hotaks444
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तेजी से मैं आगे बढ़ा और बाजी के कंधों को थाम कर ऊपर उठाने की कोशिश करते हुए बोला- पागल हो गई हो बाजी.. क्या कर रही हो.. उठो ऊपर.. सीधी खड़ी हो.. और सलवार ऊपर करो अपनी..
बाजी ने अपने कंधों को झटका दे कर मेरे हाथों से अलग किया और वैसे ही झुकरझुके अपने हाथ से मेरे लण्ड को पैंट के ऊपर से ही मज़बूती से पकड़ कर दबाया और जिद्दी लहजे में ही कहा- नहीं.. मैं नहीं होती सीधी.. तुम इसे बाहर निकालो और अभी इसी वक़्त मेरी चूत में डाल कर ठंडा कर लो अपने आपको.. अपनी ख्वाहिश पूरी करो आओ.. तुम जिद्दी हो.. तो मैं भी तुम्हारी ही बहन हूँ।
यह बोलते हो बाजी की आवाज़ भर्रा गई थी और उनकी आँखों में नमी भी आ गई थी।
मैं नीचे झुका और बाजी की सलवार को पकड़ कर ऊपर करने के बाद बाजी के हाथ से उनकी क़मीज़ और चादर भी छुड़वा दी.. जो उन्होंने अपने एक हाथ से अपने पेट पर पकड़ रखी थी। इसके बाद मैंने मज़बूती से बाजी के कंधों को पकड़ा और उनको सीधा खड़ा करके अपने सीने से लगा लिया।
बाजी ने अपना चेहरा मेरे सीने से लगा दिया और रोते हो हिचकियाँ लेकर बोलीं- वसीम.. मुझसे नाराज़.. नहीं हुआ करो.. मैं मर जाऊँगी.. अच्छा।
मैंने अपना एक हाथ बाजी की कमर पर रखा और कमर सहलाते हुए दूसरे हाथ से उनके सिर को अपने सीने से दबा कर बोला- अच्छा बस ना बाजी.. रोया मत करो ना यार.. गुस्सा कर लो.. मार लो मुझे.. लेकिन रोया मत करो.. मेरा दिल हिल जाता है।
कुछ देर हम दोनों ही कुछ ना बोले.. बाजी ऐसे ही मुझसे चिपकी अपना चेहरा मेरे सीने पर छुपाए खड़ी रहीं और अपनी सिसकियों पर क़ाबू करती रहीं। फिर उखड़े हुए लहजे में ही बोलीं- तुम भी तो ख़याल नहीं करते हो ना.. हर वक़्त तुम्हारे जेहन पर चूत ही सवार रहती है बस..
मैंने देखा कि बाजी ने अब रोना बंद कर दिया है.. तो उनके मूड को सैट करने के लिए कहा- अच्छा ना मेरी सोहनी बहना.. बस अब रोना खत्म.. अपना मूड अच्छा करो जल्दी से..
