FreeSexKahani - फागुन के दिन चार - Page 2 - SexBaba
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FreeSexKahani - फागुन के दिन चार

थ्रिलर २

समुद्र और बनारसी बाला -रीत

रात 11:30 अरब सागर- ‘टेरर’ एल॰पी॰जी॰ शिप के स्टर्न के ऊपर की ओर। दोनों सी किंग हेलीकाप्टर जो उनके साथ चले थे, अब टेरर शिप के स्टर्न के ऊपर पहुँच चक्कर काट रहे थे और उन्होंने अपनी उंचाई कम करनी शुरू कर दी। वो शिप से पचास मीटर ऊपर रहे होंगे, की शिप से टक-टक टक-टक, ऐंटी एयर क्राफट गन की आवाजें शुरू हो गई थी। अब कोई शक नहीं था की वो एनमी शिप था।

लेकिन वो हेलीकाप्टर और उसके चालक इस सिच्युएशन के लिए तैयार थे, उन्होंने पहले तो डक किया लेकिन फिर अचानक ऊपर उड़ गए और दोनों अलग-अलग दिशाओं में दायें बाएं ऊपर उड़ चले। ऐंटी एयर क्राफ्ट गन, लाइट गन्स की गोलियां अब भी उनका पीछा कर रही थी।

रीत और उनके साथी मार्कोस, अब एकदम शिप के पास पहुँच गए थे और शिप में चढ़ने के लिए रोप लैडर का इश्तेमाल शुरू करने वाले थे। शिप के सारे लोगों का ध्यान उन दोनों हेलीकाप्टर पर था। और उसी बीच, एक और हेलीकाप्टर ठीक शिप के बीच इतना नीचे आ गया, की लगा वो शिप पर लैण्ड कर रहा है। उसके पंखों की हवा से शिप की छोटी मोटी चीजें उड़ने लगी थी। और जब तक शिप की ऐंटी एयर क्राफ्ट गन अपना निशाना बदलते, हेलीकाप्टर की गन चालू हो गईं थी। लेकिन वो गोलियों की जगह बाम्ब्स थ्रो कर रही थी- स्मोक बाम्ब।


और उसी के साथ रीत की टीम शिप के वाल पे चढ़ चुकी थी। सबसे आगे मार्कोस का लीडर था, जिसने नेवी सील्स के साथ एक साल ट्रेनिंग की थी, कई ऐक्चुअल एंटी टेरर आपस में भाग लिया था। उसने गैस मास्क लगा लिया और उसके साथ बाकी लोगों ने भी।


सबसे पहले उसने शिप के फ्लोर पर दो स्मोक बाम्ब लुढ़का दिए और फिर पूरी ताकत से आँसू गैस के कैनिस्टर फेंके। जब तक स्मोक बाम्ब्स का धुँआ छा जाता, वो चारों शिप के अंदर थे। उधर हेलीकाप्टर के होल्ड से अब पैराट्रूपर शिप पर उतर रहे थे।


एक, दो, चार, छः और तब दायें बाएं वाले हेलीकाप्टर भी आ गए और उनसे भी शिप के दोनों साइड पर पैराट्रूपर उतर रहे थे। शिप के अंदर के लोग सब उनके मुकाबले को आ गये। लेकिन तब तक तीनों हेलीकाप्टर से स्मोक बाम्ब्स तेजी से फेंके गए और शिप पे धुँआ, कुहासा छा गया। वो पैराट्रूपर सारे डमी थे।


नार्मण्डी लैंडिंग में ब्रिटेन ने एक सीक्रेट आपरेशन लांच किया था, आपरेशन टाइटैनिक, जिसमें ये डमी पैराट्रूपर इश्तेमाल हुए थे और उन्हें रूपर्ट कहा गया था। ये भी बिलकुल उसी तरह थे लेकिन थोड़े एडवांस। एल॰पी॰जी॰ चलते असली गोली तो चला नहीं सकते थे, इसलिए उनमें गोली की आवाज रिकार्ड थी और नकली पिस्तौल फ्लैश करती थी।

कोई उन्हें छूने की या पकड़ने की कोशिश करता था तो टेजर नीडल्स निकलती थी, जिनमें 440 वोल्ट का झटका होता था। और शिप के फ्लोर से लड़ते ही स्टेन ग्रेनेडस निकलते। उसका असर ये हुआ की ढेर सारे लोग काम के काबिल नहीं रहे और रीत की टीम को काम करने का मौका मिल गया।


शिप पर बहुत कन्फ्यूजन था। पहले स्मोक बाम्ब्स, और फिर ये डमी पैराट्रूपर्स। लग रहा था चारों ओर गोलियां चल रही है और जो उनके पास आता वो शाक का शिकार हो रहा था। और गोलियों का उनपर असर हो नहीं रहा था। होता भी कैसे? वो तो डमी थे।

हाँ, डी॰आर॰डी॰ओ॰ ने उनमें रोबोटिक्स का इतना अच्छा इश्तेमाल किया था की चलने फिरने में, वो एक पैरा की तरह लगते थे। यहाँ तक की कुछ पैरा में तो उन्होंने गालियां तक रिकार्ड कर रखी थी, वो भी एक से एक बनारसी, शुद्ध। लेकिन सबसे इम्पॉर्टेंट बात थी उनकी आँखें चारों ओर थी और वो कैमरे रिकार्ड कर लाइव फीड, ऊपर हेलीकाप्टर तक भेज रहे थे, जहाँ से वो कोस्टगार्ड शिप में जा रहा था। और उसे मार्कोस टीम के कैप्टेन के पास भी एनलाइज करके भेजा जा रहा था।

रीत की टीम काम पे लग गई थी। उनके पास बस पन्दरह मिनट का टाइम था, लेकिन उन्हें 11 से 12 मिनट के बीच में शिप एवैकयूएट कर देना था। पहला शिकार रीत के ही हाथ लगा। कमांडो टीम कैप्टेन ने आगे बढ़कर एक दरवाजा था उसे सिक्योर कर दिया। चारों प्वाइंट उसके इसी॰ओ॰र थे। और उसके बाद शिप के कम्युनिकेशन और पावर केबल स्नैप कर दिए।

टीम का रियर एंड भी मार्कोस का एक कमांडो सिक्योर कर रहा था। लेकिन हमला बीच में हुआ। रीत और उसका साथी जगह लोकेट कर रहे थे, तभी एक केबिन खुला और बिजली की तेजी से किसी ने रीत पर हमला किया।

हर कमांडो के चार आँखें चार कान होते हैं, लेकिन रीत के दस थे। वो फुर्ती से पीछे हटी, उसका घुटना अटैकर के पेट में और हाथ से कराते का चाप, गरदन पे। और जब तक वो सम्हलता, रीत ने उसके माथे के पास एक नस दबा दी, जिससे उसके ब्रेन पे सीधे असर पड़ा और वो आधे घंटे से ज्यादा के लिए बेहोश हो गया।

लेकिन ये शुरुवात थी। उसके बाद दो ने और हमला किया, एक साथ। उन दोनों के हाथ में चाकू था। और वो दोनों जूडो के एक्सपर्ट थे। चाकू का पहला हमला गर्दन पर हुआ। रीत झुक गई। हमला बेकार हो गया, लेकिन उसकी कैप गिर गई और उसके लम्बे बाल नीचे तक फैल गए।


“अरे ये तो लौंडिया है…”
 
रीत का प्रहार

हर कमांडो के चार आँखें चार कान होते हैं, लेकिन रीत के दस थे। वो फुर्ती से पीछे हटी, उसका घुटना अटैकर के पेट में और हाथ से कराते का चाप, गरदन पे। और जब तक वो सम्हलता, रीत ने उसके माथे के पास एक नस दबा दी, जिससे उसके ब्रेन पे सीधे असर पड़ा और वो आधे घंटे से ज्यादा के लिए बेहोश हो गया।

लेकिन ये शुरुवात थी। उसके बाद दो ने और हमला किया, एक साथ। उन दोनों के हाथ में चाकू था। और वो दोनों जूडो के एक्सपर्ट थे। चाकू का पहला हमला गर्दन पर हुआ। रीत झुक गई। हमला बेकार हो गया, लेकिन उसकी कैप गिर गई और उसके लम्बे बाल नीचे तक फैल गए।

