FreeSexKahani - फागुन के दिन चार - Page 10 - SexBaba
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FreeSexKahani - फागुन के दिन चार

[color=rgb(243,]रंग[/color]
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दीदी का तो बहाना है मजा तुम ले रहे हो। बदमाश। रात को देखना। बहुत तंग कर रहे हो ना." फुसफुसा के वो बोली।

मेरी उंगलियां उसके किशोर उभारों पे भी मेरे गालों का रंग छोड़ रही थी। लेकिन ज्यादा रंग तो रीत के उभारों पे ही लग गया था। तभी मेरी खोजी निगाह गुड्डी के पीठ की ओर पड़ी, चड्ढी के पास फ्राक फूली हुई थी।

-"ये बात है."

मैंने झट से हाथ डालकर निकाल लिया। रंग की सारी ट्यूबें। लाल, गुलाबी, काही, नीला, पीला। जैसे किसी हारती हुई सेना को रसद का भंडार मिल जाय वो हालत मेरी थी। मैंने उसे पकड़े-पकड़े एक हथेली पे गुलाबी दूसरे पे लाल रंग मला।

"दीदी." कहकर वो चीख रही थी, छटपटा रही थी।

"हाँ। आप आई थी ना मुझे बचाने." कहकर रीत मुश्कुरा रही थी और उसकी बड़ी-बड़ी आँखें मुझे उकसा रही थी।

"तू कह रह थी ना की सबके सामने। सही बात है तो चलो अन्दर हाथ डाल देता हूँ."

मेरे एक हाथ ने आराम से उसके बटन खोले और रंग लगाने दूसरा हाथ अन्दर।

"और क्या छुट्टी नीचे वाली की है। ऊपर थोड़े ही है." चंदा भाभी बोली।

गुड्डी- "हे हे। क्या करते हो?" कहकर वो नखड़ा दिखा रही थी। लेकिन मैं भी जानता था की उसे अच्छा लग रहा है और वो भी जानती थी की मैं रुकने वाला नहीं हूँ।

मुझे रात की चंदा भाभी की बात याद आ रही थी की उसे खूब रगड़ो, सबके सामने रगड़ो। सारी शर्म गायब कर दो तब वो मजे ले लेकर करवाएगी। पहले तो मैंने दोनों हाथों से उसके मस्त उभार पकड़े, दबाये। अब मैं सीख गया था की कैसे उंगलियों के निशान वहां छोड़े जाते हैं। मैं बस कस-कसकर दबा रहा था जोबन रस लूट रहा था।

रीत दूर खड़ी चिढ़ा रही थी उसे- "क्यों गुड्डी मजा आ रहा है। अरे यही तो उम्र है इन उभारों का रस लूटने का."

मैं भी अब मेरी उंगलियां, कभी उसके निपल को फ्लिक करती कभी पिंच कर देती। रंग तो बस एक बहाना था।

गुड्डी भी अब खुलकर दबवा रही थी, मजे ले रही थी। फिर वो मेरे कान में बोली-

"अरे यार मेरे साथ तो रात भर खुलकर और खोलकर लोगे। वो जो खिलखिला रही है ना। कामरस मेरा मतलब आम-रस वाली। उसके आमों का रस लूटो ना फिर कब पकड़ में आएगी."

रीत तंग पीली कमीज और शलवार में हम दोनों को देखकर मुश्कुरा रही थी- "क्या पक रहा है तोता मैना में?" फिर वो बोली- "क्यों साजिश तो नहीं हो रही?"

"अरे नहीं, मैं ये देख रहा था की किसका बड़ा है? गुड्डी का या." मैं हँसकर बोला।

"बड़ा तो रीत दीदी का ही है। मुझसे बड़ी भी तो हैं." गुड्डी बोली।

रीत ने चिढ़ाया- "घबड़ा मत घबड़ा मत। लौटकर आयेगी न एक हफ्ते के बाद तब देखूंगी। कम से कम दो नंबर बढ़ जायेंगे ये."

मैं जैसे ही रीत की ओर बढ़ा, वो चालाक मेरा इरादा भांप गई और तेजी से मुड़ी,

लेकिन पीछे चंदा भाभी। आखिर रीत उनकी भी तो ननद थी-

"अरे कहाँ जा रही हो ननद रानी, कौन सा यार इन्तजार कर रहा है?" उन्होंने उसका रास्ता रोका और इतना समय काफी था मेरे लिए।

"मुझसे बड़ा यार कौन होगा। मेरी भाभी भी, साली भी." मैंने बोला और पीछे से पकड़ लिया।

मछली की तरह वो फिसली, लेकिन सामने चंदा भाभी और मेरी पकड़ भी। वो समझ रही थी की मेरे हाथ कहाँ जाने वाले हैं इसलिए उसने दोनों हाथ सीधे अपने उभारों पे।

"एक बार ले लेने दो ना अन्दर से। प्लीज." मैंने अर्जी लगाई।

"तो ले लो न। मैंने कब मना किया है." उस शैतान ने बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोला।

वो भी जानती थी और मैं भी की बिना ऊपर का हुक खोले। मेरा हाथ ऊपर से अन्दर नहीं जा सकता और जब तक वो हाथ हटाएगी नहीं।

मैं हाथ नीचे नाड़े की ओर ले गया पर वो एक कातिल अदा से मुश्कुराकर बोली- "हे हे। एक ट्रिक दो बार नहीं चलती." वो देख चुकी थी की मैंने कैसे गुड्डी के साथ।

लेकिन मेरे तरकश में सिर्फ एक ही तीर थोड़े ही था। मेरे दोनों हाथ उसकी जांघों तक पहुँचे फिर एक झटके में उसका कुरता ऊपर उठा दिया। कुरता ऊपर से तो टाईट था लेकिन नीचे से घेर वाला। और जब तक वो सम्हले सम्हले मेरा हाथ अन्दर।

तुरंत वो ब्रा के ऊपर, लेसी ब्रा में उसके उड़ने को बेताब गोरे-गोरे कबूतर और मेरे हाथ में लगा लाल गुलाबी रंग ब्रा के ऊपर से ही उसे रंगने लगा।

"अब ताला लगाने से क्या फायदा जब चोर ने सेंध लगा ली हो." चंदा भाभी ने रीत को छेड़ा और ये कहते हुए अन्दर किचेन में चली गईं की वो दस पन्दरह मिनट में आती हैं।

बिचारी रीत। उसने मुझे देखा और अपने हाथ हटा लिए। एक बार पहले ही मैं उन कबूतरों को आजाद करा चुका था और मुझे मालूम था की ये फ्रंट ओपन ब्रा है। इसलिए अगले पल चटाक-चटाक।

हुक खुल गया और वो जवानी के रसीले खिलौने बाहर।

"थैंक्स रीत." मैं बोला और अगले ही पल उसके गदराये रसीले जोबन, मेरी मुट्ठी में।

क्या मस्त उभार थे, एकदम परफेक्ट, खूब कड़े भी मुलायम भी, जस्ट पके। पहले तो बस मैं छूता रहा, सहलाता रहा। तभी मुझे होश आया की यार ये टाइम ऐसे ही। मैंने गुड्डी को आवाज दी-

"हे यार। जरा सीढ़ी के पास। चंदा भाभी तो बोलकर गई हैं की दस पन्दरह मिनट के लिए तो बस सीढ़ी ही। अगर कोई आता दिखाई दे न तो आवाज लगा देना."
"अच्छा जी। मुझसे चौकीदारी करवाई जा रही है."गुड्डी चमक के बोली

रीत ने भी उसकी ओर रिक्वेस्ट के तौर पे देखा। और गुड्डी सीढ़ी के पास जाकर खड़ी हो गई।
मुस्कराते हुए उसने मुझे ग्रीन सिग्नल भी दे दिया,