मेरी बात सुन कर बाजी ने मेरी कमर पर मुक्का मारा और सीने पर हल्का सा काट लिया।
बाजी का एक हाथ मेरी कमर पर था और दूसरा हाथ हम दोनों के जिस्मों के बीच .. बाजी को ख़याल ही नहीं रहा था कि उनका हाथ अभी तक मेरे लण्ड पर ही है और उन्होंने बेख़याली में ही उसे बहुत मज़बूती से थाम रखा था।
मैंने बाजी का मूड कुछ बेहतर होते देखा तो शरारत से कहा- रोते रोते भी मेरे लण्ड को नहीं छोड़ा आपने.. और कह मुझसे रही हो कि मेरे जेहन पर चूत सवार रहती है.. हाँ.. अब छोड़ दो.. अब मुझे दर्द होने लगा है।
मेरी बात सुन कर बाजी बेसाख्ता ही पीछे हटीं.. एकदम मेरे लण्ड को छोड़ा और नम आँखों से ही हँसते हुए मेरे सीने पर मुक्का मार कर दोबारा मेरे सीने से लग गईं।
मैंने भी हँसते हुए फिर से बाजी को अपनी बाँहों में भींच लिया।
चंद लम्हों बाद मैंने बाजी को पीछे किया और अपने हाथ से उनके गालों पर बहते आँसुओं को साफ किया.. जिन्होंने बाजी के गुलाबी रुखसारों पर काजल की काली लकीरें बना डाली थीं और फिर उनके चेहरे को दोनों हाथों में नर्मी से पकड़ कर चेहरा उठाया।
बाजी ने भी अपनी नजरें उठा कर मेरी आँखों में देखा और हम दोनों फिर से हँस दिए।
बाजी की आँखों के इर्द-गिर्द काजल फैल गया था और उनकी रोई-रोई सी आँखें बहुत ज्यादा हसीन लग रही थीं।
मैंने बाजी की दोनों आँखों को बारी-बारी चूमा और कहा- बाजी आपकी आँखें काजल लगाने से इतनी हसीन लग रही थीं कि कसम खुदा की.. मैं कहता हूँ मैंने आज तक कभी इतनी हसीन आँखें नहीं देखीं और अब काजल फैल गया है.. तो एक नया हुस्न उभर आया है।
बाजी ने भी आगे बढ़ कर मेरे गाल को चूमा और नाराज़ से अंदाज़ में बोलीं- तुम्हारे ही लिए लगाया था काजल.. मुझे पता था कि तुम्हें अच्छा लगेगा.. लेकिन तुमने एक बार भी नहीं देखीं मेरी आँखें.. और अब तो सारा काजल फैल ही गया होगा।
बाजी का चुम्बन
बाजी ने अपनी बात खत्म की ही थी कि अम्मी की आवाज़ आई- रूही बस कर दो.. क्या सारा पानी खत्म करके ही आओगी?
‘बस आ रही हूँ अम्मी..’
बाजी ने अम्मी को जवाब दिया और अन्दर जाने ही लगी थीं कि मैंने उनका हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खींच कर बाजी के होंठों को अपने होंठों में जकड़ लिया।
तकरीबन 2 मिनट तक मैं और बाजी एक-दूसरे के होंठों और ज़ुबान को चूसते रहे.. फिर बाजी मेरे निचले होंठ को चूस कर खींचते हुए मुझसे अलग हुईं और अपने होंठों पर ज़ुबान फेर कर बोलीं- वसीम.. बस अब छोड़ो.. कोई आ ना जाए।
मेरे मुँह से बेसाख्ता ही हँसी निकल गई और मैंने हँसते हुए ही बाजी को कहा- अब होश आया है कि कोई आ ना जाए.. कुछ देर पहले की अपनी हालत याद करो ज़रा?
‘बकवास नहीं करो.. मुझे गुस्सा आ गया.. तो मैं फिर शुरू हो जाऊँगी।’ बाजी ने वॉर्निंग देने वाले अंदाज़ में अकड़ कर कहा..
तो मैंने ताली मारने के अंदाज़ में अपनी दोनों हथेलियाँ अपने माथे के पास जोड़ीं और कहा- माफ़ कर दे मेरी माँ.. गुस्सा ना करना.. बहुत भारी गुस्सा है तुम्हारा।
बाजी ने हँसते हो मेरे जुड़े हुए हाथों को पकड़ा और उनको नीचे करके अन्दर चली गईं।
बाजी के अन्दर जाने के बाद मैं कुछ देर वहाँ ही खड़ा रहा और फिर सोचा कि मूड फ्रेश हो ही गया है.. तो चलो आज का दिन स्नूकर की नज़र ही कर देते हैं और ये सोच कर बाहर निकल गया।
दिन का खाना भी मैंने दोस्तों के साथ ही खाया और रात को जब घर पहुँचा तो 10:15 हो रहे थे.. मेरा खाना डाइनिंग टेबल पर ही पड़ा था और अब्बू और अम्मी टीवी लाऊँज में बैठे थे.. जबकि बाजी वगैरह सब अपने कमरों में ही थे।
मैंने खाना खाया और इस दौरान अब्बू से बातें भी करता रहा.. उन्होंने लाइसेन्स के बारे में दरयाफ्त किया.. मैंने उस बारे में बताया और ऐसे ही इधर-इधर की बातें करते रहे।
तकरीबन 11:30 पर मैं अपने कमरे में आया तो ज़ुबैर बिस्तर पर अपनी बुक्स फैलाए पढ़ने में इतना मग्न था कि उससे मेरी आमद का भी पता नहीं चला।
मैंने जा कर उसकी गुद्दी पर एक चपत लगाई और पूछा- क्यों भाई आईंस्टाइन.. आज ये ख़याल कैसे आ गया?