“अरे ये तो लौंडिया है…”

बस यही गलती हो गई। शब्द भेदी बाण की तरह, रीत की शब्द भेदी देह थी। बात पूरी नहीं हुई और रीत की कोहनी और पैर दोनों एक साथ चले। एक ही काफी था। उसके प्राण पखेरू उड़ाने के लिए। लेकिन पहले वाले ने फिर वार करने की कोशिश की, और अब हवा में एक खुखरी चमकी। मार्कोस कमांडो का स्पेशल हथियार। ये रीत का साथी कमांडो था और अब वो भी हमलावर ढेर हो गया।

दोनों ने आँखों ही आँखों में हाई फाइव किया और साथ-साथ काँधे के जोर से केबिन का दरवाजा तोड़ा, जिसमें से ये तीनों निकले थे। वह कंट्रोल रूम था। वहां सी॰सी॰टीवी की फीड आ रही थी। और सारे कैमरे, नाइट विजन वाले थे। यही नहीं जगह-जगह मोशन सेंसर लगे थे। जिससे स्मोक के बावजूद वो लोग देख लिए गए थे। उस आदमी ने तुरंत पिस्टल निकाल ली। लेकिन सामना रीत से था।

रीत ने दीवाल पर लगा फायर एक्स्टिंविशर उठा लिया और उसका नोजल सीधा उसके ऊपर। जब तक वो सम्हलता, उस अग्नि शामक यंत्र की पाइप उसके गले में फँस चुकी थी, फांसी के फंदे की तरह। सेकेंडो में वो अपने साथियों के पास पहुँच गया।

तब तक उसके साथी ने कंट्रोल के सारे आपरेटस तोड़ दिए और अपने बाकी साथियों को कैमरे और सेंसर की जानकारी दे दी। दो सावधानी बरतनी थी, मारपीट में। एक तो आवाज नहीं होनी चाहिए और दूसरे गोली नहीं चलनी चाहिए। अगर गोली शिप के किसी दीवाल या फर्नीचर से रियेक्ट होकर गैस के होल्ड में लगती तो एक्स्प्लोसन हो सकता था। इसलिए न तो खुद गोली चलाना था और न और ही दुश्मन को गोली चलाने देना था। हाथ, पैर, और ज्यादा से ज्यादा खुखरी। रीत ने उस जगह को ढूँढ़ लिया था जहाँ उसे एक्सप्लोसिव फिट करना था। कील, कंट्रोल रूम के ठीक नीचे से होकर गुजरती थी।

चार जगहों पर कील के पास, जहाँ स्ट्रक्चरल डिफेक्ट थे, ये लगाए जाने थे और चार जगहों पर हल के पास। हर कमांडो को दो-दो एक्सप्लोसिव लगाने थे। और यह काम अगले 7 मिनट में पूरा होना था।

तभी दो गड़बड़ियां हुईं। रीत को एक्सप्लोसिव लगाते समय टिक-टिक-टिक-टिक की आवाज सुनाई पड़ी।

किसी और के लिए ये आवाज सुनना असंभव नहीं, तो लगभग असंभव जरूर था। बनारस में योग और तंत्र की शिक्षा ने, उसकी सारी इन्द्रियों को अति संवेदित कर रखा था और विशेष रूप से किसी आपरेशन के पहले वह सबको आमंत्रित कर लेती थी। और फिर वह अकेली नहीं होती थी, उसके साथ सारे भैरव, योगिनिया और उसके पीछे, दसों महाविद्याएं रहती थी, अपने आशीर्वाद के साथ।

रीत ने फिर ध्यान केंद्रित किया और वह समझ गई यह टाइम बाम्ब की आवाज है। कंट्रोल रूम में ही वह कील के ठीक ऊपर वो एक्सप्लोसिव लगा रही थी। रीत ने गहरी सांस ली, और एक बार फिर चारों ओर देखा, और उसकी निगाह उस आदमी पर पड़ी जिसके गले में अभी अग्नि शामक यंत्र की पाइप मौत माला बनकर झूल रही थी।

लेकिन उसका हाथ टेबल के नीचे लगे एक लाल बटन पर था जिसका प्लंजर उसने दबा रखा था। और उसी के साथ एक शिप का प्लान था, जहाँ पहले से लगे बाम्ब की लोकेशन दिख रही थी। कुल 18 बाम्ब थे। और उन्हें 15 मिनट के अंदर डिटोनेट होना था, जब उसने प्लंजर दबाया था। किसी भी हालत में उन्हें डिफ्यूज या डिस्कनेक्ट नहीं किया जा सकता था।

उसने एक बार फिर टाइम बाम्ब के टाइमर को देखा, अभी बारह मिनट बचे थे। खतरा मार्कोस टीम को नहीं था, अगले 7 मिनट में उन्हें बाम्ब लगाना था और दस मिनट में वो निकल जाते। खतरा और बड़ा था।

शिप को अब सिंक 12 मिनट के पहले हो जाना था या कम से कम आधा सिंक हो जाना था। आधे टाइम बाम्ब, गैस होल्ड के ठीक नीचे लगे थे। और शिप में आग लगने से एल॰पी॰जी॰ एक्सप्लोड होते। आयल प्लेटफार्म अभी भी 30 मिनट की दूरी पर था, लेकिन 15 मिनट में ये शिप, आयल वेल के ऊपर होगा। प्रत्युपन्नमति में रीत का जवाब नहीं था। उसने टीम के बाकी मेम्बर्स को मेसेज दिया, बाम्ब्स अब 7 मिनट के बजाय 4 मिनट में लग जाने चाहिए।

अगले चार मिनट में सारे बाम्ब लग गए।
 
रीत, रिजक्यू

लेकिन दूसरी परेशानी हो गई, मार्कोस के टीम के कमांडर को पकड़ लिया गया। उसके मेसेंजर पर मेसेज आया।

कमांडर, स्टर्न साइड से एंट्री सिक्योर किये हुए था, और साथ ही उसे उस लोकेशन की कील और हल में बाम्ब भी लगाने थे। जब वह झुक कर दूसरा बाम्ब लगा रहा था, उसी समय पीछे से हमला हुआ। उसने बिना उठे अपनी कुहनी और एक पैर से हमला करके उस अटैंकर को न्यूट्रलाइज कर दिया। लेकिन हमला करने वाले तीन थे। दोनों ने एक साथ अपना पूरा बाडी इंतेजार उसपर डाल दिया। और एक तेज धारदार चाकू की नोक उसके गर्दन पर रख दी। वो पूछ रहते थे उसके साथ कौन है?

उन्हें क्या मालूम, उसके साथ पूरा देश था, वो हर इंसान था जो आतंक के खिलाफ है। रीत भी तेजी से उस जगह की ओर बढ़ी, लेकिन जो हुआ, वो देखकर वह सन्न रह गई।

उसके आगे के कमांडो के हाथ से बिजली की तेजी से खुखरी निकली, और उसने जिस तेजी से वो फेंकी, अगले पल जिस दुष्टात्मा ने, कमांडो कमांडर के गले पे चाकू लगा रखा था, उसका हाथ फर्श पर छटपटा रहा था, चाकू समेत। कटा हुआ अलग। और जब तक उसकी चीख निकलती, कमांडो उसके ऊपर सवार था, और उसकी गरदन उसने मरोड़ दी थी।

बाकी दोनों से निपटना रीत और कमांडो कमांडर के लिए बाएं हाथ का खेल था। एक ने जान खुखरी से गंवाई और दूसरे ने रीत की उंगलियों से। लेकिन मौत तुरंत आई, बिना आवाज, चीख पुकार के। रीत ने कमांडो कमांडर से कुछ खुसुर पुसुर की। और ये तय हुआ की बाम्ब्स लग गए हैं इसलिए दोनों मार्कोस के कमांडो तुरंत शिप से निकलकर, बाहर पहुँचकर एक्जिट प्वाइंट सिक्योर करेंगे, और इन्फ्लेटेबल बोट को रेडी रखेंगे।

