DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन - Page 7 - SexBaba
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DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन

नीतू से अब यह सब सहा नहीं जा रहा था। नीतू की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत में से रिस रहा पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था। उसे यह डर था की कहीं उसकी पेंटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे, जिससे कुमार को नीतू की हालत का पता लग जाए। साथ साथ नीतू को अपनी मर्यादा भी तो सम्हालनी थी।

हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति से कोई परेशानी नहीं होगी, पर फिर भी नीतू एक मानिनी शादीशुदा औरत थी। अगर इतनी आसानी से फँस गयी तो फिर क्या मजा? आसानी से मिली हुई चीज़ की कोई कीमत नहीं होती। थोड़ा कुमार को भी कुछ ज्यादा महेनत, मिन्नत और मशक्कत करनी चाहिए ना?

नीतू ने तय किया की अब उसे कुमार को रोकना ही होगा। मन ना मानते हुए भी नीतू उठ खड़ी हुई। उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए कुमार को कहा, "बस कुमार। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।" नीतू से कुमार को यह नहीं कहा गया की कुमार का यह सब कार्यकलाप उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नीतू ने कुमार को साफ़ साफ़ मना भी नहीं किया।

नीतू अपनी बर्थ से उठ कर गैलरी में चल पड़ी। सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा की नीतू कम्पार्टमेंट के दरवाजे की और बढ़ने लगी थी और उसके पीछे कुमार भी उठ खड़ा हुआ और नीतू के पीछे पीछे जाने लगा। सुनीता से रहा नहीं गया। सुनीता ने हलके से जस्सूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बर्थ पर रख दिए। जस्सूजी गहरी नींद सो रहे थे। सुनीता ने जस्सूजी के बदन पर पूरी तरह से कम्बल और चद्दर ओढ़ाकर वह स्वयं उठ खड़ी हुई और कुमार और नीतू की हरकतें देखने उनके पीछे चल पड़ी।

नीतू आगे भागकर कम्पार्टमेंट के शीशे के दरवाजे के पास जा पहुंची थी। कुमार भी उसके पीछे नीतू को लपक ने के लिए उसके पीछे भाग कर दरवाजे के पास जा पहुंचा था। सुनीता ने देखा की कुमार ने भाग कर नीतू को लपक कर अपनी बाँहों में जकड लिया और उसके मुंह पर चुम्बन करने की कोशिश करने लगा। नीतू भी शरारत भरी हुई हँसी देती हुई कुमार से अपने मुंह को दूर ले जा रही थी।

फिर उससे छूट कर नीतू ने कुमार को अँगुठे से ठेंगा दिखाया और बोली, "इतनी आसानी से तुम्हारे चंगुल में नहीं फँस ने वाली हूँ मैं। तुम फौजी हो तो मैं भी फौजी की बेटी हूँ। हिम्मत है तो पकड़ कर दिखाओ।"

और क्या था? कुमार को तो जैसे बना बनाया निमंत्रण मिल गया। उसने जब भाग कर नीतू को पकड़ ना चाहा तो नीतू कूद कर कम्पार्टमेंट का शीशे का दरवाजा खोलकर वहाँ पहुंची जो हिस्सा ऐयर-कण्डीशण्ड नहीं होता। जहां टॉयलेट बगैरह होते हैं। पीछे पीछे कुमार भी भाग कर पहुंचा और नीतू को लपक कर पकड़ना चाहा। नीतू दरवाजे की और भागी। दुर्भाग्य से दरवाजा खुला था। वहाँ फर्श पर कुछ दही या अचार जैसा फिसलन वाला पदार्थ बिखरा हुआ था। नीतू का पाँव फिसल गया। वह लड़खड़ायी और गिर पड़ी। उस के दोनों पाँव खुले दरवाजे से फिसल कर तेज चल रही ट्रैन के बाहर लटक गए।

कुमार ने फुर्ती से लपक कर ट्रैन के बाहर फिसलकर गिरती हुई नीतू के हाथ पकड़ लिए। नीतू के पाँव दरवाजे के बाहर निचे खुली हवा में पायदानों पर लटक रहे थे। वह जोर जोर से चिल्ला रही थी, "बचाओ बचाओ। कुमार प्लीज मुझे मत छोड़ना।"

कुमार कह रहे थे, "नहीं छोडूंगा, पर तुम मेरा हाथ कस के थामे रखना। कुछ नहीं होगा। बस हाथ कस के पकड़ रखना।"

नीतू कुमार के हाथोँ के सहारे टिकी हुई थी। कुमार के पाँव भी उसी चिकनाहट पर थे। वह अपने को सम्हाल नहीं पाए और चिकनाहट पर पाँव फिसलने के कारण गिर पड़े। कुमार के कमर और पाँव कोच के अंदर थे और उनका सर समेत शरीर का ऊपरी हिस्सा दरवाजे के बाहर था। चूँकि उन्होंने नीतू के हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ रखे थे, इस लिए वह किसी भी चीज़ का सहारा नहीं ले सकते थे और अपने बदन को फिसल ने से रोक नहीं सकते थे।

कुमार ने अपने पाँव फैला कर अपने बदन को बाहर की और फिसलने से रोकना चाहा। पर सहारा ना होने और फर्श पर फैली हुई चिकनाहट के कारण उसका बदन भी धीरे धीरे दरवाजे के बाहर की और खिसकता जा रहा था। पीछे ही सुनीता आ रही थी। उसने यह दृश्य देखा तो उसकी जान हथेली में आ गयी। कुछ ही क्षण की बात थी की नीतू और कुमार दोनों ही तेज गति से दौड़ रही ट्रैन के बाहर तेज हवा के कारण उड़कर फेंक दिए जाएंगे।

सुनीता ने भाग कर फिसल रहे कुमार के पाँव कस के पकडे और अपने दो पाँव फैला कर कोच के कोनों पर अपने पाँव टिका कर कुमार के शरीर को बाहर की और फिसलने से रोकने की कोशिश करने लगी। कुमार नीतू के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर अपनी जान की बाजी लगा कर उसे बाहर फेंके जाने से रोकने की भरसक कोशिश में लगा हुआ था।
 
तेज हवा और गाड़ी की तेज गति के कारण नीतू पूरी तरह दरवाजे के बाहर जैसे उड़ रही थी। कुमार ने पूरी ताकत से नीतू के दोनों हाथ अपने दोनों हाथोँ में कस के पकड़ कर रखे थे। नीतू के पाँव हवा में झूल रहे थे। अक्सर नीतू का घाघरा खुल कर छाते की तरह फ़ैल कर ऊपर की और उठ रहा था। नीतू डिब्बे में से नीचे उतरने वाले पायदान पर अपने पाँव टिकाने की कोशिश में लगी हुई थी।

सुनीता जोर से "कोई है? हमें मदद करो" चिल्ला ने लगी। कुछ देर तक तो शीशे का दरवाजा बंद होने के कारण कर्नल साहब और सुनीलजी को सुनीता की चीखें नहीं सुनाई दी। पर किसी और यात्री के बताने पर सुनीता की चिल्लाहट सुनकर एकदम कर्नल साहब और सुनीलजी उठ खड़े हुए और भाग के सुनीता के पास पहुंचे। कर्नल साहब ने जोर से ट्रैन की जंजीर खींची।

इतनी तेजी से भाग रही ट्रैन एकदम कहाँ रूकती? ब्रेक की चीत्कार से सारा वातावरण गूँज उठा। ट्रैन काफी तेज रफ़्तार पर थी। नीतू को लगा की उसके जीवन का आखरी वक्त आ चुका था। उसे बस कुमार के हाथ का सहारा था। पर कुमार की भी हालत ऐसी थी की वह खुद फिसला जा रहा था। एक साथ दो जानें कभी भी जा सकतीं थीं।

कुमार ने अपने जान की परवाह ना करते हुए नीतू का हाथ नहीं छोड़ा। नीतू और कुमार के वजन के कारण सुनीता की पकड़ कमजोर हो रही थी। सुनीता कुमार के पाँव को ठीक तरह से पकड़ नहीं पा रही थी। कुमार के पाँव सुनीता के हाथोँ में से फिसलते जा रहे थे। ट्रैन की रफ़्तार धीरे धीरे कम हो रही थी पर फिर भी काफी थी।

