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- Dec 5, 2013
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[color=rgb(0,]संध्या भाभी
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दूबे भाभी ने पूछा- "अरे वो संध्या नहीं आई?"
मुझे गुड्डी बता चुकी थी की संध्या, इन लोगों की ननद लगती थी मोहल्ले के रिश्ते में, 23-24 साल की तीन-चार महीने पहले शादी हुई थी। इनके यहाँ ये रिवाज था की होली में लड़की मायके आती है और दुल्हे को आना होता है। मंझोले कद की थी फिगर भी अच्छा था।
चन्दा भाभी बोली- "मैंने फोन तो किया था लेकिन वो बोली की उसके 'उनका' फोन आने वाला था। बस करके आ रही है."
"आज कल की लड़कियां ना। उनका बस चले तो अपनी चूत में मोबाइल डाल लें जब देखो तब." दूबे भाभी अपने असली रंग में आ रही थी।
"अरे घर में तो वो अकेले ही है क्या पता सुबह से मायके के पुराने यारों की लाइन लगवाई हो."चंदा भाभी अपनी ननद की खिंचाई का मौका क्यों छोड़तीं
तब तक वो आ ही गईं, मुश्कुराती खिलखिलाती, और कहा-
"मैं सुन रही थी सीढ़ी से आप लोगों की बात। अरे बोला था ना मुझे एक बार उनसे बात करके समझाना था की दो-चार घंटे मैं फोन से दूर रहूंगी। लेकिन आप लोग."
बात वो चंदा भाभी से कर रही थी लेकिन निगाहें उसकी मुझ पे टिकी थी। गाना कब का बंद हो चुका था।
"तो क्या गलत कह रही थी? हमारी ननदे ना। झांटे बाद में आती है। बुर में खुजली पहले शुरू हो जाती है। जब तक एक-दो लण्ड का नाश्ता ना कर लें ना। ठीक से नींद नहीं खुलती। क्यों रीत। गलत कह रही हूँ?" हँसकर चन्दा भाभी बोली।
"मुझसे क्यों हुंकारी भरवा रही हैं, मैं भी तो आपकी ननद ही हूँ." वो हँसकर बोली।
"तभी तो." वो बोली।
लेकिन मोर्चा संध्या भाभी ने संभाला-
"एकदम सही बोल रही हैं आप लेकिन ननद भी तो आप ही लोगों की है। आप लोग भी तो रात में सैयां, दिन में देवर, कभी नंदोई। तो हम लोगों का मन भी तो करेगा ही ना."
दूबे भाबी ने दावत दी- "ठीक है तुम्हारे वो आयेंगे ना होली में तो अदल-बदल लेते हैं। वो भी आमने-सामने तुम मेरे सैयां के साथ और मैं तुम्हारे."
"अच्छा तो मेरे भैया से ही। ना बाबा ना." फिर धीरे से चंदा भाभी से बोली- "ये माल मस्त लगता है इससे भिड़वा दो ना टांका." मेरी ओर इशारा करके कहा।
मेरी निगाह भी संध्या भाभी की चोली से झांकते जोबन पे गड़ी थी। रीत ने ही पहल की और हम दोनों का परिचय करवा दिया और उनसे बोली- "अच्छा हुआ आप आ गईं, अब हम दो ननदें हैं और दो भाभियां."
दूबे भाभी हँसकर बोली- "अरे कोई फर्क नहीं पड़ेगा चाहे तुम दो या बीस। लेकिन आज तो रगड़ाई होगी इस साले की भी और तुम सबों की भी."
मैंने डरने की एक्टिंग करते हुआ बोला- "अरे ये तो बहुत नाइंसाफी है। मैं एक और आप पांच."
"तो क्या हुआ? मजा भी तो आयेगा आपको, और द्रौपदी के भी तो पांच पति थे। तो आज आप द्रौपदी और हम पांडव." रीत ने मुश्कुराकर कहा।
"एकदम दीदी." गुड्डी क्यों मुझे खींचने में पीछे रहती, ओर हँसकर गुड्डी नेजोड़ा -
"फर्क सिर्फ यही होगा की पांडव तो बारी-बारी से। और हम कभी बारी-बारी। कभी साथ-साथ."
दूबे भाभी बोली- "अरे काहे घबड़ाते हो। वो तुम्हारी बहन कम माल जब आएगी यहाँ। तो वो भी तो एक साथ पांच-पांच को निपटाएगी."
रीत आँख नचाकर बोली- "बड़ी ताकत है भाई। तीन तो ठीक है लेकिन पांच। वो कैसे?"
"अरे यार एक से चुदवायेगी, एक से गाण्ड मरवाएगी, एक का मुँह में लेकर चूसेगी." चंदा भाभी बोली।
"और बाकी दो?"
"बाकी दो लण्ड हाथ में लेकर मुठियायेगी." दूबे भाभी ने बात पूरी की।
मैं संध्या भाभी को पटाने के चक्कर में उन्हें गुलाब जामुन, दही बड़ा और स्प्राईट जो असल में वोदका कैनाबिस ज्यादा और वो भी बाकी लोगों की हालत में आ गईं।
गुड्डी बोली "हे तुम्हें मालूम है संध्या गाती भी अच्छा है और नाचती भी। खास तौर से। लोक गीत."