उनके सपोर्ट के लिए आये हेलीकाप्टर को और कोस्ट गार्ड शिप को रेड़ी होने का अलर्ट देंगे। चार मिनट के अंदर, रीत और कमांडर वापस आएंगे, झाड़ू लगाकर। कुछ ही पलों में दोनों मार्कोस के कमांडो शिप के बाहर थे।

कमांडर ने बताया था की डमी पैराट्रूपर्स ने जो बातें रिकार्ड की हैं उनसे ये पता चला है की, शिप के कैप्टेन (असली) और कुछ सेलर्स को कहीं बंद करके रखा है। उसका प्लान ये था की बचे हुए समय में अगर वो मिल जाते हैं तो उन्हें रिस्क्यू करा सकते हैं और साथ में शिप के लाइफ बोटस को अलग कर देंगे, जिससे जब शिप सिंक हो तो टेरर वाले लोग निकल न भागे। बस एक बात का ध्यान रखना था की उनके शिप से निकलने के टाइम में कोई फेर बदल नहीं होगा। कमांडर के मेसेज देने के तुरंत बाद, रीत को एस्केप प्लेस पर पहुँच जाना होगा।



कुल चार मिनट थे उनके पास। एक ओर से रीत ने काम्बिंग शुरू की और दूसरी ओर से कमांडो कमांडर ने। लेकिन रीत के मन में कुछ और था, वो चाहती थी कुछ सबूत इकठ्ठा करना।
 
रीत, दुश्मन की मांद में

और एक बार जब शिप सिंक हो जाएगा, तो ये लोग लाख कहें इंटरनेशनल फोरम में, बिना किसी सबूत के कोई मानने वाला नहीं है। और दूसरी बात, इससे वो लिंक जोड़ के, जिसने ये आपरेशन आर्डर किया, जो इसको कंट्रोल और फाइनेन्स कर रहे हैं, उन तक पहुँच सकते हैं, जब तक दुशमन की मांद में घुस के न मारा तो क्या मजा।

और इस काम में करन एक्सपर्ट था। रीत और करन की जोड़ी के आगे दुश्मन नतमस्तक हो जाएं तो बात है। पहला हमला उसने कम्युनिकेशन रूम पर किया, वहां सिर्फ एक आदमी था। न उसे ज्यादा तकलीफ हुई न रीत को। रीत ने उसे बेहोश करके छोड़ दिया।

और वहां पर तो शुद्ध सोना मिला उसे, कम्युनिकेशन लाग, किससे बात हुई और सबसे बढ़कर, पिछले 12 घंटों की पूरी बातचीत वायस रिकार्डर डाटा कार्ड में थी। रीत ने उसे निकाल लिया और कैप्टेन केबिन की ओर रुख किया।पहले तो रीत को कुछ नहीं मिला। फिर कबर्ड में हाथ से फील करने पर उसे एक दीवार खोखली लगी। और फिर नाखून के सहारे उसने एक उभरी हुई जगह को उठाया तो वहां एक डायरी, लाग, चार्ट मिले। डायरी शिप के असली कैप्टेन की थी।

और तभी उसे हल्की सी हेल्प-हेल्प की आवाज सुनाई पड़ी। ध्यान देने पर पता चला लाफ्ट से, ऊपर से, आवाज आ रही थी। और जैसे ही उसने खोला, बण्डल नीचे गिरा। वो शिप का असली कैप्टेन था। हाथ, पैर आपस में बांधकर बंडल बना दिया था। मुँह पर पट्टी, लेकिन वो उसने रगड़-रगड़कर थोड़ी खोल ली थी। पल भर में रीत ने उसे आजाद कर दिया। उसने कुछ बोलने की कोशिश की तो रीत ने उसे इशारे से चुप करा दिया। उनकी आवाज सुनकर कोई भी आ सकता था। दूसरे स्मोक बाम्ब का असर कम हो रहा था। और अब हल्का-हल्का दिखाई पड़ रहा था। उन्होंने कुछ पावर केबल काटे थे पर इमरजेंसी लाइटें अभी भी जल रही थी। रीत ने कैप्टेन से लाइटों का स्विच बोर्ड पता किया और फिर दो तारों को जोड़कर उसे शार्ट कर दिया।

शिप का अंदरुनी हिस्सा एक बार फिर घुप अँधेरे में डूब गया। यहीं से पावर इंजिन रूम को भी जाता था, वहां भी पावर सप्लाई बंद हो गई।

रीत ने नाइट विजन ग्लासेस लगा रखे थे, उसने शिप कैप्टेन का हाथ पकड़ा और दोनों बाहर गलियारे में निकल पड़े। एस्केप प्वाइंट पर मिलने में सिर्फ डेढ़ मिनट का समय बचा था। थोड़ी देर में उसने मार्कोस के लीडर को देखा, उसके साथ भी तीन लोग थे। और वो आलरेडी एस्केप प्वाइंट पर लगी रोप लैडर से उतर रहे थे। दो आदमियों को मार्कोस लीडर ने नीचे उतार दिया और इशारा किया। वो इन्फलेटबल बोट अब शिप से दूर चल दी।

शिप और बाहर समुद्र घुप अँधेरे में डूबे थे।

रीत और मार्कोस कमांडर ने अब दूसरी बोट पे लैंडिंग शुरू की। सबसे पहले लीडर ने जिसे रिजक्यू कराया था वो आदमी, और फिर रीत बोट में उतरे। उतरने के बाद वो रस्सी हिला के इशारा करते और अगला आदमी उतरना शुरू करता। अब शिप के कैप्टेन और फिर मार्कोस टीम के लीडर का नंबर था।

पहली बोट अब पूरी तेजी से जा रही थी और शिप से करीब आधे किलोमीटर दूर पहुँच गई थी। उन्होंने दोनों हेलीकाप्टर को मेसेज दे दिया था की अब बजाय चार के आठ लोग हेलीकाप्टर से जाएंगे। एक हेलीकाप्टर अब पहली बोट के ऊपर मंडरा रहा था।

कोस्ट गार्ड का शिप भी किसी परिस्थिति के लिए पास आ गया था।

शिप से होने वाले किसी भी फायर के रेंज से वो बाहर थे। पहले हेलीकाप्टर ने विन्च नीची की और रोप लटका दी। मार्कोस का एक आदमी सबसे पहले चढ़ा, फिर रिजक्यू किये गए दोनों और अंत में मार्कोस का एक आदमी।

अब रीत के बोट का नंबर था। पहले हेलीकाप्टर के दूर जाने के बाद इस हेलीकाप्टर की विन्च खुली और रोप नीचे आई। सबसे पहले एल॰पी॰जी॰ शिप के कैप्टेन, फिर एक और रिजक्यू किया हुआ आदमी, रीत और सबसे अंत में मार्कोस के लीडर को चढ़ना था। कैप्टेन के चढ़ने के बाद दूसरा आदमी चढ़ा।

रीत ने घड़ी देखी। एक्सप्लोजन में अभी 6 मिनट बचे थे और शिप की सिंकिंग शुरू होने में आठ मिनट। और ये एक्स्प्लोसिव बहुत ही लो पावर थे, शिप के बाहर से पता ही नहीं चलता। जब शिप सिंक करना शुरू करता तो पता चलेगा।

रीत ने चैन की साँस ली, आपरेशन सक्सेसफुल रहा। रीत रस्सी पर चढ़ गई थी और उसके ठीक पीछे, मार्कोस का लीडर।

उन्हें जल्दी से यह जगह खाली करनी थी। तभी नीचे से मार्कोस के लीडर की चीख और चेतावनी सुनाई पड़ी।

कैप्टेन के बाद रिजक्यू किया हुआ आदमी रोप से चढ़ा था वो हेलीकाप्टर की विन्च पर से झुक कर रोप चाकू से काट रहा था। चीख सुनकर, हेलीकाप्टर के कमांडो ने, पिस्टल के शाट से उस आदमी को खत्म कर दिया।

रस्सी अभी भी झूल रही थी, लेकिन रीत मार्कोस लीडर के वजन से वह टूट गई।

मार्कोस लीडर तो इन्फलेटबल बोट के जस्ट बाहर गिरा, और वापस बोट में चढ़ गया। लेकिन रोप के झटके से रीत बोट से दो सौ मीटर दूर सीधे समुद्र में जा गिरी।
 