वो अपनी गुद्दी सहलाते हुए बोला- भाई फाइनल एग्जाम होने वाले हैं और अगर मेरे नंबर हनी से कम हुए.. तो अब्बू वैसे ही मेरी जान नहीं छोड़ेंगे।
मैं बिस्तर पर गिरने के अंदाज़ में लेटा और उससे बोला- तो अच्छी बात है ना बेटा.. बाक़ी सारे काम अपनी जगह.. लेकिन पढ़ाई अपनी जगह.. ओके..!
‘भाई एक बात समझ में नहीं आती.. बाजी जब यहाँ कमरे में होती हैं.. तो मुझसे बहुत प्यार जताती हैं.. लेकिन अगर नीचे हूँ.. तो मुझ पर तपी ही रहती हैं।”
मैंने उसकी बात पर चौंक कर उसे देखा और पूछा- क्यों क्या हुआ है?
वो बुरा सा मुँह बना कर बोला- मैंने अभी शाम में बाजी से पूछा था कि आज रात में आएँगी हमारे कमरे में..? तो उन्होंने बुरी तरह मुझे झाड़ दिया और बोलीं कि तुम्हारे पेपर होने वाले हैं ना.. जाओ जा कर पेपर्स की तैयारी करो।
मैं बिस्तर से उठ कर बैठ गया और उसे समझाने के अंदाज़ में बोला- देखो ज़ुबैर मेरी एक बात अभी ध्यान से सुनो.. अब तुम इस कमरे के अलावा और कहीं भी कभी भी बाजी से हमारे इन तालुक्कात का जिक्र नहीं करोगे.. चाहे बाजी घर में अकेली ही क्यों ना हो.. लेकिन नीचे हो तो तुमने ऐसी कोई बात नहीं करनी है.. कमरे में कहो.. जो कहना है.. समझ रहे हो ना मेरी बात?
ज़ुबैर ने ‘हाँ’ में गर्दन हिला कर कहा- जी भाई.. समझ गया।
‘हाँ.. इन बातों के अलावा तुम जो बात मर्ज़ी करो.. मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूँ कि बाजी कभी तुमसे खफा नहीं होंगी। बेवक़ूफ़.. वो अपनी जान से ज्यादा चाहती हैं हम दोनों भाईयों को.. लेकिन एक बार फिर कहूँगा कि इस कमरे से बाहर बाजी से ऐसी कोई बात नहीं! अच्छा.. चलो अब अपनी पढ़ाई करो और आज से जब तक तुम्हारे एग्जाम नहीं खत्म हो जाते.. मैं तुम्हें कंप्यूटर पर भी बैठा हुआ नहीं देखूँ.. ओके..!
