"अहहाहा हाए अहहहहा.... कब से हम भी यही कह रहे हैं अहहहा.. अब चोद दीजिए ना इस मुनिया को अहाहहाअ, कब से रो रही है..." नीतू ने पलंग पे अपने पैर फेला के कहा.. नीतू की लाल चूत देख उस आदमी से रहा नहीं गया और एक ही झटके में अपने साँप को उसकी चूत में उतार डाला..
"हाए अहहाहा मर गयी अहहाहा माआआ... धीरे कीजिए अहाहा उफफफ्फ़....." नीतू ने उस आदमी की पीठ पे अपने नाख़ून गढ़ा के कहा और उस आदमी ने धक्के मारना जारी रखा...
"अहहहहा हाए अहाहहा उफ़फ्फ़... उम्म्म्म अहहहहाहा कितनी गरम है आआहहा मेरी रानी अहहहा..... हां अजाहहहा चोदिये ना मेरे सैयाँ अहहहहाहा....." कमरे में दोनो की आवाज़ें गूंजने लगी... वीरान बंगले मेंकोई भी उनकी आवाज़ सुन सकता था, लेकिन दोनो बिना किसी की परवाह के अपनी मस्ती में जुटे थे...
जैसे जैसे रात बढ़ती गयी, दोनो के जिस्म ठंडे होने लगे... 15 मिनट बाद जब उस आदमी ने अपना पानी नीतू की चूत में छोड़ा, बेजान होके नीतू की बाहों में गिर पड़ा, और नीतू भी उसके बालों में हाथ घुमाती घुमाती नींद की आगोश में चली गयी..... रात के करीब 1 बजे, बंगले का गेट खुला.. और एक साया धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा... आगे बढ़ते बढ़ते घर के एंट्रेन्स के दरवाज़े के पास पहुँचा... रात के 1 बजे, सिर्फ़ फाउंटन से पानी गिरने की आवाज़ और घर के पीछे से समंदर की लहरों की पत्थरों से टकराने की आवाज़.. उस साए ने इतमीनान से अपने आस पास देखा, और जब उसे यकीन हुआ कि उसके अलावा वहाँ कोई नहीं है, धीरे से उसने दरवाज़े को खोला, और उतनी ही शांति से उस दरवाज़े को अंदर से बंद भी कर दिया... दबे हुए कदमों से आगे बढ़ के उस साए ने सीडीयों की तरफ रुख़ किया.. हर एक सीधी पे कदम रखते ही, वो चोकन्ना होके इधर उधर देखता और फिर उपर की ओर बढ़ने लगता... सीडीया ख़तम होते ही, अपनी बाईं ओर घूम के एक कमरे के बाहर खड़ा हो गया... एक दम हल्के से उस दरवाज़े की नॉब को घुमाया और अंदर का नज़ारा देखने लगा.. अंदर नीतू और उस मर्द का नंगा जिस्म देख उस साए की एक मुस्कान निकल गयी.... उस कमरे के दरवाज़े पे खड़े रह के ही उस साए ने अपनी जेब से एक पिस्टल निकाली, और फाइरिंग कर दी... सुनसान रात में बंगला खौफनाक चीखों से गूँज उठा....
कहते हैं वक़्त के साथ हर ज़ख़्म भर जाता है... और यह भी कहा जाता है कि वक़्त रेत की तरह होता है.. उसे जितना पकड़ने की कोशिश करो, वो उतना ही तेज़ी से फिसलता जाता है... लेकिन कितनी सच्चाई है इन वाक्यों में... यह निर्भर करता है उस वक़्त से गुज़रने वाले हर एक व्यक्ति पे... जब एक ज़ख़्म आपकी पूरी दुनिया ही बर्बाद कर देता है, तो उस ज़ख़्म को भर पाना वक़्त के लिए भी मुश्किल हो जाता है.. हर घड़ी, हर पल वो ज़ख़्म याद दिलाता है आपको, आपकी उजड़ी हुई दुनिए के बारे में.. और जब वक़्त भी आपके ज़ख़्मों को ना भर सके, तो वक़्त रेत की तरह फिसलने के बदले, आपके इशारे पे ही चलता है...
