desiaks
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खैर सुनीलजी बर्थ से निचे उतरे और अपनी चप्पल ढूंढने लगे।
सुनील जी को जल्दी ही अपने चप्पल मिल गए और वह तेज चलती हुई, और हिलती हुई गाडी में अपना संतुलन बनाये रखने के लिए कम्पार्टमेंट के हैंडल बगैरह का सहारा लेते हुए डिब्बे के एक तरफ वाले टॉयलेट की और बढ़ गए। उनके जाते ही सुनीता और जस्सूजी दोनों की जान में जान आयी। सुनीता को तो ऐसा लगा की जैसे मौतसे भेंट तो हुई पर जान बच गयी।
जैसे ही सुनीलजी आँखों से ओझल हुए की जस्सूजी फ़ौरन उठकर फुर्ती से बड़ी चालाकी से कम्पार्टमेंट की दूसरी तरफ जिस तरफ सुनीलजी नहीं गए थे उस तरफ टॉयलेट की और चल पड़े।
सुनीता ने फ़ौरन अपने कपडे ठीक किये और अपना सर ठोकती हुई सोने का नाटक करती लेट गयी। आज माँ ने ही उसकी लाज बचाई ऐसा उसे लगा। थोड़ी ही देर में पहले सुनील जी टॉयलेट से वापस आये। उन्होंने अपनी पत्नी सुनीता को हिलाया और उसे जगाने की कोशिश की। सुनीता तो जगी हुई ही थी। फिर भी सुनीता ने नाटक करते हुए आँखें मलते हुए धीरे से पूछा, "क्या है?"
सुनीलजी ने एकदम सुनीता के कानों में अपना मुंह रख कर धीमी आवाज में कहा, "अपना वादा भूल गयी? आज हमने ट्रैन में रात में प्यार करने का प्रोग्राम जो बनाया था?"
सुनीता ने कहा, "चुपचाप अपनी बर्थ पर लेट जाओ। कहीं जस्सूजी जग ना जाएँ।"
सुनीलजी ने कहा, "जस्सूजी तो टॉयलेट गए हैं। अब तुमने वादा किया था ना? पूरा नहीं करोगी क्या?"
सुनीता ने कहा, "ठीक है। जब जस्सूजी वापस आजायें और सो जाएँ तब आ जाना।"
सुनीलजी ने खुश हो कर कहा, "तुम सो मत जाना। मैं आ जाऊंगा।"
सुनीता ने कहा, "ठीक है बाबा। अब थोड़ी देर सो भी जाओ। फिर जब सब सो जाएँ तब आना और चुपचाप मेरे बिस्तर में घुस जाना, ताकि किसी को ख़ास कर ज्योतिजी और जस्सूजी को पता ना चले।"
सुनील ने खुश होते हुए कहा, "ठीक है। बस थोड़ी ही देर में।" ऐसा कहते हुए सुनीलजी अपनी बर्थ पर जाकर जस्सूजी के लौटने का इंतजार करने लगे। सुनीता मन ही मन यह सब क्या हो रहा था इसके बारे में सोचने लगी।
यहां देखिये, क्या हो रहा है? यहां तो एक कामिनी कामुक स्त्री नीतू चाहती थी की कप्तान कुमार उसे ललचाये और उससे सम्भोग करे। कप्तान कुमार के नीतू की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान करने तक के जाँबाज़ करतब से वह इतनी पूर्णतया अभिभूत हो गयी थी की वह खुद सामने चलकर अपना कामाग्नि कप्तान कुमार से कुछ हद तक शांत करवाना चाहती थी। वह अपना शील और अपनी इज्जत कप्तान कुमार को सौंपना चाहती थी।
पर कप्तान कुमार तो गहरी नींद में सोये हुए लग रहे थे। ऊपर की बर्थ में लेटी हुई कामाग्नि लिप्त कामिनी नीतू, कुमार से अभिसार करने के लिए उन की पहल का इंतजार कर रही थी, या यूँ कहिये की तड़प रही थी। पहले जो बड़ी मानिनी बन कर कुमार की पहल को नकार रही थी वह खुद अब अपनी बदन में भड़क रही काम की ज्वाला को कुमार के बदन से मिला कर संतृप्त करना चाह रही थी।
