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- Dec 5, 2013
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[color=rgb(61,]गुंजा -[/color][color=rgb(235,]भीगे होंठ मेरे[/color]

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नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी, मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,
लेकिन गुंजा को कोई फरक नहीं पड़ रहा था,
उसने आराम से उसने अपने स्कूल बैग का बाहरी पाउच खोला, और पहले एक शीशी खोली उसमें से कुछ लिक्विड निकाला और कस कस के हाथ पे रगड़ा और धीरे धीरे हाथ में लगा सफ़ेद वार्निश काफी कुछ साफ़ साफ़ हो गया
और फिर उसी बाहर वाले पाउच से रंग के कुछ अलग से चार पांच पैकेट, बड़े बड़े, और लाल रंग का पाउच खोल के मुझे दिखाते हुए पूछने लगी
" कैसे लगेगा ये रंग मेरे यार पे "
" तो उसी से पूछ न " अपने तन्नाए मूसलचंद की ओर इशारा करते मैं बोला,
" अरे उसी से पूछ रही हूँ, बुद्धू राम, ...मैंने सुबह बोला था न स्कूल जाने से पहले मेरा इन्तजार करना फिर देखना इत्ती कस के इसकी रगड़ाई होगी, "
और वो लाल रंग गुंजा के कोमल कोमल हाथों से मेरे मोटे मूसल पे
कुछ देर तो वो पीछे से, मेरे पीठ पे अपने उभरते जुबना दबाती रगड़ती, एक मुट्ठी में उसके नहीं आ रहा था तो दोनों हाथों से पकड़ के जैसे कोई ग्वालिन दोनों हाथ से मथानी पकड़ के,
और फिर सामने से नीचे से बैठ के लाल के बाद हरा, और फिर नीला रंग बीच बीच में, और बदमाश इतनी की उस शोख किशोरी की नाचती गाती आँखे मेरी आँखों में झांकती, उकसाती, कभी खुले सुपाड़े को जीभ निकाल के चिढ़ाती तो कभी बस छू के हटा लेती
मेरी हालत ख़राब मैं कहना चाहता था बोल नहीं पा रहा था तो गुंजा ने ही बोल दिया
." अरे जीजू, मैं दी की तरह कंजूस नहीं हूँ, ....बस एक बार बोल के देखिये आपकी साली सब कुछ दे देगी "
और जब उसने जीभ से छुआ तो मुझसे नहीं रहा गया और मैं बोल पड़ा, " हे मुंह में ले ले न न बस जरा सा न, बस एक बार, बस थोड़ी देर,... "
गप्प
सुबह से मूसल चंद ने बहुत स्वाद चखा था, रीत की कसी कसी गुलाबी फांको पे रगड़ घिस कर के, संध्या भाभी की रसीली खेली खायी हलकी सी खुली फांको के बीच फंस के,
लेकिन होंठों का स्वाद नहीं मिला था, और मिला भी तो एकदम शोला और शबनम, गरम गर्म कच्ची अमिया वाली टीनेजर के खूब गुलाबी रसीली होंठों का, सुबह मैं ललचा ललचा के टेबल पे पर ही देख रहा था और स्कूल जाने के पहले एक छोटी सी ही सही मेरे होंठों को चुम्मी मिल गयी थी, लेकिन मेरे चर्मदण्ड की ये किस्मत,
मोटे कड़े मांसल सुपाड़े पे उस शोख सेक्सी टीन के रसीले होंठों का हल्का हल्का प्रेशर, और उस से भी थी उस बदमाश की कातिल कजरारी बड़ी बड़ी आँखे जो मेरी आँखों में मुस्करा के देख रही थीं,
" हे क्या कर रही है, गुंजा,... " मेरे मुंह से निकला।
और जवाब में उसने उन होंठों का दबाव मेरे पगला रहे सुपाड़ा पे बढ़ा दिया और सरकाते हुए इंच इंच आगे,
मजे से मेरी हालत खराब हो रही थी, अच्छा भी लग रहा था, मन भी कर रहा था की ये रुक जाए, ....और मन ये भी कह रहा था की और कस कस के चूसे,
अब मेरी छोटी,... स्कूल वाली साली की जीभ भी मैदान में आ गयी, होंठ हलके हलके दबा रहे थे, जीभ नीचे से रगड़ने लगा और जहाँ सुपाड़ा चर्मदण्ड से मिलता है, ठीक उस जगह पे जीभ की टिप से कुरेदने लगी, और साथ में अब उसने रुक रुक के चूसना भी शुरू कर दिया