31स्ट दिसंबर 2013 :-
वक़्त रात के 11 बजे... एक घंटे में 2014 का आगमन होने वाला था.... साउत मुंबई, कोलाबा का एक आलीशान बंगला.. बंगले का नाम था "राइचंद'स....".. उस बंगले के मालिक का नाम था उमेर राइचंद, करीब 56 की एज होगी, लेकिन एज के हिसाब से काफ़ी हेल्ती इंसान थे.. रोज़ सुबह गोल्फ खेलना और गोल्फ कोर्स पे करीब आधे घंटे तक वॉक करना, यह दो कारण थे उनकी सेहत के... जवानी में काफ़ी शौकीन रहे थे और काफ़ी दिमाग़ वाले भी.. तभी तो उन्होने अपने पुश्तों की जायदाद का आज की तारीख में 15 गुना तक इज़ाफ़ा कर दिया था
अमर राइचंद की बीवी, सुहासनी देवी... सुहासनी रजवाड़े खानदान से थी, उसकी उमर 45 थी, 18 साल की उमर में ही सुहासनी की शादी करवाई गयी थी... इसलिए अमर और सुहासनी के बच्चे भी कुछ ज़्यादा बड़े नहीं थे.. अमर काफ़ी रंगीन मिजाज़ का था, तभी तो उन्होने शादी के 4 सालों में ही 3 बच्चे भी प्लान कर दिए..
अमर का सबसे बड़ा बेटा विक्रम... अपने बाप के नक्शे कदमों पे चलने वाला विक्रम भी काफ़ी रंगीन मिजाज़ का था, पढ़ाई लिखाई में सब से पीछे, लेकिन आवारा गार्दी और अयाशी में सब से आगे.. विक्रम सिर्फ़ अपने बाप के नाम की वजह से कॉलेज तक पढ़ा, लेकिन कॉलेज की सेकेंड एअर में आते ही उसे उसकी क्लास मेट से इश्क़ हो गया.. इसलिए उन्होने भाग के शादी भी कर ली.... अपनी इज़्ज़त की खातिर ऊमेर ने लड़की वालों से सीक्रेट मुलाक़ात करके एक अरेंज्ड मॅरेज का नाटक रचाया और अपनी इज़्ज़त को संभाल लिया..अमर को एक बात विक्रम की भाती तो वो था उसका बिज़्नेस करने का तरीका.. दुनिया की नज़रों में अमर की ट्रॅन्स्पोर्टेशन और टूरिज़्म कंपनीज़ थी,लेकिन असल में वो एक बुक्की था और काफ़ी पुराने और नये क्रिकेटर्स के साथ उठता बैठता.. जैसे जैसे अमर की उमर बढ़ती गयी, उसका नेटवर्क टूटने लगा, लेकिन विक्रम ने जैसे ही इस चीज़ में अपना ध्यान डाला, अमर की डूबती नैया को जैसे खिवैया मिल गया था.. मॅच फिक्सिंग, सट्टेबाज़ी के नेटवर्क को बढ़ा के विक्रम ने हवाला में भी हाथ बढ़ाया.. हवाला करने वाले लोग अभी काफ़ी कम लोग थे, लेकिन मुंबई जैसे शहर में अभी भी हवाला के नाम पे रोज़ कम से कम 200-300 करोड़ की हेर फेर होती है... इसी हवाला की वजह से विक्रम ने अमर की प्रॉपर्टी को ऐसे बढ़ाया कि अमर ने सब काम की बाग डोर उसे ही सौंप दी... अमर अब सिर्फ़ बड़े फ़ैसले ही लेता, मतलब किंग से अमर अब किंग मेकर बन गया था.
