desiaks
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नसीम ने कहा—"जो धमकी मैं महुआ को देकर आई थी, शायद वह वास्तव में उससे डर गया था। तभी तो उसने मुझसे मुलाकात का कोई जिक्र इंस्पेक्टर म्हात्रे से नहीं किया।"
"इसके बाद म्हात्रे तुम्हारे बयान लेने कोठे पर पहुंचा, उस वक्त तक क्योंकि हमारी आगे की रणनीति स्पष्ट नहीं थी, अतः तुमने साफ-साफ कुछ न कहकर घटना से अनभिज्ञता जाहिर करते हुए ऐसे गोल-मोल जवाब दिए कि म्हात्रे तुम्हारी तरफ से सन्देह की स्थिति में रहे।"
"करेक्ट।"
"इसके बाद हमारी रणनीति बनी और उस पर अमल शुरू हुआ।"
"वह रणनीती क्या थी?"
"सुरेश को चूंकि मालूम नहीं था—इसलिए अपने कमरे में एक पेन्टिंग टांगने के बहाने विनीता ने उस कील और हथौड़ी पर सुरेश की उंगलियों के निशान ले लिए जिनसे नाव की तली में छेद किए गए थे—इन दो चीजों को सुरक्षित तरीके से बड़कल लेक के किनारे ठीक उस स्थान पर जमीन में गाड़ दिया गया, जहां महुआ की नाव खड़ी रहती है—उधर, नाव में छेद करते मेरे फोटो पर ट्रिक फोटोग्राफी से सुरेश का चेहरा पेस्ट कर दिया गया—ये दोनों सुरेश को जानकीनाथ का हत्यारा साबित करने के पुख्ता सबूत थे।"
"मगर चूंकि हमें मालूम था। कि सुरेश हत्यारा नहीं है, अतः अपनी अप्रत्याशित गिरफ्तारी पर वह बुरी तरह चौंकेगा, साथ ही वह ऐसा कोई सबूत भी पेश कर सकता है जिससे हमारी सारी योजना धराशायी हो जाए।" नसीम बानो कहती चली गई—"इसलिए मैंने उसे फोन किया।"
"ये फोन की जरूरत स्पष्ट नहीं हुई।"
"दरअसल हम यह चाहते थे कि जब म्हात्रे सुरेश को गिरफ्तार करने पहुंचे तो वह इतने स्वाभाविक अंदाज में न चौंक सके, जिस देखकर म्हात्रे हमारी दी हुई लाइन से बाहर सोचने लगे।" नसीम ने कहा— "साथ ही फोन पर बात करके मैं ये भी जानना चाहती थी कि अपनी गिरफ्तारी के वक्त सुरेश अपने हक में म्हात्रे को क्या दलील या सबूत दे सकता है, ताकि उसकी काट सोचने के बाद ही हम म्हात्रे को उसके पास तक पहुंचाएं।"
विनीता बोली— "हमने योजना बनाई थी कि एक तरफ झूठे गवाहों और कील-हथौड़ी बरामद कराकर म्हात्रे के दिमाग में ठूंस-ठूंसकर सुरेश का नाम भर देंगे—दूसरी तरफ फोन कर-करके सुरेश को इतना प्रिपेयर कर लेंगे कि म्हात्रे के गिरफ्तार करने पर वह स्वाभाविक अंदाज में न चौंक सके—साथ ही अपने पक्ष में वह जो दलील और सबूत पेश करे, उसे काट सके।"
"मैंने यह सोचा था कि जब मैं फोन पर सुरेश से इस ढंग से बात करूंगी जैसे उसने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की है तो वह बुरी तरह चौंकेगा।" नसीम बानो ने कहना शुरू किया—"चीखेगा, चिल्लाएगा—कहेगा कि मैं ये क्या बेपर की उड़ा रही हूं—तब मैं उससे कहूंगी—कि इस तरह मुझसे धोखा करके वह बच नहीं सकता—मैं ये भी कहती कि मुझ अकेली को हत्या के जुर्म में फंसाने का उसका ख्वाब पूरा नहीं होगा—बौखलाकर वह चीखता-चिल्लाता ही रह जाता, जबकि मैं म्हात्रे को वादामाफ गवाह बनकर बयान देती कि सुरेश ने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की है और अब मुकर रहा है, मुझे पहचानने तक से इंकार कर रहा है—मेरी गवाही, फोटो और कील-हथौड़ी बरामद उसके फिंगर प्रिन्ट्स मुझे सच्ची और सुरेश को झूठा साबित करके मुकम्मल रूप से उसे हत्यारा साबित कर देते मगर.....।"
"मगर—?"
