FreeSexKahani - फागुन के दिन चार - Page 6 - SexBaba
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FreeSexKahani - फागुन के दिन चार

[color=rgb(235,]दूध -मलाई

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दूध का ग्लास ऊपर तक भरा था और कम से कम तीन अंगुल गाढ़ी मोटी मलाई।

“बच्चों की तरह दूध पियोगे या बड़ों की तरह?” भाभी ने जिस अंदाज से पूछा, मैं समझ गया कि इसमें कुछ पेंच है।

मैं कुछ बोलता उसके पहले ही वो बोल उठी- “अरे मेरे लिए तो तुम बच्चे ही हो…” उन्होंने एक उंगली से मोटी सी मलाई निकाली और मुझे ललचा के अपने निपल पर लपेट दी- ‘चाहिए’ वो अपने जोबन को और उभार के अदा से बोली।
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“हाँ…”

“क्या?” आँख नचाकर शरारत से भाभी ने पूछा।

“वही…” मैं रुकते-रुकते बोला।

“वही क्या?” कहकर भाभी की एक उंगली कड़े निपल को सहला रही थी- “नाम बताओ। ऐसे ही थोड़े मिलेगा…”

“मलाई…” मैं भी शरारत के मूड में था।

“सिर्फ मलाई या?” उनकी अंगुली जो निपल पर थी वो अब वहां लगी मलाई को मेरे होंठों पे उसे लिथेड़ रही थी।

“नहीं वो भी। आपका सीना। जोबन…”

“अरे साफ-साफ बोलो लाला। ऐसे लौंडियों की तरह शर्माओगे तो तुम माल पटाओगे, और भरतपुर कोई और लूटकर चला जाएगा। बोलो ना जैसे मैं बोलती हूँ…” भाभी बोली।
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“चूची। आपकी चूची…” मैं हकलाते हुए बोला।

“हाँ ये हुई ना मेरे देवर वाली बात लेकिन ऐसे थोड़े ही मिलेगा। कुछ इसकी तारीफ करो। वो भी खुलकर…” उन्होंने उकसाया।

“भाभी आपकी ये रसीली मस्त गदराई चूची। जिसको देखकर ही मेरा खड़ा हो जाता है…”

“क्या खड़ा हो जाता है? तुम ना साफ-साफ बोलो वरना तड़पते रह जाओगे…” हँसकर वो बोली।

“मेरा वो,.. मेरा,... मेरा लिंग,... लण्ड…”

“देखूं तो खड़ा हुआ है या वैसे ही बोल रहे हो…” झुक के देखते हुए वो बोली।

मुझे भी यकीन नहीं हुआ- ‘वो’ टनाटन था।
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“चलो मान गई, अब मुँह खोलो। तो खिलाती हूँ…”

मैंने खूब बड़ा सा खोल दिया।

“खोलने के मामले में तुम अपने मायके वालियों की तरह हो। लो घोंटो…

” मलाई से लिपटी चूची उन्होंने मेरे मुँह में डाल दी- “लो घोंटो…”

मलाई से लिपटी चूची उन्होंने मेरे मुँह में डाल दी।

और मैं भी क्यों छोड़ता। मैंने कस-कसकर चूसना शुरू कर दिया।

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चंदा भाभी ने मेरा दूसरा हाथ भी पकड़कर अपनी दूसरी चूची पे रख दिया। मैं मस्त होकर उसे कस-कसकर दबाने रगड़ने लगा। थोड़ी ही देर में भाभी सिसकियां भरने लगी। मेरी जुबान निपल को सहला रही थी, छेड़ रही थी। मेरे होंठ कस-कसकर चूस रहे थे। अचानक मैंने हल्के से दांत गड़ा दिए।

“शैतान। दूध पीते बच्चे हो क्या? छोड़ो…” उनकी आवाज में गुस्सा कम था मस्ती ज्यादा थी। छोड़ो बहुत पी लिया। अब मायके जाकर अपने माल का पीना। वैसे कित्ती बड़ी हैं उसकी।"

मैंने छोड़ दिया और हँसकर बोला- “मैंने देखी थोड़ी ही है उसकी…”

“अरे कपड़े के ऊपर से तो देखी होंगी। यहाँ वाली से…” उनका इशारा गुड्डी की तरफ था।

“वैसी ही हैं शायद थोड़ी सी उन्नीस बीस होंगी…” मैंने झिझकते हुए बोला।

उन्नीस कि बीस, भौजी इतनी आसानी से थोड़ी ही छोड़ने वाली थीं

"उन्नीस ही होंगी, ... यहां वाली की तो बाइस होंगीं मैंने ध्यान से सोच के बताया

“अरे तब तो मस्त हैं। दबवाती है क्या? तुम जरूर दबाना उस छिनार की। दबा-दबाकर बड़ी कर देना…” भाभी भी ना। वो चिढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ती।
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दूध का ग्लास उन्होंने मेरे मुँह पे लगा दिया और मेरे मना करने के बाद भी। ढेर साड़ी मलाई मेरे होंठों से लिपट गई। मैंने इसरार किया- “भाभी आप भी तो पीजिये…”

“लो पहले मलाई खा लेती हूँ…”

और उनके होंठ सीधे मेरे होंठों पे। पहले जुबान से उन्होंने मेरे होंठों पे लगी मलाई चाटी और फिर उनकी जुबान मेरे मुँह में। कुछ देर तक डीप किसिंग के बाद मैंने अपने हाथ से ग्लास से दूध उन्हें पिलाया। पर दो-चार घूँट के बाद फिर उन्होंने उसे मेरे मुँह पे। स्वाद अच्छा था लेकिन साथ में कुछ ऐसा था की मेरी पूरी देह में एक मस्ती की तरंग दौड़ने लगी।

“भाभी कुछ पड़ा है क्या इसमें?” मैंने पूछा।

भाभी हँसकर वो बोली- “क्या पता?”

ग्लास में थोड़ी सी मलाई अभी भी बची थी। वो उन्होंने अंगुली डालकर निकाल ली और पूछा-

“बोलो ये कहाँ लगा दूं। गाल पे। लेकिन तुम वैसे ही इत्ते चिकने हो। काटने लायक गाल हैं तेरे…”

फिर उन्होंने नीचे की ओर रुख किया और सारी मलाई ‘उसके’ ऊपर मल दी।
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“असली मेहनत तो इसी बिचारे को करनी है कुछ यहाँ, कुछ तुम्हारे मायके में,... तुम्हारी मायके वालियों के साथ…”

कुछ उनके हाथ का असर कुछ मलाई का वो फिर रौद्र रूप में आ गया।

“बहुत जबर्दस्त जंगबहादुर है तुम्हारा मान गए…” आगे-पीछे करते भाभी मुश्कुराकर बोली।

“अरे भाभी ये सब आपकी करामात है। लेकिन इस बिचारे का मन तो रख दीजिये…”

“चलो अब तुम इत्ता कह रहे हो तो। लेकिन तुम्हें कुछ आता वाता तो है नहीं…” हँसकर वो बोली।
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[color=rgb(61,]सिखाई पढाई[/color]
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“बहुत जबर्दस्त जंगबहादुर है तुम्हारा मान गए…” आगे-पीछे करते भाभी मुश्कुराकर बोली।

“अरे भाभी ये सब आपकी करामात है। लेकिन इस बिचारे का मन तो रख दीजिये…”

“चलो अब तुम इत्ता कह रहे हो तो। लेकिन तुम्हें कुछ आता वाता तो है नहीं…” हँसकर वो बोली।

“तो सिखा दीजिये ना…” मैंने अर्जी लगाईं।

“क्या-क्या सिखाऊं?” आँख नचाते हुए वो बोली।

“सब कुछ…”

“अनाड़ी चुदवैया, बुर की बरबादी…” हँसकर वो बोली।

“अरे तो आप बना दीजिये ना अनाड़ी से खिलाड़ी। प्लीज…” मैं मुँह बनाकर बोला।

“चलो। तुम इत्ता हाथ जोड़ रहे हो तो। लेकिन गुरु दक्षिणा लगेगी…” वो मुश्कुराकर बोली।
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“एकदम गुरु-दक्षिणा या बुर-दक्षिणा। जो आप हुकुम करें…” मैं भी अब उन्हीं के रंग में आ गया था।
“चलो। सही बोला तो पहला पाठ यही है की। तुम अपनी भाषा बदलो। कम से कम जब अकेले में हो या जब कोई औरत खुलकर बोलने को तैयार हो। पहले लड़की थोड़ा बिचकेगी, मुँह बनाएगी। क्या बोलते हो? कैसे बोलते हो। मारूंगी। गंदे। लेकिन तुम चालू रहो और कोशिश करके उससे भी ये सब बुलवाओ। बस देखना उसकी शर्म झिझक सब खतम हो जायेगी और वो भी टाँगें उठाकर चूतड़ उचका के खुलकर मजे लेगी। अच्छा चलो तुम्हें इससे मिलवाती हूँ…”

और उन्होंने मेरा हाथ खींचकर अपनी झांटों भरी बुर पे रख दिया।

फिर तो जो उन्होंने पढ़ाना शुरू किया और मैंने पढ़ना शुरू किया। मैंने दर्जनों सेक्स मैनुअल पढ़े थे, लेकिन जो बात चन्दा भाभी में थी। सब चीजें।

उंगली, उन्होंने समझाया- “हमेशा बीच वाली उंगली इश्तेमाल करो। सिर्फ इसलिए नहीं की वो सबसे लम्बी होती है बल्की उसके साथ दोनों और की उंगलियों से चूत की पुत्तियों को सहला सकते हो मसल सकते हो,... और साथ में अंगूठे से क्लिट को भी दबा सकते हो। यहाँ तक की शलवार या पैंटी के ऊपर से भी। सामने देखते रहो, बातें करते रहो,... लेकिन उंगलियां अपना काम करती रह सकती हैं।
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जांघों को थोड़ा सहलाओ अगर लड़की पट रही होगी तो एक पल के लिए वो खोलकर फिर बंद कर लेगी। बस उसी समय हाथ अन्दर डाल दो। थोड़ा कुनमुनाएगी, बिचकेगी। लेकिन एक बार जहां तुम्हारा हाथ वहां लगा। एकदम पिघल के हाथ में आ जायेगी…”

“भाभी एक बार करने दो ना। तभी तो सीखूंगा…” मेरी हालत खराब हो रही थी अब सीधे प्रैक्टिकल के लिए

“क्या?” आँखें नचाकर वो बोली। मैं समझ गया वो क्या सुनना चाहती हैं।

“उंगली। आपकी रसीली चूत में…”

“तो करो ना…” और मेरी मझली उंगली खींचकर उन्होंने चूत में डाल दी। एकदम कसी थी, मस्त, रसीली मांसल, और उन्होंने शरारत से अपनी चूत मेरी उंगली पे भींच दी।

“कैसा लग रहा है देवरजी?”

“बहुत अच्छा भाभी। बस यही सोच रहा हूँ की अगर उंगली की जगह मेरा…”

“मेरा क्या? क्या लौंडियों की तरह हकला रहे हो?” वो बोली।

“मेरा लण्ड होता तो कित्ता मजा आता…”

“चलो लगे रहो क्या पता मेरा मन कर जाए…” अदा से वो बोली।

मैंने उंगली को गोल-गोल अन्दर घुमाना शुरू किया।
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उन्होंने खुद समझाया, कैसे गोल-गोल करते हैं। सारी नर्व्स ऊपर तक ही होती हैं इसलिए ज्यादा अन्दर तक करने की जरूरत नहीं। हाँ कैसे उंगली को चम्मच की तरह मोड़कर अन्दर दबा सकते हैं, कब और कितना अन्दर-बाहर कर सकते हैं और सबसे ज्यादा जरूरी बात, क्लिट ढूँढ़ने की।

करते समय तो वो बीच में दबी रहेगी,.. इसलिए अंदाज इत्ता अच्छा होना चाहिये की बिना देखे उसे छू सको, छेड़ सको। कैसे उसको दो उंगली के बीच में दबा सकते हैं, कैसे अंगूठे से उंगली करने के साथ-साथ,... अगर ढंग से करो तो दो-तीन मिनट में ही झड़ जायेगी…”

लेकिन सबसे जरूरी बात उन्होंने जो समझाई-

“पहले उसे बाकी जगहों से गर्म करो। किस करके। जोबन मर्दन, जांघें और चूत सहलाकर। उसके बाद ही क्लिट पे हाथ लगाओ। वरना एक तो वो उचकेगी और दूसरा मजे की जगह दर्द भी हो सकता है…” फिर उन्होंने मेरी आँखें बंद करवायीं और कहा-

“तुम मेरी क्लिट टच करो…”
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भाभी हिल डुल जा रही थी। तीन-चार बार ट्राई करने के बाद ही मैं ढूँढ़ पाया। लेकिन जब दो-तीन बार लगातार मैंने कर लिया, तो खुश होकर उन्होंने मुझे किस कर लिया।

मैंने शरारत से पूछा- “तो अच्छे स्टुडेंट को इनाम क्या मिलेगा?”