रीत





मार्कोस के कमांडर ने बोट में से रैफ्ट का एक टुकड़ा फेंका और वो रीत की ओर तैर रहा था। गहरा काला अरब सागर, अँधेरे में डूबा। होली के अगले दिन का चाँद, बादलों से लुकाछिपी करते पास कुछ चांदनी कभी-कभी बरसा देता।


दुर्दांत भयावह काल की तरह पास में वो विशालकाय टेरर शिप, और समुद्र की लहरों से लड़ती, थपेड़ों से जूझती, बिंदास बनारसी बाला, सिर्फ एक लकड़ी के टुकड़े के सहारे तैरती, समुद्र की ताकत अपनी बाहों से नापती, जूझती, रीत।

उसे अहसास हो गया था, कि सबसे पहले, उसे उस टेरर शिप से दूर जाना था। जितना दूर हो सके। एक इन्फ्लेटेबल बोट उस शिप के पास भी थी, लेकिन रीत उधर नहीं जा सकती थी। पांच मिनट में शिप सिंक होना था, और जैसे ही वो सिंक होना शुरू होता, आसपास की छोटी मोटी चीजें, सब उसके साथ, समुद्र के गर्त में। गनीमत हो डी॰आर॰डी॰ओ॰ वालों का।

जो ड्रेस इस आपरेशन के लिए रीत ने पहनी थी, वो लाइफ बेल्ट की तरह थी। एक बटन दबाकर उसमें हवा भरी जा सकती थी। और इन्फ्लेट करने के बाद, रीत अब कम से कम समुद्र में डूब नहीं सकती थी। उसने अपनी हेड लाईट भी आन कर दी थी। और थोड़ी देर में वो शिप से दूसरी दिशा में जा रही थी। वह बार-बार पीछे मुड़कर उस शिप की छाया को देखती और उसकी बाँहों में दुबारा ताकत भर उठती।

और तभी उसको एक इन्फेलटेबल बोट दिखी, वही जिससे पहले चार लोग हेलीकाप्टर में चढ़े थे।किसी तरह वह उसमें चढ़ी, और एक पल के लिए उसने गहरी सांस ली। और जब उसने शिप की ओर देखा तो उसे लगा वो शिप स्टार बोर्ड साइड में, टिल्ट हो रहा है। पहले तो उसे विश्वास नहीं, हुआ फिर दुबारा देखा। अबकी टिल्ट और प्रोनाउंस्ड था।

लेकिन फिर उसे याद आया की कहीं शिप के साथ, और तुरंत उसने अपने ड्रेस में रखे दो फ्लेयर्स एक साथ जलाये और दोनों हाथों से हवा में लहराने लगी। आसमान अभी भी काला था और सूना, सिर्फ सन्नाटा।

उसके दिल की धड़कन और तेज होने लगी, कहीं आज की रात। काल रात्रि, लेकिन उसे अपने ऊपर भरोसा था और उससे भी ज्यादा काशी के कोतवाल पर, और तभी हल्की-हल्की आसमान में हेलीकाप्टर के रोटर की आवाज सुनायी देने लगी।



शिप और टिल्ट हो रहा था, और लहरे भी अब शिप की ओर, अपने रेडियो से रीत बार मेडे में डे का मेसेज दे रही थी। वो जान रही थी की बस कुछ मिनटों में उसने अगर ये बोट नहीं छोडी तो, और हेलीकाप्टर उसके बोट के ठीक ऊपर आकर रुका, विन्च नीचे आ गई थी और रोप लहरा रही थी।

उम्मीद की आखिरी किरण की तरह, उछलकर उसने रोप पकड़ ली।



रोप मार्कोस के लीडर कंट्रोल कर रहे थे। बिना नीचे देखे वो दोनों हाथों थे रस्सी पकड़, हेलीकाप्टर में पहुँच गई। और जैसे ही वो अंदर घुस रही थी, उसने नीचे देखा। सी बहुत चापी हो गया था। वह जिस बोट पर थी, समुद्र की लहरों पर गेंद की तरह उछल रही थी। शिप उसी तरह था। मार्कोस कमांडर ने बताया की उन्हें नेवल कंट्रोल ने बोला है की वो यहीं आधे घंटे तक और रहेंगे, और जब तक शिप पूरी तरह सिंक नहीं कर जाता उसे आब्जर्व करेंगे। कम्प्लीट सिंक होने के पन्दरह मिनट बाद ही वह वहां से निकलेंगे। और तब तक वो शिप के ओरिजिनल कैप्टेन को भी ब्रीफ करेंगे।

रीत उनकी बात सुन रही थी लेकिन उसकी निगाह नीचे शिप से चिपकी थी।



अब वह काफी तिरछा हो गया था। पहला आयल वेल अभी भी, शिप से 500 मीटर दूर था।
 
भाभी की चिट्ठी

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“मेरे देवर कम नंदोई,

सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो,

तुमने बोला था की इस बार होली पे जरूर आओगे और हफ्ते भर रहोगे तो क्या हुआ? देवर भाभी की होली तो पूरे फागुन भर चलती है और इस बार तो मैंने अपने लिए एक देवरानी का भी इंतजाम कर लिया है, वही तुम्हारा पुराना माल। न सतरह से ज्यादा न सोला से कम। क्या उभार हो रहे हैं उसके।

मैंने बोला था उससे की अरे हाई स्कुल कर लिया पिछले साल, अब इंटर में चली गयी हो तो अब तो इंटरकोर्स करवाना ही होगा, तो फिस्स से हँसकर बोली-

“अरे भाभी आप ही कोई इंतजाम नहीं करवाती। अपने तो सैयां, देवर, ननदोइयों के साथ दिन रात और।“

तो उसकी बात काटकर मैं बोली अच्छा चल आ रहा है होली पे एक, और कौन तेरा पुराना यार, लम्बी मोटी पिचकारी है उसकी और सिर्फ सफेद रंग डालेगा। एकदम गाढ़ा बहुत दिन तक असर रहता है।
तो वो हँसकर बोली की ,”अरे भाभी आजकल उसका भी इलाज आ गया है चाहे पहले खा लो चाहे अगले दिन। बाद के असर का खतरा नहीं रहता,”

और हाँ तुम मेरे लिए होली की साड़ी के साथ चड्ढी बनयान तो ले ही आओगे, उसके लिए भी ले आना और अपने हाथ से पहना देना। मेरी साइज तो तुम्हें याद ही होगी। मेरी तुम्हारी तो एक ही है। 34सी और मालूम तो तुम्हें उसकी भी होगी। लेकिन चलो मैं बता देती हूँ। 30बीबी हाँ होली के बाद जरूर 32 हो जायेगी…”

फागुन चढ़ गया था, फगुनाहट शुरू हो गयी थी, होली कुछ दिन बाद ही थी। भाभी की इस चिठ्ठी पर उसी का असर था, ... मैं अभी ट्रेनिंग में था, पिछले साल ट्रेनिंग में होली में छुट्टी नहीं मिल पायी थी, पर अब कुछ दिनों बाद ही ट्रेनिंग खतम होने वाली थी और मैंने बोला था की अबकी होली में जरूर आऊंगा और हफ्ते भर कम से कम,... छुट्टी मिल भी गयी थी भाभी की चिट्ठी में उसी का दावतनामा था, होली में घर आने का।

मैं समझ गया की भाभी चिट्ठी में किसका जिकर कर रही थी। मेरी कजिन, हाईस्कूल पास किया था उसने पिछले साल। अभी इंटरमीडिएट में थी. जब से भाभी की शादी हुई थी तभी से उसका नाम लेकर छेड़ती थी, आखिर उनकी इकलौती ननद जो थी। शादी में सारी गालियां उसी का बाकायदा नाम लेकर, और भाभी तो बाद में भी प्योर नानवेज गालियां। पहले तो वो थोड़ा चिढ़ती लेकिन बाद में,… वो भी कम चुलबुली नहीं थी।

