hotaks444
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सहर मे कही...किसी रूम मे....
बॉस- तुम...तुमने मुझे यहाँ क्यो बुलाया...
आदमी- बॉस एक ख़ास बात थी...
बॉस- खास बात....इतनी खास कि मुझे बुलाना पड़ा...हाँ,...
आदमी- जी बॉस...
बॉस- तो जल्दी बको..टाइम नही मेरे पास.....
आदमी- बॉस आज एक आक्सिडेंट करवाया गया...
बॉस- तो..उससे क्या...
आदमी- उसमे जूही नाम की लड़की घायल हो गई...जिस पर...
बॉस(बीच मे )- नही...ये क्या बक रहे हो...
आदमी- बॉस..मैं सच बोल रहा हूँ...जिस लड़की पर आपने नज़र रखने को बोला था...वो वही लड़की थी...जूही...
आदमी की बात सुन कर बॉस झल्ला गया और वहाँ से बुदबुदाता हुआ निकल गया....
बॉस- इतनी हिम्मत...मैं किसी को नही छोड़ूँगा....
------------------------------------------------------------------------
सीक्रेट हाउस पर.......
रिया चीख रही थी.....
रिया- तुम...तुम कौन हो..
""मैं कोई भी हूँ...बस ये जान ले कि तेरा अंत हूँ....""
रिया- ये..ये क्या कर रही हो...तुम...आअहह...ंहिी....""
सामने वाली औरत अपना काम करती रही ..और रिया चीखती रही...
रिया- मुऊम्मय्ी....ऐसा मत करो..प्लज़्ज़्ज़...लीव मी...ंही...आअहह...मुम्मय्यी...
""तेरी माँ का भी यही हाल होगा....पर अभी तेरी बारी है...""
रिया- नहिी...मुझे छोड़ दो...मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है...प्ल्ज़्ज़...लीव मी...
सामने वाली औरत ने बिना कोई बात सुने चाकू निकाल लिया और ज़ोर से चला दिया....
रिया- आआअहह..मम्मूऊम्म्मय्यी..उूउउम्म्म्मम....
बस एक चीख के साथ रिया की आवाज़ बंद हो गई....
थोड़ी देर बाद औरत बाहर आई और सामने खड़े सक्श से बोली....
"" काम हो गया....अब कोई आवाज़ नही निकलेगी...हहहे...""
रात के अंधेरे मे रिचा की डोरबेल बजी....रिचा पहले से ही परेशान थी....और डोरबेल की आवाज़ से वो काँप उठी...
रिचा- क्क़...कौन...
कोई आवाज़ ना आने पर रिचा का डर बढ़ने लगा....रिचा ने हिम्मत जुटा कर 2-3 बार आवाज़ दी पर कोई जवाब नही मिला...
आख़िरकार उसने डरते हुए काँपते हाथो से गेट खोला...बाहर कोई नही था...
रिचा को थोड़ी राहत मिली पर जैसे ही उसकी नज़रे नीचे रखे बॉक्स पर गई तो वो काँप गई...
रिचा ने आस-पास देखा...कोई नही था...फिर उसने काँपते हुए हाथो से बॉक्स को उठाना चाहा ....बॉक्स भारी था...
रिचा ने जैसे -तैसे बॉक्स को अंदर खिसकाया....फिर बिजली की फुर्ती से गेट को वापिस लॉक किया और जल्दी से बॉक्स खोला...
रिचा के हाथ मे बॉक्स खोलते ही एक पेपर था...जिस पर कुछ लिखा था....
""तुम्हारे करमो की सज़ा....ये लो...खुद ही देख लो...""
इतना पड़ते ही रिचा की आँखो मे ख़ौफ़ छा गया पर उसने हिम्मत कर के बॉक्स को पूरा खोला और अंदर का नज़ारा देख कर ही उसके मूह से जोरदार खीच निकल गई...
रिचा- न्न्न्नीहिईीईईईई......मेरी बाक्ककचिईीईई.....
और रिचा फुट -फुट कर रोने लगी......
