Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती - Page 2 - SexBaba
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Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती

मेरे ऐसा कहने पर उसने अपना लण्ड मेरी चूत से बाहर निकाल लिया. मैंने अपना सर उठा कर अपनी चूत की ओर देखा. उसकी फांकें फूल कर मोटी और लाल हो गई थी और बीच में से खुल सी गई थी. मुझे अपनी चूत के अंदर खालीपन सा अनुभव हो रहा था. मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी उसने बीच में ही चुदाई क्यों बंद कर दी।

'भौजी एक बार तू घुटनों के बल हो जा !'

'क..क्यों...?' मैंने हैरान होते हुए पूछा।

हे भगवान ! कहीं यह अब मेरी गांड मारने के चक्कर में तो नहीं है? डर के मारे में सिहर उठी. मैं जानती थी मैं इस मूसल को अपनी गांड में नहीं ले पाउंगी.

'ओहो भौजाई , एक बार मैं जैसा कहता हूँ करो तो सही...जल्दी.'

'ना बाबा मैं गांड नहीं मारने दूंगी.'

'अरे मेरी रनिया ! तुम्हें मरने कौन साला देगा. एक बार गांड मरवा लो जन्नत का मज़ा आ जाएगा तुम्हें भी.'

'न... ना... आज नहीं.... बाद में.' मैं ना तो हाँ कर सकती थी और ना ही उसे मन कर सकती थी. मुझे डर था वो कहीं चुदाई ही बंद ना कर दे. इसलिए मैंने किसी तरह फिलहाल उससे पीछा छुड़ाया.


'चलो भौजाई , कोई बात नहीं , कुतिया तो बन जा , कुत्ते के तरह चूत तो मार लेने दो?"




मैं झट से अपने घुटनों के बल (डॉगी स्टाइल में) हो गई. अब वो मेरे पीछे आ गया. उसने पहले तो अपने दोनों हाथों से मेरे नितंबों को चौड़ा किया और फिर दोनों नितंबों को बारी बारी चूम लिया. फिर उसने उन पर थपकी सी लगाई जैसे किसी घोड़ी की सवारी करने से पहले उस पर थपकी लगाई जाती है. फिर उसने अपने लण्ड को मेरी फांकों पर घिसना चालू कर दिया. मैंने अपनी जांघें चौड़ी कर ली.उसने अपना लण्ड फिर छेद पर लगाया और मेरी कमर पकड़ कर एक जोर का धक्का लगाया. एक गच्च की आवाज़ के साथ पूरा लण्ड अंदर चला गया. धक्का इतना तेज था कि मेरा सर ही नीचे पड़े तकिये से जा टकराया.

'उईईईईई.... मा.... म... मार डा...ला...रे...मादर चो!'

'मेरी जान अब देखना कितना मज़ा आएगा.'

कह कर उसने उसने दनादन धक्के लगाने शुरू कर दिए।'अबे बहन चोद जरा धीरे... आह.'


'बहनचोद नहीं भौजी चोद बोलो.'

'ओह... आह...धीरे... थोड़ा धीरे.'

'साली बहन की लौड़ी... नखरे करती है...यह ले... और ले.' कह कर वो और तेज तेज धक्के लगाने लगा.

वो कभी मेरे चूतडो पर थप्पड़ लगाता तो कभी अपने हाथों को नीचे करके मेरे उरोजों को पकड़ लेता और मसलने लगता. ऐसा करने से वो मेरे ऊपर कुछ झुक सा जाता तो उसके लटकते भारी टट्टे मेरी चूत पर महसूस होते तो मैं तो रोमांच में ही डूब जाती. कभी कभी वो अपना एक हाथ नीचे करके मेरे किशमिश के दाने को भी रगड़ने लगाता. मैं तो एक बार फिर से झड़ गई.


हमें इस प्रकार उछल कूद करते आधा घंटा तो हो ही गया होगा पर गजेन्द्र तो थकने का नाम ही नहीं ले रहा था. वो 3-4 धक्के तो धीरे धीरे लगाता और फिर एक जोर का धक्का लगा देता और साथ ही गाली भी निकलता हुआ बड़बड़ा रहा था. पता नहीं क्यों उसकी मार और गालियाँ मुझे दर्द के स्थान पर मीठी लग रही थी. मैं उसके हर धक्के के साथ आह.... ऊंह.... करने लगी थी. मेरी चूत ने तो आज पता नहीं कितना रस बहाया होगा पर गजेन्द्र का रस अभी नहीं निकला था.
 
