज़ाफ़ा कर ही दो आप.. 
‘बकवास मत करो.. मैं जो कर चुकी हूँ ये ही बहुत है.. जो तुम कह रहे हो.. वो मैं कभी नहीं करूँगी और प्लीज़ अब शुरू करो.. मैं रियली तुम लोगों को इस डिल्डो के साथ एक्शन में देखने के लिए बहुत एग्ज़ाइटेड हूँ।’ बाजी ने झुँझलाहटजदा अंदाज़ में कहा।
मैंने कहा- बाजी आप भी तो खामखाँ ज़िद पर अड़ी हो ना.. हम आप का आधा जिस्म तो नंगा देख ही चुके हैं.. तो अब आपको सलवार भी उतार देने में क्या झिझक है.. और मैं सिर्फ़ सलवार उतारने का ही तो कह रहा हूँ.. आपको अपने साथ शामिल करने की शर्त तो नहीं रख रहा ना..?
कुछ देर तक कमरे में खामोशी छाई रही मैं भी कुछ नहीं बोला और बाजी भी कुछ सोच रही थीं। 
‘ओके दफ़ा हो तुम लोग.. नहीं देखना मैंने तुम लोगों को भी..’ बाजी ने चिल्ला कर कहा और अपनी क़मीज़ पहनने लगीं। 
हम चुपचाप खड़े बाजी को देखते रहे उन्होंने क़मीज़ पहनी.. स्कार्फ बाँधा और अपने जिस्म पर चादर को लपेट कर हमारी तरफ देखे बगैर बाहर जाने लगीं..
बाजी अभी दरवाज़े में ही पहुँची थीं कि मैंने ज़रा तेज आवाज़ में कहा- मेरी सोहनी बहना जी.. अगर जेहन चेंज हो जाए और हमारी हालत पर रहम आ जाए तो हमारे कमरे का दरवाज़ा आपके लिए हमेशा खुला है.. बिला-झिझक कमरे में आ जाना.. हम आपको इस शानदार चीज़ के साथ यहाँ ही मिलेंगे।’ 
बाजी ने दरवाज़े में खड़े हो कर घूम कर मुझे बहुत गुस्से से देखा और कुछ बोले बिना ही दरवाज़ा ज़ोर से बंद करती हुई बाहर चली गईं। 
बाजी के बाहर जाते ही ज़ुबैर मेरे पास आया और फ़िक्र मंदी और मायूसी के मिले-जुले तसब्बुर से बोला- भाई आज तो आपका प्लान बैकफायर नहीं कर गया? मेरा मतलब है कि अपनी बहन को पूरा नंगी देखने के चक्कर में हम आधे से भी गए.. कम से कम बाजी के खूबसूरत मम्मे तो हमारे सामने होते ही थे ना.. अब तो सब खत्म हो गया।
‘फ़िक्र ना करो यार.. हम से ज्यादा मज़ा बाजी को आता है.. हमें ये सब करते देखने में.. मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूँ वो वापस ज़रूर आएँगी.. बेफ़िक्र रहो.. वो अब इसके बिना नहीं रह सकेंगी।
लेकिन मेरा अंदाज़ा गलत निकला और बाजी उस रात वापस नहीं आई थीं। 
सुबह नाश्ते के वक़्त भी बाजी बहुत खराब मूड में थीं.. मुझसे बात करना तो दूर की बात.. मेरी तरफ देख तक नहीं रही थीं।
लेकिन मुझे अपनी बहन का ये अंदाज़ भी बहुत अच्छा लग रहा था.. गुस्से में वो और ज्यादा हसीन लग रही थीं।
उनके गुलाबी गाल गुस्से की हिद्दत से लाल-लाल हो रहे थे। 
तीन दिन तक बाजी का गुस्सा वैसा ही रहा.. फिर चौथी रात को फिर बाजी हमारे कमरे में आईं और मुझसे नज़र मिलने पर दरवाज़े में खड़े-खड़े ही पूछने लगीं- वसीम तुम्हारा दिमाग वापस ठिकाने पर आ गया है या अभी भी तुम वो ही चाहते हो जो उस दिन तुम्हारी ज़िद थी? 
मैंने कहा- नहीं बाजी.. हम आज भी वो ही कहेंगे और कल भी वो ही कहेंगे.. जो उस दिन हमने कहा था।
बाजी ने घूम कर एक नज़र दरवाज़े से बाहर सीढ़ियों की तरफ देखा और पलट कर अपने हाथों से चादर और क़मीज़ के दामन को सामने से पकड़ा और एक झटके से अपनी गर्दन तक उठा दिया और कहा- एक बार फिर सोच लो.. वरना इनसे भी जाओगे.. 
ज़ुबैर ने फ़ौरन मेरी तरफ देखा जैसे कह रहा हो कि भाई मान जाओ..
आज तीन दिन बाद अपनी बहन के खूबसूरत गुलाबी उभारों और छोटे-छोटे चूचुकों को देख कर दिमाग को एक झटका सा लगा.. लेकिन मैंने अपने जेहन को अपने कंट्रोल में कर ही लिया और ज़ुबैर को चुप रहने का इशारा करते हुए बाजी को कहा- बहना जी हमारा फ़ैसला अटल है।
‘ओके तुम्हारी मर्ज़ी..’
बाजी ने अपनी क़मीज़ सही की.. और दरवाज़ा बंद करके बाहर चली गईं। 
बाजी के जाने के बाद हम दोनों कुछ देर वैसे ही उदास बैठे रहे और फिर ज़ुबैर सोने के लिए बिस्तर पर लेट गया। 
मेरा भी दिल उदास सा था और कुछ करने का मन नहीं कर रहा था। मैं भी बिस्तर पर लेट कर इन हालात पर सोचने लगा.. मुझे भी यक़ीन सा होता जा रहा था कि अब शायद हमारे रूम में बाजी कभी नहीं आएँगी और यह सिलसिला शायद इसी तरह खत्म होना था.. जो शायद आज ही खत्म हो गया है।
लगभग 45 मिनट से मैं अपनी इन्हीं सोचों में गुमसुम था कि दरवाज़ा खुलने की आवाज़ पर चौंक कर देखा तो बाजी कमरे में दाखिल हो रही थीं।
उन्होंने अन्दर आकर दरवाज़ा लॉक किया और झुंझलाते हुए बोलीं- तुम दोनों पूरे के पूरे खबीस हो.. तुम अच्छी तरह से जानते हो कि इंसान का कौन सा बटन किस वक़्त पुश करना चाहिए और मैं जानती हूँ ये सारी कमीनगी वसीम, तुम्हारी ही प्लान की हुई है.. तुम बहुत.. बहुत ही कमीने हो.. अब उठो दोनों.. क्यों मुर्दों की तरह पड़े हुए हो।
बाजी ने ये कहा और फिर सोफे के पास जाकर अपनी क़मीज़ उतारने लगीं। चादर और स्कार्फ वो अपने कमरे में ही छोड़ आई थीं। 
बाजी को क़मीज़ उतारते देख कर मैं भी बिस्तर से उठा और अपने कपड़े उतारने लगा। अपनी सग़ी बहन को मादरजात नंगी देखने के तसव्वुर से ही मेरे लण्ड में जान पड़ने लगी थी और वो भी खड़ा हो गया था।
मेरी देखा-देखी ज़ुबैर ने भी अपने कपड़े उतारे और हम दोनों अपने-अपने लण्ड को हाथ में पकड़ कर बाजी से चंद गज़ के फ़ासले पर ज़मीन पर बैठ गए। 
बाजी हमारे बिल्कुल सामने खड़ी थीं उन्होंने बेल्ट वाली काली सलवार पहनी हुई थी और इजारबंद नज़र नहीं आ रहा था.. जिससे ज़ाहिर होता था कि बाजी की इस सलवार में इलास्टिक ही है।
मेरी बहन का दूधिया गुलाबी जिस्म काली सलवार में बहुत खिल रहा था और नफ़ के नीचे काला तिल सलवार के साथ मैचिंग में बहुत भला दिख रहा था।
बाजी के पेट और सीने पर ग्रीन रगों का एक जाल सा था.. जो जिल्द के शफ़फ़ होने की वजह से बहुत वज़या था। 
बाजी ने अपने दोनों हाथों को अपनी कमर की साइड्स पर रखा.. अंगूठों को सलवार में फँसा दिया और अपने हाथों को नीचे की तरफ दबाने लगीं। बाजी की सलवार आहिस्तगी से नीचे सरकना शुरू हो गई। जैसे-जैसे बाजी की सलवार नीचे सरक रही थी.. मेरे दिल की धडकनें भी तेज होती जा रही थीं।