“मिलेगा। जरूर मिलेगा। जो वो चाहता है वही मिलेगा…” मुश्कुराकर वो बोली। फिर कहने लगी की हर जगह तो रोशनी नहीं होगी, कभी रात के अँधेरे में, कभी बाग में, झुरमुट में,... तो अँधेरे में सही जगह लगाने की प्रैक्टिस होनी चाहिए और उन्होंने ब्रा से मेरी आँखें बाँध दी और बोला की ठीक है चलो अब तुम अपने हथियार को, …”

मैं उनकी बात काटकर बोला- “हथियार या …”

“तुम अब पक्के हुए। अपने लण्ड को मेरी बुर पे, चलो। सिर्फ तीन मौका है अगर सही हुआ तो इनाम वरना ऐसे ही सो जाना…”
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पहली बार तो मैं एकदम फेल हो गया। दूसरी बार मेरा अंदाज सही था।

लेकिन वो आखिरी मौके पे सरक गईं और बोली- “क्या तुम सोचते हो की वो टांग फैलाकर खड़ी रहेगी…”

तब मेरी बुद्धी खुली। मैंने पहले तो उनके हाथ कब्जे में किये, पैरों से जांघें फैलायीं और फिर उसे लण्ड को सीधे सेंटर पे, बुर पे और थोड़ी देर रगड़कर जैसा उन्होंने समझाया था।

वो खूब गीली हो गईं तब छोड़ा। इस पूरी पढ़ाई के दौरान कभी उनका हाथ, कभी होंठ मेरे ‘उसको’ बार-बार छेड़ रहे थे और वो उसी तरह तना हुआ था।

“भाभी। अब तो…” मैंने अपने तन्नाये लण्ड की ओर इशारा किया।

“चलो तुम भी ना…” ये कहकर उन्होंने मुझे हल्का सा धक्का दे दिया।

मैं पलंग पे लेट गया। मेरा कुतुब मीनार हवा में था।

“करूँगी मैं,... बस तुम लेटे रहना। अनाड़ी कहीं उल्टा सीधा कर दो तो। अगर हिले डुले ना तो बहुत मारूंगी…”

फिर वो पलंग से उठकर चल दी और जब वो लौटी तो उनके हाथ में दो बोतल थी। उसे उन्होंने टेबल पे रख दी और मेरे पैरों के बीच में आकर बैठ गईं।

उन्होंने उसमें से ब्राउन बोतल उठाई और थोड़ा सा तेल अपनी हथेली पे लिया और हल्के से मला। फिर वो तेल मेरे तन्नाये हुए लिंग पे हल्के-हल्के लगाने लगी। गजब की सुरसुरी हो रही थी। क्या फीलिंग थी मैं बता नहीं सकता।

चन्दा भाभी ने मेरी और मुश्कुराते हुए देखा और बोला- “मालूम है ये क्या है?”

मैंने ना ने सिर हिलाया। उन्होंने अबकी ढेर सारा तेल बोतल से लिया और सीधे मेरे लिंग पे चुपड़ दिया। वो चमक रहा था। लेकिन थोड़ी देर में ही उसने जैसे तेल सोख लिया हो। भाभी ने फिर कुछ तेल अपने हाथ में लिया, मला और ‘उसपे’ मालिश करने लगी। अबकी उनकी उंगलियां कस-कसकर मुठिया रही थी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब थी। वो नीचे से तेल लगाती थी और ऊपर तक। लेकिन सुपाड़े पे आकर रुक जाती थी, और हँसकर बोली-

“ये सांडे का तेल है और वो नहीं जो तुमने मजमे वालों के पास देखा होगा…”

भाभी की बात सही थी। मैंने कित्ती बार मजमे वालों के पास देखा था बचपन में, दोस्तों से सुना भी था। लोहे की तरह कड़ा हो जाता है। खम्भे पे मारो तो बोलेगा टन्न।

तेल मलते हुए भाभी बोली-

“देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

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जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली- “अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी…”

भाभी ने वो बोतल बंद करके दूसरी ओर रख दी और दूसरी छोटी बोतल उठा ली। जैसे उन्होंने बोतल खोली मैं समझ गया की सरसों का तेल है। उन्होंने खोलकर दो-चार बूंदें सीधे मेरे सुपाड़े के छेद पे पहले डाली, मजे से मैं गिनगिना गया,...
 
[color=rgb(85,]भाग ६ -[/color]

[color=rgb(184,]चंदा भाभी, ---[/color][color=rgb(65,]अनाड़ी बना खिलाड़ी[/color][color=rgb(184,]
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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी…”

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भाभी ने वो बोतल बंद करके दूसरी ओर रख दी और दूसरी छोटी बोतल उठा ली। जैसे उन्होंने बोतल खोली मैं समझ गया की सरसों का तेल है। उन्होंने खोलकर दो-चार बूंदें सीधे मेरे सुपाड़े के छेद पे पहले डाली।

मजे से मैं गिनगिना गया।

“क्यों बचपन में तो ऐसे ही पड़ता रहा होगा ना। याद आया। वैसे तो मुझे किसी चिकनाई की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन तुम्हारा आदमी की जगह गधे, घोड़े का लगता है, इसलिए। मैं वैसलीन की जगह सरसों का तेल ही लगाती हूँ। लेकिन किसी लड़की के साथ, कच्ची कली के साथ तो पहले तो गीला करना अच्छी तरह से। फिर खूब वैसलीन चुपड़ के उंगली करना। अपने लण्ड में भी खूब वैसलीन मल लेना। हाँ एक बात और तुम एक काम करो। अपना सुपाड़ा कभी कवर मत करना। इसको खुला ही रखना…” भौजी ने समझाया

“क्यों भाभी?” मैंने उत्सकुता से पूछा।

भाभी पूरे सुपाड़े पे तेल लगाते हुए बोली-

“अरे देवरजी, आपको आम खाने से मतलब या। यही सब तो ट्रिक हैं असली मर्द बनने के। आप भी क्या याद करियेगा कि कोई सिखाने वाली मिली थी। खुला रहने से बचपन से रगड़ खा-खाकर वो ऐसा सुन्न हो जाता है कि बस। तो जल्दी झड़ने का खतरा खत्म हो जाता है। और औरत क्या चाहती है कि मर्द खूब रगड़कर अच्छी तरह, देर तक चोदे, ये नहीं की बस घुसेड़ा, निकाला और कहानी खतम। जो मरद औरत को झाड़ के झड़े, वो असली मर्द। तो अगर इसको ढकोगे नहीं तो तुम्हारे कपड़े से रगड़ खा-खाकर ये भी। समझ गए और हाँ अगर तुम मुझसे पहले गए तो समझ लेना…”
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तेल की दोनों बोतल बंद करके वो टेबल पर रख चुकी थी।
“भाभी। प्लीज…” मेरी आँखें गुहार लगा रही थी।

“चल ठीक है तू भी क्या याद करेगा। होली का मौका है तो आज देवर भाभी की होली हो जाये। बस याद रखना की तुम बस ऐसे ही लेटे रहना उठने कि कोशिश भी मत करना…”

मैंने वोमन आन टाप की कई कहानियां पढ़ी थी, फोटुयें और फिल्में भी देखी थी, लेकिन वो सीन।

चंदा भाभी पर वो जोबन था। नाईट लैंप की हल्की नीली रोशनी में, लंबे-लंबे बाल, सिंदूर से सजी माँग, बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, गले में नेकलेश जिसका पेंडेंट उनके गदराये मस्त जोबन के बीच लटकता हुआ, खूब बड़ी-बड़ी लेकिन एकदम कड़ी मस्त चूचियां,

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गोरी-गोरी चिकनी जांघें, और उसके बीच काली झुरमुट।

भाभी मेरे ऊपर आ गई थी, उनकी फैली हुई जांघों के बीच, ... मेरा

भाभी- “क्यों ले लूँ इसे अपने अन्दर?” हँसकर अपनी नशीली आँखें मेरी आँखों में डालकर वो बोली।

“एकदम…” मैंने भी हँसकर जवाब दिया। बेचैनी से मेरी हालत खराब थी। उनका जन्नत का खजाना मेरे ‘उससे’ टच कर रहा था। बता नहीं सकता वो पहली बार का स्पर्श।

भाभी रुक गई थी।
मैं बेताब हो रहा था। मैंने अपनी कमर उचकायी।
तभी भाभी बोली- “मना किया था ना की हिलोगे नहीं। बदमाश…” कहकर भाभी ने आँखें तरेरी।

मैं एकदम रुक गया।

भाभी मुश्कुराने लगी और उन्होंने कमर थोड़ी और नीची की।

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अपने हाथों से उन्होंने अपने निचले होंठों को थोड़ा फैलाया और मेरा सुपाड़ा उनकी चूत के अंदर। उन्होंने मेरे जंधे पकड़कर एक और धक्का दिया, और बोली-

“अब मैं मर्द हूँ और तुम औरत। वैसे भी कल होली में अच्छी तरह सेचुदवाओगे तुम। और चोदेगी हम सब। । ठीक से बोल आ रहा है मजा?”

और इसके साथ उन्होंने एक जबर्दस्त धक्का मारा।

सुपाड़ा पूरी तरह उनकी चूत के गिरफ्त में था। दोनों कन्धों पर जो उनका हाथ था वो सरक के मेरी छाती तक आ चुका था। जैसे कोई किशोरी के नए जोबन को सहलाए,... वो उसी तरह।
 
[color=rgb(41,]कथा रति विपरीत की [/color]

[color=rgb(209,]मैं बनूँ साजन,[/color][color=rgb(0,]तुम बनो सजनी[/color]
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भाभी मुश्कुराने लगी और उन्होंने कमर थोड़ी और नीची की। अपने हाथों से उन्होंने अपने निचले होंठों को थोड़ा फैलाया और मेरा सुपाड़ा उनकी चूत के अंदर। उन्होंने मेरे जंधे पकड़कर एक और धक्का दिया, और बोली-

“अब मैं मर्द हूँ और तुम औरत। ” और इसके साथ उन्होंने एक जबर्दस्त धक्का मारा।
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सुपाड़ा पूरी तरह उनकी चूत के गिरफ्त में था। दोनों कन्धों पर जो उनका हाथ था वो सरक के मेरी छाती तक आ चुका था। जैसे कोई किशोरी के नए जोबन को सहलाए,वो उसी तरह।

मैं चाह रहा था की भाभी जल्दी से पूरा अन्दर ले लें पर वो तो।

उन्होंने सुपाड़े को अपनी चूत से कस-कसकर भींचना शुरू कर दिया। साथ ही उनके एक हाथ ने मेरे एक निपल को कसकर पिंच कर लिया। उनके लम्बे नाखून वहां निशान बना रहे थे। अब मुझसे नहीं रहा गया। मैंने कसकर अपने दोनों हाथों से उनके झुके हुए मस्त रसीले जोबन पकड़ लिए और कस-कसकर दबाने लगा। जवाब में भाभी ने एक जोर का धकका मारा और आधा लण्ड अन्दर चला गया।

लेकिन अब वो रुक गईं। वो गोल-गोल अपनी कमर घुमा रही थी।

अब मुझसे नहीं रहा गया। मैंने उनकी कमर कसकर पकड़ी और नीचे से जोर का धक्का मारा। साथ ही मैंने अपने हाथ से उनकी कमर पकड़कर नीचे की ओर खींचा। अब बाजी थोड़ी सी मेरे हाथ में थी। भाभी सिसकियां भर रही थी। और मेरा लण्ड सरक-सरक के और उनकी चूत में घुस रहा था।

भाभी- “तुम ना। बदमाश,... कल अगर तुम्हारी। …”
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लेकिन भाभी की बात बीच में रह गई क्योंकि मैंने कसकर उनकी क्लिट दबा दी।

भ।भी जोर-जोर से सिसकी भरने लगी-

“साले। बहनचोद। मेरी सीख मेरे ही ऊपर। तेरे सारे खानदान की फुद्दी मारूँ…” और फुल स्पीड चुदाई चालू हो गई।

भाभी की चूची मेरी छाती से रगड़ रही थी। मैंने कस को उनको बांहों में भींच रखा था। और उन्होंने भी कसकर मुझे पकड़ रखा था। हचक के सटासट। ऊपर-नीचे, ऊपर-नीचे। थोड़ी देर तक भाभी खुद पुश कर रही थी और साथ में मैं। उनकी कमर पकड़कर। लेकिन कुछ देर बाद। उन्होंने जोर कम कर दिया और मैं ही अपनी कमर उचका के उनकी कमर नीचे खींचकर, चूतड़ उठाकर अपना लण्ड उनकी चूत में सटासट।
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थोड़ी देर बाद ऐसी ही जबरदस्त चुदाई के बाद भाभी ने मेरे कान में कहा- “सुनो। तुम अपनी टाँगें कसकर मेरी पीठ पे पीछे बाँध लो। पूरी ताकत से…”

उस समय ‘मेरा’ पूरी तरह से भाभी के अन्दर पैबस्त था। मैंने वही किया। भाभी ने भी कसकर अपने हाथ मेरी पीठ के नीचे करके बाँध लिए। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

