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- Dec 5, 2013
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आने वाला कल
दवा -आई पिल -माला डी
पर गुड्डी अचानक सीरयस हो गयी और उसने काम की बात बोली,... स्ट्रेटेजिक थिंकिंग में गुड्डी का जवाब नहीं था,
" देख यार , मैं इसलिए तुमसे मंम्मी के बारे में कह रही थीं,... मान लो तुम्हे कोई चीज चाहिए ( मैं समझ गया था अब बात बहुत सीरियस ट्रैक पर पहुँच गयी है )मतलब हरदम के लिए चाहिए ( और उसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था, बस ये लड़की मिल जाए ) तो बिना मम्मी को पटाये,... उनकी हाँ तो,... इसलिए मैं कह रही थी की मम्मी को,...
पर गुड्डी के लिए देर तक सीरियस रहना बिना मुझे रगड़े रहना मुश्किल था, वो बोली
" मान लो मम्मी नाक रगड़वाएं, तलवे चटवायें तुझसे तो,... "
" एकदम दस बार सौ बार अगर,... कुछ भी "
मैं तुरंत मान गया, अपने उस सपने को पूरा करने के लिए तो मैं कुछ भी करने को तैयार था, मिल जाए ये लड़की हरदम के लिए कैसे भी,
लेकिन गुड्डी का असर कुछ कुछ मेरे ऊपर भी हो रहा था, मैं बोला ,
" मम्मी सिर्फ तलवे ही चटवाएंगी या कुछ और,... "
अब गुड्डी चिल्लाई, पिटोगे तुम बड़ी जोर से। लेकिन मेरा पिटने का प्रोग्राम पोस्टपोन हो गया क्योंकि तब तक हमारा रिक्शा एक मेडिकल स्टोर के सामने से गुजरा ओर वो चीखी- “रोको रोको…”
“क्यों कया हुआ, कुछ दवा लेनी है क्या?” मैंने सोच में पड़ के पूछा।
“हर चीज आपको बतानी जरूरी है क्या?”
वो आगे आगे मैं पीछे-पीछे।
“एक पैकेट माला-डी और एक पैकेट आई-पिल…”
दूकान पर लड़कों की भीड़ थी, दवा देने वाले भी लड़के लेकिन गुड्डी को फर्क नहीं पड़ रहा था,...
मैं पीछे खड़ा उसे निहार रहा था, ... सोच रहा था उसकी जगह मैं होता तो, कंडोम लेने के लिए उसके जितने पर्यायवाची हो सकते है कंट्रासेप्टिव से लेकर फ्रेंच लेदर तक बोल डालता, ...कंडोम बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती और, बिना लिए वापस आ जाता, और ये लड़की,...
गुड्डी की एक लट मौका पाके उसके गालों को सहला रही थी, मुझे ललचा रही थी।
और मैं ललचाता देख रहा था उस तन्वंगी, सुनयना को,... बिना पलक झपकाए,... जब वो देखती थी मुझे तो मेरी हिम्मत नहीं पड़ती थी इस तरह नदीदों की तरह उसे देखने को,... मेरी भाभी ठीक ही कहती थी, गुड्डी एकदम अपनी मम्मी पर,... मेरा मतलब मम्मी पर गयी है. उसी तरह खूब लम्बी, उसी तरह गोरा चम्पई रंग, ऊँगली लगाओ तो मैली हो जाए, बड़ी बड़ी आँखे, पास बुलाती बतियाती, और ठीक उसी जगह ठुड्डी पर तिल, और,...
एकदम मम्मी की तरह जोबन जबरदंग, अपनी क्लास की , अपनी समौरियों से कम से कम कम दो नंबर ज्यादा, और मैंने पहले ही कहा था मुझे मैनचेस्टर नहीं पसंद हैं, लड़की को लड़की लगना तो चाहिए,...
और गुड्डी को भी मालूम था मैं उन्हें देख के कितना लिबराता हूँ,.... और वो मेरी नंजरों की चोरी पकड़ती है तो बस मेरी नजरें नीचे, ...
लेकिन गुड्डी की जिस बात ने मुझे मुझसे ही चुरा लिया था,... वो थी, कैसे कहूं,... उसकी पहल,... जो में चाहता था पर बोल भी नहीं पाता था, वो समझकर कर देती थी। पहली मुलाक़ात से ही, ... कौन इंटर में पढ़ने वाला लड़का होगा जो किसी लड़की को देख के आंख भर देखना नहीं चाहेगा, मुंह भर बतियाना नहीं चाहेगा,... लेकिन मैंने मारे झिझक के किताब की दीवाल खड़ी कर दी, पर वो जानती थी मैं क्या चाहता हूँ और दांत देखने के बहाने मुंह खुलवा के,... रसगुल्ले के साथ उसकी मीठी ऊँगली का स्वाद कभी नहीं भूलने वाला,...