अचानक सुनीता के हाथोँ में से कुमार के पाँव छूट गए। कुमार और नीतू दोनों देखते ही देखते ट्रैन के बाहर उछल कर निचे गिर पड़े। थोड़ी दूर जाकर ट्रैन रुक गयी।

नीतू लुढ़क कर रेल की पटरियों से काफी दूर जा चुकी थी। बाहर घाँस और रेत होने के कारण उसे कुछ खरोंचे और एक दो जगह पर कुछ थोड़ी गहरी चोट लगी थी। पर कुमार को पत्थर पर गिरने के कारण काफी घाव लगे थे और उसके सर से खून बह रहा था। निचे गिरने के बाद चोट के कारण कुमार कुछ पल बेहोश पड़े रहे।

ट्रैन रुकजाने पर कर्नल साहब और सुनीलजी के साथ कई यात्री निचे उतर कर कुमार और नीतू को पीछे की और ढूंढने भागे। कुछ दुरी पर उन्हें कुमार गिरे हुए मिले। कुमार रेल की पटरियों के करीब पत्थरों के पास बेहोश गिरे हुए पड़े थे। उनके सर से काफी खून बह रहा था। सुनीता भी उतर कर वहाँ पहुंची। उसने अपनी चुन्नी फाड़ कर कुमार के सर पर कस के बाँधी। कुछ देर बाद कुमार ने आँखें खोलीं।

कर्नल साहब कुमार को सुनीता के सहारे छोड़ और पीछे की और भागे और कुछ दुरी पर उन्हें नीतू दिखाई दी। नीतू और पीछे गिरी हुई थी। नीतू के कपडे फटे हुए थे पर उसे ज्यादा चोट नहीं आयी थी। वह उठ कर खड़ी थी और अपने आपको सम्हालने की कोशिश कर रही थी। उसका सर चकरा रहा था। वह कुमार को ढूंढने की कोशिश कर रही थी।

कर्नल साहब और कुछ यात्री ने गार्ड के पास रखे प्राथमिक सारवार की सामग्री और दवाइयों से कुमार और नीतू की चोटों पर दवाई लगाई और पट्टियां बाँधी और दोनों को उठाकर वापस ट्रैन में लाकर उनकी बर्थ पर रखा। सुनीता और ज्योतिजी उन दोनों की देखभाल करने में जुट गए। ट्रैन फिर से अपने गंतव्य की और जाने के लिए अग्रसर हुई।

नीतू काफी सम्हल चुकी थी। वह कुमार के पाँव के पास जा बैठी। उसने कुमार का हाल देखा तो उसकी आँखों में से आँसुओं की धार बहने लगी। कुमार ने अपने जान की परवाह ना करते हुए उसकी जान बचाई यह उसको खाये जा रहा था। कुमार बच गए यह कुदरत का कमाल था। तेज रफ़्तार से चलती ट्रैन में से पत्थर पर गिरने से इंसान का बचना लगभग नामुमकिन सा होता है।

पर कुमार ने फिर भी अपनी जान को जोखिम में डाल कर नीतू को बचाया यह नीतू के लिए एक अद्भुत और अकल्पनीय अनुभव था। उसने सोचा भी नहीं था की कोई इंसान अपनी जान दुसरेकी जान बचाने के लिए ऐसे जोखिम में डाल सकता था। सुनीता और ज्योति नीतू को ढाढस देकर यह समझा रहे थे की कुमार ठीक है और उसकी जान को कोई ख़तरा नहीं है।

कम्पार्टमेंट में एक डॉक्टर थे उन्होंने दोनों को चेक किया और कहा की उन दोनों को चोटें आयीं थी पर कोई हड्डी टूटी हो ऐसा नहीं लग रहा था। कुछ देर बाद कुमार बैठ खड़े हुए और इधर उधर देखने लगे। सर पर लगी चोट के कारण उन्हें कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी। उन्होंने नीतू को अपने पाँव के पास बैठे हुए और रोते हुए देखा।

कुमार ने झुक कर नीतू के हाथ थामे और कहा, "अब सब ठीक है। अब रोना बंद करो। मैंने तुम्हें कहा था ना, की सब ठीक हो जाएगा? हम भारतीय सेना के जवान हमेशा अपनी जान अपनी हथेली में लेकर घूमते हैं। चाहे देश की अस्मिता हो या देशवासी की जान बचानी हो। हम अपनी जान की बाजी लगा कर उन्हें बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। मैं बिलकुल ठीक हूँ तुम भी ठीक हो। अब जो हो गया उसे भूल जाओ और आगे की सोचो।"

थोड़ी देर बाद सुनीता और ज्योति अपनी बर्थ पर वापस चले गये। नीतू ने पर्दा फैला कर कुमार की बर्थ को परदे के पीछे ढक दिया। पहले तो वह कुमार के पर्दा फैलाने पर एतराज कर रही थी। पर अब वह खुद पर्दा फैला कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर ना जाकर निचे कुमार की बर्थ पर ही अपने पाँव लम्बे कर एक छोर पर बैठ गयी। नीतू ने कुमार को बर्थ पर अपने शरीर को लंबा कर लेटने को कहा। कुमार के पाँव को नीतू ने अपनी गोद में ले लिए और उनपर चद्दर बिछा कर वह कुमार के पाँव दबाने लगी।
 
नीतू के पाँव कुमार ने करवट लेकर अपनी बाहों में ले लिए और उन्हें प्यार से सहलाने लगा। देखते ही देखते कप्तान कुमार गहरी नींद में सो गये। धीरे धीरे नीतू की आँखें भी भारी होने लगीं। संकड़ी सी बर्थ पर दोनों युवा बदन एक दूसरे के बदन को कस कर अपनी बाहों में लिए हुए लेट गए। एक का सर दूसरे की पाँव के पास था। ट्रैन बड़ी तेज रफ़्तार से धड़ल्ले से फर्राटे मारती हुई भाग रही थी।

कुमार की चोटें गहरी थीं और शायद कोई हड्डी नहीं टूटी थी पर मांसपेशियों में काफी जख्म लगे थे और बदन में दर्द था। नीतू के कप्तान कुमार के बर्थ पर ही लम्बे होने से कुमार के बदन का कुछ हिस्सा दबा और दर्द होने के कारण कप्तान कुमार कराह उठे। नीतू एकदम बैठ गयी और उठ कर कुमार के पाँव के पास जा बैठी। कुमार के पाँव को अपनी गोद में रख कर उस पर कम्बल डालकर वह हल्के से कुमार के पाँव को सहलाने लगी।

नीतू की अपनी आँखें भी भारी हो रही थीं। नीतू बैठे बैठे ही कुमार के पाँव अपनी गोद में लिए हुए सो गयी।

नीतू के सोने के कुछ देर बाद नीतू के पति ब्रिगेडियर खन्ना नीतू को मिलने के लिए नीतू की बर्थ के पास पहुँचने वाले थे तब सुनीता ने उन्हें देखा। सुनीता को डर था की कहीं नीतू के पति नीतू को कुमार के साथ कोई ऐसी वैसी हरकत करते हुए देख ना ले इसलिए वह ब्रिगेडियर साहब को नमस्ते करती हुई एकदम उठ खड़ी हुई और जस्सूजी के पाँव थोड़े से खिसका कर सुनीता ने ब्रिगेडियर साहब को अपने पास बैठाया।

सुनीता ने ब्रिगेडियर खन्ना साहब से कहा की उस समय नीतू सो रही थी और उसे डिस्टर्ब करना ठीक नहीं था। सुनीता ने फिर ब्रिगेडियर खन्ना साहब को समझा बुझा कर अपने पास बैठाया और नीतू और कुमार के साथ घटी घटना के बारे में सब बताया। कैसे नीतू फिसल गयी फिर कुमार भी फिसले और कैसे कुमार ने नीतू की जान बचाई।

नीतू के पति ब्रिगेडियर खन्ना ने भी सुनीता को बताया की जब गाडी करीब एक घंटे तक कहीं रुक गयी थी तब उन्होंने किसी को पूछा की क्या बात हुई थी। तब उनके साथ वाली बर्थ बैठे जनाब ने उन्हें बताया की कोई औरत ट्रैन से निचे गिर गयी थी और कोई आर्मी के अफसर ने उसे बचाया था। उन्हें क्या पता था की वह वाक्या उनकी अपनी पत्नी नीतू के साथ ही हुआ था?