"ऐसा कुछ नहीं हुआ, उल्टे हम हैरत में फंस गए हैं, पूछो कैसे—पूछो।"
"कैसे?"
"जब मैंने सुरेश को फोन किया और ऐसी बातें कहीं जैसे उसने मेरे साथ मिलकर कोई अपराध किया है, तो चौंकने के स्थान पर हमारी समस्त आशाओं के विपरीत उसने भी इस तरह की बातें कीं जैसे सचमुच वह मेरे साथ किसी अपराध में शामिल रहा हो।" नसीम ने बताया—"अब चौंकने की बारी मेरी थी, मैं चौंकी ही नहीं, बल्कि यह सोचकर भौंचक्की रह गई कि जब मेरे साथ मिलकर उसने कुछ किया ही नहीं है तो इस ढंग से बातें क्यों कर रहा है?"
"बात थी ही हैरतअंगेज।"
"म्हात्रे के साथ ही काल्पनिक मनू और इला के नाम मैंने इस ढंग से लिए जैसे उनके सम्बन्ध में उससे मेरी बातचीत पहले भी हो चुकी हो, मुझे उम्मीद थी कि बुरी तरह चौंककर ढेर सारे सवाल करेगा, परन्तु उसने उल्टे इस तरह बात की मानो मेरे और उसके बीच सचमुच पहले से ही इस सम्बन्ध में बातचीत होती रही हो, उससे बात करने के बाद जब मैंने रिसीवर क्रेडिल पर रखा, तब मेरा बुरा हाल था, हाथ-पैर कांप रहे थे, चेहरे पर पसीना-ही-पसीना।"
"ऐसी हालत होना स्वाभाविक ही था।" विमल ने कहा— "सामने वाले से जब हम झूठ बोल रहे हैं और जानते हैं कि वह जानता है कि हम झूठ बोल रहे हैं तो यही उम्मीद करेंगे कि वह हमारे झूठ का प्रतिवाद करेगा—मगर जब वह झूठ का प्रतिवाद करने के स्थान पर उसे स्वीकार करने लगे तो कल्पना की जा सकती है कि झूठ बोलने वाले की हालत कितनी दयनीय हो जाएगी?"
"फोन रखने के बाद मुझे लगा कि कहीं मैं किसी भ्रम की शिकार तो नहीं हो गई हूं, अतः शाम के वक्त पुनः फोन किया—सुरेश ने सुबह की तरह ही सबकुछ स्वीकार करते हुए बातें कीं—मैंने मनू और इला का हवाला देकर बीस हजार रुपये के साथ बस अड्डे पर आने की दावत दी, इस उम्मीद में कि देखूं उस पर क्या प्रतिक्रिया होती है, मगर वह आने के लिए तैयार हो गया—सच बात तो ये है कि बस अड्डे पर उससे मिलने जाने पर मुझे डर लग रहा था, परन्तु यह सोचकर गई कि देखूं तो सही वह क्या बात करता है—बातें हुईं, आजमाने के लिए मैंने उससे कहा कि 'तुम मनू और इला से मिल चुके हो'—पट्ठा फौरन सहमत ही नहीं हो गया, बल्कि यह भी कहने लगा कि 'अब मैं ज्यादा दिन तक ब्लैकमेल होता नहीं रह सकता, अतः जल्दी ही मनू और इला का कोई इलाज सोचूंगा'—गजब की बात तो ये है कि मनू और इला से उसके मिलने की बात तो दूर, इस नाम के गुण्डे दुनिया में कहीं हैं भी, ये मैं नहीं जानती—मुझसे पांच लाख में सौदा और एक लाख बकाया की बात भी उसने स्वीकार कर ली—उल्टा आगे बढ़-बढ़कर इस तरह की बातें करने लगा जैसे सममुच उसने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की हो—इस वक्त कैफियत ये है कि जो झूठ हम बोलते हैं, उसे सुरेश हमसे भी दो-चार कदम आगे बढ़कर स्वीकार कर रहा है।"
"जबकि हम सीधे-सीधे उसे उसके बाप का हत्यारा कह रहे हैं।"
"और वह स्वीकार भी कर रहा है, जो उसने किया ही नहीं, उसे मान रहा है—सोचने वाली बात तो ये है कि आखिर क्यों है, क्या चक्कर है ये?"
विनीता ने कहा— "मेरी एक राय है।"
"क्या?" एक साथ दोनों के मुंह से निकला।
"हमारा उद्देश्य सुरेश को जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में फंसाना ही तो है न?"
