desiaks
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- Aug 28, 2015
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मैं ये कर पाता तभी मुझे ये भी आभास हुआ की हमारे परिवार पर भी कोई संकट मंडरा रहा है,चन्दू गायब हो चुका था,तुम परेशान थे ,तुम्हारी मा मुझे कोई बात बताती नही थी ,और भैरव का हमारे परिवार में दखल बढ़ गया था ,मन के साफ होने से मुझे ये भी समझ आने लगा था की तुम्हारी माँ और भैरव के बारे में जो मैं सोचता था वो महज मेरा शक था,मेरे मन का कीड़ा था ..
मैं बस मूक दर्शक बनकर देखने लगा,नेहा का प्यार उससे दगा कर चुका था और मैंने उसे भी बस देखने की सलाह दी ..
फिर घटनाएं होते गई मैं बस देखता रहा ,आखिर वो समय आ गया जब मुझे मौका मिला अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होने का ,वसीयत को अमल में लाकर अपने बच्चों को पूरी संपत्ति को सौपने का ,तक मेरे सूत्रों से मुझे विवेक के बारे में पता चला था की वो जिंदा है और भैरव और तुम्हारी मा के संपर्क में है .
मैं जिम्मेदारी से मुक्त तो होना ही चाहता था लेकिन साथ ही साथ मैं अपना ये वजूद मिटाकर नई जिंदगी भी जीना चाहता था,मुझे पता था की विवेक हमारे परिवार और खासकर मेरे खून का प्यासा है इसलिए उसे खत्म करने का भी यही सही समय लगा ,अभी तक जो मैं चुपचाप खेल को होता हुआ देख रहा था मैं अब इसमे अंतिम बार कूदने की सोच ली ..
मैंने नेहा के साथ मिलकर एक प्लान बनाया और एक बड़े एलुजानिस्ट से जाकर मिला ,उसे बताया की कैसे मुझे एक एक्सीडेंट का सीन क्रिएट करना है , जिसमे मैं तो मार जाऊ ऐसा लोगो को लगे और फिर पूरे नियम से मेरा अंतिम संस्कार भी किया जाए लेकिन फिर भी मैं बच जाऊ ..
पूरा प्लान उसने डिजाइन किया ,उसने हिदायत भी दी थी की इसमे मुझे बहुत ही खतरा भी हो सकता है क्योकि मेरे जख्म और ब्लास्ट असली होने वाले थे ,छोटी सी गलती और जान जा सकती थी ,लेकिन मुझे तो मरना ही था..
प्रॉपर्टी तुम्हे सौपने के बाद प्लान के हिसाब से नेहा ने अनुराधा ( माँ) को अपने साथ चलने को राजी किया ..
मैं सिर्फ अपने ही कार को उड़ा सकता था लेकिन इसके बाद शक विवेक पर पूरी तरह से नही जाता और तुम भी शक नही करते ,और कभी अपने माँ के त्याग को नही समझ पाते इसलिए हमने ये प्लान किया था...हमारे साथ हमारे टीम के मेंबर भी थे जिनकी संख्या करीब 30 की थी ,वंहा तुम्हारे आस पास जो लोग भी दिख रहे थे उनमे से अधिकतर उस टीम में था ,ब्लास्ट असली था,तुम्हारी माँ को निकनलने में थोड़ी देरी जरूर हो गई और उसके कारण मुझे भी बुरी तरह से चोट आयी थी ,सांसो की मंद करने की प्रेक्टिस मुझे पहले ही करवा दी गई थी ,इसीतरह ब्लास्ट में मेरा चहरा बुरी तरह से जख्मी हुआ था इसलिए उसे बनाना मेकअप वालो के लिए और भी आसान हो गया था,लाश को उस समय बदाल दिया गया था जब उसे मरचुरी में रखा गया था ..और बस काम खत्म “
वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे
“लेकिन आपके कारण विवेक का कत्ल हो गया “
वो हल्के से हँसे
“वो इसी के लायक था ,उसे नही मारा जाता तो हमारे पूरे परिवार को मार देता,और सबसे पहले तुम्हारी माँ को क्योकि उसे ये लगने लगा था की तुम्हारी माँ और भैरव ने मिलकर उसे धोखा दिया है ,और ये कुछ हद तक सही भी था ,ऐसे विवेक का पता भैरव के लोगो तक हमने ही पहुचाया था ..”