यह सब बातें सुनकर नीतू के पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब बड़े चिंतित हो गए और वह नीतू के पास जाने की जिद करने लगे तब सुनीता ने उन्हें रोकते हुए ब्रिगेडियर साहब को थोड़ी धीरज रखने को कहा और बाजू में सो रहे जस्सूजी को जगाया और ब्रिगेडियर खन्ना से बातचीत करने को कहा।

ब्रिगेडियर साहब जैसे ही जस्सूजी से घूम कर बात करने में लग गए की सुनीता उठखडी हुई और उसने परदे के बाहर से नीतू को हलके से पुकारा।

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नीतू को सोये हुए आधे घंटे से कुछ ज्यादा ही समय हुआ होगा की वह जागी तो नीतू ने पाया की कुमार की साँसे धीमी रफ़्तार से नियमित चल रही थीं। कभी कभार उनके मुंह से हलकी सी खर्राटे की आवाज भी निकलने लगी। नीतू को जब तसल्ली हुई की कुमार सो गए हैं तब उसने धीरे से अपने ऊपर से कम्बल हटाया और अपनी गोद में से कुमार का पाँव हटाकर निचे रखा।

नीतू ने कुमार के पाँव पर कम्बल ओढ़ा दिया और पर्दा हटा कर ऊपर अपनी बर्थ पर जाने के लिए उठने ही लगी थी की उसे परदे के उस पार सुनीता की आवाज सुनिए दी। उसको अपने पति ब्रिगेडियर खन्ना की भी आवाज सुनाई दी। नीतू हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई। उस ने पर्दा हटाया और सुनीता को देखा। सुनीता नीतू का हाथ पकड़ कर उसे ब्रिगेडियर साहब के पास ले गयी। सुनीता ने अपने पति ब्रिगेडियर साहब को देखा तो उनके चरण स्पर्श करने झुकी।

ब्रिगेडियर साहब ने अपनी पत्नी नीतू को उठाकर गले लगाया और पूछा, "नीतू बेटा (ब्रिगेडियर खन्ना कई बार प्यार से नीतू को अपनी पत्नी होने के बावजूद नीतू की कम उम्र के कारण उसे बेटा कह कर बुलाया करते थे।) मैंने अभी अभी इन (सुनीता की और इशारा करते हुए) से सूना की तुम ट्रैन के निचे गिर गयी थी? मेरी तो जान हथेली में आ गयी जब मैंने यह सूना। उस वक्त मैं गहरी नींद में था और मुझे किसीने बताया तक नहीं। मेरा कोच काफी पीछे है। मैंने यह भी सूना की कप्तान कुमार ने तुम्हें अपनी जान पर खेल कर बचाया? क्या यह सच है?"

ब्रिगेडियर खन्ना फिर अपनी पत्नी के बदन पर हलके से हाथ फिराते हुए बोले, "जानूं, तुम्हें ज्यादा चोट तो नहीं आयी ना?"

नीतू ने ब्रिगेडियर साहब की छाती में अपना सर लगा कर कहा, "हाँ जी यह बिलकुल सच है। मैं कप्तान कुमारजी के कारण ही आज ज़िंदा हूँ। मुझे चोट नहीं आयी पर कुमारजी काफी चोटिल हुए हैं। वह अभी सो रहे हैं।"

सुनीता और कर्नल साहब की और इशारा करते हुए नीतू ने कहा, "इन्होने कुमार साहब की पट्टी बगैरह की। एक डॉक्टर ने देखा और कहा की कुमार जी की जान को कोई ख़तरा नहीं है।"

फिर नीतू ने अपने पति को जो हुआ उस वाकये की सारी कहानी विस्तार से सुनाई। नीतू ने यह छुपाया की कुमार नीतू को पकड़ने के लिए उस के पीछे भाग रहे थे और कुमार की चंगुल से बचने के लिए वह भाग रही थी तब वह सब हुआ। हालांकि यह उसे बताना पड़ा की कुमार उसके पीछे ही कुछ बात करने के लिए तेजी से भागते हुए हुए आ रहे थे तब उसे धक्का लगा और वह फिसल गयी और साथ में कुमार भी फिसल गए। ऐसे वह वाक्या हुआ। नीतू को डर था की कहीं उसके पति उसकी कहानी की सच्चाई भाँप ना ले।

नीतू की सारी कहानी सुनने के बाद ब्रिगेडियर साहब ने नीतू के बाल सँवारते हुए कहा, "नीतू, शुक्र है तुम्हें ज्यादा चोट नहीं आयी और कुमार भी बच गए। चलो जो हुआ सो हुआ। अब तुम मेरी बात बड़े ध्यान से सुनो। तुम अब कुमार का अच्छी तरह ख्याल रखना। वह अकेला है। उसे कोई तकलीफ ना हो। उन्हें किसी तरह की कोई भी जरुरत हो तो तुम पूरी करना। उनके साथ ही रहना। उन्होंने तुम्हारी ही नहीं मेरी भी जान बचाई है। मेरी जान तुम हो। उन्होंने तुम्हारी जान बचाकर हकीकत में तो मेरी जान बचाई है। ओके बच्चा? मैं चलता हूँ। तुम अपना भी ध्यान रखना।"

यह कह कर सुनीता और जस्सूजी को धन्यवाद देते और नमस्कार करते हुए ब्रिगेडियर साहब धीरे धीरे कम्पार्टमेंट की दीवारों का सहारा लेते हुए अपने कम्पार्टमेंट की और चल दिए।

अपने पति का इतना जबरदस्त सहारा और प्रोत्साहन पाकर नीतू की आँखें नम हो गयीं। वह काफी खुश भी थी। "कुमार के साथ ही रहना, उन का ख़ास ध्यान रखना। उन्हें किसी तरह की कोई भी जरुरत हो तो तुम पूरी करना।" क्या उसके पति ब्रिगेडियर साहब यह कह कर उसे कुछ इशारा कर रहे थे? नीतू इस उधेङबुन में थी की सुनीता ने नीतू को बताया की उन्होंने नीतू और कुमार के लिए भी दोपहर का खाना आर्डर किया था। खाना आ भी चुका था।

सुनीता ने नीतू को कहा की वह कुमार को भी जगाये और खाने के लिए कहे।
 
नीतू ने प्यार से कुमार को जगा कर बर्थ पर बिठा कर खाने के लिए आग्रह किया। कुमार को चेहरे और पाँव पर गहरी चोटें आयी थीं, पर वह कह रहे थे की वह ठीक हैं। कुमार खाने के लिए मना कर रहे थे पर नीतू ने उनकी एक ना सुनी। चेहरे पर पट्टी लगाने के कारण उन्हें शायद ठीक ठीक देखने में दिक्कत हो रही थी। नीतू ने खाने की प्लेट अपनी गोद में रखकर कप्तान कुमार के मना करने पर भी उन्हें एक एक निवाला बना कर अपने हाथों से खिलाना शुरू किया।

सुनीता, ज्योतिजी, सुनीलजी और जस्सूजी इस दोनों युवा का प्यार देख कर एक दूसरे की और देख कर शरारती अंदाज में मुस्कराये। सबके मन में शायद यही था की "जवाँ दिल की धड़कनों में भड़कती शमाँ। आगे आगे देखिये होता ही क्या।" प्यार और एक दूसरे के प्रति का ऐसा भाव देख सब के मन में यही था की कभी ना कभी जवान दिलों में भड़कती प्यार की यह छोटी सी चिंगारी जल्द ही आगे चल कर जवान बदनों में काम वासना की आग का रूप ले सकती है।

सुनीता नीतू के एकदम पास खिसक कर बैठ गयी और नीतू के कानों में अपना मुंह लगा कर कोई न सुने ऐसे फुसफुसाते हुए कहा, "नीतू, क्या इतना प्यार कोई किसी को कर सकता है? कुमार ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए तुम्हारी जान बचाई। कोई भी स्त्री के लिए कोई भी पुरुष इससे ज्यादा क्या बलिदान दे सकता है भला? मैं देख रही थी की कुमार तुम्हारे करीब आने की कोशिश कर रहा था और तुम उससे दूर भाग रही थी। ऐसे जाँबाज़ पुरुष के लिए अपना स्त्रीत्व की ही क्या; कोई भी कुर्बानी कम है।"

