DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन - Page 6 - SexBaba
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DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन

सुनीता ने अपनी टाँगें सामने की बर्थ पर रखीं थीं। जैसे ही सुनीता ने अपने बदन को थोड़ा सा फैला दिया और आमने सामने की बर्थ पर थोड़ी लम्बी हुई की उसे जस्सूजी के पॉंव का अपनी जाँघों के पास एहसास हुआ। जस्सूजी अपने लम्बे कद के कारण थोड़ा सा पॉंव लंबा करने में कष्ट महसूस कर रहे थे। सुनीता ने जब यह देखा तो जस्सूजी के दोनों पाँव अपनी गोद में ले लिए। जस्सूजी ने अपनी चप्पल निचे उतार रखी थीं। सुनीता प्यार से जस्सूजी की टाँगों को अपनी गोद में रख कर उस पर हाथ फिरा कर हल्का सा मसाज करने लगी। उसे जस्सूजी की पाँव अपनी गोद में पाकर अच्छ लग रहा था। वह उन दिनों को याद करने लगी जब वह अपने पिताजी के पॉंव तब तक दबाती रहती थी जब तक वह सो नहीं जाते थे।

पाँव दबाते हुए सुनीता जस्सूजी की और सम्मान और प्यार भरी नज़रों से देखती रहती थी। उसे जस्सूजी के पाँव अपनी गोद में रखने में कोई भी झिझक नहीं महसूस हुई। सुनीता ने भी अपनी टांगें लम्बीं कीं और अपने पति सुनीलजी की गोद में रख दीं। सुनीलजी खर्राटे मार रहे थे। कुछ पल के लिए वह उठ गए और उन्होंने आँखें खोलीं जब उन्होंने अपनी पत्नी की टाँगें अपनी गोद में पायीं।

उन्होंने सुनीता की और देखा। उन्होंने देखा की जस्सूजी की टाँगें उनकी पत्नी सुनीता की गोद में थीं और सुनीता उन्हें हलके से मसाज कर रही थी। सुनीता ने देखा की वह कुछ मुस्काये और फिर आँखें बंद कर अपनी नींद की दुनिया में वापस चले गए।

ज्योतिजी तो पहले से ही एक तरफ करवट ले कर सो रही थीं। शायद वह रात को पूरी तरह ठीक से सो नहीं पायीं थीं। ज्योतिजी ने अपनी टाँगें लम्बीं और टेढ़ी कर रखीं थीं जो सुनीलजी की जाँघों को छू रही थीं।

सुनीता आधी नींद में थी। उसे कुमार और नीतू की कानाफूसी आधीअधूरी सुनाई देती थीं। सुनीता समझ गयी थी की कुमार नीतू को फाँसने की कोशिश में लगा था। नीतू भी उसे थोड़ी सी ढील दे रही थी। दरअसल नीतू और कुमार साइड वाली बर्थ लम्बी ना करके बर्थ को ऊपर उठा कर दो कुर्सियां बना कर आमने सामने बैठे थे। नीतू और कुमार का परिचय हो चुका था। पर शायद नीतू ने अपनी पूरी कहानी कुमार को नहीं सुनाई थी। नीतू ने यह नहीं जाहिर किया था की वह शादी शुदा थी।

वैसे भी नीतू को देखने से कोई यह नहीं कह सकता था की वह शादीशुदा थी। नीतू ने अपने चेहरे पर कोई भी ऐसा निशान नहीं लगा रखा था। हम उम्र होने के अलावा एक दूसरे से पहली नजर से ही जातीय आकर्षण होने के कारण वह दोनों एक दूसरे से कुछ अनौपचारिकता से बातें कर रहे थे। सुनीता को जो सुनाई दिया वह कुछ ऐसा था।

कुमार: "नीतू, आप गजब की ख़ूबसूरत हो।"

नीतू: "थैंक यू सर। आप भी तो हैंडसम हो!"

कुमार: "अरे कहाँ? अगर मैं आपको हैंडसम लगता तो आप मेरे करीब आने से क्यों झिझकतीं?"

नीतू: "कमाल है? मैं आपके करीब ही तो हूँ।"

कुमार ने अपनी टांगों की नीतू की टांगों से मिलाया और बोला, "देखो हमारे बिच इतना बड़ा फासला है।"

नीतू: "फासला कहाँ है? आप की टाँगें मेरी टाँगों को टच तो कर रहीं हैं।"

कुमार: "सिर्फ टाँगें ही तो टच कर रहीं है। हमारे बदन तो दूर हैं ना?"

नीतू: "कमाल है, कप्तान साहब! अभी हमें मिले दो घंटे भी हुए नहीं और आप हमारे बदन एक दूसरे से करीब आये यह ख्वाब देख रहे हो?"

कुमार: "क्यों भाई? क्या ख्वाब देखने पर की कोई प्रतिबन्ध है? और मान लो हमें मिले हुए एक दिन पूरा हो गया होता तो क्या होता?""

नीतू: "नहीं कप्तान साहब ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। आप जरूर ख्वाब देखिये। जब ख्वाब ही देखने है तो कंजूसी कैसी? और जहां तक मिलने के एक दिन के बाद की बात है तो वह तो एक दिन बीतेगा तब देखेंगे। अभी तो सिर्फ शुरुआत है। अभी से इतनी बेसब्री क्यों?"

कुमार: "क्या मतलब?"

नीतू: "अरे जब ख्वाब ही देखने हैं तो फिर ख्वाब में सब कुछ ही देखिये। खाली बदन एक दूसरे से करीब आये यही क्यों रुकना भला? ख्वाब पर कोई लगाम लगाने की क्या जरुरत है? हाँ ख्वाब के बाहर जो असली दुनिया है, वहाँ सब्र रखना जरुरी है।"

कुमार: "मोहतरमा, आप कहना क्या चाहती हो? मैं ख्वाब में क्या देखूं? जहां तक सब्र का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ की मुझमें सब्र की कमी है।"

नीतू: "कमाल है कप्तान साहब! अब मुझे ही बताना पडेगा की आप ख्वाब में क्या देखो? भाई देश आजाद है। जो देखना हो वह ख्वाब में देख सकते हो। मुझे क्या पता आप ख्वाब में क्या देखना चाहते हो? पर ख्वाब की दुनिया और असलियत में फर्क होता है।"

कुमार: "मैं बताऊँ मैं ख्वाब में क्या देखना चाहता हूँ?''