तभी भाभी पलटी और। गाड़ी नाव के ऊपर। नीचे से भाभी बोली-

“बस ऐसे ही रहो थोड़ी देर…” और उन्होंने कुछ ऐडजस्ट किया और मैं उनकी जाँघों के बीच।
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भाभी मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी। मैंने भाभी को पहले हल्के से फिर पूरी ताकत से किस किया। उन्होंने भी उसी तरह जवाब दिया। मुझे भाभी की बात याद आई। थोड़ी ही देर में मेरा होंठ उनके एक निपल को कसकर चूस रहा था और दूसरा निपल मेरी उंगलियों के बीच था। धक्कों की रफ्तार मैंने कम कर दी थी।

भाभी मस्त सिसकियां भर रही थी। कुछ देर बाद ही वो चूतड़ उचकाने लगी-

“करो ना देवरजी। और जोर से करो बहुत मजा आ रहा है। ओह्ह… ओह्ह…” करके भाभी सिसक रही थी बोल रही थी।

मैं कौन होता था अपनी इस मस्त भाभी को मना करने वाला। मैंने पूरी तेजी से कमर चलानी शुरू कर दी। इंजन के पिस्टन की तरह।

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भाभी ने अपने हाथों से मेरे चूतड़ कसकर पकड़ रखे थे। मस्त गालियां। चीखें-

“साले रुके तो तेरी गाण्ड मार लूँगी। कल पूरी पिचकारी तेरी गाण्ड फैलाकर पेल दूँगी। बहनचोद। तेरी बहन को मेरे सारे देवर चोदें। बहुत मजा आ रहा है। हाँ…”

और भाभी ने फिर पोज बदल दिया।

वो मेरी गोद में थी। उनकी फैली जांघें मेरी कमर के चारों ओर, चूचियां मेरे सीने से रगड़ती।
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मैं अब हल्के-हल्के धक्के मार रहा था। साथ में हम लोग बातें भी कर रहे थे।

भाभी ने चिढ़ाया- “सीख तो तुम ठीक रहे हो। अपने मायके जाकर उस छिनाल ननद के साथ प्रैक्टिस करना एकदम पक्के हो जाओगे…”

मैं- “गुरु तो आप ही हैं भाभी…”

भाभी कभी मेरे कान में अपनी जीभ डाल देती,

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कभी हल्के से मेरे होंठ काट लेती और एक बार उन्होंने मेरे निपल को कसकर काट लिया।

मैं क्यों पीछे रहता।

मैंने ध्यान से सब सुना और पढ़ा था, और फिल्में देखी थी सो अलग।

मैंने दोतरफा हमला एक साथ किया। मैंने होंठों से पहले तो कसकर उनके निपल फ्लिक करना फिर चूसना शुरू किया और निपल हल्के से काट लिए।

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एक हाथ जोबन मर्दन में लगा था। दूसरे हाथ को मैं नीचे ले गया और पहले तो हल्के-हल्के फिर जोर से उनके क्लिट को रगड़ने लगा।

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भाभी झड़ने के कगार पे पहुँच गईं लेकिन वो मेरी ट्रिक समझ गईं। उन्होंने धक्का देकर मुझे गिरा दिया और फिर मेरे ऊपर आ गईं, कहा-

“बदमाश हरामी, बहनचोद। बहन के भंड़वे, तेरी बहन को कोठे पे बैठाऊँ। मेरी सीख मुझी पे…”

और कस-कसकर धक्के लगाने लगी।

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एक हाथ उनका मेरे निपल पे तो दूसरा मेरे पीछे गाण्ड के छेद पे।

मैं भी उसी तरह जवाब दे रहा था। हम लोग धकापेल चुदाई कर रहे थे। मैं बस अब रुकना नहीं चाहता था। मेरे हाथ कभी उनकी चूची पे कभी क्लिट पे। मेरा लण्ड अब बिना रुके अन्दर-बाहर हो रहा था।

भाभी की चूत कस-कसकर मेरे लण्ड को निचोड़ने लगी, और भाभी बोल रही थी-

“ओह्ह्ह… आह्ह… हाँ ओह्ह्ह… नहीं मैन्न…”

मुझे लग रहा था की मैं अब गया तब गया, लेकिन भाभी निढाल हो गईं, उनके धक्के रुक गए। लेकिन उनकी चूत कस-कसकर सिकोड़ती रही। निचोड़ती रही। और मैं भी। लगा मेरी जान निकल जायेगी पूरी देह से, आँखें बंद हो गई मैं कमर हिला रहा था।

जैसे कोई फव्वारा फूटे, मेरी देह शिथिल पड़ गई थी।
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भाभी मेरे ऊपर लेटी थी। थोड़ी देर तक हम दोनों लम्बी-लम्बी साँसें लेते रहे। भाभी ही उठी और फिर मेरे बगल में लेट गईं। थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे बाहों में भरकर एक जबर्दस्त किस कर लिया। मुझे जवाब मिल गया था की मैं इम्तेहान मैं पास हो गया, बाहर जबर्दस्त होली के गाने चल रहे थे।

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[color=rgb(243,]नकबेसर कागा लै भागा,[/color]

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बाहर जबर्दस्त होली के गाने चल रहे थे।

[color=rgb(243,]नकबेसर कागा लै भागा, मोरा सैयां अभागा ना जागा,[/color]
[color=rgb(243,]
अरे अरे उड़ उड़ कागा चोलिया पे बैठा जोबना पे,
[/color]
[color=rgb(243,]अरे जोबना के सब रस ले भागा।
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[/color]


थोड़ी देर हम लोग एक दूसरे को कसकर पकड़कर लेटे थे। मैं धीरे-धीरे उनके बाल सहला रहा था। मेरी एक उंगली उनके गालों पे फिर रही थी। चन्दा भाभी भी मेरे पीठ पे हल्के-हल्के हाथ फिरा रही थी।

फिर बातें शुरू हुई।

चन्दा भाभी ने कुछ इधर-उधर की फिर कुछ और ट्रिक्स। खोद-खोद के चन्दा भाभी ने सब कुछ पूछ लिया, मैं इतना शर्मीला कैसे हूँ। मैंने बता दिया की साथ के लड़कों में मैं अकेला था जिसने आज तक ‘कुछ नहीं’ किया था। ज्यादातर लड़कों ने तो 18-19 साल की उम्र में ही। और मोस्टली ने तो कम से कम पांच-छ के साथ। दो-चार ने तो कजिन के साथ ही। गर्लफ्रेंड तो आलमोस्ट सबकी थी।

“अरे तो तुमने क्यों नहीं?” चंदा भाभी ने पूछा।
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“पता नहीं। मन तो बहुत करता था। लेकिन कुछ शर्माता था। कुछ डर की कहीं लड़की मन ना कर दे। और कुछ बदनामी का डर…”

पहली बार मैंने अपने मन की बात किसी को बतायी। चंदा भाभी की उंगली मेरे पीठ के निचले हिस्से पे, मेरे नितम्बों की दरार के ठीक ऊपर सहला रही थी।

“चल कोई बात नहीं,.. अब तो। अरे यार यही तो उम्र होती है। पढ़ाई पूरी हो गई। इत्ती अच्छी नौकरी मिल गई। अभी शादी नहीं हुई। तुम इत्ते लम्बे चौड़े हो। सब कुछ एकदम…”

और ये कहते हुए उनके एक हाथ की उंगली मेरे निपल पे पहुँच गई और पीठ वाली नितम्बों के दरार में।

‘वो’ कुनमुनाने लगा। फिर उन्होंने गुड्डी के बारे में सब कुछ पूछ लिया। पहली बार पिक्चर हाल में से लेकर, आज तक।

भाभी बोली-

“तुम ना बुद्धू हो। अरे जब पेड़ की डाल पे कोई फल पक जाय और उसे कोई ना तोड़े तो क्या होगा?”

मैं बोला- “वो गिर जाएगा और फिर कोई भी उठाकर ले जाएगा…”

भाभी ने प्यार से समझाया- “एकदम वो तो एकदम तैयार थी। वो तो तुम्हारी किश्मत अच्छी थी की किसी और ने। अब तक तुम्हारी जगह कोई और होता तो कब का…”

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“मैं सोच रहा था की वो अभी 10वीं में पढ़ती है उसे कुछ मालूम नहीं होगा। फिर कहीं वह भाभी को शिकायत कर दे तो। वैसे वो है बहुत अच्छी…”

मैंने अपनी मन की बात बताई।

भाभी ने मेरे कान की लौ पे एक छोटी सी किस्सी ले ली और बोली- “अरे बुद्धू। कित्ती बहने हैं उसकी …”

“दो …” मैं बिना समझे बोला।

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“तो सोचो ना, तो क्या उसकी मम्मी के बिना चुदवाये। और तुमने तो देखा ही है की पहले वह लोग एक कमरे में रहते थे। उसने बचपन से कितनी बार अपने मम्मी पापा को करते देखा होगा। और मैं जानती हूँ ना उसकी मम्मी को,... कितनी बार दिन दहाड़े।

फिर लड़कियां तो,... कितनी खुली बातें सब लोग करते हैं आपस में और वो तो गाँव शहर दोनों की है। गाँव में तो शादी ब्याह में, गन्ने के खेत में। लड़कियां बहुत जल्दी तैयार हो जाती हैं। लेकिन एक बात गांठ बाँध लो…”

“क्या?” मैं बड़ी उत्सुकता से भाभी की एक-एक बात सुन रहा था।

“किसी भी कुँवारी लड़की को पहली बार मजा नहीं आता। जो तुमने कहानियों में पढ़ा होगा, सब गलत है। मन उसका जरूर करता है, सहेलियों की बातें सुनकर, भाभी की छेड़खानी से। इसलिए। …”

“बताइये ना फिर क्या करना चाहिए?” मैं बेताब हो रहा था।

“अरे बोलने तो दे…” भाभी बोली-

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“पहली बार उसे दर्द होगा। लेकिन ये दर्द सबको होता है। वह पहली लड़की तो होगी नहीं जिसकी फटेगी। इसलिए उसे थोड़ा प्यार से समझाना चाहिए। मनाना चाहिये और जब दर्द कम हो जाए तो उसे दूसरी बार जरूर चोदो। भले वह चीखें चिल्लाये, थोड़ा गुस्सा हो। वरना पहली चुदाई का दर्द अगर उसके मन में बैठ गया ना तो फिर उसे दुबारा राजी करना मुश्किल होगा।

दुबारा करने पे ही उसे असल मजा मिलेगा। ज्यादातर लड़के ही उसके बाद थक जाते हैं। थक तो वो भी जायेगी। लेकिन कुछ देर बाद अगर कोई, किसी तरह। लड़की को गरम करना उतना मुश्किल नहीं।

तीसरी बार उसे चोद दे ना, फिर तो वो लड़की उसकी गुलाम हो जायेगी। जब भी उससे कहोगे खुद तैयार रहेगी, और कहीं तीन-चार दिन कर दिया तो। फिर तो उसकी चूत में चींटे काटेंगे। तुम नहीं चाहोगे तो भी तुम्हारे पीछे-पीछे आएगी, सबके सामने बिना किसी की परवाह किये…”

मैं आने वाले कल की रात के बारे में सोच रहा था। जब मैं उसे लेकर अपने घर पहुँचूंगा।

“भाभी अगर किसी लड़की के वो वाले पांच दिन चल रहे हों, और जिस दिन खतम हो उस दिन मौका मिले तो। उस दिन करना ठीक होगा की नहीं?”

मैंने भाभी से दिल की बात पूछ ही ली।

भाभी- “अरे वो तो सबसे अच्छा है। उस दिन तो चूत को ऐसी भूख लगी रहती है। वो खुद राजी हो जायेगी। उस दिन तो छोड़ना, कामदेव का अपमान करना है। बस पटक के चोद दो…”

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भाभी ने फिर समझाया- “उस दिन तो लड़की को ऐसी खुजली मचती है ना की बस पूछो मत। बड़ी से बड़ी शर्मीली सती साध्वी होगी वो भी खुद टांग उठाकर। उस दिन तो कोई रह नहीं सकती। लण्ड देव की कृपा ना हुई तो बैगन, मोमबत्ती। कुछ नहीं हुआ तो उंगली। उस दिन तो बस तुम्हें पूछने की देर है…”

हँसकर भाभी बोली।

हम दोनों नें एक दूसरे को कसकर पकड़ रखा था। बाहर अभी भी होली के गाने, जोगीड़ा चल रहा था।

[color=rgb(243,]अरे कौन गाँव में सूरज निकले कौन गाँव में चन्दा,

किसने गोरी की चूची पकड़ी किसने हचक के चोदा, जोगीरा सा रा रा।[/color]


“बनारस है ये सारी रात चलता है। और तुम सोच रहे की लड़की को ये नहीं पता होगा, वो नहीं पता होगा…”

भाभी जोगीड़ा सुनकर मुश्कुराते हुए बोली। तभी अच्छानक मुझे छुड़ाकर वो उठ खडी हुई।

“क्या हुआ, किधर जा रही हैं आप?” मैंने पूछा।

“कहीं नहीं…” हल्के से उन्होंने बोला और धीरे से दरवाजे की कुण्डी खोलकर बाहर झाँका। दोनों लड़कियां घोड़े बेचकर सो रही थीं। उन्होंने फिर दरवाजा बंद कर दिया और मुझसे बोली-

“अरे वो जो पान तुम लाये थे। वो तो मैंने खाया ही नहीं। और वैसे तो तुम पान खाते नहीं, जब तक कोई जबरदस्ती ना खिलाये। तो फागुन में तो देवर से जबरदस्ती बनती है खास तौर से जब वो अगर तुम्हारे ऐसा चिकना हो। है ना?”