मेरी आखिरी बात सुन कर वो बौखला गया और बोला- भाई मूवी तो देखने दो ना.. अच्छा कभी-कभी जब बहुत दिल चाहेगा मुठ मारने का.. तब देखूंगा।
मैंने कहा- ठीक है.. लेकिन बस उसी वक़्त जब बहुत दिल चाहे.. और तुम ज़रा ध्यान पढ़ाई में लगाओगे.. तो जेहन वहाँ जाएगा ही नहीं।
मैंने अपनी बात कही और ट्राउज़र उठा कर बाथरूम में चला गया।
बाजी ने अपने कंधों को झटका दे कर मेरे हाथों से अलग किया और वैसे ही झुकरझुके अपने हाथ से मेरे लण्ड को पैंट के ऊपर से ही मज़बूती से पकड़ कर दबाया और जिद्दी लहजे में ही कहा- नहीं.. मैं नहीं होती सीधी.. तुम इसे बाहर निकालो और अभी इसी वक़्त मेरी चूत में डाल कर ठंडा कर लो अपने आपको.. अपनी ख्वाहिश पूरी करो आओ.. तुम जिद्दी हो.. तो मैं भी तुम्हारी ही बहन हूँ।
यह बोलते हो बाजी की आवाज़ भर्रा गई थी और उनकी आँखों में नमी भी आ गई थी।
मैं नीचे झुका और बाजी की सलवार को पकड़ कर ऊपर करने के बाद बाजी के हाथ से उनकी क़मीज़ और चादर भी छुड़वा दी.. जो उन्होंने अपने एक हाथ से अपने पेट पर पकड़ रखी थी। इसके बाद मैंने मज़बूती से बाजी के कंधों को पकड़ा और उनको सीधा खड़ा करके अपने सीने से लगा लिया।
बाजी ने अपना चेहरा मेरे सीने से लगा दिया और रोते हो हिचकियाँ लेकर बोलीं- वसीम.. मुझसे नाराज़.. नहीं हुआ करो.. मैं मर जाऊँगी.. अच्छा।
मैंने अपना एक हाथ बाजी की कमर पर रखा और कमर सहलाते हुए दूसरे हाथ से उनके सिर को अपने सीने से दबा कर बोला- अच्छा बस ना बाजी.. रोया मत करो ना यार.. गुस्सा कर लो.. मार लो मुझे.. लेकिन रोया मत करो.. मेरा दिल हिल जाता है।
कुछ देर हम दोनों ही कुछ ना बोले.. बाजी ऐसे ही मुझसे चिपकी अपना चेहरा मेरे सीने पर छुपाए खड़ी रहीं और अपनी सिसकियों पर क़ाबू करती रहीं। फिर उखड़े हुए लहजे में ही बोलीं- तुम भी तो ख़याल नहीं करते हो ना.. हर वक़्त तुम्हारे जेहन पर चूत ही सवार रहती है बस..
मैंने देखा कि बाजी ने अब रोना बंद कर दिया है.. तो उनके मूड को सैट करने के लिए कहा- अच्छा ना मेरी सोहनी बहना.. बस अब रोना खत्म.. अपना मूड अच्छा करो जल्दी से..