पर आखिर कामिनी भी मानिनी तो है ही ना? मानिनी कितनी ही कामातुर क्यों ना हो, वह अपना मानिनी रूप नहीं छोड़ सकती। वह चाहती है की पुरुष ही पहल करे। जब कुमार से कोई पर्याप्त पहल नहीं हुई तो व्याकुल कामिनी ने अपनी चद्दर का एक छोर जानबूझ कर निचे की और सरका दिया। उसने कुमार को एक मौक़ा दिया की कुमार उसे खिंच कर इशारा दे और उसे निचे अपनी बर्थ पर बुलाले। तब फिर कामिनी का मानिनीपन भी पूरा हो जाएगा और वह कुमार पर जैसे मेहरबानी कर उसे अपना बदन सौंप देगी।
पर काफी समय व्यतीत होने पर भी कुमार की और से कोई इशारा नहीं हुआ। समय बीतता जाता था। नीतू को बड़ा गुस्सा आ रहा था। यह क्या बात हुई की उसे रात को आने का न्योता दे कर खुद सो गए? नीतू ने अपनी निचे खिसकाई हुई चद्दर ऊपर की और खिंच ली और करवट बदल कर चद्दर ओढ़ कर सो गयी।
पर नीतू की आँखों में नींद कहाँ? वह तो जागते हुए कुमार के साथ अभिसार (चुदाई)के सपने देख रही थी। नीतू का मन यह सोच रहा था की जिसका शरीर इतना कसा हुआ और जो इतने अच्छे खासे कद का था ऐसे जाबाँझ सिपाही का लण्ड कैसा होगा? जब कुमार के हाथ नीतू की चूँचियों को छुएंगे और उन्हें दबाने और मसलने लगेंगे तो नीतू का क्या हाल होगा? जब ऐसे जवान का हाथ नीतू की चूत पर उसकी हलकी झाँट पर फिरने लगेगा तो क्या नीतू अपनी कराहट रोक पाएगी?
नीतू की चूत यह सोच कर इतनी गीली हो रही थी की उसके लिए अब और इंतजार करना नामुमकिन सा लग रहा था।
नीतू का मन जब ऐसे विचारों में डूबा हुआ ही था की उसे अचानक कुछ हलचल महसूस हुई। नीतू ने थोड़ा सा पर्दा हटा कर देखा तो पाया की सुनीलजी अपनी बर्थ से निचे उतर रहे थे। नीतू को मन में कहीं ना कहीं ऐसा अंदेशा हुआ की कुछ ना कुछ तो होने वाला था। उसने परदे का एक कोना सिर्फ इतना ही हटाया की उसमें से वह देख सके।
नीतू ने देखा की सुनीलजी शायद अपनी चप्पल ढूंढ रहे थे। थोड़ी ही देर में नीतू ने देखा की सुनीलजी वाशरूम की और चल दिए। नीतू को यह देख कुछ निराशा हुई। वह सोच रही थी की सुनील जी शायद निचे की बर्थ पर लेटी हुई दो में से एक स्त्री के साथ सोने जा रहे थे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। नीतू के मन में पहले ही कुछ शक था की वह दोनों जोड़ियाँ एक दूसरे के प्रति कुछ ज्यादा ही रूमानी लग रही थीं।
खैर, नीतू दुखी मन से पर्दा धीरे से खिंच कर बंद करने वाली ही थी की उसके मुंह से आश्चर्य की सिसकारी निकलते निकलते रुक गयी। नीतू ने ऊपर की बर्थ पर लेटे हुए कर्नल साहब की परछाईं सी आकृति को निचे की बर्थ पर लेटी हुई सुनीताजी के बिस्तर में से अफरातफरी में बाहर निकलते हुए देखा। नीतू की तो जैसे साँसे ही रुक गयी। अरे? सुनीताजी जो नीतू को दोपहर कुमार के बारे में पाठ पढ़ा रही थीं, उनके बिस्तर में कर्नल अंकल? कर्नल साहब कब सुनीता जी के बिस्तर में घुस गए? कितनी देर तक कर्नल साहब सुनीताजी के बिस्तर में थे? यह सवाल नीतू के दिमाग में घूमने लगे।
नीतू का माथा ही ठनक गया। क्या सुनीताजी चलती ट्रैन में ज्योतिजी के पति कर्नल साहब से चुदवा रही थीं? एक पुरुष का एक स्त्री के साथ एक ही बिस्तर में से इस तरह अफरातफरी में बाहर निकलना एक ही बात की और इशारा करता था की कर्नल साहब सुनीताजी की चुदाई कर रहे थे। और वह भी तब जब सुनीताजी के पति सामने की ही ऊपर की बर्थ में सो रहे थे? और फिर वह सुनीता जी के बिस्तर में से बाहर निकल कर दूसरी और भाग खड़े हुए तब जब सुनीताजी के पति अपनी बर्थ से निचे उतर वाशरूम की और चल दिए थे।
