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[color=rgb(235,]दूध -मलाई
[/color]
दूध का ग्लास ऊपर तक भरा था और कम से कम तीन अंगुल गाढ़ी मोटी मलाई।
“बच्चों की तरह दूध पियोगे या बड़ों की तरह?” भाभी ने जिस अंदाज से पूछा, मैं समझ गया कि इसमें कुछ पेंच है।
मैं कुछ बोलता उसके पहले ही वो बोल उठी- “अरे मेरे लिए तो तुम बच्चे ही हो…” उन्होंने एक उंगली से मोटी सी मलाई निकाली और मुझे ललचा के अपने निपल पर लपेट दी- ‘चाहिए’ वो अपने जोबन को और उभार के अदा से बोली।
“हाँ…”
“क्या?” आँख नचाकर शरारत से भाभी ने पूछा।
“वही…” मैं रुकते-रुकते बोला।
“वही क्या?” कहकर भाभी की एक उंगली कड़े निपल को सहला रही थी- “नाम बताओ। ऐसे ही थोड़े मिलेगा…”
“मलाई…” मैं भी शरारत के मूड में था।
“सिर्फ मलाई या?” उनकी अंगुली जो निपल पर थी वो अब वहां लगी मलाई को मेरे होंठों पे उसे लिथेड़ रही थी।
“नहीं वो भी। आपका सीना। जोबन…”
“अरे साफ-साफ बोलो लाला। ऐसे लौंडियों की तरह शर्माओगे तो तुम माल पटाओगे, और भरतपुर कोई और लूटकर चला जाएगा। बोलो ना जैसे मैं बोलती हूँ…” भाभी बोली।
“चूची। आपकी चूची…” मैं हकलाते हुए बोला।
“हाँ ये हुई ना मेरे देवर वाली बात लेकिन ऐसे थोड़े ही मिलेगा। कुछ इसकी तारीफ करो। वो भी खुलकर…” उन्होंने उकसाया।
“भाभी आपकी ये रसीली मस्त गदराई चूची। जिसको देखकर ही मेरा खड़ा हो जाता है…”
“क्या खड़ा हो जाता है? तुम ना साफ-साफ बोलो वरना तड़पते रह जाओगे…” हँसकर वो बोली।
“मेरा वो,.. मेरा,... मेरा लिंग,... लण्ड…”
“देखूं तो खड़ा हुआ है या वैसे ही बोल रहे हो…” झुक के देखते हुए वो बोली।
मुझे भी यकीन नहीं हुआ- ‘वो’ टनाटन था।
“चलो मान गई, अब मुँह खोलो। तो खिलाती हूँ…”
मैंने खूब बड़ा सा खोल दिया।
“खोलने के मामले में तुम अपने मायके वालियों की तरह हो। लो घोंटो…
” मलाई से लिपटी चूची उन्होंने मेरे मुँह में डाल दी- “लो घोंटो…”
मलाई से लिपटी चूची उन्होंने मेरे मुँह में डाल दी।
और मैं भी क्यों छोड़ता। मैंने कस-कसकर चूसना शुरू कर दिया।
चंदा भाभी ने मेरा दूसरा हाथ भी पकड़कर अपनी दूसरी चूची पे रख दिया। मैं मस्त होकर उसे कस-कसकर दबाने रगड़ने लगा। थोड़ी ही देर में भाभी सिसकियां भरने लगी। मेरी जुबान निपल को सहला रही थी, छेड़ रही थी। मेरे होंठ कस-कसकर चूस रहे थे। अचानक मैंने हल्के से दांत गड़ा दिए।
“शैतान। दूध पीते बच्चे हो क्या? छोड़ो…” उनकी आवाज में गुस्सा कम था मस्ती ज्यादा थी। छोड़ो बहुत पी लिया। अब मायके जाकर अपने माल का पीना। वैसे कित्ती बड़ी हैं उसकी।"
मैंने छोड़ दिया और हँसकर बोला- “मैंने देखी थोड़ी ही है उसकी…”
“अरे कपड़े के ऊपर से तो देखी होंगी। यहाँ वाली से…” उनका इशारा गुड्डी की तरफ था।
“वैसी ही हैं शायद थोड़ी सी उन्नीस बीस होंगी…” मैंने झिझकते हुए बोला।
उन्नीस कि बीस, भौजी इतनी आसानी से थोड़ी ही छोड़ने वाली थीं
"उन्नीस ही होंगी, ... यहां वाली की तो बाइस होंगीं मैंने ध्यान से सोच के बताया
“अरे तब तो मस्त हैं। दबवाती है क्या? तुम जरूर दबाना उस छिनार की। दबा-दबाकर बड़ी कर देना…” भाभी भी ना। वो चिढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ती।
दूध का ग्लास उन्होंने मेरे मुँह पे लगा दिया और मेरे मना करने के बाद भी। ढेर साड़ी मलाई मेरे होंठों से लिपट गई। मैंने इसरार किया- “भाभी आप भी तो पीजिये…”
“लो पहले मलाई खा लेती हूँ…”
और उनके होंठ सीधे मेरे होंठों पे। पहले जुबान से उन्होंने मेरे होंठों पे लगी मलाई चाटी और फिर उनकी जुबान मेरे मुँह में। कुछ देर तक डीप किसिंग के बाद मैंने अपने हाथ से ग्लास से दूध उन्हें पिलाया। पर दो-चार घूँट के बाद फिर उन्होंने उसे मेरे मुँह पे। स्वाद अच्छा था लेकिन साथ में कुछ ऐसा था की मेरी पूरी देह में एक मस्ती की तरंग दौड़ने लगी।
“भाभी कुछ पड़ा है क्या इसमें?” मैंने पूछा।
भाभी हँसकर वो बोली- “क्या पता?”
ग्लास में थोड़ी सी मलाई अभी भी बची थी। वो उन्होंने अंगुली डालकर निकाल ली और पूछा-
“बोलो ये कहाँ लगा दूं। गाल पे। लेकिन तुम वैसे ही इत्ते चिकने हो। काटने लायक गाल हैं तेरे…”
फिर उन्होंने नीचे की ओर रुख किया और सारी मलाई ‘उसके’ ऊपर मल दी।
“असली मेहनत तो इसी बिचारे को करनी है कुछ यहाँ, कुछ तुम्हारे मायके में,... तुम्हारी मायके वालियों के साथ…”
कुछ उनके हाथ का असर कुछ मलाई का वो फिर रौद्र रूप में आ गया।
“बहुत जबर्दस्त जंगबहादुर है तुम्हारा मान गए…” आगे-पीछे करते भाभी मुश्कुराकर बोली।
“अरे भाभी ये सब आपकी करामात है। लेकिन इस बिचारे का मन तो रख दीजिये…”
“चलो अब तुम इत्ता कह रहे हो तो। लेकिन तुम्हें कुछ आता वाता तो है नहीं…” हँसकर वो बोली।