ऐसा कह कर सुनीता ने नीतू को आँख मारी और फिर अपने काम में लग गयी। सुनीत की बात नीतू के जहन में बन्दुक की गोली के तरह घुस गयी। एक तो उसका तन और मन भी ऐसी मर्दानगी देख कर मचल ही रहा था उस पर सुनीताजी की सटीक बात नीतू के दिल को छू गयी।

खाने के बाद नीतू फिर से कुमार के पाँव से सट कर बैठ गयी। फिर से सारे परदे बंद हुए। क्यों की कुमार को तब भी काफी दर्द था, इस कारण नीतू ने मन ना मानते हुए भी कुमार को प्यार से उसकी साइड की निचली बर्थ पर लिटा कर उसे कंबल ओढ़ा कर खुद जैसे ही अपनी ऊपर वाली बर्थ पर जाने लगी थी की उसने महसूस किया की कप्तान कुमार ने उसकी बाँह पकड़ी। नीतू ने मूड के देखा तो कुमार का चेहरा कम्बल से ढका हुआ था और शायद वह सो रहे थे पर फिर भी वह नीतू को दूर नहीं जाने देना चाहते थे।

नीतू के चेहरे पर बरबस एक मुस्कान आ गयी। नीतू कुमार का हाथ ना छुड़ाते हुए वहीं खड़ी रही। कुमार ने नीतू का हाथ पकडे रखा। नीतू धीरे से हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर फिर भी कुमार ने हाथ नहीं छोड़ा और नीतू का हाथ पकड़ अपना चेहरा ढके हुए रखते नीतू को अपने पास बैठने का इशारा किया।

नीतू कुमार के सर के पास गयी और धीरे से बोली, "क्या बात है? कुछ चाहिए क्या?"

परदे को उठा कर अपना मुंह नीतू के मुंह के पास लाकर बोले, "नीतू, क्या अब भी तुम मुझसे रूठी हुई हो? मुझे माफ़ नहीं करोगी क्या?"

नीतू ने अपने हाथ कुमार के मुंह पर रख दिए और बोली, "क्या बात कर रहें हैं आप? भला मैं आपसे कैसे नाराज हो सकती हूँ?"

कुमार ने कहा, "फिर उठ कर ऊपर क्यों जाने लग़ी? नींद आ रही है क्या?"

नीतू ने कुमार की बात काटते हुए कहा, "मुझे कोई नींद नहीं आ रही। भला इतना बड़ा हादसा होने के बाद कोई सो सकता है? जो हुआ यह सोचते ही मेरा दिल धमनी की तरह धड़क रहा है। पता नहीं मैं कैसे बच गयी। मेरी जान तुम्हारी वजह से ही बची है कुमार!"

कुमार ने फट से अपने हाथ नीतू की छाती पर रखने की कोशिश करते हुए कहा, "मैंने तुम्हें कहाँ बचाया? बचाने वाला सबका एक ही है। उसने तुम्हें और मुझे दोनों को बचाया। यह सब फ़ालतू की बातें छोडो। तुमने क्या कहा की तुम्हारा दिल तेजी से धड़क रहा है? ज़रा देखूं तो वह कितनी तेजी से धड़क रहा है?"

नीतू ने इधर उधर देखा। कहीं कोई उन दोनों की प्यार की लीला देख तो नहीं रहा? फिर सोचा, "क्या पता कोई अपना मुंह परदे में ही छिपाकर उनको देख ना रहा हो?" नीतू ने एक हाथ से कुमार की नाक पकड़ कर उसे प्यार से हिलाते हुए और दूसरे हाथ से धीरे से प्यार से कुमार का हाथ जो नीतू के स्तनोँ को छूने जा रहा था उसको अपने टॉप के ऊपर से हटाते हुए कहा, "जनाब को इतनी सारी चोटें आयी हैं, पर फिर भी रोमियोगिरी करने से बाज नहीं आते? अगर मैं आपके पास बैठी ना, तो सो चुके आप! मैं चाहती हूँ की आप आराम करो और एकदम फुर्ती से वापस वैसे ही हो जाओ जैसे पहले थे। मैं चाहती हूँ की कल सुबह तक ही आप दौड़ते फिरते हो जाओ। फिर अगले पुरे सात दिन हमारे हैं। अब सो जाओ ना प्लीज? तुम्हें आराम की सख्त जरुरत है।"
 
कुमार ने नीतू की हाथों को अपने करीब खींचा और उसे मजबूर किया की वह कुमार के ऊपर झुके। जैसे ही नीतू झुकी की कुमार ने करवट ली, कम्बल हटाया और नीतू के कानों के करीब अपना मुंह रख कर कहा, "मुझे आराम से भी ज्यादा तुम्हारी जरुरत है।"

नीतू ने मुंह बनाते हुए कहा, "हाय राम मैं क्या करूँ? यह मजनू तो मान ही नहीं रहे! अरे भाई सो जाओ और आराम करो। ऐसे जागते और बातें करते रहोगे तो आराम तो होगा ही नहीं ऊपर से कोई देखेगा और शक करेगा।"

कुमार ने जिद करते हुए कहा, "नहीं मैं ऐसे नहीं मानूंगा। अगर तुम मुझसे रूठी नहीं हो तो बस एक बार मेरे मुंह के करीब अपना मुंह तो लाओ, फिर मैं सो जाऊंगा। आई प्रॉमिस।"

नीतू ने अपना मुंह कुमार के करीब किया तो कुमार ने दोनों हाथों से नीतू का सर पकड़ा और अपने होँठ नीतू के होँठों पर चिपका दिए। हालांकि सारे परदे ढके हुए थे और कहीं कोई हलचल नहीं दिख रही थी, पर फिर भी कुमार की फुर्ती से अपने होठोँ को चुम लेने से नीतू यह सोच कर डर रही थी की इतने बड़े कम्पार्टमेंट में कहीं कोई उन्हें प्यार करते हुए देख ना ले।

पर नीतू भी काफी उत्तेजित हो चुकी थी। कुमार ने नीतू का सर इतनी सख्ती से पकड़ा था की चाहते हुए भी नीतू उसे कुमार के हाथों से छुड़ाने में असमर्थ थी। मजबूर होकर "जो होगा देखा जाएगा" यह सोच कर नीतू ने भी अपनी बाँहें फैला कर कुमार का सर अपनी बाँहों में लिया और कुमार के होँठों को कस के चुम्बन करने लगी।

दोनों जवाँ बदन एक दूसरे की कामवासना में झुलस रहे थे। नीतू कुमार के मुंहकी लार चूस चूस कर अपने मुंह में लेती रही। कुमार भी अपनी जीभ नीतू के मुंह में डाल कर उसे ऐसे अंदर बाहर करने लगा जैसे वह नीतू के मुंह को अपनी जीभ से चोद रहा हो।

इस तरह काफी देर तक चिपके रहने के बाद नीतू ने काफी मशक्कत कर अपना सर कुमार से अलग किया और बोली, "कुमार! चलो भी! अब तो खुश हो ना? अब बहोत हो गया। अब प्लीज जाओ और आराम करो। मेरी कसम अब और कुछ शरारत की तो!"

कुमार ने कहा, "ठीक है तुमने कसम दी है तो सो जाऊंगा। पर ऐसे नहीं मानूंगा। पहले यह वचन दो की रात को सब सो जाएंगे उसके बाद तुम चुपचाप मेरी बर्थ पर निचे मेरे पास आ जाओगी।"

नीतू ने कुमार को दूर करते हुए कहा, "ठीक है बाबा देखूंगी। पर अब तो छोडो।"

कुमार ने जिद करते हुए कहा, "ना, मैं नहीं छोडूंगा। जब तक तुम मुझे वचन नहीं दोगी।"

नीतू ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, "ठीक है बाबा मैं वचन देती हूँ। अब तुम छोडो ना?"

कुमार ने कहा, "ऐसे नहीं, बोलो क्या वचन देती हो?"