नीतू: "फिर वही बात? भाई जो देखना चाहो देखो। बताओ, क्या देखना चाहते हो?"

कुमार: "अगर मैं सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नहीं मानोगे?"

नीतू: "कमाल है! आप ख्वाब देखो तो उसमें मुझे बुरा मानने की क्या बात है? कहते हैं ना, की नींद तुम्हारी ख्वाब तुम्हारे। बताओ ना क्या ख्वाब देखना चाहते हो?"

कुमार: "हाँ यह तो सही कहा आपने। तो मैं ख्वाब देखना चाहता हूँ की आप मेरी बाँहों में हो और मैं आपको खूब प्यार कर रहा हूँ।"

नीतू: "अरे! अभी तो हम ढंग से मिले भी नहीं और आप मुझे बाँहों में ले कर प्यार करने के ख्वाब देखने लगे?"

कुमार: "आपने ही तो कहा था की ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है? जहां तक ढंग से मिलने का सवाल है तो बताइये ना हम कैसे ढंग से मिल सकते हैं?"

नीतू: "ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।"

कुमार: "क्या आप सोच समझ कर ख्वाब देखते हो? क्या ख्वाब पर हमारा कोई कण्ट्रोल होता है क्या?"
 
नीतू: "ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।"

कुमार: "क्या आप सोच समझ कर ख्वाब देखते हो? क्या ख्वाब पर हमारा कोई कण्ट्रोल होता है क्या?"

नीतू कुमार की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिखाई पड़ी। नीतू की आँखें कुछ गीली से हो गयीं। कुमार को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह नीतू को चुपचाप देखता रहा। सुनीता के चेहरे पर मायूसी देख कर कुमार ने कहा, "मुझे माफ़ करना नीतूजी, अगर मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आपको कोई दुःख हुआ हो। मैं आपको किसी भी तरह का दुःख नहीं देना चाहता।"

नीतू ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "नहीं कप्तान साहब ऐसी कोई बात नहीं। जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जिन्हें आपको झेलना ही पड़ता है और उन्हें स्वीकार कर चलने में ही सबकी भलाई है।"

कुमार: "नीतूजी, पहेलियाँ मत बुझाइये। कहिये क्या बात है।"

नीतू ने बात को मोड़ दे कर कुमार के सवाल को टालते हुए कहा, "कप्तान साहब आप मुझे नीतूजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम नीतू है और मुझे आप नीतू कह कर ही बुलाइये।"

नीतू ने फिर अपने आपको सम्हाला। थोड़ा सा सोचमें पड़ने के बाद नीतू ने शायद मन ही मन फैसला किया की वह कुमार को अपनी असलियत (की वह शादी शुदा है) उस वक्त नहीं बताएगी।

कुमार: "तो फिर आप भी सुनिए। आप मुझे कप्तान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम कुमार है। आप मुझे सिर्फ कुमार कह कर ही बुलाइये।"

नीतू का मन डाँवाडोल हो रहा था। क्या वह कुमार के साथ आगे बढे या नहीं? उसे अपने पति से कोई दिक्क्त नहीं थी। उस ने अपने मन में सोचा सब्र की ऐसी की तैसी। जब मौक़ा मिला ही है तो क्यों ना उसका फायदा उठाया जाए? फिर तो अँधेरी रात है ही।

नीतू ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "कप्तान साहब, सॉरी कुमारजी, शायद आप ख्वाब और असलियत का फर्क नहीं समझते।"

कुमार ने आगे बढ़कर नीतू का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? मैं तो नौसिखिया हूँ।"

जैसे ही कुमार ने नीतू का हाथ थामा तो नीतू के पुरे बदन में एक बिजली सी करंट मार गयी। नीतू के रोंगटे खड़े हो गए। उस दिन तक ब्रिगेडियर साहब को छोड़ किसीने भी नीतू का इस तरह हाथ नहीं थामा था। नीतू हमेशा यह सपना देखती ही रहती थी कोई हृष्टपुष्ट युवक उसको अपनी बाँहों में थाम कर उसको गहरा चुम्बन कर, उसकी चूँचियों को अपने हाथ में मसलता हुआ उसे निर्वस्त्र कर उसकी चुदाई कर रहा है। नीतू को अक्सर सपने में वही युवक बारबार आता था और नीतू का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार नीतू ने महसूस किया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर उसे सातवें आस्मां पर उठा लेता था।

नीतू ने ध्यान से देखा तो उसे लगा की कहीं ना कहीं कुमार की शक्ल और उसका बदन भी वही युवक जैसा था। कुमार ने देखा की जब उसने नीतू का हाथ थामा और नीतू ने उसका कोई विरोध नहीं किया और नीतू अपने ही विचारो में खोयी हुई कुमार के चेहरे की और एकटक देख रही थी तब उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। उसने नीतू को अपनी और खींचते हुए कहा, "क्या देख रही हो, नीतू? क्या मैं भद्दा और डरावना दिखता हूँ? क्या मुझमें तुम्हें कोई बुराई नजर आ रही है?"

नीतू अपनी तंद्रा से जाग उठी और कुमार की और देखती हुई बोली, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, क्यों?"

कुमार: "तो फिर मेरे करीब तो बैठो। देखो अगर मैं तुम्हें भद्दा और डरावना नहीं लगता और अगर हमारा पहला परिचय हो चुका है तो फिर इतना दूर बैठने की क्या जरुरत है?"

नीतू: "अरे कमाल है। यह बर्थ तो पहले से ही ऐसी रक्खी हुई थी। मैंने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"

कुमार: "तो फिर मैं उसे नीचा कर देता हूँ अगर आप को कोई आपत्ति ना हो तो?" ऐसा कह कर बिना नीतू की हाँ का इंतजार किये कुमार उठ खड़ा हुआ और उसने बर्थ को निचा करना चाहा। मज़बूरी में नीतू भी उठ खड़ी हुई। कुमार ने बर्थ को बिछा दिया और उसके ऊपर चद्दर बिछा कर नीतू को पहले बैठने का इशारा किया।

नीतू ने हलके से अपने कूल्हे बर्थ पर टिकाये तो कुमार ने उसे हल्का सा अपने करीब खिंच कर कहा, "भाई ठीक से तो बैठो। आखिर हमें काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।"
 
नीतू और खिसक कर ठीक बैठी तो उसने महसूस किया की उसकी जाँघें कुमार की जाँघों से घिस रहीं थीं। कम्पार्टमेंट का तापमान काफी ठंडा हो रहा था। कुमार ने धीरे से नीतू को अपने और करीब खींचा तो नीतू ने उसका विरोध करते हुए कहा, "क्या कर रहे हो? कोई देखेगा तो क्या कहेगा?"