मैं सिसक रहा था, कमर अपने आप हिल रही थी मस्ती से हालत खराब हो रही थी, सुबह से होली की मस्ती में पहली बार ऐसे हो रहा था की मेरा एकदम अपने ऊपर कंट्रोल नहीं था। किसी तरह से मैंने बोला,
." अरे निकालो न, अभी तूने इत्ता रंग पोता है सब तेरे मुंह में,.... " और मेरी उस छोटी मिर्च सी तीखी, रसगुल्ले सी मीठी साली ने जवाब दे दिया
पूरी ताकत से उसने अपने सर से, गले से पुश किया और अब मुजफ्फरपुर की शाही लीची से भी रसीला, मोटा सुपाड़ा उस कच्ची कली के मुंह में,
और अब उसके दोनों हाथ भी मैदान में थे, बचा खुचा रंग अपने हाथ से लंड पे पोत रही, रगड़ रही थी, लेकिन रंग से ज्यादा कस कस के मुठिया रही थी। इतना कस के चूस रही थी वो स्साली की जैसी लंड के रस की एक एक बूँद आज घोंट के ही रहेगी,
मुझसे अब नहीं रहा गया, मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयीं, कस के मैंने गुंजा का सर दोनों हाथों से पकड़ा और बिना इस बात का ध्यान रखे की वो उमरिया की बारी है, ....आज पहली बार पहलवान से उसकी दोस्ती हो रही है, दोनों हाथो से उस कोमल किशोरी का, अपनी छोटी साली का मुंह पकड़ के मैंने ठेल दिया, और गुंजा ने भी कस के अपना मुँह फेला , धीरे धीरे कर के सुपाड़े के आगे भी,
जितना जोर से में पुश कर रहा था, उससे जोर के वो पुश कर रही थी,
खूब मुलायम, मखमली रस भरे, गुंजा का मुख रस मेरे मसल में अच्छे से लिथड़ रहा था, उस लड़की न। जैसे मैंने दोनों हाथों से उसके सर को पकड़ रखा था,उसने मेरे चूतड़ को पकड़ के, कस के मुझे अपनी ओर खींच लिया, धीरे धीरे कर के आधे से थोड़ा ही कम खूंटा उस के मुंह के अंदर था।
गुंजा की आँखे उबली पड़ रही थीं,
मोटे से खूंटे को घोंट के गाल एकदम फूले, फ़टे पड़ रहे थे, होंठों के कोनो से लार की एक धार कभी निकल रही थी पर न तो उसके चूसने के जोश में कभी न जीभ जिस तरह से चाट रही थी उसमे कोई कमी आयी, कुछ देर में उसका मुंह तक गया तो उसने बाहर निकाला लेकिन फिर भी नहीं छोड़ा, हाथ से पकड़ के मेरे मूसल को अपने चिकने गाल पे रगड़ने लगी, फिर जीभ से बेस से लेकर ऊपर तक लिक कर रही थी
और मुझे फिर वही बात याद आयी
" अरे क्या कर रही है इसमें लगा रंग तेरे मुंह में,... " मैंने फिर बोला,
हंस के उस हंसिनी ने सुपाड़े पे एक मोटा सा चुम्मा जड़ दिया और मुस्करा के बोली, उसकी दूध खिल सी हंसी बिखर पड़ी,
" जीजू आप भी न, आप की साली हूँ मेरी जो मर्जी वो मुंह में लूँ। "
फिर कुछ रुक के बोली
"आप भी न एकदम बुद्धू हो , तभी मेरी दी अभी तक बची है। अरे इस प्यारे प्यारे मोटू के लिए मैंने अलग इंतजाम किया था, इसलिए तो बाहर वाले पाउच में वो रंग रखे थे, ये सब खाने में डालने वाले, खाने वाले रंग है और वो भी स्ट्रबेरी और चॉकलेट फ्लेवर्ड, मेरी पसंद का इसलिए तो मैं चूसूंगी और मन भर के चूसूंगी। अभी सिर्फ इस लिए निकाल लिया की आप की बात का जवाब देना था। "
वो बोल रही थी, तब भी गुंजा के दोनों मुलायम हाथों में मेरा कड़ा पगलाया खूंटा मसला रगड़ा जा रहा था और फिर जैसे अपने बात पे जोर देने के लिए उसने लम्बी सी जीभ निकाली, पहले मुझे चिढ़ाया, फिर सीधे सुपाड़ा के छेद में, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप डाल के सुरसुरी करने लगी,
मेरी हालत खराब लेकिन गुंजा बदमाशी के नए नए रिकार्ड बना रही थी, जीभ से सुपाड़ा के चारो ओर, बार, कुछ उसके थूक से कुछ मेरे प्री कम से, एकदम गीला लसलसा, और ऊँगली से लगा के गुंजा ने उसी लसलस को अपनी प्रेम गली में और