नीतू ने कहा, "रातको जब सब सो जाएंगे, तब मैं चुपचाप निचे उतर कर तुम्हारी बर्थ पर आ जाऊंगी। बस?"

कुमार ने कहा, "पर अगर तुम सो गयी तो?"

नीतू ने अपना सर पटकते हुए कहा, अरे भगवान् यह तो मान ही नहीं रहे! अच्छा बाबा अगर मैं सो गयी तो तुम मुझे आकर उठा देना। अब तो ठीक है?"

कुमार ने धीरे से कहा, "ठीक है जानूं पर भूलना नहीं और अपने वादे से मुकर मत जाना."

नीतू ने आँख मारकर कहा, "नहीं भूलूंगी और किये हुए वादे से मुकरूंगी भी नहीं। पर अब तुम आराम करो वरना मैं चिल्लाऊंगी, की यह बन्दा मुझे सता रहा है।"
 
कुमार ने हँसते हुए नीतू का हाथ छोड़ दिया और जैसे डर गए हों ऐसे अपना मुंह कम्बल में छिपा कर एक आँख से नीतू की और देखते हुए बोले, "अरे बाबा, ऐसा मत करना। मैं अब तुम्हें नहीं छेड़ूँगा। बस?"

कुमार की बात सुन नीतू बरबस ही हंसने लगी। अपने दोनों हाथ जोड़कर कुमार को नमस्ते की मुद्रा कर मुस्काती हुई नीतू कुमार के साथ हो रही कामक्रीड़ा के परिणाम रूप अपनी दोनों जाँघों के बिच हुए गीलेपन को महसूस कर रही थी। काफी समय के बाद अपनी दो जाँघों के बिच चूत में हो रही मीठी मचलन नीतू के मन में कोई अजीब सी अनुभूति पैदा कर रही थी। नीतू जब अपना घाघरा अपनी जाँघों के उपर तक उठाकर अपनी टाँगों को ऊपर उठा कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ने लगी तो कुमार धीरे से बोला, "अपने आपको सम्हालो! निचे वाला (यानी कुमार) सब कुछ देख रहा है!"

लज्जित नीतू ने अपने पाँव निचे किये। कुमार की हरकतों से परेशान होने पर कुछ भी ना कर पाने के कारण मजबूर, नीतू अपना घाघरा ठीक ठाक करती हुई अपने आपको सम्हाल कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर पहुंची और लम्बे हो कर लेट कर पिछले चंद घंटों में हुए वाक्योँ के बारेमें सोचने लगी।

ट्रैन मंजिल की और तेजी से अग्रसर हो रही थी।

कम्पार्टमेंट में शामके करीब पांच बजे कुछ हलचल शुरू हुई। कुमार के अलावा सब लोग बैठ गए। नीतू ने कुमार के लिए चाय मंगाई। कुछ बिस्किट और चाय पिलाकर नीतू ने कुमार को डॉक्टर की दी हुई कुछ दवाइयाँ दीं। दवाइयाँ खाकर कुमार फिर लेट गए। कुमार ने कहा की उनका दर्द कुछ कम हो रहा था। डॉक्टर ने टिटेनस का इंजेक्शन पहले ही दे दिया था। नीतू कुमार के पाँव के पास ही बैठी बैठ कुमार को देख रही थी और कभी पानी तो कभी एक बिस्कुट दे देती थी।

अन्धेरा होते ही शामका खाना आ पहुंचा। फिर नीतू ने अपने हाथों से कुमार को बिठा कर खाना खिलाया। सुनीता, ज्योतिजी, कर्नल साहब और सुनील ने भी देखा की नीतू कुमार का बहोत ध्यान रख रही थी। सब ने खाना खाया और थोड़ी सी गपशप लगाकर ज्यादातर लोग अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हो गए। कई यात्रियों ने कान पर ईयरफोन्स लगा अपने सेल फ़ोन में कोई मूवी, या गाना या कोई और चीज़ देखने में ही खो गए।

रात के नौ बजते ही सब अपना अपना बिस्तर बनाने में लग गए। सुबह करीब ६ बजे जम्मू स्टेशन आने वाला था। नीतू ने कुमार को उठाया और उसका बिस्तर झाड़ कर अच्छी तरह से चद्दर और कम्बल बिछा कर कुमार को लेटाया। कुमार अब धीरे धीरे बैठने लगा था। शामको एक बार नीतू के पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब भी आये और कुमार को हेलो, हाय किया। इस बार उन्होंने कुमार के साथ बैठकर कुमार का हाल पूछा और फिर नीतू के गाल पर हलकी सी किस करके वह अपनी बर्थ के लिए वापस चले गए।

कुमार को फिर भी अंदेशा ना हुआ की नीतू ब्रिगेडियर साहब की पत्नी थी। रात का अँधेरा घना हो गया था। काफी यात्री सो चुके थे। एक के बात एक बत्तियां बुझती जा रहीं थीं। नीतू ने भी जब पर्दा फैलाया तब कुमार ने फिर नीतू का हाथ पकड़ा और अपने करीब खिंच कर कानों में पूछा, "अपना वादा तो याद है ना?"

नीतू ने बिना बोले अपनी मुंडी हिलाकर हामी भरी और मुस्काती हुई अपना घाघरा सम्हालते हुए अपनी ऊपर की बर्थ पर चढ़ गयी।

सुनीता निचे की बर्थ पर थी और जस्सूजी उसकी ऊपर वाली बर्थ पर। ज्योतिजी निचे वाली बर्थ पर और सुनील उसके ऊपर वाली बर्थ पर। रातके साढ़े नौ बजे सुनीता ने अपने कम्पार्टमेंट की बत्तियां बुझा दीं। उसे पता था की आजकी रात कुछ ना कुछ तो होगा ही। कोई ना कोई नयी कहानी जरूर बनेगी।

सुनीता को पति को किये हुए वादे की याद आयी। सुनीता को तो अपने पति से किये हुए वादे को पूरा करना था। सुनीलजी अपनी पत्नी से लिए हुए ट्रैन में रात को सुनीता का डिनर करने के वादे को पूरा जरूर करना चाहेंगे। सुनीलजी की प्रियतमा जस्सूजी की पत्नी ज्योतिजी क्या सुनीता के पति सुनील को रातको अपने आहोश में लेने के लिए नहीं तड़पेगी?

क्या जस्सूजी कुछ ना कुछ हरकत नहीं करेंगे? उधर सुनीता ने चोरी छुपी नीतू और कुमार के बिच की काम वार्ता भी सुनी थी। उसे पता था की नीतू को रात को निचे की बर्थ में कुमार के पास आना ही था। जरूर उस रात को ट्रैन में कुछ ना कुछ तो होना ही था। क्या होगा उस विचार मात्र के रोमांच से सुनीता के रोंगटे खड़े होगये।

पर सुनीता भी राजपूतानी मानिनी जो थी। उसने अपने रोमांच को शांत करना ही ठीक समझा और बत्ती बुझाकर एक अच्छी औरत की तरह अपने बिस्तर में जा लेटी। कम्पार्टमेंट में सब कुछ शांत हो चुका था। जरूर प्रेमी प्रेमिकाओं के ह्रदय में कामाग्नि की धधकती आग छुपी हुई थी। पर फिर भी कम्पार्टमेंट में वासना की लपटोँ में जलते हुए बदनों की कामाग्नि भड़के उसके पहले छायी शान्ति की तरह सब कुछ शांत था।
 
कुछ शोर तब होता था जब दो गाड़ियाँ आमने सामने से गुजरती थीं। वरना वातानुकूलित वातावरण में एक सौम्य सी शान्ति छायी हुई थी। जब ट्रैन कोई स्टेशन पर रूकती तो कहीं दूर कोई यात्री के चढ़ने उतर ने की धीमी आवाज के सिवाय कहीं किसीके खर्राटे की तो कहीं किसी की हलकी लयमय साँसे सुनाई दे रहीथीं।