बस वो स्वाद एक सपना जगाता है ,... उसी घर में ये लड़की दुल्हन बनी, कोहबर में दही गुड़ खिला रही है और उसकी बहने छेड़ रही हैं,... लेकिन मैं सपने देखने वाला और वो सपनों को जमीन पर लाने वाली,...
उसी दिन, लग उसे भी गया था, उसी दिन डांस करते हुए, जिस तरह से वो मुझे देख दिखा के लाइनों पर थिरक रही थी,
मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा
जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा
और फिर रही सही कसर बीड़ा मारते समय, एकदम मुझे ढूंढ के बीड़ा मारा था, सीधे दिल पर लगा,... और जब सब लड़कियां मुंडेर से हट भी गयीं,... वो वहीँ खड़ी रही मुझे देखते चित्रवत,... और मैं भी मंत्रबद्ध, जैसे किसी लड़की ने बीड़ा नहीं जादू की मूठ मार दी हो, हिलना डुलना बंद हो गया हो,...
फिर गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी ने गुड्डी को दिखा के , चिढ़ा के पूछा था, शादी करोगे इससे,... अचानक कोई मन की बात बोल दे, ... लाज के मारे मैं जैसे बिदाई के समय दुल्हन गठरी बनी, बस एकदम उसी तरह, ...
पर गुड्डी बिना लजाये मुझे देखती रही, नेलपॉलिश लगाती रही और अपना जवाब उसने हलके से मेरा हाथ दबा के दे दिया।
और, मुझसे ज्यादा वो जानती थी उसके उभरते हुए चूजे कितने अच्छे लगते हैं
लेकिन वो ये भी जानती थी की ठीक से देखने की हिम्मत तो मैं कर नहीं पाता, तो छूने का सवाल ही नहीं, बस ललचा सकता हूँ। और भरे पिक्चर हाल में घर के सब लोग, उसने मेरा हाथ अपने सीने पर रख के,... अपना दिल उसने मेरे हाथ में रख दिया,... मेरा दिल तो वो रसगुल्ला खिला के ही ले गयी थी।
और आज,.... मन मेरा कितना करता है लेकिन मैं उसके आगे बढ़ नहीं पाता था लेकिन इस लड़की को न सिर्फ पता था की मेरा मन क्या करता था बल्कि उसे पूरा करने की जिम्मेदारी भी उसने अपने ऊपर ले ली थी।
मैं बस चाह सकता था, और चाह रहा था, सारे देवता पित्तर मना रहा था बनारस के अपने शहर के,... यह लड़की मिल जाये,... एक बार दो बार के लिए नहीं , हरदम के लिए, जिंदगी कितनी आसान हो जाए, गुड्डी है न, सोचेगी वो देखेगी।
और तबतक दवा की दूकान वाला लड़का सब चीजें लाके देगया, ... गुड्डी ने मुड़ के भीड़ में मुझे देखा और जैसे कुछ याद आया, उस दवा वाले से बोली,
" और वैसलीन,. की बॉटल "
" बड़ी वाली है " वो बोला, ...और गुड्डी बोली, " बड़ी वाली ही चाहिए " .
मेरे पर्स में से सौ सौ के नोट निकाल के उसने दिए और सारा सामान झोले ऐसे उसके पर्स में।
रिक्शे पे बैठकर हिम्मत करके मैंने पूछा- “ये…”
“तुम्हारी बहन के लिए है जिसका आज गुणगान हो रहा था। क्या पता होली में तुम्हारा मन उसपे मचल उठे। तुम ना बुद्धू ही हो, बुद्धू ही रहोगे…” फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर वो बोली-
“तुमसे बताया तो था ना की आज मेरा लास्ट डे है। तो क्या पता। कल किसी की लाटरी निकल जाए…”
मेरे ऊपर तो जैसे किसी ने एक बाल्टी गुलाबी रंग डाल दिया हो, हजारों पिचारियां चल पड़ी हों साथ-साथ।
मैं कुछ बोलता उसके पहले वो रिक्शे वाले से बोल रही थी- “अरे भैया बाएं बाएं। हाँ वहीं गली के सामने बस यहीं रोक दो। चलो उतरो…”
दवा -आई पिल -माला डी