चंदा भाभी खुद ही जान बुझ के बोल के गयी थीं की पंद्रह बीस मिनट में आती हैं, इतना समय काफी होगा उनकी ननदिया की बिल में सेंध लगाने के लिए,
रीत की पीठ हम दोनों की ओर थी, गुड्डी मुझे मीठी निगाहों से देख रही थी चाहती तो वो भी थी की मैं रीत के साथ, एक बार डांट भी चुकी थी और अब उससे नहीं रहा गया तो चुदाई का इंटरनेशनल सिग्नल, अंगूठे और तर्जनी से गोल बना के और

रंग लगाते-लगाते मैं रीत को टेबल के पास लेकर आ गया था। सहारे के लिए झुक के उसने टेबल पकड़ ली थी और झुक गई थी। अब उसके मस्त चूतड़ ठीक मेरे तन्नाये लिंग से ठोकर खा रहे थे। मैंने खुलकर मम्मे मसलने शुरू कर दिए। क्या चीज है ये भी यार, मैं सोच रहा था। कभी दबाता, कभी मसलता, कभी रगड़ता और कभी निपल पकड़कर कसकर खींच देता।

वो सिसकियां भर रही थी, अपने मस्त चूतड़ रगड़ रही थी। सिर्फ तन से ही नहीं मन से भी वो बेस्ट थी।

"रीत इज बेस्ट." मैंने उसके कान में फुसफुसाया।

जवाब में वो सिर्फ सिसक दी। खुली छत। लेकिन मैं जैसे पागल हो रहा था। थोड़ा सा बरमूडा सरका के मैंने अपना हथियार सीधे,
"ओह्ह. नहीं फिर कभी अभी नहीं." वो सिसकियां भर रही थी। लेकिन साथ ही उसने अपनी टांगें चौड़ी कर ली।

"रीत। रीत, बस थोड़ा सा। खाली टच। ओह्ह." और मैं खुला सुपाड़ा उसकी पुत्तियों पे रगड़ रहा था। वो पिघल रही थी। मैंने कसकर उस सुनयना की पतली बलखाती कमर पकड़ ली।

तभी खट खट की सीढ़ी पे आवाज हुई और गुड्डी बोली- "अरे दूबे भाभी जल्दी."

मैं और रीत तुरंत कपड़े ठीक करने में एक्सपर्ट हो गए थे। मैंने उसकी थांग ठीक की और उसने तुरंत अपनी पाजामी का नाड़ा बाँध लिया। मैंने उसका कुरता खींचकर नीचे कर दिया।

गुड्डी भी, उसने मेरा बर्मुडा ऊपर सरकाया और हम तीनों अच्छे बच्चों की तरह टेबल पे किसी काम में बिजी हो गए।
 
[color=rgb(209,]दूबे भाभी[/color]

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तभी खट खट की सीढ़ी पे आवाज हुई और गुड्डी बोली- "अरे दूबे भाभी जल्दी."

मैं और रीत तुरंत कपड़े ठीक करने में एक्सपर्ट हो गए थे। मैंने उसकी थांग ठीक की और उसने तुरंत अपनी पाजामी का नाड़ा बाँध लिया। मैंने उसका कुरता खींचकर नीचे कर दिया। गुड्डी भी। उसने मेरा बर्मुडा ऊपर सरकाया और हम तीनों अच्छे बच्चों की तरह टेबल पे किसी काम में बिजी हो गए।

चंदा भाभी भी बाहर आ गई थी और हम लोगों को देखकर मुश्कुरा रही थी। उन्हें अच्छी तरह अंदाजा था।

तब तक सीढ़ी पर से दूबे भाभी आई।

मैं उन्हें देखता ही रह गया।

जबरदस्त फिगर, दीर्घ नितंबा, गोरा रंग, तगड़ा बदन, भारी देह लेकिन मोटी नहीं। मैं देखता ही रह गया। लाल साड़ी, एकदम कसी, नाभि के नीचे बँधी, सारे कर्व साफ-साफ दिखते, स्लीवलेश लो-कट आलमोस्ट बैक-लेश लाल ब्लाउज़, गले से गोलाइयां साफ-साफ झांकती, कम से कम 38डीडी की फिगर रही होगी। नितम्ब तो 40+ विज्ञापन वाली जो फोटुयें छपती हैं। एकदम वैसे ही। पूरी देह से रस टपकता। लेकिन सबसे बड़ी बात थी, एकदम अथारटी फिगर। डामिनेटिंग एकदम सेक्सी।

उन्होंने सबसे पहले रीत और गुड्डी को देखा और फिर मुझे। नीचे से ऊपर तक।

उनकी निगाह एक पल को मेरे बरमुडे में तने लिंग पे पड़ी और उन्होंने एक पल के लिए चंदा भाभी को मुश्कुराकर देखा।

लेकिन जब मेरे चेहरे पे उनकी नजर गई तो एकदम से जैसे रंग बदल गया हो। मेरे रंग लगे पुते चेहरे को वो ध्यान से देख रही थी। फिर उन्होंने गुड्डी और रीत को देखा, तो दोनों बिचारियों की सिट्टी पिट्टी गम।

"ये रंग। किसने लगाया?" ठंडी आवाज में वो बोली।

किसी ने जवाब नहीं दिया। फिर चंदा भाभी बोली- "नहीं होली तो आपके आने के बाद ही शुरू होने वाली थी लेकिन। बच्चे हैं खेल खेल में। जरा सा."
"वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?"

"वो जी। इसने." गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।

बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया-

"नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही। पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे."

दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।

वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।

"अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?"

वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।

"बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में." वो बोली और फिर कहा- "चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम."

मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- "तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?"

हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- "ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के."

"वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है." रीत मुँह बनाकर बोली।

"मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत." मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।

"करूँगा रीत और तीन बार करूंगा कम से कम। आखीरकर, तुम्हीं ने तो कहा था की हमारा रिश्ता ही तिहरा है। मुझे मेरी और तेरी किश्मत के बारे में पूरी तरह से मालूम है." हँसकर मैंने हल्के से कहा।

रीत का चेहरा खिल गया। बोली- "एकदम और मेरी गिनती थोड़ी कमजोर है। तुम तीन बार करोगे और मैं सिर्फ एक बार गिनूंगी। फिर दुबारा से."

तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।

"यार हमारी चालाकी पकड़ी गई." रीत बोली।

"हाँ दूबे भाभी के आगे." गुड्डी बोली।

तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया

दूबे भाभी गरजीं- "हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की."

उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।

मैंने चिढ़ाया- "हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से."

"चुप." जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की।

तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर 'बहुत तैयारी' से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया।

"चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी." वो बोली।

उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर- "क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?" और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।

चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली-

"उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है." और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा-

"क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले."
 
[color=rgb(209,]फागुन के दिन चार- भाग १२[/color]
[color=rgb(184,]पहले रंगाई फिर[/color] [color=rgb(84,]धुलाई

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"वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?"दूबे भाभी कड़क के बोलीं

"वो जी। इसने." गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।

बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया उसकी रक्षा करने -

"नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही, पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे."

दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।

वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।

"अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?" वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।

"बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में." वो बोली और फिर गुड्डी और रीत को हड़काया - "चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम." मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- "तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?"

हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- "ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के."

"वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है." रीत मुँह बनाकर बोली।

"मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत." मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।

तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।

"यार हमारी चालाकी पकड़ी गई." रीत बोली।
"हाँ दूबे भाभी के आगे." गुड्डी बोली।

तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया

दूबे भाभी गरजीं- "हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की."

उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।

मैंने चिढ़ाया- "हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से."

"चुप." जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की।

तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर 'बहुत तैयारी' से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया। "चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी." वो बोली।

उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर-

"क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?" और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।

चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली- "उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है." और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा- "क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले."