रिचा ने जैसे ही बॉक्स खोला तो डर के मारे उसकी आँखे फट गई और खून से लत्फथ कपड़े देख कर वो दहाड़ मार कर रोने लगी...
ये वही कपड़े थे जो रिया ने पहने हुए थे...जब उसका किडनॅप हुआ था...
रिचा की आँखो के सामने एक दर्दनाक मंज़र था....रिया के खून से सने कपड़े...और कपड़ो के नीचे दिखता हुआ इंसान के माँस का लोथला...
रिचा इस कल्पना मात्र से काँप जाती थी कि उसकी बेटी का कुछ बुरा हुआ...और आज अपनी बेटी की ऐसी हालत देख कर तो उसका कलेजा मूह मे आ गया...
रिचा की सोचने समझने की सकती ख़त्म हो चुकी थी...वो बस अपनी बेटी को याद कर -कर के दहाड़े मार रही थी...
रिचा- आआहन्न्न...मेरी बच्ची...ये तूने क्या किया भवाँ....आआहह.न...मुझे भी उठा ले...आआहंणन्न्....
रिचा रोती रही पर उसकी इतनी हिम्मत नही हुई कि वो बॉक्स को दुबारा देखे...और उसमे रखे कपड़ो को उठा कर चेक करे....
रिचा ने तो बस खून मे सने कपड़े देख कर ही अपनी बेटी को मरा मान लिया और उसके गम मे अपने आप को और भगवान को कोस्ति हुई रोती रही...और जब दर्द की इंतहा हो गई तो वो बॉक्स के पास ही बेहोश हो गई....
""हहहे ....क्या हुआ रिचा...आज बहुत दुखी हो...हाँ....आज तुम्हे रोना भी आ रहा है...अच्छा है....
आज तुझे पता चला होगा कि आपको को तकलीफ़ होती है तो दिल पर क्या गुजरती है...है ना....
आज तूने जाना होगा...कि बुरे करमो का फल हमेशा बुरा ही होता है ...है ना...
आज तू सोच रही होगी कि अगर तू ग़लत ना करती तो शायद तेरे बेटी को खरॉच भी आती...है ना...
पर अब ये सोच कर क्या फ़ायदा....वक़्त अपना काम कर चुका है...तेरी बेटी जा चुकी है....और तू...तू कुछ नही कर सकती सिबाए उसके गम मे आँसू बहाने के...है ना....
देख रिचा...आज अपनी आँखो से अपनी करनी का नतीजा देख ले...
ग़लती की तूने...भुगता तेरी बेटी ने...वो भी बिना किसी कसूर के...
तू...तू हमेशा से ग़लती करती आई...अरे ग़लती क्या...तू गुनाह करती आई है...पर तुझे कुछ नही हुआ...और सारे गुनाहो की सज़ा तेरी मासूम बच्ची को मिल गई...
बचपन से ही तूने ग़लत काम किए...और अपने गुनाहो पर खुश भी होती रही ...हाँ...
याद कर रिचा...याद कर...तूने क्या-क्या गुनाह किए...कितनो के विश्वास को छला...कितनो को चोट पहुँचाई...कितनो की मौत की वजह बनी ...कितने परिवरो को तोड़ा....और कितनो को मारा...
याद कर साली...याद कर....सबसे पहले तूने अपने बाप को धोखा दिया....अपनी माँ की अयाशी को उससे छिपा कर...
फिर तू खुद ही अपनी भूख मिटाने के लिए मर्द के नीचे लेट गई...और लंड से भूख मिटाने लगी...
तेरा मन तब भी नही भरा...तुझे दौलत की भूख भी लग गई...
तूने दौलत पाना चाही...पर तुझे नही मिली....तेरे मन की नही हुई तो तूने लंड का सहारा लिया...जिससे दौलत भी मिल सके....
और सीने मे पाल ली एक नफ़रत....वो नफ़रत...जिसकी वजह कोई था ही नही...ये तेरी पैदा की गई नफ़रत थी...जिसमे तू जल रही थी...
