desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
अलका के जिस्म ने एक तीव्र झटका खाया।
सारे प्रतिरोध, जिस्म की हर हरकत इस तरह रुक गई जैसे विद्युत से चलने वाली मशीन का 'स्विच' ऑफ कर दिया गया हो।
अलका अवाक् रह गई।
जिस्म ढीला।
मिक्की को लगा कि यदि उसने अलका को छोड़ दिया तो रेत की बनी पुतली की मानिंद फर्श पर गिरते ही ढेर हो जाएगी।
"होश में आ अलका, खुद को संभाल।" मिक्की ने कहा— "मैं मिक्की हूं—और अगर तू जोर से बोली तो यह राज सबको मालूम हो जाएगा। मेरी योजना, सारा प्लान मिट्टी में मिल जाएगा।"
बड़ी मुश्किल से अलका स्वयं को संभाल सकी।
चेतना लौटी।
उसके पुनः गूं-गूं की तो मिक्की ने उसे छोड़ दिया, मुक्त होते ही वह घूमी और सामने खड़ी शख्सियत को आंखों में हैरत के असीमित भाव लिए देखती रह गई। उसके मुंह से कोई बोल न फूट पा रहा था, जबकि उसने पूछा—"इस तरह क्या देख रही हो?"
"त.....तुम सुरेश हो या मिक्की?"
उसके होंठों पर बड़ी ही जबरदस्त मुस्कान उभरी, बोला— "जब तू ही फर्क नहीं कर पा रही तो अब मुझे यकीन है कि कोई फर्क नहीं कर पाएगा।"
"क.....क्या मतलब?"
"मैं मिक्की हूं, अलका।"
“सबूत दे।”
"सबूत!"
"हां, जिससे साबित हो सके कि तुम मिक्की हो?"
"क्या सबूत चाहती हो?"
अलका सोच में पड़ गई—इस वक्त बड़ी ही अजीब उलझन में थी वह, मस्तिष्क गैस भरे गुब्बारे की तरह अंतरिक्ष में मंडरा रहा था, फिर भी उसने ऐसे किसी सबूत के बारे में सोचने की पुरजोर कोशिश की जो सामने खड़े व्यक्ति को स्पष्ट कर सके।
बता सके कि वह सुरेश है या मुकेश?
काफी देर सोचने के बाद अलका ने पूछा—"अच्छा ये बताओ कि बैंक में मेरे कितने पैसे हैं?"
"परसों, तूने मुझे डेढ़ हजार रुपये बताए थे, मेरे कमरे का किराया देने के बाद वहां पांच सौ अठहत्तर रुपये बाकी होंगे।"
अलका यूं खड़ी रह गई जैसी लकवा मार गया हो।
सामने खड़े व्यक्ति के चेहरे को ध्यान से.....बहुत ध्यान से अभी वह देख ही रही थी कि उसने पूछा—"क्या तुझे अब भी यकीन नहीं आया?"
अलका अब भी अवाक्-सी देख रही थी, जबकि उसने कहा— "मगर दुनिया वालों की नजरों में अब मैं मिक्की नहीं, सुरेश हूं, मिक्की मर चुका है—सुरेश जिन्दा है, वह सुरेश जिसके पास सबकुछ है—दुनिया का हर सुख जिसके कदम सिर्फ इसीलिए चूमता है क्योंकि उसे सेठ जानकीनाथ ने गोद ले लिया था और सुरेश बनने के बाद दुनिया का ऐसा कौन-सा सुख है अलका जो मिक्की तुझे न दे सके।"
"मुझे सिर्फ मिक्की चाहिए।"
\
वह तपाक से बोला— "तेरे सामने खड़े हूं।"
"म......मगर ऐसा कैसे हो सकता है?"
"योजना बनाने और उसे कार्यान्वित करने तक मैंने दृढ़ फैसला कर रखा था कि अपना राज सारी जिन्दगी किसी को नहीं बताऊंगा—तुझे भी नहीं, यह सच है अलका—तुझे भी मैंने अपना राज कभी न बताने का निश्चय किया था।"
"फिर?"