तकरीबन 2 इंच सलवार नीचे हो गई थी। 
बाजी की नफ़ के तकरीबन 3 इंच नीचे बालों के आसार नज़र आ रहे थे.. जिनको देख कर लगता था कि शायद बाजी ने एक दिन पहले ही सफाई की थी। अचानक बाजी ने अपने हाथों को रोक लिया। मेरी नजरें उनकी टाँगों के बीच ही जमी हुई थीं। 
बाजी के हाथ रुकते देख कर मैंने अपनी नज़र उठाई.. जैसे ही बाजी की नजरें मुझसे मिलीं.. उन्होंने शदीद शर्म के अहसास से अपनी आँखों को भींच लिया और अपने दोनों हाथ अपने चेहरे पर रख कर चेहरा छुपाते हुए पूरी घूम गईं। 
बाजी की शफ़फ़ और गुलाबी पीठ मेरी नजरों के सामने थी.. चंद लम्हों तक हम तीनों ऐसे ही चुप रहे और मुकम्मल खामोशी छाई रही.. फिर मैंने इस खामोशी को तोड़ते.. हुए सिर्फ़ दो लफ्ज़ कहे- बाजी प्लीज़..।
चंद लम्हें मज़ीद खामोशी की नज़र हो गए.. तो मैंने फिर कहा- आअप्प्पीईइ.. मेरी आवाज़ सुन कर बाजी ने अपने चेहरे से हाथ उठा लिए और वापस अपनी कमर पर रखते हो अंगूठों को सलवार में फँसा दिया.. लेकिन बाजी हमारी तरफ नहीं घूमीं.. और वैसे ही हमारी तरफ पीठ किए अपनी सलवार को नीचे खिसकने लगीं। 
सलवार का ऊपरी किनारा वहाँ पहुँच गया था.. जहाँ से बाजी के कूल्हों की गोलाई शुरू होती थी। सलवार थोड़ा और नीचे हुई.. तो उनके खूबसूरत शफ़फ़ और गुलाबी कूल्हों का ऊपरी हिस्सा और दोनों कूल्हों के बीच वाली लकीर नज़र आने लगी।
बाजी ने सलवार को थोड़ा और नीचे किया और अपने हाथ फिर रोक लिए। उनके आधे कूल्हे और गाण्ड की आधी लकीर देख कर नशा सा छाने लगा था.. और मैं अपने हाथ से अपने लण्ड को भींचने लगा।
 
बाजी थोड़ी देर ऐसे ही रुकी रहीं और फिर थोड़ा झुकीं और एक ही झटके में सलवार को अपने पाँव तक पहुँचा कर दोबारा सीधी खड़ी होते हुए अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया और पाँव की मदद से सलवार को अपने जिस्म से अलग करने लगीं।
हम भाइयों की जिद पर बाजी ने आखिर अपनी सलवार उतार ही दी।
मैं और ज़ुबैर दोनों बाजी के चूतड़ों पर नजरें जमाए अपने-अपने लण्ड को अपने हाथों से रगड़ रहे थे।
बाजी हमारी तरफ पीठ किए हुए ही दो क़दम सोफे की तरफ बढ़ीं और अपना स्कार्फ उठा कर सीधी खड़ी होते हुए अपने सिर पर स्कार्फ बाँधने लगीं।
मैं पीछे बैठा बाजी की एक-एक हरकत को देख रहा था जब उन्होंने स्कार्फ बाँधने के लिए अपने दोनों बाज़ू अपने जिस्म से ऊपर उठाए तो उनकी बगलों के नीचे से सीने के उभारों की हल्की सी झलक नज़र आने लगी और बाजी को इस पोजीशन में देखते ही मुझे कोका कोला की बोतल याद आ गई।
बाजी का जिस्म बिल्कुल ऐसा ही था.. हर चीज़ बहुत तहजीब में थी.. कमर से थोड़ा नीचे से साइड्स से उनकी कूल्हे बाहर की तरफ निकलना शुरू हो जाते थे और एक खूबसूरत गोलाई बनाते हुए रानों की शुरुआत पर वो गोलाई खत्म हो जाती थी।
उनके दोनों कूल्हे मुकम्मल गोलाई लिए हुए और बेदाग और शफ़फ़ थे, उनकी रानें भी बहुत खूबसूरत और उनके बाक़ी जिस्म की तरह गुलाबी रंगत लिए हुए थीं.. मुतनसीब पिंडलियाँ और खूबसूरत पाँव.. बहुत हसीन नज़र आते थे। 
उनको हरकत ना करते देख कर मैंने कहा- बाजी प्लीज़ हमारी तरफ घूमो ना.. प्लीज़.. 
बाजी ने मेरी बात सुनी और दोनों हाथों से अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को छुपाते हुए सामने सोफे पर बैठ गईं।
उन्होंने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं बाजी का चेहरा वासनाऔर शर्म के अहसास से लाल हो रहा था।
कमरे में सिर्फ़ हम तीनों की तेज साँसों और हमारे ज़ोर-ज़ोर से धड़कते दिल की आवाजें गूँज रही थीं।
ज़ुबैर और मेरे हाथ अपने अपने लंड को सहला रहे थे और नजरों ने बाजी के जिस्म को गिरफ्त में ले रखा था।
हम बाजी के सामने चंद गज़ के फ़ासले पर ही बैठे थे।
बाजी के बैठते ही ज़ुबैर ने कहा- बाजी असल चीज़ तो अभी भी छुपी हुई है हाथ हटाओ ना..
‘नहीं..!! मुझे बहुत शर्म आ रही है..!’ बाजी ने अपनी आँखों को भींचते हुए हल्की आवाज़ में जवाब दिया। 
मैंने कहा- चलो ना सोहनी बहना जी.. हम दोनों भी तो नंगे बैठे हैं ना आपके सामने..
मेरी बात खत्म होते ही बाजी ने अपने दोनों हाथों को टाँगों के बीच से उठाया और अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया। उनकी टाँगें आपस में जुड़ी हुई थीं जिसकी वजह से सिर्फ़ उनकी टाँगों के बीच वाली जगह के ऊपरी बाल.. जो एक दिन की शेव जैसे थे.. दिख रहे थे। 
‘बाजी टाँगें खोलो ना..’ ज़ुबैर बहुत उत्तेजित हो रहा था। 
बाजी ने अपने सिर को पीछे झुकाते हुए गर्दन को सोफे की पुश्त पर टिकाया और अपनी टाँगों को खोलने लगीं।
वॉवववव.. मेरे लिए जैसे दुनिया रुक सी गई थी.. मुझे दूसरी बार ऐसा महसूस हुआ कि मैं अपनी ज़िंदगी का हसीन तरीन मंज़र देख रहा हूँ।
मैं अपनी ज़िंदगी में पहली बार असली चूत देख रहा था और चूत भी अपनी सग़ी बहन की..
मेरा लण्ड कुछ-कुछ देर बाद एक झटका लेता और पानी का एक क़तरा बाहर फेंक देता।
मैं अपनी बहन की चूत पर नज़र जमाए-जमाए मदहोश सा होता जा रहा था। 
बाजी की चूत के ऊपरी हिस्से में बिल्कुल छोटे-छोटे बाल थे, बाल जहाँ खत्म होते थे.. वहाँ से ही चूत शुरू होती थी.. पूरी चूत गेहूँ के दाने सी मुशबाह थी। 
बाजी की चूत का रंग बिल्कुल गुलाबी था और ज़रा उभरी हुई थी। चूत के लब फैले-फैले से थे और अन्दर का हिस्सा नज़र नहीं आ रहा था।
बाजी की चूत के शुरू में हल्का सा गोश्त बाहर था.. जिसमें छुपा दाना (क्लिटोरिस) नज़र नहीं आता था। उनकी चूत के लिप्स के अंदरूनी हिस्सों से दोनों साइड्स से निकलते गोश्त के दो पर्दे से थे.. जो बहुत मस्त लग रहे थे। 
‘बाजी आप इस दुनिया की हसीनतरीन लड़की हुए.. आपके जिस्म का हरेक हिस्सा ही इतना दिलकश है.. कि मदहोशी कर देता है.. मैंने अपनी ज़िंदगी में इतना मुकम्मल जिस्म किसी का नहीं देखा.. आपका चेहरा.. आपके सीने के उभार.. खूबसूरत पेट और कमर.. जज़्ब ए नज़र.. लंबी-लंबी टाँगें और हसीन तरीन चू..’ 