तूने उस नफ़रत की आग मे 2 परिवारों को जला डाला....एक का तो लगभग नाम-ओ-निशान ही मिटा दिया...
तेरे किए गये एक करम ने कितनो की जान ली...ये याद है तुझे...याद है ना...
पर तू तब भी नही रुकी ...अपनी चाहत के चक्कर मे तूने कितनो को अपने उपेर चढ़ाया....बुड्ढे , जवान और बच्चे...सबको...छी...
और इसी के दम पर तू दौलतमंद हो गई....पर उससे क्या....तू तब भी नही मानी...
तूने बेचारे अंकित के खिलाफ भी कदम उठा लिया..और अब तू 2 तरफ से उसकी जान के पीछे पड़ गई...और यहाँ भी तू धोखा ही दे रही है...
जिन 2 के साथ तू मिली हुई है....उनको तो तेरी नफ़रत का अंदाज़ा भी नही....और तू दोनो के सहारे अपनी नफ़रत की आग बुझाने चली है...जो आग तूने खुद लगाई है...
ये सब तो कुछ नही...तूने इससे भी बढ़ कर काम कर दिया...वो काम जिसके बारे मे बड़े-बड़े सूरमा भी सोच कर ही थर्रा जाते है...पर तूने तो चुटकियों मे कर दिया...है ना....
मर्डर....हाँ..मर्डर...तूने तो मर्डर भी कर डाला...वो भी 1 नही...2-2....
हाँ रिचा...तूने 2 जाने तो अपने हाथो से ली है...और कितनी ही जाने तेरी वजह से गई सी..याद कर....याद कर रिचा...
याद आया ना....तो अब समझी...कि तेरे गुनाहो की ही सज़ा तेरी बेटी को अपनी जान देकर भुगतनी पड़ी....समझी....
अब तू खाती रह ये दौलत...और मिटाती रह अपनी भूख.....पर याद रखना...तू ही तेरी बेटी की चिता का आधार है...हहहे.....
रिचा- नही...नहियिइ....ंहिईीईईईईई....न..
बॉस- तुम...तुमने मुझे यहाँ क्यो बुलाया...
आदमी- बॉस एक ख़ास बात थी...
बॉस- खास बात....इतनी खास कि मुझे बुलाना पड़ा...हाँ,...
आदमी- जी बॉस...
बॉस- तो जल्दी बको..टाइम नही मेरे पास.....
आदमी- बॉस आज एक आक्सिडेंट करवाया गया...
बॉस- तो..उससे क्या...
आदमी- उसमे जूही नाम की लड़की घायल हो गई...जिस पर...
बॉस(बीच मे )- नही...ये क्या बक रहे हो...
आदमी- बॉस..मैं सच बोल रहा हूँ...जिस लड़की पर आपने नज़र रखने को बोला था...वो वही लड़की थी...जूही...
आदमी की बात सुन कर बॉस झल्ला गया और वहाँ से बुदबुदाता हुआ निकल गया....
बॉस- इतनी हिम्मत...मैं किसी को नही छोड़ूँगा....
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सीक्रेट हाउस पर.......
रिया चीख रही थी.....
रिया- तुम...तुम कौन हो..
""मैं कोई भी हूँ...बस ये जान ले कि तेरा अंत हूँ....""
रिया- ये..ये क्या कर रही हो...तुम...आअहह...ंहिी....""
सामने वाली औरत अपना काम करती रही ..और रिया चीखती रही...
रिया- मुऊम्मय्ी....ऐसा मत करो..प्लज़्ज़्ज़...लीव मी...ंही...आअहह...मुम्मय्यी...
""तेरी माँ का भी यही हाल होगा....पर अभी तेरी बारी है...""
रिया- नहिी...मुझे छोड़ दो...मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है...प्ल्ज़्ज़...लीव मी...
सामने वाली औरत ने बिना कोई बात सुने चाकू निकाल लिया और ज़ोर से चला दिया....
रिया- आआअहह..मम्मूऊम्म्मय्यी..उूउउम्म्म्मम....