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हँसते हुए बर्क में लिपटा हुआ वो ‘स्पेशल’ पान लेकर भाभी आ गईं।
 
[color=rgb(65,]पान पलंग तोड़

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“क्या हुआ, किधर जा रही हैं आप?” मैंने पूछा।

“कहीं नहीं…” हल्के से उन्होंने बोला और धीरे से दरवाजे की कुण्डी खोलकर बाहर झाँका। दोनों लड़कियां घोड़े बेचकर सो रही थीं। उन्होंने फिर दरवाजा बंद कर दिया और मुझसे बोली-

“अरे वो जो पान तुम लाये थे। वो तो मैंने खाया ही नहीं। और वैसे तो तुम पान खाते नहीं, जब तक कोई जबरदस्ती ना खिलाये। तो फागुन में तो देवर से जबरदस्ती बनती है खास तौर से जब वो अगर तुम्हारे ऐसा चिकना हो। है ना?”

हँसते हुए बर्क में लिपटा हुआ वो ‘स्पेशल’ पान लेकर भाभी आ गईं।

फिर से उन्होंने मेरे गालों को दबाकर मुँह खुलवा दिया। पान का चौड़ा वाला भाग उनके मुँह में था और नोक वाल भाग निकला था।

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बिना किसी ना-नुकुर के मैंने ले लिया। ज्यादातर पान उनके हिस्से में गया और थोड़ा सा मेरे में। क्यों ये राज बाद में खुला?

हम दोनों पान का रस ले रहे थे।

भाभी ने हल्के से मेरे होंठ पे काट लिया। मैं क्यों पीछे रहता मैंने और कसकर काट लिया और अपने दांतों का निशान उनके गुलाबी होंठों पे छोड़ दिया। इसका स्वाद थोड़ा अलग सा लग रहा था। स्वाद के साथ एक मस्ती सी छा रही थी। देह में एक मरोड़ सी उठ रही थी। भाभी की आँखों में भी सुरूर नजर आ रहा था।

भाभी ने फिर मुझे चूम लिया और मुश्कुराते हुए पूछा- “जानते हो, इस पान को क्या कहते हैं और ये कब खिलाया जाता है?”
“ना…” मैंने कसकर सिर हिलाया और उन्हें हल्के से गाल पे काट लिया। मेरी हरकतें अब मेरे कंट्रोल में नहीं थी।

“तुम बुद्धू हो…”

उन्होंने कसकर अपने मस्त उरोजों को मेरे सीने पे रगड़ा, और कहा-

“इसे पलंग-तोड़ पान कहते हैं और इसे दुल्हन दूल्हा खाते हैं। दूल्हा डालता है दुल्हन के मुँह में इसलिए मैंने डाला तेरे मुँह में। आज तो मैं दूल्हा तुम दुल्हन। क्योंकि मैं ऊपर तुम नीचे। मैं डाल रही हूँ और तुम डलवा रहे हो…”
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“नहीं नहीं भाभी। वो पिछली बार था। अबकी मैं डालूँगा और आप डलवाइयेगा…” मैं भी बोल्ड हो रहा था।

“क्या डालोगे। नाम लेने में तो तेरी साले फटती है…” हँसकर ‘उसे’ हल्के से सहलाती वो बोली।
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‘वो’ जोर-जोर से कुनमुनाने लगा। उनकी चूची कस-कसकर दबाकर मैं बोला-

“भाभी लण्ड डालूँगा। आपकी चूत में और वो भी हचक-हचक कर। आपका देवर हूँ कोई मजाक नहीं…”

“अरे मेरे देवर तो हो ही लेकिन साथ में मेरी बिन्नो (मेरी भाभी) ननद साली के ननदोई भी हो। अपनी बहन कम माल के भंड़वे भी हो और उसके यार भी हो…”

अब भाभी ‘उसे’ कस-कसकर आगे-पीछे कर रही थी और ‘वो’ पूरी तरह तन्ना गया था।

“तुमने भी ना देवरजी क्या सोचकर फुल पावर का माँगा था…” भाभी ने मुझे चिढ़ाया।

मैंने बहाना बनाया- “मुझे क्या मालूम। आपने बोला था। तो मुझे लगा फुल पावर मतलब ज्यादा अच्छा होगा…”

मेरे हाथ अब कस-कसकर उनके जोबन का मर्दन कर रहे थे। क्या मस्त चूचियां थी, खूब गदराई, कड़ी-कड़ी रसीली। मेरी उंगलियां उनके निपल को फ्लिक कर रही थी-

“भाभी, दो ना…”

“क्या?” मेरी आँखों में आँखें डालकर चंदा भाभी ने पूछा।
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“यही। आपकी ए रसीली मस्त चूचियां, ये। ये। चूत…” मुझे ना जाने क्या हो रहा था।

“तो ले लो ना। मेरे प्यारे देवर। मैंने कब मना किया है। देवर का तो हक होता है और वैसे भी फागुन में और…”

और ये कहकर वो मेरे ऊपर आ गईं।
उनके 36डीडी मेरे टिटस को कस-कसकर रगड़ रहे थे।
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मेरे कानों को किस करके वो हल्के से बोली-

“लेकिन याद रख। अगर तू मुझसे पहले झड़ा तो तेरा उपवास हो जायेगा। मैं तो नहीं ही मिलूँगी। वो भी नहीं मिलेगी। अपनी उस मायके वाली छिनाल से काम चलाना। और तेरी गाण्ड मारूंगी सो अलग। और वो तो वैसे भी कल मारी ही जायेगी। ससुराल में वो भी फागुन में आकर बची रहे ऐसी मस्त चिकनी गाण्ड। सख्त नाईन्साफी है…”

और उनकी मझली उंगली मेरे गाण्ड के क्रैक पे रगड़ रही थी।

मेरे पूरे देह में सनसनी फैल गई। जोश के मारे तो ‘उसकी’ हालत खराब थी। मुझे लगा की शायद चन्दा भाभी ‘उसे’ पकड़ लें लेकिन कहाँ.... उनकी उंगली मेरी गाण्ड में घुसने की कोशिश कर रही थी।

अचानक भाभी ने अपने हाथों से मेरे जबड़े को कसकर दबा दिया।

मेरा मुँह खुल गया। उनके रसीले पान से रंगे होंठ मेरे होंठों के ठीक ऊपर थे शायद बस एक इंच ऊपर। वो पान चुभला रही थी और उनकी नशीली आँखें सीधी मेरी आँखों में झाँक रही थीं। उन्होंने मेरे ऊपर से ही, अपना होंठ खोला और सीधे उनके मुँह से मेरे खुले मुँह में।

चन्दा भाभी के मुख रस से घुला मिला, अधखाया कुचला पान का रस।

उनके मजबूत हाथों की पकड़ में मैं अपना चेहरा हिला डुला भी नहीं पा रहा था और पान रस की धार सीधे मेरे मुँह में।

थोड़ी ही देर में भाभी के होंठ मेरे होंठों पे थे। और उन्होंने उसे अच्छी तरह जकड़ लिया, कसकर कचकचा के। कभी वो उसे चूसती, कभी काटती। जैसे सुहागरात के वक्त कोई दुल्हा दुल्हन की नथ उतारने के पहले कस-कसकर उसके मीठे होंठों का रस लूटता है बिलकुल वैसे।

थोड़ी देर में उन्होंने अपनी मोटी रसीली जीभ भी मेरे मुँह में घुसेड़ दी। वो मेरी जीभ को छेड़ रही थी, उससे लड़ रही थी।

और उसके साथ ही भाभी के खाए, कुचले, रस से लिथड़े पान के बचे खुचे टुकड़े, सबके सब मेरे मुँह में और उनकी जुबान उसे मेरे मुँह के अन्दर ठेलती हुई। पूरा पलंग-तोड़ पान मेरे मुँह में घुल रहा था, उसका रस भिन रहा था। मैं पहले धीरे-धीरे फिर खुलकर मेरे मुँह के अन्दर घुसी, भाभी की जीभ को हल्के-हल्के चूसना शुरू कर दिया।
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जैसे कोई शर्माती लजाती दुलहन, पहले झिझके फिर अपने मुँह में जबरन घुसे शिश्न को रस ले लेकर चूसने लगे। बहुत अच्छा लग रहा था। और भाभी के शरारती हाथ भी ना, वो क्यों चुप बैठते।

जो उंगली मेरे पिछवाड़े के छेद में घुसने की कोशिश कर रही थी, वो अब मेरे बाल्स को सहला रही थी। छेड़ रही थी। और दूसरे हाथ ने जबड़े को छोड़कर, कस-कसकर मेरे निपलों को पिंच करना, कस-कसकर खींचना शुरू कर दिया, और 8-10 मिनट के जबर्दस्त चुम्बन के बाद ही भाभी ने छोड़ा।
 
[color=rgb(235,]फगुनाई भौजी

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और भाभी के शरारती हाथ भी ना, वो क्यों चुप बैठते।

जो उंगली मेरे पिछवाड़े के छेद में घुसने की कोशिश कर रही थी, वो अब मेरे बाल्स को सहला रही थी। छेड़ रही थी।

और दूसरे हाथ ने जबड़े को छोड़कर, कस-कसकर मेरे निपलों को पिंच करना, कस-कसकर खींचना शुरू कर दिया, और 8-10 मिनट के जबर्दस्त चुम्बन के बाद ही भाभी ने छोड़ा।

लेकिन बस थोड़ी देर के लिए।

मेरा मुँह उन्होंने फिर जबरन खुलवा दिया और अबकी सीधे उनकी चूची, पहले इंच भर बड़े, खड़े निप्पल और उसके बाद रसीली गदराई मस्त चूची। मेरा मुँह फिर बंद हो गया। मैं हल्के-हल्के चूसने लगा। कभी जीभ से फ्लिक करता, कभी हल्के से काट लेता, और कभी चूस लेता।
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भाभी ने पहले तो एक हाथ से मेरा सिर पकड़ रखा था

लेकिन वो हाथ एक बार फिर मेरे टिट्स पे, अबकी तो वो पहले से भी ज्यादा जोर से वहां चिकोटी काट रही थी, उसे नोच रही थी। दूसरे हाथ की बदमाश उंगलियां मेरे लण्ड के बेस पे हल्के-हल्के सहला रही थी। वो एकदम तन्नाया हुआ, खड़ा था जोश में पागल, बस घुसने को बेताब। अब चन्दा भाभी के होंठ खुल गए थे।

तो फिर तो वो, एकदम जोश में,... क्या-क्या नहीं बोल रही थी-

“साले, चूस कस-कसकर। बहनचोद। तेरी सारी बहनों की फुद्दी मारूँ, गली के कुत्तों से चुदवाऊं, उन्हीं की चूची चूस-चूसकर ट्रेन हुआ है ना, गान्डू साले…”
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चंदा भाभी की गालियां भी इत्ती मस्त थी। साथ में इतने जोर से मेरे मुँह में अपनी बड़ी-बड़ी चूचियां घुसेड़ रही थी जैसे कोई झिझकती शर्माती मना करती दुल्हन के मुँह में जबरदस्ती पहली बार लौड़ा पेले। मेरा मुँह फटा जा रहा था, लेकिन मैं जोर-जोर से चूस रहा था।
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भाभी के हाथ ने अब कसकर मेरा लण्ड पकड़ लिया था और वो हल्के-हल्के मुठिया रही थी। लेकिन एक उंगली अभी भी मेरी गाण्ड की दरार पे रगड़ खा रही थी, और अब उनकी गालियां भी-

“साले कहता है की तेरी,... कल देखना तेरी वो हालत करूँगी ना। गाण्ड से भोंसड़ा बना दूंगी। जो लण्ड लेने में चार-चार बच्चों की माँ को पसीना छूटता होगा ना। वो भी तू हँस-हँसकर घोंटेगा। ऐसे चींटे काटेंगे ना तेरी गाण्ड में की खुद चियारता फिरेगा…”

पता नहीं भाभी की गालियों का असर था, या उनके हाथ का, या मेरे मुँह में घुल रहे पलंग-तोड़ पान का। बस मेरा मन कर रहा था की बस भाभी को अब पटक के चोद दूं। भाभी ने अपनी एक चूची निकालकर दूसरी मेरे मुँह में डाल दी।

मैंने भी कसकर उनका सिर पकड़कर अपनी ओर खींचा और कस-कसकर पहले तो निपल चूसता रहा फिर हल्के-हल्के दांत उनके सीने पे गड़ा दिए।

भाभी चीखीं- “उई क्या करता है। तेरे उस माल की चूची नहीं है। निशान पड़ जाएगा…”
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जवाब में कसकर मैंने उसी जगह पे दांत और जोर से गड़ा दिए। दूसरी चूची अब कसकर मैं रगड़ मसल रहा था। दांत गड़ाने के साथ-साथ मैंने उनके निपल को भी काटकर पिंच कर दिया।

वो फिर चीखीं, लेकिन वो चीख कम थी सिसकी ज्यादा थी।

मैं रुका नहीं और कस-कसकर उनके निपल को पिंच करता रहा, चूसता रहा। भाभी अब छटपटा रही थी, सिसक रही थी पलंग पे अपने भारी-भारी चूतड़ रगड़ रही थी। उन्होंने मेरे मुँह से अपन चूची निकाल ली और पलंग पे निढाल पड़ गईं।

बिना मौका गवांए मैं भी उनके ऊपर चढ़ गया और उनको कसकर किस लेकर बोला-

“भाभी अबकी मेरा नंबर। अब तो मैं उत्ता अनाड़ी भी नहीं रहा…”

भाभी मुस्कुरायीं और मेरे कान में फुसफुसा के कहा-

“लाला, तुम अनाड़ी भले ना हो लेकिन सीधे बहुत हो। अरे अगर तुम ऐसे किसी लौंडिया से पूछोगे तो क्या वो हाँ कहेगी? अरे बस चढ़ जाना चाहिये उसके ऊपर और जब तक वो सोचे समझे अपना खूंटा ठूंस दो उसके अन्दर…”

और फिर कुछ रुक के बोली-

“चलो देवर हो फागुन है। तुम्हारा हक बनता है लेकिन। तुम अपनी ‘उसको’ समझ के करना। मैं शर्माऊँगी भी, मना भी करूँगी। अगर आज तुम ये बाजी जीत गए तो फिर कभी नहीं हारोगे और वो पहले झड़ने वाली बात याद है ना?”