चन्दा भाभी ने शर्माते झिझकते बोला- "अरे नहीं। आपका ही तो इंतजार हम कर रहे थे। ये तो कल ही भागने के फिराक में था बड़ी मुश्किल से गुड्डी ने इसे रोका."

दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- "चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो."

मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- "भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए."

"एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो."

मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- "ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से." वो बोली।
 
-[color=rgb(243,]---दूबे भाभी और भांग के गुलाबजामुन
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दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- "चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो."

मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- "भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए."

"एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो."वो मुस्कराते हुए बोलीं, उनकी निगाहे मेरे चिकने चेहरे पर चिपकी थी, जहाँ से गुड्डी और रीत ने रगड़ रगड़ कर एक एक दाग रंग का साफ़ कर दिया था, और चेहरा और साफ़ चिकना लग रहा था।

मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- "ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से." वो बोली।

"सच। अरे तब तो एक और."
डबल डोज वाले नत्था के दो गुलाब जामुनों का असर तो होना ही था थोड़े देर में। उनकी निगाह बियर के ग्लासों पे पड़ी- "ये क्या है?"

रीत अब मेरी परफेक्ट असिस्टेंट बनती जा रही थी- "अरे भाभी ये इम्पोर्टेड ड्रिंक है, स्पेशल। ये लाये हैं."

मेरे कहने पे वो शायद ना मानती लेकिन रीत तो उनकी अपनी ननद थी।

"हाँ एकदम। लीजिये ना मेरे हाथ से." मैं बोला।

उन्होंने लेते समय मेरी उंगलियों को रगड़ दिया। बियर पीते-पीते उनकी निगाह गुड्डी की ओर पड़ी-

"तू पिछले साल बचकर आ गई थी ना होली में आज सूद समेत। सारे कपड़े उतारकर." दूबे भाभी पे गुलाब जामुन का असर चढ़ रहा था।

चंदा भाभी ने कुछ उनके कान में फुसफुसाया। दूबे भाभी की भौंहें चढ़ गईं। लेकिन फिर बियर की एक घूँट लगाकर बोली-

"गलत मौके पे आती है तेरी ये सहेली."

फिर कुछ सोचकर कहा- "चल कोई बात नहीं। आज छुट्टी है तो होली के दिन तक तो। होली के तो अभी 5 दिन है। उस दिन कोई नाटक मत करना."

"लेकिन मैं तो आज, इनके साथ। मम्मी ने बोला था। अभी थोड़े देर में ही। होली वहीं." गुड्डी घबड़ाते हुए बोल रही थी।

अब तो दूबे भाभी का पारा जैसे किसी के हाथ से शिकार निकल जाय। मुझसे बोली- "तुम तो आओगे ना इसको छोड़ने। तो फिर रंग पंचमी में। रुकोगे ना."

"असल में मेरी ट्रेनिग. फिर हफ्ते में दो ही दिन यहाँ से सीधी गाडी है सिकंदराबाद के लिए और ट्रेन से टाइम लगता है, इसलिए इसको छोड़ने के बाद, मैंने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी की, कितने दिन रुकूंगा, कब आऊंगा लेकिन,...

दूबे भाभी का जैसे चेहरा उतर गया हो सारा भांग और बियर का नशा गायब हो गया। फिर उनकी भौंहे चढ़ गईं। उन्होंने कुछ चंदा भाभी से कहा। मैं और रीत थोड़ी दूर खड़े थे।

चन्दा भाभी ने अलग हटकर कुछ गुड्डी को बुलाकर कहा।

उस बिचारी का चेहरा भी बुझ गया। वो बार-बार ना ना के इशारे से सिर हिलाती रही। जैसे कोई अर्जेंट कांफ्रेंस चल रही हो।
दूबे भाभी ने जैसे गुड्डी के साथ जम के मस्ती करने की सोची हो और साथ में बोनस में मैं, लेकिन गुड्डी का वो पांच दिन का चक्कर

तो आज होली बिफोर होली में वो साफ़, मतलब उसकी चुनमुनिया साफ़ बच गयी,

और होली के दिन भी वो यहाँ नहीं होती, और सबसे बड़ी बात

होली आफटर होली में मैं बच निकलता, ट्रेनिंग पर जाने के नाम पर तो उनकी सारी प्लानिंग, न होली बिफोर होली में, न होली में न होली आफ्टर होली में मतलब रंग पञचमी में
 
[color=rgb(65,]शर्त - होली आफटर होली की
colors-holi-18.jpg
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चन्दा भाभी ने अलग हटकर कुछ गुड्डी को बुलाकर कहा। उस बिचारी का चेहरा भी बुझ गया। वो बार-बार ना ना के इशारे से सिर हिलाती रही। जैसे कोई अर्जेंट कांफ्रेंस चल रही हो।

फिर वो मेरे पास आई और मेरे कान में बोली-

"हे दूबे भाभी बहुत नाराज हैं। क्या तुम किसी तरह और नहीं रुक सकते। वो रंग पंचमी के दिन। कोई रास्ता निकालो प्लीज."

"तुम्हें तो मेरी मजबूरी मालूम है ना। उसी दिन मेरी ट्रेनिंग शुरू होने वाली है। और फिर ट्रेन से कम से कम दो दिन लगता है। कैसे बताओ." मैंने उसे समझाने की कोशिश की।

"लेकिन मैं भी क्या करूँ। तुम्हीं बताओ?" वो हाथ मसल रही थी।

मैं क्या बोलता।

मैंने फिर उसे समझाया- "अरे यार टिकट एयर का। मालूम है। चलो मान लो। लेकिन तुम्हारे मम्मी पापा भी तो आ जायेंगे।

भूल गए तुम गुड्डी ने हड़काया, गुड्डी के दिमाग में कुछ चमका और वो मुस्करायी

सच में भूल गया था,

एक तो रीत के हाथ के बनाये दहीबड़े में पड़े डबल डोज भांग का नशा, दूसरे रीत के जोबन का भी नशा, तीन दिन का रुकना तो कल ही तय हो गया था गुड्डी की मम्मी और बहनों के सामने फोन पे बात करते हुए और यही तो

और गुड्डी न होती न याद दिलाने के लिए तो मेरी कस के ली जाती वो भी बिना तेल लगाए और गुड्डी और उसी सब बहनों के सामने, लेती उसकी मेरा मतलब मम्मी, उन्होंने मुझसे वायदा किया था की मैं होली पे लौट के कम से कम तीन दिन यहाँ रहूं, गुड्डी की बहनो और श्वेता ने मुझे बाँट भी लिया था होली खेलने के नाम पे और फ्लाइट का टाइम भी मैंने देख लिया था, एकदम टाइम से पहुँच जाता, और गुड्डी के पापा तो कानपुर से ही दस बारह दिन के लिए बाहर

अब मुझे एक एक बात याद आ गयी थी, ये गुड्डी न हो तो मेरा एक पल काम न चले, और वो सरंगनायनी जिस तरह देख रही थी, मानो कह रही हो, क्यों नहुँ होउंगी मैं, ऊपर से लिखवा के लायी हूँ, पानी चाहे जहाँ इधर उधर गिराओ, लेकिन तुम और तेरा दिन मेरी मुट्ठी में है और रहेगा ,

आवाज से ज्यादा मन में, गुड्डी की मम्मी और उनका चेहरा, छेड़ती आँखे और बातें और सबसे बढ़ कर ब्लाउज फाड़ते,... और उनकी आवाज एक बार फिर चालू हो गयी

" और मैं सोच रही थी की तुम गुड्डी को छोड़ने तो आओगे ही, तो एकाध दिन और रुक जाते, कम से कम तीन दिन, एक दो दिन में क्या,... अबकी की तो तुमसे भी मुलाकात भी बस,... और हमारा तुम्हारा फगुआ भी उधार है, हमारी होली तो अबकी की एकदम सूखी, तो दो तीन रहोगे तो ज़रा,...