पर गुड्डी अचानक सीरयस हो गयी और उसने काम की बात बोली,... स्ट्रेटेजिक थिंकिंग में गुड्डी का जवाब नहीं था,
" देख यार , मैं इसलिए तुमसे मंम्मी के बारे में कह रही थीं,... मान लो तुम्हे कोई चीज चाहिए ( मैं समझ गया था अब बात बहुत सीरियस ट्रैक पर पहुँच गयी है )मतलब हरदम के लिए चाहिए ( और उसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था, बस ये लड़की मिल जाए ) तो बिना मम्मी को पटाये,... उनकी हाँ तो,... इसलिए मैं कह रही थी की मम्मी को,...
पर गुड्डी के लिए देर तक सीरियस रहना बिना मुझे रगड़े रहना मुश्किल था, वो बोली
" मान लो मम्मी नाक रगड़वाएं, तलवे चटवायें तुझसे तो,... "

" एकदम दस बार सौ बार अगर,... कुछ भी "
मैं तुरंत मान गया, अपने उस सपने को पूरा करने के लिए तो मैं कुछ भी करने को तैयार था, मिल जाए ये लड़की हरदम के लिए कैसे भी,
लेकिन गुड्डी का असर कुछ कुछ मेरे ऊपर भी हो रहा था, मैं बोला ,
" मम्मी सिर्फ तलवे ही चटवाएंगी या कुछ और,... "
अब गुड्डी चिल्लाई, पिटोगे तुम बड़ी जोर से। लेकिन मेरा पिटने का प्रोग्राम पोस्टपोन हो गया क्योंकि तब तक हमारा रिक्शा एक मेडिकल स्टोर के सामने से गुजरा ओर वो चीखी- “रोको रोको…”
“क्यों कया हुआ, कुछ दवा लेनी है क्या?” मैंने सोच में पड़ के पूछा।
“हर चीज आपको बतानी जरूरी है क्या?”

वो आगे आगे मैं पीछे-पीछे।
“एक पैकेट माला-डी और एक पैकेट आई-पिल…”


दूकान पर लड़कों की भीड़ थी, दवा देने वाले भी लड़के लेकिन गुड्डी को फर्क नहीं पड़ रहा था,...
मैं पीछे खड़ा उसे निहार रहा था, ... सोच रहा था उसकी जगह मैं होता तो, कंडोम लेने के लिए उसके जितने पर्यायवाची हो सकते है कंट्रासेप्टिव से लेकर फ्रेंच लेदर तक बोल डालता, ...कंडोम बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती और, बिना लिए वापस आ जाता, और ये लड़की,...
गुड्डी की एक लट मौका पाके उसके गालों को सहला रही थी, मुझे ललचा रही थी।
और मैं ललचाता देख रहा था उस तन्वंगी, सुनयना को,... बिना पलक झपकाए,... जब वो देखती थी मुझे तो मेरी हिम्मत नहीं पड़ती थी इस तरह नदीदों की तरह उसे देखने को,... मेरी भाभी ठीक ही कहती थी, गुड्डी एकदम अपनी मम्मी पर,... मेरा मतलब मम्मी पर गयी है. उसी तरह खूब लम्बी, उसी तरह गोरा चम्पई रंग, ऊँगली लगाओ तो मैली हो जाए, बड़ी बड़ी आँखे, पास बुलाती बतियाती, और ठीक उसी जगह ठुड्डी पर तिल, और,...
एकदम मम्मी की तरह जोबन जबरदंग, अपनी क्लास की , अपनी समौरियों से कम से कम कम दो नंबर ज्यादा, और मैंने पहले ही कहा था मुझे मैनचेस्टर नहीं पसंद हैं, लड़की को लड़की लगना तो चाहिए,...