मैं हँसकर बोला- “हाँ याद है, कैसे भूल सकता हूँ। अगर मैं पहले झड़ा तो आप मेरी गाण्ड मार लेंगी…”
मैं समझ गया था बात भौजी की मतलब रोल प्ले, वो गुड्डी बनेंगी औरमुझे एक ऐसी टीनेजर जिसके साथ पहली बार हो रहा हो, उसके साथ कैसे उसे मनाना है, पटाना है, ना ना करते रहने पर भी करना है और उसे गरम करना है, इतना की वो खुद टाँगे फैला दे। और अगर आज पास हो गया तो कल जब गुड्डी मेरे साथ चलेगी तो रात को, इत्ते दिन का सपना पूरा होगा।
भाभी- “वो तो मैं मारूंगी ही। सुसराल आये हो तो होली में ऐसे कैसे सूखे सूखे जा सकते हो? ये होली तो तुम्हें याद रहेगी…”

तब तक मैं उनके ऊपर चढ़ चुका था और मेरे होंठों ने उनके होंठ सील कर दिए थे। बात बंद काम शुरू, अबकी मेरी जीभ उनके मुँह के अन्दर थी।

वो अपना सिर इधर-उधर हिला रही थी जैसे मेरे चुम्बन से बचने की कोशिश कर रही हों।

मैं समझ गया वो अब उस किशोरी की तरह हैं, जिसे मुझे कल पहली बार यौवन सुख देना है। तो वो कुछ तो शर्मायेंगी, झिझकेंगी और मेरा काम होगा उसे पटाना, तैयार करना और वो लाख ना ना करे उसे कच्ची कली से फूल बना देना। मैंने कसकर उनके मुँह में जीभ ठेल रखी थी।

कुछ देर की ना-नुकुर के बाद उनकी जीभ ने भी रिस्पोंड करना शुरू कर दिया। अब हल्के से मेरी जीभ के साथ खिलवाड़ कर रही थी। उनके रसीले होंठ भी अब मेरे होंठों को धीरे-धीरे कभी चूम लेते। लेकिन मैं ऐसे छोड़ने वाला थोड़े ही था। मेरे हाथ जो अब तक उनके सिर को पकड़े थे अब उनके उभारों की ओर बढ़े और बजाय कसकर रगड़ने मसलने के एक हाथ से मैंने उनके जवानी के फूलों को हल्के-हल्के सहलाना शुरू किया।

जैसे कोई भौंरा कभी फूल पे बैठे तो कभी हट जाय, मेरी उंगलियां भी यही कर रही थी।

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दूसरे हाथ की उंगलियां उनके जोबन के बेस पे पहले बहुत हल्के-हल्के सहलाती रही फिर जैसे कोई शिखर पे सम्हल-सम्हल के चढ़े वो उनके निपल तक बढ़ गईं। उनका पूरा शरीर उत्तेजना से गनगना रहा था।

भाभी- “नहीं नहीं। छोड़ो ना। फिर कभी आज नही…”

लेकिन मैंने गालों को छोड़ा नहीं। हल्के से उसी जगह पे फिर किस किया और उनके सपनों से लदी पलकों की ओर बढ़ चला।

भाभी बुदबुदा रही थी- “उन्न्। हो तो गया प्लीज…”

लेकिन मैं नहीं सुनने वाला था। मेरे होंठ अब उनके होंठों को छोड़कर रसीले गालों का मजा ले रहे थे। मैंने पहले तो हल्के से किस किया फिर धीरे से। बहुत धीरे से काट लिया।

भाभी- “नहीं नहीं। प्लीज कोई देख लेगा। निशान पड़ जाएगा। मेरी सहेलियां क्या कहेंगी? वैसे ही सब इत्ता चिढ़ाती हैं। छोड़ो ना। हो तो गया…”

उनकी आवाज में उस किशोरी की घबराहट, डर, लेकिन इच्छा भी थी।एकदम गुड्डी की तरह

लेकिन मैंने गालों को छोड़ा नहीं। हल्के से उसी जगह पे फिर किस किया और उनके सपनों से लदी पलकों की ओर बढ़ चला।

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एक बार मैंने जैसे कोई सुबह की हवा किसी कली को हल्के से छेड़े। बस उसी तरह बड़ी-बड़ी आँखों को छू भर दिया। और फिर एक जोरदार चुम्बन से उन शर्माती लजाती पलकों को बंद कर दिया, जिससे मैं अब मन भर उसकी देह का रस लूट सकूँ।

मेरे होंठ उनके कानों की ओर पहुँच गए थे और मेरी जीभ का कोना उनके कान में सुरसुरी कर रहा था, जैसे ना जाने कब की प्रेम कहानियां सुना रहा हो। मेरे होंठों ने उनके इअर-लोबस पे एक हल्की सी किस्सी ली और वो सिहर सी गईं।

उनके दोनों गदराये रस भरे जोबन मेरे हाथों की गिरफ्त में थे। एक हाथ उसे बस हल्के-हल्के सहलाकर रस लूट रहा था और दूसरा बस धीरे-धीरे दबा रहा था। मैं भी बस उन्हें अपनी प्यारी सोन चिरैया ही मान रहा था, जिसका जोबन सुख मैं पहली बार खुलकर लूट रहा होऊं। एक हाथ की उंगलियां टहलते-टहलते धीरे-धीरे उनके यौवन शिखरों की ओर बढ़ रही थी और बस निपल के पास पहुँचकर ठिठक के रुक गईं।

मेरे होंठों ने उनके कानों को एक बार फिर से किस किया, हल्के से पूछा-

“उन उभारों का रस चूस सकता हूँ?”

भाभी बस कुछ बुदबुदा सी उठी और मैंने इसे इजाजत मान लिया।

एक निपल मेरे उंगलियों के बीच में था। मैं उसे हल्के-हल्के दबा रहा था, घुमा रहा था।

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दोनों जोबन मारे जोश के पत्थर हो रहे थे। मेरे होंठों ने बस उनके उभार के निचले हिस्से पे एक छोटी सी किस्सी ली। पत्ते की तरह उनकी देह काँप गईं लेकिन मैं रुका नहीं। मेरे होंठ हल्के चुम्बन के पग धरते निपल के किनारे तक पहुँच गए। जीभ से मैंने बस निपल के बेस को छुआ। वो उत्तेजना से एकदम कड़ा हो गया था।

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मैं जान रहा था की वो सोच रही थी की अब मैं उसे गप्प कर लूंगा। लेकिन मुझे भी तड़पाना आता था। जीभ की टिप से मैं बस उसे छू रहा था। छेड़ रहा था।

भाभी- ( एकदम गुड्डी की आवाज में गुड्डी की तरह ही ) “छोड़ो ना प्लीज। क्या कैसा हो रहा है। क्या करते हो। तुम बहुत बदमाश हो। नहीं। न न। बस वहां नहीं…”

वो सिसक रही थी। उनकी देह इधर-उधर हो रही थी बिलकुल किसी किशोरी की तरह।

मेरी भी आँखें अपने आप मुंद चली थी और मुझे भी लग रहा था की मेरे साथ चन्दा भाभी नहीं वो मेरे दिल की चोर, वो किशोरी सारंग नयनी है। मैंने जीभ से एक बार इसके उत्तेजित निपल को ऊपर से नीचे तक लिक किया और फिर उसके कानों के पास होंठ लगाकर हल्के से बोला-

“हे सुन। मेरा मन कर रहा है। तुम्हारे इन जवानी के फूलों का रस लेने का। मेरे होंठ बहुत प्यासे हैं। तुम्हारे ये रस कूप। तुम्हारे ये। …”

“ले तो रहे हो। और क्या?” हल्के से वो बुदबुदायीं।

मैंने बोला- “नहीं मेरा मन कर रहा है और कसकर इन उभारों को कस-कसकर…”

साथ-साथ मैं अब कसकर मेरे हाथ उसके सीने को दबा रहे थे। वो शुरू की झिझक जैसे खतम हो जाए। एक हाथ अब कसकर उसके निपल को फ्लिक कर रहा था।

भाभी चुप रही। लेकिन उसकी देह से लग रहा था की उसे भी मजा मिल रहा है।

मैं- “हे प्लीज किस कर लूं तुम्हारे इन रसीले उभारों पे बोलो ना?”

चन्दा भाभी मेरे कान में फुसफुसायीं-

“लाला अरे अब उसे चूची बोलना शुरू करो नहीं तो वो भी शर्माती ही रह जायेगी…”

मैं समझ गया। मैंने दोनों हाथों से अब कस-कसकर उसके जोबन को मसलना शुरू कर दिया और फिर उसके कान में बोला- “सुनो ना। एक बार तुम्हारे रसीले जोबन को किस कर लूं। बस एक बार इन। इन चूचियों का रसपान करा दो ना…”
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अबकी उसने जोर से जवाब दिया- “क्या बोलते हो। कैसे बोलते हो प्लीज। ऐसे नहीं। मुझे शर्म आती है…”

मुझे मेरा सिगनल मिल गया था। अब मेरे होंठ सीधे उसके निपल पे थे। पहले मैंने एक हल्के से किस किया फिर उसे मुँह में भरकर हल्के-हल्के चूसने लगा। वो सिसक रही थी उसके चूतड़ पलंग पे रगड़ रहे थे।

दूसरा निपल मेरी उंगलियों के बीच था।
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मैंने हाथ को नीचे उसकी जाँघों की ओर किया। वो दोनों जांघें कसकर सिकोड़े हुए थी। हाथ से वो मेरी जांघ पे रखे हाथ को हटाने की भी कोशिश कर रही थी। लेकिन मेरी उंगलियां भी कम नहीं थी। घुटने से ऊपर एकदम जाँघों के ऊपर तक। हल्के-हल्के बार-बार।

भाभी ने दूसरे हाथ से मुझे नीचे छुआ तो मैं इशारा समझ गया। मेरे तन्नाया लिंग भी बार-बार उनकी जाँघों से रगड़ रहा था। मैंने उनके दायें हाथ में उसे पकड़ा दिया। उन्होंने हाथ हटा लिया जैसे कोई अंगारा छू लिया हो। लेकिन मैंने मजबूती से फिर अपने हाथ से उनके हाथ को पकड़कर रखा और कसकर मुट्ठी बंधवा दी।

अबकी भाभी ने नहीं छोड़ा।

थोड़े देर में ही उनकी उंगलियां उसे हल्के-हल्के दबाने लगी।

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मेरा दूसरा हाथ उनकी जांघों को प्यार से सहला रहा था। एक बार वो ऊपर आया तो सीधे मैंने उनकी योनि गुफा के पास हल्के से दबा दिया। जांघें जो कसकर सिकुड़ी हुई थी अब हल्के से खुली। मैं तो इसी मौके के इंतजार में था। मैंने झट से अपना हाथ अन्दर घुसा दिया।

और अबकी जो जांघें सिकुड़ी तो मेरी हथेली सीधे योनि के ऊपर।

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वो अब अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ वहां से हटाने की कोशिश में थी लेकिन ये कहाँ होने वाला था।

“हे छोड़ो ना। वहां से हाथ हटाओ प्लीज। बात मानो। वहां नहीं…” वो बोल रही थी।

“कहाँ से हाथ हटाऊं। साफ-साफ बोलो ना…” मैं छेड़ रहा था साथ में अब योनि के ऊपर का हाथ हल्के-हल्के उसे दबाने लगा था।
जाँघों की पकड़ अब हल्की हो रही थी। और मेरे हाथ का दबाव मजबूत। हाथ अब नीचे दबाने के साथ हल्के-हल्के सहलाने भी लगा था, और वो हालाँकि हल्की गीली हो रही थी। उसका असर पूरे देह पे दिख रहा था। देह हल्के-हल्के काँप रही थी। आँखें बंद थी। रह-रहकर वो सिसकियां भर रही थी। मेरी भी आँखें मुंदी हुई थी। मुझे बस ये लग रहा था की ये मेरी और ‘उसकी’ मिलन की पहली रात है। मेरे होंठ अब कस-कसकर उसके निपल को चूस रहे थे। मैं जैसे किसी बच्चे को मिठाई मिल जाए बस उस तरह से कभी किस करता, कभी चाट लेता, कभी चूस लेता।
 