सुनील जी को जल्दी ही अपने चप्पल मिल गए और वह तेज चलती हुई, और हिलती हुई गाडी में अपना संतुलन बनाये रखने के लिए कम्पार्टमेंट के हैंडल बगैरह का सहारा लेते हुए डिब्बे के एक तरफ वाले टॉयलेट की और बढ़ गए। उनके जाते ही सुनीता और जस्सूजी दोनों की जान में जान आयी। सुनीता को तो ऐसा लगा की जैसे मौतसे भेंट तो हुई पर जान बच गयी।
जैसे ही सुनीलजी आँखों से ओझल हुए की जस्सूजी फ़ौरन उठकर फुर्ती से बड़ी चालाकी से कम्पार्टमेंट की दूसरी तरफ जिस तरफ सुनीलजी नहीं गए थे उस तरफ टॉयलेट की और चल पड़े।
सुनीता ने फ़ौरन अपने कपडे ठीक किये और अपना सर ठोकती हुई सोने का नाटक करती लेट गयी। आज माँ ने ही उसकी लाज बचाई ऐसा उसे लगा। थोड़ी ही देर में पहले सुनील जी टॉयलेट से वापस आये। उन्होंने अपनी पत्नी सुनीता को हिलाया और उसे जगाने की कोशिश की। सुनीता तो जगी हुई ही थी। फिर भी सुनीता ने नाटक करते हुए आँखें मलते हुए धीरे से पूछा, "क्या है?"
सुनीलजी ने एकदम सुनीता के कानों में अपना मुंह रख कर धीमी आवाज में कहा, "अपना वादा भूल गयी? आज हमने ट्रैन में रात में प्यार करने का प्रोग्राम जो बनाया था?"
सुनीता ने कहा, "चुपचाप अपनी बर्थ पर लेट जाओ। कहीं जस्सूजी जग ना जाएँ।"
सुनीलजी ने कहा, "जस्सूजी तो टॉयलेट गए हैं। अब तुमने वादा किया था ना? पूरा नहीं करोगी क्या?"
सुनीता ने कहा, "ठीक है। जब जस्सूजी वापस आजायें और सो जाएँ तब आ जाना।"
सुनीलजी ने खुश हो कर कहा, "तुम सो मत जाना। मैं आ जाऊंगा।"
सुनीता ने कहा, "ठीक है बाबा। अब थोड़ी देर सो भी जाओ। फिर जब सब सो जाएँ तब आना और चुपचाप मेरे बिस्तर में घुस जाना, ताकि किसी को ख़ास कर ज्योतिजी और जस्सूजी को पता ना चले।"
सुनील ने खुश होते हुए कहा, "ठीक है। बस थोड़ी ही देर में।" ऐसा कहते हुए सुनीलजी अपनी बर्थ पर जाकर जस्सूजी के लौटने का इंतजार करने लगे। सुनीता मन ही मन यह सब क्या हो रहा था इसके बारे में सोचने लगी।
यहां देखिये, क्या हो रहा है? यहां तो एक कामिनी कामुक स्त्री नीतू चाहती थी की कप्तान कुमार उसे ललचाये और उससे सम्भोग करे। कप्तान कुमार के नीतू की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान करने तक के जाँबाज़ करतब से वह इतनी पूर्णतया अभिभूत हो गयी थी की वह खुद सामने चलकर अपना कामाग्नि कप्तान कुमार से कुछ हद तक शांत करवाना चाहती थी। वह अपना शील और अपनी इज्जत कप्तान कुमार को सौंपना चाहती थी।
पर कप्तान कुमार तो गहरी नींद में सोये हुए लग रहे थे। ऊपर की बर्थ में लेटी हुई कामाग्नि लिप्त कामिनी नीतू, कुमार से अभिसार करने के लिए उन की पहल का इंतजार कर रही थी, या यूँ कहिये की तड़प रही थी। पहले जो बड़ी मानिनी बन कर कुमार की पहल को नकार रही थी वह खुद अब अपनी बदन में भड़क रही काम की ज्वाला को कुमार के बदन से मिला कर संतृप्त करना चाह रही थी।
पर आखिर कामिनी भी मानिनी तो है ही ना? मानिनी कितनी ही कामातुर क्यों ना हो, वह अपना मानिनी रूप नहीं छोड़ सकती। वह चाहती है की पुरुष ही पहल करे। जब कुमार से कोई पर्याप्त पहल नहीं हुई तो व्याकुल कामिनी ने अपनी चद्दर का एक छोर जानबूझ कर निचे की और सरका दिया। उसने कुमार को एक मौक़ा दिया की कुमार उसे खिंच कर इशारा दे और उसे निचे अपनी बर्थ पर बुलाले। तब फिर कामिनी का मानिनीपन भी पूरा हो जाएगा और वह कुमार पर जैसे मेहरबानी कर उसे अपना बदन सौंप देगी।