सारी बत्तियाँ बुझाने के कारण और सारे परदे से ढके होने के कारण पुरे कम्पार्टमेंट में घना अँधेरा छाया हुआ था। कहीं कुछ नजर नहीं आता था। एक कोने में टिमटिमाती रात्रि बत्ती कुछ कुछ प्रकाश देने में भी निसहाय सी लग रही थी। कभी कभी कोई स्टेशन गुजरता तब उसका प्रकाश परदे में रह गयी पतली सी दरार में से मुश्किल ही अँधेरे को हल्का करने में कामयाब होता था।

काम वासना से संलिप्त ह्रदय बाकी यात्रियों को गहरी नींद में खो जाने की जैसे प्रतीक्षा कर रहे थे। बिच बिच में नींद का झोका आ जाने के कारण वह कुछ विवश सा महसूस कर रहे थे। नीतू की आँखों में नींद कहाँ? उसे पता था की उसका प्रियतम कुमार जरूर उसके निचे उतर ने प्रतीक्षा में पागल हो रहा होगा। आज रात क्या होगा यह सोच कर नीतू के ह्रदय की धड़कन तेज हो रही थीं और साँसे धमनी की तरह चल रहीं थीं। नीतू की जाँघों के बिच उसकी चूत काफी समय से गीली ही हो रही थी।

कुमार काफी चोटिल थे। तो क्या वह फिर भी नीतू को वह प्यार दे पाएंगे जो पानेकी नीतू के मन में ललक भड़क रही थी? पर नीतू कुमार को इतना प्यार करती थी और कुमार की इतनी ऋणी थी की अपनी काम वासना की धधकती आग को वह छुपाकर तब तक रखेगी जब तक कुमार पूरी तरह स्वस्थ ना हो जाएँ। यह वादा नीतू ने अपने आपसे किया था।

उससे भी बड़ा प्रश्न यह था की क्या नीतू को स्वयं निचे उतर कर कुमार के पास जाना चाहिए? चाहे कुमार ने नीतू के लिए कितनी भी कुर्बानी ही क्यों ना दी हो, क्या नीतू को अपना मानिनीपन अक्षत नहीं रखना चाहिए? पुरुष और स्त्री की प्रेम क्रीड़ा में पहल हमेशा पुरुष की ही होनी चाहिए इस मत में नीतू पूरा विश्वास रखती थी। स्त्रियां हमेशा मानिनी होती हैं और पुरुष को ही अपने घुटने जमीं पर टिका कर स्त्री को रिझाकर मनाना चाहिए जिससे स्त्री अपने बदन समेत अपनी काम वासना अपने प्रियतम पर न्योछावर करे यही संसार का दस्तूर है, यह नीतू मानती थी।

पर नीतू की अपने बदन की आग भी तो इतनी तेज भड़क रही थी की क्या वह मानिनीपन को प्रधानता दे या अपने तन की आग बुझाने को? यह प्रश्न उसे खाये जा रहा था। क्या कुमार इतने चोटिल होते हुए नीतू को मनाने के लिए बर्थ के निचे उतर कर खड़े हो पाएंगे? नीतू के मन में यह भी एक प्रश्न था। वह करे तो क्या करे? आखिर में नीतू ने यह सोचा की क्यों ना कुमार को उसे मनाना कुछ आसान किया जाए? ताकि कुमार को बर्थ से उठकर नीतू को मनाने के लिए उठना ना पड़े?

यह सोच कर नीतू ने अपनी चद्दर का एक छोर धीरे धीरे सरका कर निचे की और जाने दिया ताकि कुमार उसे खिंच कर उस के संकेत की प्रतीक्षा में जाग रही (पर सोने का ढोंग कर रही) नीतू को जगा सके। कुछ देर बीत गयी। नीतू बड़ी बेसब्री से इंतजार में थी की कब कुमार उसकी चद्दर खींचे और कब वह अपना सर निचे ले जाकर यह देखने का नाटक करे की क्या हुआ? जिससे कुमार को मौक़ा मिले की वह नीतू को निचे उतर ने का आग्रह करे। पर शायद कुमार सो चुके थे। नीतू ऊपर बेचैन इंतजार में परेशान थी। काफी कीमती समय बितता जा रहा था।

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सुनीता को डर था की उस रात कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए। उसके पति सुनील ने उससे से वचन जो लिया था की दिन में ना सही पर रात को जरूर वह सुनीता को खाने मतलब सुनीता की लेने (मतलब सुनीता को चोदने) जरूर आएंगे। शादी के इतने सालों बाद भी सुनील सुनीता का दीवाना था। दूसरे जस्सूजी जो सुनीता को पाने के पिए सब कुछ दॉंव पर लगाने के लिए आमादा थे। जिन्होंने कसम खायी थी की वह सुनीता पर अपना स्त्रीत्व समर्पण करने के लिए (मतलब चुदवाने के लिए) कोई भी दबाव नहीं डालेंगे।

पर सुनीता और जस्सूजी के बिच यह अनकही सहमति तो थी ही की सुनीता जस्सूजी को भले उसको चोदने ना दे पर बाकी सबकुछ करने दे सकती है। यह बात अलग है की जस्सूजी खुद सुनीता का आधा समर्पण स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे या नहीं। वह भी तो आर्मी के सिपाही थे और बड़े ही अड़ियल थे।

सुनीता को तब जस्सूजी का प्रण याद आया। उन्होने बड़े ही गभीर स्वर में कहा था की जब सुनीता ने उन्हें नकार ही दिया था तब वह कभी भी सामने चल कर सुनीता को ललचाने की या अपने करीब लाने को कोशिश नहीं करेंगे। सुनीता के सामने यह बड़ी समस्या थी। वह जस्सूजी का दिल नहीं तोड़ना चाहती थी पर फिर वह उनको अपना समर्पण भी तो नहीं कर सकती थी।

सुनीता जस्सूजी को भली भाँती जानती थी। जहां तक उसका मानना था जस्सूजी तब तक आगे नहीं बढ़ेंगे जब तक सुनीता कोई पहल ना करे। वैसे तो माननीयों पर मॅंडराने के लिए उनको चाहने वाले बड़े बेताब होते हैं। पर उस रात तो उलटा ही हो गया। सुनीता अपने पति की अपनी बर्थ पर इंतजार कर रही थी। साथ साथ में उसे यह भी डर था की कहीं जस्सूजी ऊपर से सीधा निचे ना उतर जाएँ। पर जहां सुनीता दो परवानोँ का इंतजार कर रही थी, वहाँ कोई भी आ नहीं रहा था। उधर नीतू अपने प्रेमी के संकेत का इंतजार कर रही थी, पर कुमार था की कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा रहा था।

दोनों ही मानीनियाँ अपने प्रियतम से मिलने के लिए बेताब थी। पर प्रियतम ना जाने क्या सोच रहे थे? क्या वह अपनी प्रिया को सब्र का फल मीठा होता है यह सिख दे रहे थे? या कहीं वह निंद्रा के आहोश में होश खो कर गहरी नींद में सो तो नहीं गए थे?

काफी समय बीत जाने पर सुनीता समझ गयी की उसका पति सुनील गहरी नींद में सो ही गया होगा। वैसे भी ऐसा कई बार हो चुका था की सुनीता को रात को चोदने का प्रॉमिस कर के सुनीलजी कई बार सो जाते और सुनीता बेचारी मन मसोस कर रह जाती। रात बीतती जा रही थी। सुनीलजी का कोई पता ही नहीं था। तब सुनीता ने महसूस किया की उसकी ऊपर वाली बर्थ पर कुछ हलचल हो रही थी। इसका मतलब था की शायद जस्सूजी जाग रहे थे और सुनीता के संकेत का इंतजार कर रहे थे।

सुनीता की जाँघों के बिच का गीलापन बढ़ता जा रहा था। उसकी चूत की फड़कन थमने का नाम नहीं ले रही रही थी। कुमार और नीतू की प्रेम लीला देख कर सुनीता को भी अपनी चूत में लण्ड लड़वाने की बड़ी कामना थी। पर वह बेचारी करे तो क्या करे? पति आ नहीं रहे थे। जस्सूजी से वह चुदवा नहीं सकती थी।