मैंने खोई-खोई सी आवाज़ में ये जुमले अदा किया। 
ज़ुबैर मुँह खोले और अपने लण्ड को हाथ में पकड़े.. बस बाजी की चूत पर नजरें जमाए हुए गुमसुम सा बैठा था। उसके मुँह से कोई आवाज़ तक नहीं निकली थी। 
बाजी ने मेरी बात सुन कर अपनी आँखें खोलीं.. उनका चेहरा शर्म और उत्तेजना से भरा हुआ था, उनकी आँखें बहुत नशीली हो रही थीं और जिस्म की गर्मी की वजह से आँखों में नमी आ गई थी।
बाजी ने अपनी हालत पर ज़रा क़ाबू पाते हुए मेरी तरफ देखा।
कुछ देर तक मैं और बाजी एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे.. फिर उन्होंने मेरी नजरों से नज़र मिलाए हुए एक ‘आहह..’ खारिज की और सिसकते हुए अंदाज़ में कहा- वसीम उठो.. और अपने नए खिलौने को लेकर दोनों बिस्तर पर जाओ।
मैं हिप्नॉटाइज़्ड की सी कैफियत में उठा और ज़ुबैर के हाथ को पकड़ कर उसे उठने का इशारा किया.. और हम दोनों बिस्तर की तरफ चल दिए।
बिस्तर पर बैठ कर मैंने सिरहाने के नीचे से डिल्डो निकाला। 
यह डिल्डो भूरे रंग का था.. जिसकी दोनों तरफ की शक्ल लण्ड जैसी थी.. दोनों साइड्स तकरीबन 8-8 इंच लंबा और उसकी मोटाई दो इंच के डायामीटर की थी और सेंटर में एक इंच की चौकोर बेस था.. जो दोनों साइड्स को जुदा करती था।
यह डिल्डो हम दोनों के ही लण्ड से लंबा और थोड़ा मोटा भी था।
ज़ुबैर और मैंने डिल्डो की एक-एक साइड्स को मुँह में लिया और चूसने लगे।
जब वो गीला हो गया.. तो मैंने ज़ुबैर से डॉगी स्टाइल में झुकने को कहा और मैं उठ कर उसकी गाण्ड के पास आ गया।
मैंने डिल्डो को थोड़ा चिकना किया और फिर ज़ुबैर की गाण्ड में डालना शुरू कर दिया।
डिल्डो मेरे लण्ड से थोड़ा मोटा था और बड़ा भी था, तकरीबन 5-6 मिनट अन्दर-बाहर करने से ज़ुबैर की गाण्ड थोड़ी नर्म पड़ गई और डिल्डो आराम से अन्दर-बाहर होने लगा.. तो मैं भी डॉगी स्टाइल में हुआ और बाजी की तरफ नज़र उठा कर शरारती अंदाज़ में मुस्कुरा दिया।
बाजी भी मुझे देख कर मुस्कुराने लगीं उनके चेहरे से अब शर्म खत्म हो गई थी और सेक्स की हिद्दत.. लाली की सूरत में उनके गालों से ज़ाहिर हो रही थी, बाजी बहुत दिलचस्पी से हम दोनों के एक्शन को देख रही थीं।
बाजी ने अपने लेफ्ट हैण्ड से अपने एक उभार को दबोच रखा था और राईट हैण्ड की इंडेक्स फिंगर और अंगूठे की चुटकी में अपनी चूत के ऊपर वाले हिस्से में पेवस्त दाने यानि क्लिट को मसल रही थीं। 
मैंने ज़ुबैर की गाण्ड से गाण्ड मिला कर अपना हाथ पीछे की तरफ ले जाकर डिल्डो को थामा और उसका दूसरा सिरा अपनी गाण्ड में डालने की कोशिश करने लगा।
मेरे जेहन में यह था कि डिल्डो पूरा अन्दर करके में अपनी गाण्ड ज़ुबैर की गाण्ड से मिला दूँ.. लेकिन इस मुश्किल पोजीशन में मुझसे डिल्डो अपनी गाण्ड में नहीं डाला जा रहा था।
हमने ये पोजीशन मूवीज में देखी थीं और बाजी ने खासतौर पर इस पोजीशन को पसन्द किया था.. इसलिए मैं उनको रियल शो दिखाना चाहता था।
लेकिन 2-3 मिनट कोशिश करने के बावजूद में कामयाब नहीं हुआ.. तो मैंने बेचारजी की नज़र से बाजी को देखा और कहा- बाजी ये पोजीशन आसान नहीं है.. कसम से मैं जानबूझ के ऐसा नहीं कर रहा.. यक़ीन करो.. मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ। 
बाजी ने अपने सीने के उभार और चूत को मसलते हुए धीरे से कहा- कोई बात नहीं.. तुम आराम से डालने की कोशिश करो। 
मैंने कुछ देर दोबारा कोशिश की.. लेकिन कामयाब नहीं हुआ। मैंने फिर बाजी की तरफ देखा और मायूसी से ‘नहीं’ के अंदाज़ में अपने सिर को हिलाया।
बाजी कुछ देर हम दोनों को देखती रहीं।
फिर पता नहीं.. उन्हें क्या हुआ कि वो अपनी जगह से उठ कर हमारे पास आईं और अपने एक हाथ से डिल्डो को पकड़ा और दूसरा हाथ से मेरे कूल्हों को खोलते हुए डिल्डो का सिरा मेरी गाण्ड के सुराख पर रख कर अन्दर दबाने लगीं।
बाजी का हाथ छूते ही मेरे मुँह से एक ‘आहह..’ निकली और मैंने बेसाख्ता ही कहा- आआहह.. बाजी.. आपके हाथ का अहसास बहुत मज़ा दे रहा है।
बाजी ने एक हाथ से डिल्डो को मेरी गाण्ड में अन्दर-बाहर करते हुए कहा- अच्छा चलो ऐसी बात है तो और मज़ा ले लो।
बाजी ने यह कहा और दूसरे हाथ को मेरी गाण्ड पर फेरते हुए नीचे ले गईं और मेरी बॉल्स (टट्टों) को अपने हाथ में ले लिया और नर्मी से मसलने लगीं।
‘चलो, अब दोनों एक साथ पीछे की तरफ झटका मारो.. और फिर एक साथ ही आगे जाना.. ताकि रिदम ना खराब हो..’ यह कहते हुए बाजी ने अपने हाथ से डिल्डो को छोड़ दिया।
अचानक मुझे ज़ुबैर की तेज सिसकारी की आवाज़ सुनाई दी- आअहह बाजी जी.. उफफफ्फ़..
मैंने सिर घुमा कर देखा तो बाजी ने दूसरे हाथ में ज़ुबैर के बॉल्स पकड़े हुए थे और उन्हें भी मसल रही थीं।
हम दोनों को बाजी के हाथों की नर्मी पागल किए दे रही थी और हम बहुत तेज-तेज अपने जिस्मों को आगे-पीछे करने लगे।
जब हमारा रिदम बन गया तो बाजी ने हमारे बॉल्स को छोड़ा और सोफे की तरफ जाते हुए बोलीं- अब अपनी मदद खुद करो.. मैं तुम लोगों को मज़ा देने नहीं.. अपना मज़ा लेने के लिए आई हूँ।
बाजी ने अपने हाथ से डिल्डो को मेरी गांड में घुसाने में मदद की और साथ ही हम दोनों भाइयों के टट्टे भी सहलाये।
फ़िर बाजी हम दोनों की डिल्डो से गांड चुदाई का मज़ा लेने के लिए सोफे पर जाकर बैठ गईं।
हम दोनों की स्पीड अब कम हो गई थी और हम दोनों ने बाजी के बैठते ही अपनी नजरें उनकी टाँगों के बीच जमा लीं।
उनकी चूत बहुत गीली होने की वजह से चमक रही थी। 
बाजी ने हमारी तरफ देखा और हमको अपनी चूत की तरफ देखता पाकर मुस्कुरा दीं और अपनी टाँगें थोड़ी और खोल लीं। 
‘वसीम.. ज़ुबैर..!’ 