कई बार तो उसके सामने ही भाभी मुझसे बोलती, हे हो गई है ना लेने लायक, कब तक तड़पाओगे बिचारी को कर दो एक दिन। आखिर तुम भी 61-62 करते हो और वो भी कैंडल करके, आखिर घर का माल घर में। पूरी चिट्ठी में होली की पिचकारियां चल रही थी। छेड़-छाड़ थी,मान मनुहार थी और कहीं कहीं धमकी भी थी। मैंने चिट्ठी फिर से पढ़नी शुरू की।



“माना तुम बहुत बचपन से मरवाते, डलवाते हो और जिसे लेने में चार बच्चों की माँ को पसीना आता है वो तुम हँस हँसकर घोंट लेते हो। लेकिन अबकी होली में मैं ऐसा डालूंगी ना की तुम्हारी भी फट जायेगी, इसलिए चिट्ठी के साथ 10 रूपये का नोट भी रख रही हू, एक शीशी वैसलीन की खरीद लेना और अपने पिछवाड़े जरूर लगाना, सुबह शाम दोनों टाइम वरना कहोगे की भाभी ने वार्निंग नहीं दी…”



लेकिन मेरा मन मयूर आखिरी लाइनें पढ़कर नाच उठा-

“अच्छा सुनो, एक काम करना। आओगे तो तुम बनारस के ही रास्ते। रुक कर भाभी के यहाँ चले जाना। गुड्डी की लम्बी छुट्टी शुरू हो रही है, उसके स्कूल में बोर्ड के इम्तहान का सेंटर पड़ा है, तो पूरे हफ्ते दस दिन की होली की छुट्टी,... वो होली में आने को कह रही थी, उसे भी अपने साथ ले आना। जब तुम लौटोगे तो तुम्हारे साथ लौट जायेगी…”



चिठ्ठी के साथ में 10 रूपये का नोट तो था ही एक पुडिया में सिंदूर भी था और साथ में ये हिदायत भी की मैं रात में मांग में लगा लूं और बाकी का सिंगार वो होली में घर पहुँचने पे करेंगी। आखिरी दो लाइनें मैंने 10 बार पढ़ीं और सोच सोचकर मेरा तम्बू तन गया
 
गुड्डी -बनारस वाली

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गुड्डी- देखकर कोई कहता बच्ची है। मैं भी यही समझता था लेकिन दो बातें।

एक तो असल में वो देखने से ऐसी बच्ची भी नहीं लगती थी, सिवाय चेहरे को छोड़के। एकदम भोला। लम्बी तो थी ही, 5’3” रही होगी। असली चीज उसके जवानी के फूल, एकदम गदरा रहे थे, 30सी।


और दूसरी मेरे सामने डेढ़ साल पहले का का दृश्य नाच उठा। मेरा सेलेक्शन हो गया था, रैंक भी अच्छी थी और मैं श्योर था की कैडर भी मुझे होम कैडर यू पी का मिल जाएगा। फर्स्ट अटेम्प्ट था.पूरे घर में मेरी पूछ भी बढ़ी हुई थी। गर्मियों की छुट्टियां चल रही थी और गुड्डी भी आई थी।

सब लोग पिक्चर देखने गए। डिलाईट टाकिज, अभी भी मुझे याद है। कोई पुरानी सी पिक्चर थी। रोमांटिक। हाल करीब खाली सा था। घर के करीब सभी लोग थे। गुड्डी मेरे बगल में ही बैठी थी। हम लोग मूंगफली खा रहे थे। सामने एक रोमांटिक गाना चल रहा था, उसने मेरा हाथ पकड़कर अपने सीने पे रख लिया।

गुड्डी अच्छी तो लगती ही बल्कि बहुत अच्छी लगती थी और खासतौर से उसके चूजे से जस्ट आ रहे उभार, मैं चुपके चुपके नजर चिपकाए रहता था वही, पर जैसे गुड्डी मेरी ओर नजर करती, मैं आँखे हटा लेता। लेकिन क्या मुझे मालूम था की जवान होती लड़कियों की एड़ी में आँख होती है और कौन नजरों से उन्हें दुलरा रहा है, उनकी नजरें देख लेती। लेकिन मेरी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं पड़ती थी और ये बात वो भी समझ गयी थी।

मैं कुछ समझा नहीं और वहीं हाथ रहने दिया। अच्छा तो बहुत लग रहा था लेकिन आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। थोड़ी देर रहकर उसने दूसरे हाथ से मेरा हाथ हल्के से दबा दिया।

अब मैं इत्ता बुद्धू तो था नहीं। हाँ ये बात जरूर थी की अब तक न तो मेरी कोई गर्लफ्रेंड थी ना मैंने किसी को छुआ वुआ था। मैंने दोनों ओर देखा सब लोग पिक्चर देखने में मशगूल थे। यहाँ तक की गुड्डी भी सबसे ज्यादा ध्यान से देख रही थी।

अब मैंने हल्के से उसके उभार दबा दिए।

उसके ऊपर कोई असर नहीं पड़ा और वो सामने पिक्चर देखती रही और मुझसे बोली, हे जरा मूंगफली बगल में पास कर दो, सब तुम ही खाए जा रहे हो और मैंने बगल में जो मेरी कजिन बैठी थी उसे दे दिया।

थोड़ी देर में गुड्डी ने फिर मेरा हाथ दबा दिया। अब इससे ज्यादा सिगनल क्या मिलता। मैंने उसके छोटे-छोटे चूचियों हल्के से सहलाए फिर दबा दिए और अबकी कसकर दबा दिया। वो कुछ नहीं बोली लेकिन थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ मेरे जीन्स के ऊपर रख दिया।

लेकिन तभी इंटरवल हो गया। हम सब बाहर निकले। वो कोर्नेटो के लिए जिद्द करने लगी और मेरी कजिन ने भी उसका साथ दिया। मैंने लाख समझाया की बहुत भीड़ है स्टाल पे लेकिन वो दोनों। कूद काद के मैं ले आया। लेकिन दो ही मिली। उन दोनों को पकड़ाते हुए मैंने कहा, लो दो ही थी मेरे लिए नहीं मिली।

तब तक पिक्चर शुरू हो गई थी और मेरी कजिन आगे चली गई थी, कोरेनेटो लेकर। लेकिन गुड्डी रुक गई और अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोली, तुम मेरी ले लेना ना।

मैंने उसी टोन में जवाब दिया, लूँगा तो मना मत करना। इंटरवल के पहले जो हुआ मेरी हिम्मत बढ़ रही थी।

उसने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, मना कौन करता है। हाँ तुम्ही घबड़ा जाते हो। बुद्धू

और वो हाल में घुस गई। मैं सीट पे बैठ गया तो वो मेरी कजिन को सुना के बोली, कुछ लोग एकदम बुद्धू होते हैं, है ना। और उसने भी उसकी हामी में हामी भरी और खिस से हँस दी। मैं बिचारा बीच में।

कोरेनेटो की एक बाईट लेकर उसने मुझे पास की और बोलि- देखा मैं वादे की पक्की हूं, ले लो लेकिन थोड़ा सा लेना।

मैंने कसकर एक बाईट ली उसी जगह से जहां उसने होंठ लगाए थे और हल्के से उसके कान में फुसफुसाया- मजा तो पूरा लेने में है।

जवाब उसने दिया- मेरी जांघ पे एक कसकर चिकोटी काटकर, ठीक ‘उसके’ बगल में। और मुझसे कार्नेटो वापस लेकर। बजाय बाईट लेने के उसने हल्के से लिक किया और फिर अपने होंठों के बीच लगाकर मुझे दिखाकर पूरा गप्प कर लिया।

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अगले दिन तो हद हो गई।
 
गुड्डी

देह की नसेनी

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अगले दिन तो हद हो गई।



गरमी के दिन थे। भैया भाभी ऊपर सोते और हम सब नीचे की मंजिल पे।

एक दिन रात में बिजली चली गई। उमस के मारे हालत खराब थी। मैंने अपनी चारपायी बरामदे में निकाल ली। थोड़ी देर में मेरी नींद खुली तो देखा की बगल में एक और चारपाई। मेरी चारपाई से सटी। और उसपे वो सिर से पैर तक चद्दर ओढ़े। हल्की-हल्की खर्राटे की आवाजें। मैंने दूसरी ओर नजर दौड़ाई तो एक-दो और लोग थे लेकिन सब गहरी नींद में।