रात बीतती जा रही थी। सुनीता की आँखों में नींद कहाँ? दिन में सोने कारण और फिर अपने पति के इंतजार में वह सो नहीं पा रही थी। उस तरफ ज्योतिजी गहरी नींद में लग रही थीं। ट्रैन की रफ़्तार से दौड़ती हुई हलकी सी आवाज में भी उनकी नियमित साँसें सुनाई दे रहीं थीं। सुनीलजी भी गहरी नींद में ही होंगें चूँकि वह शायद अपनी पत्नी के पास जाने (अपनी पत्नी को ट्रैन में चोदने) का वादा भूल गए थे। लगता था जस्सूजी भी सो रहे थे।

सुनीता की दोनों जाँघों के बिच उसकी में चूत में बड़ी हलचल महसूस हो रही थी। सुनीता ने फिर ऊपर से कुछ हलचल की आवाज सुनी। उसे लगा की जरूर जस्सूजी जाग रहे थे। पर उनको भी निचे आने की कोई उत्सुकता दिख नहीं रही थी। सुनीता अपनी बर्थ पर बैठ कर सोचने लगी। उसे समझ नहीं आया की वह क्या करे।

अगर जस्सूजी जागते होंगे तो ऊपर शायद वह सुनीता के पास आने के सपने ही देख रहे होंगे। पर शायद उनके मन में सुनीता के पास आने में हिचकिचाहट हो रही होगी, क्यूंकि सुनीता ने उनको नकार जो दिया था। सुनीता को अपने आप पर भी गुस्सा आ रहा था तो जस्सूजी पर तरस आ रहा था।

तब अचानक सुनीता ने ऊपर से लुढ़कती चद्दर को अपने नाक को छूते हुए महसूस किया। चद्दर काफी निचे खिसक कर आ गयी थी। सुनीता के मन में प्रश्न उठने लगे। क्या वह चद्दर जस्सूजी ने कोई संकेत देने के लिए निचे खिस्काइथी? या फिर करवट लेते हुए वह अपने आप ही अनजाने में निचे की और खिसक कर आयी थी?

सुनीता को पता नहीं था की उसका मतलब क्या था? या फिर कुछ मतलब था भी या नहीं? यह उधेङबुन में बिना सोचे समझे सुनीता का हाथ ऊपर की और चला गया और सुनीता ने अनजाने में ही चद्दर को निचे की और खींचा। खींचने के तुरंत बाद सुनीता पछताने लगी। अरे यह उसने क्या किया? अगर जस्सूजी ने सुनीता का यह संकेत समझ लिया तो वह क्या सोचेंगे?
 
पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सुनीता के चद्दर खींचने पर भी ऊपर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। सुनीता को बड़ा गुस्सा आया। अरे! यह कर्नल साहब अपने आप को क्या समझते हैं? क्या स्त्रियों का कोई मान नहीं होता क्या? भाई अगर एक बार औरत ने मर्द को संकेत दे दिया तो क्या उस मर्द को समझ जाना नहीं चाहिए?

फिर सुनीता ने अपने आप पर गुस्सा करते हुए और जस्सूजी की तरफदारी करते हुए सोचा, "यह भी तो हो सकता है ना की जस्सूजी गहरी नींद में हों? फिर उन्हें कैसे पता चलेगा की सुनीता कोई संकेत दे रही थी? वह तो यही मानते थे ना की अब सुनीता और उनके बिच कोई भी ऐसी वैसी बात नहीं होगी? क्यूंकि सुनीता ने तो उनको ठुकरा ही दिया था।

इसी उधेड़बुन में सुनीता का हाथ फिर से ऊपर की और चला गया और सुनीता ने चद्दर का एक हिस्सा अपने हाथ में लेकर उसे निचे की और खींचना चाहा तो जस्सूजी का घने बालों से भरा हाथ सुनीता के हाथ में आ गया। जस्सूजी के हाथ का स्पर्श होते ही सुनीता की हालत खराब! हे राम! यह क्या गजब हुआ! सुनीता को समझ नहीं आया की वह क्या करे? उसी ने तो जस्सूजी को संकेत दिया था। अब अगर जस्सूजी ने उसका हाथ पकड़ लिया तो उसमें जस्सूजी का क्या दोष? जस्सूजी ने सुनीता का हाथ कस के पकड़ा और दबाया। सुनीता का पूरा बदन पानी पानी हो गया।

वह समझ नहीं पायी की वह क्या करे? सुनीता ने महसूस किया की जस्सूजी का हाथ धीरे धीरे निचे की और खिसक रहा था। सुनीता की जाँघों के बिच में से तो जैसे फव्वारा ही छूटने लगा था। उसकी चूत में तो जैसे जलजला सा हो रहा था। सुनीता का अपने बदन पर नियत्रण छूटता जा रहा था। वह आपने ही बस में नहीं थी।

सुनीता ने रात को नाइटी पहनी हुई थी। उसे डर था की उसकी नाइटी में उसकी पेन्टी पूरी भीग चुकी होगी इतना रस उसकी चूत छोड़ रही थी। जस्सूजी कब अपनी बर्थ से निचे उतर आये सुनीता को पता ही तब चला जब सुनीता को जस्सूजी ने कस के अपनी बाहों में ले लिया और चद्दर और कम्बल हटा कर वह सुनीता को सुला कर उसके साथ ही लम्बे हो गए और सुनीता को अपनी बाहों के बिच और दोनों टांगों को उठा कर सुनीता को अपनी टांगों के बिच घेर लिया। फिर उन्होंने चद्दर और कम्बल अपने ऊपर डाल दिया जिससे अगर कोई उठ भी जाए तो उसे पता ना चले की क्या हो रहा था।

जस्सूजी ने सुनीता का मुंह अपने मुंह के पास लिया और सुनीता के होँठों से अपने होँठ चिपका दिए। जस्सूजी के होठोँ के साथ साथ जस्सूजी की मुछें भी सुनीता के होठोँ को चुम रहीं थीं। सुनीता को अजीब सा अहसास हो रहा था। पिछली बार जब जस्सूजी ने सुनीता को अपनी बाहों में किया था तब सुनीता होश में नहीं थी। पर इस बार तो सुनीता पुरे होशो हवास में थी और फिर उसी ने ही तो जस्सूजी को आमंत्रण दिया था।

सुनीता अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। उससे जस्सूजी का यह आक्रामक रवैया बहुत भाया। वह चाहती थी की जस्सूजी उसकी एक भी बात ना माने और उसके कपडे और अपने कपडे भी एक झटके में जबरदस्ती निकाल कर उसे नंगी करके अपने मोटे और लम्बे लण्ड से उसे पूरी रात भर अच्छी तरह से चोदे। फिर क्यों ना उसकी चूत सूज जाए या फट जाए।

सुनीता जानती थी की अब वह कुछ नहीं कर सकती थी। जो करना था वह जस्सूजी को ही करना था। जस्सूजी का मोटा लण्ड सुनीता की चूत को कपड़ों के द्वारा ऐसे धक्के मार रहा था जैसे वह सुनीता की चूत को उन कपड़ों के बिच में से खोज क्यों ना रहा हो? या फिर जस्सूजी का लण्ड बिच में अवरोध कर रहे सारे कपड़ों को फाड़ कर जैसे सुनीता की नन्हीं कोमल सी चूत में घुसने के लिए बेताब हो रहा था। जस्सूजी मारे कामाग्नि से पागल से हो रहे थे। शायद उन्होंने भी नीतू और कुमार की प्रेम गाथा सुनी थी।

जस्सूजी पागल की तरह सुनीता के होँठों को चुम रहे थे। सुनीता के होँठों को चूमते हुए जस्सूजी अपने लण्ड को सुनीता की जाँघों के बिच में ऐसे धक्का मार रहे थे जैसे वह सुनीता को असल में ही चोद रहें हों। सुनीता को जस्सूजी का पागलपन देख कर यकीन हो गया की उस रात सुनीता की कुछ नहीं चलेगी। जस्सूजी उसकी कोई बात सुनने वाले नहीं थे और सचमें ही वह सुनीता की अच्छी तरह बजा ही देंगे। जब सुनीता का कोई बस नहीं चलेगा तो बेचारी वह क्या करेगी? उसके पास जस्सूजी को रोकने का कोई रास्ता नहीं था। यह सोच कर सुनीता ने सब भगवान पर छोड़ दिया। अब माँ को दिया हुआ वचन अगर सुनीता निभा नहीं पायी तो उसमें उसका क्या दोष?