"गाइए ना भाभी." मैं बोला तो वो झट से मान गई।

दूबे भाभी ने पूछा- "अरे वो संध्या नहीं आई?"
मुझे गुड्डी बता चुकी थी की संध्या, इन लोगों की ननद लगती थी मोहल्ले के रिश्ते में, 23-24 साल की तीन-चार महीने पहले शादी हुई थी। इनके यहाँ ये रिवाज था की होली में लड़की मायके आती है और दुल्हे को आना होता है। मंझोले कद की थी फिगर भी अच्छा था।
चन्दा भाभी बोली- "मैंने फोन तो किया था लेकिन वो बोली की उसके 'उनका' फोन आने वाला था। बस करके आ रही है."
"आज कल की लड़कियां ना। उनका बस चले तो अपनी चूत में मोबाइल डाल लें जब देखो तब." दूबे भाभी अपने असली रंग में आ रही थी।
"अरे घर में तो वो अकेले ही है क्या पता सुबह से मायके के पुराने यारों की लाइन लगवाई हो."चंदा भाभी अपनी ननद की खिंचाई का मौका क्यों छोड़तीं
तब तक वो आ ही गईं, मुश्कुराती खिलखिलाती, और कहा-
"मैं सुन रही थी सीढ़ी से आप लोगों की बात। अरे बोला था ना मुझे एक बार उनसे बात करके समझाना था की दो-चार घंटे मैं फोन से दूर रहूंगी। लेकिन आप लोग."
बात वो चंदा भाभी से कर रही थी लेकिन निगाहें उसकी मुझ पे टिकी थी। गाना कब का बंद हो चुका था।
"तो क्या गलत कह रही थी? हमारी ननदे ना। झांटे बाद में आती है। बुर में खुजली पहले शुरू हो जाती है। जब तक एक-दो लण्ड का नाश्ता ना कर लें ना। ठीक से नींद नहीं खुलती। क्यों रीत। गलत कह रही हूँ?" हँसकर चन्दा भाभी बोली।
"मुझसे क्यों हुंकारी भरवा रही हैं, मैं भी तो आपकी ननद ही हूँ." वो हँसकर बोली।
"तभी तो." वो बोली।
लेकिन मोर्चा संध्या भाभी ने संभाला-
"एकदम सही बोल रही हैं आप लेकिन ननद भी तो आप ही लोगों की है। आप लोग भी तो रात में सैयां, दिन में देवर, कभी नंदोई। तो हम लोगों का मन भी तो करेगा ही ना."
दूबे भाबी ने दावत दी- "ठीक है तुम्हारे वो आयेंगे ना होली में तो अदल-बदल लेते हैं। वो भी आमने-सामने तुम मेरे सैयां के साथ और मैं तुम्हारे."
"अच्छा तो मेरे भैया से ही। ना बाबा ना." फिर धीरे से चंदा भाभी से बोली- "ये माल मस्त लगता है इससे भिड़वा दो ना टांका." मेरी ओर इशारा करके कहा।
मेरी निगाह भी संध्या भाभी की चोली से झांकते जोबन पे गड़ी थी। रीत ने ही पहल की और हम दोनों का परिचय करवा दिया और उनसे बोली- "अच्छा हुआ आप आ गईं, अब हम दो ननदें हैं और दो भाभियां."
दूबे भाभी हँसकर बोली- "अरे कोई फर्क नहीं पड़ेगा चाहे तुम दो या बीस। लेकिन आज तो रगड़ाई होगी इस साले की भी और तुम सबों की भी."
मैंने डरने की एक्टिंग करते हुआ बोला- "अरे ये तो बहुत नाइंसाफी है। मैं एक और आप पांच."
"तो क्या हुआ? मजा भी तो आयेगा आपको, और द्रौपदी के भी तो पांच पति थे। तो आज आप द्रौपदी और हम पांडव." रीत ने मुश्कुराकर कहा।
"एकदम दीदी." गुड्डी क्यों मुझे खींचने में पीछे रहती, ओर हँसकर गुड्डी नेजोड़ा -
"फर्क सिर्फ यही होगा की पांडव तो बारी-बारी से। और हम कभी बारी-बारी। कभी साथ-साथ."
दूबे भाभी बोली- "अरे काहे घबड़ाते हो। वो तुम्हारी बहन कम माल जब आएगी यहाँ। तो वो भी तो एक साथ पांच-पांच को निपटाएगी."
रीत आँख नचाकर बोली- "बड़ी ताकत है भाई। तीन तो ठीक है लेकिन पांच। वो कैसे?"
"अरे यार एक से चुदवायेगी, एक से गाण्ड मरवाएगी, एक का मुँह में लेकर चूसेगी." चंदा भाभी बोली।
"और बाकी दो?"
"बाकी दो लण्ड हाथ में लेकर मुठियायेगी." दूबे भाभी ने बात पूरी की।
मैं संध्या भाभी को पटाने के चक्कर में उन्हें गुलाब जामुन, दही बड़ा और स्प्राईट जो असल में वोदका कैनाबिस ज्यादा और वो भी बाकी लोगों की हालत में आ गईं।
गुड्डी बोली "हे तुम्हें मालूम है संध्या गाती भी अच्छा है और नाचती भी। खास तौर से। लोक गीत."
"गाइए ना भाभी." मैं बोला तो वो झट से मान गई।