“ह्म्म्म लेकिन आपने मुझे ये अब क्यो पता लगने दिया,अब मुझे समझ आ रहा है की कैसे नेहा दीदी ने मेरी मदद की थी माँ से सब कुछ उगलवाने में और फिर जादू वाला खेल दिखाकर आप तक पहुचने में “
इस बात को सुनकर दीदी और पापा दोनो ही मुस्कुराये ..
“वो सिर्फ इसलिए क्योकि अगर तुझे नही बताया जाता तो तू बेवजह ही भटकता रहता ,तुझे आज भी यही लगता की कोई तेरे परिवार का दुश्मन है जिससे सबको खतरा है और अगर खोज बिन करके तुझे कुछ पता भी चल जाता तो भी तू बस निराश ही होता क्योकि उसके लिए तुझे बहुत ही मेहनत करनी पड़ती ,हमने तो तुझे बस मेहनत से बचा लिया…”
मैंने एक गहरी सांस छोड़ी ..
“ह्म्म्म तो अब “
“तो अब ये हमारा अंतिम मिलन है ,ये तू रख ये तेरे लिए है तू अब इसके काबिल हो चुका है और हा जो गलती मैंने अपने जीवन में की वो तू मत करना ,किसी भी वासना के पीछे मत भागना,वो सिर्फ तुझे बहकाएंगी और जो हासिल होगा वो है सिर्फ दुख ..”
उन्होंने अपने गले से वो ताबीज निकाल कर मुझे दे दी ..
“लेकिन ये तो आपकी... “मैं कुछ बोल पाता उससे पहले वो बोल उठे
“नही बेटा ये मेरी आखिरी जिम्मेदारी थी ,अब मुझे सन्यास लेना है ,मैं बस इसी दिन के लिए रुका हुआ था ,अब समय आ गया है की मैं पूर्ण सन्यास ले लू और आश्रम छोड़ दु ..जैसे डागा ने छोड़ दिया था ..अब मुझे इसकी कोई जरूरत नही है ,”
बोलते हुए उनका चहरा खिल गया था ,उन्होंने अंतिम बार हमे गले से लगाया और वही से बिना आश्रम गए ही जंगल की ओर निकल गए …….
हम वापस आश्रम में आ चुके थे और गुरु जी की कहे अनुसार प्रसाद लेने पहुच गए ..
हम उनके पास ही बैठे थे...
उन्होंने पास एक मिट्टी के कटोरे में रखी हुई राख उठा ली
दीदी को एक चुटकी राख दी दीदी ने उसे अपने मुह में रख लिया उनकी आंखे बंद हो चुकी थी ,
अब मेरी बारी थी मैंने भी हाथ फैलाये..
“सोच लो इसे खाने से तुम्हारी सारी शक्तियां खत्म हो जाएगी और ये तुम्हारी जादुई लकड़ी भी किसी काम की नही रह जाएगी “
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा
“आप के हाथो से प्रसाद के लिए तो सब मंजूर है “
उन्हें मुझे भी वो प्रसाद दिया और मैंने उसे बड़े ही प्रेम से ग्रहण भी कर लिया ..
प्रसाद मुह में रखते ही मेरी आंखे बंद हो गई ऐसा लगा की मेरे सामने एक फ़िल्म चल गई हो ..
मेरी आंखे अचानक से खुली मेरी आंखों में आंसू थे साथ ही साथ उन साधु की आंखों में भी आंसू थे ,मैं दीदी के पैरो में गिर पड़ा ..मैं खूब रोया खूब रोया ..
वही दीदी ने मेरे कंधे से पकड़कर मुझे उठा लिया और अपने गले से लगा लिया ..
“मुझे माफ कर दो माँ ..”
मैंने रोते हुए कहा
“मुझे भी बेटा ,गलती सिर्फ तेरी नही थी मेरी भी थी ..”
"आप दोनो को आपके गलती की सजा मिल चुकी है "
साधु की आवाज सुनकर मैंने उस साधु को बड़े ही प्रेम से देखा ..
