hotaks444
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गतान्क से आगे.......
जीत से भी अब रुका नही जा रहा था.... उसने उसके कुल्हों को जोरों
से पकड़ा और एक ज़ोर का धक्का मार अपने लंड को अंदर तक घुसा कर
अपना पानी छोड़ दिया... थोड़ी देर बाद उसने अपने लंड को बाहर
खींचा और उसके बगल मे लेट गया.
दोनो एक दूसरे को बड़ी गहरी नज़रों से देख रहे थे.. तभी उसे
अहसास हुआ कि रोमा की आँखे कुछ कह रही है.. ना जाने उसे ऐसा
क्यों लगने लगा कि शायद आज का मिलन उनकी रिश्ते की आखरी रात
है.. दोनो की आँखे एक दूसरे से बिना कुछ कहे भी बहोत कुछ कह
रही थी...
* * * * * * * * * *
जीत ने रोमा को उसके घर के बाहर छोड़ा और और आखरी बार उसने
उसके होठों को चूम लिया.. रोमा ने अपना कीताबों वाला बॅग उठाया
और गाड़ी से उतर गयी.. थोड़ी देर बाद वो अपने फ्लॅट मे दाखिल हो
रही थी कि उसने देखा क़ि राज और रिया दोनो हॉल मे ही सोफे पर चुदाई
मे लगे हुए थे.... रिया ने अपनी टाँगे फैला रखी और राज उछल
उछल कर उसे चोद रहा था.. उसके चोदने का ढंग ऐसा था जैसे कि
वो अपने दिल का गुस्सा रिया की चूत पर निकाल रहा हो...
रिया की नज़रें रोमा पर पड़ी तो उसने कहा, "रोमा मेने राज को आज
से पहले कभी इतने जोरों से चोदते नही देखा.. सही मे मज़ा आ
जाएगा.. क्या तुम साथ देना पसंद करोगी?"
आँखों मे आते आँसुओं को बड़ी मुश्किल से रोमा ने रोका और अपनी
गर्दन हिला उसे ना मे जवाब दिया... रोमा को महसूस हुआ कि राज जान
बुझ कर ऐसा कर रहा है..उन्हे पता था कि दोनो किए बीच जिस्मानी
रिश्ता है लेकिन क्या इस तरह खुले आम करना जायज़ था.. के
बेडरूम का दरवाज़ा बंद कर नही कर सकते थे..... गुस्से मे वो अपने
कमरे मे आई और ज़ोर से दरवाज़ा बंद कर दिया.. और अंदर से लॉक
भी कर दिया... दोनो रिया के बेडरूम मे साथ साथ सो सकते थे.
रोमा बिस्तर पर पेट के बल गिर कर रोने लगी.. जिंदगी क्यों इतनी
कंजरफ और पीड़ा दायक है.
दरवाज़े पर होती आवाज़ से उसकी नींद खुली तो उसने महसूस किया कि वो
कपड़े पहेन ही सो गयी थी और कमरे की लाइट भी अभी तक जल रही
थी.
"रोमा मुझे अंदर आने दो."
"तुम रिया के साथ सो जाओ," उसने ज़ोर से गुस्से मे चिल्ला कर
कहा, "वैसे भी तुम दोनो के बीच कोई परदा नही है."
"तुम कहना क्या चाहती हो?"
"अब इतने भी भोले मत बनो.. में कोई बेवकूफ़ नही हूँ सब
समझती हूँ... तुम्हे पता है कि में क्या कहना चाहती हूँ."
राज ने ज़ोर से दरवाज़ा खटकाया.. "हाँ.. लेकिन बेवकूफ़ में भी
नही हूँ."
"तुम्हारा कहने का मतलब क्या है?"
"दरवाज़ा खोलो फिर में तुम्हे बताता हूँ." राज ने जवाब दिया.
पहले तो वो थोड़ा हिचकिचाई.. फिर उठा कर उसने दरवाज़ा खोल दिया
और वापस पलंग पर आ कर किनारे पर बैठ गयी... राज ने दरवाज़े
को धकेला और अंदर आकर उसके बगल मे बैठ गया.
रोमा की आँखों मे फिर आँसू आ गये.. "में अब और सहन नही कर
सकती.. एक तो कॉलेज की परेशानी और तुम्हारा हर वक्त रिया के साथ
रहना में सहन नही कर सकती... आज हमारा जैसे तय हुआ था घर
पर साथ साथ समय बिताना था.. लेकिन हुआ क्या मुझे अकेले खाना
खाना पड़ा.. तुम्हारा कही पता ही नही था.. "
गतान्क से आगे.......