"बेशक।"
"और वह स्वयं फंसने के लिए तैयार है तो क्यों न फाइनल मोहरा आगे बढ़ा दें?"
"क्या मतलब?" विमल ने पूछा।
"इसके बाद म्हात्रे तुम्हारे बयान लेने कोठे पर पहुंचा, उस वक्त तक क्योंकि हमारी आगे की रणनीति स्पष्ट नहीं थी, अतः तुमने साफ-साफ कुछ न कहकर घटना से अनभिज्ञता जाहिर करते हुए ऐसे गोल-मोल जवाब दिए कि म्हात्रे तुम्हारी तरफ से सन्देह की स्थिति में रहे।"
"करेक्ट।"
"इसके बाद हमारी रणनीति बनी और उस पर अमल शुरू हुआ।"
"वह रणनीती क्या थी?"
"सुरेश को चूंकि मालूम नहीं था—इसलिए अपने कमरे में एक पेन्टिंग टांगने के बहाने विनीता ने उस कील और हथौड़ी पर सुरेश की उंगलियों के निशान ले लिए जिनसे नाव की तली में छेद किए गए थे—इन दो चीजों को सुरक्षित तरीके से बड़कल लेक के किनारे ठीक उस स्थान पर जमीन में गाड़ दिया गया, जहां महुआ की नाव खड़ी रहती है—उधर, नाव में छेद करते मेरे फोटो पर ट्रिक फोटोग्राफी से सुरेश का चेहरा पेस्ट कर दिया गया—ये दोनों सुरेश को जानकीनाथ का हत्यारा साबित करने के पुख्ता सबूत थे।"
"मगर चूंकि हमें मालूम था। कि सुरेश हत्यारा नहीं है, अतः अपनी अप्रत्याशित गिरफ्तारी पर वह बुरी तरह चौंकेगा, साथ ही वह ऐसा कोई सबूत भी पेश कर सकता है जिससे हमारी सारी योजना धराशायी हो जाए।" नसीम बानो कहती चली गई—"इसलिए मैंने उसे फोन किया।"
"ये फोन की जरूरत स्पष्ट नहीं हुई।"
"दरअसल हम यह चाहते थे कि जब म्हात्रे सुरेश को गिरफ्तार करने पहुंचे तो वह इतने स्वाभाविक अंदाज में न चौंक सके, जिस देखकर म्हात्रे हमारी दी हुई लाइन से बाहर सोचने लगे।" नसीम ने कहा— "साथ ही फोन पर बात करके मैं ये भी जानना चाहती थी कि अपनी गिरफ्तारी के वक्त सुरेश अपने हक में म्हात्रे को क्या दलील या सबूत दे सकता है, ताकि उसकी काट सोचने के बाद ही हम म्हात्रे को उसके पास तक पहुंचाएं।"
विनीता बोली— "हमने योजना बनाई थी कि एक तरफ झूठे गवाहों और कील-हथौड़ी बरामद कराकर म्हात्रे के दिमाग में ठूंस-ठूंसकर सुरेश का नाम भर देंगे—दूसरी तरफ फोन कर-करके सुरेश को इतना प्रिपेयर कर लेंगे कि म्हात्रे के गिरफ्तार करने पर वह स्वाभाविक अंदाज में न चौंक सके—साथ ही अपने पक्ष में वह जो दलील और सबूत पेश करे, उसे काट सके।"
"मैंने यह सोचा था कि जब मैं फोन पर सुरेश से इस ढंग से बात करूंगी जैसे उसने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की है तो वह बुरी तरह चौंकेगा।" नसीम बानो ने कहना शुरू किया—"चीखेगा, चिल्लाएगा—कहेगा कि मैं ये क्या बेपर की उड़ा रही हूं—तब मैं उससे कहूंगी—कि इस तरह मुझसे धोखा करके वह बच नहीं सकता—मैं ये भी कहती कि मुझ अकेली को हत्या के जुर्म में फंसाने का उसका ख्वाब पूरा नहीं होगा—बौखलाकर वह चीखता-चिल्लाता ही रह जाता, जबकि मैं म्हात्रे को वादामाफ गवाह बनकर बयान देती कि सुरेश ने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की है और अब मुकर रहा है, मुझे पहचानने तक से इंकार कर रहा है—मेरी गवाही, फोटो और कील-हथौड़ी बरामद उसके फिंगर प्रिन्ट्स मुझे सच्ची और सुरेश को झूठा साबित करके मुकम्मल रूप से उसे हत्यारा साबित कर देते मगर.....।"
"मगर—?"
"ऐसा कुछ नहीं हुआ, उल्टे हम हैरत में फंस गए हैं, पूछो कैसे—पूछो।"
"कैसे?"