मैंने हिम्मत की और चारपाई के एकदम किनारे सटकर उसकी ओर करवट लेकर लेट गया और सिर से पैर तक चद्दर ओढ़े। थोड़ी देर बाद हिम्मत करके मैंने उसकी चद्दर के अंदर हाथ डाला। पहले तो उसके हाथ पे हाथ रखा और फिर सीने पे। वो टस से मस नहीं हुई। मुझे लगा की शायद गहरी नींद में है। लेकिन तभी उसके हाथ ने पकड़कर मेरा हाथ टाप के अंदर खींच लिया। पहले ब्रा के ऊपर से फिर ब्रा के अंदर।

पहली बार मैंने जवानी के उभार छुए थे। समझ में ना आये की क्या करूँ। तभी उसने टाप के ऊपर से अपने दूसरे हाथ से मेरा हाथ दबाया, फिर तो।

कभी मैं सहलाता, कभी हल्के से दबाता, कभी दबोच लेता। दो दिन बाद फिर पावर कट हुआ। अब मैं बल्की पावर कट का इंतजार करता था और उस दिन वो शलवार कुरते में थी। थोड़ी देर ऊपर का मजा लेने के बाद मैंने जब हाथ नीचे किया तो पता चला की शलवार का नाड़ा पहले से खुला था। पहली बार मैंने जब ‘वहां’ छुआ तो बता नहीं सकता कैसा लगा। बस जो कहा है ना की गूंगे का गुड बस वही। सात दिन कैसे गुजर गए पता नहीं चला।

कुछ कुछ होता है टाइप जो टीनेज में होता है बस वो शुरू हो गया था, वो टीनेज की मझधार में थी, और मेरे भी टीनेज गुजरे बहुत दिन नहीं हुए थे।



उसे देखकर मुझे कुछ कुछ होता है, मुझसे पहले उसे पता चल गया था।

चार आँखों का खेल चलता रहता था, बस देखना, मुस्कराना और बात जो जबान तक आ के रुक जाए वही हालत थीं, वो सोचती थी मैं कुछ बोलूंगा पर मैं कभी शेरो का सहारा लेता,
क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,
दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये।

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कौन लेता है अंगड़ाइयाँ,

आसमानों को नींद आती है।




और फिर वो क्या जबरदस्त अंगड़ाई लेती थी, दोनों कबूतर लगता था पिंजरा तोड़ के उड़ जाएंगे, उभार, कड़ाव, ऊंचाई,... और वो जानती थी क्या असर होता था उसका। तम्बू तन जाता था मेरा और वो बेशर्मी से देखती मुस्कराती,

कभी चिढ़ा के बोलती, होता है, होता है। कभी मैंने ज्यादा शायरी की बात करता तो मेरी नाक पकड़ के हिला के बोलती,

" मुझे शेर वेर नहीं मालूम, सर्कस में देखा था। लेकिन एक चीज मालूम है की जो बुद्धू हैं वो बुद्धू ही रहते हैं।"

और मैं उसकी आँखों में डूब जाता।


लेकिन उसे मालूम था की देह की नसेनी लगा के ही मन की गहराई में उतर सकते है, प्यार के अरुण कमल को पाने के लिए,, बिना तन के मन नहीं होता।

दिन भर तो वो खिलंदड़ी की तरह कभी हम कैरम खेलते कभी लूडो। भाभी भी साथ होती और वो मुझे छेड़ने में पूरी तरह भाभी का साथ देती। यहाँ तक की जब भाभी मेरी कजिन का नाम लगाकर खुलकर मजाक करती या गालियां सुनाती तो भी। ताश मुझे ना के बराबर आता था लेकिन वो भाभी के साथ मिलकर गर्मी की लम्बी दुपहरियों में और जब मैं कुछ गड़बड़ करता और भाभी बोलती क्यों देवरजी पढ़ाई के अलावा आपने लगता है कुछ नहीं सिखा। लगता है मुझे ही ट्रेन करना पड़ेगा वरना मेरी देवरानी आकर मुझे ही दोष देगी तो वो भी हँसकर तुरपन लगाती,

"हाँ एकदम अनाड़ी हैं।"

उस सारंग नयनी की आँखें कह देती की वो मेरे किस खेल में अनाड़ी होने की शिकायत कर रही है।

जिस दिन वो जाने वाली थी, वो ऊपर छत पर, अलगनी पर से कपड़े उतारने गई। पीछे-पीछे मैं भी चुपके से- हे हेल्प कर दूं मैं उतारने में मैंने बोला।

‘ना’ हँसकर वो बोली। फिर हँसकर डारे पर से अपनी शलवार हटाती बोली, मैं खुद उतार दूंगी।

अब मुझसे नहीं रहा गया।

मैंने उसे कसकर दबोच लिया और बोला-

हे दे दो ना बस एक बार "

और कहकर मैंने उसे किस कर लिया। ये मेरा पहला किस था। लेकिन वो मछली की तरह फिसल के निकल गई और थोड़ी दूर खड़ी होकर हँसते हुए बोलने लगी.

“ इंतजार बस थोड़ा सा इंतजार। “

एक-दो महीने पहले फिर वो मिली थी एक शादी में धानी शलवार सुइट में, जवानी की आहट एकदम तेज हो गई थी। मैंने उससे पूछा हे पिछली बार तुमने कहा था ना इंतजार तो कब तक?

बस थोड़ा सा और।हंस के वो बोली

मैं शायद उदास हो गया था। वो मेरे पास आई और मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए बोली

पक्का- बहुत जल्द और अगली बार जो तुम चाहते हो वो सब मिलेगा प्रामिस।

मेरे चेहरे पे तो वो खुशी थी की, कुछ देर बोल नहीं फूटे

मैंने फिर कहा सब कुछ।

तो वो हँसकर बोली एकदम। लेकिन तब तक बारात आ गई और वो अपनी सहेलियों के साथ बाहर।

भाभी की चिट्ठी ने मुझे वो सब याद दिला दिया और अब उसने खुद कहा है की वो होली में आना चाहती है और। उसे तो मालूम ही था की मैं बनारस होकर ही जाऊँगा। मैंने तुरंत सारी तैयारियां शुरू कर दी।



ओह्ह… कहानी तो मैंने शुरू कर दी।

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लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं। तो चलिए शुरू करते हैं।
 
पात्र परिचय

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ओह्ह… कहानी तो मैंने शुरू कर दी।

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लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं। तो चलिए शुरू करते हैं।

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सबसे पहले मैं यानी आनंद। उम्र जब की बात बता रहा हूँ। 23वां लगा था, लम्बाई 5’11…” इंच कोई जिम टोंड बदन वदन नहीं लेकिन छरहरा कह सकते हैं, गोरा। चिढ़ाने के लिए खास तौर से भाभी, चिकना नमकीन कह देती थी पर आप जानते हैं भाभी तो भाभी हैं। हाँ ये बात सही थी की मैं जरा शर्मीला था और शायद इसलिए मैं अब तक “कुँवारा…” था। मेरी इमेज एक सीधे साधे लड़के की थी। चलिए बहुत हो गई अपनी तारीफ। हाँ अगर आप “उस…” चीज के बार मैं जानना चाहते हैं की। तो वो इस तरह की कहानियों के नायक की तरह तो नहीं था लेकिन उन्नीस भी नहीं था।
मेरी भाभी- बहुत अच्छी थी। शायद वो पहली महिला लड़की जो चाहे कह लीजिये जो मुझसे खुलकर बातचीत करती थी।

जो लोग कहते हैं भाभी को माँ के समान समझना चाहिए वैसा कत्तई नहीं था, और वो बात उन्होंने मुझसे पहले खुद साफ कर दी थी, लेकिन जो ' देवर भाभी के किस्से ' टाइप किताब होती है वैसा भी कत्तई नहीं था. वो मुझे चिढ़ा लेती थी, मौका पड़ने पर अच्छी वाली गारी भी देती थीं पर मैं चुप ही रहता था, कभी बहुत हिम्मत की तो थोड़ा बहुत बोल दिया।


रिश्ता देवर भाभी का ही था लेकिन एक तरह से मेरी अकेली दोस्त, सहेली जो कहिये,...