मेरा मन खराब हो गया, गुंजा ने एक बार फिर से खूंटा मुंह में ले लिया था और कस के चूस रही थी, लेकिन अब एक बार प्रेम गली पे निगाह पे मेरी पड़ गयी तो अब हम दोनों 69 की मुद्रा में

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नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी, मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,
लेकिन गुंजा को कोई फरक नहीं पड़ रहा था,
उसने आराम से उसने अपने स्कूल बैग का बाहरी पाउच खोला, और पहले एक शीशी खोली उसमें से कुछ लिक्विड निकाला और कस कस के हाथ पे रगड़ा और धीरे धीरे हाथ में लगा सफ़ेद वार्निश काफी कुछ साफ़ साफ़ हो गया
और फिर उसी बाहर वाले पाउच से रंग के कुछ अलग से चार पांच पैकेट, बड़े बड़े, और लाल रंग का पाउच खोल के मुझे दिखाते हुए पूछने लगी
" कैसे लगेगा ये रंग मेरे यार पे "
" तो उसी से पूछ न " अपने तन्नाए मूसलचंद की ओर इशारा करते मैं बोला,
" अरे उसी से पूछ रही हूँ, बुद्धू राम, ...मैंने सुबह बोला था न स्कूल जाने से पहले मेरा इन्तजार करना फिर देखना इत्ती कस के इसकी रगड़ाई होगी, "
और वो लाल रंग गुंजा के कोमल कोमल हाथों से मेरे मोटे मूसल पे
कुछ देर तो वो पीछे से, मेरे पीठ पे अपने उभरते जुबना दबाती रगड़ती, एक मुट्ठी में उसके नहीं आ रहा था तो दोनों हाथों से पकड़ के जैसे कोई ग्वालिन दोनों हाथ से मथानी पकड़ के,
और फिर सामने से नीचे से बैठ के लाल के बाद हरा, और फिर नीला रंग बीच बीच में, और बदमाश इतनी की उस शोख किशोरी की नाचती गाती आँखे मेरी आँखों में झांकती, उकसाती, कभी खुले सुपाड़े को जीभ निकाल के चिढ़ाती तो कभी बस छू के हटा लेती
मेरी हालत ख़राब मैं कहना चाहता था बोल नहीं पा रहा था तो गुंजा ने ही बोल दिया
." अरे जीजू, मैं दी की तरह कंजूस नहीं हूँ, ....बस एक बार बोल के देखिये आपकी साली सब कुछ दे देगी "
और जब उसने जीभ से छुआ तो मुझसे नहीं रहा गया और मैं बोल पड़ा, " हे मुंह में ले ले न न बस जरा सा न, बस एक बार, बस थोड़ी देर,... "
गप्प
सुबह से मूसल चंद ने बहुत स्वाद चखा था, रीत की कसी कसी गुलाबी फांको पे रगड़ घिस कर के, संध्या भाभी की रसीली खेली खायी हलकी सी खुली फांको के बीच फंस के,
लेकिन होंठों का स्वाद नहीं मिला था, और मिला भी तो एकदम शोला और शबनम, गरम गर्म कच्ची अमिया वाली टीनेजर के खूब गुलाबी रसीली होंठों का, सुबह मैं ललचा ललचा के टेबल पे पर ही देख रहा था और स्कूल जाने के पहले एक छोटी सी ही सही मेरे होंठों को चुम्मी मिल गयी थी, लेकिन मेरे चर्मदण्ड की ये किस्मत,
मोटे कड़े मांसल सुपाड़े पे उस शोख सेक्सी टीन के रसीले होंठों का हल्का हल्का प्रेशर, और उस से भी थी उस बदमाश की कातिल कजरारी बड़ी बड़ी आँखे जो मेरी आँखों में मुस्करा के देख रही थीं,
" हे क्या कर रही है, गुंजा,... " मेरे मुंह से निकला।
और जवाब में उसने उन होंठों का दबाव मेरे पगला रहे सुपाड़ा पे बढ़ा दिया और सरकाते हुए इंच इंच आगे,
मजे से मेरी हालत खराब हो रही थी, अच्छा भी लग रहा था, मन भी कर रहा था की ये रुक जाए, ....और मन ये भी कह रहा था की और कस कस के चूसे,
अब मेरी छोटी,... स्कूल वाली साली की जीभ भी मैदान में आ गयी, होंठ हलके हलके दबा रहे थे, जीभ नीचे से रगड़ने लगा और जहाँ सुपाड़ा चर्मदण्ड से मिलता है, ठीक उस जगह पे जीभ की टिप से कुरेदने लगी, और साथ में अब उसने रुक रुक के चूसना भी शुरू कर दिया
मैं सिसक रहा था, कमर अपने आप हिल रही थी मस्ती से हालत खराब हो रही थी, सुबह से होली की मस्ती में पहली बार ऐसे हो रहा था की मेरा एकदम अपने ऊपर कंट्रोल नहीं था। किसी तरह से मैंने बोला,