" हम दोनों की भी,... " छुटकी ने जोड़ा और श्वेता ने करेक्शन जारी किया, " नहीं, हम तीनो की "

और मैं जल्दी जल्दी कैलकुलेट कर रहा था, बनारस से भी हफ्ते में दो ही दिन सिकंदराबाद के लिए ट्रेन थी, जिससे मैंने लौटने का रिजर्वेशन करा रखा था, उसके हिसाब से मुझे एक डेढ़ दिन मिलता गुड्डी के यहाँ, लेकिन एक दिन का गुड्डी का एक्स्ट्रा साथ,... इसके लिए तो मैं,... और मैंने हल भी ढूंढ लिए, बाबतपुर ( बनारस का एयरपोर्ट ) से दिल्ली की तो तीन चार फ्लाइट रोज हैं और दिल्ली से सिकंदराबाद की भी, ... तो अगर मैं फ्लाइट से प्लान बनाऊं ,... तो कम से कम डेढ़ दिन और मिल जाएगा, और ट्रेनिंग शुरू होने के चार पांच घंटे पहले पहुँच जाऊँगा तो थोड़ा लेट वेट भी हुआ तो टाइम से,... हाँ रगड़ाई होगी तो हो , गुड्डी तो रहेगी न पास में,... और मम्मी खुश हो गयी तो क्या पता जो सपने मैं इत्ते दिन से देख रहा हूँ इस लड़की को हरदम के लिए उठा ले जाने का, ... वो पूरा ही हो जाए , ...

फिर श्वेता और छुटकी की बात भी याद आ गयी,

" गुड्डी मेरा भी रिजर्वेशन " श्वेता की आवाज थी,

" दी आपका तो ये दौड़ के के कराएंगे,... सबसे पहले,... होली आफ्टर होली में आखिर आप नहीं होंगी तो इनके कपडे कौन फाड़ेगा अंदर तक रंग कौन लगाएगा "
गुड्डी चहक के बोली।

" देख यार गुड्डी, कपडे पे रंग लगाना, एक तो कपडे की बर्बादी, दूसरे रंग की बर्बादी। फिर कपड़े उतारने में बहुत टाइम बर्बाद होता है, इसलिए सीधे फाड़ ही देने चाहिए, ... मैं तो यही मानती हूँ " श्वेता, गुड्डी से एक साल सीनियर, बारहवीं वाली,बोली।

दो आवाजें और आयी, पहले छुटकी की फिर मंझली जो अब तक चुप थी, ' मैं भी यही मानती हूँ , दी "

" देख यार, मेरी जिम्मेदारी इन्हे इनके मायके से पकड़ के ले आने की है, फिर तीन दिन तक,... तुम सब जानो, तेरे हवाले वतन साथियों। " गुड्डी अंगड़ाई लेकर बोली,

और दूबे भाभी भी तो यही चाह रही हैं, तीन दिन कम से कम, अगर घर से थोड़ा पहले निकल लूँ, वहां भी तो गुड्डी से ही होली खेलने का लालच है तो गुड्डी की मम्मी के आने के पहले ही यहाँ और सबके मन की बात हो जायेगी, सबसे बढ़ के गुड्डी की।

और यही बात दूबे भाभी भी चाह रही थीं, की मैं होली के बाद की होली के लिए, तो दूबे भाभी भी खुश, मम्मी भी खुश और गुड्डी की बहने भी खुश

बस मैं मान गया

"तुम भी तो समझो। मैं कुछ कहती हूँ। कुछ करो ना और यार तुम तीन दिन रह लोगे यहाँ। रीत भी तो है। उसके साथ भी."

समझ तो गुड्डी भी गयी थी, मैं सपने में भी उसकी, मेरा मतलब मम्मी की बात टालने की नहीं सोच सकता था लेकिन बोनस के ऊपर बोनस, सामने रीत खड़ी थी, उसे सुनाते हुए वो बोली

मैंने सामने देखा। रीत। एकदम सेक्सी, टाईट कुरते में उसके मस्त उभार छलक रहे थे। जवानी के कलशे रस से भरे, पतली बलखाती कमर और नीचे मस्त गदराये चूतड़, चिकनी केले के तने की तरह जांघें। मुझे देखकर मुश्कुराते हुये उसने अपने रसीले होंठों को हल्के से काट लिया और एक भौंह ऊँची कर दी। बस। बिजली गिर गई।

"चलो तुम इतना कहती हो तो आ जायेंगे रंगपंचमी तो नहीं लेकिन उसके पहले तीन दिन, ." मैं मुश्कुराकर बोला।

रीत पास आ गई थी।

"लौटकर आयेंगे भी ये और तीन दिन रुकेंगे भी, हाँ रंगपंचमी के एक दिन पहले निकल जाएंगे "." गुड्डी बोली।

"अरे वाह फिर तो.र हम लोग रंगपंचमी पहले मना लेंगे, तीन दिन मना लेंगे, जैसे आज होली बिफोर होली " रीत ने अपनी गोरी कलाई ऊँची की और दोनों ने दे ताली। गुड्डी चंदा भाभी की ओर गई। रीत ने मेरी ओर हाथ किया और हम दोनों ने भी दे ताली।

"हे तुम्हें मालूम है ना की मैं क्यों लौट रहा हूँ?" मैंने रीत से पूछा।

"एकदम." और उसकी निगाहों ने मेरी आँखों की चोरी, उसके किशोर जोबन को घूरते पकड़ ली थी- "नदीदे। लालची। बदमाश." वो बोली और मेरी ओर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ा दिया।

तब तक गुड्डी लौट आई थी। उसकी खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी। वो बोली-

"चंदा भाभी कह रही थी की तुम खुद दुबे भाभी से बोलो ना तो उन्हें अच्छा लगेगा."

"चलो." और मैं गुड्डी का हाथ पकड़कर दूबे भाभी की ओर चल पड़ा।

"मैं, हम दोनों रंग पंचमी के पहले ही आ जायेंगे। और मैं तीन दिन रुक के जाऊँगा। गुड्डी बोल रही थी की यहाँ पे रंग पंचमी जबरदस्त होती है तो मैंने सोचा की पहले तो मैंने कभी देखी नहीं हैं फिर आप लोगों के साथ.फिर आप की बात टालने की तो, आपने कहा तो, हाँ रंगपंचमी के एक दिन पहले निकल जाऊँगा लेकिन तीन दिन पूरा यहीं,

लेकिन दूबे भाभी समझदार नहीं, महा समझदार, रीत की भी भाभी, उन्होंने एक बार मेरी ओर देखा फिर गुड्डी की ओर और जोर से मुस्करायी, फिर चंदा भाभी की ओर, मानों उनसे कह रही हो लोग तो शादी के बाद जोरू का गुलाम होते हैं ये तो पहले से ही, एक बार गुड्डी ने बोला और,

लेकिन मैं रुकने को मान गया था मुझे चिढ़ाए गरियाये बिना क्यों छोड़ती
" अगर न रुकते न तो तेरी भी गांड मारती और तेरी महतारी की भी, वो भी सूखे, कडुवा तेल बहुत महंगा हो गया है। "

मेरी निगाहें रीत के कटाव पे, गदराये मस्त उभारों पे टिकी हुई थी। आज भले बच जाय उस दिन तो, चाहे जो हो जाय और वो सारंग नयनी भी मुश्कुरा रही थी। मेरी आँखों में आँखें डालकर बोली-

"होना है तो हो जाय। अब इत्ते दिनों से बचाकर तो ये जोबन रखा है। लुट जाय तो लुट जाय."