“भाई ,तुम्हारा लाख लाख शुक्रिया “
वो मुस्कराया ..
“वो जन्म अलग था आप दोनो का ये जन्म अलग है अब उसकी यादों से निकल कर बाहर आइये ,इस जन्म में आपको बहुत सारी जिम्मेदारियों का निर्वाहन करना है ,आप दोनो ही साधक रह चुके हो और कर्म के बंधन को समझते हो आपके कर्म ने आपको इतने दिन दुखी किया ,साधक होंने के बावजूद आपने अपनी सिद्धि का गलत उपयोग किया था अपनी माँ के रूपजाल में फंसकर उन्हें सम्मोहित किया उनके साथ संबंध बनाया ,सम्मोहन का असर टूटने के बाद भी हमारी माँ ने आपको रोका नही बल्कि साथ दिया,दोनो ने अपनी साधना को वासना के चपेट में आकर नष्ट किया था,और वासना से मुक्त होने पर अपनी ग्लानि की वजह से आत्महत्या कर लीया और इसकी सजा के रूप में साधक होते हुए भी एक सामान्य मनुष्य और वैसे ही वासनाओ के लगाव के साथ आप लोगो का जन्म हुआ ,उसी तरह एक ही घर में ,लेकिन इस बार माँ-बेटे की जगह भाई बहन बनकर ,बचपन में दुख भोगकर आपने अपने कर्मो की सजा पा ली वही इन्हें भी इनके पिता ने इनकी इक्छा के विरूद्ध संभोग कर मानसिक दुख दिया वही इनके प्रेम ने इन्हें मानसिक प्रताड़ित किया ...हमारा हर दुख और सुख हमारा ही कमाया हुआ होता है ,इस जन्म का हो या फिर दूसरे जन्मों को लेकिन कर्म का फल तो मिलता ही है ,और जन्हा बुरे कार्मो का फल आप भोग रहे थे वही पिछले जन्म की साधना भी आपके पीछे ही रही ,जन्म सम्पन्न घर में हुआ ,और कर्म का बंधन कट जाने पर साधको के संपर्क में भी आये ,साधको-साधुओं का संपर्क भी पिछले जन्म के साधना से ही मिल पाता है वरना लोग तो उनके साथ रहकर भी साधना से अछूते रह जाते है ,आपको मेरे शिष्य (डागा) का संपर्क हासिल हुआ जिसने पुराने कर्मो को थोड़ा सा जग दिया जिससे आपके अंदर मौजूद सारी शक्तियां जो पहले के जन्मों में कमाई थी वो बाहर आने लगी उन्हें आप पहचानने लगे ,वही इन्हें दूसरे शिष्य (चंदानी) का संपर्क प्राप्त हुआ ,इनके कारण ही उसके मन ने वासना के प्रति अपना रवैया बदला और फिर से साधना की ओर अग्रसर हुआ ,वही ये ही आपके वासना से पीड़ित मन को पवित्रता की ओर ले जाने का कारण बनी ..
जिसके कारण पिछले जन्म में साधना से भटके थे वो इस जन्म में साधना के जन्म लेने का कारण बनी …
मैं इसी कुटिया में आप लोगो का इंतजार करता रहा ,आखिर आप मेरे भाई और माँ है ...मुझे रिश्तो से कोई लगाव नही रह गया है लेकिन मैं एक साधक की साधना को सफल होते देखना चाहता था ,आप लोगो को ये याद दिलाने के लिए जिंदा था की आप कोई सामान्य आत्मा नही है बल्कि पुराने साधक है जो मार्ग से भटक गए …”
“तो क्या हरिया भी “
मैंने कापते हुए आवाज में कहा ,मैं अपनी खुसी को सम्हाल नही पा रहा था ,मेरी आवाज कांप रही थी ..