मेरी बात सुन कर बाजी ने मेरी कमर पर मुक्का मारा और सीने पर हल्का सा काट लिया।
बाजी का एक हाथ मेरी कमर पर था और दूसरा हाथ हम दोनों के जिस्मों के बीच .. बाजी को ख़याल ही नहीं रहा था कि उनका हाथ अभी तक मेरे लण्ड पर ही है और उन्होंने बेख़याली में ही उसे बहुत मज़बूती से थाम रखा था।
मैंने बाजी का मूड कुछ बेहतर होते देखा तो शरारत से कहा- रोते रोते भी मेरे लण्ड को नहीं छोड़ा आपने.. और कह मुझसे रही हो कि मेरे जेहन पर चूत सवार रहती है.. हाँ.. अब छोड़ दो.. अब मुझे दर्द होने लगा है।
मेरी बात सुन कर बाजी बेसाख्ता ही पीछे हटीं.. एकदम मेरे लण्ड को छोड़ा और नम आँखों से ही हँसते हुए मेरे सीने पर मुक्का मार कर दोबारा मेरे सीने से लग गईं।
मैंने भी हँसते हुए फिर से बाजी को अपनी बाँहों में भींच लिया।
चंद लम्हों बाद मैंने बाजी को पीछे किया और अपने हाथ से उनके गालों पर बहते आँसुओं को साफ किया.. जिन्होंने बाजी के गुलाबी रुखसारों पर काजल की काली लकीरें बना डाली थीं और फिर उनके चेहरे को दोनों हाथों में नर्मी से पकड़ कर चेहरा उठाया।
बाजी ने भी अपनी नजरें उठा कर मेरी आँखों में देखा और हम दोनों फिर से हँस दिए।
बाजी की आँखों के इर्द-गिर्द काजल फैल गया था और उनकी रोई-रोई सी आँखें बहुत ज्यादा हसीन लग रही थीं।
मैंने बाजी की दोनों आँखों को बारी-बारी चूमा और कहा- बाजी आपकी आँखें काजल लगाने से इतनी हसीन लग रही थीं कि कसम खुदा की.. मैं कहता हूँ मैंने आज तक कभी इतनी हसीन आँखें नहीं देखीं और अब काजल फैल गया है.. तो एक नया हुस्न उभर आया है।
बाजी ने भी आगे बढ़ कर मेरे गाल को चूमा और नाराज़ से अंदाज़ में बोलीं- तुम्हारे ही लिए लगाया था काजल.. मुझे पता था कि तुम्हें अच्छा लगेगा.. लेकिन तुमने एक बार भी नहीं देखीं मेरी आँखें.. और अब तो सारा काजल फैल ही गया होगा।
बाजी का चुम्बन
बाजी ने अपनी बात खत्म की ही थी कि अम्मी की आवाज़ आई- रूही बस कर दो.. क्या सारा पानी खत्म करके ही आओगी?
‘बस आ रही हूँ अम्मी..’
बाजी ने अम्मी को जवाब दिया और अन्दर जाने ही लगी थीं कि मैंने उनका हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खींच कर बाजी के होंठों को अपने होंठों में जकड़ लिया।
तकरीबन 2 मिनट तक मैं और बाजी एक-दूसरे के होंठों और ज़ुबान को चूसते रहे.. फिर बाजी मेरे निचले होंठ को चूस कर खींचते हुए मुझसे अलग हुईं और अपने होंठों पर ज़ुबान फेर कर बोलीं- वसीम.. बस अब छोड़ो.. कोई आ ना जाए।
मेरे मुँह से बेसाख्ता ही हँसी निकल गई और मैंने हँसते हुए ही बाजी को कहा- अब होश आया है कि कोई आ ना जाए.. कुछ देर पहले की अपनी हालत याद करो ज़रा?
‘बकवास नहीं करो.. मुझे गुस्सा आ गया.. तो मैं फिर शुरू हो जाऊँगी।’ बाजी ने वॉर्निंग देने वाले अंदाज़ में अकड़ कर कहा..
तो मैंने ताली मारने के अंदाज़ में अपनी दोनों हथेलियाँ अपने माथे के पास जोड़ीं और कहा- माफ़ कर दे मेरी माँ.. गुस्सा ना करना.. बहुत भारी गुस्सा है तुम्हारा।
बाजी ने हँसते हो मेरे जुड़े हुए हाथों को पकड़ा और उनको नीचे करके अन्दर चली गईं।
बाजी के अन्दर जाने के बाद मैं कुछ देर वहाँ ही खड़ा रहा और फिर सोचा कि मूड फ्रेश हो ही गया है.. तो चलो आज का दिन स्नूकर की नज़र ही कर देते हैं और ये सोच कर बाहर निकल गया।
दिन का खाना भी मैंने दोस्तों के साथ ही खाया और रात को जब घर पहुँचा तो 10:15 हो रहे थे.. मेरा खाना डाइनिंग टेबल पर ही पड़ा था और अब्बू और अम्मी टीवी लाऊँज में बैठे थे.. जबकि बाजी वगैरह सब अपने कमरों में ही थे।
मैंने खाना खाया और इस दौरान अब्बू से बातें भी करता रहा.. उन्होंने लाइसेन्स के बारे में दरयाफ्त किया.. मैंने उस बारे में बताया और ऐसे ही इधर-इधर की बातें करते रहे।
तकरीबन 11:30 पर मैं अपने कमरे में आया तो ज़ुबैर बिस्तर पर अपनी बुक्स फैलाए पढ़ने में इतना मग्न था कि उससे मेरी आमद का भी पता नहीं चला।
मैंने जा कर उसकी गुद्दी पर एक चपत लगाई और पूछा- क्यों भाई आईंस्टाइन.. आज ये ख़याल कैसे आ गया?