बस एक चीख के साथ रिया की आवाज़ बंद हो गई....
थोड़ी देर बाद औरत बाहर आई और सामने खड़े सक्श से बोली....
"" काम हो गया....अब कोई आवाज़ नही निकलेगी...हहहे...""
रात के अंधेरे मे रिचा की डोरबेल बजी....रिचा पहले से ही परेशान थी....और डोरबेल की आवाज़ से वो काँप उठी...
रिचा- क्क़...कौन...
कोई आवाज़ ना आने पर रिचा का डर बढ़ने लगा....रिचा ने हिम्मत जुटा कर 2-3 बार आवाज़ दी पर कोई जवाब नही मिला...
आख़िरकार उसने डरते हुए काँपते हाथो से गेट खोला...बाहर कोई नही था...
रिचा को थोड़ी राहत मिली पर जैसे ही उसकी नज़रे नीचे रखे बॉक्स पर गई तो वो काँप गई...
रिचा ने आस-पास देखा...कोई नही था...फिर उसने काँपते हुए हाथो से बॉक्स को उठाना चाहा ....बॉक्स भारी था...
रिचा ने जैसे -तैसे बॉक्स को अंदर खिसकाया....फिर बिजली की फुर्ती से गेट को वापिस लॉक किया और जल्दी से बॉक्स खोला...
रिचा के हाथ मे बॉक्स खोलते ही एक पेपर था...जिस पर कुछ लिखा था....
""तुम्हारे करमो की सज़ा....ये लो...खुद ही देख लो...""
इतना पड़ते ही रिचा की आँखो मे ख़ौफ़ छा गया पर उसने हिम्मत कर के बॉक्स को पूरा खोला और अंदर का नज़ारा देख कर ही उसके मूह से जोरदार खीच निकल गई...
रिचा- न्न्न्नीहिईीईईईई......मेरी बाक्ककचिईीईई.....
और रिचा फुट -फुट कर रोने लगी......
रिचा ने जैसे ही बॉक्स खोला तो डर के मारे उसकी आँखे फट गई और खून से लत्फथ कपड़े देख कर वो दहाड़ मार कर रोने लगी...
ये वही कपड़े थे जो रिया ने पहने हुए थे...जब उसका किडनॅप हुआ था...
रिचा की आँखो के सामने एक दर्दनाक मंज़र था....रिया के खून से सने कपड़े...और कपड़ो के नीचे दिखता हुआ इंसान के माँस का लोथला...
रिचा इस कल्पना मात्र से काँप जाती थी कि उसकी बेटी का कुछ बुरा हुआ...और आज अपनी बेटी की ऐसी हालत देख कर तो उसका कलेजा मूह मे आ गया...
रिचा की सोचने समझने की सकती ख़त्म हो चुकी थी...वो बस अपनी बेटी को याद कर -कर के दहाड़े मार रही थी...
रिचा- आआहन्न्न...मेरी बच्ची...ये तूने क्या किया भवाँ....आआहह.न...मुझे भी उठा ले...आआहंणन्न्....
रिचा रोती रही पर उसकी इतनी हिम्मत नही हुई कि वो बॉक्स को दुबारा देखे...और उसमे रखे कपड़ो को उठा कर चेक करे....
रिचा ने तो बस खून मे सने कपड़े देख कर ही अपनी बेटी को मरा मान लिया और उसके गम मे अपने आप को और भगवान को कोस्ति हुई रोती रही...और जब दर्द की इंतहा हो गई तो वो बॉक्स के पास ही बेहोश हो गई....
""हहहे ....क्या हुआ रिचा...आज बहुत दुखी हो...हाँ....आज तुम्हे रोना भी आ रहा है...अच्छा है....
आज तुझे पता चला होगा कि आपको को तकलीफ़ होती है तो दिल पर क्या गुजरती है...है ना....
आज तूने जाना होगा...कि बुरे करमो का फल हमेशा बुरा ही होता है ...है ना...