कारण दो थे घर में और कोई नहीं था उनके अलावा। भाई साहेब मेरे प्रेमचंद के बड़े भाई साहेब टाइप बल्कि और सीरियस, उमर में भी बहुत बड़े। भाभी चार पांच साल ही बड़ी रही होंगी और ये दूसरा कारण था। चिंता भी जरूरत से ज्यादा करती थीं, एक दो बार मैंने बोला भी तो उन्होंने टोक दिया, " तेरे बस का तो है नहीं, और देवरानी मेरी अभी आयी नहीं। जिस दिन देवरानी मिल जायेगी, उसके हाथ में तेरा हाथ दे दूंगी तब चिंता करना बंद कर दूंगी।

मेरे सेलेक्शन में, सिविल सर्विस के इम्तहान में कहते हैं जितना पढाई का रोल होता है उतनी किस्मत का,... तो पढ़ाई वाला काम तो मैंने किया लेकिन देवी देवता मनाने का भाभी ने, गली मोहल्ले के देवी देवता से लेकर गंगा मैया की आर पार की चुनरी सब मान ली थी उन्होंने और ख़ुशी भी मुझसे ज्यादा उन्हें हुयी।

हर चीज , यहाँ तक की मेरे लिए मस्तराम किराए पे लाने की फंडिंग भी वही करती थी। और उनका भी हर काम बाजार से कुछ लाना हो, उन्हें मायके ले जाना और वहां से लाना। बस चिढ़ाती बहुत थी और खास तौर पर मेरी कजिन का नाम लेकर, मजाक करने में तो एक नम्बर की।

और जो मजाक में भाभी थोड़ी झिझकती थी, गारी सुनाने में गाने में तो उनकी एक साथी सहेली थी मंजू।
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मंजू उम्र में भाभी से दो तीन साल छोटी होगी, लेकिन साइज में मेरा मतलब,.... ओके ३६ डी नहीं डबल डी , बाहर एक कोठरी में रहती थी शादी हुए दो साल हुए होंगे, मरद उसका पंजाब गया था कमाने, और घर का सारा काम काज करने में भाभी का हाथ बटाती थी, और हम लोगों के लिए भाभी ही। उसके आने से होली से लेकर मजाक तक में भाभी २० पड़ने लगी थीं,


मेरी कजिन पास के ही मोहल्ले में रहती थी और भाभी की एकलौती ननद थी। जैसा की भाभी ने अपनी चिठ्ठी में लिखा था की

वह दसवें का बोर्ड का इम्तहान पास करके ग्यारहवे में गयी थी। बनारस वाली गुड्डी की समौरिया, और दोनों पक्की सहेली। एक दूसरे से झगड़ा करने में, चिढ़ाने में गरियाने में, ... बताया तो पिक्चर हाल में जब गुड्डी ने मेरा हाथ पकड़ के अपने सीने पर रखा था,.... जैसे सांप सीढ़ी के खेल में किसी को २१ वाली सीढ़ी मिल जाए और सीधे ९३ पर पहुँच जाय, जिस गुड्डी को देख के मैं सिर्फ ललचाता रहता था, बस सोचता रहता था ये मिल जाये, उसके चूजों के बारे में सोच के पजामे में तम्बू बन जाता था, खुद उसने,... तो उस समय गुड्डी के बगल में वही थी, पिक्चर हाल में।

मेरी ममेरी बहन, और भाभी की रिश्ते नाते में भी जोड़ कर एकलौती ननद, तो सारे मजाक का सेंटर वही बनती थी और मुझे बी ही भी उसी से जोड़ कर. लम्बी थी अच्छी खासी, पढ़ने में भी तेज थी, ... और वो जिस गली में रहती थी उसके शुरू के घर कुछ धोबियों के थे, वहां गदहे बंधे रहते थे तो मजाक का एक जड़ वो भी था, भाभी के लिए।
भाभी की भाभी और गुड्डी की मम्मी -

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ये रिश्ता भी उतना ही दिलचस्प है जितना जिनका रिश्ता है। असल में वो कोई भाभी की सगी भाभी नहीं थी, लेकिन एक बात की भाभी की कोई सगी भाभी वैसे भी नहीं थीं,... दूसरे रिश्ता वो जो माना जाए और रखा जाये,... और जिसका लिहाज हो।


वो भाभी से दस बारह साल बड़ी रही होंगी, लेकिन मजाल की कभी नाम लिया हो, ननद का नाम नहीं लिया जाता तो बस बिन्नो। गाँव में घर दोनों लोगों का सटा था, और उनका घर, मेरा मतलब की भाभी के भाभी का घर बहुत बड़ा, जैसे पहले के गाँव के घर होते थे, दो खंड के मरदाना -जनाना वाले, काफी कुछ पक्का, दो मंजिला, ... और वहीँ से भाभी की शादी हुयी थी, सामने बड़ी सी आम की बाग़,... डेढ़ दो सौ पेड़ तो रहे होंगे, उसी बाग़ में बरात टिकी थी। अभी भी मुझे याद है तीन दिन की बरात,... मैं एकलोता छोटा भाई, शहबाला,... खिचड़ी की रस्म में भाभी की भाभी ने सबसे ज्यादा मेरी रगड़ाई की नाम ले ले के असली वाली गारियाँ सुनायीं, ...


लेकिन गाँव घर के रिश्ते उलझे भी रहते हैं, मेरी भाभी की ननिहाल और भाभी की भाभी का मायका एक ही था और वहां वो रिश्ते में बड़ी थीं। पर उन्होंने चुना अपनी ससुराल का रिश्ता,... ननद भाभी से ज्यादा रसीला रिश्ता कौन होगा।


देखने में , ओके चलिए वो भी बता देता हूँ, ३५ -३६ की होंगी तो थोड़ी स्थूल लेकिन मोटी एकदम नहीं, जो एम् आई एल ऍफ़ वाली कैटगरी होती है समझिये उसके पहले पायदान पे कदम रख चुकी थीं दीर्घ नितंबा, दीर्घ स्तना, .. गोरी खूब, गुड्डी उन्ही पर गयी थी। तीन लड़कियों की माँ, सबसे बड़ी, और बाकी दोनों भी दो तीन साल के अंदर,... लेकिन देख के कोई कह नहीं सकता था। और मजाक करते समय या गारी गाते समय उन्हें इस बात का कोई फरक नहीं पड़ता था की उनकी बेटियां उनके पास हैं।

भाभी कुछ दिन उनके यहाँ रह के पढ़ी भी थीं, इसलिए वो रिश्ता और तगड़ा हो गया था.

गुड्डी लेकिन मेरी भाभी को दीदी कहती थी, और उसके भी दो कारण थे एक तो भाभी को उनके मायके में सब लोग दीदी ही कहते थे, दूसरी बात जब भाभी वहां रह के पढ़ती थीं तो गुड्डी से दोस्ती भी बहुत हो गयी थी और उम्र का अंतर् भी उतना नहीं था,...
 
बनारस का रस


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कहानी में और भी लोग आयेंगे लेकिन उनकी मुलाकात हो जायेगी। तो शुरू करते हैं बात जहां छोड़ा था। यानी भाभी की चिट्ठी की बात जिसमें मुझे बनारस से गुड्डी को साथ लाना था।


तो मैंने जल्दी से जल्दी सारी तैयारी कर डाली।

पहले तो भाभी के लिए साड़ी और साथ में जैसा उन्होंने कहा था चड्ढी, बनयान, एक गुलाबी और दूसरी स्किन कलर की लेसी, और भी। फिर मैंने सोचा की कुछ चीजें बनारस से भी ले सकते हैं। बनारस के लिए कोई सीधी गाड़ी नहीं थी इसलिए अगस्त क्रान्ति से मथुरा वहां से एक दूसरी ट्रेन से आगरा वहां से बस और फिर ट्रेन से मुगलसराय और आटो से बनारस। बड़ौदा में हम लोग एक फील्ड अटैचमेंट में थे और कह सुन के एक दो दिन पहले निकलना पॉसिबल था, पर कोई सीधी गाड़ी बनारस छोड़िये मुग़लसराय की भी उस दिन की नहीं थी जिस दिन का मेरा प्रोग्राम था इसलिए इतनी उछल कूद.