वो अपनी गुद्दी सहलाते हुए बोला- भाई फाइनल एग्जाम होने वाले हैं और अगर मेरे नंबर हनी से कम हुए.. तो अब्बू वैसे ही मेरी जान नहीं छोड़ेंगे।
मैं बिस्तर पर गिरने के अंदाज़ में लेटा और उससे बोला- तो अच्छी बात है ना बेटा.. बाक़ी सारे काम अपनी जगह.. लेकिन पढ़ाई अपनी जगह.. ओके..!
‘भाई एक बात समझ में नहीं आती.. बाजी जब यहाँ कमरे में होती हैं.. तो मुझसे बहुत प्यार जताती हैं.. लेकिन अगर नीचे हूँ.. तो मुझ पर तपी ही रहती हैं।”
मैंने उसकी बात पर चौंक कर उसे देखा और पूछा- क्यों क्या हुआ है?
वो बुरा सा मुँह बना कर बोला- मैंने अभी शाम में बाजी से पूछा था कि आज रात में आएँगी हमारे कमरे में..? तो उन्होंने बुरी तरह मुझे झाड़ दिया और बोलीं कि तुम्हारे पेपर होने वाले हैं ना.. जाओ जा कर पेपर्स की तैयारी करो।
मैं बिस्तर से उठ कर बैठ गया और उसे समझाने के अंदाज़ में बोला- देखो ज़ुबैर मेरी एक बात अभी ध्यान से सुनो.. अब तुम इस कमरे के अलावा और कहीं भी कभी भी बाजी से हमारे इन तालुक्कात का जिक्र नहीं करोगे.. चाहे बाजी घर में अकेली ही क्यों ना हो.. लेकिन नीचे हो तो तुमने ऐसी कोई बात नहीं करनी है.. कमरे में कहो.. जो कहना है.. समझ रहे हो ना मेरी बात?
ज़ुबैर ने ‘हाँ’ में गर्दन हिला कर कहा- जी भाई.. समझ गया।
‘हाँ.. इन बातों के अलावा तुम जो बात मर्ज़ी करो.. मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूँ कि बाजी कभी तुमसे खफा नहीं होंगी। बेवक़ूफ़.. वो अपनी जान से ज्यादा चाहती हैं हम दोनों भाईयों को.. लेकिन एक बार फिर कहूँगा कि इस कमरे से बाहर बाजी से ऐसी कोई बात नहीं! अच्छा.. चलो अब अपनी पढ़ाई करो और आज से जब तक तुम्हारे एग्जाम नहीं खत्म हो जाते.. मैं तुम्हें कंप्यूटर पर भी बैठा हुआ नहीं देखूँ.. ओके..!
मेरी आखिरी बात सुन कर वो बौखला गया और बोला- भाई मूवी तो देखने दो ना.. अच्छा कभी-कभी जब बहुत दिल चाहेगा मुठ मारने का.. तब देखूंगा।
मैंने कहा- ठीक है.. लेकिन बस उसी वक़्त जब बहुत दिल चाहे.. और तुम ज़रा ध्यान पढ़ाई में लगाओगे.. तो जेहन वहाँ जाएगा ही नहीं।
मैंने अपनी बात कही और ट्राउज़र उठा कर बाथरूम में चला गया।