"जब आज दिन में तुझे अपने लिए विलाप करते देखा, तब पहली बार यह बात समझ में आई कि तू मुझे कितना चाहती है और निश्चय किया कि यदि जरूरत पड़ी तो तुझे अपने जिन्दा होने की हकीकत बता दूंगा—जीवन में पहली बार आज तुझे बांहों में भरकर प्यार करने का दिल चाहा, शायद अपने लिए तेरा रूदन देखकर.....लगा कि अगर मेरे पास तेरा प्यार नहीं है तो सुरेश बन जाने के बावजूद पूरी तरह 'कंगला' हूं—सो, अंधेरा होते ही यहां चला आया—पहले कोशिश की कि अपना राज बताए बिना ही पा लूं, किन्तु यह बात जल्दी ही समझ में आ गई कि ऐसा मुमकिन नहीं है—मुझे सुरेश जानकर जो कुछ तूने कहा, उसे सुनकर मेरा सीना फख्र से चौड़ा हो गया, क्योंकि तेरा एक-एक शब्द जिसके प्रति प्यार एवं असीम निष्ठा दर्शा रहा था, वह मैं ही हूं—बड़ा भाग्यवान हूं मैं जो तेरा प्यार पाया.....सच, आज के जमाने में तू एक दुर्लभ लड़की है अलका—जिसे तेरा प्यार मिल जाए, वह खुशनसीब है।"
"मिक्की तो हमेशा अपने नसीब को गालियां दिया करता था।"
"हुंह.....लद गए वह दिन, अपने नसीब को मैंने हरा दिया है—अब तो वह दुश्मन मेरे पास भी नहीं फटक सकता, क्योंकि मैं मिक्की नहीं रहा, सुरेश बन गया हूं—सुरेश का नसीब तक धारण कर लिया है मैंने।"
"नसीब धोखा नहीं खाता।"
"खाता है.....खा गया है, बल्कि आगे भी खाएगा।" पूरी तरह खुश उसने दृढ़तापूर्वक कहा— "जब तू मेरी परछाई होकर अभी तक विश्वास नहीं कर पा रही है कि मैं मिक्की हूं तो भला नसीब साला कैसे ताड़ सकता है—बचपन से उसके सामने घुटने नहीं टेके—बार-बार लड़ता रहा और अंततः मोहम्मद गोरी की तरह अपने दुश्मन को शिकस्त ही नहीं, बल्कि डॉज देने में कामयाब हो गया।"
"डॉज!"
"हां—वह नसीब जिसे छिटक कर मैंने दूर फेंक दिया है, अब बदला लेने के लिए उस शख्सियत को ढूंढता फिर रहा होगा जिसके तन पर घिसी हुई जीन्स, हवाई चप्पलें और ब्रूस ली—मुहम्मद अली वाला बनियान हुआ करता था, मगर वह शख्स उसे कहीं नहीं मिलेगा—यह डॉज देना नहीं तो और क्या है?"
"अगर तुम सचमुच मिक्की हो तो बताओ तुमने क्या, कैसे किया?"
सारे प्रतिरोध, जिस्म की हर हरकत इस तरह रुक गई जैसे विद्युत से चलने वाली मशीन का 'स्विच' ऑफ कर दिया गया हो।
अलका अवाक् रह गई।
जिस्म ढीला।
मिक्की को लगा कि यदि उसने अलका को छोड़ दिया तो रेत की बनी पुतली की मानिंद फर्श पर गिरते ही ढेर हो जाएगी।
"होश में आ अलका, खुद को संभाल।" मिक्की ने कहा— "मैं मिक्की हूं—और अगर तू जोर से बोली तो यह राज सबको मालूम हो जाएगा। मेरी योजना, सारा प्लान मिट्टी में मिल जाएगा।"
बड़ी मुश्किल से अलका स्वयं को संभाल सकी।
चेतना लौटी।
उसके पुनः गूं-गूं की तो मिक्की ने उसे छोड़ दिया, मुक्त होते ही वह घूमी और सामने खड़ी शख्सियत को आंखों में हैरत के असीमित भाव लिए देखती रह गई। उसके मुंह से कोई बोल न फूट पा रहा था, जबकि उसने पूछा—"इस तरह क्या देख रही हो?"
"त.....तुम सुरेश हो या मिक्की?"
उसके होंठों पर बड़ी ही जबरदस्त मुस्कान उभरी, बोला— "जब तू ही फर्क नहीं कर पा रही तो अब मुझे यकीन है कि कोई फर्क नहीं कर पाएगा।"
"क.....क्या मतलब?"
"मैं मिक्की हूं, अलका।"
“सबूत दे।”
"सबूत!"
"हां, जिससे साबित हो सके कि तुम मिक्की हो?"
"क्या सबूत चाहती हो?"
अलका सोच में पड़ गई—इस वक्त बड़ी ही अजीब उलझन में थी वह, मस्तिष्क गैस भरे गुब्बारे की तरह अंतरिक्ष में मंडरा रहा था, फिर भी उसने ऐसे किसी सबूत के बारे में सोचने की पुरजोर कोशिश की जो सामने खड़े व्यक्ति को स्पष्ट कर सके।
बता सके कि वह सुरेश है या मुकेश?
काफी देर सोचने के बाद अलका ने पूछा—"अच्छा ये बताओ कि बैंक में मेरे कितने पैसे हैं?"