"जब मैंने सुरेश को फोन किया और ऐसी बातें कहीं जैसे उसने मेरे साथ मिलकर कोई अपराध किया है, तो चौंकने के स्थान पर हमारी समस्त आशाओं के विपरीत उसने भी इस तरह की बातें कीं जैसे सचमुच वह मेरे साथ किसी अपराध में शामिल रहा हो।" नसीम ने बताया—"अब चौंकने की बारी मेरी थी, मैं चौंकी ही नहीं, बल्कि यह सोचकर भौंचक्की रह गई कि जब मेरे साथ मिलकर उसने कुछ किया ही नहीं है तो इस ढंग से बातें क्यों कर रहा है?"
"बात थी ही हैरतअंगेज।"
"म्हात्रे के साथ ही काल्पनिक मनू और इला के नाम मैंने इस ढंग से लिए जैसे उनके सम्बन्ध में उससे मेरी बातचीत पहले भी हो चुकी हो, मुझे उम्मीद थी कि बुरी तरह चौंककर ढेर सारे सवाल करेगा, परन्तु उसने उल्टे इस तरह बात की मानो मेरे और उसके बीच सचमुच पहले से ही इस सम्बन्ध में बातचीत होती रही हो, उससे बात करने के बाद जब मैंने रिसीवर क्रेडिल पर रखा, तब मेरा बुरा हाल था, हाथ-पैर कांप रहे थे, चेहरे पर पसीना-ही-पसीना।"
"ऐसी हालत होना स्वाभाविक ही था।" विमल ने कहा— "सामने वाले से जब हम झूठ बोल रहे हैं और जानते हैं कि वह जानता है कि हम झूठ बोल रहे हैं तो यही उम्मीद करेंगे कि वह हमारे झूठ का प्रतिवाद करेगा—मगर जब वह झूठ का प्रतिवाद करने के स्थान पर उसे स्वीकार करने लगे तो कल्पना की जा सकती है कि झूठ बोलने वाले की हालत कितनी दयनीय हो जाएगी?"
"फोन रखने के बाद मुझे लगा कि कहीं मैं किसी भ्रम की शिकार तो नहीं हो गई हूं, अतः शाम के वक्त पुनः फोन किया—सुरेश ने सुबह की तरह ही सबकुछ स्वीकार करते हुए बातें कीं—मैंने मनू और इला का हवाला देकर बीस हजार रुपये के साथ बस अड्डे पर आने की दावत दी, इस उम्मीद में कि देखूं उस पर क्या प्रतिक्रिया होती है, मगर वह आने के लिए तैयार हो गया—सच बात तो ये है कि बस अड्डे पर उससे मिलने जाने पर मुझे डर लग रहा था, परन्तु यह सोचकर गई कि देखूं तो सही वह क्या बात करता है—बातें हुईं, आजमाने के लिए मैंने उससे कहा कि 'तुम मनू और इला से मिल चुके हो'—पट्ठा फौरन सहमत ही नहीं हो गया, बल्कि यह भी कहने लगा कि 'अब मैं ज्यादा दिन तक ब्लैकमेल होता नहीं रह सकता, अतः जल्दी ही मनू और इला का कोई इलाज सोचूंगा'—गजब की बात तो ये है कि मनू और इला से उसके मिलने की बात तो दूर, इस नाम के गुण्डे दुनिया में कहीं हैं भी, ये मैं नहीं जानती—मुझसे पांच लाख में सौदा और एक लाख बकाया की बात भी उसने स्वीकार कर ली—उल्टा आगे बढ़-बढ़कर इस तरह की बातें करने लगा जैसे सममुच उसने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की हो—इस वक्त कैफियत ये है कि जो झूठ हम बोलते हैं, उसे सुरेश हमसे भी दो-चार कदम आगे बढ़कर स्वीकार कर रहा है।"
"जबकि हम सीधे-सीधे उसे उसके बाप का हत्यारा कह रहे हैं।"
"और वह स्वीकार भी कर रहा है, जो उसने किया ही नहीं, उसे मान रहा है—सोचने वाली बात तो ये है कि आखिर क्यों है, क्या चक्कर है ये?"
विनीता ने कहा— "मेरी एक राय है।"
"क्या?" एक साथ दोनों के मुंह से निकला।
"हमारा उद्देश्य सुरेश को जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में फंसाना ही तो है न?"
"बेशक।"
"और वह स्वयं फंसने के लिए तैयार है तो क्यों न फाइनल मोहरा आगे बढ़ा दें?"
"क्या मतलब?" विमल ने पूछा।