“हा आप लोगो के संभोग को खिड़की से देखते हुए भी नही रोकने वाला हमारा नॉकर हरिया आज भी वही कर रहा है आपके पालतू टॉमी के रूप में ,उसके पास आप जैसे साधना की कमाई भी नही थी जिससे वो मनुष्य योनि पा सकता “
मैं और माँ (नेहा दीदी) दोनो ही गदगद थे
“अब मेरा काम पूरा हुआ मैं ये शरीर छोड़कर जा सकता हु “
वो मुस्कुराये
“नही ,हमे दीक्षा दिए बिना आप नही जा सकते ,हमे फिर से दीक्षित करो ,हमे फिर से साधक बनाओ “
मेरी बात सुनकर वो मुस्कराए
“अभी नही ,अभी आप इस जन्म की जिम्मेदारियों से मुक्त नही हुए है ,मेरा शिष्य डागा अब साधना के उस मुकाम में पहुच चुका है की आपको फिर से दीक्षित कर साधक बना सकता है ,अब मुझे आज्ञा दे ,आने वाले समय में डागा ही आपके इस जन्म का गुरु होगा “
उन्होंने फिर से आंखे बंद कर ली ,हम तीनो के आंखों में ही पानी था ,एक प्रेम था जो इन्हें अभी तक समाधि में जाने से रोके रखा था उनका काम अब खत्म हो चुका था ,वो समाधि में जा चुके थे इस शरीर को छोड़ चुके थे …
मैंने अपने गले से वो ताबीज निकाल कर उनके चरणों में रख दी क्योकि ये जादुई लकड़ी अब मेरे किसी काम की नही रही थी ..
उस कुटिया से निकलने पर मेरा मन इतना प्रफुल्लित था की मुझे मानो दुनिया की सभी खुशियां मिल गई हो ..
दीदी ने शादी ना करने का फैसला किया और वो भी आश्रम में हमेशा के लिए रहने चली आयी ,वही मैं अपने जीवन का सामान्य तरीके से निर्वाहन करने लगा था ..
बाबा जी (डागा) ने मुझे ,रश्मि और निशा को गृहस्थ साधना के लिए पति पत्नी के रूप में दीक्षित किया ,क्योकि निशा की जिम्मेदारी मुझपर ही थी और इस बात को रश्मि ने भी मान लिया था ,मेरे सम्बन्ध दोनों से ही कायम थे ,वही नेहा दीदी को सन्यास के लिए ..
अब वासना नही बल्कि प्रेम ही रह गया था ,अब जिम्मेदारियां तो थी लेकिन उनका बोझ नही रह गया था,
क्योकि मुझे पता था की मेरा असली ठिकाना कहा है …….
मैं बस मूक दर्शक बनकर देखने लगा,नेहा का प्यार उससे दगा कर चुका था और मैंने उसे भी बस देखने की सलाह दी ..
फिर घटनाएं होते गई मैं बस देखता रहा ,आखिर वो समय आ गया जब मुझे मौका मिला अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होने का ,वसीयत को अमल में लाकर अपने बच्चों को पूरी संपत्ति को सौपने का ,तक मेरे सूत्रों से मुझे विवेक के बारे में पता चला था की वो जिंदा है और भैरव और तुम्हारी मा के संपर्क में है .
मैं जिम्मेदारी से मुक्त तो होना ही चाहता था लेकिन साथ ही साथ मैं अपना ये वजूद मिटाकर नई जिंदगी भी जीना चाहता था,मुझे पता था की विवेक हमारे परिवार और खासकर मेरे खून का प्यासा है इसलिए उसे खत्म करने का भी यही सही समय लगा ,अभी तक जो मैं चुपचाप खेल को होता हुआ देख रहा था मैं अब इसमे अंतिम बार कूदने की सोच ली ..
मैंने नेहा के साथ मिलकर एक प्लान बनाया और एक बड़े एलुजानिस्ट से जाकर मिला ,उसे बताया की कैसे मुझे एक एक्सीडेंट का सीन क्रिएट करना है , जिसमे मैं तो मार जाऊ ऐसा लोगो को लगे और फिर पूरे नियम से मेरा अंतिम संस्कार भी किया जाए लेकिन फिर भी मैं बच जाऊ ..
पूरा प्लान उसने डिजाइन किया ,उसने हिदायत भी दी थी की इसमे मुझे बहुत ही खतरा भी हो सकता है क्योकि मेरे जख्म और ब्लास्ट असली होने वाले थे ,छोटी सी गलती और जान जा सकती थी ,लेकिन मुझे तो मरना ही था..