हमारी आँख का खेल रुका दूबे भाभी की आवाज से- "अरे ये तो बहुत अच्छी बात है चलो कुछ मीठा हो जाय." और प्लेट से उठाकर उन्होंने एक गुलाब जामुन मेरे मुँह में।

मैंने बहुत नखड़ा किया। मुझे तो मालूम था कि ये दिल्ली के नहीं नत्था के भंग के डबल डोज वाले हैं और मेरे अलावा चंदा भाभी को और गुड्डी को भी।

लेकिन चंदा भाभी भी दूबे भाभी के साथ- "अरे ये ऐसे कोई चीज नहीं घोटते, जबरदस्ती करनी पड़ती है। ये बिन्नो के ससुराल वालों की आदत है." और ये कहकर उन्होंने दबाकर मेरा मुँह खुलवा लिया। जैसे रात में पान खिलाने के लिए उन्होंने और गुड्डी ने मिलकर किया था। और गप्प से बड़ा सा गुलाब जामुन मेरे अन्दर, मैं आ आ करता रह गया।
 
[color=rgb(61,]आनंद की बहना
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तभी रीत बोली- "असल में रंग पंचमी में आने की इनकी एक शर्त थी, बोलो ना। भाभी से क्या शर्माना?"

वो शैतान की चरखी। मेरे समझ में नहीं आ रहा था की ये क्या खतरनाक तीर छोड़ने जा रही है।

"बोलो ना." बचा खुचा शीरा मेरे गाल पे लथेड़ती दूबे भाभी प्यार से बोली। मुझे मालूम होता तो बोलता न?

"तू बोल ना। तुझसे तो तिहरा रिश्ता है." चन्दा भाभी ने रीत को चढ़ाया।

"बोल दूं." अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें नचाकर वो बोली।

"बोलो न." दूबे भाभी और चंदा भाभी एक साथ बोली।

"असल में इनकी एक बहन है." रीत ने मुझे देखकर मुश्कुराते हुए कहा- "मेरे ही क्लास में पढ़ती है, इंटर में गई है." गुड्डी बोली।

मैंने बोला- "मेरी ममेरी.लेकिन सगी से बढ़कर, सगी तो कोई हैं नहीं तो वही।"

"बिन्नो की इकलौती ननद." चंदा भाभी बोली।

"वो असल में जब से राकी को उन्होंने देखा है। 'उसका' इन्हें पसंद आ गया है तो उसके लिए। इसलिए ये तोल मोल के बोल-कर रहे थे। उसे ये अपना." रीत ने आग लगायी, मेरी बहन को जोड़ कर। पक्की स्साली।

लेकिन उसकी बात काटकर दूबे भाभी बोली- "नहीं ऐसे नहीं."

गुड्डी और चन्दा भाभी मुश्किल से अपनी हँसी दबा रही थी। सिर्फ मेरी समझ में नहीं आ रहा था की कैसे रियेक्ट करूं समझ में नहीं आ रहा था।

दूबे भाभी बोली- "मेरी भी एक, बल्की दो शर्त है। पहली राकी का रिश्ता सिर्फ उससे थोड़े ही इनके घर की सारी। मायके वालियों से."

"एकदम सही बोली आप." चंदा भाभी ने जोड़ा- "और एक बार जब राकी उसपे चढ़ जाएगा। तो इनके घर वालियां सारी उसकी साली, सलहज, तो लगेंगी ही। और दूसरी बात."

"ठीक बोली तुम। तो पहली शर्त तो मंजूर ही हो गई और दूसरी सुन." वो गुड्डी से मुखातिब थी-

"इनकी जो कजिन है। ना उसकी सील अभी खुली है की नहीं?"

गुड्डी तो तुरंत उस गेम में जवाइन हो गई- "नहीं मेरे खयाल से नहीं." बड़ी सीरियस बनकर वो बोली।

"तो फिर वो राकी का कैसे?" दूबे भाभी ने कुछ सोचकर फिर गुड्डी को पकड़ा-

"अच्छा सुन तू जा रही है ना इनके साथ। तो ये तेरी जिम्मेदारी है की यहाँ लाने के पहले उसकी नथ उतरवा देना। किससे उतरवाएगी?" दूबे भाभी ने फिर गुड्डी से बोला।

गुड्डी कुछ बोल पाती उसके पहले रीत मैदान में आ गई और मेरी रूह काँप उठी।

उसने सीधे दूबे भाभी से बोला-

"अरे इसमें कौन सी प्रोब्लम है? ये है ना पांच हाथ का आदमी और वैसे भी गुड्डी ये तेरी कोई बात तो टालते नहीं। तो तू बोलेगी तो ये वो काम भी कर देंगे। अरे सीधे से नहीं तो टेढ़े से। है ना? और मजा तो इनको भी आएगा है ना?"

उसकी शरारत से भरी आँखें मेरी ओर ही थी।

मैं या गुड्डी कुछ बोलते उसके पहले दूबे भाभी बोल पड़ी-

"ये तो तूने सही बात बोली, और इस गुड्डी की हिम्मत नहीं मेरी कोई बात टालने की और सीधे गुड्डी को धमकाते बोली-

"समझ गई ना तू। अगर तूने नथ नहीं उतरवाई ना उसकी यहाँ आने से पहले। तो सोच ले मैं चेक करूँगी। अगर वो कच्ची कली निकली। तो मैं तेरी गाण्ड की नथ उतार दूंगी। पूरी कुहनी तक डालकर, तू तो जानती है मुझको."

दुष्ट रीत वह मौका क्यों छोड़ती- "और वो भी समझ ले की उतरवानी किससे है। कोई कनफूजन नहीं होना चाहिए."

"एकदम." चन्दा भाभी और दूबे भाभी दोनों ने मेरी ओर देखते हुए, मुश्कुराकर एक साथ बोला।
 
[color=rgb(209,]मस्ती[/color]

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"अरे यार तुम्हारी कुँवारी बहन की नथ उतरने वाली है कित्ती बड़ी खुशखबरी है। चलो इसी खुशी में मीठा हो जाए." और चंचल रीत ने एक झटके में फिर गुलाब जामुन मेरे मुँह में।

"हे हे." मैंने खाने से पहले कुछ नखड़ा किया। लेकिन वो कहाँ मानने वाली।

"दूबे भाभी दे रही थी तो झट से ले लिया और मैं दे रही हूँ तो। इत्ता नखड़ा। भाव बता रहे हो." वो इस अदा से बोली की,...

"अरे नहीं यार। तुम दो और मैं ना लूं ये कैसे हो सकता है?" मैंने भी उसी अंदाज में जवाब दिया।

"अरे तो एक और लो ना." वो बोली।

लेकिन मैंने बात मोड़ दी- "अरे गुड्डी को भी तो खिलाओ."

और मैंने कसकर गुड्डी को पकड़ लिया और दबाकर उसका मुँह खोल दिया। भांग वाला एक गुलाब जामुन उसके मुँह के अन्दर। वो छटपटाती रही

और मैंने एक और गुलाब जामुन
लेकर कहा- "मेरे हाथ से भी तो खाओ ना। रीत का हाथ क्या ज्यादा मीठा है?"

खा तो उसने लिए लेकिन बोली-

"पहले तो मैं सोच भी रही थी लेकिन जैसे तुमने जबरदस्ती की ना। वैसे ही तुम्हारे साथ हाथ पैर पकड़कर। भले ही अपने हाथ से पकड़कर डलवाना पड़े तुम्हीं से उसकी नथ उतरवाऊँगी."