बाजी की आवाज़ पर हम दोनों ने एक साथ ही नज़र उठाईं.. तो बाजी ने शरीर सी मुस्कुराहट के साथ अपने सीधे हाथ की बीच वाली बड़ी ऊँगली को अपने होंठों में फँसा कर चूसा और हवा में लहरा कर अपनी चूत की तरफ हाथ ले जाने लगीं। 
हमारी नजरें बाजी की हाथ के साथ ही परवाज़ कर रही थीं। 
बाजी ने अपने हाथ को चूत पर रखा और इंडेक्स और तीसरी फिंगर की मदद से चूत के लिप्स को खोला.. तो उनकी चूत का दाना साफ नज़र आने लगा। बाजी ने बीच वाली ऊँगली को अपनी चूत के दाने पर रखा और आहिस्ता-आहिस्ता मसलने लगीं। 
इस नज़ारे ने मुझ पर और ज़ुबैर पर जादू सा किया और हम तेजी से हरकत करने लगे और 8 इंच का डिल्डो पूरा ही अन्दर जाने लगा।
जब हम पीछे को झटका मारते.. तो हम दोनों की गाण्ड आपस में टकराने से ‘थपथाप्प..’ की आवाज़ निकालती।
बाजी ने हमारी हालत से अंदाज़ा लगा लिया कि उनकी इस हरकत ने हमें बहुत मज़ा दिया है।
बाजी ने दोबारा अपना हाथ फिर हटाया और बीच वाली ऊँगली को मुँह में डाल कर चूसने लगीं।
फिर वो उसी तरह हवा में हाथ को लहराते हुए नीचे लाईं और इस बार भी अपनी चूत के पर्दों को अपनी ऊँगलियों की मदद से साइड्स पर करते हुए बीच वाली बड़ी ऊँगली को 2-3 बार क्लिट पर रगड़ कर नीचे की तरफ दबा दिया।
इसी हरकत के साथ उनके मुँह से ‘अहह..’ की आवाज़ निकली और उन्होंने ऊँगली का सिरा अपनी चूत के अन्दर दाखिल कर दिया। 
 
मैं और ज़ुबैर तो यह देखते ही पागल से हो गए और ज़ोर-ज़ोर से अपनी गाण्ड को आपस में टकराने लगे। मैंने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ा और उससे दबोचने लगा और हाथ तेजी से आगे-पीछे करने लगा। 
हमारा पागलपन बाजी के मज़े को भी बहुत बढ़ा गया था।
उन्होंने अपनी सीधे हाथ की मिडल ऊँगली का एक इंची हिस्सा बहुत तेजी से अपनी चूत में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया और बायें हाथ से कभी अपनी निप्पल्स को चुटकी में मसलने लगतीं.. तो कभी अपनी चूत के दाने को चुटकी पर पकड़ के मसलने और खींचने लगतीं।
वो बिना झिझके और पलकें झपकाए.. हमारी तरफ ही देख रही थीं। 
चंद मिनट बाद ही ज़ुबैर के लण्ड ने पानी छोड़ दिया और उसने एक झटके से आगे होते हुए डिल्डो को अपनी गाण्ड से बाहर निकाल दिया। अब आधा डिल्डो मेरी गाण्ड के अन्दर था और आधा बाहर लटक रहा था जैसे कि वो मेरी दुम हो।
बाजी ने ज़ुबैर के लण्ड से जूस निकलते देखा और मेरी गाण्ड में आधे घुसे और आधे लटके डिल्डो को देखा तो लज्जत की एक और सिहरअंगेज़ लहर की वजह से उनके मुँह से एक तेज ‘अहह..’ निकली, इसी के साथ उनका हाथ भी चूत पर तेज-तेज चलने लगा। 
बाजी ने अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त से टिका कर अपनी आँखें बंद कर लीं।
उनके दोनों पाँव ज़मीन पर टिके थे और वो अपनी ऊँगली को अपनी चूत में अन्दर-बाहर करने के रिदम के साथ ही अपनी गाण्ड को आगे करते हुए सोफे से थोड़ा सा उठ जाती थीं।
मैंने बाजी की आँखें बंद होती देखीं.. तो डिल्डो को अपनी गाण्ड से बाहर निकाले बगैर ही बिस्तर से उठ कर बाजी की टाँगों के बीच आ बैठा। 
मेरी देखा-देखी ज़ुबैर भी क़रीब आ गया। 
बाजी की गुलाबी चूत में उनकी खूबसूरत गुलाबी ऊँगली बहुत तेजी से अन्दर-बाहर हो रही थी।
जब बाजी अपनी ऊँगली अन्दर दबाती थीं.. तो चूत के लब भी बंद हो जाते और उनकी ऊँगली को अपने अन्दर दबोच लेते।
जब ऊँगली बाहर आती तो लब खुल जाते और लबों के अन्दर से ऊँगली के दोनों साइड्स पर चूत के पर्दे नज़र आने लगते। 
बाजी जब अपनी उंगली को चूत में दबाती थीं.. तो चूतड़ों को सोफे से हल्का सा उठा लेतीं और उसी रिदम में आगे झटका देतीं।
बाजी का पूरा हाथ उनकी चूत से निकलते जूस से गीला हो गया था जिससे चूत के आस-पास का हिस्सा और उनका हाथ दोनों ही चमक रहे थे।
बाजी की चूत से बहुत माशूरकन महक निकल रही थी।
वो ऐसी महक थी.. जो लफ्जों में बयान नहीं की जा सकती.. बस महसूस की जा सकती है।
जिन्होंने उस खुश्बू को अपनी बहन की चूत से निकलते हुए महसूस किया है या आपमें से जो लोग अपनी बहनों की ब्रा या पैन्टी को सूँघते रहे हैं.. वो जान सकते हैं कि चूत से उठती महक में कैसा जादू होता है।
अचानक बाजी ने अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त पर दबाया और टाँगें खुली रखते हुए ही पैर ज़मीन पर टिका कर अपने चूतड़ों को सोफे से उठा लिया, उनका जिस्म कमान की सूरत में अकड़ गया, हाथ चूत से और उभारों से हट गए और पेट के क़रीब अकड़ गए थे.. बाजी ने अपनी आँखों को बहुत ज़ोर से भींच लिया था और उनके चेहरे पर बहुत तक़लीफ़ का अहसास था। 
यह पता नहीं बाजी के डिसचार्ज होने का ख़याल था.. उनके हसीन.. खूबसूरत जिस्म का नज़ारा था.. सेक्सी माहौल का असर.. या फिर मेरी सग़ी बहन की चूत से उठती मदहोशकन खुश्बूओं का जादू था कि मैं बुत की सी कैफियत में आगे बढ़ा
और
अपनी बहन के सीने के दोनों उभारों को अपने दोनों हाथों में दबोचा और बाजी की चूत पर अपना मुँह रखते हुए उनकी चूत के दाने को पूरी ताक़त से अपने होंठों में दबा लिया और चूस लिया।

बाजी के मुँह से एक तेज ‘अहाआआआआ..’ निकली और उन्होंने बेसाख्ता ही अपने दोनों हाथों को मेरे सिर पर रखते हुए अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबा दिया। ज़ुबैर मेरी इस हरकत पर शॉक की हालत में रह गया और ना उसने हरकत की और ना ही उसकी ज़ुबान से कोई बात निकली। 
बाजी के जिस्म ने एक ज़ोरदार झटका खाया और उनके मुँह से निकला- वसीम.. अहह.. रुकओ.. ऊऊ मैं गइई.. उफ फफ्फ़..
और इसी के साथ ही बाजी के जिस्म को मज़ीद झटके लगने लगे और उनका जिस्म अकड़ने लगा, वो मेरे मुँह को अपनी चूत पर दबाती जा रही थीं और उनके हलक़ से ‘आआखह.. अहह..’ की आवाजें निकल रही थीं।
मुझे अपने मुँह में बाजी चूत फड़कती हुई सी महसूस हो रही थी। 
मैंने ज़िंदगी में पहली बार किसी चूत का ज़ायक़ा चखा था और मुझे उस वक़्त ही पता चला के चूत के पानी का कोई ज़ायक़ा नहीं होता.. हमें जो नमकीनपन महसूस होता है.. वो असल में जमे हुए यूरिन के क़तरे या खुश्क हुआ पसीना होता है।
कुछ लम्हों बाद ही जब बाजी को अपनी हालत का इल्हाम हुआ कि उनका सगा भाई अपने हाथों से उनके सीने के उभारों को दबा रहा है और उनकी शर्मगाह को अपने मुँह में दबाए हुए है.. तो उन्होंने तकरीबन चिल्लाते हुए कहा- नहीं.. वसीम.. हटोअओ.. छोड़ो मुझे.. उफफ्फ़.. ये.. ये क्या कर रहे हो.. मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ.. प्लीज़..
मैंने बाजी की चूत के दाने को अपने दाँतों में पकड़ कर ज़रा ज़ोर से दबा दिया।
‘अहह.. ऊऊओफ्फ़.. साअ..गर्र छोड़ो मुझे हटोऊऊ.. नाआ आआ..’
बाजी ने ये कह कर एकदम अपने कूल्हों को सोफे पर गिराया और अपने दोनों हाथों से मेरे हाथों को पकड़ते हुए एक झटके से अपने उभारों से दूर कर दिया और मेरे सीने पर अपने पाँव रखते हुए मुझे धक्का दिया। 
मैं बाजी के धक्का देने से तकरीबन 2 फीट पीछे की तरफ गिरा और अपना सिर ज़मीन पर टकराने से बहुत मुश्किल से बचाया।
मुझे धक्का देते ही बाजी ने देखा कि मेरा सिर ज़मीन पर लगने लगा है.. तो वो मुझे बचाने के लिए एकदम सोफे से उठीं और बोलीं- वसीम..
उन्होंने मुझे देखा कि मेरा सिर नहीं टकराया है.. तो फ़ौरन ही वापस सोफे पर बैठ गईं और अपने जिस्म को समेटते हुए दोनों हाथों में चेहरा छुपा लिया और रोने लगीं। 
मैंने ज़ुबैर की तरफ देखा तो वो बहुत डरा हुआ और कुछ परेशान सा था।
मैंने उसको इशारे से कहा कि कुछ नहीं होगा यार.. मैं हूँ ना.. जाओ तुम बिस्तर पर जाओ। 
ज़ुबैर को समझा कर मैं बाजी की तरफ गया.. वो सोफे पर ऐसे बैठी थीं कि उन्होंने अपनी दोनों टाँगों को आपस में मज़बूती से मिला रखा था और अपनी रानों पर कोहनियाँ रखे बाजुओं से अपने सीने के उभारों को छुपाने की कोशिश की हुई थी।
‘कोशिश..’ मैंने इसलिए कहा कि मेरी बहन के बड़े-बड़े मम्मे नर्मोनाज़ुक से बाजुओं में छुप ही नहीं सकते थे। 
मैं बाजी के पास जाकर खड़ा हुआ और कहा- बाजी प्लीज़ रोओ तो नहीं यार..