जीत से भी अब रुका नही जा रहा था.... उसने उसके कुल्हों को जोरों
से पकड़ा और एक ज़ोर का धक्का मार अपने लंड को अंदर तक घुसा कर
अपना पानी छोड़ दिया... थोड़ी देर बाद उसने अपने लंड को बाहर
खींचा और उसके बगल मे लेट गया.
दोनो एक दूसरे को बड़ी गहरी नज़रों से देख रहे थे.. तभी उसे
अहसास हुआ कि रोमा की आँखे कुछ कह रही है.. ना जाने उसे ऐसा
क्यों लगने लगा कि शायद आज का मिलन उनकी रिश्ते की आखरी रात
है.. दोनो की आँखे एक दूसरे से बिना कुछ कहे भी बहोत कुछ कह
रही थी...
* * * * * * * * * *
जीत ने रोमा को उसके घर के बाहर छोड़ा और और आखरी बार उसने
उसके होठों को चूम लिया.. रोमा ने अपना कीताबों वाला बॅग उठाया
और गाड़ी से उतर गयी.. थोड़ी देर बाद वो अपने फ्लॅट मे दाखिल हो
रही थी कि उसने देखा क़ि राज और रिया दोनो हॉल मे ही सोफे पर चुदाई
मे लगे हुए थे.... रिया ने अपनी टाँगे फैला रखी और राज उछल
उछल कर उसे चोद रहा था.. उसके चोदने का ढंग ऐसा था जैसे कि
वो अपने दिल का गुस्सा रिया की चूत पर निकाल रहा हो...
रिया की नज़रें रोमा पर पड़ी तो उसने कहा, "रोमा मेने राज को आज
से पहले कभी इतने जोरों से चोदते नही देखा.. सही मे मज़ा आ
जाएगा.. क्या तुम साथ देना पसंद करोगी?"
आँखों मे आते आँसुओं को बड़ी मुश्किल से रोमा ने रोका और अपनी
गर्दन हिला उसे ना मे जवाब दिया... रोमा को महसूस हुआ कि राज जान
बुझ कर ऐसा कर रहा है..उन्हे पता था कि दोनो किए बीच जिस्मानी
रिश्ता है लेकिन क्या इस तरह खुले आम करना जायज़ था.. के
बेडरूम का दरवाज़ा बंद कर नही कर सकते थे..... गुस्से मे वो अपने
कमरे मे आई और ज़ोर से दरवाज़ा बंद कर दिया.. और अंदर से लॉक
भी कर दिया... दोनो रिया के बेडरूम मे साथ साथ सो सकते थे.
रोमा बिस्तर पर पेट के बल गिर कर रोने लगी.. जिंदगी क्यों इतनी
कंजरफ और पीड़ा दायक है.
दरवाज़े पर होती आवाज़ से उसकी नींद खुली तो उसने महसूस किया कि वो
कपड़े पहेन ही सो गयी थी और कमरे की लाइट भी अभी तक जल रही
थी.
"रोमा मुझे अंदर आने दो."
"तुम रिया के साथ सो जाओ," उसने ज़ोर से गुस्से मे चिल्ला कर
कहा, "वैसे भी तुम दोनो के बीच कोई परदा नही है."
"तुम कहना क्या चाहती हो?"
"अब इतने भी भोले मत बनो.. में कोई बेवकूफ़ नही हूँ सब
समझती हूँ... तुम्हे पता है कि में क्या कहना चाहती हूँ."
राज ने ज़ोर से दरवाज़ा खटकाया.. "हाँ.. लेकिन बेवकूफ़ में भी
नही हूँ."
"तुम्हारा कहने का मतलब क्या है?"
"दरवाज़ा खोलो फिर में तुम्हे बताता हूँ." राज ने जवाब दिया.
पहले तो वो थोड़ा हिचकिचाई.. फिर उठा कर उसने दरवाज़ा खोल दिया
और वापस पलंग पर आ कर किनारे पर बैठ गयी... राज ने दरवाज़े
को धकेला और अंदर आकर उसके बगल मे बैठ गया.
रोमा की आँखों मे फिर आँसू आ गये.. "में अब और सहन नही कर
सकती.. एक तो कॉलेज की परेशानी और तुम्हारा हर वक्त रिया के साथ
रहना में सहन नही कर सकती... आज हमारा जैसे तय हुआ था घर
पर साथ साथ समय बिताना था.. लेकिन हुआ क्या मुझे अकेले खाना
खाना पड़ा.. तुम्हारा कही पता ही नही था.. "