कुमार समझ गया की उसे नीतू ने अनजाने में ही हरी झंडी दे दी थी। नीतू ने कुमार का उसे अपने करीब खींचने का विरोध नहीं किया था बल्कि कोई देख लेगा यह कह कर उसे रोका था। यह इशारा कुमार के लिए काफी था। कुमार समझ गया की नीतू को यह डर था की कहीं उन्हें कोई देख ना ले।"

कुमार ने फ़ौरन खड़े हो कर पर्दों को फैला दिया जिससे उनकी बर्थ पूरी तरह से परदे के पीछे छिप गयी। अब कोई भी बिना पर्दा हटाए उन्हें देख नहीं सकता था। जब नीतू ने देखा की कुमार ने उन्हें परदे के पीछे ढक दिया तो वह बोल पड़ी, "कुमार यह क्या कर रहे हो?"

कुमार: "पहले आपने कहा, कोई देख लेगा। मैं वही कर रहा हूँ जो आप चाहते हो। अब हमें कोई नहीं देख सकता। बोलो अब तो ठीक है?"

नीतू को महसूस हुआ की उसकी जाँघों के बिच में से उसका स्त्री रस चुने लगा था। उसकी निप्पलेँ फूल कर बड़ी हो गयीं थीं। नीतू अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। उस पर कुछ अजीब सा नशा छा गया था। नीतू को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था। जो आजतक उसने अनुभव नहीं किया था वह सब हो रहा था।

कुमार ने देखा की उसकी जोड़ीदार कुछ असमंजस में थी तो कुमार ने नीतू को अपनी और करीब खींचा और नीतू के कूल्हों के निचे अपने दोनों हाथ घुसा कर नीतू को ऊपर की और उठाया और उसे अपनी गोद में बिठा दिया।

जैसे ही कुमार ने नीतू को अपनी गोद में बिठाया की नीतू मचलने लगी। नीतू ने महसूस किया की कुमार का लण्ड उसकी गाँड़ को टोंच रहा था। उसकी गाँड़ की दरार में वह उसके कपड़ों के उस पार ऐसी ठोकर मार रहा था की नीतू जान गयी की कुमार का लण्ड काफी लंबा, मोटा और बड़ा था और एकदम कड़क हो कर खड़ा हुआ था।

नीतू से अब यह सब सहा नहीं जा रहा था। नीतू की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत में से रिस रहा पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था। उसे यह डर था की कहीं उसकी पेंटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे, जिससे कुमार को नीतू की हालत का पता लग जाए। साथ साथ नीतू को अपनी मर्यादा भी तो सम्हालनी थी। हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति का समर्थन जरूर मिलेगा पर फिर भी वह एक शादीशुदा औरत थी।

नीतू ने तय किया की अब उसे कुमार को रोकना ही होगा। मन ना मानते हुए भी नीतू उठ खड़ी हुई। उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए कुमार को कहा, "बस कुमार। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।" नीतू से कुमार को यह नहीं कहा गया की कुमार का यह सब कार्यकलाप उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नीतू ने कुमार को साफ़ साफ़ मना भी नहीं किया।
 
नीतू ने तय किया की अब उसे कुमार को रोकना ही होगा। मन ना मानते हुए भी नीतू उठ खड़ी हुई। उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए कुमार को कहा, "बस कुमार। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।" नीतू से कुमार को यह नहीं कहा गया की कुमार का यह सब कार्यकलाप उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नीतू ने कुमार को साफ़ साफ़ मना भी नहीं किया।

नीतू अपनी बर्थ से उठ कर गैलरी में चल पड़ी। सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा की नीतू कम्पार्टमेंट के दरवाजे की और बढ़ने लगी थी और उसके पीछे कुमार भी उठ खड़ा हुआ और नीतू के पीछे पीछे जाने लगा। सुनीता से रहा नहीं गया। सुनीता ने हलके से जस्सूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बर्थ पर रख दिए। जस्सूजी गहरी नींद सो रहे थे। सुनीता ने जस्सूजी के बदन पर पूरी तरह से चद्दर ओढ़ाकर वह स्वयं उठ खड़ी हुई और कुमार और नीतू की हरकतें देखने उनके पीछे चल पड़ी।

नीतू आगे भागकर कम्पार्टमेंट के दरवाजे के पास जा पहुंची थी। कुमार भी उसके पीछे नीतू को लपक ने के लिए उसके पीछे भाग कर दरवाजे के पास जा पहुंचा था। सुनीता ने देखा की कुमार ने भाग कर नीतू को लपक कर अपनी बाँहों में जकड लिया और उसके मुंह पर चुम्बन करने की कोशिश करने लगा। नीतू भी शरारत भरी हुई हँसी देती हुई कुमार से अपने मुंह को दूर ले जा रही थी।

फिर उससे छूट कर नीतू ने कुमार को अँगुठे से ठेंगा दिखाया और बोली, "इतनी आसानी से तुम्हारे चंगुल में नहीं फँस ने वाली हूँ मैं। तुम फौजी हो तो मैं भी फौजी की बेटी हूँ। हिम्मत है तो पकड़ कर दिखाओ।"

और क्या था? कुमार को तो जैसे बना बनाया निमंत्रण मिल गया। उसने जब भाग कर नीतू को पकड़ ना चाहा तो नीतू कूद कर टॉयलेट में घुस गयी और उसने टॉयलेट का दरवाजा बंद करना चाहा। कुमार ने भाग कर अपने पाँव की एड़ी दरवाजे में लगादी जिस कारण नीतू दरवाजा बंद नहीं कर पायी।

कुमार ने ताकत लगा कर दरवाजा खिंच कर खोला और नीतू के पीछे वह भी टॉयलेट में अंदर घुस गया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। सुनीता जब पहुंची तो दोनों प्रेमी पंछी टॉयलेट में थे और अंदर से नीतू की गिड़गिड़ाने की आवाज आ रही थी। सुनीता ने नीतू को गिड़गिड़ाकर कहते हुए सूना, "कुमार प्लीज मुझे छोड़ दो। यह तुम क्या कर रहे हो? मेरे कपडे मत निकालो। मैं बाहर कैसे निकलूंगी? अरे तुम यह क्या कर रहे हो?"