पर काफी समय व्यतीत होने पर भी कुमार की और से कोई इशारा नहीं हुआ। समय बीतता जाता था। नीतू को बड़ा गुस्सा आ रहा था। यह क्या बात हुई की उसे रात को आने का न्योता दे कर खुद सो गए? नीतू ने अपनी निचे खिसकाई हुई चद्दर ऊपर की और खिंच ली और करवट बदल कर चद्दर ओढ़ कर सो गयी।
पर नीतू की आँखों में नींद कहाँ? वह तो जागते हुए कुमार के साथ अभिसार (चुदाई)के सपने देख रही थी। नीतू का मन यह सोच रहा था की जिसका शरीर इतना कसा हुआ और जो इतने अच्छे खासे कद का था ऐसे जाबाँझ सिपाही का लण्ड कैसा होगा? जब कुमार के हाथ नीतू की चूँचियों को छुएंगे और उन्हें दबाने और मसलने लगेंगे तो नीतू का क्या हाल होगा? जब ऐसे जवान का हाथ नीतू की चूत पर उसकी हलकी झाँट पर फिरने लगेगा तो क्या नीतू अपनी कराहट रोक पाएगी?
नीतू की चूत यह सोच कर इतनी गीली हो रही थी की उसके लिए अब और इंतजार करना नामुमकिन सा लग रहा था।
नीतू का मन जब ऐसे विचारों में डूबा हुआ ही था की उसे अचानक कुछ हलचल महसूस हुई। नीतू ने थोड़ा सा पर्दा हटा कर देखा तो पाया की सुनीलजी अपनी बर्थ से निचे उतर रहे थे। नीतू को मन में कहीं ना कहीं ऐसा अंदेशा हुआ की कुछ ना कुछ तो होने वाला था। उसने परदे का एक कोना सिर्फ इतना ही हटाया की उसमें से वह देख सके।
नीतू ने देखा की सुनीलजी शायद अपनी चप्पल ढूंढ रहे थे। थोड़ी ही देर में नीतू ने देखा की सुनीलजी वाशरूम की और चल दिए। नीतू को यह देख कुछ निराशा हुई। वह सोच रही थी की सुनील जी शायद निचे की बर्थ पर लेटी हुई दो में से एक स्त्री के साथ सोने जा रहे थे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। नीतू के मन में पहले ही कुछ शक था की वह दोनों जोड़ियाँ एक दूसरे के प्रति कुछ ज्यादा ही रूमानी लग रही थीं।
खैर, नीतू दुखी मन से पर्दा धीरे से खिंच कर बंद करने वाली ही थी की उसके मुंह से आश्चर्य की सिसकारी निकलते निकलते रुक गयी। नीतू ने ऊपर की बर्थ पर लेटे हुए कर्नल साहब की परछाईं सी आकृति को निचे की बर्थ पर लेटी हुई सुनीताजी के बिस्तर में से अफरातफरी में बाहर निकलते हुए देखा। नीतू की तो जैसे साँसे ही रुक गयी। अरे? सुनीताजी जो नीतू को दोपहर कुमार के बारे में पाठ पढ़ा रही थीं, उनके बिस्तर में कर्नल अंकल? कर्नल साहब कब सुनीता जी के बिस्तर में घुस गए? कितनी देर तक कर्नल साहब सुनीताजी के बिस्तर में थे? यह सवाल नीतू के दिमाग में घूमने लगे।
नीतू का माथा ही ठनक गया। क्या सुनीताजी चलती ट्रैन में ज्योतिजी के पति कर्नल साहब से चुदवा रही थीं? एक पुरुष का एक स्त्री के साथ एक ही बिस्तर में से इस तरह अफरातफरी में बाहर निकलना एक ही बात की और इशारा करता था की कर्नल साहब सुनीताजी की चुदाई कर रहे थे। और वह भी तब जब सुनीताजी के पति सामने की ही ऊपर की बर्थ में सो रहे थे? और फिर वह सुनीता जी के बिस्तर में से बाहर निकल कर दूसरी और भाग खड़े हुए तब जब सुनीताजी के पति अपनी बर्थ से निचे उतर वाशरूम की और चल दिए थे।