"क्या पकड़ोगी, क्या डलवाओगी?" चन्दा भाभी ने हँसकर गुड्डी से पूछा।

बात काटने के लिए मैंने चन्दा भाभी से कहा- "भाभी, आपने गुझिया इत्ती अच्छी बनायी है, खुद तो खाइए." और उनके न न करते हुए भी मैंने और रीत ने मिलकर उन्हें खिला ही

"अन्दर नहीं जा रहा है, तो लीजिये इसके साथ." और मैंने बैकार्डी मिली हुई लिम्का भी चन्दा भाभी को पिला दी। सब पे असर शुरू हो गया।

रीत ने गुड्डी को भी बियर का एक ग्लास पिला ही दिया। खुद उसे तो मैं पहले ही वोदका कैनेबिस और भांग से मिले दो गुलाब जामुन खिला चुका था। रीत ने दूबे भाभी को भी बियर दे दिया था और मुझे भी।
"हाँ तो तुमने बताया नहीं। क्या पकड़ोगी, क्या डलवाओगी?" चंदा भाभी गुड्डी के पीछे पड़ गई थी।

मैंने बचाने की कोशिश की तो रीत बिच में आ गई। उसे भी चढ़ गई थी-

"अरे बोल ना गुड्डी। अरे नाम लेने में शर्म लग रही तो कैसे पकड़ोगी और कैसे डलवाओगी?" रीत ने उसे चैलेंज किया और बोली- "सुन अगर बिना उसे नथ उतरवाए ले आई ना."

"एकदम." गुड्डी के गोरे-गोरे गालों को सहलाते हुए दूबे भाभी ने प्यार से कहा-

"अरे बोल दे ना साफ-साफ की इसका लण्ड पकडूँगी और इसकी बहन की बुर में डलवाऊँगी."

"अरे ये गाने वाने का इंतजाम किया है तो कुछ लगाओ ना." चंदा भाभी ने कहा।

और दूबे भाभी भी बोली- "ये रीत बहुत अच्छा डांस करती है."

"पता नहीं, मैंने तो देखा नहीं." मैंने उसे चढ़ाया।
 
[color=rgb(0,]रीत - डांस--[color=rgb(243,]पव्वा चढ़ा के आई।[/color][/color]
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"अभी दिखाती हूँ." वो बोली और उसने गाना लगा दिया कुछ देर में स्पीकर गूँज रहा था- "आय्यी। चिकनी चमेली, चिकनी चमेली." और साथ में रीत शुरू हो गई-

[color=rgb(243,]बिच्छू मेरे नयना, वादी जहरीली आँख मारे।[/color]

[color=rgb(243,]कमसिन कमरिया साली की। ठुमके से लाख मारे।[/color]

सच में कैट के जोबन की कसम। रीत की बलखाती कमर के आगे कैटरीना झूठ थी।

मैंने जोर से सीने पे हाथ मारा और गिर पड़ा। बदले में रीत ने वो आँख मारी की सच में जान निकल गई। उस जालिम ने जाकर बियर की एक ग्लास उठाई, पहले तो अपने गदराये जोबन पे लगाया और फिर गाने के साथ-

[color=rgb(243,]आय्यीई। चिकनी चमेली चिकनी चमेली। छुप के अकेली,[/color]
[color=rgb(243,]पव्वा चढ़ा के आई। वो जो उसने होंठों से लगाया।[/color]


उधर रीत का डांस चल रहा था इधर गुड्डी ने बियर के बाकी ग्लास चंदा और दूबे भाभी को।

एक मैंने गुड्डी को दे दिया और और एक खुद भी। चंदा भाभी पे भंग और बियर का मिक्स चढ़ गया था। मेरे चेहरे पे हाथ फेरकर बोली-

"अरे राज्जा बनारस। तुन्हू तो चिकनी चमेली से कम ना हौउवा."

दूबे भाभी को तो मैंने बैकर्डी के दो पेग लगवा दिए थे। ऊपर से बियर और उसके पहले डबल भांग वाले दो गुलाब जामुन। लेकिन नुकसान मेरा ही हुआ। मेरे पीछे की दरार में उंगली चलाती बोली-

"अरे राज्जा। कोइयी के कम थोड़ी है। ये बस निहुराओ। सटाओ। घुसेड़ो। बचकर रहना बनारस में लौंडे बाजों की कमी नहीं है."

लेकिन इन सबसे अलग मेरी निगाह। मन सब कुछ तो वो हिरणी, कैटरीना, ऊप्स मेरा मतलब रीत चुरा के ले गई थी। वो दिल चुराती बांकी नजर, चिकने चिकने गोरे-गोरे गाल। रसीले होंठ।

[color=rgb(243,]जंगल में आज मंगल करूँगी मैं।[/color]

[color=rgb(243,]भूखे शेरों से खेलूंगी मैं आय्यीई। चिकनी चमेली चिकनी चमेली। छुप के अकेली।[/color]

मेरा शेर 90° डिग्री पे हो गया। मेरे हाथ का बियर का ग्लास छीन के पहले तो उसने अपने होंठों से लगाया और फिर मुझे भी खींच लिया और अपनी बलखाती कमर से एक जबरदस्त ठुमका लगाया। मैंने पकड़कर उसे अपनी बांहों में भर लिया और कसकर उसके गालों पे एक चुम्मा ले लिया।

[color=rgb(243,]हाय, गहरे पानी की मछली हूँ राज्जा,[/color]
[color=rgb(243,]
घाट घाट दरिया में घूमी हूँ मैं,

तेरी नजरों की लहरों से हार के आज डूबी हूँ मैं।
[/color]

बिना मेरी बाहें छुड़ाये मेरी आँखों में अपनी कातिल आँखों से देखती। वो श्रेया के साथ गाती रही और उसने भी एक चुम्मा कसकर मेरे होंठों पे।

हम दोनों डूब गए, बिना रंग के होली।

उसने कसकर अपनी जवानी के उभारों से मेरे सीने पे एक धक्का लगाया, और वो मछली फिसल के बाहों के जाल से बाहर और मुझे दिखाते हुए जो उसने अपने उभार उभारे। वैसे भी मेरी रीत के उभार कैटरीना से 20 ही होंगे उन्नीस नहीं।

[color=rgb(243,]आय्यीई। चिकनी चमेली चिकनी चमेली[/color]
[color=rgb(243,]
जोबन ये मेरा कैंची है राज्जा

सारे पर्दों को काटूँगी मैं
[/color]
[color=rgb(243,]शामें मेरी अकेली हैं आ जा संग तेरे बाटूंगी मैं।[/color]

उसके दोनों गोरे-गोरे हाथ उसके जोबन के ठीक नीचे, और जो उभारा उसने। फिर सीटी।

जवाब में दूबे भाभी ने भी सीटी मारी और बोली-

"अरे दबा दे, पकड़कर साली का मसल दे."

जवाब में रीत ने अपनी मस्त गोरी-गोरी जांघें चौड़ी की और मेरी ओर देखकर फैलाकर एक धक्का दिया, जैसे चुदाई में मेरे धक्के का जवाब दे रही हो और अपने हाथ सीधे अपने उभारों पे करके एक किस मेरी ओर उछाल दिया।

"अरे अब तो बसंती भी राजी। मौसी भी राजी."