." अरे निकालो न, अभी तूने इत्ता रंग पोता है सब तेरे मुंह में,.... " और मेरी उस छोटी मिर्च सी तीखी, रसगुल्ले सी मीठी साली ने जवाब दे दिया
पूरी ताकत से उसने अपने सर से, गले से पुश किया और अब मुजफ्फरपुर की शाही लीची से भी रसीला, मोटा सुपाड़ा उस कच्ची कली के मुंह में,
और अब उसके दोनों हाथ भी मैदान में थे, बचा खुचा रंग अपने हाथ से लंड पे पोत रही, रगड़ रही थी, लेकिन रंग से ज्यादा कस कस के मुठिया रही थी। इतना कस के चूस रही थी वो स्साली की जैसी लंड के रस की एक एक बूँद आज घोंट के ही रहेगी,
मुझसे अब नहीं रहा गया, मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयीं, कस के मैंने गुंजा का सर दोनों हाथों से पकड़ा और बिना इस बात का ध्यान रखे की वो उमरिया की बारी है, ....आज पहली बार पहलवान से उसकी दोस्ती हो रही है, दोनों हाथो से उस कोमल किशोरी का, अपनी छोटी साली का मुंह पकड़ के मैंने ठेल दिया, और गुंजा ने भी कस के अपना मुँह फेला , धीरे धीरे कर के सुपाड़े के आगे भी,
जितना जोर से में पुश कर रहा था, उससे जोर के वो पुश कर रही थी,
खूब मुलायम, मखमली रस भरे, गुंजा का मुख रस मेरे मसल में अच्छे से लिथड़ रहा था, उस लड़की न। जैसे मैंने दोनों हाथों से उसके सर को पकड़ रखा था,उसने मेरे चूतड़ को पकड़ के, कस के मुझे अपनी ओर खींच लिया, धीरे धीरे कर के आधे से थोड़ा ही कम खूंटा उस के मुंह के अंदर था।
गुंजा की आँखे उबली पड़ रही थीं,
मोटे से खूंटे को घोंट के गाल एकदम फूले, फ़टे पड़ रहे थे, होंठों के कोनो से लार की एक धार कभी निकल रही थी पर न तो उसके चूसने के जोश में कभी न जीभ जिस तरह से चाट रही थी उसमे कोई कमी आयी, कुछ देर में उसका मुंह तक गया तो उसने बाहर निकाला लेकिन फिर भी नहीं छोड़ा, हाथ से पकड़ के मेरे मूसल को अपने चिकने गाल पे रगड़ने लगी, फिर जीभ से बेस से लेकर ऊपर तक लिक कर रही थी
और मुझे फिर वही बात याद आयी
" अरे क्या कर रही है इसमें लगा रंग तेरे मुंह में,... " मैंने फिर बोला,
हंस के उस हंसिनी ने सुपाड़े पे एक मोटा सा चुम्मा जड़ दिया और मुस्करा के बोली, उसकी दूध खिल सी हंसी बिखर पड़ी,
" जीजू आप भी न, आप की साली हूँ मेरी जो मर्जी वो मुंह में लूँ। "
फिर कुछ रुक के बोली
"आप भी न एकदम बुद्धू हो , तभी मेरी दी अभी तक बची है। अरे इस प्यारे प्यारे मोटू के लिए मैंने अलग इंतजाम किया था, इसलिए तो बाहर वाले पाउच में वो रंग रखे थे, ये सब खाने में डालने वाले, खाने वाले रंग है और वो भी स्ट्रबेरी और चॉकलेट फ्लेवर्ड, मेरी पसंद का इसलिए तो मैं चूसूंगी और मन भर के चूसूंगी। अभी सिर्फ इस लिए निकाल लिया की आप की बात का जवाब देना था। "
वो बोल रही थी, तब भी गुंजा के दोनों मुलायम हाथों में मेरा कड़ा पगलाया खूंटा मसला रगड़ा जा रहा था और फिर जैसे अपने बात पे जोर देने के लिए उसने लम्बी सी जीभ निकाली, पहले मुझे चिढ़ाया, फिर सीधे सुपाड़ा के छेद में, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप डाल के सुरसुरी करने लगी,
मेरी हालत खराब लेकिन गुंजा बदमाशी के नए नए रिकार्ड बना रही थी, जीभ से सुपाड़ा के चारो ओर, बार, कुछ उसके थूक से कुछ मेरे प्री कम से, एकदम गीला लसलसा, और ऊँगली से लगा के गुंजा ने उसी लसलस को अपनी प्रेम गली में और
मेरा मन खराब हो गया, गुंजा ने एक बार फिर से खूंटा मुंह में ले लिया था और कस के चूस रही थी, लेकिन अब एक बार प्रेम गली पे निगाह पे मेरी पड़ गयी तो अब हम दोनों 69 की मुद्रा में