फिर अंदर से कुमार की आवाज आयी, "डार्लिंग, अब ज्यादा ना बनो जानू, प्लीज। मुझे एक बार तुम्हारे बदन को छू लेने दो। प्लीज बस एक ही मिनट लगेगा। मैं तुम्हें परेशान नहीं करूंगा। प्लीज मुझे छूने दो।"

नीतू: "नहीं कुमार, देखो कोई आ जायेगा। मैं तुम्हें सब कुछ करने दूंगी, पर अभी नहीं, प्लीज" फिर कुछ देर तक शान्ति हो गयी। अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी।

सुनीता ने देखा की एक सज्जन टॉयलेट की और आने की कोशिश कर रहे थे। सुनीता ने टॉयलेट का दरवाजा जोर से खटखटाया और बोली, "नीतू,, कुमार दरवाजा खोलो।"

जैसे ही सुनीता ने दरवाजा खटखटाया की फ़ौरन कुमार ने दरवाजा खोल दिया। सुनीता ने देखा की नीतू की साडी का पल्लू गिरा हुआ था। नितुकी ब्लाउज के बटन खुले हुए थे और वह ब्रा को सम्हाल कर कुमार को रोकने की कोशिश कर रही थी। नीतू के मस्त बूब्स लगभग पुरे ही दिख रहे थे। उसके स्तनोँ को उभार देख कर सुनीता को भी ईर्ष्या हुई। उसके स्तन ब्रा में से ऐसे उठे हुए अकड़ से खड़े दिख रहे थे। नियु की स्तनोँ के एरोला भी दिख रहे थे।

सुनीता ने फुर्ती से नीतू को अपनी बाँहों में लपेट लिया। नीतू की सूरत रोने जैसी हो गयी थी। नीतू को सुनीता ने माँ की तरह अपनी बाँहों में कुछ देर तक जकड रखा और उसके सर पर हाथ फिरा कर उसे ढाढस देने लगी।

कप्तान कुमार खिसिआनि सी शक्ल बना कर सुनीता की और देखता हुआ अपनी सीट पर जाने लगा तो सुनीता ने उसे रोक कर कहा, "देखो कुमार और नीतू। हालांकि मैं तुम्हारी माँ जितनी तो उम्र में नहीं हूँ पर एक बात तुम दोनों को कहना चाहती हूँ। तुम मेरे छोटे भाई बहन की तरह हो। मैं तुम्हें एक दूसरे से मस्ती करने से नहीं रोक रही। पर ऐसे काम का एक समय, मौक़ा और जगह होती है। जो तुम करना चाहते हो वह तुम बेशक करो, मैं तुम्हें मना नहीं कर रही हूँ, पर सही समय, मौक़ा और जगह देख कर करो। परदे के पीछे करो, पर यहां इस वक्त नहीं। अपनी इज्जत अपने हाथ में है। उसे सम्हालो।
 
कुमार की और देख कर सुनीता ने कहा, "देखो, नीतू की इज्जत सम्हालना तुम्हारा काम है। मर्द को चाहिए की जिस औरत को वह प्यार करता है उसकी इज्जत का ख़याल रखे।"

कुमार ने अपनी नजरें निचे झुका लीं और कहा, "सॉरी मैडम। आगे से ऐसा नहीं होगा।"

सुनीता ने कुमार का हाथ थाम कर कहा, "कोई बात नहीं। अभी तुम जवान हो। जोश के साथ होश से भी काम लो।"

कप्तान कुमार अपना सर झुका कर अपनी बर्थ पर वापस लौट गए। साथ में नीतू भी खिस्यानी सी लौट आयी और अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चली गयी। कप्तान कुमार को अपने वर्तन पर भारी शर्मिंदगी हुई। उसे समझ में नहीं उन्होंने ऐसी घटिया हरकत कैसे की। जो हुआ था उससे कप्तान कुमार काफी दुखी थे।

सुनीता अपनी सीट पर वापस आ कर बैठी और जस्सूजी क पाँव उसने फिर अपनी गोद में रखा। सुनीलजी और ज्योतिजी गहरी नींद में थे। सुनीता के आने से जस्सूजी की नींद खुल गयी थी।

और एक बार फिर उन्हें द्लार से सहलाने लगी, दबाने लगी और हल्का सा मसाज करने लगी। सुनीता को कप्तान कुमार और नीतू की जोड़ी अच्छी लगी। उसे अफ़सोस हो रहा था की उसने उनकी प्रेम क्रीड़ा में बाधा पैदा की। सुनीता ने अपने मन में सोचा की कहीं उसे उन पर इर्षा तो नहीं हो रही थी? नीतू को उसका प्यार मिल रहा था और उसकी तन की सालों की भूख आज पूरी हो सकती थी अगर वह बिच में नहीं आती तो।

सुनीता को मन में बड़ा दुःख हुआ। वह चाहती थी की कप्तान कुमार नीतू की प्यार और शरीर की भूख मिटाये। नीतू उसकी हकदार थी। सुनीता को क्या हक़ था उन्हें रोकने का? सुनीता अपने आप को कोसने लगी। कुछ सोच कर सुनीता उठ खड़ी हुई और नीतू की ऊपर वाली बर्थ के पास जाकर उसने नीतू का हाथ पकड़ कर धीमे से हिलाया। नीतू ने आँखें खोलीं। सुनीता को देख कर वह बोली, क्या बात है दीदी?"

सुनीता ने नीतू के कान में कहा, "नीतू, मुझे माफ़ करना। मैं आप दोनों के प्यार के बिच में अड़ंगा अड़ाया। मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ।"

नीतू आश्चर्य से सुनीता को देखती रही। सुनीता ने कहा, "देखो नीतू, मुझे तुम दोनों की प्रेम लीला से कोई शिकायत नहीं है। देखो, बंद परदे में सब कुछ अच्छा लगता है। इसलिए मैंने तुम्हें सबके सामने यह सब करने के लिए रोका था। कहते हैं ना की "परदे में रहने दो पर्दा ना उठाओ। पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा।" तो मेरे कहने का बुरा मत मानना। ओके?"