ये कहकर मैंने पीछे से उसे दबोच लिया और उसके साथ डांस करने लगा। मेरे हाथ उसके उभारों के ठीक नीचे थे। दुपट्टा तो ना जाने कब का गायब हो गया था।

गुड्डी ने आँखों से इशारा किया, अरे बुद्धू ठीक ऊपर ले जा ना। सही जगह पे। साथ में चन्दा भाभी ने भी। डांस करते-करते वो बांकी हिरणी भी मुड़कर मुश्कुरा, और फिर उसने जो जोबन को झटका दिया-

[color=rgb(243,]तोड़कर तिजोरियों को लूट ले जरा,[/color]
[color=rgb(243,]
हुस्न की तिल्ली से बीड़ी-चिल्लम जलाने आय्यी,

आई चिकनी,.. चिकनी,... आई,...आई।
[/color]

फिर तो मेरे हाथ सीधे उसके मस्त किशोर छलकते उभारों पे।

जवाब में उसने अपने गोल-गोल चूतड़ मेरे तन्नाये शेर पे रगड़ दिया। फिर तो मैंने कसकर उसके थिरकते नितम्बों के बीच की दरार पे लगाकर। अब मन कर रहा था की बस अब सीधी इसकी पाजामी को फाड़कर 'वो' अन्दर घुस जाएगा।

हम दोनों बावले हो रहे थे, फागुन तन से मन से छलक रहा था बस गाने के सुर ताल पे मैं और वो। मेरे दोनों हाथ उसके उभारों पे थे और, बस लग रहा था की मैं उसे हचक-हचक के चोद रहा हूँ और वो मस्त होकर चुदवा रही है।

हम भूल गए थे की वहां और भी हैं।

लेकिन श्रेया घोषाल की आवाज बंद हुई और हम दोनों को लग रहा था की किसी जादुई तिलिस्म से बाहर आ गए।

एक पल के लिए मुझे देखकर वो शर्मा गई और हम दोनों ने जब सामने देखा तो दूबे भाभी, चंदा भाभी और गुड्डी तीनों मुश्कुरा रही थी। सबसे पहले चंदा भाभी ने ताली बजाई। फिर दूबे भाभी ने और फिर गुड्डी भी शामिल हो गई।

"बहुत मस्त नाचती है ना रीत." दूबे भाभी बोली और वो खुश भी हुई, शर्मा भी गई। लेकिन भाभी ने मुझे देखकर कहा- "लेकिन तुम भी कम नहीं हो."

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[color=rgb(61,]फागुन के दिन चार भाग १३ [/color]

[color=rgb(65,]होली[/color][color=rgb(184,]का धमाल[/color]

[color=rgb(65,]1,53,642
Holi-Bhabhi-20230320-170904.jpg
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मेरे हाथ सीधे रीत के मस्त किशोर छलकते उभारों पे।

जवाब में उसने अपने गोल-गोल चूतड़ मेरे तन्नाये शेर पे रगड़ दिया। फिर तो मैंने कसकर उसके थिरकते नितम्बों के बीच की दरार पे लगाकर, रगड़ा अपना खड़ा खूंटा,

पिछवाड़े का मजा मैंने अभी नहीं लिया था, लेकिन रीत के गोल गोल नितम्ब किसी की भी ईमान खराब करने के लिए काफी थे। और मेरी साली, सलहजें सब मेरे पिछवाड़े, मेरी बहन के पिछवाड़े के पीछे पड़ी थी तो मैं क्यों छोड़ता, फिर भांग अब अच्छी तरह चढ़ गयी थी, मुझे कोई फरक नहीं पड़ता की सब लोग देख रहे हैं और जिसकी बात से फरक पड़ता था, उस ने पहले ही अपनी दीदी के लिए न सिर्फ ग्रीन सिग्नल दे रखा था, बल्कि उकसा भी रही थी।

अब मन कर रहा था की बस अब सीधी रीत की पाजामी को फाड़कर 'वो' अन्दर घुस जाए।

हम दोनों बावले हो रहे थे, फागुन तन से मन से छलक रहा था बस गाने के सुर ताल पे मैं और वो। मेरे दोनों हाथ उसके उभारों पे थे और। बस लग रहा था की मैं उसे हचक-हचक के चोद रहा हूँ और वो मस्त होकर चुदवा रही है। हम भूल गए थे की वहां और भी हैं।

लेकिन श्रेया घोषाल की आवाज बंद हुई और हम दोनों को लग रहा था की किसी जादुई तिलिस्म से बाहर आ गए। एक पल के लिए मुझे देखकर रीत शर्मा गई और हम दोनों ने जब सामने देखा तो दूबे भाभी, चंदा भाभी और गुड्डी तीनों मुश्कुरा रही थी।

सबसे पहले चंदा भाभी ने ताली बजाई। फिर दूबे भाभी ने और फिर गुड्डी भी शामिल हो गई।

"बहुत मस्त नाचती है ना रीत." दूबे भाभी बोली और रीत खुश भी हुई, शर्मा भी गई। लेकिन भाभी ने मुझे देखकर कहा- "लेकिन तुम भी कम नहीं हो."

"अरे बाकी चीजों में भी ये कम नहीं है। बस देखने के सीधे हैं." चंदा भाभी ने मुझे छेड़ा।

लेकिन दूबे भाभी ने बात पकड़ ली-

"अच्छा तो करवा चुकी हो क्या? तुमने ले लिया रसगुल्ले का रस." हँसकर वो बोली।

अब चंदा भाभी के झेंपने की बारी थी।

लेकिन गुड्डी ने बात बदली- "अरे इनकी वो बहना जो इनके साथ आयेंगी। वो भी बहुत सेक्सी नाचती हैं."

"अरे उससे तो मैं मुजरा करवाऊँगी चूची उठा-उठाकर, कोठे पे बैठाऊँगी उसे तो." दूबे भाभी बोल रही थी।

गुड्डी को तो मौका चाहिए था मुझे रगड़ने का, मुझे देख के मुस्करायी और बोली,

" अरे तभी ये कल से पूछ रहे हैं दालमंडी (बनारस का रेड लाइट एरिया) किधर है और मेरे साथ बाजार गए थे तो किसी से बात भी कर रहे थे, रात की कमाई का चवन्नी तो मेरा भी होगा।" और मैं कुछ खंडन जारी करता उसके पहले गुड्डी ने जीभ निकाल के चिढ़ा दिया और उसके बाद मोर्चा रीत ने सम्हाल लिया।

रीत, जो अब हम सबके पास बैठ चुकी थी मुझसे बोली-

"अरे ये तो बड़ी खुशी की बात है, किसी काम का शुभारंभ हो तो। कुछ मीठा जो जाय."

और जब तक मैं सम्हलूं उस दुष्ट ने पास में रखी भांग पड़ी चन्दा भाभी द्वारा निर्मित एक गुझिया मेरे मुँह में, और दूबे भाभी से बोली-

"उससे स्ट्रिप टीज भी करवाएंगे। आज कल इसकी डिमांड ज्यादा है। क्यों?"
पता नहीं दूबे भाभी को बात पसंद नहीं आई या समझ नहीं आई? उन्होंने लाइन बदल दीं, बात फिर होली के गानों पे आ गयी वो बोली-

"आज कल ना। अरे बनारस की होली में भोजपुरिया होली जब तक ना हो। पता नहीं तुम सबन को आता भी है की नहीं?"

वो पल में रत्ती पल में माशा।

लेकिन मैं दूबे भाभी को पटा के रखना चाहता था।

मेरी यहाँ चाहे जितनी रगड़ाई हो, मेरी ममेरी बहन के ऊपर रॉकी को चढ़ाएं, लेकिन असली बात थी गुड्डी, कुछ भी हो मुझे ये बदमाश वाली लड़की चाहिए थी, वो भी लाइफ टाइम के लिए, भाभी ने आज मेरी किसी बात को मना नहीं किया तो इस बात के लिए भी नहीं, हाँ भाभी से ये बात कहने की न मैं हिम्मत जुटा पा रहा था, न ये समझ पा रहा था कैसे कहूं, पहले तो मैं नौकरी के नाम पे भाभी से टालता था, फिर ट्रेनिंग और अब ट्रेनिंग भी तीन चार महीने ही बची थी, सितंबर में तो पोस्टिंग हो जाएगी तो अब जल्दी से जल्दी, और भाभी तो मान गयी लेकिन गुड्डी के घर वाले, और मैं समझ गया था गुड्डी के घर, गुड्डी की मम्मी की हामी बहुत जरूरी है।

लेकिन इस चार घर के संयुक्त परिवार में ( गुड्डी, चंदा भाभी, दूबे भाभी -रीत और एक अभी आने वाली थीं ) मस्टराइन दूबे भाभी ही हैं, उमर में भी सबसे बड़ी और मस्ती में भी सबसे ज्यादा और उनकी हाँ में हाँ मिलाने का कोई मौका मैं छोड़ना नहीं चाहता था.