और गुड्डी को भी मालूम था मैं उन्हें देख के कितना लिबराता हूँ,.... और वो मेरी नंजरों की चोरी पकड़ती है तो बस मेरी नजरें नीचे, ...
लेकिन गुड्डी की जिस बात ने मुझे मुझसे ही चुरा लिया था,... वो थी, कैसे कहूं,... उसकी पहल,... जो में चाहता था पर बोल भी नहीं पाता था, वो समझकर कर देती थी। पहली मुलाक़ात से ही, ... कौन इंटर में पढ़ने वाला लड़का होगा जो किसी लड़की को देख के आंख भर देखना नहीं चाहेगा, मुंह भर बतियाना नहीं चाहेगा,... लेकिन मैंने मारे झिझक के किताब की दीवाल खड़ी कर दी, पर वो जानती थी मैं क्या चाहता हूँ और दांत देखने के बहाने मुंह खुलवा के,... रसगुल्ले के साथ उसकी मीठी ऊँगली का स्वाद कभी नहीं भूलने वाला,...
बस वो स्वाद एक सपना जगाता है ,... उसी घर में ये लड़की दुल्हन बनी, कोहबर में दही गुड़ खिला रही है और उसकी बहने छेड़ रही हैं,... लेकिन मैं सपने देखने वाला और वो सपनों को जमीन पर लाने वाली,...
उसी दिन, लग उसे भी गया था, उसी दिन डांस करते हुए, जिस तरह से वो मुझे देख दिखा के लाइनों पर थिरक रही थी,
मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा
जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा
और फिर रही सही कसर बीड़ा मारते समय, एकदम मुझे ढूंढ के बीड़ा मारा था, सीधे दिल पर लगा,... और जब सब लड़कियां मुंडेर से हट भी गयीं,... वो वहीँ खड़ी रही मुझे देखते चित्रवत,... और मैं भी मंत्रबद्ध, जैसे किसी लड़की ने बीड़ा नहीं जादू की मूठ मार दी हो, हिलना डुलना बंद हो गया हो,...
फिर गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी ने गुड्डी को दिखा के , चिढ़ा के पूछा था, शादी करोगे इससे,... अचानक कोई मन की बात बोल दे, ... लाज के मारे मैं जैसे बिदाई के समय दुल्हन गठरी बनी, बस एकदम उसी तरह, ...
पर गुड्डी बिना लजाये मुझे देखती रही, नेलपॉलिश लगाती रही और अपना जवाब उसने हलके से मेरा हाथ दबा के दे दिया।
और, मुझसे ज्यादा वो जानती थी उसके उभरते हुए चूजे कितने अच्छे लगते हैं

लेकिन वो ये भी जानती थी की ठीक से देखने की हिम्मत तो मैं कर नहीं पाता, तो छूने का सवाल ही नहीं, बस ललचा सकता हूँ। और भरे पिक्चर हाल में घर के सब लोग, उसने मेरा हाथ अपने सीने पर रख के,... अपना दिल उसने मेरे हाथ में रख दिया,... मेरा दिल तो वो रसगुल्ला खिला के ही ले गयी थी।
और आज,.... मन मेरा कितना करता है लेकिन मैं उसके आगे बढ़ नहीं पाता था लेकिन इस लड़की को न सिर्फ पता था की मेरा मन क्या करता था बल्कि उसे पूरा करने की जिम्मेदारी भी उसने अपने ऊपर ले ली थी।
मैं बस चाह सकता था, और चाह रहा था, सारे देवता पित्तर मना रहा था बनारस के अपने शहर के,... यह लड़की मिल जाये,... एक बार दो बार के लिए नहीं , हरदम के लिए, जिंदगी कितनी आसान हो जाए, गुड्डी है न, सोचेगी वो देखेगी।
और तबतक दवा की दूकान वाला लड़का सब चीजें लाके देगया, ... गुड्डी ने मुड़ के भीड़ में मुझे देखा और जैसे कुछ याद आया, उस दवा वाले से बोली,
" और वैसलीन,. की बॉटल "
" बड़ी वाली है " वो बोला, ...और गुड्डी बोली, " बड़ी वाली ही चाहिए " .
मेरे पर्स में से सौ सौ के नोट निकाल के उसने दिए और सारा सामान झोले ऐसे उसके पर्स में।
रिक्शे पे बैठकर हिम्मत करके मैंने पूछा- “ये…”
“तुम्हारी बहन के लिए है जिसका आज गुणगान हो रहा था। क्या पता होली में तुम्हारा मन उसपे मचल उठे। तुम ना बुद्धू ही हो, बुद्धू ही रहोगे…” फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर वो बोली-
“तुमसे बताया तो था ना की आज मेरा लास्ट डे है। तो क्या पता। कल किसी की लाटरी निकल जाए…”

मेरे ऊपर तो जैसे किसी ने एक बाल्टी गुलाबी रंग डाल दिया हो, हजारों पिचारियां चल पड़ी हों साथ-साथ।
मैं कुछ बोलता उसके पहले वो रिक्शे वाले से बोल रही थी- “अरे भैया बाएं बाएं। हाँ वहीं गली के सामने बस यहीं रोक दो। चलो उतरो…”