सुनीता यह कह कर चुपचाप अपनी बर्थ पर वापसआगई।

सुनीता ने अपनी टाँगें सामने की बर्थ पर रखीं थीं। सुनीलजी सामने की बर्थ पर बैठे हुए ही गहरी नींद में थे। जैसे ही सुनीता ने अपने बदन को थोड़ा सा फैला दिया और आमने सामने की बर्थ पर थोड़ी लम्बी हुई की उसे जस्सूजी के पॉंव का अपनी जाँघों के पास एहसास हुआ। जस्सूजी अपने लम्बे कद के कारण थोड़ा सा पॉंव लंबा करने में कष्ट महसूस कर रहे थे। सुनीता ने जब यह देखा तो जस्सूजी के दोनों पाँव उठाकर अपनी गोद में ले लिए।
 
जस्सूजी को ठण्ड ना लगे इस लिए सुनीता ने एक और रक्खी एक चद्दर और उसके ऊपर रक्खा पड़ा हुआ कम्बल खिंच निकाला और जस्सूजी के पुरे शरीर को उस कम्बल से ढक दिया। कम्बल के निचे एक चद्दर भी लगा दी। वही कम्बल और चद्दर का दुसरा छोर अपनी गोद और छाती पर भी डाल दिया। इस तरह ठण्ड से थोड़ी राहत पाकर सुनीता प्यार से जस्सूजी की टाँगों को अपनी गोद में रख कर उस पर हाथ फिरा कर हल्का सा मसाज करने लगी।

उसे जस्सूजी के पाँव अपनी गोद में पाकर अच्छा लग रहा था। उसे अपने गुरु और अपने प्यारे प्रेमी की सेवा करने का मौक़ा मिला था। वह उन दिनों को याद करने लगी जब वह अपने पिताजी के पॉंव तब तक दबाती रहती थी जब तक वह सो नहीं जाते थे।

पाँव दबाते हुए सुनीता जस्सूजी की और सम्मान और प्यार भरी नज़रों से देखती रहती थी। उसे जस्सूजी के पाँव अपनी गोद में रखने में कोई भी झिझक नहीं महसूस हुई।

सुनीता ने अपनी टांगें भी लम्बीं कीं और अपने पति सुनीलजी की गोद में रख दीं। सुनीलजी खर्राटे मार रहे थे। कुछ पल के लिए वह उठ गए और उन्होंने आँखें खोलीं जब उन्होंने अपनी पत्नी की टाँगें अपनी गोद में पायीं।

उन्होंने सुनीता की और देखा। उन्होंने देखा की जस्सूजी की टाँगें उनकी पत्नी सुनीता की गोद में थीं और सुनीता उन्हें हलके से मसाज कर रही थी। सुनीता ने देखा की वह कुछ मुस्काये और फिर आँखें बंद कर अपनी नींद की दुनिया में वापस चले गए।

सुनीता जस्सूजी की टाँगों को सेहला और दबा रही थी तब उसे जस्सूजी के हाथ का स्पर्श हुआ। जस्सूजी ने कम्बल के निचे से अपना एक हाथ लंबा कर सुनीता के हाथ को हलके से थामा और धीरे से उसे दबा कर ऊपर की और खिसका कर उसे अपनी दो जाँघों के बिच में रख दिया। सुनीता समझ गयी की जस्सूजी चाहते थे की सुनीता जस्सूजी के लण्ड को अपने हाथोँ में पकड़ कर सहलाये। सुनीता जस्सूजी की इस हरकत से चौंक गयी। वह इधर उधर दिखने लगी। सब गहरी नींद सो रहे थे।

सुनीता का हाल देखने जैसा था। सुनीता ने जब चारों और देखा तो पाया की कम्बल के निचे की उनकी हरकतों को और कोई आसानी से नहीं देख सकता था। सारे परदे फैले हुए होने के कारण अंदर काफी कम रौशनी थी। करीब करीब अँधेरा जैसा ही था।

सुनीता ने धीरे से अपना हाथ ऊपर की और किया और थोड़ा जस्सूजी की और झुक कर जस्सूजी के लण्ड को उनकी पतलून के ऊपर से ही अपने हाथ में पकड़ा। जस्सूजी का लण्ड अभी पूरा कड़क नहीं हुआ था। पर बड़ी जल्दी कड़क हो रहा था। सुनीता ने चारोँ और सावधानी से देख कर जस्सूजी के पतलून की ज़िप ऊपरकी और खिसकायी और बड़ी मशक्कत से उनकी निक्कर हटा कर उनके लण्ड को आज़ाद किया और फिर उस नंगे लण्ड को अपने हाथ में लिया।

सुनीता के हाथ के स्पर्श मात्र से जस्सूजी का लण्ड एकदम टाइट और खड़ा हो गया और अपना पूर्व रस छोड़ने लगा। सुनीता का हाथ जस्सूजी के पूर्व रस की चिकनाहट से लथपथ हो गया था। सुनीता ने अपनी उँगलियों की मुट्ठी बना कर उसे अपनी छोटी सी उँगलियों में लिया। वह जस्सूजी का पूरा लण्ड अपनी मुट्ठी में तो नहीं ले पायी पर फिर भी जस्सूजी के लण्ड की ऊपरी त्वचा को दबा कर उसे सहलाने और हिलाने लगी।

सुनीता ने जस्सूजी के चेहरे की और देखा तो वह अपनी आँखें मूँदे सुनीता के हाथ में अपना लण्ड सेहलवा कर अद्भुत आनंद महसूस कर रहे थे ऐसा सुनीता को लगा। सुनीता ने धीरे धीरे जस्सूजी का लण्ड हिलाने की रफ़्तार बढ़ाई। सुनीता चाहती थी की इससे पहले की कोई जाग जाए, वह जस्सूजी का वीर्य निकलवादे ताकि किसीको शक ना हो।

सुनीता के हाथ बड़ी तेजी से ऊपर निचे हो रहे थे। सुनीता ने कम्बल और चद्दर को मोड़ कर उसकी कुछ तह बना कर ख़ास ध्यान रक्खा की उसके हाथ हिलाने को कोई देख ना पाए। सुनीता जस्सूजी के लण्ड को जोर से हिलाने लगी। सुनीता का हाथ दुखने लगा था। सुनीता ने देखा की जस्सूजी के चेहरे पर एक उन्माद सा छाया हुआ। थोड़ी देर तक काफी तेजी से जस्सूजी का लण्ड हिलाने पर सुनीता ने महसूस किया की जस्सूजी पूरा बदन अकड़ सा गया। जस्सूजी अपना वीर्य छोड़ने वाले थे।