मैं दूबे भाभी की पसंद समझ गया था, मेरी भी असल में वही थी। मैंने बोला- "क्यों नहीं। अभी लगाता हूँ एक." और मैंने चन्दा भाभी के कलेक्सन में से एक सीडी लगाई। लेकिन वो एक डुईट सांग पहले मर्द की आवाज में थी।

"हे तुम्हीं करना मुझे नहीं आता." रीत ने धीरे से मेरे कान में फुसफुसा के कहा- "कोई फास्ट नंबर हो, फिल्मी हो, यहाँ तक की भांगड़ा हो लेकिन ये गाँव के। मैंने कभी नहीं किया."

"अरे यार जो आज तक नहीं किया। वही काम तो मेरे साथ करना होगा न." मैंने चिढ़ाया। मैं बोला तो धीमे से था लेकिन चन्दा भाभी ने सुन लिया।

चन्दा भाभी बोली- "अरे रीत करवा ले, करवा ले."

रीत दुष्ट। उसने शैतान निगाहों से गुड्डी की ओर देखा।

गुड्डी भी कम नहीं थी- "अरे करवा ले यार। एक-दो बार में इनका घिस नहीं जाएगा। वैसे भी अब दूबे भाभी का हुकुम है की मुझे इनसे इनकी कजन की नथ उतरवानी है."

तब तक गाना शुरू हो गया था।

मैंने उसे खींचते हुए बोला- "अरे यार चलो नखड़ा ना दिखाओ। शुभारम्भ। और अबकी जब तक वो समझे सम्हले, मेरे हाथ से गुझिया उसके मुँह में और गाने के साथ डांस करना शुरू कर दिया-
 
[color=rgb(65,]होली में अब रेलम रेल होई,[/color]
[color=rgb(226,]महंगा अब सरसों का तेल होई,[/color]
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तब तक गाना शुरू हो गया था। मैंने उसे खींचते हुए बोला- "अरे यार चलो नखड़ा ना दिखाओ। शुभारम्भ। और अबकी जब तक वो समझे सम्हले, मेरे हाथ से गुझिया उसके मुँह में और गाने के साथ डांस करना शुरू कर दिया-

-[color=rgb(184,]होली में अब रेलम रेल होई,

महंगा अब सरसों का तेल होई,

होली में पेलम पेल होई।[/color]

मैंने अब खुलकर कुल्हे मटका के, जंगबहादुर वैसे तन्नाये हुए थे आगे-पीछे करके।

लेकिन अब रीत भी कम नहीं थी।

उसने मुँह बिचका के जोबन उचका के, जैसे ही फिमेल वायस आई उसी तरह जवाब दिया।

कभी वो मुश्कुराती, कभी ललचाती और जब पास आता तो अदा दिखाकर एक-एक चक्कर लेकर दूर हो जाती। वो गा रही थी-

[color=rgb(65,]होली मैं ऐसन जो खेल होई, जबरी जो डारी तो जेल होई,

होली में जो होई उम्मी उम्मा। इ गाले पे जबरी जो लेई हो चुम्मा,

इ गाले पे जबरी जो लेई हो चुम्मा, पोलिस के डंडा से मेल होई।[/color]

जिस तरह से अदा से वो हाथ ऊपर करती, उसके उभार तनकर साफ झलक जाते और फिर अपने आप उसने जो अपने गाल पे हाथ फेरा, और पोलिस के डंडे की एक्टिंग की।

दूबे भाभी, गुड्डी और चंदा भाभी साथ गा रही थी। अगला गाना और खतरनाक था-

[color=rgb(235,]चोली में डलवावा साली होली में हौले, हौले,

चोली में डलवावा साली होली में हौल हौले।[/color]

गाना मेल वॉयस में था इसलिए साथ में मैं गा रहा था लेकिन रीत डांस में साथ दे रही थी, मेरा हाथ उसके टॉप के ऊपर से रेंग रहा था , जब जब लाइन आती; चोली में डलवावा,

" हे चोली में डालने की बात हो रही है, ऊपर ऊपर सहलाने की बात नहीं हो रही " चंदा भाभी ने उकसाया,

" आपके देवर ऐसे ही हैं " गुड्डी ने और आग में घी डाला और मुझे घूर के देखा, बस हाथ चोली में मेरा मतलब रीत के टॉप के अंदर, सहला मैं रीत के रहा था, लेकिन सोच आज के दिन के बारे कितना अच्छा , सुबह छोटी साली नौवे में पढ़ने वाली गूंजा ने खुद खिंच के मेरा हाथ अपने जोबन पे और अब बड़ी साली रीत वो भी सबके सामने,

लेकिन मान गया मैं रीत सच में डांसिंग क्वीन थी, हम दोनों मस्ती कर रहे थे, बदमाशी कर रहे थे लेकिन मजाल की एक स्टेप मिस हुआ हो

लेकिन सबसे खुश दूबे भाभी थीं, एकदम उनकी पसंद वाले भोजपुरी गाने और मुझे भी पसंद थे और मालूम थे,

लेकिन म्यूजिक ख़त्म होते ही रीत ने खेल कर दिया, रीत तो रीत थी उसने एक नया चैलेंज थ्रो कर दिया, अब वो खुद गा रही थी और डांस भी, जितना अच्छा नाचती थी उतनी ही मीठी आवाज, यानी अगले गाने में मुझे रिकार्ड का सहारा नहीं मिलेगा, खुद गाना पडेगा

[color=rgb(51,]काली चुनरी में जोबना लहर मारे रे, काली चुनरी में
लहार मारे रे हो लहर मारे रे, काली चुनरी में[/color]

और साथ में उसकी सहेली, छोटी बहन और सह -षड्यंत्रकारी, गुड्डी भी गा रही थी,

काली चुनरी में जोबना लहर मारे रे, काली चुनरी में

लहार मारे रे हो लहर मारे रे, काली चुनरी में

चंदा भाभी ने चिढ़ाया गुड्डी को,

"ले तो जा रही हो साथ में, लूटेगा लहर आज रात से,"

गुड्डी ने एक पल मुझे देखा, हम लोगों के नैन मिले और वो शर्मा गयी ।

दूबे भाभी, सुन भी रही थीं, देख भी रही थी मेरे और गुड्डी के चार आँखों का खेल और बस मुस्करा दीं लेकिन तभी उन्हें कुछ याद आ गया,

दूबे भाभी ने पूछा- "अरे वो संध्या नहीं आई?"

मुझे गुड्डी बता चुकी थी की संध्या, इन लोगों की ननद लगती थी मोहल्ले के रिश्ते में, 23-24 साल की तीन-चार महीने पहले शादी हुई थी। इनके यहाँ ये रिवाज था की होली में लड़की मायके आती है और दुल्हे को आना होता है। मंझोले कद की थी फिगर भी अच्छा था।

चन्दा भाभी बोली- "मैंने फोन तो किया था लेकिन वो बोली की उसके उनका फोन आने वाला था। बस करके आ रही है."

"आज कल की लड़कियां ना। उनका बस चले तो अपनी चूत में मोबाइल डाल लें जब देखो तब." दूबे भाभी अपने असली रंग में आ रही थी।

"अरे घर में तो वो अकेले ही है क्या पता सुबह से मायके के पुराने यारों की लाइन लगवाई हो."
 
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