[color=rgb(243,]देह का फागुन [/color]

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“कहाँ से हाथ हटाऊं। साफ-साफ बोलो ना…”

मैं छेड़ रहा था साथ में अब योनि के ऊपर का हाथ हल्के-हल्के उसे दबाने लगा था।

चंदा भाभी एकदम गुड्डी का रोल प्ले कर रही थीं, एक शर्माती झिझकती किशोरी जो यौवन दान को तैयार तो बैठी हो लेकिन लज्जा अभी भी उसका हाथ पकड़ के खींच रही हो। कभी आँखे बंद कर ले रही हो तो कभी आधी खुली नीम निगाहों से देख रही

जाँघों की पकड़ अब हल्की हो रही थी। और मेरे हाथ का दबाव मजबूत। हाथ अब नीचे दबाने के साथ हल्के-हल्के सहलाने भी लगा था, और वो हालाँकि हल्की गीली हो रही थी। उसका असर पूरे देह पे दिख रहा था। देह हल्के-हल्के काँप रही थी। आँखें बंद थी। रह-रहकर वो सिसकियां भर रही थी।

मेरी भी आँखें मुंदी हुई थी। मुझे बस ये लग रहा था की ये मेरी और ‘उसकी’ मिलन की पहली रात है। मेरे होंठ अब कस-कसकर उसके निपल को चूस रहे थे। मैं जैसे किसी बच्चे को मिठाई मिल जाए बस उस तरह से कभी किस करता, कभी चाट लेता, कभी चूस लेता।
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एक हाथ निपल को फ्लिक कर रहा था, पुल कर रहा था, और दूसरा उसकी योनि को अब खुलकर रगड़ रहा था, और इस तिहरे हमले का जो असर होना था वही हुआ। जांघों की पकड़ अब एकदम ढीली हो गई थी। देह ने पूरी तरह सरेंडर कर दिया था और मौके का फायदा उठाकर मैंने एक घुटना उसकी टांगों के बीच घुसेड़ दिया।

उसे शायद इस बात का अहसास हो गया था इसलिए फिर से अपनी टांगों को सिकोड़ने की कोशिश की।

लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। सेंध लग चुकी थी। मेरे हाथों ने जोर लगाकर अब एक टांग को और थोड़ा फैला दिया और अब मेरे दोनों पैर उसके पैरों के बीच घुस चुके थे। मैंने धीरे-धीरे पैर फैलाए और अब दोनों जांघें अपने आप खुल गईं।

मेरा एक हाथ वापस प्रेम द्वार पे पहुँच गया था।
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लेकिन अब सीधे उसकी काम सुरंग के बाहर, दोनों पुत्तियों पे मेरा अंगूठा और तर्जनी थी। मैंने पहले उसे हल्के से दबाया और फिर धीरे-धीरे रगड़ने लगा। वो अब अच्छी तरह गीली हो रही थी। मैंने एक उंगली अब लिटाकर दोनों पुत्तियों के बीच डाल दी, और साथ-साथ रगड़ने लगा। मेरा अंगूठा और तरजनी बाहर से और बीच की उंगली अन्दर रगड़ घिस कर रही थी।

सिसकियों की आवाजें अब तेज हो गई थी।

नितम्ब भी अपने आप ऊपर-नीचे होने लगे थे। मेरे होंठ अब बारी-बारी से दोनों निपलों को चूसते थे, कभी फ्लिक कर लेते थे। साथ में जुबान भी पूरी तरह उत्तेजित खड़े इंच भर लम्बे निपलों को निचे से ऊपर तक तेजी से चाट रही थी। जितनी तेजी से नीचे योनि के अन्दर और बाहर मेरी उंगलियां रगड़ती, उसी तेजी से जीभ निपल चाटती।
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भाभी के होंठ सूख रहे थे। जोबन पत्थर हो गए थे। योनि की पुत्तियां काँप रही थी और वो अच्छी तरह गीली हो गईं।

मेरे होंठों ने जोबन को छोड़कर नीचे का रास्ता पकड़ा।

पहले उनके केले के पत्ते ऐसे चिकने पेट पे चुम्बनों की बारिश की और फिर जीभ की टिप उनकी गहरी नाभि में गोल-गोल चक्कर लगाने लगी।
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साथ ही मेरी बीच वाली उंगली अब पहली बार उनकी योनि में घुसी।

मैंने बस हल्के से दबाया, बिना घुसेड़ने की कोशिश किये।

चन्दा भाभी ने इत्ती कसकर सिकोड़ रखा था की किसी किशोरी कच्ची कली की ही अनछुई प्रेम गुफा लग रही थी। थोड़ी देर में टिप बल्की टिप का भी आधा घुस पाया। वह इत्ती गीली हो रही थी की अब मुझे रोकना उनके बस में ही नहीं था। पहले मैंने हल्के-हल्के अन्दर-बाहर किया और फिर गोल-गोल घुमाने लगा।

भाभी ने मुझे समझा दिया था की मजे की सारी जगह यहीं होती है।
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उंगली के साथ अंगूठे ने अब ऊपर कुछ ढूँढ़ना शुरू किया और जैसे ही उसने क्लिट को छुआ, तो भाभी को लगा की कोई करेंट लग गया हो और उन्होंने झटके से अपने भारी भारी 38” इंच साइज वाले चूतड़ ऊपर उछाले, और ओह्ह… ओह्ह्ह… उनके मुँह से आवाज निकली।

साथ ही मेरी उंगली अब एक पोर से ज्यादा अन्दर घुस गई।

होंठ अब नाभि से बाहर निकलकर उनकी काली घुंघराली केसर क्यारी तक आ पहुँचे थे। वो सोच रही थी की शायद अब मैं ‘नीचे’ चुम्बन लूंगा। लेकिन मैं भी। उन्होंने मुझे बहुत सताया था।

उन्होंने उसके चारों और किस किया और नीचे उतर आये, जांघों के एकदम ऊपरी भाग पे, कभी मैं किस करता, कभी चाटता।

साथ में मेरी मझली उंगली अब कभी तेजी से अन्दर होती, कभी बाहर, कभी गोल-गोल रगड़ती। और अंगूठा भी अब वो क्लिट को प्रेस नहीं कर रहा था बल्की कभी फ्लिक करता कभी पुल करता।

मस्ती के मारे भाभी की हालत खराब थी।

एक पल के लिए मैंने उन्हें छोड़ा और झट से एक मोटी बड़ी तकिया उनके चूतड़ों के नीचे लगाई और कसकर दोनों हाथों से उनकी जांघें पूरी तरह फैला दी, तो अब मेरे प्यासे होंठ सीधे उनकी योनि पे थे।

पहले तो मेरे होंठ उनके निचले होंठों से मिले। हल्की सी किस।

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फिर एक जोरदार किस और थोड़ी ही देर में मेरे होंठ कस-कसकर चूम रहे थे, चाट रहे थे।

योनि और पिछवाड़े वाले छेद के बीच की जगह से शुरू करके एकदम ऊपर तक कभी छोटे-छोटे और कभी कसकर चुम्बन। फिर थोड़ी देर में मेरी जुबान भी चालू हो गई। उसे पहली बार चूत चाटने का स्वाद मिला था। क्या मस्त स्वाद था। अन्दर से खारे कसैले अमृत का स्वाद। लालची जीभ रस चाटते-चाटते अमृत कूप में घुस गई।

भाभी- “उह्ह्ह… आह्ह्ह… ओह्ह… ओह्ह्ह… नहीं यीईई…” की सिसकियों, आवाजों से अब कमरा गूँज रहा था।

लेकिन मेरी जीभ किसी लिंग से कम नहीं थी। वो कभी अन्दर घुसती, कभी बाहर आती, कभी गोल-गोल घूमती, साथ-साथ मेरे होंठ कस-कसकर उनकी चूत को चूस रहे थे जैसे कोई रसीले आम की फांक को चूसे और रस से उसका चेहरा तरबतर हो जाए, लेकिन वो बेपरवाह मजे लेता रहे, चूसता रहे।
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तभी मुझे भाभी की वार्निंग याद आई- “अगर तुम पहले झड़े तो ‘वो’ भी नहीं मिलेगी…”

ये मौका अच्छा था।

मेरे अंगूठे और तरजनी ने एक साथ उनकी क्लिट को धर दबोचा। मस्ती के मारे वो कड़ी हो रही थी। उसका मटर के दाने ऐसा मुँह खुल गया था। कभी मैं उसे गोल-गोल घुमाता, कभी दबा देता, जुबान होंठों और उंगली के इस तिहरे हमले से। भाभी की आँखें मुंदी हुई थी। वो बार-बार चूतड़ उचका रही थी।

चार-पाँच मिनट में लगातार और बार-बार लगता की भाभी अब झड़ी तब झड़ी।

लेकिन तभी मुझे कुछ याद आया। मेरा तन्नाया जोश में पागल मूसल अन्दर घुसने के लिए बेताब था। वो बार-बार भाभी की जाँघों से टकरा रहा था। भाभी तो आज ‘उसकी’ तरह हैं और मुझे, तो बिना चिकनाहटकर एक कच्ची कली के प्रेम कपाट कैसे खुलते ?

बगल में सरसों के तेल की शीशी रखी थी जिससे अभी थोड़ी देर पहले भाभी ने इस्तेमाल किया था।

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मैंने हथेली में तेल लेकर अच्छी तरह पहले सुपाड़े पे फिर पूरे लण्ड पे मला। वो चिकना होकर खड़ा चमक रहा था। भाभी सोच रही थी की अब मैं ‘उसे’ लगाऊँगा। लेकीन मैं भी।

मैंने एक बार फिर कसकर चूत चूसना शुरू किया।

मेरे दोनों होठों के बीच उनके निचले होंठ थे। होंठ चूस रहे थे और जुबान बार-बार अन्दर-बाहर हो रही थी। साथ में मेरी उंगलियां बिना रुके उनके क्लिट को।

थोड़ी देर में भाभी के नितम्ब जोरों से ऊपर-नीचे होने लगे, वो फिर से झड़ने के कगार पे पहुँच गई थी लेकिन मैं रुक गया। मैंने अपने उत्थित लिंग को उनकी चूत के मुंहाने पे, क्लिट पे बार-बार रगड़ा।

भाभी खुद अपनी टांगें फैला रही थी। जैसे कह रही हों- “घुसाते क्यों नहीं। अब मत तड़पाओ…”

लेकिन थोड़ी देर में फिर मैंने उसे हटा लिया, और अबकी जो मेरे होंठों ने चूतरस का पान करना शुरू किया तो। बिना रुके। लेकिन थोड़ी ही देर में मेरे होंठ पहली बार उनके क्लिट पे थे। पहले तो मैंने सिर्फ जीभ की टिप वहां पे लगाई फिर होंठों के बीच लेकर हल्के-हल्के चूसना शुरू किया।

भाभी जैसे पागल हो गई थी-

ओह्ह्ह… अंहं्ह। अह्ह्ह… अह्ह्ह… चूतड़ उठाती मुझे अपनी ओर खींचती। अबकी वो कगार पे आई तो मैं रुका नहीं। मैंने हल्के से उनकी क्लिट पे काट लिया फिर तो। मैंने उनकी दोनों टांगें अपने कंधे पे रख ली। जांघें पूरी तरह फैली हुई।
 
[color=rgb(85,]देवर बना खिलाड़ी
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मैंने हथेली में तेल लेकर अच्छी तरह पहले सुपाड़े पे फिर पूरे लण्ड पे मला। वो चिकना होकर खड़ा चमक रहा था। भाभी सोच रही थी की अब मैं ‘उसे’ लगाऊँगा।

लेकीन मैं भी।

मैंने एक बार फिर कसकर चूत चूसना शुरू किया। मेरे दोनों होठों के बीच उनके निचले होंठ थे। होंठ चूस रहे थे और जुबान बार-बार अन्दर-बाहर हो रही थी।

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साथ में मेरी उंगलियां बिना रुके उनके क्लिट को। थोड़ी देर में भाभी के नितम्ब जोरों से ऊपर-नीचे होने लगे, वो फिर से झड़ने के कगार पे पहुँच गई थी लेकिन मैं रुक गया। मैंने अपने उत्थित लिंग को उनकी चूत के मुंहाने पे, क्लिट पे बार-बार रगड़ा।

भाभी खुद अपनी टांगें फैला रही थी। जैसे कह रही हों- “घुसाते क्यों नहीं। अब मत तड़पाओ…”

लेकिन थोड़ी देर में फिर मैंने उसे हटा लिया, और अबकी जो मेरे होंठों ने चूतरस का पान करना शुरू किया तो। बिना रुके। लेकिन थोड़ी ही देर में मेरे होंठ पहली बार उनके क्लिट पे थे।

पहले तो मैंने सिर्फ जीभ की टिप वहां पे लगाई फिर होंठों के बीच लेकर हल्के-हल्के चूसना शुरू किया।
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भाभी जैसे पागल हो गई थी- ओह्ह्ह… अंहं्ह। अह्ह्ह… अह्ह्ह… चूतड़ उठाती मुझे अपनी ओर खींचती। अबकी वो कगार पे आई तो मैं रुका नहीं।

मैंने हल्के से उनकी क्लिट पे काट लिया फिर तो। मैंने उनकी दोनों टांगें अपने कंधे पे रख ली। जांघें पूरी तरह फैली हुई। दोनों अंगूठों से मैंने उनकी योनि के छेद को फैलाकर अपने लिंग को सटाया और फिर कमर पकड़कर एक जोरदार धक्का पूरी ताकत से।

उनकी चूत अभी भी एक कच्ची कली की तरह कसी थी। उन्होंने ऐसे सिकोड़ रखा था।

लेकिन अब वो इत्ती गीली थी, और जैसे ही मेरा लिंग अन्दर घुसा, भाभी ने झड़ना शुरू कर दिया। लेकिन बिना रुके कमर पकड़कर मैंने दो-तीन धक्के और लगाए। आधा से ज्यादा अब मेरा लण्ड उनकी चूत में था। एक पल के लिए मैं रुक गया।

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उनका चेहरा एकदम फ्ल्श्ड लग रहा था। हल्की सी थकान। लेकिन एक अजीब खुशी। उनके निपल तन्नाये खड़े थे।

मैं एक पल को ठहरा। मैंने हल्के-हल्के चुम्बन उनके चेहरे पे। फिर होंठों पे। और जब तक मेरे होंठ उनके उरोजों तक पहुँचें। भाभी ने मुझे कसकर अपनी बाहों में भींच लिया था। उनकी लम्बी टांगें लता बनकर मेरी पीठ पे मुझे उनके अन्दर खींच रही थी।

लेकिन बस मैं हल्के-हल्के निपल पे किस करता रहा।

उन्होंने अपनी आँखें खोल दी और मुझे देखकर मुश्कुरायी।

मतलब मैं इम्तहान में पास हो गया था। रोल प्ले ख़तम.