प्रॉपर्टी तुम्हे सौपने के बाद प्लान के हिसाब से नेहा ने अनुराधा ( माँ) को अपने साथ चलने को राजी किया ..
मैं सिर्फ अपने ही कार को उड़ा सकता था लेकिन इसके बाद शक विवेक पर पूरी तरह से नही जाता और तुम भी शक नही करते ,और कभी अपने माँ के त्याग को नही समझ पाते इसलिए हमने ये प्लान किया था...हमारे साथ हमारे टीम के मेंबर भी थे जिनकी संख्या करीब 30 की थी ,वंहा तुम्हारे आस पास जो लोग भी दिख रहे थे उनमे से अधिकतर उस टीम में था ,ब्लास्ट असली था,तुम्हारी माँ को निकनलने में थोड़ी देरी जरूर हो गई और उसके कारण मुझे भी बुरी तरह से चोट आयी थी ,सांसो की मंद करने की प्रेक्टिस मुझे पहले ही करवा दी गई थी ,इसीतरह ब्लास्ट में मेरा चहरा बुरी तरह से जख्मी हुआ था इसलिए उसे बनाना मेकअप वालो के लिए और भी आसान हो गया था,लाश को उस समय बदाल दिया गया था जब उसे मरचुरी में रखा गया था ..और बस काम खत्म “
वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे
“लेकिन आपके कारण विवेक का कत्ल हो गया “
वो हल्के से हँसे
“वो इसी के लायक था ,उसे नही मारा जाता तो हमारे पूरे परिवार को मार देता,और सबसे पहले तुम्हारी माँ को क्योकि उसे ये लगने लगा था की तुम्हारी माँ और भैरव ने मिलकर उसे धोखा दिया है ,और ये कुछ हद तक सही भी था ,ऐसे विवेक का पता भैरव के लोगो तक हमने ही पहुचाया था ..”
“ह्म्म्म लेकिन आपने मुझे ये अब क्यो पता लगने दिया,अब मुझे समझ आ रहा है की कैसे नेहा दीदी ने मेरी मदद की थी माँ से सब कुछ उगलवाने में और फिर जादू वाला खेल दिखाकर आप तक पहुचने में “
इस बात को सुनकर दीदी और पापा दोनो ही मुस्कुराये ..
“वो सिर्फ इसलिए क्योकि अगर तुझे नही बताया जाता तो तू बेवजह ही भटकता रहता ,तुझे आज भी यही लगता की कोई तेरे परिवार का दुश्मन है जिससे सबको खतरा है और अगर खोज बिन करके तुझे कुछ पता भी चल जाता तो भी तू बस निराश ही होता क्योकि उसके लिए तुझे बहुत ही मेहनत करनी पड़ती ,हमने तो तुझे बस मेहनत से बचा लिया…”
मैंने एक गहरी सांस छोड़ी ..
“ह्म्म्म तो अब “
“तो अब ये हमारा अंतिम मिलन है ,ये तू रख ये तेरे लिए है तू अब इसके काबिल हो चुका है और हा जो गलती मैंने अपने जीवन में की वो तू मत करना ,किसी भी वासना के पीछे मत भागना,वो सिर्फ तुझे बहकाएंगी और जो हासिल होगा वो है सिर्फ दुख ..”
उन्होंने अपने गले से वो ताबीज निकाल कर मुझे दे दी ..
“लेकिन ये तो आपकी... “मैं कुछ बोल पाता उससे पहले वो बोल उठे
“नही बेटा ये मेरी आखिरी जिम्मेदारी थी ,अब मुझे सन्यास लेना है ,मैं बस इसी दिन के लिए रुका हुआ था ,अब समय आ गया है की मैं पूर्ण सन्यास ले लू और आश्रम छोड़ दु ..जैसे डागा ने छोड़ दिया था ..अब मुझे इसकी कोई जरूरत नही है ,”
बोलते हुए उनका चहरा खिल गया था ,उन्होंने अंतिम बार हमे गले से लगाया और वही से बिना आश्रम गए ही जंगल की ओर निकल गए …….