"परसों, तूने मुझे डेढ़ हजार रुपये बताए थे, मेरे कमरे का किराया देने के बाद वहां पांच सौ अठहत्तर रुपये बाकी होंगे।"
अलका यूं खड़ी रह गई जैसी लकवा मार गया हो।
सामने खड़े व्यक्ति के चेहरे को ध्यान से.....बहुत ध्यान से अभी वह देख ही रही थी कि उसने पूछा—"क्या तुझे अब भी यकीन नहीं आया?"
अलका अब भी अवाक्-सी देख रही थी, जबकि उसने कहा— "मगर दुनिया वालों की नजरों में अब मैं मिक्की नहीं, सुरेश हूं, मिक्की मर चुका है—सुरेश जिन्दा है, वह सुरेश जिसके पास सबकुछ है—दुनिया का हर सुख जिसके कदम सिर्फ इसीलिए चूमता है क्योंकि उसे सेठ जानकीनाथ ने गोद ले लिया था और सुरेश बनने के बाद दुनिया का ऐसा कौन-सा सुख है अलका जो मिक्की तुझे न दे सके।"
"मुझे सिर्फ मिक्की चाहिए।"
\
वह तपाक से बोला— "तेरे सामने खड़े हूं।"
"म......मगर ऐसा कैसे हो सकता है?"
"योजना बनाने और उसे कार्यान्वित करने तक मैंने दृढ़ फैसला कर रखा था कि अपना राज सारी जिन्दगी किसी को नहीं बताऊंगा—तुझे भी नहीं, यह सच है अलका—तुझे भी मैंने अपना राज कभी न बताने का निश्चय किया था।"
"फिर?"
"जब आज दिन में तुझे अपने लिए विलाप करते देखा, तब पहली बार यह बात समझ में आई कि तू मुझे कितना चाहती है और निश्चय किया कि यदि जरूरत पड़ी तो तुझे अपने जिन्दा होने की हकीकत बता दूंगा—जीवन में पहली बार आज तुझे बांहों में भरकर प्यार करने का दिल चाहा, शायद अपने लिए तेरा रूदन देखकर.....लगा कि अगर मेरे पास तेरा प्यार नहीं है तो सुरेश बन जाने के बावजूद पूरी तरह 'कंगला' हूं—सो, अंधेरा होते ही यहां चला आया—पहले कोशिश की कि अपना राज बताए बिना ही पा लूं, किन्तु यह बात जल्दी ही समझ में आ गई कि ऐसा मुमकिन नहीं है—मुझे सुरेश जानकर जो कुछ तूने कहा, उसे सुनकर मेरा सीना फख्र से चौड़ा हो गया, क्योंकि तेरा एक-एक शब्द जिसके प्रति प्यार एवं असीम निष्ठा दर्शा रहा था, वह मैं ही हूं—बड़ा भाग्यवान हूं मैं जो तेरा प्यार पाया.....सच, आज के जमाने में तू एक दुर्लभ लड़की है अलका—जिसे तेरा प्यार मिल जाए, वह खुशनसीब है।"
"मिक्की तो हमेशा अपने नसीब को गालियां दिया करता था।"
"हुंह.....लद गए वह दिन, अपने नसीब को मैंने हरा दिया है—अब तो वह दुश्मन मेरे पास भी नहीं फटक सकता, क्योंकि मैं मिक्की नहीं रहा, सुरेश बन गया हूं—सुरेश का नसीब तक धारण कर लिया है मैंने।"
"नसीब धोखा नहीं खाता।"
"खाता है.....खा गया है, बल्कि आगे भी खाएगा।" पूरी तरह खुश उसने दृढ़तापूर्वक कहा— "जब तू मेरी परछाई होकर अभी तक विश्वास नहीं कर पा रही है कि मैं मिक्की हूं तो भला नसीब साला कैसे ताड़ सकता है—बचपन से उसके सामने घुटने नहीं टेके—बार-बार लड़ता रहा और अंततः मोहम्मद गोरी की तरह अपने दुश्मन को शिकस्त ही नहीं, बल्कि डॉज देने में कामयाब हो गया।"
"डॉज!"
"हां—वह नसीब जिसे छिटक कर मैंने दूर फेंक दिया है, अब बदला लेने के लिए उस शख्सियत को ढूंढता फिर रहा होगा जिसके तन पर घिसी हुई जीन्स, हवाई चप्पलें और ब्रूस ली—मुहम्मद अली वाला बनियान हुआ करता था, मगर वह शख्स उसे कहीं नहीं मिलेगा—यह डॉज देना नहीं तो और क्या है?"
"अगर तुम सचमुच मिक्की हो तो बताओ तुमने क्या, कैसे किया?"