बाजी ने रोते-रोते ही जवाब दिया- नहीं वसीम तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.. ये बहुत गलत है.. बहुत गलत हुआ है ये.. तुमने मेरी हालत का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है.. तुम जानते ही हो कि मैं जब डिसचार्ज होने लगती हूँ.. तो मैं होश में नहीं रहती। तुम तो होश में थे.. इतना तो सोचते कि मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ वसीम..
‘बाजी प्लीज़ जो कुछ हुआ उससे हम मिटा नहीं सकते, आपको अपने सीने के उभारों को मसलते.. निप्पल्स को झंझोड़ते और अपनी टाँगों के बीच वाली जगह में ऊँगली अन्दर-बाहर करते देख कर मेरी भी सोचने-समझने की सलाहियत खत्म हो गई थी। आपकी टाँगों के बीच से उठती माशूरकन खुश्बू ने मेरे होश भी गुम कर दिए थे और मैंने जो किया उसकी आपको उस वक़्त शदीद जरूरत थी.. लाज़मी था कि आपको संतुष्टि मिले.. वरना आप का नर्वस ब्रेक डाउन भी हो सकता था।’
मैं यह कह कर बाजी के साथ ही सोफे पर बैठ गया।
मैं वाकयी ही बहुत दुखी हो गया था, मैं अपनी प्यारी बहन को रोता नहीं देख सकता था।
मैंने अपने एक हाथ से उनके सिर को नर्मी से थामते हुए अपने सीने से लगा लिया और अपना दूसरा बाज़ू बाजी के पीछे से उनकी नंगी कमर से लगते हुए हाथ बाजी के कंधों पर रख दिया।
मैं बाजी को चुप कराने लगा- बाजी प्लीज़.. अब बस करो.. मैं आपको रोता नहीं देख सकता.. मेरा दिल फट जाएगा.. चुप हो जाओ।
बाजी ने अभी भी अपने चेहरे को दोनों हाथों में छुपा रखा था और उनकी आँखों से मुसलसल आँसू निकल रहे थे। मैंने बाजी के कंधे से हाथ हटाया और बिला इरादा ही उनकी नंगी कमर को सहलाने लगा। 
बाजी के गाल मेरे सीने और कंधे के दरमियानी हिस्से के साथ चिपके और उनके सीने के खूबसूरत और बड़े-बड़े उभार मेरे सीने में दबे हुए थे। 
बाजी के निप्पल्स बहुत सख्ती से अकड़े हुए मेरे सीने के बालों में उलझे पड़े थे और मेरे खड़े लण्ड की नोक..! बाजी की नफ़ से ज़रा नीचे.. साइड पर उभरे खूबसूरत तिल को चूम रही थी। 
बाजी ने रोना अब बंद कर दिया था लेकिन उनके मुँह से सिसकियाँ अभी भी निकल रही थीं। मैंने बाजी के दोनों हाथों को अपने हाथ में लिया और उनके चेहरे से हटा कर बाजी की गोद में रख दिया।
मैंने बाजी का चेहरा अपने हाथ से ऊपर किया.. उन्होंने आँखें बंद कर रखी थीं।
मैंने अपने हाथ से बाजी के आँसू साफ करने शुरू किए.. तो बाजी ने आँखें खोल दीं। मैं उनके आँसुओं को साफ कर रहा था और बाजी बिना पलक झपकाए मेरी आँखों में देख रही थीं, उनकी आँखों में बहुत तेज चमक थी। उस वक़्त पता नहीं क्या था बाजी की आँखों में..
मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं अब हमेशा के लिए इन आँखों का गुलाम हो गया हूँ।
उनकी आँखों में देखते-देखते मेरी आँख में भी आँसू आ गए।
बाजी ने वैसे ही मेरे सीने से लगे-लगे अपना एक हाथ उठाया और मेरे आँसू साफ करने लगीं।
मैंने उस वक़्त अपनी बहन के लिए अपने दिल-ओ-दिमाग में शदीद मुहब्बत महसूस की और बेसख्तगी में अपना चेहरा नीचे किया.. तो पता नहीं किस अहसास के तहत बाजी ने भी अपनी आँखें बंद कर लीं और मैंने अपने होंठ बाजी के होंठों से मिला दिए। 
बाजी के होंठ बहुत नर्म थे, मैंने बाजी के ऊपर वाले होंठ को चूसना शुरू किया तो मुझे ऐसे लगा जैसे मैं गुलाब की पंखुड़ी को चूम रहा हूँ..
कुछ देर ऊपर वाले होंठ को चूसने के बाद मैंने बाजी के नीचे वाले होंठ को अपने मुँह में दबाया तो मेरा ऊपरी होंठ बाजी ने अपने मुँह में ले लिया और मदहोश सी मेरे ऊपरी होंठ को चूसने लगीं।
चुम्बन एक ऐसी चीज़ है कि आप अगर पहली मर्तबा भी करें तो आपको सीखने की जरूरत नहीं पड़ती.. नेचर हमें खुद ही समझा देती है कि हमने क्या करना है।
बाजी ने अपने जिस्म को मेरे हाथों में बिल्कुल ढीला छोड़ दिया था।
मैंने बाजी के दोनों होंठों के बीच अपने होंठ रख कर उनके मुँह को थोड़ा सा खोला और बाजी की ज़ुबान को अपने होंठों में खींचने की कोशिश करने लगा।
बाजी ने मेरे इरादे को समझते हुए अपनी ज़ुबान को मेरे मुँह में दाखिल कर दिया।
बाजी की ज़ुबान का रस चूसते-चूसते ही मैंने अपना हाथ उठाया और बाजी के सीने के उभार को नर्मी से थाम लिया और आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और मसलने लगा..
मैंने बाजी के निप्पल को अपनी चुटकी में मसला तो बाजी के मुँह से ‘सस्स्स्सीईईईई..’ की आवाज़ निकली और मेरे मुँह में गुम हो गई।

मैं अपना हाथ बाजी के दोनों उभारों पर फिराता हुआ नीचे की तरफ जाने लगा।
बाजी के पेट पर हाथ फेरते हुए मैंने अपने हाथ को थोड़ा और नीचे किया और जैसे ही मेरा हाथ अपनी बहन की टाँगों के बीच पहुँचा और मैंने उनकी चूत के दाने को छुआ ही था कि उन्होंने एकदम से मचल कर आँखें खोल दीं और एक झटके से अपने जिस्म को मेरे जिस्म से अलग करते हुए कहा- नहीं वसीम.. नहींईई.. ये नहीं होना चाहिए नहीं.. नहीं..
‘नहीं.. नहीं..’ की गर्दन करते हुए बाजी उठीं और अपनी क़मीज़ पहनने लगीं। मैंने बाजी की कैफियत को समझते हुए उनको कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा कि उनको अपनी इस हरकत पर बहुत गिल्टी फील हो रहा था और मेरा कुछ कहना हमारे इस नए ताल्लुक के लिए अच्छा नहीं साबित होना था। 
मैं और ज़ुबैर चुपचाप बाजी को कपड़े पहनते देखते रहे.. बाजी ने अपने कपड़े पहने और तेज क़दमों से चलती हुई कमरे से बाहर निकल गईं। 
 
मैं अपने ऊपर छाए नशे को तोड़ना नहीं चाहता था, बाजी के जिस्म की खुश्बू अभी भी मेरी साँसों में बसी थी और मैं उससे खोना नहीं चाहता था.. इसलिए ज़ुबैर से कुछ बोले बिना उससे सोने का इशारा करते हुए बिस्तर पर लेट गया और अपने लण्ड को हाथ में पकड़े.. आँखें बंद करके बाजी के साथ हुए खेल को सोचते हुए लण्ड सहलाने लगा। 
जल्दी ही मेरे लण्ड ने पानी छोड़ दिया और अब मुझमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि मैं अपनी सफाई कर सकता।
उसी तरह लेटे-लेटे ही मैं नींद की वादियों मैं खो गया। 
सुबह जब मेरी आँख खुली तो 9 बज रहे थे, मैं फ्रेश हो कर नीचे पहुँचा तो अम्मी टीवी लाऊँज में ही बैठी थीं।
मैंने उन्हें सलाम किया और बाजी का पूछा.. तो अम्मी बोलीं- बेटा रूही यूनिवर्सिटी गई है.. और तुम्हारे छोटे भाई बहन अपने स्कूल गए हैं। तुम आज कॉलेज क्यों नहीं गए हो.. अपनी पढ़ाई का भी कुछ ख़याल किया करो..