अब वह वापस चंदा भाभी के रूप में थी और मैं उनके देवर के रूप में।
मैं भी मुश्कुराया और उसी के साथ उनके उरोजों को कसकर पकड़कर मैंने पूरी ताकत से एक धक्का मारा, उईई, उनके होंठों से सिसकारी निकल गई। मैं कस-कसकर जोबन मसल रहा था, साथ में धक्के मार रहा था। दो-तीन धक्कों में मेरा पूरा लण्ड अन्दर था। दो पल के लिए मैं रुका।

फिर मैंने सूत-सूत करके उसे बाहर खींचा। सिर्फ सुपाड़ा जब अन्दर रह गया तो मैं रुक गया।

मैं भाभी के चेहरे की ओर देख रहा था। वो इत्ती खुश लग रही थी कि बस। और फिर बाँध टूट गया। उन्होंने नीचे से कस-कसकर धक्के लगाने शुरू कर दिए। उनकी बाहों का पाश और तगड़ा हो गया। भाभी अब अपने रूप में आ गई थी, और मेरी उस किशोरी सारंग नयनी के रूप से बाहर आ गई थी।

जैसा उन्होंने सिखाया था उनकी पूरी देह। सब कुछ।
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हाथ, नाखून, उंगलियां, उरोज, जुबान और सबसे बढ़कर उनकी मस्त गालियां।

उनके लम्बे नाखून मेरी पीठ में चुभ रहे थे। वो कस-कसकर अपनी बड़ी-बड़ी गदराई चूचियां मेरी छाती में रगड़ रही थी। उनके बड़े-बड़े नितम्ब खूब उचक-उचक के मेरे हर धक्के का जवाब दे रहे थे।

भाभी- “बतलाती हूँ साले अब। ये कोई तुम्हारे मायके वाले माल की तरह कुँवारी कली नहीं है। हचक-हचक के चोदो ना। देवरजी। देखती हूँ कितनी ताकत है तुममें। बहनचोद। बहना के भंड़ुये…”

जवाब में मैं भी,

मैंने उनके पैर मोड़कर दुहरे कर दिए और लण्ड आलमोस्ट बाहर निकाल लिया। फिर जांघें एकदम सटाकर अपने पैरों के बीच दबाकर जब हचक के एक बार में अपना मोटा 8” इंच का लण्ड पेला तो भाभी की चीख निकल गई। वो एकदम रगड़ते घिसटते हुए अन्दर घुसा। लेकिन मैंने अपने पैरों का जोर कम नहीं किया। इनकी जांघें मेरे पैरों के बीच सिमटी हुई थी।
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भाभी- “साले बहनचोद तेरी सारी बहनों की बुर में गदहे का लण्ड। साले क्या तेरे मायके वालियों की तरह भोंसड़ा है क्या जो ऐसे पेल रहे हो?”

और उन्होंने भी कसकर एक बार एक हाथ के नाखून मेरी पीठ में और दूसरा मेरी छाती पे सीधे मेरे टिट्स पे। उनकी बुर ने कस-कसकर मेरे लण्ड को अन्दर निचोड़ना शुरू कर दिया।

मुझे लगा की मैं अब गया तब गया। मैंने कहीं पढ़ा था की अगर ध्यान कहीं बटा दो तो झड़ना कुछ देर के लिए टल जाता है। और मैंने मन ही मन गिनती गिननी शुरू दी।

लेकिन भाभी भी नवल नागर थी-

“हे देवरजी ये फाउल है। कल की छोकरियों के साथ ये चलेगा मेरे साथ नहीं…” और उन्होंने कसकर मेरा गाल काट लिया।
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मैं बोला “चलो भाभी आप भी ये फागुन याद करोगी…” और मैंने जोर-जोर से लण्ड पूरा बाहर निकालकर धक्के मारने शुरू कर दिए। साथ में तिहरा हमला भी। मेरा एक हाथ उनके निपल के साथ खेल रहा था और दूसरा उनके क्लिट को कस-कसकर रगड़, मसल रहा था, साथ में मेरे होंठ उनकी चूचियों को, निपल को कस-कसकर चूस रहे थे।

भाभी सिसक रही थी, काँप रही थीं, उनकी देह तूफ़ान में पत्ते की तरह थी, प्रेम गली बार बार सिकुड़ रही थी। वो बोलीं

“हाँ ओह्ह… आह्ह… मान गए अरे देवरजी। ओह्ह्ह… बहुत दिन बाद। क्या करते हो। हाँ और जोर से करो। नहीं,... निकाल लो,.... लगता है। ओह्ह्ह…”
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कुछ देर बाद मैंने भाभी के दोनों हाथों को अपने एक हाथ से पकड़कर उनके सिर के पास दबा दिया। जिस तरह से वो अपने नाखूनों से मेरे टिट्स को खरोंच रही थी, वो तो रुका और अब जब मेरा लण्ड अन्दर घुसा तो पूरी देह का जोर देकर मैंने बिना आगे-पीछे किये उसे वहीं दबाना शुरू किया।

कभी मैं गोल-गोल घुमा देता, जिससे भाभी की क्लिट मेरे लण्ड के बेस से खूब कस-कसकर रगड़ खा रही थी।

होंठ कभी उनके गालों, कभी होंठों और कभी रसीली चूचियों का रस लूट रहे थे।

“ओह्ह्ह… आह्ह्ह…”

थोड़ी देर में भाभी फिर कगार पे पहुँच गईं। वो बार-बार नीचे से अपने चूतड़ उठाती, लेकिन मैं लण्ड पूरी तरह घुसाए हुए दबाये रहता। लेकिन अब मुझसे भी नहीं रहा जा रहा था। एक बार फिर से मैंने उनकी गोरी लम्बी टांगों को अपने कंधे पे रखा और हचक-हचक के।
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भाभी भी कभी गोल-गोल चूतड़ घुमाती कभी जोर-जोर से मेरे धक्के का जवाब देती तो कभी गाली से-

“साले हरामजादे। कहाँ से सीखा है। रंडियों के घर से हो क्या? ओह्ह… आह्ह…”

जवाब में मैं भी कच-कचा के कभी उनके होंठ, कभी निपल काट लेता।

चन्दा भाभी ने झड़ना शुरू किया। लग रहा था कोई तूफान आ गया। हम दोनों के बदन एक दूसरे में गुथे हुए थे। सिर्फ सिसकियां सुनाई दे रही थी। साथ में मैं भी। भाभी की चूत भी,... जैसे कोई ग्वाला गाय का थन दुहता है।

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बस उसी तरह कभी सिकुड़ती, कभी दबोचती। मेरे लण्ड को जैसे दुह रह थी और मैं गिर रहा था, पता नहीं कब तक

हम दोनों थके थे। एक दूसरे को कस के बाँहों में भींचे, बाहर चांदनी, पलाश और रात झर रही थी,
 
[color=rgb(251,]झरती चांदनी[/color]

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हम दोनों थके थे। एक दूसरे को कस के बाँहों में भींचे, बाहर चांदनी, पलाश और रात झर रही थी,

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" तोहरे भैया के बियाहे में गुड्डी क महतारी पूछी थीं न गुड्डी से बियाह करोगे "

वो यादें, मेरा तन मन फागुन हो गया। बियाह तो उसी पल घड़ी हो गया था, जब उस सारंग नयनी ने भाभी के बीड़े के बाद बीड़ा मारा, सीधे मेरे सीने पे, ... जिंदगी में मिठास उसी दिन घुल गयी थी जब जनवासे में मेरे दांत देखने के बहाने पूरा बड़ा सा रसगुल्ला उसने एक बार में खिला दिया था , और उसकी वो खील बताशे वाली हंसी,...

मैं कुछ बोलता, उसके पहले भौजी ने अपनी मीठी मीठी ऊँगली मेरे होंठ पर रख दी और चुप कराते हुए पूछा,

" अबकी होलिका देवी का आशीर्वाद, तोहरे राशिफल में भी लिखा है तो का पता,... तो मान लो तोहार किस्मत,... बियाह हो ही जाए, तो दहेज में का मांगोगे। "

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मेरे लिए तो उस लड़की का मिलना ही जिंदगी का सपना पूरा होना था,... जब तक मैं बस के पीछे लिखा, दुल्हन ही दहेज़ है, मैं दहेज़ के खिलाफ हूँ इत्यादि बोलता, मुंह खोलने की कोशिश करता, चंदा भाभी ने मुंह बंद करा दिया।

'" बहुत बोलते हो , सब मर्दो में यही एक बुरी आदत है बोलते ज्यादा हैं सुनते कम हैं। "

और चुप कराने के लिए अपनी दायीं चूँची भौजी ने मेरे मुंह में डाल दी बल्कि पेल दी, और बोलना शुरू कर दिया

" दहेज़ तो जरूर मांगना, और मैं बताती हूँ क्या मांगना, गुड्डी क मम्मी और दोनों उसकी छोटी बहने। और गुड्डी क महतारी ये जो टनटनाया औजार ले के घूमते हो न , कोहबर में ही दोनों अपनी बड़ी बड़ी चूँची में दबा के एक पानी निकाल देंगी, ... "

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मेरी आँखों के सामने एक बार गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी की तस्वीर घूम गयी, दीर्घ स्तना, उन्नत उरोज, एकदम ब्लाउज फाड़ते, ब्लाउज के बाहर झांकते, चंदा भाभी से ही दो नंबर बड़े होंगे लेकिन वैसे ही कड़े कड़े,... सोच के फनफनाने लगता है।

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लेकिन लालची मन, मैंने भाभी के दूसरे उरोज को कस के मुट्ठी से दबा दिया और जब मुंह खुला तो मन की बात कह दी, ... " और भौजी पास पड़ोसन "

" ये पूछने की बात है, कल दिन में ही पता चल जाएगा, जब पास पड़ोसन रगड़ाई करेंगी। " भौजी ने हंस के जवाब दिया।

बाहों में लिपटे-लिपटे साइड में होकर हम वैसे ही सो गए। मेरा लिंग भाभी के अन्दर ही था।

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सुबह अभी नहीं हुई थी। रात का अन्धेरा बस छटा ही चाहता था।

कहीं कोई मुर्गा बोला और मेरी नींद खुल गई। हम उसी तरह से थे एक दूसरे की बाहों में लिपटे।

मेरा मुर्गा भी फिर से बोलने लगा था। मैंने भाभी को फिर से बाहों में भर लिया। बिना आँखें खोले उन्होंने अपनी टांग उठाकर मेरी टांग पे रख दी और अपने हाथ से ‘उसे’ अपने छेद पे सेट कर दिया। हम दोनों ने एक साथ पुश किया और वो अन्दर। उसी तरह साथ-साथ लेटे, साइड में। हल्के-हल्के धक्के के साथ।

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पता नहीं हम कब झड़े कब सोये।

हाँ एक बात और चंदा भाभी ने बता दिया की उनकी नथ कब कैसे उतरी किसने उतारी, एक दो बार तो उन्होंने नखड़ा किया लेकिन फिर हंस के बोली,

तेरी तरह इन्तजार नहीं किया मैंने,... तेरी उस ममेरी बहन से कम उमर थी, अच्छा पहले तीन तिरबाचा भरो की अपनी छुटकी बहिनिया को चोदोगे तो बताउंगी,,.... हाँ बोलने से काम नहीं चला, उसका स्कूल का नाम ले के बताना पड़ा रंजीता को,... तीन बार तीर्बाचा भरवाया, की उस की फाड़ूंगा,... तो बात उन्होंने शुरू की। और बात पता नहीं कैसे घूम फिर के गुड्डी की मझली बहिनिया पर पहुँच गयी तो भौजी बोलीं

" अरे मंझली से भी छोटी थी, जब मेरी चिड़िया उड़नी शुरू हो गयी थी और तुझे वो क्या गुड्डी भी अभी छोटी लगती है,... "
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पता नहीं कैसे मेरे मुंह से उनकी बेटी का नाम निकल गया, फिर लगा की नहीं बोलना चाहिए था पर बात तो निकल ही गयी, उन्होंने ही बोला था की उनकी बेटी भी मंझली की ही समौरिया है तो वही सोच के,...