हम वापस आश्रम में आ चुके थे और गुरु जी की कहे अनुसार प्रसाद लेने पहुच गए ..
हम उनके पास ही बैठे थे...
उन्होंने पास एक मिट्टी के कटोरे में रखी हुई राख उठा ली
दीदी को एक चुटकी राख दी दीदी ने उसे अपने मुह में रख लिया उनकी आंखे बंद हो चुकी थी ,
अब मेरी बारी थी मैंने भी हाथ फैलाये..
“सोच लो इसे खाने से तुम्हारी सारी शक्तियां खत्म हो जाएगी और ये तुम्हारी जादुई लकड़ी भी किसी काम की नही रह जाएगी “
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा
“आप के हाथो से प्रसाद के लिए तो सब मंजूर है “
उन्हें मुझे भी वो प्रसाद दिया और मैंने उसे बड़े ही प्रेम से ग्रहण भी कर लिया ..
प्रसाद मुह में रखते ही मेरी आंखे बंद हो गई ऐसा लगा की मेरे सामने एक फ़िल्म चल गई हो ..
मेरी आंखे अचानक से खुली मेरी आंखों में आंसू थे साथ ही साथ उन साधु की आंखों में भी आंसू थे ,मैं दीदी के पैरो में गिर पड़ा ..मैं खूब रोया खूब रोया ..
वही दीदी ने मेरे कंधे से पकड़कर मुझे उठा लिया और अपने गले से लगा लिया ..
“मुझे माफ कर दो माँ ..”
मैंने रोते हुए कहा
“मुझे भी बेटा ,गलती सिर्फ तेरी नही थी मेरी भी थी ..”
"आप दोनो को आपके गलती की सजा मिल चुकी है "
साधु की आवाज सुनकर मैंने उस साधु को बड़े ही प्रेम से देखा ..
“भाई ,तुम्हारा लाख लाख शुक्रिया “
वो मुस्कराया ..
“वो जन्म अलग था आप दोनो का ये जन्म अलग है अब उसकी यादों से निकल कर बाहर आइये ,इस जन्म में आपको बहुत सारी जिम्मेदारियों का निर्वाहन करना है ,आप दोनो ही साधक रह चुके हो और कर्म के बंधन को समझते हो आपके कर्म ने आपको इतने दिन दुखी किया ,साधक होंने के बावजूद आपने अपनी सिद्धि का गलत उपयोग किया था अपनी माँ के रूपजाल में फंसकर उन्हें सम्मोहित किया उनके साथ संबंध बनाया ,सम्मोहन का असर टूटने के बाद भी हमारी माँ ने आपको रोका नही बल्कि साथ दिया,दोनो ने अपनी साधना को वासना के चपेट में आकर नष्ट किया था,और वासना से मुक्त होने पर अपनी ग्लानि की वजह से आत्महत्या कर लीया और इसकी सजा के रूप में साधक होते हुए भी एक सामान्य मनुष्य और वैसे ही वासनाओ के लगाव के साथ आप लोगो का जन्म हुआ ,उसी तरह एक ही घर में ,लेकिन इस बार माँ-बेटे की जगह भाई बहन बनकर ,बचपन में दुख भोगकर आपने अपने कर्मो की सजा पा ली वही इन्हें भी इनके पिता ने इनकी इक्छा के विरूद्ध संभोग कर मानसिक दुख दिया वही इनके प्रेम ने इन्हें मानसिक प्रताड़ित किया ...हमारा हर दुख और सुख हमारा ही कमाया हुआ होता है ,इस जन्म का हो या फिर दूसरे जन्मों को लेकिन कर्म का फल तो मिलता ही है ,और जन्हा बुरे कार्मो का फल आप भोग रहे थे वही पिछले जन्म की साधना भी आपके पीछे ही रही ,जन्म सम्पन्न घर में हुआ ,और कर्म का बंधन कट जाने पर साधको के संपर्क में भी आये ,साधको-साधुओं का संपर्क भी पिछले जन्म के साधना से ही मिल पाता है वरना लोग तो उनके साथ रहकर भी साधना से अछूते रह जाते है ,आपको मेरे शिष्य (डागा) का संपर्क हासिल हुआ जिसने पुराने कर्मो को थोड़ा सा जग दिया जिससे आपके अंदर मौजूद सारी शक्तियां जो पहले के जन्मों में कमाई थी वो बाहर आने लगी उन्हें आप पहचानने लगे ,वही इन्हें दूसरे शिष्य (चंदानी) का संपर्क प्राप्त हुआ ,इनके कारण ही उसके मन ने वासना के प्रति अपना रवैया बदला और फिर से साधना की ओर अग्रसर हुआ ,वही ये ही आपके वासना से पीड़ित मन को पवित्रता की ओर ले जाने का कारण बनी ..