ज़ुबैर और हनी के स्कूल शुरू हो चुके थे।
अम्मी ने हमेशा की तरह सबका ही बता दिया और मुझे भी लेक्चर पिलाने लगीं। 
वो ज़रा सांस लेने को रुकीं.. तो मैं फ़ौरन बोला- अम्मी नाश्ता तो दें दें ना.. मुझे आज कॉलेज लेट जाना था.. इसलिए देर से ही उठा हूँ।
अम्मी बोलते-बोलते ही किचन में गईं और पहले से तैयार रखी नाश्ते की ट्रे उठाए हुए बाहर आ गईं।
मैंने भी नाश्ता किया और कॉलेज चला गया। 
दिन में जब मैं कॉलेज से वापस आया तो ज़ुबैर और हनी नानी के घर जाने को तैयार खड़े थे और अम्मी उनको कुछ सामान देते हो नसीहतें दे रही थीं। 
‘सीधा नानी के घर ही जाना.. कोई आइसक्रीम-वाइसक्रीम के चक्कर में मत पड़ जाना.. सुन रहे हो ना.. मैं क्या कह रही हूँ..’
वगैरह वगैरह.. 
ज़ुबैर, हनी को भेजने के बाद अम्मी वहीं सोफे पर बैठ गईं और टीवी पर मसाला चैनल (कुकरी शो) देखने लगीं।
मैंने अम्मी को कहा- अम्मी बहुत भूख लगी है.. खाना तो दे दें।
अम्मी ने टीवी पर ही नज़र जमाए हुए कहा- रूही किचन में ही है.. उससे कहो.. दे देगी।
बाजी का जिक्र सुनते ही लण्ड ने सलामी के तौर पर झटका खाया और मैं किचन की तरफ बढ़ ही रहा था कि किचन के दरवाज़े पर बाजी खड़ी नज़र आ गईं, वो बाहर ही आ रही थीं.. लेकिन अम्मी की बात सुन कर वहाँ ही रुक गईं और मेरी तरफ देख कर कुछ शर्म और कुछ झिझक के अंदाज़ में मुस्कुरा दीं।
उन्होंने हमेशा की तरह सिर पर स्कार्फ बाँधा हुआ था और चादर के बजाए बड़ा सा कॉटन का दुपट्टा सीने पर फैला रखा था। 
मैंने बाजी को देख कर सलाम किया और नॉर्मल अंदाज़ में कहा- बाजी खाना दे दें.. बहुत सख़्त भूख लगी है।
‘तुम हाथ-मुँह धो कर टेबल पर बैठो.. मैं खाना लेकर आती हूँ।’ बाजी ने किचन में वापस घुसते हुए जवाब दिया। 
मैं हाथ-मुँह धोते हुए यही सोच रहा था कि कल रात जो बाजी को बहुत गिल्टी फीलिंग हो रही थीं.. शायद अब वो धीमी पड़ गई है। 
वाकयी ही ये लण्ड और चूत की भूख ऐसी ही है कि जब जागती है.. तो गलत-सही.. झूठ-सच कुछ नहीं देखती.. बस अपना आपा दिखाती है। 
मैं ज़रा फ्रेश होकर टेबल पर बैठ ही रहा था कि बाजी ट्रे उठाए किचन से निकलीं और मेरे सामने खाना रख कर सोफे पर अम्मी के पास ही बैठ गईं। 
मैं खाना खाने लगा और अम्मी और बाजी आपस मैं बातें करने लगीं। मैं खाना खाते-खाते नज़र उठा कर बाजी के सीने के उभारों और पूरे जिस्म को भी देख लेता था।
बाजी ने मेरी नजरों को महसूस कर लिया था, लड़कियों की सिक्स सेंस्थ इस मामले में बहुत तेज होती है, वो अपनी पीठ पर भी नजरों की ताड़ को महसूस कर लेती हैं।
अब जब मैंने नज़र उठाई.. तो बाजी ने भी उसी वक़्त मेरी तरफ देखा और गुस्सैल सी शकल बना कर आँखों से अम्मी की तरफ इशारा किया.. जैसे कह रही हों कि दिमाग ठिकाने पर नहीं है क्या..?? अम्मी देख लेंगी..
बाजी के इशारे को समझते हुए मैंने एक नज़र अम्मी पर डाली, वे टीवी देखने में ही मस्त थीं और फिर बाजी को देखते हुए अपने हाथ पर किस किया और किस को बाजी की तरफ फेंक दिया।
बाजी के चेहरे पर बेसाख्ता ही मुस्कुराहट आ गई और उन्होंने अम्मी से नज़र बचा कर मेरी किस को कैच किया और अपने हाथ को अपने होंठों से लगा लिया।
मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट फैल गई।
बाजी ने फिर आँखों से खाने की तरफ इशारा किया और दोबारा अम्मी से बातें करने लगीं।
मैंने खाना खत्म किया ही था कि अम्मी ने बाजी को हुकुम दिया- रूही जाओ, भाई ने खाना खा लिया है.. बर्तन अभी ही धो देना.. ऐसे ही ना रख देना.. बू आने लगती है।
‘अम्मी मैंने पहले कभी छोड़े हैं.. जो आज ऐसे ही रखूँगी.. आप भी ना..’ बाजी ने नाराज़गी दिखाते हुए अम्मी को कहा और मेरे पास आकर बर्तन उठाने लगीं। 
मैंने अम्मी की तरफ देखा.. वो टीवी में ही मग्न थीं, मैंने उनसे नज़र बचाते हुए बाजी के सीने के उभार की तरफ हाथ बढ़ाया और उनकी निप्पल पर चुटकी काट ली।
बाजी के मुँह से तेज ‘आआयइईई ईईईईईई..’ की आवाज़ निकली।
‘क्या हुआ..?’ अम्मी ने हमारी तरफ रुख़ मोड़ते हुए कहा।
मुझे अंदाज़ा था कि बाजी इस सिचुयेशन से घबरा जाएंगी.. इसलिए मैंने फ़ौरन ही बोल दिया- अम्मी बाजी के फैशन भी तो नहीं खत्म होते ना.. इतने बड़े नाख़ून रखती ही क्यों हैं कि बर्तन में उलझ कर तक़लीफ़ देने लगें।
 
अम्मी ने मेरी बात सुनी और वापस टीवी की तरफ़ ध्यान देते हुए बाजी को लेक्चर देना शुरू कर दिया। 
बाजी ने मेरी तरफ देखा और मुझे थप्पड़ दिखाते हुए बर्तन उठाए और रसोई में जाने लगीं। 
मैं बाजी के कूल्हों पर नज़र जमाए कुछ लम्हों पहले की अपनी हरकत पर खुद ही मुस्कुराने लगा।
‘बाजी एक गिलास पानी तो ला दो..’ कुछ देर बाद मैंने ज़रा ऊँची आवाज़ में कहा।
बाजी ने रसोई से ही जवाब दिया- खुद आ कर ले लो.. मेरे हाथों पर साबुन लगा है।
मैं उठा और पानी के लिए रसोई के दरवाज़े पर पहुँचा.. तो बाजी सामने वॉशबेसिन पर खड़ी गंदे बर्तन धो रही थीं, उनके दोनों हाथ साबुन से सने थे।
मैं अन्दर दाखिल हुआ और बाजी को पीछे से जकड़ते हुए हाथ आगे करके बाजी के खूबसूरत उभारों को अपने हाथ में पकड़ा और कहा- क्या हाल है मेरी सोहनी बहना जी?
बाजी मेरी इस हरकत पर मचल उठीं और मेरे सीने पर अपनी कोहनियों से दबाव देते हुए मुझे पीछे हटाने की कोशिश की और दबी आवाज़ में बोलीं- वसीम..!! कमीने ना कर.. अम्मी बाहर ही बैठी हैं.. कुछ तो हया कर.. छोड़ मुझे..
मैंने बाजी की गर्दन पर अपने होंठ रखे और आँखें बंद करके एक तेज सांस लेते हुए बाजी के जिस्म की खुश्बू को अपने अन्दर उतारा और कहा- मेरी बहना जी.. तुम्हारे जिस्म के हर हिस्से की खुश्बू होश से बेगाना कर देती है। 
‘वसीम छोड़ो मुझे.. अम्मी अन्दर आ जाएंगी प्लीज़.. कुछ गैरत खाओ..’