सुनीता ने धीरे से अपनी जस्सूजी के लण्ड को हिलाने की रफ़्तार कम की। जस्सूजी के लण्ड के केंद्रित छिद्र से उनके वीर्य की पिचकारी छूट रही थी। सुनीता को डर लगा की कहीं जस्सूजी के वीर्य से पूरी चद्दर गीली ना हो जाए। सुनीता ने दूसरे हाथ से अपने पास ही पड़ा हुआ छोटा सा नेपकिन निकाला और उसे दूसरे हाथ में देकर अपने हाथ की मुट्ठी बना कर उनका सारा वीर्य अपनी मुट्ठी में और उस छोटे से नेपकिन में भर लिया। नेपकिन भी जस्सूजी के वीर्य से पूरा भीग चुका था।

जस्सूजी के लण्ड के चारों और अच्छी तरह से पोंछ कर सुनीता ने फिर से उनका नरम हुआ लण्ड और अपना हाथ दूसरे नेपकिन से पोंछा और फिर जस्सूजी के लण्ड को उनकी निक्कर में फिर वही मशक्कत से घुसा कर जस्सूजी की पतलून की ज़िप बंद की। उसे यह राहत थी की उसे यह सब करते हुए किसीने नहीं देखा था।

जस्सूजी को जरुरी राहत दिला कर सुनीता ने अपनी आँखें मुँदीं और सोने की कोशिश करने लगी।

ज्योतिजी पहले से ही एक तरफ करवट ले कर सो रही थीं। शायद वह रात को पूरी तरह ठीक से सो नहीं पायीं थीं। ज्योतिजी ने अपनी टाँगें लम्बीं और टेढ़ी कर रखीं थीं जो सुनीलजी की जाँघों को छू रही थीं।
 
सुनीता जब आधी अधूरी नींद में थी तब उसे कुमार और नीतू की कानाफूसी सुनाई दी। सुनीता समझ गयी की कुमार नीतू को फाँसने की कोशिश में लगा था। नीतू भी उसे थोड़ी सी ढील दे रही थी। दरअसल नीतू और कुमार साइड वाली बर्थ लम्बी ना करके बर्थ को ऊपर उठा कर दो कुर्सियां बना कर आमने सामने बैठे थे। नीतू और कुमार का परिचय हो चुका था। पर शायद नीतू ने अपनी पूरी कहानी कुमार को नहीं सुनाई थी। नीतू ने यह नहीं जाहिर किया था की वह शादी शुदा थी।

वैसे भी नीतू को देखने से कोई यह नहीं कह सकता था की वह शादीशुदा थी। नीतू ने अपने चेहरे पर कोई भी ऐसा निशान नहीं लगा रखा था। ना ही माँग में सिंदूर और नाही कोई मंगल सूत्र। नीतू ने ऊपर सफ़ेद रंग का टॉप पहना था। उसका टॉप ब्लाउज कहो या स्लीवलेस शर्ट कहो, नीतू के उन्नत स्तनोँ के उभार को छुपाने में पूरी तरह नाकाम था। नीतू के टॉप में से उसके स्तन ऐसे उभरे हुए दिख रहे थे जैसे दो बड़े पहाड़ उसकी छाती पर विराजमान हों।

नीतू ने निचे घाघरा सा खुबसुरत नक्शबाजी वाला लंबा फैला हुआ मैक्सी स्कर्ट पहना था जो नीतू की एड़ियों तक था। नीतू ने अपने लम्बे घने बालों को घुमा कर कुछ क्लिपों में बाँध रखे थे। होठोँ पर हलकी लिपस्टिक उसके होठोँ का रसीलापन उजागर कर रही थी।

नीतू की लम्बी गर्दन और चाँद सा गोल चेहरा, जिस पर उसकी चंचल आँखें उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाती थी। नीतू की गाँड़ का उभार अतिशय रमणीय था। पतली कमर के निचे अचानक उदार फैलाव से वह सब मर्दो की आँखों के आकर्षण का केंद्र हुआ करता था। जब नीतू चलती थी तो उसकी गाँड़ का मटकना अच्छेअच्छों का पानी निकाल सकता था।

जब कभी थोडासा भी हवा का झोंका आता तो नितुका घाघरा नीतू के दोनों पाँव के बिच में घुस जाता और नीतू की दोनों जाँघों के बिच स्थित चूत कैसी होगी यह कल्पना कर अच्छे अच्छे मर्द का मुठ मारने का मन करता था। नीतू की जाँघें सीधी और लम्बी थीं। नीतू कोई भी भारतीय नारी से कुछ ज्यादा ही लम्बी होगी। उसकी लम्बाई के कारण नीतू का गठीला बदन भी एकदम पतला लगता था।

हम उम्र होने के अलावा एक दूसरे से पहली नजर से ही जातीय आकर्षण होने के कारण कुमार और नीतू दोनों एक दूसरे से कुछ अनौपचारिकता से बातें कर रहे थे। सुनीता को जो सुनाई दिया वह कुछ ऐसा था।

कुमार: "नीतू, आप गजब की ख़ूबसूरत हो।"

नीतू: "थैंक यू सर। आप भी तो हैंडसम हो!"

कुमार: "अरे कहाँ? अगर मैं आपको हैंडसम लगता तो आप मेरे करीब आने से क्यों झिझकतीं?"

नीतू: "क्या बात करते हैं? मैं आपके करीब ही तो हूँ।"

कुमार ने अपनी टांगों की नीतू की टांगों से मिलाया और बोला, "देखो हमारे बिच इतना बड़ा फासला है।"

नीतू: "फासला कहाँ है? आप की टाँगें मेरी टाँगों को टच तो कर रहीं हैं।"

कुमार: "सिर्फ टाँगें ही तो टच कर रहीं है। हमारे बदन तो दूर हैं ना?"

नीतू: "कमाल है, कप्तान साहब! अभी हमें मिले दो घंटे भी हुए नहीं और आप हमारे बदन एक दूसरे से मिलाने का ख्वाब देख रहे हो?"

कुमार: "क्यों भाई? क्या ख्वाब देखने पर की कोई पाबंदी है? और मान लो हमें मिले हुए एक दिन पूरा हो गया होता तो क्या होता?""

नीतू: "नहीं कप्तान साहब ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है। आप जरूर ख्वाब देखिये। जब ख्वाब ही देखने है तो कंजूसी कैसी? और जहां तक मिलने के एक दिन के बाद की बात है तो वह तो एक दिन बीतेगा तब देखेंगे। अभी तो सिर्फ शुरुआत है। अभी से इतनी बेसब्री क्यों?"