दूध का ग्लास ऊपर तक भरा था और कम से कम तीन अंगुल गाढ़ी मोटी मलाई।
“बच्चों की तरह दूध पियोगे या बड़ों की तरह?” भाभी ने जिस अंदाज से पूछा, मैं समझ गया कि इसमें कुछ पेंच है।
मैं कुछ बोलता उसके पहले ही वो बोल उठी- “अरे मेरे लिए तो तुम बच्चे ही हो…” उन्होंने एक उंगली से मोटी सी मलाई निकाली और मुझे ललचा के अपने निपल पर लपेट दी- ‘चाहिए’ वो अपने जोबन को और उभार के अदा से बोली।

“हाँ…”
“क्या?” आँख नचाकर शरारत से भाभी ने पूछा।
“वही…” मैं रुकते-रुकते बोला।
“वही क्या?” कहकर भाभी की एक उंगली कड़े निपल को सहला रही थी- “नाम बताओ। ऐसे ही थोड़े मिलेगा…”
“मलाई…” मैं भी शरारत के मूड में था।
“सिर्फ मलाई या?” उनकी अंगुली जो निपल पर थी वो अब वहां लगी मलाई को मेरे होंठों पे उसे लिथेड़ रही थी।
“नहीं वो भी। आपका सीना। जोबन…”
“अरे साफ-साफ बोलो लाला। ऐसे लौंडियों की तरह शर्माओगे तो तुम माल पटाओगे, और भरतपुर कोई और लूटकर चला जाएगा। बोलो ना जैसे मैं बोलती हूँ…” भाभी बोली।

“चूची। आपकी चूची…” मैं हकलाते हुए बोला।
“हाँ ये हुई ना मेरे देवर वाली बात लेकिन ऐसे थोड़े ही मिलेगा। कुछ इसकी तारीफ करो। वो भी खुलकर…” उन्होंने उकसाया।
“भाभी आपकी ये रसीली मस्त गदराई चूची। जिसको देखकर ही मेरा खड़ा हो जाता है…”
“क्या खड़ा हो जाता है? तुम ना साफ-साफ बोलो वरना तड़पते रह जाओगे…” हँसकर वो बोली।
“मेरा वो,.. मेरा,... मेरा लिंग,... लण्ड…”
“देखूं तो खड़ा हुआ है या वैसे ही बोल रहे हो…” झुक के देखते हुए वो बोली।
मुझे भी यकीन नहीं हुआ- ‘वो’ टनाटन था।