जिसके कारण पिछले जन्म में साधना से भटके थे वो इस जन्म में साधना के जन्म लेने का कारण बनी …
मैं इसी कुटिया में आप लोगो का इंतजार करता रहा ,आखिर आप मेरे भाई और माँ है ...मुझे रिश्तो से कोई लगाव नही रह गया है लेकिन मैं एक साधक की साधना को सफल होते देखना चाहता था ,आप लोगो को ये याद दिलाने के लिए जिंदा था की आप कोई सामान्य आत्मा नही है बल्कि पुराने साधक है जो मार्ग से भटक गए …”
“तो क्या हरिया भी “
मैंने कापते हुए आवाज में कहा ,मैं अपनी खुसी को सम्हाल नही पा रहा था ,मेरी आवाज कांप रही थी ..
“हा आप लोगो के संभोग को खिड़की से देखते हुए भी नही रोकने वाला हमारा नॉकर हरिया आज भी वही कर रहा है आपके पालतू टॉमी के रूप में ,उसके पास आप जैसे साधना की कमाई भी नही थी जिससे वो मनुष्य योनि पा सकता “
मैं और माँ (नेहा दीदी) दोनो ही गदगद थे
“अब मेरा काम पूरा हुआ मैं ये शरीर छोड़कर जा सकता हु “
वो मुस्कुराये
“नही ,हमे दीक्षा दिए बिना आप नही जा सकते ,हमे फिर से दीक्षित करो ,हमे फिर से साधक बनाओ “
मेरी बात सुनकर वो मुस्कराए
“अभी नही ,अभी आप इस जन्म की जिम्मेदारियों से मुक्त नही हुए है ,मेरा शिष्य डागा अब साधना के उस मुकाम में पहुच चुका है की आपको फिर से दीक्षित कर साधक बना सकता है ,अब मुझे आज्ञा दे ,आने वाले समय में डागा ही आपके इस जन्म का गुरु होगा “
उन्होंने फिर से आंखे बंद कर ली ,हम तीनो के आंखों में ही पानी था ,एक प्रेम था जो इन्हें अभी तक समाधि में जाने से रोके रखा था उनका काम अब खत्म हो चुका था ,वो समाधि में जा चुके थे इस शरीर को छोड़ चुके थे …
मैंने अपने गले से वो ताबीज निकाल कर उनके चरणों में रख दी क्योकि ये जादुई लकड़ी अब मेरे किसी काम की नही रही थी ..
उस कुटिया से निकलने पर मेरा मन इतना प्रफुल्लित था की मुझे मानो दुनिया की सभी खुशियां मिल गई हो ..
दीदी ने शादी ना करने का फैसला किया और वो भी आश्रम में हमेशा के लिए रहने चली आयी ,वही मैं अपने जीवन का सामान्य तरीके से निर्वाहन करने लगा था ..
बाबा जी (डागा) ने मुझे ,रश्मि और निशा को गृहस्थ साधना के लिए पति पत्नी के रूप में दीक्षित किया ,क्योकि निशा की जिम्मेदारी मुझपर ही थी और इस बात को रश्मि ने भी मान लिया था ,मेरे सम्बन्ध दोनों से ही कायम थे ,वही नेहा दीदी को सन्यास के लिए ..
अब वासना नही बल्कि प्रेम ही रह गया था ,अब जिम्मेदारियां तो थी लेकिन उनका बोझ नही रह गया था,
क्योकि मुझे पता था की मेरा असली ठिकाना कहा है …….
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