कुमार: "क्या मतलब?"

नीतू: "अरे जब ख्वाब ही देखने हैं तो फिर ख्वाब में सब कुछ ही देखिये। खाली बदन एक दूसरे से करीब आये यही क्यों रुकना भला? ख्वाब पर कोई लगाम लगाने की क्या जरुरत है? हाँ ख्वाब के बाहर जो असली दुनिया है, वहाँ सब्र रखना जरुरी है।"
 
कुमार: "मोहतरमा, आप कहना क्या चाहती हो? मैं ख्वाब में क्या देखूं? जहां तक सब्र का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ की मुझमें सब्र की कमी है।"

नीतू: "कमाल है कप्तान साहब! अब मुझे ही बताना पडेगा की आप ख्वाब में क्या देखो? भाई देश आजाद है। जो देखना हो वह ख्वाब में देख सकते हो। मुझे क्या पता आप ख्वाब में क्या देखना चाहते हो? पर ख्वाब की दुनिया और असलियत में फर्क होता है।"

कुमार: "मैं बताऊँ मैं ख्वाब में क्या देखना चाहता हूँ?''

नीतू: "फिर वही बात? भाई जो देखना चाहो देखो। बताओ, क्या देखना चाहते हो?"

कुमार: "अगर मैं सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नहीं मानोगे?"

नीतू: "कमाल है! आप ख्वाब देखो तो उसमें मुझे बुरा मानने की क्या बात है? कहते हैं ना, की नींद तुम्हारी ख्वाब तुम्हारे। बताओ ना क्या ख्वाब देखना चाहते हो?"

कुमार: "हाँ यह तो सही कहा आपने। तो मैं ख्वाब देखना चाहता हूँ की आप मेरी बाँहों में हो और मैं आपको खूब प्यार कर रहा हूँ।"

नीतू: "अरे! अभी तो हम ढंग से मिले भी नहीं और आप मुझे बाँहों में ले कर प्यार करने के ख्वाब देखने लगे?"

कुमार: "आपने ही तो कहा था की ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है? जहां तक ढंग से मिलने का सवाल है तो बताइये ना हम कैसे ढंग से मिल सकते हैं?"

नीतू: "ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना, एक दूसरे की ख़ुशी और भले के लिए कुछ बलिदान करना, बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।"

कुमार: "क्या आप सोच समझ कर ख्वाब देखते हो? क्या ख्वाब पर हमारा कोई कण्ट्रोल होता है क्या?"

नीतू कुमार की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिखाई पड़ी। नीतू की आँखें कुछ गीली से हो गयीं। कुमार को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह नीतू को चुपचाप देखता रहा। सुनीता के चेहरे पर मायूसी देख कर कुमार ने कहा, "मुझे माफ़ करना नीतूजी, अगर मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आपको कोई दुःख हुआ हो। मैं आपको किसी भी तरह का दुःख नहीं देना चाहता।"

नीतू ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "नहीं कप्तान साहब ऐसी कोई बात नहीं। जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जिन्हें आपको झेलना ही पड़ता है और उन्हें स्वीकार कर चलने में ही सबकी भलाई है।"

कुमार: "नीतूजी, पहेलियाँ मत बुझाइये। कहिये क्या बात है।"

नीतू ने बात को मोड़ देकर कुमार के सवाल को टालते हुए कहा, "कप्तान साहब मैं आपसे छोटी हूँ। आप मुझे नीतूजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम नीतू है और मुझे आप नीतू कह कर ही बुलाइये।"

नीतू ने फिर अपने आपको सम्हाला। थोड़ा सा सोचमें पड़ने के बाद नीतू ने शायद मन ही मन फैसला किया की वह कुमार को अपनी असलियत (की वह शादी शुदा है) उस वक्त नहीं बताएगी।

कुमार: "तो फिर आप भी सुनिए। आप मुझे कप्तान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम कुमार है। आप मुझे सिर्फ कुमार कह कर ही बुलाइये।"
 
नीतू का मन डाँवाडोल हो रहा था। वह कुमार के साथ आगे बढे या नहीं? पति (ब्रिगेडियर साहब) ने तो उसे इशारा कर ही दिया था की नीतू को अगर कहीं कुछ मौक़ा मिले तो उसे चोरी छुपी शारीरिक भूख मिटाने से उनको कोई आपत्ति नहीं होगी, बशर्ते की सारी बात छिपी रहे। नीतू के लिए यह अनूठा मौक़ा था। उसका मनपसंद हट्टाकट्टा हैंडसम नवयुवक उसे ललचा कर, फाँस कर, उससे शारीरिक सम्बन्ध बनानेकी ने भरसक कोशिश में जुटा हुआ था।

अब नीतू पर निर्भर था की वह अपना सम्मान बनाये रखते हुए उस युवक को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे या नहीं। नीतू ने सोचा यह पहली बार हुआ था की इतना हैंडसम युवक उसे ललचा कर फाँसने की कोशिश कर रहा था। पहले भी कई युवक नीतू को लालच भरी नजर से तो देखते थे, पर किसीभी ऐसे हैंडसम युवक ने आगे बढ़कर उसके करीब आकर उसे ललचाने की इतनी भरसक कोशिश नहीं की थी।

फिर भी भला वह कैसे अपने आप आगे बढ़ कर किसी युवक को कहे की "आओ और मेरी शारीरिक भूख मिटाओ?" आखिर वह भी तो एक मानिनी भारतीय नारी थी। उसे भी तो अपना सम्मान बनाये रखना था।

काफी सोचने के बाद नीतू ने तय किया की जब मौक़ा मिला ही है तो क्यों ना उसका फायदा उठाया जाए? यह मौक़ा अगर चला गया तो फिर तो उसे अपने हाथोँ की उँगलियों से ही काम चलाना पड़ेगा। एक दिन की चाँदनी आयी है फिर तो अँधेरी रात है ही।

नीतू ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "कप्तान साहब, सॉरी कुमारजी, शायद आप ख्वाब और असलियत का फर्क नहीं समझते।"

कुमार ने आगे बढ़कर नीतू का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? मैं तो नौसिखिया हूँ।"