मैं चाह रही थी कि काश वक्त रुक जाए और इसी तरह मुझे चोदता रहे. पर मेरे चाहने से क्या होता आखिर शरीर की भी कुछ सीमा होती है. गजेन्द्र की सीत्कारें निकलने लगी थी और वो आँखें बंद किये गूं..गूं... या... करने लगा था. मुझे लगा अब वो जाने वाला है. मैंने अपनी चूत का संकोचन किया तो उसके लण्ड ने भी अंदर एक ठुमका सा लगा दिया. अब उसने मेरी कमर कस कर पकड़ ली और जोर जोर से धक्के लगाने लगा।

'मेरी प्यारी भौजी... आह... मेरी जान'

मुझे भी कहाँ होश था कि वो क्या बड़बड़ा रहा है. मेरी आँखों में भी सतरंगी सितारे झिलमिलाने लगे थी. मेरी चूत संकोचन पर संकोचन करने लगी और गांड का छेद खुलने बंद होने लगा था। मुझे लगा मेरा एक बार फिर निकलने वाला है.

इसके साथ ही गजेन्द्र ने एक हुंकार सी भरी और मेरी कमर को कस कर पकड़ते हुए अपना पूरा लण्ड अंदर तक ठोक दिया और मेरे चूतडो को कस कर अपने जाँघों से सटा लिया.शायद उसे डर था कि इन अंतिम क्षणों में मैं उसकी गिरफ्त से निकल कर उसका काम खराब ना कर दूँ.

'ग....इस्सस्सस्सस....... मेरी जान!!'

और फिर गर्म गाढ़े काम-रस की फुहारें निकलने लगी और मेरी चूत लबालब उस अनमोल रस से भरती चली गई. जगन हांफने लगा था. मेरी भी कमोबेश यही हालत थी. मैंने अपनी चूत को एक बार फिर से अंदर से भींच लिया ताकि उसकी अंतिम बूँदें भी निचोड़ लूँ. एक कतरा भी बाहर न गिरे.। मैं भला उस अमृत को बाहर कैसे जाने दे सकती थी।




अब गजेन्द्र शांत हो गया। मैं अपने पैर थोड़े से सीधे करते हुए अपने पेट के बल लेटने लगी पर मैंने अपने चूतड़ थोड़े ऊपर ही किये रखे. मैंने अपने दोनों हाथ पीछे करके उसकी कमर पकड़े रखी ताकि उसका लण्ड फिसल कर बाहर ना निकल जाए.अब वो इतना अनाड़ी तो नहीं था ना. उसने मेरे दोनों उरोजों को पकड़ लिया और हौले से मेरे ऊपर लेट गया. उसका लण्ड अभी भी मेरी चूत में फंसा था। अब वो कभी मेरे गालों को चूमता कभी मेरे सर के बालों को कभी पीठ को. रोमांच के क्षण भोग कर हम दोनों ही निढाल हो गए पर मन अभी नहीं भरा था..’

थोड़ी देर बाद हम दोनों उठ खड़े हुए. मैं कपड़े पहन कर बाहर धन्नी को देखने जाना चाहती थी, पर गजेन्द्र ने मुझे फिर से पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लिया. मैंने भी बड़ी अदा से अपनी बाहें उसके गले में डाल कर उसके होंठों पर एक जोर का चुम्मा ले लिया.

उसके बाद हमने एक बार फिर से वही चुदाई का खेल खेला. और उसके बाद 4 दिनों तक यही क्रम चलता रहा. धन्नी हमारे लिए स्वादिस्ट खाना बनाती पर हमें तो दूसरा ही खाना पसंद आता था. धन्नी मेरे गालों और उरोजों के पास हल्के नीले निशानों को देख कर मन्द-मन्द मुस्कुराती तो मैं मारे शर्म के कुछ बताने या कहने के बजाय यही कहती' धन्नी तुम्हारे हाथ का यह खाना मुझे जिंदगी भर याद रहेगा.'

अब वो इतनी भोली भी नहीं थी कि यह ना जानती हो कि मैं किस मजेदार खाने की बात कर रही हूँ. 
 
बस और क्या कहूँ चने के खेत में चौड़ी होने की यही कहानी है. मैंने उन 4 दिनों में जंगल में मंगल किया और जो सुख भोगा था वो आज तक याद करके आहें भरती रहती हूँ. उसने मुझे लगभग हर आसान में चोदा था. हमने चने और सरसों की फसल के बीच भी चुदाई का आनंद लिया था. मैं हर चुदाई में 3-4 बार तो जरुर झड़ी होऊंगी पर मुझे एक बात का दुःख हमेशा रहेगा मैंने गजेन्द्र से अपनी गांड क्यों नहीं मरवाई. उस बेचारे ने तो बहुत मिन्नतें की थी पर सच पूछो तो मैं डर गई थी. आज जब उसके मोटे लंबे लण्ड पर झूमता मशरूम जैसा सुपारा याद करती हूँ तो दिल में एक कसक सी उठती है.



समाप्त
 
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