अमर का दूसरा बेटा रिकी... रिकी अमर की आँख का तारा था, 24 साल का रिकी काफ़ी स्मार्ट और डॅशिंग बंदा था... कॉलेज ख़तम करने के बाद रिकी मास्टर्स की पढ़ाई करने लंडन गया था.. अमर को रिकी पे काफ़ी गर्व था.. विक्रम उसका बड़ा भाई था, लेकिन विक्रम को उसकी क्लासी बातें और तौर तरीके ज़रा पसंद नहीं थे.. विक्रम जितना रफ था, रिकी उतना ही स्मूद था.. रिकी एक नज़र में किसी को भी पसंद आ जाता. चाहे वो कोई भी हो... अमर ने उसे मास्टर्स पढ़ने इसलिए भेजा ताकि वो इन दो नंबर के कामो से डोर ही रहे, क्यूँ अमर जानता था रिकी अगर इसमे फँस गया, तो कभी निकल नहीं पाएगा.. रिकी चंचल स्वाभाव का था.. दिल से बच्चा, लेकिन उतना ही सॉफ.. रात को प्लेस्टेशन पे गेम्स खेलना, हर 6 महीने में मोबाइल्स बदलना और हर 2 साल में गाड़ियाँ बदलना..लड़कियों के बारे में फिलहाल बात ना करे तो सही ही रहेगा, अपनी रईसी का फुल प्रदर्शन करना उसे अच्छा लगता, लेकिन उतना ही ज़मीन पे रहता.. दोस्तों पे जान छिड़कने वाला रिकी, आज राइचंद हाउस में न्यू ईयर मानने आया था फॅमिली के साथ
अमर की बेटी शीना.. शीना घर में सब से छोटी, दोनो भाइयों की प्यारी.. खूब मज़े करती लाइफ में.. ऐयाशी से एक कदम दूर, शीबा ने बस अपनी चूत किसी को नहीं दी थी, लेकिन लंड काफियों के शांत किए.. शीबा के चाहने वाले काफ़ी थे उसके कॉलेज में, लेकिन उसके क्लास के आगे कोई टिक नहीं पाता.. जब भी कोई शीबा को प्रपोज़ करता, या तो शीबा उसे सीधा मना कर देती, या तो उसके साथ फर्स्ट डेट पे जाके उसकी जेब खाली करवा कर उसे दूर करती.. शीबा का स्टाइल अलग था.. "मैं किसी झल्ले या फुकरे को अपना दिल नहीं देने वाली.. अगर मैं किसी को अपना दिल और अपनी चूत दूँगी, तो ही विल बी सम वन स्पेशल..." शीबा अपनी दोस्तों को हमेशा यह कहती... जाने अंजाने, पता नहीं कैसे.. लेकिन कोई था जिसने शीबा के दिल में अपना घर बना लिया था.. और शीबा का दिल हमेशा उसके लिए बेकरार रहता..
अमर की बहू स्नेहा... स्नेहा विक्रम के दिल की रानी थी, या यूँ कहा जाए कि उसकी रंडी थी... विक्रम से शादी स्नेहा ने पैसों की वजह से ही की थी... कॉलेज में अपने मदमस्त चुचे और अपना हसीन यौवन दिखा दिखा कर स्नेहा ने विक्रम को पागल कर दिया था.. नतीजा यह हुआ कि विक्रम ने घर वालों की मर्ज़ी के खिलाफ शादी कर ली.. अमर को अपनी इज़्ज़त और रुतबा काफ़ी प्यारा है, इसलिए उसने स्नेहा को घर की बहू स्वीकारा.. स्नेहा सुहासनी देवी को एक नज़र नही भाती थी .... स्नेहा को इस बात की बिल्कुल परवाह ना थी, वो बस पैसों का मज़ा लेती और दिन भर शॉपिंग करती या घूमती फिरती.. जब जब उसकी चूत में खुजली होती विक्रम की गेर हाज़री में वो बाज़ारू लंड से काम चलाती.. स्नेहा की यह बात अमर और सुहासनी अच्छी तरह जानते, लेकिन इस बात से उनकी ही बदनामी होगी, इसलिए उस बात को दबाए ही रखते... स्नेहा की शीना के साथ अच्छी बनती थी, फॅशन पार्ट्नर्स थे दोनो.. लेकिन शीना उसकी रंडियों वाली हरकतों से वाकिफ़ नहीं थी, और रिकी जितना स्नेहा को अवाय्ड करता, स्नेहा उसके उतने ही करीब जाने की कोशिश करती...
राइचंद'स में न्यू ईयर का काउंटडाउन स्टार्ट होता है.... 10...9...8....... 4.....3....2.....1............. सब लाइट्स गुल, एक दम अंधेरा और म्यूज़िक और डीजे की आवाज़ से सारा समा गूँज उठा... अंधेरे में रिकी अपना जाम पी ही रहा था, कि उसके पास एक लड़की आई और उसके बालों को ज़बरदस्ती पकड़ के उसके होंठों के रस को अपने मूह में लेने लगी.. जब तक रिकी को कुछ समझ आता, तब तक उस लड़की ने ज़ोर लगा कर उसके जाम को उसके हाथ से गिरा दिया, और उसका हाथ अपनी चूत पे उपर से ही रगड़ने लगी.... जैसे ही बतियां वापस आई, रिकी के सामने कोई नहीं खड़ा था. रिकी ने इधर उधर देखा, लेकिन उसे सब लोग अपनी अपनी सेलेब्रेशन में खोए हुए दिखे...उसे कुछ समझ नहीं आया, कि यह किसने किया...
"कौन थी यह भैनचोद...." कहके रिकी ने अपने बालों को ठीक किया और दूसरा पेग लेने चला गया.....