जैसे ही कुमार ने नीतू का हाथ थामा तो नीतू के पुरे बदन में एक बिजली सी करंट मार गयी। नीतू के रोंगटे खड़े हो गए। उस दिन तक ब्रिगेडियर साहब को छोड़ किसीने भी नीतू का हाथ इस तरह नहीं थामा था। नीतू हमेशा यह सपना देखती रहती थी कोई हृष्टपुष्ट युवक उसको अपनी बाँहों में थाम कर उसको गहरा चुम्बन कर, उसकी चूँचियों को अपने हाथ में मसलता हुआ उसे निर्वस्त्र कर उसकी चुदाई कर रहा है।

नीतू को अक्सर सपने में वही युवक बारबार आता था और नीतू का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार नीतू ने महसूस किया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर उसे उत्तेजना और उन्माद के सातवे आसमान पर उठा लेता था।

नीतू ने ध्यान से देखा तो उसे लगा की कहीं ना कहीं कुमार की शक्ल और उसका बदन भी वही युवक जैसा था।

कुमार ने देखा की जब उसने नीतू का हाथ थामा और नीतू ने उसका कोई विरोध नहीं किया और नीतू अपने ही विचारो में खोयी हुई कुमार के चेहरे की और एकटक देख रही थी, तब उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। उसने नीतू को अपनी और खींचते हुए कहा, "क्या देख रही हो, नीतू? क्या मैं भद्दा और डरावना दिखता हूँ? क्या मुझमें तुम्हें कोई बुराई नजर आ रही है?"

नीतू अपनी तंद्रा से जाग उठी और कुमार की और देखती हुई बोली, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, क्यों?"

कुमार: "देखो, सब सो रहे हैं। हम जोर से बात नहीं कर सकते। तो फिर मेरे करीब तो बैठो। अगर मैं तुम्हें भद्दा और डरावना नहीं लगता और अगर हमारा पहला परिचय हो चुका है तो फिर इतना दूर बैठने की क्या जरुरत है?"

नीतू: "अरे कमाल है। भाई यह सीट ही ऐसी है। इसके रहते हुए हम कैसे साथ में बैठ सकते हैं? यह बर्थ तो पहले से ही ऐसी रक्खी हुई थी। मैंने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"

कुमार: "तो फिर मैं उसे नीचा कर देता हूँ अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो?" ऐसा कह कर बिना नीतू की हाँ का इंतजार किये कुमार उठ खड़ा हुआ और उसने बर्थ को निचा करना चाहा। मज़बूरी में नीतू को भी उठना पड़ा। कुमार ने बर्थ को बिछा दिया और उसके ऊपर चद्दर बिछा कर नीतू को पहले बैठने का इशारा किया।
 
नीतू ने हलके से अपने कूल्हे बर्थ पर टिकाये तो कुमार ने उसे हल्का सा अपने करीब खिंच कर कहा, "भाई ठीक से तो बैठो। आखिर हमें काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।"

नीतू और खिसक कर ठीक कुमार के करीब बैठी। उसने महसूस किया की उसकी जाँघें कुमार की जाँघों से घिस रहीं थीं। कम्पार्टमेंट का तापमान काफी ठंडा हो रहा था। कुमार ने धीरे से नीतू को अपने और करीब खींचा तो नीतू ने उसका विरोध करते हुए कहा, "क्या कर रहे हो? कोई देखेगा तो क्या कहेगा?"

कुमार समझ गया की उसे नीतू ने अनजाने में ही हरी झंडी दे दी थी। नीतू ने कुमार का उसे अपने करीब खींचने का विरोध नहीं किया, उस पर कोई आपत्ति नहीं जताई; बल्कि कोई देख लेगा यह कह कर उसे रोका था। यह इशारा कुमार के लिए काफी था। कुमार समझ गया की नीतू मन से कुमार के करीब आना चाहती थी पर उस को यह डर था की कहीं उन्हें कोई देख ना ले।"

कुमार ने फ़ौरन खड़े हो कर पर्दों को फैला कर बंद कर दिया जिससे उन तो बर्थ पूरी तरह से परदे के पीछे छिप गयी। अब कोई भी बिना पर्दा हटाए उन्हें देख नहीं सकता था। जब नीतू ने देखा की कुमार ने उन्हें परदे के पीछे ढक दिया तो वह बोल पड़ी, "कुमार यह क्या कर रहे हो?"

कुमार: " मैं वही कर रहा हूँ जो आप चाहते हो। आपही ने तो कहा की कहीं कोई देख ना ले। अब हमें कोई नहीं देख सकता। बोलो अब तो ठीक है?" नीतू क्या बोलती? उसने चुप रहना ही ठीक समझा।

नीतू को महसूस हुआ की उसकी जाँघों के बिच में से उसका स्त्री रस चुने लगा था। उसकी निप्पलेँ फूल कर बड़ी हो गयीं थीं। नीतू अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। उस पर कुछ अजीब सा नशा छा रहा था। नीतू को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था। जो आजतक उसने अनुभव नहीं किया था वह सब हो रहा था।

कुमार ने देखा की उसकी जोड़ीदार कुछ असमंजस में थी तो कुमार ने नीतू को अपनी और करीब खींचा और नीतू के कूल्हों के निचे अपने दोनों हाथ घुसा कर नीतू को ऊपर की और उठाया और उसे अपनी गोद में बिठा दिया।

जैसे ही कुमार ने नीतू को अपनी गोद में बिठाया की नीतू मचलने लगी। नीतू ने महसूस किया की कुमार का लण्ड उसकी गाँड़ को टोंच रहा था। उसकी गाँड़ की दरार में वह उसके कपड़ों के उस पार ऐसी ठोकर मार रहा था की नीतू जान गयी की कुमार का लण्ड काफी लंबा, मोटा और बड़ा था और एकदम कड़क हो कर खड़ा हुआ था।

नीतू से अब यह सब सहा नहीं जा रहा था। नीतू की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत में से रिस रहा पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था। उसे यह डर था की कहीं उसकी पेंटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे, जिससे कुमार को नीतू की हालत का पता लग जाए। साथ साथ नीतू को अपनी मर्यादा भी तो सम्हालनी थी।

हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति से कोई परेशानी नहीं होगी, पर फिर भी नीतू एक मानिनी शादीशुदा औरत थी। अगर इतनी आसानी से फँस गयी तो फिर क्या मजा? आसानी से मिली हुई चीज़ की कोई कीमत नहीं होती। थोड़ा कुमार को भी कुछ ज्यादा महेनत, मिन्नत और मशक्कत करनी चाहिए ना?
 
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