बाजी ने डरी हुई आवाज़ में कहा और अपने जिस्म को मेरी गिरफ्त से आज़ाद करने की कोशिश करने लगीं। 
मैंने बाजी के एक उभार को अपने सीधे हाथ से ज़रा ज़ोर से दबाया और अपना हाथ नीचे ले जाते हुए कहा- अम्मी बहारी कवाब मुकम्मल तैयार करवा के ही टीवी से हटेंगी.. आप अपना काम करती रहो ना.. मैं अपना काम करता हूँ।
मेरा लण्ड अब खड़ा हो चुका था और मेरा हाथ बाजी की टाँगों के बीच पहुँच गया था।
जैसे ही मेरा हाथ बाजी की टाँगों के बीच टच हुआ तो वो बेसाख्ता ही आगे को झुकीं.. उनके साथ ही मैं भी थोड़ा झुका और मेरा खड़ा लण्ड बाजी के कूल्हों की दरार में फिट हो गया।

‘उफफ्फ़.. वसीम छोड़ो मुझे.. वरना मैं साबुन से भरे हाथ तुम्हारे कपड़ों से लगा दूँगी।’ बाजी ने नकली गुस्से से कहा।
लेकिन अपनी पोजीशन तब्दील नहीं की- लगा दें.. फिर अम्मी को जवाब भी आप खुद ही देना.. पहले तो मैंने बचा लिया था।
मैंने बाजी की टाँगों के बीच रखे अपने हाथ को सलवार के ऊपर से ही उनकी चूत के दाने पर रगड़ते हुए कहा।
बाजी ने मचलना बंद कर दिया था.. शायद वो चंद लम्हों के लिए ही उस सुरूर को खोना नहीं चाहती थीं.. जो मेरे हाथ से उन्हें मिल रहा था। 
उन्होंने अटकती और फंसी-फंसी सी आवाज़ में हल्का सा मज़ा लेते हुए कहा- आअहह.. तो.. कमीनगी तो तुम्हारी ही थी ना.. ना करते उल्टी सीधी हरकत..
मैंने बाजी के कूल्हों में अपने लण्ड को ज़रा और दबाया.. तो उन्होंने मेरे लण्ड के दबाव से बचने के लिए अपने कूल्हों को दायें बायें हरकत दी तो उसका असर उलटा ही हुआ और मेरा लण्ड बाजी के कूल्हों की दरार में मुकम्मल फिट हो गया।
मैंने आहिस्ता आहिस्ता झटकों से अपने लण्ड को उनकी लकीर के बीच रगड़ते हुए अपने हाथ को थोड़ा और नीचे किया और बाजी की चूत की एंट्रेन्स पर अपनी ऊँगली को दबाया..
तो फ़ौरन बाजी मछली की तरह तड़फीं और ज़रा ताक़त से मुझे पीछे धक्का देते हुए मेरी गिरफ्त से निकल गईं। 
मैं बाजी के धक्के की वजह से पीछे रखे रेफ्रिजरेटर से टकराया और उसके ऊपर रखे बर्तन आवाज के साथ ज़मीन पर गिरे।
‘अब क्या तोड़ दिया हैईइ..?’ अम्मी ने बाहर से चिल्ला कर पूछा। 
फ़ौरन ही बाजी ने भी ऊँची आवाज़ में ही जवाब दिया- कुछ नहीं टूटा अम्मी.. बर्तन धो कर शेल्फ पर रखे थे.. फिसल के गिर पड़े हैं।
बाजी ने अपनी बात खत्म की और दोनों हाथ अपनी कमर पर रख कर गुस्से से मुझे देखने लगीं।
बाजी को ऐसे देख कर मुझे हँसी आ गई..
मुझे हँसता देख कर वो मेरी तरफ बढ़ीं.. मेरे दोनों बाजुओं को पकड़ा और मेरा रुख़ दरवाज़े की तरफ घुमा दिया।
मेरी पीठ पर अपने दोनों हाथ रखे और धक्का देते हुए किचन के दरवाज़े पर ला कर छोड़ा और मुझे गुस्से से ऊँगली दिखाते हुए वापस अन्दर चली गईं। 
मैंने अम्मी को देखा तो उनका ध्यान मुकम्मल तौर पर टीवी पर ही था। 
मैं कुछ सेकेंड ऐसे ही रुका और फिर आहिस्तगी से दोबारा रसोई में दाखिल हुआ।
बाजी को मेरे फिर अन्दर आने का पता नहीं चला था, मैं दबे कदमों उनके पीछे जा कर खड़ा हुआ ही था कि बाजी ने महसूस किया कि पीछे कोई है।
जैसे ही बाजी ने गर्दन मोड़ कर पीछे देखा.. मैंने बाजी के चेहरे को दोनों हाथों में मज़बूती से थामा और अपने होंठ बाजी के होंठों पर रख दिए।
मैंने खूब ज़ोरदार चुम्मी की और बाजी को छोड़ कर भागता हुआ बाहर निकल आया। 
मैंने पीछे मुड़ कर बाजी को नहीं देखा था लेकिन मेरी ख्याली नज़र देख रही थी कि मेरे निकलते ही बाजी कुछ देर तक अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी रहीं और फिर गर्दन को दायें बायें नहीं के अंदाज़ में हरकत देते हुए मुस्कुरा दीं।
हया की लाली ने उनके गालों को सुर्ख कर दिया था। 
मैं बाहर आकर अम्मी के पास ही सोफे पर बैठ कर टीवी देखने लगा।
कुछ ही देर में बोर होते हुए मैंने अम्मी के हाथ से रिमोट खींचा और हँसते हुए कहा- अम्मी बहारी कवाब अब प्रोड्यूसर हज़म भी कर चुका होगा और इस आंटी ने अभी कुछ और बनाना शुरू कर देना है। आपका यह ‘मसाला चैनल’ तो 24 घंटे ही चलता है। आप सब आज ही देख लेंगी.. तो कल क्या करेंगी.. छोड़ें अब..
अम्मी ने सुस्ती से एक जम्हाई ली और कहा- तो तुम और तुम्हारे बाबा ही हो ना.. जिनको चटोरी चीजें पसन्द हैं.. तुम्हारे लिए ही देख रही थी।
अम्मी ने कहा और उठ कर अपने कमरे में जाने लगीं।
दिन में सोने की उनकी पक्की आदत थी। 
अम्मी के जाने के बाद मैं कुछ देर तक वैसे ही गायब दिमाग से चैनल चेंज करता रहा और मुझे पता ही नहीं चला कि कब बाजी मेरे पीछे आकर खड़ी हो गईं। 
बाजी ने अपने दोनों हाथों से मेरे सिर के बालों को पकड़ा और खींचने लगीं। 
‘उफफ्फ़.. बाजीईईई.. दर्द हो रहा है.. छोड़ो ना बालों को..’
मैंने तक़लीफ़जदा आवाज़ में कहा..
तो बाजी ने हल्का सा झटका मारा और बोलीं- जल्दी से मुझसे माफी मांगो वरना मैं बालों को नहीं छोड़ूंगी।
 
कुछ देर बाद मैंने अपने होंठ बाजी के होंठों से अलग किए और कहा- बाजी हमने पहले कभी ऐसे अम्मी का दरवाज़ा बाहर से लॉक नहीं किया.. वो उठ गईं तो कहीं उनके ज़हन में ऐसे ही कोई शक़ ना पैदा हो जाए?
बाजी की आँखें बंद थीं और उन्होंने झुंझलाहट में लरज़ती आवाज़ से कहा- कुछ नहीं होता वसीम.. आओ ना प्लीज़..
और वे मेरे सिर को वापस नीचे दबाने लगीं। 
मैंने अपने सिर को अकड़ा कर नीचे होने से रोका और कहा- चलो ना बाजी.. मेरे रूम में चलते हैं.. दरवाज़ा खोल देते हैं अम्मी का.. 
बाजी ने आँखें खोल दीं.. उनके चेहरे पर शदीद नागवारी के भाव थे, उन्होंने दोनों हाथ मेरी गर्दन में डाले और कहा- क्या है वसीम.. तुम भी ना.. मैं कहीं नहीं जा..वा.. रही.. तुम जाओ.. तुम्हें जहाँ जाना है।
बाजी का ये अंदाज़ ऐसा था जैसे किसी बच्चे को चीज़ दिलाने से मना करो तो वो नाराज़ हो जाता है।
मैंने मुस्कुरा कर बाजी को देखा और कहा- अच्छा मेरी सोहनी बहना जी.. इतनी छोटी बातों पर नाराज़ थोड़ी ना होते हैं..
मैंने बात खत्म करके बाजी के होंठों को चूमने के लिए अपना सिर झुकाया तो उन्होंने अपने हाथ से मेरे चेहरे को रोका और होंठ दूसरी तरफ करते हो नाराज़गी से कहा- अच्छा जाओ.. अब खोल दो अम्मी का दरवाज़ा..
बाजी यह कह कर मेरी गोद से उठने लगीं तो मैंने उनको वापस गोद में दबाते हुए कहा- मैं अपनी जान से प्यारी बहना को खुद ही साथ ले जाता हूँ..
यह कह कर मैंने अपना बाज़ू बाजी के कन्धों के नीचे रखा और एक बाज़ू को उनके कूल्हों के नीचे से गुजार कर उनकी रान को मजबूती से थाम लिया और खड़ा हो गया। 
‘वसीम..!’ बाजी ने अचानक लगने वाले झटके की वजह से मुझे पुकारा और फिर मेरी गर्दन में दोनों हाथ डाल कर मुझे मुहब्बत भरी नजरों से देखती मुस्कुराने लगीं।
मैंने बाजी को गोद में उठाए-उठाए ही जाकर अम्मी का दरवाज़ा अनलॉक किया और सरगोशी में बाजी से पूछा- बहना जी कहाँ चलें?? आपके रूम में या ऊपर हमारे रूम में?