आज तू सोच रही होगी कि अगर तू ग़लत ना करती तो शायद तेरे बेटी को खरॉच भी आती...है ना...
पर अब ये सोच कर क्या फ़ायदा....वक़्त अपना काम कर चुका है...तेरी बेटी जा चुकी है....और तू...तू कुछ नही कर सकती सिबाए उसके गम मे आँसू बहाने के...है ना....
देख रिचा...आज अपनी आँखो से अपनी करनी का नतीजा देख ले...
ग़लती की तूने...भुगता तेरी बेटी ने...वो भी बिना किसी कसूर के...
तू...तू हमेशा से ग़लती करती आई...अरे ग़लती क्या...तू गुनाह करती आई है...पर तुझे कुछ नही हुआ...और सारे गुनाहो की सज़ा तेरी मासूम बच्ची को मिल गई...
बचपन से ही तूने ग़लत काम किए...और अपने गुनाहो पर खुश भी होती रही ...हाँ...
याद कर रिचा...याद कर...तूने क्या-क्या गुनाह किए...कितनो के विश्वास को छला...कितनो को चोट पहुँचाई...कितनो की मौत की वजह बनी ...कितने परिवरो को तोड़ा....और कितनो को मारा...
याद कर साली...याद कर....सबसे पहले तूने अपने बाप को धोखा दिया....अपनी माँ की अयाशी को उससे छिपा कर...
फिर तू खुद ही अपनी भूख मिटाने के लिए मर्द के नीचे लेट गई...और लंड से भूख मिटाने लगी...
तेरा मन तब भी नही भरा...तुझे दौलत की भूख भी लग गई...
तूने दौलत पाना चाही...पर तुझे नही मिली....तेरे मन की नही हुई तो तूने लंड का सहारा लिया...जिससे दौलत भी मिल सके....
और सीने मे पाल ली एक नफ़रत....वो नफ़रत...जिसकी वजह कोई था ही नही...ये तेरी पैदा की गई नफ़रत थी...जिसमे तू जल रही थी...
तूने उस नफ़रत की आग मे 2 परिवारों को जला डाला....एक का तो लगभग नाम-ओ-निशान ही मिटा दिया...
तेरे किए गये एक करम ने कितनो की जान ली...ये याद है तुझे...याद है ना...
पर तू तब भी नही रुकी ...अपनी चाहत के चक्कर मे तूने कितनो को अपने उपेर चढ़ाया....बुड्ढे , जवान और बच्चे...सबको...छी...
और इसी के दम पर तू दौलतमंद हो गई....पर उससे क्या....तू तब भी नही मानी...
तूने बेचारे अंकित के खिलाफ भी कदम उठा लिया..और अब तू 2 तरफ से उसकी जान के पीछे पड़ गई...और यहाँ भी तू धोखा ही दे रही है...
जिन 2 के साथ तू मिली हुई है....उनको तो तेरी नफ़रत का अंदाज़ा भी नही....और तू दोनो के सहारे अपनी नफ़रत की आग बुझाने चली है...जो आग तूने खुद लगाई है...
ये सब तो कुछ नही...तूने इससे भी बढ़ कर काम कर दिया...वो काम जिसके बारे मे बड़े-बड़े सूरमा भी सोच कर ही थर्रा जाते है...पर तूने तो चुटकियों मे कर दिया...है ना....
मर्डर....हाँ..मर्डर...तूने तो मर्डर भी कर डाला...वो भी 1 नही...2-2....
हाँ रिचा...तूने 2 जाने तो अपने हाथो से ली है...और कितनी ही जाने तेरी वजह से गई सी..याद कर....याद कर रिचा...
याद आया ना....तो अब समझी...कि तेरे गुनाहो की ही सज़ा तेरी बेटी को अपनी जान देकर भुगतनी पड़ी....समझी....
अब तू खाती रह ये दौलत...और मिटाती रह अपनी भूख.....पर याद रखना...तू ही तेरी बेटी की चिता का आधार है...हहहे.....
रिचा- नही...नहियिइ....ंहिईीईईईईई....न..