वहां मैंने एक रेस्टहाउस पहले से बुक करा रखा था। सामान वहां रखकर मैं फिर से नहा धोकर फ्रेश शेव करके तैयार हुआ। क्रीम आफ्टर शेव लोशन, परफ्यूम फ्रेश प्रेस की हुई सफेद शर्ट।

आखिर मैं सिर्फ भाभी के मायके ही नहीं बल्की,...

शाम हो गई थी। मैंने सोचा की अब इस समय रात में तो हम जा नहीं सकते तो बस एक बार आज जाकर मिल लेंगे और भाभी की भाभी के घर बस बता दूंगा की मैं आ गया हूँ। गुड्डी से मिल लूंगा और कल एकदम सुबह जाकर उसके साथ घर चला जाऊँगा। बस से दो-तीन घंटे लगते थे। रास्ते, में मैंने मिठाई भी ले ली। मुझे मालूम था की गुड्डी को गुलाब जामुन बहुत पसंद हैं।

लेकिन वहां पहुँच कर तो मेरी फूँक सरक गई।

वहां सारा सामान पैक हो रहा था। भाभी की भाभी या गुड्डी की माँ (उन्हें मैं भाभी ही कहूंगा) ने बताया की रात साढ़े आठ बजे की ट्रेन से सभी लोग कानपुर जा रहे हैं। अचानक प्रोग्राम बन गया।

अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ की भाभी ने चिठ्ठी में क्या लिखा था और मैं क्या प्लान बनाकर आया था। मैंने मन ही मन अपने को गालियां दी और प्लानिंग कर बच्चू।

गुड्डी भी तभी कहीं बाहर से आई। फ्राक में वो कैसी लग रही थी क्या बताऊँ। मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया। लेकिन मेरे चेहरे पे तो बारा बजे थे। बिना मेरे पूछे वो कहने लगी की अचानक ये प्रोग्राम बन गया की सब लोग होली में कानपुर जायेंगे। इसलिए सब जल्दी-जल्दी तैयारी करनी पड़ गई लेकिन अब सब पैकिंग हो गई है। मेरा चेहरा और लटक गया था।

हम लोग बगल के कमरे में थे।

भाभी और बाकी लोग किचेन के साथ वाले कमरे में थे। गुड्डी एक बैग में अपने कपड़े पैक कर चुकी थी। वो बिना मेरी ओर देखे हल्के-हल्के बोलने लगी- जानते हो कुछ लोग बुध्धू होते हैं और हमेशा बुध्धू ही रहते हैं, है ना। वो उठकर मेरे सामने आ गई और मेरे गाल पे एक हल्की सी चिकोटी काटकर बोलने लगी-

“अरे बुध्धू। सब लोग जा रहे हैं कानपुर मैं नहीं। मैं तुम्हारे साथ ही जाऊँगी। पूरे सात दिन के लिए, होली में तुम्हारे साथ ही रहूंगी और तुम्हारी रगड़ाई करूँगी…”

मेरे चेहरे पे तो 1200 वाट की रोशनी जगमग हो गई-

“सच्ची…” मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा था।

“सच्ची…” और उस सारंग नयनी ने इधर-उधर देखा और झट से मुझे बाहों में भरकर एक किस्सी मेरे गालों पे ले लिया और हाथ पकड़कर उधर ले गई जहां बाकी लोग थे। मेरे कान में वो बोली-

“मम्मी को पटाने में जो मेहनत लगी है उसकी पूरी फीस लूंगी तुमसे…”
“एकदम…” मैंने भी हल्के से कहा।

किचेन में भाभी होली के लिए सामान बना रही थी। मैं उनसे कहने लगा की मैं अभी चला जाऊँगा रेस्टहाउस में रुका हूँ। कल सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा।

वो बोली

अरे ये कैसे हो सकता है। अभी तो आप रुको खाना वाना खाकर जाओ। लेकिन मैं तकल्लुफ करने लगा की नहीं भाभी आप लोगों से मुलाकात तो हो ही गई। आप लोग भी बीजी हैं। थोड़ी देर में ट्रेन भी है।

तब तक वहां एक महिला आई क्या चीज थी।
गुड्डी ने बताया की वो चन्दा भाभी हैं। बह भी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी। लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी 38डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एकदम कसा कड़ा। मैं तो देखता ही रह गया। मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज़ भी उन्होंने एकदम लो-कट पहन रखा था।

मेरी ओर उन्होंने सवाल भरी निगाहों से देखा।
भाभी ने हँसकर कहा अरे बिन्नो के देवर। अभी आयें हैं और अभी कह रहे हैं की जायेंगे। मजाक में भाभी की भाभी सच में उनकी भाभी थी और जब भी मैं भैया की ससुराल जाता था, जिस तरह से गालियों से मेरा स्वागत होता था और मैं थोड़ा शर्माता था इसलिए और ज्यादा।

लेकिन चन्दा भाभी ने और जोड़ा-

“अरे तब तो हम लोगों के डबल देवर हुए तो फिर होली में देवर ऐसे सूखे सूखे चले जाएं ससुराल से ये तो सख्त नाइंसाफी है। लेकिन देवर ही हैं बिन्नो के या कुछ और तो नहीं हैं…”

“अब ये आप इन्हीं से पूछ लो ना। वैसे तो बिन्नो कहती है की ये तो उसके देवर तो हैं हीं। उसके ननद के यार भी हैं इसलिए नन्दोई का भी तो…”

भाभी को एक साथी मिल गया था।

“तो क्या बुरा है घर का माल घर में। वैसे कित्ती बड़ी है तेरी वो बहना। बिन्नो की शादी में भी तो आई थी। सारे गावं के लड़के…” चंदा भाभी ने छेड़ा।

गुड्डी ने भी मौका देखकर पाला बदल लिया और उन लोगों के साथ हो गई। “मेरे साथ की ही है, पिछले साल दसवां पास किया है

“अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गई होगी। भैया। जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा दबवाने वबवाने तो लगी होगी। है न। हम लोगों से क्या शर्माना…”

लेकिन मैं शर्मा गया। मेरा चेहरा जैसे किसी ने इंगुर पोत दिया हो। और चंदा भाभी और चढ़ गईं। “अरे तुम तो लौंडियो की तरह शर्मा रहे हो। इसका तो पैंट खोलकर देखना पड़ेगा की ये बिन्नो की ननद है या देवर…” भाभी हँसने लगी और गुड्डी भी मुश्कुरा रही थी।

मैंने फिर वही रट लगाई- “मैं जा रहा हूँ। सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा…”

“अरे कहाँ जा रहे हो, रुको ना और हम लोगों की पैकिंग वेकिंग हो गई है ट्रेन में अभी 3 घंटे का टाइम है और वहां रेस्टहाउस में जाकर करोगे क्या अकेले या कोई है वहां…” भाभी बोली।

“अरे कोई बहन वहन होंगी इनकी यहाँ भी। क्यों? साफ-साफ बताओ ना। अच्छा मैं समझी। दालमंडी (बनारस का उस समय का रेड लाईट एरिया जो उन लोगों के मोहल्ले के पास ही था) जा रहे हो अपनी उस बहन कम माल के लिए इंतजाम करने। इम्तहान तो हो ही गया है उसका। लाकर बैठा देना। मजा भी मिलेगा और पैसा भी। लेकिन तुम खुद इत्ते चिकने हो होली का मौसम, ये बनारस है। किसी लौंडेबाज ने पकड़ लिया ना तो निहुरा के ठोंक देगा और फिर एक जाएगा दूसरा आएगा रात भर लाइन लगी रहेगी। सुबह आओगे तो गौने की दुल्हन की तरह टांगें फैली रहेंगी…”



चंदा भाभी अब खुलकर चालू हो गई थी।
 
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