बाजी ने सोचने की एक्टिंग करते हुए कहा- उम्म्म्म.. ऐसा करो बाहर रोड पर ले चलो..
और दबी आवाज़ में हँसने लगीं। 
‘मेरा बस चले तो मैं तो आपको सात पर्दों में छुपा कर रखूँ जहाँ मेरे अलावा आपको कोई देख भी ना सके!’ 
मैं ये कह कर बाजी के कमरे की तरफ चल दिया।
बाजी बोलीं- नहीं वसीम यहाँ नहीं.. ऊपर ही ले चलो मुझे.. अपने कमरे में.. अम्मी अगर उठ भी गईं तो ऊपर नहीं आ सकेंगी.. और हनी.. ज़ुबैर तो लेट ही वापस आयेंगे।
मैंने बाजी की इस बात पर मुस्कुरा कर उन्हें देखा.. तो उन्होंने शर्मा कर अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया और मैं ऊपर अपने कमरे की तरफ जाते हुए बाजी को भी छेड़ने लगा- अच्छा.. आज तो मेरी बहना जी खुद कह रही हैं कि उन्हें अपने कमरे में ले जाऊँ.. हाँ..!
बाजी ने मेरी तरफ देखा और शर्म से लाल चेहरा लिए बोलीं- बकवास मत करो.. वरना मैं यहाँ ही उतर जाऊँगी। 
मैं बाजी को देख कर हँसने लगा.. लेकिन बोला कुछ नहीं।
मैं कमरे में दाखिल हुआ तो दरवाज़ा बंद किए बगैर ही बाजी को लेकर बिस्तर के क़रीब पहुँच गया।
मैंने बाजी को बिस्तर पर लिटाने लगा.. तो उनके वज़न और बाजी के हाथ मेरी गर्दन में होने की वजह से खुद भी उनके ऊपर ही गिर गया। 
बाजी ने फिर से मेरे बालों में हाथ फेरा और कहा- उठो.. दरवाज़े को लॉक कर दो..
उन्होंने मेरी गर्दन से हाथ निकाल दिए। 
मैंने दरवाज़ा लॉक किया और वापस आते हुए अपनी क़मीज़ भी उतार दी। 
बाजी बेड पर बेसुध सी लेटी छत को देखते कुछ सोच रही थीं.. मैं चंद लम्हें उन्हें देखता रहा। 
फिर मैंने बाजी के दोनों हाथ पकड़ कर खींचे और उन्हें बिठा कर पीछे हाथ किए और बाजी की क़मीज़ को खींच कर उनके कूल्हों के नीचे से निकाल दिया। 
मैं अपने हाथों में बाजी की क़मीज़ का दामन आगे और पीछे से पकड़े.. उनकी क़मीज़ उतारने के लिए ऊपर उठाने लगा तो बाजी ने अपने हाथ मेरे हाथ पर रखा और फिक्रमंद लहजे में कहा- वसीम.. ये सब गलत है.. अभी भी रुक जाओ.. 
बाजी की कैफियत बहुत मुतज़ाद सी थी.. कभी तो वो ये सब एंजाय करने लगती थीं.. तो कभी उनको गिल्टी फील होने लगता था.. और सब तो होना ही था कि अपने सगे भाई से ऐसा रिश्ता कोई ऐसी बात नहीं थी.. जो उनका जेहन आसानी से क़ुबूल कर लेता। 
उनकी बदलती कैफियत फितरती थी और मैं उनकी हालत अच्छी तरह समझता था।
‘बाजी प्लीज़.. अब कुछ मत सोचो बस जो हो रहा है होने दो..’ मैंने ये कह कर बाजी की आँखों में देखा.. तो उन्होंने एक अहह भरी और मेरे हाथ से अपना हाथ उठा दिया।
मैंने बाजी की क़मीज़ को गर्दन तक उठाया.. तो बाजी ने भी मेरी मदद करते हुए अपनी क़मीज़ को अपने जिस्म से अलग कर दिया।
बाजी ने आज भी ब्लैक लेसदार ब्रा ही पहन रखी थी। 
क़मीज़ उतारने के बाद मैं दोबारा अपने हाथ सामने से घुमाता हुआ बाजी की पीठ पर ले गया और उनकी ब्रा का हुक खोलने लगा.. तो बाजी ने अपने दोनों हाथों से ब्रा को सीने के उभारों पर ही थाम लिया।
मैंने हुक खोला तो बाजी ने अपने बाज़ू से ब्रा को अपने मम्मों पर ही रखते हुए ब्रा की पट्टियाँ अपने हाथों से निकाल दीं और इसी तरह ब्रा को थामे हुए ही लेट गईं।
मैंने बाजी के सीने से ब्रा हटाना चाहा.. तो उन्होंने अपने सिर को नहीं के अंदाज़ा में ‘राईट-लेफ्ट’ जुंबिश दी और अपनी बाँहें फैलाते हुए मुझे गले से लगने का इशारा किया।
अब मेरे और बाजी के जिस्म पर सिर्फ़ हमारी सलवारें ही मौजूद थीं और बाजी के सीने के उभारों पर उनकी खुली हुई ब्रा रखी हुई थी। मैंने अपने दोनों घुटने बाजी की टाँगों के इर्द-गिर्द टिकाए और उनके सीने के उभारों पर अपना सीना रखते हो बाजी के ऊपर लेट गया। 
मेरे लेटते ही बाजी ने मेरी कमर को अपने बाजुओं से कसा और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए। कभी बाजी मेरे होंठ चूसने लगती थीं.. तो कभी मैं.. कभी मैं बाजी की ज़ुबान चूसता.. तो कभी बाजी मेरी ज़ुबान का रस चूसने लगतीं।
मैं बाजी के चेहरे को अपने हाथों में थामे 10 मिनट तक किस करता रहा। फिर बाजी ने अपने होंठ मेरे होंठों से अलग किए और नशीली आवाज़ में कहा- वसीम थोड़ा ऊपर उठो..
मैंने ऊपर उठने के लिए अपने सीने को उठाया ही था कि बाजी ने अपना लेफ्ट हाथ मेरी कमर से हटाया.. और अपने सीने पर रखी ब्रा को हम दोनों के बीच से खींचते हुए राईट हैण्ड से मेरी कमर को वापस अपने जिस्म के साथ दबा दिया।
जैसे ही बाजी के सख़्त हुए निप्पल मेरे बालों भरे सीने से टकराए.. तो मेरे जिस्म में एक बिजली सी कौंध गई और बाजी के जिस्म में भी मज़े की लहर उठी और उनके मुँह से एक सिसकती ‘अहह..’ निकली।

यह मेरी जिन्दगी में पहली बार थी कि मैं किसी लड़की और वो भी अपनी सग़ी बहन जो हुस्न का पैकर थी.. के मम्मों को अपने सीने से चिपका महसूस कर रहा था।
मैं अपने होश खोता जा रहा था और मेरे साथ-साथ बाजी के दिल की धड़कनें भी बहुत तेज हो गई थीं।
उनकी धड़कनों की आवाज़ मुझे साफ सुनाई दे रही थी।
मैंने एक बार फिर बाजी के होंठों को चूमा और फिर उनकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए।
मैंने पहले बाजी की गर्दन के एक-एक मिलीमीटर को चूमा और फिर अपनी ज़ुबान निकाली और बाजी की गर्दन को चाटने लगा। 
मेरी ज़ुबान ने बाजी की गर्दन को छुआ तो उन्होंने एक झुरझुरी सी ली और मेरी कमर पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तेजी से हाथ फेरने के साथ-साथ अपने सीने को राईट-लेफ्ट हरकत देते हुए अपने निप्पल्स मेरे सीने से रगड़ने लगीं।
बाजी ने अपनी आँखें मज़बूती से भींच रखी थीं और चेहरे का गुलाबीपन सुर्खी में तब्दील हो गया था। 
मेरा लण्ड अपने पूरे जोश में आ चुका था और बाजी की रानों के बीच दबा हुआ था। मैंने बाजी की गर्दन को सामने से और दोनों साइडों से मुकम्मल तौर पर चाटा और अपने घुटनों पर वज़न देता हुआ अपने लण्ड को बाजी की रानों से थोड़ा उठा लिया और अपना सीना भी बाजी के सीने से उठाते हुए गर्दन से नीचे आने लगा।
मैंने नीचे की तरफ ज़ोर दिया.. तो बाजी ने अपने हाथों की गिरफ्त भी ढीली कर दी और एक हाथ से मेरी कमर सहलाते हुए दूसरा हाथ मेरे सिर पर फेरने लगीं। 
मैं गर्दन से होता हुआ बाजी के कंधे पर आया और अपनी ज़ुबान से चाटते बाजी के बाज़ू.. हाथ और फिर हाथ की ऊँगलियों तक पहुँच गया।
एक-एक ऊँगली को मुकम्मल चूसने के बाद मैं बाज़ू के निचले हिस्से को चाटता हुआ बाजी की बगलों में आ कर रुका।
 
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