“चलो मान गई, अब मुँह खोलो। तो खिलाती हूँ…”
मैंने खूब बड़ा सा खोल दिया।
“खोलने के मामले में तुम अपने मायके वालियों की तरह हो। लो घोंटो…
” मलाई से लिपटी चूची उन्होंने मेरे मुँह में डाल दी- “लो घोंटो…”
मलाई से लिपटी चूची उन्होंने मेरे मुँह में डाल दी।
और मैं भी क्यों छोड़ता। मैंने कस-कसकर चूसना शुरू कर दिया।

चंदा भाभी ने मेरा दूसरा हाथ भी पकड़कर अपनी दूसरी चूची पे रख दिया। मैं मस्त होकर उसे कस-कसकर दबाने रगड़ने लगा। थोड़ी ही देर में भाभी सिसकियां भरने लगी। मेरी जुबान निपल को सहला रही थी, छेड़ रही थी। मेरे होंठ कस-कसकर चूस रहे थे। अचानक मैंने हल्के से दांत गड़ा दिए।
“शैतान। दूध पीते बच्चे हो क्या? छोड़ो…” उनकी आवाज में गुस्सा कम था मस्ती ज्यादा थी। छोड़ो बहुत पी लिया। अब मायके जाकर अपने माल का पीना। वैसे कित्ती बड़ी हैं उसकी।"
मैंने छोड़ दिया और हँसकर बोला- “मैंने देखी थोड़ी ही है उसकी…”
“अरे कपड़े के ऊपर से तो देखी होंगी। यहाँ वाली से…” उनका इशारा गुड्डी की तरफ था।
“वैसी ही हैं शायद थोड़ी सी उन्नीस बीस होंगी…” मैंने झिझकते हुए बोला।
उन्नीस कि बीस, भौजी इतनी आसानी से थोड़ी ही छोड़ने वाली थीं
"उन्नीस ही होंगी, ... यहां वाली की तो बाइस होंगीं मैंने ध्यान से सोच के बताया
“अरे तब तो मस्त हैं। दबवाती है क्या? तुम जरूर दबाना उस छिनार की। दबा-दबाकर बड़ी कर देना…” भाभी भी ना। वो चिढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ती।

दूध का ग्लास उन्होंने मेरे मुँह पे लगा दिया और मेरे मना करने के बाद भी। ढेर साड़ी मलाई मेरे होंठों से लिपट गई। मैंने इसरार किया- “भाभी आप भी तो पीजिये…”
“लो पहले मलाई खा लेती हूँ…”
और उनके होंठ सीधे मेरे होंठों पे। पहले जुबान से उन्होंने मेरे होंठों पे लगी मलाई चाटी और फिर उनकी जुबान मेरे मुँह में। कुछ देर तक डीप किसिंग के बाद मैंने अपने हाथ से ग्लास से दूध उन्हें पिलाया। पर दो-चार घूँट के बाद फिर उन्होंने उसे मेरे मुँह पे। स्वाद अच्छा था लेकिन साथ में कुछ ऐसा था की मेरी पूरी देह में एक मस्ती की तरंग दौड़ने लगी।
“भाभी कुछ पड़ा है क्या इसमें?” मैंने पूछा।
भाभी हँसकर वो बोली- “क्या पता?”
ग्लास में थोड़ी सी मलाई अभी भी बची थी। वो उन्होंने अंगुली डालकर निकाल ली और पूछा-
“बोलो ये कहाँ लगा दूं। गाल पे। लेकिन तुम वैसे ही इत्ते चिकने हो। काटने लायक गाल हैं तेरे…”
फिर उन्होंने नीचे की ओर रुख किया और सारी मलाई ‘उसके’ ऊपर मल दी।

“असली मेहनत तो इसी बिचारे को करनी है कुछ यहाँ, कुछ तुम्हारे मायके में,... तुम्हारी मायके वालियों के साथ…”
कुछ उनके हाथ का असर कुछ मलाई का वो फिर रौद्र रूप में आ गया।
“बहुत जबर्दस्त जंगबहादुर है तुम्हारा मान गए…” आगे-पीछे करते भाभी मुश्कुराकर बोली।
“अरे भाभी ये सब आपकी करामात है। लेकिन इस बिचारे का मन तो रख दीजिये…”
“चलो अब तुम इत्ता कह रहे हो तो। लेकिन तुम्हें कुछ आता वाता तो है नहीं…” हँसकर वो बोली।