" गुंजा से भी कच्ची उमर थी भौजी आप की "
मेर्री बात उन्होंने काट दी, उन्हें बात आगे बढ़ाने की जल्दी थी, " उससे पूरे छह महीने छोटी थी "

फिर उन्होंने हाल खुलासा बताया। एक उनके पड़ोस की बहन थीं, उसे ये दीदी बोलती थीं इनसे चार पांच साल बड़ी, ... न सगी न रिश्ते की बस मुंह बोली। पडोसी थीं लेकिन दोस्ती खूब थी, दीदी से भी उनकी भाभी से भी। गौना जाड़े में हुआ था दीदी का और गौने में ही जीजा, उन पे मोहा गए. पास के गाँव में ही शादी हुयी थी।

भौजी बोलीं बस उनके टिकोरे से ही आ रहे थे, लेकिन उनकी उस मुंहबोली दीदी वाले जीजा जब भी आते, महीने में दो चार चक्कर लग ही जाता, बस कभी पीछे से पकड़ के टिकोरे मसल देते, अपना खूंटा चूतड़ में रगड़ देते, और ये नहीं की अकेले पाके, ... दीदी होती तो उसके सामने, और वो चिढ़ातीं,

' नाप लो, पिछली बार से कुछ बड़े हुए की नहीं "

और भौजी तो और चिढ़ाती अपने नन्दोई को,

" गलती तो पाहुन की है ठीक से दबाते नहीं तो बढ़ेंगे कैसे, फिर ननद ननद में फरक करते हैं , एक का तो चोली खोल के खुल के रगड़ते मसलते हैं और दूसरी का फ्राक के ऊपर से बस हलके से नाम के लिए "

और दीदी और, बोलतीं भौजी से लेकिन उकसातीं अपने मरद को,

" भौजी सही है , आपके नन्दोई बहन बहन में फरक करते हैं मुझे भी अच्छा नहीं लगता। "

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फिर तो जीजू फ्राक के अंदर हाथ डाल के कस कस के कच्ची अमिया को, .... और जान बुझ के अपना टनटनाया खूंटा मेरे पिछवाड़े कस कस के रगड़ते, भले बीच में उनका पजामा मेरी फ्राक रहती लेकिन उसका कड़ापन, मोटाई,... मेरी देह सनसना जाती गुलाबो फड़कने लगतीं, मैं पनिया जाती। ऊपर से बोलती जीजू छोड़ न , लेकिन मन कतई नहीं होता की वो छोड़ें, पहली बार आ रहे जोबन पर किसी का हाथ पड़ा था.

भौजी मेरे मन की हाल अच्छी तरह समझती थीं खुद ही उनसे खुल के बोलतीं, ...

" अरे अब नेवान कर दो बबुनी का कब तक तड़पाओगे,... फिर खुद ही दिन घड़ी तय कर देतीं, ' अरे दो महीने में फागुन लग जाएगा, बस असली पिचकारी का रंग मेरी ननद को,... "

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और हुआ वही, होली के एक दिन पहले भौजी ने अपने घर बुला लिया, होली में काम तो बढ़ ही जाता है, फिर मैं सोच रही थी की जीजू तो होली के दिन आयंगे।

मैं और भौजी मिल के गुझिया बना रहे थे और भौजी ने पहले से बनी दो गुझिया खिला दी, मुझे क्या मालूम था उसमें डबल भांग की डोज पड़ी है,... बस थोड़ी देर में ही,...

और पता चला की दीदी जीजू तो सुबह ही आ गए थे, दीदी अपनी किसी सहेली के यहाँ गयीं हैं शाम तक लौटेंगी और जीजू सो रहे हैं,...

लेकिन घर में कच्ची उमर की साली हो, होली हो किस जीजू को नींद लगती है, मानुस गंध मानुस गंध करते वो उठे,...

होली रंग से शुरू हुयी अंग तक पहुंच गयी,

पहले चरर कर के फ्राक फटी फिर जाँघों के बीच की चुनमुनिया, ...

भौजी ने कस के मेरे दोनों हाथ पकड़ रखे थे, लेकिन एक बार जब जीजू का सुपाड़ा अंदर घुस गया तो उन्होंने हाथ छोड़ दिया और मुझसे बोलीं, " ननद रानी जोर जोर से चूतड़ पटको, चीखो चिल्लाओ, अब बिना चुदवाये बचत नहीं है "

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लेकिन जब झिल्ली फटने का टाइम आया, तो भौजी ने अपनी बड़ी बड़ी चूँची मेरे मुंह में ठेल दी, और अपने नन्दोई से बोलीं
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" अब पेलो कस के, अरे कच्ची कली है, उछले कूदेगी है है, बछिया के उछलने से का सांड़ छोड़ देता है , और रगड़ के पेलता है। "

झिल्ली फटनी थी फटी,दर्द होना था हुआ, लेकिन जीजू ने खूब हचक के चोदा। और भौजी और उन्हें चढ़ा रही थीं।

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और मुझसे उठा नहीं जा रहा था, भौजी और जीजू ने मिल के किसी तरह बिठाया। हम लोग बस ऐसे बैठे ही थी की दीदी आगयीं।
बात काट के मैं बोला, " वो तो बहुत गुस्सा हुयी होंगी उन्हें अगर पता चल गया होगा "

चंदा भाभी बोलीं, एकदम बहुत गुस्सा हुईं जीजू पर बहुत चिल्लाईं और मैं भी सहम गयी।

उसके बाद भाभी खूब देर तक खिलखिलाती रही फिर बोलीं अरे हाल तो पता चलना ही था, मेरी फ्राक फटी थी, जाँघों के बीच मलाई लगी थी, लेकिन जानते हो दी गुस्सा क्यों हो रही थीं,...

उनके आने का इन्तजार क्यों नहीं किया, उनके सामने मेरी लेनी चाहिए थी और दो बातों पर वो राजी हुयी, मैं जब जीजू की ओर से बोलने लगी तो वो बोलीं,

" चलों अब मेरे सामने फिर से करो, और जैसे मैं कहूं, मेरी छोटी बहिन के साथ मजा लिया और मुझे देखने को भी नहीं मिला, ... ऐसे नहीं निहुरा के हां "

और वहीँ आँगन में निहुरा के कुतिया बना के जीजू ने फिर से मुझे दीदी और भौजी के सामने चोदा ,

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और भौजी से ज्यादा दीदी मुझे चिढ़ा रही थीं,

" क्यों पूछती थीं न जीजू के साथ कैसा लगता है अब खुद देख ले,... कैसे जोर के धक्के लगते हैं,... आ रहा है न मजा "
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और कभी जोर से फिर जीजू को हड़काती, " मेरी बहिनिया की अभी कच्ची अमिया है तो क्या इत्ते हलके हलके मसलोगे,... सब ताकत क्या मेरी ननदों के लिए बी बचा रखी है, ... "

लेकिन एक बात समझ लो असली मजा नयी लड़की को दूसरी चुदाई में ही आता है। मैं समझ गयी क्यों सब लड़कियां इस के चक्कर में पड़ी रहती हैं।

डेढ़ घंटे में दो बार मैं चुदी। बाद में दी ने जीजू से दूसरी शर्त बतायी, और अब ये मेरी बहन आपको रंग लगाएगी पूरे पांच कोट रंग आज भी कल भी और चुपचाप बिना उछले कूदे लगवा लीजियेगा, ...

ये बात दी ने एकदम मेरे मन की कही थी, ये बात सोच के ही मैं परेशान हो रही थी, जीजू को रंग कैसे लगाउंगी, एक तो लम्बे हैं उचक के बच जाएंगे मेरा हाथ ही नहीं पहुंचेगा, दूसरे तगड़े भी बहुत हैं पकड़ भी जकड़ने वाली, एक बार मेरी कलाई पकड़ ली,... मैं खूब खुश लेकिन लालची बचपन की,... मैंने दीदी से कहा ,

पांच कोट रंग के बाद एक बाद एक कोट पेण्ट की भी,...

" एकदम पेण्ट तो बहुत जरूरी है, एक ओर सफ़ेद , एक ओर कालिख पक्की वाली " हँसते हुए दी ने मेरी बात में और जोड़ा फिर कहा ये तेरे जीजू ही आज जा के सब पेण्ट रंग लाएंगे तेरे साथ, ... "

पर जीजू एक बदमाश, और जीजू कौन जो बदमाश न हो और साली सलहज को तो बदमाश वाले ही अच्छे लगते हैं। जितने ज्यादा बदमाश हो उत्ते ज्यादा अच्छे। जीजू बोले, " मंजूर मैं चुप चाप लगवा लूंगा लेकिन ये मेरी साली जित्ती बार रंग लगाएगी, उत्ती बार मैं उसे सफ़ेद रंग लगाऊंगा, फिर ये न भागे। ये भी चुपचाप लगवा ले "

मैं मतलब समझ रही थी , थोड़ा शर्मा गयी लेकिन मेरी और से दी बोलीं, और जीजू को हड़का लिया, ...

" कैसे कंजूस जीजू हो जो साली को सफ़ेद रंग लगाने का हिसाब रखोगे,... अरे मेरी बहन है, तेरी पिचकारी पिचका के रख देगी, लगा लेना, जित्ती बार वो रंग लगाएगी उत्ती बार, उसके दूनी बार, वो एकदम मना नहीं करेगी।

"दी और जीजू मेरी लिए एक नयी फ्राक और शलवार कुर्ता ले आये थे,... बस वही पहन के मैं घर लौटी। माँ दरवाजे पे ही मिलीं।

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मुझे लगा की चंदा भाभी की माँ ने हड़काया होगा,... लेकिन भौजी बोलीं " अरे नहीं माँ देख के ही समझ गयीं बस दुलार से मुझे दुपका लिया और गाल पे चूम के बोली, अच्छा हुआ तू भी आज से हम लोगो की बिरादरी में आ गयी। जा थोड़ी देर आराम कर ले "

और हर कहानी के अंत में कहते हैं न की कहानी से क्या शिक्षा मिलती है तो चंदा भाभी ने वो शिक्षा भी दे दी।

" साली साली होती है उस की उमर नहीं रिश्ता देखा जाता है। और साली कोई जरूरी नहीं सगी हो रिश्ते जी , मुंहबोली भी ( आखिर चंदा भाभी की नथ तो मुंहबोली दीदी वाले जीजा ने उतारी थी दिन दहाड़े) दूसरी बात अगर जीजा साली को दबोचे नहीं दबाये रगड़े नहीं, मस्ती न करे तो सबसे ज्यादा साली को बुरा लगता है और जीजा साली के रिश्ते की बेइज्जती है। "

मैं ध्यान से उनकी बात सुन रहा था लेकिन उसके बाद जो बात उन्होंने बताई, वो एकदम काम की थी, ... दे

ख यार कोई चढ़ती उम्र वाली हो , गुड्डी की दोनों छोटी बहनों की उम्र की,...

बस एक बार पीछे से पकड़ के दबोच लो, कच्चे टिकोरों का खुल के रस लो,... और साथ में अपना तन्नाया खूंटा उसके छोटे छोटे चूतड़ के बीच दबाओ, जोर से एकदम खुल के रगड़ो, वो एक तो तुम्हारा इरादा समझ जायेगी, दूसरे उसकी देह में इत्ती जबरदस्त सनसनाहट मचेगी,... उसकी कसी बिल में इत्ते जोर से चींटे काटेंगे की वो खुद टाँगे खोल देगी, ... बस समझ लो उसके बाद न चोदना साली की भी बेइज्जती है और बुर रानी की भी। और जीजा साली के रिश्ते में कोई बोलता भी नहीं।

सुबह जब मेरी नींद खुली तो सूरज ऊपर तक चढ़ आया था और नींद खुली उस आवाज से।

“हे कब तक सोओगे। कल तो बहुत नखड़े दिखा रहे थे। सुबह जल्दी चलना है शापिंग पे जाना है और अब। मुझे मालूम है तुम झूठ-मूठ का। चलो मालूम है तुम कैसे उठोगे?” और मैंने अपने होंठों पे लरजते हुए किशोर होंठों का रसीला स्पर्श महसूस किया।

मैंने तब भी आँखें नहीं खोली।

“गुड मार्निंग…” मेरी चिड़िया चहकी।

मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और कसकर किस करके बोला- “गुड मार्निंग…”

“तुम्हारे लिए चाय अपने हाथ से बनाकर लाई हूँ। बेड टी। आज तुम्हारी गुड लक है…” वो मुश्कुरा रही थी।
 
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