सुनीता जस्सूजी के पुरे नियत्रण में थी। जस्सूजी के होँठ सुनीता के होँठों को ऐसे चुम और चूस रहे थे जैसे सुनीता का सारा रस वह चूस लेना चाहते थे। सुनीता के मुंह की पूरी लार वह चूस कर निगल रहे थे। सुनीता ने पाया की जस्सूजी उनकी जीभ से सुनीता का मुंह चोदने लगे थे। साथ साथ में अपने दोनों हाथ सुनीता की गाँड़ पर दबा कर सुनीता की गाँड़ के दोनों गालों को सुनीता की नाइटी के उपरसे वह ऐसे मसल रहे थे की जैसे वह उनको अलग अलग करना चाहते हों।
 
जस्सूजी का लण्ड दोनों के कपड़ों के आरपार सुनीता की चूत को चोद रहा था। अगर कपडे ना होते तो सुनीता की चुदाई तो हो ही जानी थी। पर ऐसे हालात में दोनों के बदन पर कपडे कितनी देर तक रहेंगे यह जानना मुश्किल था। यह पक्का था की उसमें ज्यादा देर नहीं लगेगी। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। सुनीता के मुंह को अच्छी तरह चूमने और चूसने के बाद जस्सूजी ने सुनीता को घुमाया और करवट लेने का इशारा किया। सुनीता बेचारी चुपचाप घूम गयी। उसे पता था की अब खेल उसके हाथों से निकल चुका था। अब आगे क्या होगा उसका इंतजार सुनीता धड़कते दिल से करने लगी।

जस्सूजी ने सुनीता को घुमा कर ऐसे लिटाया की सुनीता की गाँड़ जस्सूजी के लण्ड पर एकदम फिट हो गयी। जस्सूजी ने अपने लण्ड का एक ऐसा धक्का मारा की अगर कपडे नहीं होते तो जस्सूजी का लण्ड सुनीता की गाँड़ में जरूर घुस जाता। सुनीता को समझ नहीं आ रहा था की वह कोई विरोध क्यों नहीं कर रही थी? ऐसे चलता रहा तो चंद पलों में ही जस्सूजी उसको नंगी कर के उसे चोदने लगेंगे और वह कुछ नहीं कर पाएगी। पर हाल यह था की सुनीता के मुंह से कोई आवाज निकल ही नहीं रही थी। वह तो जैसे जस्सूजी के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली की तरह उनके हर इशारे का बड़ी आज्ञा कारी बच्चे की तरह पालन कर रही थी।

जस्सूजी ने अपने हाथसे सुनीता की नाइटी के ऊपर के सारे बटन खोल दिए और बड़ी ही बेसब्री से सुनीता की ब्रा के ऊपर से ही सुनीता की चूँचियों को दबाने लगे। सुनीता के पास अब जस्सूजी की इच्छा पूर्ति करने के अलावा कोई चारा नहीं था। सुनीता ना तो चिल्ला सकती थी नाही कुछ जोरों से बोल सकती थी क्यूंकि उसके बगल में ही उसका पति सुनील , ज्योतिजी, कुमार और नीतू सो रहे थे।

सुनीता समझ गयी की जस्सूजी सुनीता की ब्रा खोलना चाहते थे। सुनीता ने अपने हाथ पीछे की और किये और अपनी ब्रा के हुक खोल दिए। ब्रा की पट्टियों के खुलते ही सुनीता के बड़े फुले हुए उरोज जस्सूजी के हथेलियों में आगये। जस्सूजी सुनीता की गाँड़ में अपने लण्ड से धक्के मारते रहे और अपने दोनों हाथोँ की हथलियों में सुनीता के मस्त स्तनोँ को दबाने और मसलने लगे।

सुनीता भी चुपचाप लेटी हुई पीछे से जस्सूजी के लण्ड की मार अपनी गाँड़ पर लेती हुई पड़ी रही। अब जस्सूजी को सिर्फ सुनीता की नाइटी ऊपर उठानी थी और पेंटी निकाल फेंकनी थी। बस अब कुछ ही समय में जस्सूजी के लण्ड से सुनीता की चुदाई होनी थी। सुनीता ने अपना हाथ पीछे की और किया। जब इतना हो ही चुका था तब भला वह क्यों ना जस्सूजी का प्यासा लण्ड अपने हाथोँ में ले कर उसको सहलाये और प्यार करे? पर जस्सूजी का लण्ड तो पीछे से सुनीता की गाँड़ मार रहा था (मतलब कपडे तो बिच में थे ही).

सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड उनके पयजामें के ऊपर से ही अपनी छोटी सी उँगलियों में लेना चाहा। जस्सूजी ने अपने पयजामे के बटन खोल दिए और उनका लण्ड सुनीता की उँगलियों में आ गया। जस्सूजी का लण्ड पूरा अच्छी तरह चिकनाहट से लथपथ था। उनके लण्ड से इतनी चिकनाहट निकल रही थी की जैसे उनका पूरा पयजामा भीग रहा था।

चूँकि सुनीता ने अपना हाथ अपने पीछे अपनी गाँड़ के पास किया था उस कारण वह जस्सूजी का लण्ड अपने हाथोँ में ठीक तरह से ले नहीं पा रही थी। खैर थोड़ी देर में उसका हाथ भी थक गया और सुनीता ने वापस अपना हाथ जस्सूजी के लण्ड पर से हटा दिया। जस्सूजी अब बड़े मूड में थे। वह थोड़े से टेढ़े हुए और उन्होंने अपने होँठ सुनीता की चूँचियों पर रख दिए। वह बड़े ही प्यार से सुनीता की चूँचियों को चूसने और उसकी निप्पलोँ को दाँत से दबाने और काटने लगे।

उन्होंने अपना हाथ सुनीता की जाँघों के बिच लेना चाहा। सुनीता बड़े असमंजस में थी की क्या वह जस्सूजी को उसकी चूत पर हाथ लगाने दे या नहीं। यह तय था की अगर जस्सूजी का हाथ सुनीता की चूत पर चला गया तो सुनीता की पूरी तरह गीली हो चुकी पेंटी सुनीता के मन का हाल बयाँ कर ही देगी। तब यह तय हो जाएगा की सुनीता वाकई में जस्सूजी से चुदवाना चाहती थी।

जस्सूजी का एक हाथ सुनीता की नाइटी सुनीता की जाँघों के ऊपर तक उठाने में व्यस्त था की अचानक उन्हें एहसास हुआ की कुछ हलचल हो रही थी। दोनों एकदम स्तब्ध से थम गए। सुनीलजी बर्थ के निचे उतर रहे थे ऐसा उनको एहसास हुआ। सुनीता की हालत एकदम खराब थी। अगर सुनीलजी को थोड़ा सा भी शक हुआ की जस्सूजी उसकी पत्नी सुनीता की बर्थ में सुनीता के साथ लेटे हुए हैं तो क्या होगा यह उसकी कल्पना से परे था। फिर तो वह मान ही लेंगें के उनकी पत्नी सुनीता जस्सूजी से चुदवा रही थी।

फिर तो सारा आसमान टूट पडेगा। जब सुनीलजी ने सुनीता को यह इशारा किया था की शायद जस्सूजी सुनीता की और आकर्षित थे और लाइन मार रहे थे तब सुनीता ने अपने पति को फटकार दिया था की ऐसा उनको सोचना भी नहीं चाहिए था। अब अगर सुनीता जस्सूजी से सामने चलकर उनकी पीठ के पीछे चुदवा रही हो तो भला एक पति को कैसा लगेगा?

सुनीता ने जस्सूजी के मुंह पर कस के हाथ रख दिया की वह ज़रा सा भी आवाज ना करे। खैर जस्सूजी और सुनीता दोनों ही कम्बल में इस तरह एक साथ जकड कर ढके हुए थे की आसानी से पता ही नहीं लग सकता की कम्बल में एक नहीं दो थे। पर सुनीता को यह डर था की यदि उसके पति की नजर जस्सूजी की बर्थ पर गयी तो गजब ही हो जाएगा। तब उन्हें पता लग जाएगा की जस्सूजी वहाँ नहीं थे। तब उन्हें शक हो की शायद वह सुनीता के साथ लेटे हुए थे।
 
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